मद ग्यारह : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही कोई गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं (खंड दो)

हमने अभी-अभी छह कारणों के बारे में बात की है कि क्यों मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है। पहला कारण, अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना; दूसरा कारण, छलपूर्ण चालाकी में शामिल होना; तीसरा, दूसरों को सताना, चौथा, अपने तरीके से काम करना; पाँचवाँ, विशेषाधिकारों का आनंद उठाना; और छठा, अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना। क्या कोई और भी कारण हैं? (भाइयों और बहनों को गुमराह करने के लिए पाखंड और भ्रांतियाँ फैलाना।) (कभी भी परमेश्वर का उत्कर्ष न करना या उसकी गवाही न देना, बल्कि हमेशा अपनी गवाही देना और लोगों को गुमराह करने वाले शब्दों और सिद्धांत व्यक्त करना।) (पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए गए व्यक्ति की आलोचना करना, उस पर हमला करना और उससे घृणा करना।) इन तीन बातों में से कौन-सी बात तुलनात्मक रूप से सार में उन छह कारणों के अधिक करीब है जिनकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं? (हमेशा खुद का उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना और कभी भी परमेश्वर की गवाही न देना।) यह वाली बात अपेक्षाकृत गंभीर प्रकृति की है। इसके बाद दूसरे स्थान पर पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए गए व्यक्ति पर हमला करना और उसकी आलोचना करना है और फिर इसके बाद लोगों को गुमराह करने के लिए भ्रांतियाँ फैलाना है। मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ भी होनी चाहिए, लेकिन ये कमोबेश सभी का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए आज हमें उनमें से प्रत्येक के बारे में अनावश्यक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। यह आज की संगति का विषय नहीं है; इसके बजाय, आज का विषय यह है कि कैसे एक मसीह-विरोधी काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करता और न ही कोई गलत काम करने पर उसमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वह धारणाएँ फैलाता है और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करता है। दूसरे शब्दों में, काट-छाँट किए जाने के बाद मसीह-विरोधी का रवैया, इस रवैये की जड़ और उनका स्वभाव सार वास्तव में क्या है—यह वह मुख्य बिंदु है जिस पर हमें संगति करनी चाहिए। इसके अलावा हमने जिन अन्य बातों पर चर्चा की है वे ऐसे छोटे विषय हैं जो कुछ हद तक इससे संबंधित हैं। चूँकि हम पहले ही इन पर पर्याप्त विस्तार से चर्चा कर चुके हैं, इसलिए आज हमने उन पर केवल व्यापक और सामान्य तरीके से ही संगति की है और मसीह-विरोधियों की उन विभिन्न अभिव्यक्तियों का सारांश प्रस्तुत किया जिन पर हमने इससे पहले संगति की थी। मसीह-विरोधियों में ये अभिव्यक्तियाँ, ये स्वभाव और सार होते हैं और उन्होंने इस प्रकार के कार्य किए हुए हैं, इसलिए उनकी काट-छाँट कर उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। हालाँकि, क्या एक असली मसीह-विरोधी, अर्थात एक ऐसा व्यक्ति जिसमें मसीह-विरोधी का सार होता है, इन कार्यों को स्वीकार करेगा जो उसने किए हैं या यह स्वीकार करेगा कि उनकी ये अभिव्यक्तियाँ एक मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे।) क्या तुमने कभी शैतान और राक्षसों को यह स्वीकार करते हुए देखा है कि वे परमेश्वर का विरोध करते हैं? वे कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे कि वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और चाहे उन्होंने किसी भी प्रकार की गलतियाँ की हों, वे कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि वे गलत थे। तो, आओ हम मसीह-विरोधियों के इस सार के परिप्रेक्ष्य से आज की संगति के विषय पर चर्चा शुरू करते हैं।

II. मसीह-विरोधी काट-छाँट स्वीकार न करने पर कैसा व्यवहार करते हैं

क. यह मानने से इनकार करना कि उन्होंने गलत किया है

चाहे एक मसीह-विरोधी ने कितनी भी बड़ी गलती क्यों न की हो और चाहे उसने कितने भी बुरे कार्य क्यों न किए हों, जब उसकी काट-छाँट की जाती है, तो उसकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि वह पूरी तरह से इस बात से इनकार कर देता है कि उसने कुछ भी गलत किया है और खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बेतहाशा कुतर्कों का सहारा लेता है। यह इस बात का प्रतीक है कि कोई भी गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया नहीं होता है, जिसका उल्लेख मसीह-विरोधियों की ग्यारहवीं अभिव्यक्ति में किया गया है। मसीह-विरोधियों में पश्चात्ताप का रवैया नहीं होता, फिर वे अंदर ही अंदर क्या सोच रहे होते हैं? उनमें पश्चात्ताप का रवैया क्यों नहीं होता है? (क्योंकि वे मानते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।) सही है। मसीह-विरोधी बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने कुछ भी गलत किया है। तो क्या वे यह स्वीकार करने में सक्षम होते हैं कि वे मसीह-विरोधी हैं? यह तो और भी मुश्किल है। अगर तुम एक मसीह-विरोधी को उजागर करने के लिए तथ्यों की एक सूची बना पाओ, तो क्या वे इसे स्वीकार कर पाएँगे? इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। इस प्रकार की अभिव्यक्तियों के माध्यम से, हम यह देख सकते हैं कि एक मसीह-विरोधी का सार परमेश्वर का विरोध करने और उसके साथ विश्वासघात करने का है, उनका स्वभाव ऐसा है जो सत्य से विमुख होता है, सत्य से घृणा करता है और सत्य के प्रति बिल्कुल भी प्रेम नहीं रखता है। इसलिए, जब मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है और उनकी काट-छाँट की जाती है, तो पहला काम वे यह करते हैं कि अपने बचाव के लिए विभिन्न कारण खोजते हैं, समस्या से बचने की कोशिश में सभी प्रकार के बहाने तलाशते हैं और इस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों से बचने का अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैं और क्षमा किए जाने का अपना उद्देश्य प्राप्त कर लेते हैं। मसीह-विरोधी