मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दस) खंड चार

कलीसिया में अपना कर्तव्य करने वाले ऐसे कुछ लोग हैं जो उन कामों को स्वीकार करने में स्पष्ट रूप से अक्षम हैं जिनके लिए तकनीकी कौशल की जरूरत पड़ती है, फिर भी वे दल में शामिल किए जाने के लिए जोर देते हैं। उनका मानना है कि वे इससे पहले एक संबंधित व्यावसायिक कौशल सीख चुके हैं, वे इस विशेषज्ञता को समझते हैं, वे इसे करने का तरीका जानते हैं, और इसलिए वे इस कार्य को लेने के लिए जोर देते हैं। वे सत्य नहीं समझते हैं और यही नहीं, सत्य नहीं समझने के आधार पर, वे दूसरों के साथ संगति या कार्य भी नहीं करते हैं, फिर सत्य सिद्धांतों की तलाश करना तो दूर की बात है, और वे इस बात पर जोर देते हैं कि वे इसे समझते हैं और इसके बारे में जानते हैं। तो, क्या एक तरफ कोई व्यावसायिक कौशल जानने और उसे करने का तरीका पता होने और दूसरी तरफ सत्य सिद्धांतों को समझने के बीच कोई फर्क है? व्यावसायिक कौशल जानने और उसे करने का तरीका पता होने का क्या यह अर्थ है कि व्यक्ति सत्य सिद्धांतों को समझता है? (नहीं।) जिन लोगों को आध्यात्मिक समझ नहीं होती है, वे यह मानते हैं कि व्यावसायिक कौशल जानने का अर्थ है कि वे सत्य सिद्धांतों को समझते हैं, और इसलिए वे बेधड़क अपनी मर्जी के मुताबिक कार्य करना शुरू कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें किसी की बात सुनने की जरूरत नहीं है और वे इस कार्य को परमेश्वर के घर के नियमों के अनुसार करने के लिए बाध्य नहीं हैं। वे मानते हैं कि यह उनका मामला है और कोई भी दूसरा व्यक्ति इसमें दखल नहीं दे सकता या इसके बारे में उनसे नहीं पूछ सकता—कार्य वैसा ही होगा जैसा वे उसे करेंगे, और जो वे करेंगे उसे मानक मान लिया जाए। क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से व्यवहार नहीं करते हैं? क्या यह एक गंभीर समस्या नहीं है? अगर कोई व्यक्ति सिर्फ व्यावसायिक कौशल जानता है और वह सत्य नहीं समझता है, तो उसके कर्तव्य करने से क्या परिणाम सामने आएँगे? (वे कलीसिया के कार्य में विघ्न डालेंगे।) सिर्फ विघ्न डालेंगे? क्या वे घमंडी और दंभी नहीं बन जाएँगे? क्या वे ऐसी चीजें नहीं करेंगे जो परमेश्वर को लज्जित करती हों? (हाँ।) अपने कर्तव्य का निर्वहन करके, तुम लोगों को जो प्रभाव प्राप्त करना है वह है परमेश्वर की गवाही देना; तुम सिर्फ किसी पेशे में शामिल नहीं होते हो, बल्कि अपने कर्तव्य का निर्वहन करके तुम परमेश्वर की गवाही देने का प्रभाव प्राप्त करते हो, और इसलिए यह व्यावसायिक कौशल सिर्फ उस कर्तव्य की सेवा कर रहा है जिसे तुम कर रहे हो। व्यावसायिक कौशल सत्य का निरूपण बिल्कुल नहीं है, और किसी व्यावसायिक कौशल में निपुण होने का यह अर्थ नहीं है कि तुम सत्य समझते हो या कि तुम कार्य को सत्य सिद्धांतों के अनुसार कर सकते हो। कुछ लोग इस पर आपत्ति जताते हैं, और कहते हैं, “मैं परमेश्वर के घर आया, मैं यह व्यावसायिक कौशल जानता हूँ, मैं इसे करने का तरीका जानता हूँ, इसलिए परमेश्वर के घर को मुझे महत्वपूर्ण कार्य देने चाहिए और मेरे बारे में ऊँची राय बनानी चाहिए। इसे मुझे शर्मिंदा नहीं करना चाहिए या मेरे व्यावसायिक कौशल के दायरे में आने वाली किसी भी चीज में अपनी नाक नहीं घुसानी चाहिए। दूसरों को सिखाना मेरा कार्य होना चाहिए। परमेश्वर के घर को मेरे साथ सहयोग करने के लिए उन लोगों की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए जो इस कार्य को करने का तरीका नहीं जानते हैं। ये लोग मेरे साथ सहयोग करने के योग्य नहीं हैं।” क्या यह सोचने का सही तरीका है? (नहीं।) दूसरे लोग उनके साथ सहयोग करने के योग्य नहीं हैं—क्या मसीह-विरोधी इसी तरीके से नहीं सोचता है? अगर परमेश्वर के घर में ऐसा कोई नहीं है जो तुम्हारे साथ सहयोग करने के योग्य हो, तो फिर क्या तुम इस कर्तव्य को करने के योग्य हो? तुम खुद को क्या समझते हो? क्या तुम्हें पूर्ण बना दिया गया है? तुम इस कर्तव्य को करने के योग्य नहीं हो! तुम्हें यह कर्तव्य करने का अवसर सिर्फ इसलिए मिला है क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी बड़ाई करता है। तुम्हें अपने कर्तव्य करने के सिद्धांतों को समझना चाहिए। अब तुम परमेश्वर की गवाही दे रहे हो, किसी पेशे में शामिल नहीं हो रहे हो। तुम जो भी थोड़ा बहुत व्यावसायिक कौशल जानते हो, उसका उपयोग सिर्फ सेवा प्रदान करने के लिए और इस कर्तव्य की पूर्ति करने के लिए किया जाता है। इसलिए, तुम जो कर्तव्य करते हो, वह कितने भी उच्च-स्तरीय तकनीकी कौशल वाला हो, तुम्हें हमेशा उसके हर हिस्से में सत्य सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि तुम परमेश्वर की गवाही देने का प्रभाव प्राप्त कर सको। अगर तुम यह प्रभाव प्राप्त नहीं कर पाते हो और तुम जो कर्तव्य करते हो उससे परमेश्वर लज्जित होता है, तो फिर तुम्हारी तकनीकी क्षमताओं का क्या उपयोग रह जाएगा? क्या उनकी कोई कीमत रहेगी? नहीं, उनकी कोई कीमत नहीं रहेगी। इसलिए, उस मामूली से व्यावसायिक कौशल और तकनीकी क्षमता को सत्य मत मानो—वे सत्य नहीं हैं और संजोकर रखने योग्य नहीं हैं। अगर परमेश्वर के घर ने तुम्हारा उपयोग नहीं किया, अगर परमेश्वर ने तुम्हारी बड़ाई नहीं की, तो तुम्हारे थोड़े-से व्यावसायिक कौशल और तकनीकी क्षमता की कोई कीमत नहीं रहेगी। सत्य की तुलना में, उन चीजों की कीमत धेले भर की भी नहीं है!

कह सकते हैं कि मसीह-विरोधियों का पाखंड एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग वे लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए करते हैं—वे पाखंड के साधन का उपयोग लोगों को गुमराह करने और उन्हें गलत दिशा में भेजने के लिए करते हैं। ये लोग पाखंड में शामिल हो सकते हैं यह बात ना सिर्फ यह दर्शाती है कि वे मूल रूप से सत्य स्वीकार नहीं करते हैं या सत्य को नहीं मानते हैं, बल्कि यह भी दर्शाती है कि एक इससे भी ज्यादा यथार्थवादी व्याख्या है जो इन लोगों पर लागू होती है : उन्हें आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है। “उन्हें आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि वे परमेश्वर के वचनों या सत्य को नहीं समझते हैं। और चूँकि वे सत्य को नहीं समझते हैं, इसलिए उन्हें यह मालूम नहीं है कि परमेश्वर किस तरह के लोगों से प्रेम करता है, और इसलिए वे इस तरह के आध्यात्मिक व्यक्ति की कल्पना कर लेते हैं और फिर पाखंड और दिखावा करते हैं। वे इस तरह के व्यक्ति की तरह कार्य करते हैं, और यह मानते हैं कि ऐसा करने से परमेश्वर और दूसरे लोगों से खुद को पसंद करवा सकते हैं। दरअसल, होता इसका उल्टा है, क्योंकि इस तरह के लोग ठीक वही होते हैं जिनसे परमेश्वर नफरत करता है और जिनकी वह निंदा करता है। इसलिए इस तरह का व्यक्ति मत बनो। अगर तुम भी ऐसा व्यक्ति बनना चाहते हो, अगर तुम अक्सर इस तरह से पाखंड और दिखावा करते हो, और इस तरह से लोगों को गुमराह करते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हो। तुम्हें यह कहना सीखना ही चाहिए, “मुझमें कमजोरी है, मुझमें नकारात्मकता है, मेरे पास भ्रष्ट स्वभाव हैं। मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, मैं कोई खास नहीं हूँ। ऐसी कई चीजें हैं जो मुझे समझ नहीं आती हैं और मुझे नहीं पता कि उन्हें कैसे करना है। मैं अक्सर कमजोर पड़ जाता हूँ और शैतान द्वारा गुमराह हो जाता हूँ जिससे मैं शैतान के प्रलोभन में पड़ जाता हूँ। तकनीकी कौशल का अध्ययन