मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग आठ) खंड चार

जब मसीह-विरोधी कलीसिया में बाधाएँ पैदा करते हैं तो यह अच्छी बात है या बुरी बात? (बुरी बात है।) यह किस तरह से बुरी बात है? क्या परमेश्वर ने कोई गलती कर दी है? क्या परमेश्वर ने ध्यान से नहीं देखा और मसीह-विरोधियों को अपने घर में घुसपैठ करने दी? (नहीं।) तो फिर बात क्या है? (परमेश्वर मसीह-विरोधियों को कलीसिया में घुसपैठ करने देता है, ताकि हमारी भेद पहचान पाने की क्षमता बढ़े, हम उनके प्रकृति सार की असलियत जानना सीखें, शैतान को हमें फिर कभी मूर्ख न बनाने दें और हम परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रह पाएँ। यह हमारे लिए परमेश्वर का उद्धार है।) हम हमेशा यह बोलते हैं कि शैतान कितना दुष्ट, क्रूर और दुर्भावनापूर्ण है, कि शैतान सत्य से विमुख है और उससे नफरत करता है, लेकिन क्या तुम इसे देख सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में क्या करता है? वह कैसे बोलता और कार्य करता है, सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका क्या रवैया है, उसकी दुष्टता कहाँ निहित है—तुम इनमें से कुछ भी नहीं देख सकते। इसलिए, चाहे हम कितना भी कहें कि शैतान दुष्ट है, वह परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और सत्य से विमुख है, लेकिन तुम्हारे मन में यह केवल एक वक्तव्य होता है। इसकी कोई सच्ची छवि नहीं होती। यह बहुत खोखला और अव्यावहारिक होता है; यह एक व्यावहारिक संदर्भ नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई किसी मसीह-विरोधी के संपर्क में आता है तो वह शैतान का दुष्ट, क्रूर स्वभाव और सत्य से विमुख होने का उसका सार थोड़ा अधिक स्पष्ट रूप से देख लेता है और शैतान के बारे में उसकी समझ थोड़ी अधिक तीक्ष्ण और व्यावहारिक हो जाती है। इन वास्तविक लोगों और उदाहरणों के संपर्क में आए बिना और इन्हें देखे बिना सत्य की उनकी तथाकथित समझ अस्पष्ट, खोखली और अव्यावहारिक ही होगी। लेकिन जब लोग इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के वास्तविक संपर्क में आते हैं तो वे देख सकते हैं कि वे किस प्रकार बुराई और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और वे शैतान के प्रकृति सार को पहचान सकते हैं। वे देखते हैं कि ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी पुनः देहधारी शैतान हैं—कि वे जीते-जागते शैतान, जीते-जागते दानव हैं। मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के संपर्क का ऐसा प्रभाव हो सकता है। जब शैतान का एक बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी के रूप में पुनः देहधारण होता है तो उसके दैहिक शरीर की क्षमताएँ केवल इतनी ही होती हैं, फिर भी वह बहुत सारे बुरे काम कर सकता है, बहुत अधिक परेशानियाँ खड़ी कर सकता है और अपने कर्म में बहुत दुष्ट और कपटी हो सकता है। इसलिए, आध्यात्मिक क्षेत्र में शैतान जो बुराई करता है वह देह में रहने वाले सभी बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा की जाने वाली बुराई के कुल योग से सौ या हजार गुना अधिक होती है। तो, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के संपर्क में आने से लोग जो सबक सीखते हैं, वे उनके लिए भेद पहचानने की क्षमता विकसित करने और शैतान का चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में बहुत मददगार होते हैं। वे लोगों को यह भेद पहचानने में सक्षम बनाते हैं कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी चीजें नकारात्मक, परमेश्वर किससे घृणा करता है और किससे प्रसन्न होता है, सत्य क्या है और भ्रांति क्या है, न्याय क्या है और दुष्टता क्या है, परमेश्वर वास्तव में किस चीज से नफरत करता है और किससे प्रेम करता है और परमेश्वर किन लोगों को ठुकराता और हटाता है और किन्हें स्वीकृति देता है और किन्हें प्राप्त करता है। इन प्रश्नों को केवल धर्म-सिद्धांत के संदर्भ में समझने का प्रयास करना व्यर्थ है। व्यक्ति को बहुत-सी चीजों का अनुभव करना चाहिए, इसमें विशेष रूप से बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होने और बाधाएँ पैदा करना शामिल है। जब तक व्यक्ति सच्चे ढंग से भेद पहचानने नहीं लगता तब तक वह ये अनेक सत्य नहीं समझ सकता और इस बात की गहरी और अधिक व्यावहारिक समझ प्राप्त नहीं कर सकता कि परमेश्वर की अपेक्षा क्या है और वह क्या हासिल करना चाहता है। क्या इससे परमेश्वर के इरादों की अधिक समझ पैदा नहीं होती है? क्या यह तुम्हें अधिक आश्वस्त नहीं कर सकता है कि परमेश्वर सत्य है और वह सबसे प्यारा है? (हाँ।) परमेश्वर ने