मद छह : वे कुटिल तरीकों से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं (खंड छह)

कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी होते हैं जो खुद को बहुत अच्छी तरह से छिपा लेते हैं, जब वे कुछ देखते हैं तो बिना कुछ बोले बस मुस्कुराते रहते हैं, कई मामलों पर चुप्पी बनाए रखते हैं, गहराई होने का दिखावा करते हैं और कोई रुख नहीं जताते। जब तुम पहली बार उनके संपर्क में आते हो, तो उनकी असलियत जान पाना आसान नहीं होता; तुम्हें यह भी लग सकता है कि वे बहुत महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय हैं। तुम ऐसे मसीह-विरोधी लोगों को कैसे पहचानते हो? तुम्हें ध्यान से देखना चाहिए और जाँच-परख करनी चाहिए कि उन्हें वास्तव में क्या पसंद है, वे किस पर ध्यान केंद्रित करते हैं, उन्हें किसमें दिलचस्पी है और वे किसके साथ बातचीत करते हैं। इन पहलुओं की जाँच-परख करके तुम उनके बारे में समझ हासिल कर सकते हो। इसके अतिरिक्त, एक बात और है जिसके बारे में तुम सभी लोगों को पता होना चाहिए : किसी अगुआ या कार्यकर्ता का कोई भी स्तर हो, अगर तुम लोग थोड़े-से सत्य की समझ और कुछ गुणों के लिए उनकी आराधना करते हो और मानते हो कि उनके पास सत्य वास्तविकता है और वे तुम्हारी मदद कर सकते हैं, और अगर तुम सभी चीजों में उनका आदर करते हो और उन पर निर्भर रहते हो, और इसके माध्यम से उद्धार प्राप्त करने का प्रयास करते हो, तो तुम मूर्ख और अज्ञानी हो। अंत में इन सबका कोई फल नहीं निकलेगा, क्योंकि तुम्हारा प्रस्थान-बिंदु ही अंतर्निहित रूप से गलत है। कोई कितने भी सत्य समझता हो, वह मसीह का स्थान नहीं ले सकता, और चाहे कोई कितना भी प्रतिभाशाली हो, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके पास सत्य है—तो जो भी उनकी आराधना करता है, उनका आदर करता है और उनका अनुसरण करता है, वह अंततः हटा दिया जाएगा, और उसकी निंदा की जाएगी। परमेश्वर में विश्वास करने वाले केवल परमेश्वर का आदर और अनुसरण कर सकते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता, चाहे वे किसी भी श्रेणी के हों, फिर भी आम लोग ही होते हैं। अगर तुम उन्हें अपना निकटतम वरिष्ठ समझते हो, अगर तुम्हें लगता है कि वे तुमसे श्रेष्ठ हैं, तुमसे ज्यादा सक्षम हैं, उन्हें तुम्हारी अगुआई करनी चाहिए, वे हर तरह से बाकी सबसे बेहतर हैं, तो तुम गलत हो—यह एक भ्रम है। और इस भ्रम के तुम पर क्या दुष्परिणाम होंगे? यह तुम्हें अनजाने ही अपने अगुआओं को उन अपेक्षाओं के बरक्स मापने के लिए प्रेरित करेगा जो वास्तविकता के अनुरूप नहीं हैं; और तुम्हें उनकी समस्याओं और कमियों से सही तरह से पेश आने में असमर्थ बना देगा, साथ ही, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उनके अनूठे आकर्षण, खूबियों और क्षमताओं की ओर गहराई से आकर्षित भी होने लगोगे, इस हद तक कि तुम्हें पता भी न चलेगा और तुम उनकी आराधना कर रहे होगे, और वे तुम्हारे परमेश्वर बन जाएँगे। वह मार्ग, जबसे वे तुम्हारे आदर्श और तुम्हारी आराधना के पात्र बनना शुरू होते हैं, तबसे उस समय तक जब तुम उनके अनुयायियों में से एक बन जाते हो, तुम्हें अनजाने ही परमेश्वर से दूर ले जाने वाला मार्ग होगा। धीरे-धीरे परमेश्वर से दूर जाते हुए भी, तुम यह विश्वास करोगे कि तुम परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हो, तुम परमेश्वर के घर में हो, तुम परमेश्वर की उपस्थिति में हो, जबकि वास्तव में, तुम शैतान के सेवकों द्वारा, मसीह-विरोधियों द्वारा बंदी बनाए जा चुके होगे। तुम्हें इसका पता भी नहीं चलेगा। यह एक बहुत खतरनाक स्थिति है। यह समस्या हल करने के लिए एक तो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार का भेद पहचानने की क्षमता चाहिए, और मसीह-विरोधियों के सत्य से घृणा करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले कुरूप चेहरे की असलियत देखने में क्षमता होना आवश्यक है; और