मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग नौ) खंड दो
ii. “सेवाकर्ता” की उपाधि से पेश आने के मसीह-विरोधी के तरीके
आज की संगति का विषय है “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये का गहन-विश्लेषण। अब जब हमने “सेवाकर्ता” की उपाधि की परिभाषा पर संगति कर ली है तो क्या इस उपाधि के प्रति ज्यादातर लोगों की सकारात्मक समझ नहीं है? क्या तुम अब भी इस उपाधि के प्रति प्रतिरोध या अनिच्छा की भावना महसूस करते हो? (नहीं।) तो अब आओ देखें कि मसीह-विरोधी “सेवाकर्ता” की उपाधि से कैसे पेश आते हैं और इसके प्रति उनका क्या रवैया होता है। मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा जिस चीज को महत्व देते हैं, वह है ऊँचा पद, ऊँची प्रतिष्ठा और पूर्ण सत्ता। जब कुछ बहुत सामान्य, जमीनी स्तर की और निम्न स्तर की उपाधियों के साथ ही ऐसी अन्य उपाधियों की बात आती है जो लोगों को काफी अपमानजनक लगती हैं, तो मसीह-विरोधियों के दिल में तीव्र प्रतिरोध और भेदभाव की भावनाएँ उठती हैं और वे ऐसा विशेष रूप से “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति महसूस करते हैं। चाहे परमेश्वर इस समूह के प्रति, जिसे “सेवाकर्ता” कहा जाता है, कितना भी सहनशील और धैर्यवान क्यों न हो, और चाहे परमेश्वर “सेवाकर्ता” की उपाधि की कितनी भी व्याख्या और स्पष्टीकरण क्यों न दे, मसीह-विरोधी फिर भी अपने दिल की गहराई में इस उपाधि को तुच्छ समझते हैं। उन्हें लगता है कि यह उपाधि बहुत हीन है और अगर वे खुद सेवाकर्ता होते तो उन्हें अपनी शक्ल दिखाने में शर्म आती। उन्हें लगता है कि जैसे ही उन्हें यह उपाधि दी जाती है, उनकी ईमानदारी, गर्व और प्रतिष्ठा को चुनौती देकर तुच्छ माना जा रहा है, उनकी अहमियत औंधे मुँह गिर गई है और अब उनके जीवन का कोई मतलब नहीं रहा। इसलिए, चाहे कुछ भी हो मसीह-विरोधी किसी भी हाल में “सेवाकर्ता” की इस उपाधि को स्वीकार नहीं करेंगे। अगर तुम उनसे परमेश्वर के घर जाकर परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा करने को कहो तो वे कहते हैं : “‘सेवाकर्ता’ की उपाधि बहुत अपमानजनक है और मैं किसी भी हालत में यह भूमिका निभाने को तैयार नहीं हूँ। मुझे सेवाकर्ता बनने के लिए कहकर तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो। मैंने परमेश्वर में विश्वास इसलिए नहीं किया कि तुम मुझे अपमानित करो—मैं तो आशीष पाने के लिए आया हूँ। नहीं तो मैंने अपने परिवार को क्यों त्यागा, अपनी नौकरी क्यों छोड़ी और अपनी दुनियावी संभावनाओं को क्यों छोड़ा? मैं सेवाकर्ता बनने नहीं आया हूँ; मैं तुम्हारे लिए काम करने और तुम्हारी सेवा करने नहीं आया हूँ। अगर तुम मुझसे सेवाकर्ता बनने को कहते हो तो मैं विश्वास ही नहीं करूँगा!” क्या यह मसीह-विरोधियों का रवैया नहीं है? ऐसे भी मसीह-विरोधी हैं जो कहते हैं : “अगर तुम मुझसे परमेश्वर के घर में सेवाकर्ता बनने को कहते हो तो फिर परमेश्वर में विश्वास करने का क्या मतलब है? इसका क्या मतलब रह जाता है?” इसलिए जब वे परमेश्वर के घर में कोई काम अपने हाथ में लेते हैं या कोई आदेश या कार्य स्वीकार करते हैं तो वे पहले यह जानना चाहते हैं : “जब मैं यह काम अपने हाथ में लूँगा तो क्या मैं कलीसिया का अगुआ बनूँगा या टीम का अगुआ या फिर मैं सिर्फ एक अनुचर बनकर दूसरों के लिए सेवा और काम करूँगा?” यह पता लगाने से पहले वे कुछ समय के लिए काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस दौरान वे लोगों के शब्दों और हाव-भावों का अवलोकन करते हैं, अपने आँख-कान खुले रखते हैं और विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे यह जानना चाहते हैं कि क्या वे यहाँ अस्थायी रूप से सेवा कर रहे हैं या क्या वे यह काम लंबे समय तक कर सकते हैं, क्या वे कोई ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें विकसित किया जा सकता है या उन्हें सिर्फ अस्थायी रूप से एक खाली पद भरने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर उन्हें सिर्फ एक खाली पद भरने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और उनसे दूसरों की उपलब्धियों और दूसरों के रुतबे और सत्ता के लिए काम करने के लिए कहा जा रहा है तो वे यह बिल्कुल भी नहीं करेंगे। उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि क्या परमेश्वर के घर को कर्तव्य निभाने के लिए उनकी जरूरत है या जो कर्तव्य वे निभाते हैं वह परमेश्वर के घर के कार्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है—वे इन चीजों की परवाह नहीं करते। जैसे ही उन्हें एहसास होता है कि वे यहाँ सेवा तो कर रहे हैं लेकिन निर्णय लेने और आदेश देने की शक्ति उनके पास नहीं है तो वे अपने कार्यों में बेपरवाह हो जाते हैं, अपने कर्तव्य की उपेक्षा करते हैं, बेलगाम होकर कार्य करते हैं, वे स्वेच्छाचारी भी बन जाते हैं और वे अपने कर्तव्य से मुँह मोड़कर किसी भी क्षण छोड़कर जा सकते हैं; वे परमेश्वर के घर के कार्य और अपने कर्तव्य से ऐसे पेश आते हैं जैसे यह बच्चों का खेल हो। उनके जीवन का एक सिद्धांत होता है जो इस तरह है : “जब दूसरे सुर्खियाँ बटोर रहे हों तो मैं पर्दे के पीछे रहकर मेहनत नहीं करूँगा।” वे सोचते हैं, “मैं तो अगुआ बनने के लिए पैदा हुआ हूँ। मैं आदेश देने और निर्णय लेने की शक्ति के साथ पैदा हुआ हूँ। अगर ये दोनों चीजें मुझसे छिन जाएँ तो फिर जीने का क्या मतलब रह जाएगा? परमेश्वर में विश्वास करने का क्या मतलब रह जाएगा? मैं परमेश्वर में क्यों विश्वास कर रहा हूँ? क्या मैंने बड़े आशीष प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे लाभों का त्याग नहीं किया था? अगर मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती तो मैं निस्संदेह दुनिया की प्रवृत्तियों का अनुसरण करना और नरक में जाना पसंद करूँगा!” मसीह-विरोधियों के क्या सिद्धांत होते हैं? “मैं किसी को भी शीर्ष तक पहुँचने के लिए अपना शोषण नहीं करने दूँगा; मैं ही दूसरों का शोषण करता हूँ। अगर लोगों को उनके योगदान के आधार पर इनाम दिया जाता है तो मेरा नाम सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। तभी मैं पूरे उत्साह के साथ काम करूँगा और अपनी पूरी ताकत लगा दूँगा, वरना तुम भूल जाओ कि मैं ऐसा कुछ भी करूँगा। अगर तुम मुझसे अपना पूरा दमखम और संकल्प लगाने, तुम्हें सलाह देने और दिल और जान लगाकर काम करने के लिए कहते हो, लेकिन अंत में जब लोगों को उनके योगदान के आधार पर इनाम देने का समय आता है और मुझे कुछ भी नहीं मिलता, तो तुम मुझसे यह उम्मीद करना भूल जाओ कि मैं तुम लोगों के लिए काम करूँगा, तुम लोगों के लिए खुद को खपाऊँगा और तुम लोगों की सेवा करूँगा!” क्या ये मसीह-विरोधियों के स्वभाव के सच्चे खुलासे और अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? भले ही वे जानबूझकर “सेवाकर्ता” की उपाधि से पीछा छुड़ाने की कोशिश नहीं करते हैं, लेकिन अपने स्वभाव सार के संदर्भ में वे लगातार इसे झटकने की कोशिश कर रहे हैं और लगातार इस उपाधि से पीछा छुड़ाने के लिए लड़ रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं। अगर जब कोई मसीह-विरोधी कुछ काम करता है तो उसे आगे आने और केंद्र में रहने का मौका मिलता है, या अगर उसके पास अंतिम निर्णय लेने की शक्ति होती है, वह एक अगुआ बन जाता है, उसके पास पद, प्रभाव और प्रतिष्ठा होती है और उसके अधीन कुछ लोग होते हैं, तो वह बहुत प्रसन्न महसूस करता है। अगर एक दिन कोई यह कहकर उनकी किसी समस्या को उजागर कर उनकी काट-छाँट करता है कि “ऐसी कई बातें हैं जिन्हें तुम सिद्धांतों के अनुसार नहीं सँभालते, बल्कि अपनी इच्छानुसार सँभालते हो। यह एक ऐसे व्यक्ति का आचरण है जो केवल सेवा कर रहा है; तुम अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हो,” तो क्या मसीह-विरोधी इसे स्वीकार कर सकते हैं? (नहीं।) सबसे पहले, वे अपनी बेगुनाही का दावा करेंगे, अपनी सफाई देंगे और अपने पक्ष में तर्क देंगे और फिर वे तुरंत “सेवा करने” जैसे शब्दों के प्रति अरुचि और विरोध महसूस करेंगे और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे कहेंगे, “मैंने इतनी बड़ी कीमत चुकाई है और इतना कष्ट सहा है। मैं सुबह जल्दी काम शुरू करता हूँ और देर रात तक खत्म करता हूँ, मैं नींद खो देता हूँ और खाना तक भूल जाता हूँ और फिर भी तुम कहते हो कि मैं केवल सेवा कर रहा हूँ? क्या वास्तव में इस तरह सेवा करने वाले लोग होते हैं? मैंने इतनी बड़ी कीमत चुकाई है और बदले में मुझे केवल ‘सेवाकर्ता’ की उपाधि मिलती है, यह परिभाषा मिलती है। फिर मेरे लिए आगे देखने के लिए क्या उम्मीद है? परमेश्वर में विश्वास करने की क्या तुक है? इसके पीछे क्या प्रेरणा है? इससे अच्छा तो है कि ऐसे परमेश्वर में विश्वास न किया जाए!” वे अपना उत्साह खो देते हैं। काट-छाँट किए जाने के बाद मसीह-विरोधी न केवल इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, बल्कि वे प्रतिरोध की भावना भी महसूस करते हैं और विमुख हो जाते हैं और इससे भी अधिक वे गलतफहमियाँ पैदा कर लेते हैं। इसके बाद जब वे काम करते हैं और अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो उनका रवैया बदल जाता है और वे सोचते हैं, “अब चाहे मैं कुछ भी करूँ, मैं एक सेवाकर्ता ही हूँ, इसलिए जब भी मैं यह काम करूँ तो बेहतर है कि मैं खुद को थोड़ा-सा रोक लूँ, अपने लिए एक वैकल्पिक योजना बना लूँ और अपनी पूरी ताकत न लगाऊँ। हर कोई कहता है कि परमेश्वर धार्मिक है तो मुझे यह क्यों नहीं दिखता? परमेश्वर कैसे धार्मिक है? चूँकि चाहे मैं कुछ भी करूँ, मैं एक सेवाकर्ता ही हूँ, तो अब से मैं परमेश्वर में विश्वास करने का अपना तरीका बदल दूँगा; मैं सिर्फ सेवा ही करूँगा, देखते हैं कि कौन किससे डरता है। चूँकि मैं जो भी करूँगा, मुझे न तो प्रशंसा मिलेगी और न ही स्वीकृति, तो ठीक है, मैं अपने जीने के तरीके और अपने काम करने के तरीके को बदल दूँगा। तुम जो भी करने के लिए कहोगे, मैं करूँगा, और अगर मेरे मन में कोई विचार होगा तो मैं बताऊँगा नहीं—जिसे बोलना है वह बोले। अगर कोई मेरी काट-छाँट करता है, तो मैं ऊपरी तौर पर उससे सहमत दिखूँगा और अगर कोई अपने काम में गलती करता है, तो मैं देखकर भी कुछ नहीं कहूँगा। अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों को समझे बिना कार्य करता है, तो मैं उन्हें सिद्धांत नहीं बताऊँगा, भले ही मैं उन्हें समझता हूँ। मैं बस उन्हें मूर्ख की तरह कार्य करते देखूँगा, उन्हें गलती करने दूँगा ताकि उनकी भी मेरी तरह काट-छाँट की जाए, और देखूँगा कि क्या वे एक सेवाकर्ता के रूप में निरूपित किए जाने का स्वाद चखने से निपट सकते हैं। चूँकि तुम लोगों ने मेरे साथ सख्ती दिखाई तो मैं भी तुम लोगों के लिए कठिनाइयाँ पैदा करूँगा और तुम्हारे लिए भी आसानी नहीं होने दूँगा!” बस काट-छाँट और अनुशासित किए जाने से उनमें इतनी तीव्र भावनाएँ और प्रतिरोध की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं—क्या यह सत्य को स्वीकार करने का रवैया है? (नहीं।) सेवा करने में क्या गलत है? क्या परमेश्वर के लिए सेवा करना बुरा है? क्या परमेश्वर के लिए सेवा करने से तुम्हारी गरिमा को ठेस पहुँचती है? क्या परमेश्वर इस योग्य नहीं है कि तुम उसकी सेवा करो? फिर तुम किस योग्य हो कि परमेश्वर तुम्हारे लिए कुछ करे? तुम इन शब्दों के प्रति इतने संवेदनशील और विरोधी क्यों हो? सृष्टिकर्ता ने खुद को दीन कर लिया ताकि वह एक ऐसा व्यक्ति बन सके जो मानवों के बीच रहता है और हर भ्रष्ट मनुष्य की सेवा करता है, ऐसे मनुष्यों की सेवा करता है जो उसका विरोध करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं। तो फिर लोग परमेश्वर की प्रबंधन योजना की खातिर थोड़ी सेवा क्यों नहीं कर सकते? ऐसा करने में क्या गलत है? क्या इसमें कुछ ऐसा है जो अपमानजनक है? क्या इसमें कुछ ऐसा है जो कहने लायक नहीं है? परमेश्वर की विनम्रता और अदृश्यता की तुलना में मनुष्य हमेशा घृणित और कुरूप ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है?
