मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग आठ) खंड दो
जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब भाई-बहन उनकी आलोचना करके उन्हें उजागर करते हैं तो वे और कौन-से शब्द बोलते हैं? कुछ मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए कोई गलती करते हैं या कुछ दानवी शब्द बोलते हैं। जब भाई-बहन यह देखते हैं तो वे उनकी आलोचना और काट-छाँट करते हैं, उन्हें धूर्त और धोखेबाज लोगों के रूप में उजागर करते हैं। भले ही वे बाहरी तौर पर विद्रोही नहीं हैं, मगर वे अंदर से प्रतिरोधी होते हैं, मानो यह कहना चाह रहे हों, “तुम्हें क्या पता? क्या तुम मेरे जितने जानकार हो? क्या तुमने उतने वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया है जितना कि मैंने किया है? तुमने कितने वर्ष परमेश्वर में विश्वास किया है? मैं तुम्हारे स्तर तक नहीं गिरूँगा!” जब अगुआ और कार्यकर्ता उनकी काट-छाँट कर रहे होते हैं तो वे एक धूर्त रवैया अपना सकते हैं, बाहरी तौर पर कुछ अच्छे लगने वाले शब्द कहते हुए उन्हें धोखा दे देते हैं, मगर मन-ही-मन वे असंतुष्ट और विद्रोही होते हैं और बदला लेने का मौका ढूँढ़ते रहते हैं। अगर कोई साधारण भाई या बहन उनकी काट-छाँट करता है तो मसीह-विरोधी अच्छा व्यवहार नहीं करते—वे नाराज होकर भड़क जाएँगे और पलटवार करके बदला लेंगे। जब वे पलटवार करके बदला लेते हैं तो अक्सर कुछ ऐसा कहते हैं : “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो! अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करता तो मुझे किसी का डर नहीं होता!” क्या इन शब्दों में कुछ गलत है? अविश्वासी और अत्यंत घटिया लोग आम तौर पर इस तरह के शब्द बोलते हैं। यह कलीसिया में कैसे सुनने को मिल सकता है? जो लोग इस तरह बोल सकते हैं वे एक अनूठे समूह के लोग हैं और इस अनूठे समूह की एक अनूठी मनोदशा होती है। उनकी मनोदशा अनूठी कैसे है? ऐसे लोग अक्सर कलीसिया में वरिष्ठता को महत्व देते हैं। वे सबको अपने से कमतर समझते हैं, सबको नापसंद करते हैं और सबको उपदेश देना, सताना और अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि भले ही लोग परमेश्वर में विश्वास करते हों, मगर कोई भी उनका साथी बनने के लायक नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जब लोग उन्हें भाई-बहन मानकर उनके साथ दिल की बात करते हैं, उनके भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं और उनकी सत्य के अनुरूप न होने वाली कथनी-करनी की काट-छाँट करते हैं तो वे इस तरह के अहंकारी शब्द बोलते हैं। वे परमेश्वर के घर को समाज और अपना कार्यक्षेत्र मानते हैं और कलीसिया के भाई-बहनों को अपने कनिष्ठ मानते हैं। उन्हें लगता है कि भाई-बहनों को समाज के मामलों की बहुत कम जानकारी है और केवल सतही समझ है, वे समाज में सबसे निचले स्तर पर हैं जहाँ दूसरे उन्हें नीची नजरों से देखते हैं, उनके साथ खिलवाड़ करते हैं और उन्हें कुचलते हैं। उन्हें लगता है कि भाई-बहनों को धमकाकर उनसे खिलवाड़ करना बहुत आसान है और वे उस तरह के व्यक्ति नहीं होंगे। इसलिए वे सोचते हैं कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट कर रहा और उन्हें उजागर कर रहा है, वह उन्हें धमका रहा है, नीचा दिखा रहा है और उन्हें अलग कर रहा है। वे पहले से ही अपने दिलों में इसके खिलाफ सतर्क रहते हैं, “यह मत सोचो कि तुम मुझे सता सकते हो और मुझे धौंस दे सकते हो! तुम अभी भी बहुत कच्चे हो!” क्या यह कुछ ऐसा नहीं है जो कोई “नायक के जोश” वाला व्यक्ति कहेगा? दुर्भाग्य से ये शब्द सत्य नहीं हैं। चाहे तुममें कितना भी जोश या नैतिक सत्यनिष्ठा क्यों न हो, परमेश्वर तुम्हें स्वीकृति नहीं देगा। परमेश्वर ऐसे स्वभावों और ऐसे लोगों से घृणा करता है जो ये बातें कहते हैं। जो लोग परमेश्वर के सामने ऐसी बातें कहते हैं, परमेश्वर उनकी निंदा और तिरस्कार करता है। जो लोग इन शब्दों को सत्य मानते हैं, उन्हें परमेश्वर कभी नहीं बचा सकता। तो, आओ एक बार फिर देखें, इन शब्दों में क्या गलत है? सत्य के सामने हर कोई बराबर है और परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने वालों के लिए उम्र या नीचता और कुलीनता का कोई भेद नहीं है। अपने कर्तव्य के सामने हर कोई बराबर है, वे बस अलग-अलग काम करते हैं। वरिष्ठता के आधार पर उनके बीच कोई भेद नहीं है। सत्य के सामने सबको विनम्र, समर्पण करने और स्वीकारने वाला दिल रखना चाहिए। लोगों में यही विवेक और रवैया होना चाहिए। तो, क्या वे लोग जो कहते हैं, “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” समाज के परिवेश, विचारधारा और घिनौनेपन से भरे नहीं हैं? वे परमेश्वर के घर को समाज मानते हैं, वे परमेश्वर के घर के भाई-बहनों को समाज के सबसे निचले स्तर के असुरक्षित समूह के लोग मानते हैं और साथ ही वे खुद को हर चीज का मालिक मानते हैं, ऐसा व्यक्ति जिसे कोई छू नहीं सकता या उकसा नहीं सकता है और जो यह ठान लेता है कि उन्हें उजागर और उनकी काट-छाँट करने वालों के लिए चीजें अच्छी न हों। वे सोचते हैं कि परमेश्वर का घर समाज की ही तरह है, जो कोई भी अडिग और दबंग है वह दृढ़ रहने में सक्षम होगा, कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जो निर्दयी, उग्र और बुरे हैं; वे यह भी मानते हैं कि जो लोग काट-छाँट को स्वीकारते हैं वे सभी अक्षम और असमर्थ हैं। उन्हें लगता है कि कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जिनके पास कुछ योग्यता है, अगर वे गलतियाँ करें तो भी कोई उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करेगा और वे बेहद सख्त लोग हैं! मसीह-विरोधी सोचते हैं कि वे दुनिया के चाहे जिस भी समूह में हों, उन्हें शक्तिशाली, निर्दयी और इतना बुरा होना चाहिए कि दूसरे लोग उन्हें धौंस न दे सकें या लापरवाही से इधर-उधर न धकेल सकें। उन्हें लगता है कि यह योग्यता और क्षमता है और वे इस योग्यता का उपयोग रुतबा, शोहरत और लाभ पाने और आखिरकार एक अच्छी मंजिल सुरक्षित करने के लिए करना चाहते हैं। यह कैसा स्वभाव है? यह क्रूर और दुष्ट दोनों तरह का स्वभाव है। मसीह-विरोधी चाहे कितने भी धर्मोपदेश सुन लें, वे सत्य को नहीं समझ सकते। वे यह नहीं देख सकते कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है। वे उन सभी बदलावों को नहीं देख सकते जो सत्य स्वीकारने वाले लोगों में होते हैं और अगर वे उन्हें देख भी लें तो भी वे उन्हें बदलावों के रूप में स्वीकार नहीं करते। उन्हें लगता है कि वे सभी बदलाव दिखावे और आत्म-संयम का नतीजा हैं और वे खुद को संयमित नहीं करेंगे और इसकी खातिर चुपचाप कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। इस तरह का तर्क होने के कारण वे ऐसी बातें कह सकते हैं : “यह मत सोचो कि तुम मुझे यातनाएँ दे सकते हो और धौंस दे सकते हो!” क्या यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता नहीं है? ऐसे विचार और दृष्टिकोण दुष्ट हैं। वे ये शब्द बोल सकते हैं और इस तरह से काम कर सकते हैं, इससे उनके क्रूर स्वभाव का खुलासा होता है। क्या कलीसिया में इस तरह के लोग हैं? जब भाई-बहन उनसे दिल की बात करते हैं, उन्हें उजागर करते हैं, उनकी समस्याओं, कमियों और भ्रष्टता के खुलासे के बारे में बात करते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्हें धमकाया और अपमानित किया जा रहा है और उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। फिर वे कहते हैं, “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” चाहे वे किसी को भी अपनी काट-छाँट स्वीकारते हुए देखें, वे हमेशा सोचेंगे : “क्या तुम अपनी काट-छाँट स्वीकार कर सत्य प्राप्त कर सकते हो? यह नामुमकिन है!” वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि लोगों की काट-छाँट करना उन पर धौंस जमाना और कोई बहाना ढूँढ़कर उन्हें यातनाएँ देना है और उन्हें यह भी लगता है कि कोई छोटी-मोटी गलती होने पर लोगों को इसलिए धमकाया जाता है कि वे बहुत भोले होते हैं। वे यह स्वीकार नहीं करते कि लोगों की काट-छाँट करना उनसे प्रेम और उनकी मदद करना है। वे यह नहीं मानते कि लोग केवल तभी सच्चा पश्चात्ताप कर सकते हैं और बदल सकते हैं जब वे अपनी काट-छाँट को स्वीकारें और वे इस तथ्य को और भी कम स्वीकारते हैं कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है। इसलिए मसीह-विरोधी अक्सर खुद से कहते हैं : “जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसे नहीं छोड़ूँगा। मैं किसी को अपने पर धौंस नहीं जमाने दूँगा!” किस तरह के लोग ऐसे शब्द बोल सकते हैं? जो सत्य नहीं स्वीकारते और सत्य से घृणा करते हैं, केवल वही लोग ऐसे शब्द बोल सकते हैं। जो भी इस तरह के क्रूर स्वभाव का है और जो ऐसे शब्द बोल सकता है, उसके पास मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है और वह शैतान की बिरादरी का है।
अपनी काट-छाँट किए जाते समय मसीह-विरोधी एक और वाक्यांश बोलते हैं : “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!” इस वाक्यांश का क्या मतलब है? यह एक खास तरह के मसीह-विरोधी का एक आम बयान है। चूँकि वे ऐसा कहते हैं, आओ इसका गहन-विश्लेषण करें। चूँकि वे ये शब्द बोल सकते हैं तो इनका एक खास अर्थ होना चाहिए। सतही तौर पर ये शब्द यह कहते प्रतीत होते हैं कि जब से इन लोगों ने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, तब से उनमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। इन शब्दों में आभार की भावना प्रतीत होती है, जैसे कि : “परमेश्वर ने मुझे बदल दिया है, परमेश्वर ने मुझे जीत लिया है। अगर परमेश्वर ने मुझे बदला न होता तो मैं बेहद अहंकारी व्यक्ति होता।” सतही तौर पर ऐसा लगता है कि इन शब्दों में आभार की मानसिकता है, मगर दूसरे परिप्रेक्ष्य से गहन-विश्लेषण करें तो इनमें एक बड़ी समस्या है। मसीह-विरोधी कहते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले, वे किसी की परवाह नहीं करते थे। इन लोगों का स्वभाव कैसा है? (अहंकारी और क्रूर।) ये लोग बेहद अहंकारी और क्रूर हैं और अगर वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते तो वे बहुत बुरे लोग होते। किसी की परवाह न करने का मतलब है किसी के लिए कोई सम्मान न होना, इसका मतलब है कि हर कोई उनके पैरों तले कुचला जाता है और चाहे दूसरे लोग कितने भी बढ़िया या अच्छे क्यों न हों, वे उनकी नजर में कुछ भी नहीं हैं। वे किसी के आगे नहीं झुकते, वे सभी का तिरस्कार करते हैं और वे किसी की सेवा नहीं करते। अगर उनसे किसी व्यक्ति की सेवा करने के लिए कहा जाए तो इससे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचेगी। केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही उनकी सेवा के योग्य है। अब जबकि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तो उन्होंने किसी की परवाह न करने की इस अभिव्यक्ति और खुलासे पर अंकुश लगा दिया है और परमेश्वर के घर में आने के बाद वे समूह में दूसरों के साथ काम करने, मामलों को सँभालने और सामान्य लोगों की तरह दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए अनिच्छा से तैयार हो गए हैं। मगर जब वे मामलों को सँभालते हैं और दूसरों के साथ बातचीत करते हैं तो कुछ चीजें उनके मनमाफिक नहीं होती हैं और इससे उनका वह स्वभाव फिर से भड़क उठता है और इस कारण ये शब्द निकलते हैं। मूल रूप से जब वे संसार में थे और परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे तो वे किसी के आगे नहीं झुकते थे और सोचते थे कि कोई भी उनके साथ बातचीत करने के योग्य नहीं है। तो जब से उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, क्या वे परमेश्वर के घर में किसी भाई या बहन के आगे झुके हैं? (नहीं।) चाहे वे किसी भी समूह में हों, क्या सामान्य मानवता और सामान्य तार्किकता वाला व्यक्ति इस तरह से आचरण करेगा? (नहीं।) यहाँ तक कि अविश्वासी भी कहते हैं, “साथ-साथ चल रहे किन्हीं भी तीन लोगों में कम-से-कम एक ऐसा होता है जो मेरा शिक्षक बन सकता है।” यानी किन्हीं तीन लोगों में से एक व्यक्ति निश्चित रूप से ऐसा होगा जो तुमसे ज्यादा मजबूत और बेहतर होगा, जो तुम्हारा शिक्षक बन सकता है और तुम्हारी मदद कर सकता है। अविश्वासी ऐसे शब्द कहते हैं तो क्या तब ये अहंकारी लोग इन शब्दों की सत्यता को स्वीकारते हैं? क्या वे किसी समूह में दूसरों के साथ बराबरी के स्तर पर मेलजोल कर सकते हैं? क्या वे तार्किक हो सकते हैं? (नहीं।) जब वे उन अविश्वासियों के बीच होते हैं जो परमेश्वर में आस्था नहीं रखते तो ये मसीह-विरोधी किस तरह के लोग होते हैं? (वे टेढ़े लोग होते हैं।) सही कहा, वे कमीने होते हैं, वे टेढ़े लोग होते हैं। उनके बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता। कोई भी उन्हें भड़काने, गुस्सा दिलाने या छूने की हिम्मत नहीं करता। वे कमीने हैं! अगर तुम उन्हें गुस्सा दिलाते हो तो दुष्परिणाम भुगतने होंगे, यह एक क्रूर राक्षस को गुस्सा दिलाने जैसा है। आम तौर पर समाज में कोई भी ऐसे लोगों से उलझने की हिमाकत नहीं करता। चीजों से निपटने में उनका स्वभाव और उनके सिद्धांत असभ्य और अनुचित होते हैं और हर मोड़ पर परेशानी खड़ी करते हैं। कोई भी उन्हें गुस्सा दिलाने, हाथ लगाने और धौंस देने की जुर्रत नहीं करता है; केवल वे ही दूसरों को धौंस देते हैं। इससे उनका लक्ष्य पूरा होता है। तो क्या वे परमेश्वर के घर में आने के बाद बदल पाते हैं? क्या वे बदल गए हैं? (नहीं, वे नहीं बदले हैं।) हमें कैसे पता कि वे नहीं बदले हैं या वे नहीं बदल सकते हैं? (उनका यह कथन इस तथ्य को दर्शाता है, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!”) वे आम तौर पर ये शब्द नहीं बोलते हैं—वे किस संदर्भ में ये शब्द बोलते हैं? जब कोई उनकी खामियाँ बताता है, ऐसी बातें कहता है जिनसे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचती है या जो उन्हें गुस्सा दिलाती हैं तो वे यह वाक्यांश बोल देते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती! तुम मुझसे लड़ने की हिम्मत करते हो, आखिर खुद को समझते क्या हो?” यह कैसा स्वभाव है? वे यह कहते हुए इस कथन से पहले एक संशोधक भी जोड़ देते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मुझे किसी की परवाह नहीं होती थी।” तुम तो अब परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी किसी के सामने नहीं झुकते या किसी की नहीं सुनते? क्या तुम अभी भी वही निरे राक्षस और शैतान नहीं हो? उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद वे बदलकर सुधर गए हैं। अगर वे वाकई बदलकर सुधर गए हैं तो ये शब्द कैसे बोल सकते हैं? उनके पास कोई अंतरात्मा या विवेक नहीं है और वे खुलेआम शोर मचाने और दूसरों को यह बताने की हिम्मत करते हैं : “मैं एक ठग हूँ और मैं