साथ ही मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और फँसाने के लिए आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों को जानना, और साथ ही उनके काम करने के तरीके से परिचित होना आवश्यक है। दूसरा भाग यह है कि तुम लोगों को परमेश्वर के स्वभाव और सार के ज्ञान का अनुसरण करना चाहिए। तुम्हें यह स्पष्ट होना चाहिए कि केवल मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है, कि किसी व्यक्ति की आराधना करने से तुम पर विपत्ति और दुर्भाग्य ही आएगा। तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि केवल मसीह ही लोगों को बचा सकता है, और तुम्हें पूरी आस्था के साथ मसीह का अनुसरण और उसके आगे समर्पण करना चाहिए। केवल यही मानव जीवन का सही मार्ग है। कोई कह सकता है : “हाँ, अगुआओं की आराधना करने के मेरे अपने कारण हैं, अपने हृदय में मैं जो भी प्रतिभावान है उसकी स्वाभाविक रूप से आराधना करता हूँ। मैं हर उस अगुआ की आराधना करता हूँ जो मेरी धारणाओं के अनुरूप है।” तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हुए भी मनुष्य की आराधना करने पर क्यों तुले हुए हो? ये सब कुछ हो जाने के बाद, तुम्हें कौन बचाएगा? कौन है जो सचमुच तुम से प्रेम करता है और तुम्हारी रक्षा करता है—क्या तुम सचमुच नहीं देख पाते? अगर तुम परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करते हो, तो तुम्हें उसके वचन पर ध्यान देना चाहिए, और अगर कोई सही तरीके से बोलता है और कार्य करता है, और यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है, तो बस सत्य के प्रति समर्पित हो जाओ—क्या यह इतना सरल नहीं है? तुम इतने नीच क्यों हो? अनुसरण के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश करने की जिद पर क्यों अड़े रहते हो जिसकी तुम आराधना करते हो? तुम शैतान के गुलाम क्यों बनना चाहते हो? इसके बजाय, तुम सत्य के सेवक क्यों नहीं बनते? इसमें यह देखा जाता है कि किसी व्यक्ति में समझ-बूझ और गरिमा है या नहीं। तुम्हें खुद से शुरू करना चाहिए : खुद को सभी प्रकार के सत्यों से सुसज्जित करो, विभिन्न मामलों और लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के अलग-अलग तरीकों की पहचान करने में सक्षम बनो, जानो कि विभिन्न लोगों के व्यवहार की प्रकृति क्या है और वे किस प्रकार के स्वभाव दिखाते हैं, विभिन्न प्रकार के लोगों के सार को पहचानना सीखो, इस बारे में स्पष्ट रहो कि तुम्हारे आसपास किस तरह के लोग हैं, तुम किस तरह के व्यक्ति हो, और तुम्हारा अगुआ किस तरह का व्यक्ति है। एक बार जब तुम यह सब स्पष्ट रूप से देख लोगे, तो तुम लोगों के साथ सही तरीके से, सत्य सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार करने में सक्षम हो जाओगे : अगर वे भाई-बहन हैं तो तुम उनसे प्यार से पेश आओगे, और अगर वे भाई-बहन नहीं हैं बल्कि बुरे लोग हैं, मसीह-विरोधी हैं या छद्म-विश्वासी हैं, तो तुम उनसे दूरी बनाकर रखोगे और उन्हें त्याग दोगे। और अगर वे ऐसे लोग हैं जिनमें सत्य वास्तविकता है, तो भले ही तुम उनकी प्रशंसा करो, तुम उनकी आराधना नहीं करोगे। मसीह का स्थान कोई नहीं ले सकता; केवल मसीह ही व्यावहारिक परमेश्वर है। केवल मसीह ही लोगों को बचा सकता है, और केवल मसीह का अनुसरण करके ही तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो। अगर तुम ये चीजें स्पष्ट रूप से देख सकते हो, तो तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद है, और तुम्हारे मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाने की आशंका नहीं है, और न ही तुम्हें इस बात से डरने की आवश्यकता है कि तुम मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाओगे।

