मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं (खंड चार)

क्या ऐसी कोई स्थिति है, जिसकी तलाश मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाने के लिए करते हैं? क्या वे उन लोगों को फुसलाते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं और ईमानदारी से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं? (नहीं।) जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं और परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं, उनमें कुछ सूझ-बूझ होती है, उन्हें फुसलाया नहीं जा सकता है और वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण नहीं करेंगे। तो, मसीह-विरोधी किसे फुसलाते हैं? अपने दिलों में, मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा उन लोगों की तरफदारी करते हैं जो रुतबे वाले लोगों की खुशामद करने में अच्छे होते हैं, जो खुद को पसंद करवाने के लिए खुशामद करने और लोगों से चिकनी-चुपड़ी बातें करने में अच्छे होते हैं, उन लोगों की तरफदारी करते हैं जिन्होंने बुरी चीजें की हैं और वे निष्कासित होने से डरते हैं, इसलिए मसीह-विरोधी को खुश करने का भरसक प्रयास करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाने और उनके दिल जीतने के लिए उनकी रक्षा करने की स्थिति का उपयोग करते हैं और उन्हें अपने पास आने देते हैं। सत्य को नहीं समझने वाले नए विश्वासियों के अलावा मसीह-विरोधी जिन लोगों को फुसलाते हैं उनमें वे लोग होते हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते। क्या सत्य से प्रेम नहीं करने वाले सभी लोगों के पास अंतरात्मा और विवेक होता है? उनमें से कोई भी अच्छा नहीं है और परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं चुनता है। मसीह-विरोधी इन लोगों को फुसलाते हैं और एक भाँड की तरह उनकी अगुआई करते हैं। यहाँ तक कि वे यह भी सोचते हैं कि उन्होंने एक आधिकारिक पद हासिल कर लिया है, उनके पास रुतबा है और वे अपने दिलों में खासतौर से संतुष्ट होते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? मसीह-विरोधी और किस तरह के लोगों को फुसलाते हैं? (अपेक्षाकृत दुष्ट मानवता वाले लोगों को।) बिल्कुल सही कहा, बुरे लोगों को। मसीह-विरोधी बुरे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? वे उनकी रक्षा करते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि कलीसिया में कोई बुरा व्यक्ति है और सभी भाई-बहन रिपोर्ट करते हैं कि यह व्यक्ति खासतौर पर बुरा है, जब भी वह आसपास होता है तो कलीसिया में अशांति फैलाता है, सभी के कर्तव्य करने में बाधा डालता है और कलीसिया के कार्य में बाधा डालता है। जब तक उसे कोई कर्तव्य करने के लिए दिया जाएगा, तब तक कलीसिया के कार्य को नुकसान होता रहेगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे बुरे लोगों को उपयोगी मानते हैं और अपनी सेवा करवाने के लिए उन्हें फुसलाकर अपनी तरफ कर लेते हैं। मसीह-विरोधी बुरे लोगों को निष्कासित नहीं करते हैं; बल्कि वे उनकी रक्षा करते हैं। अगर कुछ बुरे लोग मसीह-विरोधी का समर्थन नहीं करते या उन्हें पहचान लेते हैं—तो वह उनसे निपटेगा। जब तक बुरा व्यक्ति मसीह-विरोधी की खुशामद करता रहता है, उसका समर्थन करता रहता है और उसका विरोध नहीं करता है, तब तक वह अपनी खुद की शक्ति को मजबूत करने के लिए उसे फुसलाता रहता है और उसे जीत लेता है। अब, मसीह-विरोधी ऐसे लोगों के साथ कैसे मिलजुलकर रह सकता है जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं? उनके बातचीत करने का तरीका वास्तव में एक दूसरे की खुशामद करना और चिकनी-चुपड़ी बातें करना है। मसीह-विरोधी जहाँ भी जाते हैं, ये बुरे लोग मक्खियों की तरह झुंड बनाकर उनके साथ रहते हैं। वे सत्य के बारे में संगति करने के लिए निश्चित रूप से इकट्ठा नहीं होते हैं, क्योंकि वे सभी इसके प्रति विमुख होते हैं और इनमें से कोई भी सत्य के बारे में संगति करके मुद्दों को सुलझाने का प्रयास नहीं करता है। वे जो भी चीजें कहते हैं वे अविश्वासियों द्वारा कही गई चीजें होती हैं, ज्यादातर वे गपशप करके फूट डालने में, दूसरों को नीचा दिखाने और खुद को ऊपर उठाने में और लोगों को सताने के तरीकों पर सलाह करने में लगे रहते हैं। इसके अलावा, वे इस बारे में अध्ययन करते हैं कि परमेश्वर के घर से कैसे चौकस रहना है, इस पर चर्चा करते हैं कि ऊपरवाले का सामना कैसे करना है, अगर कोई अपने मुद्दों की रिपोर्ट करना चाहता है तो इस बात को पहले से कैसे जान लेना है और जान लेने के बाद प्रतिक्रिया कैसे देनी है। ये वे मुद्दे हैं जिन पर बुरे लोगों का यह गिरोह चर्चा करता है। जब वे एक साथ होते हैं तो वे कभी भी अपने कर्तव्य करने जैसी चीजों के बारे में संगति नहीं करते हैं और कभी भी मुद्दों को सुलझाने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर, वे कभी भी जायज मामलों पर चर्चा नहीं करते हैं, जैसे कि उन भाई-बहनों को सहारा देना और उनकी मदद करना जो नकारात्मक और कमजोर हो गए हैं और जिनके पास अपने कर्तव्यों को करने की ऊर्जा नहीं