मद ग्यारह : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही कोई गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं (खंड एक)

आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के मद ग्यारह पर संगति करेंगे : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही कोई गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं। इस मद में विशिष्ट रूप से इस विषय पर बात की गई है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं; अर्थात्, जब वे इस स्थिति का सामना करते हैं तो उनका रवैया कैसा होता है, वे फिर आगे क्या करते हैं और इस रवैये को अपनाते समय वे कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं। क्या हमने पहले ही इस विषय पर संगति कर ली है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं? (हाँ, इस विषय पर तब चर्चा की गई थी जब हम इस बारे में संगति कर रहे थे कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति को किस प्रकार लेते हैं।) तो फिर, मसीह-विरोधी का काट-छाँट किए जाने के प्रति क्या रवैया होता है? क्या हमने उस समय उन प्रसिद्ध कहावतों पर संगति नहीं की थी जो मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने के समय कहते हैं? (हाँ।) उनके पास इस तरह की स्थिति के लिए दो प्रसिद्ध कहावतें हैं। एक तो यह है कि “परमेश्वर धार्मिक है, और मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं!” और दूसरा यह है कि “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए अभी बहुत नौसिखिया हो। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की कोई परवाह नहीं होती!” इसके अलावा, वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं और जैसे ही उनकी काट-छाँट की जाती है, उन्हें संदेह हो जाता है कि उन्हें हटा दिया जाएगा। अंत में, हमने इस बारे में भी संगति की कि वे कैसे न केवल काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, बल्कि हर जगह अपनी धारणाएँ भी फैलाते रहते हैं। क्या हमने इसी बारे में बात नहीं की थी? (हाँ।)

I. मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के कारण

मैंने अभी-अभी हमारी पिछली संगति की एक त्वरित समीक्षा पेश की है जो इस बारे में थी कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं, जब यह उनके व्यक्तिगत हितों से जुड़ी होती है। आज हम एक दूसरे दृष्टिकोण से इस पर संगति करने और इसका विश्लेषण करने जा रहे हैं और हम इस बात पर नजर डालने जा रहे हैं कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे कौन-से विशिष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं और वे किस प्रकार का रवैया अपनाते हैं, साथ ही यह भी कि इस बारे में उनके विशिष्ट विचार क्या होते हैं, हम इन विचारों के आधार पर उनके स्वभाव का विश्लेषण करेंगे। चूँकि इसमें काट-छाँट किए जाने का विषय शामिल है, इसलिए चलो पहले मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के कारणों के बारे में संगति करते हैं। काट-छाँट कोई ऐसी चीज नहीं है जो बिना किसी आधार के की जाती है, तो फिर एक मसीह-विरोधी के साथ यह किस संदर्भ में और किन परिस्थितियों के तहत होगी? क्या यह प्रक्रिया सिर्फ इसलिए होगी कि वह व्यक्ति एक मसीह-विरोधी है? कुछ लोग कहते हैं : “जिसके पास भी रुतबा होता है, जो सुर्खियों में रहता है, उसके साथ अंततः काट-छाँट की जाएगी।” क्या यह सच है? (नहीं।) तो फिर, मसीह-विरोधी ऐसा क्या करते हैं जिसके कारण उनकी काट-छाँट की जाती है? अगर वे कोई साधारण सी गलती करते हैं तो क्या उनकी कठोरता से काट-छाँट की जाएगी? क्या इस पर संगति नहीं की जानी चाहिए? (हाँ।) मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है? अगर हम इस चीज को सैद्धांतिक रूप से देखें तो मसीह-विरोधियों का घमंडी स्वभाव होता है, वे सत्य के प्रति समर्पण नहीं करते, वे परमेश्वर के वचनों या सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते, वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं और वे परमेश्वर के दुश्मन होते हैं, इसलिए उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए या उन्हें निर्मम ढंग से उजागर किया जाना चाहिए। क्या यह कथन सही है? उनकी अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों के आधार पर, उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जा सकता है, इसलिए वे काट-छाँट किए जाने और यहाँ तक कि निर्दयतापूर्वक उजागर किए जाने के लायक होते हैं; चाहे उनकी कैसे भी काट-छाँट की जाए, वे दया किए जाने के लायक नहीं होते हैं, उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए और उनकी काट-छाँट करना किसी के लिए भी उचित है। क्या ऐसा ही होता है? (ऐसा नहीं है।) क्या यह पक्की बात है? मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है? मैंने अभी इसके कई कारण बताए हैं। तुम में से कुछ लोगों को लग सकता है कि वे कारण सही नहीं हैं, लेकिन तुम इसके बारे में निश्चित नहीं हो; ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोग केवल सिद्धांत समझते हो और इसके सार को नहीं देख सकते। यह तथ्य कि तुम लोगों ने इसे नहीं पहचाना है, यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने अभी तक इस बात की असलियत नहीं जानी है कि मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है। अधिकांश लोग इस मामले के बारे में केवल सिद्धांतों को समझते हैं और वे अपने दिलों में जानते हैं कि एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जानी चाहिए और उसे निर्दयतापूर्वक उजागर किया जाना चाहिए, लेकिन उनमें मसीह-विरोधी के वास्तविक व्यवहार के बारे में विवेक की कमी होती है; इससे पता चलता है कि वे इस मुद्दे के सार या मसीह-विरोधियों के सार को नहीं देख सकते। जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता नहीं होती है वे केवल सिद्धांत ही समझते हैं, वे विनियमों को अंधाधुंध लागू करते हैं, इसलिए अगर वास्तव में कोई मसीह-विरोधी कुछ कर रहा होता, तो वे इसकी असलियत जानने में सक्षम नहीं होते।

एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट क्यों की जा सकती है? इसका कारण बहुत ही सरल है—यह उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनके सार से प्रकट होने वाली विभिन्न प्रथाओं और व्यवहारों के कारण है। और ये प्रथाएँ, व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? सबसे पहले तो, मसीह-विरोधी अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं। अपने मसीह-विरोधी सार के कारण, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उसके साथ होड़ करते हैं, क्षेत्रों और लोगों के दिलों के लिए होड़ करते हैं—यह सब कुछ उनका अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना है। जब कोई अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा होता है, क्या वह अपना कर्तव्य निभा रहा होता है? (नहीं।) वे अपने खुद के उद्यम में लगे होते हैं, अपने प्रभाव क्षेत्र और अपने अधिकार का प्रबंधन कर रहे होते हैं, अपने क्षेत्र पर एकाधिकार पाने, अपना अलग गुट बनाने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे होते हैं ताकि वे परमेश्वर को नकारकर मसीह-विरोधियों का अनुसरण करें। इसे अपना कर्तव्य निभाना नहीं कहते, बल्कि इसे परमेश्वर से मुकाबला करना कहते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी इन अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करता है, जब वह ये कार्य करता है, तो क्या उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए? (हाँ।) क्या यह एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट किए जाने के कारणों में से एक है? क्या यह उसकी एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है? (हाँ बिल्कुल ऐसा ही है।) तो फिर तुम लोगों ने अभी यह क्यों नहीं कहा? क्या ये शब्द तुम लोगों के होठों पर और तुम्हारे मन में नहीं हैं? (हाँ।) क्या यह अभिव्यक्ति उन सैद्धांतिक कारणों के विपरीत है जिनका मैंने अभी उल्लेख किया है? उनके बीच क्या अंतर है? (वे कारण तो सामान्य थे, जबकि परमेश्वर ने अभी जिस अभिव्यक्ति का उल्लेख किया है वह विस्तृत है—यह एक मसीह-विरोधी की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।) पहले जिन कारणों का उल्लेख किया गया था वे सामान्य थे, वे केवल कुछ सिद्धांत थे; ये मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के विशिष्ट कारण बिल्कुल नहीं थे। यह अभिव्यक्ति वास्तविक कारणों में से एक है। पहली अभिव्यक्ति यह है कि वे अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी अभिव्यक्ति उनकी छलपूर्ण चालाकी है। इसकी प्रकृति वैसी ही है जैसे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास करना, लेकिन इसकी कुछ विशिष्ट प्रथाएँ अलग हैं। तो छलपूर्ण चालाकी का क्या मतलब होता है? क्या यह एक सकारात्मक शब्द है या नकारात्मक? इसका मतलब प्रशंसात्मक है या निंदात्मक? (इसका मतलब निंदात्मक है।) छलपूर्ण चालाकी का आमतौर पर क्या मतलब होता है? इसमें किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ शामिल होती हैं? (इसमें मसीह-विरोधियों द्वारा अपने रुतबे को मजबूत करने के लिए परदे के पीछे से काम करना शामिल है। उदाहरण के लिए, कलीसिया के चुनाव के दौरान, वे गुप्त रूप से परदे के पीछे वोट माँगते हैं।) यह उन चीजों में से एक है जो इसमें शामिल हैं। संक्षेप में कहें तो, इस प्रकार की अभिव्यक्ति का मतलब होता है कुछ चीजों को गुप्त रूप से, दूसरों के साथ चर्चा किए बिना, पारदर्शिता के बिना, सबकी पीठ पीछे परिस्थितियों से छेड़छाड़ करके करना, विशेष रूप से ऊपरवाले को या ऊपरी अगुआओं को इसके बारे में पता न चलने देना। मसीह-विरोधी कुछ चीजें गुप्त रूप से करते हैं हालाँकि वे पूरी तरह से जानते हैं कि ये चीजें सिद्धांतों के खिलाफ हैं और सत्य के अनुरूप नहीं हैं, ये चीजें परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाती हैं और परमेश्वर उन चीजों से घृणा करता है। वे फिर भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए शैतान की चालों और मानवीय रणनीतियों का उपयोग करके इन चीजों को करने पर अड़े रहते हैं और फिर वे गुप्त रूप से कार्य करते हैं। गुप्त रूप से चीजें करने के पीछे उनके क्या लक्ष्य होते हैं? एक लक्ष्य तो सत्ता पर कब्जा करना होता है और दूसरा लक्ष्य होता है जो भी हित वे चाहते हैं उसे प्राप्त करना। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, वे ऐसी चीजें करते हैं जो सत्य सिद्धांतों, कलीसिया के नियमों, परमेश्वर के इरादों, यहाँ तक कि उनकी अपनी अंतरात्मा के खिलाफ होती हैं। उनके कार्यों में कोई पारदर्शिता नहीं होती—वे सबसे चीजों को छुपा कर रखते हैं या वे केवल अपने प्रभाव के क्षेत्र के कुछ सह-अपराधियों को ही अपनी बातें बताते हैं, ताकि वे स्थिति को नियंत्रित करने, ऊपरी अगुआओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की आँखों में धूल झोंकने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। छलपूर्ण चालाकी का मतलब होता है कि वे कुछ ऐसे निर्णय लेते हैं और कुछ चीजों की साजिश रचते हैं जबकि ज्यादातर लोग इससे पूरी तरह से अनजान होते हैं और इन चीजों के घटित होने के बाद, ज्यादातर लोग नहीं जानते कि उनका स्रोत क्या है या इन्हें किसने शुरू किया या वास्तव में क्या हुआ था। ज्यादातर लोग अंधेरे में क्यों होते हैं? यह एक मसीह-विरोधी की दुष्टता और क्रूरता है। वे जानबूझकर अपने कार्यों के बारे में भाइयों और बहनों, ऊपरी अगुआओं और ऊपरवाले को धोखे में रखते हैं। चाहे तुम इन चीजों को जानने की कितनी भी कोशिश करो या किसी से भी पूछो, कोई नहीं जानता कि इन चीजों के पीछे क्या उद्देश्य है और विशेष रूप से बहुत-सी चीजें जो बहुत पहले घटित हुई थीं, ज्यादातर लोग तब भी नहीं जानते कि उस समय क्या हो रहा था। इसे कहते हैं छलपूर्ण चालाकी। यह मसीह-विरोधियों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक सामान्य रणनीति है—जब वे कुछ करना चाहते हैं, तो वे किसी और के साथ इस पर चर्चा किए बिना निजी रूप से षड्यंत्र रचते