मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग दो) खंड एक

आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की पंद्रहवीं मद पर संगति जारी रखेंगे : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं। अपनी पिछली संगति के दौरान हमने इस विषय को दो भागों में विभाजित किया था। पहला भाग है परमेश्वर के अस्तित्व में मसीह-विरोधियों के अविश्वास की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ, जिसे हमने पुनः दो मदों में विभाजित किया है : पहला, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान और सार को नकारना; दूसरा, मसीह-विरोधियों द्वारा सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता को नकारना। पिछली बार हमने मुख्य रूप से इस बात पर संगति की थी कि कैसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के सार या उसके स्वभाव को नहीं स्वीकारते, और कैसे मसीह-विरोधी यह नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह सत्य है और उसकी पहचान दर्शाता है, और कैसे मसीह-विरोधी निश्चित रूप से परमेश्वर के हर कार्य के पीछे का अर्थ और सत्य नहीं स्वीकारते। मसीह-विरोधी शैतान की पूजा करते हैं, शैतान को परमेश्वर मानते हैं और शैतान के तमाम कथनों और दृष्टिकोणों को उस आधार और मानक के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे वे परमेश्वर की पहचान, सार और जो कुछ भी वह करता है, उसे मापते हैं। इसलिए, अपने दिलों में वे बार-बार, शैतान जो कुछ भी करता है उसका उन्नयन और पूजा करते हैं, वे शैतान के क्रियाकलापों की बड़ाई और प्रशंसा करते हैं, और वे परमेश्वर की पहचान और सार का स्थान लेने के लिए शैतान का उपयोग करते हैं। इससे भी बदतर, शैतान द्वारा की गई हर चीज स्वीकारने के आधार पर, वे हर मोड़ पर परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में सवाल उठाते हैं और धारणाएँ और राय बनाते हैं, और अंततः उसके वचनों और कार्य की निंदा करते हैं। इसलिए, परमेश्वर का अनुसरण करने की प्रक्रिया में मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को अपने जीवन, अपने सत्य या अपने जीवन की दिशा और अपने जीवन के लक्ष्य के रूप में नहीं स्वीकारते। इसके बजाय, वे हर मोड़ पर परमेश्वर का विरोध करते हैं और अपनी धारणाओं और कल्पनाओं, शैतान के तर्क और विचारों, और शैतान के स्वभाव और तरीकों जैसी चीजों से परमेश्वर की पहचान और सार को मापते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने की प्रक्रिया में वे लगातार परमेश्वर पर संदेह करते हैं, शक करते हैं और उस पर निगाह रखते हैं, वे लगातार उसकी आलोचना करते हैं और अपने दिलों में उसका तिरस्कार, उसकी निंदा करते हैं और उसे नकारते हैं। ये सभी चीजें जो मसीह-विरोधी करते हैं और उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ वास्तव में यह साबित करती हैं कि वे परमेश्वर के अनुयायी, सच्चे विश्वासी या सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रेमी नहीं हैं, बल्कि वे सत्य और परमेश्वर के शत्रु हैं। जब ये लोग परमेश्वर के घर, कलीसिया में आते हैं, तो वे परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने या परमेश्वर के सामने आकर उसके वचनों को जीवन के रूप में स्वीकारने नहीं आते। तो वे यहाँ क्या करने आते हैं? जब ये लोग परमेश्वर के घर आते हैं, तो पहले, वे कम से कम अपनी जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश कर रहे होते हैं; दूसरे, वे इस प्रवृत्ति का अनुसरण करना चाहते हैं; और तीसरे, वे आशीष चाहते हैं। ये ही उनके इरादे और उद्देश्य होते हैं, बस। मसीह-विरोधियों के प्रकृति-सार के आधार पर आकलन करें तो, वे कभी भी परमेश्वर के वचनों को अपने जीवन के रूप में स्वीकारने का इरादा नहीं रखते, वे कभी भी परमेश्वर के वचनों को अभ्यास के सिद्धांतों या अपने जीवन की दिशा और अपने जीवन का लक्ष्य