मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग एक) खंड तीन

ख. परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करना

इसके बाद आओ, “वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं” की दूसरी अभिव्यक्ति पर संगति करते हैं : मसीह-विरोधियों का परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करना। मसीह-विरोधियों के लिए, परमेश्वर की पहचान रखने वाला सृष्टिकर्ता अस्तित्व में ही नहीं है, वह सिर्फ एक मिथक है। तो क्या मसीह-विरोधी यह तथ्य स्वीकार सकते हैं कि सृष्टिकर्ता सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है? कहने की आवश्यकता नहीं है कि वे इस तथ्य को नहीं स्वीकारते। वे इसे नहीं स्वीकारते, और यह भी तथ्यों पर आधारित है। परमेश्वर के बारे में मसीह-विरोधियों का विश्वास, ज्ञान और समझ इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं, आराध्य-जनों के बारे में कुछ इंसानी संकल्पनाओं और समझ, और उन पाखंडों और भ्रांतियों पर आधारित है, जिनका उपयोग वे आराध्य-जन लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं। मसीह-विरोधियों के दिलों में मौजूद धारणाएँ, कल्पनाएँ, पाखंड, भ्रांतियाँ और अन्य चीजें इस तथ्य के अनुरूप हैं या विपरीत कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? बेशक वे इस तथ्य के विपरीत हैं। वे आराध्य-जन, जिनको लोग चढ़ावा चढाते हैं, मानवजाति के बीच मजबूती से पैर जमाने के लिए कुछ ऐसे पाखंड और भ्रांतियाँ सामने रखकर उन्हें गुमराह करते हैं, जो इंसानी धारणाओं, कल्पनाओं और रुचियों के अनुरूप होती हैं, जैसे कि “बुद्ध परोपकारी है,” “स्वर्ग जीवित चीजों को सँजोता है,” “एक जीवन बचाना सात-मंजिला मंदिर बनाने से बेहतर है,” और “जो भाग्य में लिखा है वह अवश्य होगा, जो भाग्य में नहीं लिखा उसके होने पर जोर नहीं देना चाहिए।” और कुछ? (तुम्हारे तीन फीट ऊपर एक परमेश्वर है।) तुम्हारे तीन फीट ऊपर कहाँ है? वह अधर में है, जहाँ शैतान रहता है। यह “परमेश्वर” क्या है? (यह शैतान है।) और वह कौन-सी कहावत है, जिसका बौद्ध लोग अक्सर प्रयोग करते हैं? (भलाई के बदले भलाई मिलती है और बुराई के बदले बुराई मिलती है; इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है।) लोग दुनिया में अक्सर कही जाने वाली इन अपेक्षाकृत सकारात्मक कहावतों और दार्शनिक सिद्धांतों को सत्य मानते हैं, लेकिन वास्तव में, क्या ये शब्द सत्य हैं? क्या इनके और सत्य के बीच कोई संबंध है? (नहीं।) जैसे “भलाई के बदले भलाई मिलती है और बुराई के बदले बुराई मिलती है; इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है”—इसमें “भलाई के बदले भलाई मिलती है” का क्या अर्थ है? “भलाई” का क्या अर्थ है? यह न्याय है, सत्य है या मनुष्य की थोड़ी-सी सद्भावना है? (यह मनुष्य की सद्भावना है।) क्या मनुष्य की थोड़ी-सी सद्भावना का बदला वास्तव में अच्छाई से मिलता है? जरूरी नहीं। “जो पुल बनाते हैं और सड़कों की मरम्मत करते हैं वे अंततः अंधे हो जाते हैं”—पुल बनाना और सड़कों की मरम्मत करना दयालुता के कार्य हैं, तो फिर वे आखिर में अंधे क्यों हो जाते हैं? क्या इन कार्यों के लिए कोई इनाम है? (नहीं।) “बुराई के बदले बुराई मिलती है”—हत्या और आगजनी बुराई है, तो क्या उनका बदला बुराई से मिलता है? (नहीं।) क्यों नहीं? “जबकि हत्यारों और आगजनी करने वालों की संतानें कई गुना बढ़ती हैं”—ये शब्द “बुराई के बदले बुराई मिलती है” का खंडन करते हैं। “इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है”—इसमें “अभी इसका समय नहीं आया है” का क्या अर्थ है? उसके आने का क्या अर्थ है? जब लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इन शब्दों और कहावतों को सकारात्मक चीजें और सत्य मानते हैं। खोखले दिल वाले और आध्यात्मिक पोषण के स्रोत से रहित लोग खुद को सांत्वना देने के लिए इन तथाकथित सही शब्दों को अपने आध्यात्मिक पोषण के रूप में, एक तरह के आध्यात्मिक सुख के रूप में, लेते हैं, “यह ठीक है, जीवन में आशा है, इस दुनिया में अभी भी निष्पक्षता और धार्मिकता है, और अभी भी कोई है जो न्याय कायम रखेगा। निष्पक्ष परिणाम प्राप्त करना अभी भी संभव है, और अंततः इस सब पर एक