मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग पाँच) खंड एक

II. मसीह-विरोधियों के हित

ग. अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करना

आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद और इस मद के उस भाग पर अपनी संगति जारी रखेंगे जो मसीह-विरोधियों के हितों से संबंधित है। पिछली बार, मैंने मसीह-विरोधियों के हितों की तीसरी मद “लाभ” पर संगति की थी। उस मद में, मैंने अनेक पहलुओं की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बताया था, और मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों के व्यवहार, उनके विचारों और दृष्टिकोणों, और इन विचारों और दृष्टिकोणों के प्रभाव में आकर वे जो कुछ करते हैं उनके बारे में बात की थी। पिछली बार मैंने दो पहलुओं पर संगति की थी : पहला था, परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना, और दूसरा था, अपनी सेवा में और अपने लिए काम करवाने में भाई-बहनों का इस्तेमाल करना। ये मसीह-विरोधियों की अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करने की दो विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। अब जब मैंने इन पर संगति कर ली है, तो क्या तुम लोगों को मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार की समझ है? वास्तव में मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के संदर्भ में भ्रष्ट मनुष्यों में भी कोई बड़ा फर्क नहीं है, चाहे यह उनके स्वभाव से संबंधित हो या उनके प्रकृति सार से। अंतर के बजाय दोनों में समानता ज्यादा है; उनमें बस यही अंतर है कि उनकी मानवता अच्छी है या बुरी, और केवल एक स्पष्ट अंतर सत्य के प्रति उनके रवैये में होता है। हालाँकि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव एक जैसे होते हैं, मसीह-विरोधी सत्य से नफरत करने, परमेश्वर का प्रतिरोध करने, परमेश्वर की आलोचना करने और परमेश्वर की ईशनिंदा करने में सक्षम होते हैं, और साथ ही वे बुरे कर्म करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने में भी सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी और साधारण भ्रष्ट मनुष्य इन्हीं मामलों में साफ तौर पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। हरेक व्यक्ति में मसीह-विरोधी का स्वभाव होता है, लेकिन अगर उसने बुराई नहीं की है और कलीसिया के काम में बाधा नहीं डाली है और सीधे तौर पर परमेश्वर का विरोध नहीं किया है, तो उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता। भले ही भ्रष्ट मनुष्यों के विचार, दृष्टिकोण और भ्रष्ट स्वभाव वही हों जो मसीह-विरोधी लोगों के होते हैं या उनसे मिलते-जुलते हों, लेकिन अगर किसी व्यक्ति का मानवता सार एक बुरे व्यक्ति का मानवता सार नहीं है, तो यह उसके और मसीह-विरोधियों के बीच एक स्पष्ट अंतर है। ज्यादातर लोग इस अंतर को नहीं देख पाते, और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने वाले लोगों को एक साथ रखकर उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करते हैं—ऐसा करके अच्छे लोगों को नुकसान पहुँचाना आसान है! अगर तुम लोग मसीह-विरोधियों के सार को स्पष्ट रूप से नहीं समझते, तो यह तुम्हारे लिए खुद को समझने में भी एक बड़ी बाधा है। अगर तुम देखते हो कि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव मसीह-विरोधियों के समान है, तो तुम्हें लगेगा कि तुम एक मसीह-विरोधी हो, और अगर तुम देखते हो कि जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो वह मसीह-विरोधियों के समान है, तो भी तुम्हें यही लगेगा कि तुम मसीह-विरोधी हो। अगर तुम देखते हो कि तुम्हारे काम करने का तरीका और तुम्हारे विचार और दृष्टिकोण मसीह-विरोधियों के समान हैं, तब भी तुम खुद को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करोगे। अगर तुम इन तीन दृष्टिकोणों से खुद को मसीह-विरोधी की तरह देखते हो, तो तुम खुद को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करोगे। इसके क्या परिणाम होंगे? तुम निश्चित रूप से कुछ हद तक नकारात्मक हो जाओगे और खुद से हार मान लोगे। इस तरह से खुद को समझना कुछ हद तक विकृत समझ है। तो फिर, क्या अपने मसीह-विरोधी स्वभाव को समझना अनावश्यक है? नहीं, बेशक यह आवश्यक है। मसीह-विरोधियों के स्वभाव के बारे में संगति करने और उसका गहन-विश्लेषण करने का उद्देश्य तुम लोगों को उनसे अपनी तुलना करने में सक्षम बनाना और खुद को सही मायने में समझने में तुम्हारी मदद करना है। अगर तुम बस इतना समझते हो कि तुम्हारे पास एक औसत भ्रष्ट स्वभाव है, मगर यह नहीं पहचानते कि तुम्हारे पास मसीह-विरोधी का स्वभाव है, तो खुद के बारे में तुम्हारी समझ बहुत उथली और एकतरफा है; यह मानक के अनुरूप नहीं है। हो सकता है कि तुम लोग अभी इस बारे में जागरूक न हो। ज्यादातर लोग सोचते हैं, “मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर नहीं चल रहा हूँ, न ही मैं खुद मसीह-विरोधी हूँ, और