मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग आठ) खंड एक

II. मसीह-विरोधियों के हित

घ. उनकी संभावनाएँ और नियति

आओ सबसे पहले यह देखें कि हमने पिछली सभा में किस विषय पर संगति की थी। (पिछली बार परमेश्वर ने इस बात की दूसरी मद पर संगति की थी कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति से कैसे पेश आते हैं—मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य को कैसे लेते हैं। अपने कर्तव्य के प्रति मसीह-विरोधी तीन तरह का रवैया रखते हैं। पहला, परमेश्वर मानवजाति का पोषण और अगुआई करता रहा है, इसलिए परमेश्वर के सामने एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना पूरी तरह से उचित, स्वाभाविक और न्यायोचित है और मानवजाति के बीच सबसे सही और सुंदर बात भी है, मगर मसीह-विरोधी इसे एक तरह का लेन-देन मानते हुए अपने कर्तव्य के बदले अच्छी संभावनाओं और अच्छी मंजिल का सौदा करना चाहते हैं। दूसरा, परमेश्वर अपना कार्य करते समय बहुत-से सत्य व्यक्त करता है; मगर मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते, वे इन्हें कुछ ऐसा नहीं मानते जो मानवजाति के पास होने चाहिए, जिनका उन्हें अनुसरण करना चाहिए, स्वीकारना चाहिए और बचाए जाने के लिए उनमें प्रवेश करना चाहिए, बल्कि इसके उलट वे संभावनाओं, मंजिल, प्रतिष्ठा और रुतबे को सत्य मानते हैं और ऐसी चीजें मानते हैं जो उन्हें हासिल करनी और कायम रखनी चाहिए। तीसरा, परमेश्वर मानवजाति को प्रबंधित करने और बचाने के लिए कार्य करता है, लेकिन मसीह-विरोधियों के परिप्रेक्ष्य से यह बस एक लेन-देन और खेल है; उनका मानना है कि लोग केवल कड़ी मेहनत और लेन-देन के जरिये ही स्वर्ग के राज्य के आशीष पा सकते हैं। परमेश्वर द्वारा लोगों से अपना कर्तव्य निभाने की अपेक्षा करने के सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये को देखें तो उनका स्वभाव दुष्ट है।) कोई इसमें कुछ और जोड़ना चाहेगा? (मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभाने को आशीष पाने का एकमात्र तरीका मानते हैं। एक बार जब आशीष पाने की उनकी इच्छा धराशायी हो जाती है तो वे तुरंत अपने कर्तव्य को छोड़ सकते हैं या यहाँ तक कि परमेश्वर को भी छोड़ सकते हैं। आशीष पाने की इच्छा धराशायी होने पर मसीह-विरोधियों का यही रवैया होता है।) (मसीह-विरोधी वास्तव में पश्चात्ताप नहीं करते हैं। जब उन्हें गड़बड़ी और बाधा पैदा करने या बुरे कर्म करने के कारण बर्खास्त या निष्कासित कर दिया जाता है और परमेश्वर का घर उन्हें अपना कर्तव्य निभाने का एक और मौका देता है तो वे आभार नहीं जताते। इसके बजाय, वे यह कहते हुए शिकायत और आलोचना करते हैं, “जब तुम्हें मेरी जरूरत होती है तो तुम मुझे वापस बुला लेते हो, मगर जब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं होती तो मुझे धक्के मारकर निकाल देते हो।” इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधी कभी पश्चात्ताप नहीं करेंगे।) संक्षेप में कहें तो मसीह-विरोधी अपने कर्तव्यों के प्रति और परमेश्वर के वचनों के प्रति अपने व्यवहार में जो सार प्रकट करते हैं, वे मूल रूप से एक जैसे हैं; वे इन विभिन्न चीजों के साथ अपने व्यवहार में एक जैसे ही स्वभाव और सार प्रकट करते हैं। पिछली बार हमने मूल रूप से उन सभी सारों पर संगति की थी जो मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य के प्रति व्यवहार में प्रकट करते हैं। पहली मद, वे विश्वास नहीं करते और यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर का वचन सत्य है; दूसरी मद, भले ही तुम उनके साथ परमेश्वर के वचन पर संगति करो और वे सत्य को समझ सकें, वे इसे स्वीकार नहीं करते; तीसरी मद, वे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने से इनकार करते हैं; चौथी मद, वे कभी भी सच्चा पश्चात्ताप नहीं करते। क्या ये उनकी अभिव्यक्तियों के सार नहीं हैं? (हाँ।) क्या तुम लोगों ने इन चार मदों का सारांश तैयार किया? (नहीं।) तुम लोगों ने जिन चीजों के बारे में बात की, उनमें से ज्यादातर वे अभिव्यक्तियाँ थीं जिन पर हमने पिछली बार संगति की थी, मगर तुम अभी भी इसकी असलियत नहीं जान पाए हो कि इन अभिव्यक्तियों के पीछे कौन-से सार छिपे हैं। मसीह-विरोधी सत्य और परमेश्वर के सामने जो सार प्रकट करते हैं, वे हमेशा उन्हें मानने, स्वीकारने, उनके प्रति समर्पण या पश्चात्ताप करने से इनकार करने के होते हैं। चूँकि मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचन और अपने कर्तव्य से इसी तरह पेश आते हैं तो वे अपनी काट-छाँट से कैसे पेश आते हैं? ऐसी और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ हैं जो लोगों को यह देखने में सक्षम बनाती हैं कि उनमें ऊपर बताए गए सार मौजूद हैं और यह पुष्टि करती हैं कि वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के दुश्मन और सत्य के शत्रु हैं? इसी तीसरी मद पर हम आज संगति करेंगे : मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने से कैसे पेश आते हैं। यह मद इस विषय का तीसरा उप-विषय है कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति से कैसे पेश आते हैं। देखो, हरेक सत्य पर संगति करने के लिए ऐसी विशिष्ट संगति और विशिष्ट खोज और चिंतन-मनन की आवश्यकता होती है। अगर मैं सिर्फ मोटे तौर पर बात करूँगा तो तुम हरेक सत्य की वास्तविकताओं को अधिक विशिष्ट तरीके से समझने में असमर्थ रहोगे। अच्छा तो हम उस विषयवस्तु की और समीक्षा नहीं करेंगे जिस पर हमने पिछली बार संगति की थी। इस बार हम तीसरी मद पर औपचारिक रूप से संगति करेंगे।

3. मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने से कैसे पेश आते हैं

काट-छाँट ऐसी चीज है जिसका अनुभव परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति को करना पड़ सकता है। खासकर कोई कर्तव्य निभाने के दौरान जैसे-जैसे काट-छाँट होने का अनुभव बढ़ता है, ज्यादातर लोग काट-छाँट किए जाने के अर्थ के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूक होने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी काट-छाँट होने के बहुत सारे फायदे हैं और वे अपनी काट-छाँट से सही तरीके से पेश आने में अधिक से अधिक सक्षम होते जाते हैं। बेशक, जब तक लोग कोई कर्तव्य निभा सकते हैं, वे चाहे जो भी कर्तव्य निभाएँ, हर व्यक्ति को काटे-छाँटे जाने का मौका मिलेगा। सामान्य लोग अपनी काट-छाँट से सही तरीके से पेश आ सकते हैं। एक ओर, वे अपनी काट-छाँट किए जाने को परमेश्वर के प्रति समर्पण वाले दिल से स्वीकार सकते हैं तो वहीं दूसरी ओर, वे यह भी विचार कर सकते हैं और जान सकते हैं कि उन्हें क्या समस्याएँ हैं। सत्य का अनुसरण करने वाले लोग अपनी काट-छाँट किए जाने से जैसे पेश आते हैं, यह उसका एक आम रवैया और परिप्रेक्ष्य है। तो क्या मसीह-विरोधी भी अपनी काट-छाँट किए जाने से इसी तरह पेश आते हैं? बिल्कुल नहीं। जब अपनी काट-छाँट से पेश आने की बात आती है तो मसीह-विरोधियों और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों का रवैया निश्चित रूप से अलग-अलग होगा। पहली बात तो यह है कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट का मसला आता है तो वे इसे स्वीकार नहीं कर पाते। और इसे स्वीकार न कर पाने के अपने कारण हैं। मुख्य कारण यह है कि जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उन्हें लगता है कि उनकी इज्जत चली गई है, उनकी प्रतिष्ठा, रुतबा और उनकी गरिमा छिन गई है और अब वे सबके सामने अपने सिर उठाकर नहीं चल सकेंगे। इन बातों का उनके दिलों पर असर पड़ता है, इसलिए उन्हें अपनी काट-छाँट स्वीकारना मुश्किल लगता है और उन्हें लगता है कि जो भी उनकी काट-छाँट करता है वह उनसे द्वेष रखता है और उनका शत्रु है। काट-छाँट होने पर मसीह-विरोधियों की यही मानसिकता रहती है। यह बिल्कुल पक्की बात है। दरअसल, काट-छाँट किए जाने के वक्त ही यह बात खुलकर उजागर होती है कि कोई व्यक्ति सत्य को स्वीकार सकता है कि नहीं और कोई व्यक्ति सचमुच समर्पण कर सकता है या नहीं। मसीह-विरोधियों का काट-छाँट के प्रति इतना अधिक प्रतिरोध करना यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि वे सत्य से विमुख होते हैं और वे इसे रत्तीभर भी स्वीकार नहीं करते। तो सारी समस्या की जड़ यही है। उनका गर्व इस मसले की जड़ नहीं है; सत्य को स्वीकार न करना ही इस समस्या का सार है। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो मसीह-विरोधी चाहते हैं कि यह सब मीठे स्वर और नर्म रवैये के साथ किया जाए। अगर ऐसा करने वाले का स्वर गंभीर है और रवैया सख्त है तो मसीह-विरोधी इसका प्रतिरोध और अवहेलना करेगा और शर्म से क्रोधित हो जाएगा। मसीह-विरोधी इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते कि उनमें जो उजागर हुआ है क्या वह सही है या क्या वह एक तथ्य है, न ही वे अपनी गलती या सत्य को स्वीकारने के प्रश्न पर चिंतन करते हैं। वे सिर्फ यह सोचते हैं कि क्या उनके दंभ और गर्व पर वार हुआ है। मसीह-विरोधी यह एहसास करने में पूरी तरह अक्षम होते हैं कि काट-छाँट लोगों के लिए मददगार होती है, लोगों को प्रेम और उद्धार देने वाले और उन्हें लाभ पहुँचाने वाली होती है। वे इतना भी नहीं समझ पाते। क्या उनमें भले-बुरे की पहचान और तर्कसंगतता का अभाव नहीं है? तो काट-छाँट किए जाने का सामना करते हुए मसीह-विरोधी कैसा स्वभाव प्रकट करते हैं? निस्संदेह, यह सत्य से विमुख होने और साथ ही अहंकार और अड़ियलपन वाला स्वभाव है। इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य से विमुख होना और उससे नफरत करना है। इसलिए, मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा अपनी काट-छाँट से डरते हैं; जैसे ही उनकी काट-छाँट की जाती है, उनकी बदसूरत दशा पूरी तरह उजागर हो जाती है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे ऐसी कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कौन-सी बातें कह या कर सकते हैं जिससे दूसरे लोग स्पष्ट रूप से यह देख सकें कि मसीह-विरोधी तो मसीह-विरोधी ही हैं, वे एक औसत भ्रष्ट व्यक्ति से अलग हैं और उनका प्रकृति सार उन लोगों से अलग है जो सत्य का अनुसरण करते हैं? मैं कुछ उदाहरण दूँगा और तुम लोग इनके बारे में सोचकर इनमें कुछ जोड़ सकते हो। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे सबसे पहले हिसाब लगाते हैं और सोचते हैं : “किस तरह का व्यक्ति मेरी काट-छाँट कर रहा है? वह क्या कहना चाह रहा है? उसे इस बारे में कैसे पता है? उसने मेरी काट-छाँट क्यों की? क्या वह मुझसे घृणा करता है? क्या वह मेरी किसी बात से नाराज है? क्या वह मुझसे इसलिए बदला ले रहा है कि मेरे पास कुछ अच्छा है जो मैंने उसे नहीं दिया और वह इस मौके का फायदा उठाकर मुझे ब्लैकमेल कर रहा है?” अपने अपराधों, पिछले कुकर्मों और अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों पर विचार करने और उन्हें जानने के बजाय वे अपनी काट-छाँट के मामले में कोई सुराग ढूँढ़ना चाहते हैं। उन्हें दाल में कुछ काला नजर आता है। अपनी काट-छाँट से वे इसी तरह पेश आते हैं। क्या यहाँ कोई सच्ची स्वीकृति है? क्या कोई सच्चा ज्ञान या चिंतन है? (नहीं।) अधिकांश लोगों की काट-छाँट होने का कारण उनका भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करना हो सकता है। अज्ञानता के कारण कुछ गलत कर परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात कर बैठना भी इसका कारण हो सकता है। एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि उनके कर्तव्य में अनमने होने से परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान हो गया हो। सबसे घृणित तो यह है कि लोग बिना किसी रोक-टोक के अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं, सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी और बाधा पैदा करते हैं। लोगों की काट-छाँट किए जाने के ये प्राथमिक कारण हैं। चाहे जिस किसी परिस्थिति के कारण किसी व्यक्ति की काट-छाँट की जाए, इसके प्रति सबसे महत्वपूर्ण रवैया क्या होना चाहिए? पहले तो तुम्हें काट-छाँट को स्वीकार करना चाहिए। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारी काट-छाँट कौन कर रहा है, इसका कारण क्या है, चाहे वह कठोर लगे, लहजा और शब्द कैसे भी हों, तुम्हें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। फिर तुम्हें यह पहचानना चाहिए कि तुमने क्या गलत किया है, तुमने कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया है और क्या तुमने सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया है। सबसे पहले तुम्हारा रवैया यही होना चाहिए। क्या मसीह-विरोधियों का रवैया ऐसा होता है? नहीं; शुरू से अंत तक, उनका रवैया प्रतिरोध और नफरत का होता है। क्या ऐसे रवैये के साथ, वे परमेश्वर के सामने शांत हो सकते हैं और नम्रता से काट-छाँट स्वीकार कर सकते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। तो फिर वे क्या करेंगे? सबसे पहले तो वे लोगों से सहानुभूति और माफी पाने की आशा में जोरदार बहस करेंगे और बहाने बनाएँगे, अपनी गलतियों और उजागर किए गए भ्रष्ट स्वभावों का बचाव करेंगे, उसके पक्ष में बहस करेंगे ताकि उन्हें कोई जिम्मेदारी न लेनी पड़े या उन वचनों को स्वीकार न करना पड़े जो उनकी काट-छाँट करते हैं। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उनका क्या रवैया होता है? “मैंने पाप नहीं किया है। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। अगर मुझसे कोई भूल हुई है तो उसका कारण था; अगर मैंने कोई गलती की है तो मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया तो मुझे इसकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है। थोड़ी-बहुत गलतियाँ कौन नहीं करता?” वे इन कथनों और वाक्यांशों को पकड़ लेते हैं, लेकिन वे सत्य नहीं खोजते, न तो वे अपनी गलतियों को स्वीकारते हैं और न ही अपने प्रकट किए हुए भ्रष्ट स्वभावों को स्वीकारते हैं—और बुराई करने में उनका जो इरादा और मकसद होता है, उसे तो निश्चित रूप से नहीं स्वीकारते। उनकी गलतियाँ चाहे कितनी ही स्पष्ट क्यों न हों या चाहे उन्होंने कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न किया हो, वे इन चीजों को पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं। उन्हें न तो जरा-सा भी दुख होता है और न ही ग्लानि होती है, और उनकी अंतरात्मा उन्हें बिल्कुल भी नहीं धिक्कारती है। बल्कि, वे पूरी ताकत से खुद को सही ठहराते हैं और यह सोचकर शब्दों की जंग छेड़ देते हैं, “सभी के पास खुद को सही ठहराने वाला दृष्टिकोण होता है। सबके अपने कारण होते हैं; मुख्य यह है कि कौन ज्यादा अच्छी बातें करता है। यदि मैं