है, न ही वे कलीसिया के कार्य के कुछ पहलुओं की प्रभावशीलता को सुधारने के लिए हल और मार्ग ढूँढ़ने पर चर्चा करते हैं। वे इस बारे में बात करते हैं कि ऊपरवाले को कैसे धोखा दिया जाए और परमेश्वर के घर को कैसे धोखा दिया जाए और यह सुनिश्चित करते हैं कि परमेश्वर के घर को उनके बारे में तथ्यों का पता ना चले। एक बार जब यह पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति ऊपरवाले के संपर्क में है या उसने उनकी परिस्थिति के बारे में रिपोर्ट कर दी है तो वे इसे अपनी स्थिति के लिए खतरा और अपने मामलों के लिए विनाशकारी मानने लगते हैं। वे इस बारे में लगातार छानबीन करते हैं कि कौन जिम्मेदार है, वे संदिग्धों को ढूँढ़ते हैं, उन्हें ढूँढ़ लेने पर वे उस व्यक्ति को सबसे अलग कर देते हैं, उसे कहीं और स्थानांतरित कर देते हैं और फिर उनकी परिस्थिति के बारे में ऊपरवाले को रिपोर्ट करने से सभी को रोकने के आदेश जारी कर देते हैं। इससे सुनिश्चित हो जाता है कि कोई भी उनके बारे में रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करे। इस तरह से मसीह-विरोधी कलीसिया पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लेते हैं। ऊपरवाले के पास तब तक यह जानने का कोई तरीका नहीं होता है कि वे पर्दे के पीछे कौन-सा कुकर्म कर रहे हैं, जब तक कि ऊपरवाले को इस परिस्थिति का पता नहीं चल जाता है और वह उनकी कमजोरी को देख नहीं लेता है, फिर वह उनकी छानबीन का आदेश देता है और आखिरकार उन्हें बर्खास्त कर देता है या निष्कासित कर देता है। मसीह-विरोधी और बुरे लोगों का यह समूह कुछ ही महीनों में कलीसिया के कार्य को तबाह कर सकता है, भाई-बहनों को एक दूसरे पर शक करने, एक दूसरे को गुप्त रूप से कमजोर करने, एक दूसरे को उजागर करने और एक दूसरे पर आक्रमण करने के लिए उकसाने का कारण बन सकता है, जिससे कलीसिया विभाजित हो सकती है। यह मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और कलीसिया का नियंत्रण ले लेने का परिणाम है। इस तरह से मसीह-विरोधी उन सभी को गुमराह कर देते हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और यहाँ तक कि कलीसिया को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपयोगी बुरे लोगों को भी फुसलाते हैं, जिससे उनकी अपनी स्थिति और अधिकार मजबूत हो जाता है। अगर बुरे लोग उनकी बात सुनते हैं तो वे उनकी रक्षा करते हैं। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो पहले वे बुरे लोगों से निपटते हैं। अगर बुरे लोग उनका अनुसरण करते हैं और उन्हें भर्ती किया और फुसलाया जा सकता है तो वे उन्हें अपने अनुचर बनने देते हैं, बुरी चीजें करने के लिए अपने हाथ और आँखें बनने देते हैं, भाई-बहनों में घुसपैठ करते हैं और यह पता लगाते हैं कि उनके विरुद्ध किसे आपत्ति है, कौन उनके क्रिया-कलापों को पहचानता है, उनके कौन-से बुरे कार्यों का पता चल चुका है और कौन हमेशा अपने मुद्दों की रिपोर्ट करने के लिए ऊपरवाले से संपर्क करना चाहता है। मसीह-विरोधी और बुरे लोग उन मामलों की खासतौर से छानबीन करते हैं जिनके बारे में उन्हें सबसे ज्यादा चिंता रहती है। वे अक्सर मिलकर जवाबी उपायों पर चर्चा करते हैं और उन्हें पहचान सकने या उन पर शक कर सकने वाले लोगों को दुश्मन मान लेते हैं। वे आज एक व्यक्ति को सताने के बहाने ढूँढ़ते हैं और कल उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति को सताने की शक्ति मिल जाती है; यहाँ तक कि वे इन व्यक्तियों को बहिष्कृत और निष्कासित करने हेतु परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उकसाने के लिए तरह-तरह के कारणों और बहानों का भी उपयोग करते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधी अगुआ या कार्यकर्ता बन जाते हैं तो वे इन क्रिया-कलापों में व्यस्त हो जाते हैं। कुछ ही महीनों में, वे कलीसिया में अराजकता फैला सकते हैं और यहाँ तक कि नए विश्वासियों की कलीसिया के प्रबल उत्साह को ऐसे बुझा भी सकते हैं जैसे आग को पानी डालकर बुझाया जाता है। इसलिए, मसीह-विरोधी सही मायने में परमेश्वर के दुश्मन हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दुश्मन हैं। यह बिल्कुल भी बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात नहीं है—यह अत्यंत सटीक है! जिस कलीसिया में मसीह-विरोधियों या बुरे लोगों के पास शक्ति होती है, वहाँ का माहौल खराब हो जाता है। वहाँ कोई कलीसियाई जीवन नहीं होता है, परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाया और पीया नहीं जाता है और सत्य की संगति करने का माहौल बिल्कुल नहीं होता है। बल्कि, वह साजिश और निरंकुश दुराचार से भरी होती है। शैतान के पास नियंत्रण होने का यही मतलब है। जब शैतान के पास नियंत्रण हो तो क्या कोई अच्छा परिणाम हो सकता है? इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर सिर्फ संकट ही आ सकता है—यह बिना किसी शक के पूरी तरह निश्चित है।

