मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दो) खंड तीन

ख. उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा

आओ संगति के दूसरे उपखंड “मसीह-विरोधियों की अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा” के बारे में संगति जारी रखें। इसमें भी मसीह-विरोधियों के हित शामिल हैं। अब ये तीनों उपखंड जिन पर हम चर्चा कर रहे हैं : मसीह-विरोधियों की अपनी सुरक्षा, उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा, और उनके अपने लाभ—वे सब मसीह-विरोधियों के अपने हितों से संबंधित हैं। क्या इनका परमेश्वर के घर के कार्य से कोई संबंध है? (हाँ, है।) क्या संबंध है? (मसीह-विरोधी अपने संरक्षण और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सुरक्षित रखने के लिए कलीसिया के काम में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं और उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं।) मसीह-विरोधी अपने हितों के संरक्षण के लिए परमेश्वर के घर के हितों और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थी और घिनौनी प्रकृति को देखें तो इस तरह के व्यक्ति अपनी सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से रक्षात्मक होने के अलावा और किस चीज को सँजोते हैं? (उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबा बहुत पसंद है।) सही कहा। मसीह-विरोधियों को प्रतिष्ठा और रुतबा बहुत अधिक पसंद आता है। प्रतिष्ठा और रुतबा उनके जीवन का आधार है; उन्हें लगता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना जीवन बेकार है और प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना उनमें कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं होती है। मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा दोनों उनके व्यक्तिगत हितों से नजदीकी से जुड़े हैं; वे उनकी घातक कमजोरी हैं। इसीलिए मसीह-विरोधी जो भी करते हैं वह उनके रुतबे और प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। अगर ये चीजें न होतीं तो शायद वे कोई काम नहीं करते। मसीह-विरोधियों के पास चाहे कोई रुतबा हो या न हो, जिस लक्ष्य के लिए वे लड़ रहे हैं, जिस दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं, वह इन्हीं दो चीजों की ओर है—प्रतिष्ठा और रुतबा। जब मसीह-विरोधी मुख्यभूमि चीन जैसे निरंकुश परिवेश में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तो वे अपनी सुरक्षा पक्की करने के फेर में परमेश्वर के घर के हितों के बारे में कोई विचार नहीं करते। वे जो कुछ करते हैं, उसका एक हिस्सा अपनी पूरी ताकत से रुतबा पाने, सत्ता पर दृढ़ता से कब्जा बनाए रखने और कलीसिया को नियंत्रित करने के लिए है। दूसरा हिस्सा यह है कि वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की ही खातिर हमेशा बातें करते हैं, काम करते हैं, इधर-उधर भागते-फिरते और कड़ी मेहनत करते रहते हैं। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह सब इन्हीं चीजों के इर्द-गिर्द घूमता है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए कभी कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, न ही वे राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए कोई वास्तविक कार्य करते हैं। जब वे कीमत चुकाते हैं तो गौर करो कि वे यह कीमत क्यों चुकाते हैं। जब वे किसी मुद्दे पर उत्साहपूर्वक वाद-विवाद करते हैं तो गौर करो कि वे उस पर बहस क्यों करते हैं। जब वे किसी व्यक्ति के बारे में विचार-विमर्श करते या उसकी निंदा करते हैं तो गौर करो कि उनकी मंशा और लक्ष्य क्या है। जब वे किसी बात को लेकर दुखी या गुस्सा होते हैं तो गौर करो कि वे किस तरह का स्वभाव प्रकट करते हैं। लोग दूसरे लोगों के दिलों के अंदर नहीं झाँक सकते, मगर परमेश्वर ऐसा कर सकता है। जब परमेश्वर लोगों के दिलों में झाँकता है तो वह लोगों की कथनी और करनी के सार को मापने के लिए किस चीज का उपयोग करता है? वह इसे मापने के लिए सत्य का उपयोग करता है। मनुष्य की नजर में अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करना उचित है। तो फिर परमेश्वर की नजर में इसे मसीह-विरोधियों के प्रकाशन और अभिव्यक्ति और मसीह-विरोधियों के सार के रूप में क्यों निरूपित किया जाता है? यह मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले हर काम के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा पर आधारित है। परमेश्वर उनके द्वारा किए जाने वाले कामों के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा की पड़ताल करता है और अंत में यह निर्धारित करता है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए होता है, न कि अपना कर्तव्य निभाने की खातिर; यह सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने की खातिर तो बिल्कुल भी नहीं है।

मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, इसलिए वे यकीनन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने के लिए ही बोलते और काम भी करते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं। अगर उनके आसपास कोई अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है, इस व्यक्ति को भाई-बहनों के बीच कुछ प्रसिद्धि हासिल करने के बाद टीम का अगुआ चुन लिया जाता है और भाई-बहन वास्तव में उस व्यक्ति को सराहते और स्वीकारते हैं तो मसीह-विरोधी कैसी प्रतिक्रिया देंगे? यकीनन वे इससे खुश नहीं होंगे और उनमें ईर्ष्या पैदा होगी। अगर मसीह-विरोधी मन में ईर्ष्या रखते हैं तो मुझे बताओ क्या वे सही बर्ताव कर सकेंगे? क्या उन्हें इस बारे में कुछ नहीं करना होगा? (करना होगा।) अगर वे वास्तव में इस व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं तो वे क्या करेंगे? अपने मन में वे जरूर कुछ इस तरह का हिसाब लगाएँगे : “इस व्यक्ति में काफी अच्छी काबिलियत है, उसके पास इस पेशे की कुछ समझ है और वह मुझसे ज्यादा मजबूत है। यह परमेश्वर के घर के काम के लिए फायदेमंद है, मगर मेरे लिए नहीं! क्या वह मेरी जगह ले लेगा? अगर उसने वाकई एक दिन मेरी जगह ले ली तो क्या यह परेशानी की बात नहीं होगी? मुझे पहले से ही निवारक काम करना चाहिए। अगर वह कभी अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम हो जाए तो मेरे लिए उसे ठीक करना इतना आसान नहीं होगा। बेहतर होगा कि मैं पहले ही वार करूँ। अगर मैं देर करता हूँ और उसे मुझे उजागर करने देता हूँ तो कौन जाने इसके अंजाम क्या होंगे। तो मैं वार कैसे करूँ? मुझे एक बहाना, एक अवसर खोजना होगा।” मुझे बताओ, अगर लोग किसी को यातनाएँ देना चाहते हैं तो क्या उनके लिए ऐसा करने का बहाना और अवसर ढूँढ़ना आसान नहीं है? दानव की कौन-सी एक चाल है? (“जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।”) बिल्कुल, “जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।” शैतान के संसार में इस तरह का तर्क मौजूद होता है और ऐसी चीजें होती रहती हैं। परमेश्वर के लिए यह बिल्कुल भी मौजूद नहीं होता है। मसीह-विरोधी शैतान के हैं और ये सब करने में सबसे ज्यादा कुशल हैं। वे इस बारे में सोचेंगे : “जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है। मैं तुम पर आरोप लगाऊँगा, तुम्हें यातनाएँ देने का अवसर ढूँढूँगा, तुम्हारे अहंकार और तुम्हारी हेकड़ी को दबाऊँगा और भाई-बहनों को तुम्हारा सम्मान करने और अगली बार तुम्हें टीम का अगुआ चुनने से रोकूँगा। फिर तुम मेरे लिए कोई खतरा नहीं रहोगे, है ना? अगर मैं इस संभावित समस्या को खत्म कर दूँ और इस प्रतिस्पर्धी को हटा दूँ तो क्या मुझे राहत नहीं मिलेगी?” अगर उसके दिमाग में इस तरह की उथल-पुथल मची हुई है तो क्या वह बाहर से खुद को इस पर काम करने से रोक पाएगा? मसीह-विरोधियों की प्रकृति को देखें तो क्या वे इस विचार को अपने अंदर दबाए रखने और कुछ न करने में सक्षम हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं। वे यकीनन अपनी चाल चलने का रास्ता खोज ही लेंगे। यह मसीह-विरोधियों की मक्कारी है। वे न केवल ऐसा सोचते हैं, बल्कि इस लक्ष्य को हासिल भी करना चाहते हैं। इसलिए वे उतावले होकर इस मामले पर विचार करेंगे, अपना दिमाग खपाएँगे। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते, न ही वे कलीसिया के कार्य पर विचार करते हैं। उन्हें इस बात की और भी कम परवाह होती है कि उनके क्रियाकलाप परमेश्वर के इरादे के अनुसार हैं या नहीं। वे बस अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने, अपनी ताकत की रक्षा करने के बारे में ही सोचते हैं। उन्हें लगता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने पहले ही उनके रुतबे के लिए खतरा पैदा कर दिया है, इसलिए वे उन्हें नीचे गिराने का अवसर खोजने की कोशिश करते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने उनसे सलाह-मशविरा किए बिना किसी ऐसे व्यक्ति को बर्खास्त कर दिया जो लगातार अनमने ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहा था, तो वे इसे अपने प्रतिद्वंद्वी पर कुछ आरोप लगाने का बिल्कुल सही मौका समझेंगे। भाई-बहनों के सामने वे कहते हैं, “क्योंकि आज सभी यहाँ हैं, तो आओ इस मामले का गहन-विश्लेषण करें। क्या अधिकृत हुए बिना, अपने सहकर्मियों या साथियों से विचार-विमर्श किए बिना किसी को बर्खास्त करना तानाशाही नहीं है? कोई ऐसी गलती क्यों करेगा? क्या उनके स्वभाव में कोई समस्या नहीं है? क्या उनकी काट-छाँट नहीं की जानी चाहिए? क्या भाई-बहनों को उनका परित्याग नहीं कर देना चाहिए?” वे यह मुद्दा उठाते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने और खुद को ऊँचा उठाने के लिए बात का बतंगड़ बना देते हैं। वास्तव में स्थिति इतनी गंभीर नहीं है। किसी टीम सदस्य को उसके कर्तव्य से बर्खास्त किए जाने या उसे दूसरा काम सौंपे जाने के बाद रिपोर्ट बनाना पूरी तरह से स्वीकार्य है, जब तक कि बर्खास्तगी या दूसरा काम सौंपा जाना सिद्धांतों का पालन करता हो। लेकिन मसीह-विरोधी इस मुद्दे को हद से ज्यादा तूल देते हैं। वे जानबूझकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करते हैं और खुद को ऊँचा उठाते हैं। क्या यह दूसरों को यातनाएँ देने की अभिव्यक्ति नहीं है? वे अपने प्रतिद्वंद्वी की क्रूरता से काट-छाँट करते हैं और उसके बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगाते हैं। यह सब सुनने के बाद भाई-बहन सोचते हैं, “यहाँ क्या चल रहा है? दाल में कुछ काला है। वे जो कह रहे हैं वह वास्तविकता से मेल नहीं खाता! जिस व्यक्ति को उसके कर्तव्य से हटाया गया, वह इसे जिम्मेदार तरीके से नहीं कर रहा था—यह तथ्य सबको पता है। कलीसिया के कार्य को बनाए रखने के लिए उसे बर्खास्त किया गया था। इस तरह से अपना कर्तव्य निभाना एक गंभीर और जिम्मेदार तरीका है और निष्ठा की अभिव्यक्ति है। तो इसे तानाशाही का काम क्यों कहा जाए? यह साफ तौर पर ऐसा मामला है कि ‘जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है’!” जिस किसी के पास सत्य की थोड़ी भी समझ और भेद पहचानने की क्षमता हो, वह एक नजर में बता सकता है कि ये मसीह-विरोधी सिर्फ अपना भाव दिखा रहे हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी पर अपनी कुंठाएँ निकाल रहे हैं। यह काम की जिम्मेदारी लेना कैसे है? यह व्यक्ति की काट-छाँट करना कैसे है? ये मसीह-विरोधी राई का पहाड़ बना रहे हैं : यह सीधे तौर पर प्रतिकार और व्यक्तिगत प्रतिशोध है। यह मानवीय इच्छा और शैतान से आता है, यह परमेश्वर से नहीं आता। यह यकीनन काम और अपने कर्तव्यों की जिम्मेदारी लेने के रवैये से नहीं आता—उनका यह इरादा नहीं होता है। मसीह-विरोधी अपने इरादों को बहुत स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं और कुछ लोग इसे देख सकते हैं। क्या मसीह-विरोधियों को इसका एहसास हो सकता है? (हाँ।) यही मसीह-विरोधियों की धूर्तता है। वे अपने रुतबे की रक्षा करने, कुतर्क करने, लोगों को जीतने और खास तौर से लोगों के दिलों में “झाँकने” में सबसे ज्यादा कुशल हैं। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “मैं तुम लोगों के दिलों में मौजूद हर विचार को देख सकता हूँ। शायद तुम लोग सत्य को समझ सकते हो, मगर मेरी असलियत नहीं समझ सकते। मैं तुम लोगों की असलियत समझ सकता हूँ। मैं बता सकता हूँ कि मेरी कही बातों पर किसे यकीन नहीं है।” मगर क्या वे ऐसा कुछ कहते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कहते। वे सबको आश्वस्त करने के लिए कुछ मीठे शब्दों और अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि सबको लगे कि उस व्यक्ति की काट-छाँट कर उन्होंने सही किया है। वे कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं? वे कहते हैं, “मैंने किसी स्वार्थी, व्यक्तिगत इरादे से तुम्हारी काट-छाँट नहीं की है। वास्तव में, हमारे बीच कोई व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं है। बात बस इतनी है कि जब तुमने मनमाने ढंग से उस व्यक्ति को उसके कर्तव्य से हटाया तो इससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा। क्या मैं इसे नजरअंदाज कर सकता हूँ? अगर मैंने तुम्हें ऐसा करने दिया तो यह मेरी गैर-जिम्मेदारी होगी। मैं तुम्हें या किसी व्यक्ति को निशाना बनाने के लिए ऐसा नहीं कर रहा हूँ। अगर मैं गलत हूँ तो भाई-बहन मेरी आलोचना कर सकते हैं और मुझे फटकार सकते हैं। मैं अगला चुनाव नहीं लड़ूँगा।” कुछ लोग यह सब सुनकर पूरी तरह भ्रमित हो जाते हैं। वे सोचते हैं, “लगता है उसे समझने में मुझसे गलती हो गई। वह चुनाव न लड़ने को भी तैयार है। उसने रुतबे की होड़ में उस व्यक्ति की काट-छाँट नहीं की है, उसने जो किया वह कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी निभाने के रवैये के आधार पर किया। इसमें कुछ गलत नहीं है।” ये मसीह-विरोधी फिर से कुछ लोगों को गुमराह करने में कामयाब हो जाते हैं। क्या मसीह-विरोधी चालाक नहीं हैं? (हाँ, वे चालाक हैं।) वे बेहद चालाक हैं! यह कहा जा सकता है कि अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर मसीह-विरोधी अपना दिमाग खपाते हैं, अपने मन की गहराई को टटोलते हैं और हर जरूरी साधन अपनाते हैं। एक कहावत है : “पहले उन्हें थप्पड़ मारो, फिर मीठी-मीठी बातें कह दो।” क्या मसीह-विरोधी इस चाल का इस्तेमाल नहीं करेंगे? वे तुम पर वार करने के बाद तुम्हें मनाने, सांत्वना देने और खुद को बहुत सहनशील, धैर्यवान और स्नेही महसूस कराने के लिए कुछ मीठे-मीठे शब्द कह सकते हैं। आखिरकार, तुम्हें उनका अनुमोदन कर यह कहना पड़ेगा, “देखो, इस व्यक्ति के पास अपने काम को लेकर इतने स्पष्ट उद्देश्य हैं और वह इसमें इतना प्रवीण है—क्या शानदार कौशल है! स्पष्ट है कि उसमें एक अगुआ के गुण हैं और हम सब उसकी तुलना में अधूरे महसूस करते हैं।” तो क्या इन मसीह-विरोधियों ने अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया है? ये मसीह-विरोधियों की चालें होती हैं।

मसीह-विरोधी बहुत ही कपटी और धूर्त होते हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं बहुत सोच-समझकर कहते हैं; ढोंग करने में उनसे बेहतर कोई नहीं है। मगर जैसे ही राज खुल जाता है, जैसे ही लोग उनकी असलियत देख लेते हैं तो वे खुद के लिए बहस करने की पूरी कोशिश करते हैं, स्थिति को सुधारने के तरीके सोचते हैं और अपनी छवि और प्रतिष्ठा को बचाने के उपाय के रूप में झाँसा देकर अपना रास्ता बनाते हैं। मसीह-विरोधी हर दिन केवल प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीते हैं, वे केवल रुतबे के लाभों में लिप्त रहने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट सहते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं तो वह भी रुतबा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। रुतबे के पीछे दौड़ना, सत्ता धारण करना और एक आसान जीवन जीना वे प्रमुख चीजें हैं, जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद हमेशा साजिश करते हैं और तब तक हार नहीं मानते, जब तक कि वे अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। अगर कभी उनके बुरे कर्म उजागर हो जाते हैं तो वे घबरा जाते हैं, मानो उन पर आकाश गिरने वाला हो। वे न तो खा पाते हैं, न सो पाते हैं और वे बेहोशी की हालत में प्रतीत होते हैं, मानो अवसाद से ग्रस्त हों। जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या समस्या है तो वे झूठ बोलते हुए कहते हैं, “कल मैं इतना व्यस्त रहा कि पूरी रात सो नहीं पाया, इसलिए बहुत थक गया हूँ।” लेकिन वास्तव में इसमें से कुछ भी सच नहीं होता, यह सब धोखा होता है। वे ऐसा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि वे लगातार सोच रहे होते हैं, “मेरे द्वारा किए गए बुरे काम उजागर हो गए हैं तो मैं अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा कैसे बहाल कर सकता हूँ? मैं खुद को छुड़ाने के लिए किन साधनों का उपयोग कर सकता हूँ? इसे समझाने के लिए मैं सभी लोगों के साथ किस लहजे का उपयोग कर सकता हूँ? मैं लोगों को अपनी असलियत जानने से रोकने के लिए क्या कह सकता हूँ?” काफी समय तक उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, इसलिए वे खिन्न रहते हैं। कभी-कभी उनकी आँखें एक ही स्थान पर शून्य में ताकती रहती हैं और कोई नहीं जानता कि वे क्या देख रहे हैं। यह मुद्दा उन्हें सिर खपाने पर मजबूर कर देता है, वे जितना सोच सकते हैं उतना सोचते हैं और उनकी खाने या पीने की इच्छा नहीं होती। इसके बावजूद वे अभी भी कलीसिया के काम की परवाह करने का दिखावा करते हैं और लोगों से पूछते हैं, “सुसमाचार का काम कैसा चल रहा है? उसका कितने प्रभावी ढंग से प्रचार किया जा रहा है? क्या भाई-बहनों ने हाल-फिलहाल कोई जीवन प्रवेश हासिल किया है? क्या कोई गड़बड़ियाँ या बाधाएँ पैदा कर रहा है?” कलीसिया के काम के बारे में उनकी यह पूछताछ दूसरों को दिखाने के लिए होती है। अगर उन्हें समस्याओं के बारे में पता चल भी जाता, तो भी उनके पास उन्हें हल करने का कोई उपाय न होता, इसलिए उनके प्रश्न महज औपचारिकता होते हैं, जिन्हें इसलिए पूछा जाता है ताकि ऐसा लगे कि वे कलीसिया के कार्य की परवाह करते हैं। अगर कोई कलीसिया की समस्याओं की रिपोर्ट बनाए जिनका उन्हें समाधान करना हो तो वे बस अपने सिर हिला देंगे। कोई भी योजना उनके काम नहीं आएगी और हालाँकि वे खुद को छिपाना चाहेंगे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाएँगे और उनके उजागर और प्रकट होने का खतरा होगा। यह सबसे बड़ी समस्या है, जिसका सामना मसीह-विरोधियों को अपने पूरे जीवन में करना पड़ता है। इस क्षण मसीह-विरोधी बेहद आक्रांत होते हैं, कभी-कभी अपना सिर हिलाते हैं, मानो कह रहे हों, “ऐसे नहीं चल सकता।” फिर वे अपने हाथों से अपना सिर थपथपाते हैं, मानो सोच रहे हों, “मैं इतना बेवकूफ कैसे हूँ? मैं इस मामले में ठोकर कैसे खा सकता हूँ?” मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकते हैं और बस आहें भर सकते हैं। वे केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए मेहनत करते, कष्ट सहते और कीमत चुकाते हैं, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए हर प्रकार का बुरा कर्म करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों से उजागर होना एक अपरिहार्य परिणाम है। सत्य का अनुसरण न करने से लोगों का देर-सबेर पतन होना तय है। यह कहावत मसीह-विरोधियों पर पूरी तरह से लागू होती है। भले ही वे भेष बदलने में कुशल हों और दूसरों को मनाने और गुमराह करने में सक्षम हों, लेकिन अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और व्यक्ति के सार को समझ सकते हैं तो मसीह-विरोधी चाहे कितनी भी गहराई में क्यों न छिपे हों या चाहे कितनी भी बुराई करें, वे उनका भेद पूरी तरह से पहचान सकते हैं। कुछ और कहावतें हैं : “बुराई में बने रहना आत्म-विनाश लाता है” और “आग से खेलने से तुम जल जाओगे।” ये सभी चीजों के विकास को नियंत्रित करने वाले वस्तुनिष्ठ नियम हैं, जिन्हें परमेश्वर ने सभी चीजों और सभी घटनाओं के विकास के लिए स्थापित किया है। कोई भी इनसे बच नहीं सकता। हालाँकि मसीह-विरोधियों के शासन में कलीसिया का काम जारी है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता बहुत कम हो गई है। कुछ महत्वपूर्ण कार्य को अभी भी बुरे व्यक्ति नियंत्रित कर रहे हैं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ लागू नहीं की गई हैं। हालाँकि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, फिर भी कोई वास्तविक नतीजा नहीं मिला है और विभिन्न काम लंबे समय से पंगु अवस्था में पड़े हैं। इन समस्याओं का मूल कारण क्या है? यही कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया को अपने काबू में कर लिया है। जहाँ कहीं मसीह-विरोधियों के हाथ में सत्ता है तो चाहे उनके प्रभाव का दायरा कुछ भी हो, चाहे वह सिर्फ एक टीम हो, वे परमेश्वर के घर के काम को और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कुछ के जीवन प्रवेश को प्रभावित करेंगे। अगर किसी कलीसिया में उनके पास सत्ता है तो वहाँ कलीसिया का काम और परमेश्वर की इच्छा बाधित होती है। कुछ कलीसियाओं में परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू क्यों नहीं की जा सकतीं? इसलिए कि उन कलीसियाओं में सत्ता मसीह-विरोधियों के पास होती है। जो कोई मसीह-विरोधी है वह गंभीरता से परमेश्वर के लिए नहीं खपेगा, उसके कर्तव्यों का निर्वाह सिर्फ औपचारिकताओं और बेमन से काम करने का मामला होगा। वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे, भले ही वे अगुआ या कार्यकर्ता हों, कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल न करते हुए वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए बोलेंगे और कार्य करेंगे। तो मसीह-विरोधी पूरे दिन क्या करते हैं? वे प्रदर्शन और दिखावा करने में व्यस्त रहते हैं। वे सिर्फ अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से जुड़े काम करते हैं। वे दूसरों को गुमराह करने, लोगों को फुसलाने में व्यस्त रहते हैं और जब वे ताकत बटोर लेते हैं तो वे और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करने में लग जाते हैं। वे सिर्फ राजा की तरह राज करना चाहते हैं और कलीसिया को अपने स्वतंत्र राज्य में बदलना चाहते हैं। वे सिर्फ महान अगुआ बनना चाहते हैं, पूर्ण, एकतरफा अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे किसी और चीज की जरा भी परवाह नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से सरोकार नहीं रखते, इस बात की परवाह तो बिल्कुल नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा पूरी होती है या नहीं। वे केवल इस बात की चिंता करते हैं कि कब वे स्वतंत्र रूप से सत्ता धारण कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं और परमेश्वर के साथ बराबरी पर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधियों की इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ वास्तव में बहुत बड़ी होती हैं! मसीह-विरोधी चाहे कितने भी मेहनती दिखाई पड़ते हों, वे मनमाफिक कार्य करते हुए केवल अपने ही उद्यमों में और अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से संबंधित चीजों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों या उस कर्तव्य के बारे में भी नहीं सोचते जो उन्हें निभाना चाहिए और वे कुछ भी ठीक से नहीं करते। मसीह-विरोधी इसी तरह की चीज हैं—वे दानव और शैतान हैं जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा करते हैं।

अतीत में एक अगुआ था जिसे मैंने उसके कार्यकाल के दौरान पाँच काम सौंपे थे। लेकिन दो महीने बाद इनमें से कोई काम पूरा नहीं हुआ। बाहर से ऐसा लग रहा था कि अगुआ खाली नहीं बैठा था, वह काफी व्यस्त और थका हुआ था और वह शायद ही कभी दिखाई देता था। तो वह किस काम में व्यस्त था और जो काम मैंने उसे सौंपे थे वह उन्हें पूरा क्यों नहीं कर सका? यहाँ एक समस्या थी। अगुआ ने कुछ काम नहीं किए क्योंकि उसे ये काम करना पसंद नहीं था, उसका मानना था कि ये काम उसके कर्तव्यों के दायरे से बाहर थे। यह एक समस्या थी। इसके अलावा कुछ कामों के बारे में उसकी अपनी अलग राय थी, वह जानबूझकर उन्हें एक तरफ रख देता था। कुछ काम चुनौतीपूर्ण भी थे, जिसमें दूसरों की सहायता की जरूरत थी और वे कुछ हद तक परेशानी भरे होते थे और अगुआ उनसे निपटना नहीं चाहता था। इस तरह के परिदृश्य सामने आए। तो दो महीने बीत गए और एक भी काम पूरा नहीं हुआ। कुछ लोगों ने कहा, “क्या इन सभी कामों को दो महीनों में पूरा करना मुमकिन है?” यह मुमकिन है, ये सभी काम दो महीनों में पूरे किए जा सकते हैं और इनमें से ज्यादातर कामों को एक या दो दिनों में ही पूरा किया जा सकता है, मगर अगुआ उन्हें लागू करने में विफल रहा। जब किसी और ने कार्यभार सँभाला और ये काम किए तो सभी पाँच काम एक हफ्ते के भीतर पूरे हो गए। क्या तुम सबको लगता है कि ऐसे अगुआ को बर्खास्त कर देना चाहिए? (हाँ।) अगर तुम सबका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो ऊपरवाले द्वारा सौंपे गए किसी भी काम को पूरा न करे, मगर बाहर से काफी व्यस्त दिखाई दे तो वह एक नकली अगुआ है। ऐसे व्यक्तियों