सत्य का अनुसरण करने वाले भ्रष्ट लोग “सेवाकर्ता” की उपाधि सुनकर हो सकता है अब केवल क्षणिक रूप से उदास हों, लेकिन यह एक ऐसा प्रेरक कारक बन सकता है जो उन्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के लिए सत्य का अनुसरण करने को प्रेरित कर सकता है; वे परमेश्वर से लोगों को मिलने वाली इस उपाधि के प्रति उतने संवेदनशील नहीं होते हैं। लेकिन मसीह-विरोधियों के साथ ऐसा नहीं है। वे हमेशा उन उपाधियों के बारे में बहुत आलोचनात्मक रहते हैं जो परमेश्वर लोगों को देता है और वे उन्हें दिल पर ले लेते हैं। परमेश्वर के कहे एक वाक्यांश से ही उनके हितों का उल्लंघन और उन्हें चोट पहुँचना आसान है, और जब परमेश्वर की कोई बात उनके आशीष प्राप्त करने के इरादे और इच्छा के विपरीत होती है, तो यह उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाती है। जैसे ही उनके आत्म-सम्मान और गरिमा को ठेस पहुँचती है, वे परमेश्वर की आलोचना करने लगते हैं, उसे अस्वीकार करते हैं और उसके साथ विश्वासघात करते हैं; वे परमेश्वर को छोड़ना चाहते हैं, वे अपना कर्तव्य निभाते रहना नहीं चाहते और साथ ही वे परमेश्वर पर अधार्मिक होने और लोगों के प्रति सहानुभूति न रखने का आरोप लगाते हुए उसे कोसते हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि परमेश्वर को खुश करना बहुत कठिन है और जो कुछ भी वे करते हैं, वह सही नहीं होता। ये सभी शब्द, भावनाएँ और स्वभाव मसीह-विरोधियों से ही उत्पन्न होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति समर्पण का रवैया बिल्कुल भी न होने के अलावा वे परमेश्वर की कही विभिन्न बातों में भी बारीकी से कमी निकालते हैं, और परमेश्वर की विभिन्न अपेक्षाओं के प्रति लापरवाह और उदासीन रहते हैं। वे “सेवाकर्ता” की इस उपाधि का लगातार प्रतिरोध करते हैं और इसे स्वीकारने या समर्पण करने का कोई इरादा नहीं रखते, परमेश्वर के इरादे को समझने का कोई इरादा रखना तो और भी दूर की बात है। वे केवल “सेवाकर्ता” की इस उपाधि और पहचान, इस रुतबे और पद से पीछा छुड़ाने की लगातार कोशिश करते हैं, और परमेश्वर के इरादे को संतुष्ट करने के लिए उसके साथ कैसे सहयोग करना है, या स्वभाव में परिवर्तन कैसे प्राप्त करना है, सत्य वास्तविकता में प्रवेश कैसे करना है और परमेश्वर के प्रति समर्पण कैसे करना है, इसके बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते। वे इन सकारात्मक चीजों का बिल्कुल भी अनुसरण नहीं करते और जब उन्हें सेवाकर्ता के रूप में उजागर किया जाता है, तो उनके अंदर की नाराजगी और आवेग एक साथ फूट पड़ते हैं। यह कितनी गंभीर बात हो सकती है? कुछ मसीह-विरोधी सार्वजनिक स्थानों पर परमेश्वर को गुपचुप ढंग से कोसते हैं तो बंद दरवाजों के पीछे जोर से कोसते हुए कहते हैं, “परमेश्वर धार्मिक नहीं है। मेरे लिए इस तरह के परमेश्वर पर विश्वास न करना ही बेहतर है!” वे खुलेआम परमेश्वर को चुनौती देकर उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। सिर्फ यही शब्द “सेवाकर्ता” मसीह-विरोधियों के परमेश्वर-विरोधी और सत्य-विमुख सार को उजागर कर देता है। “सेवाकर्ता” शब्द के सामने उनके दुष्ट चेहरे पूरी तरह बेनकाब हो जाते हैं और वे पूरी तरह उजागर हो जाते हैं। वास्तव में क्या चीज उजागर होती है? जो बात उजागर होती है, वह यह है कि वे परमेश्वर में इसलिए विश्वास नहीं करते कि वे उसका उद्धार स्वीकार करें या सत्य को अपनाएँ, न ही वे परमेश्वर में इसलिए विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सत्य है या परमेश्वर सभी चीजों का संप्रभु है। बल्कि वे परमेश्वर में इसलिए विश्वास करते हैं कि वे उससे कुछ पाना चाहते हैं। वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं की खातिर परमेश्वर के घर में आकर अपनी प्रतिष्ठा घटाना सहन करते हैं। वे यह व्यर्थ प्रयास करते हैं कि वे भीड़ से अलग दिखें और अपने तौर-तरीकों, कोशिशों, कड़ी मेहनत और संघर्षों के जरिये आशीष प्राप्त करें या इससे भी बेहतर, शायद अपने अगले जीवन में और भी बड़ा पुरस्कार प्राप्त करें। इसलिए उनकी नजर में “सेवाकर्ता” शब्द हमेशा के लिए एक अपमानजनक और अशोभनीय शब्द है जिसे वे कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते। कुछ भाई-बहन सोचते हैं, “परमेश्वर के लिए सेवा करना हमारा आशीष है। यह एक अच्छी बात है, एक सम्मानजनक बात है।” लेकिन मसीह-विरोधी इस तथ्य को कभी भी स्वीकार न करते हुए कहते हैं, “क्या परमेश्वर के लिए सेवा करना हमारे लिए आशीष है? यह कैसी बात है? कितनी बकवास बात है! इसमें आशीष कहाँ है? इसमें आनंद कहाँ है? परमेश्वर के लिए सेवा करके क्या ही प्राप्त किया जा सकता है? क्या तुम सेवा करके पैसा, सोना या खजाना हासिल कर सकते हो? या क्या इससे घर और गाड़ी मिल सकती है? जो भी सेवा करता है उसे हटा दिया जाएगा; क्या कोई भी सेवाकर्ता अच्छा व्यक्ति होता है? सेवा करने वाला कोई भी व्यक्ति कभी कुछ प्राप्त नहीं करेगा।” वे भाई-बहनों द्वारा संगति किए गए इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते कि “परमेश्वर के लिए सेवा करना मानवजाति के लिए आशीष है” और वे इसके प्रति प्रतिरोध और अरुचि महसूस करते हैं; वे इसके बजाय कुछ और सुनना पसंद करेंगे।
मसीह-विरोधी दुनिया में किसी भी अधिकारी या पद-प्रतिष्ठायुक्त किसी भी व्यक्ति के लिए मेहनत और खिदमत कर सकते हैं और उसके लिए पेय परोस सकते हैं और वे ऐसे लोगों के लिए सेवा करने को भी स्वीकार कर लेंगे और खुशी-खुशी इसे करेंगे। लेकिन जब वे परमेश्वर के लिए सेवा करने आते हैं, तभी वे अनुत्सुक और अनिच्छुक हो जाते हैं, शिकायतों, प्रतिरोध और भावनाओं से भर जाते हैं। ये लोग कैसे प्राणी हैं? क्या परमेश्वर के एक अनुयायी की यही अभिव्यक्तियाँ होनी चाहिए? ये तो स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधियों के सार की अभिव्यक्तियाँ हैं। अगर किसी मसीह-विरोधी को दुनिया में किसी मेयर, प्रांतीय गवर्नर या किसी प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ की सेवा करने जाना पड़े तो वह सोचेगा इससे उसके पूर्वजों का यश और उसके परिवार का मान बढ़ेगा। वह फूला नहीं समाएगा; मानो वह सातवें आसमान पर पहुँच गया हो। अगर कोई पूछे कि उसका काम क्या है तो वह कहेगा, “मैं मेयर की सेवा करता हूँ। मैं मेयर का करीबी सहायक हूँ, उसका निजी अंगरक्षक हूँ!” या यह कहेगा, “मैं राष्ट्रपति की दैनिक जरूरतों का ख्याल रखता हूँ!” ऐसे लोग इतने गर्व से यह कहेंगे। वे सोचेंगे कि यह एक बेहतरीन काम है और इससे उनका पूरा परिवार गौरवान्वित होगा। वे रात में सपने देखेंगे और खुशी से जागेंगे और वे चाहे कहीं भी जाएँ, यह नहीं छिपाएँगे कि वे क्या करते हैं। ऐसा क्यों है? वे अपने काम को शर्मनाक नहीं समझते; वे इसे एक सम्मानजनक काम मानते हैं, एक ऐसा काम जो उन्हें दूसरों से ऊपर रखता है, एक ऐसा काम जो उन्हें एक आभा देता है। लेकिन जब ऐसा व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास करने आता है और उससे परमेश्वर