मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग तीन) खंड दो

1. मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने से कैसे पेश आते हैं

जब रुतबे और प्रतिष्ठा की बात आती है, मसीह-विरोधी मन में बहुत-सी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पालते हैं और दूसरे लोगों को यह बेहद अरुचिकर और घिनौना लगता है। इतना सब यह दिखाने के लिए काफी है कि मसीह-विरोधी का प्रकृति सार बहुत ही भद्दा और दुष्ट होता है। तो कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक मसीह-विरोधी के प्रकृति सार को दर्शाती हैं? सबसे पहले, आओ इस बारे में सोचें कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं। (वे इससे नफरत करते हैं और इसे स्वीकार नहीं करते।) वे इससे किस तरह से नफरत करते हैं? जरा विस्तार से बताओ। (एक मसीह-विरोधी था जिसने बहुत सारे बुरे काम किए थे और जब भाई-बहनों ने उसकी कुछ अभिव्यक्तियों को उजागर किया तो उसने बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं किया, वह बहुत ही अड़ियल था और उसे जरा भी पछतावा नहीं हुआ। यहाँ तक कि उसे यह भी लगा कि उसके साथ गलत हुआ है। मैंने इस तरह की अभिव्यक्ति देखी है।) यह मसीह-विरोधी की एक विशेष अभिव्यक्ति है। काट-छाँट के प्रति मसीह-विरोधियों का ठेठ रवैया उन्हें स्वीकार करने या मानने से सख्ती से इनकार करने का होता है। चाहे वे कितनी भी बुराई करें, परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, उन्हें इसका जरा भी पछतावा नहीं होता और न ही वे कोई एहसान मानते हैं। इस दृष्टिकोण से क्या मसीह-विरोधियों में मानवता होती है? बिल्कुल नहीं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हर तरह की क्षति पहुँचाते हैं, कलीसिया के कार्य को क्षति पहुँचाते हैं—परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे एकदम स्पष्ट देख सकते हैं और मसीह-विरोधियों के कुकर्मों का अनुक्रम देख सकते हैं। और फिर भी मसीह-विरोधी इस तथ्य को मानते या स्वीकार नहीं करते; वे हठपूर्वक यह स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं कि वे गलत हैं या कि वे जिम्मेदार हैं। क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि वे सत्य से विमुख हैं? मसीह-विरोधी सत्य से इस हद तक विमुख रहते हैं कि वे चाहे कितनी भी बुरी चीजें कर लें, फिर भी अड़ियल बनकर उसे मानने से इनकार कर देते हैं और अंत तक अड़े रहते हैं। यह साबित करने के लिए काफी है कि मसीह-विरोधी कभी परमेश्वर के घर के कार्य को गंभीरता से नहीं लेते या सत्य स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं; वे शैतान के सेवक हैं, जो परमेश्वर के घर के कार्य को अस्त-व्यस्त करने के लिए आए हैं। मसीह-विरोधियों के दिलों में सिर्फ प्रसिद्धि और रुतबा होता है। उनका मानना है कि अगर उन्होंने अपनी गलती मानी तो उन्हें जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी और तब उनका रुतबा और प्रसिद्धि गंभीर संकट में पड़ जाएगी। परिणामस्वरूप वे “मरने तक नकारते रहो” के रवैये के साथ प्रतिरोध करते हैं। लोग चाहे उन्हें कैसे भी उजागर करें या उनका कैसे भी गहन-विश्लेषण करें, वे इसे नकारने के लिए जो बन पड़े, वो करते हैं। चाहे उनका इनकार जानबूझकर किया गया हो या नहीं, संक्षेप में एक ओर ये व्यवहार मसीह-विरोधियों के सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने वाले प्रकृति सार को उजागर करते हैं। दूसरी ओर यह दिखाता है कि मसीह-विरोधी अपने रुतबे, प्रसिद्धि और हितों को कितना सँजोते हैं। इस बीच कलीसिया के कार्य और हितों के प्रति उनका क्या रवैया रहता है? यह अवमानना और गैर-जिम्मेदारी का रवैया होता है। उनमें अंतरात्मा और विवेक की पूर्णतः कमी होती है। क्या मसीह-विरोधियों का जिम्मेदारी से बचना इन मुद्दों को प्रदर्शित नहीं करता है? एक ओर जिम्मेदारी से बचना सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने के उनके प्रकृति सार को साबित करता है तो दूसरी ओर यह उनमें जमीर, विवेक और मानवता की कमी दर्शाता है। उनकी गड़बड़ी और कुकर्म के कारण भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए, उन्हें कोई ग्लानि महसूस नहीं होती और उन्हें इस बारे में कभी बुरा नहीं लग सकता। यह किस प्रकार का प्राणी है? अगर वे अपनी जरा-सी भी गलती मान लेते हैं तो यह थोड़ा-बहुत जमीर और विवेक का होना माना जाएगा, लेकिन मसीह-विरोधियों में इतनी थोड़ी-सी भी मानवता नहीं होती। तो तुम लोग क्या कहोगे कि वे क्या हैं? सारतः, मसीह-विरोधी लोग दानव हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों को चाहे जितना नुकसान पहुँचाते हों, वे उसे नहीं देखते। वे अपने दिलों में इससे जरा भी दुखी नहीं होते, न ही वे खुद को धिक्कारते हैं, एहसानमंद तो वे बिल्कुल भी महसूस नहीं करते। यह वह बिल्कुल नहीं है, जो सामान्य लोगों में दिखना चाहिए। वे दानव हैं और दानवों में कोई जमीर या विवेक नहीं होता है। चाहे वे कितने भी बुरे काम करें और उनके कारण कलीसिया के काम को कितने भी बड़े नुकसान उठाने पड़ें, वे अपनी गलती स्वीकारने से पूरी तरह इनकार करते हैं। उनका मानना है कि इसे स्वीकारने का मतलब यह होगा कि उन्होंने कुछ गलत किया है। वे सोचते हैं, “क्या मैं कुछ गलत कर सकता हूँ? मैं कभी कुछ गलत नहीं करूँगा! अगर मुझसे मेरी गलती स्वीकार करवाई जाती है तो क्या यह मेरे चरित्र का अपमान नहीं होगा? भले ही मैं उस घटना में शामिल था, मगर वह घटना मेरे कारण नहीं हुई और वहाँ का मुख्य प्रभारी मैं नहीं था। तुम्हें जिसे भी ढूँढ़ना है ढूँढ़ो, मगर मुझे ढूँढ़ते हुए मत आ जाना। चाहे जो भी हो, मैं यह गलती नहीं स्वीकार सकता। मैं यह जिम्मेदारी नहीं ले सकता!” वे सोचते हैं कि अगर उन्होंने अपनी गलती स्वीकार ली तो उनकी निंदा की जाएगी, मौत की सजा सुनाई जाएगी; साथ ही उन्हें नरक में और आग और गंधक की झील में डाल दिया जाएगा। मुझे बताओ, क्या इस तरह के लोग सत्य स्वीकार सकते हैं? क्या कोई उनसे सच्चे पश्चात्ताप की उम्मीद कर सकता है? दूसरे लोग चाहे सत्य पर कैसे भी संगति करें, मसीह-विरोधी फिर भी इसका प्रतिरोध करेंगे, इसके विरुद्ध खड़े रहेंगे और अपने दिल की गहराई से इसका खंडन करेंगे। बर्खास्त किए जाने के बाद भी वे अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करते और न ही वे पश्चात्ताप का कोई भी लक्षण दिखाते हैं। जब 10 साल बाद मामले का जिक्र किया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते और यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने गलती की थी। जब 20 साल बाद मामले को उठाया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते और अपने आप को सही ठहराने और अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं। और इससे भी बदतर यह है कि जब 30 साल बाद मामले का जिक्र किया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते हैं और अपने बचाव में तर्क देने और खुद को सही ठहराने की कोशिश करते हैं और कहते हैं : “मैंने कोई गलती नहीं की थी तो मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यह मेरी जिम्मेदारी नहीं थी; इसकी जिम्मेदारी मैं नहीं उठाऊँगा।” और चौंकाने वाली बात तो यह है कि बर्खास्त किए जाने के 30 साल बाद भी ये मसीह-विरोधी अभी भी कलीसिया द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार के प्रति प्रतिरोध का रवैया रखते हैं। 30 साल बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया है। तो उन्होंने वे तीस साल कैसे बिताए? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े या आत्म-चिंतन नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना नहीं की या उस पर भरोसा नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने धर्मोपदेश नहीं सुने और संगति नहीं की? क्या ऐसा हो सकता है कि वे नासमझ हैं और उनमें सामान्य मानवता की सोच नहीं है? उन्होंने वे तीस साल कैसे बिताए यह वाकई एक रहस्य है। घटना के तीस साल बाद भी, वे यह सोचते हुए अभी भी गुस्से से भरे हुए हैं कि भाई-बहनों ने उनके साथ गलत किया, कि परमेश्वर उन्हें नहीं समझता, कि परमेश्वर के घर ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया, उनके लिए समस्याएँ खड़ी कीं, उनके लिए चीजें मुश्किल बना दीं और उन पर अन्यायपूर्वक दोष लगाया। मुझे बताओ, क्या इस तरह के लोग बदल सकते हैं? वे बिल्कुल नहीं बदल सकते। उनके दिलों में सकारात्मक चीजों के प्रति बैर भाव, प्रतिरोध और विरोध है। उनका मानना है कि उनके बुरे कर्मों को उजागर करके और उन्हें काट-छाँट कर, दूसरे लोगों ने उनके चरित्र को नुकसान पहुँचाया, उनकी प्रतिष्ठा को बदनाम किया और उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे को जबर्दस्त नुकसान पहुँचाया है। वे इस मामले में प्रार्थना करने, सत्य खोजने और अपनी गलतियों को पहचानने के लिए कभी भी परमेश्वर के सामने नहीं आएँगे और उनमें कभी भी पश्चात्ताप करने या अपनी गलतियों को स्वीकारने का रवैया नहीं होगा। वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को तो और भी नहीं स्वीकारेंगे। आज भी परमेश्वर के सामने खुद को सही ठहराते हुए उनके मन में अवज्ञा, असंतोष और शिकायतें हैं और वे परमेश्वर से इन गलतियों का निवारण करने, इस मामले का खुलासा करने और वास्तव में यह निर्णय करने के लिए कहते हैं कि कौन सही था और कौन गलत; यहाँ तक कि वे इस मामले के कारण परमेश्वर की धार्मिकता पर संदेह करते हैं और इसे नकारते हैं और इस तथ्य पर भी संदेह करते हैं कि परमेश्वर के घर में सत्य और परमेश्वर का शासन चलता है और इसे नकारते हैं। मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने का यही अंतिम परिणाम होता है—क्या वे सत्य स्वीकारते हैं? वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते; वे इसे स्वीकारने के बिल्कुल खिलाफ हैं। हमें इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधी का प्रकृति सार सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने वाला होता है।

चूँकि मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं करते तो क्या उन्हें काटे-छाँटे जाने का कोई ज्ञान होता है? सत्य के इस पहलू पर संगति करते हुए वे क्या कहते हैं? वे दूसरों को क्या सिखाते हैं? वे कहते हैं, “लोगों की काट-छाँट करना परमेश्वर द्वारा उन्हें पूर्ण बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका है। इससे लोग खुद को बेहतर जान पाते हैं। जब लोगों को काटा-छाँटा जाता है तो उन्हें इसे स्वीकार करके बिना शर्त इसके प्रति समर्पण करना चाहिए। जो लोग अपने साथ काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं करते, वे परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करते हैं और सत्य से प्रेम नहीं करते हैं। अगर तुम सत्य का अभ्यास करना चाहते हो तो तुम्हें पहले अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकारना होगा; परमेश्वर इसी तरह लोगों को पूर्ण बनाता है और हर व्यक्ति को इसका अनुभव करना चाहिए। यह कहा जा सकता है कि काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करना लोगों के लिए सत्य समझने और इस प्रकार आत्म-ज्ञान पाने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के अभ्यास का सबसे अच्छा मार्ग है। चाहे तुम कोई अगुआ हो या फिर एक साधारण विश्वासी और तुम चाहे कोई भी कर्तव्य निभाते हो, तुम्हें काटे-छाँटे जाने के लिए तैयार रहना होगा। अगर तुम अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं सकते तो इससे यह साबित होता है कि एक बच्चे की तरह तुम्हारे पास कोई आध्यात्मिक कद नहीं है। ऐसा हरेक व्यक्ति जो अपनी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार सकता है, एक परिपक्व वयस्क है जिसके पास जीवन है और उसे पूर्ण बनाया जा सकता है।” ये बड़ी-बड़ी बातें मसीह-विरोधियों के मुँह से हथौड़े के प्रहार की तरह निकलती हैं और ये सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं! मगर ये बातें क्या हैं? क्या उनकी कही एक भी बात सत्य है? क्या तुम लोग इसे पहचान सकते हो? तुम लोग भी अक्सर ऐसी बातें कहते हो, है न? (सही है।) मुझे बताओ, ये बातें क्या हैं? (धर्म-सिद्धांत।) किसी सामान्य वाक्यांश का इस्तेमाल करके संक्षेप में बताओ और समझाओ कि धर्म-सिद्धांत क्या हैं। (नारे।) क्या तुम्हें कोई और वाक्यांश याद आ रहा है? (निरर्थक, सैद्धांतिक बातें।) कोई और? (ये सभी बेकार की बातें और बकवास हैं।) यह सही है, यह परिभाषा बिल्कुल सही और यथार्थवादी है। इसे रोजमर्रा की भाषा कहते हैं : सभी धर्म-सिद्धांत बकवास हैं। “बकवास” शब्द का क्या मतलब है? खोखले शब्द। वास्तव में, हम इसे कैसे निरूपित करते हैं? शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के रूप में। मसीह-विरोधियों द्वारा बोले जाने वाले ये शब्द केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं। जब काटे-छाँटे जाने की बात आती है तो वे लगातार ऐसे धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, मगर क्या इससे यह साबित होता है कि उन्हें इसकी सही समझ और बोध है? जैसे ही तुम उन्हें ये शब्द बोलते हुए सुनते हो, तुम्हें पता चल जाता है कि उन्हें काटे-छाँटे जाने के बारे में कोई वास्तविक समझ नहीं है। इस तरह की बकवास करने की उनकी क्षमता यह दिखाती है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं। अगर उन्हें वास्तव में काटा-छाँटा जाए तो सवाल ही नहीं उठता कि वे इसे स्वीकारेंगे। अपनी काट-छाँट किए जाने के प्रति मसीह-विरोधियों का रवैया शत्रुता और प्रतिरोध का होता है; वे इसे बिल्कुल भी सत्य मान कर स्वीकार नहीं करते या इसके प्रति समर्पण नहीं करते हैं। उनके लिए, ऐसा करना उनके चरित्र और गरिमा का अपमान होगा।

