मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं (खंड तीन)

ख. भेंटें बरबाद करना, उनका दुरुपयोग करना, उन्हें उधार देना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना और उनकी चोरी करना

1. भेंटें बरबाद करना

मसीह-विरोधी सोचते हैं कि रुतबा और अधिकार होने से उन्हें भेंटों पर अपने कब्जे और इस्तेमाल को प्राथमिकता देने की शक्ति मिल जाती है। तो फिर, एक बार जब उनके पास वह शक्ति आ जाती है तो वे भेंटों का आवंटन और इस्तेमाल कैसे करते हैं? क्या वे कलीसिया के नियमों या कलीसिया के काम की जरूरतों को तय करने वाले सिद्धांतों के अनुसार ऐसा करते हैं? क्या वे ऐसा कर सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते।) वे ऐसा नहीं कर सकते, इस तथ्य का संबंध बहुत-सी चीजों से है। एक बार रुतबा पा लेने के बाद मसीह-विरोधी कुछ ऐसी चीजें करने से नहीं बच सकते जिनमें कलीसिया का काम शामिल होता है और इस काम का एक हिस्सा कलीसिया की संपत्ति के व्यय और आवंटन से जुड़ा होता है। उस स्थिति में वे कलीसिया की संपत्ति के आवंटन के लिए किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? क्या यह मितव्ययी होना है? क्या यह व्यय की योजना बनाने में अत्यधिक सतर्क होना है, जहाँ भी संभव हो मितव्ययिता बरतना है? क्या यह सभी चीजों में परमेश्वर के घर को ध्यान में रखना है? नहीं। अगर वे किसी जगह साइकिल से पहुँच सकते हैं तो भी बस से जाकर पैसे खर्च करते हैं। और जब उन्हें हमेशा बस या किराए की कार से जाना असुविधाजनक और तकलीफदेह लगता है तो वे कार खरीदने के लिए परमेश्वर के घर के पैसे का उपयोग करने पर विचार करना शुरू कर देते हैं। कार खरीदते समय वे कम कीमत और औसत प्रदर्शन वाले मॉडल को नजरअंदाज कर देते हैं और सीधे विदेश से आयात की हुई, किसी नामी ब्रांड के मॉडल की विशेष रूप से उच्च-प्रदर्शन वाली कार चुनते हैं, जिसकी कीमत दस लाख आरएमबी (रेनमिनबी या चीनी युआन) से अधिक होती है। वे सोचते हैं, “यह कोई बड़ी बात नहीं है और वैसे भी इसका भुगतान परमेश्वर का घर कर रहा है और परमेश्वर के घर का पैसा सबका पैसा है। सभी के लिए संयुक्त रूप से कार खरीदना कोई मुश्किल नहीं है। परमेश्वर का घर इतना बड़ा है, पूरा ब्रह्मांड परमेश्वर का है, अगर परमेश्वर का घर एक कार खरीद लेता है तो क्या यह इतनी बड़ी बात है? शैतान की दुनिया में लोग जितनी भी कारें चलाते हैं, उनकी कीमत कई दसियों लाख आरएमबी होती है, इसलिए हमारी कलीसिया का केवल दस लाख आरएमबी में एक कार खरीदना बहुत ही किफायती है। इसके अलावा, कार मेरे अकेले के इस्तेमाल के लिए नहीं है, पूरी कलीसिया इसे साझा करेगी।” जैसे ही मसीह-विरोधी अपना मुँह खोलते हैं, पलक झपकाए या हिचकिचाए बिना और बगैर किसी अपराधबोध के दस लाख से अधिक आरएमबी निकल जाते हैं। कार खरीदने के बाद वे इसका आनंद लेना शुरू कर देते हैं। वे अब उन जगहों पर पैदल नहीं जाते जहाँ उन्हें पैदल जाना चाहिए, वे अब उन जगहों पर अपनी बाइक से नहीं जाते जहाँ उन्हें बाइक से जाना चाहिए और वे अब उन जगहों के लिए कार किराए पर नहीं लेते जहाँ वे किराए की कार से जा सकते हैं; इसके बजाय, वे अपनी खुद की कार का उपयोग करने पर जोर देते हैं। वे वास्तव में दिखावा करते हैं जैसे कि वे महान कार्य करने में सक्षम हों। मसीह-विरोधी बहुत ही अपव्ययिता से पैसा खर्च करते हैं, वे जो कुछ भी खरीदते हैं वह सामान अच्छा, उच्च-स्तरीय और अत्याधुनिक होना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ प्रकार की मशीनरी और उपकरणों के बुनियादी और उच्च-स्तरीय मॉडलों की कीमत में कई दसियों हजार आरएमबी का अंतर हो सकता है। ऐसी स्थितियों में मसीह-विरोधी उच्च-स्तरीय मॉडल खरीदना चाहते हैं और जब तक वे अपना पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं तब तक ऐसा करने से उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। अगर उन्हें अपनी जेब से पैसे देने पड़ते तो वे एक बुनियादी या निचले दर्जे वाला मॉडल भी नहीं खरीद पाते, लेकिन जब तुम कहते हो कि परमेश्वर का घर इसके लिए भुगतान करने जा रहा है तो वे उच्च-स्तरीय मॉडल ही चाहते हैं। क्या वे जानवर नहीं हैं? क्या वे अनुचित नहीं हैं? क्या यह भेंटों को बरबाद करना नहीं है? (हाँ, यह है।) जो लोग भेंटों को बरबाद करते हैं उनकी मानवता खराब होती है, वे स्वार्थी और घृणित होते हैं! एक बार जब मसीह-विरोधी भेंटों का उपयोग करने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं तो वे भेंटों को अपने लिए हड़पना चाहते हैं, सिद्धांतों की पूरी तरह अवहेलना करते हुए उनका उपयोग करते हैं और हर खरीद के लिए उच्च-स्तरीय वस्तुएँ खरीदने पर जोर देते हैं। जब वे एक जोड़ी चश्मा खरीदते हैं तो वे सबसे स्पष्ट लेंस वाला उच्च-स्तरीय चश्मा चाहते हैं जो नीली रोशनी और पराबैंगनी किरणों को रोकता हो और जब वे कंप्यूटर खरीदते हैं तो वे उच्चस्तरीय, नवीनतम मॉडल चाहते हैं। जैसे ही विभिन्न औजारों और उपकरणों के खरीदने का विषय सामने आता है, इस बात की परवाह किए बिना कि उनके काम में ऐसी चीजों का उपयोग होगा कि नहीं, वे उच्च-स्तरीय ही खरीदना चाहते हैं। क्या यह भेंटों को बरबाद करना नहीं है? जब बात अपने पैसे की आती है तो वे मितव्ययिता से काम लेना जानते हैं, कोई भी वस्तु चलेगी जब तक वह व्यावहारिक हो, लेकिन जब परमेश्वर के घर के लिए कुछ खरीदने की बात आती है तो व्यावहारिकता और मितव्ययिता पर विचार नहीं किया जाता। वे बस यही सोचते हैं कि प्रसिद्ध ब्रांड होना चाहिए, इससे उनकी प्रतिष्ठा दिखाई देगी और जो भी सबसे महँगा होता है वे उसे खरीद लेते हैं। क्या यह अपने स्वयं का विनाश चाहना नहीं है? भेंटों को पानी की तरह बहाना—क्या मसीह-विरोधी यही नहीं करते? (हाँ।)