कुछ मसीह-विरोधी जब कलीसिया में अगुआ की भूमिका सँभालते हैं तो सबसे पहले यह छानबीन करते हैं कि कलीसिया में इससे पहले अक्सर किसने ऊपरवाले को मुद्दों की रिपोर्ट की है। वे ऐसे लोगों को अपने से दूर रखना चाहते हैं और उनके घर पर नहीं ठहरते हैं, चाहे वे उनकी मेजबानी करने में समर्थ क्यों ना हों। अगर कोई व्यक्ति लोगों की खुशामद करने में अच्छा होता है, लगातार अगुआ के इर्द-गिर्द घूमता रहता है और खुद को पसंद करवाने के लिए खुशामद करता है तो वे उस व्यक्ति के घर में ठहरने की योजना बनाते हैं। कोई कहता है, “वे दो बहनों की मेजबानी कर रहे हैं।” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “यह अच्छा नहीं है, उन्हें कहीं और भिजवा दो।” वह व्यक्ति कहता है, “तुम लोगों को अपनी मर्जी के मुताबिक इधर-उधर नहीं भेज सकते; वे दो बहनें उस जगह के लिए बहुत उपयुक्त हैं—उन्हें कहीं और भेजने से उनके कर्तव्यों का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।” वह जवाब देता है, “अगुआ होने के नाते, मैं जो कहूँगा, वही होगा और तुम्हें मेरी आज्ञा माननी चाहिए!” फिर वह उन दोनों बहनों को वहाँ से चले जाने के लिए मजबूर करता है। वह इसी घर में ठहरने पर क्यों जोर देता है? वह इसलिए क्योंकि यह परिवार निष्कपट और कमजोर है, जो मसीह-विरोधी के लिए बिल्कुल खतरा नहीं बन सकता है। वह चाहे कोई भी गलत कार्य करे या लोगों की पीठ पीछे उसका व्यवहार कितना भी अनियंत्रित हो, यह परिवार उसकी रिपोर्ट नहीं करेगा। इसलिए, वह ठहरने के लिए इस तरह की जगह की तलाश करता है। कुछ समय बाद, वह अपने बुरे साथियों को लेकर आता है और वहाँ वे अपने बुरे कार्य करते हैं, जवाबी उपायों पर चर्चा करते हैं और साजिशें रचते हैं कि फलाँ-फलाँ व्यक्ति को कैसे सताया जाए। जब मसीह-विरोधी या बुरे व्यक्ति कलीसिया में आते हैं तो वे सबसे पहले उन लोगों की तलाश करते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं और जिनका फायदा उठा सकते हैं, ताकि सबसे पहले अपनी शक्ति को विस्तारित और सुरक्षित कर सकें। वे उन लोगों को अभी के लिए अकेला छोड़ देते हैं जो सत्य समझते हैं, ताकि उनकी अपनी स्थिति खतरे में नहीं पड़ जाए। वे अभी से ही मौजूदा व्यवस्था में गड़बड़ नहीं करते हैं। अपनी स्थिति को मजबूत करने और उपयुक्त साथी ढूँढ़ लेने के बाद, वे सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों को सताने और उनसे निपटने के लिए जवाबी उपायों पर चर्चा करना शुरू कर देते हैं। वे उन्हें कैसे सताते हैं और उनसे कैसे निपटते हैं? सबसे पहले, वे उन लोगों को फुसलाते हैं जो उन्हें स्वीकृति देते हैं, जो उन्हें थोड़ा-भी नहीं पहचानते और जिनका वे उपयोग कर सकते हैं। अगर ऐसे लोग हैं जिन्हें वे नहीं फुसला सकते हैं या जो उन्हें पहचान लेते हैं तो वे उन्हें सबसे अलग कर देने या बहिष्कृत करने का बहाना या कारण ढूँढ़ लेते हैं। इन मसीह-विरोधियों के व्यवहार से किस तरह का स्वभाव प्रकट होता है? (क्रूरता का।) जहाँ कहीं भी वे अगुआ की भूमिकाएँ अपनाते हैं, वहाँ का माहौल खराब हो जाता है। कलीसियाई जीवन की व्यवस्था बाधित हो जाती है। अगर तुम लोग उनकी बात नहीं सुनते हो तो तुम्हें दबा दिया जाता है, प्रतिबंधित कर दिया जाता है, या यहाँ तक कि बहिष्कृत या निष्कासित तक कर दिया जाता है। कुछ मसीह-विरोधी ठगों, बदमाशों या धूर्तों की तरह कार्य करते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी, वे एक पद हासिल करना, परमेश्वर के घर में अधिकार का उपयोग करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं। इस तरह से, वे कलीसिया को अस्त-व्यस्त कर देते हैं। अगर लोगों में सूझ-बूझ का अभाव है तो वे उनके द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए जाएँगे, जिससे आखिर में उनकी खुद की मृत्यु हो जाएगी।

हम इस बारे में अपनी चर्चा लगभग पूरी कर चुके हैं कि मसीह-विरोधी लोगों को कैसे फुसलाते हैं। जिन मामलों पर मैंने चर्चा की है उन्हें सुनते हुए, क्या तुम लोगों को लगता है कि ये कुछ हद तक विरले मामले हैं? क्या तुम यह सोचकर हैरान हो कि “क्या यह वाकई हो सकता है? यह असंभव है, है ना? विश्वासियों के बीच इस तरह के लोग कैसे मौजूद हो सकते हैं?” मैं तुम्हें बता दूँ, यह इससे भी बदतर हो सकता है। हर व्यक्ति जब दूसरों के सामने होता है तो मनुष्य जैसी समानता का एक मुखौटा लगा लेता है, लेकिन पर्दे के पीछे वह कैसा व्यक्ति है, इसी से उसके असली चेहरे का खुलासा होता है। दूसरों के सामने रहते समय उसके शब्द और क्रिया-कलाप सिर्फ एक स्वाँग हैं, एक झूठी छाप हैं। वह पर्दे के पीछे जो कहता और करता है, वही उसके असली व्यक्तित्व को दर्शाता है। अगर कोई व्यक्ति लोगों के सामने एक तरह से और पर्दे के पीछे दूसरी तरह से पेश आता है तो तुम्हें यह पहचानने में समर्थ होना चाहिए कि इनमें से कौन-सा असली है और कौन-सा नकली, है ना? मसीह-विरोधी लोगों के सामने बहुत विनम्र लग सकता है, लेकिन अगर लोगों को पता चले कि मसीह-विरोधी ने पर्दे के पीछे क्या किया तो उन्हें वह बहुत घिनौना लगेगा। उन्हें लगेगा कि मसीह-विरोधी के साथ जुड़ना शर्मनाक है, कि वह सत्यनिष्ठ व्यक्ति नहीं है, बल्कि कुत्सित और नीच है। ऐसे में, क्या मसीह-विरोधी सामान्य लोगों के साथ मिलजुलकर रह सकता है? नहीं, वह नहीं रह सकता। यह एक सामान्य व्यक्ति में कुछ बुरी आदतों के होने का मामला नहीं है, बल्कि उसके स्वभाव का मामला है। जैसे ही तुम उसका स्वभाव देखते हो, तुम्हें पता चल जाता है कि वह मनुष्य नहीं है, बल्कि एक जानवर, एक शैतान है। मुझे बताओ, जब मनुष्य जानवरों से मेलजोल करता है तो कैसा महसूस होता है? यह घर में एक सुअर को लाने, उसे नहलाने-धुलाने, उसे छोटे कपड़े पहनाने और उसे पालतू जानवर मानने जैसा है। अगले दिन, तुम देखते हो कि तुम्हारा घर सुअरों का बाड़ा बन गया है। वह घर में सफाई की बिल्कुल परवाह किए बिना खाता-पीता और शौच करता है। तब तुम्हें समझ आता है कि तुम सुअरों को इस तरह से नहीं रख सकते हो—वे जानवर हैं! बाहर से देखने पर ऐसा लग सकता है कि मसीह-विरोधियों में कुछ काबिलियत और परवरिश है, या किसी दौर में वे समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे होंगे, जिससे उन्हें कुछ सम्मान मिला होगा। लेकिन उनमें से ज्यादातर जानवरों की तरह ही होते हैं, जिनमें अंतरात्मा और विवेक तक का अभाव है। क्या उनमें सामान्य मानवता है? (नहीं।) क्या सामान्य मानवता के बिना अब भी उन्हें मनुष्य माना जा सकता है? क्या तुम लोग उनकी अगुआई स्वीकार कर सकते हो? अगर भाई-बहन ऐसे लोगों के हाथों में पड़ गए, तो क्या होगा? वे गुमराह किए जाएँगे, उन्हें फुसलाया जाएगा और वे निश्चित रूप से कष्ट सहेंगे। मसीह-विरोधी शैतान हैं और उनके पास कोई अंतरात्मा या विवेक नहीं है। ऊपर से, वे कुछ लोगों की मुश्किलों, कमजोरियों और भावनात्मक जरूरतों के प्रति बहुत स्नेहमय, समझदार और सहानुभूतिपूर्ण लग सकते हैं। वास्तव में, ये वे लोग हैं जिनकी वे तरफदारी करते हैं और जो उनकी खुशामद करते हैं। लेकिन अगर ये लोग उनके रुतबे या प्रतिष्ठा के लिए खतरा बन जाते हैं तो फिर उनके साथ भी दयालुता से व्यवहार नहीं किया जाएगा, बल्कि उनके साथ, थोड़ी-भी सहानुभूति या सहिष्णुता के बिना और भी ज्यादा दुर्भावनापूर्ण तरीकों का उपयोग करके अनैतिक ढंग से निपटा जाएगा। मसीह-विरोधियों का प्रेम और सहिष्णुता सब एक मुखौटा है और उनका लक्ष्य लोगों को परमेश्वर के सामने लाना बिल्कुल नहीं है, बल्कि उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना है। इस तरह से लोगों को फँसाने का उनका उद्देश्य अपनी स्थिति को सुरक्षित करना और लोगों की आराधना और अनुसरण हासिल करना है। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और फुसलाने के लिए चाहे कोई भी तरीका क्यों ना अपनाएँ, एक बात तो तय है : वे अपनी शक्ति और रुतबे की खातिर अपना दिमाग खपाएँगे और हर जरूरी साधन का उपयोग करेंगे। एक और बात जो तय है वह यह है कि चाहे वे कुछ भी करें, इसे वे अपने कर्तव्यों को करने के लिए नहीं कर रहे हैं और वे निश्चित रूप से अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पूरा करने के लिए तो बिल्कुल नहीं कर रहे हैं; बल्कि, ऐसा वे कलीसिया में सत्ता हासिल करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए करते हैं। इसके अलावा, चाहे वे कुछ भी करें, वे परमेश्वर के घर के हितों का कभी ध्यान नहीं रखते हैं और वे निश्चित रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों पर कभी विचार नहीं करते हैं। मसीह-विरोधियों के शब्दकोश में, इन दोनों बातों पर विचार करने का कोई अस्तित्व नहीं है; वे अंतर्निहित रूप से इनसे रहित हैं। उनकी अगुआई का स्तर चाहे कोई भी हो, वे परमेश्वर के घर या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों के लिए जरा भी परवाह नहीं दिखाते हैं। उनके विचारों और दृष्टिकोणों में, कलीसिया का कार्य और परमेश्वर के घर के हित उनके लिए अप्रासंगिक और उनके अयोग्य हैं। वे सिर्फ अपनी खुद की स्थिति और अपने खुद के हितों के बारे में सोचते हैं। इससे यह देखा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार, दुष्ट होने के अलावा, खासतौर से स्वार्थी और घिनौना है। वे सिर्फ अपनी खुद की शोहरत, फायदे और रुतबे की खातिर कार्य करते हैं और दूसरों के जीवन और मृत्यु पर जरा भी ध्यान नहीं देते हैं। जो कोई भी उनके पद के लिए खतरा बनता है, उसे अनैतिक ढंग से दबाया और अलग-थलग कर दिया जाता है और चरम सीमा तक सताया जाता है। कई बार, जब बहुत ज्यादा बुरा करने के लिए मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट की जाती है और ऊपरवाले को उनके बारे में पता चल जाता है और उन्हें लगता है कि वे अपना पद खोने वाले हैं तो वे फूट-फूट कर रोना शुरू कर देते हैं। बाहर से, वे पश्चात्तापी प्रतीत होते हैं और उन्हें देखकर लगता है जैसे वे परमेश्वर की तरफ लौट रहे हैं, लेकिन उनके आँसुओं के पीछे का सच्चा कारण क्या है? उन्हें वास्तव में किस चीज का पछतावा है? वे शोक मनाते हैं और दुखी होते हैं क्योंकि वे लोगों के दिल, अपना खुद का पद और अपनी प्रतिष्ठा खो चुके होते हैं। उनके आँसुओं में यही बात निहित है। साथ ही, वे अपनी स्थिति को मजबूत करने, अपनी असफलताओं से सीखने और वापस आने के लिए पहले से ही अपने अगले कदमों की साजिश रच रहे होते