को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए या हटा दिया जाना चाहिए। इस सिद्धांत के बारे में तुम्हारा क्या विचार है? (यह अच्छा है।) उनके बाहरी उत्साह और इस तथ्य पर ध्यान मत दो कि वे पूरे दिन काफी व्यस्त दिखते हैं। वास्तव में वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; वे खुद को तुच्छ मामलों में व्यस्त रखते हैं। वे क्या करते हैं? उनके काम कुछ अलग-अलग श्रेणियों में आते हैं। एक तो वे ऐसे काम लेते हैं जो वे मानते हैं कि वे सँभाल सकते हैं, जो सुरक्षित हैं और जिनमें ज्यादा जोखिम नहीं है। “ज्यादा जोखिम नहीं है” से मेरा क्या तात्पर्य है? यही कि इन कामों को करके गलतियाँ करने से बचना आसान होता है, उन्हें ऊपरवाले से बातचीत नहीं करनी पड़ती और वे काम गलत ढंग से करने और काट-छाँट होने से बच सकते हैं। इसके अलावा, वे ऐसे काम करते हैं जिनमें वे प्रवीण हैं, जिनमें उनसे गलतियाँ होने की संभावना कम होती है। इस तरह, वे जिम्मेदारी उठाने से बच सकते हैं और काफी हद तक वे काट-छाँट होने, हटाए जाने या निष्कासित किए जाने से खुद को बचा सकते हैं। इन कामों में जोखिम और जिम्मेदारी शामिल नहीं है, इसलिए वे इन्हें कर सकते हैं और सँभाल सकते हैं। वास्तव में, इसमें एक बात छिपी होती है। अगर वे ये काम किसी की नजर में आए बिना कर सकें तो क्या वे इन्हें करेंगे? अगर इनमें उनका कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं है तो क्या वे इन्हें करेंगे? बिल्कुल नहीं करेंगे। वे किस तरह के काम करना पसंद करते हैं? वे ऐसे काम करना पसंद करते हैं जो अपेक्षाकृत आसान हों, सरल हों और जिन्हें बहुत ज्यादा कष्ट सहे बिना पूरा किया जा सके। इसके अलावा, वे उन धर्मोपदेशों को अधिक सुनने और याद करने के लिए तैयार रहते हैं जिनमें उनकी रुचि होती है और जो उनकी धारणाओं से मेल खाते हैं। इन धर्मोपदेशों को समझने के बाद वे दूसरों के साथ इन पर चर्चा कर सकते हैं, वे यह अपनी खूबियाँ दिखाने और दूसरों से सराहना जुटाने के लिए करते हैं। इसके अलावा, अगर इन कामों को करने से उन्हें और अधिक लोगों से मिलने-जुलने का मौका मिले और इससे दूसरे जान पाएँ कि वे काम में व्यस्त हैं, अगुआ के पद पर हैं और उनके पास यह रुतबा और पहचान है तो वे इन्हें करेंगे। वे ऐसी प्रकृति के कामों को चुनते हैं। लेकिन अगर उन्हें जो काम करना है वह जटिल हो और उनकी क्षमताओं से परे हो, अगर कोई और उनसे ज्यादा कुशल हो और असफल होने पर उनकी प्रतिष्ठा खोने, दूसरों से अपमानित होने का जोखिम हो तो वे ये काम करने को तैयार नहीं होंगे। वे कड़ी मेहनत, थकान और अच्छा प्रदर्शन न करने की शर्मिंदगी से डरते हैं। इसके अलावा, वे बहुत ही आलसी होते हैं और मुश्किल और मेहनत वाले कामों से बचते हैं, और खुद को इनसे कहीं दूर छिपा लेते हैं। इसके बजाय, वे ऐसे काम करना पसंद करते हैं जो उनकी छवि को सुधारते हैं, सहज-साध्य हैं, जहाँ वे ऊपरवाले की नजर में आए बिना बस खानापूर्ति करते हुए लोगों के दिल जीत सकते हैं। ये सब लक्षण मसीह-विरोधियों के जन्मजात लक्षण हैं। जब अपने कर्तव्य निभाने की बात आती है, तो वे अपनी पसंद के काम चुनते हैं। उनके पास व्यक्तिगत पसंद, योजनाएँ और यहाँ तक कि साजिशें भी होती हैं। वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति वास्तव में बिल्कुल भी आज्ञाकारी नहीं होते; बल्कि वे अपने ही विकल्प चुनते हैं। जहाँ तक ऊपरवाले की कुछ निश्चित व्यवस्थाओं की बात है, अगर वे उनसे सहमत नहीं हैं तो उन्हें बिल्कुल भी लागू नहीं करेंगे। वे इन मामलों को पूरी तरह से उलझा देते हैं और कलीसिया के भाई-बहन उनसे अनभिज्ञ होते हैं। अगर ऊपरवाले की इन व्यवस्थाओं को लागू करना कुछ व्यक्तियों के खिलाफ जाता है या उन्हें नाराज करता है तो क्या वे उन्हें लागू करेंगे? नहीं करेंगे। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “अगर ऊपरवाला यह काम पूरा कराना चाहता है तो मैं इसे नहीं करूँगा। अगर करूँगा भी तो मुझे इसे ऊपरवाले के नाम पर करना पड़ेगा, कहना पड़ेगा कि यह ऊपरवाले का आदेश था। मैं उन लोगों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता।” मसीह-विरोधी चालाक किस्म के होते हैं, है ना? वे जो कुछ भी करते हैं, उसकी आठ-दस बार या उससे भी अधिक बार गुप्त योजना बनाते और हिसाब-किताब करते हैं। वे सोचते रहते हैं कि कैसे भीड़ में अपनी स्थिति को मजबूत बनाया जाए, कैसे अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा सम्मान प्राप्त किया जाए, कैसे ऊपरवाले की कृपा हासिल की जाए, भाई-बहनों का समर्थन, प्रेम और सम्मान कैसे पाया जाए और वे इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। वे किस मार्ग पर चल रहे हैं? उनके लिए परमेश्वर के घर के हित, कलीसिया के हित और परमेश्वर के घर का कार्य उनकी मुख्य चिंता के विषय नहीं होते, ये ऐसी चीजें तो और भी नहीं हैं जिनकी वे फिक्र करें। वे क्या सोचते हैं? “इन बातों का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए; लोगों को अपने लिए, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए जीना चाहिए। यही सर्वोच्च लक्ष्य होता है। अगर कोई यह नहीं जानता कि उसे अपने लिए जीना चाहिए और अपनी रक्षा करनी चाहिए तो वह मूर्ख है। अगर मुझे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने, परमेश्वर और उसके घर की व्यवस्था के प्रति समर्पण करने को कहा जाए तो यह इस पर निर्भर करेगा कि इससे मेरा हित सधेगा या नहीं और क्या ऐसा करने का कोई लाभ होगा। यदि परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण न करने से मुझे निकाल दिए जाने का और आशीष प्राप्त करने का अवसर खोने का डर है तो मैं समर्पण कर दूँगा।” इस प्रकार अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए मसीह-विरोधी अक्सर कुछ समझौते करने का फैसला करते हैं। तुम कह सकते हो कि रुतबे की खातिर मसीह-विरोधी किसी भी प्रकार की पीड़ा सहने को और एक अच्छी प्रतिष्ठा के लिए वे किसी भी तरह की कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं। उन पर यह कहावत खरी उतरती है, “एक महान व्यक्ति जानता है कि कब झुकना है और कब नहीं।” यह शैतान का तर्क है, है ना? यह सांसारिक आचरण के लिए शैतान का फलसफा है और यह जीवित रहने का शैतान का सिद्धांत भी है। यह बेहद घृणित है!

मसीह-विरोधी अपने रुतबे और प्रतिष्ठा को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ये लोग कपटी, चालाक और दुष्ट ही नहीं, बल्कि अत्यधिक क्रूर भी होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनका रुतबा खतरे में है या जब वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देते हैं, जब वे इन लोगों का समर्थन और स्नेह खो देते हैं, जब लोग उनका आदर-सम्मान नहीं करते और वे बदनामी के गर्त में गिर जाते हैं तो वे क्या करते हैं? वे अचानक पक्षद्रोही हो जाते हैं। जैसे ही वे अपना रुतबा खो देते हैं, वे कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते, वे जो कुछ भी करते हैं अनमने होकर करते हैं और उनकी कुछ भी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती। लेकिन यह सबसे खराब अभिव्यक्ति नहीं होती। सबसे खराब अभिव्यक्ति क्या होती है? जैसे ही ये लोग अपना रुतबा खो देते हैं और कोई उनका सम्मान नहीं करता, कोई भी उनसे गुमराह नहीं होता तो उनकी घृणा, ईर्ष्या और प्रतिशोध बाहर आ जाता है। उनके पास न केवल परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं रहता, बल्कि उनमें समर्पण का कोई अंश भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, यह संभावना होती है कि वे परमेश्वर के घर, कलीसिया, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से घृणा करेंगे; वे दिल से चाहते हैं कि कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आ जाएँ या वह ठप हो जाए; वे कलीसिया और भाई-बहनों पर हँसना चाहते हैं। वे हर उस व्यक्ति से भी घृणा करते हैं जो सत्य का अनुसरण करता है और परमेश्वर का भय मानता है। वे हर उस व्यक्ति पर हमला करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं जो अपने कर्तव्य में निष्ठावान है और कीमत चुकाने को तैयार है। यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है—और क्या यह क्रूर नहीं है? ये स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं; मसीह-विरोधी अपने सार में बुरे लोग होते हैं। यहाँ तक कि जब सभाएँ ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं और अगर वे देखते हैं कि इंटरनेट सिग्नल अच्छा है, तो वे मन-ही-मन कोसते हैं और कहते हैं : “काश, सिग्नल चला जाए! काश, सिग्नल चला जाए! बेहतर है, कोई धर्मोपदेश न सुन पाए!” ये लोग क्या हैं? (दानव।) वे दानव हैं! वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं। इस तरह के दानव और बुरे लोग माहौल को इस तरह बिगाड़ते हैं, फिर चाहे वे किसी भी कलीसिया में हों। भले ही भेद पहचानने में सक्षम लोग उन्हें उजागर करें और उन्हें रोकें, वे आत्म-चिंतन नहीं करेंगे या अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करेंगे। वे सोचेंगे कि यह उनकी ओर से बस एक क्षणिक गलती थी और उन्हें इससे सीख लेनी चाहिए। ऐसे लोग, जो पश्चात्ताप करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, समर्पण नहीं करेंगे, भले ही कोई भी उनका भेद पहचाने और उन्हें उजागर करे। वे उस व्यक्ति के खिलाफ प्रतिकार करना चाहेंगे। जब उन्हें असहज महसूस होता है तो वे नहीं चाहते कि भाई-बहनों के लिए चीजें आसान रहें। अपने दिलों में वे चोरी-छिपे भाई-बहनों को कोसते हैं, उनके साथ बुरा होने की कामना करते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य को भी कोसते हुए चाहते हैं कि उसमें मुसीबत आ जाए। जब परमेश्वर के घर में कुछ भी गलत होता है तो वे चोरी-छिपे खुश होते और जश्न मनाते हैं, सोचते हैं, “हुँ! आखिरकार, कुछ गलत हो ही गया। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि तुमने मुझे बर्खास्त कर दिया। अच्छा है जो सब कुछ बिखर रहा है!” वे दूसरों को कमजोर पड़ते और निराश होते देखकर खुश होते हैं और उसका आनंद लेते हैं, वे लोगों को बदनाम करने के लिए उनका मजाक बनाते और हँसी उड़ाते हैं, और यहाँ तक कि नकारात्मकता और मौत के शब्द भी फैलाते हैं, कहते हैं, “हम विश्वासी अपने कर्तव्य निभाने के लिए अपने परिवार और करियर तक त्याग देते हैं और पीड़ा सहते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर का घर वास्तव में हमारे भविष्य की जिम्मेदारी ले सकता है? क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है? क्या यह उस कीमत के लायक है जो हम चुका रहे हैं? मैं अभी बहुत स्वस्थ नहीं हूँ, और अगर मैंने खुद को थका दिया तो बुढ़ापे में मेरी देखभाल कौन करेगा?” वे ऐसी बातें कहते हैं ताकि हर कोई निराश महसूस करे—तभी उन्हें खुशी मिलती है। क्या वे निपट खराब नहीं हैं, भयावह और दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं? क्या ऐसे लोगों को दंड नहीं मिलना चाहिए? (हाँ, मिलना चाहिए।) क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोगों के दिलों में वास्तव में परमेश्वर बसता है? वे परमेश्वर में सच्चे विश्वासी नहीं लगते, वे यह बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराई की पड़ताल करता है। क्या वे छद्म-विश्वासी नहीं हैं? अगर वे वाकई परमेश्वर में विश्वास करते तो वे ऐसी बातें कैसे कह सकते थे? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है—क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) यह गलत क्यों है? (परमेश्वर उनके दिलों में है ही नहीं; वे परमेश्वर के विरोध में हैं।) वास्तव में वे ऐसी बातें कहने की हिम्मत इसलिए करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सबकी पड़ताल कर रहा है और वे यह भी नहीं मानते कि परमेश्वर उनकी हर कथनी और करनी, हर विचार और धारणा का अवलोकन कर रहा है। वे ये बातें नहीं मानते, इसलिए वे नहीं डरते और बेधड़क और बेईमानी से ऐसे दानवी शब्द बोल सकते हैं। यहाँ तक कि गैर-विश्वासी भी अक्सर यह कहते हैं, “स्वर्ग की आँखें हैं” और “जब मनुष्य काम करता है, तो स्वर्ग देख रहा होता है।” थोड़ी-सी भी सच्ची आस्था वाला कोई भी व्यक्ति छद्म-विश्वासियों के ये दानवी शब्द यूँ ही नहीं कहेगा। क्या ऐसी बातें सोचने और बोलने वाले विश्वासियों के लिए गंभीर दुष्परिणाम नहीं होंगे? क्या इसकी प्रकृति गंभीर नहीं है? यह बहुत गंभीर है! उनके परमेश्वर को इस तरह से ठुकराने का मतलब है कि वे पक्के शैतान हैं और ऐसे बुरे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर के घर में घुसपैठ कर ली है। केवल दानव और मसीह-विरोधी ही परमेश्वर के खिलाफ खुलकर शोर मचाने की हिम्मत रखते हैं। परमेश्वर के घर के हित परमेश्वर के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और परमेश्वर का घर जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर की अगुआई में, उसकी अनुमति और उसके मार्गदर्शन में होता है; यह परमेश्वर के प्रबंधन कार्य से नजदीकी से जुड़ा हुआ है और इससे अलग नहीं किया जा सकता। जो लोग परमेश्वर के घर के कार्य को इस तरह से खुलेआम कोसते हैं, जो अपने दिलों में इसकी निंदा करते हैं, परमेश्वर के घर पर हँसना चाहते हैं, जो चाहते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग गिरफ्तार हो जाएँ, कलीसिया का काम पूरी तरह से रुक जाए और विश्वासी अपनी आस्था से मुँह मोड़ लें, और जो ऐसा होने पर खुश हों—ये किस तरह के लोग हैं? (दानव हैं।) वे दानव हैं, वे पुनर्जन्म लेने वाले बुरे राक्षस हैं! साधारण लोगों में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, वे कभी-कभी विद्रोही हो जाते हैं और जब वे निराश और कमजोर महसूस करते हैं तो उनके मन में बस कुछ छोटे-मोटे विचार आते हैं, ज्यादा कुछ नहीं, मगर वे इतने खराब नहीं होंगे या उनके मन में ऐसे दुष्टतापूर्ण और दुर्भावनापूर्ण विचार नहीं आएँगे। इस तरह का सार केवल मसीह-विरोधियों और दानवों में पाया जाता है। जब मसीह-विरोधियों के मन में ये विचार आते हैं तो क्या उन्हें संदेह होता है कि ये गलत हो सकते हैं? (नहीं, उन्हें संदेह नहीं होता।) क्यों नहीं? (क्योंकि वे जो सोचते और कहते हैं उसे सत्य मानते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता और उनकी प्रकृति परमेश्वर का प्रतिरोध करने की होती है।) बिल्कुल ठीक, यही उनकी प्रकृति है। शैतान ने कब कभी परमेश्वर को परमेश्वर माना है? उसने कब माना है कि परमेश्वर ही सत्य है? उसने कभी यह नहीं माना है और न ही कभी मानेगा। मसीह-विरोधी, ये दानव बिल्कुल एक जैसे हैं; वे परमेश्वर को परमेश्वर मानकर उससे पेश नहीं आते या उसे सत्य नहीं मानते। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर ने ही सभी चीजों की रचना की है और वही उन पर संप्रभुता रखता है। इसलिए उन्हें लगता है कि वे जो कहते हैं वही सही है। वे इस तरह बेईमानी से काम करते और सोचते हैं; यही उनकी प्रकृति है। जब भ्रष्ट मनुष्य बिल्कुल ऐसा ही करते हैं तो वे अपने भीतर संघर्ष महसूस करते हैं। उनके पास अंतरात्मा और मानवीय जागरूकता होती है। उनकी अंतरात्मा, जागरूकता और वे जिन सत्यों को समझते हैं वे उन्हें अंदर से प्रभावित करते हैं और इससे उनमें संघर्ष पैदा होता है। जब यह संघर्ष पैदा होता है तो उचित-अनुचित, सही-गलत और न्याय-दुष्टता के बीच संघर्ष होता है और इसका एक परिणाम निकलता है : सत्य का अनुसरण करने वाले लोग परमेश्वर के पक्ष में खड़े होते हैं, जबकि जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे शैतान की दुष्ट शक्तियों के पक्ष में खड़े होते हैं। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह शैतान के साथ सहयोग करने के लिए करते हैं। वे नकारात्मकता निकालते हैं, बेबुनियाद अफवाहें फैलाते हैं और परमेश्वर के घर पर हँसते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों को कोसते हैं। वे यह सब करते हुए सहज भी महसूस करते हैं, उनका जमीर भी उन्हें दोषी नहीं ठहराता और उन्हें जरा भी पछतावा नहीं होता और वे मानते हैं कि उनके क्रियाकलाप बिल्कुल सही हैं। इससे मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले उनके बदसूरत चेहरे पूरी तरह बेनकाब हो जाते हैं। इसलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मसीह-विरोधी पक्के दानव और शैतान हैं। मसीह-विरोधी जन्मजात दानव होते हैं और वे परमेश्वर के उद्धार के पात्र बिल्कुल भी नहीं होते हैं। वे साधारण भ्रष्ट मानवजाति का हिस्सा बिल्कुल भी नहीं हैं। मसीह-विरोधी दानवों का पुनर्जन्म होते हैं, वे जन्मजात बुरे राक्षस होते हैं। बात ऐसी ही है।

मसीह-विरोधियों का ध्यान मुख्य रूप से प्रतिष्ठा और रुतबे पर केंद्रित होता है। जब प्रतिष्ठा और रुतबे की बात आती है तो मसीह-विरोधी क्या क्रियाकलाप करते हैं? वे बेईमानी से काम करते हैं, अपना दिमाग खपाते हैं, सारी सोच खत्म कर देते हैं और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सँभालने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ये दो चीजें उनके जीवन का आधार हैं, उनका सब कुछ हैं। उनका मानना है कि इन दो चीजों को पाने का अर्थ यह है कि उन्होंने सब कुछ पा लिया है। उनके संसार में केवल रुतबा, प्रतिष्ठा और उनके अपने हित होते हैं; उनके लिए कुछ और मायने नहीं रखता। इसलिए मसीह-विरोधियों जैसे लोगों के साथ सत्य, मानवता, न्याय या सकारात्मक चीजों के बारे में संगति करना क्या उपयोगी है? (यह उपयोगी नहीं है।) सही कहा, यह उपयोगी नहीं है। यह एक वेश्या को यह बताने की कोशिश करने जैसा है कि एक सदाचारपूर्ण घर की महिला कैसे बने या उसे यह सिखाने जैसा है कि एक सदाचारी पत्नी और माँ कैसे बने; वह सुनना नहीं चाहती, उसे यह पसंद नहीं है और उसे यह घिनौना लगता है। उसे यह कितना घिनौना लगता है? वह मन-ही-मन तुम्हें डाँटती है और तुम्हारा मजाक उड़ाने, तुम्हारा उपहास करने, तुम पर हमला करने और तुम्हें अलग-थलग रखने के मौके ढूँढ़ती है। आजकल कलीसिया में क्या ऐसे लोग नहीं हैं जो किसी को सत्य के बारे में या परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने या परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने जैसे सत्यों के बारे में संगति करते सुनते ही अत्यंत विद्रोही रवैया दिखाते हैं? (हाँ, ऐसे लोग हैं।) ऐसे लोग होंगे ही। ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करने वालों को गौर से देखो और पहचानो। जब तुम परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने की आवश्यकता के बारे में संगति करते हो तो वे यह सोचते हुए बहुत नफरत के साथ प्रतिक्रिया देते हैं, “वे पूरे दिन परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के बारे में बात करते रहते हैं, मानो हर चीज की व्यवस्था परमेश्वर ने की हो और लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं!” जैसे ही तुम सत्य के बारे में संगति करते हो या सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने, परमेश्वर के इरादे खोजने और अपने कर्तव्यों में सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता के बारे में संगति करते हो तो वे बहुत ही विकर्षित हो जाते हैं और सुनने के इच्छुक नहीं रहते। भले ही वे बेमन से सुन भी लें तो भी वे शांत होकर बैठ नहीं सकते और अगर वे किसी तरह शांत होकर बैठ भी जाएँ तो भी यह लगभग पक्का होता है कि वे सो गए हैं। जब तुम सत्य के बारे में और मामलों को सँभालने के दौरान सिद्धांतों का पालन करने के बारे में संगति करते हो तो वे ऊँघने लगते हैं और उनकी आँख लग जाती है। कुछ समय बाद सत्य के बारे में संगति किए बिना, काट-छाँट के बिना वे ऊर्जा से भर जाते हैं। वे मनमर्जी करते हुए लापरवाही से कार्य करते हैं, एकतरफा फैसले लेते हैं और वे एक हाथ से प्रतिष्ठा झपटते हैं तो दूसरे हाथ से रुतबा हथियाते हैं। वे किसी से भी ज्यादा ऊँचा उछलते हैं और हर तरह की मुसीबत खड़ी करने में लिप्त रहते हैं। ये सभी लोग मसीह-विरोधी हैं; ये सभी परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और किसी भी समय बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं।

जिस किसी के पास भी मसीह-विरोधी की प्रकृति हो, उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाना चाहिए। जब ऐसे लोग एकतरफा ढंग से काम करना चाहें तो उन्हें नियंत्रित करना और रोका जाना चाहिए; इसमें कोई शक नहीं। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर हम उन्हें नहीं रोक सके तो क्या होगा? हमें क्या करना चाहिए?” उन्हें एक ही वाक्य के जरिये रोकने के लिए मैं तुम्हें एक रामबाण तरीका बताऊँगा। जब ऐसी स्थिति से तुम्हारा सामना हो तो बस इतना कहो, “अगर तुम लापरवाही से काम करना, एकतरफा फैसले लेना और अंतिम निर्णय खुद लेना बंद कर देते हो तो क्या तुम मर जाओगे?” यह सुनने में कैसा लगा? (बढ़िया।) क्या तुम लोगों को लगता है कि अगर किसी मसीह-विरोधी को एकतरफा काम करने से रोका जाता है तो वह वास्तव में मर सकता है? (हाँ।) तुम इस “हाँ” के निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे? (मसीह-विरोधी भीतर से ऐसे ही होते हैं; अगर वे एकतरफा काम न करें तो दुखी महसूस करते हैं और जी नहीं सकते।) बिल्कुल, वे भीतर से ऐसे ही होते हैं और अगर वे इस तरह से काम न कर सकें तो दुखी महसूस करते हैं। तो क्या ये लोग सामान्य हैं? (नहीं।) वे सामान्य लोग नहीं हैं। एक सामान्य व्यक्ति कैसे सोचेगा? “अगर मैं एकतरफा कार्य नहीं कर सकता तो मैं इसे छोड़ दूँगा; इसमें इतनी मुश्किल क्या है? इससे तो मेरा जीवन भी आसान हो जाएगा!” एक सामान्य व्यक्ति ऐसा ही सोचेगा। लेकिन अगर तुम किसी मसीह-विरोधी को इस तरह कार्य न करने दो तो वह बहुत दयनीय महसूस करेगा। क्या उसके अंदर दानव नहीं बसता? (हाँ।) तो अगर उसे एकतरफा काम न करने दिया जाए तो उसे ऐसा लगेगा कि वह मर रहा है। यहाँ “मरने” से क्या तात्पर्य है? यही कि दानव उनके दिल में इतनी अधिक पीड़ा देता है और इतना परेशान करता है कि वे इसे सहन नहीं कर पाते या जिंदा नहीं रह पाते, मानो मौत के कगार पर पहुँच गए हों; इसका यही मतलब है। मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और उन दानवों के लिए जो परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी पैदा करने की कोशिश करते हैं, उनसे यह एक वाक्य कहना उनके साथ किसी भी सत्य पर चर्चा करने से ज्यादा प्रभावी है। यह एक वाक्य उन मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और दानव जैसे लोगों पर उपयोगी है जो परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालते हैं। क्या इन लोगों को सत्य बताना उपयोगी है? (नहीं, यह उपयोगी नहीं है।) “तुम्हें सामंजस्यपूर्ण सहयोग करना होगा और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना होगा और मामलों को सँभालना होगा”—इस तरह के शब्द कई वर्षों से बोले जा रहे हैं; क्या कोई ऐसा है जो इन्हें नहीं समझता या जिसे ये शब्द याद न हों? होना तो नहीं चाहिए। तो फिर कुछ लोग अभी भी एकतरफा ढंग से कार्य क्यों करते हैं? इसका बस एक ही अर्थ हो सकता है : उनका खुद पर नियंत्रण नहीं है; वे सामान्य लोग नहीं हैं। उनके मन और दिल उन्हें संचालित नहीं कर सकते; उनके अंदर कुछ और है जो उन्हें संचालित कर रहा है, उग्रतापूर्वक और बलपूर्वक उन्हें इस तरह से कार्य करने को मजबूर कर रहा है, जो वास्तव में परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी और बाधा पैदा करना, परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना है। ऐसी चीजें कौन कर सकता है? केवल शैतान और दानव। परमेश्वर का अनुसरण करने वाले सामान्य लोगों, सच्चे सृजित प्राणियों के पास ऐसे काम करने की अभिप्रेरणा नहीं होगी; केवल शैतान और दानव ही ऐसा करने की प्रेरणा रखते हैं और वे जानबूझकर ऐसी चीजें करते हैं। क्या तुमने इस कथन को याद कर लिया है? (हाँ।) तो फिर आज हम अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!

29 फरवरी 2020

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