अधिकतर लोगों तक अपना औचित्य और स्पष्टीकरण पहुँचा सकूँ तो जीत मेरी होगी और तुम जिन सत्यों की बात करते हो, वे सत्य नहीं हैं और तुम्हारे तथ्य भी मान्य नहीं हैं। तुम मेरी निंदा करना चाहते हो? बिल्कुल नहीं कर सकते!” जब किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है तो वह पूरे मन और आत्मा की गहराई और दृढ़ता से प्रतिरोध करता है, उससे नफरत करता है और उसे नकार देता है। उसका रवैया कुछ ऐसा होता है, “तुम जो चाहे कहना चाहो, चाहे तुम कितने भी सही हो, मैं इस बात को न तो मानूँगा और न ही स्वीकार करूँगा। मेरी कोई गलती नहीं है।” तथ्य किसी भी प्रकार से उनके भ्रष्ट स्वभाव को बाहर ले आएँ, वे उसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि अपना बचाव और प्रतिरोध करते रहते हैं। दूसरे लोग कुछ भी कहें, वे उसे स्वीकारते या मानते नहीं, बल्कि सोचते हैं, “देखते हैं कौन किसको बातों में हरा सकता है; देखते हैं कौन बेहतर वक्ता है।” यह उस रवैये का एक प्रकार है, जिससे मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट के साथ पेश आते हैं।

कोई व्यक्ति सत्य स्वीकार सकता है या नहीं, यह तब पता चलता है जब उसकी काट-छाँट की जाती है। मसीह-विरोधी शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते समय बहुत स्पष्ट होते हैं, मगर जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे प्रतिरोध, बहस और अवहेलना करते रहते हैं और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे उन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों में से एक को भी अभ्यास में नहीं ला पाते जिनके बारे में वे अक्सर बोलते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मसीह-विरोधी सार रूप से सत्य से विमुख होते हैं। मसीह-विरोधियों का स्वभाव चरम रूप से क्रूर और अहंकारी होता है। सत्य और तथ्यों के सामने उनका रवैया हमेशा अड़ियल, प्रतिरोधी और बैर-भाव वाला होता है। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए जितना हो सके खुद को सही ठहराने और स्पष्टीकरण देने के अलावा मसीह-विरोधियों का यह दृढ़ विश्वास होता है : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं। परमेश्वर धार्मिक है और चाहे वह व्यक्ति कैसे भी मेरी काट-छाँट करे, वह मेरी नियति तय नहीं कर सकता। मैं सत्य स्वीकार नहीं करता पर इसमें वो क्या कर लेगा?” वे दिल से अवज्ञाकारी हैं, “धरती पर कोई व्यक्ति जो कुछ कहता है चाहे वह कितना भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हो, वह सत्य नहीं है, केवल स्वर्ग के परमेश्वर द्वारा सीधे तौर पर बोले गए कथन ही सत्य हैं; धरती पर कोई व्यक्ति चाहे कैसे भी लोगों का न्याय करे, उन्हें ताड़ना दे और उनकी काट-छाँट करे, वह धार्मिक नहीं है, केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही धार्मिक है।” वे क्या जताना चाहते हैं? “धरती के परमेश्वर की बातें चाहे कितनी भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हों, वे सत्य नहीं हैं। केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही सत्य है, स्वर्ग का परमेश्वर ही सबसे महान है। भले ही धरती का परमेश्वर भी सत्य व्यक्त कर सकता है, मगर उसकी तुलना स्वर्ग के परमेश्वर से नहीं की जा सकती।” क्या उनका यही मतलब नहीं है? (हाँ है।) “मैं स्वर्ग के परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, धरती के परमेश्वर पर नहीं। तुम्हारी यानी इस साधारण व्यक्ति की बातें चाहे कितनी भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हों, तुम फिर भी स्वर्ग के परमेश्वर नहीं हो। स्वर्ग का परमेश्वर हर चीज पर संप्रभुता रखता है। स्वर्ग का परमेश्वर मेरी नियति निर्धारित करता है। धरती का परमेश्वर मेरी नियति निर्धारित नहीं कर सकता। धरती के परमेश्वर की कही बातें चाहे कितनी भी सत्य के अनुरूप क्यों न हों, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा। मैं केवल स्वर्ग के परमेश्वर को स्वीकारता हूँ और उसके प्रति समर्पण करता हूँ। स्वर्ग का परमेश्वर मेरे साथ जैसा भी व्यवहार करे, मैं उसके प्रति समर्पण करूँगा।” अपनी काट-छाँट के समय मसीह-विरोधी यही शब्द प्रकट करते हैं। ये सभी शब्द उनके दिल से निकलते हैं। उनके ये दिल से निकले शब्द पूरी तरह से उनके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके प्रकृति सार को प्रकट करते हैं जो सत्य से विमुख है और सत्य से नफरत करता है। जब मसीह-विरोधी ये शब्द प्रकट करते हैं तो उनका असली चेहरा पूरी तरह सामने आ जाता है। यह कहा जा सकता है कि जो कोई भी इन शब्दों को कह सकता है वह एक पक्का मसीह-विरोधी और एक असली राक्षस और शैतान है। कुछ मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाते समय नहीं झुकने वाला रवैया प्रदर्शित करते हैं, जो न तो खुशामदी होता है और न ही अहंकारी। वे सत्य को या फिर अपनी काट-छाँट