कुछ लोग जब कुछ मसीह-विरोधियों को बेनकाब होते और हटाए जाते देखते हैं तो चिंतित हो जाते हैं, और कहते हैं : “हालाँकि मसीह-विरोधी ऊपर से बुरे लोगों की तरह नहीं दिखते, लेकिन ऐसा क्यों होता है कि उनके किए गए कामों का भेद पहचानने पर वे इतने बुरे निकलते हैं? ऐसा लगता है कि मसीह-विरोधी वास्तव में बहुत कुटिल होते हैं। लेकिन मेरी काबिलियत खराब है, और अगर मेरा सामना फिर से ऐसे मसीह-विरोधियों से हुआ, तो मुझे डर है कि मैं उन्हें पहचान नहीं पाऊँगा। मुझे मसीह-विरोधियों से बचाव कैसे करना चाहिए?” भले ही तुम्हारी काबिलियत खराब हो, तुम्हें हमेशा गुमराह होने की चिंता करने या हमेशा उनसे सावधान रहने के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है। तुम्हें बस सत्य को समझने पर ध्यान केंद्रित करने, परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ने और जब तुम्हारे पास समय हो, तो खुद से यह पूछते हुए मसीह-विरोधियों द्वारा किए गए बुरे कर्मों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि, “उनकी बुराई किसमें है? उन्हें ऐसा बुरा करने के लिए किसने प्रेरित किया? क्या साधारण लोग ऐसा बुरा कर सकते हैं? जो लोग सत्य समझते हैं वे उन्हें कैसे पहचानते हैं? मैं उन्हें कैसे पहचानूँ?” एक बार जब तुम परमेश्वर के वचनों के माध्यम से लोगों के सार को स्पष्ट रूप से देख लोगे, तो तुम्हें सब कुछ समझ आ जाएगा। जब तुम लगातार इन चीजों के बारे में सोचोगे, तो तुम अनजाने में ही पहचानना सीख जाओगे, और स्वाभाविक रूप से जब तुम फिर से लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे मसीह-विरोधियों का सामना करोगे, तो तुम उन्हें पहचान लोगे। इसके लिए कई अनुभवों से गुजरना पड़ता है; यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम सिर्फ और ज्यादा धर्मोपदेश सुनकर सीख सको। यह समाज में बहुत अधिक फायदा उठाए जाने या बहुत अधिक नुकसान उठाने के बाद अनुभव हासिल करने जैसा है—“मुसीबत में पड़ने के बाद ही अक्ल आती है।” यह विचार भी समान ही है। परमेश्वर में हमारे विश्वास में मुख्य बात सत्य को समझना है। जितना ज्यादा तुम सत्य समझोगे, उतनी ही ज्यादा चीजों की असलियत समझ पाओगे। अगर तुम कोई सत्य नहीं समझते, तो ज्ञान का होना भी बेकार ही होता है। सिर्फ ज्ञान से ही तुम किसी भी चीज की असलियत नहीं जान सकते; तुम्हारे विचार धर्मनिरपेक्ष लोगों के विचारों जैसे ही होंगे, और तुम जिस पर भी टिप्पणी करोगे, वह बकवास और भ्रांतियाँ होंगी। अगर तुम अभी कुछ लोगों की असलियत नहीं जान पा रहे हो, तो चिंता न करो। एक बार जब तुम सत्य समझ लोगे, तो तुम स्वाभाविक रूप से विवेक हासिल कर लोगे। अभी के लिए, बस अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने पर ध्यान दो, परमेश्वर के वचनों को अधिक से अधिक खाओ-पियो, और सत्य पर अधिक से अधिक विचार करो। जब वह दिन आएगा कि तुम सत्य समझ जाओगे, तो तुम लोगों को पहचानने में सक्षम हो जाओगे। किसी के व्यवहार को देखकर ही तुम अपने दिल में जान जाओगे कि उनका मामला क्या है; किसी मुद्दे पर किसी की रिपोर्ट सुनते ही तुम मुद्दे के सार को समझ जाओगे; और किसी के विचारों और दृष्टिकोणों को सुनते ही तुम उसके आध्यात्मिक कद को जान जाओगे। बिना अधिक प्रयास के तुम किसी भी मामले या व्यक्ति के बारे में सब कुछ समझ लोगे—यह सत्य समझने का परिणाम होता है। लेकिन अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, बल्कि लोगों का आकलन करने के लिए अपनी कल्पना पर भरोसा करते हो, उनकी आराधना करते हो, उन पर निर्भर रहते हो और आँख मूँदकर उनकी चापलूसी करते हो और अगर तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर नहीं चलते हो तो अंतिम नतीजा क्या होगा? कोई भी तुम्हें गुमराह कर सकता है; तुम किसी की भी असलियत नहीं समझ पाओगे, यहाँ तक कि सबसे स्पष्ट मसीह-विरोधी की भी नहीं। वे तुम्हें मूर्ख बनाएँगे, और तुम फिर भी उनकी योग्यता की प्रशंसा करोगे, हर दिन उनके चक्कर काटोगे। तब तुम वास्तव में भ्रमित लोग होते हो, और यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि तुम एक अज्ञात परमेश्वर में विश्वास करते हो, व्यावहारिक परमेश्वर में नहीं, और तुम निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य का अनुसरण करता है।

कुछ लोग मसीह-विरोधियों को पहचानने के बारे में कई धर्मोपदेश सुनने के बाद भी उन्हें पहचान नहीं पाते। वे केवल पहचानने के कुछ तरीकों को ही समझते हैं, लेकिन उनमें वास्तविक अनुभव की कमी होती है। जब उनका सामना वास्तव में मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों से होता है, तो वे उन्हें फिर से पहचानने में विफल हो जाते हैं। हालाँकि वे धर्मोपदेशों को सुनने के बाद मसीह-विरोधियों को नहीं पहचान पाते, लेकिन जो कुछ उन्होंने सुना है, उससे वे खुद की तुलना करते हैं और धीरे-धीरे महसूस करने लगते हैं कि वे मसीह-विरोधी जैसे हैं। अंततः वे यह मानने लगते हैं कि वे स्वयं मसीह-विरोधी हैं। इस तरह से भेद पहचान पाने में कुछ भी गलत नहीं है। वे मसीह-विरोधियों को पहचानने के विवरण से पूरी तरह अवगत हैं, लेकिन उनमें बस निरूपण के सिद्धांतों की कमी होती है। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है; यह दर्शाता है कि उनका धर्मोपदेशों को सुनना प्रभावी रहा है। हालाँकि उन्होंने असली मसीह-विरोधियों को नहीं पहचाना, लेकिन उन्होंने खुद को पहचान लिया है, जो एक अच्छी बात भी है। पहले वे खुद को बचाते हैं, और मसीह-विरोधी बनने से बचते हैं, जो मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले इन धर्मोपदेशों को सुनने का एक फलदायी परिणाम होता है। खुद को मसीह-विरोधी के रूप में पहचान पाना आसान नहीं है; ऐसी पहचान के लिए विस्तृत अवलोकन की जरूरत होती है, और मुझे लगता है कि यह पहले से ही विवेक होने के रूप में माना जाता है। खुद को अभी भी पहचान लेना अच्छी बात है; इसके लिए बहुत देर नहीं हुई है। यदि तुमने कोई बुराई की होती या बड़ी तबाही मचाई होती और फिर तुम्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया गया होता, तो बहुत देर हो चुकी होती। यदि तुममें अभी खुद की पहचान है, तो अधिक से अधिक इसका मतलब है कि तुम मसीह-विरोधी के समान लक्षण प्रदर्शित करते हो, कि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हो, और तुमने गलत मार्ग चुना है—तुम्हें केवल इस तरह से निरूपित किया जा सकता है। अभी भी रास्ता बदलने का समय है, लेकिन यदि तुम ऐसा करने का चुनाव नहीं करते तो यह खतरनाक है। मसीह-विरोधी को पहचानने के विषय पर कई बार संगति की जा चुकी है, और अब कुछ लोग वास्तव में पहचान सकते हैं। वे स्वयं द्वारा प्रकट किए गए मसीह-विरोधी स्वभावों को पहचान सकते हैं, जो एक परिणाम है और इससे साबित होता है कि उन्होंने विवेक प्राप्त कर लिया है। अगर वे इसके अतिरिक्त मसीह-विरोधी प्रकृति सार वाले लोगों और सिर्फ मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर भी कर पाएँ, तो वे पूरी तरह से विवेक में महारत हासिल कर चुके होंगे। यह कुछ ऐसा है जिसे जल्दी ही हासिल किया जा सकता है, इसलिए व्यग्र होने की कोई जरूरत नहीं है। अगर लोग अपने मसीह-विरोधी स्वभाव को पहचान सकते हैं, स्वीकार कर सकते हैं कि वे मसीह-विरोधी मार्ग पर चल रहे हैं या नहीं, और समझ सकते हैं कि मसीह-विरोधी का प्रकृति सार क्या है, तो वे पहले ही मसीह-विरोधी को पहचानना सीख चुके हैं। मसीह-विरोधी को पहचान पाना इस बात पर निर्भर नहीं है कि किसी व्यक्ति ने कितने सालों से परमेश्वर पर विश्वास किया है, बल्कि इस पर निर्भर है कि कोई व्यक्ति सत्य के लिए प्रयास कर सकता है या नहीं और उसे समझ सकता है या नहीं। कुछ लोगों का कई साल से परमेश्वर पर विश्वास है और उन्होंने मसीह-विरोधी को उजागर करने के बारे में कई धर्मोपदेश सुने हैं, लेकिन उनके मसीह-विरोधी स्वभाव और अभिव्यक्तियाँ बिल्कुल भी नहीं बदली हैं। चाहे मैं सत्य पर कितनी भी संगति करूँ, वे अनभिज्ञ ही बने रहते हैं। वे उस समय संगति की विषयवस्तु से खुद को जोड़ सकते हैं, लेकिन जब कार्रवाई करने या अपने कर्तव्य करने की बात आती है, तो वे अपने पुराने तरीकों पर लौट जाते हैं। क्या यह ऐसे लोगों के लिए परेशानी भरा और खतरनाक नहीं है? यह बहुत खतरनाक है! चाहे मैं कैसे भी संगति करूँ, चाहे वे मेरी बात सुनते समय खुद को कितना भी दोषी या परेशान महसूस करें, वे बाद में बिल्कुल भी नहीं बदलते। वे इस बात पर आत्म-चिंतन नहीं करते कि वे हमेशा चापलूस और खुशामदी लोगों को क्यों बढ़ावा देते हैं और उन्हें विकसित करते हैं, न ही वे इस बात पर आत्म-चिंतन करते हैं कि वे दूसरों के साथ सिद्धांतों के आधार पर पेश न आकर उनसे अपनी मर्जी के अनुसार व्यवहार क्यों करते हैं। वे उन लोगों से घृणा नहीं करते जिन्हें वे पसंद करते हैं, भले ही वे बुरे या खराब हों, और उन्हें बढ़ावा देना और उनका इस्तेमाल करना जारी रखते हैं। इससे भी अधिक वे इस बात पर आत्म-चिंतन नहीं करते कि वे बिल्कुल भी सत्य का अनुसरण क्यों नहीं करते और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर क्यों चल पड़े हैं। बिना किसी वास्तविक आत्म-चिंतन या बदलाव के इतनी सारी बुराई करना खतरनाक है। हाल की सभाओं में, मसीह-विरोधियों के स्वभाव और सार को उजागर करने के बारे में संगति की जाती रही है। मसीह-विरोधियों का स्वभाव आम तौर पर दिखने वाले भ्रष्ट स्वभावों की तुलना में अधिक छिपा हुआ और दुष्ट होता है। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं, और सत्य या परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकते। तो फिर मसीह-विरोधियों का क्या परिणाम, क्या अंत होता है? उन्हें हटाया जाना तय है। परमेश्वर मसीह-विरोधियों का चित्रण किस तरह करता है? यह वे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं—वे परमेश्वर के शत्रु हैं! सत्य का विरोध करना, परमेश्वर से घृणा करना, और सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करना—यह सामान्य लोगों में पाई जाने वाली क्षणिक कमजोरी या मूर्खता नहीं है, न ही यह गलत विचारों और दृष्टिकोणों का प्रकाशन है जो क्षण भर की विकृत समझ से उत्पन्न हो जाते हैं; यह समस्या नहीं है। समस्या यह है कि वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के दुश्मन हैं, सभी सकारात्मक चीजों और सभी सत्य से घृणा करते हैं; वे ऐसे चरित्र हैं जो परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसका विरोध करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे देखता है? परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता! ये लोग सत्य से घृणा और नफरत करते हैं, उनमें मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार होता है। क्या तुम लोग इसे समझते हो? यहाँ जो उजागर किया जा रहा है वह दुष्टता, क्रूरता और सत्य से नफरत है। यह भ्रष्ट स्वभावों में सबसे गंभीर शैतानी स्वभाव होते हैं, जो शैतान की सबसे विशिष्ट और ठोस विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि सामान्य भ्रष्ट मानव जाति द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों का। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण ताकत हैं। वे कलीसिया में बाधा डालकर उसे नियंत्रित कर सकते हैं, और उनके पास परमेश्वर के प्रबंधन कार्य का विघटन करने और उसमें गड़बड़ करने की क्षमता होती है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोग कर पाएँ; केवल मसीह-विरोधी ही ऐसे कार्य करने में सक्षम हैं। इस मामले को कम मत समझो।

सभी बुरे लोगों में दुष्ट स्वभाव होते हैं। कुछ दुष्टता क्रूर स्वभावों के माध्यम से व्यक्त होती है, जैसे कि अक्सर भोले-भाले लोगों पर धौंस जमाना, उनके साथ व्यंग्यात्मक या ताने-भरे तरीके से व्यवहार करना, उन्हें हमेशा मजाक का पात्र बनाना और उनका फायदा उठाना। जब बुरे लोग किसी दूसरे बुरे व्यक्ति को देखते हैं तो उसके आगे बिछ जाते हैं, लेकिन जब वे किसी कमजोर व्यक्ति को देखते हैं, तो वे उसे दबाते हैं और अपना रौब दिखाते हैं। ये बेहद क्रूर और दुष्ट लोग होते हैं। जो कोई भी ईसाइयों पर धौंस जमाता या उन पर अत्याचार करता है, वह इंसान के भेस में छिपा हुआ दानव है; वह एक आत्मा विहीन जानवर है, और किसी दुष्ट दानव का पुनर्जन्म है। अगर दुष्ट लोगों के जमावड़े में ऐसे लोग हैं जो भोले-भाले लोगों पर धौंस नहीं जमाते, ईसाइयों के साथ क्रूरता नहीं करते, जो केवल उन लोगों पर अपना क्रोध निकालते हैं जो उनके स्वार्थ को नुकसान पहुँचाते हैं, तो ये लोग अविश्वासियों के बीच अच्छे लोग माने जाते हैं। लेकिन मसीह-विरोधियों की दुष्टता किस तरह भिन्न होती है? मसीह-विरोधियों की दुष्टता मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा के लिए उनके विशेष झुकाव में अभिव्यक्त होती है। वे स्वर्ग से होड़ करने, धरती से होड़ करने और दूसरे लोगों से होड़ करने की हिम्मत करते हैं। न केवल वे दूसरों को खुद पर धौंस नहीं जमाने देते, बल्कि वे दूसरों पर धौंस जमाते और उन्हें सताते भी हैं। हर दिन वे सोच-विचार करते रहते हैं कि लोगों को कैसे सताया जाए। अगर वे किसी से ईर्ष्या करते हैं या किसी से नफरत करते हैं, तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे। मसीह-विरोधी इस तरह से दुष्ट होते हैं। यह दुष्टता और कहाँ अभिव्यक्त होती है? यह उनके काम करने के कुटिल तरीके में देखी जा सकती है—थोड़े दिमाग वाले, थोड़े ज्ञान और थोड़े सामाजिक अनुभव वाले लोगों को उनकी थाह लेने में कठिनाई होती है। वे असाधारण रूप से कुटिल तरीके से काम करते हैं, और यह दुष्टता तक पहुँच जाता है; यह साधारण धोखेबाजी नहीं है। वे छिपकर खेल कर सकते हैं और चालें चल सकते हैं, और ज्यादातर लोगों की तुलना में वे ऐसा ऊँचे स्तर पर करते हैं। ज्यादातर लोग उनसे मुकाबला नहीं कर सकते और उनसे निपट नहीं सकते। यही मसीह-विरोधी है। मैं क्यों कहता हूँ कि आम लोग उनसे नहीं निपट सकते? क्योंकि उनकी दुष्टता इतनी चरम पर है कि उनके पास लोगों को गुमराह करने की बहुत बड़ी शक्ति है। वे लोगों से अपनी आराधना करवाने और अपना अनुसरण करवाने के लिए हर तरह के तरीके सोच सकते हैं। वे कलीसिया के काम में व्यवधान डालने और उसे नुकसान पहुँचाने के लिए सभी प्रकार के लोगों का शोषण भी कर सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, परमेश्वर का घर बार-बार मसीह विरोधियों की हर तरह की अभिव्यक्ति, स्वभाव और सार पर संगति करता रहता है, ताकि लोग उन्हें पहचान सकें। यह आवश्यक है। कुछ लोग समझ नहीं पाते, और कहते हैं, “हमेशा मसीह-विरोधियों को पहचानने के तरीके पर संगति क्यों की जाती है?” क्योंकि मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने में बहुत अधिक सक्षम हैं। वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं, किसी प्राणघातक महामारी की तरह, जो अपने संक्रमण के माध्यम से एक ही प्रकोप में कई लोगों को नुकसान पहुँचा सकती है और मार सकती है; अत्यधिक संक्रामक और व्यापक होती है, और उसकी संक्रामकता और मृत्यु दर काफी अधिक होती है। क्या ये गंभीर परिणाम नहीं हैं? अगर मैं तुम लोगों के साथ इस तरह संगति न करूँ, तो क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और बेबस किए जाने से बच सकते हो? क्या तुम लोग सचमुच परमेश्वर की ओर मुड़ सकते हो और उसके प्रति समर्पित हो सकते हो? यह बहुत मुश्किल है। जब साधारण लोग अहंकारी स्वभाव प्रकट करते हैं, तो अधिक से अधिक यह दूसरों को उनके अहंकार की बदसूरत स्थिति को दिखाता है। कभी-कभी वे शेखी बघारते हैं, कभी-कभी वे इतराते हैं, दिखावा करते हैं और कभी-कभी वे अपने रुतबे का रौब जमाकर दूसरों को उपदेश देना पसंद करते हैं। लेकिन क्या मसीह-विरोधियों के साथ भी ऐसा ही होता है? ऊपर से, वे अपने रुतबे का रौब जमाते या उसे पसंद करते न दिखें, वे कभी भी रुतबे में दिलचस्पी लेते न दिखें, लेकिन अंदर ही अंदर उनमें इसकी प्रबल इच्छा होती है। यह कुछ सम्राटों या अविश्वासियों के डाकू सरदारों की तरह होता है : अपनी भूमि के लिए लड़ते समय वे मिलकर अपने साथियों के साथ कष्ट सहते हैं, विनम्र और महत्वाकांक्षाहीन दिखाई देते हैं। लेकिन क्या तुमने उनके दिलों की गहराई में छिपी इच्छाओं को देखा है? वे ऐसे कष्ट क्यों सह पाते हैं? ये उनकी इच्छाएँ हैं जो उन्हें मजबूत बनाती हैं। वे अंदर ही अंदर एक बड़ी महत्वाकांक्षा रखते हैं, कोई भी पीड़ा सहने या किसी भी बदनामी, मानहानि, निरादर और अपमान को सहने के लिए तैयार रहते हैं ताकि वे एक दिन सिंहासन पर बैठ सकें। क्या यह कुटिलता नहीं है? क्या वे किसी को अपनी इस महत्वाकांक्षा के बारे में बता सकते हैं? (नहीं।) वे इसे छिपाते हैं और इसे गुप्त रखते हैं। ऊपर-ऊपर जो दिखाई देता है वह एक ऐसा व्यक्ति होता है जो उसे झेल सकता है जो दूसरे नहीं झेल सकते, जो असहनीय कष्टों को सहन कर सकता है, जो दृढ़ निश्चयी, महत्वाकांक्षाहीन, विनम्र और अपने आसपास के लोगों के लिए अच्छा दिखाई देता है। लेकिन जिस दिन वह सिंहासन पर चढ़ता है और वास्तविक शक्ति प्राप्त करता है, अपने अधिकार को मजबूत करने और उसे हड़पे जाने से रोकने के लिए वह उन सभी को मार देता है जिन्होंने उसके साथ कष्ट सहे थे और लड़ाई लड़ी थी। जब सत्य सामने आता है, तभी लोगों को एहसास होता है कि वे कितने चालाक हैं। जब तुम पीछे मुड़कर देखते हो और पाते हो कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह महत्वाकांक्षा से प्रेरित था, तो तुम्हें पता चलता है कि उनका स्वभाव दुष्टता का था। यह कौन सी चाल थी? यह कुटिलता थी। यह मसीह-विरोधियों के काम करने का स्वभाव होता है। मसीह-विरोधी और आधिकारिक शक्ति का उपयोग करने वाले शैतान राजा एक ही तरह के होते हैं; अगर उन्हें शक्ति और रुतबा न मिले तो वे कलीसिया में बिना किसी कारण कष्ट नहीं झेलेंगे और कष्ट सहन नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, ये लोग साधारण अनुयायी होने, परमेश्वर के घर में परमेश्वर के सामान्य उपासकों के रूप में रहने या चुपचाप और गुमनाम ढंग से कुछ कर्तव्य करने से बिल्कुल संतुष्ट नहीं होते; वे निश्चित रूप से ऐसा करने के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि किसी रुतबे वाले व्यक्ति को इसलिए बर्खास्त कर दिया जाता है क्योंकि वह मसीह-विरोधी के मार्ग पर चला था, और वह सोचता है, “अब रुतबे के बिना मैं सीधे-सीधे एक साधारण व्यक्ति की तरह काम करूँगा, जो भी कर्तव्य कर सकता हूँ, करूँगा; मैं रुतबे के बिना भी परमेश्वर पर विश्वास कर सकता हूँ,” तो क्या वह मसीह-विरोधी है? नहीं, यह व्यक्ति एक बार मसीह-विरोधी के मार्ग पर चला था, एक बार क्षणिक मूर्खता के कारण गलत मार्ग पर चला था, लेकिन वह मसीह-विरोधी नहीं है। एक सच्चा मसीह-विरोधी क्या करेगा? यदि वह अपना रुतबा खो देता है, तो वह अब और विश्वास नहीं करेगा। इतना ही नहीं, वह दूसरों को गुमराह करने, दूसरों से अपनी आराधना करवाने और अपना अनुसरण करवाने, अपनी महत्वाकांक्षा और सत्ता पाने की इच्छा पूरी करने के लिए विभिन्न तरीकों के बारे में भी सोचेगा। मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने वालों और वास्तविक मसीह-विरोधियों के बीच यही अंतर होता है। हम मसीह-विरोधी के इन स्वभाव सार और अभिव्यक्तियों का विश्लेषण और गहन विश्लेषण करते हैं क्योंकि इस मुद्दे की प्रकृति बहुत गंभीर है। अधिकांश लोग मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते। साधारण भाई-बहनों की बात तो दूर, यहाँ तक कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता भी जो यह सोचते हैं कि वे कुछ सत्य समझते हैं, वे भी मसीह-विरोधियों को पहचानने में पूरी तरह से निपुण नहीं हैं। यह कहना मुश्किल है कि उन्होंने कितनी निपुणता हासिल की है, जो दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। केवल वे ही लोग सच्चे आध्यात्मिक कद वाले लोग होते हैं जो मसीह-विरोधियों को सही-सही पहचान सकते हैं।

तुम सभी लोग अभी किस मुख्य मुद्दे का सामना कर रहे हो? ज्यादातर लोग नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों का भेद पहचान नहीं पाते और उनसे आसानी से गुमराह हो जाते हैं, अगर इसका समाधान न किया जाए तो यह बहुत खतरनाक होता है। इसलिए मैं अपेक्षा करता हूँ कि तुम लोग अलग-अलग तरह के लोगों में अंतर करना सीखो। लोगों के अलग-अलग व्यवहार और कथनों से किस स्वभाव का प्रतिनिधित्व होता है, इसका भेद पहचानो और इनके आधार पर व्यक्ति के सार का भेद पहचानो। इसके अलावा, तुम लोगों को इसमें भी अंतर करना आना चाहिए कि सत्य वास्तविकता क्या है और सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत क्या होते हैं। अगर तुम लोग इन्हें नहीं समझ सकते, तो तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाओगे। बिना विवेक के वास्तविकता में प्रवेश करने का मार्ग तुम्हें कैसे मिल सकता है? कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, सोचते हैं कि शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझने का मतलब है कि उनके पास वास्तविकता है। इसलिए, शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते समय वे संतुष्ट और न्यायसंगत महसूस करते हैं, और ज्यादा से ज्यादा उत्साही होते जाते हैं। लेकिन जब उन पर प्रलोभन आते हैं, तो वे लड़खड़ा जाते हैं और यह भी नहीं जानते कि वे कैसे लड़खड़ाए, फिर भी वे कहते हैं, “परमेश्वर ने मेरी रक्षा क्यों नहीं की?” क्या यह शर्मनाक विफलता नहीं है? तो, कुछ अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात करते हैं—क्या तुम लोग इसे पहचान सकते हो? (नहीं।) कभी-कभी मैं कुछ भाई-बहनों से सुनता हूँ कि कुछ अगुआ केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात करते हैं और अगुआ बनने के लिए अनुपयुक्त हैं, और वे उन्हें बर्खास्त करने के लिए कहते हैं। हालाँकि, जब उनसे एक नया अगुआ चुनने के लिए कहा जाता है, तो अधिकांश लोगों में विवेक की कमी होती है, और चुने हुए अगुआ और कार्यकर्ता भी ऐसे होते हैं जो बिना किसी अधिक वास्तविकता के केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की ही बात करते हैं। यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है, बहुत कठिन मुद्दा है। जब तुम लोग इन मामलों पर मेरी संगति के वचनों को सुनते हो, तो क्या तुम सामान्य अगुआओं द्वारा कही गई बातों से कोई अंतर पहचान पाते हो? यदि तुम अंतर पहचान पाते हो, तो तुम जानते हो कि सत्य वास्तविकता क्या है। यदि तुम इसे नहीं पहचान पाते और सोचते हो कि यह सब एक ही है, यह सोचते हो कि, “हमने भी परमेश्वर के वचन बोलना सीख लिया है, और हम जो कहते हैं वह वही है जो परमेश्वर कहता है,” तो फिर यह समस्या है। इससे साबित होता है कि तुम सत्य को बिल्कुल भी नहीं समझते, वास्तव में तुम बिना सत्य समझे केवल परमेश्वर के वचनों की नकल करना जान गए हो और उनमें से थोड़े-बहुत रटकर सुना सकते हो। अधिकांश मसीह-विरोधियों में कुछ विशेष गुण और वाक्पटुता होती है, जो उन्हें लोगों को गुमराह करने की पूँजी देती है। अपने दुष्ट स्वभाव और कथनी और करनी में चालाकी भरे तरीकों के साथ वे वास्तव में लोगों को गुमराह करने में सक्षम होते हैं। यदि तुम लोग केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने में ही सक्षम हो और सत्य वास्तविकता का भेद नहीं पहचान पाते, तो तुम केवल मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह ही किए जा सकते हो। यह तुम्हारे नियंत्रण से परे की बात है! जो लोग सत्य नहीं समझते, वे चाहे कुछ भी चाहें उनके लिए मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह न होना असंभव है। शैतान के प्रभाव से आजाद होना कोई आसान बात नहीं है, है न?

11 जून 2019

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