हैं और इसकी योजना बनाते हैं। अगर उनके पास कोई भरोसे का व्यक्ति न हो तो वे अपने दिमाग में ही अपनी सारी योजनाएँ बनाते हैं; अगर उनके कोई सह-अपराधी हैं, तो वे गुप्त रूप से उसके साथ षड्यंत्र रचते हैं और योजना बनाते हैं और उनके प्रभाव क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति उनकी चालाकियों और साजिशों का निशाना बन सकता है। इस प्रकार की प्रथा की प्रमुख विशेषता क्या होती है? इसकी प्रमुख विशेषता पारदर्शिता की कमी है, जहाँ अधिकांश लोगों को यह जानने का अधिकार ही नहीं होता कि क्या हो रहा है और मसीह-विरोधी उनके साथ खिलवाड़ करते हैं, उन्हें बहकाते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं जबकि वे पूरी तरह से उलझन में पड़े होते हैं। ऐसा क्यों होता है कि मसीह-विरोधी छलपूर्ण चालाकी से काम लेते हैं और खुलकर या पारदर्शी तरीके से कार्य क्यों नहीं करते या सभी को यह जानने का अधिकार क्यों नहीं देते कि क्या हो रहा है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पूरी तरह से और स्पष्ट रूप से जानते हैं कि वे जो कर रहे हैं वह परमेश्वर के घर के सिद्धांतों या नियमों के अनुरूप नहीं है और बेतहाशा बुरा काम कर रहे हैं। वे जानते हैं कि अगर ज्यादातर लोगों को पता चल जाए कि वे क्या कर रहे हैं, तो उनमें से कुछ उठ खड़े होंगे और उनका विरोध करेंगे और अगर ऊपरी अगुआओं को पता चलेगा, तो उन्हें काट-छाँट दिया जाएगा और बर्खास्त कर दिया जाएगा और फिर उनका रुतबा खतरे में पड़ जाएगा। यही कारण है कि वे अपने कुछ कार्यों में छलपूर्ण चालाकी का तरीका अपनाते हैं और अन्य लोगों को इसके बारे में नहीं जानने देते। क्या उनकी छलपूर्ण चालाकी के नतीजे कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं? क्या वे सभी के लिए शिक्षाप्रद होते हैं? बिल्कुल भी नहीं। ज्यादातर लोग गुमराह होते हैं और धोखा खा जाते हैं और उन्हें इससे कोई फायदा नहीं होता। क्या मसीह-विरोधियों द्वारा अपनाया गया छलपूर्ण चालाकी का यह तरीका सत्य सिद्धांतों के अनुसार होता है? क्या यह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करना होता है? (नहीं।) तो क्या जब छलपूर्ण चालाकी में लिप्त मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों का पता चलता है, तो क्या मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जानी चाहिए? क्या उन्हें उजागर कर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए? (हाँ।) छलपूर्ण चालाकी में लिप्त होना मसीह-विरोधियों की एक ठोस अभिव्यक्ति है।

जब मसीह-विरोधी काम करते हैं तो और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ आम होती हैं? (मसीह-विरोधी अपने रुतबे की खातिर लोगों को दबाते हैं और उन्हें सताते हैं।) मसीह-विरोधियों के लिए दूसरों को यातना देना सबसे आम बात है और यह उनकी ठोस अभिव्यक्तियों में से एक है। अपना रुतबा कायम रखने के लिए मसीह-विरोधी हमेशा माँग करते हैं कि हर कोई उनका आज्ञापालन करे और उनकी बात माने। अगर वे पाते हैं कि कोई व्यक्ति उनकी बात नहीं सुनता या उनके प्रति द्वेषपूर्ण और प्रतिरोधी है, तो वे उस व्यक्ति को दबाने और उसे सताने की रणनीति अपनाते हैं, ताकि वे उसे अपने वश में कर सकें। मसीह-विरोधी अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जिनकी राय उनकी राय से भिन्न होती है। वे अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। वे अक्सर उन अपेक्षाकृत शालीन और ईमानदार लोगों को दबा देते हैं, जो उनके सामने झुकते नहीं और उनकी चापलूसी नहीं करते या चाटुकार नहीं होते। वे उन लोगों को दबा देते हैं, जिनके साथ उनकी नहीं बनती या जो उनके आगे झुकते नहीं। मसीह-विरोधी दूसरों के साथ सत्य सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार नहीं करते। वे लोगों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर सकते। जब वे किसी को नापसंद करने लगते हैं, जब उन्हें ऐसा लगने लगता है कि किसी व्यक्ति ने उनके सामने दिल से आत्मसमर्पण नहीं किया है तो वे उस पर हमला करने और उसे सताने के मौके और बहाने ढूँढ़ते हैं और झूठे दिखावे तक करते हैं, यहाँ तक कि उसे दबाने के लिए कलीसिया का कार्य करने का झंडा भी उठा लेते हैं। वे तब तक नहीं मानते, जब तक लोग उनके सामने समर्पण नहीं कर देते और उन्हें मना करने की उनकी हिम्मत टूट नहीं जाती; वे तब तक नहीं मानते, जब तक कि लोग उनके रुतबे और अधिकार को स्वीकार नहीं कर लेते, और उनके बारे में कोई विचार लाने की हिम्मत किए बिना, उनके प्रति समर्थन और आज्ञाकारिता व्यक्त करते हुए, मुस्कुराहट के साथ उनका अभिवादन नहीं करते। किसी भी स्थिति में, किसी भी समूह में, दूसरों के साथ मसीह-विरोधी के व्यवहार में “निष्पक्षता” शब्द मौजूद नहीं होता और परमेश्वर पर सच में विश्वास करने वाले भाइयों और बहनों के साथ उनके व्यवहार में “प्रेम” शब्द मौजूद नहीं होता। जिस किसी से भी उनके रुतबे को खतरा होता है वे उसे अपनी आँख की कील और अपने रास्ते का काँटा समझते हैं और वे उसे सताने के अवसर और बहाने ढूँढ़ते हैं। अगर वह व्यक्ति नहीं झुकता, तो वे उसे सताते हैं और तब तक नहीं रुकते जब तक वे उस व्यक्ति को अपने वश में नहीं कर लेते। मसीह-विरोधियों का ऐसा करना सत्य सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत होता है और सत्य के साथ उनकी शत्रुता को दर्शाता है। तो क्या उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए? इतना ही पर्याप्त नहीं है—उन्हें उजागर करने, पहचानने और चरित्र-चित्रण करने से कम किसी बात से काम नहीं चलेगा। एक मसीह-विरोधी सभी के साथ अपनी प्राथमिकताओं, अपने खुद के इरादों और उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार करता है। उसके अधिकार के तहत, जो कोई न्याय की भावना रखता है, जो कोई भी निष्पक्षता से बोल सकता है, जो कोई अन्याय से लड़ने का साहस करता है, जो कोई सत्य सिद्धांतों को बनाए रखता है, जो कोई भी वास्तव में प्रतिभाशाली और विद्वान है, जो कोई परमेश्वर के लिए गवाही दे सकता है—ऐसे सभी लोगों को मसीह-विरोधी की ईर्ष्या का सामना करना पड़ेगा, और उन्हें दबा दिया जाएगा, अलग कर दिया जाएगा, यहाँ तक कि मसीह-विरोधी के पैरों तले इस हद तक रौंद दिया जाएगा कि वे फिर उठ नहीं सकेंगे। ऐसी ही घृणा के साथ मसीह-विरोधी अच्छे लोगों, सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों के साथ व्यवहार करता है। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी जिन लोगों से ईर्ष्या करता है और जिनका दमन करता है, उनमें से ज्यादातर लोग सकारात्मक और अच्छे लोग होते हैं। उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका परमेश्वर उपयोग कर सकता है, जिन्हें परमेश्वर पूर्ण करेगा। जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका उपयोग करेगा और जिन्हें पूर्ण करेगा, उन लोगों के खिलाफ दमन और बहिष्कार की ऐसी चालें चलकर, क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के विरोधी नहीं हो जाते? क्या ये वे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं? जब वे इस तरह से सत्य का अनुसरण करने वालों से ईर्ष्या करते हैं, उन पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं, तो वे सीधे तौर पर कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बाधा डाल रहे होते हैं। इस प्रकार का मसीह-विरोधी न केवल देहधारी परमेश्वर के प्रति विरोधी होता है, बल्कि उन लोगों के प्रति भी विरोधी होता है जो परमेश्वर और सत्य का अनुसरण करते हैं। यह एक प्रामाणिक मसीह-विरोधी होता है। क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों की इस तरह की अभिव्यक्ति को पहचानने में सक्षम होना चाहिए? क्या उन्हें मसीह-विरोधियों को उजागर कर उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए? क्या सत्य के बारे में संगति करके मसीह-विरोधियों के स्वभाव का समाधान हो सकता है? उनका स्वभाव सत्य और परमेश्वर से घृणा करने वाला है और वे बिल्कुल भी सत्य को स्वीकार या उसके प्रति समर्पण नहीं करेंगे। इसलिए, ऐसे प्रामाणिक मसीह-विरोधियों से निपटने का एकमात्र तरीका ऐसे लोगों को उजागर करना, उन्हें पहचानना और फिर उन्हें अस्वीकार करना है। ऐसा करना पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इस प्रकार से सताना स्पष्ट रूप से उनका खुद को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ होड़ करना है। वे उन लोगों से ईर्ष्या और नफरत करते हैं जिन्हें वे गुमराह और नियंत्रित नहीं कर सकते। वे इन लोगों को प्राप्त नहीं कर पाते, लेकिन वे परमेश्वर को भी उन्हें प्राप्त करने की अनुमति नहीं देते। इस प्रकार, क्या वे कलीसिया में शैतान की भूमिका नहीं निभा रहे हैं, जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करता है और उन्हें नुकसान पहुँचाता है और उनका विनाश करता है? मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं ताकि परमेश्वर उन्हें प्राप्त न कर सके और वे उन सभी लोगों को भी गुमराह करना चाहते हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उन्हें अपना अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं जिससे उद्धार प्राप्त करने की उनकी संभावनाएँ नष्ट हो जाती हैं। केवल तभी वे अपना लक्ष्य हासिल कर पाते हैं। क्या मसीह-विरोधी जो लोगों को नुकसान पहुँचाकर मार देते हैं, वे परमेश्वर के कट्टर दुश्मन नहीं हैं? तुम लोगों को उन्हें पहचानने में सक्षम होना चाहिए।

मसीह-विरोधियों की और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (वे कार्य व्यवस्था के खिलाफ जाते हैं और बस अपने तरीके से कार्य करते हैं।) इसके और अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने और छलपूर्ण चालाकी करने के बीच कुछ समानताएँ हैं, लेकिन यह भी एक और विशिष्ट अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी अपने तरीके से कार्य कैसे करते हैं? (ऊपरवाला ऐसी कार्य व्यवस्था जारी करता है जिसके लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों को झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ मसीह-विरोधी इन कार्य व्यवस्थाओं को लागू नहीं करते, इसके बजाय वे “तुम केवल तभी दूसरे लोगों को पहचान सकते हो जब तुम खुद को पहचानने में सक्षम होते हो” के बहाने का उपयोग करते हैं, ताकि हर कोई खुद को जान सके और यह भाइयों और बहनों को झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने से रोकता है।) ऐसा करना ऊपरवाले की कार्य व्यवस्था का विरोध करने के साथ-साथ अपने तरीके से काम करने के बराबर है। और कुछ? (मसीह-विरोधियों की ऊपरवाले के कार्य प्रबंधों के बारे में अपनी ही धारणाएँ होती हैं। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि वे इन व्यवस्थाओं को लागू करने में सक्षम हैं और वे भाइयों और बहनों के साथ संगति कर रहे हैं, लेकिन वे कभी भी बाद में इन चीजों का पता नहीं करते या इनके बारे में नहीं पूछते और उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं।) मसीह-विरोधियों द्वारा अपने तरीके से कार्य करने का मुख्य रूप से यह मतलब होता है कि चाहे ऊपरवाला कोई भी कार्य आयोजित कर रहा हो या ऊपरवाला नीचे रहने वाले लोगों से कोई भी कार्य लागू करने की अपेक्षा करता हो, मसीह-विरोधी उसे दरकिनार कर देंगे, उसे अनदेखा कर देंगे, उसे आगे नहीं पहुँचाएँगे, उसे लागू नहीं करेंगे और फिर वे वही करेंगे जो वे करना चाहते हैं, जो वे करने को तैयार हैं और जिससे उन्हें कुछ लाभ होता होगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को जारी करना, पुस्तक वितरण के संबंध में कलीसिया के सिद्धांतों के अनुसार, सामान्य कलीसिया जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास एक पुस्तक जरूर होनी चाहिए। लेकिन जब एक मसीह-विरोधी यह देखता है, तो वह सोचता है, “सबके लिए एक-एक किताब? क्या यह मेरे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा? एक व्यक्ति के लिए एक किताब नहीं हो सकती—मुझे इस कार्य को इस आधार पर अभ्यास में लाना और लागू करना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति विशेष रूप से मेरे बारे में क्या सोचता है। यह सिर्फ एक सामान्य कलीसिया का जीवन