संकल्प-वक्तव्य पारित किया जाएगा।” क्या वे कहावतें सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की सच्ची समझ हैं? क्या वे लोगों द्वारा इस तथ्य की स्वीकृति की सच्ची अभिव्यक्तियाँ हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) क्या लोग जो कहावतें या मुहावरे कहते हैं, वे इस तथ्य से संबंधित हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) क्यों नहीं? (ये शब्द सत्य नहीं हैं।) तुम्हारा उत्तर इसे सैद्धांतिक स्तर पर साबित करता है, लेकिन मूल कारण क्या है? मूल कारण इस सिद्धांत जितना सरल नहीं है, इसे सिर्फ इस एक वाक्य में समझा पाना संभव नहीं है। चूँकि परमेश्वर के सभी चीजों पर संप्रभु होने का मामला इतना सरल नहीं है, तो इसे कैसे समझा जाए? जैसा कि हमने पहले संगति की थी, मसीह-विरोधी यह नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी क्यों न देख रहे हों, वे उसकी पड़ताल और विश्लेषण हमेशा एक दर्शक के और एक भौतिकवादी के परिप्रेक्ष्य से करते हैं जो धन और शक्ति को जीवन मानता है। अगर कोई व्यक्ति किसी भी चीज को ऐसे परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण से देखता है, तो क्या समस्या का सार बदल नहीं जाएगा? क्या यह अलग नहीं होगा? अगर कोई व्यक्ति सभी चीजों के विकास के नियम-कानूनों को एक भौतिकवादी के परिप्रेक्ष्य से देखता है, तो अंतिम नतीजा क्या होगा? क्या दुनिया के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण सांसारिक आचरण के इंसानी फलसफे, रणनीतियाँ, विधियाँ और पेश आने के तरीके प्रस्तुत नहीं करेगा? क्या यह खेल के नियम प्रस्तुत नहीं करेगा? (हाँ।) यह नतीजा है, और मुद्दे का सार यहीं है।

एक भौतिकवादी सत्ता को किस तरह से देखता है? वह मानता है कि अगर कोई व्यक्ति सत्ता हासिल करना चाहता है, तो पहले, उसके पास रणनीतियाँ होनी आवश्यक हैं, दूसरे, उसे सभी तरह के लोगों को नियंत्रित करने में सक्षम होना चाहिए, तीसरे, उसे क्रूर होने की आवश्यकता है, और चौथे, उसे परिवर्तनीय होना चाहिए। क्या यह एक भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं है? क्या इसमें परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण का कोई संकेत है? (नहीं।) भौतिकवादियों को सत्ता के बारे में ये विचार कैसे आए? क्या ये विचार मसीह-विरोधियों के सार से उत्पन्न नहीं हुए थे? (बिल्कुल।) मसीह-विरोधियों के किस सार से? मुझे बताओ, अगर मसीह-विरोधियों में दुष्ट सार नहीं होता, तो क्या वे “लोगों को नियंत्रित करने में सक्षम” जैसे शब्द सोचते? क्या वे सोचते कि उनके पास “रणनीतियाँ होनी आवश्यक हैं”? क्या वे कहते कि उन्हें “परिवर्तनीय होना चाहिए”? अगर उनमें दुष्ट सार न होता तो क्या वे कहते कि उन्हें “क्रूर होने की आवश्यकता है”? (नहीं।) यह मसीह-विरोधियों के सार से निर्धारित होता है। क्या उनके सार से उत्पन्न विभिन्न विचार सिर्फ उनके मन में विद्यमान विचार हैं, या सांसारिक आचरण के उनके सिद्धांत और रोजमर्रा की जिंदगी में उनका स्व-आचरण एक समान हैं? (सांसारिक आचरण के उनके सिद्धांत एक समान हैं।) वे अपने दैनिक जीवन में और समूहों के बीच लगातार सारांश बना रहे हैं ताकि उनकी रणनीतियाँ ज्यादा से ज्यादा परिपक्व और अनुभवी होती जाएँ और अंत में शैतानी बन जाएँ। शैतानी का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है काफी क्रूर, काफी निर्दयी और काफी दुष्ट होना। क्या उनकी क्रूरता, निर्दयता और दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ उन्हें परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए बाध्य कर सकती हैं? बिल्कुल नहीं। इसलिए, चाहे वे युवा हों या बूढ़े, मसीह-विरोधी सब-कुछ अपने फलसफों, कानूनों, खेल के नियमों, रणनीतियों और अनुभव के आधार पर करते हैं। यह सब इस तथ्य के अनुरूप है या विपरीत कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (विपरीत।) जब मसीह-विरोधी अपने सारांशों से उत्पन्न ये तमाम कानून लागू करते हैं, तो उनका सिद्धांत और लक्ष्य क्या होता है? उनकी प्रेरणा क्या होती है? वे कहते हैं, “अगर तुम जो चाहते हो उसे पाना चाहते हो, तो तुम्हें कुछ भी करना और किसी भी हद तक जाना सीखना चाहिए, काफी क्रूर, काफी निर्दयी