एक व्यक्ति ऊपरवाले भाई के साथ दाँत साफ करने का ब्रश खरीदने गया था। उसने भाई के लिए एक डॉलर से थोड़ा अधिक कीमत का ब्रश खरीदा, लेकिन अपने लिए 15 डॉलर से अधिक कीमत का विदेशी ब्रश खरीदा। अब क्या तुम लोग नहीं कहोगे कि ऊपरवाले भाई और इस साधारण भाई के बीच उनके रुतबे के लिहाज से कुछ अंतर, कुछ असमानता थी? (हाँ।) तार्किक रूप से—चलो रुतबा, पद या जिस तरह से परमेश्वर आवंटन करता है वैसी चीजों का उल्लेख न करके केवल इस तथ्य पर चर्चा करते हैं कि ऊपरवाला भाई इन सभी वर्षों में कड़ी मेहनत करता रहा है—क्या उसे बेहतर गुणवत्ता वाली चीज का उपयोग नहीं करना चाहिए? लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। वह किन सिद्धांतों का पालन कर रहा था? जहाँ भी संभव हो, मितव्ययिता बरतो : दाँत साफ करने का ब्रश कोई हाई-टेक चीज नहीं होती, इसलिए इतनी महँगी वस्तु का उपयोग करना उचित नहीं है और इस पर इतना पैसा खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो उपयोग करने योग्य हो वही चलेगा। अब जब इन दो लोगों की पहचान, पद और रुतबे की बात आती है तो उनके बीच एक असमानता है और सबसे औसत गुणवत्ता वाली वस्तु उस व्यक्ति के लिए खरीदी गई थी जिसे अच्छी किस्म की वस्तु का उपयोग करना चाहिए था और सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तु उस व्यक्ति के लिए खरीदी गई थी जिसे औसत किस्म की वस्तु का उपयोग करना चाहिए था। यहाँ समस्या क्या थी? इन दोनों में से किसको समस्या थी? अच्छी वस्तु का उपयोग करने वाले व्यक्ति को ही समस्या थी। उसे पता नहीं था कि वह कौन है और उसमें शर्म की कोई भावना नहीं थी और जब तक परमेश्वर का घर भुगतान कर रहा था, वह सबसे अच्छी और सबसे महँगी वस्तु खरीदता रहता। क्या इस व्यक्ति को रत्ती भर भी समझ थी? यदि उसने ऊपरवाले भाई के साथ खरीदारी करते समय ऐसा किया—उसके सामने ही ये चुनाव किए—तो वह तब क्या करता यदि वह अकेले खरीदारी कर रहा होता? उसने कितना खर्च किया होता? वह बहुत आगे चला जाता और यह बस दस डॉलर का अंतर न होता; उसमें किसी भी कीमत की वस्तु खरीदने, उसके लिए कोई भी राशि खर्च करने की पर्याप्त हिम्मत होती। वह इसी तरह से भेंटों और परमेश्वर के घर के पैसों को खर्च करता; क्या वह अपना विनाश नहीं चाह रहा था? ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं, “मैंने परमेश्वर के घर के लिए इतना बड़ा काम किया है, इतने सारे जोखिम उठाए हैं, इतनी कठिनाइयों को झेला है और मुझे कई बार जेल में डाला गया है। मुझे अधिकारपूर्वक विशेष सुविधाओं का आनंद लेना चाहिए।” यह तुम्हारा “अधिकारपूर्वक” क्या यह सत्य है? परमेश्वर ने अपने किस वचन में यह प्रावधान किया कि जिसे भी कैद हुई है या जिसने कठिनाइयाँ झेली हैं या जिसने परमेश्वर के लिए कई वर्षों तक भ्रमण किया है, उसे अधिकारपूर्वक विशेष सुविधाओं का आनंद लेना चाहिए और अधिकारपूर्वक भेंटों का उपयोग करने और उन्हें जब्त करने और अपनी मर्जी से बरबाद करने में उसे पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए और यह एक प्रशासनिक आदेश है? क्या परमेश्वर ने कभी इस आशय का एक भी वचन कहा है? (नहीं, उसने नहीं कहा है।) तो फिर परमेश्वर ने इस बारे में क्या कहा कि इस तरह के व्यक्ति और अगुआओं, कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को निभाने वाले सभी लोगों से भेंटों का किस प्रकार उपयोग करने की अपेक्षा की जाती है? उन्हें उनका उपयोग सामान्य लागत और सामान्य खर्चों के लिए करना है; किसी के पास भेंटों का उपयोग करने या उन पर कब्जा करने का कोई विशेष अधिकार नहीं है। परमेश्वर अपनी भेंटों को किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं बनाएगा। साथ ही, परमेश्वर ने यह भी नहीं कहा कि लोगों को भेंटों के उपयोग और आवंटन पर पैसे बरबाद करने चाहिए। किस तरह का व्यक्ति पैसे बरबाद करता है? पैसे बरबाद करने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है? यह कुछ ऐसा है जो जानवर, अत्याचारी, बदमाश, अपराधी और घृणित गुंडे करते हैं, जिनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती, यह कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधी करते हैं। जिस किसी में थोड़ी-सी भी मानवता है और जो थोड़ी-बहुत शर्म करता है, वह ऐसा नहीं करेगा। कुछ लोग हैं जो कलीसिया के अगुआ बन जाने के बाद मानते हैं कि इससे उन्हें कलीसिया की भेंटों और संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है। वे कुछ भी और सब कुछ खरीदना चाहते हैं और खरीदने की हिम्मत करते हैं और वे कुछ भी और सब कुछ माँगने की इच्छा रखते हैं। उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी खरीदते हैं, जो कुछ भी उन्हें पसंद आता है, वे उसके पात्र हैं; इसके अलावा, वे कभी भी कीमत पूछने की जहमत नहीं उठाते। और अगर कोई उन्हें कोई सस्ती और साधारण चीज खरीद कर दे दे तो वे नाराज हो जाएँगे और उसके खिलाफ द्वेष रखेंगे। ये मसीह-विरोधी हैं।