लोगों को चीजों का अनुभव करने के दौरान सबक सिखाए हैं और भेद पहचानने की क्षमता को विकसित किया है और वह निश्चित रूप से लोगों को प्रशिक्षण भी दे रहा है, साथ ही प्रत्येक प्रकार के लोगों को प्रकट भी कर रहा है। जब कुछ लोगों का सामना किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से होता है तो वे उसे बेनकाब करने या पहचानने की हिम्मत नहीं करते और उसके संपर्क में आने का साहस नहीं करते। वे डरते हैं और बस उससे बचने की कोशिश करते हैं, मानो उन्होंने कोई जहरीला साँप देख लिया हो। ऐसे लोग इतने रीढ़हीन होते हैं कि सबक नहीं सीख सकते और वे भेद पहचानने की क्षमता विकसित नहीं कर सकेंगे। कुछ लोग किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर सबक सीखने या भेद पहचान सकने पर कोई ध्यान नहीं देते हैं; वे अपने गुस्से को अपने व्यवहार को निर्देशित करने देते हैं और जब किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने और पहचानने का समय आता है तो वे किसी काम के नहीं हो सकते या कुछ व्यावहारिक नहीं कर सकते। कुछ लोग किसी मसीह-विरोधी को बहुत अधिक बुराई करते हुए देखते हैं और वे इसके प्रति दिल से विमुख महसूस करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते और उनके हाथ बँधे हुए हैं। नतीजतन उनके साथ मसीह-विरोधी मनमाने ढंग से खिलवाड़ करते हैं और वे इसे सहते रहते हैं और वे इससे समझौता कर लेते हैं। वे मसीह-विरोधी को लापरवाही से काम करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने देते हैं और वे उनकी रिपोर्ट नहीं करते या उन्हें उजागर नहीं करते। वे मनुष्य होने के नाते अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने में विफल रहते हैं। संक्षेप में कहें तो जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी कहर बरपाते हैं और मनमानी करते हैं तो यह सभी प्रकार के लोगों को प्रकट करता है और बेशक, यह उन लोगों को प्रशिक्षित करने का काम भी करता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें न्याय की भावना होती है, जिससे उनकी भेद पहचानने की क्षमता और अंतर्दृष्टि बढ़ती है, वे कुछ सीख पाते हैं और वे इससे परमेश्वर के इरादों को समझ पाते हैं। वे परमेश्वर के किन इरादों को समझ पाते हैं? उन्हें यह समझाया जाता है कि परमेश्वर मसीह-विरोधियों को नहीं बचाता, बल्कि सेवा प्रदान करने के लिए बस उनका उपयोग करता है और जब मसीह-विरोधियों द्वारा सेवा प्रदान करने का काम पूरा हो जाता है, तब परमेश्वर उन्हें बेनकाब करके हटा देता है और अंततः उन्हें दंडित करता है, क्योंकि वे बुरे लोग हैं और शैतान के हैं। जिन्हें परमेश्वर बचाता है, वे ऐसे लोगों का एक समूह है जो अपने भ्रष्ट स्वभावों के बावजूद सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं और यह पहचानते हैं कि परमेश्वर सत्य है, वे उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होते हैं और कोई अपराध करने के बावजूद सच्चा पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। ये लोग काट-छाँट, न्याय और ताड़ना स्वीकार सकते हैं और इससे भी बढ़कर, जब दूसरे लोग उन्हें उजागर करते हैं या उनकी समस्याएँ बताते हैं तो वे इससे सही ढंग से पेश आ सकते हैं। परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, जो लोग उस कार्य को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं और उससे कुछ सीख सकते हैं—ऐसे लोगों का समूह ही वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करता है, उसके कार्य का अनुभव करता है और उसके द्वारा प्राप्त किया जाता है।

मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट से कैसे पेश आते हैं, इसकी अभिव्यक्तियों पर हमारी संगति अब पूरी होती है। बाद में तुम लोग कुछ ऐसे उदाहरण ढूँढ़ सकते हो जिन्हें तुम लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर देखा या अनुभव किया है और फिर उनके सार के आधार पर उनका गहन-विश्लेषण कर उनके बारे में संगति कर सकते हो, ताकि भाई-बहन भेद पहचान सकें। उनके भेद पहचान पाने में सक्षम होने का क्या लक्ष्य है? इसका लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को मसीह-विरोधियों को नकारने में सक्षम बनाना, कलीसिया में उनके बुरे कर्मों को रोकना और इन पर अंकुश लगाना और उन्हें कलीसिया में और जहाँ लोग कर्तव्य करते हैं उन महत्वपूर्ण स्थानों में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने या कलीसिया के कार्य को कोई नुकसान पहुँचाने से रोकना है। इसे मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को बेड़ियों में जकड़ना कहते हैं। भले