मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं (खंड छह)

IV. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने का गहन-विश्लेषण

लोगों को नियंत्रित करना मसीह-विरोधियों द्वारा उपयोग की जाने वाली युक्तियों में से एक है। वे लोगों को कैसे नियंत्रित करते हैं? मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के तरीकों के एक से ज्यादा संग्रह होते हैं; उनके पास कई संग्रह होते हैं। क्या तुम लोगों ने कभी इसका अनुभव किया है? हो सकता है कि कुछ व्यक्तियों ने अगुआ के रूप में कभी कार्य नहीं किया हो, लेकिन वे दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं—यह मसीह-विरोधी का बनना है। उसकी आयु, स्थान या परिस्थितियाँ चाहे कुछ भी हों, वह लोगों पर अपना नियंत्रण रखना चाहता है। यहाँ तक कि भोजन करने, कार्य करने या विशेषज्ञता के अलग-अलग क्षेत्रों या पेशेवर मामलों में भी वह चाहता है कि लोग उसकी बात सुनें और वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करता जो उसकी बात नहीं सुनता है। वह तो कलीसिया में सत्ता पर कब्जा करने की अपनी इच्छा को भी नियंत्रित नहीं कर पाता है। वह इसे अपनी जिम्मेदारी और बाध्यता को पूरा करने के रूप में देखता है और सोचता है कि वह बस अपना भार उठा रहा है, बिना इस बात को समझे कि यह उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छा है, कि यह उसका भ्रष्ट स्वभाव है। तो, मसीह-विरोधी लोगों को कैसे नियंत्रित करता है? मिसाल के तौर पर, जब उसे अगुआ के रूप में चुना जाता है तो पहले ही दिन वह सोचने लगता है, “इन लोगों की खान-पान की आदतें और दैनिक दिनचर्या अनियमित है; यहाँ बहुत सारा कार्य करना होगा। अगुआ होने के नाते महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सँभालनी पड़ती हैं—यह एक भारी बोझ है!” मसीह-विरोधी पूरा दिन अपने कमरे में बंद रहकर दो या तीन पन्ने की सामग्री लिखने में बिता देता है। इस सामग्री में क्या है? सबसे पहला, इसका संबंध भोजन करने से है। भोजन विशिष्ट समय पर, विशिष्ट स्थानों पर करना चाहिए और भोजन विशिष्ट मात्राओं में लिया जाना चाहिए। सुबह 6:30 बजे नाश्ता, दोपहर 12:30 बजे दिन का भोजन और शाम 6:30 बजे रात का भोजन—भोजन इन तीन समय पर किया जाएगा, ना एक मिनट पहले और ना एक मिनट बाद। परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, चाहे बारिश होने लगे या तूफान शुरू हो जाए, तुम्हें समय का पाबंद होना चाहिए और अगर तुम इन नियमों का उल्लंघन करते हो तो तुम्हें भोजन नहीं मिलेगा। फिर दैनिक दिनचर्या का मामला है, जो बहुत जरूरी है। तुम्हें हर सुबह 6:00 बजे बिस्तर से उठ जाना चाहिए, चाहे पिछली रात तुम कितनी भी देर से सोने क्यों ना गए हो। तुम्हें दोपहर 1:00 बजे भोजन करने के बाद आराम करना चाहिए और हर रात 10:00 बजे तुरंत सोने चले जाना चाहिए। जब वह भोजन करने और दैनिक दिनचर्या के लिए नियम बनाना समाप्त कर लेता है तो उसके बाद भी कई दूसरे खास नियम रहते हैं। मिसाल के तौर पर, तुम्हें निर्दिष्ट स्थानों पर ही भोजन करना चाहिए और भोजन करते समय बिल्कुल शोर नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति को खास पोशाक पहननी पड़ेगी, वगैरह-वगैरह। ये नियम बहुत ही ज्यादा ब्योरेवार हैं, परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेशों से भी ज्यादा। इन रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। जब तक व्यक्ति का दैनिक जीवन और उसके खान-पान की आदतें संरचित और उपयुक्त हैं, जो उसकी सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुँचाती हैं, तब तक इस सिद्धांत का पालन करना पर्याप्त होना चाहिए। ऐसे ब्योरेवार नियमों की कोई जरूरत नहीं है। तो मसीह-विरोधी इतने ब्योरेवार नियम क्यों बनाता है? वह कहता है, “लोगों को बिना देखरेख के यूँ ही छोड़ देना अच्छा नहीं है। परमेश्वर के वचनों में इन मामलों का कभी जिक्र नहीं किया जाता है और इन खास ब्योरों के बिना, हमारा जीवन अनुशासनहीन, संरचनाहीन और किसी भी मानवीय समानता के बिना होगा। अब जब मैं अगुआ हूँ तो तुम सबको सुधारा जा सकता है। अब तुम लोग भटकती भेड़ें नहीं हो; तुम्हारी देखभाल करने के लिए कोई है।” दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण और मामूली दोनों तरह के मामलों, जैसे कि कपड़े, भोजन, आश्रय और परिवहन, सभी को सतर्कतापूर्वक विनियमित किया गया है। फिर वह तुम्हें एक “राज़” बताता है, वह कहता है, “परमेश्वर के वचन रोजमर्रा के जीवन के इन खास ब्योरों का कभी जिक्र नहीं करते। बस इसलिए कि परमेश्वर ने इस बारे में कुछ नहीं बोला है, इसका यह मतलब नहीं है कि हमें यह नहीं पता होना चाहिए। हम मनुष्यों को उन सभी ब्योरेवार मामलों के कार्य की जिम्मेदारी लेनी होगी, जिनके बारे में परमेश्वर ने कभी बात नहीं की।” वह परमेश्वर के वचनों के बाहर नियमों और विनियमों का एक संग्रह तैयार करता है, जो स्पष्ट शब्दों के साथ ब्योरेवार और स्पष्ट रूप से परिभाषित प्रतीत होते हैं, ताकि इनसे सत्य को बदला जा सके और दूसरों की अगुआई की जा सके। एक बार जब ये खास और स्पष्ट रूप से परिभाषित विनियम जारी कर दिए जाते हैं तो लोगों से उसके तथाकथित नियमों का पालन करने की उम्मीद की जाती है। अगर कोई इन नियमों का पालन करने से चूक जाता है, उन्हें नहीं मानता है, अनदेखा करता है या उनका उल्लंघन करता है तो मसीह-विरोधी उनकी काट-छाँट करता है। उनकी काट-छाँट करने के बाद वह सुनिश्चित करता है कि वह व्यक्ति इन नियमों को स्वीकार कर ले और उन्हें परमेश्वर से स्वीकार कर ले। वह इन चीजों का उपयोग करके सत्य को प्रतिस्थापित और लोगों की अगुआई करता है तो वे लोग किस तरह का मार्ग चुनेंगे? वे सिर्फ विनियमों और अनुष्ठानों का पालन करेंगे, महज विधि का पालन करते रहेंगे। ऐसी अगुआई के अंतर्गत, लोग अपनी धारणाओं के जरिये गलत ढंग से यह विश्वास कर सकते हैं कि “अगर मैं बाहरी विनियमों और औपचारिकताओं को बनाए रख सकता हूँ, अगर मैं जागने, सोने और भोजन करने के कार्यक्रम का पालन कर सकता हूँ तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सत्य का अभ्यास कर रहा हूँ? फिर क्या मैं बचाया नहीं जाऊँगा?” क्या उद्धार वाकई इतना आसान है? क्या सत्य इतनी