मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दस) खंड तीन
ii. पाखंड के साथ
अब हम दूसरे पहलू पर संगति करेंगे। मसीह-विरोधी अक्सर रुतबा हासिल करने के लिए ढोंग का उपयोग करते हैं; वे कुछ ऐसी बातें कहते हैं जो सुनने में अच्छी लगती हैं और जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप होती हैं, और वे ऊपरी तौर पर कुछ ऐसी चीजें करते हैं जिससे लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और उनकी सराहना करते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ जाती है—यह एक और तरीका है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करते हैं। क्या पाखंड और दिखावे में कोई फर्क है? बाहरी व्यवहार के लिहाज से, दिखावा और पाखंड आम तौर पर एक ही मनोदशा हैं; वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम उन पर अलग से संगति करेंगे ताकि वे लोगों को ज्यादा स्पष्ट समझ में आएँ, और ताकि लोग उन्हें ज्यादा स्पष्ट रूप से जान सकें। “पाखंड” का प्राथमिक अर्थ बनावटी नहीं है, बल्कि किसी और का रूप धारण करना है। मसीह-विरोधी पाखंड क्यों करते हैं? जाहिर है, उनके कुछ लक्ष्य होते हैं : मसीह-विरोधी रुतबा और प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए पाखंड करते हैं; अगर ऐसा नहीं होता, तो वे कभी पाखंड नहीं करते, वे कभी ऐसी बेवकूफी नहीं करते। जो लोगों को आँखों से ही पहचान लेते हैं, वे इस बात को साफ-साफ देख पाते हैं। अगर लोग अक्सर पाखंड करते हैं, तो जाहिर है कि वे दूसरों की घृणा, तिरस्कार और निंदा अर्जित करेंगे—तो फिर भी मसीह-विरोधी ऐसा क्यों करते हैं? यह बस उनकी प्रकृति है : वे इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है, उनमें पहले से ही कोई शर्म नहीं है। लोगों के मन में रुतबा हासिल करने के लिए, मसीह-विरोधी सबसे पहले उनसे अपने पर भरोसा, अपना आदर, अपनी आराधना करवाते हैं। तो वे इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं? लोगों की धारणाओं से मेल खाने वाला थोड़ा अच्छा व्यवहार और कुछ अच्छी अभिव्यक्तियों का ढोंग करने के अलावा, वे स्वयं को महान और मशहूर हस्तियों के अनुरूप ढाल लेते हैं, उनके बोलने के तरीके की नकल करते हैं, ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय बनाएँ और उनका आदर करें। इस तरह से, कलीसिया में कुछ लोग अनजाने में उनकी आराधना करना, खुशामद करना और उनका समर्थन करना शुरू कर देते हैं, वे मसीह-विरोधियों का आध्यात्मिक हस्तियों या मशहूर लोगों की तरह सम्मान करने लगते हैं, जिसका अर्थ है कि कलीसिया में और कुछ खास लोगों के दिलों में, मसीह-विरोधियों को आध्यात्मिक हस्तियों की तरह सराहना और सम्मान मिलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर लोगों में भेद पहचानने की क्षमता बिल्कुल नहीं है, और वे ऐसे किसी भी व्यक्ति की आराधना और सम्मान करने लगते हैं जिसे वे दिल से पसंद करते हैं और सराहते हैं। कलीसिया में, मसीह-विरोधी मुख्य रूप से किस तरह के व्यक्ति का रूप धारण करते हैं? वे आध्यात्मिक हस्तियों का रूप धारण करते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोग आध्यात्मिक हस्तियों की आराधना करते हैं। यहूदी धर्म में, फरीसी आध्यात्मिक हस्तियाँ थे जिनकी लोग आराधना करते थे, लोग उनके ज्ञान, झूठी धार्मिकता और अच्छे व्यवहार के लिए उनकी आराधना करते थे; और इसलिए यहूदी धर्म में, फरीसी बहुत लोकप्रिय थे, उन्हें बेहद सराहा जाता था। आज, कलीसिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें आध्यात्मिक हस्तियों की आराधना करना अच्छा लगता है। सबसे पहले, वे कलीसिया में उन लोगों की आराधना करते हैं जो कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आए हैं, जिनके पास कुछ तथाकथित आध्यात्मिक अनुभव और गवाहियाँ हैं, जिन्होंने परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष प्राप्त किया है, जिन्होंने महान दर्शन देखे हैं, जिन्हें कुछ असाधारण अनुभव हुए हैं। इसके अलावा, ऐसे लोग भी हैं जो लोगों के बीच घमंडी और चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, दूसरों में अपने प्रति आराधना और सराहना की भावना जगाते हैं। ऐसे लोग भी हैं जिनके कार्य करने के साधन, तरीके और सिद्धांत कलीसिया के नियमों के अनुरूप हैं, जिनका बाहरी व्यवहार धर्मनिष्ठ प्रतीत होता है। फिर ऐसे भी लोग हैं, जो परमेश्वर में बहुत आस्था रखने वाले प्रतीत होते हैं। इन सभी लोगों को आध्यात्मिक लोगों की उपाधि दी जाती है। तो मसीह-विरोधी आध्यात्मिक लोगों का रूप कैसे धारण करते हैं? वे जो करते हैं वह बहुत सरल है, वे वह बस वही चीजें कहते हैं जो आध्यात्मिक लोग कहते हैं और वही चीजें करते हैं जो आध्यात्मिक लोग करते हैं, ताकि लोग उन्हें एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में देखें। लेकिन क्या वे ये चीजें दिल से कहते और करते हैं? नहीं : यह नकल उतारना है, एक विनियम का पालन करना है, वे बस दूसरों को दिखाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, जब उनके साथ कुछ होता है तो वे फौरन प्रार्थना करने लगते हैं—लेकिन वे सही मायने में खोज या प्रार्थना नहीं कर रहे होते हैं, वे यह सब बस आधे-अधूरे मन से कर रहे होते हैं, दिखावा कर रहे होते हैं, ताकि लोग कहें कि वे परमेश्वर से बहुत प्रेम करते हैं और परमेश्वर का बहुत भय मानते हैं। इतना ही नहीं, जब वे बीमार पड़ते हैं और उन्हें इलाज की जरूरत पड़ती है, तो वे इलाज नहीं करवाते हैं और ना ही दवा लेते हैं जो उन्हें लेनी चाहिए। लोग कहते हैं, “अगर तुम दवा नहीं लोगे, तो तुम्हारी बीमारी और बढ़ सकती है। दवा के लिए एक समय होता है, और प्रार्थना के लिए एक समय होता है। तुम्हें बस अपनी आस्था का पालन करने और अपने कर्तव्य का त्याग नहीं करने की जरूरत है।” वे जवाब देते हैं, “कोई बात नहीं—परमेश्वर मेरे साथ है, मैं भयभीत नहीं हूँ।” बाहर से, वे शांत, निडर और आस्था से पूर्ण होने का दिखावा करते हैं, लेकिन भीतर से, वे आतंकित होते हैं और जैसे ही उन्हें कोई परेशानी महसूस होती है, वे चुपके से भागकर डॉक्टर के पास पहुँच जाते हैं। और अगर किसी को पता चल जाता है कि वे डॉक्टर के पास गए थे और उन्होंने दवा ली थी, तो वे इसे छिपाने के लिए कारण या बहाने ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं। वे अक्सर यह भी कहते हैं, “बीमारी परमेश्वर की तरफ से दी गई एक परीक्षा है। जब तुम बीमारी में रहते हो, तो तुम बीमार हो जाते हो; जब तुम परमेश्वर के वचनों में रहते हो, तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं होती है। हमें बीमारी में नहीं जीना चाहिए—अगर हम परमेश्वर के वचनों में जीएँगे, तो यह बीमारी गायब हो जाएगी।” खुलेआम, वे अक्सर लोगों को यही चीज सिखाते हैं, वे लोगों की मदद करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करते हैं; लेकिन सबसे छिपकर, वे मानवीय साधनों का उपयोग करके अपनी बीमारी को ठीक करते हैं। दूसरे लोगों के सामने, वे कहते हैं कि वे परमेश्वर पर निर्भर हैं और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, वे कहते हैं कि वे बीमारी या मृत्यु से नहीं डरते हैं; लेकिन अपने दिलों में, वे सबसे ज्यादा भयभीत रहते हैं, उन्हें बीमार पड़ने और अस्पताल जाने से डर लगता है, और मृत्यु से तो वे और भी ज्यादा आतंकित रहते हैं। उनमें सच्ची आस्था बिल्कुल नहीं होती है। दूसरे लोगों के सामने, वे प्रार्थना करते हैं और कहते हैं : “मैं खुशी-खुशी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करता हूँ। सब कुछ परमेश्वर से आता है, और लोगों को शिकायत नहीं करनी चाहिए।” इस बीच, वे अपने दिलों में सोच रहे होते हैं : “मैंने अपना कर्तव्य बहुत निष्ठा से किया है, फिर मुझे यह बीमारी कैसे हो सकती है? और यह किसी और को कैसे नहीं हुई? क्या परमेश्वर इसका उपयोग मुझे बेनकाब करने, मुझे यह कर्तव्य करने से रोकने के लिए कर रहा है? क्या परमेश्वर मुझसे नफरत करता है? और अगर वह मुझसे नफरत करता है, तो क्या मैं एक सेवाकर्ता हूँ? क्या परमेश्वर सेवकाई करवाने के लिए मेरा उपयोग कर रहा है? क्या भविष्य में मेरा कोई परिणाम होगा?” वे ऊँची आवाज में शिकायत करने की हिम्मत नहीं करते हैं, लेकिन उनके दिलों में, परमेश्वर के बारे में संदेह दिखाई देने लगते हैं, वे मन ही मन सोचते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह जरूरी नहीं कि सही हो। लेकिन, बाहर से, वे ऐसा दिखावा करते हैं जैसे कुछ भी गलत नहीं है, वे ऐसा दिखाते हैं कि जब वे बीमार पड़ जाते हैं, तो भी बीमारी उन्हें रोककर नहीं रख सकती है, और वे तब भी अपना कर्तव्य कर सकते हैं, और आज्ञाकारी और भरोसेमंद हो सकते हैं, वे तब भी परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं। क्या यह दिखावा करना और पाखंड करना नहीं है? उनकी आस्था और समर्पण बनावटी हैं; उनकी निष्ठा बनावटी है। यहाँ कोई सच्चा समर्पण नहीं है, कोई सच्ची आस्था नहीं है, और सच्ची निर्भरता और आत्मसमर्पण तो और भी कम है। वे परमेश्वर के इरादों की तलाश नहीं करते हैं, वे अपने खुद के भ्रष्ट स्वभावों की जाँच नहीं करते हैं, और ना ही वे अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य की तलाश करते हैं। वे अपने दिलों में सिर्फ अपने दैहिक हितों, परिणाम और गंतव्य के बारे में सोचते हैं; उनके दिल परमेश्वर के बारे में शिकायतों, गलतफहमियों और संदेहों से भरे हुए हैं—और फिर भी, बाहर से, वे किसी आध्यात्मिक हस्ती जैसे दिखते हैं, और उनके साथ चाहे कुछ भी हो जाए, वे कहते हैं, “इसमें परमेश्वर का अच्छा इरादा है, मुझे शिकायत नहीं करनी चाहिए।” उनकी जबानें शिकायत नहीं करती हैं, लेकिन उनके दिल डगमगाते रहते हैं : उनके दिलों में परमेश्वर के बारे में उनकी शिकायतों, गलतफहमियों और संदेहों का मंथन होता रहता है। प्रत्यक्ष रूप से, वे अक्सर परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और अपना कर्तव्य करने में देरी नहीं करते हैं, लेकिन अपने दिलों में, वे पहले से ही अपना कर्तव्य छोड़ चुके होते हैं। क्या पाखंड का यही मतलब नहीं है? यही पाखंड है।
चाहे परिस्थिति कोई भी हो, मसीह-विरोधी हमेशा पाखंड करते रहेंगे; वे अवसर को लेकर कोई भेद नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर, कुछ भाई-बहन जब सभाओं में जाते हैं, तो वे एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। मसीह-विरोधी इस चीज को कैसे देखते हैं? वे कहते हैं, “गपशप करना बंद करो, हम सभा में हैं! तुम लोगों को क्या लगता है कि तुम कहाँ हो जो इस तरह की चीजों के बारे में गपशप कर रहे हो? तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है। गंभीर हो जाओ!” कुछ लोग अपना कर्तव्य करते समय बीच में कुछ देर का अवकाश लेते हैं, और जब कोई मसीह-विरोधी यह देखता है तो वह कहता है, “फिर से लापरवाह हो रहे हो, है ना? अब तुम्हें फौरन परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहिए और प्रार्थना करने के लिए उसके सामने आना चाहिए।” जब भाई-बहन एक-दूसरे से व्यावसायिक कौशल सीखने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, तो वे कहेंगे, “तुम लोगों को पहले परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए, और फिर बाद में, राय और विचारों का आदान-प्रदान करना चाहिए।” अगर किसी ने सभा शुरू होने से पहले प्रार्थना नहीं की है, तो मसीह-विरोधी उसे भला-बुरा कहेगा, उसे एक विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करेगा, और उसके बारे में कुछ न कुछ कहेगा। हर लिहाज से, वह दूसरों को यह दिखाता है कि वह बहुत आध्यात्मिक है, बहुत गंभीर है, सत्य के प्रति बहुत कर्तव्यनिष्ठ है और उसका अनुसरण करने के लिए बहुत प्रयास करता है, अपने कर्तव्य के प्रति बहुत जिम्मेदार है, हर रोज नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकता है, उसका एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन है, वह नियमित रूप से सभाओं में शामिल होता है, सभाओं में शामिल होने पर वह प्रार्थना करता है, परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, और नियत तरीके से संगति करता है, और वह कभी भी गपशप या घरेलू मामलों के बारे में बातें नहीं करता है। अगर कोई उससे कहता है, “तुम्हारे बाल लंबे हो रहे हैं। तुम्हें जाकर बाल कटवा लेने चाहिए। अभी गर्मी का मौसम है, इसलिए अगर तुम बाल कटवा लोगे तो तुम्हें ठंडक महसूस होगी,” तो वह जवाब देता है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मेरे बाल थोड़े लंबे हो रहे हैं। कार्य जरूरी है। अगर मैं अपने बालों को कुछ दिन और बढ़ने दूँ तो भी गर्मी के कारण मुझे कोई समस्या नहीं होगी।” कोई कहता है, “तुम्हारे कपड़े फट गए हैं। अगर तुम उन्हें पहनते रहोगे, तो लोग तुम पर हँसेंगे।” मसीह-विरोधी कहता है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्या परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हम जैसे लोग अपना मजाक उड़ाए जाने की फिक्र करते हैं? हम सभी ने बहुत कष्ट सहा है, और हमने इस पूरे समय बड़े लाल अजगर का अत्याचार सहन किया है। हम सांसारिक लोगों द्वारा अस्वीकार किए जाने के मार्ग पर चले हैं। अगर लोग मेरे फटे-पुराने कपड़ों के कारण मुझ पर हँसते हैं तो क्या हुआ? जब तक परमेश्वर मुझे स्वीकार करता है, तब तक सिर्फ यही बात मायने रखती है।” क्या ऐसा कहना अच्छी बात है? (वह आध्यात्मिक होने का दिखावा कर रहा है।) कुछ लोग देखते हैं कि मैं प्रश्न पूछता हूँ और एक धर्मोपदेश के बाद सभी को उन पर संगति करने के लिए कहता हूँ, लेकिन लोग संगति में उनका उत्तर नहीं दे पाते हैं, इसलिए वे यह सारांश पेश करते हैं : “मुझे यहाँ कुछ नया प्रकाश मिला है। परमेश्वर कभी व्यर्थ में कुछ नहीं खाता है, लेकिन हम पत्ता गोभी तक व्यर्थ में खाते हैं।” क्या तुमने पहले यह कहते हुए सुना है? (नहीं।) वे कहते हैं कि परमेश्वर कभी मुफ्त में कुछ नहीं खाता है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर लोगों को धर्मोपदेश देता है और इसलिए उसने अपना भोजन अर्जित कर लिया है। हम किसी भी चीज पर संगति नहीं कर सकते हैं, इसलिए हम पत्ता गोभी भी मुफ्त में खाते हैं। कुछ लोग जिनमें भेद पहचानने की क्षमता नहीं है, इसे सत्य मान लेते हैं और इसे हर जगह बताते फिरते हैं। वे यह नहीं मानते हैं कि आत्म-ज्ञान पर संगति करने को, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उससे प्रेम करने का प्रयास करने को, और ऐसे दूसरे सामान्य विषयों को जिन पर लोग अक्सर चर्चा करते हैं, आध्यात्मिक, उदात्त या नया प्रकाश माना जा सकता है। उनके लिए, सिर्फ उस व्यक्ति ने जो कहा है, वही नया प्रकाश है और वही उदात्त है! उस व्यक्ति ने जो कहा वह सही लगता है, लेकिन ध्यान से सोच-विचार करने पर, वह घिनौना लगता है और ऐसा कहना बेतुका है। यह उन लोगों की मनगढ़ंत बात है जिनके पास आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है, लेकिन फिर भी वे आध्यात्मिक होने का दिखावा करना चाहते हैं, अपने पास सत्य का ज्ञान होने का दिखावा करना चाहते हैं, और यह दिखावा करना चाहते हैं कि वे सत्य समझते हैं—क्या यह बकवास नहीं है? (हाँ।) वे डींग हाँकने वाले और खोखले शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना सीखने में विशेषज्ञता हासिल करते हैं, और वे सत्य का अभ्यास करने और वास्तविकता में प्रवेश करने को कोई महत्व नहीं देते हैं। इसलिए वे आध्यात्मिक सिद्धांत बोलना सीखने में विशेषज्ञता हासिल करते हैं और वे कभी भी यह देखने के लिए खुद का गहन-विश्लेषण नहीं करते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है या नहीं—क्या ये लोग ढोंगी नहीं हैं? परमेश्वर ऐसे लोगों से सबसे ज्यादा नफरत करता है।
जब ये तथाकथित आध्यात्मिक लोग इकट्ठा होते हैं, तो वे दार्शनिक चिंतन करते हैं, रहस्यों पर चर्चा करते हैं, खुद को जानने और परमेश्वर को जानने के बारे में बात करते हैं। वे जिन चीजों के बारे में बात करते हैं वे बहुत उदात्त होती हैं और सुनने में ये सांसारिक बातों जैसी बिल्कुल नहीं लगती हैं। वे लगातार बातें करते रहते हैं, विषय से हट जाते हैं और पूरी तरह से अप्रासंगिक चीजों के बारे में बात करते हैं। “पूरी तरह से अप्रासंगिक चीजों के बारे में बात करने” का क्या मतलब है? वे लगातार तब तक बोलते रहते हैं जब तक कि वे सरासर बकवास न करने लगें, वे यह देखने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि किसने परमेश्वर के वचन ज्यादा पढ़े हैं और वे परमेश्वर के वचनों के कितने अध्याय याद रख सकते हैं और उनका प्रचार कर सकते हैं, कौन दूसरों की तुलना में ज्यादा उदात्त और ज्यादा गहन तरीके से प्रचार कर सकता है, और कौन इस तरीके से प्रचार कर सकता है जो दूसरों की तुलना में ज्यादा प्रकाश लेकर आए। वे इन चीजों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, और इसे “आध्यात्मिकता में प्रतिस्पर्धा” कहा जाता है। कभी-कभी लोग इकट्ठे होकर गपशप करते हैं, और इस बारे में बात करते हैं कि हाल ही में उनका हाल-चाल कैसा रहा है या वे कुछ बाहरी मामलों के बारे में बात करते हैं। फिर वहाँ एक “आध्यात्मिक व्यक्ति” आता है, और जब वह सभी को इन चीजों के बारे में बात करते हुए सुनता है, तो वह परमेश्वर के वचनों की अपनी किताब लेता है और इसे पढ़ने के लिए एक कोना ढूँढ़ लेता है। क्या ऐसा व्यक्ति असामाजिक और अजीब नहीं लगता है? जब मैं किसी मुख्य विषय पर कुछ लोगों के साथ संगति करता हूँ, तो हम बीच में थोड़ा अवकाश लेते हैं और बाहरी मामलों के बारे में गपशप करते हैं—क्या यह सामान्य नहीं है? इस बातचीत के दौरान, कुछ लोग बिल्कुल कुछ नहीं बोलते हैं। उनका यह मतलब होता है कि, “जब तुम सत्य पर संगति करोगे तो मैं सुनूँगा, लेकिन अगर तुम गपशप करना शुरू कर दोगे तो मैं सुनना बंद कर दूँगा। अगर तुम लंबे समय तक गपशप करते रहोगे, तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा।” वे कहाँ चले जाते हैं? वे प्रार्थना करने के लिए कोई जगह ढूँढ़ लेते हैं, और आत्मविश्वास से कहते हैं, “हे परमेश्वर, कृपया मेरा दिल वापस ले लो। मुझे तुम्हारे सामने शांत रहने दो, मुझे अविश्वासी दुनिया के मामलों द्वारा आकर्षित या उनमें व्यस्त मत होने दो और मुझे सांसारिक रुझानों द्वारा भटकने मत दो।” क्या यह बहुत आध्यात्मिक है? वे मानते हैं कि ऐसा ही है। जब तुम घरेलू मामलों और हाल ही में तुम्हारी स्थिति कैसी रही है इस बारे में बात करते हो, तो उन्हें लगता है कि यह सत्य पर संगति करना नहीं है, इसमें परमेश्वर के वचनों का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है, और इसलिए वे वहाँ से चले जाते हैं और प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने पहुँच जाते हैं। क्या यह थोड़ा-सा अजीब नहीं है? यह उन लोगों का पाखंड है जो आध्यात्मिक बनने का प्रयास करते हैं—वे पाखंड करने में बहुत ही अच्छे हैं! पाखंड करने का उनका लक्ष्य दूसरों को यह दिखाना होता है कि वे आध्यात्मिक हैं, अपने अनुसरण के प्रति गंभीर हैं, हमेशा परमेश्वर के सामने रहते हैं, उनके शब्दों में प्रकाश निहित है, वे सत्य की खोज करते हैं, बाहरी सांसारिक दुनिया या पारिवारिक स्नेह से बाधित नहीं हैं, उनकी ऐसी कोई दैहिक जरूरतें नहीं हैं, वे सामान्य लोगों से अलग हैं, उन्होंने पहले से ही सांसारिक दुनिया और ऐसी निम्न-स्तरीय रुचियों को छोड़ दिया है। जब कुछ लोग गैर-विश्वासियों से थोड़ी देर बात करते हैं, तो वे कहते हैं, “यह सही नहीं है। ये गैर-विश्वासी बुरे लोग हैं। जैसे ही तुम उनसे बात करते हो और उनके मामलों में घुल-मिल जाते हो, तुम भीतर से परेशान होने लगते हो और तुम्हें परमेश्वर के सामने जल्दी से जल्दी अपना अपराध स्वीकार करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की जल्दी करनी चाहिए, उसके वचनों को अपने में समाहित होने और भरने देना चाहिए।” और इसलिए, जब वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने वाले लोगों, गैर-विश्वासियों, को देखते हैं, तो वे उनसे कतराते हैं और उनसे बात नहीं करते हैं। यहाँ तक कि वे सामान्य बातचीत भी नहीं करते हैं, और लोग उन्हें अजीब समझते हैं। उनका इस तरह से कार्य करने का आधार यह है कि, “सभी गैर-विश्वासी दानव होते हैं और हमें उनसे बात नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर दुष्ट लोगों से नफरत करता है, इसलिए अगर हम दानवों से मेलजोल रखेंगे और उनके पास जाएँगे, तो परमेश्वर भी इससे नफरत करेगा। परमेश्वर जिससे नफरत करता है, हमें उससे नफरत करनी चाहिए, और परमेश्वर जिसे नकारता है, हमें भी उसे नकारना चाहिए।” अगर वे किसी भाई या बहन को अपने परिवार के किसी गैर-विश्वासी सदस्य या अपने किसी गैर-विश्वासी दोस्त से बोलते हुए, दिल खोलकर बातचीत करते हुए या घरेलू मामलों पर बात करते हुए देखते हैं, तो वे उसके बारे में राय बना लेते हैं, और सोचते हैं, “वह एक अनुभवी विश्वासी है, जिसने कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है। वह गैर-विश्वासियों से दूर रहने का प्रयास नहीं करता है, बल्कि उनके बहुत पास चला जाता है। यह उसका परमेश्वर से विश्वासघात करना है, और जब वह किसी समस्या का सामना करेगा, तो वह निश्चित रूप से यहूदा बन जाएगा।” वे ऐसे लोगों को एक उपनाम दे देते हैं। कुछ लोगों के माता-पिता खुद परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन वे अपनी संतान के परमेश्वर में विश्वास रखने पर आपत्ति भी नहीं करते हैं। वे कभी-कभी अपने माता-पिता को फोन करके पूछते हैं कि उनका हाल-चाल कैसा है, या जब वे बीमार पड़ जाते हैं, तो वे उनकी देखभाल करने के लिए घर लौट जाते हैं—यह पूरी तरह से सामान्य है और परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता है। और ये आध्यात्मिक लोग—ये मसीह-विरोधी—क्या करते हैं? क्या वे चीजों को इसी तरह से देखते हैं? वे इस पर हंगामा करते हैं और कहते हैं, “तुम लोग आम तौर पर बहुत अच्छी तरह से बोलते हो और तुम दूसरों को उनके स्नेह-बंधनों से मुक्त होने और उनसे बाधित नहीं होने के लिए प्रेरित करते हो। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारे स्नेह-बंधन तो इससे भी ज्यादा मजबूत हैं। तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए तुम्हें उन्हें नकार देना चाहिए।” दूसरा व्यक्ति जवाब देता है, “मेरे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन वे मेरे रास्ते में भी नहीं आते हैं। वे मेरा बहुत समर्थन करते हैं।” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “चाहे वे तुम्हारा समर्थन करते हों, यह स्वीकार करने लायक नहीं है और तब भी वे दुष्ट लोग ही हैं। तुम अब भी उनके लिए खाना कैसे पका सकते हो?” दूसरा कहता है, “क्या यह सामान्य मानवीय स्नेह नहीं है? क्या अपने माता-पिता के लिए भोजन पकाना और उनके लिए कुछ संतानोचित प्रेम दिखाना सामान्य नहीं है? परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता है, तो तुम इसकी निंदा क्यों कर रहे हो?” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “परमेश्वर इतनी छोटी-सी बात के लिए खुद को परेशान नहीं करेगा! चूँकि परमेश्वर इसके लिए खुद को परेशान नहीं करेगा, इसलिए हमें अपना पक्ष दृढ़ता से रखना चाहिए और अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए। तुम लोगों ने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है और फिर भी तुम्हारे पास भेद पहचानने की क्षमता या आध्यात्मिक कद नहीं है, और तुम दुष्ट लोगों के साथ इतना अच्छा व्यवहार कर सकते हो—तुम्हारे स्नेह-बंधन बहुत मजबूत हैं!” वह इसकी भी निंदा करता है! दूसरे लोग चाहे कुछ भी करें, वह उनकी निंदा करता है और यह दिखाने के लिए उन्हें एक उपनाम दे देता है कि उसके पास आध्यात्मिक कद है, कि वह अपने अनुसरण में ईमानदार है, कि उसमें आस्था है, लेकिन अंत में जब उसके अपने परिवार के किसी सदस्य का निधन हो जाता है, तो वह इतने दिनों तक रोता रहता है कि वह बिस्तर से उठ तक नहीं पाता है और यहाँ तक कि अपनी आस्था को भी छोड़ देना चाहता है। कोई उससे पूछता है, “क्या तुम आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हो?” वह जवाब देता है, “क्या आध्यात्मिक लोग कमजोर नहीं हो सकते हैं? क्या मैं थोड़ी देर के लिए कमजोर नहीं हो सकता?” क्या यह कुतर्क नहीं है? बनावटी आध्यात्मिक लोग दिखावा करने की क्षमता रखते हैं, और यह पाखंड कहलाता है। वे दिखावा करते हैं कि उनमें कोई कमजोरी नहीं है, वे आज्ञाकारी हैं, उनकी परमेश्वर में आस्था है और वे परमेश्वर के प्रति वफादार हैं, अपनी शपथों को निभा सकते हैं, कष्ट सह सकते हैं और खुद को खपा सकते हैं, और ऐसे किसी भी तरह से व्यवहार नहीं करते हैं जिसे लोग शायद अनुपयुक्त या आदर्श के अयोग्य समझ लें। उनके बाहरी व्यवहार को देखते हुए, लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और उनमें कोई दोष नहीं निकाल पाते हैं, वे मूल रूप से ईसाई शालीनता के अनुरूप प्रतीत होते हैं, और यहाँ तक कि वे नकारात्मक या कमजोर भी प्रतीत नहीं होते हैं। जब वे किसी को कमजोर पड़ते हुए और नकारात्मक महसूस करते हुए देखते हैं, तो वे अक्सर उसे सख्ती से फटकार लगाते हैं, और कहते हैं, “तुम इतनी मामूली-सी बात पर कमजोर पड़ जाते हो—क्या इससे परमेश्वर को बहुत ठेस नहीं पहुँचती है? क्या तुम्हें जरा भी अंदाजा है कि अभी क्या समय हुआ है? परमेश्वर ने हमसे इतने सारे वचन कहे हैं, फिर भी तुम कमजोर कैसे पड़ सकते हो? तुम लोग परमेश्वर के दिल के बारे में इतना कम कैसे समझ सकते हो? तुम चाहे किसी भी समस्या का सामना करो, तुम्हें हमेशा प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने जाना चाहिए, परमेश्वर से प्रेम करना और उसके प्रति वफादार होना सीखना चाहिए, और तुम्हें समर्पण करना चाहिए और कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर तुम हमेशा अपने देह के प्रति विचारशील रहते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर रहे हो?” सुनने में ऐसा नहीं लगता है कि उसने यहाँ जो कुछ भी कहा है, उसमें कोई समस्या है, लेकिन यह सब कुछ खोखला है और लोगों की समस्याओं को नहीं सुलझा सकता है। वे कहते हैं, “क्या तुम्हें पता है कि अभी क्या समय हुआ है?”—क्या इसका लोगों के कमजोर महसूस करने से कोई लेना-देना है? क्या इसका विद्रोह करने से कोई लेना-देना है? लोगों के स्वभाव भ्रष्ट होते हैं और लोग अपने देह के भीतर रहते हैं, और लोग कभी भी कमजोर पड़ सकते हैं और विद्रोही बन सकते हैं।
मसीह-विरोधी आध्यात्मिक लोगों की, भाई-बहनों में सर्वश्रेष्ठ होने की, और ऐसे लोगों की भूमिका निभाना चाहते हैं, जो सत्य समझते हैं और जो कमजोर और अपरिपक्व लोगों की मदद कर सकते हैं। इस भूमिका को निभाने के पीछे उनका लक्ष्य क्या है? सबसे पहले, वे मानते हैं कि वे पहले ही देह और सांसारिक दुनिया से परे जा चुके हैं, कि वे सामान्य मानवता की कमजोरी को त्याग चुके हैं और खुद को सामान्य मानवता की दैहिक जरूरतों से मुक्त कर चुके हैं। वे मानते हैं कि परमेश्वर के घर में वे ऐसे लोग हैं जो महत्वपूर्ण कार्य स्वीकार कर सकते हैं, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हैं, और जिनके दिल परमेश्वर के वचनों से भरे हुए हैं। वे इस बात के लिए अपनी तारीफ करते हैं कि वे पहले से ही परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर चुके हैं और परमेश्वर को संतुष्ट कर चुके हैं, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो पाए हैं और उस अद्भुत गंतव्य को प्राप्त कर पाए हैं जिसका वादा परमेश्वर ने किया है। इसलिए वे अक्सर बहुत आत्मसंतुष्ट महसूस करते हैं और सोचते हैं कि वे बाकियों से कहीं बेहतर हैं। वे दूसरों को फटकारने, और दूसरों की निंदा करने और उन पर फैसले सुनाने के लिए उन शब्दों का उपयोग करते हैं जिन्हें वे अपने मन से याद रख सकते हैं और समझ सकते हैं। वे अक्सर दूसरों को सीमित करने और निर्देश देने के लिए ऐसे कुछ दृष्टिकोणों और कहावतों का भी उपयोग करते हैं जिनकी कल्पना वे अपनी धारणाओं में करते हैं, जिससे दूसरे लोग विनियमों को बनाए रखें और उनकी बात मानें, ताकि वे कलीसिया में अपने रुतबे की रक्षा कर सकें। उनका मानना है कि जब तक वे आध्यात्मिक सिद्धांतों के एक समूह का प्रचार कर सकते हैं, प्रचलित नारे लगा सकते हैं, अगुआई कर सकते हैं, आगे आकर कार्य स्वीकार करने के लिए इच्छुक हो सकते हैं, और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को बनाए रख सकते हैं, तब तक वे आध्यात्मिक लोग होंगे, और उनका रुतबा स्थिर रहेगा। इसलिए वे आध्यात्मिक लोग होने का दिखावा करते हैं और ऐसा होने के लिए अपनी तारीफ करते हैं, जबकि साथ ही वे सर्वशक्तिमान, पूरी तरह से सक्षम और परिपूर्ण लोग होने का दिखावा करते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या वे टाइप कर सकते हैं, तो वे कहते हैं, “हाँ, टाइप करना मेरे लिए मुश्किल नहीं है।” तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम मशीनें ठीक कर सकते हो?” तो वे कहते हैं, “सभी मशीनों के सिद्धांत एक जैसे ही होते हैं। हाँ, मैं उन्हें ठीक कर सकता हूँ।” तुम पूछते हो, “क्या तुम ट्रैक्टर ठीक कर सकते हो?” इस पर वे कहते हैं, “क्या उस अपरिष्कृत मशीन को ठीक करना मशीनों को ठीक कर पाने के रूप में गिना जाता है?” तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम खाना पका सकते हो?” वे कहते हैं, “मैं खाना खाता हूँ, तो यकीनन मैं खाना पका भी सकता हूँ!” तुम पूछते हो, “क्या तुम हवाई जहाज उड़ा सकते हो?” वे कहते हैं, “मैंने कभी सीखा तो नहीं है, लेकिन अगर मैंने इसे सीखा, तो मैं यह कर सकता हूँ। मैं हवाई जहाज का कप्तान बन सकता हूँ, कोई समस्या नहीं है।” उन्हें लगता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, वे हर चीज में अच्छे हैं। किसी का कंप्यूटर खराब हो जाता है और वह उन्हें इसे ठीक करने के लिए कहता है। वे कहते हैं कि वे इसे आसानी से ठीक कर सकते हैं, लेकिन उन्हें इस बारे में वाकई कुछ पता नहीं होता है और वे नहीं जानते हैं कि इसे कैसे ठीक करना है, और अंत में, इसे बार-बार ठीक करने का प्रयास करने के बाद होता यह है कि वे कंप्यूटर में मौजूद सारी जानकारी मिटा देते हैं। जिस व्यक्ति का वह कंप्यूटर होता है वह उनसे पूछता है, “तुम इसे ठीक कर सकते हो या नहीं?” और वे जवाब देते हैं, “मैंने पहले कंप्यूटर ठीक किए हैं, लेकिन अब मैं थोड़ा-सा भूल गया हूँ कि इसे कैसे करना है। बेहतर होगा कि तुम किसी और से इसे ठीक करवा लो।” वे दिखावा करने में बहुत अच्छे हैं, है ना? इस तरह के लोगों में महादूत जैसा स्वभाव होता है; वे कभी यह नहीं कह सकते हैं कि “मुझे नहीं पता कि इसे कैसे करना है,” या “मैं यह नहीं कर सकता,” या “मैं इसे करने में अच्छा नहीं हूँ,” या “मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा है,” या “मैं नहीं जानता”—वे ऐसी बातें कभी नहीं कह सकते हैं। चाहे मामला कुछ भी हो, अगर तुम लोग उनसे इस बारे में पूछते हो, तो चाहे उन्हें नहीं भी पता हो कि इसे कैसे करना है और उन्होंने इसे पहले कभी देखा भी ना हो, तो भी उन्हें कारण और बहाने पेश करने ही होंगे, ताकि तुम लोग गलती से यह मान लो कि वे हर चीज में अच्छे हैं, सब कुछ करना जानते हैं, सब कुछ कर सकते हैं, और सब कुछ करना संभव है। वे किस तरह का व्यक्ति बनना चाहते हैं? (अतिमानव, पूरी तरह से सक्षम लोग।) वे पूरी तरह से सक्षम लोग बनना चाहते हैं, प्रकाश के स्वर्गदूत होने का दिखावा करना चाहते हैं—क्या वे इस तरह की चीज नहीं हैं? क्योंकि मसीह-विरोधी हमेशा यह दिखावा करना चाहते हैं कि वे हर चीज में अच्छे हैं, इसलिए जब तुम उन्हें दूसरों के साथ मिलकर सहयोग करने, विचारों का आदान-प्रदान करने, चर्चा करने, संगति करने और दूसरों के साथ मुद्दों पर बातचीत करने के लिए कहते हो, तो वे ऐसा नहीं कर पाते हैं। वे कहते हैं, “मुझे अपने साथ सहयोग करने के लिए किसी की जरूरत नहीं है। मुझे सहायक की जरूरत नहीं है। मुझे कोई भी चीज करने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं है। मैं इसे अपने आप कर सकता हूँ, मुझे पता है कि सब कुछ कैसे करना है। मैं पूरी तरह से सक्षम हूँ, और ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं नहीं कर सकता हूँ, ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे मैं हासिल नहीं कर सकता हूँ, और ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे मैं पूरा नहीं कर सकता हूँ। मैं कौन हूँ? तुम लोग किसी भी चीज को करने का तरीका नहीं जानते हो, और अगर तुम्हें किसी चीज को करने का तरीका आता भी है, तो तुम उसमें कुशल नहीं हो। भले ही मैंने सिर्फ एक काम करना सीखा हो, लेकिन मुझे सारी चीजों को करने का तरीका आता है। अगर मैं एक चीज में कुशल हूँ, तो इसका मतलब है कि मैं सभी चीजों में कुशल हूँ। मुझे लेख लिखना आता है और मैं विदेशी भाषाएँ बोल सकता हूँ। भले ही मैं इसी समय कोई विदेशी भाषा नहीं बोल सकता हूँ, लेकिन अगर मैं पढ़ाई करूँ, तो मुझे पाँच विदेशी भाषाएँ सीखने में कोई समस्या नहीं होगी।” कोई उनसे पूछता है कि क्या वे फिल्मों में अभिनय कर सकते हैं, गा सकते हैं और नाच सकते हैं, और वे कहते हैं कि वे ये सभी चीजें कर सकते हैं। वे डींगें हाँकने में माहिर हैं, है ना? वे दिखावा करते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उन्हें सभी चीजों को करने का तरीका आता है—वे वाकई महादूत की प्रकृति वाले हैं। कोई उनसे पूछता है कि क्या वे इतने वर्षों में परमेश्वर में विश्वास रखने के दौरान कभी कमजोर पड़े हैं, और वे जवाब देते हैं, “इसमें कमजोर पड़ने की क्या बात है? परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट रूप से बोले गए हैं। हमें कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर हम कमजोर पड़ते हैं, तो इसका मतलब है कि हम परमेश्वर को निराश कर रहे हैं। हमें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए 120 प्रतिशत प्रयास करना चाहिए!” दूसरा व्यक्ति पूछता है, “क्या इतने वर्षों पहले घर छोड़ने के बाद कभी तुम्हें घर की याद आई है? क्या घर की याद आने पर तुम रोते हो?” वे जवाब देते हैं, “इसमें रोने की क्या बात है? परमेश्वर मेरे दिल में है। जब मैं परमेश्वर के बारे में सोचता हूँ, तो फिर मुझे घर की याद नहीं आती है। मेरे परिवार के सभी गैर-विश्वासी सदस्य दानव और शैतान हैं। मैं उन्हें शापित किए जाने के लिए प्रार्थना करता हूँ।” दूसरा व्यक्ति उनसे पूछता है, “क्या तुम अपनी आस्था के वर्षों में कभी पथभ्रष्ट हुए हो?” वे जवाब देते हैं, “परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट रूप से बोले गए हैं, तो कोई पथभ्रष्ट कैसे हो सकता है? जो पथभ्रष्ट हो जाते हैं, वे विवेकहीन लोग होते हैं जिन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। क्या मेरी जैसी काबिलियत वाला व्यक्ति पथभ्रष्ट हो सकता है? क्या मैं गलत मार्ग अपना सकता हूँ? बिल्कुल नहीं।” वे मानते हैं कि वे हर चीज में अच्छे हैं, बाकी सभी से बेहतर हैं। वे उन लोगों के बारे में क्या सोचते हैं जो नकारात्मक और कमजोर पड़ जाते हैं? वे कहते हैं, “जो लोग नकारात्मक और कमजोर पड़ जाते हैं उनके पास करने के लिए कुछ बेहतर नहीं होता है।” क्या मामला वाकई ऐसा है? थोड़ी नकारात्मकता और कमजोरी सामान्य है, जबकि कुछ नकारात्मकता और कमजोरी के पीछे कोई कारण होता है, तो वे इस समस्या को यह कहकर कैसे समझा सकते हैं कि इन लोगों के पास “करने के लिए कुछ बेहतर नहीं है”? मसीह-विरोधी इस तरह से आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, हर चीज कर पाने का दिखावा करते हैं, खुद में कोई भी कमी या कमजोरी नहीं होने का दिखावा करते हैं, और इससे भी ज्यादा वे इस बात का दिखावा करते हैं कि वे विद्रोही नहीं हैं और उन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया है।
चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपना गुरूर और गर्व बरकरार रखना चाहते हैं, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो इससे उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति होगी—फायदे से ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और श्रद्धा खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और रुतबा किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे। जब भी वे किसी समस्या का सामना करते हैं, तो वे सुर्खियों में आने और खुद को दिखाने और अपना प्रदर्शन करने की पहल करते हैं। जैसे ही कोई समस्या होती है और परिणाम आते हैं, वे भागकर कहीं छिप जाते हैं या किसी और पर जिम्मेदारी डालने का प्रयास करते हैं। अगर वे ऐसी किसी समस्या का सामना करते हैं जिसे वे समझते हैं, तो वे जो कर सकते हैं उसका तुरंत दिखावा करने लगते हैं और दूसरों को अपने बारे में बताने के अवसर ले लेते हैं, ताकि लोग देख सकें कि उनके पास खूबियाँ और खास कौशल हैं और वे उनके बारे में ऊँची राय बना सकें और उनकी आराधना कर सकें। अगर कोई बड़ी घटना घटती है, और कोई उनसे पूछता है कि वे इस घटना को कैसे समझते हैं, तो वे अपने विचार प्रकट करने से कतराते हैं, और इसके बजाय दूसरों को पहले बोलने देते हैं। उनके संकोच के अपने कारण होते हैं : ऐसा नहीं है कि उनका अपना कोई विचार नहीं होता है, लेकिन वे डरते हैं कि उनका विचार कहीं गलत ना हो, कि अगर उन्होंने इसे सबके सामने रख दिया, तो दूसरे लोग इसका खंडन करेंगे, और उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी और इसलिए वे अपने विचार व्यक्त नहीं करते हैं; या उनके पास कोई विचार ही नहीं होता है और वे उस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते हैं, वे यह सोचकर मनमाने ढंग से बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं कि उनकी गलती पर लोग हँसेंगे—इसलिए मौन ही उनका एकमात्र विकल्प होता है। संक्षेप में, वे इसलिए अपने विचार व्यक्त करने को तैयार नहीं होते हैं क्योंकि वे डरते हैं कि वे अपनी असलियत प्रकट कर देंगे, कि लोग यह देख लेंगे कि वे दरिद्र और दयनीय हैं, और इससे दूसरों के मन में उनकी जो छवि है वह प्रभावित हो जाएगी। इसलिए, जब बाकी लोग अपने नजरिए, विचारों और ज्ञान पर संगति कर लेते हैं, तो वे कुछ ऊँचे और ज्यादा मजबूत दावों को पकड़ लेते हैं, जिन्हें फिर वे ऐसे पेश करते हैं मानो ये उनके अपने नजरिए और अपनी समझ हों। वे उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं और सबके साथ उन पर संगति करते हैं और इस तरह से दूसरों के दिलों में ऊँचा रुतबा हासिल कर लेते हैं। मसीह-विरोधी बेहद चालाक होते हैं : जब कोई दृष्टिकोण व्यक्त करने का समय आता है, तो वे कभी भी दूसरों से खुलकर बात नहीं करते हैं और उन्हें अपनी वास्तविक दशा नहीं दिखाते हैं, या लोगों को यह नहीं जानने देते हैं कि वे वास्तव में क्या सोचते हैं, उनकी योग्यता कैसी है, उनकी मानवता कैसी है, समझने की उनकी शक्तियाँ कैसी हैं, और क्या उन्हें सत्य का सही ज्ञान है। और इसलिए, डींग मारने और आध्यात्मिक तथा एक आदर्श व्यक्ति होने का दिखावा करने के साथ-साथ, वे अपने असली चेहरे और वास्तविक आध्यात्मिक कद को ढकने की भी पूरी कोशिश करते हैं। वे भाई-बहनों के सामने कभी भी अपनी कमजोरियों को प्रकट नहीं करते हैं, और ना ही वे कभी भी अपनी खुद की कमियों और दोषों को जानने का प्रयास करते हैं; इसके बजाय, वे उन्हें ढकने का पूरा प्रयास करते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, “तुमने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, क्या तुम्हें कभी परमेश्वर के बारे में कोई संदेह हुआ है?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” उनसे पूछा जाता है, “क्या तुम कभी परमेश्वर के लिए खपाने में अपना सब कुछ त्याग देने पर पछताए हो?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” “जब तुम बीमार थे, तो क्या तुम परेशान रहते थे और क्या तुम्हें घर की याद सताती थी?” और वे जवाब देते हैं, “कभी नहीं।” तो तुम देखते हो, मसीह-विरोधी खुद को बहुत पक्के, दृढ़-इच्छाशक्ति वाले, अहम का त्याग करने और कष्ट सहने में सक्षम व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो बस निर्दोष, त्रुटिरहित या समस्याविहीन हो। अगर कोई उनकी भ्रष्टता और कमियों की ओर इशारा करता है, उनके साथ किसी सामान्य भाई या बहन के रूप में बराबरी का व्यवहार करता है, और उनके साथ खुलकर सहभागिता करता है, तो वे मामले को कैसे देखते हैं? वे स्वयं को सच्चा और सही ठहराने, खुद को सही साबित करने और अंततः लोगों को यह दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं कि उनके साथ कोई समस्या नहीं है, और वे एक परिपूर्ण, आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। क्या यह सब कुछ पाखंड नहीं है? जो भी लोग खुद को निष्कलंक और पवित्र समझते हैं, वे सभी ढोंगी हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि वे सभी ढोंगी हैं? मुझे बताओ, क्या भ्रष्ट मनुष्यों में कोई निर्दोष है? क्या वाकई कोई पवित्र है? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं है। मनुष्य निर्दोष कैसे हो सकता है जब उसे शैतान ने इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है? इसके अलावा, इंसान सहज रूप से सत्य से युक्त नहीं होता है। सिर्फ परमेश्वर पवित्र है; सारी भ्रष्ट मानवता मलिन है। अगर कोई व्यक्ति किसी पवित्र व्यक्ति का रूप धारण करता है और कहता है कि वह निष्कलंक है, तो वह व्यक्ति कैसा होगा? वह एक दानव, एक शैतान, एक महादूत होगा—वह पक्के तौर पर मसीह-विरोधी होगा। सिर्फ कोई मसीह-विरोधी ही निर्दोष और पवित्र व्यक्ति होने का दावा करेगा। क्या मसीह-विरोधी खुद को जानते हैं? (नहीं।) और, चूँकि वे खुद को नहीं जानते हैं, तो क्या वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करेंगे? (नहीं।) क्या ऐसे मसीह-विरोधी हैं जो अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करेंगे? (हाँ।) किस तरह के लोग ऐसा करते हैं? (ढोंगी लोग।) सही कहा। ये लोग खुद को जानने का दिखावा करते हैं, और राई का पहाड़ बनाते हैं और खुद को बहुत सारे बड़े-बड़े उपनाम देते हैं और कहते हैं कि वे शैतान और राक्षस हैं और दिखावा करते हैं कि उन्हें अपने बारे में गहन ज्ञान है। वे झूठमूठ के आध्यात्मिक लोग हैं, है ना? क्या वे ढोंगी नहीं हैं? जब वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करते हैं, तो क्या वे वाकई खुद को जानते हैं? (नहीं।) तो वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में क्या कहते हैं? (जब मसीह-विरोधी अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करते हैं तो वे अपनी वास्तविक परिस्थिति के बारे में बात नहीं करते हैं, वे सिर्फ खोखले शब्द और सिद्धांत के शब्द बोलते हैं, जो बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं होते हैं; ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पास बहुत गहन ज्ञान है, लेकिन उनमें पश्चात्ताप का कोई चिह्न नहीं होता है।) क्या यह अपने बारे में वास्तविक ज्ञान है? यहाँ कोई सच्चा पश्चात्ताप नहीं है, तो क्या उन्होंने खुद से नफरत करने का परिणाम हासिल कर लिया है? जब यहाँ कोई पश्चात्ताप नहीं है और खुद से कोई नफरत नहीं है, तो इसका अर्थ यह है कि वे सही मायने में खुद को नहीं जानते हैं। मसीह-विरोधी जिस आत्म-ज्ञान की बात करते हैं, उसमें सिर्फ वही चीजें शामिल होती हैं जो उनके बारे में हर किसी को मालूम हैं, जो हर किसी को दिखाई देती हैं। वे कुतर्क और आत्म-औचित्य का भी सहारा लेते हैं ताकि सबको यह महसूस करवा सकें कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, और इसके बावजूद भी अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बोल सकें, ताकि लोग उनके बारे में और भी ऊँची राय बनाएँ। यह देखकर कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, फिर भी वे आत्म-चिंतन कर रहे हैं और खुद को जानने का प्रयास कर रहे हैं, लोग यही सोचते हैं कि “अगर वह वाकई कुछ गलत करता भी है, तो उसमें खुद को जानने की और ज्यादा संभावना होगी। वह कितना धर्मनिष्ठ है!” मसीह-विरोधी का ऐसा करने का क्या परिणाम होता है? वह लोगों को गुमराह करता है। वह सही मायने में अपने खुद के भ्रष्ट स्वभाव का गहन-विश्लेषण नहीं करता है या उसे नहीं समझता है ताकि दूसरे लोग इससे सबक सीख सकें; बल्कि, वह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करने का उपयोग दूसरों से अपने बारे में और ऊँची राय बनवाने के लिए करता है। इस कार्य की क्या प्रकृति है? (लोगों को गुमराह करने के लिए अपनी गवाही देना।) सही कहा। वह लोगों को गुमराह कर रहा है। इसे खुद को जानना कैसे मान सकते हैं? यह पूरी तरह से धोखा है, बस। वह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करने का उपयोग लोगों को गुमराह करने के लिए कर रहा है, ताकि लोग यह सोचें कि वह आध्यात्मिक है, और खुद को जानता है, जिससे लोग उसके बारे में ऊँची राय बनाएँ और उसकी आराधना करें। यह एक नीच और घिनौना अभ्यास है—और यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है।
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।