जिस बात से सबसे अधिक डरते हैं, वह यह है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनके स्वभाव, उनकी कमजोरियों और खामियों, उनकी घातक कमजोरी, उनकी वास्तविक काबिलियत और कार्य क्षमता की असलियत देख लेंगे—और इसलिए वे अपनी कमियाँ, समस्याएँ और भ्रष्ट स्वभाव का भेस बदलने के लिए खुद को बेहतर बनाने की पूरी कोशिश करते हैं। जब उनके कुकर्म बेनकाब और उजागर हो जाते हैं, तो पहला काम वे यह करते हैं कि इस तथ्य को मानते या स्वीकारते नहीं, या अपनी गलतियों की भरपाई या क्षतिपूर्ति करने का भरसक प्रयास नहीं करते, इसके बजाय वे उन्हें छुपाने, उनके कार्यों से अवगत लोगों को भ्रमित करने और उन्हें धोखा देने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मामले की असलियत न देखने देने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं और उन्हें यह न जानने देने की कोशिश करते हैं कि उनके कार्य परमेश्वर के घर के लिए कितने हानिकारक रहे हैं और कलीसिया के काम को उन्होंने कितना अस्त-व्यस्त किया है। बेशक, वे जिस चीज से सबसे ज्यादा डरते हैं, वह यह होती है कि कहीं ऊपरवाले को पता न लग जाए, क्योंकि ऊपरवाले को पता चलते ही उनके साथ सिद्धांतों के अनुसार निपटा जाएगा और उनके लिए सब-कुछ खत्म हो जाएगा और उन्हें बर्खास्त कर समाप्त कर दिया जाना निश्चित है। और इसलिए, जब मसीह-विरोधियों की बुराई उजागर होती है, तो पहला काम जो वे करते हैं, वह यह नहीं है कि वे इस पर विचार करें कि उनसे कहाँ गलती हुई है, उन्होंने कहाँ सिद्धांत का उल्लंघन किया है, उन्होंने जो किया वह क्यों किया, वे किस स्वभाव से नियंत्रित थे, उनके इरादे क्या थे, उस समय उनकी अवस्था क्या थी, क्या यह उनकी मनमानी के कारण था या उनके इरादों की मिलावटों के कारण। इन चीजों का विश्लेषण करने के बजाय और इन पर चिंतन तो बिल्कुल भी न करके, वे असली तथ्यों को छिपाने के लिए हर संभव तरीके से अपना दिमाग खपाते हैं। साथ ही, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने अपनी बात समझाने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हैं, ताकि उन्हें चकमा दे सकें, बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है और झाँसा देकर इससे बच निकलते हैं, ताकि वे परमेश्वर के घर में रहकर लापरवाही से गलत काम करते रहें और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते रहें और लोगों को गुमराह और नियंत्रित करते रहें और अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए उन्हें अपने आदर की दृष्टि से देखने और उनके कहे अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर करते रहें। शुरू से अंत तक, मसीह-विरोधी वास्तव में क्या कर रहे होते हैं? परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करने, अपनी गलतियों और अपराधों को स्वीकार करने और अपने इरादों और भ्रष्ट स्वभावों को जानने के बजाय, मसीह-विरोधी बस यही करते हैं कि वे अपने रुतबे और प्रतिष्ठा की खातिर बातें करते हैं, कार्य करते हैं और खुद को व्यस्त रखने के लिए अपना दिमाग खपाते रहते हैं। वे यह भी स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने जो गलतियाँ की हैं, उनसे कलीसिया के कार्य और भाइयों और बहनों को कितना नुकसान हुआ है। इसके बजाय, वे पागलों की तरह बार-बार अपने दिल की गहराइयों में यही खोजते रहते हैं : “आखिर मैंने गलती कहाँ की है? मैंने कहाँ सावधानी नहीं बरती, जिससे किसी ने मेरे खिलाफ कोई फायदा उठाने का मौका पा लिया? मैंने कहाँ पर्याप्त प्रयास नहीं किया या चीजों पर पूरी तरह से विचार नहीं किया, जिसके कारण पूरी स्थिति ही गलत हो गई और यह मेरी आलोचना का एक स्रोत बन गई या मेरे खिलाफ इस्तेमाल होने वाला फायदा उठाने का मौका बन गया?” वे इन चीजों के बारे में बार-बार सोचते रहते हैं और उन पर विचार करते रहते हैं जिससे वे न तो खा पाते हैं और न ही सो पाते हैं। लेकिन एक मसीह-विरोधी कभी भी खुद पर विचार नहीं करता या खुद को नहीं जानता और न ही वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है और यह तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता कि उसने कुछ गलत किया है और वह परमेश्वर के वचनों के आधार पर उत्तर नहीं खोजता, न ही वह उन सत्यों की खोज करता है जिनका उसे अभ्यास करना चाहिए या उन सत्य सिद्धांतों की खोज नहीं करता जिनका उसे पालन करना चाहिए और वह ऐसे भाइयों या बहनों को तो बिल्कुल भी नहीं खोजता जो सत्य समझते हों, ताकि वे उनके साथ खुलकर संगति कर सकें और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य की खोज कर सकें। जब मसीह-विरोधियों को किसी मामले का सामना करना पड़ता है, तो वे न तो खोज करते हैं और न ही समर्पण करते हैं, बल्कि वे हर संभव तरीके से अपनी समस्याओं को छिपाने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि जितने कम लोग उनके बारे में जानेंगे, उतना ही अच्छा होगा और यह कि अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को कायम रखना सबसे अच्छी नीति है। मसीह-विरोधियों के दिल ऐसे अंधकार से भरे होते हैं और उनमें विद्रोह और दुष्टता भरी होती है, जिसमें परमेश्वर के प्रति समर्पण का थोड़ा-सा भी इरादा नहीं होता है। मसीह-विरोधी हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को नुकसान से बचाने के तरीके खोजते रहते हैं। चाहे उनका समर्थन करने और उनकी मदद करने के लिए कोई भी उनके साथ सत्य के बारे में संगति क्यों न करे, वे उसे स्वीकार नहीं करते और सोचते हैं : “मुझे सब कुछ समझ आता है, मुझे तुम लोगों की मदद की जरूरत नहीं है! यहाँ तक कि जब मुझे समस्याएँ होती हैं, तब भी मैं तुम लोगों से बेहतर होता हूँ। तुम्हें लगता है कि तुम लोग अपनी थोड़ी-सी समझ से मेरी मदद कर सकते हो? तुम सच में अपनी क्षमताओं को कुछ ज्यादा ही आँक रहे हो!” मसीह-विरोधी इतने ज्यादा घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं। वे बहुत सारे बुरे कार्य करते हैं और फिर भी यह मानने से इनकार करते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत किया है या यह कि उनमें कोई समस्या है। अपने दिलों में, वे अत्यधिक दुराग्रही होते हैं और किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं होते। वे अपने मन से केवल एकमात्र बात नहीं निकाल पाते और वह यह है कि उनके कार्यों का उनके सम्मान और रुतबे पर बाद में क्या असर पड़ेगा। यही वह बात है जो उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करती है और जिसके बारे में वे सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं।

