मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं (खंड दो)

एक अगुआ है जिसने निम्नलिखित कार्य को अंजाम दिया। उसके द्वारा किए गए इस कार्य को समझने का प्रयास करो और उसका गहन-विश्लेषण करो। एक दिन मुझे चीनी हर्बल आहार पूरक का एक पैकेट मिला। मैंने मन ही मन सोचा, “मैंने इसे खरीदने के लिए किसी से नहीं कहा था तो यह कहाँ से आया है? इसे किसने खरीदा? ऐसा कैसे है कि मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है?” बाद में चारों ओर पूछने के बाद मुझे पता चला कि यह एक अगुआ था, जिसने ऊपरवाले से पूछे बिना इसे खरीदने की जिम्मेदारी ले ली थी। उसने कहा था कि इस वस्तु की ऊपरवाले को आवश्यकता है। यह सुनकर नीचे के भाई-बहनों ने कहा, “चूँकि ऊपरवाला चाहता है कि इसे खरीदा जाए तो ठीक है, हम इसे खरीदने के लिए कलीसिया के पैसे का उपयोग कर सकते हैं। ऊपरवाला जो भी खरीदना चाहता है वह ठीक है, खासकर जब तक यह परमेश्वर के लिए है—हमें कोई आपत्ति नहीं है।” जहाँ तक खर्च किए गए पैसे की बात है—वह पैसा किसका था? (परमेश्वर का चढ़ावा था।) जब परमेश्वर के चढ़ावे को खर्च करने की बात आई तो वह इतना उदार कैसे हो गया? क्या यह खरीद ऊपरवाले द्वारा अधिकृत की गई थी? मेरी सहमति के बिना उसने चुपके से खुद ही आगे बढ़कर दवा खरीदने का फैसला किया था। और जब वह उसे खरीद रहा था तो वह यह सोचने को भी नहीं रुका, “क्या यह ऊपरवाले के काम आएगा? क्या मैं जो खरीद रहा हूँ वह उपयुक्त भी है? मुझे कितना खरीदना चाहिए? क्या ऊपरवाला मुझे यह पैसा खर्च करने की अनुमति देगा?” क्या उसने ये बातें पूछीं? (नहीं।) बिना कुछ ज्यादा पूछे ही उसने सीधे वह वस्तु खरीद ली। यह उदारता कहाँ से आ रही थी? यह किस तरह की व्यक्तिगत निष्ठा है? उसने परमेश्वर के पैसे का इस्तेमाल परमेश्वर के लिए कुछ खरीदने के लिए किया, इसे अपने लिए परम कर्तव्य मानते हुए उसे जो कुछ भी करना पड़ा वह किया और उस चीज को खरीदने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सभी कठिनाइयों को पार किया। यहाँ परमेश्वर को संतुष्ट करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है : “मैं तुम्हारे माध्यम से गुजरे बिना ही तुम्हें सुखद आश्चर्य दे सकता हूँ। देखो, मेरे पास यह क्षमता है! क्या तुम्हें पता था कि मैं ऐसा करने में सक्षम हूँ? तुम क्या सोचते हो? क्या यह एक सुखद आश्चर्य नहीं है? क्या तुम खुश नहीं हो? क्या तुम्हें सुकून महसूस होता है?” तुमने जो पैसा खर्च किया वह किसका था? क्या वह तुम्हारा था? यदि तुमने जो खर्च किया वह परमेश्वर का पैसा था तो क्या तुम्हें परमेश्वर की सहमति मिली थी? तुमने परमेश्वर से चुराया हुआ पैसा खर्च किया और फिर तुमने कहा कि तुम परमेश्वर को एक सुखद आश्चर्य देना चाहते हो : यह किस तरह का तर्क है? और तुम किसके पैसे के साथ इतने उदार हो रहे थे? (जो परमेश्वर के घर का है।) परमेश्वर के घर के पैसे के साथ उदार होना परमेश्वर के चढ़ावे के साथ उदार होना है। क्या यह घृणित नहीं है? (है।) तुम लोगों को यह सुनकर घृणा हो सकती है, लेकिन इसमें शामिल व्यक्ति घृणा करना तो दूर, अपने आप से काफी प्रसन्न था। सामान पहुँचाने के बाद उसने खुद ही सोचा : “कोई जवाब क्यों नहीं आया? मैंने तुम्हारे लिए यह अद्भुत कार्य किया है तो तुमने मुझे धन्यवाद क्यों नहीं दिया? तुम्हें यह सामान कैसा लग रहा है? क्या तुम इससे संतुष्ट हो? क्या तुम चाहते हो कि मैं भविष्य में तुम्हारे लिए कुछ और खरीदूँ? तुम मेरा किस तरह का मूल्यांकन कर रहे हो? अब से, क्या तुम मुझे एक महत्वपूर्ण पद देने जा रहे हो? क्या तुम मेरे किए से संतुष्ट हो? मैंने तुम्हारे पैसे से तुम्हारे लिए कुछ किया—तुम मेरी दयालुता के बारे में क्या सोचते हो? क्या तुम खुश हो? ओह, कृपया कुछ बोलो। कोई जवाब क्यों नहीं आ रहा है?” क्या मुझे उसे जवाब देना चाहिए था? (नहीं।) क्यों नहीं? यह घटना काफी समय पहले हुई थी, लेकिन इस पूरे समय में मुझे इससे घृणा होती रही है—हर बार जब मैं उस चीज को देखता हूँ जो उसने खरीदी थी तो मुझे घृणा होती है। तुम लोग मुझे बताओ, क्या घृणा होना उचित है? क्या इस घटना का गहन-विश्लेषण करना उचित होगा? (हाँ, होगा।) यह किस तरह का आचरण है? क्या यह वफादारी की अभिव्यक्ति है? दयालुता की अभिव्यक्ति है? या परमेश्वर का भय मानने वाले दिल की अभिव्यक्ति है? (यह इनमें से कुछ भी नहीं है।) इसे किसी की चापलूसी करना और उसे फुसलाना कहा जाता है और इसका अर्थ है : “मैं तुम्हारे पैसे से तुम्हारी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ खरीदता हूँ और तुम पर अच्छा प्रभाव छोड़ता हूँ, ताकि तुम मुझे और अनुकूल नजरिए से देखो।” यह अगुआ मेरी खुशी के लिए काम करना चाहता था, मेरी चापलूसी करना चाहता था और मुझे मक्खन लगाना चाहता था, लेकिन अंत में वह असफल हो गया और उसकी असलियत सामने आ गई। उसने क्या गलतियाँ कीं? सबसे पहले, यह ऐसा कुछ नहीं था जिसे मैंने उसे अपने लिए करने के लिए आदेश दिया था; मैंने उसे ऐसा करने के लिए कोई संदेश नहीं भेजा था। दूसरा, अगर वह अपने दिल में दयालुता के कारण ऐसा करना चाहता था, तो उसे पहले पूछना चाहिए था और आगे बढ़ने से पहले सहमति लेनी चाहिए थी। और जब वह यह सब कर रहा था तो क्या उसे उन संबंधित मामलों के बारे में पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी जिनके बारे में उसे जानने की जरूरत थी? उदाहरण के लिए, कितनी मात्रा में खरीदना है, कितने पैसे का खरीदना है, किस श्रेणी का सामान खरीदना है, पैसे कैसे खर्च करने हैं—क्या उसे इन चीजों के बारे में पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी? इन चीजों के बारे में पूछताछ करना सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है। तो ये पूछताछ करने में उसके विफल होने की प्रकृति क्या है? छोटे स्तर पर, वह खुद को बहुत चतुर समझ रहा था, बड़े स्तर पर, इसे स्वेच्छा से कार्य करना, परमेश्वर के प्रति सम्मान न रखना और लापरवाही से कार्य करना कहा जाता है! मैंने कभी उससे वह वस्तु खरीदने के लिए नहीं कहा तो वह अच्छे इरादों का दिखावा किसलिए कर रहा था? क्या वह मुसीबत को बुलावा नहीं दे रहा था? इसके अलावा, उसकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मसीह-विरोधी संपत्ति को किस तरह देखते हैं, जिस पर हम आज संगति कर रहे हैं और जिसका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। वह मानता था कि उस कलीसिया के अगुआ के रूप में वह कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा परमेश्वर को दिए जाने वाले चढ़ावे का आनंद लेने के योग्य था और उसके पास परमेश्वर को दिए जाने वाले इन चढ़ावों का उपयोग करने और उन्हें अपने पास रखने की शक्ति थी और उनके संबंध में वह अंतिम निर्णय कर सकता था। उस कलीसिया में उसके पास एक राजा जैसी शक्ति थी और वह स्थानीय तानाशाह बन गया था। उसने सोचा : “मुझे जो चीजें खरीदनी हैं, उनके बारे में तुम्हें सूचित करने या पूछने की आवश्यकता नहीं है, मैं बस तुम्हारी ओर से इसे सँभाल लूँगा। चाहे तुम सहमत हो या नहीं, जब तक मुझे लगता है कि इसे इस तरह से करना अच्छा होगा और मैं इसे इस तरह से करना चाहता हूँ, तो मैं इसे इसी तरह करूँगा।” वह किस तरह की चीज है? क्या वह मसीह-विरोधी नहीं है? मसीह-विरोधी इतने ही बेशर्म होते हैं। जब इस व्यक्ति को रुतबा दिया गया और वह अगुआ बन गया तो वह राजा बनना चाहता था, कलीसिया की संपत्ति को जब्त करना चाहता था। उसने सोचा कि वह अकेले ही कलीसिया की संपत्ति के बारे में फैसले लेता है और उसे अपने कब्जे में लेने और उसका उपयोग करने की शक्ति उसके पास है। उसने यहाँ तक सोचा कि मेरे लिए चीजें खरीदने और इनका चयन करने के बारे में अंतिम फैसला भी उसका ही है। लेकिन क्या मेरे लिए तुम्हें चीजें खरीदने की जरूरत है? मैं जो भी इस्तेमाल करता हूँ और जिस तरह से भी इस्तेमाल करता हूँ, क्या मुझे उसमें तुम्हें शामिल करने की जरूरत है? क्या यह तर्क की कमी नहीं है? क्या यह बेशर्म होना नहीं है? क्या तुम भूल गए हो कि तुम कौन हो? क्या यह ठीक वैसा ही नहीं है जैसा कि प्रधान स्वर्गदूत ने पद मिलने के बाद परमेश्वर की बराबरी का दर्जा पाना चाहा था? ऐसा करने वाले व्यक्ति ने कितनी गलतियाँ कीं? पहली यह कि उसने कलीसिया की संपत्ति को इस तरह आवंटित किया जैसे कि वह उसकी अपनी निजी संपत्ति हो; दूसरी यह कि उसने मेरे लिए चीजें खरीदने के बारे में फैसला लेने का काम अपने ऊपर ले लिया; तीसरी यह कि खुद यह फैसला करने के बाद उसने ऊपरवाले को इसकी जानकारी नहीं दी, न ही उससे पूछा और न ही उसे बताया। इनमें से हर एक गलती अपने आप में काफी गंभीर थी। ऐसा लग रहा था कि यह मसीह-विरोधी वहाँ काफी सुचारु रूप से काम कर रहा था। जैसे ही वह आदेश देता, उसके चाकर उसके आदेशों का पालन अच्छी तरह से करते थे। उन्होंने यह पूछने की जहमत भी नहीं उठाई : “हम इस वस्तु को खरीदने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहे हैं—क्या परमेश्वर ने इसका आदेश दिया था? क्या इस तरह से पैसे का इस्तेमाल किया जा सकता है? क्या यह उचित होगा? वास्तव में इसका आदेश किसने दिया?” उन चाकरों ने ये बातें भी नहीं पूछीं। क्या उन्होंने कोई जिम्मेदारी ली? क्या उनमें कोई वफादारी थी? नहीं, उनमें कोई वफादारी नहीं थी, और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। यह किसी व्यक्ति द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार और बिना किसी सिद्धांत के चढ़ावे का उपयोग करने का एक पुराना उदाहरण है। मेरी स्वीकृति के बिना परमेश्वर के लिए चीजें खरीदने के लिए परमेश्वर के चढ़ावे का इस्तेमाल करना : ऐसा करना एक गंभीर गलती करना है।

यहाँ एक और उदाहरण है, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग सुनो कि इन लोगों ने क्या किया और देखो कि क्या यह तुम्हें नागवार लगता है। कलीसिया की सभाओं के दौरान मैं जिस कुर्सी पर बैठा था वह बहुत मुलायम थी और जब मैं उस पर बैठा तो उसमें काफी धँस गया। मेज भी इतनी ऊँची थी कि मुझे अपनी पीठ सीधी रखनी पड़ती थी और लंबे समय तक इस तरह बैठने से मैं थक जाता था। इसलिए मैंने उनसे ऐसी कुर्सी खरीदने के लिए कहा जो थोड़ी ऊँची हो और जिसकी सीट थोड़ी कम मुलायम हो। क्या यह ऐसा काम नहीं है जो करना आसान होना चाहिए? (हाँ, यह आसान है।) यह वास्तव में बहुत ही सरल मामला है। सबसे पहले उन्हें उस कुर्सी की ऊँचाई मापनी थी जिस पर मैं उस समय बैठा था, फिर एक ऐसी कुर्सी तलाश करनी थी जो दो इंच या शायद उससे थोड़ी अधिक ऊँची हो, उसके बाद उन्हें यह जाँचना था कि सीट कितनी मुलायम है और एक ऐसी कुर्सी तलाश करनी थी जो थोड़ी सख्त हो। सबसे पहले वे दुकानों में पता कर सकते थे और अगर उन्हें कुछ उपयुक्त नहीं मिलता तो वे फिर ऑनलाइन खोज सकते थे। क्या यह ऐसी चीज नहीं है जिसका आसानी से समाधान किया जा सकता है? क्या इसमें कोई मुश्किल पेश आती है? किसी चीज को खरीदने के लिए पैसे खर्च करना कोई चुनौती नहीं होती और इसके अलावा अगर कई लोग एक साथ विचार करते हैं तो उस कार्य का प्रबंधन करना आसान होना चाहिए। तो कुछ समय बाद मैं उस कलीसिया में एक और सभा में गया और उनसे पूछा कि क्या वे गए थे और क्या उन्होंने नई कुर्सी खरीदी। उन्होंने कहा, “हमने देखा, लेकिन हमें कुछ भी वास्तव में उपयुक्त नहीं मिला और हमें नहीं पता था कि तुम्हें किस तरह की कुर्सी चाहिए।” यह सुनकर मुझे झटका लगा। मैंने सोचा, “मुझे तो लगता है, यहाँ कई तरह की दुकानें हैं जिनमें सभी प्रकार की गुणवत्ता वाली चीजें बिकती हैं, इसलिए कुर्सी खरीदना इतना मुश्किल नहीं होना चाहिए। मैं बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं कर रहा हूँ।” लेकिन खरीद के प्रभारी व्यक्ति ने कहा, “इसे खरीदना आसान नहीं है; तुम जिस ब्योरे के साथ चाहते हो वैसी एक भी कुर्सी बिक्री के लिए नहीं है। हो सके तो तुम पहले से मौजूद किसी कुर्सी से ही काम चला लो।” मैंने मन ही मन सोचा, “ठीक है, अगर तुमने इसे नहीं खरीदा तो कोई बात नहीं, इससे कुछ पैसे ही बचेंगे तो मैं अभी इसी से काम चला लूँगा।” कुछ समय बीतने के बाद मैं दूसरी जगह गया, जहाँ कई अच्छी कुर्सियाँ थीं, जिन पर बैठना आरामदायक था और कोई एक नजर में बता सकता था कि वे पुराने जमाने की कुर्सियाँ थीं और अच्छी गुणवत्ता की थीं। इसलिए मैंने एक तस्वीर ली और उनसे कुर्सी खरीदने के लिए इसे गाइड के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कहा, इसके रंग के बारे में कोई प्राथमिकता नहीं बताई और मैंने उनसे कहा कि अगर दुकानों में ऐसी कोई कुर्सी नहीं है तो ऑनलाइन देखो। मैंने यह भी बताया कि उन्हें कार्यालयों के लिए सामान आपूर्ति करने वाली जगहों पर जाना चाहिए। बाद में उन्होंने यह उत्तर दिया : “हमने ऑनलाइन खोज की, लेकिन कुछ नहीं मिला। सभी निर्माताओं ने कहा कि यह पुराना मॉडल है और इन दिनों कोई भी इस शैली की कुर्सियाँ नहीं बनाता, इसलिए हम एक भी नहीं खरीद पाए।” यह सुनकर मुझे एक और झटका लगा और मैंने सोचा, “ये लोग चीजों को सँभालने के मामले में वाकई बहुत खराब हैं और इन पर वास्तव में भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्हें सिर्फ इतना-सा काम सौंपा गया था और दो बार उन्होंने कहा कि वे वह नहीं खरीद पाए जो मैं चाहता था और मुझे मना कर दिया।” मैंने उनसे कहा कि खोजते रहो और देखो कि क्या किसी अन्य वेबसाइट पर कोई उपलब्ध है। इस बीच प्रतीक्षा करने के दौरान मुझे अचानक कलीसिया के एक भंडार में एक कुर्सी मिल गई। यह कुर्सी जो गुलाबी फूलों की आकृति से ढके फोम के कुशन से सुसज्जित थी, पूरी तरह से तैयार नहीं थी। इसकी पीठ बिल्कुल सीधी थी, हत्थे बिल्कुल सीधे थे, पैर बिल्कुल सीधे थे और सीट बिल्कुल सीधी थी। कुर्सी का हर हिस्सा सीधा था; इसके सभी कोण समकोण और कोने चौकोर थे। मैंने कहा, “क्या किसी ने यह कुर्सी खुद बनाई है?” एक व्यक्ति ने जल्दी से आगे बढ़कर उत्तर दिया, “क्या तुम्हें कुर्सी की जरूरत नहीं थी? हमने यह तुम्हारे लिए ही बनाई है और हम तुम्हें इसके बारे में बताने और तुमसे इसे आजमाने के लिए कहने ही वाले थे।” वे जरूरत से ज्यादा दयालु बन रहे थे, इसलिए मैंने सोचा : “जरूर, मैं इसे आजमाकर देखूँगा।” मैंने खुद को कुर्सी पर मजबूती से बिठा लिया, मुझे बहुत बेचैनी महसूस हुई, मानो मैं किसी पत्थर पर बैठा हूँ, क्योंकि कुशन में लगा फोम बहुत सख्त था। “कोई बात नहीं,” मेरे बगल में खड़े व्यक्ति ने कहा, “इसे थोड़ा मुलायम बनाया जा सकता है। अभी यह काम पूरा नहीं हुआ है। हम इसे बेहतर बनाएँगे और तुम इसे फिर से आजमा सकते हो।” इसकी फिर से परख करूँ? लकड़ी के छोटे स्टूल पर बैठना उस कुर्सी पर बैठने से बेहतर होता; कम से कम ऐसा तो नहीं लगेगा कि मैं किसी पत्थर पर बैठा हूँ। मैंने कहा, “नहीं, यह नहीं चलेगी। अगर तुम लोग खोज सकते हो तो खोजते रहो। अगर तुम्हें कुछ नहीं मिलता तो बस इसे भूल जाओ।” इसलिए मैंने उन्हें खोजते रहने को कहा। कुर्सी बनाने वाले लोगों को शायद समझ नहीं आया। उन्होंने सोचा होगा, “हमने तुम पर बहुत दया दिखाई है, सामग्री, शैली और आकार का चयन किया है और तुम्हारे लिए तुम्हारे हिसाब से कुर्सी निर्मित की है। तुम इस दयालुता के कार्य की सराहना क्यों नहीं करते? और इसके बजाय तुम कहते हो कि ऐसा लगता है कि तुम पत्थर पर बैठे हो, कि यह सख्त है। तुम इतने नकचढ़े क्यों हो? हम तुम्हारे लिए जो कुछ भी बनाते हैं, तुम्हें बस उसका उपयोग करना चाहिए, कहानी खत्म। लेकिन तुम्हें देखो, इसके बजाय अभी भी कुर्सी खरीदना चाहते हो। हमने तुम्हें कई बार कहा कि तुम जिस शैली की कुर्सी चाहते हो वह कहीं नहीं मिलती, लेकिन तुम आग्रह करते रहते हो कि हम वैसी ही कुर्सी खरीदें। क्या इसमें पैसे खर्च नहीं होंगे? थोड़े पैसे बच जाएँगे तो क्या बुरा है? कुर्सी बनाना बहुत ज्यादा किफायती होता है; सामग्री की ज्यादा कीमत नहीं होती। जो कुछ भी हम खुद बना सकते हैं, उसे खरीदने के बजाय खुद हमें ही बना लेना चाहिए। तुम्हें यह कैसे नहीं पता कि किफायती होने का क्या मतलब है?” तुम लोग मुझे बताओ, क्या मेरे लिए उस कुर्सी का इस्तेमाल करना बेहतर होगा या नहीं? (तुम्हारे लिए इस्तेमाल न करना ही बेहतर होगा।) जब उन्होंने देख लिया कि मैं उनकी बनाई कुर्सी का इस्तेमाल नहीं करूँगा तो उन्होंने उसे एक तरफ फेंक दिया और उनमें से किसी ने भी उसका इस्तेमाल नहीं किया। मुझे बताओ, अगर मैंने उसका इस्तेमाल नहीं किया तो क्या मैंने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई? (नहीं, तुमने ऐसा नहीं किया।) अपने इतने वर्षों में मैं कभी भी इतनी सख्त गद्दे वाली कुर्सी पर नहीं बैठा हूँ—यह भी एक अच्छा-खासा अनुभव था। इन लोगों ने मुझ पर ऐसी महान “दया” दिखाई। कुछ समय बाद न जाने किन अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण मेरे लिए असल में एक कुर्सी खरीदी गई तो लोगों ने आखिरकार मुझ पर कुछ “दया” दिखा ही दी। यह पहली बार था जब मैंने उनसे अपने लिए कुछ खरीदने को कहा था और उन्होंने सीधे मुझसे यह सुना था और जिस तरह से उन्होंने इस काम को सँभाला, वह बहुत ही घृणित था। मेरे लिए एक कुर्सी खरीदना बहुत कठिन और कष्टसाध्य रहा, हर चीज उनसे पूछनी पड़ती थी और उनसे चर्चा करनी पड़ती थी, और इसके अलावा मुझे उनके मूड के बारे में भी जागरूक रहना पड़ता था। अगर वे अच्छे मूड में होते तो वे मेरे लिए इसे खरीद पाते और अगर नहीं होते तो शायद नहीं खरीद पाते और फिर मैं उसका उपयोग नहीं कर पाता। “तुम आरामदायक कुर्सी का उपयोग करना चाहते हो, लेकिन हमने अभी तक ऐसा नहीं किया है तो सपने देखते रहो। बस इसे उपयोग कर लो जो बढ़ई ने बनाई है। जब हमारे पास उपयोग करने के लिए आरामदायक कुर्सियाँ होंगी तो तुम भी उनका उपयोग कर पाओगे।” क्या ये लोग बिल्कुल इसी तरह के नहीं हैं? वे किस तरह के लोग हैं? क्या वे नीच चरित्र के लोग नहीं हैं? मैं उनसे कुछ खरीदने के लिए बस कुछ भेंटें खर्च करने को कह रहा था, उन्हें बस अपने हाथ और आँखें हिलानी थीं, लेकिन उनसे यह काम करवाना बहुत मुश्किल था, बहुत तकलीफदेह था। अगर उनसे अपना पैसा खर्च करने के लिए कहा जाता तो क्या होता? शुरुआत में मैंने यह नहीं कहा था कि किसका पैसा खर्च किया जाएगा—क्या उन्हें लगा था कि मेरा मतलब है कि वे अपना पैसा खर्च करें और परिणामस्वरूप वे इतने डर गए कि उन्होंने खरीदारी करने से ही इनकार कर दिया? क्या यह एक कारण हो सकता है? जब मैं तुमसे कुछ खरीदने के लिए कह रहा हूँ तो मैं तुम्हें अपना पैसा खर्च करने के लिए कैसे कह सकता हूँ? अगर कलीसिया के पास पैसे हैं तो जाओ और जाकर खरीदारी करो और अगर नहीं हैं तो मत करो। किसी भी तरह मैं तुम्हें अपना पैसा खर्च करने के लिए मजबूर नहीं करूँगा। तो फिर उन्हें यह छोटा-सा काम करने के लिए इतना प्रयास क्यों करना पड़ा? इन लोगों में कोई मानवता नहीं है! जब वे कोई काम करने की कोशिश नहीं कर रहे होते और मैं उनसे बातचीत नहीं कर रहा होता हूँ तो ऐसा लगता है कि वे दयालु और समझदार हैं, लेकिन जब वे कोई काम करना शुरू करते हैं तो यह दयालुता और सूझ-बूझ गायब हो जाती है। ये लोग भ्रमित हैं! मैं उनके साथ कैसे निभा सकता हूँ?

यहाँ एक और उदाहरण है जो भेंटों के विषय से संबंधित है। एक छोटे-से रसोईघर वाली जगह है जिसमें आम इस्तेमाल के लिए खाना पकाने के और खाना खाने के सभी बर्तन रखे हैं और कभी-कभी सर्दियों में वहाँ के लोगों को फ्लू हो ही जाता है। मैंने उनसे कहा कि वे खाना पकाने के बर्तनों और सभी सार्वजनिक खान-पान के बर्तनों को रोगाणुमुक्त रखने के लिए एक कीटाणुरहित अलमारी या ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लें। यह सुरक्षित और स्वच्छ रहेगा। क्या यह कोई बड़ी माँग थी? (नहीं, यह बड़ी माँग नहीं थी।) मैंने यह काम किसी को सौंपा और कुछ ही समय बाद मैंने सुना कि एक ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लिया गया है। मेरी चिंताएँ दूर हो गईं और उसके बाद मैंने इस मामले पर और ध्यान नहीं दिया। लेकिन पता चला कि कुछ गड़बड़ हुई थी। इस व्यक्ति ने जो मशीन खरीदी थी, वह आखिरकार ओजोन कीटाणुनाशक नहीं, बल्कि पानी सुखाने की एक मशीन थी। यह एक गलत खरीद थी और इसके अलावा इसकी गुणवत्ता असाधारण रूप से खराब थी, इसमें रोगाणुमुक्त करने की कोई क्षमता नहीं थी। क्या यह काम सँभालने वाले व्यक्ति को इस बात का पता था? (उसे पता होना चाहिए था।) लेकिन इस बदमाश को शायद पता नहीं था। ऐसा क्यों है? जिस व्यक्ति को मैंने यह काम सौंपा था वह इसे खुद करने नहीं गया था, बल्कि उसने इसे करने के लिए एक बिचौलिया ढूँढ़ लिया था और इसलिए उसे बिल्कुल पता नहीं था कि कौन-सी वस्तु खरीदी गई है या उसकी गुणवत्ता अच्छी है या खराब। इस मामले को जिस तरह से सँभाला गया, उसके बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या इसे निष्ठापूर्वक किया गया था या नहीं? क्या इस व्यक्ति की कोई विश्वसनीयता थी? क्या वह इस योग्य था कि उस पर भरोसा किया जाए? (नहीं, वह नहीं था।) यह किस तरह का व्यक्ति था? क्या इस व्यक्ति में सत्यनिष्ठा या मानवता थी? (नहीं।) यह एक भ्रमित व्यक्ति था, एक सरासर बदमाश था। और कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इसके तुरंत बाद इस कार्य के प्रभारी व्यक्ति ने विचार करना शुरू किया : “चीजों को रोगाणुमुक्त करने के लिए ओजोन कीटाणुनाशक का उपयोग करना बहुत अच्छा है। चूँकि हमारे भोजन कक्षों का उपयोग बहुत से लोग करते हैं, इसलिए शायद हमें वहाँ के लिए भी ओजोन कीटाणुनाशक खरीदना चाहिए। तुमने एक खरीदा है, इसलिए हम भी कुछ खरीदेंगे। तुमने अपने छोटे रसोईघर के लिए छोटा लिया है, तो हम अपने बड़े भोजन कक्ष के लिए एक बड़ा लेंगे।” एक बार जब उसके मन में यह विचार आया तो उसने कई दूसरे बदमाशों के साथ इस पर चर्चा की और फिर यह तय कर लिया गया। और पता चला कि जब वे ओजोन कीटाणुनाशक खरीद लिए गए तो उसके बाद भाई-बहनों ने कहा कि चूँकि हर कोई मेज पर अपने स्वयं के बर्तनों का उपयोग करता है और कोई किसी भी बर्तन को साझा नहीं करता तो उन्हें रोगाणुमुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है और रोगाणुमुक्त करना अनावश्यक होगा। अंत में मशीनें बेकार पड़ी रहीं और अब भी उनमें से कुछ जैसे आई थीं वैसे ही बँधी हुई भंडारगृह में रखी हैं। इस मामले को जिस तरह से सँभाला गया, उसके बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? क्या इसे तर्कसंगत तरीके से किया गया था? क्या यह किसी ऐसे व्यक्ति का मामला नहीं था जिसके पास समय बहुत था लेकिन करने के लिए कुछ भी नहीं था, जो पैसे खर्च करने के लिए उल्टे-सीधे तरीके खोज रहा था? कुछ लोगों ने यह सोचकर कि इनकी खरीद करने का आदेश ऊपरवाले से आया था, यहाँ तक कहा, “बड़बड़ाओ मत! हमें इसे परमेश्वर से स्वीकार कर लेना चाहिए। परमेश्वर लोगों से इतना प्यार करता है कि वह हमारे लिए ऐसी चीजें भी खरीद देता है जिनका हमारे लिए कोई उपयोग नहीं है। वह हम पर बहुत बड़ी रकम खर्च करने को तैयार है। परमेश्वर हम पर बहुत मेहरबान है!” लेकिन अब वे जानते हैं कि ये खरीद बदमाशों के एक समूह की गुप्त कारगुजारियों का नतीजा थी। उन्होंने इस तरह से भेंटों को बरबाद कर दिया, किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली, किसी ने चीजों की जाँच नहीं की और किसी ने भी यह नहीं देखा कि ये खरीद उचित थीं भी या नहीं, या किसी ने भी खरीद के बाद इनकी रिपोर्ट नहीं की। इस व्यक्ति ने ये चीजें किस आधार पर खरीदीं? इस आधार पर कि मैंने उसे छोटे रसोईघर के लिए एक कीटाणुरहित अलमारी खरीदने के लिए कहा था। क्या मैंने उसे सभी भोजन कक्षों के लिए ऐसी मशीनें खरीदने के लिए कहा था? मैंने उसे ऐसा काम कभी नहीं सौंपा। तो फिर, सभी भोजन कक्षों के लिए ऐसी मशीनें खरीदने के पीछे उसका मकसद क्या था? क्या यह उसके द्वारा भेंटों को अपनी निजी संपत्ति मानना और उन्हें अपनी मर्जी से आवंटित करना नहीं है? क्या उसके पास उन्हें आवंटित करने का अधिकार था? (नहीं।) इन मशीनों को खरीदने से पहले उसने मुझसे कभी नहीं पूछा : “चूँकि हमने छोटे रसोईघर के लिए एक मशीन खरीदी है तो क्या हमें बड़े भोजन कक्ष के लिए भी ऐसी मशीनें खरीदनी चाहिए?” और उसने खरीदारी करने के बाद यह नहीं बताया कि उसने कितने ओजोन कीटाणुनाशक खरीदे हैं और उनकी कुल कीमत कितनी है, न ही उसने यह तथ्य बताया कि भाई-बहनों ने उनको बिल्कुल उपयोगी नहीं पाया। इस मामले को इस घृणित तरीके से सँभाला गया। और जब उस भ्रमित इंसान की काट-छाँट की गई तब भी वह उद्दंड बना रहा। इस तरह के व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? (उसे कलीसिया से निष्कासित कर देना चाहिए।) इस घटना की प्रकृति के मद्देनजर उसे कलीसिया से निष्कासित कर देना अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यह ऐसा मामला है जो भेंटों से जुड़ा है और भेंटों से जुड़े होने के कारण उसने प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन किया है। यह लापरवाही से काम करना था! क्या उसने सोचा कि यह पैसा खुद का है? क्या उसके पास इसे इस्तेमाल करने और बरबाद करने का अधिकार था? मैंने अपने लिए जिस खरीदारी का जिम्मा लोगों को सौंपा था, उसमें उन्होंने सभी तरह की मुश्किलें खड़ी कर दी थीं और उनके लिए यह काम पूरा करना बहुत बड़ा संघर्ष बन गया था और इसके अलावा मुझे उनके साथ इस बारे में हर चीज पर चर्चा करनी पड़ी। लेकिन जब उन चीजों की बात आई जिन्हें करने और खरीदने का काम मैंने लोगों को नहीं सौंपा था, उन्होंने बिना पलक झपकाए ही वे चीजें खरीद लीं, न कभी कोई योजना बनाई, न कभी बहुमत से सलाह ली कि वे वस्तुएँ उपयोगी होंगी भी या नहीं—उन्होंने बस अपनी मर्जी चलाकर पैसे बरबाद कर दिए। कुछ समय पहले कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ लोगों को छह महीने से लेकर एक साल तक की खाद्य-सामग्री खरीदने के लिए कहा गया था, इस डर से कि खाने के लिए पर्याप्त खाद्य-सामग्री उपलब्ध नहीं होगी। इस मामले को उन्हें संक्षिप्त और सरल तरीके से समझाया गया था और एक सप्ताह के भीतर उन्होंने यह कहते हुए रिपोर्ट दी कि उन्होंने तीन दिनों में अपनी खरीदारी पूरी कर ली है, उन्होंने जैविक उत्पाद खरीदे हैं और ऐसी चीजें भी खरीदी हैं जो शीघ्र ही जैविक उत्पाद के रूप में प्रमाणित होने वाली हैं। उन्होंने कैसा काम किया था? क्या उन्होंने बहुत बढ़िया काम नहीं किया था? मुझे कुछ और कहने की जरूरत नहीं थी, मामला सँभाला जा चुका था। उन्होंने अपने लिए इस कार्य को प्रसन्नतापूर्वक तत्परता से सँभाला था और वे विशेष रूप से कुशल, तेज, चतुर और विचारशील निकले। उन्होंने न केवल अपनी जरूरत की खाद्य-सामग्री खरीदी थी, बल्कि दैनिक जरूरत की चीजें भी खरीदी थीं। उन दैनिक आवश्यकताओं में वह सब कुछ शामिल था जो उन्हें चाहिए था, वे वह सब कुछ खरीद सके जिसकी तुम कल्पना कर सकते हो, यहाँ तक कि मिठाई, खरबूजे के बीज और अन्य जलपान की चीजें भी। मैंने सोचा कि ये लोग वास्तव में जीना जानते थे; वे पैसे खर्च करना जानते थे और वे पैसे खर्च करने की हिम्मत भी रखते थे। वे बहुत सक्षम थे, उनमें जंगली जानवरों से भी अधिक जीवित रहने की बहुत उम्दा क्षमता थी और उन्होंने मेरी उम्मीदों से भी ज्यादा फुर्ती से इस काम को अंजाम दिया। जीवित रहने के लिए वे किसी भी असंभव और कठिन कार्य को करने में सक्षम थे—ऐसा कुछ भी नहीं था जो वे नहीं कर सकते थे। इस घटना से मैंने देखा कि ये लोग पूरी तरह से बुद्धिहीन नहीं थे या काम पूरा करने में पूरी तरह से असमर्थ नहीं थे, लेकिन यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता था कि वे किसके लिए काम सँभाल रहे थे। अगर वे अपने लिए काम सँभाल रहे होते थे तो वे विशेष रूप से सक्रिय, चतुर, फुर्तीले और कुशल लगते थे—उन्हें किसी के कहने की जरूरत नहीं होती थी और मुझे उनके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन जब वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य निभा रहे होते थे तो उन्हें कोई भी काम सँभालना मुश्किल लगता था, वे कभी भी सिद्धांतों का पता नहीं लगा पाते थे और हमेशा गड़बड़ कर देते थे। ऐसा लगता है कि इसके पीछे एक कारण था और उनके द्वारा अपने लिए काम करने और परमेश्वर के घर के लिए काम करने में बहुत बड़ा अंतर था। फिलहाल आओ इस बारे में बात नहीं करते कि इन लोगों में किस तरह का स्वभाव या सार था। इन लोगों द्वारा चीजें सँभालने के प्रति दोगले दृष्टिकोण रखने से पता चलता है कि उनका चरित्र सचमुच नीच था। उनका चरित्र ठीक कितना नीच था? मैं इसे तुम लोगों के लिए परिभाषित कर देता हूँ, ये लोग इंसान नहीं थे, वे बस जानवरों का एक झुंड थे! क्या यह परिभाषा उन पर फिट बैठती है? (हाँ, यह फिट बैठती है।) ये शब्द पचाने में कठिन लग सकते हैं और उन्हें सुनना परेशान करने वाला हो सकता है, लेकिन यह ठीक वही तरीका है जिससे ये लोग कार्यों को सँभालते हैं, और ये लोग इसी तरह की चीज हैं। मैं जो कहता हूँ वह तथ्यों पर आधारित है और यह निराधार बदनामी नहीं है। जब परमेश्वर का घर कुछ लोगों का उपयोग कर रहा होता है, इस तथ्य को देखते हुए कि वे युवा हैं, कुछ हद तक काबिलियत में कमजोर हैं और उनकी नींव और आध्यात्मिक कद में कमी है, वह लगातार उनकी मदद करेगा और उनके साथ सत्य और सिद्धांतों पर संगति करेगा। लेकिन अंत में खराब चरित्र सिर्फ खराब चरित्र होता है, जानवर सिर्फ जानवर होता है और ये लोग कभी नहीं बदलने वाले। न केवल वे सत्य को अभ्यास में नहीं लाएँगे, बल्कि वे बद से बदतर होते चले जाएँगे, उँगली पकड़ाने पर हाथ पकड़ लेंगे और उनमें जरा-सी भी शर्म की भावना नहीं होगी जो सामान्य मानवता का हिस्सा होती है। जब वे कुछ खरीदते हैं या परमेश्वर के घर के लिए कोई कार्य करते हैं तो वे कभी भी इस बारे में सलाह नहीं माँगते कि इन चीजों को सस्ते में कैसे खरीदा जाए और पैसे कैसे बचाए जाएँ और साथ ही कुछ व्यावहारिक भी प्राप्त कर लिया जाए। वे ऐसा कभी नहीं करते। वे बस अंधाधुंध पैसे खर्च कर डालते हैं, लापरवाही से चीजें खरीदते हैं और बस कुछ बेकार उत्पाद खरीद लेते हैं। लेकिन जब कोई कार्य पूरा करने या व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए कुछ खरीदने का समय आता है तो वे इसे गंभीरता से लेना शुरू कर देते हैं और लागतों में कटौती करने, और अधिक काम करते हुए कम खर्च करने के बारे में सोचना शुरू करते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह से काम करना सिद्धांतों पर टिके रहना और सत्य का अभ्यास करना होता है। क्या इन लोगों में जरा भी समझ है? यह किसका पैसा है और इसे किस पर खर्च किया जाना चाहिए—ये चीजें उन्हें समझ में ही नहीं आतीं। क्या यह किसी बदमाश की तरह चीजों को सँभालना नहीं है? क्या तुम लोगों के आस-पास भी ऐसे लोग हैं? वे सभी लोग जो कलीसिया के लिए मूल्यवान या महँगी चीजें खरीदते समय वित्त कर्मचारी या उन भाई-बहनों से चर्चा नहीं करते जिनके साथ वे कार्य करते हैं, जो बस आगे बढ़कर मनमाने ढंग से भेंटों को बरबाद करते हैं, जो जानते हैं कि जब वे अपना पैसा खर्च कर रहे होते हैं तो उन्हें पैसे बचाने चाहिए और अपने खर्चों का बजट बनाना चाहिए, लेकिन जब वे परमेश्वर की भेंटों को खर्च कर रहे होते हैं तो मनमाने ढंग से पैसे बरबाद करते हैं—इस तरह के लोग बहुत ही घृणित होते हैं! वे बहुत ही घिनौने हैं! है ना? (हाँ।) जब भी मैं उनके बारे में सोचता हूँ तो मुझे ऐसी चीजों से घिन आती है। ये जानवर पहरेदार कुत्तों से भी घटिया हैं। क्या वे परमेश्वर के घर में रहने के लायक हैं?

एक समय एक अगुआ था जो अलग-अलग जगहों पर भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित की गई सभी वस्तुओं को अपनी “सुरक्षा” में ले लेता था, जिसमें कीमती वस्तुएँ, साधारण कपड़े, स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पाद, इत्यादि शामिल होते थे। उसकी पीठ पर ब्रांड वाले बैग, पैरों में चमड़े के जूते, उँगलियों में अंगूठियाँ, गले में हार, इत्यादि होते थे—वह जो कुछ भी इस्तेमाल कर सकता था, उसे अपने कब्जे में ले लेता था और किसी की सहमति के बिना उसका इस्तेमाल करता था। एक दिन ऊपरवाले भाई ने उससे पूछा कि अलग-अलग जगहों पर भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित की गई सभी वस्तुएँ क्यों नहीं सौंपी गई हैं। उसने उत्तर दिया : “भाई-बहनों ने कहा कि ये चीजें कलीसिया को दी जा रही हैं, उन्होंने यह नहीं कहा कि उन्हें परमेश्वर को अर्पित किया जा रहा है।” उसने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि वे कलीसिया को दी गई थीं, जिससे उसका अव्यक्त निहितार्थ यह था कि चूँकि वह स्वयं कलीसिया का पूर्ण प्रतिनिधि था, इसलिए परमेश्वर को इन चीजों पर अपना हाथ रखने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, वे परमेश्वर के उपयोग के लिए नहीं बल्कि कलीसिया के उपयोग के लिए हैं। इसे और अधिक ठोस शब्दों में कहें तो उसका मतलब था : “ये चीजें मेरे इस्तेमाल के लिए हैं, इन्हें परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए नहीं चढ़ाया गया है। तुम क्या माँग रहे हो? क्या तुम इसे माँगने के योग्य हो?” क्या यह सुनकर तुम लोगों को गुस्सा आता है? (हाँ, आता है।) यह सुनकर कोई भी गुस्सा हो सकता है। मुझे बताओ, क्या कोई ऐसा है जो मानता है कि भाई-बहन जो चीजें कलीसिया को देते हैं वे कलीसिया के अगुआओं को भेंट की जा रही हैं? क्या कोई ऐसा है जो कहता है कि कलीसिया को चीजें भेंट करते समय वह उन्हें कलीसिया के अमुक अगुआ को दे रहा है? क्या किसी का ऐसा इरादा है? (नहीं।) जब तक वे भेंट देते समय यह नहीं लिखते, “कृपया इसे अमुक को भेजें”—केवल तभी वह वस्तु उस अगुआ के निजी कब्जे में आती है, अन्यथा, जो भी चीजें चढ़ाई जाती हैं, चाहे वे पैसे हों या वस्तुएँ, भाई-बहन परमेश्वर को ही दे रहे होते हैं। परमेश्वर को चढ़ाई गई चीजों को सामूहिक रूप से भेंटें कहा जाता है। एक बार जब उन्हें भेंट के रूप में नामित कर दिया जाता है तो वे परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए होती हैं। जब वे परमेश्वर के इस्तेमाल के लिए होती हैं तो परमेश्वर उनका इस्तेमाल कैसे करता है? परमेश्वर इन चीजों को कैसे आवंटित करता है? (वह उन्हें कलीसिया को उसके काम में इस्तेमाल करने के लिए देता है।) यह सही है। कलीसिया के काम में उनके इस्तेमाल के लिए सिद्धांत और विशिष्ट विवरण हैं, जिसमें कलीसिया में सारे समय अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वालों के लिए रहने का खर्च और कलीसिया के काम के विभिन्न खर्च शामिल हैं। परमेश्वर के देहधारण की अवधि के दौरान इस उपयोग में ये दो मदें शामिल होती हैं : मसीह के दैनिक खर्च और कलीसिया के काम की सभी लागतें। अब इन दो मदों में क्या कोई ऐसी मद है जिसमें कहा गया हो कि भेंटों को व्यक्तिगत वेतनों, पुरस्कारों, खर्चों और पारिश्रमिक में बदला जा सकता है? (नहीं, ऐसी कोई मद नहीं है।) भेंटें किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं होतीं। भेंटों के इस्तेमाल और आवंटन की व्यवस्था परमेश्वर के घर द्वारा की जानी चाहिए और उनका इस्तेमाल मुख्य रूप से कलीसिया के काम में किया जाता है : इसमें यह शामिल नहीं है कि जो कोई भी कलीसिया का अगुआ है उसे भेंटों को अपने कब्जे में लेने या उसका इस्तेमाल करने का अधिकार होगा। तो फिर उनका इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए? इन भेंटों को कलीसिया की संपत्ति के इस्तेमाल को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों के अनुसार आवंटित किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो क्या यह शर्मनाक नहीं है कि मसीह-विरोधी हमेशा भेंटों पर अपने कब्जे और इस्तेमाल को प्राथमिकता देना चाहते हैं? मसीह-विरोधी हमेशा सोचते हैं कि भाई-बहनों द्वारा चढ़ाए गए पैसे और वस्तुएँ अगुआ के पद पर रहने वाले व्यक्ति की हैं। क्या यह सोचने का बेशर्म तरीका नहीं है? (हाँ, है।) यह बेहद बेशर्मी है! न केवल मसीह-विरोधी अपने स्वभाव में दुष्ट और क्रूर होते हैं, बल्कि उनका चरित्र भी नीच और घटिया होता है, जिसमें शर्म की कोई भावना नहीं होती।

इन विषयों पर संगति करने और इन मामलों पर बात करने से वे सत्य स्पष्ट हो जाएँगे जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और अभ्यास में लाना चाहिए। लेकिन, अगर हम इन चीजों पर संगति नहीं करते तो कुछ सत्यों के बारे में लोगों की समझ हमेशा शाब्दिक और सैद्धांतिक स्तर पर ही रुकी रहेगी और अपेक्षाकृत खोखली रहेगी। अगर हम सत्य पर अपनी संगति में कुछ वास्तविक मामलों को शामिल करते हैं तो लोगों के लिए चीजों को समझना बहुत आसान हो जाएगा और सत्य के बारे में उनकी समझ अधिक ठोस और व्यावहारिक होगी। इसलिए इन चीजों पर संगति करने का उद्देश्य किसी को बदनाम करना या उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाना बिल्कुल नहीं है। ये ऐसी चीजें हैं जो वास्तव में हो चुकी हैं और इसके अलावा ये उस विषय से जुड़ी हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं। इसलिए, कुछ लोग जीवित शिक्षण सामग्री बन गए हैं, और विशिष्ट उदाहरणों में पात्र और चरित्र बन गए हैं जिन पर हम संगति कर रहे हैं और जिनका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। यह बहुत सामान्य बात है। परिभाषा के अनुसार, सत्य उन शब्दों, विचारों, दृष्टिकोणों, क्रियाकलापों और स्वभावों से जुड़ा हुआ होता है जो मानव जीवन के दौरान प्रकट होते हैं। अगर हम सत्य के शाब्दिक अर्थ पर ही संगति और उसकी व्याख्या करते रहे, सत्य को वास्तविक जीवन से अलग करते रहे तो लोग सत्य की सच्ची समझ कब प्राप्त करेंगे? इस तरह से काम करने से लोगों के लिए सत्य को समझना और भी मुश्किल हो जाएगा और लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में कठिनाई होगी। संगति और गहन-विश्लेषण के लिए कुछ विशिष्ट उदाहरण सामने लाने से लोगों को सत्य, वे सिद्धांत जिन्हें उन्हें अभ्यास में लाना चाहिए, परमेश्वर के इरादे और जिस मार्ग का उन्हें अनुसरण करना चाहिए वह मार्ग, समझने में सुविधा होगी। चाहे जो भी हो, इस कारण से यह तरीका लोगों के लिए उपयुक्त और लाभदायक दोनों है। अगर ये मामले सत्य या मसीह-विरोधियों के स्वभाव को नहीं छूते जिनका हम गहन-विश्लेषण कर रहे हैं तो मैं उनके बारे में बात करने के लिए तैयार नहीं होता। लेकिन जिन लोगों ने ये काम किए उनके स्वभाव और सार उस विषय को जरूर छूते हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं, इसलिए हमें जब भी आवश्यक हो उन पर संगति करनी चाहिए। इस पर संगति करने का उद्देश्य लोगों को दबाना या उन्हें कष्ट देना नहीं है, न ही उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करना है; बल्कि इसका उद्देश्य मनुष्यों के स्वभाव और सार का गहन-विश्लेषण करना है, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है मनुष्यों के भीतर मसीह-विरोधियों के स्वभाव का गहन-विश्लेषण करना। जब भी हमारी संगति इन विषयों पर होती है तो यदि तुम लोगों के दिमाग में बस यही आता है कि फलाँ-फलाँ व्यक्ति ने अमुक-अमुक काम किया है और तुम यह सोचने में विफल रहते हो कि यह सत्य और लोगों के भ्रष्ट स्वभाव से कैसे संबंधित है तो क्या इससे यह साबित होता है कि तुमने सत्य समझ लिया है? (नहीं।) यदि तुम लोगों को केवल एक मामला या एक विशेष व्यक्ति याद है और उस व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में झुकाव, राय और पूर्वाग्रह उत्पन्न होते हैं तो क्या यह कहा जा सकता है कि तुम सत्य की समझ तक पहुँच गए हो? यह सत्य को समझना नहीं है। तो फिर किन परिस्थितियों में तुम्हें सत्य की समझ तक पहुँचा हुआ माना जा सकता है? लगभग हर बार जब हम मसीह-विरोधियों के सार की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं तो मैं विशिष्ट उदाहरणों के रूप में कई कहानियाँ सामने रखता हूँ और तुम लोगों के साथ यह संगति करता हूँ कि इन कहानियों में त्रुटियाँ कहाँ हैं और लोगों को किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम लोग इस तरह की संगति के बाद भी नहीं समझते तो इसका मतलब है कि तुम्हारी समझ में कोई समस्या है, तुम्हारी काबिलियत बहुत कम है और तुममें आध्यात्मिक समझ की कमी है। तो फिर किन परिस्थितियों में तुम्हें समझने की क्षमता रखने वाला, आध्यात्मिक समझ रखने वाला और उन उदाहरणों के भीतर सत्य को समझने वाला माना जा सकता है जिन पर हमने संगति की है? सबसे पहले, तुम्हें उन उदाहरणों से अपने आप की तुलना करने में सक्षम होना चाहिए जिन पर हम संगति कर रहे हैं और खुद को जानना चाहिए, यह देखने के लिए कि क्या तुम्हारे पास भी इस तरह का स्वभाव है, और क्या तुम भी ऐसी चीजें कर सकते थे यदि तुम्हारे पास रुतबा और अधिकार होता, और क्या तुम्हारे भी ऐसे विचार और राय हैं या तुम भी इस तरह का स्वभाव प्रकट करते हो। यह एक पहलू है। इसके अतिरिक्त, जिन उदाहरणों पर हम संगति कर रहे हैं उनमें तुम्हें उन सत्य सिद्धांतों की तलाश करनी चाहिए जिनका तुम्हें सकारात्मक तरीके से समझकर पालन करना चाहिए। इसका मतलब है कि तुम्हें वह मार्ग खोजना चाहिए जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना है, और जानना चाहिए कि इन परिस्थितियों में तुम्हें क्या रुख अपनाना चाहिए और किस तरह से अभ्यास करना चाहिए जो सही हो और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो। इसके अलावा, गहन-विश्लेषण के माध्यम से तुम्हें यह पहचानने में सक्षम होना चाहिए कि तुम्हारा स्वभाव मसीह-विरोधियों के समान ही है, उस संबंध को स्थापित करना और यह जानना चाहिए कि इसे हल कैसे किया जाए। इस तरह तुम सत्य की समझ तक पहुँच चुके होगे, तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे जिसमें आध्यात्मिक समझ होगी और जिसमें सत्य समझने की क्षमता होगी। अगर कहानी सुनने के बाद तुम्हें सारी बारीकियाँ, सारे कारण और प्रभाव याद रहते हैं और तुम उन पर व्याख्या करने में सक्षम होते हो, लेकिन तुम उन सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते जिनका लोगों को अभ्यास करना चाहिए और जिनमें प्रवेश करना चाहिए, और जब किसी परिस्थिति का सामना करना पड़े तो तुम नहीं जानते कि इन सत्यों को कैसे लागू किया जाए ताकि तुम लोगों और चीजों को समझ सको और खुद को जान सको तो इसका मतलब है कि तुममें समझने की क्षमता की कमी है। और जिस व्यक्ति में समझने की क्षमता की कमी होती है वह आध्यात्मिक समझ की कमी वाला व्यक्ति होता है।

मैं तुम्हें एक और उदाहरण देता हूँ। एक व्यक्ति था जिसे हाल ही में अगुआ के रूप में चुना गया था। इससे पहले कि वह काम के विभिन्न पहलुओं की वास्तविक स्थिति को सही तरह से समझ पाता और जान पाता, यानी इससे पहले कि वह काम के अलग-अलग पहलुओं में खुद को ठीक से झोंक पाता, उसने निजी पूछताछ करनी शुरू कर दी : “हमारी कलीसिया में परमेश्वर को चढ़ाई जाने वाली भेंटों को सुरक्षित रखने का काम किन लोगों का है? उनके नामों की सूची के साथ मुझे रिपोर्ट करो। साथ ही मुझे सभी खाता संख्याएँ और पासवर्ड बताओ। मैं जानना चाहता हूँ कि वहाँ कितना पैसा है।” उसने किसी भी काम में कोई दिलचस्पी नहीं ली। एक चीज जिसमें उसे सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी और जिसके बारे में वह सबसे अधिक दृढ़ता महसूस करता था, वह थी भेंटों को सुरक्षित रखने वाले लोगों के नाम, साथ ही खाता संख्याएँ और पासवर्ड। क्या कुछ गलत नहीं होने वाला था? वह भेंटों तक अपनी पहुँच बनाना चाहता था, है न? जब तुम लोग ऐसी किसी स्थिति का सामना करते हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? चूँकि वह अगुआ बन गया है तो क्या इसका मतलब यह है कि कलीसिया की संपत्ति उसे सौंप दी जानी चाहिए और यह कि उसके पास इसके बारे में जानने का अधिकार और इसे नियंत्रित करने की शक्ति होनी चाहिए? (नहीं, उसे यह जानकारी नहीं दी जानी चाहिए।) क्यों नहीं? यदि तुम उसे यह जानकारी नहीं देते तो क्या तुम अवज्ञाकारिता के दोषी नहीं होगे? (यह तथ्य कि उसने ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित कीं इस बात का प्रमाण है कि उसमें कुछ गड़बड़ है और इसलिए परमेश्वर को चढ़ाए जाने वाली भेंटों की सुरक्षा के लिए हम उसे यह जानकारी नहीं दे सकते।) यह सही है : चूँकि उसके साथ कुछ गड़बड़ है इसलिए तुम उसे यह जानकारी नहीं दे सकते। तुम लोगों का उत्तर साबित करता है कि मेरी पिछली संगति व्यर्थ नहीं गई है और तुम लोग इसे समझ गए हो। तुम उसे यह जानकारी क्यों नहीं दे सकते? एक अगुआ की जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य भेंटों पर अपना ध्यान केंद्रित करना या भेंटों से संबंधित किसी भी जानकारी को हासिल करने की कोशिश करना नहीं होते। ये एक अगुआ का कर्तव्य या जिम्मेदारियाँ नहीं हैं। हर जगह कलीसियाओं में भेंटों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए लोगों को नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, कलीसिया में भेंटों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम और सिद्धांत होते हैं। किसी के पास भेंटों के उपयोग को प्राथमिकता देने की शक्ति नहीं होती, भेंटों पर अपने कब्जे को प्राथमिकता देने की तो बात ही छोड़ दो। यह बिना किसी अपवाद के सभी पर लागू होता है। क्या यह तथ्य नहीं है? क्या यह सही नहीं है? (हाँ, यह सही है।) जब मसीह-विरोधी भेंटों पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना चाहते हैं तो यह अपने आप में ही गलत है। वे सोचते हैं कि अगुआओं के रूप में उन्हें भेंटों के उपयोग का स्वतंत्र रूप से आनंद लेने में सक्षम होना चाहिए : क्या यह सच है? यह धन परमेश्वर का है—वे इसका दुरुपयोग क्यों करते हैं? वे इसका उपयोग अपनी इच्छानुसार क्यों करते हैं? क्या वे ऐसा करने के योग्य हैं? क्या परमेश्वर भेंटों के इस तरह से उपयोग करने को लेकर उनसे सहमत है? क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे स्वीकार करेंगे? मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटों को जब्त करना और उन्हें बरबाद कर देना : यह उनके क्रूर स्वभाव से निर्धारित होता है, यह उन चीजों को देखने का एक तरीका है जो उनके लालच से उत्पन्न होती हैं और यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे परमेश्वर के वचन द्वारा निर्धारित किया गया है। यह मसीह-विरोधी हमेशा से सभी भेंटों पर नियंत्रण पाना चाहता था, साथ ही साथ उनके सुरक्षा प्रभारियों के बारे में सारी जानकारी, सभी खाता संख्याएँ और पासवर्ड जानना चाहता था। यह एक गंभीर समस्या है, है ना? क्या वह परमेश्वर की भेंटों के बारे में अंतर्निहित तथ्यों को जानना चाहता था और उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखना चाहता था, और फिर उन्हें इस तरह से आवंटित करना चाहता था जो कि उचित हो और जो उन्हें अक्षुण्ण रखे, किसी को मनमर्जी से और लापरवाही से खर्च करने की अनुमति नहीं देना चाहता था? क्या उसका ऐसा करने का मन था? क्या कोई उसके क्रियाकलापों से बता सकता है कि उसके अच्छे इरादे थे? (नहीं।) तो अगर कोई व्यक्ति वास्तव में भेंटों की लालसा नहीं रखता तो अगुआ के रूप में चुने जाने पर वह क्या करेगा? (वह सबसे पहले कलीसिया में काम के विभिन्न पहलुओं की प्रभावशीलता के बारे में पता लगाएगा, साथ ही यह पता लगाएगा कि भेंटों को कैसे सुरक्षित रखा जाता है और जिस स्थान पर उन्हें रखा जा रहा है वह सुरक्षित है या नहीं। लेकिन, वह खाता संख्याओं, पासवर्ड या रखी गई राशियों के बारे में पूछताछ नहीं करेगा।) ठीक है, लेकिन एक और बात है। जब किसी ऐसे व्यक्ति को जो वास्तव में भेंट का लालच नहीं करता, अगुआ के रूप में चुना जाता है तो वह जाँच करेगा कि जिस स्थान पर भेंटें रखी जा रही हैं वह सुरक्षित है या नहीं, साथ ही उन्हें सुरक्षित रखने के लिए नियुक्त लोग उपयुक्त और विश्वसनीय हैं या नहीं, क्या वे भेंटों का गबन करेंगे और क्या वे सिद्धांतों के अनुसार भेंटों को सुरक्षित रख रहे हैं। वह पहले इन बातों पर विचार करेगा। जहाँ तक भेंटों की मात्रा और पासवर्ड जैसी संवेदनशील जानकारियों की बात है, जो लोग लालची नहीं हैं—सभ्य और सम्माननीय लोग—इससे दूर रहेंगे। लेकिन लालची लोग इससे नहीं कतराएँगे, वे यह आड़ लेंगे : “मैं अगुआ हूँ। क्या मुझे काम के हर पहलू को नहीं सँभालना चाहिए? बाकी सब कुछ मुझे सौंप दिया गया है तो भेंटें क्यों नहीं?” उनके पास जो शक्ति है उसका उपयोग करके वे इस बहाने से कलीसिया के वित्तीय मामलों पर नियंत्रण करना चाहेंगे। यह एक समस्या है। वे अपना काम या अपनी जिम्मेदारियाँ ठीक से नहीं निभाएँगे, न ही वे सामान्य प्रक्रियाओं और सिद्धांतों के अनुसार कलीसिया के वित्तीय मामलों का प्रबंधन करेंगे। इसके बजाय, उनके पास उनके लिए अपनी ही योजनाएँ होंगी। कोई भी व्यक्ति जो सामान्य मनुष्य की तरह सोचने में सक्षम है इसे देख सकता है। जैसे ही इस अगुआ ने ऐसा करना शुरू किया, किसी ने इसकी सूचना दी और उसे रोक दिया गया। बाद में, उस व्यक्ति ने मुझे रिपोर्ट दी, पूछा कि क्या ऐसा करना सही था और मैंने कहा कि यह सही था। इसे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना कहते हैं; यह जानकारी ऐसे व्यक्ति को नहीं दी जा सकती। बिना कुछ काम किए पहले परमेश्वर के घर के पैसे को नियंत्रित करने की इच्छा करना—क्या यह कुछ हद तक बड़े लाल अजगर जैसा नहीं है? जब बड़ा लाल अजगर भाई-बहनों को गिरफ्तार करता है तो सबसे पहले वह उन्हें पीटता नहीं है, इस डर से कि वे बुरी तरह पीटे जाने के बाद स्पष्ट रूप से बोल नहीं पाएँगे—वह सबसे पहले पूछता है कि कलीसिया का पैसा कहाँ रखा जा रहा है, इसे कौन सुरक्षित रख रहा है और कितना पैसा है। उसके बाद ही वह पूछेगा कि कलीसिया के अगुआ कौन हैं। उसका उद्देश्य केवल धन हड़पना है। इस अगुआ ने जो किया और जो बड़ा लाल अजगर करता है, दोनों की प्रकृति एक जैसी है। उसने किसी भी काम की जाँच नहीं की या किसी और चीज की चिंता नहीं की और उसने केवल वित्तीय मामलों पर ध्यान दिया—क्या यह नीच होना नहीं है? इस नीच व्यक्ति के क्रियाकलाप कितने स्पष्ट थे! अपना रुतबा सुरक्षित होने से पहले ही वह धन हड़पना चाहता था। क्या वह बहुत जल्दी में नहीं था? उसे पता ही नहीं था कि दूसरे लोग उसे पहचान चुके हैं और उसे जल्दी ही बर्खास्त कर दिया गया। जब इस तरह के व्यक्ति की बात आती है जो इतने स्पष्ट तरीके से व्यवहार करता है तो तुम लोगों को यह याद रखना चाहिए : उसे जल्दी से जल्दी बर्खास्त करो। इस तरह के व्यक्ति के बारे में कुछ और जानने की जरूरत नहीं है, जैसे उसका स्वभाव, मानवता, शिक्षा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, वह कितने समय से परमेश्वर में विश्वास रखता है, उसके पास कोई आधार है या नहीं, उसके जीवन अनुभव कैसे हैं—तुम्हें इनमें से किसी भी चीज को जानने की जरूरत नहीं है, यह एक चीज ही यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त है कि ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी है। तुम सभी को मिलकर इस व्यक्ति को बर्खास्त करके हटा देना चाहिए। तुम्हें अगुआ के रूप में उसकी आवश्यकता नहीं है। क्यों? यदि तुम उसे अपनी अगुआई करने देते हो तो वह कलीसिया के पास जितना भी पैसा है उसे बरबाद कर देगा और उसका पूरा गबन करेगा और फिर कलीसिया का काम रुक जाएगा और उसे पूरा करना असंभव हो जाएगा। यदि तुम इस तरह के व्यक्ति से मिलते हो जो पैसे हड़पने में लगा है, जिसका ध्यान हमेशा धन पर ही टिका रहता है, और जो लालची है, और यदि उसकी वास्तविक प्रकृति के लक्षण अभी तक सामने नहीं आए हैं, और सभी ने उसे भ्रमित तरीके से चुना है, यह सोचकर कि उसके पास कुछ गुण हैं, कि उसमें कुछ कार्य क्षमता है, कि वह सभी को सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने के लिए अगुआई करने में सक्षम है, उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि जैसे ही वह अगुआ बनेगा, वह पैसे को अपनी जेब में भरना शुरू कर देगा तो तुम्हें जल्दी से उसे उसके पद से हटा देना चाहिए। ऐसा करना बिल्कुल सही है। उसके बाद तुम किसी और को चुन सकते हो। यदि कलीसिया एक दिन के लिए अगुआ के बिना रह भी जाए तो इससे वह बिखर नहीं जाएगी। परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं किसी अगुआ विशेष में नहीं। मुझे बताओ, क्या ऐसे समय होते हैं जब भाई-बहनों के निर्णय में चूक हो जाए? इस व्यक्ति के अगुआ बनने से पहले यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि वह लालची है। दूसरों के साथ अपने व्यवहार में वह फायदा उठाने की कोशिश नहीं करता था, वह चीजें खरीदते समय अपना पैसा खर्च करता था और यहाँ तक कि वह दान भी देता था। फिर भी, अगुआ बनने के बाद उसने जो पहला काम किया वह था कलीसिया के वित्तीय मामलों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना। अधिकांश लोग इस तरह की दुष्ट इच्छा को नहीं दबा पाते—यह बिल्कुल अविश्वसनीय है! वह रातों-रात कैसे बदल गया? ऐसा नहीं है कि वह रातों-रात बदल गया, बल्कि वह शुरू से ही उस तरह का प्राणी था, केवल अंतर यह था कि पहले वह ऐसी परिस्थितियों में नहीं था जो उसे प्रकट कर सकें, और अब वह इस स्थिति की वजह से प्रकट हो गया है। चूँकि यह व्यक्ति प्रकट हो चुका है तो तुम अब भी उस पर दया क्यों करोगे? उसे यहाँ से बाहर फेंकने के लिए बस एक जोरदार लात लगाओ, वह जितना दूर फेंका जा सके उतना ही अच्छा है! क्या तुम लोगों में ऐसा करने की हिम्मत है? (हाँ।) जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात आए जो कलीसिया की संपत्ति के बारे में मंसूबे बाँधता रहता है तो उसे तब तक मत चुनो जब तक कि तुम उसे पूरी तरह से समझ न लो। अगर कभी अज्ञानता से तुम उसे पूरी तरह से समझे बिना चुन लेते हो और फिर पाते हो कि वह एक लालची प्राणी और यहूदा है तो तुम्हें उसे बाहर निकालने और उसे हटाने में जल्दी करनी चाहिए। दया मत दिखाओ और संकोच मत करो। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं : “भले ही वह व्यक्ति लालची हो, लेकिन वह अन्य सभी मामलों में ठीक है। वह परमेश्वर के वचन समझने में लोगों का मार्गदर्शन कर सकता है और वह लोगों से उनके कर्तव्यों को सामान्य रूप से करवा सकता है।” लेकिन वह केवल कुछ समय के लिए ही ऐसा होता है। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, वह वैसा नहीं रहेगा। उसका राक्षसी चेहरा सामने आने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे। मसीह-विरोधियों की सभी अभिव्यक्तियाँ और स्वभाव, जिन पर हमने अतीत में संगति की है, धीरे-धीरे उसमें प्रकट होते जाएँगे। क्या तब तक उसे बर्खास्त करने में बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? कलीसिया का काम पहले ही प्रभावित हो चुका होगा। यदि तुम्हें मेरी कही गई बातों पर विश्वास नहीं है और तुम हिचकिचाते हो तो पछतावा होने पर सुबकने मत लग जाना। सबसे पहले देखो कि कोई व्यक्ति भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करता है : यह देखने के लिए कि किसी व्यक्ति में मसीह-विरोधियों का सार है या नहीं, यह सबसे सरल, साथ ही सबसे सीधा और सच्चा तरीका है। जिन विषयों पर हमने अतीत में संगति की थी, उनसे हमें कुछ अभिव्यक्तियों, खुलासों, दृष्टिकोणों, शब्दों और क्रियाकलापों के माध्यम से मसीह-विरोधियों के स्वभावों की पहचान करनी थी और यह देखना था कि उन स्वभावों के आधार पर उनमें मसीह-विरोधियों का सार है या नहीं। केवल इस एक मामले में इन चीजों को करने की कोई आवश्यकता नहीं है : यह सीधा और सच्चा है, सरल है और इसके लिए कम प्रयास और समय चाहिए। जब तक कोई व्यक्ति इस तरह की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करता है—लगातार भेंटों पर अपने कब्जे को प्राथमिकता देने की इच्छा रखता है या बलपूर्वक भेंटों को जब्त करता है—तब तक तुम निश्चित हो सकते हो कि वह सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी है। उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जा सकता है और वह अगुआ के रूप में काम नहीं कर सकता और उसे भाई-बहनों द्वारा बर्खास्त करके ठुकरा दिया जाना चाहिए।

हमने अभी-अभी मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटों पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने की अभिव्यक्तियों पर संगति की है और इसका इस्तेमाल कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने के उनके प्रयास में मसीह-विरोधियों द्वारा व्यक्त किए गए स्वभावों और सार को समझाने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए किया है। यह पहली मद है। जब कलीसिया की संपत्ति की बात आती है तो मसीह-विरोधियों के सबसे प्रारंभिक और बुनियादी दृष्टिकोण होते हैं—कब्जा और उपयोग। इस मद में हमने इस बात पर ठोस तरीके से संगति नहीं की कि मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति को कैसे कब्जाते हैं और उसका उपयोग कैसे करते हैं। अगली मद में, जो मसीह-विरोधियों द्वारा भेंटें बरबाद करना, उनका दुरुपयोग करना, उन्हें उधार देना, उनका कपटपूर्ण उपयोग करना और उनकी चोरी करना है, और अधिक ठोस विवरण होंगे।

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