ही अधिकतर मसीह-विरोधियों ने कलीसिया में सार्वजनिक रूप से परमेश्वर की आलोचना नहीं की है या परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं किया है, फिर भी वे चोरी-छिपे बहुत सारी बुराइयाँ करते हैं। वे कलीसियाई जीवन को बाधित कर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सत्य की संगति करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने से रोकते और परेशान करते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में बिना सोचे-समझे टिप्पणियाँ करते हैं और मनमाने फैसले लेते हैं। यहाँ तक कि वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की निंदा करते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करते हैं और कलीसिया के काम में बाधाएँ डालते हैं, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कर्तव्य निभाने के नतीजों पर असर पड़ता है। यह परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने की बहुत बड़ी बुराई है। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को यह जानना चाहिए कि मसीह-विरोधी जो बुराई करते हैं वह बहुत बड़ी बुराई है, एक ऐसी निंदनीय बुराई है जो सुधार से परे है। इसलिए मसीह-विरोधी हमेशा परमेश्वर के घर में बेड़ियों में बाँधे जाने और अंकुश लगाने की वस्तुएँ होते हैं। मसीह-विरोधियों को कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए—यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है। अगर किसी कलीसिया में मसीह-विरोधियों को दुराग्रही और मनमाना होने दिया जाता है तो वे भाई-बहनों को नियंत्रित करने और धमकाने के लिए या उन्हें गुमराह और भ्रमित करने के लिए कोई भी नारा लगा सकते हैं और कोई भी तर्क दे सकते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता इसे अनदेखा कर कोई कार्रवाई नहीं करते और मसीह-विरोधियों को नाराज करने के डर से उन्हें उजागर करने या प्रतिबंधित करने की हिम्मत नहीं करते और इसी कारण मसीह-विरोधी उस कलीसिया के भाई-बहनों से मनमाने ढंग से खेलते हैं और उन्हें बाधित करते हैं तो फिर उस कलीसिया के अगुआ खुशामदी लोग हैं, वे ऐसा कचरा हैं जिन्हें हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआ मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों का भेद पहचान सकते हैं और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मजबूती से खड़े होकर मसीह-विरोधियों को उजागर करने और परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करने के लिए शैतानों को बाहर करने में सक्षम बनाते हैं तो इससे राक्षस और शैतान शर्मिंदा होंगे और यह परमेश्वर के इरादे को भी पूरा करेगा। इस कलीसिया के अगुआ मानक-स्तर के अगुआ हैं और उनके पास सत्य वास्तविकता है। अगर कोई कलीसिया किसी मसीह-विरोधी के विघ्नों से पीड़ित है और भाई-बहनों द्वारा पहचाने और अस्वीकार किए जाने के बाद मसीह-विरोधी पागलों की तरह उन भाई-बहनों से बदला लेता है, उन पर अत्याचार करता है और उनकी निंदा करता है, ऐसे में अगर कलीसिया के अगुआ कुछ नहीं करते हैं, वे आँखें मूँद लेते हैं और किसी को भी नाराज न करने का प्रयास करते हैं तो वे झूठे अगुआ हैं। वे कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। कलीसिया अगुआ होने के नाते अगर कोई समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम नहीं है, अगर वह मसीह-विरोधियों की पहचान करने, उन्हें सीमित करने और उनकी छँटाई करने में सक्षम नहीं है, अगर वह मसीह-विरोधियों को कलीसिया में अपनी मनमर्जी से काम करने, बेलगाम होने की खुली छूट देता है और अगर वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह होने से बचाने में असमर्थ है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने में असमर्थ है ताकि वे सामान्य रूप से अपना कर्तव्य कर सकें—और इसके अलावा वह कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति बनाए रखने में असमर्थ है—तो वह अगुआ कचरा है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआ किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने, उसकी काट-छाँट करने, उसे सीमित करने और उसके खिलाफ कार्रवाई करने से इसलिए डरते हैं कि मसीह-विरोधी क्रूर और निर्दयी है और इस प्रकार उसे कलीसिया में बेलगाम और निरंकुश होने देते हैं, उसे जो जी में आए वह करने देते हैं और कलीसिया के अधिकांश कार्य को पंगु बनाकर उसे ठप करने देते हैं तो इस कलीसिया के अगुआ भी कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआ प्रतिशोध के डर से कभी मसीह-विरोधी को उजागर करने का साहस नहीं करते और वे कभी भी मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों पर अंकुश लगाने की कोशिश नहीं करते हैं, जिससे कलीसियाई जीवन में और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में बड़ी बाधा, परेशानी और क्षति होती है तो इस कलीसिया के अगुआ भी कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। क्या तुम लोग ऐसे लोगों की निरंतर अगुआई का समर्थन करोगे? (नहीं।) तो फिर इस तरह के अगुआओं का सामना करने पर तुम लोगों को क्या करना चाहिए? तुम्हें उनसे पूछना चाहिए, “मसीह-विरोधी इतनी बड़ी बुराई करते हैं, वे कलीसिया में बेलगाम हो जाते हैं, उस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं—क्या तुम उन्हें रोक पाते हो? क्या तुममें उन्हें उजागर करने का साहस है? अगर तुममें उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं है तो तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। तुम्हें अपना पद छोड़ने में कतई समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अगर तुम अपने दैहिक हितों की रक्षा करते हो और मसीह-विरोधियों के डर से भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के हवाले कर देते हो तो तुम्हें धिक्कारा जाना चाहिए। तुम अगुआ बनने के लायक नहीं हो—तुम कचरा हो, तुम मुर्दा इंसान हो!” ऐसे झूठे अगुआओं को उजागर करके बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। वे वास्तविक कार्य नहीं करते; बुरे लोगों का सामना करने पर वे भाई-बहनों की रक्षा नहीं करते, बल्कि बुरे लोगों के सामने घुटने टेक देते हैं, उन्हें छूट देते हैं और उनसे दया की भीख माँगते हैं और अपने अधम अस्तित्व को घिसटते रहते हैं। ऐसे अगुआ कचरा हैं। वे गद्दार हैं और उन्हें नकार दिया जाना चाहिए।

आगे हम एक और बिंदु पर संगति करेंगे जो यह है कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तब अपनी संभावनाओं और नियति के प्रति उनका रवैया कैसे उजागर होता है। परमेश्वर के घर में काम करने वाले कुछ मसीह-विरोधी चुपचाप संकल्प लेते हैं कि वे अति सावधानी से काम करेंगे, गलतियाँ करने, काट-छाँट किए जाने, ऊपरवाले को नाराज करने या कुछ बुरा करते हुए अपने अगुआओं द्वारा पकड़े जाने से बचेंगे और वे यह सुनिश्चित करते हैं कि जब वे अच्छे कर्म करें तो उनके सामने दर्शक हों। फिर भी वे चाहे कितने भी सावधान क्यों न रहें, चूँकि उनके मंसूबे और उनका अपनाया मार्ग गलत हैं और चूँकि वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए ही बोलते और काम करते हैं और कभी सत्य नहीं खोजते, इसलिए वे अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन कर देते हैं, कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डाल देते हैं, शैतान के सेवकों के रूप में कार्य करते हैं, यहाँ तक कि अक्सर कई अपराध कर बैठते हैं। ऐसे लोगों के लिए अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन और अपराध करना बहुत आम और बहुत सामान्य बात होती है। इसलिए जाहिर है, उनके लिए काट-छाँट किए जाने से बचना बहुत मुश्किल होता है। उन्होंने देखा है कि कुछ मसीह-विरोधियों को बेनकाब करके हटा दिया गया है, क्योंकि उनकी सख्ती से काट-छाँट की गई है। ये चीजें उन्होंने अपनी आँखों से देखी हैं। मसीह-विरोधी इतनी सावधानी से कार्य क्यों करते हैं? एक कारण, निश्चित रूप से यह है कि वे बेनकाब करके हटाए जाने से डरते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे सावधान रहना होगा—आखिरकार, ‘सावधानी ही सुरक्षा की जननी है’ और ‘अच्छे लोगों का जीवन शांतिपूर्ण होता है।’ मुझे इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और हर पल खुद को गलत काम करने या परेशानी में पड़ने से बचने की याद दिलानी चाहिए और मुझे अपनी भ्रष्टता और इरादे दबा देने चाहिए और किसी को भी उन्हें देखने नहीं देना चाहिए। अगर मैं गलत न करूँ और अंत तक डटा रह सकूँ, तो मैं आशीष पाऊँगा, आपदाओं से बचूँगा और परमेश्वर में अपने विश्वास में कामयाब होऊँगा!” वे अक्सर खुद को इसके लिए बहुत जोर देते, प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं। अपने अंतरतम में, उनका मानना है कि अगर वे गलत करते हैं तो आशीष प्राप्त करने की उनकी संभावनाएँ काफी कम हो जाएँगी। क्या यह गणना और विश्वास ही उनके दिल की गहराइयों में घर नहीं किए रहता? इसे एक तरफ रखते हुए कि मसीह-विरोधियों की यह गणना या विश्वास सही है या गलत, इसके आधार पर काट-छाँट किए जाने पर उन्हें सबसे ज्यादा चिंता किस बात की होगी? (अपनी संभावनाओं और नियति की।) वे काट-छाँट किए जाने को अपनी संभावनाओं और नियति के साथ जोड़ते हैं—इसका संबंध उनकी दुष्ट प्रकृति से है। वे मन ही मन सोचते हैं : “क्या मेरी इस तरह काट-छाँट इसलिए की जा रही है क्योंकि मुझे हटाया जाने वाला है? क्योंकि मैं वांछित नहीं हूँ? क्या परमेश्वर का घर मुझे यह कर्तव्य निभाने से रोकेगा? क्या मैं भरोसेमंद नहीं लगता? क्या मेरी जगह किसी बेहतर व्यक्ति को लाया जाएगा? अगर मुझे हटा दिया गया, क्या तब भी मुझे आशीष मिलेगा? क्या मैं तब भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ? ऐसा लगता है कि मेरा प्रदर्शन बहुत संतोषजनक नहीं रहा है, इसलिए मुझे भविष्य में और अधिक सावधान रहना चाहिए, आज्ञाकारी बनकर अच्छा व्यवहार करना सीखना चाहिए और कोई परेशानी नहीं खड़ी करनी चाहिए। मुझे धैर्य रखना सीखना चाहिए और सिर झुकाकर जीना चाहिए। प्रतिदिन काम करते समय मुझे यह मानकर चलना चाहिए कि मैं तलवार की धार पर चल रहा हूँ। मैं जरा-सा भी असावधान नहीं हो सकता। हालाँकि इस बार मैंने लापरवाही बरती है और मेरी काट-छाँट की गई है, पर उनका लहजा बहुत सख्त नहीं लगा। लगता है कि समस्या बहुत गंभीर नहीं है। लगता है कि अभी भी मेरे पास एक मौका है—मैं अभी भी आपदाओं से बचकर आशीष पा सकता हूँ, इसलिए मुझे विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार लेना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा, हटाने या निष्कासित करने की बात तो दूर है, तो मैं इस तरह अपनी काट-छाँट को स्वीकार सकता हूँ।” क्या यह अपनी काट-छाँट को स्वीकारने का रवैया है? क्या यह वास्तव में अपने भ्रष्ट स्वभाव को जानना है? क्या यह पश्चात्ताप कर अपने में बदलाव लाने की इच्छा है? क्या यह सच में सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने के लिए दृढ़संकल्पी होना है? नहीं, ऐसा नहीं है। फिर वे ऐसा बर्ताव क्यों करते हैं? क्योंकि उन्हें आशा होती है कि वे आपदाओं से बचकर आशीष पा सकते हैं। जब तक उन्हें यह उम्मीद होती है, वे अपने असली इरादे नहीं दिखा सकते, वे अपनी असलियत का खुलासा नहीं कर सकते, वे लोगों को नहीं बता सकते कि उनके दिल की गहराइयों में क्या छिपा है, लोगों को अपने अंदर छिपी नाराजगी के बारे में नहीं बता सकते। उन्हें इन चीजों को छिपाकर रखना होगा, विनम्रता का व्यवहार करना होगा और लोगों को पता नहीं लगने देना होगा कि असलियत में वे कौन हैं। इसलिए काट-छाँट के बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आता और वे पहले की तरह ही कार्य करने में लगे रहते हैं। तो उनके कार्यों के पीछे क्या सिद्धांत है? सीधी-सी बात है, हर काम में अपने हितों की रक्षा करना। वे चाहे जो भी गलती करें, वे दूसरों को उसका पता नहीं चलने देते; उन्हें अपने आस-पास के लोगों में यह छवि बनाकर रखनी होगी कि वे दोषों या कमियों से मुक्त आदर्श इंसान हैं और कभी कोई गलती नहीं करते। इस तरह वे छद्मवेश में रहते हैं। लंबे समय तक छद्मवेश में रहकर वे आश्वस्त हो जाते हैं कि उनका आपदाओं से बचना, आशीष पाना और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कमोबेश निश्चित है। लेकिन चूँकि वे अपने क्रियाकलापों में अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, इसलिए अपनी काट-छाँट होने पर उन्हें आश्चर्य होता है। काट-छाँट होने से उन्हें तकलीफ होती है : “मैंने इतना अधिक कष्ट सहा है; तुम मेरी काट-छाँट कैसे कर सकते हो? आशीष प्राप्त करने जैसी महान चीज मेरे साथ अभी तक क्यों नहीं हुई? यह अभी भी मुझसे इतनी दूर क्यों है? यह पीड़ा कब खत्म होगी?” और जब वे काट-छाँट के शब्द सुनते हैं तो सोचते हैं, “अगर मैं फिर से लापरवाह हो गया और सत्य का अनुसरण नहीं किया और जानबूझकर ऐसे बुरे काम करता हूँ जो परमेश्वर के घर के काम को बाधित करते हैं तो मुझे हटाकर निष्कासित कर दिया जाएगा। क्या तब मैं अपनी संभावनाएँ और नियति नहीं खो दूँगा? परमेश्वर में विश्वास रखने के इन वर्षों में मैंने जो भी पीड़ा झेली है, वह सब बेकार हो जाएगी!” वे बार-बार धैर्य और आत्म-संयम से काम लेते हैं और अपने दिलों में कहते हैं, “मुझे यह सहना होगा! मुझे यह सहना ही होगा! अगर मैं इसे नहीं सहता तो मैंने जो भी कष्ट और अन्याय सहा है, वह सब व्यर्थ हो जाएगा। मुझे आगे बढ़ते रहना होगा। अगर मैं अंत तक दृढ़ रहूँगा तो बचाया जा सकूँगा! अगर कोई मुझसे कोई अप्रिय बात कहता है, तो मैं ऐसा दिखावा करूँगा कि मैंने उसकी बात नहीं सुनी। मैं ऐसे पेश आऊँगा जैसे वह मेरे बारे में नहीं, बल्कि किसी और के बारे में बात कर रहा हो।” लेकिन चाहे वे कैसे भी सुनें, फिर भी उन्हें लगता है कि इसका यह मतलब है कि उनकी कोई मंजिल नहीं है। उन्हें अभी भी लगता है कि इस बार काट-छाँट करके उनकी निंदा की जा रही है; वे निराश महसूस करते हैं, दिन की रोशनी देखने में असमर्थ होते हैं, उनके पास कोई कल और कोई भविष्य नहीं है। इस समय, क्या ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी धैर्य रख सकते हैं? (नहीं, वे नहीं रख सकते। वे आशीष पाने की अपनी उम्मीदों को बिखरते देखते हैं, इसलिए वे धैर्य नहीं रख सकते।) क्या वे केवल धैर्य रखने में असमर्थ हैं? क्या वे कार्रवाई नहीं करेंगे? (हाँ, वे जरूर करेंगे।) वे क्या कार्रवाई कर सकते हैं? (वे नकारात्मकता फैला सकते हैं और कुछ भेद न पहचान सकने वाले भाई-बहनों को उनका पक्ष लेने, उनके बचाव में आने और उनकी चिंताओं के बारे में शिकायत करने के लिए गुमराह कर सकते हैं।) सही कहा, एक बार जब वे निराश महसूस करेंगे, तो कार्रवाई करेंगे। वे सोचेंगे : “तुम अब मुझे विकसित नहीं कर रहे हो या महत्वपूर्ण पदों पर नहीं बैठा रहे हो और तुम मुझे हटाना भी चाहते हो। अगर मैं आशीष नहीं पा सकता तो खुद आशीष के बारे में सोचना भी मत! अगर यह जगह मुझे नहीं रखेगी तो मेरे लिए एक दूसरी जगह तैयार है, लेकिन अगर मैं छोड़ता हूँ तो अपने साथ दो और लोगों को नीचे खींच लूँगा। तुम मेरे प्रति निर्दयी रहे हो, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ गलत करूँगा! क्या तुम मुझे हटाना नहीं चाहते थे? तुम्हें ऐसा कहने की कीमत चुकानी पड़ेगी!” वे लड़ने के लिए तैयार हो जाएँगे और शोर मचाना शुरू कर देंगे, और सत्य से नफरत करने का उनका प्रकृति सार उजागर हो जाएगा। फिर उनका उत्साह, उनका त्याग, उनका खुद को खपाना, और उनकी पीड़ा और कीमत चुकाना, सब गायब हो जाएगा क्योंकि आशीष पाने की उनकी उम्मीदें बिखर जाती हैं। उस समय लोग यह देख पाएँगे कि परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का उनका शुरुआती उत्साह और उनका पीड़ा सहना और कीमत चुकाना, सब झूठ और दिखावा था।

एक बार जब मसीह-विरोधियों को बर्खास्त किया या हटाया जाता है तो वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं और बिना संयम के शिकायत करते हैं और उनका राक्षसी पक्ष उजागर हो जाता है। कौन-सा राक्षसी पक्ष उजागर होता है? अतीत में उन्होंने अपने कर्तव्य सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने के लिए बिल्कुल नहीं निभाए थे, बल्कि आशीष पाने के लिए निभाए थे और अब वे इस बारे में सत्य बताते हैं और वास्तविक स्थिति को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं : “अगर मैं स्वर्ग के राज्य में जाने या बाद में आशीष और महान महिमा पाने की कोशिश नहीं कर रहा होता तो क्या मैं गोबर से भी गए-गुजरे तुम लोगों के साथ घुलता-मिलता? क्या तुम लोग मेरी मौजूदगी के लायक भी हो? तुम लोग मुझे विकसित नहीं करते या मुझे पदोन्नति नहीं देते और तुम मुझे हटा देना चाहते हो। एक दिन मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मुझे हटाने के लिए तुम्हें कीमत चुकानी होगी और इसके कारण तुम्हें दुष्परिणाम भुगतने होंगे!” मसीह-विरोधी इन विचारों का प्रसार करते हैं और ये शैतानी शब्द उनके मुँह से निकल जाते हैं। एक बार जब वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं तो उनकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और क्रूर स्वभाव उजागर हो जाता है और वे धारणाएँ फैलाना शुरू कर देते हैं। वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ना शुरू कर देते हैं जो नए विश्वासी हैं, जिनका आध्यात्मिक कद अपेक्षाकृत छोटा है और जो भेद नहीं पहचान सकते हैं, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और जो अक्सर नकारात्मक और कमजोर होते हैं और वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ते हैं जो अपने कर्तव्यों में लगातार लापरवाह होते हैं और जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं। जैसा कि उन्होंने खुद कहा, “अगर तुम मुझे हटा देते हो तो मुझे अपने साथ कई अन्य लोगों को भी नीचे खींचना होगा!” क्या उनकी शैतानी प्रकृति बेनकाब नहीं हुई है? क्या सामान्य लोग ऐसा करेंगे? आम तौर पर, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग बर्खास्त होने पर बस दुखी और आहत महसूस करते हैं, वे खुद को नाउम्मीद मानते हैं, लेकिन उनका जमीर उन्हें सोचने पर मजबूर करता है : “यह मेरी गलती है, मैंने अपने कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाए। भविष्य में मैं बेहतर करने का प्रयास करूँगा और फिर परमेश्वर मेरे साथ कैसा व्यवहार करता है और मेरे बारे में क्या निर्धारित करता है, यह परमेश्वर का काम है। लोगों को परमेश्वर से माँग करने का कोई अधिकार नहीं है। क्या परमेश्वर के कार्य लोगों की अभिव्यक्तियों पर आधारित नहीं हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोई गलत रास्ते पर चलता है तो उसे अनुशासित किया जाना चाहिए और ताड़ना देनी चाहिए। अभी तो दुख की बात यह है कि मेरी काबिलियत कम है और मैं परमेश्वर के इरादे पूरे नहीं कर सकता, मैं सत्य सिद्धांत नहीं समझता और अपने भ्रष्ट स्वभावों के आधार पर मनमाने ढंग से और अपनी मर्जी से काम करता हूँ। मैं हटा दिए जाने के लायक हूँ, लेकिन मुझे उम्मीद है कि मुझे भविष्य में इसकी भरपाई करने का मौका मिलेगा!” थोड़े-से जमीर वाले लोग इस तरह के रास्ते पर चलेंगे। वे इस तरह से समस्या पर विचार करने का फैसला करते हैं और अंत में, वे इस तरह से समस्या हल करने का फैसला भी करते हैं। बेशक, इसके भीतर सत्य का अभ्यास करने के बहुत तत्व नहीं हैं, लेकिन चूँकि इन लोगों में जमीर है, इसलिए वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने, परमेश्वर का तिरस्कार करने या परमेश्वर का विरोध करने की हद तक नहीं जाएँगे। लेकिन मसीह-विरोधी उनके जैसे नहीं हैं। चूँकि उनकी क्रूर प्रकृति है, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी हैं। जब उनकी संभावनाओं और नियति को खतरा होता है या उनसे छीन लिया जाता है, जब उन्हें जीने का कोई अवसर नहीं दिखता है, तो वे धारणाएँ फैलाना, परमेश्वर के कार्य की आलोचना करना और उन छद्म-विश्वासियों को अपने साथ जोड़ने का फैसला करते हैं जो उनके साथ मिलकर परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित करते हैं। वे अपने पिछले किसी भी कुकर्म और अपराध के लिए और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य या संपत्ति को हुए किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी लेने तक से इनकार करते हैं। जब परमेश्वर का घर उनसे निपटता है और उन्हें हटा देता है तो वे एक ऐसा वाक्य कहते हैं जो अक्सर मसीह-विरोधी बोलते हैं। यह क्या है? (अगर यह जगह मुझे नहीं रखेगी तो मेरे लिए एक दूसरी जगह तैयार है।) क्या यह एक और शैतानी वाक्य नहीं है? यह कुछ ऐसा है जो सामान्य मानवता, शर्म की भावना और जमीर वाला व्यक्ति नहीं कह सकता। हम उन्हें शैतानी शब्द कहते हैं। ये उन क्रूर स्वभावों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जो मसीह-विरोधी तब प्रकट करते हैं जब उनकी काट-छाँट की जाती है और उन्हें लगता है कि उनका रुतबा और प्रतिष्ठा खतरे में है, उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को खतरा पहुँचाया जा रहा है और विशेष रूप से वे अपनी संभावनाओं और नियति से वंचित होने वाले हैं; इसी समय, उनका छद्म-विश्वासी सार उजागर होता है। हकीकत में, परमेश्वर का घर लोगों की काट-छाँट सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मनमर्जी से और मनमाने ढंग से कार्य करते हैं, इस प्रकार वे परमेश्वर के घर के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं और आत्मचिंतन या पश्चात्ताप नहीं करते हैं—केवल तभी परमेश्वर का घर उनकी काट-छाँट करता है। इस स्थिति में क्या उनकी काट-छाँट किए जाने का अर्थ यह है कि उन्हें हटाया जा रहा है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) बिल्कुल नहीं, लोगों को इसे सकारात्मक तरीके से स्वीकारना चाहिए। इस संदर्भ में, कोई भी काट-छाँट, चाहे वह परमेश्वर करे या मनुष्य, चाहे वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं से आए या भाई-बहनों से, यह दुर्भावनापूर्ण नहीं होती है और यह कलीसिया के कार्य के लिए लाभकारी है। जब कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से और मनमाने ढंग से काम करता है और परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालता है तो उसकी काट-छाँट करना एक न्यायोचित और सकारात्मक चीज है। यह कुछ ऐसा है जो ईमानदार लोगों और सत्य से प्रेम करने वालों को करना चाहिए। लेकिन जब अपराध करने के कारण जिन लोगों की काट-छाँट की जाती है वे इसे स्वीकार नहीं करते, इसके बजाय इसका विरोध करते हैं, जिससे उनमें नफरत और बदला लेने की मानसिकता पैदा होती है तो यह अनुचित और दुष्टता है। इतने सारे लोग परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाते हैं—उनमें से भला किसने काट-छाँट का अनुभव नहीं किया है? भला कितने लोग काट-छाँट किए जाने पर नकारात्मक और विद्रोही हो गए या फिर उन्होंने यह महसूस कर आत्महत्या का प्रयास किया कि उन्हें आशीष नहीं मिलेगा और वे नाउम्मीद हो चुके हैं और इसलिए उन्होंने अपना कर्तव्य छोड़ना चाहा, रूखा व्यवहार करना चाहा और नखरे दिखाने चाहे और दूसरों से नफरत करना शुरू कर दिया और यहाँ तक कि उनसे बदला लेना चाहा है? वास्तव में ऐसे बहुत लोग नहीं हैं। केवल बुरे लोग ही ऐसी चीजें कर सकते हैं। केवल बुरे लोग ही काट-छाँट किए जाने को यह मान सकते हैं कि उनके साथ गुस्सैल लोगों ने गलत तरीके से व्यवहार किया है। बेशक, परमेश्वर के घर में जिस तरह की काट-छाँट की बात की जाती है, वह सब उचित है, यह सब कलीसिया के कार्य और व्यक्तियों के जीवन प्रवेश के लिए किया जाता है। यह एक सकारात्मक चीज है जो परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है और पूरी तरह से परमेश्वर के वचन के अनुरूप है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे हमेशा अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और गरिमा की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, इसे अपने हितों से जोड़ते हैं और विशेष रूप से इसे अपनी संभावनाओं और नियति से जोड़ते हैं। अगर काट-छाँट उनकी प्रतिष्ठा, रुतबे और गरिमा के प्रतिकूल है तो वे इसे स्वीकार नहीं सकते। अगर उनकी गंभीर रूप से काट-छाँट की जाती है और इससे न केवल उनकी प्रतिष्ठा, रुतबा और गरिमा नष्ट होती है, बल्कि यह उनकी संभावनाओं और नियति को भी खतरे में डालता है तो वे इसे स्वीकारने में और भी कम सक्षम होते हैं। संक्षेप में कहें तो चाहे कोई भी उनकी काट-छाँट करे, मसीह-विरोधी इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारने में असमर्थ होते हैं, आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में असमर्थ होते हैं, काट-छाँट किए जाने से सबक सीखने में असमर्थ होते हैं, सच्चा पश्चात्ताप करने में असमर्थ होते हैं या अपने कर्तव्यों का बेहतर निर्वहन करने में असमर्थ होते हैं। इसके बजाय, वे अपने दिलों में प्रतिरोध करते हैं और वे काट-छाँट के प्रति विद्रोही रवैया अपनाते हैं और इसे स्वीकारने से नकारते हैं। अपनी काट-छाँट के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया रहता है और यह सत्य के प्रति उनके रवैये को भी दर्शाता है।

जब काट-छाँट किए जाने की बात आती है तो लोगों को कम-से-कम क्या जानना चाहिए? मानक-स्तर के तरीके से अपना कर्तव्य करने के लिए काट-छाँट किए जाने का अनुभव जरूर करना चाहिए—यह अपरिहार्य है। यह ऐसी चीज है जिसका लोगों को दिन-प्रतिदिन सामना करना चाहिए और जिसे परमेश्वर में अपने विश्वास में उद्धार प्राप्त करने के लिए अक्सर अनुभव करना चाहिए। कोई भी काट-छाँट किए जाने से अलग-थलग नहीं रह सकता। क्या किसी की काट-छाँट का संबंध उसकी संभावनाओं और नियति से होता है? (नहीं।) तो किसी व्यक्ति की काट-छाँट क्यों की जाती है? क्या यह उसकी निंदा करने के लिए की जाती है? (नहीं, यह लोगों को सत्य समझने और अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार निभाने में मदद करने के लिए की जाती है।) सही कहा। यह इसकी एकदम सही समझ है। किसी की काट-छाँट करना एक तरह का अनुशासन है, एक प्रकार की ताड़ना है और यह स्वाभाविक रूप से एक प्रकार से लोगों की मदद करना और उनका उपचार करना भी है। काट-छाँट किए जाने से तुम समय रहते अपने गलत अनुसरण को बदल सकते हो। इससे तुम अपनी मौजूदा समस्याएँ तुरंत पहचान सकते हो और समय रहते अपने उन भ्रष्ट स्वभावों को पहचान सकते हो जो तुम प्रकट करते हो। चाहे कुछ भी हो, काट-छाँट किया जाना तुम्हें अपनी गलतियाँ पहचानने और सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाने में मदद करते हैं, ये तुम्हें चूक करने और भटकने से समय रहते बचाते हैं और तबाही मचाने से रोकते हैं। क्या यह लोगों की सबसे बड़ी सहायता, उनका सबसे बड़ा उपचार नहीं है? जमीर और विवेक रखने वालों को काट-छाँट किए जाने को सही ढंग से लेने में सक्षम होना चाहिए। मसीह-विरोधी काट-छाँट को क्यों नहीं स्वीकार सकते? क्योंकि उन्हें लगता है कि काट-छाँट किया जाना मनुष्य से आता है, परमेश्वर से नहीं। उन्हें लगता है कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है, वह उनके लिए जीवन जीना कठिन बना रहा है और उन्हें सता रहा है। मसीह-विरोधियों की मानसिकता को देखें तो वे अपनी काट-छाँट किया जाना स्वीकारने से मुख्य रूप से इस कारण इनकार करते हैं कि वे सत्य स्वीकार नहीं करते हैं। वे काट-छाँट किए जाने से सबक नहीं सीख सकते और वे खुद को जानने या सत्य की खोज करने में सक्षम नहीं हैं। यही कारण है कि वे काट-छाँट किया जाना स्वीकार नहीं करते हैं। उनके दिलों में इतनी बड़ी समस्या मौजूद है, जो यह पुष्टि करती है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य से विमुख होने और सत्य के प्रति शत्रुता का है।

2 मई 2020

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