और काफी दुष्ट होना चाहिए, जैसी कि कहावत है, ‘एक छोटे मन से कोई सज्जन व्यक्ति नहीं बनता है; वैसे वास्तविक मनुष्य को क्रूर होना चाहिए।’” इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है : “परमेश्वर की संप्रभुता क्या है? स्वर्ग की व्यवस्थाओं की प्रतीक्षा क्या है? ऐसा कुछ नहीं है! कौन-सा अधिकारी या सम्राट कठोर और क्रूर तरीकों से उस स्थान पर नहीं पहुँचा है जहाँ वह अभी है? क्या ये पद लड़कर और हत्याओं के जरिये प्राप्त नहीं किए जाते?” उनके इस दृष्टिकोण को देखते हुए, क्या मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) अविश्वासी दुनिया में मसीह-विरोधी अस्तित्व के इस नियम पर ऐसा परिप्रेक्ष्य रखते हैं। तो जब वे कलीसिया में होते हैं, तब क्या वे कार्य करते समय उन्हीं रणनीतियों का उपयोग करेंगे? क्या वे उन्हीं जीवन-नियमों का पालन करेंगे? यह जरा भी नहीं बदलेगा। यहाँ तक कि जब मसीह-विरोधी कलीसिया में आते हैं, तो वे कभी खुद को संयमित नहीं करते या खुद को सुधारते नहीं, वे ऐसा बिल्कुल नहीं करते। वे कहते हैं, “अगर तुम दूसरों से श्रेष्ठ होना चाहते हो, तो तुम्हें रणनीतियों से युक्त होना सीखना चाहिए। जब हर कोई तुम्हारे आसपास हो, खासकर प्रतिष्ठित लोग तुम्हारे आसपास हों, तो तुम्हें दिखावा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, और प्रभारी लोगों, अगुआओं और ऊपरवाले को इसे दिखाना चाहिए। तब तुम्हें पदोन्नत होने और महत्वपूर्ण पदों पर रखे जाने का मौका मिलेगा, और दूसरों से श्रेष्ठ होने का अवसर मिलेगा। इसके अलावा, जब तुम लोगों के आसपास होते हो, तब और जब तुम लोगों के आस-पास नहीं होते हो तब, तुम्हें अलग-अलग तरह से व्यवहार करना सीखना चाहिए, तुम्हें धोखेबाजी में लिप्त रहना सीखना चाहिए। लोगों के सामने अच्छी चीजें करो, और भयानक, बुरी, अंधकारपूर्ण चीजें, और ऐसी चीजें जो लोगों को पसंद न हों, छिपकर करो। कभी किसी को अपनी असलियत मत देखने दो। तुम्हें लोगों को अपना सर्वोत्तम पक्ष दिखाना चाहिए और खुद को अच्छी तरह से छिपाना चाहिए। चाहे तुम वास्तव में कितने भी बुरे क्यों न हो, तुम्हें इसे अच्छी तरह से छिपाना चाहिए। लोगों का समर्थन मत खोओ। अगर तुमने उनका समर्थन खो दिया, तो बहुत देर हो चुकी होगी—तब तुम्हारे पास कोई मौका नहीं होगा।” मसीह-विरोधी भी कलीसिया में ऐसी ही रणनीतियों और अस्तित्व के नियमों के अनुसार जीते हैं।

मसीह-विरोधी उन सभी भाई-बहनों की गवाहियों को किस तरह देखते हैं, जिन्होंने सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का अनुभव कर उसे जाना है? मसीह-विरोधी कहते हैं, “लोगों के पास दिमाग, विचार और शिक्षा है, और संपादन और लेखन के जरिये उन्होंने ये अनुभवजन्य गवाहियाँ तैयार की हैं। वास्तव में, ये तमाम अनुभवजन्य गवाहियाँ लोगों द्वारा कल्पित हैं, ये सब नकली हैं, और ये सब असंभव हैं। मैं भी अनुभवजन्य गवाही पेश कर सकता हूँ, अगर मुझे उसे गढ़ना हो तो। मैं अनुभवजन्य गवाही के 10-20 लेख पेश कर सकता हूँ। मैं ऐसा करने की जहमत नहीं उठा सकता। क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम लोगों की छोटी-छोटी साजिशें नहीं देख सकता? क्या तुम सिर्फ दिखावा करने के लिए ऐसा नहीं कर रहे? तुम इसे परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर के नाम की गवाही देने और सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की गवाही देने के सुंदर नाम से पुकारते हो, और कहते हो कि तुम परमेश्वर के लिए गवाही दे रहे हो, लेकिन वास्तव में, तुम इसे सिर्फ अपने लिए गवाही देने और दूसरों से श्रेष्ठ होने के लिए कर रहे हो।” वे परमेश्वर द्वारा लोगों पर किए गए कार्य के बारे में सभी गवाहियों की सच्चाई नहीं स्वीकारते। जब बाहरी दुनिया में विभिन्न परिवेशों और परिस्थितियों और प्रत्येक देश की स्थितियों की बात आती है, तो मसीह-विरोधी यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर कैसे काम कर रहा है, और जब परमेश्वर द्वारा बाहरी दुनिया के परिवेशों को बनाए रखने, बदलने या उनका इंतजाम करने की बात आती है, तो वे यह नहीं समझ पाते कि उसके द्वारा यह सब करने का क्या अर्थ है। वे मानते हैं कि “‘परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है’ यह सिर्फ एक खोखला, बड़बोला बयान है। वास्तव में, चाहे तुम जिस भी देश में जाओ, तुम्हें उस देश की सरकार की आज्ञाओं का पालन करना होगा, है न? तुम उस देश की सरकार और कानूनों के प्रतिबंधों के अधीन रहते हो, है न? क्या इसका मतलब यह नहीं कि यह कथन कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, गलत साबित होता है? चाहे वह अपनी संप्रभुता का प्रयोग कैसे भी करे, क्या वह किसी देश की सरकार और कानूनों से बढ़कर हो सकता है?” इसलिए, जैसे ही बाहरी दुनिया में परिवेश और परिस्थिति कलीसिया और उसके कार्य के लिए प्रतिकूल होती है, मसीह-विरोधी अपने राक्षसी चेहरे प्रकट करते हुए गुप्त रूप से खुश होते हैं और इस पर हँसते हैं। जब कलीसिया का काम सुचारु रूप से चल रहा होता है, और परमेश्वर उसे आशीष दे रहा होता है और उसकी अगुआई कर रहा होता है, और सब-कुछ सही रास्ते पर होता है, जब बाहरी दुनिया के परिवेश से कोई हस्तक्षेप नहीं होता और भाई-बहनों की अवस्था बेहतर से बेहतर होती जाती है, तो मसीह-विरोधियों के दिल बेचैन और अधीर हो जाते हैं, वे बेहद ईर्ष्यालु, असहज और घृणास्पद महसूस करते हैं। वे घृणास्पद क्यों महसूस करते हैं? वे नहीं मानते कि परमेश्वर इस सब पर संप्रभु हो सकता है। कलीसिया परमेश्वर का घर है, यह वह स्थान है जहाँ परमेश्वर अपना प्रबंधन-कार्य करता है, जहाँ परमेश्वर मानवजाति को बचाता है, जहाँ परमेश्वर की इच्छा बेरोकटोक चलती है और जहाँ परमेश्वर के वचन लोगों में साकार किए जा सकते हैं और उनकी पुष्टि की जा सकती है। जब कलीसिया अच्छा कर रही होती है, तो वह परमेश्वर के अधिकार की वास्तविकता प्रदर्शित करती है, साथ ही यह पुष्टि करती है कि सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य विद्यमान है और वह सत्य है। जब यह तथ्य विद्यमान होता है और सत्यापित हो जाता है, तो यह मसीह-विरोधियों के चेहरों पर एक तमाचा होता है। चेहरे पर तमाचा खाने के बाद मसीह-विरोधी अपने दिलों में खुशी, शांति और आराम महसूस करते हैं या वे विद्रोही और रुष्ट महसूस करते हैं? (वे विद्रोही और रुष्ट महसूस करते हैं।) वे अपने दिलों में क्या सोच रहे होते हैं? वे परमेश्वर से घृणा करते हैं और परमेश्वर को नकारते हैं। अगर ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि कलीसिया और भाई-बहनों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, उन लोगों को सताया जा रहा है, दबाया जा रहा है, बहिष्कृत किया जा रहा है और समाज में उनका रुतबा नहीं है, तो मसीह-विरोधी अपने दिलों में काफी खुश और प्रसन्न होते हैं, लेकिन जब परमेश्वर का कार्य और कलीसियाई जीवन सब फल-फूल रहे होते हैं और लगातार विकसित हो रहे होते हैं, तो मसीह-विरोधी खुश नहीं होते। वे खुश क्यों नहीं होते? क्योंकि यह उनकी धारणाओं से बहुत असंगत है, यह ऐसी चीज है जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की होती। परमेश्वर की संप्रभुता और परमेश्वर के वचन पूरे और साकार हो गए हैं जिसने उनके विचारों को उलट दिया है और इसलिए वे दुखी महसूस करते हैं। मसीह-विरोधी जो विचार और दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हैं, उसके आधार पर और साथ ही उनकी असंतोष की भावनाओं के आधार पर, क्या वे बड़े लाल अजगर जैसा ही परिप्रेक्ष्य नहीं रखते? क्या उनका प्रकृति-सार बड़े लाल अजगर के समान ही नहीं है? यह पूरी तरह से समान है।

संपूर्ण विश्व, सभी चीजों, और उन नियम-कानूनों के बारे में, जिनका तमाम सृजित प्राणी पालन करते हैं, मसीह-विरोधी सोचते हैं : “प्रकृति और मौसम बहुत पहले ही बन गए थे। अगर लंबे समय तक ठंड रहती है, तो गर्मी हो जाएगी; अगर लंबे समय तक गर्मी रहती है, तो ठंड हो जाएगी। जब पत्ते गिरने का समय होता है, तो हवा चलने पर वे गिर जाते हैं। क्या यह सब बहुत सामान्य नहीं है? यह परमेश्वर की संप्रभुता कैसे है? यह परमेश्वर द्वारा निर्धारित कानून कैसे है? परमेश्वर के कानून क्या कर सकते हैं? लोगों ने बिना कोई परिणाम भुगते इतने सारे जानवरों को मार डाला है; मानवजाति अभी भी पहले की तरह ही जी रही है, है न? वे कहते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, तो मैं कैसे नहीं देख पाता कि परमेश्वर उन पर