मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं (खंड तीन)

चाहे मसीह-विरोधी कितने भी उपदेश सुनें, वे सत्य नहीं समझ सकते। वे जो समझते हैं और जो व्यक्त कर सकते हैं वह सब धर्म-सिद्धांत है। वे उन शब्दों को लेते हैं जिन्हें वे समझ सकते हैं और याद रख सकते हैं, उन्हें अपने विचारों में संसाधित करके मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप आध्यात्मिक सिद्धांतों में बदल देते हैं और फिर उन्हें दूसरों को समझाते हुए मनमाने ढंग से प्रचारित करते हैं। जब आध्यात्मिक समझ की कमी वाले और सत्य को न समझने वाले लोग इन्हें सुनते हैं तो उन्हें लगता है कि वे बिल्कुल सही हैं और वे इन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। नतीजतन, वे गुमराह हो जाते हैं और मसीह-विरोधी की आराधना करने लगते हैं। यहीं से मुसीबत शुरू होती है। वास्तव में, मसीह-विरोधी सत्य बिल्कुल नहीं समझते। यदि तुम ध्यान से सुनो और उनके तथाकथित सही शब्दों को समझो तो तुम पाओगे कि वे मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप खोखले सिद्धांत हैं। बेशक, जो लोग सत्य नहीं समझते हैं उन्हें लगता है कि ये शब्द सही हैं और वे आसानी से उनके झाँसे में आ जाते हैं। क्या तुम लोगों ने ऐसी स्थितियों का अनुभव किया है? क्या तुम उदाहरण दे सकते हो? अगर तुम उदाहरण दे सकते हो और साफ तौर पर देख सकते हो कि शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने में कुशल लोग दूसरों को कैसे गुमराह करते हैं तो यह साबित होता है कि तुम लोग उन्हें समझते हो और उन्हें लागू कर सकते हो। अगर तुम लोग उदाहरण नहीं दे सकते तो इसका मतलब है कि तुम लोगों ने उन्हें अभी तक नहीं समझा है और तुम उन्हें लागू नहीं कर सकते। जब तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने में कुशल लोगों से मिलते हो तो तुम निश्चित रूप से उन्हें पहचान नहीं पाओगे। (मैं ऐसी स्थिति में रह चुका हूँ। जब भाई-बहन काट-छाँट, ताड़ना और अनुशासन का सामना करते हैं और वे परमेश्वर का इरादा नहीं समझते हैं तो वे मेरे पास तलाश करने आते हैं। वास्तव में, परमेश्वर का इरादा या इन समस्याओं का सार मैं भी नहीं समझता हूँ। लेकिन मैं उन्हें कुछ खोखले शब्द बताता हूँ, उदाहरण के लिए, “काट-छाँट, ताड़ना और अनुशासन, ये सभी परमेश्वर का प्रेम और परमेश्वर का उद्धार हैं। परमेश्वर हमारे भ्रष्ट स्वभावों पर ऐसे ही कार्य करता है।” यह कहते समय भी मैं महसूस कर सकता हूँ कि मैंने उन्हें उनकी समस्या का सार पूरी तरह से नहीं समझाया है, जैसे कि वे इस परिस्थिति का सामना क्यों कर रहे हैं, उनके क्रियाकलाप और प्रकाशन किस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव के तहत आते हैं या उनकी प्रकृति क्या हो सकती है और परमेश्वर का इरादा क्या है—ये बातें तथा और भी बहुत कुछ पर मैं उनके साथ संगति नहीं कर पाया हूँ। मैंने केवल कुछ सही धर्म-सिद्धांत और अच्छे लगने वाले नारे बोले हैं जो वास्तव में किसी की मदद नहीं करते हैं।) ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हें स्वयं सत्य की स्पष्ट समझ नहीं है, इसलिए तुम अपने भाई-बहनों की वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते हो। तो, क्या मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और इसमें कोई अंतर है? मसीह-विरोधी लोगों की मदद सद्भावना से नहीं करते; उनकी अभिप्रेरणा और उद्देश्य उन्हें गुमराह करना और नियंत्रित करना होता है। जब मसीह-विरोधी इस तरह की चीजें करते हैं और जब वे नारे लगाते हैं तो उनके व्यवहार को देखो और देखो कि वे किस तरह का स्वभाव प्रकट करते हैं—यह मसीह-विरोधियों को पहचानने की कुंजी है। कुछ लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा होता है और उन्हें सत्य की स्पष्ट समझ नहीं होती है। उनके काम की गहनता से शायद आवश्यक नतीजे प्राप्त न हों, लेकिन उनके पास लोगों को गुमराह करने या नियंत्रित करने की अभिप्रेरणा या उद्देश्य नहीं होता। वे लोगों को परमेश्वर के सामने ले जाना भी चाहते हैं—बस उनकी इच्छा के आगे उनकी क्षमता कम पड़ जाती है। हालाँकि उन्होंने स्पष्ट नतीजे प्राप्त नहीं किए हैं, लेकिन लोग देख सकते हैं कि उनके पास सही इरादे हैं, कि वे लोगों को परमेश्वर के सामने ले जाना चाहते हैं। लेकिन, मसीह-विरोधियों का उद्देश्य क्या होता है? (लोगों की स्वीकृति प्राप्त करना, उनसे अपनी बात मनवाना और अपना अनुसरण करवाना।) तो, वे जो कहते हैं उसमें और उस व्यक्ति के कहने में क्या अंतर है जिसकी क्षमता उसकी इच्छा से कम पड़ जाती है? अपर्याप्त क्षमता वाला व्यक्ति अपने दिल से बोलता है, लेकिन वह समस्या के सार और मूल को नहीं देख पाता है; वह इस पर स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर सकता है और अंततः, वह समस्या को हल नहीं कर सकता है या दूसरों का पोषण नहीं कर सकता है। और मसीह-विरोधी के शब्द क्या हैं? क्या वे उसके दिल से आते हैं? (नहीं, वे उसके दिल से नहीं आते हैं।) स्पष्ट रूप से वे उसके दिल से नहीं आते हैं : वह जो कहता है वह सब झूठ है। उसे झूठ क्यों बोलना पड़ता है? वह तुम्हें धोखा देना और गुमराह करना चाहता है। उसका मतलब है, “मैंने पहले ही वह काम कर लिया है जो मुझे एक अगुआ के रूप में करना चाहिए, मैंने वह संगति कर ली है जो मुझे करनी चाहिए और मैंने जो कुछ भी कहा है वह सही है। यदि तुम उसे स्वीकार नहीं करते हो और समस्या अनसुलझी रहती है तो यह तुम्हारी गलती है—मुझे दोष मत दो।” वह वास्तव में तुम्हारी समस्याओं को हल नहीं करना चाहता है, बस बेमन से काम कर रहा है, उसके पास अपना रुतबा बनाए रखने के लिए ये सही बातें कहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वह अपनी इच्छा के विरुद्ध ये बातें कहता है और अगर वह ऐसा कहता भी है तो भी अपनी इच्छा से वह ऐसा नहीं कर रहा होता है—यह वह नहीं है जो वह वास्तव में अपने दिल में सोच रहा होता है। इसलिए, कुछ मसीह-विरोधी आमतौर पर कुछ सही शब्द बोलना सीख सकते हैं जो दूसरों को उनकी नकारात्मकता पर काबू पाने में मदद करते हैं, लेकिन जब वे खुद काट-छाँट का सामना करते हैं या उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है तो वे बेहद नकारात्मक हो जाते हैं, वे खुद को पूरी तरह से जानने में असमर्थ होते हैं और उन्हें मदद के लिए भाई-बहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। क्या ऐसा हुआ है? (हाँ।) इस तरह की बात अक्सर होती है। जिन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश एक मसीह-विरोधी लगातार दूसरों को देता है, वे स्वयं उसकी मदद भी नहीं कर पाते। तो, क्या ये शब्द उसके भीतर से आते हैं? क्या ये उसके वास्तविक अनुभवों का परिणाम हैं? (नहीं।) तो, वह जो कहता है वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं, उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद का प्रतिबिंब नहीं हैं। दूसरों की मदद करने के लिए वह जो काम करता है उसमें केवल बेमन से काम करने के लिए झूठे प्रभावों, क्रिया-कलापों और अच्छे व्यवहार का उपयोग करना शामिल है, ताकि लोग उसे अगुआ मानें, उसे अगुआ के रूप में स्वीकार करें और अनुमोदित करें। एक बार जब लोग उसे अपना अगुआ मान लेते हैं तो क्या वे उसे स्वीकार नहीं करते? अगर वे उसे स्वीकार कर लेते हैं तो क्या मसीह-विरोधी को कोई रुतबा नहीं मिलता? क्या तब उसका रुतबा सुरक्षित नहीं हो जाता? वास्तव में उसका उद्देश्य यही है। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में सत्य की समझ कम होती है और अपना काम सँभालते समय उनकी इच्छा के आगे उनकी क्षमताएँ कम पड़ जाती हैं। यह अधिक से अधिक उनके छोटे आध्यात्मिक कद का संकेत है और इस बात का संकेत है कि वे ऐसे अगुआ नहीं हैं जो मानक स्तर का है। लेकिन जब कोई मसीह-विरोधी काम करता है तो वह इस बात पर विचार नहीं करता कि वह भाई-बहनों को सहायता या सहारा दे सकता है या नहीं। वह केवल अपने रुतबे और हितों के बारे में सोचता है। दोनों के बीच यही अंतर है : उनके स्वभाव अलग-अलग हैं। इसलिए, भले ही मसीह-विरोधी कई सुखद लगने वाले शब्द बोलते हों, लेकिन वे उनकी वास्तविकता नहीं दर्शाते हैं। वे उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध कहते हैं; वे लोगों को सलाह देने और औपचारिकता निभाने के लिए बस बाहर से सही कुछ धर्म-सिद्धांतों और नारों, या मानवीय भावुकताओं के अनुरूप शब्दों का उपयोग कर रहे होते हैं। उन्हें औपचारिकता क्यों निभानी पड़ती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो निराश या कमजोर है और वे उसकी मदद नहीं करते तो दूसरे कहेंगे कि वे वास्तविक काम नहीं कर रहे हैं और एक अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हैं। ऐसे आरोपों से डरकर उनके पास काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। इसलिए, उनका उद्देश्य केवल अपने कर्तव्यों को पूरा करना नहीं है; वे डरते हैं कि अगर वे भाई-बहनों के मुश्किलों का सामना करने पर तुरंत पहुँचकर उनकी मदद नहीं करते हैं और उनकी जरूरतें पूरी कर अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते हैं तो वे अब उनका और समर्थन नहीं करेंगे। अगले चुनाव में शायद वे उन्हें न चुनें और वे सच में एक अगुआ नहीं होंगे, बल्कि उनके पास केवल एक खोखली उपाधि होगी। क्या उनके दिल में सिर्फ एक खोखली उपाधि पाने की ही चाहत है? (नहीं।) तो, वे क्या चाहते हैं? वे असली ताकत और रुतबा चाहते हैं, वे चाहते हैं कि भाई-बहन अंतरमन से उनकी आराधना करें, उनका समर्थन करें और उनका अनुसरण करें। इसलिए, वे हर चुनाव में अगुआ के रूप में चुने जाने का प्रयास करते हैं—यही उनका उद्देश्य है।

चुनाव नजदीक आते ही कुछ तथाकथित अगुआ और कार्यकर्ता विशेष रूप से उत्साही हो जाते हैं, हर जगह खुद को प्रदर्शित करते हैं और असामान्य व्यवहार करते हैं। इस तरह के लोग मसीह-विरोधी किस्म के हो सकते हैं। अगर वे वास्तव में इस तरह से काम कर सकते हैं तो यह घृणित है! जिस व्यक्ति में वास्तव में जमीर और विवेक है, वह अभिप्रेरणा और उद्देश्यों के साथ काम करते समय स्वाभाविक रूप से अपने दिल में दोषी महसूस करेगा। अपने जमीर और विवेक से संयमित होने पर उसे एहसास होगा कि वह पहले इतना उत्साही नहीं था और लोग उसके अचानक उत्साहित होने को भाँप लेंगे। वह भी खुद अपने प्रति घृणा महसूस करता है और वह इस तरह से काम करने के बजाय चुनाव नहीं लड़ना पसंद करेगा। क्योंकि उसने इतने सालों से परमेश्वर पर विश्वास किया है और थोड़ा आध्यात्मिक कद और शर्म की भावना विकसित की है, अंत में, वह खुद को संयमित करने में सक्षम होता है। लेकिन मसीह-विरोधी खुद को संयमित नहीं करते हैं; वे अपनी मर्जी से जो चाहते हैं वही करते हैं, जैसा चाहते हैं वैसा ही करते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ, विभिन्न अभिप्रेरणाएँ, उद्देश्य और योजनाएँ होती हैं। वे अपने दिल में यह सब जानते हैं, लेकिन वे हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में सोचते हुए इस तरह से काम करने पर जोर देते हैं। उन्हें लगता है कि कलीसिया और अपने भाई-बहनों के लिए काम करना बहुत बड़ा नुकसान है और सार्थक नहीं है। इसलिए, वे हर काम में खुद को सबसे आगे रखते हैं और हमेशा पहले स्थान पर रहने की कोशिश करते हैं। जब चुनाव आते हैं तो वे हर जगह अपने पक्ष में गुट बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, लोगों को गुमराह करते हैं और फुसलाते हैं ताकि वे उन्हें चुनें और मतदान के दौरान चुपके से अपने पक्ष में कुछ मत भी जुगाड़ लेते हैं। क्या मसीह-विरोधियों का इस तरह से काम करना घृणित नहीं है? अगर उनकी महत्वाकांक्षाएँ नहीं होतीं तो वे इतना सब क्यों करते? क्या यह स्पष्ट रूप से महत्वाकांक्षा के कारण नहीं है? जैसे ही कोई उल्लेख करता है कि कोई महत्वाकांक्षी है तो इसमें कुछ भी सकारात्मक नहीं है; ऐसे लोग जो कुछ भी करते हैं वह निस्संदेह घृणित और अवर्णनीय है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह झूठ और धोखा देने वाला होता है; वे लोगों को गुमराह करने के लिए हमेशा झूठे मुखौटों का उपयोग करते हैं। जो लोग मामले की सच्चाई नहीं जानते वे इसे देखते हैं और सोचते हैं, “अगुआ ने इन कुछ दिनों में बहुत मेहनत की है, नींद और भोजन का त्याग किया है, दिन-रात काम किया है, हर चीज में अगुआई की है। उसने बहुत कुछ सहा है और इतना थक गया है कि उसका वजन बहुत कम हो गया है—उसके बाल और भी सफेद हो गए हैं।” कुछ भाई-बहन यह देखते हैं और मसीह-विरोधी के लिए खेद महसूस करते हैं और अंत में, चुनाव के दौरान, वे उसके पक्ष में वोट डालते हैं। क्या मसीह-विरोधी ने अपना लक्ष्य हासिल नहीं किया है? (बिल्कुल किया है।) योजना बनाने और रणनीति का उपयोग करने का यही मतलब है, दुष्ट होने का यही मतलब है। इसलिए, मसीह-विरोधी केवल शब्दों से ही नहीं बल्कि कई बार क्रिया-कलापों और व्यवहारों से भी लोगों को गुमराह करते हैं जो चुपचाप लोगों को बताते हैं कि वे कितने उत्साही, कितने विनम्र और भाई-बहनों के प्रति कितने विचारशील हैं। वे इन अच्छी और सही प्रतीत होने वाली अभिव्यक्तियों और बाहरी रूप से झूठे दिखावों का उपयोग लोगों को बार-बार यह बताने, बार-बार इस बात पर जोर देने और लोगों को यह जानकारी देने के लिए करते हैं कि वे मानक स्तर के अगुआ हैं, अच्छे अगुआ हैं जिन्हें लोगों को स्वीकार करना चाहिए। यह लोकतांत्रिक देशों के चुनावों की तरह ही है, जहाँ उम्मीदवार भाषण देते हैं, अपने पक्ष में गुट बनाते हैं और हर जगह प्रचार करते हैं। वे मतदान प्रक्रिया में भी धाँधली करते हैं। लेकिन इन लोगों को शर्म नहीं आती, वे इस धारणा का पालन करते हैं कि “वास्तविक मनुष्य को क्रूर होना चाहिए।” वे चुनाव जीतने के लिए हर जरूरी साधन का उपयोग करते हैं—यह अविश्वासियों का विचार और दृष्टिकोण है। क्या ये मसीह-विरोधी भी ऐसा ही करते हैं? बिल्कुल! सत्ता और रुतबे की खातिर ये लोग अपने दिलों की गहराई में हर काम को जोश और उत्साह से करते हैं और उसे पूरा करने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। वे अपने भाग्य से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए, अगर सत्ता और रुतबे के लिए अति उत्साही लोग, यानी वे लोग जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं, अंततः अगुआ के रूप में चुने जाते हैं तो वे न केवल मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे होते हैं; बल्कि वे स्वयं भी मसीह-विरोधी बन सकते हैं। क्या तुम लोगों की भी महत्वाकांक्षाएँ हैं? क्या तुम लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं को मानवता और विवेक की सीमाओं के भीतर नियंत्रित कर सकते हो? यदि तुम उन्हें नियंत्रित कर सकते हो तो तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने के खतरे से बच सकते हो, तुम मसीह-विरोधी नहीं बनोगे और हटाए नहीं जाओगे। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारी महत्वाकांक्षाएँ बहुत बड़ी हैं, तुम अक्सर रुतबे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो, यहाँ तक कि खाना-पीना भी छोड़ देने को तैयार हो, किसी भी तरह की पीड़ा सहने को तैयार हो और यहाँ तक कि किसी भी तरह के घृणित तरीके को अपनाने के लिए तैयार हो, अगर तुम पहले से ही उस बिंदु पर पहुँच चुके हो जहाँ तुम बेशर्म हो और तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करना मुश्किल है तो यह परेशानी की बात है—तुम निस्संदेह एक मसीह-विरोधी हो। यदि तुम केवल मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो तो भी उद्धार की आशा है। लेकिन क्या तुम खतरे से बाहर हो? अभी नहीं। यदि तुम मसीह-विरोधी की ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो तो इसका मतलब है कि तुम अभी भी परमेश्वर के विरोधी हो, किसी भी समय उसका प्रतिरोध करने और उसे नकारने के लिए तैयार हो। या शायद, क्योंकि परमेश्वर ने कुछ ऐसा किया है जो तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप नहीं है, तुम परमेश्वर का अध्ययन कर सकते हो, उसे गलत समझ सकते हो, उसके बारे में निर्णय दे सकते हो और यहाँ तक कि उसके बारे में धारणाएँ भी फैला सकते हो। फिर तुम परमेश्वर को नकार सकते हो, अपने ही रास्ते पर चल सकते हो और अंततः परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाते हो। तुम जो भी चीजें, जब भी और जहाँ भी प्रकट करते हो, वे तुम्हारे स्वभाव का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं। इसलिए, तुम जो भी चीजें हर समय और हर स्थान पर प्रकट करते हो, वे तुम्हारे स्वभाव का प्रकाशन हैं। हम हमेशा स्वभाव में बदलाव पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि जिस व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता, वह परमेश्वर का दुश्मन है। सभी मसीह-विरोधी भयंकर रूप से पश्चात्ताप नहीं करते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने और अंत तक उसके विरुद्ध खड़े रहने में अपना जीवन लगा देने की कसम खाते हैं। भले ही वे भीतर से परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारते हों, भले ही वे स्वीकारते हों कि परमेश्वर ने मानवता का सृजन किया है और परमेश्वर मानवता को बचा सकता है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण वे जिस मार्ग पर चलते हैं उसे बदल नहीं सकते, न ही वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके प्रति शत्रुता का भाव रखने के सार को बदल सकते हैं।

मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने, लोगों को गुमराह करके फँसाने और उच्च हैसियत प्राप्त करने के लिए लगातार विभिन्न साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करना है, ताकि लोग उनका अनुसरण और आराधना करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवजाति को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है : जब वे मनुष्यों को लेकर परमेश्वर के साथ होड़ नहीं भी कर रहे होते, तब भी वे उनके बीच रुतबा और सत्ता पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए, जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें अपने दिल में स्पष्ट होता है कि वे कुछ लोगों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, हालाँकि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उससे वे अपने कर्तव्य निभाते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका परिणाम लोगों को गुमराह करना होता है, उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपना कर्तव्य निभाना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में रुतबा और सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरे मसीह-विरोधी होते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे या करे और चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहे, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते जो परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुरूप हो, न ही वे किसी सत्य को समझने के नतीजे के तौर पर सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण ही त्यागते हैं। हर समय, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ फिर भी बनी रहती हैं, वे फिर भी उनके दिल पर कब्जा किए रहती हैं और उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं और उस मार्ग को निर्धारित करती हैं, जिस पर वे चलते हैं। वे प्रमाणिक मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों में सबसे ज्यादा क्या दिखाई देता है? कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी लोगों को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते।” ऐसा नहीं है कि वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते; अपने दिल में वे वास्तव में उसके अस्तित्व को स्वीकारते और उस पर विश्वास करते हैं। वे उसका अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं और सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं, लेकिन उनका खुद पर बस नहीं चलता, इसलिए वे बुराई कर सकते हैं। हालाँकि वे कई अच्छी लगने वाली बातें कह सकते हैं, लेकिन एक चीज कभी नहीं बदलेगी : सत्ता और रुतबे के लिए उनकी आकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। वे कभी असफलता या बाधा के कारण, या परमेश्वर द्वारा उन्हें दरकिनार कर त्याग दिए जाने के कारण सत्ता और रुतबे का अनुसरण करना नहीं छोड़ेंगे। ऐसी होती है मसीह-विरोधियों की प्रकृति। तो तुम क्या कहते हो, क्या कभी कोई ऐसा मसीह-विरोधी हुआ है जिसने इसलिए अपने तरीके बदले हों और सत्य का अनुसरण करना शुरू कर दिया हो क्योंकि उसने कठिनाई झेली, या सत्य को थोड़ा-बहुत समझा और परमेश्वर का थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त किया—क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? हमने ऐसा कभी नहीं देखा। रुतबे और सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और उनका अनुसरण कभी नहीं बदलेगा और एक बार जब वे सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे; इससे उनका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है। शायद कुछ लोग मानते हैं कि मसीह-विरोधी मानवजाति के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, कई बार यह जरूरी नहीं होता कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा ही करें; उनका ज्ञान, समझ और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की आवश्यकता सामान्य लोगों जैसी नहीं होती। सामान्य लोग कभी-कभी दंभी हो सकते हैं; वे दूसरों की प्रशंसा जीतने का प्रयास कर सकते हैं, उन पर धाक जमाने का प्रयास कर सकते हैं और एक अच्छी श्रेणी पाने की होड़ लगाने का प्रयास कर सकते हैं। यह सामान्य लोगों की महत्वाकांक्षा है। अगर उन्हें अगुआई से बर्खास्त कर दिया जाता है, वे अपना रुतबा खो देते हैं तो यह उनके लिए कठिन होगा, लेकिन परिवेश में परिवर्तन से, थोड़े आध्यात्मिक कद के विकास से, सत्य प्रवेश की थोड़ी-बहुत प्राप्ति या सत्य की गहरी समझ आने पर उनकी महत्वाकांक्षा धीरे-धीरे शांत हो जाती है। उनके द्वारा अपनाए गए मार्ग और आगे बढ़ने की दिशा में परिवर्तन आता है और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की उनकी खोज धूमिल होने लगती है। उनकी इच्छाएँ भी धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी अलग होते हैं : वे प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की अपनी खोज कभी नहीं छोड़ सकते। किसी भी समय पर, किसी भी माहौल में और चाहे उनके आस-पास कोई भी लोग हों, चाहे वे किसी भी उम्र के हों, उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। किससे पता चलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी? उदाहरण के लिए, मान लो कि वे किसी कलीसिया में अगुआ हैं। वे अपने दिल में हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वे कलीसिया में सभी को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं। अगर उन्हें किसी दूसरे कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ वे अगुआ नहीं हैं तो क्या वे खुशी-खुशी एक सामान्य अनुयायी बन जाएँगे? बिल्कुल नहीं। वे अभी भी इस बारे में सोचते रहेंगे कि कैसे पद प्राप्त करें और कैसे सभी को नियंत्रित करें। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे राजा की तरह शासन करना चाहते हैं। भले ही उन्हें बिना लोगों वाली जगह पर, भेड़ों के रेवड़ में रखा जाए तो वे तब भी रेवड़ का नेतृत्व करना चाहेंगे। अगर उन्हें बिल्लियों और कुत्तों के साथ रखा जाए तो वे बिल्लियों और कुत्तों के राजा बनना चाहेंगे और जानवरों पर शासन करना चाहेंगे। वे महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं, है ना? क्या ऐसे लोगों का स्वभाव दानवी नहीं है? क्या ये शैतान के स्वभाव नहीं हैं? शैतान ऐसी ही चीज है। स्वर्ग में शैतान परमेश्वर के बराबर खड़ा होना चाहता था और पृथ्वी पर फेंके जाने के बाद उसने हमेशा मनुष्य को नियंत्रित करने, मनुष्य से अपनी आराधना करवाने और अपने को परमेश्वर मानने के लिए मनुष्य को विवश करने का प्रयास किया। मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं क्योंकि उनके पास शैतानी प्रकृति होती है; वे अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीते हैं जो पहले से ही सामान्य लोगों की समझ की सीमाओं से परे जा चुका है। क्या यह थोड़ा असामान्य नहीं है? यह असामान्यता किस बात को संदर्भित करती है? इसका अर्थ है कि उनका व्यवहार सामान्य मानवता में नहीं पाया जाना चाहिए। तो, यह व्यवहार क्या है? इसे क्या नियंत्रित करता है? यह उनकी प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता है। उनके पास एक दुष्टात्मा का सार है और वे सामान्य भ्रष्ट मानव जाति से भिन्न हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी सत्ता और रुतबे की खोज में किसी भी हद तक जा सकते हैं, यह न केवल उनके प्रकृति सार को उजागर करता है, बल्कि लोगों को यह भी दिखाता है कि उनका घिनौना चेहरा बिल्कुल शैतान और दानवों का चेहरा है। वे न केवल रुतबे के लिए लोगों से होड़ करते हैं बल्कि परमेश्वर से भी होड़ करते हैं। वे केवल तभी संतुष्ट होंगे जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने साथ कर लेंगे और वे लोग पूरी तरह से उनके नियंत्रण में होंगे। चाहे मसीह-विरोधी किसी भी कलीसिया या समूह में हों, वे पद प्राप्त करना चाहते हैं, सत्ता हासिल करना चाहते हैं और लोगों से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। चाहे लोग इच्छुक और सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उनकी बात मानें और उन्हें स्वीकार करें। क्या यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति नहीं है? क्या लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार हैं? क्या वे उन्हें चुनते हैं और उनकी संस्तुति करते हैं? नहीं। लेकिन मसीह-विरोधी अभी भी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं। चाहे लोग सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी उनकी ओर से बोलना और कार्य करना चाहते हैं, वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वे अपने विचारों को अन्य लोगों पर थोपने की भी कोशिश करते हैं और यदि लोग इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो मसीह-विरोधी उन्हें इसे स्वीकार करवाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। यह क्या समस्या है? यह बेशर्मी और ढीठता है। इस तरह के लोग सच्चे मसीह-विरोधी होते हैं और चाहे वे अगुआ हों या नहीं, वे मसीह-विरोधी तो होते ही हैं। उनमें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार होता है।

कुछ लोग हमेशा यह जानने को बहुत महत्व देते हैं कि कलीसिया के अगुआ कौन हैं, सुसमाचार प्रचार करने में कौन शामिल है, वे सभी कहाँ रहते हैं, उनके किसके साथ घनिष्ठ संबंध हैं, इत्यादि। शैतान के जासूसों की तरह, वे हमेशा इन मामलों में ताक-झाँक करते रहते हैं। वे हमेशा इन मामलों के बारे में क्यों चिंतित रहते हैं? बहुत से लोग उनके उद्देश्य समझ नहीं पाते हैं; उन्हें सिर्फ यह लगता है कि ये व्यक्ति थोड़े असामान्य हैं। ज्यादातर लोगों को इन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं होती; वे अपने कर्तव्यों में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास दखल देने का समय नहीं होता। वे अपने कर्तव्यों को करने और सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, उन्हें महसूस ही नहीं होता और उनका स्वभाव बदल जाता है—यह परमेश्वर का अनुग्रह है। हालाँकि, एक खास किस्म का व्यक्ति होता है जो कलीसिया से संबंधित सभी प्रकार के मामलों में ताक-झाँक करने और उनका पता लगाने के लिए विशेष रूप से उत्साही रहता है। जब वह किसी अगुआ से मिलता है तो पूछता है, “तुम लोग कलीसिया में उस फलाँ दुष्ट व्यक्ति से कैसे निपटे?” अगुआ जवाब देता है, “तुम्हें इससे क्या कि हम उससे कैसे निपटे? तुम इसमें ताक-झाँक क्यों कर रहे हो? क्या तुम उस व्यक्ति को जानते हो?” वह व्यक्ति कहता है, “मुझे परवाह है तभी पूछा। यह परमेश्वर के घर का मामला है। परमेश्वर के घर के सदस्यों के रूप में, हमें उत्साही होना चाहिए और उसके घर के मामलों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। हम उनके प्रति उदासीन कैसे हो सकते हैं?” अगुआ उससे कहता है, “तुम्हें इस मामले में ताक-झाँक नहीं करनी चाहिए। धर्मोपदेश सुनने और सभाओं में भाग लेने पर ध्यान केंद्रित करो। तुम्हारा काम परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना है। परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास करना ही तुम्हारे लिए काफी है।” वह व्यक्ति जोर देता है, “यह ठीक नहीं है, मुझे चिंता करनी ही है।” चूँकि उसे कोई कुछ नहीं बताता तो वह सोचने लगता है कि कहाँ जाकर ताक-झाँक करूँ। जब उच्च अगुआ उसके घर पर सहकर्मियों की बैठक आयोजित करते हैं तो उसे लगता है कि अंदर जाना और शामिल होना थोड़ा अनुचित लगेगा, इसलिए वह पानी लाने के बहाने अंदर आकर पूछता है कि क्या उस दुष्ट व्यक्ति को निकाल दिया गया या रहने दिया गया। जब उसे कोई नहीं बताता तो वह बाहर जाकर दरवाजा थोड़ा-सा खोलता है और वहाँ खड़े होकर चुपके से सुनता है। क्या यह व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार नहीं है? हाँ, वह मानसिक रूप से बीमार है; बोलचाल की भाषा में, हम उसे “टाँग अड़ाने वाला” कहते हैं। ऐसे व्यक्ति की निश्चित रूप से महत्वाकांक्षाएँ होती हैं। वह अगुआ बनना चाहता है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता, इसलिए वह खुद को सांत्वना देने के लिए दूसरों के मामलों में दखल देता है और साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि लोग देखें कि वह बहुत कुछ जानता है और उसके पास असाधारण अंतर्दृष्टि है। इस तरह, उसे भविष्य में अगुआ के रूप में चुना जा सकता है। अगुआ बनने के लिए वह हर चीज में भाग लेना चाहता है, हर चीज के बारे में पूछताछ करना चाहता है और हर चीज जानना चाहता है। उसका मानना है कि दिन-प्रतिदिन इन मामलों में शामिल होने से, भले ही वह अगुआ न बने, फिर भी वह चीजों का प्रभारी होगा और वह ऐसा कर सकता है कि लोग उसका सम्मान करें। उसे सत्य में जरा भी रुचि नहीं है; वह केवल दूसरों के मामलों में दखल देने की परवाह करता है—वह उन मामलों में ताक-झाँक करने में माहिर है जो वह जानना चाहता है। जहाँ कहीं भी समस्या होगी, वह वहाँ एक मक्खी की तरह भिनभिना रहा होगा। क्या ऐसे लोग घृणित नहीं हैं? वे इस हद तक उलझन में हैं, फिर भी वे काफी जीवंत हैं—वे बस कोई ढंग का काम करने के बारे में नहीं सोचते। वे अपने घर पर लोगों की मेजबानी करने का कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी वे रसोई के फर्श को साफ करने के लिए तैयार नहीं हैं, भले ही वह गंदा हो। वे खुद को महत्वपूर्ण मामलों के प्रभारी मानते हैं और फर्श को साफ करना तो आम लोगों का काम है। वे ऐसी काबिलियत के होते हुए इस तरह के तुच्छ काम नहीं कर सकते। वे कोई वास्तविक काम बिल्कुल नहीं करते, वे वह काम नहीं कर सकते जो उनके अपने कर्तव्य का हिस्सा है, कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभा सकते और ईमानदारी से या जमीनी स्तर पर काम नहीं करते; इसके बजाय, वे कलीसिया के काम में, साथ ही कलीसिया के अगुआओं, कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में ताक-झाँक करने के लिए उत्सुक रहते हैं। वे हर चीज पर अपनी राय देना चाहते हैं और अगर लोग उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होते तो वे कहते हैं, “अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो तुम्हें नुकसान होगा!” क्या यह अनुचित नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, कुछ मसीह-विरोधी छिपे हुए हैं; यह जरूरी नहीं है कि उनका कोई रुतबा हो ही। इसके बिना भी वे अभी भी ऊर्जा से उछल-कूद कर रहे होते हैं। यदि उन्हें पद मिल जाता तो यह कितना बुरा होता? वे कितने ऊँचे उछल रहे होते? यहाँ तक कि यदि उछल-कूद करते हुए वे मर भी जाएँ तो उन्हें कोई शिकवा न होगा। मुझे बताओ, यदि ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में चुना जाए तो क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग सुख से जीवन जी सकते हैं? कुछ मसीह-विरोधी छिपे हुए होते हैं—इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि मसीह-विरोधी, पद प्राप्त करने पर मसीह-विरोधी नहीं बनते; वे शुरू से ही मसीह-विरोधी थे। यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा था और वे उन्हें पहचान नहीं पाए, या शायद कुछ कलीसियाएँ सत्य का अनुसरण करने वालों को नहीं ढूँढ़ पाईं, इसलिए उन्होंने इन उत्साही लोगों को अपने अगुआ के रूप में चुना जो चीजों की योजना बना सकते थे और काम कर सकते थे। अभी के लिए, इस बात पर चर्चा न करके कि उन्हें अगुआ के रूप में चुनना सही था या गलत, आओ, इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि जब यह पता चल जाता है कि वे मसीह-विरोधी हैं तब क्या किया जाना चाहिए। उन्हें उजागर किया जाना चाहिए और नकार देना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित कर दिया गया है और उसके पद से बर्खास्त कर दिया गया है तो क्या ऐसे लोगों को भविष्य में फिर से अगुआ के रूप में चुना जाना चाहिए? (नहीं, उन्हें नहीं चुना जाना चाहिए।) क्यों? (उनकी प्रकृति नहीं बदलेगी।) मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किए गए किसी भी व्यक्ति को फिर से अगुआ के रूप में नहीं चुना जाना चाहिए क्योंकि उसका प्रकृति सार नहीं बदल सकता। मसीह-विरोधी केवल शैतान के लिए काम करते हैं; वे केवल शैतान के गुलाम हैं। वे सत्य के लिए न कभी कुछ करेंगे, न कभी कुछ कहेंगे। मसीह-विरोधियों का सार परमेश्वर के प्रति शत्रुता का भाव रखना, सत्य से विमुख होना, सत्य नकारना और सत्य के साथ अवमाननापूर्ण व्यवहार करना है। उनकी प्रकृति नहीं बदलेगी। यदि इस तरह के लोग पहले अगुआ नहीं रहे हैं तो उन्हें नहीं चुना जाना चाहिए और यदि वे पहले अगुआ थे लेकिन बर्खास्त कर दिए गए थे तो क्या वे भविष्य में फिर से अगुआ बनने पर बदल जाएँगे? (नहीं, वे नहीं बदलेंगे।) वे अभी भी मसीह-विरोधी हैं। उनका प्रकृति सार इसे निर्धारित करता है।

II. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को फुसलाने का गहन-विश्लेषण

अभी-अभी हमने लोगों को गुमराह करने वाले मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर चर्चा की। गुमराह करने और फुसलाने का मतलब लगभग एक ही है, लेकिन वे प्रकृति और तरीके दोनों में अलग हैं। गुमराह करने का मतलब है लोगों को बहकाने के लिए झूठे दिखावों का उपयोग करना और उन्हें यह विश्वास दिलाना कि वे सच्चे हैं। फुसलाने का मतलब है समझते-बूझते हुए कुछ तरीकों का उपयोग करके लोगों को किसी खास व्यक्ति की बात सुनने और उसके मार्ग का अनुसरण करने के लिए मजबूर करना—उनका इरादा बिल्कुल स्पष्ट होता है। गुमराह करने और फुसलाने में शामिल हैं : लोगों को गुमराह करने के लिए सही प्रतीत होने वाले शब्दों का उपयोग करना, ऐसी बातें कहना जो मानवीय धारणाओं के अनुरूप हैं और लोगों द्वारा खुशी-खुशी स्वीकार की जाती हैं, ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके। लोग अनजाने में उनमें विश्वास करना और उनका अनुसरण करना, उनके साथ खड़े होना और उनके गिरोह में शामिल होना शुरू कर देते हैं। इस तरह से, मसीह-विरोधी लोगों को लोगों के एक सही समूह से दूर ले जाकर अपने खेमे में खींच लेते हैं। संक्षेप में, अगर लोग मसीह-विरोधियों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को स्वीकार कर लेते हैं तो वे उन पर विश्वास कर सकते हैं, उनकी आराधना कर सकते हैं और फिर मसीह-विरोधियों की कही गई हर बात को स्वीकार कर सकते हैं और मान सकते हैं, जिससे वे बिना सोचे-समझे उनका अनुसरण करना शुरू कर सकते हैं। क्या उन्हें बहकाया और धोखा नहीं दिया गया है? कुछ मसीह-विरोधी लोगों से मेलजोल और बात करते समय उन्हें गुमराह करने और फुसलाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अक्सर कुछ चालों का उपयोग करते हैं, जिसके फलस्वरूप कलीसिया में विभाजन हो जाता है, गुट और गिरोह बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर कोई मसीह-विरोधी दक्षिण से है और वह किसी दूसरे दक्षिणवासी से मिलता है तो मसीह-विरोधी कह सकता है, “हम दोनों दक्षिणवासी हैं : हम एक ही नदी का पानी पीकर बड़े हुए हैं और हम एक ही भाषा बोलते हैं। उत्तरवासी हमारी भाषा नहीं बोलते हैं—उनके करीब हो पाना नामुमकिन है! वैसे तो हम सभी एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उत्तरवासियों के जीवन की आदतें हमारी आदतों से अलग हैं और हमारे व्यक्तित्व बेमेल हैं। हमारे पास बात करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए, तुम और मैं एक परिवार जैसे हैं और हमें एकजुट रहना होगा।” सुनने में यह उचित लग सकता है, मानो वे सिर्फ एक खास नजरिया व्यक्त कर रहे हों, लेकिन वे इसे एक कारण और उद्देश्य से कहते हैं और लोगों में सूझ-बूझ होनी चाहिए। दरअसल, मसीह-विरोधी जो कहता है वह उसके दिल की बात नहीं होती है; वह गिरगिट है, वह जिस व्यक्ति से बात कर रहा होता है उसी के मुताबिक अपने शब्दों को समायोजित कर लेता है। जब मसीह-विरोधी उत्तरवासियों से मिलता है तो वह कह सकता है, “उत्तर शानदार है; वहाँ की हवा ताजी है। वैसे तो मेरा जन्म दक्षिण में हुआ, लेकिन मैं उत्तरी पानी पीकर बड़ा हुआ हूँ। यह और कुछ नहीं तो कम से कम हमें पास तो लाता ही है!” जब उत्तरवासी यह सुनते हैं तो उन्हें लग सकता है कि मसीह-विरोधी एक बहुत अच्छा व्यक्ति है और वे उससे जुड़ना शुरू कर देते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और उन्हें फुसलाने में अत्यंत निपुण होता है और वह कलीसिया को विभाजित करने के लिए तरह-तरह की चालों का उपयोग करता है जिससे दक्षिणवासी और उत्तरवासी अलग-अलग समूह बना लेते हैं और ये सब कुछ मसीह-विरोधी के अपने फायदे के लिए होता है ताकि वह एकजुट होने और अपनी एक फसादी शक्ति बनाने का अपना लक्ष्य हासिल कर सके। खासतौर पर, कलीसिया के चुनावों के दौरान, अगर मसीह-विरोधी देखता है कि किसी उत्तरी भाई या बहन के निर्वाचित होने की संभावना है तो वह गुप्त कार्यों में व्यस्त हो जाता है, चोरी-चुपके वोटों को बदल देता है और आखिर में, सभी निर्वाचित कलीसियाई अगुआ और उपयाजक दक्षिण के होते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और फुसलाने के लिए सारी हदें पार कर जाते हैं, जिससे विभाजन होते हैं और गुट बनते हैं, वे कलीसिया को विभाजित करने और नियंत्रित करने के लिए इन तरीकों का उपयोग करते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य है? (अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना।) स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की प्रकृति क्या है? इसका मतलब है मसीह का कट्टर विरोधी होना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर अपना होने का दावा करना और परमेश्वर के समकक्ष के रूप में उसके विरुद्ध खड़ा होना। क्या यह परमेश्वर के विरुद्ध प्रतिद्वंद्वी प्रदर्शन का मंचन करने जैसा नहीं है? (हाँ।) यह बिल्कुल वही है। तो, मसीह-विरोधियों के इस तरह से कार्य करने के क्या परिणाम होते हैं? उनके क्रिया-कलाप कलीसिया के कार्य को गंभीर रूप से अस्त-व्यस्त कर देते हैं और वे ऐसे कुछ हैं जो सीधे परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित करते हैं। परमेश्वर क्रोध से उनका जवाब देगा और ऐसे सभी मसीह-विरोधियों को निश्चित रूप से सजा और विनाश का सामना करना पड़ेगा—इसमें कोई शक नहीं है। व्यवस्था के युग में, मूसा का न्याय करने वाले 250 अगुआओं को प्रत्यक्ष सजा मिली। अनुग्रह के युग में, जिन लोगों ने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया, उन्हें भी प्रत्यक्ष सजा का सामना करना पड़ा था; उन्हें अभिशाप दिया गया और उनका बुरा अंत हुआ। यह परमेश्वर का विरोध करने वाले मसीह-विरोधियों का परिणाम है और उन लोगों का अनिवार्य अंत है जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं।

कलीसिया को विभाजित करने की खातिर लोगों को फुसलाने के लिए मसीह-विरोधी अलग-अलग तरीकों का उपयोग कैसे करते हैं? सबसे पहले, मसीह-विरोधी उन लोगों को फुसलाएगा जिनके पास गुण हैं, जो वाक्पटुता से बोल सकते हैं और वह पहले इन लोगों के सामने अपनी अच्छी छवि पेश करेगा और दोस्त बनाकर अपनी खुद की शक्ति की सीमा को प्रसारित करेगा। वह गरीब लोगों या कम काबिलियत वालों या अपेक्षाकृत निष्कपट लोगों पर ध्यान नहीं देगा या यहाँ तक कि उन्हें अलग-थलग भी कर सकता है। वह समाज में रुतबे और धन-दौलत वाले सभी लोगों को जीतने का एक तरीका सोच लेगा, जबकि वे भाई-बहन जो ईमानदारी से खुद को खपाते हैं, लेकिन कम पैसे वाले हैं, या वे जो निचले सामाजिक रुतबे के हैं, जिनके पास कहने के लिए कोई शक्ति नहीं है और वे दूसरों द्वारा आसानी से डराए-धमकाए जाते हैं, उन्हें कलीसिया में दूसरी-श्रेणी का नागरिक निर्दिष्ट किया जाएगा। इस तरह, कुछ दर्जन सदस्यों वाली कलीसिया अलक्षित रूप से दो श्रेणी के लोगों में विभाजित हो जाएगी। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? (मसीह-विरोधी।) मसीह-विरोधी ऐसी चीजें करेंगे। अगर किसी अच्छे अगुआ को, जो सही मायने में सत्य समझता है, कलीसिया में इस तरह की स्थिति का पता चलता है तो वह उसे सुलझाने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। वह कलीसिया में लोगों को श्रेणी के अनुसार अलग करने या उनके सामाजिक रुतबे के आधार पर वर्गीकृत करने की अनुमति नहीं देगा और ना ही वह कलीसिया को विभाजित करेगा। वह यह सुनिश्चित करेगा कि सभी भाई-बहन, चाहे वे कहीं से भी आते हों या उनका कोई सामाजिक रुतबा हो या ना हो, परमेश्वर के वचनों में और परमेश्वर के सामने एकजुट रहें। दूसरी तरफ, मसीह-विरोधी ना सिर्फ ऐसी समस्याओं को नहीं सुलझाते हैं, बल्कि इसके बजाय अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का उपयोग करते हैं। वे सामाजिक रुतबे और धन-दौलत वाले लोगों की तलाश करते हैं और उन्हें फुसलाते हैं। वे उन्हें कैसे फुसलाते हैं? वे कह सकते हैं, “तुम्हारा सामाजिक रुतबा परमेश्वर से मिला आशीर्वाद है जिसे परमेश्वर ने नियत किया है। तुम्हें परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए अपनी परिस्थिति का उपयोग करना चाहिए। अब मैं एक अगुआ हूँ और अपने विश्वास के लिए इस इलाके में काफी मशहूर हूँ। मेरा परिवार मुझे बहुत सताता है और मेरी अगुआई की भूमिका से कुछ जोखिम जुड़े हुए हैं। मुझे खुद को सुरक्षित रखने के लिए तुम जैसे लोगों की जरूरत है। अगर तुम मेरे लिए यह कर सकते हो तो तुम्हें भविष्य में बहुत आशीर्वाद मिलेगा और तुम जीवन में तेजी से प्रगति करोगे!” इस तरह से मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाते हैं और उन्हें अपना अनुसरण करने के लिए लुभाते हैं। अगर कोई मसीह-विरोधी किसी को पसंद करने लगता है या उपयोगी समझता है तो वह उसके लिए आसान कर्तव्य या ऐसे कर्तव्यों की व्यवस्था करता है, जहाँ वह सुर्खियों में रह सके और मसीह-विरोधी उसे बढ़ावा देने का पूरा प्रयास करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता है कि वह व्यक्ति परमेश्वर के घर में लोगों का उपयोग करने के सिद्धांतों को पूरा करता है या नहीं। जब तक इस व्यक्ति के पास सामाजिक रुतबा रहता है और वह उसके लिए उपयोगी हो सकता है, तब तक वह उसे फुसलाता रहता है। अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, मसीह-विरोधी समाज में धन-दौलत और रुतबे वाले लोगों के पास आते हैं, उनकी खुशामद करते हैं और उन्हें फुसलाते हैं, साथ ही साथ, वे अपने लिए बेईमानी से फायदे बटोरते रहते हैं। उनके पास पैसे, शक्ति और रुतबे वाले लोगों को फुसलाने का एक दूसरा तरीका भी है और वह है उन्हें तुष्ट करना। ऐसे लोग अक्सर कलीसिया में गलत कार्यों में शामिल रहते हैं, भाई-बहनों को निरुत्साहित करते हैं और कलीसियाई जीवन में बाधा डालते हैं। मसीह-विरोधी खुशी-खुशी यह सब देखते रहते हैं और उन्हें जो भी गलत कार्य करना पसंद हो, उसे करने देते हैं। मसीह-विरोधी के तुष्ट करने का क्या उद्देश्य है? यह अब भी उन्हें फुसलाना और इसके बाद उनसे मुनाफा कमाना है। यहाँ तक कि मसीह-विरोधी यह कहने का दिखावा भी करते हैं, “हालाँकि तुमने मुझे अगुआ के रूप में चुना है और तुम्हारी अगुआई करना मेरी जिम्मेदारी है, लेकिन यह कलीसिया अकेली मेरी नहीं है। मैं इस कलीसिया में अकेले फैसले नहीं ले सकता। तुम्हें भी इसमें मदद करनी होगी; अगर कुछ भी होता है तो तुम भी अपनी राय दे सकते हो—सहयोग करने का यही मतलब होता है।” वे यह बात उन लोगों से कहते हैं जो दौलतमंद, प्रभावशाली और उनके लिए फायदेमंद हैं और वे इन व्यक्तियों को फुसलाने का पूरा प्रयास करते हैं, जब तक कि वे उस हद तक नहीं पहुँच जाते जहाँ वे उन्हें नियंत्रित कर सकें। हालाँकि, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उनके पास पैसा, सामाजिक रुतबा या किसी स्पष्ट उपयोगिता का अभाव होता है, वे उन्हें अलग-थलग करने, उन पर आक्रमण करने या उन्हें बस अनदेखा करने के लिए अत्यधिक प्रयास करते हैं। उनकी अवहेलना का क्या मतलब है? “अगर हम कुछ लोग एकजुट रहते हैं और लोहे का गढ़ बन जाते हैं तो मेरा अंदाजा है कि तुम आम लोग कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं डाल पाओगे। अगर तुम लोग आज्ञाकारिता के साथ मेरे शब्दों को सुनते हो तो मैं तुम्हें विश्वास करते रहने की अनुमति दूँगा। लेकिन अगर तुम लोगों ने हर बात में गलतियाँ ढूँढ़ना, मेरे बारे में अपनी राय व्यक्त करना, या मेरे बारे में उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट करना जारी रखा तो मैं तुम्हें सताऊँगा और निष्कासित कर दूँगा!” यही उनकी योजना है। कुछ लोगों में सूझ-बूझ का अभाव होता है और वे डर जाते हैं और कहते हैं, “हमें उसे नाराज नहीं करना चाहिए। उसने अपना खुद का गुट बना लिया है और हम ऐसा नहीं कर सकते हैं। हमारे शब्दों का कोई खास महत्व नहीं है, अगर हम गलती से ऐसा कुछ कह देते हैं जिससे वह परेशान हो जाता है और अगुआ वाकई हमें निष्कासित कर देता है तो हम परमेश्वर में विश्वास करने का अपना अवसर खो देंगे।” ये लोग बुरी तरह से डर गए हैं। जैसे-जैसे मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाते हैं, उनके इस व्यवहार में एक दुष्ट, शातिर और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव निहित होता है। लोगों को फुसलाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य है? यह उनकी स्थिति को मजबूत करना भी है। गुट और गिरोह बनाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य है? यह उनकी शक्ति की सीमा को विस्तारित करने, लोगों को उनका समर्थन करने के लिए मजबूर करने, अपनी शक्ति और रुतबे को और भी ज्यादा सुरक्षित करने के लिए है। क्या तुममें से किसी ने ऐसे मामलों का सामना किया है? जब कोई मसीह-विरोधी किसी कलीसिया को नियंत्रित करता है तो कोई भी व्यक्ति जिसके पास पैसा या रुतबा है या जो रोबदार है और उसके इर्द-गिर्द घूमता है तो दोनों मिलकर नियंत्रण अपने हाथों में ले लेते हैं और एक गुट, चार, पाँच या छः लोगों का एक गिरोह बन जाते हैं। किसी को भी उनके मुद्दों को उजागर करने की अनुमति नहीं होती। मसीह-विरोधी इन लोगों को फुसलाता है क्योंकि उन्हें नियंत्रित करना उसके लिए चुनौतीपूर्ण होता है। उसे उन्हें फुसलाकर अपने पास लाना होगा, ताकि वे उसके सहायक बन जाएँ और इस तरह से उसकी स्थिति सुरक्षित हो जाएगी। इसके अलावा, इन लोगों का मूल्य होता है जिसका मसीह-विरोधी फायदा उठा सकता है। उन्हें फुसलाने का उसका तरीका, एक तरह से, उन्हें शांत करने और उन्हें उसके पद के लिए खतरा बनने से रोकने का एक साधन है।

मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को फुसलाने के इस पहलू के बारे में, अभी-अभी हमने दो अभिव्यक्तियों पर चर्चा की। क्या तुम लोगों की कलीसिया में ऐसी चीजें होती हैं? मुझे बताओ, क्या इस तरह की चीज मौजूद है? (हाँ।) यह निश्चित रूप से मौजूद है। तो, लोगों को फुसलाने से जुड़ी सारी चीजों में ऐसी कौन-सी दूसरी कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जिनमें मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को फुसलाने की प्रकृति निहित होती है? उन्हें फुसलाने के क्या परिणाम होते हैं? मसीह-विरोधी लोगों को क्यों फुसलाना चाहते हैं? अगर उन्होंने लोगों को नहीं फुसलाया तो क्या वे लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल कर पाएँगे? (वे नहीं कर पाएँगे।) उन्हें अपने सामने ऐसे लोगों को लाना होगा जो उनकी बात सुनते हैं और उनकी इच्छा के अनुरूप होते हैं, ताकि वे एक पद हासिल कर सकें और उनके पास अधिकार का उपयोग करने के लिए वस्तुएँ हों। अगर उनके आसपास ऐसा कोई नहीं है जो उनकी बात सुने तो क्या वे रुतबे और शक्ति की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में असमर्थ नहीं होंगे? इसलिए, जब वे ऐसे हर तरह के व्यक्ति को फुसला लेते हैं, जिन्हें फुसलाया जा सकता है, सिर्फ तभी वे पद और शक्ति जीत पाते हैं। वे उन लोगों से कैसे निपटते हैं जिन्हें फुसलाया नहीं जा सकता है? (वे उन्हें अलग-थलग कर देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं।) वे उन पर आक्रमण करना और उन्हें अलग-थलग करना शुरू कर देते हैं। क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हुए हैं जिन्होंने कलीसिया में उन लोगों को तथाकथित “लेखा-परीक्षकों” में बदल दिया जिन्हें फुसलाया नहीं जा सका? कलीसिया द्वारा जारी किए गए उपदेश, भजन और परमेश्वर के वचनों की किताबें इन लोगों को दी ही नहीं जाती हैं, या उन्हें लंबे समय तक सभाओं के बारे में बताया नहीं जाता है। ऐसी चीजें निश्चित रूप से मौजूद हैं और ये सभी चीजें मसीह-विरोधी द्वारा की जाती हैं। मसीह-विरोधियों द्वारा जिन लोगों पर आक्रमण किया गया और जिन्हें अलग-थलग किया गया, उनके नाम कलीसिया द्वारा नहीं काटे गए हैं, वे अपनी इच्छा से छोड़कर नहीं गए हैं और उन्होंने स्वेच्छा से सभाओं में शामिल होना बंद नहीं किया है। वे सभी परमेश्वर में ईमानदार विश्वासी हैं, लेकिन क्योंकि उनमें मसीह-विरोधियों के बारे में कुछ सूझ-बूझ है, इसलिए उन्हें अक्सर अलग-थलग कर दिया जाता है और उन्हें परमेश्वर के वचनों की किताबें या उपदेश, भजन और कलीसिया द्वारा जारी की गई तरह-तरह की कार्य व्यवस्थाएँ तुरंत नहीं मिल पातीं और ना ही वे परमेश्वर के वचनों को खा और पी सकते हैं। दूसरी तरफ, जो लोग मसीह-विरोधियों के नीचे हैं, यानी जो उनकी बात सुन पाते हैं, जो उनके द्वारा फुसलाए जा चुके हैं और उनके आगे आत्मसमर्पण कर चुके हैं, उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा बाँटी गई तरह-तरह की किताबें और वीडियो देने में प्राथमिकता दी जाती है और वे इस लाभदायक व्यवहार का आनंद लेते हैं। इस प्रकार मसीह-विरोधियों के व्यवहार और क्रिया-कलापों के कारण कलीसिया में अराजकता फैल जाती है, वह विभाजित हो जाती है और लोगों के दिलों में बेचैनी होने लगती है।

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