मानने की योजना नहीं बनाते, और वे कभी भी अपने विचारों को बदलने या त्यागने, या अपनी धारणाओं को बदलने या त्यागने, और पूरी तरह से पश्चात्ताप करने के लिए परमेश्वर के सामने आने, और उसके सामने दंडवत करने और उसे अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकारने की योजना नहीं बनाते। उनका ऐसा कोई इरादा नहीं होता। वे बस परमेश्वर के सामने शेखी बघारते रहते हैं कि वे कितने महान हैं, कितने सक्षम हैं, कितने शक्तिशाली, गुणी और प्रतिभावान हैं, कैसे वे परमेश्वर के घर का स्तंभ और मेरुदंड बन सकते हैं, इत्यादि, जिससे वे अपने इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकें कि परमेश्वर के घर में उन्हें बहुत सम्मान दिया जाए, परमेश्वर द्वारा उन्हें पहचाना जाए और उसके घर में उन्हें पदोन्नत किया जाए, ताकि उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं की पूर्ति हो सके। इतना ही नहीं, बल्कि वे “इस जीवन में सौ गुना और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाने” की अपनी महत्वाकांक्षा, इच्छा और योजना भी पूरी करना चाहते हैं। क्या उन्होंने कभी ये महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ और योजनाएँ त्यागी हैं? क्या वे व्यक्तिपरक रूप से इन मुद्दों को समझ सकते हैं, त्याग सकते हैं और हल कर सकते हैं? वे कभी ऐसा करने की योजना नहीं बनाते। चाहे परमेश्वर के वचन कुछ भी कहें या उजागर करें, भले ही वे उसके वचनों को खुद से जोड़ सकें, भले ही वे जानते हों कि उनकी योजनाएँ, विचार और इरादे परमेश्वर के वचनों के विपरीत हैं और उनके अनुरूप नहीं हैं, वे सत्य-सिद्धांतों के विरुद्ध हैं और मसीह-विरोधियों के स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं, फिर भी वे अपने विचारों, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं पर दृढ़ता से अड़े रहते हैं, और खुद को बदलने, अपने विचार पलटने, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ त्यागने और परमेश्वर का खुलासा, न्याय, ताड़ना और काट-छाँट स्वीकारने के लिए उसके सामने आने की कोई योजना नहीं बनाते। ये लोग न केवल अपने दिलों में अड़ियल होते हैं, बल्कि अहंकारी और दंभी भी होते हैं—वे पूरी तरह से अविवेकी होने की हद तक अहंकारी होते हैं। साथ ही, वे अपने दिलों की गहराई में परमेश्वर द्वारा कहे गए हर वचन से अत्यधिक विमुख होते हैं और उससे घृणा करते हैं; वे परमेश्वर द्वारा भ्रष्ट मनुष्य के प्रकृति-सार को उजागर करने और विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा करने से घृणा करते हैं। वे अकारण ही परमेश्वर और सत्य से घृणा करते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों से भी घृणा करते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनसे परमेश्वर प्रेम करता है। यह पूरी तरह से दिखाता है कि मसीह-विरोधियों का स्वभाव वास्तव में दुष्ट होता है। परमेश्वर और सत्य के प्रति उनकी अकारण घृणा, शत्रुता, विरोध, आलोचना और इनकार भी हमें दिखाते हैं कि मसीह-विरोधियों का स्वभाव बेशक क्रूर होता है।

मसीह-विरोधियों के विभिन्न स्वभाव भ्रष्ट मानवजाति के स्वभावों के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं, और मसीह-विरोधियों के विभिन्न स्वभावों की गंभीरता किसी भी साधारण भ्रष्ट व्यक्ति के स्वभावों से कहीं अधिक है। चाहे परमेश्वर मानवजाति के भ्रष्ट स्वभावों को कितनी भी गहराई से या ठोस तरीके से उजागर करे, मसीह-विरोधी उसे नकारते और ठुकराते हैं, उसे सत्य या परमेश्वर के कार्य के रूप में नहीं स्वीकारते। वे बस यह मानते और विश्वास करते हैं कि पर्याप्त रूप से बुरे, निर्दयी, दुष्ट, अनर्थकारी और शातिर होना ही अंततः दृढ़ रहने, और इस समाज में और बुरी प्रवृत्तियों के बीच अलग दिखने और अंत तक टिके रहने का एकमात्र तरीका है। यह मसीह-विरोधियों का तर्क है। इसलिए, मसीह-विरोधी परमेश्वर के धार्मिक