आसानी से प्राप्त हो जाता है? क्या सत्य सिर्फ मानवीय व्यवहार से संबंधित है? नहीं, ऐसा नहीं है। मसीह-विरोधी लोगों के स्वभाव, सत्य की उनकी समझ और सत्य के अभ्यास में बदलावों से कैसे पेश आता है? वह इनसे ऐसे पेश आता है मानो वे सार्वजनिक व्यवस्था का पालन करने या देश के कानूनों को मानने के समान हों। वह लोगों को गलत ढंग से यह विश्वास करने को भी मजबूर करता है कि ये नियम और विनियम परमेश्वर के वचनों से कहीं ज्यादा बड़े, ठोस और व्यावहारिक हैं। दरअसल, वह लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए इन चीजों का उपयोग करता है और उनके व्यवहार को मजबूती से नियंत्रित करता है। वह सत्य के उपयोग से समस्याओं को हल नहीं करता है और ना ही वह लोगों को सत्य सिद्धांतों के अनुसार जीने, कार्य करने और अपने कर्तव्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके बजाय, वह लोगों द्वारा अनुसरण करने के लिए बनावटी रूप से नियमों, विनियमों और प्रणालियों का एक समूह तैयार करता है। उसका क्या उद्देश्य है? वह चाहता है कि लोग उससे सहमत हों, वे उसे होशियार समझें और इन नियमों और विनियमों का अभ्यास और पालन करके उसकी अगुआई को मानें। इस तरह से वह अपने लक्ष्य हासिल करता है। वह लोगों के व्यवहार को सीमित और मानकीकृत करके सभी के बारे में सबकुछ नियंत्रित करने का अपना ध्येय हासिल करने का लक्ष्य रखता है। और हो सकता है कि उसके कार्य करने के उद्देश्यों के संबंध में, उसमें रुतबे की स्पष्ट इच्छा ना हो, लेकिन अंतिम परिणाम यह होता है कि वह लोगों को नियंत्रित करता है और लोग उसके द्वारा तय किए गए नियमों और विनियमों के अनुसार पूरी तरह से जीते और कार्य करते हैं। ऐसी परिस्थिति में, क्या अब भी लोगों के दिलों में सत्य की जगह होती है? नहीं होती है। मसीह-विरोधियों के पास आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे सत्य नहीं समझते हैं। अगर तुम उनके साथ मिलकर अपना कलीसियाई जीवन जीते हो तो वे तुम्हें आज यह करने को तो कल वह करने के लिए कहेंगे और मूल रूप से सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करने में असमर्थ होंगे। इसके बजाय, वे तुम्हें पालन करने के लिए सिर्फ विनियमों का एक ढेर दे देंगे। हो सकता है कि तुम उनका पालन करते-करते बुरी तरह थक जाओ, लेकिन तुम्हारे पास उनका पालन करने से मना करने का विकल्प नहीं है। वे तुम्हें मुक्त रूप से कार्य नहीं करने देंगे। यह एक तरीका है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करते हैं।

मसीह-विरोधी मुख्य रूप से लोगों में क्या नियंत्रित करता है? (उनके विचार।) सही कहा; वह मुख्य रूप से लोगों के विचारों को नियंत्रित करता है। यह सिर्फ लोग क्या कहते और करते हैं उसे नियंत्रित करने के बारे में नहीं है। वह सत्य के बारे में संगति करने के बहाने तुम्हें गुमराह करने के लिए खोखले सिद्धांतों और चालाक कुतर्कों का उपयोग करता है, जिसका लक्ष्य तुम्हारे विचारों को नियंत्रित करना है, ताकि वह तुम्हें उसकी आज्ञा मानने और उसकी अगुआई का अनुसरण करने के लिए मजबूर कर सके। लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने का यही मतलब होता है। अगर तुम उसके निर्देशों का पालन नहीं करते हो तो तुम्हें ऐसा लग सकता है कि तुम सत्य के विरुद्ध जा रहे हो और यहाँ तक कि तुम खुद को उसका ऋणी भी महसूस कर सकते हो या तुम्हें ऐसा लग सकता है कि जैसे तुम उसका सामना नहीं कर सकते हो। यह इस बात की निशानी है कि तुम पहले से ही उसके नियंत्रण में हो। लेकिन, अगर तुम सत्य का अभ्यास नहीं करते हो या परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं करते हो तो क्या तुम अपने दिल में परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करते हो? अगर तुम ऐसा नहीं महसूस करते हो तो इसका मतलब है कि तुममें जमीर और मानवता का अभाव है। अगर तुम सत्य का अभ्यास करने के बजाय, अपने दिल में बेचैनी की कोई भावना या दोषी जमीर के बिना, मसीह-विरोधी की आज्ञा मान सकते हो तो इसका मतलब यह है कि तुम उसके नियंत्रण में हो। मसीह-विरोधी के नियंत्रण की सबसे आम घटना यह है कि उसके अधिकार के दायरे में, अंतिम फैसला सिर्फ उसी का होता है। अगर वह मौजूद नहीं है तो कोई भी व्यक्ति फैसला लेने या मामले को निपटाने की हिम्मत नहीं करता है। उसके बिना, दूसरे लोग खोए हुए बच्चों की तरह हो जाते हैं, जो प्रार्थना करने, तलाश करने या आपस में विचार-विमर्श करने से अनजान होते हैं और कठपुतली या मुर्दों की तरह व्यवहार करते हैं। लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर जो कहते हैं, उस बारे में हम यहाँ विस्तार से बात नहीं करेंगे। यकीनन ऐसे कई बयान और युक्तियाँ हैं जिनका वे उपयोग करते हैं और इसके फलस्वरूप जो परिणाम होते हैं वे उन लोगों पर होते हुए देखे जा सकते हैं जिन्हें गुमराह किया गया है। चलो मैं तुम्हें एक मिसाल देता हूँ। औसत काबिलियत वाले कुछ व्यक्ति हैं, जो बहुत बुरे नहीं हैं, जो अपना कर्तव्य निष्ठा से करते हैं और कभी-कभार ही नकारात्मक होते हैं। लेकिन, अपना कर्तव्य करने के लिए कुछ समय तक एक मसीह-विरोधी के साथ काम करने के बाद, वे उस मसीह-विरोधी पर निर्भर रहने लगते हैं। वे सभी चीजों में मसीह-विरोधी की अगुआई का अनुसरण करना पसंद करते हैं और मसीह-विरोधी उनका सबसे बड़ा सहारा बन जाता है। जैसे ही उन्हें इस मसीह-विरोधी से अलग कर दिया जाता है तो वे जो भी करते हैं, उसमें निष्फल हो जाते हैं। मसीह-विरोधी की मौजूदगी के बिना, वे अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में प्रगति करना बंद कर देते हैं और यहाँ तक कि किसी समस्या का सामना करने पर, वे संगति के जरिये परिणाम प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। वे सिर्फ मसीह-विरोधी के वापस लौटने और उनके लिए इसे हल करने का इंतजार कर सकते हैं। दरअसल, शुरू-शुरू में, मसीह-विरोधी के नियंत्रण से पहले इन व्यक्तियों में अपनी काबिलियत, अक्ल, अनुभव और पृष्ठभूमि के बल पर ऐसी चीजों को सँभालने की क्षमता थी, लेकिन उसके द्वारा नियंत्रित होने के बाद अब मसीह-विरोधी की मौजूदगी के बिना कोई भी व्यक्ति मामलों को सँभालने के लिए फैसले लेने या स्पष्ट हल पेश करने की