न ही मुझमें मसीह-विरोधी का सार है, इसलिए मुझे उस बिंदु तक जाने की कोई जरूरत नहीं जहाँ मैं समझूँ कि मेरे पास मसीह-विरोधी का स्वभाव है, मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने में सक्षम हूँ, और खुद मसीह-विरोधी बन सकता हूँ। अगर मेरी स्वयं के बारे में यही समझ होती, तो क्या मैं खुद को नीचा नहीं दिखा रहा होता?” इस प्रकार, मसीह-विरोधियों को उजागर करने के बारे में इन विषयों में तुम लोगों की बहुत दिलचस्पी नहीं होती है। चाहे तुम्हें दिलचस्पी हो या न हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो, तो एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब तुम धीरे-धीरे सत्य के इन पहलुओं और इन कहावतों को समझने लगोगे। मैंने कुछ लोगों को अपनी अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति करते हुए सुना है, मगर वे इस बारे में कुछ भी नहीं कहते कि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव कैसे है या कैसे वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं। यह स्पष्ट है कि उनके विचार, दृष्टिकोण और स्वभाव एकदम मसीह-विरोधी के समान हैं—वे एक जैसे हैं—मगर उन्हें यह बात नहीं समझ आती। यह इस बात का पर्याप्त सबूत है कि कई लोगों की खुद के बारे में समझ बहुत उथली है, वे केवल यही समझ पाते हैं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव है, वे परमेश्वर का प्रतिरोध और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करते हैं, उनकी मानवता बहुत अच्छी नहीं है, और वे सत्य से बहुत अधिक प्रेम नहीं करते। वास्तव में, वे मसीह-विरोधी का स्वभाव अभिव्यक्त और प्रकट करते हैं, और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं, मगर उन्हें यह बात नहीं समझ आती। उन्हें यह बात क्यों नहीं समझ आती? क्योंकि वे मसीह-विरोधी के स्वभाव से संबंधित विभिन्न अभिव्यक्तियों को नहीं समझते, और ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह कहने से डरते हैं कि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव है या वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हैं। भले ही वे इसे समझते हों, मगर इसे कहने की हिम्मत नहीं करते; अगर उन्होंने जोर देकर यह बात कही, तो ऐसा लगेगा जैसे उन्हें कोसा जा रहा है या उनकी निंदा की जा रही है। वास्तव में, चाहे तुम इसे कहो या न कहो, क्या तुम्हारी स्थिति वही नहीं है? क्या यह इस तथ्य को बदल सकता है कि तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यह तथ्य कि तुम इसे नहीं समझते, यह साबित करता है कि सत्य के बारे में तुम्हारी समझ बहुत उथली है, और तुम्हें खुद की सच्ची समझ नहीं है।

3. धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य वांछनीय चीजें हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करना

इसके बाद, हम अपने लाभों के लिए षड्यंत्र कर रहे मसीह-विरोधियों की तीसरी अभिव्यक्ति पर संगति करेंगे—धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य जरूरी चीजें हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करना। बेशक, “अपने पद का उपयोग करने” को परमेश्वर में विश्वास करने की आड़ में धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य जरूरी चीजें हासिल करना भी कहा जा सकता है। क्या तुम लोगों ने आज से पहले इस मद के बारे में चिंतन-मनन और विचार करने की कोशिश की है? (नहीं, हमने नहीं की है।) क्या तुम लोगों ने ऐसे किसी व्यक्ति को कभी देखा है? क्या इस तरह के व्यक्ति के बारे में तुम लोगों की कोई राय है? क्या तुममें नफरत या घृणा की कोई भावना है? क्या तुम इस तरह के व्यक्ति के प्रति घृणा महसूस करते हो? (बिल्कुल।) वह किस तरह का व्यक्ति है? उसकी मानवता कैसी है? वह ये काम क्यों करता है? परमेश्वर में विश्वास करने में उसका दृष्टिकोण क्या है? क्या परमेश्वर इस तरह के व्यक्ति को बचाता है? अंतिम विश्लेषण में, परमेश्वर में उसके विश्वास का उद्देश्य क्या है? उसने अपने परिवार और करियर को त्याग दिया है, और कष्ट झेलने और कीमत चुकाने की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित की हैं, लेकिन अंतिम विश्लेषण में, धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करने में उसका क्या उद्देश्य है? क्या उसे पता है कि जब वह ऐसा करता है, तो परमेश्वर इससे घृणा करता है और नाराज होता है? क्या तुम लोगों ने पहले कभी इन सवालों के बारे में सोचा है? सच कहा जाए तो तुममें से ज्यादातर लोगों ने नहीं सोचा है। और तुमने क्यों नहीं सोचा है? कुछ लोग कहते हैं : “समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, इसलिए परमेश्वर के घर में उनमें से कुछ का होना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके अलावा, हम सभी खुद भी अनिवार्य रूप से इतने निर्मल नहीं हैं।” तुम खुद को सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति मानते हो, मगर फिर भी तुम कभी अपने कर्मों, सोच और विचारों के साथ-साथ दूसरों के कर्मों और व्यवहारों को ध्यान में नहीं रखते हो, और उन्हें देखने और परिभाषित करने के लिए सत्य के परिप्रेक्ष्य का उपयोग करके उनके और सत्य के बीच संबंध नहीं खोजते हो। तो, क्या तुम अभी भी सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो? क्या परमेश्वर में अपने विश्वास में तुमने जो सत्य समझे हैं, वे अभी भी तुम्हारे लिए महत्व और मायने रखते हैं? नहीं, वे नहीं रखते। जो लोग आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, जबकि उन्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, ऐसे सभी लोगों की आध्यात्मिकता नकली है, और उन्हें पूरे दिन नियमों का सख्ती से पालन करने या शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने के अलावा और किसी चीज की परवाह नहीं होती है, जैसा कि प्राचीन विद्वान करते थे, “केवल संतों की पुस्तकों का अध्ययन करने में लगे रहते और बाहरी मामलों पर कोई ध्यान नहीं देते थे।” जो लोग आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, वे सोचते हैं कि दूसरे लोग जो कुछ भी करते हैं उसका उन पर कोई असर नहीं पड़ता, यह कि दूसरे लोग जो भी सोचते हैं वह उनका अपना मामला है, और वे लोगों का भेद पहचानना, चीजों की असलियत देखना और परमेश्वर के वचनों के आधार पर परमेश्वर के इरादों को समझना सीखने से इनकार करते हैं। ज्यादातर लोग ऐसे ही होते हैं; धर्मोपदेश सुनने या परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, वे इसे कागज पर लिख लेते हैं, अपने दिलों में बसा लेते हैं, और इसे धर्म-सिद्धांतों या विनियमों की तरह मानते हैं, जिनका वे बस नाममात्र के लिए पालन करते हैं और बस उनका काम हो गया। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि उनके आस-पास होने वाली चीजें या अपने आस-पास के लोगों में वे जो विभिन्न व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ देखते हैं, वे इन सत्यों से किस तरह संबंधित हैं, इस बारे में वे कभी नहीं सोचते या अपने दिल में इस पर विचार करने की कोशिश नहीं करते, और न ही वे प्रार्थना या खोज करते हैं। ज्यादातर लोगों का आध्यात्मिक जीवन इसी तरह की स्थिति में होता है। इसलिए, कई लोग सत्य में प्रवेश करने में धीमे और सतही होते हैं; उनका आध्यात्मिक जीवन बेहद नीरस होता है, वे केवल विनियमों का पालन करते हैं, और उनके काम करने के तरीके में कोई सिद्धांत नहीं होता। यह कहा जा सकता है कि कई लोगों के लिए, उनका आध्यात्मिक जीवन वास्तविक जीवन से अलग और खोखला होता है; इसलिए, जब बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के ढिठाईपूर्ण व्यवहारों और अभिव्यक्तियों की बात आती है, तो उनके पास कोई भी अवधारणा नहीं होती, कोई परिभाषा होने की गुंजाइश तो और भी कम होती है; उनके पास न तो कोई विचार होता है और न ही वे कोई विवेक दिखाते हैं। अपने व्यक्तिगत लाभों के लिए षड्यंत्र करने में मसीह-विरोधियों के व्यवहारों, अभिव्यक्तियों और कहावतों के बारे में, तुम लोगों ने काफी कुछ देखा होगा, मगर अपने दिलों में तुमने कभी यह सोचने की कोशिश नहीं की कि वे किस तरह के लोग हैं, क्या वे परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य प्राप्त कर सकते हैं, क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं, और इसी तरह के कई और सवाल। इसके बजाय, तुम बिना किसी वास्तविक जुड़ाव के दिन भर लक्ष्यहीन ढंग से अपने कर्तव्य करते हो, अपना हर काम आधे-अधूरे मन से करते हो, और सत्य प्राप्त करने या सत्य वास्तविकता को समझने और उसमें प्रवेश करने में सक्षम होने की कोशिश नहीं करते। मसीह-विरोधी खुद के लाभों के लिए षड्यंत्र करने में अपने पद का उपयोग करते हैं और परमेश्वर में विश्वास करने की आड़ में परमेश्वर के घर की सभी जरूरी चीजों को धोखाधड़ी से प्राप्त कर लेते हैं। इन जरूरी चीजों में स्वाभाविक रूप से भोजन और पेय पदार्थ, साथ ही कुछ भौतिक आनंद की चीजें और ऐसी ही अन्य चीजें शामिल हैं। ऐसे लोगों का सार मसीह-विरोधियों के भौतिकवादी सार के समान ही है, जिसके बारे में हमने पहले बात की थी—यह उसी तरह के व्यक्ति का चरित्र है। वे केवल सभी प्रकार की भौतिक सुविधाओं का आनंद लेना चाहते हैं; वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और अच्छे कर्म तो और भी कम तैयार करते हैं। वे सत्य का अनुसरण करने का सिर्फ दिखावा करते हैं और सतही तौर पर ऐसा करते हुए दिखाई देते हैं। वे अपने दिल की गहराई में मूलतः खाने, पीने और अपने साथ अच्छा व्यवहार होने के दैहिक आनंद के पीछे भागते हैं, उनके दिमाग में लगातार यही चीजें रहती हैं। इस तरह के लोग काफी हैं; हर कलीसिया में एक या दो, और शायद इससे भी ज्यादा ऐसे लोग हो सकते हैं। आज, मैं सैद्धांतिक रूप से इन लोगों की अभिव्यक्तियों, व्यवहार और सार के बारे में बात नहीं करूँगा। मैं सबसे पहले कुछ विशेष प्रतिनिधिक मामलों के बारे में बात करूँगा और तुम सबको इसे सुनने, इससे अंतर्दृष्टि पाने, और यह देखने का मौका दूँगा कि ऐसे लोग इस मद से किस प्रकार संबंधित हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं और क्या वे अपने पद की आड़ में और परमेश्वर में विश्वास करने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ, धन और भौतिक चीजें हासिल करते हैं। इस तरह के व्यक्ति को पहचानने की कोशिश करो, और फिर सोचो कि जिन लोगों से तुम मिलते हो, क्या उनमें ये अभिव्यक्तियाँ हैं जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं। अगर ऐसा कोई व्यक्ति तुम्हें याद आता है, तो तुम लोग कुछ उदाहरण भी दे सकते हो। मुझे बताओ, क्या उदाहरण देना बेहतर है या फिर सामान्य तौर पर ऐसे ही संगति करते रहना? (उदाहरण देना बेहतर है।) उदाहरण देने से क्या फायदा होता है? पहली बात, ज्यादातर लोग इन कहानियों और वास्तविक जीवन के मामलों को सुनने के लिए तैयार होते हैं। उनमें किरदार और कथानक होते हैं, और ज्यादातर लोगों को ये दिलचस्प लगते हैं। यह वैसा ही है जैसे तुम अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बात करते हो : अगर तुम इस बारे में कोई लेख लिखते हो, तो लोग आम तौर पर इसे बस एक या दो बार पढ़ते हैं, लेकिन अगर तुम इस बारे में कोई फिल्म या नाटक बनाते हो, तो ज्यादा लोग इसे देखेंगे, और कई बार देखेंगे। इस तरह, लोग सत्य के इस पहलू या संबंधित लोगों, घटनाओं और चीजों को ज्यादा गहराई और ज्यादा स्पष्टता से देखेंगे, और इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, कुछ विशिष्ट उदाहरण देने से लोगों को सत्य के हरेक पहलू के और अपने बीच तुलना करने और संबंध को ज्यादा सटीकता से समझने में मदद मिलती है।

मामला एक : खाने-पीने की चीजें चुराने के लिए काम करने का दिखावा करना

सबसे पहले, आओ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कुछ सामान्य उदाहरण लें। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता काम के लिए नई जगह पर आते हैं, जहाँ वे अलग-अलग भाई-बहनों से मिलते हैं, उन्हें कुछ अच्छी चीजें देखने को मिलती हैं, और वे सोचते हैं, “ये अच्छी चीजें हैं। मेरे पास ये क्यों नहीं हैं?” क्या उनके मन में गलत विचार नहीं आते हैं? उनका लालच उभर आया है। जैसे ही लालच उभरता है, ये नीच और बेशर्म घिनौने लोग वहीं रुक जाते हैं और वहीं पर काम करते रहने और उस जगह को नहीं छोड़ने का हर बहाना ढूँढ़ते हैं। उस जगह को नहीं छोड़ने का उनका उद्देश्य क्या होता है? (ताकि एक दिन वे लाभ उठा सकें।) यह सही है, वे लाभ उठाना चाहते हैं। अगर उन्हें यह लाभ नहीं मिलता है तो उनकी रात की नींद उड़ जाएगी। उन्हें चिंता होती है कि अगर वे कहीं और चले गए, तो किसी और को यह लाभ मिल जाएगा और उन्हें यह मौका फिर नहीं मिलेगा, इसलिए वे उसी जगह पर धर्मोपदेश देने और काम करने का बहाना ढूँढ़ते हैं। दरअसल, वे मन में हमेशा इन वांछनीय चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, और उनकी नजरें हमेशा इन वांछनीय चीजों पर ही टिकी रहती हैं। आखिर में, वे उस जगह पर अपने पैर जमा लेते हैं, और ज्यादातर भाई-बहनें उनसे बहुत प्यार करते हैं, जानते हैं कि वे धर्मोपदेशक हैं, और उनकी आराधना और सम्मान करते हैं। अब इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह बताने का समय आ गया है कि उन्हें कुछ चाहिए, इसलिए वे इस विषय को उठाने के लिए सभी तरह के अलग-अलग तरीकों के बारे में सोचते हैं, मगर जितना ज्यादा वे अपना मुँह खोलते हैं, उन्हें उतनी ही बेचैनी होती है। वे मन में विचार करते हैं, “मुझे यह चीज कैसे माँगनी चाहिए? मैं भाई-बहनों को यह नहीं बता सकता कि मुझे यह चीज पसंद है और मुझे यह चाहिए। मुझे उन्हें इसे अपनी इच्छा से देने के लिए मजबूर करना होगा; मुझे उन्हें यह नहीं सोचने देना चाहिए कि मैं इसे माँग रहा हूँ, बल्कि वे उसे अपनी इच्छा से मुझे देना चाह रहे हैं, और बेशक मैं उस चीज को पाने का हकदार हूँ।” इसके बाद, वे भाई-बहनों से पूछते हैं, “आजकल तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा चल रहा है?” भाई-बहन कहते हैं, “जब से तुम आए हो, हमारे कलीसियाई जीवन में सुधार हुआ है और हर कोई जोश से भरा है।” “तुम लोगों के जोश में आने का मतलब यह है कि तुम्हारी आत्मा की स्थिति बेहतर है। तुम लोगों का कारोबार भी अच्छा चल रहा है। परमेश्वर की इच्छा से, भविष्य में तुम्हारा कारोबार और भी बेहतर चलेगा।” अगुआ और कार्यकर्ता बात करते हुए, बातचीत को उस चीज की ओर मोड़ लेते हैं जो उन्हें चाहिए। जब भाई-बहनों को यह स्पष्ट हो जाता है कि अगुआ और कार्यकर्ता वह चीज चाहते हैं, तो वे कहते हैं कि अगुआ और कार्यकर्ता जाते समय कुछ चीजें अपने साथ लेकर जाएँ। इस पर अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “नहीं, मैं इनमें से कुछ नहीं ले सकता। यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। इससे परमेश्वर नाराज होगा।” “कोई बात नहीं। तुम इसके हकदार हो।” “भले ही मैं हकदार हूँ, तो भी इसे नहीं ले सकता।” ऐसा कहने के बाद, उन्हें चिंता होती है कि भाई-बहन वास्तव में उन्हें वह चीज नहीं देंगे, इसलिए वे घुमा-फिराकर कुछ बातें कहते हैं, ताकि भाई-बहन उनकी अच्छाई के लिए उनका धन्यवाद करें, और साथ ही वे सक्रियता से उस चीज के बारे में बात भी करते रहते हैं जो उन्हें चाहिए ताकि भाई-बहन उन्हें कुछ देना याद रखें। इसके बाद, भाई-बहनों को यह स्पष्ट हो जाता है कि अगुआ और कार्यकर्ता क्या कहना चाहते हैं, और वे कहते हैं, “अच्छा अभी उस बारे में बात नहीं करते हैं। जब तुम यहाँ से जाने लगोगे, तब हम इस बारे में बात करेंगे।” भाई-बहनों को यह कहते सुन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का दिल बहुत खुश हो जाता है और वे सोचते हैं, “बहुत बढ़िया। आखिरकार मुझे जो चाहिए वह मिल जाएगा!” और फिर वे सोचते हैं, “अगर मैं कल ही चला जाऊँ, तो लोगों को साफ पता चल जाएगा कि मुझे वह चीज चाहिए। इसलिए मैं दो-तीन दिन बाद जाऊँगा।” जब आखिरकार तीसरा दिन आता है, तो भाई-बहन जाते समय उन्हें एक बहुत भारी पैकेज देते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता देखते हैं कि यह वही चीज है जो उन्हें चाहिए थी, मगर वे इसे नहीं देखने का दिखावा करते हैं और इसे अस्वीकार नहीं करते। वे बिना कुछ कहे बस वह पैकेज ले लेते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? ये वे लोग हैं जो अपने काम को एक साधन की तरह—और अपने श्रम को मुद्रा के रूप में—इस्तेमाल करते हैं, ताकि जरूरी चीजें पाने का षड्यंत्र कर सकें, और जो भाई-बहनों से जबरन चीजें लेते हैं। क्या यह एक तरह की धोखाधड़ी नहीं है? उनके काम का क्या मकसद है? दूसरों को ठग कर जरूरी चीजें पाना। जैसे ही उन्हें कोई ऐसी जगह मिलती है जहाँ कुछ जरूरी चीजें हैं और कुछ ऐसा है जो उन्हें चाहिए, तो वे वहीं रुक जाते हैं और वहाँ से जाना नहीं चाहते। वे हर अच्छी चीज अपने घर के लिए लेते हैं। कई सालों तक अगुआ या कार्यकर्ता रहने के बाद, उनके घरों में भाई-बहनों से ठग कर ली गई कई चीजें जमा हो जाती हैं। उनमें से कुछ ने भाई-बहनों से परिवार के गुप्त नुस्खे या विरासत की चीजें ठग लीं, तो कुछ ने छल से स्थानीय विशिष्ट उत्पादों को हासिल कर लिया। इन लोगों का परमेश्वर में विश्वास ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे जगह-जगह घूम रहे हैं और बदले में कुछ माँगे बिना काम कर रहे हैं, मगर वास्तव में, उन्होंने भाई-बहनों से बहुत सारी जरूरी चीजें ठग ली हैं।

जब कोई अगुआ किसी कलीसिया में आने के बाद देखता है कि वहाँ के बेर देश भर में मशहूर हैं, तो मन ही मन सोचता है “मुझे बेर खाना बहुत पसंद है। अगर मैं यहाँ पैदा हुआ होता तो रोज बेर खा सकता था, मगर दुर्भाग्य से मैं बहुत दिनों तक यहाँ नहीं रह सकता और बेर अभी पके नहीं हैं। मैं उन्हें कब खा पाऊँगा? मुझे पता है—मैं बेर पकने तक रुकने का कोई बहाना ढूँढ़ सकता हूँ, फिर मैं उन्हें खा पाऊँगा, है ना?” इसके बाद वह बहाना बनाता है कि यहाँ के ज्यादातर भाई-बहनों की मनोदशा बुरी है और वे अपने काम में कुछ भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उसे यहाँ लंबे समय तक रहकर, जाने से पहले काम को सही रास्ते पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। लेकिन, क्या वास्तव में उसके मन में यही बात है? (नहीं।) अपने दिल में, वह हिसाब लगा रहा है : “जब बेर पक जाएँगे और मैं थोड़े बेर अपने साथ ले जा सकूँगा, तभी मैं चला जाऊँगा।” उसका दिल इस विचार से भरा हुआ है, और यह विचार उसे वहीं रोक लेता है और वह वहीं अपना डेरा जमा लेता है। वहाँ रहते हुए, वह कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के उपदेश देता है और कुछ सतही काम करता है, मगर काम के मामले में ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाता। आखिरकार बेर पक जाते हैं, और उसका दिल खुशी से झूम उठता है : “आखिरकार मैं बेर खा सकता हूँ। जिस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार था, आखिर वह दिन आ गया है!” जैसे ही बेर पक जाते हैं, वह उन्हें खाने लगता है, साथ ही अपने दिल में यह भी सोचता है, “मेरे लिए यहाँ रहकर हर दिन सिर्फ बेर खाना ठीक नहीं है। मैं सिर्फ बेर खाने के लिए नहीं रुक सकता। अगर भाई-बहनों को भनक लग गई तो क्या होगा? मुझे कोई ऐसा तरीका सोचना होगा जिससे वे खुद ही मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर दे दें। अगर वे मुझे बेर नहीं देते, तो मुझे कड़ी मेहनत करनी होगी और इस बात को आगे बढ़ाने के लिए कुछ और कहना होगा।” जैसे ही वहाँ रहने वाले भाई-बहन देखते हैं कि उसे बेर खाना पसंद है, वे कहते हैं कि जाते समय वे उसे अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर दे देंगे। यह सुनकर उसे खुशी होती है, मगर उसकी जबान यह कहती है, “मैं इसे नहीं ले सकता। यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। विश्वासी यह लालच नहीं कर सकते। क्या मैं तुम लोगों का फायदा नहीं उठा रहा होऊँगा? मैं तुम्हें पैसे दिए बिना इसे नहीं ले सकता। जाते समय मैं तुम लोगों को इसके पैसे दे दूँगा।” उसकी कही ये बातें सिर्फ बातें ही हैं। जब उसने अपना पेट भर लिया है, और अब जाने का समय आया है, तब भी उसके दिल में हमेशा यही चलता रहता है, “क्या वे मुझे एक भी बेर नहीं देंगे या फिर क्या कुछ खराब बेर ही देंगे? मैं बड़े-बड़े, अच्छे बेर खाना चाहता हूँ।” जाने से दो दिन पहले, वह यही कहता रहता है, “सारे बेर शायद तोड़ लिए गए हैं, है ना? अगले साल वे कब पकेंगे?” जिससे उसका मतलब भाई-बहनों को यह याद दिलाना होता है कि वे उसे साथ ले जाने के लिए कुछ बेर देना न भूलें। भाई-बहन यह सुनते ही समझ जाते हैं : “ऐसा लगता है कि हमें उसे जाने से पहले अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर देने ही होंगे, और अच्छे वाले बेर देने होंगे; नहीं तो वह हमारे लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।” जब आखिरकार उसके जाने का समय आता है, तो भाई-बहन उसे अपने साथ ले जाने के लिए बेरों के तीन बड़े-बड़े डिब्बे देते हैं। वह उन्हें अकेले नहीं उठा सकता और अपने अधीन काम करने वाले लोगों से मदद करने को कहता है। जाने से ठीक पहले, वह जितना खा सकता है, खा लेता है—फिर चाहे वह बीमार ही क्यों न पड़ जाए, मगर उसे लगता है कि यह इसके लायक है। उसे डर है कि जाने के बाद वह उन्हें फिर से नहीं खा पाएगा। वह न चाहते हुए भी वहाँ से निकलता है, और सोचता है, “इस बार के लिए इतना काफी है। मैं अगले साल इसी समय फिर आऊँगा। मुझे बहुत जल्दी आने की जरूरत नहीं है, मगर मैं बहुत देर से भी नहीं आ सकता। मुझे बेर पकते ही आ जाना चाहिए। इस तरह मैं कुछ ताजे बेर भी खा सकूँगा, और उनके सूखने के बाद कुछ सूखे बेर भी खा सकूँगा। मैं जाते समय कुछ बेर अपने साथ भी ले जा सकूँगा।” क्या वह इस बात का बहुत विस्तार से हिसाब नहीं लगाता? उसका दिल बस इन्हीं बातों के बारे में सोचता रहता है। वह हमेशा लाभ उठाने और जरूरी चीजें पाने के लिए षड्यंत्र करने के बारे में सोचता रहता है, साथ ही भाई-बहनों से ऐसी चीजें ठगने के बारे में भी सोचता है जो उसके अपने हित में हों। जो भी जरूरी चीज उसकी नजर में आती है वह उसे जाने नहीं देगा। भले ही वह कोई ऐसी चीज हो जो खास न हो, अगर वह उसकी नजर में आती है और उसके मन में छप जाती है, तो यह पक्का है कि वह आखिरकार उस पर अपना हाथ साफ करके ही रहेगा। क्या यह एक मसीह-विरोधी का व्यवहार नहीं है? क्या इस तरह के लोगों की मानवता और चरित्र खास तौर पर नीच नहीं है? इस तरह के लोग चाहे कितनी भी अच्छी तरह से कष्ट सह लें और सतही तौर पर कीमत चुकाएँ, और चाहे वे अपने परिवार और अपने करियर को कितना भी त्याग दें, क्या यह कहा जा सकता है कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? बिल्कुल नहीं। ये ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास करने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करते हैं।

कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार और काम करने के लिए हर तरह की जगहों पर जाते हैं और जब घर लौटते हैं तो वे हर जगह से अलग-अलग विशिष्ट स्थानीय उत्पाद या फिर भाई-बहनों से जबरन हासिल की गई चीजें भी लाते हैं। चाहे वह डिजाइनर कपड़े हों या इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान, अगर वह उन्हें पसंद आता है तो वे उसे नहीं छोड़ते और माँग ही लेते हैं। अगर तुम उन्हें वह नहीं देते, तो वे तुम्हारी काट-छाँट करने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाएँगे, तुम्हें समझाएँगे कि वे तुम्हें क्यों काट-छाँट रहे हैं और तब तक नहीं मानेंगे जब तक तुम आखिरकार उन्हें वह चीज नहीं दे देते। ये लोग अपने कर्तव्य निभाने की आड़ में अपने लिए हर तरह की जरूरी चीजें ठग लेते हैं और इन जरूरी चीजों को पाने की कोशिश में वे बेलगाम रवैया अपनाते हैं। कभी-कभार भाई-बहन उन्हें थोड़ा कुछ देते हैं, मगर इन लोगों को यह ज्यादा कीमती नहीं लगता तो वे कहते हैं, “नहीं, शुक्रिया। परमेश्वर ने मुझे भरपूर आशीष दिया है। मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है।” वे मना करने के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और भाई-बहनों को इस प्रकार छलते हैं कि वे उनसे आकर्षित हों और उनके बारे में ऊँचा सोचें। लेकिन, अगर भाई-बहन उन्हें वो चीज देते हैं जिसका ये लोग सपना देखते हैं, जिसकी उन्हें जरूरत है और जिस बारे में हर वक्त सोचते रहते हैं, तो वे इन चीजों को देखते ही उन्हें हड़पना चाहेंगे, और बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेंगे। कुछ महिलाएँ झाँसा देकर भाई-बहनों के हाथों से कॉस्मेटिक, अच्छे कपड़े और अच्छे जूते हड़प लेती हैं, और कुछ पुरुष भाई-बहनों के हाथों से उपकरण, मोटरसाइकिल या इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान ठग लेते हैं। वे हर जरूरी चीज को पाना चाहते हैं। भाई-बहनों के पास चाहे कोई भी अच्छी चीज क्यों न हो, अगर वह इन लोगों को पसंद आती है, तो वे धोखाधड़ी से उसे पाने के लिए तमाम तरह के तरीके सोचेंगे। इसके अलावा, ये लोग रात के खाने के लिए एक साथ इकट्ठा होने और असंयमित ढंग से खाने-पीने का लुत्फ उठाने के लिए भी तमाम तरह के बहाने बनाते हैं और सभी तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। किस हद तक? वे जहाँ भी जाते हैं, यही देखते हैं कि किसके परिवार के पास पैसा है और किसके परिवार का खान-पान अच्छा-खासा है, फिर वे उसी परिवार के साथ चिपके रहते हैं और वहाँ से नहीं जाते। फिर, वे सहकर्मियों के लिए सभाएँ आयोजित करने और रात्रिभोज आयोजित करने के लिए तमाम तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। और प्रत्येक रात्रिभोज में उनके शुरुआती शब्द क्या होते हैं? “आज हमारी सभा राज्य की सभा है। भोजन की यह मेज हमें राज्य के भोज का पूर्वानुभव देती है।” उनके तलवे चाटने वाले लोग कहते हैं, “आमीन। परमेश्वर का धन्यवाद!” कुछ तथाकथित अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो जहाँ भी जाते हैं, जमकर खाते-पीते हैं। हर भोजन में पौष्टिक तत्व होने चाहिए, और माँस-मछली होना चाहिए, और हर हफ्ते व्यंजन बदलने चाहिए; वे इन्हें दोहरा नहीं सकते। रात के खाने के बाद उन्हें बढ़िया चाय चाहिए, और वे यह कहते हुए बहाने बनाते हैं, “मैं चाय के बिना नहीं रह सकता। मेरे पास हर दिन बहुत ज्यादा काम होता है, तो मुझे देर रात तक काम करना होगा। अगर मैं खुद को जगाए रखने के लिए थोड़ी-सी चाय नहीं पीता, तो मैं रात को काम नहीं कर पाऊँगा।” उनकी जबान से तो यही निकलता है, मगर उनके दिल में क्या चल रहा होता है? “आज मैं जिस पद पर हूँ, वहाँ पहुँचना आसान नहीं था। क्या मुझे अपनी थोड़ी-बहुत धौंस नहीं जमानी चाहिए? साथ ही, मैंने जीवन में कुछ बेहतर चीजों का आनंद लेने का सपना देखा है, तो क्या मुझे अब इन चीजों का आनंद लेने के तमाम तरीकों के बारे में नहीं सोचना चाहिए? अगर मैं अपनी शक्ति का उपयोग अभी नहीं करता, तो जब यह चली जाएगी तब मुझे ऐसा करने का मौका नहीं मिलेगा। मुझे जितना हो सके उतना खाना-पीना चाहिए। क्या पता एक दिन ऐसा आए जब मेरे पास यह पद नहीं रहे और मैं इन चीजों का आनंद न ले सकूँ। तब मेरे पास यह मौका नहीं होगा। तो क्या मेरा पूरा जीवन बर्बाद नहीं हो जाएगा?” इस तरह के लोग काम करने की आड़ में धोखाधड़ी से खाने-पीने की चीजें हासिल करते हैं। वे थोड़ा काम करते हैं और कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, और फिर जरूरी चीजों को ठगना और अच्छी चीजें खाना चाहते हैं।

एक व्यक्ति था जो किसी जगह पर काम करता था, और वहाँ रहने वाले भाई-बहनों को हर दिन इस व्यक्ति के लिए एक मुर्गी काटनी पड़ती थी। उसने हर रोज एक मुर्गी खाने की आदत बना ली थी। यह सुनकर तुम्हें कैसा लग रहा है? (घिनौना।) भाई-बहन अंडे के लिए मुर्गियाँ पालते थे, और सिर्फ तभी मुर्गी काटते थे जब वह बूढ़ी हो जाती थी। जब से वह व्यक्ति आया, तब से अंडे देने वाली मुर्गियों को भी काटना पड़ा, इस वजह से मुर्गियों की तादाद कम हो गई और भाई-बहनों ने अपना संयम खो दिया। बाद में, उसे बर्खास्त कर दिया गया और वह अपने घर चला गया, मगर फिर भी अपनी इस गलत आदत को नहीं बदल सका। वह रोज अपनी पत्नी से खाने के लिए एक मुर्गी कटवाता, नहीं तो उससे बहस करता। यह कैसा व्यक्ति है? मुर्गी खाना उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। वह हर दिन, हर समय यही खाता था। बर्खास्त किए जाने के बाद भी उसे यही खाना था—वह इस पर निर्भर हो गया था। क्या इस व्यक्ति में कोई समस्या नहीं है? तुम लोग क्या कहते हो, क्या इस तरह के लोग अच्छे हैं? (नहीं।) संक्षेप में, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करने का झंडा लहराते हुए, अपने कर्तव्य करते समय सामने आने वाले अवसरों का फायदा उठाकर, हर मोड़ पर भाई-बहनों से जबरदस्ती उनकी संपत्ति छीनते हैं और धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करते हैं, वे अच्छे लोग नहीं हैं। उनका सार एक मसीह-विरोधी का सार है। वे काम करने के लिए चाहे कहीं भी जाएँ या कोई भी काम करें, वे सबसे पहले ऐसे मेजबान परिवार चुनते हैं जो अपेक्षाकृत समृद्ध हों और खुशहाल हों, ताकि वे उनका स्वागत कर सकें। ऐसी जगहें ढूँढ़ने के पीछे उनका क्या मकसद होता है? अच्छा खाना खाने और एक अच्छे घर में रहने के लिए—दैहिक सुख की संतुष्टि के लिए। कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ वे प्रतिकूल वातावरण के कारण नहीं रह सकते, मगर क्या वे अपने लालच और अपने इन विचारों को त्याग देंगे? नहीं, वे इन्हें नहीं त्यागेंगे। वे इस तरह की दूसरी जगहें खोजेंगे जहाँ उनकी मेजबानी हो। नतीजतन, विदेशी स्थानों में कई सालों तक काम करने के बाद, वे पूरी तरह से अलग दिखेंगे, और जब घर वापस लौटेंगे, तो वहाँ के भाई-बहन भी उन्हें पहचान नहीं पाएँगे—उनके चेहरे भरे हुए होंगे, उनके पेट गोल होंगे; वे बेहतर कपड़े पहनेंगे; वे ज्यादा नखरे दिखाएँगे, और दिखावा करेंगे। उनके जीवन की आध्यात्मिक प्रगति कैसे होगी? उनके जीवन में बिल्कुल भी प्रगति नहीं होगी; वे बस अच्छा खा रहे होंगे और अच्छे कपड़े पहन रहे होंगे, मोटे हो गए होंगे, और इतना खाना खाया होगा कि उनके जबड़े भारी हो गए और उनका पेट फूल गया होगा। चीन की मुख्यभूमि जैसे भयानक परिवेश में, कोई व्यक्ति चाहे जो भी कर्तव्य करे, वह एक बहुत ही तनावपूर्ण स्थिति होती है। भले ही वे कभी-कभी अच्छा खाएँ और आरामदायक मेजबान घरों में रहें, मगर उनका वजन नहीं बढ़ेगा। तो, वे किस प्रकार के लोग होते हैं जिनके खा-खाकर जबड़े भारी हो जाते हैं और पेट फूल जाते हैं? (वही जो रुतबे के लाभों में लिप्त रहते हैं।) यही वे लोग हैं जो हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि वे क्या खाएँगे, क्या पिएँगे और दिन में तीन बार के भोजन में वे किन चीजों का आनंद उठाएँगे। अगर इस तरह के लोगों को अच्छा खाना नहीं मिलता, तो उनका काम करने या अपने कर्तव्य निभाने का मन नहीं करता है। अगर उनका पेट भरा हुआ नहीं है, तो उनका दिमाग संतुलित नहीं होगा : “आज तो मैंने बहुत कम खाया। खाने में माँस तो बिल्कुल नहीं था, और खाने के बाद तुमने मुझे चाय भी नहीं दी। इसलिए, मैं तुम लोगों को नजरअंदाज करूँगा। जब तुम लोग कलीसिया के काम पर संगति करोगे, तो मैं नहीं बोलूँगा। मैं तुम लोगों से बदला लूँगा। किसने तुम लोगों से कहा कि मुझे अच्छा खाना नहीं देने से चलेगा? मुझे ऐसा खाना खाना पड़ रहा है, और तुम चाहते हो मैं तुम्हारे साथ संगति करूँ। ऐसा नहीं हो सकता!” उनके मन में यही होता है पर वे इसे जोर से कह नहीं सकते। वे बस इतना कहते हैं, “कल मैं बहुत देर रात तक काम करता रहा, इसलिए मुझे आज दोपहर को झपकी लेनी है।” क्या वे बहुत बड़े ठग नहीं हैं? वे दोपहर के बाद चार-पाँच बजे तक सोते हैं, और वहाँ बहुत से लोग उनका इंतजार कर रहे होते हैं, मगर वे उठना ही नहीं चाहते। अचानक, उन्हें सेब की खुशबू आती है तो वे यह सोचकर बिस्तर से उछल पड़ते हैं कि उन्हें कोई सेब नहीं मिलेगा। वे इसी तरह काम करते हैं, और इसी तरह अपना कर्तव्य निभाते हैं। ये लोग चाहे कहीं भी जाएँ, और चाहे वे परमेश्वर के वचनों को कैसे भी खाएँ-पिएँ या धर्मोपदेश सुनें, उनके इरादे और उद्देश्य नहीं बदलेंगे, न ही वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को त्यागेंगे। सभी भौतिक चीजें ही इस जीवन में उनके अनुसरण का लक्ष्य हैं; अच्छा खाना खाना, अच्छे कपड़े पहनना और अच्छी मेजबानी पाना ही इस जीवन में परमेश्वर में उनके विश्वास के लक्ष्य हैं। वे सोचते हैं कि इस जीवन में परमेश्वर में विश्वास करके, अगर वे लगातार अच्छी चीजें खाने, अच्छे कपड़े पहनने और अच्छे घरों में रहने में सक्षम हैं, साथ ही साथ अगर भाई-बहन भी उनका समर्थन करते हैं—अगर वे धोखाधड़ी से इन चीजों को हासिल कर सकते हैं—तो वे इस जीवन में संतुष्ट होंगे। इस संसार में, किसी सामान्य नौकरी में कड़ी मेहनत करके कोई व्यक्ति ज्यादा पैसा नहीं कमा सकता, और व्यापार करके पैसा कमाना आसान नहीं है—वे इस तरह की चीजों का आनंद नहीं ले पाएँगे। इसलिए, अपने मन में इस पर विचार करने के बाद, उन्हें यही लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करना ही सबसे अच्छा है, क्योंकि इसमें ज्यादा कोशिश करने की जरूरत नहीं होती है। उन्हें बस कुछ शब्द बोलने, थोड़ा इधर-उधर भागने और थोड़ा जोखिम उठाने की जरूरत है, और फिर वे अच्छा खा सकते हैं और अच्छे कपड़े पहन सकते हैं, यहाँ तक कि कई लोगों से अपना इंतजार भी करा सकते हैं, और अपने साथ बड़ी हस्तियों जैसा व्यवहार किए जाने का आनंद ले सकते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह से जीना शानदार है, और परमेश्वर में विश्वास करने के कारण उन्हें भरपूर आशीष मिला है। वे अक्सर भाई-बहनों के सामने कपटपूर्ण बातें कहते हैं, जैसे, “परमेश्वर ने हमें बहुत कुछ दिया है, प्रचुर मात्रा में दिया है और मनुष्य की माँग या चाह से बढ़कर दिया है।” ये शब्द सही हैं, मगर उनके व्यक्तिगत अनुसरण और चरित्र, और उनके विचारों, इरादों और उद्देश्यों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। उनकी हर बात लोगों को धोखा देने के लिए होती है। उनका इधर-उधर भागते रहना और खुद को खपाते रहने का बाहरी दिखावा भी लोगों को धोखा देने के लिए ही होता है। उनके दिलों की साजिशें, इरादे और लालच ही सच हैं। यह इन लोगों का चरित्र है। वे चाहे कुछ भी करें या कहीं भी जाएँ, इन भौतिक सुखों का उनके दिलों में सबसे ऊँचा स्थान रहता है, और वे उन्हें कभी नहीं त्यागेंगे और कभी नहीं भूलेंगे। भले ही तुम सत्य के बारे में कैसी भी संगति करो और चाहे तुम परमेश्वर के इरादों पर कैसी भी संगति करो, वे इस लालच और इन इच्छाओं से चिपके रहकर, और इन इरादों और उद्देश्यों को मन में बसाकर ही अपने कर्तव्य निभाएँगे, और चाहे उनके पास रुतबा हो या न हो, उनके इरादे नहीं बदलेंगे।

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