क्या तुम लोगों के पास इस बारे में कोई और उदाहरण है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं? (कुछ मसीह-विरोधियों का जब काटे-छाँटे जाने से सामना होता है तो बाहर से ऐसा लग सकता है कि वे खुद को जान रहे हैं, मगर वास्तव में इसमें कुतर्क करने और लोगों को गुमराह करने की कोशिश शामिल होगी। कभी-कभार अगर उनसे कोई गलती हुई तो वे कहेंगे, “परमेश्वर ने ऐसा होने दिया, सभी को परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करना चाहिए।” यहाँ तक कि कभी-कभी मसीह-विरोधी यह कहते हुए झूठे आरोप भी लगाते हैं, “तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पकड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए या उनसे बहुत ज्यादा माँगें नहीं करनी चाहिए।” मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और लोगों को उनका भेद पहचानने से रोकने की कोशिश में ऐसी बातें कहते हैं।) यह एक लक्षण है कि मसीह-विरोधी गलत को सही में बदल देते हैं, वे सफेद और काले में फेरबदल कर देते हैं। इस बात से डरकर कि लोग उनकी समस्याओं की हकीकत जान लेंगे, मसीह-विरोधी कुतर्क करने लगते हैं और लोगों को गुमराह करने, उन्हें भ्रमित करने और उनकी दृष्टि को धुँधला करने के लिए तमाम तरह की बातें कहते हैं, ताकि लोगों को उनकी करनी के बारे में पता ही न चले या उसकी कोई समझ ही न हो और इस तरह उनका रुतबा ऊँचा रहे और लोगों के मन में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा बनी रहे। यह उसी तरह का रवैया है जिसके बारे में हमने कुछ समय पहले बात की थी, कि कैसे मसीह-विरोधी काटे-छाँटे जाने पर या गलती करने पर या गलत मार्ग अपना लेने पर बिल्कुल भी नहीं बदलेंगे। और क्या-क्या उदाहरण हैं? (मसीह-विरोधी उन्हें काटने-छाँटने वाले हरेक व्यक्ति के प्रति द्वेष का भाव रखते हैं और बाद में उनसे बदला लेने और उन पर हमला करने के अवसर भी ढूँढ़ते हैं।) हमला करना और बदला लेना एक और लक्षण है। यह मसीह-विरोधियों का अपने रुतबे और प्रतिष्ठा की रक्षा करने से कैसे संबंधित है? वे हमला करना और बदला लेना क्यों चाहते हैं? (क्योंकि जिसने भी उन्हें काटा-छाँटा, उसने उनके द्वारा किए गए सभी बुरे कामों और मामले के वास्तविक तथ्यों को उजागर कर दिया; उन्होंने उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया और लोगों के दिलों में जो उनकी छवि थी वह खराब कर दी, इसलिए वे उनके प्रति द्वेष का भाव रखते हैं।) यह सही है, संबंध यहीं पर है। वे सोचते हैं कि उन्हें काटने-छाँटने वाले लोगों ने उनके गौरव को चोट पहुँचाई, उन्हें शर्मनाक स्थिति में डाल दिया, उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर दिया और इतने सारे लोगों के सामने उन्हें उजागर करके दूसरों के मन में उनके रुतबे को बहुत गंभीर नुकसान पहुँचाया। इसी कारण से वे बदला लेते हैं। इस मामले में उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे को नुकसान पहुँचा और अपने दिलों में बसे गुस्से और नफरत को बाहर निकालने के लिए वे उन लोगों पर हमला करने और उनसे बदला लेने के अवसर ढूँढ़ते हैं, जिन्होंने उन्हें उजागर किया और काटा-छाँटा। मसीह-विरोधी और क्या लक्षण दिखाते हैं? (कुछ मसीह-विरोधी बहुत कपटी भी होते हैं। जब कोई उन्हें काटता-छाँटता है तो हो सकता है वे उनका खंडन न करें या दिखाने को कोई घोषणा न करें और ऐसा लग सकता है कि उन्होंने अपने बारे में कुछ समझा है, मगर बाद में वे वही बुरे काम करना जारी रखेंगे जैसे वे पहले करते थे और कभी भी सच्चा पश्चात्ताप नहीं करेंगे। वे इस तरह के मुखौटे का इस्तेमाल लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं।) यह एक और लक्षण है। एक विशेष प्रकार का मसीह-विरोधी ठीक यही करता है। मसीह-विरोधी अपने मन में सोचते हैं, “जहाँ जीवन है वहाँ आशा है। मैं फिलहाल धैर्य रखूँगा और तुम्हें मेरी असलियत नहीं देखने दूँगा। अगर मैं तुम्हारी बात का खुलकर विरोध करते हुए मेरी काट-छाँट किए जाने को स्वीकारने से इनकार करता हूँ तो तुम लोग कहोगे कि मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो सत्य का अभ्यास नहीं करता या सत्य से प्रेम नहीं करता और अगर यह बात बाहर आ गई तो इसका मेरी प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा। अगर हमारे भाई-बहनों को पता चल गया तो वे यकीनन किसी ऐसे व्यक्ति की अगुआई स्वीकारने से इनकार कर देंगे जो सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करता है। मुझे पहले एक अच्छी छवि बनानी होगी। जब मुझे काटा-छाँटा जाएगा और कोई मेरी गलतियों या अपराधों को उजागर करेगा तो मैं इसे स्वीकारने और हामी भरने का दिखावा करके इसे सह लूँगा, किसी को मेरी असलियत नहीं देखने दूँगा या यह नहीं जानने दूँगा कि मैं वास्तव में क्या सोच रहा हूँ। फिर मैं मुखौटा लगाकर थोड़े आँसू बहा दूँगा और परमेश्वर के प्रति ऋणी होने के बारे में कुछ बातें कहकर मामले को रफा-दफा कर दूँगा। इस तरह भाई-बहनों को लगेगा कि मैं सत्य स्वीकारने वाला व्यक्ति हूँ और मैं सही मायने में एक अगुआ बना रह सकता हूँ—और तब मेरी प्रतिष्ठा और मेरा रुतबा सुरक्षित रहेगा, है न?” वे जो कुछ भी करते हैं वह एक मुखौटा है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसे लोगों की असलियत पहचानना आसान होता है? (उनकी असलियत पहचानना आसान नहीं होता।) यह देखने के लिए कि क्या वे समस्याओं का सामना करते समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हैं और क्या वे वास्तव में सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करते हैं, उन पर कुछ समय तक नजर रखना और उनके साथ बातचीत करना जरूरी होता है। चाहे वे दिखाने के लिए कितनी भी अच्छी या सही बातें क्यों न बोलें, यह केवल कुछ समय के लिए है; देर-सवेर उनकी वास्तविक सोच सामने आ ही जाएगी। भले ही परमेश्वर उन्हें बेनकाब न करे, पर क्या मसीह-विरोधी अपनी असली सोच और प्रकृति सार पर इतनी कड़ी पकड़ रख सकते हैं? क्या वे जीवन भर के लिए उन्हें छिपा सकते हैं? यह नामुमकिन होगा; देर-सवेर ये बातें सामने आ ही जाएँगी। इसलिए चाहे मसीह-विरोधी कितने भी दुष्ट या चालाक क्यों न हों, अगर उनके मन में इरादे और मंशाएँ हैं और अगर वे अपने क्रियाकलापों में सत्य के विरुद्ध जाते हैं तो आखिरकार सत्य को समझने वाले लोग उनका भेद पहचान लेंगे और उनकी असलियत जान लेंगे। इस तरह के मसीह-विरोधी लोग सबसे ज्यादा चालाक होते हैं; बाहर से यह लग सकता है कि वे सत्य और सकारात्मक चीजों को स्वीकारते हैं, मगर वास्तव में अपने दिल की गहराई में और अपने सार में वे सत्य से प्रेम नहीं करते और सकारात्मक चीजों और सत्य से विमुख भी होते हैं। क्योंकि वे वाक्पटु होते हैं, इसलिए ज्यादातर लोग उनका भेद पहचान नहीं पाते और केवल सत्य समझने वाले लोग ही इस तरह के व्यक्ति को पहचान पाते हैं और उसकी असलियत देख पाते हैं। क्या कोई और उदाहरण है? (एक मसीह-विरोधी था जिसने देखा कि उसके सहकर्मियों में उससे बेहतर काबिलियत है और वे उससे बेहतर काम कर रहे हैं। अपने रुतबे को सुरक्षित रखने के लिए उसने गुप्त रूप से तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और अपने सहकर्मियों और साथियों की आलोचना की, लोगों को गुमराह किया, उन्हें फुसलाया और उन्हें अपनी बात सुनने के लिए मजबूर किया। इससे उसके सहकर्मियों के बीच भरोसा खत्म हो गया। वे अब मिलजुलकर सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग नहीं कर रहे थे और काम के किसी भी पहलू में कोई नतीजा हासिल नहीं हुआ। जब इस मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों को उजागर किया गया तो उसने न केवल इसे स्वीकारने से इनकार कर दिया, बल्कि बहाने भी बनाए और जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की। जाहिर था कि वह अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर कुछ भी कर सकता था; चाहे उसने कितने भी भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाया हो और चाहे उसने परमेश्वर के घर के कार्य में कितनी भी बड़ी बाधा या गड़बड़ी पैदा की हो, उसे इसकी परवाह नहीं थी, परेशान होना या दोषी महसूस करना तो दूर की बात थी। उसमें रत्ती भर भी मानवता या विवेक नहीं था।) संक्षेप में कहूँ तो मसीह-विरोधी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए किसी के हितों का बलिदान करने में कोई संकोच नहीं करते हैं। यहाँ तक कि अगर उन्हें अपना रुतबा बनाए रखने के लिए सबको कुचलना भी पड़े तो वे इससे पीछे नहीं हटेंगे। जब अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा की बात आती है तो उन्हें दूसरों के जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता और परमेश्वर के घर का कार्य और कलीसिया के हित तो उनके मन में होते ही नहीं और ये उनके विचारों के दायरे में भी कहीं नहीं होते हैं। इन क्रियाकलापों से हम देख सकते हैं कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं; वे अविश्वासी हैं जो कीड़े-मकोड़ों की तरह यहाँ घुस आए हैं। परमेश्वर का घर उनका घर नहीं है, इसलिए उसके किसी भी हित का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। वे बस सत्ता हासिल करके लोगों पर नियंत्रण करने के अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं और परमेश्वर के घर में अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करना चाहते हैं। क्योंकि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार ऐसा ही होता है तो वे अपने साथ काट-छाँट किए जाने को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे और न ही वे सत्य के किसी भी पहलू को स्वीकारेंगे।

हमने अभी-अभी जो उदाहरण दिए, उनसे तुम देख सकते हो कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और इच्छा जन्मजात होती है। मसीह-विरोधी इसी तरह ऐसे प्रकृति सार के साथ ही पैदा होते हैं। वे पैदा होने के बाद यह सब बिल्कुल नहीं सीखते और न ही यह उनके परिवेश का परिणाम है। यह वैसा ही है जैसे कुछ बीमार लोग पैदा होने के बाद बीमार नहीं हुए होते हैं, बल्कि उन्हें यह बीमारी विरासत में मिलती है। इस तरह की बीमारियों का इलाज नामुमकिन है। मसीह-विरोधी लोग प्रतिष्ठा और रुतबा पाने की महत्वाकांक्षा के साथ पैदा होते हैं और वे दानव राजाओं के अवतारों से अलग नहीं हैं। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और उससे नफरत करते हैं और वे परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। तो, चाहे उन्हें किसी भी तरह से काटा-छाँटा जाए, वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे। अगर कोई साधारण भाई या बहन उन्हें काटता-छाँटता है तो वे इसे और भी कम स्वीकार करेंगे। उनका मानना है : “तुम मुझे काटने-छाँटने के काबिल नहीं हो, तुम योग्य नहीं हो! तुम्हें विश्वासी बने कितने दिन हुए हैं? जब मैं विश्वासी बना था, तब तुम पैदा भी नहीं हुए थे! जब मैं अगुआ बना था, तब तुमने परमेश्वर में विश्वास रखना भी शुरू नहीं किया था!” जो भाई-बहन उन्हें काटते-छाँटते हैं उनके प्रति उनका यही रवैया होता है। वे योग्यताओं और वरिष्ठता पर ध्यान देते हैं और इन आधारों पर काटे-छाँटे जाने को अस्वीकार करते हैं। तो अगर ऊपरवाला उन्हें काटे-छाँटे, तब वे इसे स्वीकार सकेंगे? अपने प्रकृति सार के आधार पर वे इसे भी स्वीकार नहीं करेंगे। भले ही वे दिखाने को कुछ न कहें, मगर उनके दिल निश्चित रूप से इसका प्रतिरोध करेंगे और इसे अस्वीकार करेंगे। इसमें कोई शक नहीं। जब वास्तव में ऊपरवाले की काट-छाँट से उनका सामना होता है तो मसीह-विरोधियों की सबसे सामान्य अभिव्यक्ति जिम्मेदारी से बचने के लिए बेतहाशा कुतर्क करने और अपने पक्ष में बहस करने की होती है, यहाँ तक कि वे ऊपरवाले से झूठ बोलते हैं और अपने से नीचे वालों से बातें छिपाते हैं, ताकि वे बचकर बेदाग निकल सकें। ऊपरवाले की काट-छाँट से बचने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर ऊपरवाले से झूठ बोलने और अपने से नीचे वालों से बातें छिपाने का तरीका अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी कलीसिया में बहुत सारी समस्याएँ हैं तो वे कभी उनकी रिपोर्ट नहीं करते हैं। अगर उनके भाई-बहन उन समस्याओं की रिपोर्ट करना चाहते हैं तो मसीह-विरोधी उन्हें ऐसा करने नहीं देते और जो कोई भी ऐसा करता है, उसे उनके दमन और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इस वजह से कई लोगों को इससे दूर रहने, समस्याओं को अनसुलझा छोड़ने और खुशामदी लोगों की तरह काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। मसीह-विरोधी कलीसिया की सभी समस्याओं को पूरी तरह से गुप्त रखते हुए उन्हें रफा-दफा कर देते हैं और ऊपरवाले को हस्तक्षेप करने या पूछताछ करने नहीं देते हैं। मसीह-विरोधी ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं को भी जितना हो सके उतना रोकते हैं और उन्हें आगे नहीं बढ़ाते या लागू नहीं करते हैं। अगर ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं से उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा या रुतबे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो वे कुछ सतही घोषणाएँ कर सकते हैं और आधे-अधूरे मन से कार्य कर सकते हैं, मगर वे निश्चित रूप से उन्हें वास्तव में लागू नहीं करेंगे। अगर ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाएँ उनकी प्रतिष्ठा और उनके रुतबे के लिए खतरा बनती हैं या उन पर कोई खास प्रभाव डालती हैं तो मसीह-विरोधी सोच में पड़ जाते हैं। वे विचार करते हैं कि काम कैसे करना है, किन लोगों पर करना है और कब करना है। उन्हें इन चीजों के बारे में बारीकी से सोच-समझकर चलना होता है, अपने मन में बार-बार इनका हिसाब लगाना होता है। अगर कलीसिया के कार्य में कुछ समस्याएँ आती हैं तो मसीह-विरोधी जानते हैं कि जब ऊपरवाले को इन समस्याओं के बारे में पता चलेगा तो उन्हें निश्चित रूप से काट-छाँट दिया जाएगा या बर्खास्त भी किया जा सकता है, इसलिए वे इन समस्याओं को छिपाते हैं और इनके बारे में ऊपरवाले को रिपोर्ट नहीं करते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अगर इन समस्याओं को हल नहीं किया गया तो परमेश्वर के घर के कार्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा या उसका कितना नुकसान होगा; उन्हें परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान से कोई लेना-देना नहीं होता है। वे इस बारे में नहीं सोचते कि कौन-सी कार्रवाई परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ पहुँचाएगी या परमेश्वर को संतुष्ट करेगी, वे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की सोचते हैं, यह सोचते हैं कि ऊपरवाला उन्हें कैसे देखेगा और उनके साथ कैसा व्यवहार करेगा और वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को कैसे सुरक्षित रखें ताकि वे प्रभावित न हों। यही वह तरीका है जिससे मसीह-विरोधी चीजों को देखते हैं और समस्याओं के बारे में सोचते हैं और यह पूरी तरह से उनके स्वभाव को दर्शाता है। इसलिए मसीह-विरोधी कलीसिया के भीतर मौजूद समस्याओं या उनके काम में आने वाली समस्याओं के बारे में सच्चाई से बिल्कुल भी रिपोर्ट नहीं करेंगे। चाहे वे कोई भी काम करें, चाहे वे किसी भी कठिनाई का सामना करें या अगर वे ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हों जहाँ वे नहीं जानते कि इन्हें कैसे सँभालना है या जहाँ वे नहीं जानते कि कौन-सा विकल्प चुनना है, उस काम को करते समय वे इस डर से इसे ढक देंगे और छिपाएँगे कि कहीं ऊपरवाला यह न कहे कि उनकी काबिलियत बहुत कम है या उसे उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में पता चल जाए या वह उन्हें काट-छाँट दे क्योंकि उन्होंने उन कठिनाइयों या स्थितियों को तुरंत नहीं सँभाला और उन्हें हल नहीं किया। मसीह-विरोधी लोग ऊपरवाले द्वारा काटे-छाँटे जाने से बचने के लिए परमेश्वर के घर और कलीसिया के कार्य के हितों की अवहेलना करते हैं। वे अपने रुतबे और आजीविका को बचाए रखने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऊपरवाले की नजरों में उनकी अच्छी छवि बनी रहे, कलीसिया के कार्य और हितों का बलिदान देने में संकोच नहीं करते। उन्हें कलीसिया के कार्य की प्रगति में देरी होने या उस पर कोई असर पड़ने की परवाह नहीं है और उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की तो और भी कम परवाह है। चाहे भाई-बहनों को कितनी भी मुश्किलों का सामना करना पड़े या उनके जीवन प्रवेश के मामले में कोई भी समस्या क्यों न आए, मसीह-विरोधी उन्हें हल नहीं कर सकते और वे ऊपरवाले से भी कोई मदद नहीं माँगेंगे। वे अच्छी तरह जानते हैं कि समस्याओं को छिपाने और उन्हें अनसुलझा छोड़ने से कलीसिया के कार्य की प्रगति में देरी होगी और उस पर असर पड़ेगा और भाई-बहनों के जीवन को नुकसान होगा, मगर वे इन बातों को नजरअंदाज करते हैं और उनकी परवाह नहीं करते। कलीसिया में चाहे कितनी भी बड़ी समस्याएँ क्यों न आएँ, वे कभी भी उनकी रिपोर्ट नहीं करते, बल्कि उन्हें छिपाने और दबाने की पूरी कोशिश करते हैं। अगर भाई-बहनों को उनके बुरे कर्मों का पता चलता है और वे उनकी रिपोर्ट करते हुए चिट्ठी लिखते हैं तो मसीह-विरोधी उन चिट्ठियों को रोकने और दबाने की और भी ज्यादा कोशिश करते हैं। उन चिट्ठियों को रोकने और दबाने में उनका क्या लक्ष्य होता है? ताकि उनका रुतबा बना रहे, उनकी प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि की सुरक्षा हो और उस समय उनके पास जो कुछ भी है वह उनसे छीन न लिया जाए। उनके लिए, बर्खास्त किया जाना या ऊपरवाले द्वारा उन्हें उनके काम के लिए अयोग्य ठहराया जाना, अपनी जान गँवाने और मौत की सजा पाने जैसा है, यह ऐसा है मानो कि परमेश्वर में उनके विश्वास का अंतिम पड़ाव आ गया है। इसलिए, चाहे कुछ भी हो, वे ऊपरवाले से कभी कुछ मदद नहीं माँगते। बल्कि अपने काम में मौजूद सभी समस्याओं को छिपाने और ऊपरवाले को उनका पता चलने देने से रोकने के तरीके सोचते हैं। क्या मसीह-विरोधियों का यह अभ्यास बेहद घिनौना नहीं है? उनका मानना है कि परमेश्वर और ऊपरवाले की नजरों में एक अच्छा अगुआ ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसे कभी कोई समस्या या कठिनाई न हो, जो सभी मामलों को अच्छी तरह से सँभाल सके और जो सभी तरह के काम के लिए उपयुक्त हो। उन्हें लगता है कि एक अच्छा अगुआ कभी भी कठिनाइयों के बारे में शिकायत नहीं करता या समस्याएँ आने पर खोज नहीं करता और एक अच्छा अगुआ परमेश्वर और ऊपरवाले के मन में एकदम परिपूर्ण, दोषरहित व्यक्ति होना चाहिए, जो ऊपरवाले की काट-छाँट के बिना काम को अच्छी तरह से करा सके। नतीजतन मसीह-विरोधी अपने रुतबे की जोरदार ढंग से रक्षा करते हैं, इस उम्मीद में कि ऊपरवाले पर अच्छा प्रभाव डाल सकें और ऊपरवाले को गलत तरीके से यह विश्वास दिला सकें कि वे अपने काम के लिए उपयुक्त हैं, अपने काम की जिम्मेदारी सँभाल सकते हैं और कोई बड़ी समस्या उत्पन्न नहीं होगी और ताकि वह सोचे कि उनके काम के बारे में सीधे तौर पर पूछताछ करने या उन्हें दिशा-निर्देश देने की कोई आवश्यकता नहीं है और उन्हें काटने-छाँटने की तो बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। मसीह-विरोधी अपने लिए इस तरह की छवि बनाना चाहते हैं, ताकि दूसरों को यह गलत विश्वास हो जाए कि परमेश्वर उन पर विश्वास करता है और उन्हें सब कुछ सौंपता है, कि वह उन्हें महत्वपूर्ण काम सौंपता है और उन पर इतना ज्यादा भरोसा करता है कि उन्हें काटने-छाँटने से भी हिचकिचाता है, इस डर से कि उनके नकारात्मक हो जाने और ढिलाई बरतने से काम प्रभावित होगा। मसीह-विरोधी लोग भाई-बहनों को यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि वे परमेश्वर के घर और कलीसिया में लोकप्रिय हैं और परमेश्वर के घर में महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। वे भाई-बहनों में इस तरह का भ्रम पैदा क्यों करना चाहते हैं और मुखौटा लगाना क्यों चाहते हैं? ऐसा इसलिए ताकि लोग उनका सम्मान और उनकी आराधना करें, ताकि वे कलीसिया में रुतबे के लाभों का आनंद ले सकें और साथ ही ऊँचे रुतबे और अनुकूल व्यवहार का आनंद ले सकें, इस हद तक कि उन्हें परमेश्वर का स्थान मिल जाए। वे अक्सर भाई-बहनों से कहते हैं, “परमेश्वर तुम लोगों से व्यक्तिगत रूप से बात नहीं कर सकता, वह तुम्हारे स्तर पर आकर व्यक्तिगत रूप से काम नहीं कर सकता और न ही वह तुम लोगों के साथ रहकर तुम्हारे दैनिक जीवन में आने वाली तमाम तरह की अलग-अलग समस्याओं में तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकता है। तो ये विशिष्ट काम कौन करेगा? हमारे जैसे अगुआ और कार्यकर्ता ही करेंगे न?” अपने रुतबे को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हुए वे अक्सर इस तरह की बातें कहते हैं और ऐसे विचार व्यक्त करते हैं, ताकि भाई-बहन पूरी तरह से और बिना किसी संदेह के उन पर आस्था और भरोसा रखें। उनके इस अभ्यास की प्रकृति क्या है? क्या यह ऊपरवाले से झूठ बोलना और अपने से नीचे वालों से बातें छिपाना नहीं है? (बिल्कुल है।) यह उनके रवैये का चालाक हिस्सा है। ज्यादातर लोगों में कम काबिलियत होती है, वे सत्य नहीं समझते, मसीह-विरोधियों को नहीं पहचान सकते और इसलिए मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह और उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर मसीह-विरोधी सीधे तौर पर लोगों को यह कहकर गुमराह करने की कोशिश करें : “ऊपरवाले को वाकई मुझ पर आस्था है, वो मेरी हर बात सुनता है,” तो लोग थोड़े सचेत हो सकते हैं और उन्हें थोड़ा पहचान सकते हैं, मगर मसीह-विरोधी इस तरह से सीधे तौर पर बात नहीं करते। वे लोगों को गुमराह करने के लिए अलग तरह से बोलते हैं और उन्हें गलत तरीके से यह विश्वास दिलाते हैं कि ऊपरवाले को उन पर जरूर विश्वास और भरोसा होगा तभी उन्हें अगुआई कार्य सौंपा है। जिन कमअक्ल लोगों में विवेक की कमी होती है और जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे झाँसे में आकर उनका अनुसरण करने लगते हैं। और जब कुछ घटित होता है तो वे कमअक्ल लोग परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या परमेश्वर के वचनों में सत्य नहीं खोजते, बल्कि मसीह-विरोधियों के सामने आते हैं, मसीह-विरोधियों से उन्हें मार्ग दिखाने और उनके लिए मार्ग चुनने के लिए कहते हैं। मसीह-विरोधी अपने क्रियाकलापों से यही लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। अगर कलीसिया में मसीह-विरोधियों को पहचानने और उजागर करने के लिए सत्य समझने वाले कुछ लोग नहीं हों तो ज्यादातर लोग आँखें मूँदकर उन पर विश्वास कर लेंगे, उनकी आराधना और उनका अनुसरण करेंगे और उनके काबू में रहेंगे। यह बहुत खतरनाक है! अगर कोई व्यक्ति तीन या पाँच सालों तक किसी मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह होता है और उसके काबू में रहता है तो उसके जीवन को बहुत नुकसान उठाना होगा। अगर वह आठ या दस सालों तक किसी मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह होता है और उसके काबू में रहता है तो वह पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा; अगर वह खुद को छुटकारा दिलाना भी चाहे तो उसके पास ऐसा करने का मौका नहीं होगा।

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