मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दो) खंड दो

मसीह-विरोधी आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर या परमेश्वर के हितों से जुड़ी चीजों के बारे में नहीं सोचते। वे जो कुछ भी करते हैं वह उनके व्यक्तिगत हितों के इर्द-गिर्द घूमता है। अगर परमेश्वर के घर के कार्य में उनके व्यक्तिगत हित शामिल न हों तो वे परवाह करते ही नहीं और न ही इस बारे में कोई पूछताछ करते हैं। वे कितने स्वार्थी होते होंगे! जब कुछ मसीह-विरोधी अगुआओं के रूप में काम कर रहे थे तो बड़े लाल अजगर ने उनकी निगरानी के दायरे में आने वाले चढ़ावे बड़ी मात्रा में लूट लिए और एक बहुत बड़ी रकम हाथ से चली गई। मगर इन मसीह-विरोधियों ने खुद को रत्ती भर भी दोष नहीं दिया। उन्होंने बाद में यहाँ तक कहा, “यह सिर्फ मेरी जिम्मेदारी नहीं है : इसका सारा दोष मुझ पर कैसे मढ़ा जा सकता है? वैसे भी ऐसी स्थिति को टाला नहीं जा सकता है।” उन्हें कोई पछतावा नहीं हुआ, उन्होंने दोष दूसरे लोगों पर मढ़ दिया और बहाने बनाकर खुद को बचाने की कोशिश की। वे किस तरह के नीच लोग हैं? क्या ऐसे लोगों को निष्कासित नहीं किया जाना चाहिए? क्या उनको शाप और दंड नहीं दिया जाना चाहिए? (हाँ।) इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी इन मसीह-विरोधियों को कोई पछतावा नहीं था! अगर एक सामान्य व्यक्ति की लापरवाही के कारण परमेश्वर के घर की संपत्तियाँ बड़े लाल अजगर द्वारा छीन ली जाएँ तो यह मानवता युक्त व्यक्ति जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है या जिसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, कैसी अभिव्यक्तियाँ दिखाएगा? (उसे पछतावा होगा, वह खुद को दोष देगा और अपने दिल में महसूस करेगा कि उसने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया।) इसके बाद वह क्या करेगा? वह सुधार करने का कोई तरीका सोचेगा। अपने दिल की गहराई से वह ऋणी होने और पश्चात्ताप की भावना महसूस करेगा; दूसरे लोग चाहे जो भी कहें, वह शिकायत का एक शब्द भी नहीं बोलेगा, वह अपना बचाव नहीं करेगा। वह मान लेगा कि यह उसकी लापरवाही थी, यह उसका अपराध था। परमेश्वर उससे जो भी कहे और परमेश्वर का घर उससे निपटने का जो भी फैसला ले, वह उसे स्वीकारेगा। तो मसीह-विरोधी इसे क्यों नहीं स्वीकारते? निष्कासित किए जाने के बाद वे क्यों शिकायतों से भरे हुए रहते हैं? यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति का खुलासा करता है। इन मसीह-विरोधियों ने परमेश्वर के घर के कार्य को इतना भारी नुकसान पहुँचाया, अपने कर्तव्यों के प्रति उनकी लापरवाही के कारण दूसरों की इतनी सारी मेहनत बर्बाद हो गई और बड़े लाल अजगर ने इतने सारे चढ़ावे लूट लिए, फिर भी उन्होंने खुद को दोषी या ऋणी महसूस नहीं किया, बल्कि उन्होंने अपना बचाव भी किया। जब परमेश्वर के घर ने उनका निपटान किया तो उन्होंने समर्पण करने से इनकार कर दिया और उन्होंने अपनी अवज्ञा हर जगह फैला दी। वे किस तरह के नीच लोग हैं? क्या यह मौत को न्योता देना नहीं है? (हाँ।) यह मौत को न्योता देना है। मसीह-विरोधियों के मर्म को देखें तो उनका प्रकृति सार सत्य और परमेश्वर के प्रति शत्रुता का है। उनमें मानवता की कमी है; वे मनुष्य की वेशभूषा में छिपे जीते-जागते राक्षस, शैतान और जानवर हैं। जब मानवता वाले लोग एक छोटी-सी गलती करते हैं या कुछ गलत कह देते हैं तो उन्हें आत्म-भर्त्सना महसूस होती है। मगर जीते-जागते राक्षस, मसीह-विरोधी ऐसा महसूस नहीं करते। इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी उन मसीह-विरोधियों ने कोई आत्म-भर्त्सना महसूस नहीं की और उन्होंने अपना बचाव करने की कोशिश तक की। तो फिर, उनके लिए सत्य क्या है? क्या वे अपने दिलों में सत्य को स्वीकारते हैं? परमेश्वर के वचन सत्य हैं और परमेश्वर सत्य है—क्या वे इस तथ्य को स्वीकारते