हैं। मसीह-विरोधियों के इस व्यवहार से पता चलता है कि वे अपने अपराधों और अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों के कारण कभी पश्चात्ताप या कष्ट महसूस नहीं करते हैं और वे निश्चित रूप से खुद को सही मायने में नहीं जान पाएँगे या पश्चात्ताप नहीं करेंगे। हो सकता है कि वे परमेश्वर के सामने घुटने टेकें, फूट-फूट कर रोने लगें, खुद पर विचार करें और खुद को कोसें, लेकिन यह लोगों को गुमराह करने के लिए एक मुखौटा है और यहाँ तक कि कुछ लोग इसे सच्चा भी मान सकते हैं। यह हो सकता है कि उस क्षण में, उनकी भावनाएँ सच्ची हों। लेकिन, यह याद रखना जरूरी है कि मसीह-विरोधी कभी भी सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव नहीं करेंगे। चाहे एक दिन उन्हें बेनकाब करके निकाल ही क्यों ना दिया जाए, उन्हें सही मायने में पश्चात्ताप महसूस नहीं होगा। वे सिर्फ अपनी खुद की असफलता को मान लेंगे कि उन्होंने अपने प्रदर्शन में गड़बड़ी कर दी और अपने सभी बुरे कर्मों को उजागर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि, सत्य और परमेश्वर से नफरत करने की मसीह-विरोधियों की प्रकृति के आधार पर, वे कभी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए, मसीह-विरोधियों का आत्म-ज्ञान हमेशा झूठा होता है। वे सिर्फ यह स्वीकार करेंगे कि उन्होंने लोगों के दिल खो दिए क्योंकि वे सत्ता पर कब्जा करने और स्थिति को मजबूत करने के अवसरों को छीनने में असफल हो गए। उनका पश्चात्ताप और दुख इन्हीं कारणों के लिए हैं। जब मसीह-विरोधी को दुःख होता है तो वे भी आँसू बहा सकते हैं, लेकिन वे क्यों रोते हैं? उनके आँसुओं के पीछे क्या है? वे रोते हैं क्योंकि उनके बहुत सारे बुरे कर्मों को उजागर कर दिया गया है और उन्होंने अपना पद खो दिया है। अगर वे सही मायने में पश्चात्ताप कर सकते और गलत करने और परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करने के कारण रो सकते तो वे इतनी सारी बुराई नहीं करते। उनका अंतःकरण दोषी महसूस नहीं करता और वे अपने बुरे कर्मों को स्वीकार नहीं करते हैं—फिर सच्चा पश्चात्ताप कैसे उत्पन्न हो सकता है? बुरा करने के बाद, उन्हें पश्चात्ताप महसूस नहीं होता है; वे बेपरवाही से भरे होते हैं, सिर्फ यह महसूस करते हैं कि उनकी नाक कट गई है और उन्होंने अपना तमाशा बना दिया है। उनका मिजाज थोड़ा-सा खराब हो सकता है। बाहरी तौर पर ऐसा प्रतीत होने के बावजूद कि सब कुछ ठीक है, दरअसल, अपने दिल की गहराइयों में वे कड़वी जड़ी-बूटियाँ चखने वाले गूंगे व्यक्ति की तरह हैं—वे चुपचाप कष्ट सहते हैं। वे अपने दिलों में भावनाओं के बवंडर का अनुभव करते हैं और खून के आँसू बहाते हैं, फिर भी उन्हें कोई सच्चा पश्चात्ताप नहीं होता है। यही असली स्थिति होती है। कभी-कभी, मसीह-विरोधी कुछ मीठे शब्द कह सकते हैं, जैसे, “चूँकि मेरी काबिलियत खराब थी इस कारण मैंने कार्य ठीक से नहीं किया और मैंने कुछ बाधा और गड़बड़ी उत्पन्न करने वाले कार्य किए; मैं अगुआई करने में असफल रहा और मैं अगुआई के योग्य नहीं हूँ। परमेश्वर मुझे अनुशासित करे और शाप दे। अगर तुम लोग भविष्य में मुझे अगुआई के लिए नहीं चुनने का फैसला करते हो तो मैं शिकायत नहीं करूँगा।” इसके फौरन बाद, वे जोर-जोर से आँसू बहाने लगते हैं। कुछ लोग, जो पहचान नहीं कर पाते, उनके लिए करुणा महसूस करने लगते हैं और कहते हैं, “मत रोओ, हम भविष्य में फिर से तुम्हें चुनेंगे।” यह सुनते ही वे फौरन रोना बंद कर देते हैं। अब क्या तुम्हें उनके असली रंग दिखाई दे रहे हैं? जब वे कुछ अच्छे शब्द बोलते हैं तो यह लोगों के दिल जीतने, उन्हें गुमराह करने और उन्हें फँसाने के लिए होता है और यहाँ तक कि कुछ लोग उनके झाँसे में भी आ जाते हैं। जब भी मसीह-विरोधी आँसू बहाते हैं तो निस्संदेह इसके पीछे कोई उद्देश्य होता है। जब उनकी आराधना करने वाले उनसे सवाल करना शुरू कर देते हैं और उनका रुतबा डगमगाने लगता है तो वे रोने लगते हैं। वे इतने परेशान हो जाते हैं कि वे ना खा पाते हैं और ना ही सो पाते हैं और बार-बार अपने परिवार से कहते हैं, “अगर मैं अगुआई की भूमिका में नहीं रहा तो मैं आगे जिंदा कैसे रहूँगा?” उसके परिवार के लोग जवाब देते हैं, “क्या तुम पहले बिना किसी रुतबे के आराम से नहीं जी रहे थे? तुम क्यों नहीं जी सकते?” वे जवाब देते हैं, “अगर मेरे पास रुतबा नहीं होता तो क्या मुझे ये फायदे मिलते? क्या हम इतने अमीर होते? तुम लोग इतने बेवकूफ क्यों हो?” घर पर, कुछ लोग खुलेआम कहते हैं, “रुतबे के बिना जीने का क्या मतलब है? जीवन का क्या मतलब है? हमारे परिवार में सिर्फ कुछ ही लोग हैं और घर पर मैं सिर्फ इन चंद लोगों के लिए जिम्मेदार हो सकता हूँ। मैं सिर्फ इस घर का मुखिया हूँ और मेरा रुतबा ऊँचा नहीं है। मुझे कलीसिया में पद पर आसीन होना चाहिए; नहीं तो, मेरा जीवन बेकार है। इसके अलावा, कलीसिया में इस पद के बिना, क्या हमारा परिवार इतना अच्छा जीवन जी सकता था?” बंद दरवाजों के पीछे वे ईमानदारी से बोलते हैं और उनकी महत्वाकांक्षाएँ उजागर हो जाती हैं। क्या यह एक बेशर्म व्यक्ति नहीं है? मसीह