को स्वीकार नहीं करते हैं, न ही वे वास्तव में खुद को जानते हैं। इसके बजाय, वे अपने छद्म-विश्वासी सार को पूरी तरह से उजागर करते हुए अपने उस दृढ़-विश्वास में लौट जाते हैं और इसका उपयोग अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और उपस्थिति बोध का बचाव करने के लिए करते हैं। वे सभी को नकारने और हराने के लिए और साथ ही सत्य को और धरती के परमेश्वर को नकारने के लिए “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं और परमेश्वर धार्मिक है” जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। साथ ही, वे इन शब्दों का उपयोग अपने पापों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को छिपाने और टालने के लिए और अपने भ्रष्ट स्वभावों और अपने प्रकृति सार को छिपाने के लिए करते हैं। मसीह-विरोधी अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए और खुद को सांत्वना देने और बचाने के लिए भी अपने दृढ़-विश्वास और अपने सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। वे खुद को कैसे सांत्वना देते हैं? वे सोचते हैं, “कोई बात नहीं, धरती का यह व्यक्ति जो कहता है उसका कोई महत्व नहीं है। उसकी कही बातें चाहे कितनी भी उचित क्यों न हों, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा। अगर मैं उन्हें स्वीकार नहीं करता तो वह जो कुछ भी कहता है वह तथ्य नहीं होगा और सत्य के अनुरूप नहीं होगा। इसलिए मुझे अपनी गलतियों, कुकर्मों या अपराधों के लिए जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है, मैं बस अपनी मनमर्जी कर सकता हूँ, छाती चौड़ी करके घूम सकता हूँ और अपने तरीके से काम कर सकता हूँ, जैसा कि मैं पहले भी करता था।” तो मसीह-विरोधी बिना किसी आशंका के और बेशर्मों की तरह अपने मार्ग पर चलते रहते हैं और अंत तक आशीष पाने की अपनी इच्छा और इरादे पर कायम रहते हैं। यही मसीह-विरोधियों का असली चेहरा है।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तब वे बेनकाब होते हैं। यही वह समय है जब उनका प्रकृति सार उजागर होने की पूरी संभावना रहती है। पहली बात : क्या वे अपने बुरे कर्मों को स्वीकार सकते हैं? दूसरी बात : क्या वे आत्मचिंतन कर स्वयं को जान सकते हैं? तीसरी बात : जब उनकी काट-छाँट होती है तो क्या वे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकते हैं? इन तीन बातों से मसीह-विरोधी का प्रकृति सार देखा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति काट-छाँट किए जाते समय समर्पण और आत्मचिंतन कर अपनी भ्रष्टता के खुलासों और भ्रष्ट सार को जान सकता है तो ऐसा व्यक्ति सत्य स्वीकार कर सकता है। वह मसीह-विरोधी नहीं है। मसीह-विरोधी में ये तीन चीजें नहीं होती हैं। मसीह-विरोधी इसके बजाय कुछ और ही करने लगता है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती—यानी जब उसकी काट-छाँट की जाती है तो वह निराधार प्रत्यारोप लगाने लगता है। वह अपने गलत कामों और भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकारने के बजाय उसी व्यक्ति की निंदा करने लगता है जो उसकी काट-छाँट करता है। वह ऐसा कैसे करता है? वह कहता है, “जरूरी नहीं कि सारी काट-छाँट सही हो। काट-छाँट का मतलब मनुष्य की निंदा और मनुष्य का न्याय करना है; यह परमेश्वर की ओर से नहीं किया जाता। मात्र परमेश्वर धार्मिक है। जो कोई दूसरों की निंदा करे, उसकी निंदा की जानी चाहिए।” क्या यह निराधार प्रत्यारोप नहीं है? जो इस तरह के निराधार प्रत्यारोप लगाता है, वह किस तरह का व्यक्ति होता है? ऐसा तो कोई विवेकशून्य, नासमझ, तंग करने वाला व्यक्ति ही कर सकता है, राक्षस और शैतान की किस्म का इंसान ही कर सकता है। अंतरात्मा और विवेक वाला व्यक्ति ऐसा कभी नहीं करेगा। जो लोग अपनी काट-छाँट के समय निराधार प्रत्यारोप लगाते हैं वे बुरे लोग ही होंगे। वे सभी शैतान हैं। जब मसीह-विरोधी निराधार प्रत्यारोप लगाते हैं तो वे अक्सर क्या कहते हैं? “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और परमेश्वर धार्मिक है! मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं! यह जरूरी नहीं कि सभी प्रकार की काट-छाँट सही हो। अगर परमेश्वर मेरी काट-छाँट करता है तो मैं इसे स्वीकारूँगा, लेकिन अगर लोग मेरी काट-छाँट करेंगे तो मैं उसे स्वीकार नहीं करूँगा!” मसीह-विरोधी सबसे पहले यही कहेंगे, “परमेश्वर धार्मिक है!” तुम सुन सकते हो कि उनके लहजे में दुर्भावनापूर्ण मानसिकता होती है। दूसरी बात जो वे कहते हैं, वह है “मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं!” क्या तुम लोगों ने ये दोनों कथन कहीं सुने हैं? (हाँ।) क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा कहा है? (नहीं।) ज्यादातर लोग ये दोनों कथन कहने की हिम्मत नहीं करते। ऐसा सिर्फ तभी होता है जब उनके साथ कुछ ऐसा होता है जो उन्हें सकारात्मक लगता है और जिसे उन्हें स्वीकारना