मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग चार) खंड एक
II. मसीह-विरोधियों के हित
आज हम हमारी पिछली सभा के विषय पर संगति जारी रखेंगे। पिछली बार हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद के तहत मसीह-विरोधियों के हितों के दूसरे खंड पर संगति की थी। इस खंड में हमने उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में संगति की थी, है ना? (सही कहा।) जरा फिर से सोचो और मुझे इसका एक अनुमानित सारांश दो। हमने मसीह-विरोधियों की अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में मुख्य रूप से कितने बिंदुओं पर संगति की थी? (पिछली बार परमेश्वर ने दो बिंदुओं पर संगति की थी। पहला बिंदु था अपनी काट-छाँट किए जाने के प्रति मसीह-विरोधियों का रवैया। मसीह-विरोधी कभी भी अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं कर सकते या उसके प्रति समर्पण नहीं कर सकते, न ही वे इसे सत्य के रूप में स्वीकार सकते हैं। दूसरा बिंदु यह था कि मसीह-विरोधी लोगों के समूह में अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा कैसे करते हैं और उनकी क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं। मसीह-विरोधियों का सार प्रतिस्पर्धा करने वाला होता है और उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करनी ही है।) तो आओ, आज इस विषय पर संगति जारी रखें। पिछली बार मैंने तुम लोगों को क्या गृहकार्य दिया था? हमारी सभा के बाद मैंने तुम लोगों से किस विषय पर चिंतन और संगति करने के लिए कहा था? क्या तुम्हें याद है? (परमेश्वर ने हमसे कहा था कि हम मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर संगति और इनके गहन-विश्लेषण के आधार पर खुद को कसकर अपनी तुलना करें, ताकि हम देख सकें कि मसीह-विरोधियों के कौन-से स्वभाव हमारे अंदर हैं और हम चीजों को करने के लिए मसीह-विरोधियों की कौन-कौन सी प्रकृति पर निर्भर होते हैं।) यह मुख्य विषय था। उप-विषय किस बारे में था? (यह इस बारे में था कि मसीह-विरोधी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करते हुए कौन-सी प्रतिस्पर्धी प्रकृतियाँ प्रदर्शित करते हैं और इनके आधार पर खुद को कसकर अपनी तुलना करने के बारे में भी था ताकि हम देख सकें कि अपने वास्तविक जीवन में हम उन्हें कैसे प्रकट करते हैं और हम प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर चीजों को कैसे करते हैं, क्या कहते हैं और क्या करते हैं और हम अपने रुतबे की रक्षा करने के लिए भाई-बहनों से शोहरत और लाभ की होड़ करने की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं।) क्या कोई और इस बारे में कुछ कह सकता है? (परमेश्वर ने हमसे कहा था कि हम मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों पर संगति करते समय हमेशा इस बारे में बात न करें कि दूसरे लोग कैसे हैं, बल्कि उन्हें सामने रखकर अपनी तुलना करें और इस बारे में संगति करें कि हमारे ऐसे कौन-से स्वभाव और खुलासे हैं जो बिल्कुल मसीह-विरोधियों के जैसे हैं।) इसमें करीब-करीब पूरी बात आ गई है। लोगों के समूह में मसीह-विरोधियों के कार्य करने के तरीके का आदर्श वाक्य क्या था, जिस पर हमने पिछली बार संगति की थी? क्या इसने तुम लोगों पर कोई छाप नहीं छोड़ी? (उनका आदर्श वाक्य है “मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!”) तुम्हें यह याद है। तुम इसे कैसे याद रख पाए? (क्योंकि मसीह-विरोधियों का यह आदर्श वाक्य जिसके बारे में परमेश्वर ने बताया, “मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!” कुछ ऐसा है जिसे मैं खुद आमतौर पर अभिव्यक्त करता हूँ और अक्सर प्रकट करता हूँ। साथ ही परमेश्वर की संगति का लहजा काफी सजीव था और जिस तरह से परमेश्वर ने इन वचनों को व्यक्त किया वह मेरे अपने दिल की दशा से मेल खाता था, इसलिए इसने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी।) कभी-कभी जब मैं मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनके विभिन्न प्रकार के प्रकृति सार पर संगति करता हूँ और उनका गहन-विश्लेषण करता हूँ तो मैं थोड़ी रोजमर्रा की भाषा के साथ-साथ कुछ ऐसे लहजे और तरीके भी इस्तेमाल करता हूँ जिन्हें लोगों के लिए स्वीकारना आसान होता है, और जो लोगों पर गहरी छाप छोड़ते हैं, और मैं कुछ ऐसे उदाहरणों का भी उपयोग करता हूँ जो वास्तविक जीवन के काफी करीब होते हैं। ऐसा करने से लोगों को मसीह-विरोधियों का सार जानने और खुद को जानने में वाकई बहुत मदद मिलती है। यह लोगों के लिए खुद को जानने और अपने वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने के लिए भी फायदेमंद है, और यह मसीह-विरोधियों की तरह के स्वभाव को बदलने के लिए और भी अधिक अनुकूल है, है ना? (सही कहा।) तुम लोगों ने पिछली संगति का लगभग सही सारांश दिया है, मगर विवरण इन बातों से बढ़कर है—और भी बहुत सारे विवरण हैं। तुम लोगों को संगति सुनने के बाद एक सारांश तैयार करना चाहिए। कम से कम, संगति सुनने के बाद तुम लोगों को एक साथ इकट्ठा होकर इसे कई बार फिर से सुनना चाहिए और फिर हर कोई मिलकर सारांश तैयार कर सकता है। हमारी पिछली संगति के बारे में तुम लोगों का सारांश सुनने के बाद मैं कह सकता हूँ कि सबकी याददाश्त थोड़ी फीकी पड़ गई है, ऐसा लगता है जैसे तुमने एक या दो साल पहले यह संगति सुनी थी और इसने तुम पर कोई छाप नहीं छोड़ी। मुमकिन है कि तुम्हारे पास किसी खंड की कुछ अवधारणा और प्रभाव, एक या दो वाक्य या एक या दो बातें बची हों, मगर ऐसा लगता है कि ज्यादातर लोगों के पास मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए आवश्यक ज्ञान और गहन-विश्लेषण की कोई अवधारणा या प्रभाव नहीं है। इसलिए जिन मुद्दों पर हमने चर्चा की है उनके बारे में तुम लोगों को आपस में ज्यादा चिंतन-मनन और संगति करनी होगी। उन्हें गंभीरता से लिए बिना केवल उन्हें सुनकर एक तरफ मत रख दो। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम लोगों का सत्य में प्रवेश बहुत धीमा होगा—इन धर्मोपदेशों पर चिंतन-मनन न करने से काम नहीं चलेगा! तो, तुम लोग अपने कलीसियाई जीवन में इन धर्मोपदेशों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हो? क्या तुम लोग हर हफ्ते अपनी सभाओं में इन धर्मोपदेशों पर संगति करते हो? या क्या तुम नए धर्मोपदेशों और संगतियों को कई बार सुनते हो, ताकि तुममें से ज्यादातर लोगों पर उनका प्रभाव पड़े और गहन ज्ञान प्राप्त हो और फिर तुम उनके जरिये सत्य को समझ सको? क्या तुम ऐसा करते हो? (परमेश्वर, हम हर हफ्ते हमारी सभाओं में सबसे पहले परमेश्वर की नवीनतम संगतियों को खाते और पीते हैं।) कलीसिया के अगुआओं, प्रचारकों और निर्णायक समूहों में कलीसियाई जीवन के प्रभारी लोगों को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए; केवल इसी तरह से कलीसिया का कार्य अच्छे से किया जा सकता है।
ग. अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करना
1. परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना
आज हम मसीह-विरोधियों के हितों के तीसरे खंड—लाभ पर संगति करेंगे। लाभ क्या होते हैं? (आशीष पाना और हित।) यह बहुत साधारण व्याख्या है; यह शाब्दिक अर्थ है। थोड़ा और समझाओ—लाभ क्या होते हैं? (लाभ वे भौतिक और गैर-भौतिक हित, वांछनीय चीजें और सुविधाएँ हैं जो लोग अपना कर्तव्य करके या दुनिया में काम करके हासिल कर सकते हैं।) यह व्याख्या सही है। लाभ एक तरह के अच्छे व्यवहार हैं जो लोगों को उनके वेतन के अतिरिक्त मिलते हैं, और इसमें रोजमर्रा की जरूरत की चीजें, भोजन या कूपन आदि शामिल हैं। वे ऐसी सुविधाएँ और भौतिक या गैर-भौतिक व्यवहार भी हैं जो किसी व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने के दौरान मिलते हैं; ये सभी चीजें लाभ हैं। अब मैंने इस शब्द का अर्थ समझा दिया है तो क्या तुम लोग उन विषय-क्षेत्रों, उदाहरणों और अभिव्यक्तियों के बारे में जानते हो जिन पर हम इस खंड में संगति करेंगे? अभी तुम लोगों के मन में कुछ लोगों के व्यवहार और क्रियाकलाप कौंध रहे हैं, साथ ही वे लोग भी जो ये काम कर सकते हैं, है ना? सबसे पहले तुम्हें कौन-से लोग याद आते हैं? (वे लोग जो कलीसिया के सहारे जीने के लिए अपने रुतबे का लाभ उठाते हैं।) ये एक प्रकार के लोग हैं। ये लोग अपने कर्तव्य भी करते हैं। उनमें से कुछ के पास रुतबा होता है, वे विभिन्न स्तरों पर अगुआ और कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक होते हैं, जबकि अन्य लोग सामान्य काम करते हैं। उन सभी में कौन-सी अभिव्यक्ति एक समान है? अपने कर्तव्य निभाते हुए वे अपनी देह के लिए, अपने परिवार और अपने आनंद के लिए लगातार कुछ काम और कुछ चीजें करते रहते हैं। हर दिन वे भाग-दौड़ करते हैं और कीमत चुकाते हैं और वे यह बात हमेशा ध्यान में रखते हैं कि इस काम को या इस कर्तव्य को करने से उन्हें कौन-सी वांछनीय चीजें मिलेंगी। वे हमेशा इस बारे में योजना बनाते और हिसाब लगाते रहते हैं कि इससे उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ और मनपसंद व्यवहार मिल सकते हैं। एक बार जब उन्हें पता चल जाता है तो वे इन चीजों को पाने के लिए कुछ भी करेंगे और इससे भी बढ़कर, वे निश्चित रूप से इन सुविधाओं को और अपने लिए इन हितों को पाने का कोई भी मौका नहीं गँवाएँगे। इस मामले को लेकर तुम कह सकते हो कि वे निर्मम और संवेदनहीन हो जाते हैं और वे निश्चित रूप से अपनी ईमानदारी और गरिमा पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। उन्हें यह डर नहीं है कि भाई-बहन उन्हें नकारात्मक नजरों से देख सकते हैं और वे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं करते कि इस कारण परमेश्वर उनका कैसे मूल्यांकन कर सकेगा। वे बस चोरी-छिपे चिंतन-मनन करते और योजना बनाते हैं कि वे जो कर्तव्य कर रहे हैं उसका लाभ कैसे उठाया जाए ताकि वे सभी लाभकारी व्यवहारों का आनंद ले सकें। इस प्रकार, ऐसे लोगों के पास एक तरह का विचार और तर्क होता है, जिसे सतही तौर पर गलत नहीं माना जा सकता, जो यह है : “परमेश्वर का घर मेरा परिवार है और मेरा परिवार परमेश्वर का घर है; जो मेरा है वह परमेश्वर का है और जो परमेश्वर का है वह मेरा है। लोगों के कर्तव्य उनकी जिम्मेदारियाँ हैं और वे सभी लाभ जो वे अपने कर्तव्यों से प्राप्त कर सकते हैं, वे परमेश्वर द्वारा दिए गए अनुग्रह हैं; लोग उन्हें ठुकरा नहीं सकते और लोगों को उन्हें परमेश्वर से स्वीकारना चाहिए। अगर मैं उन्हें प्राप्त नहीं करता हूँ तो कोई और करेगा, इसलिए बेहतर होगा कि मैं आगे बढ़कर इन लाभों का आनंद लूँ और विनम्र होने का दिखावा न करूँ और मुझे निश्चित रूप से विनम्रतापूर्वक कुछ भी ठुकराना नहीं चाहिए। मुझे बस इन लाभों को पाने की कोशिश करनी होगी और उन्हें विनम्र दिल और स्पष्ट रवैये से स्वीकारने के लिए अपना हाथ बढ़ाना होगा।” वे ऐसे लाभों को एक तरह के व्यवहार के रूप में देखते हैं जिसके वे स्वाभाविक रूप से हकदार हैं और जो उन्हें हथियाना ही चाहिए; यह वैसा ही है जैसे जब कोई व्यक्ति काम करता है और समय और कड़ी मेहनत झोंकता है तो उसे लगता है कि उसे मिलने वाला वेतन और पारिश्रमिक उसका उचित हिस्सा है। तो भले ही उसने इन चीजों का गबन किया हो और उन्हें पाने की कोशिश करके इन लाभों को प्राप्त किया हो, वे इसे गलत या ऐसा कुछ नहीं मानते जिससे परमेश्वर घृणा करता है, और वे इस बात की परवाह तो बिल्कुल भी नहीं करते कि भाई-बहनों की उनके बारे में कोई राय है या नहीं। मसीह-विरोधी इन सभी चीजों का आनंद लेते हैं, वे इन चीजों को पाने की कोशिश करते हैं और इससे भी बढ़कर, वे हर दिन अपने दिल में इन सभी चीजों के लिए षड्यंत्र करते हैं, मानो ऐसा करना पूरी तरह से सही और स्वाभाविक हो। यह मसीह-विरोधी लोगों की अपने कर्तव्य करने की नियमित स्थिति है और यह मसीह-विरोधी लोगों की अपने कर्तव्य करते हुए अपने निजी हितों के लिए तरकीब निकालने की नियमित स्थिति भी है। तो मसीह-विरोधियों की मानसिकता कैसी होती है? “जब लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं तो उन्हें बदले में कुछ पाने की कोशिश करनी होती है। क्योंकि मैंने यह कर्तव्य करने के लिए अपना परिवार त्याग दिया और क्योंकि मैंने परमेश्वर और उसके घर के लिए अपनी कड़ी मेहनत, ऊर्जा और समय दिया है, इसलिए मुझे उन सारे अच्छे व्यवहारों का मजा लेना चाहिए जो मैं चाहता हूँ।” मसीह-विरोधी इन सभी को ऐसी चीजों के रूप में देखते हैं जिनके वे स्वाभाविक रूप से हकदार हैं, ऐसी चीजें जिन्हें परमेश्वर को लोगों को अपने आप दे देनी चाहिए और इसके लिए लोगों को कोशिश करने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। मसीह-विरोधियों का यही दृष्टिकोण होता है। और इसलिए, अपना कर्तव्य करते हुए वे लगातार लाभ पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं और हमेशा इस बात से डरते हैं कि उनमें से कोई लाभ किसी और को मिल जाएगा और उनके लिए कम ही लाभ बचेंगे। यह मसीह-विरोधियों की अपने कर्तव्य करने की स्थिति है। अपना कर्तव्य करने के पीछे उनके इरादे, मंशाएँ और लक्ष्य अंततः किस पर आकर टिक जाते हैं? वे अपने लिए सभी लाभ हासिल करने के चक्कर में षड्यंत्र रचते हैं और सोचते हैं कि अगर ऐसा नहीं किया तो वे बड़े बेवकूफ होंगे और जीवन का कोई अर्थ नहीं होगा। यही मसीह-विरोधियों की मानसिकता है।
परमेश्वर मसीह-विरोधियों की प्रकृति या सत्य से प्रेम न करने की उनकी अभिव्यक्तियों को चाहे कैसे भी उजागर करे, वे अपने इन इरादों और अनुसरणों को नहीं छोड़ेंगे; वे लाभ पाने की कोशिश करते रहेंगे। उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं तो कलीसिया या भाई-बहन मेजबान घरों के लिए कुछ खाद्य पदार्थ या उपकरण खरीदते हैं या यहाँ तक कि उन्हें कुछ पैसे भी देते हैं। अगर यह कर्तव्य निभाने वाला व्यक्ति एक मसीह-विरोधी है तो वह अपने लिए जो वांछनीय चीजें पाने की कोशिश करेगा, वे महज माचिस या छोटे से चम्मच जैसी साधारण चीजें नहीं होंगी। वे कहते हैं, “मैं इन भाई-बहनों की मेजबानी करने के लिए अपना घर दे रहा हूँ और उनके कर्तव्य करने के दौरान उनकी सेवा कर रहा हूँ, इसलिए सारी चीजें और रुपए-पैसे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर को प्रदान करने चाहिए। मैं तुम्हें अपना घर दे रहा हूँ, तुम लोगों के लिए खाना बना रहा हूँ और तुम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा हूँ; यह पहले ही काफी है। जहाँ तक बाकी चीजों की बात है—तुम लोगों के खाने-पीने और इस्तेमाल की चीजें—ये कलीसिया द्वारा दी जानी चाहिए।” वास्तव में यह गलत नहीं है कि कलीसिया ये चीजें उपलब्ध कराएगी, मगर मैं यहाँ जिस बात पर संगति करना चाहता हूँ वह यह है कि मसीह-विरोधी जिस प्रकार मेजबानी का कर्तव्य करते हैं और दूसरे लोग जिस प्रकार ईमानदारी से यह कर्तव्य करते हैं, दोनों के बीच क्या अंतर है। जब मसीह-विरोधी मेजबानी का कर्तव्य करते हैं तो इस क्रियाकलाप को सिर्फ देखकर समझा नहीं जा सकता; उनकी अपनी छिपी हुई मंशाएँ होती हैं। वे सोचते हैं, “मैं यह मेजबानी का कर्तव्य निभा रहा हूँ, इसलिए मुझे इससे कुछ पाने के लिए षड्यंत्र करना ही होगा। कलीसिया थोड़ा भोजन और कुछ अन्य जरूरी चीजें उपलब्ध करा रही है तो भाई-बहनों के साथ-साथ मेरे परिवार के सदस्य भी वह भोजन खाएँगे और अपनी मर्जी से उन सारी चीजों का उपयोग करेंगे। मेरा परिवार परमेश्वर के घर का हिस्सा है, इसलिए जो परमेश्वर के घर का है वह मेरे परिवार का भी है।” मसीह-विरोधी इसी रवैये के साथ अपने कर्तव्य निभाते हैं, है ना? (हाँ।) इसलिए जब कुछ लोग मेजबानी के कर्तव्य करने लगते हैं तो उनके दिल बदलने लगते हैं, वे लगातार उन भौतिक चीजों और पैसों के बारे में सोचते हैं जो भाई-बहनों की मेजबानी में इस्तेमाल किए जाते हैं और अगर कोई इन चीजों पर ध्यान नहीं देता तो इन मसीह-विरोधियों को कुछ लाभ पाने का अवसर मिल जाता है। किस तरह का अवसर? वे चोरी-छिपे हिसाब लगाएँगे, “एक व्यक्ति एक दिन में इतना खर्च करता है तो जो भी पैसा बचेगा, मैं कलीसिया को वापस नहीं दूँगा; मैं इसे अपने पास रखूँगा। कम से कम यह पैसा मैंने कमाया है तो कोई मुझे इसे अपने पास रखने के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता; बेशक मैं इसी का हकदार हूँ!” फिर वे बचे हुए पैसे अपनी जेब में डाल लेंगे। कुछ मसीह-विरोधी भाई-बहनों द्वारा दान में दी गई या परमेश्वर के घर द्वारा दी गई कुछ भौतिक चीजों को अपने पास रखने के लिए सभी तरह के बहाने ढूँढ़ेंगे। कुछ जगहों पर जब भाई-बहन फिर से वहाँ रहने जाते हैं तो बिस्तर का गद्दा गायब हो जाता है, तकिए और लिहाफ गायब हो जाते हैं, माँस और सब्जियाँ गायब हो जाती हैं और जब वे अपने मेजबानों से इस बारे में पूछते हैं तो ये मसीह-विरोधी कहते हैं, “अगर भोजन को लंबे समय तक बचाकर रखते तो इसका स्वाद खराब हो जाता, इसलिए हमने इसे खा लिया।” क्या ये लालची लोग नहीं हैं? (हैं।) जैसे ही परमेश्वर के घर द्वारा दी गई भौतिक चीजें और साथ ही भाई-बहनों द्वारा मेजबान घरों के लिए खरीदी गई चीजें इन मसीह-विरोधियों के अधिकार-क्षेत्र में लाई जाती हैं, वे उनकी हो जाती हैं; वे अपने हिसाब से उन्हें इस्तेमाल करते हैं या खाते हैं या यहाँ तक कि उन्हें सीधे तौर पर अपनी संपत्ति मानते हैं और छिपा देते हैं। जब भाई-बहन फिर से वहाँ जाते हैं तो ये चीजें कहीं दिखाई नहीं देतीं। अगर कलीसिया को फिर से इन मसीह-विरोधियों के घरों का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े तो उसे उन चीजों को फिर से खरीदने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं और भाई-बहनों को फिर से उन चीजों को उनके घर लाना पड़ता है। यह देखकर मसीह-विरोधी खुश हो जाते हैं और सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास करना वाकई बहुत बढ़िया है! मैं कोई और काम करके इतनी जल्दी अमीर नहीं बन सकता; यह चीजें पाने का अब तक का सबसे सुविधाजनक तरीका है। साथ ही, कोई पुलिस को रिपोर्ट करने की हिम्मत भी नहीं करेगा कि कलीसिया की ये चीजें गायब हो गई हैं; अगर तुम वास्तव में मेरी रिपोर्ट करने की कोशिश करोगे तो पहले मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा! इसलिए तुम चुपचाप यह सब देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते, तुम कहीं भी इसके बारे में शिकायत नहीं कर सकते। मैंने इन चीजों पर कब्जा किया है और यह खाना खाया है। तुम मेरे साथ क्या कर लोगे? परमेश्वर किसी को पसंद-नापसंद नहीं करता। मैं भाई-बहनों की मेजबानी के लिए अपना घर दे रहा हूँ तो यही मेरा योगदान है और परमेश्वर इसके लिए मुझे याद रखेगा। अगर मैं इसमें से थोड़ा-सा ले लूँ तो डरने की क्या बात है? मैं इसका हकदार हूँ! इसमें से थोड़ा भोजन खा लेने में किस बात का डर है? क्या बात है, तुम लोगों को इसे खाने की अनुमति है मगर मुझे नहीं है? तुम लोग परमेश्वर के घर के सदस्य हो तो क्या मैं भी नहीं हूँ? मैं न केवल इस स्थिति का फायदा उठाऊँगा, बल्कि खुद ये चीजें खाऊँगा और अकेले ही इनका इस्तेमाल करूँगा!” अपने कर्तव्यों के प्रति मसीह-विरोधियों का यह रवैया होता है। अपने कर्तव्य निभाने में उनका लक्ष्य इन चीजों को पाना है और वे इन्हें सबसे बड़े लाभ मानते हैं और कहते हैं, “ये परमेश्वर द्वारा दिए गए सबसे बड़े अनुग्रह हैं; इस अनुग्रह से अधिक मूर्त कुछ भी नहीं है और इस आशीष से ज्यादा वास्तविक और मूर्त रूप में लाभकारी कुछ भी नहीं है। यह बहुत ही बढ़िया है! हर कोई कहता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का मतलब है, ‘इस जीवन में सौ गुना और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाना’; इससे यह कहावत चरितार्थ होती है। मैं अब इस आशीष का पूर्वानुभव ले रहा हूँ। यह वाकई परमेश्वर का अनुग्रह है!” इस प्रकार मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर की चीजों पर कब्जा करने में कोई संकोच नहीं करते और वे क्रूरता से सब कुछ छीन लेते हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर की इन संपत्तियों को कैसे देखते हैं? वे उन्हें अविश्वासी दुनिया की सार्वजनिक संपत्ति जैसा मानते हैं; वे सभी लालची हैं, वे सभी लोग परमेश्वर के घर की चीजों को अपने पास रख लेना चाहते हैं और फिर भी वे अभी भी मानते हैं कि ये अनुग्रह और आशीष हैं जिनका वे अपने कर्तव्य करने के लिए आनंद लेने के हकदार हैं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बारे में कभी कोई पछतावा या शर्म तक महसूस नहीं होती, न ही वे खुद की दुष्टता को या ईमानदारी की कमी को पहचानते हैं। इनमें से कुछ मसीह-विरोधी तो और भी ज्यादा लालची और महत्वाकांक्षी हो जाते हैं। अपना मेजबानी का कर्तव्य करते हुए उन्हें कभी नहीं लगता कि परमेश्वर उनके क्रियाकलापों से घृणा करेगा या उनसे नाराज होगा। इसके बजाय वे बस यह सोचते हुए अपने मन में हिसाब लगाते रहते हैं और तुलना करते रहते हैं कि “उस परिवार ने मेजबान के रूप में काम किया और उसे वे चीजें मिलीं। अगर मैं उन लोगों की मेजबानी करता तो वे चीजें सही मायने में मेरी होतीं। वह मेजबान मुझसे ज्यादा आरामदायक जीवन जीता है और बेहतर खाना भी खाता है। मैंने भी इस तरह का फायदा कैसे नहीं उठाया?” वे भी इन चीजों का हिसाब लगाते हैं और इन चीजों के लिए होड़ करते हैं। जैसे ही कोई अवसर मिलता है, वे कोई दया नहीं दिखाते और उस अवसर को बिल्कुल भी नहीं छोड़ते। इस प्रकार जब मसीह-विरोधी मेजबानी का कर्तव्य कर रहे होते हैं तो वे लालच करते हैं और जो कुछ भी उनके हाथ में आ सकता है, उस पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं—इनमें जूते के अंदर के पैतानों जैसी छोटी चीज से लेकर परमेश्वर के घर द्वारा खरीदे गए उपकरण जैसी बड़ी चीज तक शामिल है। वे अपने कर्तव्य करने के अवसर का फायदा उठाकर चीजों को हड़पने के लिए तरह-तरह के बहाने और तरीके ढूँढ़ते हैं, परमेश्वर के घर की संपत्ति का दुरुपयोग करते हैं और बेशर्मी से कहते हैं कि वे ऐसा सिर्फ परमेश्वर के घर की संपत्तियों की रक्षा करने के लिए कर रहे हैं और अपने कर्तव्य निभाने के लिए वे ये चीजें पाने के हकदार हैं। ये चीजें उन लोगों के बीच होती हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं।
जब मसीह-विरोधी अपना मेजबानी का कर्तव्य कर रहे होते हैं तो वे बाहर से यह दिखावा कर सकते हैं कि वे चीजों को लेने का लालच नहीं करते या चीजों को लेने की कोशिश नहीं करते, भाई-बहनों की मेजबानी के लिए कोई भी भुगतान लेने से इनकार करते हैं और वे बेकार की चीजों को भी सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब परमेश्वर के घर की कीमती चीजों की बात आती है तो वे उन्हें इस तरह से बिल्कुल भी नहीं जाने देंगे। मुमकिन है वे एक युआन की कीमत वाली कोई चीज सौंप दें, मगर सौ युआन, एक हजार युआन, दस हजार युआन या इससे भी ज्यादा कीमती किसी भी चीज को बेहिचक अपनी जेब में डाल लेंगे और उसे हड़प लेंगे। कुछ लोगों के लिए, परमेश्वर के घर की संपत्तियों की देखभाल करते हुए स्थानीय स्तर पर कोई खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है, और जो लोग जानते हैं कि वे ऐसा कर रहे हैं शायद कहीं और भाग जाते हैं या गिरफ्तार हो जाते हैं, और इसलिए उनके अलावा कोई भी इन संपत्तियों के बारे में नहीं जानता जिन्हें वे सुरक्षित रख रहे हैं—ऐसी ही स्थितियों में लोगों की परीक्षा होती है। जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं और अपने दिल में परमेश्वर का भय मानते हैं, वे हर समय अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं और उन्हें इन संपत्तियों का गलत इस्तेमाल करने का कोई विचार या ख्याल तक नहीं आएगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे नहीं होते; वे अपने दिमाग खपाएँगे और इन संपत्तियों को हड़पने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे। जैसे ही उन लोगों के साथ कुछ होता है जो जानते हैं कि वे संपत्तियों की सुरक्षा कर रहे हैं, मसीह-विरोधी दिल से खुश होते हैं और खुशी से उछल तक पड़ते हैं। वे बिना किसी डर के तुरंत संपत्तियों को अपने कब्जे में कर लेते हैं, उन्हें किसी तरह का पछतावा या अपराध-बोध नहीं होता। कुछ मसीह-विरोधी इन संपत्तियों का इस्तेमाल अपने घरेलू खर्चों के लिए करते हैं और उन्हें मनमाने ढंग से बेच देते हैं, उनमें से कुछ अपने घर के लिए मनचाही चीजें खरीदने में तुरंत पैसे उड़ा देते हैं और कुछ तो पैसे को सीधे अपने बैंक खाते में डालकर अपने पास रख लेते हैं। और जब भाई-बहन संपत्तियों को वापस लेने जाते हैं तो क्या मसीह-विरोधी यह स्वीकारने में सक्षम होते हैं कि उन्होंने क्या किया है? मसीह-विरोधी इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। परमेश्वर में विश्वास करने और अपना कर्तव्य निभाने का उनका उद्देश्य बस वांछनीय चीजें पाना है और इन वांछनीय चीजों में परमेश्वर की भेंटें, परमेश्वर के घर की संपत्ति और यहाँ तक कि भाई-बहनों की निजी संपत्ति भी शामिल है। इसलिए मसीह-विरोधी लालच, इच्छा और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के साथ अपना कर्तव्य निभाते हैं; वे सत्य का अनुसरण करने, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकारने या परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने यहाँ नहीं आए हैं, बल्कि वे हर एक लाभ, सभी सुविधाओं और सभी संपत्तियों को पाने के लिए यहाँ आए हैं। इन लोगों को लालच और इच्छा से भरा हुआ कहा जा सकता है। वे किस पर अपना दिल लगाते हैं? वे परमेश्वर के घर की संपत्तियों पर अपना दिल लगाते हैं। इसलिए जब वे मेजबानी का कर्तव्य निभाते हैं तो वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि परमेश्वर का घर किसके लिए क्या खरीदता है, परमेश्वर का घर किसे कितने पैसे देता है और मेजबानी का कर्तव्य करने के लिए कुछ लोग परमेश्वर के घर और भाई-बहनों से कितने बड़े लाभ और कौन-सी वांछनीय चीजें हासिल करते हैं—इन चीजों पर वे अपनी नजर गड़ाए रखते हैं। अगर उनसे साधारण भाई-बहनों की मेजबानी करने के लिए कहा जाए और ऐसा करने से उन्हें कोई भी वांछनीय चीज न मिले तो वे सभी तरह के बहाने बनाएँगे ताकि उन्हें ऐसा न करना पड़े। जैसे ही उन्हें किसी ऊँचे स्तर के अगुआ की मेजबानी करने के लिए कहा जाता है, उनका रवैया पूरी तरह बदल जाता है, वे मुस्कुराने लगते हैं और अगुआ का बेसब्री से इंतजार करते हैं; वे इस “बड़ी हस्ती” को अपने घर आमंत्रित करने और इस अगुआ की परमेश्वर की तरह आराधना करने के लिए बेताब रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनका सौभाग्य आ गया है, कि यह उनके लिए दुधारू गाय है और अगर उन्होंने यह मौका गँवा दिया तो उनके अमीर बनने का मौका चला जाएगा तो भला वे इसे कैसे जाने दे सकते हैं? लालच, इच्छा और परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गलत इस्तेमाल करने की प्रेरणा और इरादे के साथ वे यह कर्तव्य स्वीकार लेते हैं जो उन्हें वांछनीय चीजें दिला सकता है—उनका अंतिम उद्देश्य क्या है? क्या यह अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना है? क्या यह भाई-बहनों की अच्छी तरह से मेजबानी करना है? क्या यह अपनी निष्ठा दिखाना है? क्या यह सत्य हासिल करना है? नहीं, यह इनमें से कुछ भी नहीं है; वे इस अवसर का उपयोग वांछनीय चीजें पाने के लिए करना चाहते हैं। वे आम लोगों की मेजबानी नहीं करेंगे, मगर जब उन्हें पता चलेगा कि उन्हें किसी रुतबे वाले अगुआ या कार्यकर्ता की मेजबानी करनी है तो वे ऐसा करने के लिए खुद को तैयार कर लेंगे और फिर वे अपने लिए सभी तरह की रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और घरेलू उपकरण खरीदने के लिए परमेश्वर के घर से तरह-तरह के बहाने बनाएँगे और कहेंगे, “जब अगुआ यहाँ रहने आएँगे तो वे खराब हालत में नहीं रह सकते। क्या मेजबानी को सुविधाजनक बनाने के लिए सब कुछ तैयार नहीं करना चाहिए? परमेश्वर के घर द्वारा दी गई चीजों का आनंद हम नहीं लेते हैं; अगर हम लेते भी हैं तो बस अगुआओं के साथ थोड़ी-सी चीजों का आनंद लेते हैं। इसके अलावा, अगर कोई अगुआ आता है तो मुझे डर है कि वह हमारे यहाँ रोज बनने वाला भोजन खाने का आदी नहीं होगा। अगुआओं को हर दिन बहुत-सी चीजों का प्रबंधन करना पड़ता है और अगर वे अस्वस्थ हो गए तो क्या हम मेजबान के रूप में अपने कर्तव्य में लापरवाह नहीं होंगे? इसलिए कलीसिया को अगुआओं के लिए दिन में तीन बार भोजन तैयार करना चाहिए। हमें उनके लिए दूध, ब्रेड, अंडे और सभी प्रकार की सब्जियाँ, फल, माँस और स्वास्थ्य संबंधी पूरक चीजें तैयार रखनी होंगी।” क्या यह एक शानदार और विचारशील सोच नहीं है? मसीह-विरोधी ऐसी भाषा बोलते हैं जो सुनने में मनुष्यों जैसी लगती है, मगर क्या वे वास्तव में अपने दिलों में अगुआओं के बारे में सोच रहे होते हैं? उनका असली उद्देश्य क्या होता है? उनका उद्देश्य इतना सरल नहीं होता है। वे गरीब हो सकते हैं और शायद उन्होंने पहले कभी अच्छी चीजें खाई या देखी न हों, इसलिए वे इस मौके का फायदा अनुभव पाने, अमीरों की तरह रहने, ऐसा जीवन जीने के लिए करना चाहते हैं जहाँ उनकी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हों, वे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख सकें, ऐसी चीजें खाएँ जो आम लोग नहीं खा सकते और ऐसे व्यवहार का आनंद लें जो आम लोगों को नहीं मिल सकता। इसलिए उनकी सोच इतनी विचारशील दिखाई देती है। मगर उनके विचारों के पीछे क्या छिपा है? वे अपनी खातिर षड्यंत्र रचना चाहते हैं, वे इन चीजों को पाना और हथियाना चाहते हैं और वे निश्चित रूप से अपने षड्यंत्रों के हर एक पहलू पर काफी सोच-विचार कर रहे होते हैं—वे किसी और के लिए ऐसा नहीं करेंगे। और जब ये मसीह-विरोधी किसी अगुआ की मेजबानी करते हैं तो वे वास्तव में अच्छा जीवन जी रहे होते हैं। बाद में वे सोचते हैं, “इस तरह जीना बहुत अच्छा है, मगर ये चीजें वास्तव में मेरी नहीं हैं। ये चीजें कब मेरी होंगी? अगर मैं इस अगुआ से छुटकारा पा लूँ तो मैं इन चीजों का आनंद नहीं ले पाऊँगा, लेकिन अगर मैं उससे छुटकारा नहीं पाऊँगा तो वास्तव में मेरे पास उसकी मेजबानी करते रहने की सदिच्छा नहीं होगी। अगर इन वांछनीय चीजों की बात न होती तो मैं यह कर्तव्य कभी नहीं करता। हर दिन, मुझे जल्दी उठना पड़ता है और देर से सोना पड़ता है, मैं हमेशा डरा रहता हूँ और मुझे उसकी सेवा करनी पड़ती है। अब मैं हमेशा यही सोचता रहता हूँ कि इस कर्तव्य को करने से जितना लाभ होगा, उससे कहीं ज्यादा नुकसान होगा और इससे मुझे मिलने वाले लाभ और आनंद पर्याप्त नहीं होंगे। अगर अगुआ यहाँ लंबे समय तक रहे तो मैं क्या करूँगा? मुझे उसे भगाने का कोई तरीका सोचना होगा और तब मैं अपने घर में फिर से शांति और सुकून से रह पाऊँगा।” क्या लोग ऐसा ही सोचते हैं? क्या सामान्य मानवता रखने वाले और ईमानदारी से अपना कर्तव्य करने वाले लोग ऐसा सोचेंगे? (नहीं।) मसीह-विरोधी ऐसा सोचते हैं। चाहे उन्हें कितनी भी बड़ी वांछनीय चीजें या लाभ क्यों न मिलें, उनका लालच और इच्छा कभी भी तृप्त नहीं हो सकती; वे अतृप्त हैं, उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ नहीं पाया है और यह कर्तव्य निभाना वह काम नहीं है जो उन्हें करना चाहिए। इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि यह एक अतिरिक्त त्याग और कीमत है। चाहे वे कितनी भी चीजें हासिल कर लें या उन्हें कितने भी बड़े लाभ मिलें, उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ खो दिया है और परमेश्वर का घर उनकी कीमत पर लाभ उठा रहा है और भाई-बहन उनकी कीमत पर लाभ उठा रहे हैं, और उन्हें खुद इससे कोई भी वांछनीय चीज नहीं मिल रही है। जैसे-जैसे समय बीतता है, उन्हें लगता है कि ये वांछनीय चीजें उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकतीं और उनका लालच शांत नहीं हो सकता। मुझे बताओ, मसीह-विरोधियों में कौन-सी मानवता है? क्या उनमें कोई मानवता है भी? (नहीं।) और जिन लोगों में मानवता नहीं है क्या उन लोगों में जमीर होता है? क्या वे अपना कर्तव्य सच्चाई से निभाने की इच्छा रखते हुए निभा सकते हैं और साथ ही क्या वे अपना कर्तव्य विनम्र होने, ईमानदार होने और वास्तव में मेहनत करने की इच्छा रखते हुए निभा सकते हैं? क्या वे बिना भुगतान माँगे, बिना कोई पारिश्रमिक माँगे और बिना कोई इनाम माँगे अपना कर्तव्य कर सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि उनमें अंतरात्मा का बोध नहीं है और चाहे उन्हें कितने भी बड़े लाभ क्यों न मिलें, उन्हें लगता है कि वे इसके असली हकदार हैं। क्या यह “असली हकदार होना” कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे में सामान्य लोग सोच भी नहीं सकते और न ही वे कभी ऐसा सोचेंगे? क्या इस तरह के विचार और रवैये में शर्म की कोई भी भावना होती है? (नहीं।) क्या बेशर्म लोगों में कोई मानवता होती है? यह मामला मसीह-विरोधियों की एक प्रकृति को उजागर करता है जिनमें शर्म या अंतरात्मा नहीं होती है।
बेशर्म लोग किस तरह के होते हैं? मानवजाति में किस तरह के लोगों में कोई शर्म नहीं होती? (मानसिक रूप से बीमार लोगों में।) मानसिक रूप से बीमार लोगों में कोई शर्म नहीं होती, वे सड़कों पर नंगे दौड़ते हैं, इस बात से अनजान कि सभी उन्हें देख रहे हैं, शायद वे कपड़े पहने लोगों पर हँसते भी हैं और कहते हैं, “देखो, तुम लोगों के लिए कपड़े पहनना कितनी मुसीबत का काम है। मैं बिना कपड़ों के सड़क पर नंगा दौड़ रहा हूँ और मैं कितना आजाद और बेरोकटोक महसूस कर रहा हूँ!” क्या यही बेशर्म होना नहीं है? (हाँ, है।) बेशर्म होना यही है। जिन लोगों के पास शर्म नहीं होती है उन्हें अंतरात्मा का बोध नहीं होता और वे मानसिक रूप से बीमार होते हैं; वे दूसरों की कीमत पर लाभ पाते हैं, वे दूसरों की हर एक चीज हड़प लेना चाहते हैं, उनके लालच और उनकी इच्छा ने सामान्य इंसानी तार्किकता के दायरे को पार कर लिया है—वे उस बिंदु पर पहुँच गए हैं जहाँ वे खुद को नियंत्रित नहीं कर सकते और उनमें कोई अंतरात्मा नहीं होती है। क्या इस तरह के लोग सत्य प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। वे केवल शोहरत, लाभ, रुतबे और भौतिक हितों के पीछे भागते हैं और वे कभी सत्य प्राप्त नहीं करते। तो क्या उन्हें स्वर्ग के राज्य में जगह मिलेगी? परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाता या पूर्ण नहीं करता है। क्या इन लोगों पर दया करनी चाहिए? (नहीं।) इन लोगों से घृणा की जानी चाहिए; वे घृणित, घिनौने और नीच हैं। इन लोगों का चरित्र घिनौना और नीच है; उनमें कोई गरिमा या शर्म नहीं है। उनके दिल लालच, महत्वाकांक्षा और इच्छा से भरे हुए हैं। वे केवल अपने कर्तव्य निभाने के अवसर का लाभ उठाकर अपने हित साधने की कोशिश करना चाहते हैं और वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, न ही सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं। जब वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, तब भी वे वांछनीय चीजें, अपने हित और परमेश्वर से आशीष माँगते हैं। वे परमेश्वर को बताते हैं कि उन्होंने कितने कष्ट सहे हैं और कितने त्याग किए हैं और वे इन चीजों के बारे में प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने बस इसलिए आते हैं ताकि उन्होंने जो कष्ट सहे हैं और जो कीमतें चुकाई हैं, उनका हवाला देकर परमेश्वर के साथ सौदेबाजी कर सकें, परमेश्वर से आशीष और इनाम माँग सकें और यहाँ तक कि वे खुलेआम परमेश्वर के सामने अपने हाथ फैलाकर उस सांसारिक व्यवहार की माँग करते हैं जो वे चाहते हैं। जब वे परमेश्वर के सामने आते हैं तो वे अपनी शिकायतें, अपनी अवज्ञा, अपना असंतोष, अपने दुख और अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाहते हैं और साथ ही अपने लालच और इच्छाओं की पूर्ति न होने को लेकर अपनी निराशा व्यक्त करना चाहते हैं। जब परमेश्वर इन अभिव्यक्तियों को देखता है तो वह उनसे प्रेम करता है या घृणा? (वह उनसे घृणा करता है।) जब वे कलीसिया की खातिर कोई छोटा-मोटा काम करते हैं तो वे इसकी घोषणा करने और श्रेय लेने, परमेश्वर को अपने त्याग के बारे में बताने और विभिन्न कर्तव्य निभाते हुए या विभिन्न काम करते हुए उन्होंने जो कुछ भी समर्पित किया है उसके बारे में बताने के लिए तुरंत परमेश्वर के सामने आते हैं; उन्हें डर है कि परमेश्वर इन चीजों के बारे में नहीं जान पाएगा, परमेश्वर इन चीजों को नहीं देख सकता और परमेश्वर उनके द्वारा चुकाई गई कीमतों को भूल जाएगा। इसलिए ये लोग परमेश्वर के सामने बुरे और बेशर्म माने जाते हैं। जब वे अपनी चुकाई गई कीमतों का ब्यौरा देने और घोषणा करने के लिए परमेश्वर के सामने आते हैं, उसे बताते हैं कि वे क्या चीजें पाना चाहते हैं और परमेश्वर के सामने अपने हाथ फैलाकर उन पुरस्कारों की माँग करते हैं जो वे चाहते हैं, तो परमेश्वर कहता है, “हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” परमेश्वर का रवैया क्या है? “तुम जैसे लोग मेरे सामने आने के लायक नहीं हैं। मैं तुमसे नफरत करता हूँ और तुमसे विमुखता महसूस करता हूँ। मैंने तुम्हें वह सब दिया है जो तुम चाहते हो; तुम इस जीवन में जो पाना चाहते हो, वह तुम्हें पहले ही सौ गुना मिल चुका है। तुम्हें और क्या चाहिए?” परमेश्वर मानवजाति को मुख्य रूप से भौतिक चीजें नहीं देना चाहता, बल्कि वह मानवजाति को सत्य सौंपना चाहता है, ताकि सत्य के जरिये वे उद्धार पा सकें। लेकिन मसीह-विरोधी परमेश्वर के कार्य का खुलेआम विरोध करते हैं, वे सत्य नहीं खोजते और न ही वे सत्य का अभ्यास करते हैं। इसके बजाय वे परमेश्वर के कार्य के दौरान अपना कर्तव्य निभाने के अवसर का इस्तेमाल गलत तरीके से अपने लिए वांछनीय चीजें पाने के लिए करना चाहते हैं; वे खामियों का फायदा उठाकर हर चीज में दूसरों की कीमत पर लाभ कमाते हैं, फिर भी उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि वे कुछ खो रहे हैं और उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हुआ है। उन्हें अक्सर ऐसा भी लगता है कि उन्होंने बहुत ज्यादा त्याग और समर्पण किया है, उनके नुकसान लाभ से कहीं ज्यादा हैं और इससे भी बढ़कर, उन्हें अक्सर अपने त्याग पर पछतावा होता है, उन्हें लगता है कि उन्होंने चीजों के बारे में पर्याप्त रूप से नहीं सोचा है या अपने लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सोचा है। इसलिए वे अक्सर अपने त्याग का इनाम समय पर न मिलने से अपने दिल में गुस्सा महसूस करते हैं और परमेश्वर के प्रति शिकायतों से भी भरे होते हैं। अपने दिलों में वे अक्सर यह सोचते हुए हिसाब लगाते रहते हैं, “क्या परमेश्वर धार्मिक नहीं है? परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है, है ना? क्या परमेश्वर वह परमेश्वर नहीं है जो लोगों को आशीष देता है? क्या परमेश्वर व्यक्ति के सभी अच्छे कर्मों और उन सारी चीजों को याद नहीं रखता है जो उसने समर्पित की हैं और जो उसने खुद को खपाया है? मैंने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना परिवार त्याग दिया और कीमत चुकाई, मगर मुझे परमेश्वर से क्या मिला?” अगर उनका लालच और उनकी इच्छा कम समय में संतुष्ट नहीं होती है तो वे नकारात्मक हो जाते हैं और शिकायत करने लगते हैं। अगर उनका लालच और उनकी इच्छा लंबे समय तक संतुष्ट नहीं होती है तो उनके हृदय के अंतरतम में द्वेष भर जाता है। और इस तरह द्वेष भर जाने के क्या दुष्परिणाम होते हैं? अपने दिलों में वे परमेश्वर पर संदेह करना और सवाल उठाना शुरू कर देंगे, वे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की आलोचना करने लगेंगे और यहाँ तक कि वे परमेश्वर के प्रेम और सार पर भी संदेह करेंगे। अगर यह द्वेष लंबे समय तक इकट्ठा होता रहा तो ये चीजें घातक ट्यूमर में बदल जाती हैं और फैलने लगती हैं और वे किसी भी समय परमेश्वर को धोखा देने में सक्षम हो जाते हैं। खासकर जब वे कुछ ऐसे लोगों के सामने होते हैं जो नकारात्मक और कमजोर हैं और जो अपेक्षाकृत अपरिपक्व आध्यात्मिक कद के होते हैं या जब वे कुछ ऐसे लोगों के सामने होते हैं जो आस्था में नए हैं तो वे हर बार इन नकारात्मक भावनाओं को प्रकट करेंगे और फैलाएँगे, परमेश्वर के प्रति अपना असंतोष फैलाएँगे और उसकी ईशनिंदा करेंगे और वे कुछ ऐसे लोगों को जिनमें भेद पहचानने की समझ की कमी है, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसके सार के बारे में संदेह करने के लिए गुमराह भी करेंगे। क्या यह मसीह-विरोधियों का काम नहीं है? चूँकि मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ, अनुसरण और इरादे पूरे नहीं हुए हैं, इसलिए वे ये चीजें करने में सक्षम हैं और परमेश्वर के प्रति इस तरह का रवैया अपना सकते हैं—यह कैसा स्वभाव है? यह साफ तौर पर मसीह-विरोधियों का स्वभाव और शैतानी स्वभाव है।
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