और पवित्र सार, परमेश्वर की वफादारी और सर्वशक्तिमत्ता, और ऐसी दूसरी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता और घृणा रखते हैं। चाहे लोग परमेश्वर की पहचान, सार और उसके समस्त कार्य के बारे में कैसे भी गवाही दें, और चाहे वे कितने भी ठोस और वास्तविक तरीके से ऐसा करें, मसीह-विरोधी उसे नहीं स्वीकारते, वे नहीं स्वीकारते कि यह परमेश्वर का कार्य है, इसके भीतर खोजने के लिए सत्य है, या यह परमेश्वर के बारे में मानवजाति के ज्ञान के लिए सर्वोत्तम शैक्षिक सामग्री और गवाही है। इसके विपरीत, शैतान जो भी छोटी-मोटी चीज करता है, चाहे वह जानबूझकर की जाए या अनजाने में, मसीह-विरोधी उसकी प्रशंसा में दंडवत हो जाते हैं। जब शैतान द्वारा की जाने वाली चीजों की बात आती है, तो मसीह-विरोधी समान रूप से उन चीजों को स्वीकारते हैं, मानते हैं, पूजते हैं और उनका पालन करते हैं, भले ही उन्हें मानवजाति के बीच महान माना जाता हो या नीच। लेकिन एक चीज है जो मसीह-विरोधियों को परेशान करती है : बुद्ध ने कहा कि वह लोगों को शुद्ध भूमि पर पहुँचा सकता है, और मसीह-विरोधी सोचते हैं : “यह शुद्ध भूमि स्वर्ग के राज्य और परमेश्वर द्वारा बताए गए स्वर्ग से कमतर लगती है—यह नितांत आदर्श नहीं है। हालाँकि शैतान शक्तिशाली है और वह लोगों को अनंत लाभ प्रदान कर सकता है, और उनकी तमाम महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी कर सकता है, लेकिन एक चीज जो वह नहीं कर सकता, वह है मनुष्य से वादा करना, लोगों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने और अनंत जीवन प्राप्त करने में सक्षम बनाना। शैतान ऐसा दावा करने की हिम्मत नहीं करता और न ही वह ऐसा कर सकता है।” अपने दिल की गहराई में मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि यह अकल्पनीय है, और साथ ही, उन्हें लगता है कि यह सबसे खेदजनक बात है। इसलिए, अनिच्छा से परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, वे अभी भी इस बारे में साजिश रचते हैं कि कैसे अधिक से अधिक आशीष प्राप्त करें, और कौन उनकी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ पूरी कर सकता है। वे हिसाब-किताब करते रहते हैं और अंततः, उनके पास परमेश्वर के घर में रहने से समझौते करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के आधार पर, परमेश्वर के प्रति उनका रवैया और दृष्टिकोण क्या होता है? क्या उनमें सच्चे विश्वास का एक अंश भी है? क्या उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था है? क्या वे परमेश्वर के क्रियाकलापों को थोड़ा भी स्वीकारते हैं? क्या वे अपने दिल की गहराई से इस तथ्य पर “आमीन” कह सकते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य, जीवन और मार्ग हैं? परमेश्वर ने मानवजाति के बीच इतना महान कार्य किया है—क्या मसीह-विरोधी अपने दिल की गहराई से परमेश्वर की महान शक्ति और धार्मिक स्वभाव की प्रशंसा कर सकते हैं? (नहीं कर सकते।) चूँकि मसीह-विरोधी परमेश्वर की पहचान, सार और उसके समस्त कार्य को नकारते हैं ठीक इसीलिए उसका अनुसरण करने की प्रक्रिया के दौरान वे लगातार अपनी बड़ाई करते और स्वयं की गवाही देते हैं, और लोगों का समर्थन और दिल जीतने की कोशिश करते हैं, यहाँ तक कि लोगों के दिलों को नियंत्रित कर उन्हें पिंजरे में बंद करने की कोशिश करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे प्रतिस्पर्धा करते हैं। ऐसी तमाम अभिव्यक्तियाँ साबित करती हैं कि मसीह-विरोधी परमेश्वर की पहचान और सार कभी नहीं स्वीकारते, न ही यह स्वीकारते हैं कि मानवजाति और सभी चीजें सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के अधीन हैं। यही वह चीज है, जिसका हमने पिछली बार परमेश्वर के अस्तित्व के संबंध में मसीह-विरोधियों के विचारों, अभिव्यक्तियों और खुलासों के बारे में गहन-विश्लेषण किया था। चूँकि मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में