मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग पाँच) खंड तीन

मामला चार : कर्ज चुकाने के लिए धोखाधड़ी से भेंटों का उपयोग करना

पहले, जब मैं चीन की मुख्यभूमि में था, हमें सहकर्मियों के मिलने के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान की जरूरत थी, तो हमने एक मेजबान परिवार को ढूँढ़ा। यह परिवार हमारी मेजबानी के लिए इच्छुक था और इसने उस स्थान की सुरक्षा में मदद की। लेकिन, कुछ समय बीतने के बाद, वह परिवार सोचने लगा, “ऐसा लगता है कि तुम लोग यहाँ लंबे समय तक सभाएँ करने की सोच रहे हो। तुम लोग मेरे घर के अलावा कहीं और नहीं मिल सकते, इसलिए मुझे इस परिस्थिति का लाभ उठाना चाहिए। ऐसा नहीं किया तो क्या यह मेरी बेवकूफी नहीं होगी?” एक बार जब हम सहकर्मियों की बैठक के लिए इकठ्ठा हुए और सभी सहकर्मी अभी तक नहीं आए थे, तो एक व्यक्ति बिना किसी स्पष्ट वजह के मेजबान परिवार के घर आकर लिविंग रूम में बैठ गया और बाहर नहीं गया। मेजबान आया और उसने कहा कि यह व्यक्ति कर्ज के पैसे लेने आया है, उन्होंने कई साल पहले उससे कर्ज लिया था जो अब तक नहीं चुकाया गया है। तुम लोगों को क्या लगता है कि यहाँ क्या चल रहा था? यह व्यक्ति पहले आ सकता था या बाद में भी आ सकता था, मगर वह कर्ज के पैसे लेने के लिए ठीक इसी समय पर आया। क्या यह महज एक संयोग था या किसी की सोची-समझी व्यवस्था थी? लोगों के मन में संदेह उठा। दाल में कुछ तो काला था। आखिर चल क्या रहा था? क्या उस परिवार के इरादे बुरे नहीं थे और क्या उन्होंने जानबूझकर उस व्यक्ति को बुलाया था? (हाँ, ऐसा ही था।) मैंने कहा, “उसे तुरंत यहाँ से बाहर जाने को कहो।” मेजबान ने कहा, “जब तक उसका कर्ज नहीं चुका देते, वह नहीं जाएगा।” मैंने कहा, “तुम उसके पैसे वापस क्यों नहीं देते?” परिवार हाँ-हूँ करने लगा, जिससे उनका यह मतलब था कि अगर उनके पास पैसे होते तो भी वे कर्ज नहीं चुकाते—वे मुफ्त की उधारी चाहते थे। कर्ज वसूलने वाला वहाँ इंतजार करता रहा और वह तब तक वहीं था जब तक कुछ अन्य सहकर्मियों के आने का समय हो गया। मेजबान क्या करने की सोच रहा था? क्या यह एक सोची-समझी साजिश नहीं थी? (बिल्कुल थी।) बाद में, मैंने किसी से मेजबान को पैसे देकर तुरंत उन्हें कर्ज वसूलने वाले से छुटकारा दिलाने के लिए कहा। मेजबान को पैसे देने के बाद, कर्ज वसूलने वाला आधे घंटे के भीतर चला गया। सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि कर्ज वसूलने वाले को वापस नहीं आना चाहिए, मगर यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ था। एक महीने बाद, कर्ज वसूलने वाला फिर से सहकर्मियों की बैठक से पहले आया। मेजबान ने कहा कि पिछली बार कर्ज का केवल एक हिस्सा चुकाया गया था, पूरा कर्ज नहीं। उसके ऐसा कहने का क्या लक्ष्य था? ताकि परमेश्वर का घर फिर से उसका कर्ज चुका दे। इस बार भी पिछली बार की तरह हुआ, मेजबान को पैसे देने के बाद, कर्ज वसूलने वाला वहाँ से चला गया। तब से, जब भी हम बैठक के लिए वहाँ गए, कर्ज वसूलने वाला फिर कभी नहीं आया क्योंकि हमने पहले ही दो किश्तों में उसका सारा कर्ज चुका दिया था। उसे चिंता थी कि अगर वो पहले से इतने पैसे माँगता, तो हम पैसे देने को राजी नहीं होते, इसलिए उसने दो किश्तों में पैसे माँगे। इस पैसे को कैसे देखा जाना चाहिए? क्या परमेश्वर के घर ने यह पैसा उसको उधार दिया था, या फिर उसने परमेश्वर के घर को उन्हें पैसे देने के लिए चालाकी से राजी किया था? (उसने परमेश्वर के घर को चालाकी से राजी किया था।) वास्तव में, उसने परमेश्वर के घर से धोखे से पैसे लिए। तो, परमेश्वर के घर ने उसे पैसे क्यों दिए? क्या हमारे पास उसे पैसे नहीं देने का विकल्प था? आखिरकार, उसे पैसे न देना हमारे लिए उचित और कानूनी है, मगर इसका मतलब यह होता कि सहकर्मी एक जगह मिल नहीं पाते। तो उसे पैसे देने के पीछे हमारा तर्क क्या था? उस समय, मैंने इस पैसे को किराया मान लिया था। अगर हम कोई धर्मशाला या खेल का मैदान किराए पर लेते, तो क्या हमें तब भी पैसे खर्च नहीं करने पड़ते? वैसे भी हम उन जगहों पर नहीं मिल सकते और यह सुरक्षित भी नहीं है। यहाँ, यह मेजबान इस जगह की सुरक्षा में मदद करता है और हमारी सुरक्षा पक्की है, तो क्या परमेश्वर के घर का उसके कर्ज चुकाने के लिए कुछ पैसे खर्च करना उचित है? (हाँ, यह उचित है।) बात बस इतनी है कि पैसे ईमानदार तरीके से नहीं दिए गए थे। लेकिन, बड़े लाल अजगर के देश जैसे परिवेश में ऐसा करना अक्सर जरूरी होता है।

कुछ लोगों में बुरी मानवता होती है और वे मेजबानी करने का कर्तव्य निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होते। हम उन्हें उस स्थान की रक्षा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं जहाँ हम हैं, इसलिए हमें उन्हें परिस्थिति का थोड़ा लाभ उठाने देना चाहिए। लेकिन, क्या लाभ उठाने के बाद भी वे उद्धार पा सकते हैं? नहीं, वे नहीं पा सकते। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा, बल्कि ऐसा व्यक्ति उद्धार नहीं पा सकता। वे सभी को धोखा देते हैं और सभी का लाभ उठाते हैं। जब वे अपने कर्तव्य निभाते हैं और कुछ अच्छे कर्म करते हैं, तो हमेशा उसमें से कुछ वाँछनीय चीज धोखे से ले लेते हैं, और चाहे वे किसी से भी मिलें, वे केवल लाभ उठाने और कभी भी नुकसान न सहने के सिद्धांत के हिसाब से चलते हैं। परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने के लिए वे इसी सिद्धांत का पालन करते हैं। तो, ये “अच्छे कर्म” कहाँ से आते हैं? परमेश्वर का घर इन्हें खरीदता और इनके लिए पैसे देता है, न कि ये लोग खुद अच्छे कर्म तैयार करते हैं; वे अच्छे कर्म तैयार नहीं करते। वे एक स्थान उपलब्ध कराते हैं, जिसके लिए परमेश्वर का घर पैसे खर्च करता है, और इसे किराया मानता है। इसका अच्छे कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है, और यह उनका अच्छा कर्म नहीं है। जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर की ओर से भाई-बहनों के लिए जगह उपलब्ध कराने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से परमेश्वर के घर से पैसे या चीजें प्राप्त करता है, तो यह किस तरह का व्यवहार है? इस तरह के व्यक्ति का चरित्र कैसा होता है? क्या उसका व्यवहार परमेश्वर द्वारा याद रखे जाने योग्य है? लोगों के दिलों में और परमेश्वर के दिल में उसके चरित्र की श्रेणी क्या है? तुम्हें अच्छे कर्म तैयार करने चाहिए—तुम अपनी मंजिल की खातिर अच्छे कर्म तैयार करते हो, और तुम जो कुछ भी करते हो वह तुम्हारे अपने लिए है, दूसरों के लिए नहीं। तुम्हें जो करना चाहिए, उसे करके तुम्हें पहले ही इनाम मिल चुका है, और तुमने वह वाँछित चीज पा ली है जो तुम प्राप्त करना चाहते थे, तो अब परमेश्वर तुम्हें अपने दिल में कैसे देखता है? तुम अच्छे काम अपने हित में कुछ हासिल करने के लिए करते हो, सत्य या जीवन पाने के लिए नहीं, परमेश्वर को संतुष्ट करने की बात तो छोड़ ही दो। क्या परमेश्वर अभी भी इस तरह के लोगों को बचा सकता है? नहीं, वह नहीं बचा सकता। वे बस एक मामूली-सा अच्छा कर्म तैयार करते हैं और एक मामूली-सा दायित्व और कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी अपने हाथ फैलाते हुए परमेश्वर के घर से पैसे माँगते हैं, वे परमेश्वर के घर से अठन्नी-चवन्नी के लिए मोलभाव करते हैं, परमेश्वर के घर को धोखा देने और वाँछनीय चीजें हासिल करने के लिए तमाम तरह के तरीके सोचते हैं, और ध्यान रखते हैं कि उन्हें कभी भी नुकसान न हो, मानो कि वे कोई व्यापार कर रहे हों। इसलिए, यह अच्छा कर्म एक अच्छा कर्म नहीं है—यह बुरे कर्म में बदल गया है, और न केवल परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा, बल्कि वह इन लोगों से उनका बचाए जाने का अधिकार भी खत्म कर देगा और छीन लेगा। जब उस मेजबान ने परमेश्वर के घर से अपना कर्ज चुकवाया था, तो क्या यह थोड़ी धोखाधड़ी की प्रकृति थी? यही तो मसीह-विरोधी करते हैं। जब उन्हें पैसे चाहिए होते हैं, तो वे इसे खुले तौर पर नहीं माँगते; बल्कि, वे धोखाधड़ी की प्रकृति वाले तरीके आजमाते हैं, चीजों को जबरन वसूलने के अवसर का लाभ उठाते हैं। क्या परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो परमेश्वर की भेंटों को जबरन वसूलते हैं? (नहीं, वह नहीं बचाता।) अगर ये लोग पश्चात्ताप करते हैं और उनमें सच्चा विश्वास जगता है, तो क्या उन्हें बचाया जाना चाहिए? (नहीं।) क्यों? (यह तथ्य कि ये लोग परमेश्वर के घर के प्रति धोखाधड़ी कर सकते हैं, इसका मतलब है कि परमेश्वर के लिए उनके दिलों में कोई जगह नहीं है—वे पक्के छद्म-विश्वासी हैं।) क्या छद्म-विश्वासी पश्चात्ताप करेंगे? ऐसे छद्म-विश्वासी जो मसीह-विरोधी हैं, वे पश्चात्ताप नहीं करेंगे। उनके हर काम के केंद्र में उनके अपने हित हैं, और अगर वे मर गए, तो भी पश्चात्ताप नहीं करेंगे। वे नहीं मानते कि उन्होंने कोई गलती की है, न ही वे यह मानते हैं कि उन्होंने कोई बुरा काम किया है, तो वे किस बात के लिए पश्चात्ताप करेंगे? पश्चात्ताप उन लोगों के लिए है जिनमें मानवता है, जिनके पास अंतरात्मा और विवेक है, और जो अपनी भ्रष्टता को स्पष्ट रूप से देखकर इसे स्वीकार सकते हैं। जब उस मेजबान परिवार ने एक मामूली-सा कर्तव्य निभाया, तो उसमें से कुछ वाँछनीय चीज धोखे से ले ली, और उन्होंने इस अवसर को गंवाया नहीं। वे बड़े शातिर ठग थे। यह चौथा मामला है।

मामला पाँच : परमेश्वर के घर का काम करने के लिए वेतन माँगना

चीन की मुख्यभूमि में, कुछ ऐसे काम हैं जो काफी खतरनाक और जोखिम भरे हैं, और जिन्हें करने के लिए कुछ समझदार और योग्य लोगों की जरूरत होती है। उस समय, एक व्यक्ति था जिसके पास ये योग्यताएँ थीं, इसलिए ऊपरवाले ने उसके लिए कुछ काम करने की व्यवस्था की। जब वह यह काम कर रहा था, तो उसने एक अनुरोध करते हुए कहा कि जब से उसने यह काम करना शुरू किया है, वह रोज अपनी नियमित नौकरी पर नहीं जा पा रहा है, और उसके परिवार को गुजारा करने में थोड़ी मुश्किल हो रही है। परमेश्वर के घर ने उसे जीवन-यापन के लिए कुछ पैसे दिए, वह इससे बहुत खुश था और उसने वह काम सँभाल लिया जो उसे दिया गया था; लेकिन, उसका प्रदर्शन केवल औसत दर्जे का था। कुछ समय के बाद, उसके परिवार को गुजारा करने में तो कोई समस्या नहीं आई, मगर कोई और समस्या सामने आई जिसे उसने परमेश्वर के घर के सामने रखा, और परमेश्वर के घर ने उसे जीवनयापन के लिए कुछ और पैसे दिए, ताकि वह अपना गुजारा चला सके। अनिच्छा से ही सही, वह अपना काम जारी रखने के लिए सहमत तो हो गया, मगर उसने इसे कितनी अच्छी तरह से किया? सब गड़बड़ हो गया था। अगर उसे कुछ करने का मन करता तो वह थोड़ा-बहुत काम करता और अगर उसे कुछ करने का मन नहीं करता तो वह बिल्कुल भी काम नहीं करता था। इससे काम में देरी हुई और कलीसिया के काम को कुछ नुकसान उठाना पड़ा, और दूसरे लोगों को जाकर इसे ठीक करना पड़ा। बाद में, परमेश्वर के घर ने उससे संपर्क किया और उसे अपने काम में मेहनत करने के लिए कहा, और यह भी कहा कि परमेश्वर का घर उसकी किसी भी कठिनाई को हल करने में उसकी मदद करता रहेगा। उसने परमेश्वर के घर से सीधे तौर पर यह बात नहीं कही, बल्कि कुछ भाई-बहनों से निजी तौर पर कहा, “क्या मुझे बस जीवनयापन के खर्च की ही जरूरत है? उस थोड़े-से पैसे से कौन-सी बड़ी समस्या हल हो सकती है? यह काम करके मैं परमेश्वर के घर के लिए इतनी बड़ी समस्या हल कर रहा हूँ। परमेश्वर के घर को मेरी बड़ी समस्याओं को भी हल करना चाहिए। अभी मेरे बेटे के पास ट्यूशन के लिए पैसे नहीं हैं और यह समस्या हल नहीं हुई है। मुझे इन थोड़े-से पैसों की कमी नहीं है।” ये वही चीजें थीं जो उसने वास्तव में सोची थी, मगर वह परमेश्वर के घर से मुँह पर ये सब नहीं कह सका; बल्कि, जब उसने अकेले में भड़ास निकाली तब इस बात का खुलासा हुआ। इस परिस्थिति को कैसे सुलझाया जाना चाहिए? क्या परमेश्वर के घर को उसका इस्तेमाल करते रहना चाहिए, या किसी और को ढूँढ़ना चाहिए? (किसी और को ढूँढ़ना चाहिए।) क्यों? क्योंकि उसका चरित्र और सार पहले ही बेनकाब हो चुका था। वह बस यही नहीं चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके परिवार की आजीविका सँभाले, बल्कि वह चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके बेटे की ट्यूशन फीस भी भरे, और बाद में उसने कहा कि उसकी पत्नी बीमार है और वह चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके इलाज के लिए भी पैसे दे। क्या उसकी माँग बढ़ती नहीं जा रही थी? उसने सोचा कि परमेश्वर के घर के लिए यह छोटा-सा काम करके उसने एक बड़ा योगदान दिया है, और परमेश्वर के घर को बिना शर्त उसकी हर जरूरत पूरी करनी चाहिए। अगर वह कोई नियमित नौकरी करता, तो क्या वह अपने बेटे को यूनिवर्सिटी भेजने में सक्षम होता? क्या वह अपनी पत्नी के इलाज का खर्च उठा पाता? जरूरी तो नहीं है। फिर, जब उसने परमेश्वर के घर में यह छोटा-सा काम किया, तो उसने लगातार परमेश्वर के घर से पैसे क्यों माँगे? वह क्या सोच रहा था? इस मामले पर उसका क्या नजरिया था? उसने सोचा कि उसके अलावा, परमेश्वर के घर में यह काम करने वाला कोई और नहीं होगा, इसलिए उसे इस अवसर का लाभ उठाकर परमेश्वर के घर से और पैसे माँगने के बहाने बनाने चाहिए, उसे इसे व्यर्थ ही नहीं छोड़ना चाहिए, और अगर वह चूक गया तो यह अवसर चला जाएगा। क्या उसका यही मतलब नहीं था? उसने सोचा कि यह काम करना नौकरी करके पैसे कमाने जैसा है, इसलिए उसे परमेश्वर के घर से पैसे वसूलना चाहिए। बाद में, जब उसे एहसास हुआ कि वह परमेश्वर के घर से पैसे नहीं वसूल सकता, तो उसने अपना काम नहीं किया। क्या यह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करने वाला व्यक्ति है? (नहीं।)

जो लोग परमेश्वर में सच्चा विश्वास करते हैं, वे अपना कर्तव्य निभाते समय कठिनाई सहने से नहीं डरते। कुछ लोग उन कठिनाइयों का जिक्र नहीं करते जो कर्तव्य निभाने के दौरान उनके परिवारों को सहनी पड़ती हैं। गरीब इलाकों में कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, और जब भाई-बहन आते हैं और खाने के लिए चावल नहीं होते, तो वे बाहर जाकर पैसे उधार ले लेते हैं, मगर कुछ कहते नहीं हैं। अगर वे कुछ कहते, तो क्या परमेश्वर का घर उन्हें पैसे दे सकता था? (हाँ, दे सकता था।) परमेश्वर का घर भाई-बहनों की मेजबानी का जरूरी खर्चा उठा सकता है। तो, वे कुछ कहते क्यों नहीं? अगर तुम उन्हें पैसे देते हो, तो वे मना कर देंगे। बाहर जाकर पैसे उधार लेने के बाद वे धीरे-धीरे खुद ही उधारी चुका देंगे। उन्हें परमेश्वर के घर से पैसे नहीं चाहिए। मसीह-विरोधी इसके एकदम उलट होते हैं। वे शर्तें रखते हैं और कोई भी काम करने से पहले ही अपने हाथ फैलाकर माँगने लगते हैं। उनके लिए हाथ फैलाना इतना आसान कैसे है? वे इतने “आत्मविश्वास” से अपने हाथ कैसे फैला सकते हैं? ऐसे लोगों को कोई शर्म नहीं होती, है ना? कुछ पैसे माँगने के बाद, उन्हें और चाहिए। अगर उन्हें पैसे नहीं दिए गए तो वे कोई काम नहीं करेंगे—जब तक उन्हें फायदा नहीं दिखेगा, वे जरा-सी भी मेहनत नहीं करेंगे : “मैं उतना ही काम करूँगा जितने के लिए मुझे पैसे मिले हैं। अगर तुम मुझे पैसे नहीं देते, तो मुझसे अपना कोई और काम करवाने की मत सोचना। यह मेरे लिए एक काम है, और अगर मुझे इससे कोई फायदा नहीं होगा, तो मैं इसे नहीं करूँगा। मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए खुद को जोखिम में डालता हूँ, तो इसके लिए मुझे कुछ मिलना ही चाहिए, और यह मेरे काम के हिसाब से मिलना चाहिए, उससे कम नहीं। मुझे नुकसान नहीं होना चाहिए!” तो, उन्हें वे चीजें माँगनी पड़ती हैं, जिनके लिए वे खुद को हकदार मानते हैं, और उन्हें माँगने के लिए बहाने खोजने पड़ते हैं—उन्हें माँगने के लिए अपना दिमाग लगाना पड़ता है, और तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचना पड़ता है। अगर उन्हें ये दिए जा सकते हैं तो यह और भी बेहतर है, और अगर नहीं दिए जा सकते, तो वे सब कुछ छोड़-छाड़कर चले जाएँगे, और उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा, उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर द्वारा किए जाने वाले सभी कामों में जोखिम शामिल है, और अगर परमेश्वर का घर उन्हें वे चीजें नहीं देता जो वे माँगते हैं, तो परमेश्वर के घर को डर रहेगा कि वे उसकी रिपोर्ट कर देंगे, और उसके पास कोई और उपयुक्त व्यक्ति नहीं है, इसलिए उसे उनका ही इस्तेमाल करना होगा, और अगर परमेश्वर का घर उन्हें इस्तेमाल करता है तो उन्हें पैसे भी देने होंगे। क्या यह थोड़ी धोखाधड़ी की प्रकृति नहीं है? क्या यह थोड़ी शोषण की प्रकृति नहीं है? क्या इस तरह के लोगों को विश्वासियों में गिना जाता है? ये छद्म-विश्वासी हैं जो परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं हैं—वे कलीसिया के शुभचिंतक भी नहीं हैं। जब कलीसिया के शुभचिंतक देखते हैं कि विश्वासी महान लोग हैं, तो वे उन्हें सुरक्षा प्रदान करने, और कुछ काम करने में उनकी मदद करते हैं। इस तरह के लोगों को थोड़ा आशीष दिया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, मसीह-विरोधी केवल वाँछनीय चीजें पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अगर उन्हें वाँछनीय चीजें नहीं मिल सकती हैं, तो वे कोई कर्तव्य नहीं करेंगे, कोई दायित्व नहीं निभाएँगे, और खुद को बिल्कुल भी नहीं खपाएँगे। जब परमेश्वर का घर उनके लिए कोई कर्तव्य निभाने की व्यवस्था करता है, तो वे सबसे पहले यही पूछते हैं कि इसके बदले कौन-सी वाँछनीय चीजें मिलेंगी, और अगर इसके बदले कोई भी वाँछनीय चीज नहीं मिलती, तो वे यह काम नहीं करेंगे। उनके और अविश्वासी संसार के ठगों के बीच क्या अंतर है? ये लोग अभी भी बचाए जाना और परमेश्वर का आशीष पाना चाहते हैं। क्या वे नामुमकिन चीजों की माँग नहीं कर रहे हैं? अगर इन लोगों के पास नीच चरित्र नहीं होता और वे बेशर्म नहीं होते, तो उनके दिल ऐसे विकृत तरीके से काम करने के बारे में कैसे सोच पाते? उनका अपना कर्तव्य करने के प्रति ऐसा रवैया कैसे होता? क्या तुम लोग ये काम करने में सक्षम हो? (हाँ, हम भी सक्षम हैं।) किस हद तक? क्या कोई सीमा है? तुम्हें कब लगेगा कि अब मामला गंभीर हो गया है, और तुम इन चीजों को अब और नहीं कर सकते? (कभी-कभी मेरा दिल धिक्कारता है, और मेरी अंतरात्मा मुझे दोषी ठहराती है। ऐसे समय भी होते हैं जब मुझे डर लगता है कि दूसरे लोग मेरे द्वारा किए गए कामों को उजागर कर देंगे, इसलिए मैं अब ऐसा नहीं करती।) लोग चाहे जो भी करें, उनका चरित्र बेहद महत्वपूर्ण है। जिस व्यक्ति में रत्ती भर भी शर्म नहीं होती, वह किसी भी तरह का बुरा काम करने में सक्षम होता है। ऐसे लोग पूरी तरह से बुरे व्यक्ति होते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसकी कोई सीमा नहीं होती और वे अपनी अंतरात्मा के अनुसार काम नहीं करते। वे किस तरह के लोग हैं, जिनकी मानवता में अंतरात्मा नहीं है? वे जानवर और राक्षस हैं और परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा। जो लोग परमेश्वर की भेंटों को धोखे से हासिल करने और परमेश्वर के काम करते समय उसकी भेंटों को जबरन वसूलने में सक्षम हैं, और जो परमेश्वर के घर से पैसे माँगते हैं, वे अच्छे लोग नहीं हैं। उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर को धोखा देना आसान है और परमेश्वर के घर की चीजों की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार कोई नहीं है और परमेश्वर के घर की चीजों का कोई मालिक नहीं है, इसलिए वे अपने मन से इन चीजों को अपने पास रख सकते हैं और धोखे से इन्हें हासिल कर सकते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके उन्होंने लाभ उठा लिया है। क्या यह लाभ उठाना वाकई इतना आसान है? तुमने जो लाभ हासिल किया वह बड़ा नहीं था, मगर इसका क्या परिणाम है? अपना जीवन गँवाना।

अगर किसी व्यक्ति में वाकई थोड़ी-सी भी मानवता और अंतरात्मा है तो क्या वह ये काम कर सकेगा? तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, फिर भी उसे धोखा देने और उसकी भेंटों को जबरन वसूलने में सक्षम हो। तुम किस तरह के व्यक्ति हो? क्या तुम एक इंसान हो भी? इस तरह की हरकतें सिर्फ राक्षस ही करते हैं। जानवर ये सब नहीं करते। कुत्ते को ही देखो। कुत्ते के मालिक ने उसे पाला और वह अपने मालिक के लिए घर की रखवाली करता है। जब कोई बुरा व्यक्ति आता है, तो वह उस पर भौंकता है और हमला करता है। जो कोई भी उसके मालिक की चीजें छीनता है, वह उसका पीछा करता है। जब उसके मालिक के घर में मुर्गियाँ, बत्तखें और हंस भाग जाते हैं, तो वह उन्हें ढूँढ़ने में मदद करता है। जब उसके मालिक के घर में सूअर लड़ रहे होते हैं, तो वह उनकी लड़ाई रोकने की कोशिश करता है। कुत्ता जानता है कि उसका मालिक चाहता है कि वह सूअरों पर नजर रखे, इसलिए वह यह जिम्मेदारी निभाने में सक्षम है। कुत्ता अपने मालिक से बहस कर यह नहीं कहता, “मैंने तुम्हारे लिए सूअरों पर नजर रखी, तो तुम मुझे कुछ मुर्गी या कुछ और खाने को क्यों नहीं देते?” वह ऐसा कभी नहीं कहता। एक कुत्ता भी अपने मालिक के घर की रक्षा करने में सक्षम है, और बिना किसी इनाम के अपने मालिक के प्रति अपने दायित्वों को निभाता है, मगर ये लोग जानवरों के बराबर भी नहीं हैं। एक छोटा-सा दायित्व निभाने के बाद, उन्हें लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है, और कुछ जिम्मेदारियों को पूरा करने और थोड़ी मेहनत करने के बाद ही, वे असहज महसूस करने लगते हैं, उन्हें लगता है कि व्यवस्था सही नहीं थी, और उनका इस्तेमाल किया गया है, तो वे हिसाब बराबर करने के लिए तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचते हैं। जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारी रक्षा और तुम्हारा मार्गदर्शन करता है, और तुम्हें बहुत सारे सत्य प्रदान करता है। तुम उसका प्रतिदान करने के बारे में कैसे नहीं सोच सकते? तुम उसके प्रतिदान के बारे में नहीं सोचते, मगर परमेश्वर इस मामले को तूल नहीं देता है। लेकिन जब तुम एक छोटा-सा दायित्व निभाते हो, तो हिसाब बराबर करने के लिए परमेश्वर के पास चले जाते हो। एक छोटा-सा दायित्व निभाकर तुम चीजों को जबरन हड़पना और धोखाधड़ी से कुछ हासिल करना चाहते हो—तुम इसकी भरपाई के लिए तमाम तरह के तरीके सोचते हो। ऐसा करके मरना चाहते हो क्या? क्या परमेश्वर ने तुम्हें जो दिया है वह बहुत ज्यादा नहीं है? लोगों की अभिव्यक्तियों के संदर्भ में, वे किस चीज के हकदार हैं? क्या लोगों के पास वे चीजें जिनका वे आनंद लेते हैं और जो आज उनके पास हैं वे इसलिए हैं क्योंकि वे उनके हकदार थे? नहीं। ये वे चीजें हैं जो परमेश्वर ने तुम्हें दी हैं और ये वे आशीष हैं जो उसने तुम्हें दिए हैं। तुम पहले से ही बहुत कुछ पा चुके हो। परमेश्वर ने बदले में कुछ माँगे बिना तुम्हें जीवन, सत्य और मार्ग दिया है। तुमने उसका ऋण कैसे चुकाया है? जब तुम अपने दायित्वों और कर्तव्यों में से कुछ भी करते हो, तो तुम्हें अंदर से लगता है कि इसे सहना मुश्किल है और तुम्हें नुकसान हुआ है, और तुम इसकी भरपाई के लिए तमाम तरीकों के बारे में सोचते हो। अगर तुम इसकी भरपाई चाहते हो तो परमेश्वर तुम्हें बदले में कुछ दे सकता है, मगर इसे पाने के बाद क्या तुम अभी भी बचाए जा सकोगे? एक दिन ऐसा आएगा जब ये लोग ठीक से जान लेंगे कि सबसे महत्वपूर्ण क्या है और सबसे मूल्यवान क्या है। जिन लोगों में मसीह-विरोधी का सार है, वे कभी भी सत्य का मूल्य नहीं जान पाएँगे। जब उनके परिणाम का खुलासा करने वाला दिन आएगा, और जब सब कुछ बेनकाब हो जाएगा और सार्वजनिक हो जाएगा, तब उन्हें पता चलेगा। क्या तब तक बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? सभी चीजों का परिणाम निकट है, और सभी चीजें गुजर जाएँगी। केवल परमेश्वर के वचन और उसका सत्य अनंत काल तक बने रहेंगे। जिन लोगों के पास सत्य है और जो परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं, वे उसके वचनों और उसके सत्य के साथ बने रहेंगे। यह परमेश्वर के वचनों का मूल्य और शक्ति है। लेकिन, मसीह-विरोधी इस तथ्य को कभी स्पष्ट रूप से नहीं समझेंगे, इसलिए वे परमेश्वर पर विश्वास करने का दिखावा करते हुए विभिन्न लाभ पाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं, तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचते हैं और हर मुमकिन उपाय करते हैं, और परमेश्वर की भेंटों को पाने के लिए और भी ज्यादा भद्दे धोखाधड़ी के तरीके इस्तेमाल करते हैं, और उसकी भेंटों को हड़प लेते हैं। इन सभी लोगों के क्रियाकलाप और व्यवहार परमेश्वर की किताब में अक्षरशः दर्ज हैं। जब उनके परिणामों का खुलासा होने का दिन आएगा, तो परमेश्वर इन्हीं अभिलेखों के आधार पर हरेक व्यक्ति का परिणाम निर्धारित करेगा। ये सभी बातें सत्य हैं। तुम चाहे इसे मानो या न मानो, इन सभी बातों का खुलासा होकर रहेगा। यह पाँचवाँ मामला है। यह आदमी किस तरह का व्यक्ति है? उसका चरित्र नेक है या नीच? (नीच।) परमेश्वर की नजरों में, वह सम्माननीय व्यक्ति नहीं है; वह नीच है। उसे संक्षेप में “कमीना इंसान” कहते हैं।

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