जीने पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि इस पर आधारित होना चाहिए कि आम तौर पर कौन अधिक चढ़ावा देता है। जो लोग कोई चढ़ावा नहीं देते या जो गरीब हैं उन्हें बिना किसी अपवाद के किताब नहीं मिलनी चाहिए। अगर वे मुझसे एक किताब देने की भीख माँगें और कुछ पैसे भी दें, तो उनके पेश आने के आधार पर, मैं उनके व्यवहार के आधार पर तय करूँगा कि उन्हें किताब देनी है या नहीं।” क्या यह सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का तरीका है? वे क्या कर रहे हैं? वे अपने तरीके से कार्य कर रहे हैं। अपने तरीके से कार्य करने का मतलब है मौजूदा कार्य व्यवस्थाओं से हट कर अपनी ही नीतियाँ स्थापित करना, अपनी स्थानीय कलीसिया में उन नीतियों के अनुसार कार्य करना, परमेश्वर के घर के लिए आवश्यक कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों को बिल्कुल भी लागू न करना और इसके बजाय अपने ही उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुसार कार्य करना। ऊपरी तौर पर तो वे किताबें भी बाँट रहे होते हैं और ऐसा लगता है कि कार्य पूरा हो गया है। लेकिन ऐसा करने के पीछे उनका आधार क्या था? यह परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं या कलीसिया के नियमों पर आधारित नहीं था, बल्कि यह उनकी अपनी नीतियों और अपने तरीके पर आधारित था। यह अपने तरीके से कार्य करना होता है। वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के प्रति किसी भी प्रकार का समर्पण नहीं दिखाते हैं; वे इन्हें सख्ती से लागू या पालन करने में असमर्थ होते हैं और इसके बजाय गुप्त रूप से अपने कई नियम और विनियम स्थापित करते हैं जिन्हें वे अपनी स्थानीय कलीसिया के भीतर लागू करते हैं और इसका अभ्यास करते हैं। यह न केवल अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना है, बल्कि इससे भी अधिक यह अपने तरीके से कार्य करना है। दूसरे शब्दों में, जब वे अपनी स्थानीय कलीसिया में कार्य व्यवस्थाओं को लागू करते हैं, तो वे अपने तरीके से व्यवस्थाएँ कर रहे होते हैं, जो ऊपरवाले द्वारा जारी किए गए और अन्य कलीसियाओं में लागू की गई कार्य व्यवस्थाओं से कुछ अलग होता है। बाहर-बाहर से तो उन्होंने बेमन से कामकाज को पूरा किया होता है, उन्हें कार्य व्यवस्थाएँ मिली होती हैं और उन्होंने इसे पढ़ा होता है, लेकिन उनके पास इन्हें लागू करने के लिए अपने ही तरीके होते हैं। वे बस परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं की अवहेलना करते हैं और खुले तौर पर उनका उल्लंघन करते हैं। इसे अपने तरीके से कार्य करना कहते हैं। मसीह-विरोधी अपने तरीके से कार्य क्यों करते हैं? (वे कलीसिया के भीतर शक्ति अख्तियार करना चाहते हैं और हर चीज पर अंतिम निर्णय का अधिकार चाहते हैं।) बिल्कुल सही। वे सिर्फ शक्ति अख्तियार करना चाहते हैं; वे सत्ता हासिल करने और दूसरों को नियंत्रित करने, दूसरों को अपनी बात मानने, अपनी आज्ञा मनवाने और डरने पर विवश करने के लिए किसी भी और सभी अवसरों की तलाश करते हैं और उन्हें लपक लेते हैं। वे अपनी विभिन्न प्रथाओं का उपयोग करना चाहते हैं ताकि वे दूसरों को नियंत्रित कर सकें और सभी को यह बता सकें कि इस जगह केवल उनके पास ही सत्ता है, किसी और के पास नहीं, कि दूसरों के लिए उनकी अनुमति के बिना कार्य करना या उन्हें दरकिनार करना असंभव है और कोई भी उनसे आगे नहीं निकल सकता। वे मुख्य रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना और सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं। यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि मसीह-विरोधियों का इस तरह से व्यवहार करना सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार मामलों को सँभालने के अनुरूप नहीं है। किसी भी अगुआ या किसी ऐसे व्यक्ति को जो अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा रहा हो, ऐसा काम नहीं करना चाहिए। तो, जब मसीह-विरोधी इस प्रकार की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं, तो क्या उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए? क्या उन्हें उजागर कर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए? (हाँ।)

मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (मसीह-विरोधी चढ़ावा चुराते हैं, अपने आनंद के लिए परमेश्वर के घर का पैसा खर्च करते हैं, और विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं।) विशेषाधिकारों का आनंद उठाना एक विशेष अभिव्यक्ति है। एक बार जब मसीह-विरोधियों को थोड़ा-सा भी रुतबा मिल जाता है तो फिर उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है—वे दूसरों को अपने पैरों तले रौंदने योग्य चीजें समझते हैं और वे जो कुछ भी करते हैं उसमें सुर्खियाँ बटोरना चाहते हैं, उसका पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं और जब भी बोलते हैं, तो प्रमुखता पाने का प्रयास करते हैं। वे जिस भी सीट पर बैठते हैं, उसे विशेष बनाना चाहते हैं। परमेश्वर के घर में उन्हें जो भी लाभ मिलते हैं, वे चाहते हैं कि वे अन्य सभी को मिलने वाले लाभों से बेहतर हों। वे चाहते हैं कि हर कोई उन्हें लेकर ऊँचा सोचे और उनके बारे में ऊँची राय रखे। जब उनके पास रुतबा नहीं होता तो वे उसे हथियाना चाहते हैं और जैसे ही उन्हें रुतबा मिल जाता है, वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि जो भी उनसे बात करे, वह उनकी ओर नजरें उठाकर देखे, कोई भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल सकता, बल्कि उसे एक या दो कदम पीछे रहना चाहिए; कोई भी उनसे बहुत जोर से या बहुत कठोरता से बात नहीं कर सकता, गलत शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकता या उन्हें गलत तरीके से नहीं देख सकता। वे सभी में मीनमेख निकालेंगे और उनकी आलोचना करेंगे। कोई भी उन्हें अपमानित नहीं कर सकता या उनकी आलोचना नहीं कर सकता; बल्कि सभी को उनका सम्मान करना चाहिए, उनकी चापलूसी करनी चाहिए और उनकी खुशामदी करनी चाहिए। एक बार जब कोई मसीह-विरोधी रुतबा प्राप्त कर लेता है, तो फिर वह जहाँ भी जाता