संप्रभुता कैसे रखता है? वे कहते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, लेकिन बुरे लोग हमेशा फलते-फूलते क्यों हैं, जबकि अच्छे लोग कभी उन पर भारी नहीं पड़ते?” अंत में, वे निष्कर्ष निकालते हैं कि : “इस दुनिया में कोई उद्धारकर्ता नहीं है; यह मानवजाति है जो दुनिया को नियंत्रित करती है। ये दुनिया के देशों की महान हस्तियाँ और नेता हैं जो इस दुनिया पर शासन करते हैं, और ये ही वे लोग हैं जो इस दुनिया का परिदृश्य बदलते हैं। उन महान और सक्षम लोगों के बिना दुनिया नष्ट हो जाएगी। जहाँ तक परमेश्वर के सभी चीजों पर संप्रभु होने की बात है, मैं इसे नहीं देख पाता। परमेश्वर उनके ऊपर संप्रभु कैसे है? मैं इसे महसूस क्यों नहीं कर सकता? मैं इसे क्यों नहीं समझ सकता? सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता में बहुत-सी ऐसी चीजें क्यों हैं, जो इंसानी धारणाओं के विपरीत हैं?” वे इसे न तो मान सकते हैं, न ही स्वीकार सकते हैं। जब बात सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की, जिस तरह से परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है उसकी, उस स्वभाव की जिसे परमेश्वर सभी चीजों पर अपनी संप्रभुता में प्रकट करता है, परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों की, परमेश्वर के सार इत्यादि की आती है, तो जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं वे अपने जीवनकाल में उसका सिर्फ एक अंश ही समझ पाते हैं। फिर भी यह उनसे सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करवाने, सृष्टिकर्ता द्वारा बोले गए सभी वचनों के प्रति समर्पण करवाने और सृष्टिकर्ता को परमेश्वर के रूप में मनवाने के लिए पर्याप्त है। अगर कुछ लोग इसका एक अंश समझ भी लें, तो भी उनके लिए इसे पूरी तरह से समझना असंभव है, क्योंकि परमेश्वर के बहुत-से कार्य उसकी स्थिति और पहचान से किए जाते हैं, और इन कार्यों और सृजित मनुष्यों के विचार और संज्ञान के बीच हमेशा एक विसंगति रहेगी। और, जो थोड़ा-बहुत लोग अपने जीवनकाल में अनुभव की गई चीजों के जरिये समझ सकते हैं, उसे सिर्फ वे ही समझ सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जिनके पास अंतर्दृष्टि है और सत्य समझने की क्षमता है। कम काबिलियत वाले लोगों के लिए, जिनमें अंतर्दृष्टि नहीं होती और जो सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करते, समझ का यह अंश भी अप्राप्य है। अक्सर कहा जाता है कि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं। इसका मतलब यह है कि मनुष्य कभी सृष्टिकर्ता के विचारों तक नहीं पहुँच पाते, और उन्हें समझ का एक अंश प्राप्त होना भी परमेश्वर का अनुग्रह है। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, उनमें से भी सिर्फ वे ही इसे प्राप्त कर सकते हैं जो परमेश्वर के बहुत-से वचन सुनने के बाद और बहुत-से सत्य समझने और अनुभव करने के बाद परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण को स्वीकारते हैं—इसके लिए जीवन भर के प्रयास की आवश्यकता होती है। मसीह-विरोधियों के लिए, जो मूल रूप से परमेश्वर की पहचान को नकारते हैं, अपने सार के अनुसार, वे सत्य या सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते, और परमेश्वर की पहचान और सार से संबंधित किसी चीज से प्रेम तो बिल्कुल नहीं करते, इसलिए वे सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को स्वीकारने के बिंदु तक कभी नहीं पहुँचेंगे। इस तथ्य को स्वीकारना सत्य को समझने और उसका अनुसरण करने के आधार पर निर्मित होता है, लेकिन मसीह-विरोधी सत्य को नकारते हैं, सत्य से विमुख होते हैं, परमेश्वर से घृणा करते हैं, और इससे भी बढ़कर, परमेश्वर की पहचान और सार से घृणा करते हैं। इसलिए, उनके लिए सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य हमेशा अस्तित्वहीन रहेगा। “अस्तित्वहीन” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि ये मूर्ख सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को कभी देख या समझ नहीं पाएँगे। इसलिए वे इसे समझ नहीं सकते। सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य में कई चीजें समाहित हैं, और यह कई सत्यों और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और परमेश्वर की पहचान और सार को छूता है। परमेश्वर उन सभी चीजों के बीच, जिन पर वह संप्रभु है, सभी चीजें कैसे आयोजित करता है? तरीकों, समय और इस मामले में परमेश्वर के विचारों के संदर्भ में, उसका मन इसकी योजना कैसे बनाता है और कैसे इसका परिनियोजन करता है? इन पहलुओं के आधार पर आकलन करते हुए, सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता सरल मामला नहीं है; इसमें काफी जटिल संबंध शामिल हैं। मसीह-विरोधियों जैसे मूर्ख, जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं है और जो सत्य नहीं स्वीकारते, कभी नहीं समझ पाएँगे कि परमेश्वर सभी चीजों पर किस तरह संप्रभुता रखता है। वे इसे कभी नहीं समझ पाएँगे, तो क्या वे इसे स्वीकार सकते हैं? (वे नहीं स्वीकार सकते।) कुछ लोग कहते हैं, “वे इसे इसलिए नहीं स्वीकारते, क्योंकि वे इसे समझ नहीं सकते। अगर वे इसे समझ सकते, तो क्या वे इसे नहीं स्वीकारते?” यह सिर्फ एक अनुमान है; अनुमान सिर्फ तर्क के अनुरूप होते हैं, जरूरी नहीं कि वे तथ्यों के अनुरूप हों। तो, तथ्यों की सच्चाई क्या है? मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य कभी नहीं स्वीकारेंगे। फिलहाल आओ, मसीह-विरोधियों के बारे में बात नहीं करते, बल्कि प्रधान दूत, शैतान व दानव बड़े लाल अजगर के बारे में बात करते हैं। वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सताता है, कलीसिया को नुकसान पहुँचाता है और परमेश्वर के कार्य में बाधा डालता है। जब परमेश्वर उस पर आपदाएँ लाता है, जिससे वह घबराकर इधर-उधर भागने लगता है, उन्मत्त और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है, मुकाबला करने में असमर्थ हो जाता है, और अंत में दया की याचना करता है, “मैं फिर कभी स्वर्ग से नहीं लड़ूँगा।” इस कथन से क्या जानकारी प्राप्त की जा सकती है? बड़ा लाल अजगर स्वर्ग और परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारता है, लेकिन उसकी प्रकृति नहीं बदलती; भले ही वह परमेश्वर का अस्तित्व स्वीकारता है, फिर भी वह परमेश्वर के विरुद्ध चलता है और उसका विरोध करता है। जब वह परमेश्वर को हरा नहीं पाता, तब यह कहते हुए दया की भीख माँगता है कि वह अब स्वर्ग से नहीं लड़ेगा। लेकिन क्या वह वास्तव में अधीन होकर दया की याचना कर रहा होता है? नहीं, जब वह ठीक हो जाता है, तो लड़ना जारी रखता है; यह उसकी प्रकृति है, और उसकी प्रकृति नहीं बदलती। मसीह-विरोधियों की भी ऐसी ही प्रकृति होती है।

मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के भीतर मानवजाति के भाग्य पर उसकी संप्रभुता को कैसे देखते हैं? इसमें एक बहुत ही सूक्ष्म मामला शामिल है। जब सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की बात आती है तो “सभी चीजों” की संकल्पना स्थूल और बहुत व्यापक है; मसीह-विरोधी इसे नहीं स्वीकार सकते, वे इसके प्रति अंधे हैं और इसे समझ नहीं सकते। तो, क्या मसीह-विरोधी इस बात के प्रति समर्पित होते हैं कि परमेश्वर उनके भाग्य पर किस तरह संप्रभुता रखता है? क्या वे इसे समझते हैं? क्या वे इसे बूझते हैं? क्या वे इसे स्वीकार सकते हैं? हरगिज नहीं। मसीह-विरोधी मानते हैं कि उन्होंने अपने वास्तविक जीवन में सभी अच्छी चीजें अपने ही प्रयासों से हासिल की हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश पा लेते हैं तो वे इसका श्रेय अपनी पढ़ाई में अपने अच्छे प्रदर्शन को देते हैं और मानते हैं कि वे एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए ही पैदा हुए हैं। अगर वे एक अच्छा जीवन जी रहे हैं और उन्होंने पैसा कमाया है तो वे खुद को अमीर बनने के लिए उपयुक्त मानते हैं, जैसा कि ज्योतिषियों ने उन्हें बताया होता है कि उनका जीवन समृद्ध होगा, और वे इतने भाग्यशाली होंगे कि वे अधिकारी बनेंगे और आर्थिक रूप से भी सफल होंगे। जब चीजें गलत हो जाती हैं या उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं होतीं और वे पीड़ित होते हैं तो वे शिकायत करना शुरू कर देते हैं, “मेरे साथ चीजें इतनी बुरी क्यों होती हैं? मेरा भाग्य इतना बुरा क्यों है? मेरी किस्मत बहुत खराब है!” वे इंसानी परिप्रेक्ष्य से इन चीजों की व्याख्या करते हैं और इन्हें देखते हैं। अगर सब कुछ सुचारु रूप से चलता है तो वे दर्प से चूर हो जाते हैं, हर मोड़ पर दिखावा करते हैं, भयंकर और धमकी भरे तेवर दिखाते हैं, और उद्दंडता और घमंड से आचरण करते हैं; लेकिन जब चीजें उनके हिसाब से नहीं होतीं तो वे परमेश्वर और दूसरे लोगों को दोष देते हैं और चीजों को उलटने और स्थिति से बचने का उपाय खोजने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी नियत या संपन्न करता है वह अच्छा होता है, लेकिन अकेले में वे अपना दिमाग दौड़ाकर चीजों को उलटने और स्थिति से बचने या उसे बदलने के लिए हर साधन इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं और कहते हैं, “मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि मेरा भाग्य इतना बुरा है, कि मेरी किस्मत इतनी भयानक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि दुनिया इतनी अन्यायी है, कि मेरे जैसे सक्षम व्यक्ति को अंततः दुनिया नहीं जान पाएगी, कि मेरे चमकने का वक्त कभी नहीं आएगा। असल में, भाग्य सिर्फ एक खोखला खोल है, यह सिर्फ एक कहावत है; सब-कुछ व्यक्ति के अपने प्रयासों और संघर्षों पर निर्भर करता है। जैसी कि कहावत है, ‘सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।’ यह सर्वोच्च सिद्धांत है; मुझे इसे कभी नहीं भूलना चाहिए, मुझे खुद को प्रेरित करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए।” वे बार-बार कहते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा है, कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करते हैं, लेकिन अंत में वे कहते हैं, “सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।” ऊपरी तौर पर वे आध्यात्मिक शब्द बोलते हैं, लेकिन एकांत में वे जिन सिद्धांतों को लागू करते हैं, जिनका अभ्यास और पालन करते हैं, वे सभी सांसारिक आचरण, तर्क और सोच के शैतानी फलसफे हैं। क्या इसमें कोई समर्पण है? (नहीं।) मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को इसी तरह देखते, समझते और उसका सामना करते हैं। इन अभिव्यक्तियों और उदाहरणों के आधार पर, क्या मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य स्वीकारते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, या वे उस पर संदेह कर उसकी निंदा करते हैं? (वे उस पर संदेह कर उसकी निंदा करते हैं।) चाहे वे कुछ भी कहें, अपनी वास्तविक अभिव्यक्तियों के आधार पर मसीह-विरोधी मूल रूप से इस तथ्य का तिरस्कार करते हैं कि सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता है और वे इस पर विश्वास नहीं करते। कुछ मसीह-विरोधी तो बेतुके बयान भी देते हैं : “तुम किसी भी चीज के लिए प्रयास किए बिना सिर्फ निष्क्रिय रूप से परमेश्वर की संप्रभुता की प्रतीक्षा कैसे कर सकते हो? क्या तुम्हें अपना खाना खुद नहीं पकाना पड़ता? क्या तुम बस मुँह खोलकर आसमान से उसमें कचौड़ी गिरने का इंतजार कर सकते हो? परमेश्वर चाहे कैसे भी संप्रभुता रखता हो, लोगों को फिर भी कड़ी मेहनत और कार्रवाई करने की जरूरत पड़ती है, है न?” मसीह-विरोधी न सिर्फ सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को स्वीकारने से मना करते हैं, बल्कि वे इसे नकारते हैं और इसकी गलत व्याख्या भी करते हैं। इसकी गलत व्याख्या करने का उनका क्या उद्देश्य होता है? वे अपने इच्छित सभी लाभों के लिए बिना किसी नैतिक संकोच के लड़ने का एक आधार और बहाना खोजते हैं। मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के आधार पर, सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य पर उनका सच्चा परिप्रेक्ष्य क्या होता है? अविश्वास, इनकार और निंदा—यही उनका सच्चा परिप्रेक्ष्य होता है।

आज हमने जिन दो बिंदुओं पर संगति की, उनमें हमने मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास न करने की अभिव्यक्ति का विश्लेषण किया। इस संगति को सुनने के बाद क्या तुम लोगों को कोई समझ मिली है? किन लोगों में ये समस्याएँ होती हैं? किस तरह के व्यक्ति में मसीह-विरोधियों का स्वभाव तो होता है, लेकिन उनमें मसीह-विरोधियों का सार नहीं होता, और वे बदल सकते हैं? किन लोगों में वही समस्याएँ होती हैं, लेकिन उनमें मसीह-विरोधियों का सार होता है, वे बदल नहीं सकते, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के दुश्मन होते हैं, और उद्धार के पात्र नहीं होते बल्कि विनाश के पात्र होते हैं? क्या तुम लोग भी ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम बदल सकते हो? क्या तुम सत्य स्वीकार सकते हो और उसका उपयोग इन विचारों को बदलने और प्रतिस्थापित करने के लिए कर सकते हो? (बिल्कुल।) कौन-से लोग नहीं बदल सकते? एक तरह का व्यक्ति होता है, जो उन गैर-विश्वासियों को देखकर जो विलासिता का जीवन जीते हैं, महलों की तरह अंदर से सजे हुए बड़े घरों में रहते हैं और जिनके पास कई आलीशान कारें होती हैं, प्रलोभन में आकर रंज करता है, “अमीर होना, अधिकारी होना, सक्षम होना बहुत अच्छी बात है! वह इतना सक्षम क्यों है? वह इतना भाग्यशाली क्यों है? उसने पैसा कैसे कमाया?” जब भी वे देखते हैं कि किसी के पास सामाजिक रुतबा है, तो वे खास तौर से उसकी चापलूसी और खुशामद करते हैं और उसकी ठकुरसुहाती करने की कोशिश करते हैं, उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, किसी भी हद तक गुलाम बनने को तैयार रहते हैं। वे समाज में व्याप्त बुरी प्रवृत्तियों से विशेष रूप से प्रेम करते हैं और अक्सर उनका हिस्सा बनना चाहते हैं, और जब परमेश्वर में उनकी आस्था उन्हें ऐसा करने से रोकती है, तो वे व्यथित हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें लगता है कि दुनिया ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है; वे अकेलापन, बेबसी महसूस करते हैं, उन्हें लगता है कि उनके सहारे के लिए कुछ नहीं है, उन्हें आराम नहीं मिल सकता, और वे अक्सर महसूस करते हैं कि उनका दिल टूट गया है। दूसरे प्रकार का व्यक्ति जब धनी और शक्तिशाली लोगों को समाज में अपने मामले सँभालते हुए सफलता का आनंद लेते देखता है, तो उनकी बहुत सराहना करता है और अक्सर यह कहते हुए उनकी प्रशंसा करता है, “उन्होंने एक व्यक्ति को मार डाला, लेकिन चूँकि उनके पास धन और ताल्लुकात हैं, इसलिए उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से कुछ दिन जेल में बिताए और फिर बाहर आ गए। यही असली क्षमता है!” वे समाज में ऐसे लोगों का बहुत सम्मान करते हैं और उन्हें आदर देते हैं। एक और प्रकार का व्यक्ति समाज में संवेदनशील राजनीतिक विषयों पर विशेष ध्यान देता है और उनकी गहरी परवाह करता है, यहाँ तक कि राजनीति से संबंधित कुछ मामलों में वास्तव में शामिल होना और खुद को उनमें झोंक देना चाहता है। ऐसे और इसी तरह के अन्य लोग, दिल की गहराई में परमेश्वर के प्रति मसीह-विरोधियों जैसा ही रवैया रखते हैं : वे परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, वे परमेश्वर की पहचान को या इस तथ्य को नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता है। ये लोग मसीह-विरोधियों जैसे गिरोह से ही संबंधित हैं। वे कलीसिया या परमेश्वर के घर से संबंधित नहीं हैं और अंततः दूर कर दिए जाएँगे। वे उन लोगों से मेलजोल नहीं रख सकते जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और जिस मार्ग पर वे चलते हैं वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के विपरीत है। ये सभी लोग खतरनाक हैं; भले ही उन्होंने अभी तक कोई बुरा काम न किया हो और अभी तक खुले तौर पर परमेश्वर को न नकारा हो, उसकी आलोचना या निंदा न की हो, या खुले तौर पर लोगों को गुमराह न किया हो और कलीसिया में रुतबे के लिए होड़ न की हो, फिर भी उनमें मसीह-विरोधियों का सार है क्योंकि वे मूल रूप से परमेश्वर की पहचान को नहीं स्वीकारते, और इस तथ्य को तो बिल्कुल नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता है। वे दुष्ट शक्तियों का हिस्सा और शैतान के गिरोह के अंग हैं। वे दुष्टता का, दानवों और शैतान द्वारा प्रचारित किसी भी पाखंड या भ्रांति का और साथ ही दुनिया में उत्पन्न होने, लोकप्रिय होने या फैलने वाली किसी भी बुरी प्रवृत्ति का आदर करते हैं। वे परमेश्वर के घर से या कलीसिया से संबंधित नहीं हैं और परमेश्वर के उद्धार के पात्र नहीं हैं। ये लोग परमेश्वर के वास्तविक दुश्मन हैं, ये मसीह-विरोधी हैं।

14 नवंबर 2020

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