मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं (खंड एक)

परिशिष्ट : दाबाओ और शाओबाओ की कहानी

इससे पहले कि हम औपचारिक रूप से आज की संगति शुरू करें, चलो मैं तुम लोगों को एक कहानी सुनाता हूँ। क्या तुम्हें कहानियाँ सुनने में मजा आता है? (हाँ।) अच्छा तो क्या कहानियाँ सुनने में कोई सिद्धांत है? तुम्हें जो कहानियाँ सुनाई जाती हैं, उनमें तुम्हें सत्य के एक पहलू और परमेश्वर के इरादों के एक पहलू को समझने में, मानव प्रकृति सार को पहचानने में या कहानी में उस सत्य वास्तविकता को खोजने में सक्षम होना चाहिए जिनका अभ्यास लोगों को करना चाहिए और जिनमें उन्हें प्रवेश करना चाहिए। कहानियाँ सुनाने का यही मतलब है; यह बेकार की बकवास नहीं है और गपशप तो बिल्कुल नहीं है। कुछ लोग कहानियाँ सुनने के दौरान सिर्फ घटनाओं की समझ हासिल करते हैं—वे किस तरह के लोग हैं? (वे ऐसे लोग हैं जिनकी काबिलियत खराब है।) खराब काबिलियत होने का मतलब है कि वे विचारहीन हैं; मुख्य तौर पर, उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं है। चाहे वे कोई भी कहानी सुन लें, उन्हें उसकी सिर्फ घटनाएँ याद रह पाती हैं या फिर वे कहानी से बस कुछ विनियम ही सीख पाते हैं। लेकिन जब उन अलग-अलग सत्य की बात आती है जिन्हें लोगों को कहानी में से समझना चाहिए तो वे उन्हें पकड़ने या समझने-बूझने से चूक जाते हैं। क्या यह व्यवहार सबसे कम आध्यात्मिक समझ की निशानी नहीं है? (हाँ।) क्या तुम लोगों में से किसी ने कोई कहानी सुनने के बाद इस तरह का व्यवहार किया है? उसे सुनने के बाद वे कुछ खास समझ नहीं पाए, उन्हें वह कहानी बेमतलब लगी और उन्हें उसे सुनाना नहीं सुनाने के बराबर ही था। क्या ऐसे लोगों में समझने की क्षमता होती है? जब तुम कोई कहानी सुनते हो तो क्या उसमें होने वाली घटनाओं से कुछ फायदा हासिल कर सकते हो? चाहे तुम उससे सत्य को समझ पाओ या ना समझ पाओ, तुम्हें कहानियाँ सुनने को लेकर जिस सिद्धांत का मैंने अभी-अभी जिक्र किया, उसे जरूर समझना चाहिए। तो चलो अब हम कहानी शुरू करें।

शाओबाओ नाम का एक छोटा लड़का था। हाल ही में एक आदमी उसके घर रहने आया, वह आदमी अक्सर शाओबाओ के माता-पिता के साथ सुसमाचार प्रचार करने बाहर जाता था। एक दिन शाओबाओ के माता-पिता को किसी काम से बाहर जाना पड़ा और वह आदमी और शाओबाओ ही घर पर रह गए। हमारी कहानी यहीं से शुरू होती है। शाओबाओ उस आदमी को ज्यादा जानता नहीं था, इसलिए जब शाओबाओ खेल रहा था तो उस आदमी ने उसके पास जाकर उससे दोस्ती करने की सोची। उसने शाओबाओ से कहा कि वह उसे जानता है और उसे उसका नाम भी मालूम है। यह सुनकर शाओबाओ खुश हो गया और उसने सोचा कि यह आदमी खराब नहीं हो सकता। फिर उस आदमी ने शाओबाओ से पूछा, “शाओबाओ, क्या तुम्हारे माता-पिता ने अपनी बातचीत के दौरान कभी मेरा जिक्र किया है?” शाओबाओ ने एक पल सोचा और फिर कहा, “मुझे नहीं पता।” वह आदमी बोला, “तुम एक ईमानदार बच्चे हो। अच्छे बच्चों को जो बात पता होती है, वे बता देते हैं।” उसने शाओबाओ से फिर से पूछा, “क्या तुम्हारे माता-पिता ने कभी मेरा जिक्र किया या नहीं?” अब भी शाओबाओ ने कहा कि उसे नहीं पता। फिर वह आदमी बोला, “शाओबाओ, अच्छे बच्चे बनो, अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो मैं तुम्हें मिठाई दूँगा।” शाओबाओ ने एक पल सोचा और फिर से यही कहा कि उसे नहीं पता। अब वह आदमी सोचने लगा, “मैं इससे सच कैसे बुलवाऊँ?” थोड़ी देर सोचने के बाद उसने शाओबाओ से कहा, “शाओबाओ, तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास करते हैं और मैं भी करता हूँ। मैं तुम्हारे माता-पिता का सबसे अच्छा दोस्त हूँ। हम तीनों ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं और तुम भी परमेश्वर में विश्वास करते हो। क्या तुम्हें पता है कि परमेश्वर को किस तरह के बच्चे पसंद हैं?” शाओबाओ ने इस पर गौर किया और फिर कहा, “मुझे नहीं पता।” उस आदमी ने कहा, “परमेश्वर को ईमानदार बच्चे पसंद हैं, ऐसे बच्चे जो झूठ नहीं बोलते। जब उन्हें कुछ पता होता है तो वे कहते हैं कि उन्हें मालूम है और जब उन्हें नहीं पता होता है तो वे कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम। ईमानदार बच्चा ऐसा ही होता है और परमेश्वर को ऐसे बच्चे ही पसंद हैं।” शाओबाओ ने इस बारे में सोचा और फिर कहा, “ठीक है।” फिर उसने यह कहना बंद कर दिया कि उसे नहीं पता। उस आदमी ने आगे कहा, “अगर तुम मुझे सच बता दोगे तो तुम एक ईमानदार बच्चे बन जाओगे, एक ऐसा बच्चा जिससे परमेश्वर प्रेम करता है।” शाओबाओ ने इस पर सोचा और फिर कहा, “फिर ठीक है।” उस आदमी ने कहा, “‘फिर ठीक है’ का क्या मतलब है?” शाओबाओ ने कहा, “इसका मतलब है कि मेरे माता-पिता ने आपके बारे में पहले कोई बात कही है।” इसके बाद वह आदमी लगातार यह पूछता रहा कि उन्होंने क्या कहा है और बार-बार शाओबाओ से ईमानदार बच्चा बनने और झूठ नहीं बोलने की बात दोहराता रहा। शाओबाओ ने कहा, “मेरे माता-पिता ने कहा कि आप अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आप ज्यादा ईमानदार नहीं हैं और आपसे बात करते समय उन्हें सावधान रहना चाहिए।” उस आदमी ने दोबारा पूछा, “तुम्हारे माता-पिता ने इसके अलावा और क्या कहा?” शाओबाओ ने जवाब दिया, “मुझे याद नहीं है।” “अच्छे बच्चे बनो!” उस आदमी ने कहा। जवाब में शाओबाओ ने कहा, “मेरे माता-पिता ने कहा कि उन्हें आपको सारी बातें नहीं बतानी चाहिए।” फिर वह आदमी उससे सवाल करता रहा और शाओबाओ ने उसे बहुत कुछ बता दिया। वह आदमी