हैं? (वे इसे नहीं स्वीकारते।) जाहिर है कि वे इसे नहीं स्वीकारते। अपने दिलों में वे खुद को सत्य मानते हैं, परमेश्वर मानते हैं; वे सोचते हैं कि उनके अलावा कोई और परमेश्वर नहीं है। क्या ये दानव नहीं हैं? (हाँ।) ये दानव हैं, ठेठ दानव हैं। मसीह-विरोधी कलीसिया के संसाधनों के बारे में बिल्कुल भी पूछताछ नहीं करते, न ही उनके लिए कोई विशेष व्यवस्थाएँ करते हैं। लेकिन अगर खुद उनके पास कोई कीमती चीज हो तो तुम यकीन से कह सकते हो कि वे उसका अच्छे से ख्याल रखेंगे। वे नींद में बात करते हुए भी उसके बारे में एक शब्द नहीं बोलेंगे और तुम उनसे जबरदस्ती भी उगलवा नहीं सकोगे। वे उसकी बहुत अच्छी तरह से रक्षा करते हैं। लेकिन जब परमेश्वर के घर के संसाधनों की बात आती है तो उनका रवैया बिल्कुल अलग होता है। उनका रवैया वास्तव में कुछ इस तरह का होता है : “इससे मेरा क्या लेना-देना? मुझे इस संसाधन का मजा उठाने का मौका नहीं मिलता और यह मेरा नहीं है। भले ही मैं इसकी अच्छी तरह से देखभाल करूँ, फिर भी यह किसी और को दिया जा सकता है! इसकी इतनी अच्छी तरह से रक्षा करने का क्या फायदा?” वे इस मामले को अपना कर्तव्य नहीं मानते। क्या यह मानवता की कमी नहीं है? (है।) यह मानवता की कमी की अभिव्यक्ति है। इसे क्या कहते हैं? इसे गैर-भरोसेमंद होना कहते हैं। परमेश्वर ने तुम्हें यह काम सौंपा है और तुम्हें वो कर्तव्य दिए हैं जो तुम्हें निभाने चाहिए—यह तुम्हारे काम का हिस्सा है। तुम्हें इन मामलों को ठीक से सँभालना चाहिए, परमेश्वर के अपेक्षित सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं का पालन करते हुए और उन्हें ठीक से व्यवस्थित करते हुए एक-एक कर पूरा करना चाहिए, तब तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी होगी। मगर क्या मसीह-विरोधियों के पास ऐसी मानसिकता या विचार होता है? (नहीं, उनके पास नहीं होता है।) बिल्कुल भी नहीं होता है। यह मानवता का पूर्ण अभाव है। मानवता की कमी की विशिष्ट अभिव्यक्ति क्या होती है? यही कि जमीर या विवेक की परवाह न करना, स्वार्थी और घिनौना होना, विश्वसनीयता का अभाव होना, गैर-भरोसेमंद होना और कोई भी काम सौंपने लायक न होना।

जब कलीसिया में कार्यकर्ताओं के मामलों की बात आती है, जैसे कि कौन कहाँ क्या काम कर रहा है, क्या वह इसे ठीक से कर रहा है, क्या वह प्रभावी ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहा है, क्या गड़बड़ियों या बाधाओं की कोई घटना हुई है या भाई-बहनों की प्रतिक्रिया क्या है तो मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में कभी विस्तार से पूछताछ नहीं करते या व्यवस्थाएँ नहीं करते। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर का घर उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली व्यक्तियों का नाम देने के लिए कहता है तो मसीह-विरोधी केवल इन व्यक्तियों के लिखित परिचय पर ही नजर डालते हैं, उनकी स्थितियों के बारे में पता नहीं लगाते या पूछताछ नहीं करते—उदाहरण के लिए, क्या इन व्यक्तियों की अपनी आस्था में कोई बुनियाद है, उनकी मानवता कैसी है, क्या वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, क्या उनकी विशेष प्रतिभाएँ और तकनीकी कौशल उन मानकों के अनुरूप हैं जो परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित हैं और क्या वे विकसित किए जाने और महत्वपूर्ण कर्तव्यों की जिम्मेदारी उठाने के लिए उपयुक्त हैं। मसीह-विरोधी इन चीजों को लेकर बस खानापूरी करते हैं, मुखौटा लगाते हैं और लिखित परिचय पर बस थोड़ी-बहुत नजर डाल लेते हैं। वे उपलब्ध कराए गए उन व्यक्तियों के साथ वास्तव में कभी भी मेलजोल नहीं करते, न ही उन्हें विस्तार या गहराई से समझने की कोशिश करते हैं। नतीजतन, उनके चुने हुए ज्यादातर लोगों को अपने कर्तव्य निभाने या अपने उचित कार्य करने में विफल होने के कारण हटा दिया जाता है। मसीह-विरोधी इस स्थिति को कैसे देखते हैं? “ऐसा नहीं है कि मुझे इन कर्तव्यों को करने के लिए पदोन्नति दी जा रही है; मेरा उनमें कोई हिस्सा नहीं है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि कौन निकाला जाता है? अगर मैं सिफारिशों को मंजूरी देता हूँ और इन लोगों को उपलब्ध कराता हूँ तो यह माना जाएगा कि मैं अपना काम कर रहा हूँ। इसके अलावा, जिन व्यक्तियों को पदोन्नति दी गई है उन पर मेरा एहसान रहेगा। वे विकसित किए जाने लायक हैं या नहीं, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है।” अगर मसीह-विरोधी अनुपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध कराते हैं, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य में रुकावटें आती हैं तो क्या उनकी कोई जिम्मेदारी होती है? (हाँ।) उनकी बहुत सारी जिम्मेदारी होती है, मगर ये दानवी लोग बिल्कुल कोई जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “हम कठोर परिवेश वाले कुछ स्थानों पर लोगों से आमने-सामने बातचीत नहीं कर सकते। हम उनका पुनरीक्षण कैसे कर सकते हैं?” परिवेश चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, फिर भी इन मामलों को सँभालने के तरीके और दृष्टिकोण मौजूद हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि क्या तुम जिम्मेदार और वास्तव में प्रतिबद्ध हो। क्या ऐसा ही नहीं है? (है।) अगर तुम अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी दिखाते हो तो भले ही परिणाम आदर्श न हो, फिर भी परमेश्वर इसकी पड़ताल करता है और इसे जानता है और तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराए जाओगे। लेकिन अगर तुम अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी नहीं दिखाते तो भले ही कुछ गलत न हो और इससे अंत में कोई दुष्परिणाम न निकले तो भी परमेश्वर इसकी पड़ताल करेगा। इन दोनों दृष्टिकोणों की प्रकृति अलग है और परमेश्वर उनके साथ अलग तरह से पेश आएगा। जब लोगों को उपलब्ध कराने की बात आती है तो भी मसीह-विरोधी साजिश रचते हैं, उनकी मंशाएँ भी स्वार्थी और घिनौनी होती हैं और उनमें निष्ठा नहीं होती। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी कर रहे हों, वे अपने हिसाब-किताब रखते हैं और सिद्धांतों का पालन नहीं करते। इसके अलावा, ठोस काम अच्छी तरह से हो, इसके लिए उन्हें अपना चेहरा दिखाना पड़ेगा, यात्राएँ करते हुए ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना पड़ेगा, कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी और जोखिम उठाना पड़ेगा। जैसे ही उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है, मसीह-विरोधी फिर से हिसाब-किताब करना शुरू कर देते हैं और उनकी प्रकृति बेनकाब हो जाती है। क्या बेनकाब होता है? यही कि वे मानते हैं कि बहुत से लोगों से मिलना-जुलना उनकी अपनी सुरक्षा के लिए जोखिम भरा है और वे मनमाने ढंग से लोगों से नहीं मिल सकते हैं। मसीह-विरोधी उन लोगों से बातचीत नहीं करते जिनसे उन्हें करनी चाहिए और वे किसी से नहीं मिलते हैं, बल्कि वे रहने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना ढूँढ़ लेते हैं और वहीं छिप कर कुछ आसान कामों से ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। जहाँ तक कार्य के अन्य पहलुओं के ठीक से किए जाने का सवाल है, जैसे कि क्या ऐसे लोग हैं जो बाधाएँ डाल रहे हैं या फिर क्या कार्य व्यवस्थाओं, परमेश्वर के वचनों की विभिन्न पुस्तकों या रिकॉर्ड किए गए धर्मोपदेशों को बाँटा जा रहा है या नहीं, मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में कभी भी विशिष्ट व्यवस्थाएँ या पूछताछ नहीं करते। इसका मतलब यह नहीं है कि निष्ठावान माने जाने के लिए उन्हें जोखिम उठाना होगा, अपना चेहरा दिखाना होगा और मुसीबत का सामना करना होगा। यहाँ मसला क्या है? कौन समझा सकता है? (जब पहले-पहल उन्होंने यह काम शुरू किया था तो उन्होंने कभी भी नहीं सोचा कि इसे अच्छी तरह से कैसे करें या क्या सुझाए गए कार्यकर्ता उपयुक्त हैं या नहीं और उन्होंने कभी भी पूरे दिल से काम नहीं किया या अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। उन्होंने इन चीजों के बारे में कभी नहीं सोचा।) वे निष्ठा दिखाते ही नहीं। परमेश्वर के प्रति निष्ठावान लोगों और बिना निष्ठा वाले लोगों के काम करने के तरीके की प्रकृति में अंतर होता है। जब दोनों का सामना ऐसे मामलों से होता है जिनमें खतरा शामिल है तो निष्ठावान लोग कार्य व्यवस्थाओं को लागू करने के लिए बुद्धि और तरीकों का इस्तेमाल करके खतरे का सामना करने और अपना काम करने में सक्षम होते हैं। लेकिन खतरा हो या न हो, मसीह-विरोधी ठोस काम नहीं करते और न ही वे कभी कार्य व्यवस्थाओं को लागू करते हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी शायद मौखिक रूप से कलीसिया की स्थिति, विभिन्न कार्यों वगैरह के बारे में पूछताछ कर लें, मगर उनकी पूछताछ भी महज औपचारिकता होती है, वे बस सतही स्तर के प्रयास करते हैं और इसमें बिल्कुल भी सावधानी नहीं बरतते। बाहर से ऐसा लग सकता है कि वे ठोस काम कर रहे हैं, मगर वास्तव में वे काम को नहीं समझते, वे सारांश दर्ज नहीं करते हैं, उस पर विचार नहीं करते और न ही प्रार्थना करते या खोजते हैं। वे इन बातों पर विचार करने में ऊर्जा नहीं खपाते कि काम के विभिन्न हिस्से किस तरह आगे बढ़ रहे हैं या उन क्षेत्रों के लिए कौन जिम्मेदार है जहाँ काम ठीक से नहीं हुआ है या कौन-से कलीसिया अगुआ शायद उपयुक्त नहीं हैं या किन जगहों पर काम लागू नहीं हुआ है। वे इन बातों पर ध्यान नहीं देते, बस खानापूरी करते हैं और जब उन्हें मसले दिखाई देते हैं तो उन्हें हल नहीं करते। कुछ तथाकथित अगुआ लोगों को सिर्फ सभाओं के लिए इकट्ठा करते हैं, स्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं और काम का विश्लेषण और जाँच-पड़ताल करते हैं। मगर जैसे ही कोई ठोस काम आता है और इसके लिए उन्हें कष्ट उठाने और कीमत चुकाने की जरूरत पड़े, जिसमें उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा को जोखिम में डालना और कुछ हद तक कठिनाई शामिल हो तो वे इसे नहीं करते। वे खुद को बचाने के लिए उसी बिंदु पर काम करना बंद कर देते हैं। यहाँ तक कि जब उन्हें मसले नजर आते हैं तो भी वे विशिष्ट व्यवस्थाएँ नहीं करते। अगर वे अपनी आस्था के लिए जाने जाते हों और उनके पकड़े जाने का खतरा हो तो क्या वे ये काम दूसरों को सौंप देते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं करते। वे ये काम दूसरों को नहीं सौंपते हैं और यही समस्या है। तो इस तरह के लोग कैसा सार प्रकट करते हैं? उनमें निष्ठा की कमी होती है, वे स्वार्थी और घिनौने होते हैं और हर चीज में अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को लागू करने या परमेश्वर के घर के कार्य की प्रगति के बारे में नहीं पूछते और उन्हें इन चीजों की परवाह नहीं होती। उन्होंने अपनी निष्ठा प्रस्तुत नहीं की है और वे अपनी निष्ठा नहीं दिखाते हैं। उनके लिए इन मामलों के संबंध में खानापूर्ति कर लेना ही बहुत है; वे इसे काम करना मानते हैं। अगर जोखिम छोटा है तो वे न चाहते हुए थोड़ा-बहुत काम कर सकते हैं। लेकिन अगर जोखिम बड़ा है और उनके पकड़े जाने की संभावना है तो फिर चाहे काम कितना भी जरूरी क्यों न हो, वे इसे नहीं करेंगे। यही मसीह-विरोधियों का सार है। अपने दिलों की गहराई में जब तक उनके हित सुरक्षित हैं, वे किसी से भी विश्वासघात करने में सक्षम हैं। उनके हित परमेश्वर के घर के हितों की कीमत पर पूरे होते हैं; उनके लिए उनके हित सर्वोपरि हैं। क्या मसीह-विरोधी कर्तव्य सँभालने के बाद निष्ठावान हो सकते हैं? (नहीं, वे नहीं हो सकते।) उनके लिए निष्ठा असंभव है। क्या वे अपने भाई-बहनों के जीवन और सुरक्षा का ध्यान रख सकते हैं? (नहीं रख सकते।) जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आएगी तो मसीह-विरोधी केवल खुद को बचाएँगे, अपने भाई-बहनों को आग के कुंड में धकेल देंगे और उनका इस्तेमाल बलि के बकरे के रूप में करेंगे। यही मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है।

अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? वे कहते हैं, “फिलहाल, हमारा परिवेश अनुकूल नहीं है, इसलिए हमें लोगों के सामने कम ही आना चाहिए और सुसमाचार का कम प्रचार करना चाहिए। इस तरह हमारे पकड़े जाने की संभावना कम होगी और कलीसिया का काम नष्ट नहीं होगा। अगर हम पकड़े जाने से बच गए तो हम यहूदा नहीं बनेंगे और फिर हम भविष्य में कायम रह पाएँगे, है ना?” क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो अपने भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए ऐसे बहाने बनाते हैं? कुछ मसीह-विरोधी मौत से बहुत डरते हैं और अपने घिनौने वजूद को घसीटते रहते हैं; उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबा भी पसंद है और वे अगुआई की भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार रहते हैं। भले ही वे जानते हैं कि “अगुआ का काम आसान नहीं है—अगर बड़े लाल अजगर को पता चला कि मुझे अगुआ बना दिया गया है तो मैं मशहूर हो जाऊँगा और हो सकता है कि मुझे वांछित लोगों की सूची में डाल दिया जाए, और जैसे ही मैं पकड़ा जाऊँगा, मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी,” फिर भी इस रुतबे के लाभों में लिप्त होने की खातिर वे इन खतरों को नजरअंदाज कर देते हैं। जब वे अगुआ के रूप में काम करते हैं तो केवल अपने दैहिक आनंद में लिप्त रहते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। विभिन्न कलीसियाओं के साथ थोड़े-बहुत पत्राचार के अलावा वे कुछ और नहीं करते हैं। वे किसी स्थान पर छिप जाते हैं और किसी से नहीं मिलते, खुद को बंद रखते हैं और भाई-बहनों को नहीं पता होता कि उनका अगुआ कौन है—ये अगुआ इतने अधिक डरे हुए होते हैं। तो क्या यह कहना सही नहीं है कि वे केवल नाम के अगुआ हैं? (सही है।) वे अगुआ के रूप में कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं; उन्हें बस खुद को छिपाने की परवाह होती है। जब दूसरे उनसे पूछते हैं, “अगुआ होना कैसा है?” तो वे कहेंगे, “मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ और अपनी सुरक्षा की खातिर मुझे घर बदलते रहना पड़ता है। यह परिवेश इतना अस्थिर करने वाला है कि मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।” उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि उन पर बहुत सी नजरें गड़ी हुई हैं और वे नहीं जानते कि कहाँ छिपना सुरक्षित है। वेश बदलने, अलग-अलग जगहों पर खुद को छिपाने और एक स्थान पर टिके न रहने के अलावा वे प्रति दिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। क्या ऐसे अगुआ होते हैं? (हाँ।) वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? ये लोग कहते हैं, “एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं। खरगोश को शिकारी जानवर के हमले से बचने के लिए तीन बिल बनाने पड़ते हैं ताकि वह खुद को छिपा सके। अगर किसी व्यक्ति का खतरे से सामना हो और उसे भागना पड़े, मगर उसके पास छिपने के लिए कोई जगह न हो तो क्या यह स्वीकार्य है? हमें खरगोशों से सीखना चाहिए! परमेश्वर के बनाए प्राणियों में जीवित रहने की यह क्षमता होती है और लोगों को उनसे सीखना चाहिए।” अगुआ बनने के बाद से वे इस धर्म-सिद्धांत को समझ गए हैं और यहाँ तक मानते हैं कि उन्होंने सत्य को समझ लिया है। वास्तविकता में वे बहुत डरे हुए हैं। जैसे ही वे यह सुनते हैं कि किसी अगुआ की रिपोर्ट पुलिस में इसलिए की गई क्योंकि वह किसी असुरक्षित जगह पर रह रहा था या कोई अगुआ बड़े लाल अजगर के जासूसों के चंगुल में इसलिए फँस गया कि वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए अक्सर बाहर जाता और बहुत से लोगों से मिलता-जुलता था और आखिरकार कैसे इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया तो वे तुरंत डर जाते हैं। वे सोचते हैं, “अरे नहीं, क्या पता इसके बाद मुझे ही गिरफ्तार किया जाए? मुझे इससे सीखना चाहिए। मुझे ज्यादा सक्रिय नहीं रहना चाहिए। अगर मैं कलीसिया के कुछ काम करने से बच सकता हूँ तो मैं उसे नहीं करूँगा। अगर मैं अपना चेहरा दिखाने से बच सकूँ तो मैं नहीं दिखाऊँगा। मैं अपना काम जितना हो सके उतना कम करूँगा, बाहर निकलने से बचूँगा, किसी से मिलने-जुलने से बचूँगा और यह पक्का करूँगा कि किसी को भी मेरे अगुआ होने की खबर न हो। आजकल, कौन किसी और की परवाह कर सकता है? सिर्फ जिंदा रहना भी अपने आप में एक चुनौती है!” जबसे वे अगुआ बने हैं, बैग उठाकर छिपते फिरने के अलावा कोई काम नहीं करते। वे हमेशा पकड़े जाने और जेल जाने के निरंतर डर के साये में जीते हैं। मान लो वे किसी को यह कहते हुए सुन लें, “अगर तुम पकड़े गए तो तुम्हें मार दिया जाएगा! अगर तुम अगुआ न होते, अगर तुम बस एक साधारण विश्वासी होते तो तुम्हें छोटा-सा जुर्माना भरने के बाद शायद छोड़ दिया जाता, मगर चूँकि तुम अगुआ हो, इसलिए कुछ कहना मुश्किल है। यह बहुत खतरनाक है! पकड़े गए कुछ अगुआओं या कर्मियों ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला।” जब वे किसी के पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में सुनते हैं तो उनका डर और बढ़ जाता है, वे काम करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं। हर दिन वे बस यही सोचते हैं कि पकड़े जाने से कैसे बचें, दूसरों के सामने आने से कैसे बचें, निगरानी से कैसे बचें और अपने भाई-बहनों के संपर्क से कैसे बचें। वे इन चीजों के बारे में सोचने में अपना दिमाग खपाते हैं और अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भूल जाते हैं। क्या ये निष्ठावान लोग हैं? क्या ऐसे लोग कोई काम सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं सँभाल सकते।) इस तरह के लोग बस डरपोक होते हैं और हम यकीनन सिर्फ इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं कर सकते, मगर इस अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है? इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना खुद को सत्य के लिए समर्पित करना है और यह एक ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर एक ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, परमेश्वर के मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर सब कुछ खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? वे यह विश्वास करते हैं कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए तो उनका बुरा हश्र होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) बाइबल में क्या कहा गया है? “जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। क्या वे इन वचनों पर विश्वास करते हैं? (नहीं, वे नहीं करते।) अगर उनसे अपना कर्तव्य निभाते समय जोखिम उठाने को कहा जाए तो वे खुद को कहीं छिपाना चाहेंगे और किसी को भी उन्हें नहीं देखने देंगे—वे अदृश्य होना चाहेंगे। वे इस हद तक डरे हुए होते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य का सहारा है, कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, कि अगर कुछ वाकई गलत हो जाता है या वे पकड़े जाते हैं तो यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है और लोगों के पास समर्पण वाला दिल होना चाहिए। इन लोगों के पास ऐसा दिल, ऐसी समझ या यह तैयारी नहीं है। क्या वे वाकई परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं रखते।) क्या इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार नहीं है? (हाँ, ऐसा है।) यह ऐसा ही है। इस तरह के लोग बहुत ज्यादा डरपोक, बुरी तरह से डरे हुए होते हैं और वे शारीरिक कष्टों और अपने साथ कुछ बुरा होने से डरते हैं। वे डरपोक पक्षियों की तरह डर जाते हैं और अब अपना काम नहीं कर पाते। जिस तरह के लोगों के बारे में हमने इससे पहले बात की थी, वे भले ही अपना काम करने में सक्षम हों, फिर भी कोई काम नहीं करते। भले ही उन्हें पता हो कि कोई मसला है, फिर भी वे उससे नहीं निपटेंगे। वे बस अपनी सुरक्षा करते हैं और बहुत स्वार्थी और घिनौने होते हैं। ये दोनों प्रकार के लोग छद्म-विश्वासी हैं। पहले प्रकार के लोग धूर्त और धोखेबाज होते हैं, कठिनाई और थकान से डरते हैं, अपनी देह की चिंता करते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। दूसरे प्रकार के लोग डरपोक और भयभीत होते हैं, वास्तविक कार्य करने की हिम्मत नहीं करते, और बड़े लाल अजगर द्वारा पकड़े जाने और उत्पीड़न सहने से डरते हैं। क्या इन दो प्रकार के लोगों के बीच कोई अंतर नहीं है? (है।)

क्या तुम लोगों के पास कोई उदाहरण है कि मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा कैसे करते हैं? (परमेश्वर, मैं ऐसा एक उदाहरण जानता हूँ। एक कलीसिया थी जिसे बड़े लाल अजगर ने नष्ट कर दिया, क्योंकि इसे एक ऐसा मसीह-विरोधी चला रहा था जो बेधड़क खराब चीजें करता था और सभी अगुआओं, उपयाजकों और कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय उस मसीह-विरोधी को पकड़े जाने का डर था। गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने की व्यवस्थाएँ किए बिना ही वह कहीं दूर जाकर छिप गया। यहाँ तक कि उसने एक मेजबान परिवार के साथ रहने से इनकार कर दिया और इसके बजाय इस बात पर जोर दिया कि वह जगह किराए पर लेने के लिए चढ़ावे का इस्तेमाल करेगा। चूँकि उसने बाद के कार्य के लिए उचित व्यवस्थाएँ नहीं कीं और छिपे हुए खतरों को तुरंत दूर नहीं किया, इसलिए कई भाई-बहन गिरफ्तार हो गए और कलीसिया का कार्य मजबूरन बंद करना पड़ गया। यह स्पष्ट है कि मसीह-विरोधी बहुत स्वार्थी और घिनौने होते हैं। संकट की घड़ी में वे केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं और परमेश्वर के घर के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं करते।) मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई मसला आता है तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों के बारे में या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो ऐसी चीजें जब उन लोगों के साथ घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं तो वे इन्हें कैसे सँभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? (जब ऐसी चीजें उन लोगों के साथ घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने, परमेश्वर के चढ़ावे को नुकसान से बचाने के लिए हर तरीके के बारे में सोचेंगे और वे नुकसान को कम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ भी करेंगे। जबकि मसीह-विरोधी सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित रहें। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करते और जब कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है तो इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है।) मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को अपने कब्जे में लेने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं और खुद को बचाने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर जाते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें व्यक्ति को बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और यह सबसे पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधियों के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है। मुख्यभूमि चीन के परिवेश में क्या अपना कर्तव्य करते समय कोई भी जोखिम उठाने से बचना और यह पक्का करना मुमकिन है कि कुछ भी बुरा न हो? सबसे सतर्क व्यक्ति भी यह गारंटी नहीं दे सकता। मगर सतर्कता जरूरी है। पहले से अच्छी तरह तैयार होने से चीजें थोड़ी बेहतर होंगी और कुछ गलत होने पर नुकसान को कम करने में मदद मिल सकेगी। अगर कोई तैयारी नहीं है तो नुकसान बड़ा होगा। क्या तुम इन दो स्थितियों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से देख सकते हो? इसलिए चाहे सभाओं की बात हो या किसी तरह का कर्तव्य निभाने की, सतर्क रहना सबसे अच्छा है और कुछ बचाव के उपाय करना जरूरी है। जब कोई निष्ठावान व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाता है तो वह थोड़ा और समग्र रूप से और अच्छी तरह से सोच सकता है। वह इन चीजों को जितना हो सके उतना व्यवस्थित करना चाहता है ताकि अगर कुछ गलत हो जाए तो नुकसान कम से कम हो। उसे लगता है कि यह नतीजा हासिल करना जरूरी है। जिस व्यक्ति में निष्ठा नहीं है वह इन चीजों के बारे में नहीं सोचता। उसे ये चीजें जरूरी नहीं लगती हैं और वह उन्हें अपनी जिम्मेदारी या कर्तव्य नहीं मानता। जब कुछ गलत हो जाता है तो वह बिल्कुल भी दोषी महसूस नहीं करता। यह निष्ठा की कमी की अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। जब उन्हें काम सौंपा जाता है तो वे इसे बहुत खुशी से स्वीकार लेते हैं और कुछ अच्छी घोषणाएँ करते हैं, मगर जब खतरा आता है तो वे सबसे तेजी से भागते हैं; सबसे पहले भागने वाले, सबसे पहले बचकर निकलने वाले वही होते हैं। इससे पता चलता है कि उनका स्वार्थ और घिनौनापन बहुत गंभीर है। उन्हें जिम्मेदारी या निष्ठा का कोई एहसास नहीं है। जब किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो वे केवल भागना और छिपना जानते हैं, और वे सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोचते हैं, कभी अपनी जिम्मेदारियों या कर्तव्यों पर विचार नहीं करते। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की खातिर मसीह-विरोधी लगातार अपनी स्वार्थी और घिनौनी प्रकृति दिखाते हैं। वे परमेश्वर के घर के काम या अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं देते। वे परमेश्वर के घर के हितों को तो और भी कम प्राथमिकता देते हैं। इसके बजाय, वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं।

अभी हमने जिस उपखंड के बारे में संगति की क्या वह मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद से संबंधित नहीं है—वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं? (है।) मसीह-विरोधी खुद को बचाने, खतरे और शारीरिक पीड़ा से बचने के लिए परमेश्वर के घर के काम और अपने कर्तव्यों के प्रति अनमना रवैया अपनाते हैं। वे वास्तविक कार्य किए बिना पदों पर काबिज रहते हैं। क्या यह परमेश्वर के घर के हितों से विश्वासघात करना नहीं है? क्या यह व्यक्तिगत सुरक्षा के बदले में परमेश्वर के घर के हितों, परमेश्वर के कार्य और अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा करना नहीं है? (है।) इस उपखंड में हमने जिन अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण किया है, वे मसीह-विरोधियों के स्वार्थी और घिनौने सार को पूरी तरह उजागर करती हैं। हमने यहाँ मुख्य रूप से किस बारे में संगति की है? मसीह-विरोधी मुसीबत में पड़ने के डर से और खुद को बचाने के लिए अपने कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाते और परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। क्या इस अभिव्यक्ति में कोई सत्य वास्तविकता है? क्या यह जमीर और विवेक की कमी नहीं है? यह मानवता का पूर्ण अभाव है!

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