की सेवा करने को कहा जाता है तो वह इसके लिए तैयार नहीं होता, उसके मन में प्रतिरोध की भावना आती है और यहाँ तक कि उसे परमेश्वर से शिकायत होती है, वह कोसता है और उसे धोखा देकर नकार भी सकता है। इन दोनों चीजों की तुलना करने पर हम देख सकते हैं कि मसीह-विरोधी वास्तव में मसीह-विरोधी हैं, कि वे शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं। वे शैतान की चाहे कैसे भी सेवा करें, चाहे वह काम कितना भी गंदा, थकाने वाला या अपमानजनक क्यों न हो, वे इसे एक सम्मान मानते हैं। लेकिन परमेश्वर के लिए उसके घर में कार्य करते हुए वे जो चीजें करते हैं वे चाहे कितनी भी अर्थपूर्ण, मूल्यवान या श्रेष्ठ क्यों न हों या ये चीजें करने से उनका कितना भी उन्नयन क्यों न हो, वे हमेशा यह मानते हैं कि ये चीजें उल्लेख न करने लायक हैं। परमेश्वर और परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा करना चाहे कितना भी बड़ा आशीष हो और कितना भी सम्मानजनक हो और मानवजाति के लिए यह चाहे कैसा भी अनमोल अवसर क्यों न हो, वे इसके बारे में खुश हो ही नहीं पाते। ऐसा क्यों है? इसका एक ही कारण है : मसीह-विरोधी शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं—वे शैतान के हैं और जीते-जागते शैतान हैं, वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी हैं। अगर उनसे परमेश्वर की सेवा करने और परमेश्वर के लिए सेवा करने के लिए कहा जाता है, तो वे इसके बारे में खुश नहीं हो पाते। परमेश्वर का घर लोगों के साथ सत्य पर चाहे कितनी भी संगति कर ले या “सेवाकर्ता” की उपाधि के संदर्भ में परमेश्वर के इरादे को समझाने की कोशिश करे, मसीह-विरोधी इसे परमेश्वर से स्वीकार नहीं कर सकते और न ही इससे संबंधित किसी भी सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, इस तथ्य या सत्य को स्वीकार करना तो और भी दूर की बात है कि एक सृजित प्राणी के लिए सृष्टिकर्ता की सेवा करना एक सम्मानजनक, मूल्यवान और अर्थपूर्ण बात है—“सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया होता है। इस उपाधि के सामने और परमेश्वर के लिए लोगों के सेवा करने के तथ्य के सामने मसीह-विरोधियों ने हमेशा इस उपाधि से पीछा छुड़ाने और इस तथ्य से बचने का प्रयास किया है, बजाय इसके कि वे इस तथ्य को स्वीकार करें, परमेश्वर से “सेवाकर्ता” की इस उपाधि को स्वीकार करें और फिर सत्य का अनुसरण करें, परमेश्वर के वचनों को सुनें और परमेश्वर के प्रति समर्पण करें और उसका भय मानें। “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति प्रदर्शित मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों को देखते हुए यह कहा जाना चाहिए कि मसीह-विरोधी शैतान की किस्म के हैं, वे शैतान की शत्रुतापूर्ण शक्तियों का हिस्सा हैं, और वे परमेश्वर, सत्य और सभी सकारात्मक चीजों के विरोधी हैं।
मसीह-विरोधियों द्वारा “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति रवैया अस्वीकृति, प्रतिरोध, प्रतिकर्षण और घृणा का होता है। यह उपाधि चाहे जिससे आती हो, वे इसके प्रति हमेशा प्रतिरोध महसूस करते हैं और इसे स्वीकार नहीं करते, ये यह मानते हैं कि सेवाकर्ता होना एक नीच कार्य है और चाहे वे जिसकी भी सेवा कर रहे हों, यह हमेशा नीच कार्य ही होता है। उन्हें लगता है कि “सेवाकर्ता” एक ऐसी परिभाषा नहीं है जो परमेश्वर मनुष्य को उसके सार के आधार पर देता है, बल्कि यह मानव की पहचान और अहमियत के लिए चुनौती और तिरस्कार का प्रदर्शन है—“सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति मसीह-विरोधियों का यही मुख्य दृष्टिकोण होता है। परमेश्वर के वचनों के प्रति मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण से हम देख सकते हैं कि वे परमेश्वर के वचनों को मानदंड या सत्य नहीं मानते, बल्कि उन्हें जाँच-पड़ताल और विश्लेषण करने की चीजें मानते हैं। यानी वे परमेश्वर के वचनों को सत्य को समझने या परमेश्वर को सृष्टिकर्ता मानने के आधार पर स्वीकार नहीं करते, बल्कि परमेश्वर के वचनों के प्रति उनके दृष्टिकोण का आधार जाँच पड़ताल करना, प्रतिरोध महसूस करना और विरोध में खड़े होना है। उनके लिए तो परमेश्वर का हर वचन और हर कथन जाँच-पड़ताल का विषय है और “सेवाकर्ता” की उपाधि भी अपवाद नहीं है। वे “सेवाकर्ता” शब्द की जाँच-पड़ताल करने और इस पर विचार करने के लिए मेहनत करते हैं और वे परमेश्वर के वचनों में देखते हैं कि परमेश्वर सेवाकर्ताओं को अच्छा नहीं मानता, बल्कि उन्हें तुच्छ, हीन, बेकार और ऐसे लोग मानता है जिनसे परमेश्वर प्रेम नहीं करता और जिनसे वह घृणा करता है। भले ही “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति परमेश्वर का यही रवैया है, लेकिन उसके ऐसे रवैये के पीछे एक संदर्भ और एक कारण है—यह मनुष्य के सार पर आधारित है। एक और तथ्य भी है जिसे उन्होंने नहीं देखा है : परमेश्वर भ्रष्ट मानवजाति का चाहे कितना भी तिरस्कार और उससे नफरत करता हो, उसने कभी भी मानवजाति को बचाने का कार्य नहीं छोड़ा है, न ही उसने मानवजाति को बचाने का अपनी प्रबंधन योजना का कार्य रोका है। मसीह-विरोधी इस तथ्य को नहीं मानते, न ही वे इसे स्वीकारते या देखते हैं। वे केवल इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि परमेश्वर विभिन्न प्रकार के लोगों के परिणामों के बारे में क्या कहता है, और विशेष रूप से “सेवाकर्ता” की उपाधि के संदर्भ में उनका अत्यधिक संवेदनशील रवैया होता है। वे सेवाकर्ता नहीं बनना चाहते, वे नहीं चाहते कि परमेश्वर उन्हें सेवाकर्ता के रूप में परिभाषित करे और वे यह तो बिल्कुल भी नहीं चाहते कि वे “सेवाकर्ता” की उपाधि के साथ परमेश्वर के लिए सेवा करें। इसीलिए जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में आते हैं तो वे विभिन्न समूहों में पूछताछ करते हैं, यह पूछते हैं कि क्या वे भी सेवाकर्ता हैं, और परमेश्वर के वचनों और उनके बारे में लोगों के कहने से वे ईमानदार बातें सुनना चाहते हैं और मामले की सच्चाई जानना चाहते हैं—क्या वे सेवाकर्ता हैं या नहीं? अगर वे सेवाकर्ता हैं तो वे तुरत-फुरत वहाँ से चले जाते हैं; वे परमेश्वर या परमेश्वर के घर के लिए सेवा नहीं करते। “सेवाकर्ता” की उपाधि के खिलाफ उनकी इतनी तीव्र प्रतिक्रिया होती है, और यह स्पष्ट हो जाता है कि मसीह-विरोधियों के लिए पहचान, पद, संभावनाएँ, भाग्य और गंतव्य सदा अनुसरण करने लायक चीजें और कभी न छोड़े जाने लायक हित हैं। मसीह-विरोधियों की मानें तो परमेश्वर की परिभाषा के अनुसार सेवाकर्ताओं का पद मानवजाति में सबसे निचले स्तर पर है। चाहे तुम कुछ भी कहो या चाहे कितने ही लोग इस तथ्य और इस उपाधि को स्वीकार करते हों, मसीह-विरोधी इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे। वे कार्य करते हुए केवल यह अपेक्षा करते हैं कि दूसरे उनकी सेवा करें, उन्हें गौर से सुनें, उनकी आज्ञा मानें और उनके इर्द-गिर्द घूमें और वे खुद से कभी यह अपेक्षा नहीं करते कि वे दूसरों के साथ सहयोग करें या चीजों पर चर्चा करें या वे दूसरों की राय लें, परमेश्वर के इरादों से परामर्श लें या सत्य सिद्धांत खोजें। वे सोचते हैं, “अगर मुझे कार्य करते हुए दूसरों के साथ सहयोग कर चीजों पर चर्चा करनी पड़े और सत्य सिद्धांत खोजने पड़ें तो क्या मैं खुद को नीचा दिखाकर अपनी स्वायत्तता खो रहा होऊँगा, और क्या यह सेवा करना नहीं होगा? दूसरे लोग सुर्खियाँ बटोर रहे होंगे तो क्या मैं पर्दे के पीछे मेहनत नहीं कर रहा होऊँगा? क्या मैं दूसरों की देखभाल और सेवा नहीं कर रहा होऊँगा?” यह एक ऐसी चीज है जिसे वे बिल्कुल भी नहीं करना चाहते। वे सिर्फ यह माँग करते हैं कि अन्य लोग उनकी देखभाल करें, उनके आगे समर्पण करें, उनकी सुनें, उनकी सराहना करें, उनकी प्रशंसा करें, हर चीज में उन्हें अच्छा दिखाएँ, उनके लिए जगह छोड़ें, उनकी सेवा करें, उनके लिए कार्य करें और वे तो परमेश्वर से भी यह माँग करते हैं कि वह उनके कामों के अनुसार उन्हें उचित इनाम और एक उपयुक्त मुकुट प्रदान करे। यहाँ तक कि जब कोई यह उल्लेख करता है कि परमेश्वर ने मानवजाति के उद्धार के लिए कितनी बड़ी कीमत चुकाई है और कितना कष्ट सहा है, उसने खुद को कितना विनम्र बनाया है और उसने मानवजाति के लिए कितना कुछ प्रदान किया है, तब ये शब्द सुनकर और ये तथ्य देखकर भी मसीह-विरोधी उदासीन बने रहते हैं और इन्हें स्वाभाविक मानते हैं। मसीह-विरोधी ऐसी चीजों की व्याख्या कैसे करते हैं? वे कहते हैं : “परमेश्वर से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मनुष्य के लिए सब कुछ करे और मनुष्य को सबसे अच्छी चीजें दे, आशीष और अनुग्रह प्रदान करे और शांति और आनंद प्रदान करे। उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह यह सब कुछ मनुष्य को समर्पित करे; यह उसका उत्तरदायित्व है। और जब लोग परमेश्वर के लिए चीजों का त्याग करते हैं, खुद को खपाते हैं और कीमत चुकाते हैं, जब वे परमेश्वर के लिए सब कुछ अर्पित करते हैं, तो यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें परमेश्वर से इनाम मिले और उससे भी कुछ बेहतर मिले। क्या यह एक उचित लेन-देन नहीं है? एक बराबरी का व्यापार नहीं है? इसमें बात करने लायक क्या है? परमेश्वर के पास क्या उपलब्धि है? मैंने परमेश्वर की कोई भी उपलब्धि क्यों नहीं देखी? परमेश्वर मनुष्य को चीजें प्रदान करता है तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि मनुष्य उन्हें प्राप्त करने का हकदार है? आखिर लोग कीमत चुकाते आ रहे हैं!” वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य के लिए ये जो सारी चीजें करता है, वह मनुष्य के लिए सबसे बड़ा अनुग्रह है; वे कृतज्ञ नहीं होते और बदले में परमेश्वर को कीमत चुकाने के बारे में नहीं सोचते। इसके बजाय वे जो कीमत चुकाते हैं उसके बदले वह खूबसूरत मंजिल पाना चाहते हैं जिसका वादा परमेश्वर ने मानवजाति से किया है और वे स्वाभाविक रूप से यह मानते हैं कि उनकी आशीष पाने की इच्छा करना और इन सभी इरादों को मन में रखना उचित है और इस तरह इस बात को चाहे कोई कैसे भी देखे, परमेश्वर को लोगों को अपना सेवाकर्ता नहीं बनाना चाहिए। वे मानते हैं कि लोगों की अपनी गरिमा और ईमानदारी होती है और अगर जिन लोगों का प्रेम इतना महान होता है और जो परोपकार को समर्पित हो सकते हैं, जो खुद को खपा सकते हैं और चीजों को त्याग सकते हैं, उन्हें परमेश्वर के लिए सेवा करने के लिए कहा जाता है तो फिर यह उनके साथ गंभीर रूप से अपमानजनक और बहुत अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। परमेश्वर द्वारा की गई ये सभी बातें मसीह-विरोधियों के लिए उल्लेख करने लायक नहीं होती हैं। बल्कि वे जो भी कार्य करते हैं, चाहे वह कोई बहुत छोटी चीज ही क्यों न हो, उसे वे अनंत रूप से बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं और इसे आशीष प्राप्त करने की पूँजी मानते हैं।
कुछ लोग कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाते समय कभी भी कोई काम अच्छे से नहीं करते हैं। अगर भाई-बहन उनके किए कार्य, उनके कौशल और प्रतिभाएँ या उनके विचार और सुझाव स्वीकार नहीं करते, तो वे काम करते रहने से इनकार कर देंगे और अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहेंगे—वे परमेश्वर को छोड़ना चाहेंगे। अगर तुम उनसे किसी के साथ सहयोग करने को कहोगे, तो वे ऐसा नहीं करेंगे, और अगर तुम उनसे यह कहो कि वे अपने कर्तव्य निभाने में भरसक कोशिश करें तो वे ऐसा भी नहीं करेंगे। वे बस अनाप-शनाप ढंग से आदेश देंगे, दूसरों को अपनी बात सुनाएँगे और लोगों को अपनी खिदमत में लगाएँगे, उन्हें अपना सेवाकर्ता बनाएँगे और परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने के बजाय उनसे अपनी सेवा कराएँगे। और अगर उन्हें इस तरह का सत्कार नहीं मिलता या अगर वे इस तरह का सत्कार खो देते हैं जिसमें दूसरे उनकी सेवा करें, उनके लिए काम करें और उनके आदेशों का पालन करें, तो वे इसे छोड़कर चले जाना चाहते हैं; उन्हें लगता है कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है, उनके दिल परमेश्वर के प्रति शिकायतों और गुस्से से भर जाते हैं और उनके मन में भाई-बहनों के प्रति नफरत पैदा हो जाती है और कोई भी उनकी मदद नहीं कर पाता। वे किसी के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग नहीं कर सकते और किसी के साथ समान स्तर पर जुड़ नहीं सकते। दूसरों के साथ जुड़ने के उनके नियम ये हैं कि बोलते और कार्य करते समय केवल वही दूसरों से ऊपर हों, वे यह देखते रहें कि दूसरे लोग उनके लिए सब कुछ कर रहे हैं और उनके हर आदेश और नारे का पालन कर रहे हैं; कोई भी उनके साथ सहयोग करने के योग्य नहीं है और कोई भी उनके साथ समान स्तर पर जुड़ने के योग्य नहीं है। अगर कोई उन्हें एक दोस्त या एक साधारण भाई या बहन की तरह मानता है और समान स्तर पर उनसे बात करता है, उनके साथ काम पर चर्चा करता है और समझ पर संगति करता है तो वे इसे अपनी सत्यनिष्ठा के लिए भयंकर अपमान और प्रचंड चुनौती मानते हैं। अपने दिल में वे ऐसे लोगों से नफरत कर वैर महसूस करते हैं और वे किसी भी ऐसे व्यक्ति से बदला लेने के मौके की ताक में रहते हैं जो उन्हें समान मानता है या जो उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है। क्या मसीह-विरोधी यही सब नहीं करते हैं? जब दूसरे लोगों के साथ जुड़ने की बात आती है तो मसीह-विरोधी ओहदे में छोटे-बड़े का यही नजरिया प्रकट करते हैं। बेशक, इसका संबंध “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति उनकी वास्तविक राय और रवैये से है। वे तो उस उपाधि को भी स्वीकार नहीं कर सकते जो परमेश्वर मानवजाति को देता है, तो क्या वे यह स्वीकार कर सकते हैं कि दूसरे लोग उनकी निंदा करें, उन्हें उजागर करें और उनका मूल्यांकन करें? वे इन चीजों को तो और भी कम स्वीकार पाते हैं। एक तरफ देखो तो “सेवाकर्ता” की उपाधि और उसके सार के प्रति उनके मन में शत्रुता और प्रतिरोध की भावनाएँ होती हैं, लेकिन दूसरी तरफ वे अपने लिए सेवाएँ देने, अपनी