विरोधियों द्वारा गुमराह किया जाना कोई कभी-कभार होने वाला अपराध नहीं है—यह अनजाने में नहीं होता है। अगर ये कभी-कभार और अनजाने में किए गए बुरे क्रिया-कलाप होते तो उन्हें मसीह-विरोधी नहीं माना जाता। मसीह विरोधी लोगों को जानबूझकर गुमराह करते हैं; वे शैतान की प्रकृति द्वारा नियंत्रित होते हैं। यही कारण है कि वे लोगों को लगातार गुमराह करते हैं और उन्हें नियंत्रित करने और आखिर में सत्ता हासिल करने के लिए जानबूझकर इस तरीके का उपयोग करते हैं। दरअसल, लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने में मसीह-विरोधियों का उद्देश्य लोगों को उनकी बात सुनने, उनकी अगुआई का अनुसरण करने और उन्हें परमेश्वर से दूरी बनाने के लिए मजबूर करना है। मसीह-विरोधियों के इरादे बहुत साफ हैं; उनका लक्ष्य लोगों के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करना है। उनके क्रिया-कलाप भ्रष्टता के क्षणिक प्रकाशन नहीं हैं, ना ही उन्हें ना चाहते हुए, आवेग के वश में आकर किया जाता है और निश्चित रूप से वे खास परिस्थितियों द्वारा बाध्य नहीं किए जाते हैं। यह पूरी तरह से उनकी दुष्ट प्रकृति, उनकी विशाल महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं, उनके कपटी स्वभाव और उनके षड्यंत्रों की बड़ी तादाद के कारण है। अब इन चीजों को करने की उनकी क्षमता उनके प्रकृति सार से तय होती है : परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, उन्होंने इन इरादों और षड्यंत्रों को मन में छिपाकर रखा, बस इन सपनों को साकार करने और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वे अगुआ बनने की प्रतीक्षा करने लगे। यह एक मसीह-विरोधी के दिल की सच्ची स्थिति है और इसमें जरा-सा भी भटकाव नहीं होता है।

ऊपर जिस विषयवस्तु पर चर्चा की गई है उससे तुम लोगों को वह सत्य समझ लेना चाहिए जिसमें तुम्हें प्रवेश करने की जरूरत है। एक तरफ, तुम्हें उन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को पहचान लेना चाहिए, जो ऐसा व्यवहार और प्रकृति सार प्रदर्शित करते हैं। दूसरी तरफ, तुम्हें यह देखने के लिए अपनी तुलना भी करनी चाहिए कि क्या तुम ये व्यवहार प्रदर्शित करते हो। अब, अगर तुम लोग अपनी बातों और मसीह-विरोधी के भाषण के बीच कोई मेल ढूँढ़ पाते हो, या अगर तुम दोनों समान परिस्थितियों में एक जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हो तो क्या तुम अपने प्रकट किए गए स्वभाव या अभ्यास में अपने और मसीह-विरोधियों के बीच समानताओं को पहचान सकते हो? क्या तुम लोग, मैंने जिन कुछ मिसालों की चर्चा की उनसे या उन मिसालों में बताए गए विवरणों, शब्दों और क्रिया-कलापों के जरिए, उस सत्य को समझ सकते हो जिसके बारे में यहाँ संगति की गई है, या क्या तुम लोगों के उन भ्रष्ट स्वभावों को समझ सकते हो जिन्हें यहाँ उजागर किया गया है? क्या तुम इस तरह से सुन सकते हो? तुम लोग किस दृष्टिकोण से सुन रहे हो? अगर तुम मसीह-विरोधियों के इन स्वभावों और सार को पूरी तरह से पहचान रहे हो और इन व्यवहारों और अभ्यासों को एक दर्शक के दृष्टिकोण से देख रहे हो तो क्या तुम सत्य हासिल कर सकते हो? (नहीं।) तो तुम्हें किस दृष्टिकोण से सुनना चाहिए? (अपनी तुलना करने के दृष्टिकोण से।) अपनी तुलना करो—यह सबसे मूलभूत चीज है। और क्या? (स्वयं को सत्य से लैस करो।) सही कहा, तुम्हें मेरे द्वारा चर्चा की गई हर मिसाल में उस सत्य को समझना चाहिए जिसे तुम्हें समझने की जरूरत है। जिनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे सिर्फ तथ्यों को समझ सकते हैं, जबकि जिनके पास आध्यात्मिक समझ है और जिनमें अच्छी काबिलियत है, वे उनसे सत्य को समझ सकते हैं और उसे हासिल कर सकते हैं। क्या तुम लोग चर्चा की गई कहानियों और मिसालों में शामिल सत्य का सारांश प्रस्तुत कर सकते हो? कुछ कहानियों या मिसालों के बारे में संगति करने का उद्देश्य लोगों को उन्हें वास्तविकता से जोड़ने में मदद करना, वास्तविकता में दिखाई देने वाले अलग-अलग मुद्दों को बेहतर ढंग से समझना और सत्य के इस पहलू से जुड़ी अलग-अलग अभिव्यक्तियों और सार के बारे में उनकी धारणा को गहरा करना है। दूसरे शब्दों में, जब सत्य या प्रकृति सार के इस पहलू की बात आती है तो तुम लोग एक खास मिसाल या परिदृश्य के बारे में सोचोगे। इस तरह, जब तुम खुद को समझते हो या दूसरों को पहचानते हो तो तुम्हारे पास एक ऐसी दृष्टिगत की गई समझ होगी, जो समझने में आसान, ज्यादा व्यावहारिक और सिर्फ सिद्धांत या पाठ पढ़ने की तुलना में ज्यादा ठोस होगी। अगर यह सिर्फ पाठ है और तुम लोगों के पास इसका कोई अनुभव नहीं है तो शायद पाठ के बारे में तुम्हारी समझ सिर्फ शब्दों तक ही सीमित होगी, हमेशा तुम्हारे सीमित अनुभवों द्वारा बाधित होगी और सिर्फ उसी सीमा में बनी रहेगी। लेकिन, अगर मैं अपनी संगति में कुछ मिसालें जोड़ दूँ, उसमें कुछ कहानियाँ, कुछ झाँकियाँ, खास शब्द और क्रिया-कलाप और व्यवहार मिला दूँ तो इसका इस पहलू में सत्य की तुम्हारी समझ पर एक सहायक प्रभाव पड़ेगा। अगर यह प्रभाव हासिल हो जाता है तो इसका मतलब है कि तुमने सत्य