ये विचार और अभिव्यक्तियाँ रखते हैं, तो फिर मसीह, देहधारी परमेश्वर के देह के प्रति उनका रवैया क्या होता है? क्या वे वास्तव में उस पर विश्वास कर सकते हैं, उसे स्वीकार सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं? (नहीं।) परमेश्वर के अस्तित्व के प्रति मसीह-विरोधियों के व्यवहार को देखते हुए, वे परमेश्वर के आत्मा के प्रति ऐसा रवैया रखते हैं, इसलिए कहने की आवश्यकता नहीं कि देहधारी परमेश्वर के देह के प्रति उनका रवैया उसके आत्मा के प्रति उनके रवैये से भी ज्यादा घृणित होना चाहिए, और इसकी अभिव्यक्तियाँ अधिक स्पष्ट और गंभीर होनी चाहिए।

II. मसीह-विरोधी मसीह के सार को नकारते हैं

आज हम इस बात पर संगति करेंगे कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में अपने अविश्वास के आधार पर मसीह, देहधारी परमेश्वर के देह के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह एक व्यापक रूप से स्वीकृत तथ्य है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। इस समस्त संगति, खुलासे और विश्लेषण के बाद क्या तुम लोगों को मसीह-विरोधियों के स्वभावों और अभिव्यक्तियों के बारे में कुछ ठोस समझ मिली है? चाहे वे देहधारी परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य या परमेश्वर के देहधारी होने के तथ्य को स्वीकारें या न स्वीकारें, वास्तव में, वे परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं। तो, वे वास्तव में किस तरह के लोग हैं? ठीक-ठीक कहें तो, वे अवसरवादी छद्म-विश्वासी हैं, वे फरीसी हैं। उनमें से कुछ स्पष्ट रूप से बुरे दिखाई देते हैं, जबकि अन्य परिष्कृत, गरिमामय और महान व्यवहार के साथ विनम्र दिखाई देते हैं—वे मानक फरीसी हैं। जब इन दो प्रकार के लोगों की बात आती है—वे जो बुरे दिखाई देते हैं और वे जो बुरे नहीं बल्कि धर्मनिष्ठ दिखाई देते हैं—अगर वे मूल रूप से परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो क्या हम कह सकते हैं कि वे छद्म-विश्वासी हैं? (बिल्कुल।) आज हम इस बात पर संगति कर रहे हैं कि छद्म-विश्वासी मसीह के प्रति क्या विचार और दृष्टिकोण रखते हैं, मसीह के विभिन्न पहलुओं के प्रति वे क्या अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, और इन अभिव्यक्तियों के माध्यम से हम मसीह-विरोधियों के सार को कैसे समझ सकते हैं।

क. मसीह-विरोधी मसीह की उत्पत्ति से कैसे पेश आते हैं

जब मसीह की बात आती है जो एक विशेष पहचान वाला साधारण व्यक्ति है, तो लोग आम तौर पर किन चीजों में सबसे ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं? सबसे पहले, क्या बहुत-से लोग उसकी उत्पत्ति के बारे में दिलचस्पी नहीं लेते? यह लोगों के ध्यान का केंद्र-बिंदु है। तो आओ, पहले इस बात पर संगति करते हैं कि मसीह-विरोधी मसीह की उत्पत्ति से कैसे पेश आते हैं। इस पर संगति करने से पहले, आओ इस बारे में बात करते हैं कि जब परमेश्वर ने देहधारण किया, तो उसने अपने देह की उत्पत्ति के विभिन्न पहलुओं की योजना कैसे बनाई। जैसा कि सर्वविदित है, अनुग्रह के युग में मसीह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया और एक कुँआरी से पैदा हुआ। उसका जन्म एक बहुत ही साधारण, सामान्य परिवार में हुआ था, जिसे आज की शब्दावली में आम नागरिकों का घर कहा जाएगा। वह किसी धनी, अधिकारी या प्रतिष्ठित बड़े परिवार में पैदा नहीं हुआ था—यहाँ तक कि वह एक अस्तबल में पैदा हुआ था, जो बहुत ही अचिंतनीय और सभी की कल्पनाओं से परे था। पहले देहधारी परमेश्वर के देह की उत्पत्ति के हर पहलू को देखते हुए, जिस परिवार में देहधारी परमेश्वर का जन्म हुआ, वह बहुत ही साधारण था। उसकी माँ मरियम भी साधारण थी, कोई असाधारण इंसान नहीं थी, और निश्चित रूप से उसके पास कोई विशेष शक्तियाँ या असाधारण, अद्वितीय प्रतिभाएँ नहीं थीं। लेकिन, यह ध्यान देने योग्य है कि वह छद्म-विश्वासी या