सेवा कराने, अपनी टहल कराने और अपनी आज्ञा का पालन कराने के लिए अधिक से अधिक लोगों को अथक रूप से आकर्षित कर जुटाते हैं। क्या यह घृणित बात नहीं है? ऐसे लोगों का सार दुष्ट होता है और यह बिल्कुल सच है। वे दूसरों को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे खुद बिल्कुल बेकार होते हैं और कुछ भी नहीं कर सकते; वे परमेश्वर के घर में सिर्फ कचरे की तरह होते हैं, उनके पास जरा-सी भी सामान्य मानवता नहीं होती है और वे दूसरों के साथ सामान्य रूप से जुड़ नहीं सकते, तो उनमें सामान्य समझ होने की बात तो दूर है। वे सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, उन्हें सत्य के बारे में कोई प्रबुद्धता नहीं है, उनके पास केवल थोड़ी बहुत पेशेवर जानकारी और कुछ कौशल होता है और वे कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से निभा नहीं सकते। फिर भी, वे अच्छा व्यवहार नहीं करते और सत्ता हासिल करना चाहते हैं, और जब वे सत्ता हासिल नहीं कर पाते तो उन्हें लगता है कि वे बर्बाद हो गए हैं और सोचते हैं, “जब मैंने पहले वे चीजें की थीं तो मैं सेवा ही तो प्रदान कर रहा था। मैं सेवा करने के लिए तैयार नहीं हूँ। बेहतर है कि मैं जल्द से जल्द निकल जाऊँ, इससे पहले कि मैं बहुत अधिक मेहनत करूँ या बहुत कुछ खो दूँ।” उनका यही विचार होता है। वे हमेशा इसी प्रकार का निश्चय करते हैं और ऐसे निर्णय पर पहुँचते हैं; वे किसी भी समय विश्वास करना बंद कर सकते हैं और छोड़कर जा सकते हैं, किसी भी पल अपने कर्तव्य को छोड़ और भाग सकते हैं, शैतान के आगोश में लौट सकते हैं और उसके कुकृत्य में साझेदार बन सकते हैं। क्या ऐसे लोग होते हैं? (हाँ।) जब किसी पेशेवर कार्य के किसी पहलू की बात आती है, तो वे उसमें थोड़ी-बहुत समझ रखते हैं, लेकिन उस पेशेवर कार्य के लिए जिन सत्य सिद्धांतों को उन्हें समझना चाहिए, वे उससे पूरी तरह अनजान होते हैं; जब ज्ञान या गुणों के किसी पहलू की बात आती है, तो वे उनमें से कुछ के मालिक हो सकते हैं, लेकिन अपना कर्तव्य निभाने के लिए जो सत्य सिद्धांत उन्हें समझने चाहिए तो इस मामले में वे फिर से पूरी तरह अनजान होते हैं और उनकी समझ विकृत होती है। वे दूसरों के साथ तालमेल से सहयोग नहीं कर सकते और संगति करते समय उनकी भाषा भी दूसरों से मेल नहीं खाती। ऐसे लोग किस काम के होते हैं? अगर उनके पास वास्तव में अंतरात्मा और विवेक हो तो वे दूसरों के साथ सही व्यवहार कर पाएँगे, और जब लोग सही और सत्य के अनुरूप बातें कहते हैं तो वे उन्हें स्वीकार कर पाएँगे, वे स्वेच्छा से समर्पित होंगे और अपनी देह के खिलाफ विद्रोह कर पाएँगे। उन्हें हमेशा भीड़ से ऊपर उठने, दूसरों का नेतृत्व करने और दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए; इसके बजाय, उन्हें अपनी महत्वाकांक्षा और दूसरों से श्रेष्ठ बनने की चाहत छोड़ देनी चाहिए और सबसे तुच्छ व्यक्ति बनने के लिए तैयार रहना चाहिए, भले ही इसका मतलब सेवा प्रदान करना हो—वे जो भी कर सकते हैं, उन्हें वह करना चाहिए। वे खुद साधारण लोग हैं, इसलिए उन्हें साधारण लोगों की स्थिति में लौट जाना चाहिए, अपने कर्तव्य निभाने में अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए और व्यावहारिक तरीके से आचरण करना चाहिए। ऐसे लोग ही अंत में अडिग रह पाएँगे। अगर वे इस मार्ग को नहीं चुनते और इसके बजाय खुद को महान और श्रेष्ठ समझते हैं, अगर कोई भी उन्हें छू नहीं सकता या उन तक पहुँच नहीं सकता, और अगर वे स्थानीय गुंडा, अत्याचारी बनना चाहते हैं और मसीह-विरोधियों के मार्ग का अनुसरण करते हैं तो वे निश्चित रूप से बुरे व्यक्ति बनने के लिए अभिशप्त हैं। अगर वे सबसे तुच्छ व्यक्ति बनने, पूरी तरह से गुमनाम रहने या सुर्खियों से दूर रहने या अपनी पूरी क्षमता लगाने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वे निश्चित रूप से मसीह-विरोधी हैं और उन्हें बचाया नहीं जा सकता—यह उनके लिए खतरनाक है। अगर ऐसा व्यक्ति आत्मचिंतन कर सके, उसके पास आत्म-जागरूकता हो, परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं को स्वीकार कर सके, अपनी उचित स्थिति ले सके, एक साधारण व्यक्ति बन सके और अब कोई दिखावा न करे, तो उसके पास उद्धार प्राप्त करने का अवसर होगा। अगर तुम हमेशा अपना दबंग और अविवेकी बने रहना चाहते हो और खुद को एक प्रभावशाली हस्ती दिखाना चाहते हो तो यह सब व्यर्थ है। परमेश्वर का घर परमेश्वर के चुने हुए लोगों से भरा है और तुम चाहे कितने ही ताकतवर, उग्र या दुष्ट क्यों न हो, इसका कोई फायदा नहीं है। परमेश्वर का घर कोई लड़ाई का मैदान नहीं है, इसलिए अगर तुम लड़ना चाहते हो तो जाकर दुनिया के मैदान में लड़ो। परमेश्वर के घर में कोई भी तुमसे लड़ना नहीं चाहता; किसी की इसमें रुचि नहीं है और न ही किसी के पास इसके लिए अतिरिक्त समय है। परमेश्वर का घर वह जगह है जहाँ सत्य का प्रचार किया जाता है, जो लोगों को सत्य समझने और सत्य को अभ्यास में लाने में मदद करता है। अगर तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते तो स्थिति मुश्किल है और इससे केवल यही दिखता है कि तुम यहाँ के नहीं हो। अगर तुम हमेशा लड़ना चाहते हो, हमेशा उग्र बनना चाहते हो, हमेशा निर्दयी बनना चाहते हो और हमेशा अविवेकी और दबंग बने रहना चाहते हो तो कलीसिया तुम्हारे लिए सही जगह नहीं है। परमेश्वर के घर में अधिकांश लोग सत्य से प्रेम करते हैं; वे परमेश्वर का अनुसरण करना और जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, और उन्हें दानवों के साथ चालबाजी करने और लड़ाई करने में कोई रुचि नहीं है। केवल मसीह-विरोधी ही हर जगह लड़ाई करने और सत्ता और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करने में आनंद लेते हैं, और यही कारण है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में अडिग नहीं रह सकते।
एक प्रकार के लोग पहचान, पद और रुतबे जैसी चीजों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और विशेष रूप से “सेवाकर्ता” की उपाधि के प्रति अत्यधिक प्रतिरोध और प्रतिकर्षण महसूस करते हैं और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकते—ऐसे लोग मसीह-विरोधी होते हैं। वे न केवल सत्य का अनुसरण नहीं करते और सत्य से विमुख रहते हैं, बल्कि “सेवाकर्ता” कहे जाने से भी विमुख होते हैं। जो लोग “सेवाकर्ता” की उपाधि से विमुख होते हैं, उन्हें वास्तव में सत्य का अनुसरण करना चाहिए—अगर वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते तो क्या वे “सेवाकर्ता” की उपाधि से मुक्त नहीं हो जाते? लेकिन यही तो वास्तव में समस्या है। क्योंकि वे सत्य से अत्यंत विमुख होते हैं, वे कभी भी उसका अनुसरण करने और उसे अभ्यास में लाने के मार्ग पर नहीं चलेंगे। इसीलिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना के कार्य में वे हमेशा सेवाकर्ता की भूमिका निभाते रहेंगे। निस्संदेह, परमेश्वर की प्रबंधन योजना में सेवाकर्ता की भूमिका निभाना भी मसीह-विरोधियों के लिए एक आशीष है; यह उनके लिए सृष्टिकर्ता के कार्यों को देखने, सृष्टिकर्ता को सत्य व्यक्त करते और मानवजाति के साथ अपने अंतरतम विचार साझा करते सुनने और सृष्टिकर्ता की बुद्धि और सर्वशक्तिमान कार्यों की सराहना करने का एक अवसर है। उनके लिए सृष्टिकर्ता के लिए सेवाकर्ता बनना कोई बुरी बात नहीं है, और चाहे वे समझ सकें या नहीं, परमेश्वर के सेवाकर्ता बनना और परमेश्वर के घर में सेवा करना उन मसीह-विरोधियों और शैतान के साथियों के लिए कुछ ऐसा होना चाहिए जिसे वे हमेशा याद रखें, भले ही बाद में परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाए। भ्रष्ट मानवजाति द्वारा परमेश्वर का विरोध करने की पूरी प्रक्रिया के दौरान मसीह-विरोधी अनजाने में परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए सेवा करते हैं, और यही प्रत्येक मसीह-विरोधी के अस्तित्व का थोड़ा सा मूल्य है—यह एक सच्चाई है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नकारात्मक पक्ष से मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने और उन्हें पहचानने की अनुमति देकर अपना योगदान देते हैं। चाहे वे इस सच्चाई को मानने के लिए तैयार हों या न हों और चाहे वे सेवाकर्ता बनने के लिए तैयार, आनंदित और प्रसन्न हों या न हों, बहरहाल परमेश्वर के कार्य के लिए सेवाकर्ता के रूप में सेवा करना और इस भूमिका को निभाना एक मूल्यवान बात है—यह परमेश्वर द्वारा उनका उन्नयन करना है। कुछ लोग कहते हैं, “क्या परमेश्वर मसीह-विरोधियों का भी उन्नयन करता है?” इसमें क्या गलत है? वे सृजित प्राणी हैं; क्या परमेश्वर उनका उन्नयन नहीं कर सकता? मेरी बात सच है। अब जब मसीह-विरोधी ये बातें सुनते हैं तो उन्हें कैसा लगता है? उन्हें कमियाँ निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और कुछ सांत्वना प्राप्त करनी चाहिए। कम से कम उन्होंने परमेश्वर की प्रबंधन योजना के महान कार्य में कुछ हद तक योगदान तो दिया है। चाहे उन्होंने यह स्वेच्छा से किया हो, सक्रिय रूप से किया हो या निष्क्रिय रूप से, कोई भी स्थिति हो, यह परमेश्वर द्वारा उनका उन्नयन था और उन्हें इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर इसका विरोध नहीं करना चाहिए। अगर मसीह-विरोधी अपने पूर्वजों के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं, शैतान के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं, सत्य का अनुसरण कर सकते हैं और सृष्टिकर्ता के प्रति समर्पण का अनुसरण कर सकते हैं, तो मुझे बताओ, क्या परमेश्वर प्रसन्न होगा? (हाँ, वह प्रसन्न होगा।) यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए भी खुशकिस्मती की बात है और उन्हें खुश भी होना चाहिए—यह एक अच्छी बात है। चाहे यह तथ्य मान्य हो या न हो, कोई भी स्थिति हो, अगर मसीह-विरोधी अपना मार्ग बदल सकते हैं और पश्चात्ताप के मार्ग पर चल सकते हैं तो निश्चित रूप से यह एक अच्छी बात है। तो, मैं यह क्यों कहता हूँ कि यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए खुशकिस्मती की बात है? अगर एक मसीह-विरोधी स्वेच्छा से सेवा प्रदान करे तो क्या परमेश्वर के घर में एक विपत्ति कम नहीं होगी? अगर तुम लोगों के बीच एक दानव कम हो, एक विघ्नकारी और गड़बड़ी पैदा करने वाला कम हो तो क्या तुम्हारे दिन अधिक शांतिमय नहीं होंगे? इस दृष्टिकोण से देखने पर अगर मसीह-विरोधी वास्तव में सेवा प्रदान करने के लिए तैयार हों तो यह भी एक ऐसी अच्छी बात होगी जिसका जश्न मनाया जा सकता है। तुम लोगों को उन्हें प्रोत्साहित कर मदद करनी चाहिए और उन्हें पूरी तरह खारिज नहीं करना चाहिए। अगर तुम नेकनीयत होकर उन्हें टिके रहने देते हो, लेकिन उनका सेवा कार्य उपयोगी कम और मुसीबत ज्यादा बन जाए और आपदा की ओर ले जाए तो उन्हें सिद्धांतों के अनुसार सँभालना चाहिए। क्या यह काम करने का एक अच्छा तरीका नहीं है? (हाँ, है।)
एक और प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख करना आवश्यक है। कुछ लोग अपने कर्तव्य निभाने के दौरान कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं, और कभी-कभी वे आज्ञा मानकर समर्पण भी कर सकते हैं या सिद्धांतों के अनुसार मामलों को सँभाल सकते हैं। उनकी अपनी इच्छा सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलने की होती है, वे हमेशा ऊपरवाले या कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित रह सकते हैं और वे हमेशा समय पर कार्य पूरे कर सकते हैं। वे परमेश्वर के घर में कोई विघ्न और बाधा नहीं उत्पन्न करते, और वे जो कार्य करते हैं और कर्तव्य निभाते हैं, उनसे भाई-बहनों को कई लाभ और फायदे मिलते हैं। बाहर से देखने पर भले ही उन्होंने कोई बुराई नहीं की है, वे कोई विघ्न या बाधा नहीं डालते और वे बुरे लोग भी नहीं लगते, लेकिन वे एक ऐसा काम करते हैं जो साधारण लोग नहीं कर सकते और नहीं करते, और वह यह है कि उन्हें अपना प्रभाव बढ़ाने और अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने में आनंद आता है। जब उन्हें किसी कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है तो उस कार्य का पर्यवेक्षक बनते ही वे अपना खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित करना शुरू कर सकते हैं और अनजाने में ही अपने प्रभाव के दायरे में अपनी सत्ता और संपर्कों का निर्माण शुरू कर सकते हैं। इस दायरे में हर कोई पूरी तरह से उनके वश में हो जाता है, और जो कुछ भी वे करते हैं, जो कुछ भी वे कहते हैं और जो कीमत वे चुकाते हैं, उसकी लोग जोरदार प्रशंसा करते हैं और उनकी अत्यधिक सराहना करते हैं। वे अपने प्रबंधन के दायरे को परमेश्वर के परिवार के भीतर अपने छोटे-से परिवार के रूप में मानते हैं। बाहर से, वे कीमत चुकाने, कष्ट सहने और जिम्मेदारी उठाने में सक्षम दिखाई देते हैं—कोई समस्या नजर नहीं आती। लेकिन महत्वपूर्ण क्षणों में वे परमेश्वर के घर के हितों से विश्वासघात करने में सक्षम होते हैं। अपनी प्रतिष्ठा को और पहाड़ की चोटी पर अपनी जगह को सुरक्षित रखने के लिए और कलीसिया में अपनी पूर्ण स्थिति, गरिमा और सत्ता की रक्षा करने के लिए वे किसी को भी नाराज या आहत नहीं करते। भले ही कोई परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है या धोखा देता है, और कोई परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालता है या उसे नष्ट करता है, तब भी वे उस मामले की जाँच नहीं करते, उस पर कोई ध्यान नहीं देते और उसे सहन कर लेते हैं। जब तक वह व्यक्ति उनकी स्थिति के लिए खतरा नहीं बनता और उनके प्रभाव के दायरे में रहकर उनकी सेवा में काम करता रहता है, तब तक उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती—यही उनका सबसे बड़ा मापदंड है। चाहे वह व्यक्ति कोई भी गड़बड़ी क्यों न करे, वे इसे नहीं देखते, इस पर कोई ध्यान नहीं देते और न ही उसकी काट-छाँट करते हैं या उसे फटकारते हैं, और तो और उससे निपटते भी नहीं हैं। ऐसे लोग खतरनाक तत्व होते हैं। एक साधारण व्यक्ति के लिए इनका भेद पहचानना मुश्किल होता है और शायद जब उनके पास कोई पद नहीं होता, तब तुम लोग उनकी किसी भी गड़बड़ी पर ध्यान नहीं दे पाओगे। लेकिन जैसे ही उन्हें पद मिलता है, उनका प्रकृति सार पूरी तरह बेनकाब हो जाता है। और असल में बेनकाब क्या होता है? यह कि जो कीमत वे चुकाते हैं और जो कुछ भी वे करते हैं, उसके पीछे एक उद्देश्य होता है; वे ये सब चीजें परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए नहीं करते, वे वास्तव में अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे होते हैं और वे यह सब परमेश्वर को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि लोगों को दिखाने के लिए करते हैं। वे दूसरों की एकटक दृष्टि, निगाह और ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, और इससे भी बढ़कर वे लोगों के दिलों को गुमराह करना चाहते हैं ताकि लोग उनकी ओर सम्मान की दृष्टि से देखें, उनकी प्रशंसा करें और उनकी सराहना करें। यही कारण है कि उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि परमेश्वर उन्हें कैसे देखता है या उनके साथ कैसा व्यवहार करता है; अगर परमेश्वर कहता है कि वे केवल सेवा प्रदान करने के लिए वहाँ हैं, तो वे उदासीन रहते हैं। जब तक लोग उनके पैरों में पड़कर झुक सकते हैं, तब तक उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती। ऐसे लोग खतरनाक तत्व होते हैं और परमेश्वर के और परमेश्वर के घर के समान मन के नहीं होते, और उनके दिल परमेश्वर के चुने हुए उन लोगों के दिलों जैसे नहीं होते जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं। वे अपने लिए प्रभाव पैदा कर रहे हैं और साथ ही शैतान के लिए भी प्रभाव पैदा कर रहे हैं। उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों को देखते हुए वे जो भी कर्तव्य निभाते हैं और जो कुछ भी करते हैं, वह केवल खुद को प्रदर्शित करने और जितना संभव हो सके दूसरों की चापलूसी करने का एक तरीका है।
मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में और परमेश्वर की प्रबंधन योजना के कार्य में कुछ सेवा प्रदान कर सकते हैं और एक समय पर वे अच्छे सेवाकर्ता भी हो सकते हैं। लेकिन वे जिस मार्ग पर चलते हैं और जो उद्देश्य और दिशा चुनते हैं, साथ ही अपने भीतर जो रुतबे और सत्ता की चाहत, और प्रसिद्धि व लाभ की लालसा रखते हैं, उसके कारण वे “सेवाकर्ता” की उपाधि से कभी मुक्त नहीं हो सकते, वे सत्य को समझ नहीं सकते, वे सत्य वास्तविकता को समझ नहीं सकते या उसमें प्रवेश नहीं कर सकते, वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम नहीं होते, वे सच्चे समर्पण को प्राप्त नहीं कर सकते और वे परमेश्वर का भय नहीं प्राप्त कर सकते। ऐसे लोग खतरनाक तत्व होते हैं। उनके पास सांसारिक आचरण के लिए गहरे फलसफे होते हैं, आचरण करने और दुनिया से निपटने के बहुत चालाक तरीके होते हैं, वे दूसरों से बात करते समय अपनी भाषा और शब्दों पर विशेष ध्यान देते हैं और लोगों के साथ मेलजोल के तरीकों पर भी गहरी नजर रखते हैं। भले ही वे सतह पर विश्वासघाती और बुरे नहीं दिखाई देते, लेकिन उनके दिल दुष्ट विचारों, सोच और दृष्टिकोणों से भरे होते हैं, यहाँ तक कि उनमें सत्य के प्रति धारणाएँ और गलतफहमियाँ और परमेश्वर को न समझ पाने की असफलता भी होती है। भले ही लोग यह नहीं देख सकते कि इन लोगों में क्या बुराई है या यह नहीं देख सकते कि वे बुरे लोग हैं, लेकिन चूँकि उनका सार इतना दुष्ट है और चूँकि वे कभी भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते या सत्य के अनुसरण के मार्ग पर नहीं चल सकते और परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण नहीं कर सकते, इसलिए अंत में वे “सेवाकर्ता” की इस उपाधि से कभी मुक्त नहीं हो पाते। ये लोग स्पष्ट मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों की तुलना में और भी अधिक छलपूर्ण और दूसरों को गुमराह करने में अधिक सक्षम होते हैं। बाहर से देखने पर वे “सेवाकर्ता” की उपाधि के बारे में कोई राय नहीं रखते और न ही इसके प्रति कोई रवैया अपनाते हैं, और तो और वे इसके प्रति कोई प्रतिरोध भी महसूस नहीं करते। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके सार के आधार पर देखा जाए तो परमेश्वर के लिए सेवा करने के बावजूद वे अपने मन में इरादे और उद्देश्य पालते हैं; वे बिना शर्त सेवा नहीं करते और न ही सत्य प्राप्त करने के लिए सेवा करते हैं। चूँकि ये लोग भीतर से दुष्ट और चालाक होते हैं, इसलिए दूसरों के लिए उनका भेद पहचानना आसान नहीं होता। केवल अहम मामलों में और अहम मौकों पर ही उनका प्रकृति सार, विचार, दृष्टिकोण और जिस मार्ग पर वे चलते हैं, वह प्रकट होता है। अगर यह ऐसे ही चलता रहा और ये लोग इसी तरह के अनुसरण का मार्ग चुनते हैं और ऐसा ही रास्ता अपनाते हैं, तो यह कल्पना की जा सकती है कि ऐसे लोग उद्धार प्राप्त नहीं कर पाएँगे। वे परमेश्वर के घर द्वारा उन पर रखे गए विश्वास और परमेश्वर के कार्य के अवसर का उपयोग अपने फायदे की योजनाएँ बनाने, लोगों को नियंत्रित करने और उन्हें सताने और अपनी खुद की महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए करते हैं। आखिरकार, वे सत्य को प्राप्त नहीं करते हैं, बल्कि हर तरह के कुकर्म करने के कारण बेनकाब कर दिए जाते हैं। इन लोगों के बेनकाब होने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि ये सत्य का अनुसरण नहीं करते और न ही सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं। परमेश्वर के वचन सुनने और उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के लोगों के उजागर होने के बाद अगर ये लोग अपने कर्तव्य निभाने में सांसारिक आचरण के सिद्धांतों, साधनों और तरीकों का लगातार उपयोग करते हैं तो एक ही अंतिम परिणाम होगा : उन्हें परमेश्वर के प्रबंधन कार्य में सेवाकर्ता की भूमिका निभानी पड़ेगी और अंत में वे बेनकाब कर हटा दिए जाएँगे—यह एक सच्चाई है। क्या तुम लोगों के पास पहले से ऐसे लोगों के अनुभव हैं? जब उन्हें बेनकाब और निष्कासित कर दिया जाता है, तो कुछ मसीह-विरोधी बिना सेना के सेनापति जैसे बन जाते हैं। उन्होंने जो बुराई की है वह बहुत अधिक और बहुत बड़ी है और भाई-बहनों को उनसे घृणा हो जाती है और वे उन्हें छोड़ देते हैं। एक और किस्म के लोग भी होते हैं जो जब बेनकाब किए जाते हैं और कलीसिया द्वारा निंदित और अस्वीकार कर दिए जाते हैं, तो उनके कई ऐसे साथी और सहायक होते हैं जो उनके समर्थन में बोलते हैं, उनके लिए लड़ते हैं और परमेश्वर के खिलाफ शोर मचाते हैं। क्या ऐसे लोग दूसरों को गुमराह करने में और भी सक्षम नहीं होते? ऐसे लोग तो और भी खतरनाक हैं। जहाँ तक इस बात का संबंध है कि मसीह-विरोधी “सेवाकर्ता” की उपाधि से कैसे पेश आते हैं, और वे कौन-सी छिपी हुई प्रथाएँ, विचार और अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, इस बारे में हम अपनी संगति फिलहाल यहीं समाप्त करेंगे।
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