के इस पहलू को समझ लिया है। तुम्हें समझ की किस हद तक पहुँचना होगा जब इसे समझ के रूप में गिना जा सके? यह 100% होना जरूरी नहीं है, लेकिन सत्य के इस पहलू के बारे में तुम्हारी समझ, परिभाषा, अवधारणा और ज्ञान कम से कम ठोस हो चुका होना चाहिए। इस ठोस होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि यह अपेक्षाकृत शुद्ध हो जाता है, मूल रूप से इसमें कोई मानवीय ज्ञान, धारणा, कल्पना या अंदाजा मिला नहीं होता है, या इसमें इनमें से कम चीजें मिली हुई होती हैं। ऐसी मिसालें यही प्रभाव डालती हैं। हो सकता है कि तुम लोग उन लोगों या घटनाओं को जानते हो जिनका मैंने इनमें से कुछ मिसालों में जिक्र किया है, या यहाँ तक कि तुम ऐसे लोगों के संपर्क में भी रहे हो और उन्हें अच्छी तरह से जानते हो, या हो सकता है कि तुम लोग ऐसी घटनाओं के संपर्क में आए हो और यहाँ तक कि तुमने इन लोगों द्वारा ऐसी चीजें करने की पूरी प्रक्रिया को भी देखा हो। लेकिन सत्य समझने और पहचानने के संबंध में इसके क्या फायदे हैं? हो सकता है कि तुम लोग ऐसे लोगों के साथ रहे हो, तुमने ऐसी कहानियाँ घटते हुए देखी हों और इन कहानियों में होने वाली सारी चीजों को खुद अनुभव किया हो, लेकिन जरूरी नहीं कि इसका यह मतलब हो कि तुम सत्य के इस पहलू को समझते हो। मेरा यह कहने का क्या मतलब है? यह मत मान लो कि क्योंकि तुम उस व्यक्ति या घटना को जानते हो या उससे परिचित हो जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ, इसलिए तुम्हें यहाँ संगति किए गए विवरणों या सत्य और खास सामग्री को सुनने की जरूरत नहीं है। यह एक बड़ी गलती होगी। भले ही वह व्यक्ति कोई ऐसा है जिसे तुम बहुत करीब से जानते हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम यहाँ पहले से ही सत्य समझ और पकड़ चुके हो। मैं तुम्हें यह क्यों याद दिला रहा हूँ? यह तुम लोगों को विवरणों पर अटक जाने से रोकने के लिए है। जब भी तुम किसी को ऐसा कुछ करते देखते हो और परमेश्वर उन्हें एक मिसाल के तौर पर पेश करता है तो तुम उनका मजाक उड़ाते हो और ऐसे लोगों से नफरत करने लगते हो। क्या सत्य के प्रति यह सही रवैया है? (नहीं।) यह कैसा रवैया है? क्या यह मार्ग से भटक जाना नहीं है? यह एक पक्षपातपूर्ण समझ है। इन सुस्पष्ट मिसालों, कहानियों, और खास लोगों और घटनाओं के कारण ही हर कोई सही मायने में इस बात को समझ सकता है कि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन कैसा होता है, सही मायने में इसका साक्षी बन सकता है कि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार का प्रकाशन कैसा होता है, लोगों का प्रकृति सार क्या है, भ्रष्ट स्वभाव क्या होता है, एक खास प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार वाले लोग किस तरह का मार्ग अपनाते हैं, उन्हें क्या अच्छा लगता है, उनकी भावनाओं की अवधि क्या होती है, वे कैसा आचरण करते हैं और दुनिया से कैसे निपटते हैं, जीवन के प्रति उनका नजरिया क्या है, चीजों से निपटने के लिए उनके सिद्धांत क्या हैं और परमेश्वर और सत्य के प्रति उनका रवैया क्या हो सकता है। ठीक इन मिसालों, इन खास व्यक्तियों और ठोस घटनाओं के कारण ही लोग सत्य वास्तविकता को परमेश्वर के मानवीय सार के प्रकाशन के साथ बेहतर ढंग से मिला सकते हैं और उनके बारे में थोड़ा ज्यादा स्पष्ट और ज्यादा सटीक दृष्टिकोण हासिल कर सकते हैं। तो, इन शब्दों के पीछे मेरा क्या मतलब है? यह कि तुम्हें इन कहानियों के महत्व को कम नहीं समझना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं किस तरह की कहानी सुनाता हूँ, यह किसकी कहानी है, या यह किस तरह के व्यक्ति की कहानी है, यहाँ एक ही लक्ष्य है और वह है तुम्हें सत्य को समझने में मदद करना। अगर तुम इससे सत्य हासिल करते हो तो इसका मतलब है कि वांछित प्रभाव हासिल हो गया है। इसलिए, हो सकता है कि जब तुम इन कहानियों को पहली बार सुनो तो इनसे तुम सिर्फ कुछ सतही सत्य, सतही अर्थ या शाब्दिक व्याख्या समझ सको। लेकिन, जैसे-जैसे तुम्हारा आध्यात्मिक कद बढ़ेगा, जैसे-जैसे तुम्हारी उम्र बढ़ेगी, जैसे-जैसे तुम अलग-अलग परिस्थितियों के जरिए जीवन में आगे बढ़ोगे, तुम्हारा जीवन भी धीरे-धीरे परिपक्व होता रहेगा, तुम्हारे पास इन कहानियों में निहित घटनाओं और यहाँ दर्शाए गए अलग-अलग व्यक्तियों के प्रकृति सार, व्यवहार और अभिव्यक्ति की अलग-अलग समझ होगी। ये समझ कैसे प्राप्त होती हैं? ये इन कहानियों में शामिल सत्य से प्राप्त होती हैं, खुद इन कहानियों से नहीं। अगर सिर्फ एक कहानी सुनाई जा रही है, जैसे कि “भेड़िया आया-भेड़िया आया चिल्लाने वाले लड़के” की कहानी तो इसे सुनने के बाद इससे कुछ नहीं मिलेगा; इसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। यह कहानी सिर्फ लोगों को यह निर्देश देती है कि उन्हें कैसे कार्य करना है : यह बहुत सीधी और सतही है। लेकिन जब सत्य की बात आती है तो ऐसी कहानी की गहराई उन सतही मतलबों से परे होती है जिन्हें व्यक्ति आसानी से समझ सकता है। यह लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार का जिक्र करती