है, वहाँ मनमाने ढंग से और स्वेच्छा से कार्य करता है और दिखावा करता है, ताकि लोग उसका सम्मान करें। वे न केवल अपने रुतबे का आनंद लेते हैं और दूसरों की प्रशंसा को बहुत महत्व देते हैं, बल्कि भौतिक सुख भी उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। वे ऐसे मेजबानों के साथ रहना चाहते हैं जो सबसे अच्छी सेवा प्रदान करते हैं। चाहे उनका मेजबान कोई भी हो, अपने खाने-पीने को लेकर उनकी विशेष माँगें होती हैं और अगर खाना अच्छा नहीं है, तो फिर वे अपने मेजबान की काट-छाँट करने का मौका ढूँढ़ लेते हैं। वे किसी भी निम्न स्तर के सुख को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं—उनका भोजन, कपड़े, आवास और परिवहन सभी औसत से बेहतर होना चाहिए, उनका औसत से काम नहीं चलेगा। वे उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकते जो सामान्य भाइयों और बहनों को प्राप्त होती हैं। अगर अन्य लोग सुबह 5 या 6 बजे उठ रहे हैं, तो वे सुबह 7 या 8 बजे उठेंगे। उनके लिए सबसे अच्छा भोजन और वस्तुएँ आरक्षित होनी चाहिए। यहाँ तक कि लोग जो कुछ भी चढ़ावा देते हैं वे पहले उसकी छँटाई करते हैं और जो भी अच्छी या मूल्यवान चीज होगी या जो भी चीज उनकी नजर में आएगी, वे उसे रख लेंगे और फिर वे बची हुई चीजें कलीसिया के लिए छोड़ देते हैं। और एक और सबसे घिनौना काम है जो मसीह-विरोधी करते हैं। वह क्या है? जब उन्हें रुतबा मिल जाता है तो फिर उनकी भूख बढ़ जाती है, उनका दृष्टिकोण विस्तृत हो जाता है और वे आनंद उठाना सीख जाते हैं, इसके बाद, उनमें पैसे खर्च करने, उपभोग करने की इच्छा विकसित होती है और परिणामस्वरूप वे अपने लिए वह सारा पैसा रखना चाहते हैं जो कलीसिया के कामों के लिए उपयोग होता है, उसे अपनी मर्ज़ी से आवंटित करना चाहते हैं, और अपनी इच्छाओं के अनुसार उसे नियंत्रित करना चाहते हैं। मसीह-विरोधी विशेष रूप से इस प्रकार की शक्ति और इस प्रकार के लाभों का आनंद लेते हैं और जब उनके पास शक्ति आ जाती है, तो वे हर चीज पर अपने हस्ताक्षर करना चाहते हैं, जैसे सभी चेक और विभिन्न समझौतों पर। वे बार-बार कलम से हस्ताक्षर करने तथा पानी की तरह पैसा बर्बाद करने के उस एहसास का आनंद लेना चाहते हैं। जब एक मसीह-विरोधी के पास कोई रुतबा नहीं होता तो कोई भी उनमें ये अभिव्यक्तियाँ नहीं देख सकता या यह भी नहीं देख सकता कि वे इस प्रकार के व्यक्ति हैं, कि उनका स्वभाव इस प्रकार का है, कि वे ऐसे काम करेंगे। लेकिन जैसे ही वे रुतबा प्राप्त कर लेते हैं, ये सब चीजें प्रकट हो जाती हैं। अगर उन्हें सुबह चुना जाए, तो उसी दोपहर तक वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं, खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं, उनकी गर्दन घमंड से अकड़ जाती है और उन्हें आम लोगों की कोई परवाह नहीं होती। उनमें यह बदलाव बहुत जल्द आता है। लेकिन वास्तव में, वे बदले नहीं हैं—वे बस प्रकट हुए हैं। वे ऐसे घमंडी बन जाते हैं, और वे क्या करेंगे? वे कलीसिया पर पलना चाहते हैं और रुतबे के फायदों का आनंद लेना चाहते हैं। जब भी कोई व्यक्ति स्वादिष्ट भोजन का आयोजन करता है, वे उसे चट कर जाते हैं और साथ ही अपने बदबूदार शरीर को बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सप्लीमेंट की माँग करते हैं। सभी मसीह-विरोधी अक्सर विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं और इसमें अंतर केवल गंभीरता के स्तर में होता है। जब कोई ऐसा व्यक्ति अगुआ बनता है जो भौतिक सुख-सुविधाओं से चिपका रहता है, तो वह विशेषाधिकार का आनंद उठाना चाहता है। यही मसीह-विरोधियों का स्वभाव है। जैसे ही वे रुतबा प्राप्त करते हैं, वे पूरी तरह से बदल जाते हैं। वे रुतबे के साथ मिलने वाले सभी सुखों और विशेष लाभों को दृढ़तापूर्वक और सुरक्षित रूप से अपनी निगाहों में और अपनी मुट्ठी में रखते हैं और वे उनका एक कण भी नहीं छोड़ते, न तो अपनी पकड़ ढीली होने देते हैं और न ही किसी भी हिस्से को अपने हाथों से फिसलने देते हैं। मसीह-विरोधियों की इनमें से कौन-सी अभिव्यक्तियाँ और अभ्यास सत्य सिद्धांतों के अनुसार हैं? एक भी नहीं। इनमें से हर एक घृणा पैदा करने वाला और घिनौना है; न केवल उनके अभ्यास और अभिव्यक्तियाँ सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, बल्कि उनमें निश्चित रूप से बिल्कुल भी विवेक, सूझ-बूझ या शर्म की भावना नहीं होती। जब मसीह-विरोधियों के पास रुतबा होता है तो लापरवाही से बुरे काम करने और अपनी सत्ता और रुतबे के लिए काम करने के अलावा, वे न केवल ऐसा कुछ भी करने में विफल रहते हैं जिससे कलीसिया के कार्य या भाइयों और बहनों के जीवन प्रवेश को लाभ हो, बल्कि वे रुतबे के फायदों, दैहिक सुखों और लोगों द्वारा उनकी प्रशंसा और आदर करने का आनंद भी उठाते हैं। कुछ मसीह-विरोधियों को अपनी सेवा करवाने के लिए लोग भी मिल जाते हैं, वे जो चाय पीते हैं वह दूसरे लोग लेकर आते हैं, वे जो कपड़े पहनते हैं उन्हें दूसरे लोग धोते हैं, यहाँ तक कि वे एक व्यक्ति ऐसा भी रखते हैं जो नहाते समय उनकी पीठ रगड़े और एक ऐसा व्यक्ति जो खाते समय एक वेटर का काम करे। इससे भी बदतर यह है कि कुछ लोगों ने अपने रोज के तीन वक्त के खाने का मेन्यू भी निर्धारित किया होता है और इसके अलावा वे स्वास्थ्य-पूरक लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि उनके लिए सभी प्रकार के विभिन्न सूप तैयार किए जाएँ। क्या मसीह-विरोधियों को कुछ शर्म आती है? नहीं, उन्हें कोई शर्म नहीं आती! क्या तुम लोग कहोगे कि इस प्रकार के व्यक्तियों से केवल निपटना और उनकी काट-छाँट करना उदारता है? क्या उनकी काट-छाँट करने से उन्हें कुछ शर्मिंदगी महसूस होगी? (ऐसा नहीं होगा।) तो इस मुद्दे को कैसे हल किया जा सकता है? यह बिल्कुल आसान है। काट-छाँट करने के बाद, उन्हें उजागर करो और उन्हें बताओ कि वे क्या हैं। चाहे वे इसके लिए समर्पण करें या न करें, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और सभी को उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। जब तुम लोग किसी मसीह-विरोधी का पता लगा लेते हो, तो क्या तुम उन्हें अस्वीकार कर सकते हो? क्या तुम उनकी शिकायत करने और उन्हें उजागर करने के लिए खड़े होने की हिम्मत रखते हो? (हाँ।) क्या तुम सच में हिम्मत रखते हो या नहीं? जब तुम्हारे पास अभी दूसरों का समर्थन है, तो तुम उठकर खड़े होने और उन्हें उजागर करने की हिम्मत करोगे, लेकिन क्या बिना समर्थन के भी तुममें इतनी हिम्मत होगी? अभी तुम जहाँ हो, वह सुरक्षित है, वहाँ बड़े लाल अजगर का शासन नहीं है, इसलिए तुम सोचते हो, “मुझे डरने की क्या जरूरत है? क्या वे बस मसीह-विरोधी नहीं हैं? हमें परमेश्वर का समर्थन प्राप्त है इसलिए मेरे पास मसीह-विरोधी को उजागर करने का साहस है और मैं डरता नहीं हूँ!” लेकिन बड़े लाल अजगर के देश में स्थिति अलग है। अगर तुम मसीह-विरोधियों को उजागर करते हो और वे अपना रुतबा खो बैठते हैं, फिर वे तुम्हें यातना देने, तुम्हारे साथ गद्दारी करने और तुम्हें अधिकारियों के हाथों में सौंपने का साहस करेंगे। क्या तुम अभी भी उन्हें उजागर करने की हिम्मत करोगे? (शायद नहीं करोगे।) शायद नहीं करोगे। तुम्हारा रवैया तुरंत बदल जाएगा; उस माहौल में, तुम उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करोगे। तो, क्या उन्हें उजागर करने की हिम्मत न करना सही है? यह सही नहीं है, तुम्हारे पास कोई गवाही नहीं है और इसका मतलब है कि तुम एक विजेता नहीं हो; यह कोई ऐसी बात नहीं है जो परमेश्वर के अनुयायी को कहनी चाहिए। मान लो कि तुम चुप रहते हो, लेकिन तुम्हारा दिल बार-बार चिल्लाता है : “तुम मसीह-विरोधी, तुम दानव और शैतान, मैं तुम्हें उजागर कर दूँगा। मैं तुम्हें अस्वीकार करने और तुम्हें कलीसिया से दूर करने के लिए बुद्धि का उपयोग करूँगा! तुम परमेश्वर के घर में रहने के योग्य नहीं हो, तुम दानव हो, तुम शैतान हो! भले ही मैं अपने शब्दों से तुम्हें सार्वजनिक रूप से उजागर न करूँ, फिर भी मैं तुम्हें अपने दिल की गहराई से अस्वीकार करता हूँ। मैं ऐसे और कई भाई-बहनों की तलाश करूँगा, जो सत्य को समझते हैं और हम मिलकर तुम्हें अस्वीकार कर देंगे। हम तुम्हारी अगुआई या चालाकी स्वीकार नहीं करेंगे!” क्या यह कार्रवाई करने का सही तरीका है? (हाँ।) परिवेश प्रतिकूल हो सकता है और सार्वजनिक रूप से मसीह-विरोधी को उजागर करना तुम्हें खतरे में डाल सकता है, लेकिन परमेश्वर के आदेश, सत्य-सिद्धांतों और अपने कर्तव्य को छोड़ा या त्यागा नहीं जा सकता। जहाँ तक उन मसीह-विरोधियों की बात है, जो विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं, जो बिना किसी शर्मिंदगी के रुतबे के फायदों का आनंद उठाते हैं, हमें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए और उन्हें परमेश्वर के घर में परजीवी बनने या किसी और भाई और बहन को नुकसान पहुँचाने या गुमराह करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें उन्हें दूर कर देना चाहिए। परमेश्वर के घर के संसाधन इन परजीवियों के पोषण के लिए नहीं हैं। वे परमेश्वर के घर में खाने के योग्य नहीं हैं, न ही वे परमेश्वर के घर में किसी भी चीज का आनंद लेने के योग्य हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे दानव हैं और वे अस्वीकार किए जाने के लायक हैं। यह मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है—विशेषाधिकार का आनंद उठाना, विशेषाधिकारों का आनंद लेने वाले बेशर्म। बिना कुछ योगदान दिए, जैसे ही वे कोई अगुआई का पद प्राप्त करते हैं, वे सत्ता पर भी कब्जा कर लेते हैं, अपने रुतबे के फायदों का आनंद उठाने लगते हैं और भाई-बहनों को अपने लिए स्वादिष्ट भोजन पकाने और खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, उनकी कड़ी मेहनत से कमाई गई संपत्ति को लूट लेते हैं, और उनके पैसों और वस्तुओं को जबरन हड़प लेते हैं। उनके लिए यह एक स्वाभाविक बात है, एक अमूल्य अवसर है, एक ऐसा मौका है जो फिर नहीं आएगा। क्या यह शैतान की सोच नहीं है? कैसी बेशर्म सोच है यह। भाई-बहनों को इस प्रकार के व्यक्तियों की काट-छाँट करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए।

मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? क्या अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना एक विशेष अभिव्यक्ति है? (हाँ।) मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ही दुष्ट होते हैं; उनके दिल में न तो ईमानदारी होती है, न सत्य के प्रति प्रेम होता है और न ही सकारात्मक चीजों के प्रति प्रेम होता है। वे अक्सर अंधेरे कोनों में रहते हैं—वे ईमानदारी के रवैये से कार्य नहीं करते, वे सत्यपूर्वक नहीं बोलते, और वे लोगों और परमेश्वर, दोनों, के प्रति दुष्ट और धोखेबाज हृदय रखते हैं। वे दूसरों को धोखा देना चाहते हैं और परमेश्वर को भी धोखा देना चाहते हैं। वे दूसरों की निगरानी स्वीकार नहीं करते, परमेश्वर की जाँच-पड़ताल का तो सवाल ही नहीं उठता। जब वे लोगों के बीच होते हैं, तो कभी नहीं चाहते कि कोई यह जाने कि वे अंदर ही अंदर क्या सोच रहे हैं और क्या योजना बना रहे हैं, वे किस प्रकार के व्यक्ति हैं और सत्य के प्रति उनका रवैया कैसा है, इत्यादि; वे नहीं चाहते कि लोग इसके बारे में कुछ भी जानें और वे परमेश्वर को धोखा भी देना चाहते हैं, उसे अंधेरे में रखना चाहते हैं। इसीलिए जब किसी मसीह-विरोधी के पास कोई रुतबा नहीं होता है, जब उसे लोगों के किसी समूह में स्थिति में हेरा फेरी करने का अवसर नहीं मिलता है, तो फिर कोई भी वास्तव में यह नहीं जान सकता कि उसके शब्दों और कार्यों के पीछे क्या मकसद छिपा है। लोग आश्चर्य करेंगे : “वे हर दिन किस बारे में सोचते हैं? क्या उनके द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करने के पीछे कोई मंशा छिपी है? क्या वे भ्रष्टता प्रकट कर रहे हैं? क्या वे दूसरों के प्रति कोई ईर्ष्या या घृणा महसूस करते हैं? क्या उनके दिल में अन्य लोगों के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह होते हैं? दूसरों की बातों के बारे में उनकी क्या राय होती है? जब उनका सामना किसी चीज-विशेष से होता है तो वे क्या सोचते हैं?” मसीह-विरोधी कभी भी दूसरों को यह नहीं बताते कि उनके साथ वास्तव में क्या हो रहा है। अगर