कोई मसीह-विरोधी चाहे कितने भी और किसी भी तरह के गलत काम करे, चाहे वह गबन करना हो, अपव्यय करना हो, परमेश्वर की भेंटों का दुरुपयोग करना हो, या चाहे वह कलीसिया के काम को बाधित कर रहा और बिगाड़ रहा हो और उसमें भारी गड़बड़ी करके परमेश्वर का क्रोध भड़का रहा हो, वह हमेशा शांत, संयमित और पूरी तरह से बेफिक्र रहता है। मसीह-विरोधी चाहे किसी भी तरह की बुराई करे या उसके जो भी परिणाम हों, वह अपने पाप स्वीकारने और पश्चात्ताप करने के लिए कभी यथाशीघ्र परमेश्वर के सामने नहीं आता या वह कभी अपनी गलतियाँ मानने, अपने अपराध जानने और अपनी भ्रष्टता पहचानने और अपने बुरे कर्मों पर पछतावा करने के लिए खुद को उजागर करने और अपना दिल खोलने के रवैये के साथ भाई-बहनों के सामने नहीं आता। इसके बजाय, वह जिम्मेदारी से बचने के लिए तमाम बहाने खोजने को अपना दिमाग चलाता है और अपनी इज्जत और रुतबा बहाल करने के लिए दोष दूसरों पर मढ़ देता है। वह कलीसिया के काम की नहीं, बल्कि इस बात की परवाह करता है कि उसकी प्रतिष्ठा और रुतबा किसी भी तरह से नष्ट या प्रभावित तो नहीं हो रहा। वह अपने अपराधों के कारण परमेश्वर के घर को हुए नुकसान पर विचार नहीं करता या इसकी भरपाई करने के तरीकों के बारे में नहीं सोचता और न ही वह परमेश्वर का ऋण चुकाने का प्रयास करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह कभी यह स्वीकार नहीं करता कि वह कुछ गलत कर सकता है या उससे कोई भूल हो गई है। मसीह-विरोधियों के दिलों में, सक्रिय रूप से गलतियाँ स्वीकार करना और तथ्यों का ईमानदार लेखा-जोखा देना अक्षमता और मूर्खता है। अगर उनके बुरे कर्मों का पता चल जाता है और उनका पर्दाफाश हो जाता है, तो मसीह-विरोधी केवल असावधानी से हुई कोई क्षणिक गलती ही स्वीकार करेंगे, कर्तव्य में अपनी चूक और गैर-जिम्मेदारी कभी स्वीकार नहीं करेंगे और वे अपने ऊपर से दाग हटाने के लिए जिम्मेदारी किसी और पर डालने का प्रयास करेंगे। ऐसे समय, मसीह-विरोधी इस बात की चिंता नहीं करते कि परमेश्वर के घर को हुए नुकसान की भरपाई कैसे करें, खुलकर बात कैसे करें, अपनी गलतियों को कैसे स्वीकार करें या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इसका हिसाब कैसे दें। वे ऐसे तरीके खोजने में लगे रहते हैं जिनसे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखा सकें और छोटी समस्याओं को ऐसे दिखा सकें जैसे वे कोई समस्या ही न हों। वे दूसरों को समझाने और उनकी सहानुभूति पाने के लिए वस्तुनिष्ठ कारण देते हैं। वे दूसरे लोगों के मन में अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने, खुद पर अपने अपराधों के पड़ने वाले अत्यंत नकारात्मक प्रभाव को कम से कम करने और यह सुनिश्चित करने की भरसक कोशिश करते हैं कि ऊपरवाले पर उनके बारे में कोई गलत प्रभाव न पड़े और ऊपरवाला कभी भी उन्हें जवाबदेह न ठहराए, उन्हें बर्खास्त न करे, स्थिति की जाँच न करे या उनसे निपट न ले। अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा बहाल करने के लिए, ताकि उनके हितों को नुकसान न पहुँचे, मसीह-विरोधी कितनी भी पीड़ा सहने के लिए तैयार रहते हैं और वे कोई भी कठिनाई हल करने के लिए हर संभव तरीका सोचते हैं। अपने अपराध या गलती की शुरुआत से ही मसीह-विरोधियों का कभी भी अपने द्वारा किए गए गलत कामों की जिम्मेदारी लेने का कोई इरादा नहीं होता, अपने गलत कामों के पीछे के उद्देश्य, इरादे और भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकार करने, उनके बारे में संगति करने, उन्हें उजागर करने या उनका विश्लेषण करने का उनका कोई इरादा नहीं होता और स्वयं द्वारा कलीसिया के काम को पहुँचाई गई क्षति और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को पहुँचाए गए नुकसान की भरपाई करने का उनका कोई इरादा तो निश्चित रूप से नहीं होता। इसलिए, चाहे तुम इस मामले को किसी भी दृष्टिकोण से देखो, मसीह-विरोधी वे लोग होते हैं, जो हठपूर्वक अपने गलत कार्यों को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और पश्चात्ताप करने की अपेक्षा मरना पसंद करते हैं। छुटकारे की आशा से रहित, मसीह-विरोधी बेशर्म और मोटी चमड़ी वाले होते हैं और वे जीवित शैतानों से कम नहीं होते। चाहे वे कलीसिया के भीतर कितनी भी बड़ी गलतियाँ क्यों न कर दें, वे अपनी छाती फुलाए और सिर ऊँचा किए रहते हैं और इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन होते हैं, वे यह मानते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और पश्चात्ताप करने का उनका थोड़ा-सा भी इरादा नहीं होता। वे कभी भी अपने द्वारा की गई गलतियों पर कोई आंसू नहीं बहाते और न ही इन चीजों के कारण कोई उदासी या पछतावा महसूस करते हैं। इसके विपरीत, अगर वे अनजाने में खुद को उजागर करते हैं, तो वे दर्द या दुख महसूस करते हैं, जिससे अधिकांश लोग उनका असली चेहरा देख लेते हैं और उन्हें अस्वीकार कर देते हैं। इतनी सारी गलतियाँ करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाने के बाद, वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, उसका उद्देश्य इन गलतियों या नुकसानों की भरपाई करना नहीं होता, बल्कि वे अपने इरादे पाल रहे होते हैं और अपना बचाव करने, दिखावा और तमाशा करने के लिए हर संभव साधन तैयार कर रहे होते हैं। उनका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को यह दिखाना होता है कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह अनजाने में किया था, कि वे बस एक पल के लिए लापरवाह हो गए थे, ताकि वे उनकी माफी प्राप्त कर सकें, उन्हें इसके लिए राजी कर सकें कि वे उनकी ओर से बात करें जिससे कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भरोसा और तरफदारी प्राप्त कर सकें और इस प्रकार वे पूरी तरह से वापसी करने का अपना लक्ष्य हासिल कर सकें।