हिम्मत नहीं करता है। ऐसा लगता है जैसे उनके विचारों को कैद कर लिया गया है, जो कि अर्ध-लकवाग्रस्त लोगों के लक्षणों से मिलता-जुलता है। इन लोगों को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधी ने ऐसी कौन-सी चीजें की हैं जिससे वे ऐसे व्यवहार प्रदर्शित करने लगे हैं? यकीनन, उन्हें दिल और दिमाग से आज्ञा मनवाने के लिए कुछ स्पष्ट कहावतें या बयान जरूर दिए गए होंगे। कुछ ऐसे बयान, दृष्टिकोण या क्रिया-कलाप भी जरूर रहे होंगे जिनसे ये लोग सहमत थे। लेकिन, मसीह-विरोधियों में सत्य वास्तविकता का पूरा अभाव है। उनके बयान और दृष्टिकोण, चाहे सही ही क्यों ना हों, लोगों को गुमराह करने के लिए होते हैं और उनमें कोई सत्य वास्तविकता दिखाई नहीं देती है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों की सराहना करते हैं क्योंकि उनके पास सचमुच कुछ खूबियाँ और प्रतिभाएँ होती हैं। लेकिन, ये गुण यह नहीं दर्शाते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है। जो लोग मसीह-विरोधियों की आराधना करते हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास सत्य का अभाव होता है, वे लोगों को नहीं पहचान सकते हैं और यही कारण है कि वे मसीह-विरोधियों की और यहाँ तक कि कुछ विख्यात और महान आध्यात्मिक हस्तियों की भी आराधना कर पाते हैं। कुछ लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो सकते हैं, लेकिन यह सिर्फ कुछ देर के लिए ही होता है और एक बार जब वे समझ जाएँगे कि मसीह-विरोधी सिर्फ आध्यात्मिक सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते हैं, कि उन्होंने कलीसिया के कार्य की रक्षा करने के लिए कुछ नहीं किया है और वे सच में पाखंडी फरीसी हैं तो वे उन्हें अस्वीकार कर देंगे और उनसे नफरत करने लगेंगे। मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी खूबियों और वाक्पटुता का उपयोग करके सत्य नहीं समझने वाले लोगों को गुमराह करने की बहुत सारी घटनाएँ हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम कोई उचित सुझाव देते हो तो सभी को इस सही प्रस्ताव पर चारों ओर से संगति करते रहना चाहिए और यही सही मार्ग है और उनके कर्तव्य के प्रति निष्ठा और जिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है, लेकिन मसीह-विरोधी अपने दिल में सोचता है, “मैं पहले इस प्रस्ताव के बारे में कैसे नहीं सोच पाया?” अपने दिल की गहराई में वह इस बात को मानता है कि यह प्रस्ताव सही है, लेकिन क्या वह इसे स्वीकार कर सकता है? अपनी प्रकृति के कारण, वह तुम्हारे सही सुझाव को बिल्कुल स्वीकार नहीं करेगा। वह तुम्हारे प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, फिर वह एक दूसरी योजना लेकर आएगा ताकि तुम्हें यह महसूस करा सके कि तुम्हारा प्रस्ताव पूरी तरह से अव्यवहार्य है और उसकी योजना बेहतर है। वह चाहता है कि तुम यह महसूस करो कि उसके बिना तुम्हारा काम नहीं चल सकता है और उसके कार्य करने से ही हर कोई प्रभावशाली हो सकता है। उसके बिना कोई भी कार्य सही तरीके से करना नामुमकिन है और हर कोई नाकाबिल हो जाता है और कोई भी कार्य पूरा नहीं करवा सकता है। मसीह-विरोधी की रणनीति हमेशा नया और अनोखा दिखना और भव्य दावे करना है। भले ही किसी और के बयान कितने भी सही क्यों ना हों, वह उन्हें अस्वीकार कर देगा। चाहे दूसरे लोगों के सुझाव उसके अपने विचारों के अनुरूप क्यों ना हों, अगर वह उसके द्वारा पहले प्रस्तावित नहीं किए गए थे तो वह उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा और ना ही अपनाएगा। इसके बजाय, वह उनके महत्व को कम करने के लिए सबकुछ करेगा, फिर उन्हें नकारेगा और उनकी निंदा करेगा, लगातार उनमें कमियाँ निकालता रहेगा जब तक कि सुझाव देने वाले व्यक्ति को यह महसूस नहीं होने लगता है कि उसके विचार गलत थे और वह अपनी गलती स्वीकार नहीं कर लेता है। सिर्फ उसके बाद ही आखिर में मसीह-विरोधी इस बात को जाने देगा। मसीह-विरोधी दूसरों के महत्व को कम करके खुद को कायम करने का आनंद लेते हैं और उनका लक्ष्य दूसरों से अपनी आराधना करवाना और खुद को केंद्र में रखवाना है। वे सिर्फ खुद को चमकने देते हैं, जबकि दूसरे सिर्फ पृष्ठभूमि में खड़े रह सकते हैं। वे जो भी कहते या करते हैं वह सही है और दूसरे जो भी कहते या करते हैं वह गलत है। वे अक्सर दूसरों के दृष्टिकोणों और क्रिया-कलापों को नकारने के लिए, दूसरों के सुझावों में कमियाँ ढूँढ़ने के लिए और दूसरों के प्रस्तावों में गड़बड़ करने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए नए दृष्टिकोण पेश करते हैं। इस तरह से दूसरे लोगों को उनकी बात सुननी पड़ती है और उनकी योजनाओं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वे इन तरीकों और रणनीतियों का उपयोग लगातार तुम्हें नकारने, तुम पर आक्रमण करने और तुम्हें यह महसूस कराने के लिए करते हैं कि तुम अयोग्य हो, जिससे तुम उनके प्रति ज्यादा-से-ज्यादा आज्ञाकारी बनते जाते हो, उनकी और ज्यादा सराहना करते हो और उनका और ज्यादा सम्मान करते हो। इस तरह से तुम उनके द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित हो जाते हो। यह वह प्रक्रिया है जिसके जरिये मसीह-विरोधी लोगों को दबाते हैं और नियंत्रित करते हैं।

मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह के तरीकों का उपयोग करता है; यह बस एक इशारा या कुछ शब्द नहीं हैं, जो लोगों को उसका अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं—यह इतना आसान बिल्कुल नहीं है। चाहे यह लोगों को नियंत्रित करने की बात हो या अधिकार के एक पहलू, जैसे कि कार्यकर्ता-संबंधी फैसलों, वित्तीय मामलों, या अंतिम फैसलों वगैरह को नियंत्रित करने की, वह अलग-अलग युक्तियों का उपयोग करेगा और निस्संदेह, वह उन्हें सिर्फ कभी-कभी ही नहीं करेगा, बल्कि वह तब तक खुद का दिखावा करने और खुद की गवाही देने का लगातार प्रयास करता रहेगा जब तक लोग उसकी सराहना नहीं करते हैं और उसे नहीं चुनते हैं और इसके बाद अधिकार उसका हो जाता है। इस लक्ष्य को हासिल करने में उसे कुछ समय लगा। लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी जिस एक और तरीके का उपयोग करता है वह है लगातार अपना दिखावा करना, सभी को अपने