2. भेंटों का दुरुपयोग करना

कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने का प्रयास करने वाले मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है दुरुपयोग। “दुरुपयोग” शब्द समझने में आसान होना चाहिए। क्या दुरुपयोग का मतलब कलीसिया की संपत्ति लेकर उसे भाई-बहनों को देना या कलीसिया के काम के लिए आवंटित करना है ताकि उसका उचित उपयोग किया जा सके? (नहीं, ऐसा नहीं है।) तो फिर “दुरुपयोग” का क्या मतलब होता है? (इसका मतलब है इसे उचित तरीके से खर्च न करना, बल्कि इसे अपनी मर्जी से या चोरी-छिपे इस्तेमाल करना।) हालाँकि “चोरी-छिपे इस्तेमाल करना” कहना सही है, लेकिन यह बहुत विशिष्ट नहीं है। अगर कोई व्यक्ति कलीसिया की संपत्ति का इस्तेमाल उन लोगों के जीवन-यापन के खर्च के लिए चोरी-छिपे करता है जो पूरे समय अपना कर्तव्य निभा रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है और यह दुरुपयोग नहीं है। दुरुपयोग की निंदा की जाती है और यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होता। उदाहरण के लिए, कलीसिया के कुछ अगुआ कलीसिया के पैसे पर नियंत्रण कर लेते हैं और जब उनके बच्चों के पास कॉलेज जाने के लिए पैसे नहीं होते और उनके पास घर पर भी उतने पैसे नहीं होते तो वे परमेश्वर के सामने प्रार्थना करने आते हैं और कहते हैं, “हे परमेश्वर, मुझे पहले अपनी गलती स्वीकार करने दो और माफी माँगने दो। अगर तुम्हें सजा देनी ही है तो कृपया मुझे सजा दो, मेरे बच्चे को नहीं। मुझे पता है कि यह सही नहीं है, लेकिन अभी मैं मुश्किल में हूँ और इसलिए मुझे यह करना पड़ा। तुम्हारा हमेशा भरपूर अनुग्रह रहा है, तो मुझे उम्मीद है कि तुम इस बार मुझे छोड़ दोगे और अपना आशीष दोगे। मेरे बच्चे की कॉलेज की ट्यूशन फीस के लिए मेरे पास बीस-तीस हजार आरएमबी कम हैं और सारा पैसा इकट्ठा करने और इधर-उधर से उधार लेने के बाद भी मेरे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। क्या मैं तुम्हारे पैसे से अपने बच्चे की ट्यूशन फीस भर सकता हूँ?” फिर, प्रार्थना समाप्त करके उन्हें काफी शांति महसूस होती है और यह सोचकर कि परमेश्वर ने इस पर सहमति जताई है, वे अपने निजी इस्तेमाल के लिए पैसे ले लेते हैं। यह दुरुपयोग है, है ना? पैसे का उपयोग उस काम के लिए न करना जिसके लिए होना चाहिए, बल्कि उसका उपयोग कहीं और करना, परमेश्वर के घर में भेंटों के उपयोग को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों का उल्लंघन करना : इसे “दुरुपयोग” कहा जाता है। जब परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाता है और उसे पैसे की आवश्यकता होती है या किसी व्यापारिक लेन-देन में उनके पास पैसे की कमी हो जाती है तो वे भेंटों के बारे में मंसूबे बाँधने लगते हैं और अपने दिल में वे प्रार्थना करते हैं और कहते हैं : “हे परमेश्वर, कृपया मुझे माफ कर दो, मेरा ऐसा करने का इरादा नहीं था, मेरा परिवार वास्तव में कुछ कठिनाइयों का सामना कर रहा है। तुम्हारा प्रेम समुद्र जितना विशाल और आकाश जितना असीम है और तुम लोगों के अपराधों को याद नहीं रखते। इस नकदी का उपयोग करने के बाद जब पारिवारिक व्यवसाय से कुछ धन आएगा तो मैं तुम्हें इसका दोगुना वापस कर दूँगा, इसलिए कृपया मुझे इसका उपयोग करने दो।” इस तरह से वे परमेश्वर की भेंटों का उपयोग करते हैं। पैसे की जरूरत चाहे किसी रिश्तेदार को हो या दोस्त को हो, जब तक इन अगुआओं के हाथ में पैसे हैं वे उन्हें दे देंगे, वे न तो सिद्धांतों के अनुसार काम करेंगे और न ही दूसरों की सहमति लेंगे, इस बात पर एक पल भी विचार नहीं करेंगे कि ये परमेश्वर की भेंटें हैं। इसके बजाय वे निर्णय लेने, कलीसिया से पैसे निकालने और उसका इस्तेमाल दूसरे कामों के लिए करने का काम अपने ऊपर ले लेंगे। क्या यह दुरुपयोग नहीं है? (हाँ, यह है।) यह दुरुपयोग है। अब कुछ लोग चुपके से भेंटों का दुरुपयोग करने के बाद पूरा पैसा वापस कर देते हैं; तो क्या इसका मतलब यह है कि वे अब भेंटों के दुरुपयोग करने के पाप के दोषी नहीं हैं? क्या इसका मतलब यह है कि उन्हें छोड़ा जा सकता है? या अगर दुरुपयोग करते समय उनके पास अपने कारण, एक निश्चित संदर्भ या कठिनाइयाँ थीं और उनके पास पैसे का दुरुपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था तो क्या इस दुरुपयोग को माफ किया जा सकता है और इसे गुनाह नहीं माना जाएगा? (नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।) उस स्थिति में भेंटों का दुरुपयोग करने का पाप गंभीर है! क्या यह यहूदा द्वारा किए गए कार्य से कुछ अलग है? क्या भेंटों का दुरुपयोग करने वाले लोग यहूदा के समान ही नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) जब उनके बच्चे विश्वविद्यालय जा रहे होते हैं, जब उनके परिवार में कोई व्यवसाय कर रहा होता है या किसी बुज़ुर्ग को चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है या उनके पास खेती के लिए खाद नहीं होती, इन सभी स्थितियों में वे कलीसिया के पैसे खर्च करना चाहते हैं। कुछ लोग तो भाई-बहनों द्वारा दी गई भेंटों की रसीदें भी नष्ट कर देते हैं और फिर पैसे अपनी जेबों में डाल लेते हैं ताकि बिना किसी शर्मिंदगी या दिल में कुछ महसूस किए अपनी मर्जी से उन्हें खर्च कर सकें। कुछ लोग तो सभाओं में भी भाई-बहनों से पैसों की भेंटें ले लेते हैं और फिर जैसे ही सभा समाप्त होती है वे उससे चीजें खरीदने चले जाते हैं। और फिर कुछ भाई-बहन ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी आँखों से इन लोगों को भेंटों का दुरुपयोग करते देखा है, फिर भी उन्होंने उन्हें पैसे रखने दिए, जबकि कोई भी इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता और कोई भी इसे रोकने को आगे नहीं आता। वे सभी इन अगुआओं को नाराज करने से डरते हैं, इसलिए वे बस उन्हें खर्च करते हुए देखते रहते हैं। तो फिर, क्या तुमने यह पैसा परमेश्वर को भेंट दिया था या नहीं? अगर तुम दूसरों को दान दे रहे हो तो तुम्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि तुम यह पैसा परमेश्वर को नहीं चढ़ा रहे हो और फिर परमेश्वर इसे याद नहीं रखता। फिर यह पैसा किसका है, कौन इसे खर्च करता है और कैसे खर्च किया जाता है, इन बातों का परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं होता। दूसरी ओर, यदि तुम्हारा यह पैसा वास्तव में परमेश्वर को अर्पित किया गया है, लेकिन कलीसिया को इसका उपयोग करने का मौका मिलने से पहले कोई व्यक्ति इसे इस तरह से खर्च कर देता है, इसे इस तरह से बरबाद कर देता है और तुम्हें इसकी जरा भी चिंता नहीं है, न तो तुम इसे रोकते हो और न ही इसकी रिपोर्ट करते हो तो उस स्थिति में तुम्हारे साथ समस्या है, तुम उनके पाप में संलिप्त हो और जब उन्हें दोषी ठहराया जाएगा तो तुम भी नहीं बच पाओगे।