काट-छाँट किए जाने के बाद भी कुछ मसीह-विरोधी इस बात को समझने के लिए विचार नहीं करते कि उनके साथ काट-छाँट क्यों की गई, ताकि वे यह पता लगा सकें कि उजागर होने वाले मामले में आखिर उनकी गलती कहाँ थी और आगे चलकर उन्हें इसकी भरपाई कैसे करनी चाहिए। इसके बजाय, वे काट-छाँट किए जाने का फायदा उठाते हैं, वे दूसरों के साथ इस बारे में संगति करते हैं कि उन्होंने कैसे काट-छाँट किए जाने को स्वीकार किया, इससे कैसे उन्होंने सबक सीखा, वे कैसे समर्पण कर पाए और कैसे उन्होंने ऊपरवाले के साथ निकट संपर्क करने के बाद ऊपरवाले की सराहना प्राप्त की। इसके साथ ही, ये मसीह-विरोधी ऊपरवाले के बारे में अपने असंतोष और धारणाओं को प्रसारित करने के लिए इस बात पर संगति करके भी दिखावा करते हैं कि उन्होंने कैसे काट-छाँट किए जाने को स्वीकार किया, जिससे लोगों में यह धारणा बन जाए कि ऊपरवाले के पास लोगों की काट-छाँट करने के लिए कोई सिद्धांत नहीं हैं, कि ऊपरवाला बेतरतीब ढंग से ऐसे ही किसी की भी काट-छाँट करता है और वह सहानुभूतिहीन है, लोगों की भावनाओं और मानवीय कमजोरियों का लिहाज नहीं करता और यह कि इन सबके बावजूद, उन्होंने फिर भी उसके प्रति पूरी तरह से समर्पण कर दिया और जो भी कार्य उन्हें सौंपा गया था, उसमें उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, वे नकारात्मक, कमजोर या प्रतिरोधी नहीं बने और न ही उन्होंने अपना कर्तव्य छोड़ा। जब एक मसीह-विरोधी ये सब बातें कहता है, तो ये बातें न केवल लोगों को सत्य के प्रति समर्पण करने और स्वेच्छा से काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने के लिए राजी करने में विफल रहती हैं, बल्कि इसके विपरीत, ये बातें लोगों में परमेश्वर के बारे में धारणाएँ और राय पैदा करने और परमेश्वर के प्रति सावधान रहने के लिए उकसाती हैं, जबकि दूसरी तरफ उनके दिल में मसीह-विरोधी के प्रति ईर्ष्या, प्रशंसा और सम्मान की भावना पैदा होती है। एक बार जब ये दो परिणाम प्राप्त हो जाते हैं, तो फिर सबसे बड़ी भूल जो लोग करते हैं वह यह कि वे भूल जाते हैं कि मसीह-विरोधियों ने क्या अपराध किया है, उन्होंने क्या गलत किया है और यह तथ्य कि उन्होंने कलीसिया के कार्य के लिए, परमेश्वर के घर का क्या नुकसान किया है क्योंकि वे अपने कार्य में सक्षम नहीं थे और लापरवाही से गलत कार्य कर रहे थे। यह मसीह-विरोधियों की एक रणनीति होती है—अर्थात झूठे आरोप लगाना और इस तरह दूसरों को गुमराह करना। वे कभी भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं करते कि वे परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत सारी परेशानियों का कारण बने और उन्होंने भाइयों और बहनों के जीवन को भारी नुकसान पहुँचाया क्योंकि वे अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह थे, क्योंकि वे मूर्ख और अज्ञानी थे, क्योंकि उन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास किया था। वे कभी भी इन चीजों को स्वीकार नहीं करते या इनका विश्लेषण नहीं करते, वे कभी भी इन मामलों की सच्चाई का उल्लेख नहीं करते, वे कभी भी अपनी बर्खास्तगी का कारण नहीं बताते या यह कि उनकी काट-छाँट क्यों की गई। वे केवल इस बारे में बात करते हैं कि ऊपरवाले ने कैसे उनकी काट-छाँट की, ऊपरवाले की काट-छाँट कितनी क्रूर थी, ऊपरवाले ने उनसे कितनी कठोरता से बात की, वे कितना रोए थे, कैसे उन्हें बलि का बकरा बनाया गया और उन्होंने कितना कष्ट सहा, फिर भी वे हमेशा की तरह डटे रहे और बिना चूके अपना कर्तव्य निभाते रहे। शुरू से लेकर अंत तक, क्या मसीह-विरोधी में कभी भी अपने गलत कामों को स्वीकार करने की थोड़ी-सी भी प्रवृत्ति होती है? नहीं होती। जब मूर्ख और अज्ञानी लोग जो असली स्थिति नहीं जानते, जो सत्य नहीं समझते, इसके बारे में सुनते हैं, तो वे सोचते हैं, “ऊपरवाले के पास लोगों की काट-छाँट करने का कोई सिद्धांत नहीं है। चाहे कोई व्यक्ति अपने कार्य में कितना ही अच्छा प्रदर्शन क्यों न करे या वो कितनी भी कीमत क्यों न चुकाए, उन सबकी एक जैसी काट-छाँट की जाती है और उसके बाद वे कोई कमजोरी नहीं दिखा सकते, उन्हें बस समर्पण करना होता है।” एक मसीह-विरोधी द्वारा संगति करने और गुमराह करने के एक दौर के बाद और उनके द्वारा अपने कार्य करने में काफी प्रयास करने के बाद, परिणाम यह निकल कर आता है कि लोगों के दिलों में परमेश्वर के प्रति गलतफहमियाँ और सतर्कता पैदा हो जाती हैं, ताकि जब लोगों की काट-छाँट की जाए, तो वे अधिक शत्रुता और प्रतिरोध महसूस करें, बजाय इसके कि वे परमेश्वर के दिल को बेहतर ढंग से समझें या काट-छाँट किए जाने के प्रति समर्पण करने और इसे स्वीकार करने में सक्षम हों और इसके बाद अपने भ्रष्ट स्वभाव, अपनी मूर्खता और अज्ञानता को जानें और यह जानें कि वे वास्तव में कौन हैं। मसीह-विरोधी की इस पूरी संगति के दौरान, क्या वे कभी इस बात का उल्लेख करते हैं कि उन्होंने क्या गलत किया था? क्या वे कभी भी अपने गलत कामों को स्वीकार करने का थोड़ा-सा भी रवैया अपनाते हैं? जरा-सा भी नहीं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, वे कभी भी अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। क्या तुम लोगों ने कभी सुना है कि किसी मसीह-विरोधी ने अपनी बर्खास्तगी के बाद यह स्वीकार किया हो कि उसकी गलती ने परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाया है? (नहीं।) अगर वह व्यक्ति मसीह-विरोधी होगा, तो इसे कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। हमने पहले भी कुछ मसीह-विरोधियों के बारे में बात की है, जैसे उस “महिला अगुआ” और कुछ अन्य प्रसिद्ध मसीह-विरोधियों के बारे में, जिनके कार्यों के परिणामस्वरूप परमेश्वर की भेंटों में हजारों की हानि हुई थी, लेकिन आखिरकार उन्होंने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने कुछ गलत किया था। उन्होंने अपनी गलतियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा बल्कि बस यही शिकायत करते रहे कि कैसे दूसरों ने उनके साथ कार्य नहीं किया था। उन्होंने सारी जिम्मेदारी, गलतियाँ, दोष दूसरे लोगों के कंधों पर डाल दिया, जबकि सभी अच्छी चीजों, सही कार्यों और सही निर्णयों का श्रेय खुद ले लिया। इस पूरे घटनाक्रम में, हालाँकि वे लोग ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि सारी गलतियाँ दूसरे लोगों द्वारा की गई थीं। अगर ऐसा ही है, तो वे क्या कर रहे थे? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं और इसकी जिम्मेदारी अन्य लोगों पर डालते हैं। और फिर भी जब कोई छोटी-सी भी उपलब्धि प्राप्त होती है, तो मसीह-विरोधी तुरन्त सामने आ जाते हैं और कहते हैं कि यह कार्य उन्होंने किया है और वे कलीसिया में सभी को इसके बारे में बताने के लिए उत्सुक रहते हैं, यहाँ तक कि गैर-विश्वासियों को भी। जब वे कोई छोटी-सी भी गलती करते हैं, तो अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए तुरंत कोई बलि का बकरा ढूँढ़ने लगते हैं। वे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है, ताकि अगर कोई मुद्दा हो तो इसे शुरुआत में ही खत्म कर सकें। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि कोई भी इसके बारे में न जान सके, हर कोई इसे जल्द से जल्द भूल जाए और कोई यह न जान सके कि वास्तव में क्या हुआ था, ताकि वे दूसरों का सम्मान फिर से प्राप्त कर सकें और जल्दी से अपना मूल रुतबा और सत्ता फिर से पा सकें। जब एक मसीह-विरोधी कुछ गलत करता है, तो चाहे लोग व्यावहारिक रूप से कितनी भी उसकी काट-छाँट क्यों न करें या सही बात क्यों न कहें, वह इसका मुकाबला करेगा, विरोध करेगा और इसे पूरी तरह से अस्वीकार कर देगा, यहाँ तक कि अगर कोई गवाह या सबूत भी हों, तो वह हठपूर्वक अपनी गलतियों को स्वीकार करने से इंकार कर देगा और इसे दिल से स्वीकार नहीं करेगा या नहीं मानेगा। मसीह-विरोधी कहेगा, “भले ही इस मामले में मैं गलत था, लेकिन इसमें और भी कई लोग शामिल थे। उनकी काट-छाँट क्यों नहीं की जा रही है, केवल मेरी ही क्यों? जवाबदेही के लिए केवल मेरी ही जाँच क्यों की जा रही है, किसी और की क्यों नहीं?” भले ही काट-छाँट सत्य और वास्तविकता के कितने भी अनुरूप क्यों न हो, उन्हें यही लगेगा कि उन पर गलत आरोप लगाया गया है, कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, कि इतना कष्ट सहने और इतनी कीमतें चुकाने के बाद भी उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें एक छोटी-सी गलती के लिए इस तरह बार-बार निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उनका मानना है कि उन्हें इस तरह की काट-छाँट को स्वीकार नहीं करना चाहिए। अगर कोई साधारण भाई या बहन उनकी काट-छाँट करता है, तो वे तुरंत ही उस पर पलटवार करते हैं और उसका विरोध करते हैं, वे अपना गुस्सा और अपनी चिड़चिड़ाहट दिखाते हैं या शायद उन पर हाथ भी उठा दें। अगर उनकी काट-छाँट ऊपरवाला करता है, तो वे न चाहते हुए भी चुप रह जाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें बहुत बुरा लगता है। वे बहुत नाखुश और अनिच्छुक होते हैं और अक्सर टेढ़े-मेढ़े तर्क देते हुए कहते हैं, “मुझे लगता है यह मेरी बदकिस्मती ही है कि तुम लोगों को इसके बारे में पता चल गया। वास्तव में, सभी रैंकों के कई अगुओं, भाइयों और बहनों ने ऐसे भयानक कार्य किए हैं जिनके बारे में तुम लोग नहीं जानते और केवल मैं ही पकड़ा गया हूँ। मेरी किस्मत बहुत खराब है!” चाहे ऊपरवाला या भाई और बहन उनकी कितनी भी काट-छाँट क्यों न करें, वे इसे वैसे का वैसे स्वीकार नहीं कर पाते, वे मामले के सत्य को स्वीकार कर जिम्मेदारी नहीं ले पाते। ऐसा लगता है जैसे जिम्मेदारी स्वीकार करना और जो वास्तव में हुआ उसे स्वीकार करना उन्हें मार ही डालेगा। वे कभी यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने कोई गलती की है, कि वे उस मामले के लिए जिम्मेदार हैं और न ही यह कि इससे परमेश्वर के घर को बहुत नुकसान हुआ है। क्या यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? (हाँ है।) यह एक मसीह-विरोधी का ही स्वभाव है।

जब किसी मसीह-विरोधी के साथ कुछ गलत करने के कारण उसकी काट-छाँट की जाती है तो वह इसे स्वीकार नहीं करता और अपने दिल की गहराई से समर्पण नहीं करता, न ही वह सत्य और उन सत्य सिद्धांतों को समझता है जिनका उसे पालन करना चाहिए, न ही वह यह स्वीकार करता है कि वह कुछ गलत भी कर सकता है। मसीह-विरोधियों की प्राथमिक विशेषताएँ—आश्वस्त न होना, स्वीकार न करना और कबूल न करना है। मसीह-विरोधी मुख्य रूप से ऐसा व्यवहार इसलिए करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि वे पूर्ण लोग हैं, वे कुछ भी गलत नहीं कर सकते। उनके लिए जो कोई भी उन पर गलती करने का आरोप लगाता है, वही गलत है—उसी व्यक्ति का दृष्टिकोण गलत है, जो इस मामले में एक अलग दृष्टिकोण और रुख रखता है। मसीह-विरोधी सोचते हैं कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है, वह इसलिए ऐसा करता है क्योंकि उसने अभी उनकी ताकत नहीं देखी है, इसलिए वह उनके लिए चीजें कठिन बना रहा है, उनमें दोष ढूँढ़ रहा है और जानबूझकर उन्हें निशाना बना रहा है। क्या यह एक मसीह-विरोधी वाला स्वभाव नहीं है? (हाँ।) एक मसीह-विरोधी यह स्वीकार नहीं करेगा कि इसके लिए उसकी काट-छाँट की जाए, न ही उसमें कोई पश्चात्ताप होगा, इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने कभी भी खुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं देखा है जो गलतियाँ कर सकता है—उनका मानना है कि वे पूर्ण हैं और केवल वे ही हैं जो गलतियाँ नहीं कर सकते। इसका मतलब यह है कि वे निश्चित रूप से मानते हैं कि वे धार्मिक हैं, संत हैं। अगर वे स्वीकार कर लें कि वे एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं, तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, कि वे गलतियाँ कर सकते हैं और चूँकि वे इंसान हैं, इसलिए उनसे गलतियाँ होना स्वाभाविक है। कुछ लोग दिखने में काफी निष्कपट लगते हैं, लेकिन उनकी मानवता के भीतर एक ऐसा गुण होता है जिसे लोग अपनी धारणाओं के अनुसार ताकत मानते हैं और वह है प्रतिस्पर्धा और दूसरों से आगे निकलने की अत्यधिक उत्सुकता। इन लोगों में काफी आत्म-नियंत्रण होता है और उनकी अपने प्रति बहुत अधिक अपेक्षाएँ होती हैं। वे खुद के प्रति बहुत कठोर होते हैं; वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे पूर्णता और श्रेष्ठता की माँग करते हैं और छोटी से छोटी गलती या चूक को भी सहन नहीं करते। साथ ही, वे अवचेतन रूप से मानते हैं कि वे कभी भी कोई गलती नहीं कर सकते, क्योंकि वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे अत्यंत सावधान होते हैं, वे विभिन्न चीजों के बारे में सोचने में माहिर होते हैं और वे पूरी समग्रता से ऐसा करते हैं; वे हर मामले पर गहनता से और पूरी तरह से विचार करते हुए सब कुछ बिना किसी दोष के करते हैं। इस प्रकार, वे मानते हैं कि वे कभी कोई गलती नहीं कर सकते। जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो उनके लिए यह स्वीकार करना सबसे मुश्किल होता है कि वे गलती भी कर सकते हैं। इसीलिए ऐसे लोग खुद पर विचार करना नहीं जानते और न ही वे कभी ऐसा करते हैं। वे अपनी मानवीय सोच में दूसरों से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा और उत्सुकता को एक सकारात्मक चीज के रूप में देखते हैं और उनका ऐसे पालन करते हैं जैसे मानो ये सत्य सिद्धांत हों; उन्हें लगता है कि अगर वे इन सिद्धांतों के आधार पर कार्य करेंगे और अपना कर्तव्य निभाएँगे, तो वे कभी भी कोई गलती नहीं करेंगे और अगर गलतियाँ होती भी हैं, तो वे इसे एक नजरिए का मामला मानते हैं, जैसे लोगों की अलग-अलग राय होती है और सोचते हैं कि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि जो कुछ उन्होंने किया वह गलत था। इसलिए, चाहे उनकी कोई भी काट-छाँट करे, चाहे यह काट-छाँट या जो उजागर किया गया है वह तथ्यों के अनुरूप हो या न हो—वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते। अगर उन्हें पता चले कि उन्होंने सच में कुछ गलत किया है, तो क्या वे इसे स्वीकार करेंगे? (नहीं करेंगे।) वे इसे कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे, वे तुरंत चुप हो जाएँगे और कभी इसका उल्लेख तक नहीं करेंगे। कभी इस बात की चर्चा नहीं करेंगे। अगर एक मसीह-विरोधी का सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो उनके कार्य में कुछ गलतियों या खामियों को उजागर करता है और अगर वह देखता है कि वह इससे बच नहीं सकता, तो वह यह खोजने का ढोंग रचता रहेगा कि आखिर यह गलती किसने की है और अप्रत्याशित रूप से इतनी खोजबीन करने के बाद पता चला कि वह ही इसके लिए जिम्मेदार था। अगर कोई कहता है कि, “तुम ने ही तो यह किया था, किसी और ने नहीं; तुम बस इसे भूल गए हो,” तो फिर एक मसीह-विरोधी इसका जवाब कैसे देगा? इन परिस्थितियों में एक सामान्य व्यक्ति को क्या करना चाहिए? एक सामान्य व्यक्ति जिसमें शर्म है, उसका चेहरा लाल हो जाएगा, वह शर्मिंदा और अजीब महसूस करेगा और तुरंत स्वीकार कर लेगा और कहेगा, “मैं इस बारे में भूल गया था। यह मैंने किया था, यह मेरी गलती थी। चलो अब जल्दी से पता लगाते हैं कि इसकी भरपाई कैसे की जाए ताकि यह गड़बड़ आगे भी जारी न रहे।” जिस व्यक्ति में शर्म, अंतरात्मा और सूझ-बूझ होगी, वह तुरंत अपनी गलती स्वीकार कर लेगा, फिर उसका समाधान करेगा और उसे ठीक करेगा। इसके विपरीत, एक मसीह-विरोधी बेशर्म होता है; जिस क्षण किसी को पता चलता है कि उसने ही गलती की थी, जिस क्षण कोई उसे उजागर करता है और किसी को इसके बारे में पता चलता है, वह तुरंत अपनी धुन बदल लेता है और अपनी गलती को स्वीकार करने से बचने के लिए तरह-तरह के तरीके सोचता है, यह स्वीकार करने से बचने के लिए कि गलती उसी ने की थी—मसीह-विरोधी बिना झिझक झूठ बोलते हैं और अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। उनके आस-पास के सभी लोगों को यह बात शर्मनाक और अजीब लगेगी, लेकिन मसीह-विरोधियों को कुछ भी महसूस नहीं होगा। वे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है, फिर वे कभी भी इस मामले को सामने नहीं लाएँगे। इस मामले में उनकी मूर्खता प्रकट हो चुकी है, इसलिए वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हुए खुलेआम अपनी गलती से इनकार कर देंगे और बहुत सारे लोगों के सामने झूठ बोल देंगे और उनका चेहरा शर्म से लाल भी नहीं होगा और उनके दिल की धड़कन बिल्कुल नहीं रुकेगी। क्या मसीह-विरोधियों में कोई शर्म होती है? (नहीं।)

जब कुछ मसीह-विरोधियों को हाल ही में बर्खास्त किया गया हो, तो वे काफी शिकायतें करते हैं; वे एक तरह की हानि महसूस करते हैं, कि अब उनके पास कोई रुतबा नहीं रहा, अब कोई उनका सम्मान नहीं करता या उनकी सेवा नहीं करता और अब वे अपने रुतबे के फायदों का आनंद नहीं ले सकते। उन्हें लगता है कि उन्होंने जो भी कीमतें चुकाईं हैं और अतीत में जो भी कष्ट उन्होंने सहन किए हैं, वे सब व्यर्थ हो गए हैं और उनके दिलों में अन्याय का गहरा अहसास होता है। हालाँकि काट-छाँट किए जाने के दौरान उन्होंने जो भी अभिव्यक्तियाँ दिखाईं थीं या जो गलतियाँ की थीं, उनके लिए उन्हें थोड़ा-सा भी पश्चात्ताप नहीं होता है। वे इसे अन्यायपूर्ण मानते हैं, उनके दिल शिकायतों और आक्रोश और साथ ही परमेश्वर के प्रति गलतफहमियों से भरे होते हैं। वे न केवल अपनी गलती को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और उनके पास अपनी गलती की भरपाई करने या काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने और इस बर्खास्तगी को स्वीकार करने की कोई योजना नहीं होती है, बल्कि, वे सोचते हैं : “परमेश्वर धार्मिक नहीं है। चाहे किसी ने कितने भी कष्ट क्यों न सहन किए हों या उनके साथ कितना भी बड़ा अन्याय क्यों न हुआ हो, उनके पास इसे बताने के लिए कोई जगह नहीं होती। यह बहुत पीड़ादायक बात है! अब तो परमेश्वर पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता, मेरे पास तो कोई सहारा ही नहीं है। भविष्य में अगर मैं परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य निभाना जारी रखता हूँ, तो मुझे अत्यधिक सावधानी से आगे बढ़ना होगा और किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।” वे परमेश्वर के प्रति सतर्क रहते हैं और गलतफहमियों से भरे होते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? चाहे उन्होंने