करने के लिहाज से, मैं ज्यादा से ज्यादा एक या दो कौशलों में महारत हासिल कर सकता हूँ, और मैं सीख सकता हूँ कि सामान्य रूप से उन्हें कैसे करना है। मैं जानता हूँ कि इस व्यावसायिक कौशल को कैसे करना है, और मेरे पास यही खास कौशल है। मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, मेरे में ज्यादा काबिलियत नहीं है, और मेरा बोध औसत स्तर का है। सत्य के लिहाज से, मैं उतना ही समझता हूँ जितना परमेश्वर संगति में देता है। मैं ऐसी कोई भी चीज नहीं समझ पाता जिसे परमेश्वर उजागर नहीं करता है या स्पष्ट रूप से नहीं समझाता है, और मेरी काबिलियत औसत स्तर की है। भाई-बहन मुझे कलीसिया के या दल के अगुआ के रूप में चुनते हैं, और यह परमेश्वर द्वारा मेरी बड़ाई करना है, और यह इसलिए नहीं है कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ। मेरे पास शेखी बघारने के लिए कुछ भी नहीं है।” क्या तुम लोग ऐसी चीज कह सकते हो? क्या तुमने कभी ऐसी कोई चीज कही है? क्या तुम अपने दिल में इस तरह से सोचते हो? अगर तुम अपने दिल में हमेशा यह महसूस करते हो कि तुम महान हो, अद्भुत हो, बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो, लाखों में एक हो, तुम जिस किसी समूह में होते हो उसमें खास होते हो, तुम सर्वोच्च हो, अगर तुम किसी समूह में एक या दो महीने बिताओ, तो तुम्हारे खास कौशल, प्रतिभाएँ, काबिलियत और बोध को सभी देख सकते हैं और उन्हें साधारण लोगों के कौशल, प्रतिभाओं, काबिलियत और बोध से बेहतर माना जा सकता है—अगर तुम अपने दिल में खुद को हमेशा इस तरह से मापते और स्थान देते हो, तो तुम बहुत बड़े खतरे में हो और बहुत बड़ी मुसीबत में हो।

पूरी मानवजाति में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं, जो सही मायने में सत्य समझ पाते हैं, और पूर्ण लोगों की या ऐसे लोगों की तादाद तो और भी कम है जो कुछ भी कर सकते हैं—हर कोई साधारण है। कुछ लोग सोचते हैं कि वे साधारण नहीं हैं, तो यह विचार कैसे उत्पन्न होता है? यह उनके पास कुछ ऐसा होने से उत्पन्न होता है जिसमें वे अच्छे हैं; कुछ लोग गाना गाने में अच्छे होते हैं, तो कुछ अभिनय करने में, कुछ तकनीकी कौशलों में, कुछ शारीरिक मेहनत करने में, कुछ सामाजिक मेलजोल रखने में, कुछ राजनीति में, और कुछ व्यापार में, वगैरह-वगैरह। इनमें से किसी भी चीज का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वे अक्सर तुम्हें गलतफहमी में डाल देती हैं और तुम्हें गलती से यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि तुम बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो। इन चीजों का तुम्हें गलती से यह सोचने पर मजबूर करना क्यों गलत है कि तुम बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो? ये चीजें जिनमें तुम अच्छे हो और यह तथाकथित “बाकी लोगों से कहीं बेहतर होने” का यह अर्थ नहीं है कि तुम सत्य समझ सकते हो, तुम सत्य समझने के लिहाज से साधारण लोगों से आगे निकल सकते हो, या परमेश्वर का उद्धार खोजने और पूर्ण बनाए जाने के लिहाज से तुम्हारे पास अनुकूल स्थितियाँ हैं—इनका अर्थ ये चीजें नहीं हैं। तुम लोगों को यह मामला स्पष्ट रूप से पहचान लेना चाहिए! जब परमेश्वर ने अपने वचन बोलना और अपना कार्य करना शुरू किया, तब से लेकर अब तक, उसने अनगिनत वचन बोले हैं और अनगिनत कार्य किए हैं, और क्या पूरी भ्रष्ट मानवजाति में से एक भी व्यक्ति ने परमेश्वर के कथनों में यह देखा है कि वह सृष्टिकर्ता है और वह जो वचन बोलता है वे सत्य हैं? क्या एक भी व्यक्ति परमेश्वर के वचनों में उसकी पहचान और उसका दर्जा देख सकता है और फिर परमेश्वर की पहचान और उसके दर्जे की गवाही देने के लिए खड़ा हो सकता है? एक भी नहीं! इस तथ्य से यह साबित होता है कि, सारी मानवजाति की काबिलियत, दिमाग और बोध के लिहाज से, किसी के पास सत्य समझने के लिए जरूरी स्थितियाँ नहीं हैं, कहने की आवश्यकता नहीं है कि सभी मनुष्यों में शैतान के भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “अगर हमारे पास सत्य समझने के लिए जरूरी स्थिति है ही नहीं, तो अब हम थोड़ा सत्य कैसे समझते हैं?” क्या ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैंने इस बारे में बहुत कुछ बोला है? मैंने इतना कुछ बोला है कि अब मेरा बोलने का भी मन नहीं करता है और मैं बोलने से ऊब गया हूँ। जब भी मैं बोलता हूँ और तुम लोगों के साथ संगति करता हूँ, तो मुझे विषयों को मुख्य विषयों, बीच के विषयों और उपविषयों में बाँटना पड़ता है, चीजों को लगातार ब्योरेवार तरीके से समझाना पड़ता है, और उसके बावजूद तुम लोगों को समझ नहीं आता है, तो फिर तुम लोगों की काबिलियत किस तरह की होगी? कुछ लोग अब भी बहुत अहंकारी और आत्मतुष्ट हैं, लेकिन तुम लोगों के पास अहंकारी होने के लिए क्या है? मैं देखता हूँ कि तुम में से ज्यादातर लोगों में कोई सराहनीय बात नहीं है। इतने वर्षों तक तकनीकी कार्य करने के बाद, तुम में से कितने लोग सत्य सिद्धांतों को सही मायने में समझते हैं, सत्य सिद्धांतों का पालन कर सकते हैं और अपने कार्य सत्य सिद्धांतों के अनुसार कर सकते हैं? तुम कोई भी कार्य अच्छी तरह से नहीं करते हो, चाहे वह कार्य कोई भी हो, और ऊपरवाले को इस बारे में हमेशा तुम्हें व्यक्तिगत रूप से निर्देश देना पड़ता है कि चीजों को कैसे करना है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो कुछ भी सही नहीं होता है, और अगर कोई कार्य ऊपरवाले की निगरानी और निर्देशों के बिना आगे बढ़ता है, तो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों के पास डींग हाँकने के लिए कुछ है? नहीं, उनके पास कुछ नहीं है, फिर भी वे हर लिहाज से परिपूर्ण, आध्यात्मिक, महान और श्रेष्ठ लोग होने का दिखावा करते हैं—क्या वे बेशर्म नहीं हैं? तुम लोग वाकई तकलीफदेह हो! मैं चाहे किसी भी विषय पर संगति करूँ, मुझे उसे ब्योरेवार तरीके से करना पड़ता है, जितना ज्यादा ब्योरा हो, उतना बेहतर है। चीजों को थोड़ा और सादे तरीके से समझाने से काम नहीं बनेगा। लोगों की काबिलियत और उनका बोध ऐसा ही है; वे बेहद दयनीय हैं और फिर भी वे मानते हैं कि वे महान हैं। मैं इस पहलू पर अपनी संगति यहीं समाप्त करूँगा।

iii. सबसे ऊपर होना

अब हम तीसरे पहलू पर संगति करेंगे : सबसे ऊपर होना। मसीह-विरोधी चाहे जो भी करें, वे हमेशा सबसे ऊपर होना चाहते हैं—यह उनकी प्रकृति की सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति है। अगर कोई भी व्यक्ति सबसे ऊपर होना चाहता है, तो यह एक बहुत गंभीर समस्या है और ऐसे सभी लोग वास्तव में मसीह-विरोधी हैं। “सबसे ऊपर होने” का क्या अर्थ है? मसीह-विरोधियों में महादूत, शैतान का सार होता है; वे स्वभावतः सामान्य या साधारण लोग नहीं बनना चाहते हैं। अगर उन्हें साधारण लोगों की तरह रहना, साधारण जीवन जीना पड़े तो वे ऐसा नहीं करना चाहेंगे और असंतुष्ट महसूस करेंगे और लगातार संघर्षशील रहेंगे। वे लगातार संघर्षशील क्यों रहेंगे? क्योंकि वे हलचल मचाना और दूसरों को दिखाने के लिए कुछ करतब करना चाहते हैं, ताकि दूसरे लोग जान सकें कि स्वर्ग और पृथ्वी के बीच उनके जैसा कोई शक्तिशाली व्यक्ति मौजूद है। वे अपना नाम करना चाहते हैं, ताकि दूसरों को पता चले कि वे एक ऐसी मछली हैं जो कि तालाब से भी बड़ी है, जैसा कि अविश्वासी कहते हैं। ये मछलियाँ किस तरह की चीजें हैं जो कि इतनी बड़ी हैं कि अपने तालाब में ही न समाएँ? ये बुरी आत्माएँ हैं, मलिन दानव हैं, महादूत, शैतान और राक्षस हैं। मसीह-विरोधी जीवन में जो मिला है उससे संतुष्ट रहकर और एक सामान्य व्यक्ति का जीवन जीते हुए, अपने दिन गुजारने की इच्छा स्वाभाविक रूप से नहीं रखते हैं; वे चुपचाप अपना कर्तव्य करने से मतलब नहीं रखते या साधारण शिष्‍ट लोगों की तरह व्यवहार नहीं करते—उन्हें ऐसा बनने से संतुष्टि नहीं मिलती। इसलिए, वे ऊपरी तौर पर चाहे जैसा भी व्यवहार करें, लेकिन दिल में, वे जीवन में जो मिला है उससे नाखुश रहते हैं और वे कुछ खास काम करेंगे। क्या काम करेंगे? वे कुछ ऐसे काम करेंगे, जो सामान्य लोग कभी नहीं सोच सकते। वे चर्चा में बने रहना चाहते हैं और इसके लिए कोई परेशानी उठाने या कोई कीमत अदा करने से नहीं हिचकिचाएँगे। एक कहावत है : “नए अधिकारी दूसरों को प्रभावित करने के लिए तत्पर रहते हैं।” जब कोई मसीह-विरोधी अगुआ बन जाता है तो उसे लगता है कि उसे कुछ हैरतंगेज काम जरूर करने चाहिए और “अपने करियर में कुछ उपलब्धियाँ” हासिल करनी चाहिए जिससे साबित हो सके कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। यहाँ सबसे गंभीर समस्या क्या है? हालाँकि वे कलीसिया में काम कर रहे हैं और अपने कर्तव्य करने का स्वाँग भर रहे हैं, पर वे कभी परमेश्वर से यह नहीं खोजते कि वे अपना कर्तव्य कैसे निभाएँ या कलीसिया का काम अच्छी तरह कैसे करें, न ही वे यह जानने की ज्यादा कोशिश करते हैं कि परमेश्वर के घर के क्या नियम हैं, सत्य सिद्धांत क्या हैं या इस तरह से कैसे कार्य करें जिससे परमेश्वर के घर के काम और भाई-बहनों को लाभ हो, परमेश्वर को लज्जित करने वाली कोई बात न हो, परमेश्वर की गवाही दी जा सके, कलीसिया के काम को सुचारू रूप से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके और जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनके काम में लापरवाही के चलते कोई गलती न हो। वे इन चीजों के बारे में कभी नहीं पूछते और इन चीजों के बारे में कभी पता नहीं लगाते—उनके दिल में ये चीजें नहीं हैं, उनका दिल इन चीजों से नहीं भरा है। तो वे क्या पता लगाते हैं? उनके दिल में क्या भरा होता है? उनके दिल में ये विचार भरे होते हैं कि वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं और ये कैसे दिखा सकते हैं कि वे बाकियों से अलग हैं और कलीसिया में अपनी अगुआई की शैली का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं, ताकि दूसरे लोगों को पता चले कि वे कलीसिया के आधार स्तंभों में से हैं और कलीसिया में उनके बिना काम नहीं चल सकता और ये कि कलीसिया के सभी काम उनको साथ लेकर ही अच्छी तरह चल सकते हैं। मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और उनके क्रियाकलापों की प्रेरणा तथा मूल आवेग के आधार पर निर्णय करते हुए वे अपने आप को किस स्थिति में रखते हैं? वे खुद को सबसे ऊपर रखते हैं। और इसे कैसे अभिव्यक्त करते हैं? (वे किसी की भी बात नहीं मानते और हमेशा चाहते हैं कि वे जो कहें, वही माना जाए और दूसरे लोग उन्हीं की बात मानें।) किसी की भी बात नहीं मानने में समस्या है; इसमें कोई अर्थ छिपा है। वह अर्थ ये है कि वे जब कलीसिया का काम करते हैं तो वे अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हैं, न ही वे परमेश्वर के इरादे का ध्यान रखते हैं और इसलिए वे सत्य सिद्धांतों की तलाश करने, कलीसिया के नियमों का पता लगाने या परमेश्वर के घर के लिए अपेक्षित सिद्धांतों को जानने की जरूरत महसूस नहीं करते—यहाँ तक कि वे मेरी कही किसी बात पर ध्यान नहीं देते। वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? वे कलीसिया के काम और अपने भाई-बहनों की सेवा करते समय ऐसे सिद्धांतों और प्रेरणाओं का ध्यान रखते हैं, जिससे उनके अपने कार्य पूरे हो सकें। जब तक वे कलीसिया में और अपने भाई-बहनों के बीच अपनी जगह बना पाते हैं, और प्रतिष्ठा और फैसले लेने की शक्ति प्राप्त कर पाते हैं, तब तक उनके लिए इतना पर्याप्त है; और इसके बाद वे अपने कर्तव्य से अपना तथाकथित “परिणाम” हासिल कर चुके होंगे। उनका लक्ष्य क्या है? उनका लक्ष्य सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करना या परमेश्वर के बोझ का ध्यान रखना नहीं होता, बल्कि कलीसिया के लिए काम करना और अपने भाई-बहनों की सेवा करना और ऐसा करते समय इन सभी चीजों पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। मैं क्यों कहता हूँ कि वे इन सभी चीजों पर नियंत्रण करना चाहते हैं? क्योंकि जब वे काम कर रहे होते हैं तो पहले वे अपने लिए पैर रखने की जगह बनाते हैं, कुछ प्रसिद्धि पाते हैं, उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, वे फैसले करने और निर्णय लेने की ताकत पा लेते हैं और तब वे परमेश्वर को महज नाममात्र का स्वामी बनाकर, स्वयं परमेश्वर का स्थान ले सकते हैं। अपने प्रभाव के दायरे में, वे देहधारी परमेश्वर को नाममात्र का स्वामी, एक कठपुतली बना देते हैं, “सबसे ऊपर होने” का अर्थ यही है। क्या मसीह-विरोधी यही कार्य नहीं करते? मसीह-विरोधी इसी तरह का व्यवहार करते हैं। मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य करने के अवसर का उपयोग पूरी तरह अपने गुणों और प्रतिभाओं को दिखाने और अपनी अनूठी सोच तथा कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं, जिससे कि उन्हें लोगों का समर्थन मिल सके और ज्यादा लोग उनकी ओर आकृष्ट हो सकें। इसके बाद वे अधिकार हासिल करने, निर्णय करने और कलीसिया में चीजों पर नियंत्रण हासिल करने की हैसियत प्राप्त करते हैं और इससे बहुत से लोग उनकी आज्ञा मानने लगते हैं और उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं और परमेश्वर बाहरी हो जाता है—क्या यह परमेश्वर को नाममात्र का स्वामी बना देना नहीं है? मसीह-विरोधी अपने क्रियाकलापों से यह लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं और जहाँ भी मसीह-विरोधियों का शासन होता है वहाँ अंततः यही होता है।

अगर किसी कलीसिया में सत्ता एक मसीह-विरोधी के पास है तो वहाँ के भाई-बहनों की क्या स्थिति होगी? वे केवल वही कार्य करेंगे जो मसीह-विरोधी कहेंगे, वे अपने प्रत्येक कार्य सिर्फ विनियमों के अनुसार करेंगे, वे सत्य को नहीं समझेंगे और सत्य की तलाश नहीं करेंगे। वे चाहे जितनी पीड़ा सहें या जितनी बड़ी कीमत चुकाएँ, लेकिन वे जीवन प्रवेश में कोई प्रगति नहीं कर सकेंगे। यहाँ तक कि ऐसी कलीसिया में अगर मैं भी जाऊँ तो मुझे भी ठुकरा दिया जाएगा। यह मसीह-विरोधी नाम से तो उनका अगुआ है, लेकिन असलियत ये है कि यह मसीह-विरोधी उनका मालिक और उनका परमेश्वर बन बैठा है। मसीह-विरोधी के नियंत्रण वाली किसी भी कलीसिया में सत्य और परमेश्वर तो नाममात्र के स्वामी होते हैं। किसी मसीह-विरोधी के सबसे ऊपर होने का अर्थ यही है। क्या यह गंभीर बात नहीं है? जब किसी कलीसिया में लोगों पर मसीह-विरोधी का नियंत्रण हो और बाहर के लोग वहाँ काम करने जाते हों तो क्या इन लोगों को अपने स्वामी के इशारे से बोलना और कार्य नहीं करना पड़ेगा? वे एक एकीकृत कमान के अधीन होते हैं, एक ही तरह से काम करते हैं और कोई भी इससे अलग कुछ कहने का साहस नहीं करता। अपने स्वामी का एक इशारा देखकर ये लोग समझ जाते हैं कि इसका क्या अर्थ है और वे उसी के अनुसार कार्य करते हैं। अगर मैं उनसे कुछ पूछूँ तो वे अपनी भाषा में एक-दूसरे से बात करते हैं। इसका अर्थ है कि वे नहीं चाहते कि मैं जानूँ कि वे क्या कह रहे हैं, वे मुझसे बचना चाहते हैं और वे मुझे बाहरी समझते हैं। क्या यह एक समस्या नहीं है? मुझसे बचने की उनकी इच्छा की प्रकृति क्या है? यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है—वे कलीसिया पर और वहाँ के लोगों पर नियंत्रण चाहते हैं। मसीह-विरोधी चाहे जो भी करें, यह तय है कि वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं करेंगे, परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान तो बिल्कुल भी नहीं रखेंगे; वे अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने और अपने खुद के उद्यम में लगे रहने का प्रयास कर रहे हैं। यह अपना कर्तव्य करना कैसे हुआ? इस तरह वे कर्तव्य निभाने का स्वाँग करने की आड़ में अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। चूँकि मसीह-विरोधियों की प्रकृति इसी तरह की होती है, भले ही वे यह न कहें कि व्यक्तिपरक ढंग से उन्हें रुतबा पसंद है और वे रुतबा चाहते हैं, लेकिन जैसे ही वे कोई काम करते हैं और अपना हाथ बढ़ाते हैं, मसीह-विरोधियों की राह पर चल पड़ते हैं, उनकी राक्षसी प्रकृति का खुलासा हो जाता है और वे अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास करने लगते हैं। जब भी वे कुछ करते हैं, वे अपने खुद के उद्यम में लगे रहने का प्रयास करते हैं; जब भी वे कुछ करते हैं, वे अपने साधनों और तरीकों से काम करने की कोशिश करते हैं। जब ऊपरवाला किसी चीज की व्यवस्था करता है और यह उन तक पहुँचती है तो मसीह-विरोधी इसका कार्यान्वयन नहीं करते, बल्कि इसकी जगह वे इस चीज का अध्ययन करते हैं, इस पर विचार करते हैं और इस पर संगति करते हैं। इस पर संगति करने का उनका क्या लक्ष्य है? इसे कार्यान्वित करने के बजाए हर किसी से इस बात पर चर्चा करवाना कि इसे ग्रहण किया जाएगा या नहीं और यह काम करेगी या नहीं। परमेश्वर जो भी कहता और करता है, वह सत्य है, लेकिन जब यह किसी मसीह-विरोधी के पास पहुँचता है तो यह बदलकर ऐसी चीज बन जाता है, जिसका अध्ययन करना उनके लिए जरूरी है। वे इसका अध्ययन, विश्लेषण और इस पर चर्चा करते हैं और अंत में, मनुष्य से परमेश्वर की जो अपेक्षाएँ और परमेश्वर की व्यवस्थाएँ हैं, उनका वे हर किसी से खंडन कराते हैं। अपने दिल में वे सोचते हैं, “तुम सत्य नहीं हो, तुम सिर्फ एक साधारण व्यक्ति हो। तुम क्या कहते हो यह कोई मायने नहीं रखता और अगर तुम मेरे क्षेत्राधिकार में अपने हिसाब से अंतिम निर्णय लेना चाहते हो तो तुम यह भूल जाओ! अभी यहाँ का प्रभारी मैं हूँ तो हर किसी को वही करना पड़ेगा जो मैं कहूँगा। निर्णय लेने के और अन्य सारे अधिकार पूरी तरह मेरे पास हैं और तुम यहाँ सिर्फ नाम के स्वामी हो। मेरे काम और प्रभाव के दायरे के भीतर हर चीज पर अंतिम निर्णय मुझे ही लेना है। भले ही तुम सत्य को समझते हो और तुम जो भी कहते हो, वह सत्य है, लेकिन उससे मुझ पर कोई असर नहीं होगा!” यह एक मसीह-विरोधी और दानव है, है ना? तो जब कलीसिया की कार्य व्यवस्थाएँ, ऊपरवाले की अपेक्षाएँ और सत्य सिद्धांत किसी मसीह-विरोधी के क्षेत्र में पहुँचते हैं तो वे बिल्कुल कार्यान्वित नहीं किए जाते। ये चीजें कार्यान्वित नहीं हो रही हैं तो इसके लिए क्या किया जा सकता है? जब कोई कलीसिया इन्हें कार्यान्वित नहीं करती है तो इसका अर्थ यह है कि वहाँ के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कोई समस्या है और इन अवरोधों एवं बाधाओं से निपटना चाहिए। क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर का घर तुम्हारा कुछ नहीं कर सकता? अगर परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग कर सकता है तो यह तुम्हें सँभाल भी सकता है। क्या तुम सोचते हो कि यह लौकिक संसार है? क्या तुम सोचते हो कि अगर तुम्हारा प्रभाव है, तुम तानाशाह की तरह काम करते हो और तुम काफी निष्ठुर, निरंकुश और क्रूर हो तो कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है? अगर ऐसा है तो तुम गलत हो! यह परमेश्वर का घर है। परमेश्वर के घर में सत्य का शासन चलता है और यह लोगों से सिद्धांतपूर्वक व्यवहार करता है। परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग कर सकता है और परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग नहीं भी कर सकता है और तुम्हें निकाल भी सकता है—तुम्हारा उपयोग किया जाएगा या नहीं, इसका निर्णय परमेश्वर के वचन द्वारा होगा। अगर तुम यहाँ अनुचित तरीके से विघ्न उत्पन्न करोगे और काम में बाधा डालोगे तो अंततः तुम्हें निकाल दिया जाएगा; अगर तुम सेवा प्रदान करने का प्रयास करते हो, यहाँ रहते हो और अपनी जगह समझते हो और अच्छे से व्यवहार करते हो तो परमेश्वर का घर तुम्हें सेवा प्रदान करने के लिए रखेगा और देखेगा कि तुम्हारे सेवा प्रदान करने का क्या परिणाम निकलता है।

मसीह-विरोधियों द्वारा अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने का सार, सबसे ऊपर होने, परमेश्वर की अवहेलना करने, सत्य की अवहेलना करने और कलीसिया के नियमों की अवहेलना करने का सार है। वे बस “कलीसिया” के नाम की सेवा करते हैं, बस “परमेश्वर के घर” के नाम की सेवा करते हैं, वे बस “भाई-बहन” कहलाने वाले लोगों के समूह की सेवा करते हैं और वे सृजित प्राणी का कर्तव्य कभी नहीं निभाते, परमेश्वर का अनुसरण या उसके वचनों के प्रति समर्पण तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं—यही उनका स्वयं का साम्राज्य स्थापित करना है। मसीह-विरोधियों का सार यही है और यह सार है सबसे ऊपर होना। अब, क्या इस सार की निंदा की जाती है या अनुमोदन किया जाता है? (निंदा की जाती है।) और चूँकि इसकी निंदा की जाती है, तो तुम लोगों द्वारा इन लोगों को अस्वीकार किया जाना चाहिए। कुछ भ्रमित, अनभिज्ञ और दृष्टिहीन लोग ऐसे लोगों को देखकर उनका अनुसरण करते हैं, उनकी प्रशंसा, सराहना तथा आराधना करते हैं और यहाँ तक कि उनके सामने झुकना चाहते हैं—वे बिल्कुल मूर्ख हैं! मसीह-विरोधी तुम्हें कहाँ ले जा सकते हैं? उनके द्वारा तुम्हारी अगुआई किया जाना ऐसा ही है जैसे बड़ा लाल अजगर तुम्हारी अगुआई कर रहा हो और वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक तुम्हें किसी खाई या अथाह कुंड में न धकेल दें। जब वे तुम्हें पूरी तरह बर्बाद कर देंगे, वे तुम्हें लात मार देंगे; तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा और तुम्हारा परमेश्वर पर विश्वास किया जाना व्यर्थ होगा। अगर तुम लोग अंधे हो और इन लोगों की सच्चाई नहीं देख सकते हो और तुम इन लोगों की आज्ञा मानते हो, इनके प्रति समर्पण और इनका अनुसरण करते हो तो तुम लोग पूरी तरह अज्ञानी हो और मरने के ही लायक हो। तो अगर तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होता है तो तुम्हें क्या करना चाहिए? जब तुम्हारा सामना कलीसिया में किसी ऐसे व्यक्ति से होता है, जो दिखावे और पाखंड में लगा है, जो करता तो कुछ नहीं लेकिन सबसे ऊपर होना चाहता है, सत्य का तिरस्कार करता है, परमेश्वर का तिरस्कार करता है और कलीसिया के नियमों का तिरस्कार करता है तो हर व्यक्ति को उसकी काट-छाँट करने और उसे अस्वीकार करने के लिए खड़ा होना चाहिए। अगर ऐसे लोग परमेश्वर के घर में शिष्टतापूर्वक श्रम करते हैं तो उन्हें श्रम करने दो; अगर वे शिष्ट नहीं हैं और हमेशा अनुचित रूप से काम में बाधा डालते हैं तो तुम्हें परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों का कार्यान्वयन कर उन्हें दूर कर देना चाहिए।

23 मई 2020

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