और भी परेशान हो गया और उसने शाओबाओ से कहा, “शाओबाओ, तुम बहुत अच्छे बच्चे हो, एक ऐसा बच्चा जिससे परमेश्वर प्रेम करता है क्योंकि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और तुम्हें जो भी मालूम है वह सब कुछ मुझे बता देते हो।” अब तक शाओबाओ उस आदमी से काफी हिलमिल गया था और उतना सँभलकर बात नहीं कर रहा था जितना कि शुरू में कर रहा था और उसके हर सवाल का जवाब “मुझे नहीं पता” से नहीं दे रहा था। वह उस आदमी को सब कुछ बता देना चाहता था, उसे वह सारी जानकारी देना चाहता था जो उस आदमी के पास नहीं थी—उस आदमी के बस शाओबाओ से पूछने की देर थी। उस आदमी ने शाओबाओ को यह भी बताया, “मुझे लोग दाबाओ बुलाते हैं तो देखो, तुम्हारा नाम शाओबाओ है और मेरा नाम दाबाओ है। तो क्या हमें पक्के दोस्त नहीं बन जाना चाहिए?” शाओबाओ ने कहा, “हाँ।” और इस तरह बातचीत करते हुए उन्होंने बहुत सारी चीजों के बारे में बात की और जितना ज्यादा उन्होंने आपस में बात की, वे उतना ही ज्यादा खुश होते गए। शाओबाओ को खाने के लिए मिठाई भी मिली और उसने इस आदमी से सँभलकर बात करना बंद कर दिया। फिर उस आदमी ने शाओबाओ से यह माँग की : “भविष्य में अगर कभी तुम्हारे माता-पिता ने मेरे बारे में फिर से कुछ कहा तो क्या तुम मुझे बताओगे?” शाओबाओ बोला, “हाँ बिल्कुल, क्योंकि अब हम दोनों अच्छे दोस्त हैं।” शाओबाओ अब इस आदमी से पूरी तरह सहज हो गया था और उस आदमी को उससे वह सारी जानकारी मिल गई जो वह चाहता था। उस दिन से वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब भी शाओबाओ के माता-पिता इस आदमी के बारे में कुछ कहते तो शाओबाओ फौरन जाकर उसे वह बात बता देता। उस आदमी ने शाओबाओ से यह वादा भी किया, “मैं हम दोनों के बीच की बात हरगिज तुम्हारे माता-पिता को नहीं बताऊँगा—यह हमारा राज है। भविष्य में अगर कभी तुम्हें खाने के लिए किसी स्वादिष्ट चीज या खेलने के लिए किसी मजेदार चीज की जरूरत पड़े तो मैं बेशक तुम्हें वे चीजें खरीदकर दूँगा। और अगर कुछ ऐसा हो जो तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे माता-पिता को पता चले तो मैं उस बात को तुम्हारे लिए राज बनाकर रखूँगा।” इसलिए, शाओबाओ और भी सहज हो गया और इस आदमी पर पूरे दिल से यकीन करने लगा। उसने उस आदमी के साथ पूरी ईमानदारी से संपर्क बनाए रखा और वे दोनों “सच में अच्छे दोस्त” बन गए।

यही है पूरी कहानी। इसमें ज्यादा किरदार नहीं हैं; मुख्य किरदार दाबाओ और शाओबाओ हैं। इसकी खास विषयवस्तु इस पर केंद्रित है कि दाबाओ किस तरह से बच्चे को गुमराह करने, मनाने और फुसलाने की कोशिश करता है और इस बच्चे से अपनी जरूरत की सारी खास जानकारी उगलवा लेता है। यह इसी तरह की कहानी और बातचीत है। हम इस सरल कथानक और बातचीत से क्या समझ सकते हैं? यहाँ मुख्य रूप से किसकी विशेषताओं पर चर्चा की गई है? बच्चे की या वयस्क व्यक्ति की? (वयस्क व्यक्ति की।) तो, यहाँ उदाहरण की मदद से क्या समझाया जा रहा है? इस कहानी की मुख्य विषयवस्तु क्या है? इसकी मुख्य विषयवस्तु इस पर केंद्रित है कि यह वयस्क व्यक्ति किस तरह से अलग-अलग साधनों का उपयोग करके अपना लक्ष्य हासिल करता है। क्या तुम्हें समझ आया कि उसने किन साधनों का उपयोग किया? (फुसलाना और गुमराह करना।) उसने बच्चे को फुसलाने के लिए प्रलोभनों का और उसे गुमराह करने के लिए सही शब्दों का उपयोग किया और उसने उसे लुभाया भी। उसने बच्चे को लुभाने के लिए किस चीज का उपयोग किया? फायदों का—उसने फायदों का उपयोग करके बच्चे को लुभाया। फुसलाना, लुभाना और गुमराह करना—इसमें लुभाना और गुमराह करना दोनों शामिल हैं और लुभाने के लिए सही शब्दों का उपयोग किया गया है जो थोड़ा सा डराने-धमकाने वाली प्रकृति का भी है। हो सकता है कि उसके शब्द सुनने में सही लगे हों, लेकिन उसने इन शब्दों का उपयोग किस मकसद के लिए किया? (अपना मतलब पूरा करने के लिए।) उसने उनका उपयोग अपने गलत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया। उसने जिन साधनों का उपयोग किया वे मूलरूप से स्पष्ट हैं। क्या सामान्य मानवता में ऐसा व्यवहार होता है? (नहीं।) तो फिर यह व्यवहार शैतान के भ्रष्ट स्वभाव के किस पहलू का हिस्सा है? (दुष्टता का।) हम इसे धोखेबाजी की बजाय दुष्टता क्यों कह रहे हैं? दुष्टता की जड़ें धोखेबाजी से ज्यादा गहरी होती हैं; यह ज्यादा कपटी, ज्यादा गुप्त, ज्यादा गुमराह करने वाला और समझने में ज्यादा मुश्किल होता है और दुष्टता में लुभाना, मनाना, फुसलाना, दिल जीतना, रिश्वत देना और ललचाना निहित होता है। ये क्रिया-कलाप और व्यवहार धोखेबाजी से भी बहुत दूर तक जाते हैं; इसमें जरा भी शक नहीं कि वे दुष्ट हैं। उस आदमी ने यह नहीं कहा, “अगर तुम मुझे नहीं बताओगे तो मैं तुम्हारी पिटाई करूँगा, तुम्हें लात मारूँगा या मार डालूँगा!” उसने ऐसे तरीकों का उपयोग नहीं किया और बाहर से वह द्वेषपूर्ण नहीं लगा। लेकिन, यह द्वेष से भी ज्यादा भयंकर है—यह दुष्टता है। मैं इसे दुष्टता क्यों कहता हूँ? आमतौर पर ज्यादातर लोग धोखेबाजी की पहचान कर सकते हैं, लेकिन उसका तरीका ज्यादा धूर्त था। ऊपरी तौर पर वह विनम्र भाषा का उपयोग करता है जो मानव स्नेह के अनुरूप है, लेकिन वास्तव में, उसके दिल की गहराइयों में बहुत-सी चीजें छिपी हुई हैं। उसके क्रिया-कलाप और तरीके उस धोखेबाजी से ज्यादा धूर्त, ज्यादा कपटी हैं जो आमतौर पर देखे जाते हैं और जिनका लोग सामना करते हैं। उसके कौशल ज्यादा परिष्कृत, ज्यादा दोगले और ज्यादा गुमराह करने वाले हैं। यह दुष्टता है।