गैर-विश्वासी नहीं थी, बल्कि परमेश्वर की अनुयायी थी। यह बहुत महत्वपूर्ण है। मरियम का पति यूसुफ बढ़ई था। बढ़ई एक तरह का शिल्पकार होता है, और उसकी आय औसत थी, लेकिन वह अमीर नहीं था और उसके पास ज्यादा पैसे नहीं थे। लेकिन वह दरिद्र भी नहीं था और अपने परिवार की तमाम बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकता था। प्रभु यीशु इस तरह के परिवार में जन्मा था; आज की आय और जीवन-स्थितियों के मानकों को देखते हुए, उसका परिवार मुश्किल से ही मध्यवर्गीय परिवार माना जा सकता है। ऐसे परिवार को मानवजाति के बीच कुलीन माना जाएगा या निम्न? (निम्न माना जाएगा।) इसलिए, जिस परिवार में प्रभु यीशु का जन्म हुआ, वह प्रसिद्ध, धनी या प्रतिष्ठित नहीं था, और आजकल जिसे उच्चवर्गीय परिवार माना जाता है, वह तो बिल्कुल नहीं था। जब धनी या उच्च हैसियत वाले परिवारों के बच्चे बाहर जाते हैं, तो लोग आम तौर पर उन्हें घेर लेते हैं और उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाते हैं, लेकिन प्रभु यीशु का परिवार इसके विपरीत था। उसका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था, जहाँ न तो विलासितापूर्ण जीवन-स्थितियाँ थीं और न ही जिसकी कोई उल्लेखनीय हैसियत थी। यह एक बहुत ही साधारण परिवार था, जिस पर लोग ध्यान नहीं देते थे और उसे अनदेखा कर देते थे, कोई भी उनकी प्रशंसा नहीं करता था या उनके इर्द-गिर्द नहीं जुटता था। उस समय ऐसी पृष्ठभूमि और सामाजिक परिवेश में, क्या मसीह उच्च शिक्षा प्राप्त करने या उच्च समाज की विभिन्न जीवन-शैलियों, विचारों, दृष्टिकोणों आदि से प्रभावित और संक्रमित होने की स्थिति में था? स्पष्ट रूप से, वह इस स्थिति में नहीं था। उसने सामान्य शिक्षा प्राप्त की, घर पर ही धर्मशास्त्र पढ़ा, अपने माता-पिता से कहानियाँ सुनीं और उनके साथ कलीसिया की सेवाओं में हिस्सा लिया। हर लिहाज से, प्रभु यीशु की उत्पत्ति और वह संदर्भ जिसमें वह बड़ा हुआ, प्रतिष्ठित या महान नहीं थे, जैसा कि लोग कल्पना कर सकते हैं। जिस परिवेश में वह बड़ा हुआ, वह एक साधारण व्यक्ति के परिवेश जैसा ही था। उसका दैनिक जीवन सरल और साधारण था, उसकी जीवन-स्थितियाँ औसत व्यक्ति के जैसी ही थीं, वे कुछ खास नहीं थीं, और उसे समाज के उच्च वर्गों वाली विशेष, उत्कृष्ट जीवन-स्थितियाँ नहीं मिली थीं। यह वह संदर्भ था, जिसमें प्रथम देहधारी परमेश्वर के देह का जन्म हुआ, और यह वह परिवेश था जिसमें वह बड़ा हुआ।

हालाँकि इस बार देहधारी परमेश्वर का लिंग पिछली बार से पूरी तरह से भिन्न है, लेकिन उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि वैसी ही साधारण है और उल्लेखनीय हैसियत वाली नहीं है। कुछ लोग पूछते हैं, “कितनी साधारण?” वर्तमान युग में साधारण का अर्थ है एक सामान्य जीवन-यापन वाला परिवेश। मसीह का जन्म एक मजदूर के परिवार में हुआ था, अर्थात्, ऐसे परिवार में जो जीविका के लिए मजदूरी पर निर्भर करता है, अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकता है, लेकिन धनी लोगों जितना समृद्ध नहीं है। मसीह ने साधारण लोगों के साथ संबंध बनाए और साधारण लोगों के जीवन से अवगत हुआ; वह इस तरह के परिवेश में रहा, इसमें कुछ खास नहीं था। आम तौर पर, क्या मजदूर-परिवारों के बच्चे कलात्मक कौशल सीखने की स्थिति में होते हैं? क्या उन्हें उच्च समाज में प्रचलित विभिन्न विचारों से अवगत होने का अवसर मिलता है? (नहीं मिलता।) न केवल वे विभिन्न कौशल सीखने की स्थिति में नहीं होते, बल्कि इससे भी बढ़कर, उनके पास उच्च समाज के लोगों, घटनाओं और चीजों के संपर्क में आने के अवसर भी नहीं होते। इस परिप्रेक्ष्य से, इस बार देहधारी परमेश्वर का जन्म जिस परिवार में हुआ, वह बहुत साधारण है। उसके माता-पिता ऐसे लोग हैं, जो सम्मानजनक तरीके से अपना दिन गुजारते हैं, जिनकी आजीविका उनके काम और नौकरियों पर निर्भर करती है, और उनकी जीवन-स्थितियाँ औसत हैं। आधुनिक