चाहिए, वे कहते हैं : “परमेश्वर वास्तव में धार्मिक है, मेरी काट-छाँट और मुझे अनुशासित किया जाना सही था।” वे इसे सकारात्मक तरीके से स्वीकारते हैं और तब इन शब्दों का इस्तेमाल अपने हितों की रक्षा करने या खुद को सही ठहराने और स्पष्टीकरण देने के लिए बिल्कुल भी नहीं करते। वे सच में अपने दिल की गहराइयों से इन शब्दों और इस तथ्य को स्वीकारते हैं। मसीह-विरोधियों का रवैया अलग होता है। अपनी काट-छाँट किए जाने के संदर्भ में, वे इस तरह के लहजे या इस तरह के इरादे का इस्तेमाल करके कह सकते हैं, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और परमेश्वर धार्मिक है! मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं!” इसका क्या मतलब है? क्या वे सत्य को स्वीकारने वाले लोग हैं? निश्चित रूप से नहीं। वे इस बात से इनकार करते हैं कि काट-छाँट किया जाना परमेश्वर से आता है और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत होता है। इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार न कर पाना पूरी तरह से यह साबित करता है कि मसीह-विरोधी हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार नहीं करते और न ही यह मानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। तो फिर वे कैसे स्वीकार सकते हैं कि परमेश्वर धार्मिक है? वे स्पष्ट रूप से इन शब्दों का उपयोग, जो पहली नजर में सही मालूम पड़ते हैं, दूसरों की निंदा करने के लिए, उन लोगों की निंदा करने के लिए करते हैं जो उनके अनुकूल नहीं हैं, जो उनकी काट-छाँट करते हैं और जो उनके भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करते हैं। क्या ये बुरे लोगों के क्रियाकलाप नहीं हैं? ये बुरे लोग हैं। बुरे लोग अहम क्षणों में परमेश्वर का विरोध और सत्य का विरोध करने के लिए सही शब्दों का उपयोग कर सकते हैं और साथ ही वे अपने हितों, अपनी खुद की छवि और अपनी इज्जत-प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए सही शब्दों का उपयोग कर सकते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? “दुष्‍ट मनुष्य कठोर मुख का होता है” (नीतिवचन 21:29)। यह वाक्य बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों पर सही बैठता है। मसीह-विरोधी इसी तरह के लोग हैं।

मसीह-विरोधी एक और बात कहते हैं : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं!” क्या यह वाक्य पहली नजर में गलत लगता है? (नहीं।) परमेश्वर में विश्वास रखना बेशक सही है—कोई किसी व्यक्ति में विश्वास नहीं रख सकता। ये शब्द इतने अच्छे और सही हैं, इनमें कुछ भी गलत नहीं है। दुर्भाग्य से, इस वाक्य का अर्थ तब बदल जाता है जब यह एक मसीह-विरोधी के मुँह से निकलता है। अर्थ में यह बदलाव क्या दर्शाता है? यह कि मसीह-विरोधी खुद को मुसीबत से बाहर निकालने और अपना स्पष्टीकरण देने के लिए सही शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इन शब्दों को बोलने के पीछे उनका इरादा क्या है? ये शब्द बोलने के पीछे उनका क्या कारण है? यह उनके सार के किन पहलुओं को साबित करता है? (सत्य को स्वीकार न करना, सत्य से नफरत करना।) सही कहा, वे सत्य को स्वीकार नहीं करते। तो वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, मगर क्या वे सबके सामने ऐसा कहेंगे, “मैं इसे स्वीकार नहीं करता; भले ही तुमने जो कहा वह सही हो, मैं इसे स्वीकार नहीं करता”? अगर वे ऐसा कहेंगे तो लोग उनका भेद पहचानने में सक्षम हो जाएँगे और हर कोई उन्हें ठुकरा देगा और वे अपने पाँव जमाए रखने में असमर्थ होंगे, इसलिए वे ऐसा नहीं कह सकते। वे अपने दिलों में इन बातों को स्पष्ट रूप से समझते हैं। यहीं पर मसीह-विरोधियों की धोखेबाजी और दुष्टता निहित है। वे सोचते हैं, “अगर मैं खुलेआम तुम्हारा प्रतिरोध करता हूँ, खुलेआम तुम्हारे खिलाफ आवाज उठाता हूँ और तुम्हारा विरोध करता हूँ तो तुम कहोगे कि मैं सत्य को स्वीकार नहीं करता। मैं तुम्हें यह नहीं देखने दूँगा कि मैं सत्य को स्वीकार नहीं करता। मैं इस मामले को सुलझाने और खुद को बचाने के दूसरे तरीके अपनाऊँगा।” इसलिए, वे कहते हैं : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं।” चाहे वे परमेश्वर में विश्वास रखें या किसी व्यक्ति में, हम यहाँ इस बात का गहन-विश्लेषण कर रहे हैं कि क्या मसीह-विरोधी सत्य को स्वीकार करते हैं। क्या वे ऐसा कहकर अवधारणाओं में घालमेल नहीं कर रहे हैं? वे अवधारणाओं में घालमेल कर रहे हैं और लोगों की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को यह देखने से रोकने के लिए कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे कहते हैं कि वे परमेश्वर को और सत्य को स्वीकारते हैं, परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और यह मानते हैं कि परमेश्वर सत्य है और चूँकि परमेश्वर सत्य है, इसलिए परमेश्वर कोई व्यक्ति नहीं बन सकता और अगर वह व्यक्ति