क्या रोजमर्रा के जीवन में तुम दूसरे लोगों के दुष्ट स्वभाव और उनके दुष्ट व्यवहार के प्रकाशन को पहचान सकते हो और उनमें भेद कर सकते हो? वैसे तो धोखेबाज व्यक्ति काफी चालबाज हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग उनसे थोड़ी देर बातचीत करने के बाद उनके असली इरादे समझ जाते हैं। लेकिन, दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की असलियत समझना इतना आसान नहीं है। अगर तुम सार या परिणाम नहीं देख पाते हो तो तुम्हारे पास उनके असली इरादों को समझने का कोई तरीका नहीं है। दुष्ट व्यक्ति धोखेबाजों से भी ज्यादा कपटी होते हैं। तुम्हारे पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे तुम सिर्फ एक-दो वाक्यों से उनकी असलियत समझ सको। जब दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की बात आती है तो हो सकता है कि कुछ समय के दौरान या कम अवधि में तुम उनकी असलियत न समझ सको या इसका पता न लगा सको कि वे उस खास चीज को क्यों कर रहे हैं और वे इस तरीके से बात या क्रिया-कलाप क्यों कर रहे हैं। एक दिन जब उनका असली चेहरा पूरी तरह से प्रकट हो जाएगा और पूरी तरह उजागर हो जाएगा तो फिर आखिर में सबको पता चल जाएगा कि वे किस तरह के लोग हैं। यह सिर्फ धोखेबाजी नहीं, उससे कुछ ज्यादा है—यह दुष्टता है। इसलिए, दुष्ट स्वभाव को पहचानने में समय लगता है और कभी-कभी परिणाम सामने आने के बाद ही व्यक्ति उसे पहचान पाता है—यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसकी जल्द पहचान की जा सके। मिसाल के तौर पर, बड़ा लाल अजगर कई दशकों से लोगों को गुमराह कर रहा है और अब जाकर कुछ लोगों में सही-गलत पहचानने की योग्यता आ पाई है। बड़ा लाल अजगर अक्सर ऐसी चीजें कहता है जो सुनने में सबसे बढ़िया लगती हैं और मानवीय धारणाओं के सबसे ज्यादा अनुकूल होती हैं। वह लोगों को गुमराह करने के लिए लोगों की सेवा का ध्वज उठाए हुए है, विरोधियों को दूर भगाने के लिए न्याय का ध्वज उठाए हुए है और कष्टदायक ढंग से अनगिनत भले लोगों को नुकसान पहुँचा रहा है। लेकिन कुछ ही लोग इसे पहचान पाते हैं क्योंकि वह जो भी कहता है और जो भी करता है, वह लोगों को सही लगता है। सभी लोगों को लगता है कि वह जो भी करता है वह सही और उपयुक्त है, कानूनी और यथोचित है और मानवतावाद के अनुरूप है। फलस्वरूप, उसने कई दशकों से लोगों को गुमराह किया हुआ है। आखिर में जब उसे उजागर किया जाएगा और उसका विनाश हो जाएगा तो लोग देखेंगे कि उसका असली चेहरा शैतान का है और उसका प्रकृति सार दुष्ट है। बड़े लाल अजगर ने इतने वर्षों से लोगों को गुमराह किया हुआ है और उसका जहर सबके भीतर है—वे उसके वंशज बन गए हैं। क्या तुम लोगों में से कोई भी उस तरह की चीजें कर सकता है जो बड़े लाल अजगर ने की हैं? कुछ लोग बड़े लाल अजगर की तरह बोलते हैं और खुशनुमा शब्दों का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई असली कार्य नहीं करते हैं। उनके सारे शब्द मधुर होते हैं, लेकिन वे कोई असली कार्य नहीं करते हैं। साथ ही, वे खासतौर पर कपटी और दुष्ट होते हैं। अगर कोई व्यक्ति ऐसे लोगों का अपमान करता है तो वे बात को पकड़े रहते हैं। आज नहीं तो कल, उन्हें अपने बदला लेने का उद्देश्य पूरा करने का सही मौका मिल ही जाएगा, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा। वे सामने आए और अपना चेहरा दिखाए बगैर भी इस मामले को सँभाल सकते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? दुष्ट लोग ऐसे सिद्धांतों, तरीकों, इरादों, कारणों और उद्देश्यों से कार्य करते हैं जो खासतौर पर गुप्त और छिपे हुए होते हैं। दुष्ट व्यक्ति योजनाओं का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, कभी-कभी अपनी ओर से हत्या करने के लिए किसी और का उपयोग करते हैं, कभी-कभी दूसरों को पाप करने के लिए फुसलाकर उन्हें तड़पाते हैं और कभी-कभी दूसरों को तड़पाने के लिए नियमों का उपयोग करते हैं या हर तरह के घिनौने साधनों का सहारा लेते हैं। ये सभी दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ हैं और इनमें से कोई भी उचित या ईमानदार तरीका नहीं है। क्या तुम लोगों में से कोई भी ऐसे व्यवहार या खुलासे प्रदर्शित करता है? क्या तुम उन्हें पहचान सकते हो? क्या तुम्हें मालूम है कि वे दुष्ट स्वभाव वाले लोग हैं? आमतौर पर, धोखेबाजी बाहर ही दिखाई पड़ जाती है : कोई व्यक्ति घुमा-फिराकर बात करता है या बड़े-बड़े शब्दों वाली भाषा का उपयोग करता है और किसी को भनक तक नहीं लग पाती कि वह क्या सोच रहा है। यह धोखेबाजी है। दुष्टता की मुख्य विशेषता क्या है? यह कि सुनने में उनके शब्द खासतौर पर मीठे लगते हैं और ऊपरी तौर पर सब कुछ सही प्रतीत होता है। ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई समस्या है और हर कोण से चीजें काफी अच्छी नजर आती हैं। जब वे कुछ करते हैं तो तुम्हें वे किसी खास साधन का उपयोग करते हुए नजर नहीं आते और बाहर से कमजोरियों या गलतियों का कोई चिह्न दिखाई नहीं देता है, लेकिन फिर भी वे अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। वे चीजों को अत्यंत गुप्त तरीके से करते हैं। मसीह-विरोधी ठीक इसी तरीके से लोगों को गुमराह करते हैं। इस तरह के लोगों और मामलों को पहचानना सबसे मुश्किल है। कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रिया-कलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप हैं। वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं। यह दुष्टता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन व्यवहारों को धोखेबाजी के व्यवहार मानते हैं। लोगों में दुष्टता की समझ और उसके गहन-विश्लेषण की क्षमता सीमित होती है। दरअसल, धोखेबाजी की तुलना में दुष्टता को पहचानना ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह ज्यादा गुप्त होती है और इसके तरीके और क्रिया-कलाप ज्यादा जटिल होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धोखेबाज स्वभाव का है तो आमतौर पर, दूसरे लोगों को उससे दो-तीन दिन बात करने के बाद उसकी धोखेबाजी का पता चल जाता है, या वे उस व्यक्ति के क्रिया-कलापों और शब्दों में उसके धोखेबाज स्वभाव का खुलासा होते देख सकते हैं। लेकिन, मान लो कि वह व्यक्ति दुष्ट है : यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कुछ दिनों में पहचाना जा सके, क्योंकि छोटी अवधि में कोई महत्वपूर्ण घटना घटे या खास परिस्थिति उत्पन्न हुए बिना, सिर्फ उसकी बातें सुनकर कुछ भी पहचानना आसान नहीं है। वह हमेशा सही चीजें कहता और करता है और एक के बाद एक सही धर्म-सिद्धांत पेश करता रहता है। कुछ दिन उससे बातचीत करने के बाद, तुम्हें लग सकता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छा है, वह चीजों को छोड़ सकता है और खुद को खपा सकता है, उसमें आध्यात्मिक समझ है, उसके पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल है और उसके कार्य करने के तरीके में अंतरात्मा और विवेक दोनों हैं। लेकिन जब वह कुछ मामले सँभाल लेता है तो तुम्हें दिखाई देता है कि उसकी बातों और क्रिया-कलापों में बहुत-सी चीजें और बहुत-से शैतानी इरादे मिले हुए हैं। तब तुम्हें एहसास होता है कि यह व्यक्ति ईमानदार नहीं बल्कि धोखेबाज है—यह एक दुष्ट चीज है। वह बार-बार सही शब्दों और ऐसे मधुर वाक्यांशों का उपयोग करता है जो सत्य के अनुरूप होते हैं और उनमें लोगों से बातचीत करने के लिए मानवीय स्नेह होता है। एक लिहाज से, वह खुद को स्थापित करता है और दूसरे लिहाज से, वह दूसरों को गुमराह करता है और इस तरह लोगों के बीच प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करता है। ऐसे लोग बहुत ही ज्यादा गुमराह करने वाले लोग होते हैं और एक बार ताकत और रुतबा हासिल कर लेने के बाद, वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं और उनका नुकसान कर सकते हैं। दुष्ट स्वभाव वाले लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं। क्या तुम्हारे आस-पास इस तरह के लोग हैं? क्या तुम खुद इस तरह के हो? (हाँ।) तो यह कितना गंभीर है? किसी भी सत्य सिद्धांत के बिना बात या कार्य करना, कार्य करने के लिए पूरी तरह से अपनी दुष्ट प्रकृति पर भरोसा करना, हमेशा दूसरों को गुमराह करने और एक मुखौटे के पीछे छिपकर रहने की इच्छा रखना ताकि दूसरों को तुम्हारी असलियत का पता नहीं चल सके या वे तुम्हें पहचान न सकें और तुम्हारी मानवता और रुतबे को आदर और प्रशंसा की नजर से देखें—यह दुष्टता है। क्या तुम ये दुष्ट व्यवहार सिर्फ कभी-कभार दिखाते हो या ज्यादातर समय तुम इसी तरह का व्यवहार करते हो? क्या तुम स्वाभाविक रूप से ऐसे ही हो और क्या तुम्हारे लिए इससे आजाद होना चुनौतीपूर्ण है? अगर तुम सिर्फ कभी-कभार ऐसे तरीकों का उपयोग करते हो तो इसे अब भी बदला जा सकता है। लेकिन, अगर यही तुम्हारा स्वाभाविक रूप है, तुम लगातार व्यवहार कुशलता और धोखेबाजी से कार्य करते हो और लगातार योजनाओं पर भरोसा करते हो तो फिर तुम दानवों में सबसे मक्कार हो। मैं तुम्हें सत्य बताऊँगा : इस तरह के लोग कभी नहीं बदलेंगे।

इस कहानी में, दाबाओ इन तरीकों का उपयोग शाओबाओ को गुमराह करने और इस लड़के से सत्य बुलवाने के लिए करता है। मुझे बताओ, उसे इस तरह से कार्य करना किसने सिखाया? किसी ने नहीं सिखाया। तो फिर इन तरकीबों की शुरुआत कहाँ से हुई? (उसकी प्रकृति से।) इनकी शुरुआत उसकी प्रकृति से, उसके भ्रष्ट सार से हुई। वह बस इसी किस्म का व्यक्ति है। वह एक बच्चे तक को नहीं बख्शता—कितनी घिनौनी बात है! अगर वह सच जानना ही चाहता है तो वह सीधे बच्चे के माता-पिता से पूछ सकता है, या वह खुद मेहनत करके इसे जान सकता है और अपना दिल खोलकर उनके सामने रख सकता है; तब हो सकता है कि वे उसे सत्य बता दें। दूसरों की पीठ पीछे ये शर्मनाक और भद्दी चीजें करने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं है। दुष्ट स्वभाव वाले लोग ऐसा ही करते हैं। मुझे बताओ, क्या यह घिनौना नहीं है? (यह घिनौना है।) वह एक बच्चे तक को नहीं बख्शता; उसे इस बच्चे को डराना-धमकाना, बहकाना और धोखा देना आसान लगता है, इसलिए वह उसके खिलाफ साजिश रचता है। अब, अगर उसे कोई ईमानदार और रहमदिल वयस्क दिखाई दे जाए तो वह उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा? क्या वह उसे अकेला छोड़ देगा? बिल्कुल नहीं। अगर उसे अपने जैसा कोई व्यक्ति दिखाई दे जाए, जिसे अपने शब्दों और क्रिया-कलापों में चालबाजियों का उपयोग करना अच्छा लगता है तो वह क्या करेगा? (उसे पता है कि वह व्यक्ति भी उसके जितना ही दुष्ट है और इसलिए वह कुछ भी आसानी से प्रकट किए बिना उससे होशियार रह सकता है।) होशियार रहने के अलावा, वह और क्या कर सकता है? (वह प्रतिस्पर्धा करेगा।) वह खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करेगा—बस। दुष्ट स्वभाव वाले लोगों का व्यवहार ऐसा ही होता है। इस तरह के लोगों को दूसरों से खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करना अच्छा लगता है और वे हर अवसर का फायदा उठाते हैं। उनके पास एक मशहूर सूक्ति होती है और अगर तुम्हें ऐसे लोग मिलते हैं और तुम उन्हें यह कहते हुए सुनते हो तो तुम यकीन कर सकते हो कि वे दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। वे क्या कहते हैं? मिसाल के तौर पर, जब तुम उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति को उसका कर्तव्य करने में सहयोग करने का सुझाव देते हो तो वे कहते हैं, “ओह, मैं उससे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता!” उनके दिमाग में आने वाला पहला विचार हमेशा “प्रतिस्पर्धा” के बारे में होता है। उनका पहला विचार कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए दूसरों का सहयोग करने के बारे में नहीं होता है, बल्कि उनसे प्रतिस्पर्धा करने के बारे में होता है। यही उनकी मशहूर सूक्ति है। चाहे वे किसी भी सामाजिक समूह का हिस्सा हों, चाहे वे अविश्वासी व्यक्तियों, भाई-बहनों या परिवार के सदस्यों के बीच हों, उनका इकलौता नियम क्या है? यह प्रतिस्पर्धा है और अगर वे खुलेआम दूसरों से नहीं जीत पाए तो वे इसे चोरी-छिपे करेंगे। इस तरह का स्वभाव दुष्ट होता है। कुछ लोगों को ऊपर से देखकर लग सकता है कि वे दूसरों से यूँ ही इधर-उधर की बातें कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वे अपने दिलों में दूसरे व्यक्ति से चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं और घुमा-फिराकर उस पर हमला करने और उसे नीचा दिखाने के लिए अलग-अलग साधनों और तकनीकों का उपयोग कर रहे होते हैं। जो लोग इस चीज को नहीं पहचान पाते हैं, वे उनकी चालबाजियों को नहीं समझते हैं और जितनी देर में उन्हें समझ आता है, तब तक उनकी प्रतिस्पर्धा पहले ही अपने परिणाम पर पहुँच चुकी होती है। यह दुष्टता है। जब दुष्ट लोग दूसरों से बात करते हैं तो यह सब खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करने, दूसरों को हराने, उनसे आत्मसमर्पण कराने और आखिर में सभी को अपने आगे झुकाने के लिए अलग-अलग कुचक्रों, साजिशों या कुछ तरीकों को अपनाने के बारे में होता है। मानवता के अस्तित्व से लेकर अब तक, मानवता का संपूर्ण इतिहास “प्रतिस्पर्धा” से भरा हुआ है। चाहे देशों के बीच बड़े पैमाने पर हो, परिवारों के बीच छोटे पैमाने पर हो, या लोगों के बीच व्यक्तिगत स्तर पर हो, ऐसा कोई समूह नहीं है जो टकराव से भरा ना हो; अगर यह प्रतिस्पर्धा खुलेआम नहीं हो रही हो तो फिर चोरी-छिपे होती है, अगर यह मौखिक आमना-सामना नहीं है तो फिर यह शारीरिक तौर पर होता है। चीनी इतिहास में अलग-अलग जातीय समूहों के बीच जिस-जिस काल में सबसे ज्यादा बार लड़ाइयाँ हुईं, वह वसंत और शरद काल और युद्धरत राज्य काल था। सैन्य रणनीति पर ज्यादातर मशहूर किताबें इन दो काल में लिखी गई थीं, जैसे कि “सुन त्जु की युद्ध कला” में जो रणनीतियाँ उल्लिखित हैं—ये सभी उसी समय के दौरान लिखी गई थीं। एक और किताब भी है जिसका नाम है “छत्तीस रणनीतियाँ”, जिसमें युद्ध में उपयोग की जाने वाली अलग-अलग चालबाजियों का उल्लेख है। इनमें से कुछ सैन्य रणनीतियों और चालबाजियों का उपयोग आज भी किया जाता है। मुझे बताओ, इसकी कुछ रणनीतियाँ क्या हैं? (“खुद को चोट पहुँचाने” की रणनीति।) (“ध्यान भटकाने वाली” रणनीति।) (“दोहरा गुप्तचर” रणनीति, “खाली शहर” रणनीति और “सौंदर्य जाल में फँसाने वाली” रणनीति।) ये सभी मशहूर रणनीतियाँ, चाहे वे “सौंदर्य जाल में फँसाने,” “खाली शहर” से शुरू होती हों या “ध्यान भटकाने वाली” से, “रणनीति” पर ही समाप्त होती हैं। “रणनीति” का क्या मतलब है? (“चालबाजी” या “षड्यंत्र।”) इसका मतलब कुछ धोखेबाज, विश्वासघाती, छिपी हुई या गुप्त चालबाजियों से है। इन “चालबाजियों” का योजना बनाने से कोई लेना-देना नहीं है—ये षड्यंत्र रचने के बारे में हैं। हमें इन चालबाजियों के पीछे क्या दिखाई देता है? क्या उनके क्रिया-कलाप, उनका व्यवहार और युद्ध में वे जिन चालबाजियों और अभ्यासों का उपयोग करते हैं, वे मानवता और सत्य के अनुरूप हैं? (नहीं।) क्या परमेश्वर इस तरीके से कार्य करता है? (नहीं।) बिल्कुल नहीं। तो, ये अभ्यास किन्हें दर्शाते हैं? वे शैतान और उसकी दुष्ट मानवता को दर्शाते हैं। दुष्ट मानवता की ये रणनीतियाँ कहाँ से आती हैं? (शैतान से।) ये शैतान से प्राप्त होती हैं। कुछ लोगों को इस बात को समझने में परेशानी हो सकती है, इसलिए मुझे कहना चाहिए कि ये शैतान राजाओं से प्राप्त होती हैं—तब लोगों को यह समझ आ जाएगा। शैतान राजा कौन हैं? वे दानव और शैतान हैं जिनका मानवता के बीच फूट डालने और कहर बरपाने के लिए दुनिया में पुनर्जन्म होता है—उन्होंने ये रणनीतियाँ बनाईं। परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों में, क्या तुमने कभी उसे “खाली शहर” की रणनीति या “ध्यान भटकाने वाली” रणनीति का उपयोग करते देखा है? क्या ये रणनीतियाँ परमेश्वर की प्रबंधन योजना में शामिल हैं? परमेश्वर ने अपने कार्य का प्रबंध करने के लिए कभी ऐसी रणनीतियों का उपयोग नहीं किया है। ये रणनीतियाँ संपूर्ण दुष्ट मानवता द्वारा उपयोग की जाती हैं। बड़े पैमाने पर एक देश या राजवंश से लेकर, छोटे पैमाने पर एक जनजाति या परिवार और यहाँ तक कि व्यक्तियों के बीच रिश्तों तक, जहाँ भी तुम्हें भ्रष्ट मानवता मिलेगी, वहीं तुम्हें टकराव मिलेगा। वे किस चीज को लेकर लड़ रहे हैं? वे किस चीज के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं? उनका क्या लक्ष्य है? यह सब कुछ ताकत, रुतबे और मुनाफे के लिए है—इन चीजों को हासिल करने के लिए है। एक