बारे में अवगत कराना और ज्यादा लोगों को परमेश्वर के घर में अपने योगदानों के बारे में बताना। मिसाल के तौर पर, वह कह सकता है, “इससे पहले मैंने सुसमाचार प्रचार करने के लिए कुछ तरीके पेश किए थे और उससे सुसमाचार प्रचार की प्रभावशीलता में सुधार हुआ है। आजकल, कुछ दूसरी कलीसियाएँ भी इन तरीकों को अपना रही हैं।” दरअसल, अलग-अलग कलीसियाओं ने सुसमाचार प्रचार के काफी अनुभव का सारांश प्रस्तुत किया है, लेकिन मसीह-विरोधी लगातार अपने सही फैसलों और उपलब्धियों के बारे में डींगें हाँकता रहता है, लोगों को उनके बारे में बताता रहता है, उन पर जोर देता रहता है और जहाँ भी जाता है उन्हें तब तक दोहराता रहता है जब तक सभी को उनके बारे में पता नहीं चल जाता है। उसका क्या लक्ष्य है? अपनी खुद की छवि और प्रतिष्ठा का निर्माण करना, ज्यादा लोगों से तारीफ, समर्थन और आदर इकट्ठा करना और लोगों को हर चीज के लिए उससे मदद माँगने के लिए मजबूर करना। क्या इससे मसीह-विरोधी का लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने का लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता है? ज्यादातर मसीह-विरोधी इसी तरह से कार्य करते हैं और लोगों को गुमराह करने, फँसाने और नियंत्रित करने की भूमिकाओं को स्वीकार करते हैं। कलीसिया, सामाजिक समूह या कार्य-व्यवस्था चाहे कोई भी हो, जब भी कोई मसीह-विरोधी प्रकट होता है तो ज्यादातर लोग अनजाने में ही उसकी आराधना करना और उसका आदर करना शुरू कर देते हैं। जब भी वे ऐसी मुश्किलों का सामना करते हैं, जहाँ वे भ्रमित महसूस करते हैं और उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए किसी व्यक्ति की जरूरत पड़ती है, खासतौर पर, जब उन महत्वपूर्ण परिस्थितियों में कोई फैसला लेना होता है तो वे प्रतिभाशाली मसीह-विरोधी को याद करते हैं। वे अपने दिलों में यह मानते हैं कि “काश अगर वह यहाँ होता तो सब ठीक हो जाता। सिर्फ एक वही है जो इस मुश्किल को पार करने में हमारी मदद करने के लिए सलाह और सुझाव दे सकता है; उसके पास सबसे ज्यादा विचार और हल हैं, उसके अनुभव सबसे समृद्ध हैं और उसका दिमाग सबसे फुर्तीला है।” क्या यह सच्चाई कि ये लोग मसीह-विरोधी की इस हद तक आराधना कर सकते हैं, सीधे उसके दिखावा करने, प्रदर्शन करने और घूम-घूमकर अपनी नुमाइश करने के आम तरीके से संबंधित नहीं है? अगर वह अपने शब्दों और कार्यों में गंभीरता दिखाता, अगर वह कोई ऐसा व्यक्ति होता जो अपना सिर झुकाए कड़ी मेहनत करता रहता, अगर वह संयम से बोलता और लगन से कार्य करता, कभी प्रचार या दिखावा नहीं करता, डींगें तो बिल्कुल नहीं हाँकता तो वह लोगों को गुमराह नहीं कर पाता और उनसे अपनी कद्र और सराहना नहीं करवा पाता। तो फिर कुछ लोग जो अपेक्षाकृत ईमानदार होते हैं, सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और लगन से कार्य कर सकते हैं, वे अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मुश्किल से कभी-कभार ही क्यों चुने जाते हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर लोगों में सत्य वास्तविकता का अभाव होता है और वे सूझ-बूझ में कुशल नहीं होते हैं। लोगों में उन लोगों की तरफदारी करने की प्रवृत्ति होती है जिनमें खूबियाँ, वाक्पटुता और दिखावा करने की विशेष रुचि होती है। वे ऐसे लोगों से खासकर ईर्ष्या करते हैं और उन्हें स्वीकृति देते हैं और वे उनके साथ बातचीत करना पसंद करते हैं। फलस्वरूप, मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ज्यादातर लोगों के लिए आराधना और सराहना की वस्तुएँ बन जाते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के कई तरीके होते हैं, वे लोगों के दिलों में अपने रुतबे और अपनी छवि को प्रबंधित करने में समय और ऊर्जा लगाने से नहीं हिचकिचाते हैं और इस सबका अंतिम लक्ष्य उन पर नियंत्रण हासिल करना होता है। इस लक्ष्य को हासिल करने से पहले मसीह-विरोधी क्या करता है? रुतबे के प्रति उसका क्या रवैया होता है? यह कोई सामान्य लगाव या ईर्ष्या नहीं है; यह एक लंबे समय की योजना है, इसे हासिल करने का एक सोचा-समझा इरादा है। वह सत्ता और रुतबे को खास महत्व देता है, लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए रुतबे को पहली आवश्यकता के रूप में देखता है। एक बार जब वह रुतबा हासिल कर लेता है तो इसके सभी फायदों का आनंद लेना सामान्य बात है। इसलिए, लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने की मसीह-विरोधी की क्षमता लगन से किए गए प्रबंधन का परिणाम है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वह संयोग से यह मार्ग अपनाता है; वह जो भी करता है, वह उद्देश्यपूर्ण, पहले से सोचा-समझा गया और ध्यान से हिसाब लगाया हुआ होता है। मसीह-विरोधियों के लिए, सत्ता हासिल करना और लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करना ही पुरस्कार है—यही वह परिणाम है जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा लालसा रहती है। सत्ता और रुतबे की उनकी खोज प्रेरित, उद्देश्यपूर्ण, जानबूझकर की गई और बहुत मेहनत से प्रबंधित होती है; यानी, जब वे बोलते या कार्य करते हैं तो उनमें उद्देश्य और इरादे की एक मजबूत भावना होती है और उनका लक्ष्य खासतौर से परिभाषित होता है। मिसाल के तौर पर, वे यह डींग हाँकते हैं कि वे एक खास स्तर के अगुआ या कार्यकर्ता रह चुके हैं, सुसमाचार प्रचार कर एक निश्चित संख्या में लोग प्राप्त कर चुके हैं या सुसमाचार प्रचार के लिए तरह-तरह के श्रेष्ठ तरीकों का विकास कर चुके हैं; वे अपने अनुभवों और योग्यताओं का दिखावा करते हैं। डींग हाँकते समय उनके विचार क्या होते हैं? उनका अंतर्निहित उद्देश्य क्या होता है? क्या वे इस बारे में सोच-विचार नहीं करते हैं कि उन्हें किन शब्दों का उपयोग करना चाहिए और उन्हें सत्य को झूठ के साथ कैसे मिलाना चाहिए? उनके शब्द बेतरतीब नहीं होते हैं; वे जो भी कहते हैं उसका एक उद्देश्य होता है और यह सिर्फ अपनी तारीफ करने का मामला नहीं है। उनके शब्द खासतौर से सोचे-समझे और लक्षित लग सकते हैं, जो उपयुक्तता की तेज समझ को दर्शाते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर उनका सामना ऐसे व्यक्तियों से होता है जो सत्य समझते हैं तो उनके दिल सतर्क हो जाते हैं, वे उनकी मौजूदगी में असावधानी से कोई चीज ना तो कहेंगे और ना ही करेंगे, वे डरते हैं कि उन्हें पहचान लिया जाएगा। वे ज्यादा अनुशासित रहेंगे। लेकिन, अगर वे नए विश्वासियों या साधारण विश्वासियों से निपट रहे हैं तो वे सावधानी से विचार करेंगे कि इन व्यक्तियों से क्या कहना है। अगर वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से निपट रहे हैं तो वे इस बारे में सोचेंगे कि इस समूह से क्या कहना है। अगर वे ऐसे लोगों से निपट रहे हैं जो पेशेवर ज्ञान समझते हैं तो वे विचार करेंगे कि इन लोगों से क्या कहना है। वे बाहरी मामलों में खासतौर से चालाक होते हैं और जानते हैं कि किसे किन शब्दों से संबोधित करना है और अपना संदेश कैसे प्रभावी रूप से देना है—वे इन सबके बारे में खासतौर से स्पष्ट होते हैं। दूसरे शब्दों में, मसीह-विरोधी कार्य करते समय हमेशा कुछ इरादे लेकर चलते हैं। उनके शब्द, क्रिया-कलाप और आचरण, यहाँ तक कि बोलते समय वे जो खास शब्द चुनते हैं, वे आशय सहित होते हैं; वे भ्रष्टता के क्षण भर के प्रकाशन, छोटे आध्यात्मिक कद, बेवकूफी या अज्ञानता के कारण कार्य नहीं कर रहे हैं और जहाँ भी जाते हैं वहाँ बकवास नहीं कर रहे हैं—यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उनके तरीकों, चीजों को करने के उनके ढंग और शब्दों के उनके चयन की जाँच करने पर, मसीह-विरोधी काफी मक्कार और दुष्ट लगते हैं। अपने खुद के रुतबे की खातिर और लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए, वे दिखावा करने का, हर छोटी चीज का उपयोग करने के हर अवसर का फायदा उठाते हैं और वे एक भी मौका नहीं चूकेंगे। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग मेरे सामने इन लक्षणों को प्रकट करेंगे? (हाँ।) तुम क्यों कहते हो कि वे ऐसा करेंगे? (क्योंकि उनका प्रकृति सार दिखावा करना है।) क्या दिखावा करना ही मसीह-विरोधी का अंतिम लक्ष्य है? दिखावा करने में उनका क्या लक्ष्य है? वे रुतबा जीतना चाहते हैं और उनका मतलब यह है : “क्या तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूँ? मैंने जो चीजें की हैं, उन्हें देखो, ये अच्छी चीजें मैंने ही की हैं; मैंने परमेश्वर के घर में काफी योगदान दिया है। अब जब तुम्हें पता है तो क्या तुम्हें मुझे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य नहीं देना चाहिए? क्या तुम्हें मेरा बहुत सम्मान नहीं करना चाहिए? क्या तुम्हें अपने हर कार्य में मुझ पर भरोसा नहीं करना चाहिए?” क्या यह सोच-समझकर नहीं किया जाता है? मसीह-विरोधी हर किसी को नियंत्रित करना चाहते हैं, चाहे वह कोई भी हो। नियंत्रण के लिए दूसरा शब्द क्या है? बहकाया जाना, खिलवाड़ करना—वे बस तुम पर राज करना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, जब भाई-बहन किसी चीज की सराहना करते हुए कहते हैं कि बहुत बढ़िया किया तो मसीह-विरोधी फौरन कहता है कि यह उसने किया है, ताकि हर कोई उसका धन्यवाद करे। क्या कोई सही मायने में समझदार व्यक्ति इस तरह से व्यवहार करेगा? बिल्कुल नहीं। जब मसीह-विरोधी थोड़ा-सा अच्छा काम करते हैं तो वे चाहते हैं कि हर कोई इसके बारे में जाने, उनका बहुत सम्मान करे और उनकी सराहना करे—इससे उन्हें संतुष्टि मिलती है। चाहे वे कुछ भी करें, वे लोगों की तारीफें और आराधना हासिल करना चाहते हैं और इसे पाने के लिए वे कुछ भी सहने को तैयार रहते हैं। रुतबे और शक्ति के लिए, मसीह-विरोधी दिखावा करने का कोई भी अवसर छूटने नहीं देंगे, भले ही उनका दिखावा करना बेवकूफी लगे, या उनके तरीके फूहड़ हों और इससे वे दूसरों की निंदा पाएँ—फिर भी वे ऐसे मौके नहीं छोड़ेंगे। इसी तरह, वे लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सभी जरूरी साधनों का उपयोग करते हैं और इसे पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। वे अपनी योजनाएँ बनाने के लिए कड़ी मेहनत वाला प्रयास करते हैं और अपने दिमाग खपाते हैं। जब वे कुछ अच्छा करते हैं तो लगातार हर जगह उसे दिखाते फिरते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं। अगर किसी और ने कोई अच्छी चीज की है तो वे उससे ईर्ष्या करते हैं और खुद को इसका श्रेय देने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं या कहते हैं कि इसमें उनका एक हिस्सा रहा है ताकि वे खुद के लिए श्रेय का दावा कर सकें। संक्षेप में, मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के लिए युक्तियाँ होती हैं। यह बिल्कुल भी क्षणिक धोखेबाजी नहीं है और ना ही यह कभी-कभार किए जाने वाले क्रिया-कलाप हैं। बल्कि, वे कई चीजें करते और कहते हैं। उनके शब्द गुमराह करने वाले होते हैं, उनके क्रिया-कलाप गुमराह करने वाले होते हैं और इन चीजों को करने और कहने का उनका अंतिम लक्ष्य लोगों को नियंत्रित करना होता है।

लोगों को नियंत्रित करने में मसीह-विरोधी का उद्देश्य क्या होता है? इसका उद्देश्य लोगों के दिलों में रुतबा और अधिकार हासिल करना है। एक बार जब उनके पास अधिकार और रुतबा हो जाता है तो वे रुतबे के फायदों और इससे मिलने वाले तरह-तरह के हितों का आनंद ले सकते हैं। मिसाल के तौर पर, गर्मी के मौसम में, जबकि दूसरे लोग वातानुकूलन रहित कमरों में रहते हैं, उन्हें वातानुकूलित कमरे में रहने का मौका मिलता है। भोजन के समय, जबकि दूसरे लोगों को एक ही बार सब्जियाँ और चावल परोसा जाता है, उन्हें इसके साथ थोड़ा मांस और सूप भी लेने का मौका मिलता है। जब वे किसी ऐसे कमरे में दाखिल होते हैं जहाँ बैठने की बिल्कुल जगह नहीं होती है तो दूसरों को फर्श पर बैठना पड़ता है और सिर्फ एक कुर्सी छोड़ दी जाती है जो उनके लिए आरक्षित रहती है। यह खास व्यवहार उनके रुतबे का परिणाम है और वे इसके साथ मिलने वाले फायदों से खुद को तुष्ट करने का आनंद लेते हैं। बेशक, ये रुचियाँ और आनंद उनकी महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें अपने रुतबे से मिलने वाले सिर्फ इन भौतिक फायदों की ही नहीं, बल्कि उस घमंड, संतुष्टि और सुरक्षा की भावना की भी जरूरत है जो यह उनकी भीतरी दुनिया को प्रदान करता है। जो लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए, फुसलाए गए और नियंत्रित किए गए हैं, उनके व्यवहार कैसे होते हैं? वे एक-दूसरे के रुतबे, शक्ति, खूबियों और योग्यताओं के साथ-साथ पारिवारिक और वर्गीय पृष्ठभूमि की तुलना करते हैं और वे इस बात पर प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन ज्यादा दुष्ट विचार पेश कर पाता है और किसका दिमाग ज्यादा फुर्तीला है। धर्म के मसीह-विरोधी इस पर भी प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन सबसे लंबे समय तक प्रार्थना करता है। अगर एक व्यक्ति दस मिनट तक प्रार्थना करता है तो दूसरा बीस मिनट तक प्रार्थना करेगा और सभा के दौरान वे चाहे कुछ और ना भी करें, लेकिन लगातार प्रार्थना जरूर करते हैं, उन लोगों की तरह जो बौद्ध मंदिर में लगातार बड़बड़ाते हुए धर्मग्रंथों का पाठ करते हैं। क्या परमेश्वर ऐसी प्रार्थना को सुनता है? उनके प्रार्थना करने के तरीके से यह पता चलता है कि पवित्रात्मा उन पर काम नहीं करेगा। वे देखते हैं कि कौन सबसे लंबे समय तक प्रार्थना कर सकता है, कौन उस सबसे ऊँची आवाज में प्रार्थना कर सकता है जो दूसरों को दबा सकती है। क्या यह सरासर पागलपन नहीं है? उनके क्रिया-कलाप अविश्वसनीय और अनुचित हैं। ये अभिव्यक्तियाँ प्राथमिक रूप से उन लोगों में दिखाई देती हैं जो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित हो चुके हैं; जब मसीह-विरोधी लोगों की अगुवाई करते हैं तो इसका यही परिणाम होता है। इसलिए, अगर तुम लोग किसी मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह और नियंत्रित हो जाते हो तो तुम उसका आदर करोगे, उसका अनुसरण करोगे और सभी चीजों में उसकी आज्ञा मानोगे। तुम किसी और की बात नहीं सुनोगे, चाहे परमेश्वर ही क्यों ना बोल रहा हो। तुम यही व्यवहार प्रदर्शित करोगे। जब मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करते हैं तो ऐसा लगता है मानो शैतान उन पर राज कर रहा हो। अगर तुम शैतान के नियंत्रण में हो और अगर तुम्हारे दिल में मनुष्य के लिए एक जगह है और शैतान के लिए एक जगह है तो फिर पवित्र आत्मा तुम पर कार्य नहीं करेगा—वह तुम्हें छोड़ देगा। क्या तुम्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना पसंद नहीं है? क्या तुम्हें उनका सम्मान करना पसंद नहीं है? क्या तुम्हें उनका नियंत्रण करना और बहकाना स्वीकार करना पसंद नहीं है? फिर तुम्हें उनके हवाले कर दिया जाएगा। अगर तुम यह मानते हो कि मसीह-विरोधी जो भी कहते हैं, वही सत्य है तो तुम उनकी बात सुन सकते हो और उनका अनुसरण कर सकते हो और तुम्हें उनके हवाले कर दिया जाएगा। लेकिन, इसके जो परिणाम होंगे उसका जिम्मेदार तुम्हें खुद को ही ठहराना होगा। अगर एक दिन तुम उद्धार प्राप्त नहीं करते हो तो परमेश्वर को जिम्मेदार मत ठहराना या उसके बारे में शिकायत मत करना; इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। यह तुम्हारी अपनी पसंद है और तुम्हें अपने चुनाव की कीमत चुकानी पड़ेगी।

हमने मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने की अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति लगभग पूरी कर ली है। लोगों को समझना चाहिए कि नियंत्रित किए जाने का मतलब क्या है। बाहर से ऐसा लग सकता है कि कुछ लोग परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हैं, उसके धर्मोपदेशों को सुन रहे हैं, उसके वचनों को खा-पी रहे हैं, कलीसियाई जीवन जी रहे हैं, अपने कर्तव्य कर रहे हैं और उन्होंने परमेश्वर का घर नहीं छोड़ा है। तो वे मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित क्यों हैं? ऐसा प्राथमिक रूप से इसलिए है क्योंकि उनमें सत्य का अभाव है। सबसे पहले, ये लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए और फिर वे उनकी खासतौर से आराधना करने लगे, जिससे वे उनके द्वारा नियंत्रित हो गए। नियंत्रित किए जाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है उनके द्वारा प्रभावित होना और बाँधकर रखा जाना। भले ही तुम अपने कर्तव्य कर रहे हो, लेकिन कर्तव्य के प्रदर्शन में सत्य सिद्धांतों की तलाश करते समय तुम मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते हो। उनके कथन और दृष्टिकोण तुम्हारी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से जितना ज्यादा मेल खाते हैं, उतना ही ज्यादा तुम उन्हें सही और सत्य के अनुरूप मानते हो और तुम सत्य सिद्धांतों की तलाश करना बंद कर देते हो, अब स्वतंत्र रूप से सोचने के इच्छुक नहीं रहते हो और अब अपने अभ्यास को परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं करते हो। तुम मानते हो कि मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण बिल्कुल भी गलत नहीं हैं और तुम पूरे दिल से उनकी पुष्टि करते हो। जब मामला ऐसा हो जाता है तब, अगर तुम सही मायने में परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करते हो तो तुम बेचैन और अनिश्चित महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि तुमने मसीह-विरोधियों को निराश किया है और कि तुम इस तरीके से कार्य बिल्कुल नहीं कर सकते। क्या तुम मसीह-विरोधियों के बयानों और दृष्टिकोणों से पूरी तरह से बाँधे नहीं जा रहे हो? जब तुम कुछ करते हो तो तुम्हें नहीं पता होता है कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर कैसे राय बनानी है, कैसे खोजना है या कैसे पालन करना है। तुम्हें यह नहीं पता होता है कि ऐसा कैसे करना है और ना ही तुम ऐसा करने की हिम्मत करते हो। तुम्हें क्यों नहीं पता होता कि कैसे करना है और तुम हिम्मत क्यों नहीं करते हो? मसीह-विरोधी अभी तक नहीं बोले हैं; उन्होंने तुम्हें कोई फैसला नहीं दिया है और ना ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं, उन्होंने तुम्हें परिणाम नहीं बताया है और ना ही तुम्हें कोई दिशा दिखाई है। इसलिए तुम अपनी समझ के अनुसार कार्य करने की हिम्मत नहीं करते हो और तुम गलत रास्ते पर जाने, कुछ गलत करने से डरते हो। क्या तुम्हें नियंत्रित नहीं किया जा रहा है? तुम हमेशा इतने डरे-डरे क्यों रहते हो? क्या परमेश्वर के वचन वाकई स्पष्ट नहीं थे? क्या परमेश्वर के वचन तुम्हें सिद्धांत बताने में या यह बताने में नाकाम हो गए कि क्या करना है? तुम परमेश्वर के वचनों को अनदेखा क्यों करते हो और मसीह-विरोधियों की बात सुनने की जिद क्यों करते हो? तुम मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए जा रहे हो। मिसाल के तौर पर, मैंने किसी व्यक्ति को एक दीवार बनाने के लिए कहा और उसकी ऊँचाई, लंबाई और जगह स्पष्ट रूप से बता दी। फिर, एक मसीह विरोधी आया और बोला : “इस दीवार की ऊँचाई तो ठीक है, लेकिन यहाँ एक समस्या है। अगर तुम इसे इस तरह से बनाओगे तो क्या हवा चलने पर यह ढह जाएगी?” यह सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, “यह बात तो सही है, क्या यह गिर सकती है? परमेश्वर ने नहीं कहा, इसलिए मैं इसे अभी नहीं बनाऊँगा।” बाद में जब मैं उससे पता करने गया तो मैंने पूछा : “तुमने दीवार क्यों नहीं बनाई? कई दिन बीत चुके हैं, फिर भी यह अभी तक नहीं बनी है—क्या तुम मामलों में देरी नहीं कर रहे हो?” उसने जवाब दिया कि किसी ने हवा से दीवार उड़ जाने के बारे में चिंता जताई थी। मैंने उससे कहा कि अगर वह हवा के कारण चिंतित है तो सहारे के लिए एक खंभे का उपयोग करे और उसने इस बात को अच्छी तरह याद कर लिया। बाद में, मसीह-विरोधी उसे परेशान करने के लिए वापस आया और बोला, “क्या एक खंभा काफी है? क्या तुम्हें दो खंभों का उपयोग नहीं करना चाहिए?” इस व्यक्ति ने इस पर विचार किया और सोचा कि परमेश्वर ने दो के बजाय सिर्फ एक खंभे का उपयोग करने के लिए कहा था और अब फिर से उसे नहीं पता था कि क्या करना है। मसीह-विरोधी द्वारा इतना गुमराह और परेशान किए जाने के बाद, मैंने इससे पहले जो भी शब्द कहे थे, वे सब बेकार हो गए और वह इस कार्य को जारी नहीं रख पाया। क्या यह मसीह-विरोधी द्वारा नियंत्रित होने के समान नहीं है? इस मामले में उसे किसकी बात सुननी चाहिए? (परमेश्वर की।) तो फिर उसने परमेश्वर के वचन क्यों नहीं सुने? क्या वह सुनना नहीं चाहता था? वह सुनना चाहता था, लेकिन वह मसीह-विरोधी के एक विधर्म और भ्रांति से गुमराह हो गया। गुमराह होने के बाद, वह मसीह-विरोधी की आज्ञा मानने लगा, जो उसके द्वारा अगवा किए जाने के समान है। अगर उसका व्यवहार और उसके विचार मसीह-विरोधी द्वारा बाँध लिए और बेड़ियों में जकड़ लिए जाते हैं तो वह मसीह-विरोधी के नियंत्रण में आ जाता है। आखिरकार, इस व्यक्ति ने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया और उसने परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं किया या उसके वचन नहीं सुने। यह परिणाम किसने उत्पन्न किया? यह उसकी अज्ञानता के कारण उत्पन्न हुआ और इसे मसीह-विरोधी के गुमराह करने, परेशान करने और नियंत्रण से अलग नहीं किया जा सकता है। तो, मसीह-विरोधी के इस तरह से दखल देने का क्या मतलब है? वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहता था और वह दरअसल यह कह रहा था, “जब परमेश्वर ने तुमसे यह दीवार बनाने के लिए कहा था तो तुमने आँख मूँदकर उसकी बात क्यों मानी? तुम्हारे सोचने की प्रक्रिया इतनी सरल क्यों है? अगर तुम यहाँ दीवार बनाते हो तो क्या हवा चलना शुरू होते ही यह गिर नहीं जाएगी? परमेश्वर की बात सुनना मेरी बात सुनने जितना सटीक नहीं है; तुम्हें मेरी बात सुननी ही पड़ेगी। अगर तुम मेरी बात सुनते हो तो मैं खुश हो जाऊँगा, लेकिन अगर तुम परमेश्वर की बात सुनते हो तो यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा और मैं खुश नहीं होऊँगा। परमेश्वर की बात सुनना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है—यह मुझे कौन-सी स्थिति में डाल देगा?” उसने यह बात प्रत्यक्ष नहीं कही; उसने दखल दिया और जानबूझकर चीजों को भड़काया। उसके दखल देने के बाद कार्य पूरा नहीं किया जा सका और वह अक्लमंद नजर आया, जिससे उसे खुशी मिली। जब परमेश्वर किसी को दीवार बनाने का निर्देश देता है तो उस व्यक्ति को इसे फौरन बना देना चाहिए, लेकिन अब परिणाम यह है कि वह दीवार नहीं बनी। इस परिणाम का कारण कौन था? यह मसीह-विरोधी के कारण हुआ—यह व्यक्ति मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह, बाधित और नियंत्रित किया गया। यह उसी तरह है जैसे साँप ने आदम और हव्वा को फुसलाया था। परमेश्वर ने आदम और हव्वा से कहा, “भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” क्या परमेश्वर के ये वचन सत्य हैं? वे सत्य हैं और तुम्हें उनका अर्थ समझने की जरूरत नहीं है; तुम्हें बस सुनने और समर्पण करने की जरूरत है। परिस्थिति चाहे जो भी हो, परमेश्वर का वचन नहीं बदल सकता है और अगर परमेश्वर चाहता है कि तुम कुछ करो तो उसे करो। इसका विश्लेषण मत करो। भले ही तुम्हें यह समझ नहीं आए, तुम्हें यह पता होना चाहिए कि परमेश्वर का वचन सही है; तुम्हें अपने दिल में यह परिभाषा समझनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, तुम्हें सबसे पहले यह सत्य जानना चाहिए। चाहे परमेश्वर के वचन तुम्हारी धारणाओं से मेल खाएँ या ना खाएँ, चाहे तुम उन्हें समझो या ना समझो और चाहे तुम कितने भी भ्रमित क्यों ना हो जाओ, तुम्हें उसके वचनों को थामे रहना चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी और कर्तव्य है। एक बार जब तुम इसके लिए अपना मन बना लेते हो तो जब शैतान तुम्हें लुभाने के लिए आता है तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर के वचनों को मजबूती से थामे रहना चाहिए और उसके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए—यह सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। शैतान जो कहता है, उसे अनसुना कर दो। जब आदम और हव्वा ने साँप के शब्द सुने थे तो उसका अंतिम परिणाम क्या हुआ था? वे शैतान द्वारा गुमराह और नियंत्रित कर लिए गए थे। दिखावटी, अस्पष्ट और शैतानी शब्दों के सिर्फ एक वाक्यांश से ही शैतान आदम और हव्वा के व्यवहार को प्रभावित और नियंत्रित करने में कामयाब हो गया था। यह एक ऐसा परिणाम था जिसे परमेश्वर नहीं देखना चाहता था। उन शब्दों को कहने में साँप का क्या उद्देश्य था? इन शब्दों के जरिए, वह लोगों के विचारों को उलझा देना, उनके व्यवहार को प्रभावित करना और उन्हें परमेश्वर के वचनों को सुनना बंद करने और उन्हें त्यागने के लिए मजबूर करना चाहता था। एक बार जब लोगों के दिमाग में यह सक्रिय विचार बिठा दिया गया तो फिर उन्होंने बताए गए मार्ग का अनुसरण किया। शैतान का क्या उद्देश्य था? वह यह कहना था, “परमेश्वर जो कहता है, उसे मत सुनो। तुम्हें मेरी बात सुननी पड़ेगी; तुम्हें यह फल खाना पड़ेगा।” परमेश्वर ने उन्हें इसे खाने से मना किया था, जबकि शैतान ने उन्हें इसे खाने के लिए कहा। आखिर में, क्या आदम और हव्वा ने वह फल खाया था? (उन्होंने खाया था।) इस तरह से शैतान ने लोगों को नियंत्रित किया। जब तुम लोग मसीह-विरोधी के शैतानी शब्द सुनते हो तो तुम उलझन में पड़ सकते हो, अपनी सोचने-समझने की क्षमता खो सकते हो और तुम परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देने के लिए जिम्मेदार होते हो। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारा व्यवहार और तुम्हारे विचार इस मसीह-विरोधी द्वारा प्रभावित और नियंत्रित हैं? नियंत्रण का यही मतलब होता है। क्या तुमने कभी ऐसी परिस्थितियों का सामना किया है? कुछ बुरे इरादों वाले लोग देखते हैं कि तुम बिना किसी अड़चन के कोई कार्य पूरा कर रहे हो और परिणाम हासिल करने वाले हो, खुद को दिखाने वाले हो और उन्हें एहसास होता है कि इस मामले में उनकी ज्यादा भागीदारी नहीं होगी। अगर तुम दिखाई देते हो तो वे नहीं दिखेंगे, इसलिए वे तुम्हें गुमराह करने, परेशान करने और नियंत्रित करने के लिए उचित प्रतीत होने वाले दृष्टिकोण या प्रश्न पेश करते हैं। फलस्वरूप, तुम भ्रमित हो जाते हो और सोचते हो कि उनके शब्द भी सही हैं। तुम्हें अब नहीं पता होता कि क्या करना है और तुम अपने कर्तव्य के साथ आगे नहीं बढ़ सकते हो, इसलिए तुम उसे रोक देते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? शुरू-शुरू में, जब तुम अब भी गुमराह नहीं हुए थे तो तुम्हारी सोच काफी स्पष्ट थी और तुम्हें पता था कि क्या करना है, लेकिन जैसे ही मसीह-विरोधी ने तुम्हें परेशान किया, तुम उलझन में पड़ गए और तुम्हें यह नहीं पता था कि चीजों को उचित तरीके से कैसे सँभालना है। तो यहाँ क्या समस्या है? (गुमराह होना।) जो लोग मसीह-विरोधियों या शैतान द्वारा आसानी से गुमराह और नियंत्रित हो जाते हैं, वे अज्ञानी और भ्रमित व्यक्ति होते हैं। मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के तरीके की अभिव्यक्तियों के बारे में, क्या हमारी संगति पर्याप्त रूप से विशिष्ट रही है? तुम्हें यह समझ पाना चाहिए और जब तुम्हारे साथ अनहोनी हो तो तुम्हें अपने शब्दों, अपने क्रिया-कलापों और अपने सार पर विचार करने के लिए उनकी तुलना अलग-अलग सत्यों के साथ करनी चाहिए। साथ ही, तुम्हें सत्य की स्पष्ट समझ और अलग-अलग लोगों के प्रकृति सारों की ज्यादा सटीक समझ हासिल करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने और पहचानने का प्रयास करना चाहिए।

आजकल, तुम में से बहुत से लोग अभी-अभी अलग-अलग सत्यों की खास अवस्थाओं और अभिव्यक्तियों के संपर्क में आए हो। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि तुम अभी-अभी उनके संपर्क में आए हो? वह इसलिए क्योंकि तुम्हें अभी-अभी कुछ विवरण समझ में आए हैं, लेकिन सच्चे प्रवेश से पहले अभी भी कुछ दूरी तय करनी बाकी है। समझना प्रवेश के समान नहीं है। जब तुम समझते हो तो इसका सिर्फ यह मतलब है कि तुम्हारे दिमाग में इन मामलों की अवधारणाओं और परिभाषाओं को लेकर तुम्हारी समझ अपेक्षाकृत सटीक और सत्य के साथ ज्यादा सुसंगत है, लेकिन तुम अब भी व्यक्तिगत प्रवेश से दूर हो। मामलों को समझना, पहचानना और इन्हें अपनी स्थिति और अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से जोड़ पाने का यह मतलब नहीं है कि तुम्हारे पास प्रवेश है। ये दो अलग चीजें हैं। कोई व्यक्ति बचाया जा सके और स्वभाव में बदलाव हासिल कर सके, इसकी शुरुआत सभी अलग-अलग सत्यों को समझने से होती है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की शुरुआत इन सत्यों का अभ्यास करने से होती है। अगर तुम लोगों के पास अलग-अलग सत्यों से जुड़ी अपनी समझ और प्रवेश में एक नींव होती तो जब मैंने तुम लोगों से मिसाल देने को कहा था तो तुम लोग तुरंत अपनी अभिव्यक्तियों या ऐसी कुछ चीजों के बारे में सोच पाते जिन्हें तुमने देखा और अनुभव किया है। यह मेरी संगति को काफी आसान बना देता और मुझे इतने विस्तार में बोलना नहीं पड़ता क्योंकि तुम लोगों को पहले से ही इतने अनुभव हासिल हो चुके होते कि तुम उस स्तर तक पहुँच पाते। लेकिन, अब जब मैं तुम लोगों से पूछता हूँ तो तुम्हें फौरन सोचना पड़ेगा और अपनी याददाश्त में झाँककर उसमें टटोलने की जरूरत भी पड़ेगी। जब मैं देखता हूँ कि तुम लोग ये चीजें नहीं जानते हो और तुमने खुद इनका अनुभव नहीं किया है तो मुझे उन्हें विस्तार से समझाना पड़ता है, इन मामलों के केंद्रीय और मूल पहलुओं और बेहद जरूरी मुद्दों को स्पष्ट करना पड़ता है और तुम लोगों को अलग-अलग सत्यों के विवरणों की मूलभूत समझ प्रदान करनी पड़ती है, ताकि तुम अभ्यास के दौरान वैचारिक पहलुओं या परिभाषा से संबंधित पहलुओं को लेकर भ्रमित नहीं हो जाओ और ताकि तुम एक अवधारणा की जगह दूसरी अवधारणा को न रख दो और यह न सोचो कि ये चीजें बहुत ही ज्यादा पेचीदा हैं—तुम अलग-अलग पहलुओं के बीच स्पष्ट रूप से अंतर कर पाओगे। इस तरह से, अगली बार जब मैं इन चीजों के बारे में संगति करूँगा तो यह आसान होगा। फिलहाल, तुम लोगों में अभी भी कमी है, इसलिए मुझे हमेशा उन्हें विस्तार से समझाना पड़ता है। हमारी सभाओं में संगतियों की कितनी सामग्री पर तुम लोग विचार कर सकते हो और आत्मसात कर सकते हो? अगर यह सिर्फ दस प्रतिशत है तो तुम लोगों के पास मुश्किल से कोई उल्लेखनीय आध्यात्मिक कद है और अगर यह तीस प्रतिशत है तो तुमने सिर्फ थोड़ा-सा ही समझा है। अगर तुम पचास प्रतिशत तक पहुँच जाते हो तो तुम लोगों के पास एक खास आध्यात्मिक कद और प्रवेश होगा, लेकिन अगर तुम वहाँ तक नहीं पहुँच पाते हो तो तुम्हारे पास कोई प्रवेश नहीं है। तुम समझ रहे हो, है ना? जब मैं ऐसे संगति करता हूँ, अगर तब भी तुम नहीं समझ पाते हो तो इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत बहुत ही कम है और तुम्हारे पास सत्य समझने का कोई तरीका नहीं है। ठीक है तो हमारी आज की संगति यहीं समाप्त होती है। अगली बार फिर मिलते हैं!

17 अप्रैल 2019

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