किसी से नहीं डरता!” एक निरंकुश, कमीने व्यक्ति और ठग के पास दिखाने के लिए है ही क्या? उसके पास डींगें हाँकने के लिए क्या है? फिर भी मसीह-विरोधी इस तरह से डींगें हाँकते हैं। वे इस तथ्य को अपना गौरवशाली अतीत मानते हैं कि वे कभी निरंकुश हुआ करते थे और वे परमेश्वर के घर में इसका दिखावा करते हैं। परमेश्वर का घर किस तरह की जगह है? यह ऐसी जगह है जहाँ सत्य का शासन चलता है। यह एक पवित्र जगह है जहाँ परमेश्वर लोगों को बचाता है। यह तुम्हें ये शैतानी शब्द बोलते हुए कैसे बर्दाश्त कर सकता है? मसीह-विरोधियों को कोई शर्म नहीं होती है, वे नहीं जानते कि ये शैतानी शब्द हैं और वे इनका इस तरह दिखावा तक करते हैं मानो ये अच्छे शब्द और सत्य हों। वे वाकई बेशर्म लोग हैं, वे बेहद शर्मनाक और घृणित हैं! जब इस तरह का व्यक्ति तुमसे शैतानी शब्द बोलता है तो क्या तुम लोगों के पास कोई उपयुक्त जवाब होता है? (मैं एक बार ऐसे व्यक्ति से मिली थी; वह कलीसिया में किसी के आगे नहीं झुकता था। उस समय उसने मेरी आलोचना करने के लिए इस तरह के शब्द बोले थे। मैं भेद नहीं पहचान पाती थी और मैंने कह दिया कि मैं इसे स्वीकारती हूँ।) तुमने इस तरह से जवाब दिया। इस तरह जवाब देना गलत था; तुमने गवाही नहीं दी। तुम्हें उसकी समस्याएँ बताकर उसे शर्मिंदा करना चाहिए। जब वह शैतानी शब्द बोलता है तो तुम्हें झुकना नहीं चाहिए और न ही तुम्हें उन शैतानी शब्दों का पालन करना चाहिए। तुम्हें उसे उजागर करना चाहिए। परमेश्वर के विजेताओं में से एक बनने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए तुम्हें राक्षस और शैतान को शर्मिंदा करने में सक्षम होना चाहिए और ऐसे शब्द कहने चाहिए जो शैतान को शर्मिंदा कर सकें और जो सत्य के अनुरूप हों। भले ही वह इसे न स्वीकारे, उसके पास कहने को कुछ नहीं होगा और वह अपनी औकात में रहेगा और समर्पण कर देगा। क्या इस तरह के व्यक्ति को डराना कारगर रहेगा? उसकी निंदा की जाए तो कैसा रहेगा? उसके साथ चर्चा करने और उसे मनाने के बारे में क्या ख्याल है? (नहीं।) फिर कौन-सा तरीका काम करेगा? (अगर कोई कलीसिया में ऐसे शब्द बोलता है तो मैं कहूँगा : “क्या तुम उद्दंड व्यवहार करने की कोशिश कर रहे हो? अगर तुम भाई-बहनों को सत्य पर संगति करते हुए सामान्य रूप से सुन सकते हो और सत्य स्वीकार सकते हो तो यह ठीक है, लेकिन अगर तुम यहाँ उद्दंड व्यवहार करना चाहते हो तो दफा हो जाओ। परमेश्वर का घर तुम्हें यहाँ उद्दंड व्यवहार करने की अनुमति नहीं देता है। तुम्हारे ये शब्द सत्य के अनुरूप नहीं हैं। यहाँ खुद का तमाशा मत बनाओ!”) ये शब्द बहुत शक्तिशाली हैं, मगर इस तरह के लोग निरंकुश और डाकू होते हैं। क्या वे ऐसे शब्दों से डरते हैं? (नहीं, वे नहीं डरते।)
मैं तुम लोगों को एक बात बताता हूँ। एक बार, मैं ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आया जो परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले एक बावर्ची हुआ करता था। उसने एक बार मुझसे कहा : “जब मैं बाहरी संसार में बावर्ची था और बड़े-बड़े लोग और अधिकारी शराब पीने के लिए आते थे तो मैं उनसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। जब मैं उनके लिए खाना बनाता था तो मेरा एक हाथ मेरी कमर पर होता, एक पैर पंजों पर होता और मैं एक हाथ से उनके लिए खाना बनाता था।” वह अपने हाव-भाव दिखाकर यह बता रहा था और उसका व्यवहार जितना क्रोधपूर्ण लग रहा था, उतना ही ललकारने वाला भी लग रहा था। उसका मतलब था : “कोई भी अविश्वासी मेरी बराबरी नहीं कर सकता और मैं उनमें से किसी के सामने नहीं झुकूँगा। मैं बहुत सक्षम हूँ और बाहरी संसार में मेरे जैसे लोग सच्चे होते हैं। मैं आम तौर पर अधिकारियों की परवाह नहीं करता!” बोलते समय उसने हाव-भाव दिखाए, खुद से प्रसन्न लग रहा था और उन हरकतों को सहजता से प्रदर्शित कर रहा था। मैं देख सकता था कि वह उन हरकतों, उस व्यवहार और उस मुद्रा को प्रदर्शित करने में बहुत कुशल था—मानो वह अक्सर उन्हें प्रदर्शित करता था। मैं बता सकता था कि वह दूसरों से अपनी प्रशंसा करवाने की कोशिश में अपने “शानदार अतीत” का दिखावा करने और उस पर इतराने के इरादे से ऐसे भाव प्रदर्शित कर रहा था। जब मैंने उसे इस तरह व्यवहार करते देखा तो मैंने मुस्कुराकर उससे कहा : “तो, तुम्हारा स्वभाव खराब है।” मैंने मुस्कुराते हुए बस यही कहा और कुछ नहीं कहा। उसका चेहरा तुरंत लटक गया और उसने तुरंत अपनी हरकतें बंद कर दीं और चुप हो गया। तब से उसने अपने “शानदार अतीत” के बारे में दोबारा कभी बात नहीं की। मैंने उससे क्या कहा? (तुम्हारा स्वभाव खराब है।) इसका क्या मतलब था? (इसने उसके प्रकृति सार को इंगित किया और वह शर्मसार हो गया।) सही कहा। क्या मैंने उसे गुस्सा दिलाया? क्या मैंने उससे बहस की? क्या मैंने उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाई? (नहीं।) क्या मैंने उसके साथ आवेगपूर्ण व्यवहार कर यह कहा : “दफा हो जाओ! तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों रखे हो?” या “तुम मुझसे अपने ‘शानदार अतीत’ के बारे में बात करने के लिए अभी भी बड़े कच्चे हो!”? क्या मैंने इन तरीकों का इस्तेमाल किया? (नहीं।) इनमें से किसी भी बात की ओर इशारा किए बिना मैंने बस एक वाक्य कहा, “तो तुम्हारा स्वभाव खराब है” और वह शर्मिंदगी के कारण चुप हो गया। मैंने विस्तार में जाए बिना अपनी बात कह दी। अगर कोई समझदार व्यक्ति यह सुनता तो वह तुरंत समझ जाता कि इसका क्या मतलब है और भविष्य में और अधिक संयमित हो जाता। इस रवैये के बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) क्या उसे घूरना और उससे बहस करना उचित होता? (नहीं, यह उचित नहीं होता।) अगर कोई कहता है, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!” तो तुम्हें उससे कहना चाहिए, “अगर परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले तुम्हें किसी की परवाह नहीं थी तो इसका मतलब है कि तुम्हारा स्वभाव खराब था। अगर तुम अब परमेश्वर में विश्वास करते हो, तब भी तुम्हें किसी की परवाह नहीं है तो इसका मतलब है कि तुम्हारा स्वभाव और भी ज्यादा खराब है और तुम्हारे सार में कुछ तो गड़बड़ है।” बस इतना कहकर उसकी प्रतिक्रिया और उसका व्यवहार देखो। इसे दुखती रग पर चोट करना कहते हैं। क्या बुरे लोग इन शब्दों को सुनकर दुखी होंगे? वे परेशान महसूस करेंगे। वे सोचेंगे, “मैंने सोचा था कि मैंने परमेश्वर में अपने विश्वास में बदलाव हासिल कर लिया है, मगर मैंने इन शब्दों का इस्तेमाल अपनी योग्यता दिखाने और परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले के अपने शानदार अतीत पर इतराने के लिए किया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई समझदार व्यक्ति इस मामले के पीछे के शर्मनाक राज़ को उजागर कर देगा और यह प्रकट कर देगा कि मेरा स्वभाव खराब है।” खराब स्वभाव का क्या मतलब है? अच्छे शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि उनकी मानवता अच्छी नहीं है; इसे और रुखाई से कहें तो इसका मतलब है कि वे अच्छे लोग नहीं हैं। समाज में कौन-से लोग अच्छे नहीं हैं? (गुंडे, ठग, अत्याचारी और बदमाश लोग।) सही कहा, ये ऐसे लोग हैं। जैसे ही तुम उन्हें यह कहोगे कि वे अच्छे नहीं हैं और उनका स्वभाव खराब है तो वे समझ जाएँगे। वे समझ जाएँगे कि तुम गुंडे, बदमाश, अत्याचारी और बुरे लोगों की बात कर रहे हो—इन शब्दों और इस प्रकार के लोगों की बात कर रहे हो। क्या उन्हें यह सुनकर अच्छा लगेगा कि वे इस श्रेणी में आते हैं? (नहीं।) उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। और क्या तुम्हें कुछ और कहने की जरूरत पड़ेगी? (नहीं।) उस एक वाक्य से उनके शर्मनाक राज़ से परदा उठ जाएगा। “तो तुम उस किस्म के व्यक्ति हो। तुम अभी भी यहाँ खुद पर इतरा रहे हो, नकारात्मक चीजों के बारे में शेखी बघार रहे हो जैसे कि वे सकारात्मक चीजें हों। तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो? यह परमेश्वर का घर है, यहाँ दिखावा मत करो। यह तुम्हारे लिए दिखावा करने की जगह नहीं है। अगर तुम्हें दिखावा करना ही है तो यहाँ से चले जाओ। परमेश्वर का घर एक ऐसी जगह है जहाँ सत्य का शासन चलता है, यह कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ तुम अपने बुरे कर्मों का बखान करो। परमेश्वर के घर में दुष्ट और नकारात्मक चीजों पर इतराने से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हारा मतलब है कि परमेश्वर का कार्य तुममें परिणाम हासिल कर चुका है। क्या परमेश्वर ने ऐसा कहा? तुम परमेश्वर का धन्यवाद नहीं कर रहे हो; तुम अपने बुरे कर्मों पर घमंड कर रहे हो। तुम इन शब्दों से किसे धोखा देने की कोशिश कर रहे हो? तुम तीन साल के बच्चे को बेवकूफ बना सकते हो, मगर भाई-बहनों को बेवकूफ नहीं बना सकते। तुम ऐसा करके बच नहीं सकते!” इस तरह से उनकी पोल खुल जाती है। जैसे ही मसीह-विरोधी यह सुनेंगे, सबसे पहले उन्हें लगेगा कि तुम्हारे मन में उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है; दूसरा, तुम्हारे शब्द निशाने पर लगेंगे; तीसरा, तुमने उन्हें निशाना नहीं बनाया होगा; और चौथा, ये शब्द तथ्य हैं और तुमने यह कहकर कोई अतिशयोक्ति नहीं की होगी। एक बार जब वे ये शब्द सुन लेंगे तो वे तुरंत खुद को रोक लेंगे। वे खुद को क्यों रोकेंगे? तुम्हारे शब्द उन्हें शर्मिंदा करेंगे और उन्हें शर्मिंदगी महसूस कराएँगे। जब वे दोबारा तुम्हारे सामने होंगे तो उन्हें ऐसे शब्द दोहराने में शर्म आएगी। और अगर वे फिर से ऐसी बातें कहते भी हैं तो उन्हें सही अवसर ढूँढ़ना होगा और ध्यान देना होगा कि कौन सुन रहा है। चाहे जो भी हो, वे तुम्हारी मौजूदगी में दोबारा कभी उन शब्दों को नहीं दोहराएँगे। क्या इसने उन्हें नियंत्रित नहीं कर दिया है? अगर इस तरह के व्यक्ति से तुम लोगों का सामना होता है तो क्या तुम उनसे इस तरह बात करने की हिम्मत करोगे? (हाँ।) इस तरह के व्यक्ति से निपटने का एक तरीका है। तुम्हें गुस्सैल या असभ्य होने की जरूरत नहीं है, बस मुस्कुराकर उन्हें काबू में करो। इसे शैतान को उजागर और शर्मिंदा करना कहते हैं। इसे अपनी गवाही में दृढ़ रहना कहते हैं। उन्हें उजागर करने की तुम्हारी क्षमता यह साबित करती है कि तुम उनकी असलियत देख चुके हो, तुम उन जैसे लोगों को नापसंद करते हो, तुम उन जैसे लोगों से नफरत करते हो और उन्हें हेय दृष्टि से देखते हो। ये लोग नकारात्मक चरित्र वालों की श्रेणी में आते हैं और तुम उनके बिल्कुल विपरीत हो। तुम्हारे सामने वे खुद को कमतर समझते हैं; तुम उनसे कहीं ज्यादा मजबूत और सच्चे हो।
जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब कभी-कभी भाई-बहन उन्हें उजागर करते हैं तो वे कौन-से दो बेशर्म वाक्य बोलते हैं? (“तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!”) ज्यादातर लोग ये दो वाक्य नहीं बोल सकते हैं, है न? इन शब्दों की क्या विशेषताएँ हैं? वे ठगने वाले और घिनौने शब्द हैं, शैतान के अहंकार और शैतान के दुष्ट स्वभाव के तरीके दिखाने वाले शब्द हैं। जाहिर है कि ये शब्द किसी सामान्य व्यक्ति के मुँह से नहीं निकलेंगे, खासकर किसी ऐसे व्यक्ति के मुँह से नहीं निकलेंगे जो सत्य का अनुसरण करता हो। यह कहने की जरूरत नहीं है कि जो लोग ये शब्द बोलते हैं उनमें शैतान का क्रूर स्वभाव होता है। वे बुरे लोग हैं और वे मसीह-विरोधी हैं। वे सत्य से प्रेम नहीं करते और वे बुरी ताकतों, हिंसा और शैतान की क्रूर शक्तियों और स्वभाव का आदर करते हैं। उनके कहे इन दो वाक्यों से ही उनका सार पहचाना जा सकता है। जब वे ये शब्द बोलते हैं तो उनके स्वभाव और सार प्रकट हो जाते हैं। साधारण, सामान्य, भ्रष्ट मानवजाति के बीच जो कोई भी अक्सर ये शब्द बोलता है, वह अच्छा नहीं है, और जो इन शब्दों को सुनने के बाद भी इन्हें नहीं बोलते, जो सोचते हैं कि ऐसे शब्द बोलने वाले लोग शर्मनाक और क्रूर हैं, जो खुद इस तरह से नहीं बोल सकते, जो चाहे किसी से कितनी भी नफरत करें, कितनी भी नाराजगी रखें और उसे कितनी भी हेय दृष्टि से देखें, इन शब्दों को शायद नहीं बोल सकते, और जो ये शब्द कहने वाले लोगों से घृणा करते हैं—ऐसे लोगों में अभी भी शर्म-हया बची है और उनकी मानवता का एक सच्चा पक्ष है। मगर जो लोग अक्सर ये शब्द बोलते हैं, जो अक्सर अपने मामलों को सँभालने और अपने आचरण के लिए इन शब्दों को सर्वोच्च सिद्धांत मानते हैं, वे निस्संदेह ऐसे मसीह-विरोधी हैं जो शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं। कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मुझे नहीं पता था कि ये शब्द अच्छे हैं या बुरे। जब मैं छोटा था, तब मैंने इनका इस्तेमाल किया था, मगर बाद में जब मैं थोड़ा बड़ा और थोड़ा परिपक्व हुआ तो मैंने इन्हें बोलना बंद कर दिया।” क्या ये मसीह-विरोधी हैं? वे मसीह-विरोधी नहीं हैं। जब लोग छोटे और नासमझ होते हैं, जब वे पहली बार समाज और आम जनता का सामना करते हैं तो वे इन शब्दों को अच्छे शब्द, चरित्रवान शब्द मानते हैं। वे बहुत ही छोटे और अपरिपक्व होते हैं। जब वे थोड़े बड़े होते हैं और अच्छे-बुरे में भेद करने में सक्षम हो जाते हैं, अच्छे और बुरे लोगों में फर्क कर पाते हैं, तब वे ये शब्द नहीं बोलते। ऐसे लोगों में अभी भी थोड़ी अंतरात्मा और तार्किकता होती है। यह थोड़ी-सी अंतरात्मा और तार्किकता कहाँ से आती है? यह उनके अच्छे और बुरे में फर्क करने की क्षमता से आती है, यह जानने से आती है कि क्या सच है और क्या झूठ, क्या सही है और क्या गलत, यह उनके अपने काम करने, बोलने, मामलों को सँभालने और आचरण करने के तरीकों में विकल्प और सीमाएँ होने से आती है। यह उनके शैतान न होने, बुरे लोग न होने, जानवर न होने, मानकों और सिद्धांतों के अनुसार आचरण करने और ईमानदार होने से आती है।
मसीह-विरोधियों को उजागर करने से, उनके “बुद्धिमान शब्द,” उनके जीवन के आदर्श वाक्य और उनकी अक्सर कही जाने वाली बातें, सभी प्रकट हो जाती हैं। जैसे-जैसे ये प्रकट होती हैं, उनका प्रकृति सार भी सामने आता है, जिससे दूसरे लोग इसे और अधिक स्पष्टता से देख पाते हैं। अगर ये चीजें उजागर नहीं होतीं और लोग कभी-कभार या अक्सर सुनी जाने वाली इन बातों को सामान्य शब्द मान लेते हैं और उनके बारे में कोई समझ नहीं रखते तो वे उन्हें निरूपित नहीं कर पाएँगे। अगर तुम उन्हें निरूपित नहीं कर सकते तो सत्य के बारे में तुम्हारी समझ या सही-गलत के बारे में तुम्हारे ज्ञान का क्या फायदा? क्या ये तुम्हारे रुख को प्रभावित कर सकते हैं? क्या ये तुम्हारे दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते।) तब तुम यह पहचानने में असमर्थ हो जाते हो कि भ्रष्टता का सामान्य प्रकाशन क्या है और मसीह-विरोधी के सार की अभिव्यक्ति क्या है। जब तुम इन सभी सारों को स्पष्ट रूप से पहचान सकोगे, उन्हें सटीक रूप से निरूपित और वर्गीकृत कर सकोगे और सकारात्मक और नकारात्मक, सामान्य और असामान्य की विभिन्न अभिव्यक्तियों, प्रकाशनों, स्वभावों और सार को स्पष्ट रूप से पहचान सकोगे, तभी तुम लोगों और चीजों को अधिक सटीक रूप से पहचान पाओगे। वरना तुम एक मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति को गलती से साधारण भ्रष्टता या सामान्य प्रकाशन समझ लोगे और कभी-कभी भ्रष्टता के कुछ साधारण प्रकाशनों को गलती से मसीह-विरोधी के सार की अभिव्यक्तियाँ समझ लोगे। क्या यह भ्रमित करने वाली बात नहीं है? मान लो कि तुम एक अगुआ हो और तुम्हारी जिम्मेदारी के दायरे में मसीह-विरोधी आते हैं। अगर तुम उन्हें रहने देते हो और उन साधारण भाई-बहनों को निकाल देते हो जिन्होंने भ्रष्टता प्रकट की है तो क्या यह गलती नहीं है? (बिल्कुल है।) इसीलिए इन विस्तृत और विशिष्ट अंतरों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।
जब मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट का सामना करते हैं तो उनकी अभिव्यक्तियाँ उससे कहीं ज्यादा आगे तक जाती हैं जिनके बारे में हमने अभी चर्चा की। वे बस कुछ अप्रिय बातें नहीं बोलेंगे या थोड़े नाराज ही नहीं होंगे। वे और भी चीजें करेंगे और उससे भी ज्यादा अप्रिय शब्द कहेंगे। इसके अलावा, वे कुछ और भी बुरी चीजें करेंगे, ऐसी चीजें जो परमेश्वर के घर के कार्य को गंभीर रूप से बाधित करती हैं और सामान्य कलीसियाई जीवन को बाधित करती हैं। अब इस बात पर संगति करने की कोशिश करो कि मसीह-विरोधी उन कुछ वाक्यों को बोलने के अलावा और क्या कर सकते हैं, जिससे लोगों को स्पष्ट रूप से यह देखने और भेद पहचानने में मदद मिले कि वे मसीह-विरोधी हैं, उनके कर्म और आचरण मसीह-विरोधी वाले हैं और उनका स्वभाव मसीह-विरोधी जैसा है। इस तरह, इससे पहले कि वे और बड़ी बाधा डालें, भाई-बहन इन मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हैं और उन्हें पहचान सकते हैं। इस तरह, एक ओर भाई-बहन अपने जीवन प्रवेश को और ज्यादा नुकसान पहुँचाने से बच सकते हैं तो दूसरी ओर ये मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के कार्य में जो बाधाएँ डालते हैं और गड़बड़ी पैदा करते हैं उसे रोका जा सकता है। क्या इस समस्या को बाद में पता लगाने, हल करने, रोकने और सुधारने के बजाय पहले ही यह सब कर लेना बेहतर नहीं है? (हाँ, है।) तो फिर आगे बढ़ो और संगति करो। (जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे सत्य नहीं स्वीकारते और लोगों की कटु आलोचना करने के लिए कुछ शब्द कहते हैं। उन्हें चाहे कोई भी सलाह दे, अगर यह उनके रुतबे या गौरव को प्रभावित करती है तो मसीह-विरोधी कलीसिया में उस व्यक्ति की आलोचना करेंगे और अपने रुतबे और गौरव की रक्षा करने के लिए सत्य को तोड़-मरोड़ भी देंगे।) क्या कोई और कुछ कहना चाहेगा? (मैं एक बार एक बुरे व्यक्ति से मिली थी जिसने यह धमकी दी कि जो भी उसे नुकसान पहुँचाएगा, वह उसे बरबाद कर देगा। उस समय हम सत्य को नहीं समझते थे और भेद नहीं पहचान पाते थे। हम उससे डरते थे। वह अपना कर्तव्य निभाते समय मनमाने ढंग से और लापरवाही से काम करता था और जब हमने उसके काम में कुछ समस्याएँ देखीं और उसकी रिपोर्ट करनी चाही तो उसने रोड़े अटकाकर हमें उसकी रिपोर्ट नहीं करने दी। हमारे पास सत्य नहीं था, इसलिए उस समय हमने बहस करने की हिम्मत नहीं की, न ही हमने तुरंत उसकी रिपोर्ट की, जिससे आखिरकार कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान हुआ। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हममें मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने की क्षमता नहीं थी। जब उसने बाद में कई और कुकर्म किए तो उसे निष्कासित कर दिया गया।) इस मामले में तुम लोग अपनी गवाही में दृढ़ रहने या परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में असफल रहे, और तुमने परमेश्वर के घर के कार्य का नुकसान होने दिया। इसके लिए तुम लोग ही जिम्मेदार हो। अब ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति को निष्कासित किया जाना सही था और उसके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ था। अगर भविष्य में इस तरह के व्यक्ति से तुम्हारा दोबारा सामना हो, तो क्या तुम लोग उसका भेद पहचान पाओगे? (परमेश्वर की संगति से मैं मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने के बारे में सत्य के इस पहलू को लेकर थोड़ा स्पष्ट महसूस करता हूँ।)
परमेश्वर का घर मसीह-विरोधियों को निष्कासित क्यों करना चाहता है? क्या उन्हें यहीं रहने देने और सेवा करने की अनुमति देना सही होगा? क्या उन्हें पश्चात्ताप का मौका देना सही होगा? (नहीं, यह सही नहीं होगा।) क्या उनके सत्य का अनुसरण करने की कोई संभावना है? (मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण नहीं कर सकते।) अब तुम्हें पता चल गया है कि मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं, जो शैतान के हैं और पश्चात्ताप नहीं कर सकते, इसीलिए उन्हें निष्कासित किया जाता है। किसी को भी हल्के में निष्कासित नहीं किया जाता। परमेश्वर का घर बार-बार धैर्य से काम लेता है, बार-बार उन्हें पश्चात्ताप करने के मौके देता है और उन्हें थोड़ी छूट भी देता है ताकि अच्छे लोगों पर गलत इल्जाम न लगे और किसी को भी हल्के में निष्कासित या तबाह न किया जाए। परमेश्वर में इतने सालों से विश्वास करना उनके लिए कोई आसान बात नहीं है; परमेश्वर का घर सभी के प्रति तब तक सहनशील होता है जब तक उनकी असलियत पूरी तरह से सामने नहीं आ जाती, जब तक वे पूरी तरह से बेनकाब नहीं हो जाते। मगर क्या मसीह-विरोधी पश्चात्ताप कर सकते हैं? वे पश्चात्ताप नहीं कर सकते। परमेश्वर के घर में वे शैतान के सेवकों की भूमिका निभाते हैं जो परमेश्वर के घर के काम को नष्ट करते हैं, उसमें गड़बड़ी और बाधा पैदा करते हैं। भले ही उनके पास कुछ गुण और प्रतिभा हों, मगर वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं कर सकते या सही मार्ग पर नहीं चल सकते। भले ही मसीह-विरोधियों के पास कुछ उपयोगी पहलू हों, मगर वे परमेश्वर के घर में परमेश्वर के कार्य में बिल्कुल भी सकारात्मक योगदान नहीं देंगे। वे परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा करने और उसे कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करते, वे अच्छे काम नहीं करते। तुमने उन्हें परखने के लिए रुके रहने दिया और पश्चात्ताप करने का मौका दिया, मगर वे पश्चात्ताप करने में असमर्थ रहे। अंत में जो समाधान अपनाया गया वह उन्हें निष्कासित करने का ही था। उन्हें निष्कासित करने से पहले ही तुम यह असलियत जान चुके थे कि इस तरह का व्यक्ति मसीह-विरोधी है जो पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेगा और वह परमेश्वर और सत्य का विरोधी है। नतीजतन, उसे निष्कासित कर दिया गया। अगर वह अच्छा व्यक्ति होता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? अगर वह सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप कर पाता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? ज्यादा से ज्यादा उसे उसके कर्तव्य से बर्खास्त कर आध्यात्मिक भक्ति और चिंतन में लगने के लिए भेज दिया जाता, मगर उसे निष्कासित नहीं किया जाता। एक बार जब परमेश्वर का घर किसी को निष्कासित करने का फैसला कर लेता है तो इसका मतलब है कि अगर उसे परमेश्वर के घर में रहने दिया जाए तो वह एक अभिशाप बन जाएगा। ऐसे लोग अच्छे काम नहीं करेंगे, वे सिर्फ गड़बड़ी और बाधा पैदा करेंगे और तमाम तरह की बुरी चीजें करेंगे। वे जिस भी कलीसिया में होंगे उसमें उनके द्वारा इतनी बाधाएँ लाई जाएँगी कि वह रेत की तरह बिखर जाएगी, उसका काम रुक जाएगा, ज्यादातर लोग बहुत निराश महसूस करेंगे और परमेश्वर में अपनी आस्था खो देंगे और कुछ लोग तो अपनी आस्था छोड़ना भी चाहेंगे और अपने कर्तव्य निभाना जारी नहीं रख पाएँगे। इसका क्या कारण है? यह मसीह-विरोधी की विघ्न-बाधाओं के कारण होता है। मसीह-विरोधी से निपटा जाना चाहिए, उसे हटाया जाना चाहिए और निष्कासित किया जाना चाहिए ताकि इस कलीसिया के लिए कोई उम्मीद बाकी रहे, कलीसिया का जीवन सामान्य हो सके और परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग पर प्रवेश कर सकें। कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर प्रेम है, इसलिए हमें मसीह-विरोधी को भी पश्चात्ताप करने का मौका देना चाहिए।” ये शब्द सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं, मगर क्या सच में चीजें ऐसी ही हैं? ध्यान से देखो : जिन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को निष्कासित किया गया था, उनमें से कौन बाद में खुद को जान पाया और सत्य का अनुसरण कर उससे प्रेम कर पाया? किन लोगों ने पश्चात्ताप किया? उनमें से किसी ने भी पश्चात्ताप नहीं किया और उन सबने अड़ियल बनकर अपने पाप कबूलने से इनकार कर दिया और तुम चाहे उन्हें कितने भी साल बाद फिर से देखो, वे अभी भी ऐसे ही होंगे, अभी भी उन चीजों से चिपके होंगे जो पहले हुई थीं और उन्हें नहीं छोड़ेंगे, वे बस खुद को सही ठहराने और अपनी बात समझाने की कोशिश में लगे रहेंगे। उनका स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला है। अगर तुम उन्हें वापस अपनाकर फिर से कलीसियाई जीवन शुरू करने देते हो और कोई कर्तव्य निभाने देते हो तो वे अभी भी कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा पैदा करेंगे। ठीक पौलुस की तरह, वे अपनी बड़ाई करते और खुद की गवाही देते हुए वही पुरानी गलतियाँ दोहराएँगे। वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर बिल्कुल भी नहीं चल सकते और वे अपने पुराने मार्ग, मसीह-विरोधी के मार्ग और पौलुस के मार्ग पर चलेंगे। मसीह-विरोधियों को निष्कासित करने का यही आधार है।
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