देश ज्यादा लोगों पर नियंत्रण के लिए दूसरे देश से लड़ता है। जनजातियाँ इलाके, लोगों और संप्रभुता के लिए आपस में लड़ती हैं। व्यक्ति श्रेष्ठता और मुनाफे के लिए लड़ते हैं। जहाँ कहीं भी मानवता है, वहाँ टकराव है, क्योंकि जहाँ कहीं भी मानवता है, वहाँ शैतान की भ्रष्टता है। शैतान ने पूरी मानवता को भ्रष्ट कर दिया है, इसलिए दुनिया टकराव और खून-खराबे से भरी हुई है। भ्रष्ट मानवता जो भी करती है, उसमें वह शैतान के स्वभाव की बेड़ियों से बच नहीं सकती है। इसलिए, मानवता का संपूर्ण इतिहास, चाहे पूर्व का हो या पश्चिम का, मानवता के इतिहास का हर हिस्सा इसके दुष्ट संघर्ष का एक दर्दनाक वृत्तांत है। मानवता तो इन चीजों को महान भी मानती है। कुछ लोग आज भी चीन की “छत्तीस रणनीतियाँ” पढ़ रहे हैं। क्या तुम लोग उन्हें पढ़ रहे हो? (नहीं।) अगर तुम जानबूझकर इन चीजों को पढ़ते हो, उनमें निहित अनुभवों, शिक्षाओं, साधनों, तरीकों और तकनीकों से अपना दिमाग बढ़ाते हो और जीवित रहने के लिए उन्हें अपने कौशल का हिस्सा बनाते हो तो यह निश्चित रूप से गलत है। तुम निस्संदेह शैतान के पास पहुँच जाओगे और ज्यादा से ज्यादा दुष्ट, ज्यादा से ज्यादा बुरे बनते जाओगे। लेकिन, अगर तुम अपना नजरिया बदल सकते हो और परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका गहन-विश्लेषण कर सकते हो, उन्हें पहचान सकते हो और उन्हें उजागर कर सकते हो तो तुम किस तरह का परिणाम हासिल करोगे? तुम शैतान से और ज्यादा नफरत करने लगोगे, खुद को और ज्यादा समझने लगोगे और खुद से और घृणा करने लगोगे। इससे भी बेहतर परिणाम क्या हो सकता है? वह है शैतान को त्याग देना और परमेश्वर का अनुसरण करने का दृढ़ संकल्प लेना। शैतान लोगों को निर्देश देने और उनमें ये चीजें डालने के लिए इन तथाकथित पारंपरिक संस्कृतियों और मानवता द्वारा पिछले हजारों वर्षों में इकट्ठा किए गए सभी तरह के ज्ञान और सिद्धांतों का उपयोग करता है, जो उन्हें और गहरे स्तर पर भ्रष्ट और नियंत्रित करने के लिए है। अगर तुम इन चीजों में माहिर हो जाते हो और उनका उपयोग करने का तरीका जान लेते हो तो तुम एक जीता-जागता शैतान बन जाओगे और परमेश्वर तुम्हें पूरी तरह से हटा देगा।

जब पिछली सभाओं में खुद को समझने पर संगति की जा रही थी तो ज्यादातर लोग अक्सर घमंडी स्वभाव का मुद्दा उठाते थे, जो सबसे आम भ्रष्ट स्वभाव है और इसका अस्तित्व दूर-दूर तक फैला हुआ है। कौन से दूसरे भ्रष्ट स्वभाव तुलनात्मक रूप से आम हैं? (धोखेबाजी और हठ।) धोखेबाजी, हठ, सत्य से विमुखता और क्रूरता—लोग इन्हीं चीजों का बार-बार सामना करते हैं। दुष्टता अक्सर कम दिखाई पड़ती है और इसकी उतनी पहचान नहीं की जाती है। यह कहा जा सकता है कि दुष्ट स्वभाव को पहचानना सबसे मुश्किल है, यह गहराई तक छिपा हुआ और तुलनात्मक रूप से गुप्त किस्म का भ्रष्ट स्वभाव है, है ना? मिसाल के तौर पर, मान लो कि दो लोग इकट्ठे रहते हैं और उनमें से कोई भी सत्य से प्रेम नहीं करता है या उसकी खोज नहीं करता है और ना ही वह वफादारी से अपने कर्तव्य करता है। बाहर से देखने पर लगता है कि दोनों में बढ़िया तालमेल है और उनके बीच कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन, दिल की गहराई में, उनमें से कोई भी सत्य का अनुसरण नहीं करता है और बहुत से अलग-अलग भ्रष्ट स्वभाव अब भी मौजूद हैं, हालाँकि वे तुम्हें दिखाई नहीं देंगे। वे तुम्हें क्यों दिखाई नहीं देंगे? वह इसलिए क्योंकि ये दोनों व्यक्ति अपने क्रिया-कलापों में खासतौर पर धोखेबाज और शातिर हैं। चूँकि तुम सत्य को नहीं समझते हो और तुम्हारे पास सूझ-बूझ का पूरा अभाव है, इसलिए तुम उनकी समस्याओं का सार नहीं समझ सकते हो। तुम्हें जो सत्य समझ आते हैं, उनकी संख्या कम है, तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत ही छोटा है, इसलिए ऐसे बहुत-से पेचीदा मुद्दे हैं जिन्हें समझने का तुम्हारे पास कोई तरीका नहीं है और अन्य लोगों के मुद्दों को हल करने में तुम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते हो। अगुआ होने के नाते, इस तरह के लोगों से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर तुम उन्हें उजागर करते हो और पहचान लेते हो तो क्या वे इसे आसानी से मान लेते हैं? नहीं, वे नहीं मानते। तो, तुम्हें ऐसे लोगों से कैसे निपटना चाहिए? क्या इसे करने का कोई तरीका है? ऐसे लोगों से निपटने के लिए क्या सिद्धांत है? अगर उनके पास परमेश्वर के घर की खातिर मेहनत करने के लिए कुछ तकनीकी या पेशेवर कौशल हैं तो तुम्हें उनके साथ भाई-बहनों जैसा व्यवहार करना चाहिए और उनसे उसी हैसियत से माँगें करनी चाहिए। लेकिन, यह देखते हुए कि ऐसे लोग सत्य की खोज नहीं करते हैं, क्या वे अपने कर्तव्यों में वफादार हो सकते हैं? (नहीं।) कौन-सा व्यवहार बताता है कि उनमें वफादारी का अभाव है? क्या इस तरह के लोग सिर्फ दिखावे के लिए कार्य करने में माहिर नहीं होते हैं? जब आसपास कोई नहीं होता है तो वे मस्ती करते रहते हैं और अपना पूरा समय लेते हैं। जैसे ही वे किसी को आते देखते हैं तो अपनी रफ्तार बढ़ा देते हैं। यहाँ तक कि वे कई सवाल भी उठा सकते हैं और पूछ सकते हैं कि अमुक या अमुक चीज स्वीकार्य है या नहीं। जैसे ही वह व्यक्ति चला जाता है, वे कार्य करना बंद कर देते हैं, खाली बैठे रहते हैं, उनके पास उठाने के लिए कोई मुद्दा नहीं होता है और अपने दिलों में यह तक कहते हैं, “मैं तो बस तुम्हारे साथ मस्ती कर रहा था; मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ!” इस तरह के लोग सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं; वे मुखौटा लगाने में खासतौर से हुनरमंद होते हैं और दिखावा करने में माहिर होते हैं, जिससे लोगों के मन में एक झूठी छवि बनती है। कई लोग जो उनसे वर्षों से बातचीत कर रहे होते हैं, अब भी उनके शातिर और धोखेबाज सार को समझ नहीं पाते हैं। जब दूसरे लोग उनके बारे में पूछते हैं तो वे यहाँ तक कह देते हैं, “यह व्यक्ति बहुत अच्छा है, सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है, कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता है, वह बस लोगों को खुश करने वाला व्यक्ति है। यहाँ तक कि जब कोई गलत कार्य करता है तो वे उसकी काट-छाँट नहीं करते हैं; वे दूसरों को लगातार प्रोत्साहित करते हैं और आश्वासन देते रहते हैं।” ये लोग दूसरों के साथ अपनी बातचीतों में किस तरह के साधनों और तरीकों का उपयोग करते हैं? वे मौके के मुताबिक उपयुक्त भूमिका निभाते हैं, वे चापलूस और चालाक होते हैं और ज्यादातर लोग कहते हैं कि वे अच्छे व्यक्ति हैं। क्या तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हैं? (हाँ।) हर व्यक्ति अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट कर ही देता है, लेकिन ये लोग खुद को बहुत समेटकर रखते हैं, जिससे कोई भी उनकी समस्याओं का पता नहीं लगा पाता है। क्या यह कोई समस्या नहीं है? इतिहास में, ऐसे कुछ सम्राट हुए हैं जिन्होंने कई कुकर्म किए, लेकिन फिर भी उनकी बाद की पीढ़ियाँ उन्हें बुद्धिमान शासक बुलाती हैं। लोग उनके बारे में ऐसे विचार क्यों रखते हैं? क्या उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया और कुछ चीजें नहीं कीं? एक तरफ जहाँ उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक उपलब्धियों की खातिर कुछ अच्छे काम किए, वहीं दूसरी तरफ, उन्होंने अपने गलत कार्यों को छिपाने के लिए इतिहास को बिगाड़ दिया और उन लोगों की हत्या कर दी जिन्होंने उनके बारे में सत्य और तथ्य लिखे। लेकिन, चाहे उन्होंने उन्हें किसी भी तरह से छिपाने का प्रयास किया हो, उनके कर्मों के अभिलेख बेशक मौजूद हैं। वे उस हर व्यक्ति को हटा नहीं पाए जिसे सत्य मालूम था। आखिर में, बाद की पीढ़ियों ने उन मामलों को थोड़ा-थोड़ा करके उजागर कर दिया। जब लोगों को इन बातों का पता चला तो उन्हें महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। इन ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करके लोगों के मन में संपूर्ण मानवता के बारे में सत्य की एक नई समझ होनी चाहिए। किस तरह की समझ? राजाओं से लेकर आम लोगों तक, संपूर्ण मानवता दुष्टों की मुट्ठी में कैद है और शैतान द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी है ताकि हर व्यक्ति अगले व्यक्ति से ज्यादा दुष्ट हो। ऐसा कोई नहीं है जो बुरा नहीं है, ऐसा कोई नहीं है जो खराब नहीं है। सभी ने बहुत से गलत काम किए हैं; वे सभी बहुत दुष्ट हैं, उनमें ऐसा कोई नहीं है जो अच्छा है। कुछ लोग कहते हैं, “हर राजवंश में कुछ ईमानदार अधिकारी होते हैं। क्या इन ईमानदार अधिकारियों को दुष्ट माना जाएगा?” अगर तुम इन ईमानदार अधिकारियों के अधिकार के अंतर्गत परमेश्वर में विश्वास करते हो तो देखो कि वे तुम्हें गिरफ्तार करते हैं या नहीं। अगर तुम उनके सामने परमेश्वर के बारे में गवाही देते हो तो उनके रवैये को देखो। तुम्हें फौरन पता चल जाएगा कि वे दुष्ट हैं या नहीं। परमेश्वर का प्रकटन और कार्य और साथ ही, उसके द्वारा अभिव्यक्त किया गया सत्य, लोगों के वास्तविक रूप को किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा प्रकट कर देता है। कुछ शासकों और अधिकारियों ने कुछ राजनीतिक उपलब्धियाँ हासिल की होंगी और कुछ अच्छे काम किए होंगे, लेकिन इन अच्छे कामों की प्रकृति क्या है? इनसे किसे फायदा होता है? ये अच्छे काम हैं जिनकी अपेक्षा शासक वर्ग करता है। वे जो अच्छे काम करते हैं क्या वे वही अच्छे कर्म हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृत करता है? क्या ये “राजनीतिक उपलब्धियाँ” सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर के प्रति समर्पण करना है? बिल्कुल नहीं। उनकी राजनीतिक उपलब्धियों और अच्छे कामों का सत्य या परमेश्वर के प्रति समर्पण से बिल्कुल कोई संबंध नहीं है। उन्होंने जो भी अच्छे काम किए हैं और उनके पास जो भी राजनीतिक उपलब्धियाँ हैं, वे सभी उनके इरादों और उद्देश्यों से प्रेरित रहे हैं; यह सब खुद को अमर बनाने और दूसरों से तारीफ हासिल करने के लिए किया गया है। इसलिए, वे चाहे कितनी भी संख्या में अच्छे काम क्यों ना कर लें या कितनी भी राजनीतिक उपलब्धियाँ क्यों ना जमा कर लें, इससे यह साबित नहीं हो सकता है कि वे दयालु दिलों वाले अच्छे लोग हैं, यह साबित होना तो दूर की बात है कि उन्होंने कभी कोई बुरा नहीं किया है या वे दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति नहीं हैं। क्या तुम यह अच्छी तरह समझते हो कि परमेश्वर की नजर में ये लोग किस तरह के व्यक्ति हैं? क्या तुम खुद को समझने के लिए इन बातों का उपयोग कर सकते हो? क्या तुम ऐसे अभ्यासों में शामिल होते हो, जहाँ तुम कुछ अच्छा करते ही दिखावा करना चाहते हो और यह सुनिश्चित करते हो कि हर कोई इसे जान जाए, फिर बाहरी तौर पर कहते हो कि किसी को डींगें मारने वाला या घमंडी नहीं होना चाहिए, कि व्यक्ति को विनम्रता से आचरण करना चाहिए? मिसाल के तौर पर, तुम कार्य करने के लिए किसी नई कलीसिया में जाते हो और वहाँ लोगों को यह नहीं मालूम होता है कि तुम अगुआ के पद पर हो, इसलिए तुम्हें लोगों को यह बताने के लिए हर साधन आजमाना पड़ता है कि तुम एक अगुआ हो और तुम सारी रात अपना दिमाग खपाकर आखिरकार एक अच्छा हल निकाल लेते हो। वह हल क्या है? तुम एक बैठक के लिए सभी को जमा करते हो और कहते हो, “आज की सभा में आओ हम सब इस बारे में संगति करें कि मैं एक अगुआ के रूप में मानक स्तर का हूँ या नहीं। अगर मैं मानक स्तर का नहीं हूँ तो तुम मुझे उजागर कर सकते हो और हटा सकते हो। और अगर मैं योग्य हूँ तो मैं इस भूमिका में बना रहूँगा।” जब सभी लोग यह सुनते हैं तो उन्हें फौरन पता चल जाता है कि तुम एक अगुआ हो। क्या इससे तुमने अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया है? यह लक्ष्य कहाँ से आया? यह तुम्हारी दुष्ट प्रकृति से उत्पन्न हुआ है। महत्वाकांक्षाओं का होना एक सामान्य मानवीय गुण है, लेकिन भले ही सभी लोगों में महत्वाकांक्षाएँ होती हैं, कुछ लोग अपने वांछित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अलग-अलग समय और अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न भाषाओं, तरीकों और रणनीतियों का उपयोग करते हैं। यह दुष्टता है।

दुष्ट प्रकृति के इस विषय के संबंध में, हम इस पर बार-बार चर्चा करते रहेंगे। इस तरह, तुम्हें सत्य और भ्रष्ट स्वभाव के इस पहलू की एक ज्यादा गहन समझ हासिल होगी। एक लिहाज से, तुम खुद को समझ पाओगे और दूसरे लिहाज से, तुम अलग-अलग किस्म के लोगों को पहचान पाओगे। तुम सत्य में और भी गहरा प्रवेश प्राप्त करोगे। अगर मैं सिर्फ एक आम अवधारणा या परिभाषा के एक पहलू पर संगति करता हूँ तो तुम्हारी समझ काफी हद तक सतही होगी। लेकिन, कुछ तथ्यों का उपयोग करके और हमारी संगति के लिए मिसालें देकर तुम्हारी समझ और भी गहरी हो सकती है। मिसाल के तौर पर, मान लो दो बच्चे आपस में बात कर रहे हैं। उनमें से एक पूछता है, “क्या आज तुमने अपना गृहकार्य किया?” दूसरा बच्चा जवाब देता है, “नहीं, मैंने नहीं किया।” इस पर पहला बच्चा कहता है, “मैंने भी नहीं किया।” क्या वे दोनों सत्य बोल रहे हैं? (हाँ।) तुमने गलत समझा है; इनमें से एक बच्चा झूठ बोल रहा है। वह अपने दिल में क्या सोच रहा है? “बेवकूफ, क्या तुम सोच रहे हो कि मैंने वाकई इसे नहीं किया है? मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ! अगर मैंने अपना गृहकार्य नहीं किया तो मुझे सजा मिलेगी। तो फिर मैं उसे करने से कैसे चूक सकता हूँ? मैंने जानबूझकर तुम्हें यह विश्वास दिलाया कि मैंने उसे नहीं किया है ताकि तुम भी उसे ना करो। और आखिर में, जब तुम्हें सजा मिलेगी तो मैं खूब हँसूँगा।” क्या यह बच्चा बुरा है? (हाँ, वह बुरा है।) क्या तुम लोगों में से किसी ने कभी ऐसा कुछ किया है? चलो एक और मिसाल लेते हैं : सोमवार को कक्षा में एक छात्रा कहती है कि वह रविवार को खरीदारी करने गई थी, जबकि दूसरी छात्रा यह दावा करती है कि वह दोस्तों से मिलने गई थी। दरअसल, दोनों ही घर पर रहकर पढ़ाई कर रही थीं। खासकर चीन जैसे बेहद प्रतिस्पर्धी माहौल में, ये बातें अपने प्रतिद्वंद्वी से उसकी चौकसी कम करवाने के लिए कही जाती हैं ताकि तुम उससे आगे निकल सको। इसी को रणनीति कहते हैं। रोजमर्रा के जीवन में ऐसी चीजें आम हैं। कभी-कभी माता-पिता और बच्चे इसी तरह की बातचीत करते हैं और इसी तरह के स्वभाव प्रकट करते हैं, जिन्हें दोस्त भी आपस में प्रकट कर सकते हैं। इस स्वभाव के प्रकाशन हर जगह दिखाई दे जाते हैं, तुम्हें बस उन पर खोजने वाली नजर बनाए रखनी होती है। इस पर नजर क्यों रखनी है? यह सभा के लिए विषयवस्तु इकट्ठा करने, हल्की-फुल्की बातें करने, गपशप करने या कहानियाँ बनाने के लिए नहीं है। बल्कि यह तुम्हारी सूझ-बूझ को सुधारने के लिए है, ताकि दूसरे क्या करते हैं और वे क्या प्रकट और प्रदर्शित करते हैं इससे तुम अपनी तुलना कर सको, जिससे तुम देख सको कि क्या तुम भी इसी तरह के व्यवहार करते हो। जब तुम किसी को इस तरह का व्यवहार करते हुए देखते हो तो तुम समझ जाओगे कि उनका यह स्वभाव है। लेकिन, जब तुम भी ऐसे व्यवहार करते हो तो क्या तुम यह पहचान पाओगे कि तुम्हारा स्वभाव भी ऐसा ही है? अगर तुम इसे नहीं पहचान पाते हो तो इसका मतलब है कि उनके स्वभाव के बारे में तुम्हारी समझ झूठी है : तुमने इसे सही मायने में नहीं समझा है, या दूसरे शब्दों में कहें तो तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है और तुमने इसे सटीकता से नहीं समझा है। इन विषयों पर चंद दिनों में पूरी चर्चा नहीं की जा सकती है। इस पर थोड़ी चर्चा करने से तुम्हें कुछ समझ हासिल करने में मदद मिलेगी और सत्य के बारे में तुम्हारी समझ कुछ हद तक गहरी होगी। अगर तुम सही मायने में सत्य से प्रेम करते हो तो तुम्हारे पास प्रवेश का ज्यादा गहरा स्तर होगा। तुम्हारे अनुभव और प्रवेश की गहराई को तुम्हारी समझ से कभी अलग नहीं किया जा सकता है। तुम्हारे अनुभव और प्रवेश की गहराई निश्चित रूप से तुम्हारी समझ की गहराई को निर्धारित करेगी। इसी तरह, तुम्हारी समझ की गहराई यह भी प्रदर्शित कर सकती है कि तुमने कितनी गहराई से अनुभव किया है और भीतर प्रवेश किया है। ये दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही सत्य में प्रवेश करने का मार्ग है और सिर्फ सत्य में प्रवेश करके ही तुम वास्तविकता हासिल कर सकते हो। अब इस विषय को हम यहीं समाप्त करेंगे और आज की संगति के मुख्य विषय की तरफ बढ़ेंगे।

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