वे किसी विषय पर अपनी राय व्यक्त भी करते हैं, तो वे अस्पष्ट और गोलमोल शब्दों का प्रयोग करते हैं, वे इस तरह से बात करते हैं कि लोग यह समझ नहीं पाते कि वे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं और न ही यह जान पाएँ कि वे क्या कहना चाहते हैं या क्या व्यक्त करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे हर कोई असमंजस में पड़ जाता है। जब ऐसे किसी व्यक्ति को कोई रुतबा प्राप्त होता है तो वह अन्य लोगों के सामने अपने व्यवहार में और भी अधिक गुप्त बन जाता है। वह अपनी महत्वाकांक्षाओं, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी छवि और अपने नाम, अपने रुतबे और गरिमा आदि की रक्षा करना चाहता है। यही कारण है कि वे इस बारे में खुलकर नहीं बताना चाहते कि वे कैसे काम करते हैं या कोई काम करने के पीछे उनका क्या उद्देश्य होता है। यहाँ तक कि जब वे कोई गलती भी करते हैं, भ्रष्ट स्वभाव भी प्रकट करते हैं या जब उनके कार्यों के पीछे की मंशा और उद्देश्य गलत होते हैं, तब भी वे दूसरों के सामने खुलना नहीं चाहते और दूसरों को इसके बारे में पता नहीं चलने देना चाहते और वे अक्सर भाइयों और बहनों को धोखा देने के लिए मासूमियत और पूर्णता का दिखावा करते हैं। और ऊपरवाले और परमेश्वर के साथ वे केवल अच्छी-अच्छी बातें करते हैं और अक्सर ऊपरवाले के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए भ्रामक रणनीति और झूठ का उपयोग करते हैं। जब वे ऊपरवाले को अपने काम के बारे में बताते हैं और ऊपरवाले से बात करते हैं, तो वे कभी भी कोई अप्रिय बात नहीं कहते, ताकि कोई भी उनकी कमजोरी का पता न लगा सके। वे कभी भी यह नहीं बताएँगे कि उन्होंने नीचे क्या कुछ किया है, कलीसिया में कौन-से मुद्दे उत्पन्न हुए हैं, उनके काम में कौन-सी समस्याएँ या खामियाँ पैदा हुई हैं या वे कौन-सी चीजें हैं जिन्हें वे समझ नहीं पाते या असलियत नहीं जान पाते। वे इन चीजों के बारे में ऊपरवाले से कभी नहीं पूछते न ही मार्गदर्शन माँगते हैं, बल्कि वे सिर्फ अपने काम में सक्षमता और अपने काम को पूरी तरह से करने में सक्षम होने की छवि प्रस्तुत करते हैं और इसका दिखावा करते हैं। वे कलीसिया में मौजूद किसी भी समस्या के बारे में ऊपरवाले को नहीं बताते और चाहे कलीसिया में कितनी भी अव्यवस्था क्यों न हो, उनके काम की खामियों की गंभीरता कितनी भी क्यों न हों, न ही बताते हैं कि वे नीचे असल में क्या कर रहे हैं, वे बार-बार इन सब बातों को छुपाते हैं, वे कोशिश करते हैं कि ऊपरवाले को कभी भी इन बातों की भनक न लगे या कभी पता न चले, यहाँ तक कि जो लोग इन मामलों से जुड़े हैं या जो उनके बारे में सच्चाई जानते हैं, उन्हें दूर-दराज के स्थानों पर स्थानांतरित कर देते हैं ताकि वे छुपा सकें कि असल में क्या हो रहा है। ये किस प्रकार के अभ्यास हैं? यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या इस प्रकार की अभिव्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति में होनी चाहिए जो सत्य का अनुसरण करता हो? स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं है। यह तो एक राक्षस का व्यवहार है। मसीह-विरोधी अपने रुतबे या प्रतिष्ठा पर असर डालने वाली ऐसी किसी भी चीज को छिपाने और ढँकने का पूरा प्रयास करते हैं, ताकि ये बातें दूसरों से और परमेश्वर से छुपी रहें। यह अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना है। वे अक्सर अपने से नीचे वालों से कहते हैं, “ऊपरवाला मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचता है और मुझे बहुत महत्व देता है। ऊपरवाले ने मुझे फ्लाँ-फ्लाँ काम सौंपे हैं, इतना महत्वपूर्ण काम मेरे कंधों पर डाला है। वे मेरी बहुत अच्छी देखभाल करते हैं, मेरे कार्य के लिए मुझे दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं और उन्होंने मेरे जीवन की जिम्मेदारी भी ले ली है। ऊपरवाले ने इन-इन मामलों के कारण मेरी काट-छाँट की और मैंने इस-इस तरह से इसे स्वीकार किया और इस बारे में मेरी समझ इस तरह की है। देखो परमेश्वर मुझसे कितना प्रेम करता है—उसने व्यक्तिगत रूप से मेरी काँट-छाँट की है और मेरे काम में व्यक्तिगत रूप से मेरा मार्गदर्शन किया है।” और ऊपरवाले के सामने, वे अपने काम को बहुत अधिक जिम्मेदारी के साथ करने, भाइयों और बहनों की बहुत ज्यादा परवाह करने और अपने दिल और शक्ति को पूरी तरह से समर्पित करने का दिखावा करते हैं, लेकिन वे कभी भी किसी भाई या बहन द्वारा उनसे भिन्न विचार या राय रखे जाने या अपने काम में किसी भी दोष या विचलन के बारे में एक शब्द भी नहीं कहते। वे अपने बारे में विभिन्न सच्चाइयों को परमेश्वर से छिपाने की पूरी कोशिश करते हुए अपने से नीचे के लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि वे इस बात से डरते हैं कि अगर ऊपरवाले को पता चल गया कि वे वास्तव में क्या कर रहे हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। क्या यह अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना नहीं है? जैसे ही एक मसीह-विरोधी सत्ता में आता है, वह अपने बारे में सच्चाई छिपाने की हर संभव कोशिश करता है ताकि कोई भी उसकी वास्तविक दशा, असली परिस्थिति या उसकी वास्तविक मानवता या कार्य क्षमताओं की असलियत न जान सके। वे इन चीजों को छिपाने के लिए सभी किस्म की चालों और साधनों का उपयोग करते हैं, ताकि वे मजबूती से अपने पैर जमा सकें और हमेशा के लिए अपनी सत्ता और रुतबे के फायदों का आनंद ले सकें। अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देने का काम केवल मसीह-विरोधी ही करते हैं। क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या परमेश्वर की सेवा करने वाले किसी व्यक्ति में ऐसी अभिव्यक्ति होनी चाहिए? क्या यह एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करने वाले किसी व्यक्ति में होनी चाहिए? (नहीं।) तो जब एक मसीह-विरोधी में इस प्रकार की अभिव्यक्ति, इस प्रकार का स्वभाव होता है, तो क्या उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए? (हाँ।)

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