3. भेंटें उधार देना

वह सब कुछ जिसमें भेंटों का मनमाना उपयोग, भेंटों का अनुचित उपभोग और व्यय शामिल है वह निरपवाद रूप से प्रशासनिक आदेशों से संबंधित है और उनका उल्लंघन करने का गुण रखता है। कलीसिया की संपत्ति का प्रबंधन करने वाले कुछ लोग कह सकते हैं, “कलीसिया की संपत्ति यूँ ही तो पड़ी है। आजकल बैंकों के पास सभी प्रकार की निवेश योजनाएँ होती हैं, जैसे अनुबंध पत्र और निधियाँ, ये सभी अच्छी ब्याज दरें देती हैं। अगर हम कलीसिया से पैसा लेकर इनमें निवेश कर दें, थोड़ा-बहुत ब्याज कमाएँ तो क्या इससे परमेश्वर के घर को लाभ नहीं होगा?” फिर इस पर चर्चा किए बिना, कलीसिया में किसी की सहमति लिए बिना, वे पैसे उधार देने का दायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा करने का क्या उद्देश्य है? इसे अच्छे शब्दों में कहें तो यह परमेश्वर के घर के लिए कुछ ब्याज कमाना है, परमेश्वर के घर के लिए सोचना है; लेकिन सच्चाई यह है कि ये लोग स्वार्थपूर्ण मंशा पाल रहे हैं। वे बिना किसी की जानकारी के पैसे उधार देना चाहते हैं और फिर ब्याज अपने पास रखकर मूलधन परमेश्वर के घर को वापस कर देना चाहते हैं। क्या यह एक निष्ठाहीन इरादा पालने का मामला नहीं होगा? इसे भेंटें उधार देना कहते हैं। क्या भेंटें उधार देने को भेंटों का उचित उपयोग माना जा सकता है? (नहीं, यह नहीं माना जा सकता।) कुछ लोग ऐसा कहते हैं : “परमेश्वर मानवजाति से प्रेम करता है, परमेश्वर के घर में स्नेह होता है। कभी-कभी जब हमारे भाई-बहनों को पैसे की कमी होती है तो क्या हम उन्हें परमेश्वर की भेंट उधार नहीं दे सकते?” कुछ लोग तब निर्णय लेने का दायित्व अपने ऊपर ले लेते हैं और कुछ मसीह-विरोधी तो भाई-बहनों से अपील करके उन्हें यह कहकर उकसाते हैं, “परमेश्वर मानवजाति से प्रेम करता है, परमेश्वर ही जीवन देता है, इंसान को सब-कुछ देता है तो कुछ पैसे उधार देना कौन-सी बड़ी बात है, है ना? बहुत आवश्यक होने पर पैसे उधार देकर भाई-बहनों की मदद करना, मुसीबत के समय उनकी सहायता करना, क्या यह परमेश्वर का इरादा नहीं है? अगर परमेश्वर इंसान से प्रेम करता है तो इंसान एक-दूसरे से प्रेम क्यों नहीं करेंगे? इसलिए उन्हें कुछ पैसे उधार दे दो!” अधिकांश अज्ञानी लोग इस बात को सुनकर कहते हैं : “बिल्कुल, यदि तुम ऐसा कहते हो तो। वैसे भी, यह पैसा तो सभी का है, इसलिए चलो इसे हम सभी मिलकर किसी की मदद करने के तौर पर देखते हैं।” और इस तरह जब एक तरफ व्यक्ति बड़े-बड़े विचार उगलता है और चापलूसों का झुंड उसकी वाह-वाही करता है तो अंत में पैसा चला ही जाता है। तो क्या तुम्हारा यह कहना मायने रखता है कि “यह पैसा परमेश्वर को अर्पित किया गया है”? यदि यह मायने रखता है तो पैसा पहले ही परमेश्वर का है और अब पावन हो चुका है और इसलिए इसका उपयोग परमेश्वर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार करना ही उचित होगा। यदि यह मायने नहीं रखता, यदि तुम्हारा चढ़ाया हुआ पैसा मायने नहीं रखता तो तुम्हारा यह भेंट अर्पित करना किस तरह का कार्यकलाप है? क्या यह बस कोई खेल है? क्या तुम परमेश्वर के साथ कोई मजाक कर रहे हो और उसे धोखा दे रहे हो? तुम जो चीजें चढ़ाना चाहते हो उन्हें वेदी पर रखने के बाद तुम उनके लिए ललचाने लगते हो, ये चीजें वहाँ पड़ी हुई हैं और फिर भी परमेश्वर उनका उपयोग नहीं कर रहा है और ऐसा लगता है उसके लिए इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है। इसलिए जब तुम्हें उनके उपयोग की जरूरत होती है, तुम उन्हें लेकर उनका इस्तेमाल कर लेते हो। या शायद तुमने बहुत अधिक भेंट दे दी और अब पछता रहे हो, इसलिए तुमने उसमें से कुछ वापस ले ली। या शायद जब तुमने भेंट दी थी तब तुमने स्पष्ट रूप से सोचा नहीं था और अब जब तुम्हें उसके उपयोग का पता चल गया है तो तुम उसे वापस ले रहे हो। इस व्यवहार की प्रकृति क्या है? यह पैसा और ये चीजें : एक बार कोई व्यक्ति जब इन्हें परमेश्वर को अर्पित कर देता है तो यह उन्हें वेदी पर अर्पित करने के समान ही है और वेदी पर अर्पित की गई चीजें क्या हैं? वे भेंटें हैं। चाहे वह कोई पत्थर या रेत के कण से ज्यादा कुछ न हो, पकी हुई रोटी हो या एक कप पानी, अगर तुमने उसे वेदी पर चढ़ा दिया तो वह वस्तु परमेश्वर की हो जाती है, फिर वह इंसान की नहीं रहती और अब किसी इंसान को इसे नहीं छूना चाहिए। चाहे तुम्हें उसका लालच आए या तुम्हें लगे कि तुम उसका सही उपयोग कर सकते हो, उस पर अब किसी इंसान का अधिकार नहीं रहा। कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं, “क्या परमेश्वर इंसान से प्रेम नहीं करता? अगर इंसान उसमें से एक हिस्सा ले लेगा तो उसका क्या जाएगा? इस समय तुम प्यासे नहीं हो और तुम्हें पानी की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मैं प्यासा हूँ, तो मैं पानी क्यों नहीं पी सकता?” लेकिन तुम्हें यह देखना होगा कि इसमें परमेश्वर की सहमति है या नहीं। यदि परमेश्वर सहमत है तो इससे साबित होता है कि उसने तुम्हें अधिकार दे दिया और तुम उसका उपयोग कर सकते हो; लेकिन अगर परमेश्वर सहमत नहीं है तो तुम्हें उसका इस्तेमाल करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में जहाँ तुम्हारे पास अधिकार नहीं है, जहाँ परमेश्वर ने तुम्हें अधिकार नहीं दिया है, वहाँ परमेश्वर की किसी भी चीज का उपयोग करना एक बड़ी वर्जना का उल्लंघन करना होगा, जिससे परमेश्वर सबसे ज्यादा घृणा करता है। लोग हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों को बर्दाश्त नहीं करता है, लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं समझा कि परमेश्वर का स्वभाव वास्तव में कैसा है या वे जो चीजें करते हैं उनमें से किन चीजों से परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचने की सबसे अधिक आशंका रहती है। परमेश्वर की भेंटों के मामले में बहुत से लोगों के मन में वे चीजें लगातार चलती रहती हैं, वे मनमर्जी से उनका उपयोग या आवंटन करना चाहते हैं, उनका उपयोग करना चाहते हैं, उन्हें अपने कब्जे में रखना चाहते हैं या यहाँ तक कि उन्हें बरबाद कर देना चाहते हैं; लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ, तुम समाप्त हो चुके हो, तुम मृत्यु के पात्र हो! ऐसा परमेश्वर का स्वभाव है। परमेश्वर किसी को भी अपनी चीजें छूने नहीं देता। ऐसी है उसकी गरिमा। केवल एक ही स्थिति है जिसमें परमेश्वर लोगों को उन चीजों का उपयोग करने का अधिकार देता है और वह है कलीसिया के नियमों और उनके उपयोग को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार उनका उचित इस्तेमाल करना। इन सीमाओं के भीतर रहना परमेश्वर को स्वीकार्य है, लेकिन इन सीमाओं से बाहर जाना परमेश्वर के स्वभाव के प्रति अपराध और प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन होगा। यह इतना कठोर होता है, जिसमें सौदेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं होती और इसमें कोई वैकल्पिक रास्ता भी नहीं होता। इसलिए जो लोग भेंटों को बरबाद करते हैं, उनका दुरुपयोग करते हैं या उन्हें उधार देते हैं, उन्हें परमेश्वर की दृष्टि में मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाता है। उनके साथ इतना कठोर व्यवहार क्यों किया जाता है कि उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाए? यदि कोई परमेश्वर का विश्वासी इस हद तक चला जाए कि वह परमेश्वर की उन चीजों को जो पवित्र हो चुकी हैं, मनमाने ढंग से स्पर्श करने, उनका दुरुपयोग करने या उनका अपव्यय करने का दुस्साहस करता है तो वह किस प्रकार का व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर का शत्रु होता है। केवल परमेश्वर के शत्रु ही उसकी वस्तुओं के प्रति ऐसा रवैया रखेंगे; कोई साधारण भ्रष्ट व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा, ऐसा तो कोई जानवर भी नहीं करेगा, ऐसा काम तो केवल परमेश्वर का शत्रु, शैतान और बड़ा लाल अजगर ही करेगा। क्या ऐसा कहना कठोर शब्दों का प्रयोग करना है? नहीं, यह तथ्य है और पूरी तरह से सही है। शैतान की बिरादरी उन चीजों को कैसे छू सकती है जो परमेश्वर के लिए हैं? ऐसी है परमेश्वर की गरिमा!

4. भेंटों का कपटपूर्ण उपयोग करना

कुछ अन्य लोग ऐसे होते हैं जो हर तरह के बहाने बनाकर परमेश्वर के परिवार से पैसे और सामान माँगते रहते हैं और कहते हैं, “हमारी कलीसिया में एक कुर्सी की कमी है, इसलिए हमारे लिए कुर्सी खरीद दो। हमारी कलीसिया के कुछ भाई-बहनों के पास अपने कर्तव्य निभाने के लिए कंप्यूटर नहीं है, इसलिए हमारे लिए एक मैक खरीद दो। हम अपने काम के दौरान अक्सर लोगों से संपर्क करते हैं और हमारे पास फोन न होने से काम नहीं चल पाता, इसलिए हमारे लिए एक आईफोन खरीद दो। लेकिन सिर्फ एक आईफोन होना किसी काम का नहीं है, यह बहुत असुविधाजनक होगा, क्योंकि कभी-कभी हमें अलग-अलग लोगों से संपर्क करना पड़ता है। और एक लाइन पर निगरानी बनाए रखने की बहुत अधिक संभावना होती है, इसलिए तभी काम चलेगा जब हमें कई लाइनें मिलेंगी।” और इसलिए इनमें से कुछ लोगों के पास चार-पाँच सेल फोन होते हैं और वे एक ही समय में दो-तीन लैपटॉप साथ लेकर चलते हैं; वे दिखने में तो बहुत प्रभावशाली लगते हैं, लेकिन वे अपना काम बहुत अच्छे से नहीं करते हैं। उन्हें यह सब सामान कहाँ से मिला? उन्हें यह सब कपट से मिला। अतीत में हमने एक मूर्ख महिला के बारे में बात की थी जो एक ठेठ मसीह-विरोधी थी। जब परमेश्वर का घर एक कलीसिया की इमारत का जीर्णोद्धार कर रहा था तो उसने एक आदमी के साथ मिलकर कलीसिया के पैसे का कपटपूर्ण इस्तेमाल किया, जिससे परमेश्वर के घर को काफी नुकसान हुआ। जब इस आदमी ने जीर्णोद्धार का काम किया तो उसने बीच में दलाली खाई, ठीक उसी तरह जैसे शायद कोई अविश्वासी ठेकेदार खाता, उसने हर चीज उच्च-स्तरीय खरीदी और उसमें बहुत ज्यादा पैसे खर्च किए। जब कुछ लोगों ने देखा कि इसमें समस्या है तो इस मूर्ख महिला ने इसे गुप्त रखने और छिपाने में उसकी मदद की और साथ मिलकर उन्होंने परमेश्वर के घर से पैसे ठगे। अंत में वे पकड़े गए और उन दोनों को निष्कासित कर दिया गया। इस तरह उन्होंने खुद अपनी बरबादी का रास्ता तैयार किया और अपना जीवन बरबाद कर लिया। क्या रोने-धोने से उन्हें कोई फायदा हुआ? जब अंत में चीजें ऐसी ही होनी थीं तो उन्होंने शुरू में इस तरह से काम क्यों किया? उस मूर्ख महिला ने कपटपूर्ण ढंग से भेंटों का इस्तेमाल करते समय इसके अंजाम के बारे में ध्यान से क्यों नहीं सोचा? क्या परमेश्वर के घर के लिए उसे निष्कासित करना और उससे पैसे वापस करवाना ज्यादती थी? (नहीं, यह ज्यादती नहीं थी।) उसके लिए यह सही था! इस तरह का व्यक्ति दया का पात्र नहीं होता। उसके साथ दया नहीं की जा सकती। और फिर वह महिला अगुआ है जिसके बारे में हमने पहले बात की थी। उसने चुपके से कलीसिया के पैसे का एक अच्छा-खासा हिस्सा लिया और उसे एक अविश्वासी को उधार दे दिया। बाद में उससे भी निपटा गया। कुछ लोग सोचते होंगे, “उसने बस थोड़ा-सा पैसा उधार ही तो दिया था? उसे वापस चुकाने दो और बात खत्म करो। उसे क्यों बाहर निकाला जाए? इसका मतलब है कि एक अच्छा-खासा इंसान पलक झपकते ही अविश्वासी बन जाता है और उसे जीविका के लिए काम पर जाना पड़ता है। वह कितनी दयनीय है!” क्या यह व्यक्ति दयनीय है? तुम क्यों नहीं कहते कि वह घृणित है? तुम यह क्यों नहीं देखते कि उसने क्या किया है? उसने जो किया है वह तुम्हें जीवन भर घृणा करने के लिए पर्याप्त है और यहाँ तुम उस पर दया कर रहे हो! जो लोग उस पर दया करते हैं—वे किस तरह के लोग हैं? वे सभी मंदबुद्धि हैं और हर किसी के प्रति अविचारपूर्वक दयालुता दिखाने वाले लोग हैं।

5. भेंटों की चोरी करना

कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधियों की अंतिम अभिव्यक्ति होती है भेंटों की चोरी करना। कुछ अज्ञानी लोग भेंट चढ़ाते समय इस सिद्धांत पर चलते हैं कि “बाएँ हाथ को यह नहीं पता चलने देना कि दायाँ हाथ क्या कर रहा है” और फिर वे जो पैसा चढ़ा रहे होते हैं उसे ऐसे व्यक्ति के हाथ में दे देते हैं जिसके बारे में उन्हें भी यकीन नहीं होता कि उस पर भरोसा किया जा सकता है। वे कहते हैं, “इस बार मैं जो भेंट चढ़ा रहा हूँ वह काफी बड़ी रकम है तो किसी और को इसके बारे में पता न चले और इसे खाता बही में न लिखा जाए। मैं यह परमेश्वर के सामने कर रहा हूँ, दूसरे लोगों के सामने नहीं। जब तक परमेश्वर को इसके बारे में पता है तब तक सब ठीक है। अगर हम भाई-बहनों को बता देंगे तो वे शायद मेरी पूजा करने लगेंगे। तो मैं यह गुप्त रूप से कर रहा हूँ ताकि वे मेरा सम्मान न करें।” ऐसा करने के बाद वे अपने बारे में काफी अच्छा महसूस करते हैं और सोचते हैं, “मैंने अपनी भेंट एक सैद्धांतिक, चुपचाप और शांतचित्त तरीके से दी, इसे कहीं दर्ज नहीं करवाया और किसी भी भाई-बहन को इसकी जानकारी नहीं दी।” लेकिन काम करने के इस अज्ञानतापूर्ण तरीके ने लालची लोगों के लिए शोषण करने का रास्ता खोल दिया है। जैसे ही भेंट चढ़ाई जाती है, जिस मसीह-विरोधी को उन्होंने दी थी वह जाकर उसे बैंक में जमा कर देता है और उसे अपनी मान लेता है। और वह भेंट चढ़ाने वाले व्यक्ति से यह भी कहता है, “अगली बार जब तुम भेंट चढ़ाओ तो तुम इसी तरह चढ़ाना। इस तरह से चढ़ाना सही है और सिद्धांतों के अनुरूप है; भेंटें चढ़ाते समय व्यक्ति को कम दिखावा करना चाहिए। परमेश्वर के घर ने कहा है कि लोगों को भेंटें चढ़ाने के लिए न बुलाएँ। इसका मतलब है कि यह लोगों से दिखावा न करने के लिए कह रहा है, भेंटें चढ़ाने के बाद उसके बारे में बात मत करो, दी गई राशि का खुलासा मत करो और यह तो बिल्कुल मत बताओ कि ये किसे दी गईं।” क्या भेंटें चढ़ाने वाला व्यक्ति लोगों की असलियत समझ सकता है? वह ऐसा मूर्खतापूर्ण कदम क्यों उठाएगा? बिना यह जाने कि मानव हृदय कितना दुष्ट और पापी हो सकता है, वह इस व्यक्ति में अपनी सारी आस्था झोंक देता है और अंत में उसका पैसा चोरी हो जाता है। यह किसी व्यक्ति द्वारा मसीह-विरोधी को पैसा चुराने के लिए रास्ता प्रदान करने का मामला है। लेकिन क्या ऐसा कोई मामला है जिसमें मसीह-विरोधी रास्ता मिले बिना भी पैसा चुरा सके? क्या ऐसे मामले हैं जिनमें कोई व्यक्ति हिसाब-किताब रखते समय जानबूझकर गलत राशि दर्ज करता हो या कम राशि दर्ज करता हो और जब लोग ध्यान नहीं दे रहे होते हैं तो चुपके से थोड़ा-थोड़ा करके पैसा निकाल लेता हो? इस तरह के बहुत लोग हैं। ऐसे लोग धन के लालची होते हैं, वे नीच और द्वेषपूर्ण चरित्र के होते हैं और जब तक उन्हें अवसर मिलता रहता है वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। एक कहावत है, “अवसर उन्हीं को मिलता है जो तैयार रहते हैं।” जो लोग लालची नहीं हैं वे इन बातों पर ध्यान नहीं देते, लेकिन लालची लोग हमेशा ध्यान देते हैं। जब बात पैसे की आती है तो उनके दिमाग लगातार योजनाएँ बनाते रहते हैं और फायदा उठाने के अवसर तलाशते रहते हैं, हिसाब-किताब करते रहते हैं कि वे कैसे लाभ उठा सकते हैं और चुपके से पैसा खर्च कर सकते हैं।

एक मूर्ख महिला थी। एक बार जब मैं उससे बात कर रहा था तो मैंने कलीसिया द्वारा कुछ किताबें छपवाने की इच्छा का विषय उठाया और पूछा कि क्या उसे किताबों की छपाई के बारे में कुछ पता है। उसने लंबे-चौड़े सिद्धांतों के साथ जवाब दिया और फिर तुरंत कहा, “आमतौर पर जब मुद्रक किताबें छापते हैं तो वे कमीशन देते हैं। अगर हम किसी गैर-विश्वासी से यह काम करवाते हैं तो निश्चित रूप से काफी हद तक संदिग्ध लेनदेन चल रहा होगा और वे निश्चित रूप से छिपे तौर पर अपने लिए अच्छा खासा मुनाफा कमाएँगे।” बात करते-करते उसका चेहरा खुशी से दमकने लगा। खुशी और उत्साह में उसकी आँखें चमक उठीं, उसकी भौंहें उसके माथे पर ऊँची हो गईं और उसके गाल लाल हो गए। मैं सोचने लगा, “अगर तुम इस छपाई के काम को सँभाल सकती हो तो इसकी जिम्मेदारी लो और बस मुझे उतना ही बताओ जितना तुम इसके बारे में जानती हो। किस बात को लेकर तुम इतनी उत्साहित हो रही हो?” लेकिन जब मैंने अपने मन में इस पर विचार करना शुरू किया तो मुझे समझ में आ गया : यहाँ मुनाफा कमाया जा सकता था। उसे इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी कि छपाई कैसे होगी, कौन-सी किताबें छपवानी हैं, उनकी गुणवत्ता कैसी होगी या मुद्रणालय कैसे खोजा जाएगा—उसे बस इस बात की चिंता थी कि उसे हिस्सा मिल जाए। अभी तक कुछ भी नहीं हुआ था और वह पहले से ही अपना हिस्सा लेने की बात कर रही थी। मैंने सोचा, “गरीबी ने तुम्हें पागल कर दिया है। तुम परमेश्वर के घर के लिए किताबें छपवाने पर हिस्सा पाने की उम्मीद कैसे कर सकती हो? जब किताबें बाँटी जाती हैं तो परमेश्वर का घर एक पैसा भी नहीं कमाता, सब कुछ मुफ्त दिया जाता है और तुम हिस्सा लेना चाहती हो?” क्या यह महिला मौत को आमंत्रित नहीं कर रही थी? परमेश्वर के घर ने उसे अभी तक यह काम करने की अनुमति नहीं दी थी, मैं केवल पूछताछ कर रहा था, वह पहले से ही हिस्सा लेने की बात कर रही थी। अगर यह काम वाकई उसके हाथ में होता तो वह सिर्फ हिस्सा पाने पर ही रुकने वाली नहीं थी और वह बहुत आसानी से सारा पैसा लेकर भाग सकती थी—तुम उसे जितना भी देते, वह तुम्हें उतना ही ठगती, वह उतना ही चुरा लेती। क्या मैं इसे बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा हूँ? यह मूर्ख महिला वाकई बहुत तिकड़मी थी, है ना? मुझसे पूछो तो वह एक डाकू और गुंडी थी जो जितना भी हो सके उतना पैसा पाने की हिम्मत रखती थी। चलो थोड़ी देर के लिए हम यह पूछना छोड़ देते हैं कि क्या परमेश्वर इस बात से सहमत है और बस भाई-बहनों से पूछते हैं, वह इस मामले को निष्ठापूर्वक सँभालती है, क्या वे उसके सँभालने के तरीके को स्वीकार कर सकते हैं और क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग उसे माफ कर सकते हैं।

फिर कुछ ऐसे लोग हैं जिनका जिक्र करना भी घिनौनी बात है। जब वे परमेश्वर के घर के लिए किसी काम की जिम्मेदारी लेते हैं तो वे अविश्वासियों के साथ मिलकर उसकी कीमत बढ़ा देते हैं, जिससे परमेश्वर के घर को बहुत ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं और नुकसान उठाना पड़ता है। अगर तुम कहते हो कि तुम इसे नहीं खरीद रहे हो या तुम उनके प्रस्ताव से सहमत नहीं हो तो वे बहुत गुस्सा हो जाएँगे और तुम्हें मनाने या रोकने की हर कोशिश करेंगे और कलीसिया से पैसे हासिल करेंगे। जब अविश्वासियों को पैसे दिए जाते हैं और उन्हें फायदा होता है और उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ती है तो वे इतने खुश हो जाते हैं मानो उन्होंने लॉटरी जीत ली हो। यह उसी हाथ को काटने जैसा है जो उन्हें खिलाता है, यह भेंटों को बरबाद करना है, और यह परमेश्वर के घर के लिए थोड़ी-सी भी लाभ प्राप्त करने का प्रयास न करना है। उन मूर्ख महिलाओं को क्यों बर्खास्त कर दिया गया जिन्होंने किताबों की छपाई का प्रभार लिया था? क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाया और लापरवाही से काम किया। जब उन्होंने अविश्वासियों के साथ बातचीत की तो उन्होंने कीमत को जितना हो सके उतना कम करने की कोशिश की, यहाँ तक कि वह उत्पादन की लागत से भी कम हो गई, यहाँ तक कि यह घृणित था और अविश्वासी अब उनके साथ व्यापार नहीं करना चाहते थे। अंत में अविश्वासी अनिच्छा से सहमत तो हो गए, लेकिन गुणवत्ता से भारी समझौता करना पड़ा। मुझे बताओ, क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो घाटे में व्यापार करने के लिए तैयार होगा? इस दुनिया में लोगों को जीवित रहना होता है और व्यापार करते समय उन्हें उत्पादन की लागत के अलावा अपने जीवनयापन के खर्च और श्रम की लागत निकालने के लिए भी पर्याप्त पैसा कमाना होता है। इन महिलाओं ने इन अविश्वासियों को कोई पैसा नहीं कमाने दिया, कीमत को लेकर अनुचित ढंग से बातचीत की और इसे जितना हो सका उतना कम करवाने की कोशिश की, इस दौरान वे सोच रही थीं कि वे परमेश्वर के घर के लिए पैसे बचा रही हैं और इसका अंत कैसे हुआ? दूसरे पक्ष ने काम और जिल्दबंदी की गुणवत्ता में कटौती कर दी। अगर वे यहाँ घाटे की भरपाई न करते तो क्या उन्हें नुकसान नहीं होता? अगर उन्हें नुकसान उठाना पड़ता तो क्या उन्होंने यह काम किया होता? क्या वे उन महिलाओं को सौदे में बेहतर लाभ देने का खर्च वहन कर सकते थे? नहीं, यह असंभव होता। अगर वे उन महिलाओं को सौदे में बेहतर लाभ लेने देते तो वे व्यापार नहीं कर रहे होते, वे दान कर रहे होते। वे मूर्ख महिलाएँ इसे नहीं समझ पाईं, उन्होंने परमेश्वर के घर के लिए इस तरह से काम किया और चीजों को पूरी तरह से गड़बड़ कर दिया। अंत में वे अभी भी बहानेबाजी कर रही थीं और कह रही थीं : “मैं परमेश्वर के घर के बारे में सोच रही थी। मैं परमेश्वर के घर के लिए पैसे बचा रही थी। एक पैसा बचाने का मतलब एक पैसा बचाना होता है और दो पैसे बचाने का मतलब एक पैसा कमाना होता है!” वे बकवास कर रही थीं! क्या उन्हें पता था कि उद्योग के विनियमों का क्या मतलब होता है? क्या उन्हें पता था कि स्थापित प्रथाओं और विवेकपूर्ण होने का क्या मतलब होता है? और इसलिए अंतिम नतीजा क्या था? कुछ किताबें बहुत खराब गुणवत्ता की थीं, कुछेक बार पलटने के बाद उनसे पन्ने निकलने लगे और पूरी किताब बिखर गई, जिससे उसे पढ़ना असंभव हो गया, इसलिए सब कुछ फिर से छपवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था। क्या इससे पैसे की बचत हुई या अधिक लागत आई? (इसमें अधिक पैसा खर्च हुआ।) यह वह गड़बड़ी थी जो उन मूर्ख महिलाओं ने की थी।

जिस तरह से मसीह-विरोधी भेंटों से निपटते हैं उसमें सिद्धांत और मानवता की पूरी तरह से कमी होती है और यह तथ्य उनके दुष्ट और शातिर स्वभाव का सकारात्मक सबूत है। जिस तरह से वे भेंटों तक और परमेश्वर से संबंधित सभी चीजों से पेश आते हैं, उस हिसाब से देखें तो मसीह-विरोधी का स्वभाव वास्तव में परमेश्वर के विरुद्ध होता है। वे परमेश्वर से संबंधित भेंटों को अत्यंत तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं, उनके साथ जैसा चाहें वैसा व्यवहार करते हैं, जरा भी सम्मान नहीं दिखाते और इसकी कोई सीमा नहीं होती। यदि वे परमेश्वर से संबंधित चीजों के साथ अपने व्यवहार में ऐसे हैं तो वे स्वयं परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? या उसके कहे गए वचनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? इसका उत्तर स्वतः स्पष्ट है। यह एक मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है, एक मसीह-विरोधी का सार है जो दुष्टता और क्रूरता से भरा हुआ है; यह एक असली मसीह-विरोधी है। इसे याद रखो : जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात आती है जो भेंटों को बरबाद करने, उनका दुरुपयोग करने, उन्हें उधार देने, उनका कपटपूर्ण ढंग से उपयोग करने या उनकी चोरी करने में सक्षम है तो अन्य अभिव्यक्तियों को देखने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब तक इनमें से कोई एक श्रेणी मौजूद है तब तक इस व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाना पर्याप्त होगा। यह देखने के लिए कि क्या वह इस तरह का व्यक्ति है और क्या वह भविष्य में ऐसी चीजें करने में सक्षम हो सकता है, तुम्हें उसके बारे में पूछताछ करने या पता लगाने की आवश्यकता नहीं है, जाँच करने की आवश्यकता तो बिल्कुल नहीं है। जब तक वे इनमें से किसी एक श्रेणी में भी आते हैं तब तक यह उन्हें मसीह-विरोधी, परमेश्वर का दुश्मन होने के लिए अभिशप्त करता है। तुम सभी लोग इस पर गौर करो : वह चाहे कोई ऐसा अगुआ हो जिसे तुम लोगों ने पहले ही चुन लिया है या कोई ऐसा अगुआ हो जिसे तुमने चुनने का फैसला किया है या उन लोगों में से कोई हो जिसे तुम लोग काफी अच्छा मानते हो, जो कोई भी इस तरह का आचरण या इस तरह की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है वह मसीह-विरोधी होने से बच नहीं सकता।

आज मैंने जिन चीजों के बारे में संगति की है, क्या उनसे तुम लोगों ने कोई सबक सीखा है? क्या तुमने सत्य की कोई समझ प्राप्त की है? तुम लोग इस बारे में स्पष्ट रूप से नहीं बोल सकते, इसलिए मैं तुम लोगों को बताता हूँ कि तुम्हें किस तरह का सबक सीखना चाहिए। तुम्हें उन चीजों के बारे में कोई योजना नहीं बनानी चाहिए जिन्हें लोग परमेश्वर को चढ़ाते हैं। ये चीजें चाहे जो भी हों, चाहे वे मूल्यवान हों या न हों, चाहे तुम्हारे लिए उनका कोई उपयोग हो या न हो, चाहे वे कीमती हों या न हों—तुम्हें उनके बारे में कोई योजना नहीं बनानी चाहिए। अगर तुममें क्षमता है तो बाहर जाकर पैसा कमाओ—जितना चाहे कमाओ, कोई इसमें दखल नहीं देगा, लेकिन तुम्हें परमेश्वर की भेंटों के बारे में कोई योजना बिल्कुल नहीं बनानी चाहिए। यह सतर्कता ऐसी चीज है जो तुम लोगों के पास होनी चाहिए; यह तार्किकता ऐसी चीज है जो तुम्हारे पास होनी चाहिए। ऊपर बताई गई चीज पहली सीख है। दूसरी सीख यह है कि जो कोई भी भेंटों को बरबाद करने, उनका दुरुपयोग करने, उन्हें उधार देने, उनका कपटपूर्ण उपयोग करने और उनकी चोरी करने में संलग्न है, उसे यहूदा की किस्म का ही समझा जाना चाहिए। जिन लोगों ने इस तरह के काम और अभ्यास किए हैं, वे पहले ही परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचा चुके हैं और परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा। तुम्हें इस मामले में कोई भी खयाली पुलाव नहीं पकाना चाहिए। मैंने इसे इस तरह से कहा है और परमेश्वर इन चीजों को पूरा करेगा। यह तय हो चुका है और सौदेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। कुछ लोग कहेंगे : “मेरे दुरुपयोग करने का एक संदर्भ था : जब मैंने लापरवाही से उस पैसे को खर्च किया तब मैं युवा और अज्ञानी था, लेकिन मैंने परमेश्वर के घर से बहुत ज्यादा पैसे नहीं ठगे थे, मैंने बस 20-30, या 30 या 50 आरएमबी चुराए थे।” लेकिन बात रकम की नहीं है; समस्या यह है कि जब तुम ऐसा करते हो तो तुम्हारे कार्यकलापों का लक्ष्य परमेश्वर होता है। तुमने परमेश्वर की चीजों को छुआ है और ऐसा करना अस्वीकार्य है। परमेश्वर की चीजें आम संपत्ति नहीं हैं, वे सभी की नहीं हैं, वे कलीसिया की नहीं हैं, वे परमेश्वर के घर की नहीं हैं : वे परमेश्वर की हैं और तुम्हें इन अवधारणाओं को आपस में नहीं मिलाना चाहिए। परमेश्वर ऐसा नहीं सोचता, न ही उसने तुम लोगों से यह कहा है कि “मेरी चीजें और भेंटें कलीसिया की हैं और उन्हें कलीसिया द्वारा आवंटित किया जाना चाहिए,” यह तो बिल्कुल नहीं कहा कि “मेरे लिए दी गईं सभी भेंटें कलीसिया की हैं, परमेश्वर के घर की हैं और भाई-बहनों के प्रभार में हैं और जो कोई भी उनका उपयोग करना चाहता है उसे बस इसकी सूचना देनी होगी।” परमेश्वर ने ऐसा कुछ नहीं कहा, उसने ऐसा कभी नहीं कहा। तो परमेश्वर ने क्या कहा? जो कुछ परमेश्वर को चढ़ाया जाता है वह परमेश्वर का है और एक बार जब वह चीज वेदी पर रख दी जाती है तो वह हमेशा के लिए परमेश्वर की हो जाती है और किसी भी मनुष्य के पास इसका अनधिकृत उपयोग करने का अधिकार या शक्ति नहीं है। भेंटों के बारे में योजनाएँ बनाना और दुरुपयोग करना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना, चोरी करना, उधार देना और उन्हें बरबाद करने का काम करना—इन सभी कार्यकलापों की परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध अपराध के रूप में, मसीह-विरोधियों के कार्यकलापों के रूप में निंदा की जाती है और ये पवित्र आत्मा के विरुद्ध ईशनिंदा के पाप के समान हैं, जिसके लिए परमेश्वर तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। परमेश्वर की गरिमा ऐसी ही है और लोगों को इसे कम करके नहीं आँकना चाहिए। जब तुम दूसरों को लूटते हो या चोरी करते हो तो तुम्हें कानून द्वारा एक से दो साल या तीन से पाँच साल तक की सजा हो सकती है और एक बार जब तुम तीन से पाँच साल की कैद काट लेते हो तो तुम किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं रह जाते। लेकिन जब तुम परमेश्वर की चीजों, परमेश्वर की भेंटों को लेकर उनका उपयोग करते हो तो यह एक ऐसा पाप है जो परमेश्वर की दृष्टि में स्थायी होता है, एक ऐसा पाप जिसे माफ नहीं किया जा सकता। मैंने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं और जो कोई भी इनके खिलाफ जाएगा उसे दुष्परिणाम भुगतने होंगे। जब समय आएगा तो बेहतर होगा कि तुम यह शिकायत न करो कि मैंने तुम्हें नहीं बताया था। मैंने आज यहाँ अपने वचनों को तुम लोगों के लिए स्पष्ट कर दिया है, उन्हें बोर्ड पर कीलों की तरह ठोंक दिया है, और यही होगा। यह तुम पर निर्भर है कि तुम इस पर विश्वास करते हो या नहीं। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि वे डरते नहीं हैं। ठीक है, अगर तुम नहीं डरते तो प्रतीक्षा करो और देखो कि चीजें कैसे होती हैं। तब तक प्रतीक्षा मत करो जब तक कि तुम्हें दंड न मिल जाए, क्योंकि तब तक रोने, दाँत किटकिटाने और छाती पीटने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।

24 अक्तूबर 2020

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें