मद दस : वे सत्य का तिरस्कार करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग सात) खंड तीन
2. परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को व्यक्तिगत लाभ के लिए बेचना
आगे हम दूसरे पहलू पर संगति करेंगे जो मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के वचनों को वस्तुएँ मानने का असली व्यवहार और दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण में इस प्रकार के मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के वचनों की तमाम तरह की पुस्तकों को व्यापार की वस्तुएँ मानना शामिल है। जब वे परमेश्वर के वचनों की ये पुस्तकें हासिल करते हैं तो वे मानते हैं कि उन्होंने पैसा कमाने के लिए पूँजी हथिया ली है, ऐसा करने के लिए आवश्यक परिसंपत्तियाँ उनके अधिकार में आ गई हैं। परमेश्वर के वचनों की ये छपी हुई पुस्तकें उनकी परिसंपत्तियाँ बन जाती हैं, ऐसी वस्तुएँ बन जाती हैं जिन्हें वे बेचना चाहते हैं और ऐसी चीजें बन जाती हैं जिनका इस्तेमाल वे अंधाधुंध मुनाफा कमाने के लिए करते हैं। मसीह-विरोधी इन पुस्तकों को अपने पास रोककर रखते हैं, इन्हें परमेश्वर के घर की ओर से अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार वितरित नहीं करते बल्कि अपने स्वयं के इरादों के अनुसार अनुचित फायदा उठाने में लग जाते हैं। परमेश्वर के घर में पुस्तकें वितरित करने का क्या सिद्धांत है? यही कि जो लोग परमेश्वर के वचन पढ़ना पसंद करते हैं और जिनके मन में सत्य के लिए प्यास है, उन्हें ये पुस्तकें बाँट दी जाएँ और ऐसा मुफ्त में किया जाए। चाहे कितने भी लोग इन्हें प्राप्त करें या कितनी भी पुस्तकें बाँटी जाएँ, ऐसा हमेशा मुफ्त में किया जाता है। ईसाइयत में परमेश्वर में विश्वास करने वालों को बाइबल मुफ्त में नहीं मिलती; इसे खरीदना पड़ता है। लेकिन अब, परमेश्वर के ये वचन और ये पुस्तकें परमेश्वर का घर मुफ्त में बाँटता है जो एक महत्वपूर्ण बिंदु है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब ये पुस्तकें मसीह-विरोधियों के हाथ में पड़ जाती हैं और वे इन्हें सिद्धांत के अनुसार मुफ्त में नहीं बाँटते। जिनके पास थोड़ा-सा भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होगा वे सामान्य परिस्थिति में इन पुस्तकों को सिद्धांत के अनुसार मुफ्त बाँटेंगे, इनके बदले कोई पैसा नहीं लेंगे या बेजा ढंग से मुनाफाखोरी की कोशिश नहीं करेंगे। लेकिन ये पुस्तकें मिलने पर केवल मसीह-विरोधी ही ऐसा सोचते हैं कि उनके हाथ कारोबार का मौका आ गया है। उनकी महत्वाकांक्षा और लालच इस तरह सामने आता है : “ऐसी मोटी-मोटी और अच्छी पुस्तकों को मुफ्त में बाँटना—क्या यह घाटे का सौदा नहीं है? क्या इनसे कुछ पैसा नहीं कमाना बेवकूफी नहीं है? यही नहीं, ये पुस्तकें कहीं और से नहीं खरीदी जा सकती हैं और परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकतर लोग इन्हें पढ़ना चाहेंगे, फिर चाहे इनकी कितनी ही कीमत हो।” मसीह-विरोधी जब लोगों की यह मनोवृत्ति भाँप लेते हैं तो उनके मन में कुछ विचार उठने लगते हैं : “पैसा कमाने का यह मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता; ऐसे मौके मुश्किल से मिलते हैं। ये पुस्तकें वितरित करते समय मुझे लोगों को श्रेणियों में बाँट देना चाहिए, अमीरों से ज्यादा पैसा लेना चाहिए, औसत लोगों से औसत स्तर का पैसा लेना चाहिए, गरीबों से कम लेना चाहिए या उन्हें पुस्तकें बाँटनी ही नहीं चाहिए, जो मेरी खुशामद करते हैं उन्हें रियायत देनी चाहिए और जिनकी मुझसे नहीं बनती है उनसे ज्यादा पैसा वसूलना चाहिए।” क्या यह परमेश्वर के घर के पुस्तक वितरण के विनियमों के अनुसार है? (नहीं।) यह व्यापार करना है। मसीह-विरोधियों के मन में ऐसे ख्याल पनपते हैं; वे परमेश्वर के घर के विनियमों और सिद्धांतों के अनुसार पुस्तकें बाँटते हैं या नहीं इस बात को अलग रखकर, चलो पहले हम यह चर्चा करते हैं कि वे परमेश्वर के वचनों से कैसा व्यवहार करते हैं। जब उनके हाथ में परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें आ जाती हैं तो क्या वे इन्हें सँजोकर रखते हैं? (नहीं।) उनकी रुचि परमेश्वर के वचनों में बताए गए जीवन मार्ग या सत्य में नहीं होती; वे इन्हें महत्व नहीं देते और इनके बारे में जरा भी उत्सुक नहीं होते। वे पुस्तकों को केवल सतही तौर पर देखते हैं, लापरवाही से पन्ने पलटते हैं और उन पर सरसरी नजर डालते हैं : “इसमें तो बस यह जिक्र है कि परमेश्वर लोगों के न्याय का कार्य कैसे करता है, उसने किस प्रकार लोगों के समूह को जीत लिया है और वह किस प्रकार लोगों को एक अच्छी मंजिल प्रदान करता है। जहाँ तक मानवजाति के भविष्य का सवाल है, इसमें ऐसे ब्योरे नहीं हैं, इसलिए यह पुस्तक इतनी रोचक नहीं है। हालाँकि यह पुस्तक बहुत रोचक नहीं है लेकिन बहुत से लोग इसे पढ़ने के इच्छुक हैं। यह अच्छा है; मैं इससे लाभ कमा सकता हूँ।” जब परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें उनके हाथों में पड़ती हैं तो वे वस्तुएँ बन जाती हैं, जिसका यह अर्थ है कि बहुत-से लोगों को, कम-से-कम लोगों के एक तबके को, ये पुस्तकें खरीदने के लिए पैसा खर्च करना पड़ेगा। परमेश्वर में विश्वास करने, परमेश्वर के घर का कार्य करने और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों के वितरण के प्रभारी होने की आड़ में मसीह-विरोधी सेंध लगाते हैं और परमेश्वर के घर द्वारा इन पुस्तकों के मुफ्त वितरण को लेन-देन में बदल देते हैं, खरीद-फरोख्त में बदल देते हैं। जो कोई भी परमेश्वर के वचनों को ध्यानपूर्वक सुनता है उसे परमेश्वर की ओर से उसके वचन निःशुल्क प्रदान किए जाते हैं; ये मुफ्त होते हैं, इनके बदले कुछ भी देने की जरूरत नहीं होती। लोगों से बस यही अपेक्षा की जाती है कि वे इन्हें स्वीकार करें, इनका अभ्यास और अनुभव करें, परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पण हासिल करें और ऐसे व्यक्ति बनें जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं। तब परमेश्वर संतुष्ट हो जाता है, उसका उद्देश्य पूरा हो जाता है और उसके वचन बेकार नहीं जाते। उसे इसमें सुकून मिलता है। यही परमेश्वर की इच्छा है और यही इंसान पर उसके छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन कार्य करने का लक्ष्य भी है, जो सृजित प्राणियों के लिए सृष्टिकर्ता की सबसे सुंदर कामना है। परमेश्वर अपने अनुयायियों को अपने वचन, जो उसके पास है और जो वह स्वयं है, और अपने इरादे निःशुल्क और निरंतर प्रदान करता है। यह बहुत ही स्वच्छ और पवित्र कार्य है, बहुत ही महान कर्म है; इसमें कोई लेन-देन शामिल नहीं होता। परमेश्वर के वचन ध्यानपूर्वक सुनने वाले और इनके लिए लालायित रहने वाले हर व्यक्ति के लिए परमेश्वर का कहा हर वाक्य अनमोल होता है। लोग परमेश्वर से सत्य और उसके वचन मुफ्त में प्राप्त करते हैं, और अपने दिल की गहराई से वे परमेश्वर के लिए जो कुछ करना चाहते हैं वह है उसका ऋण चुकाना, उसके इरादों को संतुष्ट करना, और उसे सुकून महसूस करने देना ताकि उसका महान कार्य जल्दी पूरा किया जा सके। यही वह अनकही समझ है जो सृष्टिकर्ता और सृजित मानवजाति के बीच होनी चाहिए। लेकिन मसीह-विरोधी इस मामले को लेन-देन में बदल देते हैं। वे व्यक्तिगत लाभ पाने के लिए परमेश्वर के कहने और कार्य करने के अवसर का, साथ ही परमेश्वर के वचनों के पोषण की लोगों की जरूरत का फायदा उठाते हैं, पैसा और लाभ हासिल करते हैं जो उन्हें हासिल नहीं करना चाहिए। क्या ऐसे व्यवहार से व्यक्ति शाप पाने लायक नहीं बन जाता? परमेश्वर के किस कथन के आधार पर तुमने यह समझा या किस कथन में तुमने यह सुना कि परमेश्वर किसी मुआवजे के बदले मानवजाति से बात करता है? वह एक वाक्य के बदले कितना मुआवजा लेता है, एक अनुच्छेद के बदले कितना, एक उपदेश, एक पुस्तक के बदले कितना या फिर एक बार की काट-छाँट, न्याय और ताड़ना या शोधन या जीवन के प्रावधान के बदले कितना मुआवजा लेता है? क्या कभी परमेश्वर ने ऐसे वचन बोले हैं? (नहीं।) परमेश्वर ने ऐसी बातें कभी नहीं कहीं। परमेश्वर द्वारा जारी हर वाक्य, अनुच्छेद और अंश, लोग परमेश्वर से जो काट-छाँट, ताड़ना और न्याय, परीक्षण और शोधन प्राप्त करते हैं उसका हर मामला, साथ ही परमेश्वर के वचनों की आपूर्ति और पोषण, इत्यादि—इन सब में से किसे पैसे से तौला जा सकता है? इनमें से कौन-सी चीज ऐसी है जिसे इंसान पैसे या भौतिक चीजें या दैहिक मूल्य चुकाकर हासिल कर सकता है? कोई भी नहीं। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, परमेश्वर जो भी सत्य व्यक्त करता है, ये सब बेशकीमती होते हैं। चूँकि ये बेशकीमती हैं, चूँकि परमेश्वर की वस्तुओं और अस्तित्व के बदले लेन-देन के लिए कोई भी व्यक्ति धन या किसी भौतिक चीज का इस्तेमाल नहीं कर सकता, ठीक इसीलिए परमेश्वर कहता है कि वह लोगों को अपने वचनों की आपूर्ति निःशुल्क करता है। फिर भी मसीह-विरोधी लोग सत्यों की अनमोल और बहुमूल्य प्रकृति और जो परमेश्वर के पास है और जो वह स्वयं है जिसे वह अभिव्यक्त करता है, नहीं देख सकते हैं; इसके बजाय वे इससे अंधाधुंध लाभ कमाना चाहते हैं जो निहायत शर्मनाक बात है!
कुछ मसीह-विरोधी लोगों को सताने के लिए, अपनी खुद की प्रतिष्ठा और मान-सम्मान कायम करने और दूसरों को अपना आतंक और अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए परमेश्वर के वचन अपने पास रोक लेते हैं, और इन्हें अपने मातहत भाई-बहनों तक नहीं पहुँचाते। इस प्रकार जिन कलीसियाओं में ऐसे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों का दबदबा होता है, वहाँ के भाई-बहन परमेश्वर के वचन पढ़ने या परमेश्वर के उपदेश सुनने से वंचित रहते हैं। क्या ऐसे लोग शाप पाने के लायक नहीं हैं? परमेश्वर के वचनों को उन्होंने क्या मान लिया है? अपनी निजी संपत्ति। परमेश्वर अपने वचन उन लोगों को प्रदान करता है जो ईमानदारी से उसमें विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं; ये किसी एक ही व्यक्ति को प्रदान नहीं किए जाते और ये किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति कतई नहीं हैं। परमेश्वर के वचन सारी मानवजाति को सुनाए जाते हैं और कोई भी व्यक्ति किसी भी कारण या बहाने से परमेश्वर के वचनों को अपने पास नहीं रोक सकता। फिर भी मसीह-विरोधी ठीक यही भूमिका निभाते हैं और ऐसा करते हुए सामान्य चलन तोड़ते हैं। कुछ मसीह-विरोधी अपने पास नए-नए धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग आते ही पहले खुद इन्हें सुनते हैं और इनमें कुछ नई रोशनी और अपने लिए कुछ अनजानी विषयवस्तु पाकर अपने मातहत लोगों को ये धर्मोपदेश शृंखला न बाँटने का फैसला करते हैं। किसी को भनक लगने दिए बिना वे धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग अपने पास रोक लेते हैं। इन्हें रोकने का उद्देश्य क्या होता है? उद्देश्य सभाओं में शेखी बघारना है, जो विक्रय में लिप्त होने के बराबर है। शेखी बघारने की इस हरकत से उनके मातहत लोग जब बिल्कुल अनसुनी, सारी की सारी नई विषयवस्तु सुनते हैं तो वे मसीह-विरोधियों का बहुत सम्मान करने लगते हैं और इस तरह मसीह-विरोधियों का उद्देश्य पूरा हो जाता है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि कलीसियाओं में हर जगह यकीनन कुछ ऐसे लोग होते हैं जो संगति के उपदेश या रिकॉर्डिंग को समय पर या पूरी तरह वितरित नहीं करते; ऐसे इंसान बिल्कुल होते हैं। इसके अलावा कुछ मसीह-विरोधी अपने प्रति लोगों के रवैये के आधार पर परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें बाँटते हैं, उन्हें उन लोगों को देते हैं जो उनके साथ घुलते-मिलते हैं या उनकी चापलूसी करते हैं। भले ही पुस्तकें मुफ्त होती हैं, पर ये हर व्यक्ति को आसानी से नहीं मिल पातीं; मसीह-विरोधियों के हाथों में मुफ्त और समय पर वितरण के सिद्धांत अलग-अलग शर्तों के अधीन होते हैं। हो सकता है जो लोग उनके साथ हैं या जो उनकी बात सुनते हैं उन्हें वे न चाहते हुए ये पुस्तकें दे दें, मगर जरूरी नहीं कि वे समय पर ऐसा करें; जहाँ तक उनके विचारों से असहमत होने वाले या उनका विरोध करने वाले लोगों की बात है, हो सकता है मसीह-विरोधी उन्हें चुनिंदा ढंग से पुस्तकें दें या बिल्कुल ही न दें। मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों के वितरण में अनुचित रूप से अंधाधुंध लाभ कमाना चाहते हैं, बल्कि इसका उपयोग लोगों को लुभाने और जीतने के साथ ही दूसरों को दबाने और सताने के हथकंडे के रूप में भी करते हैं—वे तमाम तरह का अन्याय कर सकते हैं। वे तो लोगों को यह कहकर धमका भी सकते हैं कि अगर कोई उनकी बुराई करता है, उन्हें नहीं चुनता या उनके खिलाफ मत देता है तो वे उस व्यक्ति को सताने के साधन के तौर पर परमेश्वर के वचनों को अपने पास रोक सकते हैं। इसलिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें या धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग समय पर न पाने के डर से कुछ लोग इन मसीह-विरोधियों से खौफ खाते हैं। भले ही मसीह-विरोधी बुराई करते हों और वे खुद गलत व्यवहार झेलते हों, फिर भी वे उनकी शिकायत करने का साहस नहीं करते क्योंकि उन्हें मसीह-विरोधियों से दबाए और सताए जाने, ऊपरवाले से संपर्क खोने और ऊपरवाले के हाथों सिंचन और पोषण खोने का डर होता है। क्या ऐसे लोग होते हैं? बिल्कुल, शत-प्रतिशत ऐसे लोग होते हैं। मसीह-विरोधी सभी तरह के बुरे कर्म करते हैं; वे न केवल सत्ता और लाभ के लिए लड़ते हैं, खेमे बनाते हैं और अपने स्वतंत्र राज्य बनाते हैं, बल्कि जब परमेश्वर के वचनों को वितरित करने की बात आती है तब भी वे ऐसा ही करते हैं। वे हर ऐसी चीज का दोहन करते हैं जिससे उन्हें अनुचित ढंग से लाभ हो, रुतबा और ताकत हासिल हो; वे किसी भी चीज को नहीं बख्शते, परमेश्वर के वचनों को भी नहीं। क्या ये चीजें तुम लोगों की कलीसिया में, तुम लोगों के आसपास हुई हैं? कुछ मसीह-विरोधी अपने मातहत लोगों को धमकाते हैं, “अगर तुम मुझे नहीं चुनते हो, अगर तुम ऊपरवाले से मेरी शिकायत करते हो, अगर तुम मुझे पसंद नहीं करते, अगर तुमने मेरी मुखबिरी की और मुझे पता चल गया तो तुम्हें और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग नहीं मिलेगी। मैं तुम्हारी आपूर्ति बंद कर दूँगा, तुम्हें पोषण से वंचित कर दूँगा, तुम्हें भूखा-प्यासा मार दूँगा!” क्या मसीह-विरोधियों का स्वभाव क्रूर नहीं है? यह बहुत ही क्रूर है! वे हर तरह के बुरे काम करने में सक्षम होते हैं।
अगर तुम लोगों का सामना ऐसे मसीह-विरोधियों से होता है तो तुम इनसे कैसे निपटोगे? क्या तुम इनकी खबर ऊपरवाले को देने का साहस करोगे? क्या एकजुट होकर तुममें उनका तिरस्कार करने का साहस है? (हाँ, है।) अभी तुम हामी भर रहे हो लेकिन जब वास्तव में उनसे सामना होगा तो शायद तुम साहस न कर सको; तुम पीछे हटकर सोचोगे, “मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है, मेरी उम्र कम है, मैं कमजोर और अकेला हूँ। अगर मसीह-विरोधी वाकई गिरोहबंद होकर मुझे धौंस देने लगें तो क्या मेरा काम तमाम नहीं हो जाएगा? परमेश्वर कहाँ है? मेरी शिकायत कौन सुनेगा? कौन मेरी शिकायत दूर कर मेरे बदले हिसाब बराबर करेगा? मेरे पक्ष में कौन खड़ा होगा?” तुममें इतनी कम आस्था क्यों है? तुम एक मसीह-विरोधी का सामना होने पर ही कायर बन गए, अगर साक्षात शैतान ने तुम्हें धमकी दे दी—तब क्या तुम परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दोगे? अगर किसी मसीह-विरोधी ने परमेश्वर के वचन तुम तक नहीं पहुँचाए तो तुम क्या करोगे? अगर परमेश्वर के वचनों की पुस्तक के बदले उसने तुमसे पैसे वसूल लिए तो तुम क्या करोगे? अगर परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें देते समय मसीह-विरोधी तुम्हारे लिए कठिनाई खड़ी करे और रुखाई से बोले तो तुम क्या करोगे? क्या इस स्थिति से निपटना आसान है? चलो मैं तुम्हें एक चतुर रणनीति बताता हूँ : जब पुस्तक वितरण का समय बिल्कुल करीब हो तो तुम्हें मसीह-विरोधी के पास खड़े हो जाना चाहिए और उत्साह के साथ मीठी-मीठी बातें करनी चाहिए, उसका भरोसा जीतने के लिए उसकी तारीफों के पुल बाँधने चाहिए। एक बार जब वह परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग तुम्हें सौंप दे तो उसकी शिकायत ऊपरवाले से करने का मौका निकालो। अगर ऊपरवाले से शिकायत करने का कोई रास्ता न मिले तो फिर विवेकशील भाई-बहनों के साथ एकजुट होने का मौका तलाशो ताकि तुम मसीह-विरोधी को रोक और काबू कर सको। यह वास्तव में कलीसिया को नुकसान की संभावना समाप्त करना है और परमेश्वर के इरादों के सर्वाधिक अनुरूप है। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि अगर मसीह-विरोधियों को इस योजना का पता चल गया तो क्या होगा? अगर तुम इस बार आश्वस्त नहीं हो तो अगले मौके का इंतजार करो। जब तुममें साहस हो और स्थितियाँ सही हों, तभी तुम कदम उठाओ। संक्षेप में कहें तो अगर तुम्हें यह डर है कि मसीह-विरोधी तुम्हारा पोषण बंद कर सकता है तो फिर शुरुआत में कुछ भी जाहिर मत होने दो। खुद को उजागर मत करो या मसीह-विरोधी को अपनी मंशा मत ताड़ने दो। जब तुम पर्याप्त आध्यात्मिक कद हासिल कर लो, जब मसीह-विरोधी के विरोध में तुम्हारे साथ खड़े होने के लिए तुम्हें ऐसे उपयुक्त लोग, सही लोग और ज्यादा लोग मिल जाएँ जो मसीह-विरोधी का भेद पहचान सकें और उसे अस्वीकार कर सकें तो यही वह मौका है जब तुम मसीह-विरोधी से संबंध तोड़ सकते हो। यह रणनीति कैसी लग रही है? (अच्छी।) कुछ लोग कह सकते हैं, “क्या यह दूसरों को धोखा देना नहीं है? क्या परमेश्वर यह नहीं चाहता कि हम ईमानदार रहें? यह तो ईमानदार होना नहीं लगता।” क्या यह दूसरों को धोखा देना है? (नहीं।) यह दानव से खिलवाड़ है। मसीह-विरोधी एक दानव है और उससे निपटने के लिए कोई भी तरीका स्वीकार्य होता है।
क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों से डरते हो? मान लो कि तुम्हारे आसपास, तुम्हारी अपनी ही कलीसिया में सचमुच कोई मसीह-विरोधी है। तुमने उसे देख लिया है; उसके पास ताकत और रुतबा है और बहुत से लोग उसका समर्थन करते हैं। उसका अपना एक धड़ा है, कुछ कट्टर अनुयायी हैं। क्या तुम उससे डरोगे? कुछ लोग कहेंगे कि डर तो लगेगा। क्या डरना ठीक है? इस डर का कम से कम एक अच्छा और सही पहलू तो है ही। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? अगर तुम उससे डरते हो तो इससे कम से कम यह तो दिखता ही है कि तुम दिल से मानते हो कि वह बुरा है, कि वह तुम्हें सता सकता है और नुकसान पहुँचा सकता है, कि वह नेक व्यक्ति नहीं है या सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं है—तुम्हारे मन में उसके बारे में कम से कम यह समझ और विवेकशीलता तो है ही। वैसे तो हो सकता है कि तुम उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित न कर सको या यह भेद न पहचान सको कि वह मसीह-विरोधी है, लेकिन तुम कम से कम यह तो जानते ही हो कि वह अच्छा व्यक्ति नहीं है, ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य का अनुसरण करता हो, न्यायी या दयालु नहीं है या ईमानदार नहीं है, इसलिए तुम उससे डरते हो। राक्षसों के अलावा ऐसे कौन-से लोग होते हैं जिनसे सामान्य और साधारण या निष्कपट लोग आम तौर पर डरते हैं? (बुरे लोगों से डरते हैं।) बुरे लोगों से हर कोई डरता है। तुम्हारा दिल कम से कम यह तो जानता ही है कि यह बुरा इंसान है। इस आधार पर परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के प्रति उसके रवैये को गौर से देखो; यह देखो कि क्या वह सत्य का अभ्यास करता है, उसके विभिन्न व्यवहारों का भेद पहचानो और उसके व्यवहारों के जरिए उसके सार को समझो और इसका भेद पहचानो। अंततः अगर तुम यह तय कर सकते हो कि वह एक मसीह-विरोधी है तो तुम्हारे डर के साथ एक दूसरा घटक भी जुड़ जाएगा—ऐसे लोगों के प्रति विवेकशीलता। यद्यपि तुम उनसे मन ही मन डरोगे, तुम उनके पक्ष में नहीं होगे और तुम दिल से उन्हें अस्वीकार कर दोगे—यह अच्छी चीज है या खराब? (अच्छी चीज है।) अगर वे तुमसे बुराई करने में साथ देने को कहें तो क्या तुम सहमत होगे? क्या तुम्हारे दिल में इसके प्रति विवेकशीलता होगी? अगर वे तुमसे परमेश्वर को गाली देने या उसकी आलोचना करने में साथ देने को कहें तो क्या तुम सहमत होगे? अगर वे तुमसे दूसरों को सताने में साथ देने को कहें और कुछ व्यक्तियों को परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें न देने को कहें तो क्या तुम सहमत होगे? भले ही तुम 100 प्रतिशत सुनिश्चित न हो कि तुम ये चीजें करने को सहमत नहीं होगे, लेकिन तुम्हें अपने दिल में कम से कम उनके क्रियाकलापों के बारे में विवेकशीलता तो होगी। हो सकता है कि तुम अनिच्छापूर्वक और दबाव में कुछ चीजें उनके साथ कर लो लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए होगा कि तुम्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया गया था और यह स्वैच्छिक नहीं होगा; कम से कम तुम मुख्य अपराधी नहीं होगे, बहुत हुआ तो तुम उनके अपराधों में सहायक होगे। भले ही उनके मुँह पर तुम उन्हें उजागर न कर सको या भड़का न सको, लेकिन तुम उनके अनुयायी या सहयोगी के रूप में भी कार्य नहीं करोगे। यह कुछ हद तक मसीह-विरोधी का तिरस्कार करना है। ज्यादातर लोग बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के डर के कारण सिर्फ खुद को बचाने की खातिर समझौते करते हैं, इसलिए तुम्हारा इसे एक अस्थायी, कामचलाऊ उपाय के तौर पर करना पहले ही अच्छी बात है। लेकिन क्या तुम्हारा इस स्तर तक पहुँचना अपनी गवाही में अडिग रहना कहलाएगा? क्या यह सत्य सिद्धांतों का पालन करना कहलाएगा? क्या यह शैतान को पराजित करना कहलाएगा? परमेश्वर की नजरों में ऐसा नहीं है। तो फिर तुम अपनी गवाही में कैसे अडिग रह सकते हो? तुम सब लोगों के पास रास्ता नहीं है और तुम बस खुद को बचाने के लिए समझौते करते रहते हो : “वे बुराई करते हैं, लेकिन मैं बुराई करने में उनका साथ देने का साहस नहीं करता; मैं दंडित होने से डरता हूँ। वे बुरे लोग हैं; वे लोगों को सताने के लिए बुरे काम करते हैं। खैर, इतना ही अच्छा है कि मैंने खुद किसी को नहीं सताया है। इस बुराई का दोष मेरे मत्थे नहीं आएगा।” अगर तुम अधिकतम इतना कर सकते हो तो यह पहले से ही अच्छा खासा है; तुम महज चापलूस हो और मध्य-मार्गी दृष्टिकोण अपनाए हुए हो लेकिन तुम गवाही नहीं दे पा रहे हो। तो फिर गवाही देने के लिए क्या किया जाना चाहिए? धर्म-सिद्धांत के तौर पर कहें तो तुम्हें बुरे लोगों को नकारना चाहिए, मसीह-विरोधियों को नकारना और उजागर करना चाहिए और मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के घर में बेलगाम होकर बुरी चीजें करने और परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाने से रोकना चाहिए। लेकिन क्या तुम यह सटीक ढंग से जानते हो कि ऐसा कैसे किया जाए? (इसके बारे में ऊपरवाले को शिकायत कर बता दो।) क्या तुम लोग इसी सीमा तक अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभा सकते हो? क्या तुम लोग इतनी ही गवाही दृढ़ होकर दे सकते हो, क्या तुम्हारा इतना ही आध्यात्मिक कद है? किसी मसीह-विरोधी के बारे में शिकायत करने के अलावा तुम लोग और क्या कर सकते हो? (हम पहले मसीह-विरोधी के नियमित व्यवहार और कुकृत्यों के तथ्य जुटा सकते हैं और फिर इन तथ्यों के आधार पर मसीह-विरोधी का भेद पहचानने के बारे में भाई-बहनों के साथ संगति कर सकते हैं। एक बार भाई-बहनों ने मसीह-विरोधी का भेद पहचानना सीख लिया तो वे सब मसीह-विरोधी को उजागर करने के कदम उठा सकते हैं और फिर हम उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर सकते हैं।) ये कदम और प्रक्रियाएँ सही हैं लेकिन कुछ विशेष मामलों के बारे में क्या कहोगे? तुम एक अगुआ के तौर पर बोल रहे हो लेकिन अगर किसी साधारण विश्वासी का सामना किसी मसीह-विरोधी से होता है तो क्या होगा? क्या यह पत्थर से सिर फोड़ने जैसी बात नहीं होगी? तुम लोग ऐसी स्थितियों में क्या करोगे? मैं तुम लोगों को आय-व्यय दर्ज करने और इसकी रिपोर्ट बनाने का एक प्रसंग सुनाता हूँ। एक व्यक्ति को हिसाब-किताब रखने का जिम्मा सौंपा गया था, एक खाता बाहरी इस्तेमाल के लिए था और दूसरा आंतरिक। एक दिन आंतरिक खाते में दो सौ डॉलर की गड़बड़ी मिली। बाद में एक पर्यवेक्षक ने आकर खातों की जाँच की तो गड़बड़ी देखकर उसने कहा, “आंतरिक खाते को फाड़ दो। सिर्फ बाहरी खाता रखो, ताकि कोई प्रमाण न बचे।” वहाँ मौजूद लोगों में से एक व्यक्ति ने इससे असहमति जताई, “यह भेंट है। चाहे यह कितनी भी रकम हो, है तो यह परमेश्वर का ही पैसा; तुम ऐसा नहीं कर सकते।” पर्यवेक्षक ने कुछ नहीं कहा लेकिन दूसरा व्यक्ति बोला, “दो सौ डॉलर होते ही क्या हैं? मसीह-विरोधी तो एक ही झटके में दसियों हजार का गबन कर देते हैं।” और इस तरह उन लोगों ने इस मसले को निपटा दिया। लेकिन बाद में एक व्यक्ति को यह तरीका गलत लगा और उसने यह मामला ऊपर निर्णायक समूह को सूचित कर दिया। समूह ने कह दिया कि दो सौ डॉलर कोई बड़ी रकम नहीं है और उनके पास इससे निपटने की फुर्सत नहीं है। जब इसकी रिपोर्ट कलीसिया के अगुआओं से की गई तो उन्होंने भी इसे संबोधित नहीं किया और उन सबने इसकी अनदेखी कर दी। जिस व्यक्ति ने इस मसले की सूचना दी थी वह परेशान होकर कहने लगा, “ये सारे लोग ऐसे कैसे हो सकते हैं? ये परमेश्वर की भेंटों के प्रति इतने गैर-जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं? ये तो इतने सरासर ढंग से धोखेबाजी करने का दुस्साहस करते हैं!” वह इस बात को लेकर परेशान था। एक दिन जब मैं उन लोगों से मिलने गया तो उस व्यक्ति ने यह मसला मुझे रिपोर्ट किया और कहा कि लेखा-जोखा रखने वाला व्यक्ति लापरवाह था, उसने खाता बिगाड़ रखा था और आखिरकार उसमें एक विसंगति थी। भले ही यह कोई बहुत बड़ा मामला नहीं था, इससे जुड़े हर व्यक्ति का रवैया अलग था। इन तथाकथित पर्यवेक्षकों और अगुआओं ने मसला संबोधित नहीं किया। उन्होंने खातों की देखरेख करने वाले व्यक्ति को न सिर्फ बाहर नहीं निकाला, बल्कि उसे बचाने का बहाना भी खोज लिया। जिस व्यक्ति ने यह मामला उठाया था वह शिकायत करता रहा; लेकिन बहुत से लोगों ने उससे संबंध रखना बंद कर दिया था। मुझे बताओ कि जब इस व्यक्ति ने यह मामला उठाया तो उसकी कैसी मानसिकता थी? अगर उसका रवैया भी उस दूसरे व्यक्ति की तरह ही होता—उस व्यक्ति की तरह जिसने यह कहा था, “सिर्फ दो सौ डॉलर की बात है, तुम क्यों इतनी सी बात का बतंगड़ बना रहे हो? मसीह-विरोधी तो एक ही झटके में दसियों हजार का गबन कर देते हैं”—तो क्या उसने तब भी इसकी सूचना दी होती? उसने नहीं दी होती। अगर वह यह कहता, “यह मेरा पैसा नहीं है; जो भी गबन करना चाहता है करने दो—वह खुद इसके लिए जिम्मेदार होगा। खैर, मैंने तो कोई गबन नहीं किया है, इसलिए मुझे यह जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है”; या “मैं पहले ही इस बारे में निर्णायक समूह और कलीसिया के अगुआओं को सूचित कर चुका हूँ और उन सबने ही मेरी उपेक्षा कर दी, इसलिए मैं अपने हिस्से का काम कर चुका हूँ और मुझे आगे परेशान होने की जरूरत नहीं है”—अगर उसका ऐसा रवैया होता तो क्या वह तब भी इस बारे में इतने अथक रूप से शिकायत करता रहता? बिल्कुल भी नहीं; अधिकतर लोग इस बारे में बहुत हुआ तो निर्णायक समूह से शिकायत करने के बाद रुक जाते। लेकिन इस व्यक्ति ने जब निर्णायक समूह से इसकी शिकायत की थी तो ठीक उसी समय नूह और अब्राहम की कहानियों पर मेरी संगति सुनी थी। यह सुनकर वह प्रेरित हुआ और सोचने लगा, “परमेश्वर के वचन सुनकर नूह पीछे हटे बिना इतने साल तक इन पर अडिग रहा। लेकिन मैं इस छोटी-सी कठिनाई का सामना करते हुए अडिग नहीं रह सकता—एक इंसान को ऐसा तो नहीं करना चाहिए!” इसलिए वह अंततः ऊपरवाले तक मामला पहुँचने तक सूचना देने में जुटा रहा और ऊपरवाले ने इस मसले को संबोधित किया। क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे बीच ऐसे बहुत सारे लोग हैं? ऐसी स्थिति का सामना होने पर तुम लोगों में से कितने इस व्यक्ति की तरह अडिग रह पाएँगे? क्या तुम लोगों को भी लगता कि दो सौ डॉलर बहुत बड़ी रकम नहीं है, यह कोई बड़ी बात नहीं है और लिहाजा यह सोचने लगते कि सिद्धांतों पर इतनी दृढ़ता से अडिग रहने या इतने गंभीर होने की कोई जरूरत नहीं है और यह भी कि जब तक कोई बहुत बड़ी गड़बड़ी नहीं होती तब तक तुम शिकायत करने का इंतजार कर सकते हो? क्या तुम लोग यह सोचोगे, “कुछ भी हो, मैंने अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा दी है। इससे निपटा जाता है या नहीं, यह अगुआओं पर निर्भर करता है। मैं तो बस साधारण विश्वासी हूँ, मेरे पास इतनी ही सामर्थ्य है, मैं बस इतना ही कर सकता हूँ। मैंने इस बारे में शिकायत कर दी है, मैं अपना दायित्व निभा चुका हूँ; बाकी बातों से मेरा वास्ता नहीं है”? क्या तुम लोग इसी तरह नहीं सोचोगे? अगर कोई तुम्हें दबाए तो क्या तुम इसकी शिकायत करने की हिम्मत नहीं दिखाओगे? इस व्यक्ति ने मसले की शिकायत करने की प्रक्रिया के दौरान दमन झेला था और कुछ लोगों ने उस पर उँगली उठाते हुए उसकी निंदा की और हमेशा उसे पीड़ा देने की कोशिश की। इन लोगों के मन में कितनी दुर्भावना भरी होगी! मुझे ये कुछ व्यक्ति याद हैं—मैं उन्हें क्यों याद रखता हूँ? उन्होंने परमेश्वर के घर का खाना खाया और परमेश्वर के दिए सारे सत्यों का सुख भोगा, फिर भी परमेश्वर की भेंटों के प्रति उनका रवैया ऐसा था। क्या उन्हें परमेश्वर के घर के लोग माना जा सकता है? वे इस लायक नहीं हैं! उनसे अपनी गवाही में अडिग रहने की अपेक्षा नहीं की जाती थी क्योंकि उनमें यह चरित्र नहीं था। लेकिन चूँकि वे वो तक नहीं कर पाए जो उनसे करने की उम्मीद थी, इसलिए क्या वे अब भी परमेश्वर के घर में रहने लायक थे? क्या ऐसे लोगों को याद रखा जाना चाहिए? क्या तुम लोग ऐसे इंसानों को पसंद करते हो? (नहीं।) तो फिर तुम लोग कैसे लोगों को पसंद करते हो? (उन्हें जो सिद्धांतों का पालन करते हैं, जो परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में अंत तक जुटे रहते हैं।) मुझे उन निकम्मे लोगों से घृणा होती है जो मजबूत लोगों के सामने डर जाते हैं और निष्कपट लोगों के सामने साहसी बनते फिरते हैं। मुझे उन लोगों से भी घृणा है जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं, उनसे भी घृणा है जिनकी सत्य में रुचि नहीं है, और खासकर उनसे जिन्होंने कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बावजूद सत्य को बिल्कुल भी नहीं समझा है या जो बिल्कुल भी नहीं बदले हैं, और अब भी अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और उससे सावधान रहते हैं। अगर ऐसे लोगों के स्पष्ट रूप से बुराई करने के कोई मामले नहीं हैं तो इन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं उनसे घृणा करता हूँ। कितनी घृणा? ठीक उतनी ही घृणा जितनी मैं मसीह-विरोधियों से करता हूँ। क्यों? मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचन को एक वस्तु मानते हैं ताकि बेचकर, व्यापार कर और लेन-देन कर इससे मुनाफा कमाया जाए। भले ही ऐसा कोई व्यक्ति परमेश्वर के वचनों से मुनाफा न कमाए, फिर भी परमेश्वर के वचनों के प्रति उसके रवैये से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वह बिल्कुल मसीह-विरोधियों जैसा है, कि वह परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चलता, या यहाँ तक कि उसमें परमेश्वर की भेंटों के प्रति जो सरल और सबसे बुनियादी रवैया होना चाहिए वह भी नहीं है, और वह जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है। ऐसे लोग किस मिट्टी के बने हैं? ये यहूदा हैं जो प्रभु को और अपने दोस्तों को धोखा देते हैं। यह कहानी सुनकर तुम लोगों के क्या विचार हैं? क्या तुम लोग ऐसी स्थितियों में सिद्धांतों का पालन कर अपने रुख पर कायम रह सकते हो? अगर तुम निकम्मे हो, हमेशा घबराकर पीछे हटते हो, हमेशा मसीह-विरोधियों की ताकत से डरते हो, उनके सताए जाने से डरते हो, उनकी ताकत से नुकसान पहुँचने से डरते हो और तुम्हारे दिल में हमेशा डर बैठा रहता है, और तुममें इससे निपटने के लिए बुद्धि नहीं है, तुम हमेशा मसीह-विरोधियों से समझौता कर लेते हो, उनकी शिकायत करने या उन्हें उजागर करने का साहस नहीं करते, या उन्हें अस्वीकार करने के लिए अपना साथ देने के लिए दूसरे लोगों को खोजने की हिम्मत नहीं करते तो तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो परमेश्वर की गवाही में अडिग रह सके—तुम निकम्मे हो, जिस थाली में खाते हो उसी में छेद कर देते हो। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को वस्तुएँ मानते हैं, इनका उपयोग अनुचित रूप से अंधाधुंध मुनाफा कमाने, तुम्हें धमकाने और तुम्हारा पोषण रोकने के लिए करते हैं, और अगर तुम ऐसी स्थितियों में भी उन्हें अस्वीकार नहीं कर पाते, तो क्या तुम एक विजेता हो? क्या तुम मसीह का अनुयायी होने लायक हो? अगर तुममें यह क्षमता भी नहीं है कि तुम परमेश्वर से मुफ्त में मिलने वाले वचन और आध्यात्मिक पोषण प्राप्त कर सको, और इन चीजों को खा-पी सको या इनका आनंद ले सको तो इससे तुम कितने तुच्छ बन जाते हो?
मैंने अभी-अभी जिन तथ्यों पर संगति की है वे परमेश्वर के वचनों को वस्तु मानने की मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को नहीं खाते-पीते, और वे सत्य को नहीं स्वीकारते, वे परमेश्वर के वचनों से अपनी शोभा बढ़ाने के वास्ते इन्हें महज सरसरी तौर पर पढ़ लेते हैं और एक निगाह डाल लेते हैं। परमेश्वर के वचनों को वे अपनी वस्तुएँ और निजी संपत्ति मानते हैं, ताकि वे मनचाहा धन और लाभ पाने के लिए इनका लेन-देन कर सकें, और ताकि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और खाने-पीने की स्वतंत्रता को नियंत्रित कर सकें। ऐसे मसीह-विरोधी बुरे लोग होते हैं, दानव और छद्म-विश्वासी होते हैं; वे अविश्वासियों की जमात के हैं! ऐसा कोई भी परमेश्वर के घर में दिखाई दे तो उसे निष्कासित कर देना चाहिए, हमेशा-हमेशा के लिए निष्कासित कर देना चाहिए! क्या ऐसे लोगों से सामना होने पर तुम लोगों में उन्हें अस्वीकार करने की हिम्मत है? क्या तुम लोगों में एकजुट होकर उन्हें उजागर करने की हिम्मत है? उन्हें उजागर किया जाना चाहिए; उन्हें अस्वीकार किया जाना चाहिए। परमेश्वर के घर पर सत्य का शासन है। अगर तुम लोगों का ऐसा आध्यात्मिक कद नहीं है तो इससे साबित होता है कि परमेश्वर के वचन और सत्य तुम्हारा जीवन नहीं बन पाए हैं। अगर तुम डरपोक हो, शैतानों से डरते हो, बुरे लोगों से डरते हो, मसीह-विरोधियों से लड़ने के बजाय खुद को बचाने के लिए उनसे समझौते करना बेहतर समझते हो, भले ही इसका मतलब परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना या उन्हें प्राप्त न करना हो तो तुम भूखे मरने लायक हो और अगर तुम ऐसा करते हो तो किसी को भी तुम पर दया नहीं आएगी। अगर तुम लोगों के सामने ऐसी स्थितियाँ आएँ तो तुम्हें कैसे चुनना और अभ्यास करना चाहिए? तुम्हें उन लोगों को फौरन उजागर करना चाहिए। परमेश्वर के वचन वस्तुएँ नहीं हैं; वे परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को प्रदान की जाती हैं, वे किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं होतीं। किसी को भी परमेश्वर के वचनों को अपने पास रोकने या अपने लिए ही रखने का अधिकार नहीं है। परमेश्वर के वचन उसका अनुसरण करने वाले सभी चुने हुए लोगों को मुफ्त में और बिना प्रतिफल लिए बाँटे जाने चाहिए। जो भी व्यक्ति उन्हें अपने पास रोकता है, उनसे गलत ढंग से अंधाधुंध मुनाफा पाने की कोशिश करता है या परमेश्वर के वचनों के बारे में व्यक्तिगत योजनाएँ बनाता है तो वह शाप का भागी है। वह ऐसा व्यक्ति है जिसे उजागर और अस्वीकार करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों को खड़ा होना चाहिए और उसे बहिष्कृत कर हटा देना चाहिए।
आज मैंने जिन दो मदों पर संगति की क्या वे यह पर्याप्त रूप से स्पष्ट करती हैं कि कैसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों का तिरस्कार करते हैं? (हाँ।) मसीह-विरोधी कभी भी परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते, न वे इन्हें सँजोते हैं, न मूल्यवान समझते हैं, न ही इनसे सृष्टिकर्ता के वचनों की तरह पेश आते हैं। इसके बजाय वे हर मोड़ पर अपनी अकथनीय, घृणित, कुत्सित मंशाएँ दिखाते हैं। वे केवल अपने अकथनीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करना चाहते हैं, और चाहे भौतिक या अमूर्त चीजों की बात हो, वे परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल अपने लिए अनुचित फायदा उठाने में, पैसा और भौतिक चीजें हासिल करने में या लोगों से अपनी चापलूसी, आदर, आराधना और अनुसरण कराने का अपना लक्ष्य पूरा करने में करना चाहते हैं। परमेश्वर इन चीजों से नफरत करता है और लोगों को इन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जब कभी ऐसे लोगों को पाए या ऐसी घटनाएँ होते देखे तो उसे इन्हें उजागर और अस्वीकार करने के लिए खड़ा होना चाहिए, और ऐसे लोगों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच तनकर खड़े होने से रोकना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि ऐसी चीजें सामने आने पर वे इनके बारे में ऊपरवाले से शिकायत करेंगे, लेकिन यह बहुत ही निष्क्रिय और धीमी बात है। अगर तुम इन चीजों की रिपोर्ट ऊपरवाले को करके रह जाते हो तो तुम बहुत ही बेकार हो! तुमने परमेश्वर के इतने सारे वचन खाए-पिए हैं और इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं, फिर भी तुम सिर्फ रिपोर्ट करना जानते हो—इसका अर्थ है कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद निहायत छोटा है! निश्चित ही मसीह-विरोधियों से निपटने के लिए तुम्हारे पास दूसरे तरीके होंगे? ऊपरवाले को शिकायत भेजना तो अंतिम उपाय है, यह ऐसा कदम है जो निहायत जरूरी होने पर ही उठाया जाता है। अगर तुम्हारी गिनती कम है, तुम मुकाबला करने लायक नहीं हो और तुममें विवेकशीलता नहीं है और तुम इस बारे में आश्वस्त नहीं हो कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है या नहीं, तो हो सकता है कि तुम उसकी तमाम अभिव्यक्तियों और क्रिया-कलापों को उजागर करने का साहस न कर सको। लेकिन अगर तुम्हें पक्का यकीन है कि वह एक मसीह-विरोधी है और फिर भी तुम उसका मुकाबला करने, उसे अस्वीकार करने और उसे हराने के लिए खड़े होने का साहस नहीं करते तो क्या तुम निपट बेकार नहीं हो? तुम जो थोड़ा-सा सत्य समझते भी हो उसका उपयोग नहीं कर रहे हो। क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि जिस चीज को तुम समझते और सुनते हो वह सत्य है? अगर ऐसा है तो फिर क्यों नहीं तुम सख्ती और धार्मिकता से खड़े होने और मसीह-विरोधियों के खिलाफ लड़ने का साहस करते? ऐसा तो है नहीं कि मसीह-विरोधी कोई शासन करने वाले अधिकारी हों—तुम उनसे किसलिए घबराए हुए हो? अगर ऐसी नौबत हो कि उतावली में आकर उन्हें उजागर करने से वे तुम्हें अधिकारियों को सौंप सकते हैं—ऐसी परिस्थितियों में तुम्हें सावधान रहना चाहिए, उन्हें भड़काना नहीं चाहिए, उनकी गुपचुप आलोचना करने और साख घटाने के लिए तुम्हें होशियारी भरे तरीके अपनाने चाहिए और उन्हें धीरे-धीरे हटाना चाहिए। क्या उन्हें चुपचाप हटाना ज्यादा प्रभावशाली तरीका नहीं है? (हाँ।) तो ठीक है, आज की संगति यहीं तक। अलविदा!
12 सितंबर 2020
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।