कितने भी गलत कार्य किए हों, कलीसिया के कार्य को कितना भी बड़ा नुकसान पहुँचाया हो या कलीसिया के कार्य को कितना भी खतरे में डाला हो, वे सोचते हैं कि इन बातों को आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है। वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेते या अपनी कोई गलती स्वीकार नहीं करते। इसके बजाय, वे अपनी किसी भी शिकायत को लेंगे और जो भी छोटी मोटी, महत्वहीन कीमत उन्होंने चुकाई होगी उसे लेंगे और इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करेंगे और वे यह मानेंगे कि परमेश्वर के घर ने उन्हें नीचा दिखाया है, परमेश्वर ने उन पर गलत तरीके से आरोप लगाए हैं। उनकी गलती से परमेश्वर के घर को जो नुकसान हुआ है, वह उनके मन में पूरी तरह से महत्वहीन होता है। वे सोचते हैं, “उसका हिसाब लगाने या उसके बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। कौन इसे नुकसान कहेगा? वैसे भी, कौन-सा अगुआ है जो भेंट का कुछ हिस्सा अपव्यय नहीं करता? क्या मैं ऐसा अकेला ही हूँ? कौन-सा अगुआ कभी परमेश्वर के घर को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता? परमेश्वर की भेंटें क्या हैं? वह पैसा सबका है, इसलिए अगर अन्य लोगों को इसे खर्च करने की अनुमति है, तो फिर मुझे क्यों नहीं? अन्य लोगों को इसका अपव्यय करने की अनुमति है, लेकिन मुझे नहीं है? अगर हम परमेश्वर के घर को हुए नुकसानों के बारे में बात करते हैं, तो दूसरे लोग मुझसे कहीं अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। केवल मुझे ही क्यों इतनी गंभीर काट-छाँट और बर्खास्तगी का सामना करना पड़ रहा है? जहाँ तक सिद्धांतों के अनुरूप कार्य न करने और लापरवाही से गलत कार्य करने का सवाल है, इस मामले में कुछ लोग तो मुझसे भी ज्यादा बुरे हैं, जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता? जहाँ तक कीमत चुकाने की बात है, मैंने अधिकांश लोगों से अधिक कीमत चुकाई है। ईमानदारी के मामले में, कौन मुझसे तुलना कर सकता है? उपदेशों का क्या? मैंने किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में अधिक उपदेश दिए हैं। और जहाँ तक सत्य समझने की बात है, तो कौन इसे मुझसे अधिक समझता है? जब ऊपरवाले द्वारा काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने की बात आती है, तो कौन इसे मुझसे अधिक स्वीकार करता है? त्याग करने की बात करें, तो मुझसे अधिक किसने त्याग किया है? और जहाँ तक भाइयों और बहनों की मदद करने और उनकी समस्याओं को सुलझाने की बात है, तो मुझसे अधिक कौन ऐसा करता है? जब कलीसिया के लिए दौड़-भाग करने और कार्य करने की बात आती है, तो कोई भी मेरी बराबरी नहीं कर सकता। जब यह बात आती है कि भाई और बहन किसे वोट देते हैं, किसकी सहायता करते हैं और किसका समर्थन करते हैं, तो मुझसे अधिक वोट किसे मिलते हैं?” देखो, मसीह-विरोधी इस तरह की तुलनाएँ करते हैं। जब उनका सामना काट-छाँट किए जाने से होता है, तो मसीह-विरोधी केवल इसमें शामिल मामलों की ही बात करते हैं। अगर तुम अपनी सारी गलतियाँ मान लेते और जिन सभी सत्य सिद्धांतों का तुमने उल्लंघन किया उन्हें मान लेते हो, अगर तुम काट-छाँट स्वीकार कर सकते हो और उसके प्रति समर्पण कर सकते हो, अगर तुम उसके बाद से सिद्धांतों के आधार पर कार्य करते हो और तुम्हारी वजह से कलीसिया के कार्य को हुए नुकसान की भरपाई करने की पूरी कोशिश करते हो तो क्या परमेश्वर का घर तुम्हारे मुद्दों पर गौर करता रहेगा? क्या वह तुम्हारी निंदा करेगा? क्या वह तुम्हें नरक में डाल देगा? क्या तुम्हारे लिए खुद को समझाने और बहाने बनाने में इतनी मेहनत करने की कोई आवश्यकता है? क्या तुम्हारे लिए इस तरह से घुमा-फिराकर अपने कष्टों के बारे में शिकायत करते रहने की कोई आवश्यकता है? क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है कि तुममें भ्रष्ट स्वभाव न हो और तुम गलतियाँ करने में असमर्थ हो? इतने सारे उपदेश सुनने के बाद भी, क्या तुम्हें अब भी यह समझ नहीं आया कि तुम वास्तव में किस प्रकार की चीज हो? थोड़ी-बहुत काट-छाँट होने के बाद तुम्हें लगता है कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है—अगर तुमने कोई भी बुराई नहीं की होती, तो फिर कौन तुम्हारी काट-छाँट करने को तैयार होता या ऐसा चाहता? इसके अलावा, अगर तुम एक अगुआ नहीं होते और जिम्मेदारी नहीं उठाते, तो फिर कौन तुम्हारी काट-छाँट करने को तैयार होता? परमेश्वर लोगों को स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार देता है, जिससे वे कलीसिया का जीवन जी सकें और जहाँ तक यह सवाल है कि लोग किस मार्ग पर चलते हैं और वे किसका अनुसरण करते हैं, तो यह उनका अपना निजी मामला है। इसमें कोई भी दखल नहीं देगा। लेकिन फिलहाल, अगर तुम परमेश्वर के घर में अगुआ या पर्यवेक्षक के रूप में कोई गलती करते हो, तो इससे परमेश्वर के घर को जो नुकसान होगा वह कोई छोटी-सी बात नहीं होगी और अगर तुम कुछ गलत कह देते हो, तो इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर जो असर पड़ेगा, वह भी छोटी बात नहीं होगी, क्योंकि तुम जो जिम्मेदारी उठाते हो वह एक सामान्य व्यक्ति से अलग होती है। यही कारण है कि ऊपरवाले के लिए तुम्हारी काट-छाँट करना एक सामान्य बात है। अगर तुम्हारा यह रुतबा नहीं होता या तुम यह जिम्मेदारी नहीं लेते तो क्या ऊपरवाला ऐसा करता? ऊपरवाले ने कितने नियमित विश्वासियों की काट-छाँट की है? चूँकि तुम बहुत बड़ी जिम्मेदारी उठाते हो और तुम्हारे कार्य का दायरा भी बहुत बड़ा होता है, इसलिए जब भी तुम कोई गलती करते हो, तो उसका प्रभाव भी बहुत बड़ा होता है और इसलिए तुम्हारी काट-छाँट होना निश्चित है। यह एक बहुत ही सामान्य बात है। अगर तुम काट-छाँट किए जाने को भी स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम अगुआ बनने योग्य हो? तुम उसके लिए अयोग्य हो, तुम भाई-बहनों द्वारा चुने जाने योग्य नहीं हो—तुम इसके लायक नहीं हो! जब तुम कोई गलती करते हो तो तुममें उसकी जिम्मेदारी लेने, उसे स्वीकार करने का साहस भी नहीं होता। तुम्हारे पास तो ऐसी सूझ-बूझ भी नहीं है, तो फिर तुम अगुआ कैसे बन सकते हो? तुम अयोग्य और नालायक हो!

असल में ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें मसीह-विरोधियों का सार होता है, अर्थात मसीह-विरोधी कभी भी यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उन्होंने कोई गलती की है और इसलिए जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे जिम्मेदारी लेने या सत्य सिद्धांतों की खोज करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। यह देखते हुए कि वे ये सब करने के लिए तैयार नहीं होते और अपनी गलतियों को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, क्या वे सत्य को अभ्यास में लाने में सक्षम हैं? क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को अभ्यास में लाने में सक्षम हैं? बिल्कुल भी नहीं। इसलिए, जब एक मसीह-विरोधी अगुआ बनता है, तो अपने निजी उद्यम में लगे रहने के अलावा, वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को कोई लाभ हो और वह कभी भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेगा, न ही वह परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य करेगा। चाहे एक मसीह-विरोधी की किसी छोटी-सी गलती के लिए काट-छाँट की जाए या किसी ऐसी बड़ी भूल के लिए जिसके कारण कलीसिया के कार्य को बड़ा नुकसान पहुँचा हो, वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करता, वह कभी यह स्वीकार नहीं कर सकता कि उसने कोई अपराध किया है और इस मामले में वह परमेश्वर के प्रति ऋणी है। इसके विपरीत, चाहे जब भी हो, वह इस नुकसान से अपने किसी भी संबंध को स्वीकार करने के बजाय मरना पसंद करेगा। वह यह स्वीकार नहीं करेगा कि इस मामले में उसकी मुख्य जिम्मेदारी है, कि उसके कार्य गलत थे, कि उसने गलत रास्ता चुना, या यह गलती मानेगा कि उसने सत्य को जानते हुए जानबूझकर बुराई की। और तो और, वह यह भी स्वीकार नहीं करेगा कि इस मामले में उसकी अपरिहार्य जिम्मेदारी है। वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि कार्य करते समय उसके इरादे गलत थे, वह किसी के साथ भी सहयोग नहीं कर सकता, उसने मनमाने तरीके से और स्वेच्छापूर्वक कार्य किया, वह अपने रुतबे के लाभों में लिप्त रहा, वह अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह था और उसने परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाया। इसके बजाय, गलती करने के बाद, वह हर मोड़ पर यह समझाता रहता है कि उसने कितना कष्ट सहा है, कि वह जेल गया लेकिन कभी यहूदा नहीं बना, उसने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है और उसने परमेश्वर के घर के कार्य में कितना महान योगदान दिया है। वह इन बातों को हर जगह फैलाता और प्रचार करता रहता है। अपने योगदान और उनके द्वारा चुकाई गई कीमत का प्रचार करने के अलावा, वह यह बात भी फैलाता है कि परमेश्वर के घर ने उसकी काट-छाँट करने के तरीके में और उसके साथ व्यवहार करने में एक गलत और अनुचित कार्य किया है। पश्चात्ताप के रवैये की कमी के अलावा, वह हर जगह परमेश्वर और परमेश्वर के घर द्वारा उसके साथ किए गए व्यवहार पर अपना फैसला सुनाता है। अगर और अधिक लोग उसकी बातों पर विश्वास करते हैं, अगर और अधिक लोग उसका बचाव करने की कोशिश करते हैं, उसके द्वारा परमेश्वर के घर के लिए चुकाई गई कीमत को स्वीकार करते हैं और यह मानते हैं कि परमेश्वर के घर ने अन्याय किया है और मसीह-विरोधी के साथ गलत व्यवहार किया है तो फिर मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेगा। वे इन कामों को करने में कभी भी संकोच नहीं करेंगे और न ही खुद पर संयम रखेंगे। उनके पास ऐसा दिल नहीं होता जो परमेश्वर का भय माने न ही उनका पश्चात्ताप करने का कोई इरादा होता है। कुछ भी गलत करने के बाद, न केवल वे इसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं, बल्कि वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश भी करते हैं और साथ ही, वे अपनी भविष्य की मंजिल के बारे में अधिक चिंतित रहते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी देखता है कि उसकी मंजिल खतरे में है, या सुनता है कि परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को विकसित करना बंद कर देगा, तो वह मन ही मन उन लोगों से और भी अधिक घृणा करने लगता है जिन्होंने उसकी काट-छाँट की थी और उसे उजागर किया था और जिनके कारण उसे बेइज्जत होना पड़ा था। काट-छाँट किए जाने की पूरी प्रक्रिया के दौरान, एक मसीह-विरोधी कभी भी पश्चात्ताप नहीं करता। अगर उसे सचमुच पता चल जाए कि उसका रुतबा और मंजिल सुरक्षित नहीं है, उसकी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं होंगी, तो उसका मुखौटा उतर जाता है वह गुप्त रूप से अपनी धारणाएँ और नकारात्मकता फैलाना शुरू कर देता है। वह उन भाइयों और बहनों या उच्च-स्तरीय अगुआओं पर फैसला सुनाने लगता है जिन्होंने उसकी काट-छाँट की और वह पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए जाने वाले व्यक्ति पर भी फैसला सुनाने लगता है और यह कहते हुए उस पर हमला करता है कि उसके पास उनकी काट-छाँट करने का कोई कारण नहीं था, कि उसने उसे अपनी प्रतिष्ठा को बचाने का कोई अवसर ही नहीं दिया। वह बस अनुचित होता है। इस प्रकार का व्यक्ति सत्य नहीं समझ सकता या उसके पास परमेश्वर का थोड़ा-सा भी भय मानने वाला दिल नहीं होता, चाहे वह कितने भी उपदेश क्यों न सुन ले; उसमें अंतरात्मा या सूझ-बूझ भी नहीं आ सकती, चाहे वह कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों न कर ले। वह सचमुच बहुत दयनीय और घिनौना होता है! जिस क्षण से एक मसीह-विरोधी की लापरवाही से गलत कार्य करने के कारण गंभीर रूप से काट-छाँट की जाती है, तब से आखिर तक वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करता कि उसने कुछ भी गलत किया है और दूसरी तरफ वह एक अन्याय की भावना से भरा होता है और साथ ही परमेश्वर के घर के बारे में शिकायत करता है और फैसला सुनाता है कि इसमें उसके साथ अन्याय किया जाता है और आखिरकार वह खुले तौर पर अपनी धारणाएँ फैलाने लगता है, उसका मुखौटा उतर जाता है और परमेश्वर के घर के खिलाफ आवाज उठाता है और आखिरकार उसे निष्कासित कर दिया जाता है। क्या इनमें से किसी भी चरण में मसीह-विरोधी के व्यवहार में सामान्य मानवता का एक भी अंश होता है? क्या अंतरात्मा और सूझ-बूझ होती है? क्या उसके अंदर सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करने की कोई भी अभिव्यक्ति होती है? क्या उसके पास थोड़ा-सा भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? नहीं, इनमें से कोई भी चीज उसमें नहीं होती। एक मसीह-विरोधी अत्यधिक घिनौना, शर्म से रहित और पूरी तरह से अनुचित होता है! जब वह अपने रुतबे के फायदों का आनंद नहीं उठा पाता, तो वह खुद को निकम्मा मान लेता है और लापरवाही से कार्य करने लगता है। चाहे वह अपने कार्य में कितना भी अयोग्य क्यों न हो और उसकी कार्य क्षमता कितनी भी कम क्यों न हो, फिर भी वह अपने रुतबे के फायदों और दूसरों के सम्मान का आनंद उठाना चाहता है। वह रुतबे और प्रतिष्ठा को अपने जीवन से अधिक महत्वपूर्ण मानता है और चाहे वह कितनी भी बड़ी गलती क्यों न करे, उसमें किसी भी प्रकार का कोई अपराधबोध नहीं होता। क्या वह सच में इंसान है? वह भेड़ की खाल में भेड़िया है। बाहर से वह इंसान की चमड़ी पहनता है और एक इंसान की तरह दिखता है, लेकिन अंदर से वह इंसान नहीं होता। वह सचमुच बहुत तिरस्कृत होता है—वह घिनौना और घृणित होता है!

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें