मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग चार) खंड दो
एक मसीह-विरोधी कलीसिया में जो भी थोड़ा-सा कष्ट सहता है या कीमत चुकाता है उसे अपने दायित्व का हिस्सा नहीं मानता, यह नहीं मानता कि यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य है जो उसे निभाना चाहिए, बल्कि इसे अपना योगदान मानता है जो परमेश्वर को याद रखना चाहिए। उसे लगता है, अगर परमेश्वर उसके योगदान को याद रखता है तो परमेश्वर को उसे तुरंत प्रतिफल देना चाहिए, उसे आशीष, वादे, विशेष भौतिक सुख प्रदान करने चाहिए, उसे फायदे और कुछ विशेष लाभ प्राप्त करने देना चाहिए। तब जाकर मसीह-विरोधी संतुष्ट होता है। एक मसीह-विरोधी की कर्तव्य की समझ क्या होती है? उसे नहीं लगता कि कर्तव्य कोई दायित्व है जिसे सृजित प्राणियों को वहन करना चाहिए, न ही यह कोई जिम्मेदारी है जिसे पूरा करने के लिए परमेश्वर के अनुयायी बाध्य हों। बल्कि उसे तो यह लगता है कि कर्तव्य-निर्वहन परमेश्वर के साथ सौदेबाजी का साधन है, जिसके बदले परमेश्वर से पुरस्कार प्राप्त किए जा सकते हैं, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी की जा सकती हैं और परमेश्वर में आस्था रखने के कारण उसका आशीष प्राप्त किया जा सकता है। उसे लगता है कि परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष उसके कर्तव्य-निर्वहन की पूर्वशर्त होनी चाहिए, इससे लोगों में परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न होती है, लोग अपने कर्तव्य करने में तभी सहज हो सकते हैं जब परमेश्वर सुनिश्चित करे कि वे भविष्य की चिंताओं से मुक्त हैं। उन्हें यह भी लगता है कि जो लोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं, उन्हें परमेश्वर की ओर से हर प्रकार की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए और उनका विशेष आदर होना चाहिए, लोगों को अपने कर्तव्य निर्वहन के दौरान परमेश्वर के घर के द्वारा हर तरह के लाभों का आनंद मिलना चाहिए। यही वो चीजें हैं जो लोगों को मिलनी चाहिए। मसीह-विरोधी अपने दिलों में इसी ढंग से सोचते हैं। सोचने के ये तरीके ही बिल्कुल मसीह-विरोधी दृष्टिकोण और सूक्तियाँ हैं और कर्तव्य के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। कर्तव्य-निर्वहन को लेकर सत्य के बारे में परमेश्वर का घर चाहे जैसे संगति करे, लेकिन मसीह-विरोधी के मन में पलने वाली चीजें कभी नहीं बदलतीं। अपने कर्तव्य-निर्वहन के प्रति वे सदा अपने ही दृष्टिकोण पर टिके रहेंगे। इस अभिव्यक्ति के संबंध में हम एक वाक्यांश का उपयोग कर सकते हैं—वो क्या है? यह कि भौतिक चीजों को बाकी समस्त चीजों से ऊपर रखना; यानी केवल वे चीजें असली हैं जो वे अपने हाथों में पकड़ सकते हैं और वादे करना बेतुका है। इन लोगों की अभिव्यक्तियों का सार भौतिकवादी है, है ना? (सही है।) भौतिकवाद का मतलब नास्तिकता है; वे केवल उसी के अनुसार चलते हैं जिसे वे देख और छू सकते हैं, उनके लिए केवल वही चीज मायने रखती है जिसे वे देख सकते हैं और वे ऐसी किसी भी चीज के अस्तित्व को नकारते हैं जिसे वे नहीं देख सकते। इसलिए यह निर्धारित किया जा सकता है कि अपने कर्तव्य के प्रति एक मसीह-विरोधी का ज्ञान और समझ निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों के विपरीत है और यह पूरी तरह से अविश्वासियों के दृष्टिकोण जैसा ही है; वास्तव में वे छद्म-विश्वासी हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह भी नहीं मानते कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, सच्चा मार्ग हैं। उनका केवल यही मानना है कि शोहरत, लाभ और रुतबा ही वास्तविक हैं, वे जो कुछ भी चाहते हैं और जिन चीजों का आनंद लेते हैं, उन्हें केवल मानवीय प्रयासों और संघर्ष से ही पाया जा सकता है और उनके द्वारा चुकाई गई कीमत से पाया जा सकता है। यह उस दृष्टिकोण से कैसे भिन्न है जो कहता है, “लोगों को अपनी खुशी अपने हाथों से पैदा करनी चाहिए”? कोई फर्क नहीं है। वे यह नहीं मानते कि लोग परमेश्वर की खातिर अपना कर्तव्य अच्छे से करने के लिए खुद को खपाकर और कीमत चुकाकर ही अंततः सत्य और जीवन प्राप्त करते हैं। वे यह भी नहीं मानते हैं कि जो लोग परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम करते हैं और इस प्रकार मानक-स्तर के ढंग से अपना कर्तव्य करने लगते हैं, वे सृष्टिकर्ता की स्वीकृति और आशीष प्राप्त कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि वे मानवता के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा या परमेश्वर के आशीर्वाद में विश्वास नहीं रखते। वे इस तथ्य में विश्वास नहीं रखते कि सभी पर परमेश्वर की संप्रभुता है, इसलिए उनमें सच्ची आस्था नहीं होती। वे केवल यह मानते हैं, “मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, इसलिए मुझे परमेश्वर के घर से विशेष सत्कार और भौतिक सुख मिलना चाहिए। परमेश्वर के घर को मुझे हर भौतिक विशेषाधिकार और आनंद प्रदान करना चाहिए। यही असली चीज होगी।” यह होती है एक मसीह-विरोधी की मानसिकता और दृष्टिकोण। वे नहीं मानते कि परमेश्वर के वादे विश्वसनीय हैं, न ही वे इस तथ्य को मानते हैं कि सत्य प्राप्त करके व्यक्ति जीवन और परमेश्वर का आशीष पा लेता है। जब अपना कर्तव्य निभाने की बात आती है तो वे सत्य नहीं खोजते, वे सत्य स्वीकार नहीं करते और यह सत्य तो वे और भी कम स्वीकारते हैं कि : मनुष्य एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने में सक्षम है, यही परमेश्वर का दिया सबसे बड़ा आशीष है और यही वो चीज है जिसे परमेश्वर याद रखेगा, और इस प्रक्रिया के दौरान, मनुष्य सत्य प्राप्त करके आखिरकार परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है—यह परमेश्वर का मनुष्य से किया गया सबसे बड़ा वादा है। अगर तुम परमेश्वर द्वारा तुमसे किए गए वादों पर विश्वास करके इन वादों को स्वीकार सकते हो, तो तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था है। मसीह-विरोधी और छद्म-विश्वासी इन शब्दों को सुनकर कैसा महसूस करते हैं? (वे परमेश्वर की कही बातों पर विश्वास नहीं करते और उन्हें लगता है कि यह एक धोखा है।) उन्हें लगता है कि परमेश्वर द्वारा कहे गए ये वचन बस लोगों को भ्रमित करने के लिए हैं ताकि कुछ मूर्ख और सीधे-सादे बेवकूफ लोगों से परमेश्वर के लिए सेवा करवाई जा सके, और फिर जब उनकी सेवा समाप्त हो जाए तो उन्हें बाहर निकाल दिया जाए। वे सोचते हैं, “सत्य प्राप्त करें? हा! कौन देख सकता है कि सत्य क्या है? कौन जान सकता है कि परमेश्वर के वादे क्या हैं? किसी को ये मिले हैं? परमेश्वर के वादे यथार्थवादी नहीं हैं; केवल शोहरत और लाभ पाना और रुतबे के लाभों का आनंद लेना ही यथार्थवादी है; केवल शोहरत और लाभ के लिए प्रयास करना और रुतबे के लाभों का आनंद लेना ही वास्तविक है। मैं बरसों से परमेश्वर द्वारा मनुष्य से किए गए वादों और मनुष्य को दिए गए सत्य के बारे में सुनता आ रहा हूँ, और मैं बिल्कुल भी नहीं बदला हूँ, मुझे कोई लाभ नहीं मिला है, और न ही इन चीजों से मुझे रुतबे वाला उन्नत जीवन जीने में मदद मिली है। भले ही कुछ लोग गवाही देते हुए यह कहते हैं कि वे सत्य प्राप्त कर चुके हैं और बदल गए हैं और उन्हें परमेश्वर का आशीष मिल गया है, फिर भी वे बहुत साधारण दिखते हैं, वे सभी सामान्य लोग हैं तो फिर वे परमेश्वर से आशीष पाकर स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?” उन्हें लगता है कि केवल वही चीजें सबसे वास्तविक हैं जिन्हें वे अपने हाथों से पकड़ और प्राप्त कर सकते हैं। क्या यह छद्म-विश्वासियों का दृष्टिकोण नहीं है? बिल्कुल है। इसलिए एक बार जब ये मसीह-विरोधी कलीसिया में प्रवेश कर जाते हैं तो वे हर चीज को संदेह की नजर से देखते हैं, हमेशा सोचते रहते हैं कि उन्हें कहाँ से कुछ लाभ मिल सकता है, वे किस अवसर का उपयोग करके कुछ लाभ हासिल कर सकते हैं और परमेश्वर में अपनी आस्था से कैसे बड़े व्यावहारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं—वे अक्सर अपने मन में इन चीजों का हिसाब लगाते रहते हैं। उन्हें लगता है कि केवल शोहरत, लाभ और रुतबा पाकर ही वे हर लाभ प्राप्त कर सकते हैं और इसलिए वे रुतबे के पीछे भागने का विकल्प चुनते हैं और इन चीजों को पाने के प्रयास में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं। वे कभी भी सत्य पर चिंतन नहीं करते या परमेश्वर के इरादे नहीं जानना चाहते, और वे सत्य का अनुसरण करने के लिए नहीं, बल्कि केवल अपने दिलों को सुकून देने और अपने खालीपन को भरने के लिए ही परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं। अगर तुम किसी मसीह-विरोधी से किसी भी समय अपने लालच और इच्छाओं को छोड़ने, शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागना पूरी तरह से बंद करने और परमेश्वर में अपनी आस्था से जिन लाभों को वे पाना चाहते हैं उन्हें छोड़ने के लिए कहोगे तो वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। उन्हें इन चीजों को छोड़ने के लिए कहने से उन्हें ऐसा महसूस होता है जैसे तुम उनकी खाल उधेड़ रहे हो या उनकी पेशियाँ निकालने की कोशिश कर रहे हो; इन चीजों के बिना उन्हें ऐसा लगता है मानो उनका दिल उनसे छीन लिया गया है, जैसे उन्होंने अपनी आत्मा खो दी है और इन महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के बिना उन्हें लगता है कि परमेश्वर में उनकी आस्था की कोई उम्मीद नहीं बची है और जीवन निरर्थक है। उनकी नजरों में जो लोग केवल अपने कर्तव्य के लिए खुद को खपाते हैं, समर्पित करते हैं और कीमत चुकाते हैं, जो लोग व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहते हैं, वे सभी बेवकूफ हैं। सांसारिक आचरण के लिए मसीह-विरोधी जो सिद्धांत अपनाते हैं वह है “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।” वे सोचते हैं, “लोग अपने बारे में कैसे नहीं सोच सकते? लोग अपने लिए लाभ पाने की कोशिश कैसे नहीं कर सकते?” अपने दिलों में वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो सब कुछ त्यागकर ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं, वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभाते हैं और जो अपने भौतिक जीवन के मामले में बहुत ही साधारण और सादगी भरा जीवन जीते हैं, और वे उन लोगों से भी घृणा करते हैं जिन्हें बस इसलिए सताया जाता है क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और कर्तव्य निभाते हैं और इसी वजह से अपने घर वापस नहीं लौट पाते। वे अक्सर अपने दिलों में इन लोगों पर हँसते हुए कहते हैं, “तुम लोगों ने परमेश्वर में अपनी आस्था के कारण अपना घर खो दिया है। तुम अपने परिवार के साथ नहीं रह सकते और तुम बहुत कम पैसे में गुजारा कर रहे हो—तुम लोग निहायत ही बेवकूफ हो! कोई व्यक्ति चाहे कुछ भी करे, भले ही वह परमेश्वर में अपनी आस्था रखे, उसे सांसारिक आचरण के लिए एक सिद्धांत अपनाना चाहिए : नुकसान बिल्कुल भी नहीं उठाना है। उसे परमेश्वर के वादों और आशीषों को देखने और छूने में सक्षम होना चाहिए, और एकमात्र उचित रवैया जो लोग अपना सकते हैं वह यह है कि जब तक कोई लाभ न दिखे, काम शुरू मत करो। तुम लोग निहायत ही बेवकूफ हो! मुझे देखो। मैं परमेश्वर में विश्वास भी करता हूँ और शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भी भागता हूँ। मैं परमेश्वर के घर के सभी अच्छे व्यवहारों का आनंद लेता हूँ और भविष्य में भी आशीष पा सकता हूँ। मुझे कोई कष्ट सहने की जरूरत नहीं है और मुझे मिलने वाले आशीष तुम लोगों से ज्यादा ही होंगे। इस बात की निश्चितता के बिना कि मैं भविष्य में कोई आशीष प्राप्त कर सकूँगा या नहीं, मैं तुम लोगों की तरह अपने परिवार और नौकरियों को त्यागकर और घर वापस आने में असमर्थ होकर कोई कीमत नहीं चुकाता।” ये लोग क्या चीज हैं? वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं करते और फिर भी वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो अपने परिवारों और नौकरियों को त्यागकर कष्ट सहते हैं और अपना कर्तव्य करने, परमेश्वर का आदेश पूरा करने और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने की खातिर कीमत चुकाते हैं। क्या ऐसे बहुत से लोग हैं? (हाँ।) हर कलीसिया में ऐसे कुछ लोग होते हैं। क्या ये लोग परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हैं? क्या उन्हें बचाया जा सकता है? (नहीं।) वे परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं, उन्हें बचा लिए जाने की संभावना नहीं है।
मसीह-विरोधी चाहे किसी भी समस्या का सामना करें या वे कुछ भी करें, उनके मन में सबसे पहला विचार यह नहीं होता कि वे सत्य और उद्धार प्राप्त कर सकते हैं या नहीं, बल्कि वे अपने सभी दैहिक लाभों के बारे में सोचते हैं। उनके दिलों में, उनकी देह से संबंधित सभी लाभों का सबसे महत्वपूर्ण, सबसे ऊँचा, सर्वोच्च स्थान होता है। अपने दिलों में, वे कभी भी परमेश्वर के इरादों पर विचार नहीं करते, कभी भी परमेश्वर के कार्य पर विचार नहीं करते और यह तो बिल्कुल भी नहीं सोचते कि मनुष्य को क्या कर्तव्य निभाना चाहिए। परमेश्वर चाहे जैसे भी लोगों से मानक-स्तर तक अपने कर्तव्य का निर्वहन करने की अपेक्षा करे, परमेश्वर चाहे जैसे भी लोगों से मानक-स्तर के सृजित प्राणी होने की अपेक्षा करे, मसीह-विरोधियों पर इन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर चाहे कोई भी तरीका अपनाए या कोई भी वचन बोले, वह इन लोगों को प्रेरित नहीं कर सकता और उन्हें अपना इरादा बदलने और अपना लालच और इच्छाएँ त्यागने के लिए तैयार नहीं कर सकता। ये लोग नाम और तथ्य दोनों ही प्रकार से मसीह-विरोधियों के बीच भौतिकवादी और छद्म-विश्वासी हैं। तो क्या इन लोगों को मसीह-विरोधियों की श्रेणियों में तलछट माना जा सकता है? (हाँ, क्योंकि कुछ मसीह-विरोधी अभी भी रुतबे की खातिर कुछ सेवा प्रदान कर सकते हैं, जबकि ये लोग सेवा करने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं।) यह सही है। ये लोग लाभ चाहते हैं, वे दिन भर केवल लाभ पर ही अपनी नजरें गड़ाए रखते हैं और उसी के बारे में सोचते रहते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं वह लाभों के इर्द-गिर्द ही घूमता है। कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य करते हैं और जब उनके पास अंडे, चावल या आटा खत्म हो जाता है तो वे तुरंत कलीसिया से किसी को इन चीजों को खरीदने के लिए भेजने को कहते हैं। वे खुद कुछ नहीं खरीदते; मानो मेजबानी का कर्तव्य करना शुरू करने से पहले उन्होंने अपने घर में कभी ये चीजें खाई ही नहीं। वे ये सब चीजें खुद खरीदते थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने यह कर्तव्य करना शुरू किया, वे बहाने देने लगे, खुद को सही और आत्मविश्वासी महसूस करने लगे, और कर्ज वसूलने वाले, परमेश्वर के घर के लेनदार बनने लगे, मानो परमेश्वर के घर पर उनका कुछ कर्ज हो—इस तरह के लोग अच्छे नहीं होते।
मैं मुख्य भूमि चीन में कुछ मेजबान घरों में ठहर चुका हूँ और इनमें से कुछ भाई-बहनों में बेहतरीन मानवता थी। भले ही उन्हें विश्वास रखे हुए केवल दो या तीन साल हुए थे और वे ज्यादा सत्य नहीं समझते थे, फिर भी वे मेजबानी का कर्तव्य गंभीरता से निभाते थे। अगर परमेश्वर का घर उन्हें पैसे देने की कोशिश करता था तो वे ठुकरा देते; भाई-बहन उन्हें कुछ भी देते तो वे उस चीज के पैसे उन्हें चुका देते और वे परमेश्वर के घर से जुड़ी किसी भी चीज को ध्यान से सुरक्षित रखते थे; अगर परमेश्वर के घर द्वारा खरीदी गई कोई चीज इस्तेमाल नहीं हुई तो वे उसके बराबर मूल्य परमेश्वर के घर को दे देते थे। कुछ लोग जो आर्थिक रूप से संपन्न थे, वे अपनी इच्छा से मेजबानी करते और परमेश्वर के घर द्वारा दिया गया एक भी पैसा नहीं लेते थे। कुछ लोग अमीर नहीं थे, फिर भी वे परमेश्वर के घर द्वारा दिया गया कोई भी पैसा नहीं लेते थे। कलीसिया या भाई-बहन मेजबानी के लिए उनके घर को जो कुछ भी देते, वे उसमें से कुछ भी गबन नहीं करते थे। क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि वे सत्य समझते थे? नहीं, यह चरित्र का मामला था। इसके अलावा और सबसे जरूरी बात यह है कि वे सच्चे विश्वासी थे और साथ ही अच्छे चरित्र वाले होने के कारण वे ऐसा करने में सक्षम थे, अन्यथा वे ऐसा नहीं कर पाते। मैं कुछ मेजबानों के घर गया हूँ और मेजबानों ने मुझे ओढ़ने के लिए अपना सबसे अच्छा लिहाफ और कंबल दिया तो मैंने कहा, “ये बिल्कुल नए हैं और इन्हें इस्तेमाल नहीं किया गया है। इन्हें वापस बंद करके रख दो, मैं इनका इस्तेमाल नहीं करूँगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं इनका इस्तेमाल करूँ। फिर कुछ मेजबान ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने मेरे इस्तेमाल के लिए सभी नई चीजें खरीदीं, जिस पर मैंने कहा, “नई चीजें मत खरीदो, यह पैसे की बर्बादी है। मैं बस वही इस्तेमाल करूँगा जो तुम्हारे पास अभी है। पैसे खर्च मत करो। मैं जहाँ भी जाता हूँ, लोगों से कभी भी अपने लिए ऐसी चीजें खरीदने को नहीं कहता। हमेशा नई चीजों का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं है।” कुछ लोगों ने फिर भी यह पैसा खर्च करने पर जोर दिया। कुछ मेजबान ऐसे भी थे जिन्होंने खाने के समय कई व्यंजन बनाए। क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि मुझे क्या खाना पसंद है, इसलिए उन्होंने बहुत सारे व्यंजन बनाए ताकि मैं अपनी पसंद का खाना खा सकूँ, क्योंकि अगर वे केवल कुछ ही व्यंजन बनाते तो उन्हें चिंता होती कि मैं ठीक से नहीं खा पाऊँगा। ऐसे भी बहुत से लोग हैं। हालाँकि, कुछ मेजबान अलग हैं। जब मैं इन मेजबानों के पास ठहरा, तो वे काम चलाने के लिए अंधाधुंध मेरे लिए कुछ रोजमर्रा की जरूरत की चीजें ले आए, खाना बनाते समय सिर्फ उन्हीं चीजों का इस्तेमाल किया जो भाई-बहन उनके लिए लेकर आए थे और जब उन्हें बाहर जाकर अन्य चीजें खरीदने की जरूरत पड़ती तो वे मेरे सामने पैसों के लिए हाथ फैलाते थे। फिर कुछ दूसरे मेजबानों के घर हैं जहाँ मैंने कुछ सामान सुरक्षित रखने के लिए छोड़ दिया था। जब मैं कुछ समय तक वापस नहीं गया तो उन्होंने किसी औजार से मेरी दराज खोल डाली और फिर उसमें से कुछ चीजें गायब हो गईं। वे सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सभी मेजबानी का कर्तव्य निभाते हैं, मगर क्या उनके बीच कोई बड़ा अंतर है? परमेश्वर में विश्वास करने वाले कुछ लोग ऐसी चीजें कर सकते हैं—क्या मनुष्य ऐसा करते हैं? लुटेरे, डाकू, गुंडे और बदमाश ही ऐसा करते हैं। क्या सच्चे विश्वासी ऐसी चीजें करने में सक्षम हैं? अगर कोई सच्चा विश्वासी तुम्हारा कोई सामान सुरक्षित रखता है तो चाहे तुम कितने भी समय के लिए दूर रहो, चाहे आठ या दस साल ही क्यों न बीत जाएँ, वह हमेशा तुम्हारे लिए इसे सुरक्षित रखेगा; वह इसे छुएगा भी नहीं, इसे देखेगा भी नहीं और इसमें ताक-झाँक भी नहीं करेगा। हालाँकि, कुछ मेजबानों के साथ, अगर तुम उनके घर पर कुछ छोड़कर जाते हो तो वे तुम्हारे दरवाजे से बाहर निकलते ही इसे खोल डालेंगे और अंदर रखी चीजों पर नजर दौड़ाएँगे। वे किस चीज की तलाशी ले रहे हैं? वे तुम्हारे बैग की तलाशी लेंगे, यह देखने के लिए कि क्या उसमें कोई कीमती चीज, जैसे कि गहने, मोबाइल फोन या पैसे हैं—वे इन सभी चीजों की तलाशी लेते हैं। कुछ महिलाएँ किन-किन चीजों की तलाशी लेती हैं? वे देखना चाहती हैं कि क्या तुम्हारे पास कोई अच्छे कपड़े हैं। एक बार तलाशी ले लेने के बाद वे सोचती हैं, “अरे, ये कपड़े तो बहुत अच्छे हैं। मैं इन्हें पहनकर देखती हूँ।” मुझे बताओ, क्या ऐसी घटनाएँ नहीं होती हैं? (होती हैं।) तुम्हें कैसे पता? क्या तुम लोगों ने ऐसा होते देखा है? मेरे पास यह कहने के लिए ठोस सबूत है कि ऐसी चीजें होती हैं। एक बार पतझड़ के अंत में मैंने अपने कुछ कपड़े एक मेजबान के घर पर छोड़ दिए थे। एक दिन अचानक पहनने के लिए मुझे उनमें से कुछ कपड़ों की याद आई तो मैं उन्हें वापस लाने की सोचकर उस मेजबान के घर गया। सोचो क्या हुआ होगा। जब मैं घर में घुसा तो वहाँ बूढ़ी मेजबान महिला मेरा ऊनी कोट पहनने की कोशिश कर रही थी। यह सिर्फ एक संयोग था कि मैंने उसे देख लिया। मैंने पूछा, “तुम क्या कर रही हो?” वह हैरान रह गई। उसने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा संयोग भी होगा कि मैं उसकी ये हरकत देख लूँगा और वह बहुत शर्मिंदा थी। लेकिन इस तरह के लोग बड़े ढीठ होते हैं तो उसने तुरंत कहा, “अरे, क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारा ऊनी कोट मुझ पर एकदम सही जँचता है?” मैंने कहा, “यह मेरा कोट है। अगर तुम इसे पहनती हो तो मैं इसे नहीं पहन सकूँगा।” उसने कहा, “ये लो, मुझे यह नहीं चाहिए।” मैंने जवाब दिया, “अगर तुम्हें यह नहीं चाहिए तो तुम इसे पहनने की कोशिश क्यों कर रही हो? क्या अलमारी के दरवाजे पर ताला नहीं लगा था?” उसने कहा, “दरअसल आज मेरे पास कुछ करने को नहीं था तो मैंने यूँ ही इसे बाहर निकाल लिया।” इस पर मैंने कहा, “यह तुम्हारा नहीं है तो तुम्हें इसे हाथ नहीं लगाना चाहिए था।” यह सच में घटी एक घटना का उदाहरण है। मुझे नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया। मुझे बताओ, क्या ऐसा इंसान परमेश्वर का विश्वासी है? क्या मुझे ऐसे लोगों को परमेश्वर का विश्वासी और परमेश्वर के घर का सदस्य कहना चाहिए? (नहीं।) वे परमेश्वर के अनुयायी होने के योग्य नहीं हैं, वे शैतान के गिरोह में से एक हैं, उनमें बिल्कुल भी शर्म, जमीर या विवेक, कोई मानवता नहीं है—वे बदमाश हैं। क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को बचाएगा? इस तरह के लोगों में ईमानदारी और गरिमा या परमेश्वर के लिए सम्मान रत्ती भर भी नहीं होता है—परमेश्वर उन्हें बिल्कुल नहीं बचा सकता। परमेश्वर जो सत्य बोलता है और जो जीवन वह मनुष्य को देता है, वह ऐसे लोगों के लिए नहीं है; ये लोग परमेश्वर के परिवार के सदस्य नहीं हैं, बल्कि परमेश्वर के घर के बाहर के छद्म-विश्वासी हैं और वे शैतान के हैं। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार यह है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य से विमुख रहते हैं, इसके अलावा उनका चरित्र भी बेहद नीच और घृणित होता है और ऐसे लोग घटिया, घृणित और निंदनीय हैं। परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करने वाले इन लोगों की अभिव्यक्तियाँ, जिनके बारे में हमने अभी बात की, यह दिखाने के लिए काफी हैं कि चाहे ये लोग कोई भी कर्तव्य क्यों न करें, वे कभी भी वास्तव में खुद को नहीं खपाते और कभी भी इसे ईमानदारी से नहीं करते हैं। इसके बजाय वे अपने खुद के इरादों, लालच और इच्छाओं के साथ आते हैं, वे लाभ पाने के लिए दौड़ते हुए आते हैं, न कि सत्य प्राप्त करने के लिए। इसलिए तुम इसे कैसे भी देखो, परमेश्वर के लिए ऐसे लोगों की मानवता मानक-स्तर की नहीं है। तो मुझे बताओ, क्या तुम लोग ऐसे लोगों की मानवता को मानक-स्तर का मानते हो और क्या तुम उन्हें अच्छे लोग मानते हो? (नहीं।) तुम लोग भी ऐसे लोगों की निंदा करते हो, है ना? (हाँ।) जब कुछ लोगों को पता लगता है कि परमेश्वर के घर ने कुछ खरीदा है तो वे उसमें अपना हिस्सा चाहते हैं और जब वे देखते हैं कि भाई-बहन कपड़े दान कर रहे हैं तो इस बात की परवाह किए बिना कि वे इन्हें पाने के हकदार हैं या नहीं या उन्हें ये मिलने चाहिए या नहीं, वे इन्हें पाने की कोशिश करते हैं, दूसरों की तुलना में अधिक सक्रियता से काम करते हैं; लेकिन जब उन्हें सुनने में आता है कि परमेश्वर के घर में ऐसा कोई काम है जिसे करने की आवश्यकता है या कुछ गंदे या थकाऊ काम हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है तो वे तुरंत छिप जाते हैं और तुम उन्हें कहीं नहीं ढूँढ़ सकते। ऐसे लोग चालाक और धूर्त होते हैं, नीच चरित्र के होते हैं—वे घृणित, घिनौने और घटिया लोग होते हैं!
हर पहलू में अपने खुद के लाभ के लिए मसीह-विरोधियों की चिंता का गहन-विश्लेषण करने के लिए हम परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करने में उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों का उपयोग करके यह देख सकते हैं कि ये लोग छद्म-विश्वासी, भौतिकवादी, निंदनीय, नीच और निम्न चरित्र के घृणित लोग हैं और ये ऐसे पात्र लोग नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा। ऐसे लोगों की परिभाषा को उस स्तर तक ले जाने की जरूरत नहीं है जहाँ वे सत्य से विमुख होते हैं; हम पहले ही मानवता और चरित्र के मामले में उनकी असलियत देख सकते हैं तो इसे सत्य से संबंधित होने जैसा ऊँचा स्थान देने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए चाहे परमेश्वर के घर में हों या लोगों के किसी भी समूह में, ऐसे लोग हमेशा सबसे नीच और चरित्रहीन होंगे। अगर उन्हें परमेश्वर के घर में सत्य का उपयोग करके परखा जाए तो वे यकीनन और भी ज्यादा घृणित और नीच दिखाई देते हैं। क्या तुम लोगों के पास मसीह-विरोधियों द्वारा प्रदर्शित इस अभिव्यक्ति के और भी उदाहरण हैं? (एक मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के लिए किताबों की छपाई का काम सँभाल रहा था और उसने गलत लेखा-जोखा करके परमेश्वर की भेटों में से लाखों युआन का गबन कर लिया। जब उसकी छानबीन की गई तो पता चला कि यह कर्तव्य निभाना शुरू करने से पहले उसके परिवार के पास बहुत कम पैसे थे, मगर यह कर्तव्य निभाना शुरू करने के बाद उसने एक घर और एक गाड़ी खरीद ली, मगर बही-खातों से इन चीजों का पता नहीं लगाया जा सका। उसका पूरा परिवार वास्तव में बहुत क्रूर था और इसलिए भेंटों को वापस नहीं लाया जा सका।) क्या इस घटना के लिए अगुआ और कार्यकर्ता सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं थे? (थे। बाद में जब ज्यादा जानकारी सामने आई तो पता चला कि उस समय जो अगुआ और कार्यकर्ता जिम्मेदार थे, उन्होंने उन खातों की कभी भी जाँच नहीं की जिन्हें यह मसीह-विरोधी सँभाल रहा था। वे अपनी जिम्मेदारी में लापरवाह थे और यह स्थिति उनकी गैर-जिम्मेदारी के कारण उत्पन्न हुई थी। वे निश्चित रूप से सीधे तौर पर जिम्मेदार थे।) तो क्या उनके अपराधों को परमेश्वर की रिकॉर्ड बुक में दर्ज किया जाना चाहिए? (हाँ।) इसके बाद इन लोगों से कैसे निपटा गया? (कुछ लोगों को बहिष्कृत और निष्कासित कर दिया गया और कुछ लोग भेंटों की भरपाई कर रहे हैं।) उनसे निपटने का यही उचित तरीका है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपने कर्तव्य में लापरवाही की और इस मामले में अपनी निगरानी की जिम्मेदारियाँ निभाने में विफल रहे। खासकर उन्होंने गलत व्यक्ति का उपयोग किया और उन्होंने इस व्यक्ति पर नजर रखने या उसकी निगरानी करने का कोई प्रयास नहीं किया, वे जिस व्यक्ति का उपयोग कर रहे थे उसकी समस्याओं का सही समय पर पता नहीं लगा पाए और इसलिए गंभीर दुष्परिणाम सामने आए, जिसके कारण परमेश्वर की भेंटों और परमेश्वर के घर की संपत्तियों को काफी नुकसान हुआ; यह उन सभी लोगों की जिम्मेदारी थी जो सीधे तौर पर जिम्मेदार थे और उनके सभी अपराधों को दर्ज किया जाना चाहिए। यह नौकरी के लिए सही व्यक्ति का उपयोग न करके उनके द्वारा खुद पर लाया गया प्रतिकूल नतीजा था और इससे परमेश्वर के घर को नुकसान उठाना पड़ा और अंत में इसकी कीमत परमेश्वर की भेंटों के रूप में चुकानी पड़ी। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी हमेशा लालची होते हैं या ये बुरे विचार केवल तभी उनके मन में आते हैं जब वे कोई मूल्यवान चीज देखते हैं? (वे हमेशा लालची होते हैं।) यही कारण है कि जब तुम ऐसे लोगों के साथ जुड़ते हो और उनसे बातचीत करते हो तो तुम यकीनन उनके लालच और इच्छाओं को जान सकते हो। यह परिणाम अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जिम्मेदार न होने, लोगों का भेद न पहचानने, लोगों को स्पष्ट रूप से न देखने और लोगों का दुरुपयोग करने के कारण हुआ और इसलिए यह जिम्मेदारी उन पर भारी पड़ गई और वे निष्कासित किये जाने लायक ही थे।
हमने पहले मसीह-विरोधियों की प्रकृति, उनके सार, स्वभाव और उनके द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग के मुख्य पहलुओं के बारे में संगति की थी। आज हम मसीह-विरोधियों की मानवता के दायरे में आने वाली अभिव्यक्तियों पर संगति और उनका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं और यह वास्तविक जीवन से संबंधित है। यूँ तो यह एक मामूली पहलू है, फिर भी इससे लोगों को मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियाँ पहचानने में मदद मिल सकती है; ये मसीह-विरोधियों की कुछ स्पष्ट विशेषताएँ, संकेत और प्रतीक भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी मसीह-विरोधी को रुतबा, शोहरत, लाभ और प्रभाव पसंद है, वह बहुत स्वार्थी, घृणित और क्रूर है और वह सत्य से प्रेम नहीं करता तो उसकी मानवता और उसका चरित्र कैसा है? कुछ लोग कहते हैं, “भले ही कुछ मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे से प्यार करते हैं, फिर भी उनके पास सम्मानजनक और उत्कृष्ट चरित्र होता है और उनमें जमीर और विवेक भी होता है।” क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) क्यों नहीं है? चलो, इस बारे में बात ना ही करें कि मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार क्या होता है; पहले उनकी मानवता और चरित्र को देखते हैं। वे निश्चित रूप से अच्छे लोग नहीं हैं, वे गरिमा, जमीर या उत्कृष्ट सत्यनिष्ठा वाले लोग नहीं हैं, और वे सत्य से प्रेम करने वाले लोग तो बिल्कुल नहीं हैं। क्या ऐसी मानवता वाले लोग सही मार्ग पर चल सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि उनके चरित्र में सही मार्ग पर चलने वाला सार नहीं है और इसलिए ये लोग शायद सत्य से प्रेम नहीं कर सकते, इसे स्वीकारना तो दूर की बात है। जिस इरादे और रवैये से मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभाते हैं, उसे देखते हुए मसीह-विरोधियों का चरित्र और मानवता लोगों को उन्हें नकारने और उनसे विमुख होने के लिए मजबूर करती है, और इससे भी बढ़कर उन्हें परमेश्वर द्वारा ठुकराया जाता है। चाहे वे कोई भी कर्तव्य करें, वे हमेशा परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना चाहते हैं और उससे पुरस्कार, पैसा, वस्तुएँ और लाभ पाना चाहते हैं। और परमेश्वर उन्हें किस तरह के लोगों के रूप में देखता है? जाहिर है कि ये अच्छे लोग नहीं हैं। तो फिर, परमेश्वर अपनी नजरों में ऐसे लोगों को वास्तव में कैसे परिभाषित करता है? वह ऐसे लोगों को क्या नाम देता है? बाइबल में अनुग्रह के युग की एक कहानी दर्ज है : यहूदा अक्सर पैसे की थैली से चोरी करता था और अंत में उसे परमेश्वर ने एक काम करने के लिए इस्तेमाल किया, वह था प्रभु यीशु को धोखा देना। प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाया गया और यहूदा, जिसने अपने प्रभु और मित्रों से गद्दारी करने की भूमिका निभाई थी, वह पेट फटने से मर गया। इसलिए ये लोग जो परमेश्वर के घर की संपत्ति का गबन करते हैं और परमेश्वर की भेंटों को चुराते हैं, वे सभी परमेश्वर की नजरों में यहूदा हैं, यानी कि इन लोगों को परमेश्वर ने यहूदा नाम दिया है। भले ही ये मसीह-विरोधी जिनकी अब यहूदा के रूप में निंदा की जाती है, यहूदा की तरह अपने प्रभु और मित्रों से गद्दारी जैसी चीजें नहीं करते, मगर उनका स्वभाव सार वैसा ही है। उनमें क्या समानता है? वे परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करने के लिए अपने पद का और अपना कर्तव्य निभाने के अवसर का लाभ उठाते हैं। इसलिए इन लोगों को परमेश्वर ने यहूदा नाम दिया है और वे उसके समकक्ष हैं जिसने अपने प्रभु और मित्रों से गद्दारी की। यानी ये मसीह-विरोधी जो परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करते और उसे हड़प लेते हैं, यहूदा के समान हैं जिसने अपने प्रभु और मित्रों से गद्दारी की थी और यह समझने के लिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोगों का क्या परिणाम होना है।
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