बन जाता है तो उसके पास सत्य नहीं है और वह व्यक्ति परमेश्वर नहीं है। इस आधार पर देखें तो क्या वे पहले ही मसीह-विरोधी के रूप में बेनकाब नहीं हो चुके हैं? वे यह स्वीकार ही नहीं करते कि परमेश्वर मसीह और एक साधारण व्यक्ति बन सकता है। वे सोचते हैं कि केवल स्वर्ग का परमेश्वर, केवल वह परमेश्वर जो अदृश्य और अमूर्त है और जिसकी मनुष्य अपने मन से कल्पना और उपयोग करता है, परमेश्वर है। क्या इस दृष्टिकोण और पौलुस के दृष्टिकोण के बीच समानताएँ हैं? (हाँ।) धरती के मसीह के प्रति पौलुस का कैसा रवैया था? क्या उसने उस पर विश्वास किया? क्या उसने उसे स्वीकार किया? (नहीं।) पौलुस ने कहा : “मसीह जीवित परमेश्वर का पुत्र है और हम भी जीवित परमेश्वर के पुत्र हैं। इसका मतलब हम सभी मसीह के भाई-बहन हैं और वरिष्ठता के मामले में हम सभी बराबर हैं। हम जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं वह स्वर्ग में है। धरती पर कोई परमेश्वर नहीं है। इसलिए यह गलतफहमी मत पालो कि धरती पर मौजूद यह व्यक्ति मसीह है, वह परमेश्वर का पुत्र है। वह परमेश्वर के समान नहीं है। वह स्वर्ग के परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, मनुष्य उसे सत्य नहीं मान सकता और न ही मनुष्य को उसका अनुसरण करने की जरूरत है।” हम मसीह-विरोधियों द्वारा कहे जाने वाले इन शब्दों से क्या गहन-विश्लेषण कर सकते हैं कि “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं”? पौलुस की तरह वे भी केवल स्वर्ग के अज्ञात परमेश्वर को मानते हैं और यह नहीं मानते कि मसीह ही परमेश्वर है। दूसरे शब्दों में, वे इस तथ्य को नहीं मानते हैं कि परमेश्वर देहधारण करके एक साधारण व्यक्ति बन गया है—इस बिंदु पर मसीह-विरोधी बिल्कुल पौलुस जैसे ही हैं। उनके कहने का मतलब है : “अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो तो परमेश्वर में विश्वास रखो, किसी व्यक्ति में नहीं। किसी व्यक्ति में विश्वास रखना बेकार है, तुम किसी व्यक्ति में विश्वास रखकर आशीष नहीं पा सकते। परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए तुम्हें स्वर्ग के परमेश्वर, अदृश्य परमेश्वर में विश्वास रखना होगा। स्वर्ग का परमेश्वर इतना महान और इतना सर्वशक्तिमान है, पृथ्वी का परमेश्वर भला क्या कर सकता है? वह तो बस कुछ सत्य व्यक्त कर सकता है और कुछ सही शब्द बोल सकता है।” अगर हम इन शब्दों के आधार पर उनके सार का गहन-विश्लेषण करें और उन्हें परखें तो वे मसीह का प्रतिरोध कर रहे हैं, मसीह को अभिस्वीकृत नहीं कर रहे हैं और इस तथ्य को नकार रहे हैं कि परमेश्वर देह बन गया है। वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी हैं।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब वे असफलताओं का सामना करते हैं और जब कोई उन्हें उजागर करता है तो वे अपना बचाव करने, दूसरे व्यक्ति द्वारा उजागर किए जाने से बचने के लिए और दूसरे व्यक्ति द्वारा अपनी काट-छाँट से इनकार करने के लिए “परमेश्वर धार्मिक है” वाक्यांश का उपयोग करते हैं। चाहे कुछ भी हो, जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उनका प्राथमिक रवैया अवज्ञा, प्रतिरोध और अस्वीकृति का होता है, वे अपने लिए स्पष्टीकरण देने और अपना बचाव करने की भरसक कोशिश करते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं : “समय सब कुछ प्रकट कर देगा। परमेश्वर धार्मिक है। एक दिन परमेश्वर इसे मेरे लिए प्रकट करे!” भ्रष्ट लोग होने के कारण वे अपना कर्तव्य निभाने के दौरान परमेश्वर के घर के कार्य को चाहे कितना भी बड़ा नुकसान क्यों न पहुँचाएँ, वे इसकी परवाह नहीं करते या इस पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। अगर यह तथ्य उजागर होता है, तब भी वे यह स्वीकार नहीं करते कि ये नुकसान उनके कारण हुए हैं और वे जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते। अंत में वे अभी भी यही चाहते हैं कि परमेश्वर उनके लिए इसे प्रकट करे, मानो परमेश्वर उनकी सेवा करने के लिए है और जब वे गलतियाँ करें तो परमेश्वर को उनका बचाव करना चाहिए, मानो वह उस तरह का परमेश्वर है। वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे अपनी काट-छाँट को स्वीकार नहीं सकते और न ही वे खुद को जानने में सक्षम हैं, मगर इतना ही नहीं—वे परमेश्वर से कहते हैं कि वह उनके पक्ष में स्पष्टीकरण और औचित्य दे। क्या यह शर्मनाक नहीं है? यह बहुत शर्मनाक है! मसीह-विरोधी बेहद शर्मनाक हैं और वे बेहद दुष्ट भी हैं। यह एक पहलू है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे अक्सर कौन से दो कथन बोलते हैं? (“मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं!” “परमेश्वर धार्मिक है!”) ये दो कथन इस्तेमाल करना उनकी आदत है। वे किसी अन्य प्रकार का झूठा तर्क नहीं दे सकते, वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं करते। वे इन दो सही कथनों का उपयोग लोगों को गुमराह करने के लिए, अपनी ओर से अनुचित तर्क देने के लिए, किसी गलत बात को सही ठहराने की कोशिश करने के लिए, किसी दुष्ट चीज को उचित बताने के लिए, अपनी गलतियों और अपने द्वारा किए गए नुकसानों को सही ठहराने के लिए करते हैं। वे इन दो कथनों का उपयोग सभी चीजों को एक झटके में खारिज करने के लिए, उन्हें पूरी तरह से मिटा देने के लिए और यह दिखावा करने के लिए करना चाहते हैं कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है और वे हमेशा की तरह विश्वास रखना जारी रखते हैं। क्या मसीह-विरोधियों की इस अभिव्यक्ति में पश्चात्ताप का भाव है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) न केवल वे पश्चात्ताप नहीं करते, बल्कि वे मसीह-विरोधियों का एक और पहलू भी प्रकट करते हैं—सत्य से विमुख होना, अहंकार, दुष्टता और क्रूरता। उनका अहंकार इस तथ्य में प्रकट होता है कि वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो भी उनकी काट-छाँट कर रहे होते हैं, यह सोचकर कि, “तुम बस एक इंसान हो, मैं तुमसे नहीं डरता!” क्या यह अहंकार नहीं है? (है।) उनकी दुष्टता किस तरह से प्रकट होती है? (निराधार प्रत्यारोप लगाने से।) निराधार प्रत्यारोप लगाना एक पहलू है और दूसरा पहलू अपने लिए स्पष्टीकरण देने, खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए सही शब्दों का उपयोग करना है। इसके भीतर और कौन-सा स्वभाव निहित है? निराधार प्रत्यारोप लगाना भी क्रूरता है। मसीह-विरोधी यह नहीं मानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। अगर कोई उनके इस सार को उजागर करता है, तब भी वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते कि वे सत्य को नहीं मानते हैं। वे आत्मचिंतन कर खुद को पहचानने की कोशिश नहीं करते; इसके बजाय, वे निराधार प्रत्यारोप लगाते हैं और दूसरों की निंदा करने के लिए सही और अच्छे लगने वाले शब्दों का उपयोग करते हैं। दूसरों की निंदा करने के लिए वे जिन तरीकों और कहावतों का उपयोग करते हैं, वे कपटी और दुष्ट दोनों होते हैं। वे जानते हैं कि दूसरों की निंदा करने और उन्हें चुप कराने के लिए किन शब्दों का उपयोग करना है, ताकि दूसरे लोग यह न जान सकें कि आगे क्या कहना है और उनके साथ कुछ न कर सकें। यह दुष्टता है। उनका यह तरीका और अभ्यास पूरी तरह से क्रूर स्वभाव है। ये मसीह-विरोधियों के कुछ स्वभाव हैं जिनका हम मसीह-विरोधियों की काट-छाँट के विषय से गहन-विश्लेषण कर सकते हैं। क्या मसीह-विरोधियों के ये स्वभाव और प्रकाशन उन चार मदों से मेल नहीं खाते हैं जिनके बारे में हमने पहले बात की थी? (मेल खाते हैं।) वे चार मद कौन-सी हैं? (पहली मद, विश्वास नहीं करना और यह स्वीकारने से इनकार करना है कि परमेश्वर का वचन सत्य है; दूसरी मद यह है कि भले ही तुम उनके साथ परमेश्वर के वचन पर संगति करो और वे सत्य को समझ सकें, वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं; तीसरी मद परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने से इनकार करना है; चौथी मद कभी भी सच्चा पश्चात्ताप नहीं करना है।) विश्वास नहीं करना, स्वीकारने से इनकार करना, समर्पण नहीं करना और पश्चात्ताप नहीं करना, ये “चार नकार” मसीह-विरोधियों के सार का प्रतिनिधित्व करते हैं। मसीह-विरोधी कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे और वे कभी भी तथ्यों के सामने अपने सिर नहीं झुकाएँगे। यह अड़ियल बनकर पश्चात्ताप नहीं करना और कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधियों की प्रकृति से निकलता है। यह इस बात की पहली अभिव्यक्ति है कि मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट से कैसे पेश आते हैं। भले ही मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार एक जैसा होता है, मगर उनके मुँह से निकलने वाली मशहूर कहावतें और महान आदर्श वाक्य निश्चित रूप से एक जैसे नहीं होते हैं। कभी-कभी मसीह-विरोधी ऐसा कह सकते हैं और कभी-कभी मसीह-विरोधी वैसा कह सकते हैं, मगर उनके मुँह से चाहे जो भी बात निकले, उनकी विशेषताएँ और सार एक जैसे होंगे—उनके शब्दों का सार सत्य को स्वीकार न करने का है। अगर वे सत्य को स्वीकार नहीं करते तो फिर उनके ये शब्द क्या हैं? क्या ये सत्य के अनुरूप शब्द हैं? क्या ये इंसानी शब्द हैं या नैतिकता के अनुरूप शब्द हैं? क्या वे अंतरात्मा और विवेक के अनुरूप शब्द हैं? (वे शैतानी शब्द हैं।) सही कहा। उन्हें खोखले शब्द या भ्रमित शब्द कहना उन्हें सही तरह से पूरा निरूपित नहीं करता, मगर यह कहना कि वे शैतानी शब्द हैं, समस्या को स्पष्ट कर देता है।

The Bible verses found in this audio are from Hindi OV and the copyright to the Bible verses belongs to the Bible Society of India. With due legal permission, they are used in this production.

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें