मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग दस) खंड दो

देखने में, मसीह-विरोधियों की बातें हर तरह से दयालुतापूर्ण, सुसंस्कृत और विशिष्ट प्रतीत होती हैं। चाहे जो भी सिद्धांत का उल्लंघन करे, या कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा करे, मसीह-विरोधी उन लोगों को उजागर या उनकी आलोचना नहीं करते; वे आँखें मूँद लेते हैं ताकि लोग यह सोचें कि वे हर मामले में उदार-हृदय हैं। लोग चाहे किसी भी भ्रष्टता का खुलासा करते हों और जो भी बुरे कर्म करते हों, मसीह-विरोधी उन्हें समझते और उनके प्रति सहनशील होते हैं। वे क्रोधित नहीं होते या आगबबूला नहीं होते, जब वे कुछ गलत करते हैं और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं तो वे लोगों को नाराज नहीं करेंगे और उन्हें दोष नहीं देंगे। चाहे कोई भी बुराई करे और कलीसिया के काम में बाधा डाले, वे कोई ध्यान नहीं देते, मानो इससे उनका कोई लेना-देना न हो और वे इस कारण लोगों को कभी नाराज नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा चिंता किस बात की करते हैं? इस बात की कि कितने लोग उनका सम्मान करते हैं और जब वे कष्ट झेलते हैं तो कितने लोग उन्हें सम्मान देते हैं और इसके लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। मसीह-विरोधी मानते हैं कि कष्ट कभी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए; चाहे वे कोई भी कठिनाई सहें, कितनी भी कीमत चुकाएँ, कोई भी अच्छे कर्म करें, दूसरों के प्रति कितने भी दयालु, विचारशील और स्नेही हों, यह सब दूसरों के सामने किया जाना चाहिए, ताकि अधिक लोग इसे देख सकें। और ऐसा करने का उनका क्या उद्देश्य होता है? लोगों का समर्थन पाना, अपने कार्यों, आचरण और चरित्र के प्रति ज्यादा लोगों के दिलों में स्वीकृति बना पाना, शाबाशी पाना। यहाँ तक कि ऐसे मसीह-विरोधी भी हैं, जो इस बाहरी अच्छे व्यवहार के माध्यम से अपनी छवि “एक अच्छे व्यक्ति” के रूप में स्थापित करने की कोशिश करते हैं, ताकि अधिक लोग मदद की तलाश में उनके पास आएँ। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति कमजोर पड़ जाता है और विश्वास करता है कि अधिकांश लोग प्रेमविहीन हैं, कि वे बहुत स्वार्थी हैं और दूसरों की मदद करना पसंद नहीं करते और गर्मजोशी से भरे नहीं हैं और तब वे उस “अच्छे व्यक्ति” के बारे में सोचते हैं जो असल में मसीह-विरोधी होता है। या फिर, किसी को अपने काम में मुश्किल आती है और वह नहीं जानता कि इसका समाधान कैसे किया जाए। वह किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में नहीं सोच पाता जो उसकी मदद कर सके और जिस पहले व्यक्ति के बारे में वह सोच पाता है वह यही “अच्छा व्यक्ति” होता है जोकि असल में एक मसीह-विरोधी होता है। कोई व्यक्ति अब अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहता है, वह सांसारिक लक्ष्य पाना चाहता है, सत्ता और धन पाना चाहता है और अपना जीवन जीना चाहता है और भले ही वह बहुत निराश और कमजोर हो जाता है, वह परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करता या किसी के साथ संगति नहीं करता और इस परिस्थिति में वह उस “अच्छे व्यक्ति” के बारे में सोचता है जो असल में एक मसीह-विरोधी होता है। जैसे-जैसे चीजें इस तरह से आगे बढ़ती हैं, समस्याओं का सामना होने पर ये लोग परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या अब परमेश्वर के वचनों का पाठ नहीं करते, बल्कि मदद के लिए इस “अच्छे व्यक्ति” पर भरोसा करना चाहते हैं जो असल में मसीह-विरोधी होता है। वे केवल इस खुशामदी व्यक्ति से ही दिल खोलकर अपनी बात कहते हैं और इस खुशामदी से अपनी कठिनाइयों का समाधान करने को कहते हैं; वे इस मसीह-विरोधी का समर्थन और अनुसरण करते हैं। और क्या इस तरह इस मसीह-विरोधी का लक्ष्य हासिल नहीं होता? जब मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य हासिल कर लेता है तो क्या कलीसिया में उसका रुतबा साधारण लोगों की तुलना में ऊँचा नहीं हो जाता? और जब वह पहले स्थान पर आ जाए और कलीसिया में बड़ा स्थान पा ले, तब क्या वह सचमुच संतुष्ट हो जाता है? नहीं, वह संतुष्ट नहीं होता। वह कौन-से लक्ष्य हासिल करना चाहता है? वह चाहता है कि और ज्यादा लोग उसे स्वीकृति दें, उसे ऊँचा सम्मान दें और उसकी पूजा करें, लोगों के दिलों में उसका स्थान बने और खासकर जब परमेश्वर में आस्था रखने में लोगों को कठिनाई हो और उनके पास दूसरा कोई विकल्प न हो तो लोग उसकी ओर देखें, उस पर भरोसा करें और उसका अनुसरण करें। यह मसीह-विरोधी की पहले स्थान पर पहुँचने और कलीसिया में बड़ा स्थान पाने की इच्छा से भी कहीं ज्यादा गंभीर बात है। इसके विषय में इतनी गंभीर बात क्या है? (वे लोगों के दिल में जगह बनाने के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करते हैं। वे सीधे-सीधे परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं।) (ऐसे लोगों का भेद पहचानना कठिन होता है। वे दूसरों को गुमराह करने के लिए सतही तौर पर अच्छा व्यवहार करते हैं जिसके कारण किसी समस्या के सामने आने पर लोग आगे परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश नहीं करते या सत्य पर संगति नहीं करते, बल्कि इसकी जगह उन मसीह-विरोधियों पर निर्भर रहते हैं और उनकी ओर देखते हैं, अपनी समस्या का समाधान उनसे करवाते हैं तथा उनके वचनों को सत्य मानते हैं, जिसके कारण ये लोग परमेश्वर से और अधिक दूर होते चले जाते हैं। यह अधिक कपटपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण तरीका है।) यह सही है, तुम सब लोगों ने महत्वपूर्ण बिंदु को समझा और उसका उल्लेख किया है, जो यह है कि मसीह-विरोधी लोगों के दिलों में एक जगह रखते हैं और वहाँ गहराई तक पैठ बनाते हैं और परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं। कोई कहता है, “अगर मैं परमेश्वर की तलाश में जाऊँ तो मैं उसे नहीं पा सकता; मैं उसे नहीं देख सकता। अगर मैं परमेश्वर के वचन खोजने की कोशिश करूँ तो किताब इतनी मोटी है, उसमें बहुत सारे वचन हैं और उत्तर ढूँढ़ना कठिन है। लेकिन अगर मैं इस व्यक्ति के पास जाता हूँ तो मुझे तुरंत जवाब मिल जाता है; यह सुविधाजनक और लाभदायक दोनों है।” देखा तुमने, उनके क्रियाकलापों से लोग पहले से ही न केवल मन ही मन उनकी पूजा करने लगे हैं, बल्कि उनके लिए वहाँ एक जगह भी बन गई है। वे परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं—इन चीजों को करने के पीछे मसीह-विरोधी का यही लक्ष्य है। यह स्पष्ट है कि ये काम करके मसीह-विरोधी ने पहले ही प्रारंभिक सफलता प्राप्त कर ली है; इस मसीह-विरोधी के लिए इन भेद न पहचान पाने वाले लोगों के हृदय में पहले से ही स्थान है और कुछ लोग पहले से ही उसकी पूजा और उसका आदर करते हैं। मसीह-विरोधी यही लक्ष्य हासिल करना चाहता है। अगर किसी को कोई समस्या होती है और वह मसीह-विरोधी को खोजने की जगह परमेश्वर से प्रार्थना करता है तो मसीह-विरोधी नाखुश हो जाता है और सोचता है, “तुम हमेशा परमेश्वर के पास क्यों जाते हो? तुम हमेशा परमेश्वर को क्यों याद करते हो? तुम मेरे पास क्यों नहीं आते या मुझे क्यों नहीं याद करते? मैं बहुत विनम्र और धैर्यवान हूँ, मैं चीजों का त्याग कर सकता हूँ और अपने को कितना खपा सकता हूँ और मैं परोपकार के लिए दान करता हूँ तो तुम मेरे पास क्यों नहीं आते? मैं तुम्हारी कितनी मदद करता हूँ। तुममें कोई जमीर क्यों नहीं है?” वह अप्रसन्न और परेशान हो जाता है और उसे गुस्सा आता है—उस व्यक्ति पर और परमेश्वर पर गुस्सा आता है। अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, वह दिखावा करता रहता है, वह परोपकार के लिए दान करता रहता है और धैर्यवान तथा सहनशील बना रहता है, वह विनम्र दिखाई देता है, दयालुतापूर्वक बात करता है, कभी दूसरों का दिल नहीं दुखाता और जब लोग स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे होते हैं तो वह अक्सर उन्हें सांत्वना प्रदान करता है। कोई कहता है : “मैं विद्रोही हूँ; मैं दानव और शैतान हूँ।” वह जवाब देता है : “तुम दानव या शैतान नहीं हो। यह बस एक छोटी-सी समस्या है। खुद को इतना नीचे मत गिराओ और इतना कम मत आँको। परमेश्वर ने हमें ऊँचा उठाया है; हम साधारण लोग नहीं हैं और तुम्हें खुद को छोटा नहीं समझना चाहिए। तुम मुझसे कहीं बेहतर हो; मैं तुमसे ज्यादा भ्रष्ट हूँ। अगर तुम दानव हो, तो मैं एक बुरा दानव हूँ। अगर तुम बुरे दानव हो तो मुझे तो नरक में जाना होगा और नरक का दुख भोगना पड़ेगा।” वह लोगों की मदद इस तरह करता है। अगर कोई स्वीकारता है कि उसने परमेश्वर के घर के हित में या कलीसिया के काम में कोई क्षति पहुँचाई है तो मसीह-विरोधी उससे कहता है : “अपना कर्तव्य निभाते समय कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाना और थोड़ा भटक जाना कोई बड़ी बात नहीं है। मैंने भी पहले तुमसे कहीं ज्यादा नुकसान पहुँचाया है और मैं कहीं ज्यादा विकृत रास्तों से गुजरा हूँ। बस भविष्य में अपने काम करने के तरीके में बदलाव करो, यह कोई समस्या नहीं है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा जमीर इसे सहन नहीं कर सकता तो मेरे पास कुछ पैसे हैं और मैं तुम्हारे बदले उस नुकसान की भरपाई कर दूँगा, इसलिए परेशान मत हो। अगर भविष्य में तुम्हें कोई समस्या आती है तो सीधे मेरे पास आओ और मैं तुम्हारी मदद करने की हर संभव कोशिश करूँगा और मुझसे जो भी हो सकेगा, मैं तुरंत करूँगा।” उसमें इस तरह की “व्यक्तिगत निष्ठा” की भावना होती है, लेकिन वह ऐसा वास्तव में किस लिए कर रहा है? क्या वह वास्तव में तुम्हारी मदद कर रहा है? वह तुम्हें नुकसान पहुँचा रहा है, तुम्हें खाई में धकेल रहा है—तुम शैतान के प्रलोभन में पड़ गए हो। वह तुम्हारे लिए गड्ढा खोदता है और तुम सीधे उसमें कूद जाते हो; तुम जाल में फँस जाते हो और फिर भी सोचते हो कि सब बढ़िया है और तुम जान भी नहीं पाते कि तुम्हें इस मसीह-विरोधी ने बर्बाद कर दिया—इतनी मूर्खता! शैतान और मसीह-विरोधी इसी तरह लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं। मसीह-विरोधी कहता है : “अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों का थोड़ा-सा ध्यान रखो और भविष्य में थोड़ा सावधान रहो तो कोई दिक्कत नहीं है। इस मामले को सुधारा जा सकता है, कोई भी जानबूझकर ऐसा नहीं करेगा। हममें से कौन पूर्ण व्यक्ति है? हममें से कोई भी पूर्ण नहीं है; हम सभी भ्रष्ट हैं। मैं तुमसे बहुत ज्यादा बुरा था। चलो, हम भविष्य में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें। इसके अलावा, भले ही परमेश्वर के घर को कुछ नुकसान हुआ हो, परमेश्वर उसे याद नहीं रखेगा। परमेश्वर मनुष्य के प्रति बहुत क्षमाशील और सहिष्णु है। अगर हम एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता दिखा सकते हैं तो क्या परमेश्वर को और भी अधिक सहिष्णु होने में समर्थ नहीं होना चाहिए? यदि परमेश्वर कहता है कि वह हमारे अपराधों को याद नहीं रखेगा तो फिर हम आगे अपराधी नहीं रह जाते हैं।” किसी व्यक्ति ने चाहे कितनी भी बड़ी गलती की हो, मसीह-विरोधी यह दिखाने के लिए सिर्फ हँसी-मजाक करते हुए उस गलती को कम करके आँकता है और अनदेखा कर देता है, कि उसका दिल बहुत बड़ा है और वह बहुत दयालु, महान और सहनशील है। इसके विपरीत, इससे लोग गलती से यह विश्वास करने लगते हैं कि परमेश्वर अपने कथनों में हमेशा लोगों की गलतियाँ उजागर करता है, हमेशा लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का बतंगड़ बनाता है और हमेशा लोगों में मीनमेख निकालता है। यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है या विद्रोह करता है तो परमेश्वर उसकी काट-छाँट करता है, उसका न्याय करता है और उसे ताड़ना देता है और ऐसा लगता है कि वह लोगों के प्रति विचारशील नहीं है। जबकि, मसीह-विरोधी सभी परिस्थितियों में लोगों के प्रति सहिष्णु बना रह सकता है और उन्हें क्षमा कर सकता है; वह बहुत महान और सम्मानित व्यक्ति है। क्या यह ऐसा ही नहीं है? कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कहते हैं, “अविश्वासियों में एक कहावत है : ‘समृद्ध और बड़े परिवार में, थोड़ी-बहुत बर्बादी से कोई फर्क नहीं पड़ता।’ परमेश्वर का घर बहुत बड़ा है और परमेश्वर प्रचुर आशीष देता है। थोड़ी-बहुत बर्बादी होना कोई बड़ी बात नहीं है; परमेश्वर हमें बहुत कुछ देता है। क्या हमने बहुत कुछ बर्बाद नहीं किया है? और तब परमेश्वर ने हमारे साथ कुछ किया है क्या? क्या परमेश्वर ने यह सब बर्दाश्त नहीं किया है? मनुष्य कमजोर और भ्रष्ट है और परमेश्वर ने यह बहुत पहले ही देख लिया था, इसलिए यदि उसने यह देख लिया है तो वह हमें दंडित क्यों नहीं करता है? इससे सिद्ध होता है कि परमेश्वर धैर्यवान और दयावान है!” यह किस तरह की बात है? वे ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं, जो सही लगें और लोगों की धारणाओं के अनुरूप हों, जिससे लोगों को भ्रमित किया और लालच में पड़ने को मजबूर किया जा सके, उनकी दृष्टि को बिगाड़ा जा सके और उन्हें गुमराह किया जा सके, जिससे वे परमेश्वर को समझने में गलती करें, ताकि उनमें परमेश्वर के प्रति समर्पण की थोड़ी-सी भी इच्छा या चाह न बचे। मसीह-विरोधियों द्वारा उकसाने, गुमराह किए जाने और बहकाए जाने के कारण, लोगों में जो थोड़ा-बहुत जमीर होता है, वे वह भी गँवा बैठते हैं और वे सभी मसीह-विरोधियों की आज्ञा का पालन और उनके प्रति समर्पण करना शुरू कर देते हैं।

दूसरे लोगों के आसपास होने पर मसीह-विरोधी दिखावा करने में विशेष रूप से निपुण होते हैं। फरीसियों की तरह ही, वे बाहर से लोगों के प्रति बहुत सहिष्णु और धैर्यवान, विनम्र और अच्छी प्रकृति वाले दिखाई देते हैं—वे हर व्यक्ति के लिए बहुत उदार और सहिष्णु प्रतीत होते हैं। समस्याओं का निपटान करते समय, वे हमेशा दिखाते हैं कि वे अपने पद और रुतबे के हिसाब से लोगों के प्रति कितने अधिक सहिष्णु हैं और हर पहलू से वे उदार और खुले विचारों वाले दिखाई देते हैं, दूसरों में कमियाँ नहीं निकालते हैं और लोगों को दिखाते हैं कि वे कितने महान और दयालु हैं। वास्तव में, क्या मसीह-विरोधियों में सच में ये सार होते हैं? वे दूसरों के साथ दयालुता से पेश आते हैं, लोगों के प्रति सहिष्णु होते हैं और सभी परिस्थितियों में लोगों की मदद कर सकते हैं, लेकिन इन चीजों को करने के पीछे उनका गुप्त प्रयोजन क्या है? अगर वे लोगों का दिल जीतने और उनका समर्थन खरीदने की कोशिश नहीं कर रहे होते तो क्या तब भी ये सब काम करते? क्या बंद दरवाजों के पीछे भी मसीह-विरोधी सच में ऐसे ही होते हैं? क्या वे वास्तव में वैसे ही होते हैं जैसे वे दूसरे लोगों के आसपास होने पर दिखाई देते हैं—विनम्र और धैर्यवान, दूसरों के प्रति सहिष्णु और प्रेम से दूसरों की मदद करने वाले? क्या उनका सार और स्वभाव ऐसा ही है? क्या उनका चरित्र ऐसा ही है? बिल्कुल नहीं। वे जो कुछ भी करते हैं वह दिखावा है और लोगों को गुमराह करने और लोगों का समर्थन पाने के लिए करते हैं, ताकि और भी लोगों के दिलों पर उनका अनुकूल प्रभाव पड़े और ताकि लोग उन्हें सबसे पहले याद करें और जब भी कोई समस्या हो तो उनकी मदद लें। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मसीह-विरोधी दूसरों के सामने दिखावा करने, सही बातें कहने और सही चीजें करने की सोच-समझकर योजना बनाते हैं। कौन जानता है कि बोलने के पहले वे अपने शब्दों को अपने दिमाग में कितनी बार छानेंगे या संसाधित करेंगे। वे सोच-समझकर योजना बनाएँगे और दिमाग लगाएँगे, अपने शब्दों, मुद्राओं, स्वर, आवाज और यहाँ तक कि लोगों को दिखाए जाने वाले हावभाव और बोलने के लहजे पर भी विचार करेंगे। वे इस बात पर विचार करेंगे कि वे किससे बात कर रहे हैं, वह व्यक्ति वृद्ध है या युवा, उस व्यक्ति का रुतबा उनसे अधिक है या कम, वह व्यक्ति उनका सम्मान करता है या नहीं, क्या वह व्यक्ति निजी तौर पर उनसे नाखुश है, उस व्यक्ति का व्यक्तित्व उनके व्यक्तित्व से मेल खाता है या नहीं, वह व्यक्ति क्या काम करता है और कलीसिया में और अपने भाई-बहनों के दिलों में उसका क्या स्थान है। वे इन बातों का गौर से अवलोकन करेंगे और ध्यान से उन पर विचार करेंगे और विचार करने के बाद वे सभी प्रकार के लोगों से पेश आने के तरीके ढूँढ़ निकालते हैं। चाहे मसीह-विरोधी विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ जैसा भी व्यवहार करते हों, उनका लक्ष्य यही है कि लोग उन्हें सम्मान दें, लोग उन्हें बराबर का न मानें, बल्कि उनका आदर करें, जब वे बोलें तो और भी अधिक लोग उनकी प्रशंसा और उन पर भरोसा करें, जब वे कुछ करें तो उन्हें प्रोत्साहित करें और उनका अनुसरण करें और जब वे कोई गलती करें तो उन्हें निरपराध ठहराएँ और उनका बचाव करें और उनका खुलासा होने तथा उन्हें अस्वीकार किए जाने पर उनकी ओर से ज्यादा लोग संघर्ष करें, उनकी ओर से कटुता से शिकायत करें और परमेश्वर से तर्क-वितर्क करने और उसका विरोध करने के लिए खड़े हों। जब उनके हाथ से सत्ता जाए तो सहायता के लिए, समर्थन व्यक्त करने और साथ देने के लिए उनके पास बहुत-से लोग हों, जो दर्शाता है कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया में जिस रुतबे और सत्ता को विकसित करने के लिए जानबूझकर योजना बनाई है, उसने लोगों के दिलों में गहराई से जड़ें जमा ली हैं और उनका “श्रमसाध्य प्रयास” व्यर्थ नहीं गया है।

मसीह-विरोधी, लोगों के बीच अपना रुतबा, प्रतिष्ठा, सम्मान और अधिकार बनाए और बचाए रखने के लिए पूरी कोशिश करते हैं—वे कमजोर नहीं पड़ेंगे, कोमल हृदय नहीं बनेंगे और यहाँ तक कि वे थोड़े-से भी लापरवाह नहीं होंगे। वे हर व्यक्ति की आँखों से अभिव्यक्त होने वाले भावों, उनके व्यक्तित्व, उनकी दिनचर्याओं, उनके अनुसरणों, सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैयों आदि को गौर से देखते हैं और इसके अलावा, वे दूसरे प्रत्येक व्यक्ति की आस्था और परमेश्वर में उनके विश्वास की निष्ठा तथा परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने और अपने कर्तव्य निभाने के प्रति उनके रवैये आदि को गौर से देखते हैं—वे इन चीजों का पता लगाने पर काफी मेहनत करते हैं। तो अपने इस रवैये के आधार पर, वे सत्य का अनुसरण करने वालों से और जो उनका भेद पहचान सकते हैं, उनसे स्वयं को बचाते और सुरक्षित रखते हैं और ऐसे लोगों के आसपास होने पर सावधानीपूर्वक बोलते और कार्य करते हैं। जब वे अपेक्षाकृत कमजोर व्यक्तित्व वाले ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द होते हैं जो अक्सर नकारात्मक होते हैं और सत्य को नहीं समझते हैं और जो मूर्ख होते हैं और सत्य की कम समझ रखते हैं, तब वे अपने को दिखाने की बार-बार हर संभव कोशिश करते हैं, लगातार इस तरह प्रदर्शन करते हैं मानो सर्कस में अभिनय कर रहे हों और प्रदर्शन करने के हर अवसर का लाभ उठाते हैं। उदाहरण के लिए, जब सभाओं में ज्यादातर लोग उन्हें स्वीकार करते हैं, कुछ लोग उनसे घृणा करते हैं और इससे भी ज्यादा लोग उनका भेद नहीं पहचान पाते और तब वे प्रदर्शन शुरू करते हैं और संगति देने के अवसर तलाशते हैं। वे अपने निजी अनुभवों, अपने पिछले “शानदार इतिहास,” परमेश्वर के घर में हासिल किए गए गुण और यहाँ तक कि ऊपरवाले ने किस तरह उनकी सराहना की है और कैसे व्यक्तिगत रूप से उनकी काट-छाँट की है, इस पर संगति देते हैं—वे इस तरह के एक भी अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देते। चाहे वे किसी के साथ हों या कोई भी अवसर हो, मसीह-विरोधी हमेशा एक ही काम करते हैं : वे प्रदर्शन करते हैं; यानी, वे वाहवाही लूटने में लगे रहते हैं। मसीह-विरोधियों का सार यही है : वे सत्य से विमुख, दुष्ट और निर्लज्ज होते हैं। वे अपने प्रदर्शन में किस हद तक चले जाते हैं? शायद तुम लोगों ने खुद भी कुछ को देखा होगा। उनमें से कुछ को स्पष्ट रूप से प्रदर्शन करते, दिखावा करते, लोगों का दिल जीतते और उन अवसरों का लाभ उठाते हुए देखा जा सकता है जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छा सोचें। कुछ लोग उनसे घृणा करते हैं, कुछ उन्हें अनदेखा करते हैं और उनका मजाक भी उड़ाते हैं, लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उन्हें किस बात की परवाह है? उन्हें इस बात की परवाह है कि उनका प्रदर्शन लोगों पर गहरी छाप छोड़े, लोगों को यह लगे कि वे कोई बात कहने की कितनी हिम्मत रखते हैं, यानी कि उनमें साहस है, अगुआओं की शैली है, अगुआई की प्रतिभा है, उन्हें सबके सामने मंच सँभालने में डर नहीं लगता और इससे भी बढ़कर ये बात है कि वे बिना घबराहट के चीजों को सँभालने की क्षमता रखते हैं। जब वे लोगों को ये बातें समझा और दिखा पाते हैं तो उन्हें संतुष्टि होती है और यही कारण है कि जब भी उन्हें ऐसा करने का अवसर मिलता है तो वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और वे निर्बाध, निःसंकोच और बेझिझक होकर प्रदर्शन करते हैं। मसीह-विरोधी यही करते हैं। अगर मैं हमेशा सभाओं में मुख्य विषय पर संगति करूँ तो कुछ लोग मुझे सुनते समय ऊँघने लगते हैं। या फिर, जब मैं मुख्य विषय पर संगति करता हूँ तो लोगों का दिमाग तब भी दूसरी चीजों पर लगा रहता है और जो मैं कह रहा होता हूँ उस पर ध्यान देना उनके लिए आसान नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में, मैं थोड़ी बातचीत करता हूँ, कोई कहानी या कोई चुटकुला सुनाता हूँ। ये चीजें और कहानियाँ अक्सर कुछ भ्रष्ट स्वभावों व स्थितियों से संबंधित होती हैं जिन्हें लोग अपने जीवन में प्रकट करते हैं। मैं लोगों को जगाने के लिए कहानियाँ या कोई चुटकुला सुनाता हूँ, ताकि वे थोड़ा बेहतर तरीके से समझ सकें। जब मसीह-विरोधी यह देखते हैं तो वे सोचते हैं, “तुम सभाओं में अपने उपदेशों में चुटकुले सुनाते हो। मैं भी ऐसा कर सकता हूँ, मैं भी इसमें उतना ही अच्छा हूँ जितने तुम हो। मैं बस ऐसे ही कोई बेकार-सा चुटकुला सुनाऊँगा और हर व्यक्ति को हँसा दूँगा और हर कोई इसका आनंद लेगा—कितना बढ़िया रहेगा! मैं बस ऐसे ही कोई कहानी सुनाऊँगा और फिर कोई भी सभाओं में शामिल नहीं होना चाहेगा, वे बस मेरी कहानियाँ सुनना चाहेंगे।” वे इस बात पर मुझसे प्रतिस्पर्धा करते हैं। क्या इस पर मुझसे प्रतिस्पर्धा करने का कोई अर्थ है? मैं कहानियाँ क्यों सुनाता हूँ? मैं बातचीत क्यों करता हूँ? लोग मेरे वार्तालाप और कहानियों से कुछ चीजें समझ सकते हैं और इससे उन्हें सत्य को सहजता से समझने में मदद मिलती है—मेरा ये प्रयोजन है। फिर भी, मसीह-विरोधी इस बात को पकड़ लेते हैं और इसका यह कहते हुए फायदा उठाने की कोशिश करते हैं कि “सभाओं के दौरान समय बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक होता है, तुम बस बातचीत में लगे रहते हो, तो मैं भी यही करूँगा।” क्या बातचीत हमेशा एक जैसी होती है? मसीह-विरोधी, ये रद्दी लोग, सत्य को समझते तक नहीं तो उनकी बेकार की बातचीत से क्या फायदा होगा? उनकी कहानियों और चुटकुलों से क्या फायदा होगा? बिना आध्यात्मिक समझ वाले ये जानवर सत्य पर संगति करने और कहानियाँ कहने के गंभीर विषयों को बहुत ही सतही और लापरवाह तरीके से लेते हैं। किस तरह के लोग ऐसा करते हैं? मसीह-विरोधी, आध्यात्मिक समझ न रखने वाले लोग और वे लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, ऐसे काम करना पसंद करते हैं।

भाई-बहनों की आँखें, ज्यादातर लोगों की आँखें, मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले दिखावे के कामों में लगभग कोई गलती नहीं ढूँढ़ पाती हैं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मसीह-विरोधी अपनी गलतियों को छिपा लेते हैं और तुम्हें उन्हें देखने नहीं देते; वे अपना दुष्ट पक्ष, अपना लंपट पक्ष और अपना बुरा पक्ष बंद दरवाजों के पीछे छिपाए रखते हैं। “बंद दरवाजों के पीछे” की जगह कहाँ है? ये वो जगहें हैं जिन्हें तुम नहीं देख सकते, यानी उनके अपने घर में, समाज में, अपने कार्यस्थल पर, अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने; यही वे इलाके हैं, जिन्हें तुम नहीं देख सकते या जिनके तुम संपर्क में नहीं आ सकते। उनके शब्द और व्यवहार जिन्हें तुम देख सकते हो और जिनके संपर्क में आ सकते हो, यह पूरी तरह से उनका वह पक्ष है जो कि दिखावा है, जो प्रसंस्करण से गुजर चुका है। उनके जिस पक्ष को तुम नहीं देख सकते वह उनका असली सार है, उनका असली चेहरा है। और उनका असली चेहरा क्या है? जब वे अपने अविश्वासी परिवार के साथ होते हैं तो वे सभी प्रकार की बुरी बातें बोलते हैं—शिकायतें, नाराजगी भरी बातें, दूसरों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण शब्द, भाई-बहनों को दोषी ठहराने और उनकी निंदा करने वाले शब्द, परमेश्वर के घर के धार्मिक नहीं होने की शिकायतें—वे ये सभी बातें कहते हैं, कुछ भी नहीं छोड़ते, जरा भी नहीं हिचकते। जब वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ होते हैं तो वे लौकिक दुनिया की चर्चा करते हैं और दूसरे लोगों के परिवारों के बारे में बातें करते हैं, वे अविश्वासियों की सभी सांसारिक गतिविधियों में शामिल होते हैं और यहाँ तक कि शादियों और अंतिम संस्कारों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे अविश्वासियों के साथ बातें करते हैं, वे दूसरों को दोषी ठहराते हैं और उन्हें कोसते हैं, लोगों के बारे में निराधार अफवाहें फैलाते हैं और पीठ पीछे उनकी निंदा करते हैं—वे ये सभी बातें कहते हैं। जब अविश्वासियों के बीच होते हैं तो दूसरे लोगों से बात करते समय वे लोगों को ठगते हैं, गिरोह बनाते हैं, लोगों पर हमला करते हैं और कार्यस्थल पर वे दूसरों को फँसा सकते हैं, दूसरों के बारे में कहानियाँ सुना सकते हैं और उच्च पद पाने के लिए दूसरों को रौंद सकते हैं—वे ये सब चीजें भी कर सकते हैं। जब वे अपने परिवार या अविश्वासियों के साथ होते हैं तो वे धैर्यवान, सहनशील या विनम्र नहीं होते, बल्कि इसके बदले वे पूरी तरह से अपना असली रंग दिखाते हैं। परमेश्वर के घर में वे भेड़ की खाल में भेड़िये होते हैं और जब वे अविश्वासियों, परमेश्वर में विश्वास न करने वाले लोगों के बीच होते हैं तो वे सबके सामने अपना भेड़िया वाला चेहरा दिखाते हैं; वे अपने हितों के लिए, एक-एक बात, एक-एक कथन के लिए अविश्वासियों से लड़ते हैं और छोटे से छोटे हित के लिए अविश्वासियों के साथ तब तक अंतहीन बहस करते हैं, जब तक कि उनका चेहरा लाल न हो जाए। यदि उन्हें परमेश्वर के घर में कोई लाभ नहीं मिलता या उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे घर जाकर हंगामा मचाते हैं, वे परेशानी खड़ी करते हैं और इस तरह से कार्य करते हैं कि उनका परिवार उनसे डरता है। अविश्वासियों के बीच, उनमें ईसाइयों वाली कोई शालीनता नहीं होती, न ही वे ईसाइयों की तरह गवाही देते हैं—यहाँ तक कि वे मनुष्य भी नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह से भेड़िये हैं। परमेश्वर के घर में और भाई-बहनों के सामने, वे वादे करते हैं, वे शपथ लेते हैं, अपना प्रण व्यक्त करते हैं और वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने के इच्छुक दिखाई देते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें परमेश्वर पर आस्था है। फिर भी, जब वे अविश्वासियों के बीच आते हैं तो उनके अनुसरण और विश्वास अविश्वासियों के समान ही होते हैं। कुछ लोग तो अविश्वासियों की तरह मशहूर हस्तियों का अनुसरण भी करते हैं और मशहूर हस्तियों के परिधानों की भी नकल करते हैं, अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को खुला रखते हैं, बाल बिखरे हुए रखते हैं और बहुत ज्यादा मेकअप करते हैं—वे न तो किसी इंसान की तरह दिखाई देते हैं और न ही किसी भूत की तरह। वे फैशनेबल कपड़े पहनते हैं और समय के साथ फैशन बदलते रहते हैं, उन्हें लगता है कि जीवन बहुत मजेदार है और उनके दिल में अविश्वासियों की जीवनशैली के प्रति नफरत की कोई भावना महसूस नहीं होती। मसीह-विरोधी कलीसिया में अपने लिए एक स्थान सुनिश्चित करने और लोगों के दिलों में अपने लिए प्रतिष्ठा और रुतबा पाने के लिए कई काम करते हैं और बहुत प्रयास करते हैं। उनका यह प्रयास पूरी तरह से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और इसलिए होता है कि उनके बारे में दूसरे लोग उच्च विचार रखें और उनकी आराधना करें। ये व्यवहार, क्रियाकलाप और बाहरी खुलासे बंद दरवाजों के पीछे की उनकी जीवनशैली से स्पष्ट तुलनात्मक अंतर प्रस्तुत करते हैं और लोगों के पीठ पीछे के उनके क्रियाकलाप तथा व्यवहार वैसे बिल्कुल नहीं होते जैसे किसी ईसाई के होने चाहिए। इतनी स्पष्ट तुलना के साथ, हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि वे जो भी करते हैं और भाई-बहनों के समक्ष जो भी खुलासा करते हैं, सब कुछ दिखावा है, वह सच्चाई नहीं है और न ही स्वाभाविक प्रकाशन है। मसीह-विरोधी केवल अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दिखावा करते हैं, अन्यथा वे ये काम करने के लिए कभी भी खुद को मुश्किल में नहीं डालते। उनके कार्यों और बंद दरवाजों के पीछे के उनके स्वभाव के खुलासों, साथ ही साथ उनके अनुसरणों पर विचार करके कहा जा सकता है कि उन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं है, उन्हें शालीनता और ईमानदारी से प्रेम नहीं है और वे पीड़ा सहना और कीमत चुकाना या ईसाई मार्ग का अनुसरण करना तो और भी कम पसंद करते हैं। इसलिए, वे जिन अच्छे व्यवहारों का दिखावा करते हैं वे दिल से नहीं आते, वे व्यवहार स्वैच्छिक नहीं होते, वास्तविक नहीं होते, बल्कि वे उनकी अपनी ही इच्छाओं के प्रतिकूल होते हैं, वे दूसरों को दिखाने के लिए किए जाते हैं और लोगों का समर्थन पाने तथा दिल खरीदने के लिए किए जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “लोगों के दिल खरीदने से उन्हें क्या लाभ होता है?” मसीह-विरोधियों में और आम लोगों में यहीं अंतर होता है; यह लाभ उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तो फिर, यह लाभ क्या है? ये है कि जब वे लोगों के बीच खड़े होते हैं तो ऐसा कोई नहीं होता जो उन्हें नहीं जानता, ऐसा कोई नहीं होता जो उनका समर्थन नहीं करता, ऐसा कोई नहीं होता जो उनकी प्रशंसा नहीं करता, ऐसा कोई नहीं होता जो उनकी आराधना नहीं करता। कोई समस्या होने पर लोग परमेश्वर की तलाश करने और प्रार्थना करने की जगह मसीह-विरोधी को खोजते हैं। और जब हर कोई मसीह-विरोधी की आराधना करता है और उनके आसपास चक्कर काटता है तो मसीह-विरोधी को कैसा महसूस होता है? उन्हें लगता है कि वे परमेश्वर के समान हैं या असाधारण व्यक्ति हैं और उन्हें लगता है कि उनके पाँव बादलों पर हैं, वे सातवें आसमान पर हैं, उनका जीवन किसी साधारण व्यक्ति के जीवन से अलग है। जब वे लोगों के बीच होते हैं तो हर कोई उनकी प्रशंसा और सराहना करता है और उनकी इस तरह बड़ाई करता है मानो तारों के बीच वह चाँद हो—यह कितना बढ़िया एहसास है और उनके दिल को कितना आनंद, राहत और खुशी मिलती होगी! मसीह-विरोधी सटीक रूप से यही तो चाहते हैं। लेकिन, लोगों के किसी समूह में अगर एक भी व्यक्ति मसीह-विरोधी पर ध्यान नहीं देता है, अगर बहुत कम लोग उनका नाम जानते हैं, अगर कोई उनकी क्षमताओं को नहीं जानता है, अगर ज्यादातर लोग उन्हें एक साधारण व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति मानते हैं जिसके पास कोई विशेष गुण नहीं है, कोई खूबी नहीं है, जिसके बारे में कुछ भी असाधारण नहीं है, ऐसा कुछ नहीं है जिसके चलते दूसरे लोग उसे सम्मान या आदर दें, या किसी के लिए प्रशंसा से कहने लायक कुछ भी नहीं है तो इससे मसीह-विरोधी मन ही मन असहज और बुरा महसूस करते हैं; उन्हें देवत्व या सातवें आसमान पर होने जैसा महसूस नहीं होता। उनके हिसाब से इस तरह जीना बहुत उबाऊ, बहुत असहज, बहुत घुटन भरा, बहुत असंतुष्टिजनक और निरर्थक है। वे सोचते हैं कि अगर उन्हें जीवन भर एक साधारण व्यक्ति बनकर रहना है, कुछ कर्तव्य निभाने हैं और मानक-स्तर का सृजित प्राणी बनना है तो ऐसे जीवन में क्या आनंद है? परमेश्वर में विश्वास करने में इतना कम आनंद कैसे हो सकता है? उनके लिए, यह बहुत निम्न स्तर है, और इसे ऊँचा उठाना चाहिए। लेकिन इसे कैसे ऊँचा उठाया जाए? उन्हें अपनी लोकप्रियता बढ़ानी होगी ताकि लोग उन पर भरोसा करें और उनका अत्यधिक सम्मान करें और वे वैभवशाली जीवन जी सकें। इसीलिए जब वे प्रार्थना करते हैं तो वे अपने घर में अकेले प्रार्थना नहीं करते, बल्कि प्रार्थना करने के लिए निश्चित रूप से कलीसिया जाते हैं, भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, ऊँची आवाज में प्रार्थना करते हैं, व्याकरण का ध्यान रखते हुए, तार्किक, व्यवस्थित रूप से और सोच-समझकर प्रार्थना करते हैं, ताकि सभी उपस्थित लोग सुन सकें, ताकि सभी उपस्थित लोग उनकी वाक्पटुता और स्पष्ट सोच को सुन सकें और जान सकें कि उनका अपना अनुसरण है। जब वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं तो वे उन्हें अपने घर पर अकेले नहीं पढ़ते। पहले वे घर पर इसकी तैयारी करते हैं और फिर दूसरों को सुनाने के लिए ऊँची आवाज में पढ़ते हैं, ताकि दूसरे लोग देख सकें कि वे परमेश्वर के जिन वचनों को पढ़ रहे हैं वे सभी महत्वपूर्ण और निर्णायक हैं। चाहे वे कुछ भी करें, वे हमेशा बंद दरवाजों के पीछे इसकी तैयारी करते हैं और जब वे इतनी तैयारी कर लेते हैं कि दूसरे लोग उन्हें सम्मान दें और स्वीकार करें, तभी वे दूसरों के सामने वह कार्य करते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग तो घर पर आईने के सामने इसकी प्रस्तुति का पूर्वावलोकन और तैयारी करते हैं, फिर प्रस्तुति के लिए दूसरों के सामने आते हैं। जब वे यह कार्य दूसरों के सामने करते हैं तो यह अपनी सबसे मूल अवस्था में नहीं होता, बल्कि पहले ही कई बार मसीह-विरोधी के विचारों, दृष्टिकोणों, भ्रष्ट स्वभावों, कुटिल योजनाओं और धूर्त उपायों द्वारा प्रसंस्कृत हो चुका होता है। कलीसिया में और लोगों के बीच रुतबा और लोकप्रियता पाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मसीह-विरोधी ये चीजें करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने से पीछे नहीं हटेंगे। इसलिए, इन सभी चीजों को क्या कहा जाता है? क्या वे सच्चे खुलासे हैं? क्या स्वभावगत बदलाव चाहने वाले व्यक्ति को ये अभ्यास करने चाहिए? (नहीं।) वे सभी दिखावे से उत्पन्न होते हैं; मसीह-विरोधी इस हद तक दिखावा करते हैं कि इससे घृणा हो जाए!

कुछ लोगों ने यदि पहले प्रारूप तैयार न किया हो तो वे सभाओं में संगति नहीं करते। उन्हें पहले बंद दरवाजों के पीछे एक प्रारूप तैयार करना पड़ता है, उसे कई बार संशोधित करना पड़ता है, उसे प्रसंस्कृत करना पड़ता है, निखारना पड़ता है और जब वह तैयार हो जाता है, तभी वे भाई-बहनों के सामने संगति करते हैं। कोई उनसे कहता है, “हम सभी यहाँ भाई-बहन हैं। सभाओं में बस ईमानदारी और सच्चाई से बोलें। बस जो मन में आए, वही बोलें। यही सबसे अच्छा तरीका है।” वे जवाब देते हैं, “नहीं, मैं नहीं कर सकता। अगर मैं ऐसा करता हूँ, तो भाई-बहन मुझे नीची नजर से देखेंगे।” देखो, वे अनजाने में कुछ सच कह देते हैं। हर मामले में, वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं। समाज में असाधारण प्रतिभा रखने वाले कुछ लोग, जो प्रोफेसर, विश्वविद्यालय के छात्र, डॉक्टरेट के छात्र या वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं, खुद को साबित करने और अपने रुतबे तथा प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखने के लिए लोगों से बातचीत करने के लिए कुछ दिखावटी व्यवहार और प्रसंस्कृत व्यवहार का उपयोग करते हैं। यानी, वे लोगों से बातचीत करने के लिए मुखौटा पहनते हैं, और लोग कभी नहीं जानते कि वे वास्तव में क्या हैं, क्या उनमें कोई कमजोरी है, वे बंद दरवाजों के पीछे क्या करते हैं और जब बात उनके निजी जीवन और इसकी आती है कि वे कैसे आचरण करते हैं और दुनिया से निपटते हैं, तो हमेशा एक संदेह, हमेशा एक प्रश्नचिह्न बना रहता है। क्या ये लोग इतने गहन दिखावे में लिप्त नहीं होते? तो, तुम लोगों को इन लोगों से कैसे पेश आना चाहिए? क्या ऐसा होना चाहिए कि चूँकि वे तुम्हारे साथ झूठे हैं, इसलिए तुम भी उनके साथ झूठे बनो? उदाहरण के लिए, जब वे तुमसे मिलते हैं तो वे केवल विनम्रतापूर्वक अभिवादन करते हैं, इसलिए तुम भी उनके साथ लगातार विनम्र बने रहो—क्या यह स्वीकार्य है? (नहीं।) तो फिर, उनके साथ जुड़ने का उचित तरीका क्या है? (जब कोई पाता है कि वे इन अभिव्यक्तियों का दिखावा कर रहे हैं तो उसे सबसे पहले उन्हें उजागर करना चाहिए, उनके साथ इस संबंध में संगति करनी चाहिए कि इस तरह के स्वभाव का प्रकृति सार क्या है और यह किस इरादे से संचालित होता है। अगर वे किसी की कही गई बातों को स्वीकार नहीं करते हैं तो उसे उनके साथ फिर से संगति नहीं करनी चाहिए।) तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए और अगर वे तुम्हारी कही गई बातों को स्वीकार नहीं करते हैं तो उनसे दूर रहो। क्या तुम सब लोगों में कोई ऐसा है जो अभी भी उनके बहकावे में आ सकता है और उनकी आराधना कर सकता है? अब तुम लोग अपने आध्यात्मिक कद के हिसाब से इन स्पष्ट फरीसियों को थोड़ा-बहुत ठीक से समझने में बुनियादी रूप से समर्थ हो, लेकिन अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो अधिक सक्षम है, जो दिखावा कर सकता है, जो खुद को पूरी तरह छिपाए रखता है, क्या तुम लोग उनकी असलियत जान पाओगे? अगर वे हमेशा अच्छी बातें कहें और करें, अगर यह प्रतीत होता हो कि उनमें कोई दोष नहीं है और उन्होंने कभी कोई गलती नहीं की है, अगर तुम कभी-कभी किसी विषय पर निराश और कमजोर हो जाते हो, लेकिन वे कभी नहीं होते और अगर कभी हुए भी तो वे अपने-आप इसका समाधान कर सकते हैं और इससे जल्दी ही बाहर आ सकते हैं, लेकिन तुम ऐसा नहीं कर सकते तो जब तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होगा तो तुम उन्हें स्वीकृति दे दोगे और उनकी आराधना करोगे, और उनसे सीखोगे और उनका अनुसरण करने लगोगे; अगर तुम ऐसे लोगों का भेद नहीं पहचान पाते हो तो यह कहना मुश्किल है कि तुम उनके द्वारा गुमराह किए जाओगे या नहीं।

हमने दिखावे के इस विषय के कितने पहलुओं पर संगति की है? एक पहलू यह है कि वे पीड़ा सहन करने को दिखावे के रूप में उपयोग करते हैं। वास्तव में दिल से वे पीड़ा सहना नहीं चाहते हैं और वे इसके लिए बहुत प्रतिरोध महसूस करते हैं, फिर भी वे बहुत अनिच्छा से पीड़ा सहते हैं, चीजों का त्याग करते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाते हैं। पीड़ा सहन करने के बाद भी, वे इसे स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं और महसूस करते हैं कि यह पीड़ा सहन करना इसके लायक नहीं था, क्योंकि बहुत-से लोग इसके बारे में नहीं जान पाए। इसलिए वे हर जगह इसका प्रचार करते हैं, इससे अनजान बहुत-से लोगों को इसके बारे में बताते हैं। अंत में, कुछ लोगों को पता चलता है कि क्या हुआ था और उनके मन पर इनकी गहरी छाप पड़ती है, वे उनके बारे में ऊँचा सोचते हैं और उनकी आराधना करते हैं और इस तरह वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो खुद को अच्छे लोगों, अच्छे व्यवहार वाले और कर्तव्यपरायण लोगों के रूप में प्रचारित करते हैं, इस तरह की छवि, पहचान और व्यक्तित्व का उपयोग करके लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें अच्छे लोग मानें और उनके करीब आएँ। वे और ज्यादा लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इस तरह से अच्छे इंसान बनने को अपना लक्ष्य बनाते हैं, ताकि लोग उनका आदर करें और वे अपनी लोकप्रियता बढ़ा सकें। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) मसीह-विरोधियों द्वारा अपनाए जाने वाले कुछ तरीकों का उपयोग करके, हमने अभी-अभी उनके दिखावटी व्यवहार के पीछे के गुप्त उद्देश्यों और उनके दिखावे के सार को उजागर किया और उसका गहन-विश्लेषण किया है, वे जो काम करते और कहते हैं और वे जैसी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं उनसे साबित होता है कि वे दिखावे में लिप्त हो रहे हैं। हम इस पहलू पर संगति यहीं समाप्त करेंगे।

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