है, जिसमें लोगों को कैसे पहचाना जाए, अपना मार्ग कैसे चुना जाए, सत्य के पास कैसे पहुँचा जाए और परमेश्वर की अपेक्षाओं के जवाब में लोगों का रवैया कैसा होना चाहिए शामिल हैं। इसमें यह शामिल है कि लोगों को क्या अस्वीकार करना चाहिए और उन्हें क्या अपनाना चाहिए। अगर तुम लोग इस तरह से सुन सकते हो तो हर बार जब तुम उपदेश सुनोगे तो तुम्हें कुछ ना कुछ मिलेगा, तुम ज्यादा प्रकाश हासिल करोगे, सत्य के अलग-अलग पहलुओं के बारे में ज्यादा सिद्धांतों को समझोगे और कुछ जीवन प्रवेश का अनुभव करोगे। जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, जैसे-जैसे समय बीतता है, जैसे-जैसे सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती हैं, जैसे-जैसे रुझानों में बदलाव आता है, सत्य लोगों के दिलों में कार्य करता रहता है, उन्हें पता होगा कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है और सत्य के आधार पर लोगों और चीजों को कैसे देखना है। जीवन हासिल करने का यही मतलब है—सत्य व्यक्ति का जीवन बन सकता है। इसलिए, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहानी कब सुनाई जा रही है, बस एक बार सुनकर इसे सुन लिया है मत मान लेना। सुनते रहो और अगर तुम्हें समझ नहीं आता है तो तुम इसके बारे में संगति कर सकते हो। अगर तुम्हें अपने मौजूदा चरण में इसे समझना मुश्किल लगता है तो यह तुम्हारे आध्यात्मिक कद के अपर्याप्त होने के कारण हो सकता है। ऐसे में, तुम जो समझ पा रहे हो, उसे सुनो और वह चुनो जो तुम्हारे मौजूदा आध्यात्मिक कद के उपयुक्त है। अगर कोई कहानी सुनने पर उस समय वह तुम्हें स्पष्ट लगती है, लेकिन बाद में गहन लगती है, अगर वह तुम्हारी समझ से परे है, या इस चरण पर तुम्हारे अनुभवों और जीवन की परिस्थितियों से मेल नहीं खाती है तो उसे अपने दिल में रखो और उसे अपने मन पर छप जाने दो। जब बाद में तुम इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करोगे तो तुमने अपने दिल में जो सँजोकर रखा है, वह सतह पर दिखाई देने लग सकता है। यह उसी शब्दावली और शब्दों जैसा है जिन्हें तुमने पढ़ा है या यह तुम्हारे दिमाग द्वारा आत्मसात की गई जानकारी की तरह है। क्या तुम लोग हर रोज उनके बारे में सोचते हो? शायद नहीं। आमतौर पर, तुम लोग देर तक उनके बारे में सोच-विचार नहीं करते हो, लेकिन जब तुम खुद को ऐसे माहौल में पाते हो जहाँ ये शब्द, शब्दावली या जानकारी प्रासंगिक होती है तो उनमें से कुछ बातें तुम्हारे दिमाग में आ जाती हैं। लोगों के पास यादें होती हैं और वे स्वाभाविक रूप से अपने दिमाग में कुछ चीजें इकट्ठा करके रखते हैं। दैनिक जीवन में उपयोग करने के लिए ये चीजें तुम्हारे लिए पर्याप्त हैं और कुछ हद तक फायदेमंद हो सकती हैं, लेकिन अगर तुम जानबूझकर उनका उपयोग करने की कोशिश करते हो और विनियमों को सख्ती से लागू करते हो तो तुमसे गलतियाँ होने की ज्यादा संभावना है। तुम लोगों को अपने खुद के आध्यात्मिक कद और अपनी अनुभव की गई परिस्थितियों के आधार पर चुनाव करके सुनना चाहिए। इस तरह, तुम्हारी प्रगति ज्यादा तेजी से होगी। जो लोग सुनने का तरीका जानते हैं, वे ज्यादा हासिल करेंगे, जबकि जो नहीं जानते हैं, वे कम हासिल करेंगे, या शायद कुछ भी हासिल नहीं करेंगे। यहाँ तक कि उन्हें यह भी लग सकता है कि वे इनमें से कोई भी कहानी नहीं सुनना चाहते हैं, कि इनमें से किसी में भी सत्य शामिल नहीं है और वे हैरान हो सकते हैं कि मैं हर समय फालतू बातें और गपशप करने के बजाय सत्य के बारे में बात क्यों नहीं करता। किस तरह के लोग इस तरह का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं? (वे लोग जिनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है।) जिन लोगों के पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे इस तरह से सोच सकते हैं। वे सोच सकते हैं कि जब मैं उपदेश देता हूँ तो मैं सिर्फ इन रोजमर्रा की बातों के बारे में बात करता हूँ; ऐसा है तो वे भी ऐसा कर सकते हैं, इसलिए जब उनके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है तो वे दूसरों के साथ फालतू की गपशप में लगे रहते हैं। हो सकता है कि तुम लोग मेरी सुनाई कहानियों से ज्यादा गपशप जानते हो, लेकिन क्या तुम्हारी चर्चाओं में सत्य शामिल होता है? (नहीं, नहीं होता है।) अगर उनमें सत्य शामिल नहीं होता है तो अंधाधुंध बात मत करो, नहीं तो, हो सकता है कि तुम आखिर में सत्य से संबंध नहीं रखने वाली चीजों पर चर्चा करने लगो। मैं लोगों को सत्य समझने में मदद करने के लिए कहानियाँ सुनाता हूँ। तुम्हें आँख मूँदकर मेरी नकल नहीं करनी चाहिए। तुम्हें सिर्फ सत्य की तलाश करने, सत्य को समझने और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को सँभालने का प्रयास करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चाहे तुम्हारी बातें हों या तुम्हारे क्रिया-कलाप, सत्य सिद्धांतों के अनुरूप उनमें प्राथमिकता तय करो। इस तरह, तुम धीरे-धीरे सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर जाओगे।

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