समाज में ऐसी स्थितियाँ सबसे आम हैं। गैर-विश्वासियों के परिप्रेक्ष्य से, मसीह के जन्म के परिवेश में कोई उत्कृष्ट स्थिति नहीं थी, और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या जीवन की गुणवत्ता में कुछ भी शेखी बघारने लायक नहीं था। कुछ मशहूर हस्तियाँ विद्वान परिवारों में पैदा हुई हैं; उनके सभी पूर्वज शिक्षक और वरिष्ठ बुद्धिजीवी थे। एक विद्वान परिवार की शैली और आचरण के साथ वे इस परिवेश में पले-बढ़े। क्या देहधारी परमेश्वर ने अपने देह के लिए ऐसी ही पारिवारिक पृष्ठभूमि चुनी? नहीं। इस बार देहधारी परमेश्वर की कोई प्रतिष्ठित पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रमुख सामाजिक हैसियत भी नहीं है, और बेहतर जीवन-परिवेश तो उसके पास बिल्कुल भी नहीं था—उसका परिवार बिल्कुल साधारण है। आओ, अभी इस बात पर चर्चा नहीं करते कि अपने पलने-बढ़ने के लिए देहधारी परमेश्वर ने ऐसा परिवार, जीवन-परिवेश और ऐसी पृष्ठभूमि क्यों चुनी; हम अभी इसके महत्व के बारे में बात नहीं करेंगे। मुझे बताओ, क्या कुछ लोग इस बात में दिलचस्पी नहीं दिखाते कि मसीह ने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी या नहीं? मैं तुम लोगों को सच बताता हूँ : मैंने कॉलेज प्रवेश परीक्षा देने से पहले ही स्कूल छोड़ दिया था और 17 साल की उम्र में घर छोड़कर चला गया था। तो क्या मैंने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया? (नहीं।) तुम लोगों के लिए यह बुरी खबर है या अच्छी? (मुझे लगता है कि इसे जानने से कोई फर्क नहीं पड़ता, परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए यह अप्रासंगिक है।) यह सही परिप्रेक्ष्य है। मैंने पहले कभी इसका जिक्र नहीं किया, इसलिए नहीं कि मैं इसे छिपाना या ढकना चाहता था, बल्कि इसलिए कि यह कहना अनावश्यक है, क्योंकि परमेश्वर को जानने और उसका अनुसरण करने के लिए ये चीजें पूरी तरह से अप्रासंगिक हैं। हालाँकि देहधारी परमेश्वर के जन्म की पृष्ठभूमि का, उसके पारिवारिक परिवेश का और उस परिवेश का जिसमें वह पला-बढ़ा, परमेश्वर या देहधारी परमेश्वर को जानने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, और वे वास्तव में इन चीजों से संबंधित नहीं हैं, फिर भी मैं यहाँ इन मुद्दों का जिक्र क्यों कर रहा हूँ? यह मसीह के प्रति मसीह-विरोधियों के विचारों में से एक से जुड़ा है, जिसका हम आज गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। देहधारी परमेश्वर ने अपने देह के लिए कोई प्रमुख हैसियत, कुलीन पहचान या प्रतिष्ठित परिवार और सामाजिक पृष्ठभूमि नहीं चुनी, और अपने बड़े होने के लिए कोई श्रेष्ठ, चिंतामुक्त, समृद्ध, विलासी परिवेश तो बिल्कुल नहीं चुना। परमेश्वर ने ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी नहीं चुनी, जहाँ वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता या उच्च समाज के संपर्क में आ सकता। जब परमेश्वर ने देहधारण किया, तो उसके द्वारा चुने गए विकल्पों के इन पहलुओं पर विचार करते हुए, क्या ये चीजें उस कार्य को प्रभावित करतीं, जिसे करने के लिए मसीह आया था? (नहीं।) उसके बाद के कार्य की प्रक्रिया, प्रकृति और परिणामों को देखते हुए, ये पहलू किसी भी तरह से परमेश्वर की कार्य-योजना, कार्य के चरणों या परिणामों को प्रभावित नहीं करते, बल्कि इसके विपरीत, उसके चुनाव के इन पहलुओं का एक निश्चित लाभ है, अर्थात, परमेश्वर का ऐसे परिवेश में जन्म लेना उसके चुने हुए लोगों के उद्धार के लिए ज्यादा लाभदायक है, क्योंकि उनमें से 99% ऐसी ही पृष्ठभूमि से आते हैं। यह देहधारी परमेश्वर की उत्पत्ति के महत्व का एक पहलू है, जिसे लोगों को समझना चाहिए।

अभी-अभी मैंने मसीह के जन्म की पृष्ठभूमि और परिवेश के बारे में सरल, व्यापक शब्दावली में बात की, ताकि तुम्हें इसकी एक सामान्य समझ मिल सके। इसके बाद, आओ इस बात का गहन-विश्लेषण करते हैं कि मसीह-विरोधी देहधारी परमेश्वर की उत्पत्ति से कैसे पेश आते हैं। पहले, मसीह-विरोधी गुप्त रूप से मसीह के जन्म के परिवेश और पृष्ठभूमि का तिरस्कार करते हैं और उसके प्रति विद्रोही महसूस करते हैं। वे इसका तिरस्कार क्यों करते हैं और इसके प्रति विद्रोही क्यों महसूस करते हैं? क्योंकि वे अपने भीतर विचार और धारणाएँ पालते हैं। इस पर उनका क्या परिप्रेक्ष्य होता है? “परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, वह सभी से श्रेष्ठ है, वह स्वर्ग से ऊपर है, और मानवजाति और अन्य सभी सृजित प्राणियों से ऊपर है। अगर वह परमेश्वर है तो उसे मानवजाति के बीच सर्वोच्च स्थान पर उठना चाहिए।” उसके सर्वोच्च स्थान पर उठने से उनका क्या मतलब है? उनका मतलब है कि उसे सभी से बेहतर होना चाहिए, उसे एक प्रतिष्ठित, कुलीन बड़े परिवार में जन्म लेना चाहिए, और उसे किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए; उसे अपने मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा होना चाहिए, उसके पास पूर्ण शक्ति और साथ ही अधिकार और प्रभाव होना चाहिए, और उसे विशेष रूप से धनी और अरबपति होना चाहिए। साथ ही, उसे उच्च शिक्षित होना चाहिए, इस दुनिया में मनुष्यों को जो कुछ भी जानना चाहिए, उसे वह सब सीखना चाहिए। उदाहरण के लिए, सिंहासन के उत्तराधिकारी राजकुमार की तरह, उसे व्यक्तिगत रूप से अकेले शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, कुलीन स्कूलों में जाना चाहिए और उच्च वर्ग के जीवन का आनंद लेना चाहिए। उसे एक साधारण परिवार का बालक नहीं होना चाहिए। चूँकि मसीह देहधारी है, इसलिए उसकी शिक्षा अन्य सभी लोगों से बढ़कर होनी चाहिए, और उसकी अध्ययन-सामग्री सामान्य लोगों से अलग होनी चाहिए। उन्हें लगता है कि चूँकि मसीह एक राजा की तरह शासन करने आता है, इसलिए उसे शासन करने की कला सीखनी चाहिए, साथ ही यह भी सीखना चाहिए कि मानवजाति पर शासन और नियंत्रण कैसे करना है, और उसे “छत्तीस रणनीतियाँ” का अध्ययन करना चाहिए, और कई भाषाएँ और कुछ कलात्मक कौशल सीखने चाहिए, ताकि ये चीजें उसके भविष्य के कार्य में इस्तेमाल हो सकें और वह भविष्य में सभी प्रकार के लोगों पर शासन कर सके। उनके विचार से केवल ऐसा मसीह ही अभिजात, महान और लोगों को बचाने में सक्षम होगा, क्योंकि उसके पास पर्याप्त ज्ञान और प्रतिभाएँ होंगी, और लोगों के दिमाग पढ़ने की पर्याप्त क्षमता होगी, ताकि वह उन्हें नियंत्रित कर सके। मसीह-विरोधी देहधारी परमेश्वर के देह की उत्पत्ति के बारे में ऐसी धारणाएँ रखते हैं और देहधारी परमेश्वर को स्वीकारते हुए वे ये धारणाएँ बनाए रखते हैं। पहले, वे अपनी धारणाएँ दूर नहीं करते और परमेश्वर जो कुछ करता है, उसे अपने दिल की गहराई से नए सिरे से नहीं समझते-बूझते। वे अपनी धारणाओं और विचारों को नहीं नकारते, वे जो भ्रांतियाँ पालते हैं उन्हें नहीं समझते, और वे मसीह और देहधारी परमेश्वर के देह को नहीं जानते, और मसीह जो कुछ भी कहता और करता है उसे सत्य के प्रति समर्पण के रवैये और सिद्धांत के साथ नहीं स्वीकारते। इसके बजाय, वे मसीह द्वारा कही गई हर बात को अपनी धारणाओं और विचारों से मापते हैं। “मसीह का यह कथन अतार्किक है; उस कथन की शब्दावली खराब है; इसमें व्याकरण संबंधी त्रुटि है; तुम कह सकते हो कि मसीह उच्च शिक्षित नहीं है। क्या वह एक आम आदमी की तरह नहीं बोलता? मसीह इस तरह कैसे बोल सकता है? यह उसकी गलती नहीं है। वास्तव में, वह भी प्रतिष्ठित होना चाहता है, दूसरों द्वारा सम्मानित होना चाहता है, लेकिन यह संभव नहीं है—वह अच्छे परिवार से नहीं आता। उसके माता-पिता बस साधारण लोग थे, और जिस तरह के वे थे, उसने उसे उसी तरह का व्यक्ति बनने के लिए प्रभावित किया है। परमेश्वर ऐसा कैसे कर सकता है? मसीह के शब्द और तरीका बहुत सुंदर और महान क्यों नहीं लगते? उसके पास समाज के विद्वानों और परिष्कृत बुद्धिजीवियों, समाज के उच्च वर्गों की राजकुमारियों और राजकुमारों की बोलचाल और तरीका क्यों नहीं हैं? मसीह के शब्द और कर्म उसकी पहचान के साथ इतने असंगत क्यों लगते हैं?” मसीह-विरोधी मसीह और उसके सभी वचनों और कार्य को, लोगों के साथ उसके व्यवहार को, और उसके भाषण और तरीके को कैसे देखते हैं, इसमें मसीह-विरोधी इसी तरह का परिप्रेक्ष्य और अवलोकन करने का दृष्टिकोण रखते हैं, और अनिवार्य रूप से उनके दिलों में धारणाएँ पैदा होती हैं। वे न केवल मसीह के प्रति समर्पण नहीं करते, बल्कि उसके वचनों के साथ भी सही रवैये से पेश नहीं आते हैं। वे कहते हैं, “क्या ऐसा साधारण व्यक्ति, ऐसा आम आदमी मेरा उद्धारकर्ता हो सकता है? क्या वह मुझे आशीष दे सकता है? क्या मैं उससे कोई लाभ प्राप्त कर सकता हूँ? क्या मेरी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ पूरी हो सकती हैं? यह व्यक्ति इतना साधारण है कि उसे हीन दृष्टि से देखा जा सकता है।” जितना ज्यादा मसीह-विरोधी मसीह को साधारण और औसत मानते हैं, और सोचते हैं कि मसीह बहुत सामान्य है, उतना ही ज्यादा वे खुद को उदात्त और महान समझते हैं। साथ ही, कुछ मसीह-विरोधी तो तुलना तक कर डालते हैं, “तुम जवान हो और नहीं जानते कि कपड़े कैसे पहनने चाहिए या लोगों से कैसे बात करनी चाहिए। तुम नहीं जानते कि लोगों से बातें कैसे निकलवाई जाएँ। तुम इतने सीधे क्यों हो? तुम्हारी कही कोई भी चीज परमेश्वर के सदृश कैसे हो सकती है? तुम्हारी कही कोई भी चीज यह कैसे दर्शाती है कि तुम परमेश्वर हो? तुम्हारे क्रियाकलाप, भाषण, व्यवहार, तरीका और पहनावा परमेश्वर के सदृश कैसे है? मुझे नहीं लगता कि तुम इनमें से किसी भी मामले में परमेश्वर के सदृश हो। मसीह को उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए, बाइबल बहुत अच्छी तरह से आनी चाहिए और वाक्पटुता के साथ बोलना चाहिए, लेकिन तुम हमेशा खुद को दोहराते हो और कभी-कभी ऐसे शब्दों का उपयोग करते हो, जो उपयुक्त नहीं होते।” कई वर्षों से मसीह का अनुसरण करने के बाद भी मसीह-विरोधियों ने न केवल परमेश्वर के वचनों और सत्य को अपने दिलों में स्वीकार नहीं किया है, बल्कि उन्होंने इस तथ्य को भी स्वीकार नहीं किया है कि मसीह देहधारी परमेश्वर का देह है। यह उनके द्वारा मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में न स्वीकारने के बराबर है। इसके बजाय, वे अपने दिलों में देहधारी परमेश्वर के देह को, इस साधारण व्यक्ति को, और भी ज्यादा तुच्छ समझते हैं। चूँकि वे मसीह में कुछ भी खास नहीं देखते, चूँकि उसकी उत्पत्ति बहुत ही सामान्य और साधारण थी, और चूँकि वह समाज में या मानवजाति के बीच उन्हें कोई लाभ पहुँचाने या उन्हें किसी भी लाभ का आनंद लेने में सक्षम बनाने में असमर्थ लगता है, इसलिए वे बेलगाम होकर और खुले तौर पर उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं, “क्या तुम बस फलाँ-फलाँ परिवार के बालक नहीं हो? फिर मेरे द्वारा तुम्हारी आलोचना करने में क्या गलत है? तुम मेरा कर ही क्या सकते हो? अगर तुम्हारा कोई प्रतिष्ठित परिवार होता या तुम्हारे माता-पिता अधिकारी होते तो मैं तुमसे डर सकता था। लेकिन जैसे तुम हो, तो मैं तुमसे क्यों डरूँ? इसलिए, अगर तुम मसीह हो, देहधारी देह हो जिसकी परमेश्वर ने गवाही दी है, तो भी मैं तुमसे नहीं डरता! मैं अभी भी तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हारी आलोचना करूँगा, और तुम पर खुलकर टिप्पणी करूँगा। जब भी मुझे मौका मिलेगा, मैं तुम्हारे परिवार और जन्मस्थान का अध्ययन करूँगा।” ये मसीह-विरोधियों की पसंदीदा चीजें हैं, जिन पर वे हंगामा करते हैं। वे कभी सत्य नहीं खोजते, और जो कुछ भी उनकी धारणाओं और कल्पनाओं से मेल नहीं खाता, उसकी बार-बार आलोचना और विरोध करते हैं। ये लोग अच्छी तरह जानते हैं कि मसीह जो कुछ व्यक्त करता है वह सत्य है, तो वे सत्य क्यों नहीं खोजते? वे वास्तव में अविवेकी हैं!

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