मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग छह) खंड एक

II. मसीह-विरोधियों के हित

पिछली बार हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद के बारे में संगति की थी : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं। फिर हमने मसीह-विरोधियों के हितों को अनेक मदों में बाँटा। पहली मद है उनकी अपनी सुरक्षा, दूसरी मद है उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा और तीसरी मद है लाभ। इन लाभों में क्या शामिल है? (पहला है परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना, दूसरा है अपनी सेवा में और अपने लिए काम करवाने में भाई-बहनों का इस्तेमाल करना और तीसरा है परमेश्वर में विश्वास करने की आड़ में धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य जरूरी चीजें हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करना।) इन “अन्य चीजों” में विशेष व्यवहार, अपने निजी मामलों को सँभालना और कई ऐसी चीजें शामिल हैं, है ना? (हाँ।) क्या इस तरह से संगति करते हुए, मुख्य विषयों को उप-विषयों में बाँटते और उप-विषयों को संगति के लिए विभिन्न पहलुओं में बाँटते हुए तुम लोग उलझ जाते हो? (नहीं, ऐसा नहीं है।) वास्तव में, संगति जितनी ज्यादा इस तरह से की जाएगी, चीजें उतनी ही ज्यादा स्पष्ट होंगी। हमने मसीह-विरोधियों के हितों की तीन मदों पर संगति की है, मगर एक और हित है, जो सबसे महत्वपूर्ण है, मसीह-विरोधियों के हितों की चौथी मद—उनकी संभावनाएँ और नियति। संभावनाएँ और नियति शायद वे मुख्य उद्देश्य हैं जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे उनकी सबसे बड़ी आकांक्षाएँ हैं जिन्हें वे अपने दिलों में बसाए रखते हैं और वे सबसे प्रमुख चीजें हैं जिनका वे अपने अंतरतम में अनुसरण करते हैं। तुम संभावनाओं और नियति के विषय से काफी हद तक परिचित ही होगे। इसका संबंध इस बात से है कि लोगों की मंजिल क्या है, लोग कहाँ जाएँगे, या भविष्य में या अगले युग में लोग किस ओर जा रहे हैं—संक्षेप में, उनके भविष्य की मंजिल। क्या यह परमेश्वर के प्रत्येक विश्वासी के दिल में बसी सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण बात नहीं है? (है।) संभावनाएँ और नियति उन सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। और इसलिए, जाहिर है कि मसीह-विरोधियों के लिए, उनके हितों का सबसे अहम हिस्सा उनकी संभावनाएँ और नियति, यानी उनकी मंजिल ही होना चाहिए।

घ. उनकी संभावनाएँ और नियति

आओ, अब हम विभिन्न कोणों और पहलुओं से मसीह-विरोधियों के हितों से जुड़ी संभावनाओं और नियति पर भी संगति करें ताकि चीजें अपेक्षाकृत स्पष्ट हो जाएँ। मसीह-विरोधियों के विभिन्न हितों पर हमने पहले जो संगति की है उनमें भौतिक और अभौतिक दोनों तरह के हित शामिल हैं। उदाहरण के लिए, व्यक्ति की अपनी सुरक्षा, प्रतिष्ठा और रुतबा, ये सभी अभौतिक हित हैं; वे उनके आध्यात्मिक संसार में बस कुछ अमूर्त चीजें हैं। जबकि भौतिक हितों में संपत्तियाँ, भोजन और पेय पदार्थ और साथ ही विशेष व्यवहार, भौतिक सुख वगैरह शामिल हैं। तो, आज की संगति के विषय—उनकी संभावनाओं और नियति—में क्या-क्या शामिल है? अगर हम मानवीय धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से देखें तो ये चीजें मूर्त हैं या अमूर्त? (वे अमूर्त चीजें हैं।) इसलिए, वे ऐसी चीजें होंगी जो लोगों के आध्यात्मिक संसार में, उनकी धारणाओं और कल्पनाओं में और उनके मन में मौजूद हैं। लोगों के लिए, ये चीजें एक तरह की आशा और सहारा हैं और वे वही चीजें हैं जिनके पीछे भागते हुए वे अपना सारा जीवन लगा देते हैं। भले ही ये चीजें लोगों के लिए अदृश्य और अमूर्त हों, मगर वे लोगों के दिलों में एक प्रमुख स्थान रखती हैं, लोगों के पूरे जीवन पर हावी होती हैं और उनके विचारों और क्रियाकलापों, उनके इरादों और साथ ही उनके अनुसरण की दिशा को नियंत्रित करती हैं। इसलिए, संभावनाएँ और नियति सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं! हालाँकि संभावनाएँ और नियति महत्वपूर्ण हैं, मगर मसीह-विरोधी इस तरह से उनका अनुसरण करते हैं जो सामान्य, साधारण लोगों से पूरी तरह अलग होता है। वास्तव में यह कैसे अलग है? कौन-से पहलू यह अंतर दर्शाते हैं और लोगों को साफ तौर पर यह देखने और भेद पहचानने में सक्षम बनाते हैं कि यह मसीह-विरोधी के अनुसरण करने का तरीका और मसीह-विरोधी की विशेषता है? क्या यह चर्चा और संगति के योग्य नहीं है? बेशक, कई लोगों की अभिव्यक्तियाँ कई मायनों में पक्के मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के सार वाले लोगों की अभिव्यक्तियों के समान होती हैं। मगर उनकी अभिव्यक्तियाँ और स्वभाव एक जैसे होने पर भी उनके सार अलग होते हैं। आओ, हम विभिन्न पहलुओं से मसीह-विरोधियों के हितों की चौथी मद—उनकी संभावनाएँ और नियति—पर संगति करें।

हम संभावनाओं और नियति का गहन-विश्लेषण कैसे कर सकते हैं? हम किस तरीके से और किन उदाहरणों का उपयोग करके यह गहन-विश्लेषण कर सकते हैं कि मसीह-विरोधियों के हितों में शामिल संभावनाएँ और नियति सत्य के अनुरूप नहीं हैं और वे मसीह-विरोधियों के सार के खुलासे हैं? किन पहलुओं से उनका गहन-विश्लेषण किया जा सकता है? इसके लिए सावधानीपूर्वक छानबीन करने की आवश्यकता है। आओ, हम इसे कई व्यापक श्रेणियों में बाँट देते हैं ताकि लोग मसीह-विरोधियों के सार को अधिक सटीक और स्पष्ट तरीके से समझ सकें। पहली श्रेणी है मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं; दूसरी है मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य को कैसे लेते हैं; तीसरी है मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने से कैसे पेश आते हैं; चौथी है मसीह-विरोधी “सेवाकर्ता” की उपाधि से कैसे पेश आते हैं; और पाँचवीं है मसीह-विरोधी कलीसिया में अपने रुतबे को कैसे लेते हैं। ये पाँच श्रेणियाँ क्यों हैं? इसे समझने की कोशिश करो। क्या तुम लोग इनमें से प्रत्येक के बारे में थोड़ा-बहुत समझ सकते हो? क्या तुम कुछ ऐसी अभिव्यक्तियों या स्वभावों का पता लगा सकते हो जो मसीह-विरोधियों से संबंधित हैं? इन पाँच श्रेणियों के आधार पर वास्तव में क्या गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए? इन श्रेणियों के संबंध में, मसीह-विरोधियों की मुख्य विशेषताएँ और उनके द्वारा प्रदर्शित प्रमुख स्वभाव क्या हैं और सत्य का अनुसरण करने वाले सामान्य लोगों और साधारण भ्रष्ट लोगों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? मसीह-विरोधियों और सामान्य भ्रष्ट लोगों के बीच क्या अंतर हैं? ये अंतर कहाँ हैं? उनके द्वारा चुने गए मार्गों में क्या अंतर है? उनकी अभिव्यक्तियों में क्या अंतर है? क्या तुम लोगों को इन श्रेणियों की कुछ समझ है? (इन पाँच श्रेणियों में, मसीह-विरोधी मुख्य रूप से परमेश्वर के वचनों में मौजूद सत्य के आधार पर चीजों को नहीं देखते। वे हमेशा कुछ चीजों के सतही स्वरूप या अपनी स्थिति का उपयोग करके परमेश्वर के इरादों का अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर अनुमान लगाते हैं ताकि यह देख सकें कि क्या उनके पास कोई संभावनाएँ और नियति हैं। उदाहरण के लिए, जब उनके कर्तव्य की बात आती है, अगर वे सुर्खियों में आकर अपनी इच्छाएँ, अपना घमंड और अभिमान संतुष्ट कर सकते हैं तो उन्हें लगेगा कि वे परमेश्वर के घर में उपयोगी लोग हैं और मानो उनके पास संभावनाएँ और नियति हों। जैसे ही उनकी काट-छाँट की जाएगी, वे सोचेंगे कि परमेश्वर उनसे नाराज है, परमेश्वर उनसे असंतुष्ट है और वे परमेश्वर में विश्वास को लेकर हताश और निराश हो जाएँगे और उनके भीतर नकारात्मकता और विरोध पैदा होगा।) यह सारांश कुछ रोशनी देता है और इस मामले में सत्य के बारे में थोड़ी जानकारी देता है। तुम लोगों ने जो कुछ कहा है उसके सामान्य अर्थ को देखें तो तुम्हें शायद इन पाँच श्रेणियों की बुनियादी समझ है। आगे, हम उन सभी पर एक-एक करके संगति करेंगे।

1. मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं

पहली श्रेणी है मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं। मसीह-विरोधी भी उन लोगों में से हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं; उनके हाथों में भी परमेश्वर के वचन होते हैं, वे धर्मोपदेश सुनते हैं, सभाओं में हिस्सा लेते हैं और सामान्य आध्यात्मिक जीवन जीते हैं। मसीह-विरोधियों के लिए, परमेश्वर के वचन पढ़ना भी उनके जीवन का एक हिस्सा है और वे अक्सर ऐसा करते हैं। भले ही मसीह-विरोधी और सत्य का अनुसरण करने वाले, दोनों ही तरह के लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं मगर मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों से अलग होते हैं; परमेश्वर के वचनों के प्रति उनका रवैया पूरी तरह से अलग होता है। तो, मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं? सबसे पहले, वे परमेश्वर के वचनों पर शोध और विश्लेषण करते हैं, एक अजीब परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण से उनका अध्ययन करते हैं। मैं इसे “अध्ययन करना” क्यों कहता हूँ? इस वस्तुनिष्ठ स्थिति के आधार पर, मसीह-विरोधियों को यह मानना पड़ता है कि ये परमेश्वर के वचन हैं और वे अपने दिलों में यह भी महसूस करते हैं कि परमेश्वर के वचन इतने ऊँचे हैं कि साधारण लोग उन्हें व्यक्त ही नहीं कर सकते और न ही ये वचन कहीं और मिल सकते हैं। इस आधार पर, उनके पास यह मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता कि ये परमेश्वर के वचन हैं, मगर क्या वे परमेश्वर के वचनों को सत्य के रूप में स्वीकारते हैं? वे ऐसा नहीं करते। तो फिर मसीह-विरोधी अभी भी परमेश्वर के वचन क्यों पढ़ते हैं? क्योंकि, परमेश्वर के वचनों में ऐसी चीजें हैं जिनकी उन्हें जरूरत है, ऐसी चीजें जिन्हें वे जानना चाहते हैं और ऐसी चीजें हैं जो उन्हें उनके आध्यात्मिक संसारों में टिकाए रखती हैं। ये चीजें क्या हैं? बेशक, वे मसीह-विरोधियों की संभावनाओं और नियति से निकटता से जुड़ी हुई हैं। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हैं तो वे लगातार मंजिलों, परिणामों, भविष्य में लोग कहाँ होंगे वगैरह से संबंधित वचनों की तलाश में रहते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों का परमेश्वर के वचन पढ़ना “अध्ययन करना” कहलाता है, वे परमेश्वर के वचन पढ़ते समय उन पर शोध, विश्लेषण और आलोचनाएँ कर रहे होते हैं। वे पढ़ते समय उसके वचनों पर शोध करते हैं : “परमेश्वर के लहजे से, ऐसा प्रतीत होता है कि उसे इस तरह के लोग पसंद नहीं हैं। मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं उनमें से एक हूँ? मुझे पता लगाना चाहिए कि परमेश्वर इन लोगों को क्या मंजिल देता है।” जब वे परमेश्वर को ऐसे लोगों को अथाह कुंड में धकेलने की बात करते हुए देखते हैं तो मन-ही-मन सोचते हैं, “यह अच्छा नहीं है। अथाह कुंड में फेंके जाने का मतलब तो यही है ना कि मैं गया काम से, है ना? इस तरह के लोगों के पास कोई संभावना और कोई अच्छी मंजिल नहीं होती, तो फिर मुझे क्या करना चाहिए?” वे अपने दिलों में थोड़ी पीड़ा, असहजता और बेचैनी महसूस करते हैं। “क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के साथ इसी तरह पेश आता है? नहीं, मैं हार नहीं मान सकता।” इसके साथ, वे परमेश्वर के वचनों की खोज करना जारी रखते हैं। जब वे परमेश्वर के वचनों को यह कहते हुए देखते हैं, “मेरे पुत्रों, मैं तुम लोगों के लिए यह काम करूँगा, वह काम करूँगा और तुम लोगों के साथ ऐसा होगा और वैसा होगा” तो उन्हें बुरा लगना बंद हो जाता है। “परमेश्वर के वचन मेरे दिल को गर्मजोशी से भर देते हैं, वे अद्भुत हैं। मैं उन ‘पुत्रों’ में से एक हूँ जिनके बारे में परमेश्वर बात करता है।” फिर, वे परमेश्वर के वचन में “पहलौठे पुत्रों” और “राजाओं जैसे शासन करने” का उल्लेख देखते हैं और सोचते हैं, “बहुत बढ़िया! परमेश्वर में विश्वास करने के कई लाभ हैं और इनमें एक उज्ज्वल भविष्य है। मैंने सही मार्ग चुना है। मैंने सही दाँव लगाया है। मुझे अपने विश्वास में मेहनती होना चाहिए और परमेश्वर का चोगा थामे रहना चाहिए। मुझे आखिरी क्षण में भी हार नहीं माननी चाहिए!” जैसे-जैसे वे पढ़ते जाते हैं, वे देखते हैं कि परमेश्वर के वचनों में उल्लेख है, “वह जो अंत तक अनुसरण करता है, उसे निश्चित ही बचाया जाएगा।” मसीह-विरोधियों के लिए इसे पढ़ना जीवन रेखा को पकड़े रहने जैसा है। “मैं इन वचनों के अनुसार अभ्यास करूँगा। कभी भी और कहीं भी हो और चाहे कुछ भी हो जाए, भले ही समुद्र सूख जाएँ और चट्टानें धूल में बदल जाएँ, भले ही नीले समुद्र हरे-भरे मैदान में बदल जाएँ, ये वचन नहीं बदलेंगे। भले ही स्वर्ग और पृथ्वी मिट जाएँ, ये वचन नहीं बदलेंगे। जब तक मैं इन वचनों का पालन करता रहूँगा, क्या मुझे अच्छा परिणाम, अच्छी मंजिल नहीं मिलेगी? क्या मेरी संभावनाएँ और नियति तय नहीं हो जाएँगी? बहुत बढ़िया! मुझे अंत तक अनुसरण करना चाहिए!” बार-बार खोज करके, इस तरह से शोध और विश्लेषण करके, वे आखिरकार परमेश्वर के वचनों में एक जीवन रेखा पाते हैं और सबसे बड़ा “रहस्य” खोज लेते हैं। वे खुशी से फूले नहीं समाते हैं, “आखिरकार, मुझे हटाए जाने की चिंता नहीं करनी होगी, आग और गंधक की झील में जाने की चिंता नहीं करनी होगी, नरक जाने की चिंता नहीं करनी होगी। आखिर मुझे मेरी मंजिल मिल ही गई और आखिर मुझे स्वर्ग का मार्ग, मानवजाति की सुंदर मंजिल मिल ही गई—कितनी बढ़िया बात है!” मगर यह लंबे समय तक नहीं टिकता और जब वे परमेश्वर के वचनों का अध्याय “गंतव्य के बारे में” पढ़ते हैं तो वे सोचते हैं : “ये वचन गंतव्यों के बारे में क्या कहते हैं? ऐसा लगता है कि परमेश्वर विभिन्न प्रकार के लोगों के गंतव्यों के बारे में बहुत विशिष्ट रूप से बात नहीं करता। परमेश्वर आखिर कहना क्या चाहता है? मुझे क्या करना चाहिए? मुझे चिंता नहीं करनी चाहिए, मुझे पढ़ते रहना चाहिए।” फिर, जब वे परमेश्वर को यह कहते देखते हैं “अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो,” तो वे इसके बारे में थोड़ा और सोचते हैं। “अगर मैं एक अच्छी मंजिल पाना चाहता हूँ तो मुझे पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करने की जरूरत है। अब जब परमेश्वर ने शर्तें तय कर दी हैं तो इससे चीजें आसान हो गई हैं। मुझे निरर्थक प्रयासों में लगे रहने और व्यर्थ में मेहनत करने की कोई जरूरत नहीं है—अब मैं जानता हूँ कि मुझे कहाँ प्रयास करना है।” संगति के द्वारा मसीह-विरोधी यह सीखते हैं कि अच्छे कर्म क्या हैं, वे एक “मार्ग” और समाधान पाते हैं। “अभी पता चला कि यह इतना सरल है। दान और भेंट देना अच्छे कर्म हैं। सुसमाचार फैलाना और अधिक लोगों को प्राप्त करना अच्छे कर्म हैं। भाई-बहनों का सहयोग करना एक अच्छा कर्म है। जो चीजें मुझे मूल्यवान लगती हैं उन्हें त्याग देना एक अच्छा कर्म है। अपनी मंजिल के लिए, मैं सब कुछ दाँव पर लगा दूँगा; मैं ये सब चीजें त्याग दूँगा!” मगर फिर वे सोचते हैं, “नहीं। अगर मैं अपना सारा पैसा और भौतिक संपत्ति त्याग दूँगा तो भविष्य में कैसे जिऊँगा? मुझे परमेश्वर के वचन पढ़ने चाहिए ताकि पहले यह पता चल सके कि उसका कार्य कब समाप्त होगा और कब लोगों को पृथ्वी पर अपने जीवन में इन चीजों की जरूरत नहीं होगी। मुझे जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। लेकिन अगर मैं ये चीजें अर्पित नहीं करता तो मैं अच्छे कर्म कैसे तैयार कर सकूँगा? कुछ भाई-बहनों की मेजबानी करना और लोगों को प्राप्त करने के लिए सुसमाचार फैलाना आसान काम है। मैं ये चीजें हासिल कर सकता हूँ।” अच्छे कर्म तैयार करते समय, वे अपने दिलों में लगातार हिसाब लगाते रहते हैं कि उन्होंने कितने अच्छे कर्म तैयार किए हैं और उनकी अच्छी मंजिल तक पहुँचने की कितनी संभावना है। “मैंने इतने सारे अच्छे कर्म तैयार किए हैं, मगर परमेश्वर मुझे कोई स्पष्ट उत्तर क्यों नहीं देता? परमेश्वर का कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है तो मुझे क्या करना चाहिए? नहीं, मुझे देखना होगा कि संभावनाओं और नियति के बारे में परमेश्वर के वचन और क्या कहते हैं, उनमें और क्या विशिष्ट व्याख्याएँ हैं।” वे बार-बार परमेश्वर के वचनों की खोज करते रहते हैं। अगर उन्हें कुछ ऐसा मिलता है जिससे उनकी संभावनाओं और नियति को लाभ होता है तो वे खुश होते हैं; अगर उन्हें कुछ ऐसा मिल जाता है जिसका उनकी संभावनाओं और नियति से टकराव होता है तो उन्हें दुख होता है। इस तरह, बरसों तक परमेश्वर के वचन पढ़ने के दौरान, वे बार-बार परमेश्वर के वचनों के कारण नकारात्मक और कमजोर महसूस करते हैं और साथ ही बार-बार उसके वचनों के कारण सकारात्मक, खुश और बेहद आनंदित भी महसूस करते हैं। हालाँकि, चाहे उनमें कैसी भी दशाएँ या भावनाएँ उत्पन्न हों, वे अपनी मंजिल, संभावनाओं और नियति के प्रति अपने जुनून से नहीं बच सकते और वे विभिन्न प्रकार के लोगों के परिणामों के निर्धारण और उनसे संबंधित कथनों के लिए परमेश्वर के वचनों की खोज जारी रखते हैं। संक्षेप में, वे अपना हर संभव प्रयास परमेश्वर के वचनों में झोंक देते हैं। चाहे वे परमेश्वर के वचन कैसे भी पढ़ें, वे यह नहीं जानते कि परमेश्वर के वचनों में सत्य, मार्ग और जीवन है। वे केवल इतना जानते हैं कि परमेश्वर के वचनों में, वे अपनी मंजिल, मानवजाति की मंजिल पा सकते हैं और नरक में जाने और अपनी मंजिल खोने से बचने का रास्ता पा सकते हैं। तो, इस तरह से कई सालों तक परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, उन्होंने क्या हासिल किया है? वे बहुत-से सही धर्म-सिद्धांतों और आध्यात्मिक सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हैं, मगर वे परमेश्वर के वचनों को परमेश्वर का विरोध करने, उसके खिलाफ विद्रोह करने, सत्य का अभ्यास नहीं करने और सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करने के अपने सार से बिल्कुल भी नहीं जोड़ सकते।

मसीह-विरोधी परमेश्वर के रहस्योद्घाटनों के लिए अक्सर उसके वचनों पर शोध और खोज करते हैं। वे नए शब्दों, नई चीजों और नए कथनों के लिए भी उसके वचनों पर खोज करते हैं, यहाँ तक कि वे कुछ ऐसे रहस्यों की खोज भी करते हैं जो किसी भी व्यक्ति, चाहे वह आध्यात्मिक हो या नहीं, के लिए अज्ञात हैं, जैसे कि अंजीर क्या है, 144,000 नर बच्चों का क्या अर्थ है और विजेता क्या है, साथ ही प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के कुछ कथनों और शब्दों की खोज भी करते हैं जिनके बारे में लोगों ने इतने सालों तक बिना समझे शोध किया है। वे इन चीजों पर विशेष रूप से कड़ी मेहनत करते हैं, वे लगातार यह खोज और शोध करते रहते हैं कि क्या इन वचनों में लोगों की मंजिलों के बारे में कोई कथन हैं और क्या लोगों की मंजिलों के बारे में कोई स्पष्ट व्याख्याएँ हैं। लेकिन चाहे वे कितनी भी मेहनत करते दिखें, उनके प्रयास हमेशा व्यर्थ होते हैं। इसलिए, जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और कलीसिया में बहती धारा के साथ चलते हैं, वे हमेशा अपने दिलों की गहराई में बेचैनी महसूस करते हैं। वे अक्सर खुद से पूछते हैं : “क्या मैं आशीष प्राप्त कर सकता हूँ? मेरी संभावनाएँ और नियति क्या हैं? क्या परमेश्वर के राज्य में मेरे लिए कोई स्थान होगा? जब मेरी मंजिल आएगी तो क्या मैं नीले आकाश को टकटकी लगाए देख रहा होऊँगा या ऐसी अंधेरी दुनिया में रहूँगा जहाँ अपना हाथ भी नहीं देख सकता? आखिर मेरी मंजिल क्या है?” वे जिस तरह अपने दिलों में खुद से ऐसे सवाल करते जाते हैं, उसी तरह वे अपने दिलों की गहराई में परमेश्वर से भी चुपचाप सवाल करते रहते हैं : “क्या मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य हूँ? क्या मैं नरक जाने से बच सकता हूँ? क्या मैं इस तरह से अनुसरण करके स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ? क्या मुझे भविष्य में आशीष मिल सकते हैं? क्या मैं आने वाले संसार में प्रवेश करूँगा? परमेश्वर का रवैया क्या है? परमेश्वर मुझे इस मामले पर सटीक और विशिष्ट कथन क्यों नहीं देता ताकि मुझे मन की शांति मिल सके? आखिर मेरा परिणाम क्या है?” क्या यह वही नहीं है जो मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते समय, बहती धारा के साथ चलते समय और आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होने पर अपने दिलों की गहराई में सोचते हैं? यही वह रवैया है जो अपनी संभावनाओं और नियति के प्रति उनके दिलों की गहराई में रहता है : उनका मन लगातार इन चीजों से घिरा रहता है, वे बेतहाशा उन पर अपनी पकड़ बनाते हैं और उन्हें छोड़ने से इनकार करते हैं।

जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हैं तो उसमें कुछ ऐसा है जो उन्हें अपनी मंजिल खोजने और रहस्यों पर शोध करने से कहीं ज्यादा दिलचस्प लगता है; जैसे कि, देहधारी परमेश्वर पृथ्वी को छोड़कर कब जाएगा, कब वह अपनी सेवकाई समाप्त करेगा, कब उसका महान उद्यम पूरा होगा, कब उसका कार्य समाप्त होगा, कब उसका अनुसरण करने वाले लोग महान आशीष का आनंद लेंगे और उसके असली व्यक्तित्व को देखेंगे। वे परमेश्वर को पृथ्वी छोड़ते हुए देख पाएँगे या नहीं, यह भी उनकी सबसे बड़ी चिंता है। परमेश्वर की प्रबंधन योजना किस दिन सफलतापूर्वक पूरी होगी, इसके अलावा, वे इस बारे में ज्यादा चिंतित हैं कि मसीह पृथ्वी छोड़कर कब जाएगा, जब मसीह पृथ्वी छोड़ेगा तो यह कैसा दृश्य होगा, वे अभी कितने साल के हैं, क्या वे 10 या 20 साल बाद मसीह को पृथ्वी छोड़ते हुए देखने के लिए जिंदा रहेंगे, अगर वे इसे देख पाते हैं तो क्या होगा और अगर वे इसे नहीं देख पाते हैं तो क्या होगा; वे अपने मन में ऐसे हिसाब लगाते रहते हैं। कुछ लोग मन-ही-मन सोचते हैं, “मैं 60 साल का हो चुका हूँ। अगर मैं 10 साल बाद भी जिंदा रहा तो मैं मसीह को पृथ्वी छोड़ते हुए देख पाऊँगा, लेकिन 10 साल में जब परमेश्वर का कार्य समाप्त होगा और अगर मैं तब तक मर चुका होऊँगा तो परमेश्वर में मेरे विश्वास का क्या मतलब है? भले ही परमेश्वर ने मेरा इस युग में जन्म लेना निर्धारित किया है, अगर मैं परमेश्वर का अनुयायी होकर ऐसी महान और बड़ी घटना देखने का मौका गँवा देता हूँ तो मुझे धन्य व्यक्ति नहीं माना जा सकता और मुझे कोई महान आशीष नहीं मिले होंगे!” ऐसे विचार उनमें दुख और असंतोष पैदा करते हैं। वे किस हद तक असंतुष्ट हैं? “मैं पहले ही इतना बूढ़ा हो गया हूँ; परमेश्वर ने अभी तक पृथ्वी क्यों नहीं छोड़ी है? परमेश्वर का कार्य अभी तक क्यों समाप्त नहीं हुआ है? हम सुसमाचार का प्रचार करना कब समाप्त करेंगे? परमेश्वर का कार्य जल्दी से समाप्त हो, परमेश्वर का महान उद्यम जल्दी पूरा हो, विनाश तेजी से आएँ और परमेश्वर जल्दी से शैतान को नष्ट करे और बुरे लोगों को दंड दे!” वे क्या कर रहे हैं? क्या वे परमेश्वर से अपनी मनमर्जी से काम करवाने की उम्मीद में अपनी व्यक्तिगत इच्छा के आधार पर उससे माँगें नहीं कर रहे हैं? क्या उनकी इस इच्छा में उनके व्यक्तिगत हित शामिल नहीं हैं? अपने हितों के कारण, वे बेसब्री से यह आशा करते हैं कि परमेश्वर अपना महान उद्यम पूरा करे, विनाश तेजी से आएँ, परमेश्वर जल्दी से बुरे लोगों को दंड दे और अच्छे लोगों को इनाम दे और परमेश्वर अपनी महिमा प्राप्त करे। उनके दिलों में क्या मंशाएँ छिपी हैं? क्या वे परमेश्वर के इरादों पर विचार कर रहे हैं? (नहीं।) वे क्या कर रहे हैं? (वे आशीष पाने की आशा कर रहे हैं।) वे अपने हितों और मंजिलों की खातिर परमेश्वर की प्रबंधन योजना के कार्य को अपनी मंजिलों के इर्द-गिर्द घुमाना चाहते हैं। क्या यह नीचता और बेशर्मी नहीं है? सभी मामलों में, मसीह-विरोधी क्या सार प्रदर्शित करते हैं? वे अपने हितों को हर चीज से ऊपर रखते हैं और अपने हितों को सर्वोपरि होने देते हैं। यानी, वे किसी भी चीज को अपने हितों के रास्ते में नहीं आने देते, यहाँ तक कि परमेश्वर की प्रबंधन योजना को भी नहीं। परमेश्वर का कार्य कब समाप्त होगा, कब उसका महान उद्यम पूरा होगा, कब उसे महिमा मिलेगी और कब वह मानवजाति को नष्ट कर देगा, यह सब उनके हितों और उनकी मंजिलों के इर्द-गिर्द घूमना चाहिए, यह सब उनकी मंजिलों से जुड़ा होना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो वे परमेश्वर को नकार देंगे, उसमें अपना विश्वास त्याग देंगे, यहाँ तक कि उसे कोसेंगे भी।

मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं, इसकी एक प्राथमिक अभिव्यक्ति अध्ययन करना है। एक पक्का छद्म-विश्वासी परमेश्वर के वचन के प्रति यही रवैया अपनाता है। वह क्या अध्ययन करता है? वह सत्य का अध्ययन नहीं करता है या यह अध्ययन नहीं करता है कि परमेश्वर मानवजाति से क्या अपेक्षा करता है या उसके कौन-से वचन मानवजाति को उजागर करते हैं या कौन-से वचन मानवजाति का न्याय करते हैं और वह परमेश्वर के इरादों का अध्ययन तो बिल्कुल भी नहीं करता है, वह केवल अपनी संभावनाओं और नियति का अध्ययन करता है। चाहे वह परमेश्वर के वचन का कोई भी भाग पढ़े, अगर उसमें उसकी संभावनाओं और नियति से संबंधित वचन हैं—जिनकी उसे सबसे अधिक चिंता है—तो वह ऐसे भागों का ध्यान से अध्ययन करेगा और उन्हें जरूरी मानेगा। उदाहरण के लिए, जब मसीह-विरोधी लोग परमेश्वर के ऐसे वचनों को देखते हैं जो उनके जैसे लोगों को उजागर करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं या उनके जैसे लोगों का चरित्र-चित्रण या उनके बारे में कथन देखते हैं तो वे ऐसे वचनों का बड़ी मेहनत से अध्ययन करेंगे और उन्हें बार-बार पढ़ेंगे। वे क्या खोज रहे होते हैं? क्या वे यह देखना चाहते हैं कि परमेश्वर के इरादों को कैसे समझें और अभ्यास के सिद्धांतों को कैसे ढूँढ़ें? क्या वे यह देखना चाहते हैं कि वे परमेश्वर के वचनों से खुद को कैसे समझ सकते हैं? नहीं। वे वचनों में छिपे अर्थ को समझने की कोशिश करते हैं ताकि वे इन वचनों के पीछे स्पष्ट रूप से देख सकें कि परमेश्वर उनके जैसे लोगों के प्रति क्या रवैया रखता है, क्या परमेश्वर उनसे घृणा और नफरत करता है या क्या वह उन्हें बचाएगा। वे परमेश्वर के इन वचनों की विषय-वस्तु की ही नहीं, बल्कि उसके वचनों के लहजे और रवैये और उसके पीछे के विचारों की भी जाँच-पड़ताल करते हैं। एक बार जब वे परमेश्वर के वचनों के उन सभी हिस्सों को एक साथ ले आते हैं जो उनके जैसे लोगों की मंजिलों से संबंधित हैं, और उन्हें पता चलता है कि उनके प्रति परमेश्वर का रवैया उद्धार का नहीं, बल्कि तिरस्कार का है तो परमेश्वर में विश्वास के प्रति उनका रवैया तुरंत 80 से 90 प्रतिशत तक घट जाएगा। उनके दिलों में तुरंत अविश्वास पैदा हो जाएगा और उनका रवैया भी पूरी तरह से बदल जाएगा। इस बदलाव की हद क्या है? वे अब उन कर्तव्यों को नहीं करना चाहेंगे जिन्हें करने की योजना बनाई थी या जो चीजें उन्होंने त्यागने की सोची थी उन्हें अब नहीं त्यागेंगे। भले ही वे पहले अपने परिवारों में सुसमाचार फैलाना चाहते थे, मगर वे अब ऐसा नहीं करेंगे—क्योंकि वे अब विश्वास नहीं करते और उनके परिवारों के लोगों के विश्वास करने का भी कोई सवाल नहीं है। संक्षेप में, वे अपनी सभी मूल योजनाओं को नष्ट कर देंगे और त्याग देंगे। क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचन के प्रति ऐसा ही मूल रवैया नहीं अपनाते हैं? परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने का उनका उद्देश्य उसके इरादों को समझने और उसके प्रति वफादार बनने के लिए सत्य का अनुसरण करना और सत्य का अभ्यास करने के सिद्धांत खोजना नहीं है; बल्कि उनका उद्देश्य इस बारे में एक सटीक कथन खोजना है कि परमेश्वर उनके जैसे लोगों के लिए परिणाम और मंजिल कैसे निर्धारित करता है। जब उन्हें आशा की किरण दिखेगी, तो वे उसे अपने प्राणों की आहुति देकर भी थामे रखेंगे; इस आशा की किरण के लिए, वे सब कुछ त्यागने में सक्षम होंगे, और उनका रवैया पूरी तरह बदल जाएगा। मगर जब आशीष पाने की उनकी सारी उम्मीदें टूट जाती हैं तो उनका रवैया एक बार फिर से पूरी तरह बदल जाएगा, इस हद तक कि वे अपना विश्वास खो देंगे और विश्वासघाती बन जाएँगे यहाँ तक कि अपने दिलों में परमेश्वर को कोसेंगे। ये मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियाँ हैं।

बेशक, परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते समय मसीह-विरोधी अपने व्यक्तिगत लाभों के लिए भी उनका इस्तेमाल करेंगे। कैसे लाभ? परमेश्वर के वचन पढ़ते समय, वे यह सारांशित करते हैं कि परमेश्वर के बोलने के नियम क्या हैं, लोगों की काट-छाँट करते समय उसका लहजा क्या होता है, मानवजाति को उजागर करते समय उसके बोलने का अंदाज क्या होता है, वह लोगों को कैसे सांत्वना और प्रोत्साहन देता है, वह कौन-से तरीके इस्तेमाल करता है और उसके पास क्या बुद्धिमत्ता है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के बोलने और कार्य करने के तरीके सीखने और उसकी नकल करने में माहिर होते हैं; साथ ही, वे दूसरों से बात और संगति करने के लिए परमेश्वर द्वारा आम तौर पर बोले जाने वाले वचनों का भी इस्तेमाल करते हैं। जब वे परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हैं तो वे लगातार उनमें मौजूद विभिन्न सत्यों के वचनों से भी खुद को लैस करते हैं, उन्हें अपनी चीजों में बदलकर, परमेश्वर के इन वचनों का इस्तेमाल काम करने और पूँजी जमा करने के लिए करते हैं। यह पूँजी किससे संबंधित है? उदाहरण के लिए, उनका मानना है कि[क] किसी सभा में, जो कोई भी सही शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने में ज्यादा सक्षम होता है, जो कोई भी परमेश्वर के ज्यादा वचनों को याद रखता है, परमेश्वर के ज्यादा वचनों को उद्धृत करता है और परमेश्वर के ज्यादा वचनों की व्याख्या करता है, वह कलीसिया में उद्धार पाने के लिए सबसे ज्यादा सक्षम व्यक्ति हो सकता है। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी करें, यह उनकी संभावनाओं और नियति से जुड़ा होता है। वे कभी भी परमेश्वर के वचनों को सत्य मानकर उनका अभ्यास नहीं करेंगे, न ही वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने की खातिर कष्ट उठाएँगे या कीमत चुकाएँगे। बल्कि, वे परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल लोगों को गुमराह करने, अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने और अपने उद्धार के लिए पर्याप्त स्थितियाँ तैयार करने के लिए करते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कैसे लेते हैं, इसका सार यह है कि वे कभी भी परमेश्वर के वचन को सत्य या ऐसा मार्ग नहीं मानते जिस पर लोगों को चलना चाहिए। भले ही मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को कायम रखते हैं और हर रोज उन्हें पढ़ते हैं, भले ही वे उसके वचनों के पाठ भी सुनते हैं, एक बात तो निश्चित है : वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास नहीं करते। जब भी उसके वचनों का अभ्यास करने का समय आता है तो उनकी ईमानदारी गायब हो जाती है—वे केवल अपनी संभावनाओं और नियति के लिए षड्यंत्र रचते हैं। बाहर से, वे परमेश्वर के वचनों से प्रेम करने और उनके लिए तरसने का दिखावा करते हैं। मगर वास्तव में, रोज परमेश्वर के वचन पढ़ने और उन्हें इकठ्ठा करने में, उनका लक्ष्य अपने उद्धार के लिए स्थितियाँ पैदा करना होता है; वे बदले में परमेश्वर पर अच्छी छाप छोड़ने की आशा में ऐसा करते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों के दिलों की जाँच-पड़ताल करता है—वे बस इतना जानते हैं कि लोग केवल बाहरी स्वरूप को देखते हैं, इसलिए परमेश्वर भी केवल बाहरी स्वरूप को ही देखता होगा और इसलिए इन मामलों में वे स्वांग और धोखा करते हैं, छल-कपट का सहारा लेते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे बस इन सबका दिखावा करना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं अपने दिल में क्या सोचता हूँ—लोग इसे नहीं देख सकते और न ही परमेश्वर यह देख सकता है। वास्तव में, मैं परमेश्वर के वचन चाहे जैसे भी पढ़ूँ, मैं यह कोई सच्चा सृजित प्राणी बनने के लिए नहीं कर रहा हूँ। अगर मेरी संभावनाएँ और नियति इसमें शामिल नहीं होतीं, तो मैं यह कठिनाई नहीं झेलता, ना ही मैं यह अन्याय सहता!” परमेश्वर के वचन चाहे कितने भी अच्छे क्यों न लगें, उनके मन में, उनका साकार होना संभव नहीं है और न ही लोगों का उन्हें जीना संभव है। अगर मुट्ठी भर लोग परमेश्वर के वचन को थोड़ा-बहुत जी लेते हैं तो वे भी अपने निजी उद्देश्यों के लिए ऐसा कर रहे होंगे। जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, “मुफ्त की दावत जैसी कोई चीज नहीं होती है।” वे मन-ही-मन सोचते हैं, “हम परमेश्वर में अपने विश्वास के लिए इतनी कठिनाइयाँ झेलते हैं, हर दिन उसके वचन पढ़ते और सुनते हैं, उसके वचनों के अनुसार जीवन जीते हैं—यह सब किसलिए है? क्या यह केवल उस एक उद्देश्य के लिए नहीं है? हर कोई अपने दिल में अच्छी तरह जानता है कि यह सब उसकी संभावनाओं और नियति की खातिर है; ऐसा नहीं होता तो हम संसार का अनुसरण करने के अद्भुत समय को सिर्फ यहाँ कष्ट सहने के लिए क्यों छोड़ेंगे?” इस मामले में, उन्होंने किस तथ्य को नकार दिया है? यही कि परमेश्वर का वचन सत्य है और सत्य लोगों को बचा सकता है, उन्हें बदल सकता है और उनके भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने में उनकी मदद कर सकता है। क्या परमेश्वर के वचन लोगों में यह परिणाम नहीं ला सकते हैं? (बिल्कुल ला सकते हैं।) क्या मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकारते हैं? वे इसे नकारते हैं और कहते हैं : “हर कोई दावा करता है कि परमेश्वर का वचन लोगों को बचा सकता है, मगर इसने अब तक किसे बचाया है? किसने ऐसा होते देखा है? मैं इस पर विश्वास क्यों नहीं करता?” ऐसा क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का वचन लोगों को बचा सकता है, उन्हें बदल सकता है और शैतान के भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त होने में उनकी मदद कर सकता है? क्योंकि परमेश्वर का वचन सत्य है और यह लोगों का जीवन बन सकता है। जब लोग परमेश्वर के वचन को अपना जीवन बना लेते हैं तो उन्हें बचाया जा सकता है; वे बचाए जाने वाले लोग बन जाते हैं। मसीह-विरोधी यह तथ्य नहीं स्वीकारते। उनका मानना है कि लोग यहाँ तक बस इसलिए पहुँचे हैं क्योंकि वे आशीष और एक अच्छी मंजिल पाना चाहते हैं और केवल इसलिए लोग परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हैं। वे परमेश्वर के वचन के फलों को नकारते हैं, वे लोगों में सत्य द्वारा प्राप्त नतीजों को नकारते हैं और वे यह भी नकारते हैं कि सत्य लोगों को जीत सकता है, उन्हें बदल सकता है और उन्हें बचा सकता है। वे मानते हैं कि लोग केवल अपनी संभावनाओं और नियति की चिंता में और उनकी खोज के लिए परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर का वचन लोगों को बदल सकता है, उन्हें परमेश्वर के प्रति वफादार बना सकता है और बिना शर्त परमेश्वर के सामने समर्पण करने या परमेश्वर के घर में सृजित प्राणियों के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के लिए उन्हें प्रेरित कर सकता है—वे इनमें से किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते। इसलिए, मसीह-विरोधी जो अपने हितों को सबसे आगे रखते हैं, खुद सत्य का अनुसरण नहीं करते; परमेश्वर के वचनों को एक तरह की वाक्पटुता, एक तरह का बयान मानते हैं; वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर के ये वचन लोगों को बचा सकते हैं। वे मानते हैं कि जो लोग परमेश्वर के प्रति ईमानदार और वफादार हैं, वे सब नकली हैं और इसमें उनके अपने हित शामिल हैं। चाहे वे परमेश्वर के कितने भी वचन सुनें, चाहे वे परमेश्वर के कितने भी धर्मोपदेश सुनें, आखिर में उनके दिलों में बस यही दो शब्द रहते हैं—संभावनाएँ और नियति। यानी, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर की प्रबंधन योजना लोगों के लिए अच्छी संभावनाएँ और नियति, और उनके लिए एक अच्छी मंजिल ला सकती है। मसीह-विरोधियों के लिए यही सबसे वास्तविक है, यही परम सत्य है। अगर ऐसा नहीं होता तो, पहली बात, वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। दूसरी बात, वे परमेश्वर के घर में रहने के लिए ऐसी शिकायतें सहन नहीं करते। तीसरी बात, वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य नहीं निभाते। चौथी बात, वे परमेश्वर के घर में कोई कठिनाई नहीं सहते। और पाँचवी बात, वे धन और वैभव में लिप्त होने, संसार का अनुसरण करने, शोहरत, लाभ, धन और दुष्ट प्रवृत्तियों के पीछे दौड़ने के लिए बहुत पहले ही सांसारिक जीवन में लौट गए होते। वे अब अस्थायी रूप से परमेश्वर के घर में केवल इसलिए शरण लेते हैं क्योंकि उनकी अपनी संभावनाएँ और नियति इसमें शामिल हैं। अपनी संभावनाओं और नियति को सुरक्षित करने के प्रति उनका एक दृढ़ रवैया है, साथ ही इस उम्मीद में कि जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा तो वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने वालों और महान आशीष प्राप्त करने वालों में से होंगे, वे जोखिम उठाने की मानसिकता भी रखते हैं। यह किस तरह की मानसिकता है? वे अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए परमेश्वर से लाभ तो पाना चाहते हैं, पर वे उसके प्रति समर्पण नहीं करना चाहते; इसके अलावा, वे परमेश्वर द्वारा कहे गए सभी वचनों पर विश्वास भी नहीं करते, ना ही वे यह मानते हैं कि सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता है। क्या यह थोड़ी दुष्टता नहीं है? जब परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के उनके रवैये की बात आती है तो वे छद्म-विश्वासी हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों पर शोध करने, उन्हें पढ़ने और उनके साथ पेश आने के लिए जैसा रवैया अपना सकते हैं उससे पता चलता है कि वे पूरी तरह से और पक्के छद्म-विश्वासी हैं। तो वे अभी भी परमेश्वर के घर में कुछ सतही कार्य कैसे कर पाते हैं और कैसे बिना पीछे छूटे अनुसरण करना जारी रख सकते हैं? उनकी चाहे कैसे भी काट-छाँट की जाए, वे कलीसिया में रहकर कलीसियाई जीवन में भाग कैसे ले सकते हैं और कैसे परमेश्वर के वचन सुनते और पढ़ते रह सकते हैं? ऐसा क्यों है? (क्योंकि वे आशीष पाना चाहते हैं।) ऐसा इसलिए है क्योंकि वे आशीष पाना चाहते हैं। जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, “जो कोई भी मुझे खाना खिलाती है वह मेरी माँ है और जो भी मुझे पैसे देता है वह मेरा पिता है।” यह किस तरह का तर्क है? क्या यह तर्क सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफे से भरा नहीं है? इस शैतानी फलसफे के कारण ही वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं : “मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुमने किस तरह का असाधारण कार्य किया है—तुम्हारा स्वभाव या सार चाहे जो भी हो, अगर तुम मुझे आशीष, एक अच्छी मंजिल और एक अच्छा भविष्य दे सकते हो और मुझे महान आशीष दे सकते हो तो मैं तुम्हारा अनुसरण करूँगा और अभी के लिए तुम्हें परमेश्वर मानूँगा।” क्या यहाँ सच्ची आस्था की कोई झलक है? (नहीं।) इसलिए, जिस तरह ये लोग परमेश्वर के वचनों को लेते हैं, ऐसे लोगों को मसीह-विरोधी और छद्म-विश्वासी के रूप में चित्रित करना एकदम सटीक है!

फुटनोट :

क. मूल पाठ में “उनका मानना है कि” यह वाक्यांश नहीं है।

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