मद छह : वे कुटिल तरीकों से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं (खंड एक)

परिशिष्ट : दामिंग और शाओमिंग की कहानी

आओ, इससे पहले कि हम अपनी संगति के मुख्य विषय पर आएँ, शुरुआत एक कहानी सुनाने से करते हैं। कहानियाँ सुनाने का क्या फायदा है? (वे याद रखने में आसान हैं।) अब तक, मैंने आसानी से याद होने वाली कितनी कहानियाँ सुनाई हैं? (दाबाओ और शाओबाओ की कहानी।) “दाबाओ और शाओबाओ की कहानी” वह थी जो मैंने पिछली बार सुनाई थी। (इसके अलावा “चूहों का शिकार” और महिला अगुआओं की कहानी भी थी।) पहले ही काफी कहानियाँ सुनाई जा चुकी हैं। मैं कहानियाँ क्यों सुनाता हूँ? दरअसल, इसका मकसद लोगों के समझने लायक कुछ सत्यों के बारे में संगति के लिए ज्यादा सहज, समझने में आसान तरीका अपनाना है। अगर तुम लोग मेरी बताई गई कहानियों से सत्य समझते हो, और ये सत्य तुम लोगों के दैनिक जीवन प्रवेश के विभिन्न पहलुओं में मदद करते हैं, तो कहानियाँ सुनाना व्यर्थ नहीं गया। यह दिखाता है कि तुम लोग कहानियों में शामिल सत्यों को वास्तव में समझते हो, कि तुम इन सत्यों का व्यावहारिक पक्ष समझते हो, न कि उन्हें सिर्फ कहानियों की तरह सुनते हो। पिछली बार मैंने दाबाओ और शाओबाओ की कहानी सुनाई थी। आज मैं दामिंग और शाओमिंग की कहानी सुनाऊँगा। जब तुम लोग सुनो, तो सोचना कि यह कहानी वास्तव में तुम लोगों को क्या समझाने की कोशिश कर रही है और इसमें सत्य का कौन-सा पहलू शामिल है।

दामिंग और शाओमिंग पिता-पुत्र हैं। कुछ समय पहले, दामिंग और उसके बेटे शाओमिंग ने परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार किया। क्या यह अच्छी बात है? (हाँ।) यह अच्छी बात है। शाओमिंग अभी छोटा है और थोड़ा-बहुत ही पढ़ सकता है, इसलिए दामिंग हर दिन उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाता है और धैर्य के साथ उन वचनों को समझाता है जो शाओमिंग को समझ में नहीं आते। कुछ समय बाद, शाओमिंग इस बारे में कुछ धर्म-सिद्धांत समझने लगता है कि कैसे आचरण करना है, साथ ही वह कुछ शब्दावली भी समझने लगता है जो उसने परमेश्वर में विश्वास करने से पहले कभी नहीं सुनी थी, जैसे समर्पण, आस्था, ईमानदारी, धोखेबाजी, इत्यादि। अपने बेटे की प्रगति देखकर दामिंग बहुत खुश है। हालाँकि, हाल ही में दामिंग ने देखा कि वह शाओमिंग को परमेश्वर के वचनों को चाहे कितना ही पढ़कर सुनाए, उसके व्यवहार या बोलने में कोई खास प्रगति नहीं हो रही है। दामिंग चिंतित हो जाता है और मन में एक बोझ महसूस करता है, वह सोचता है : “मैं अपने बेटे को परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाकर कुछ सत्य कैसे समझा सकता हूँ, उसमें कुछ बदलाव कैसे ला सकता हूँ ताकि दूसरे उसे स्वीकार करें, उसे शाबाशी दें, और एक अच्छे बच्चे के रूप में उसकी तारीफ करें? और फिर, शाओमिंग के प्रदर्शन के कारण, वे यह बड़ाई कर सकें कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है, और मेरे बेटे के बदलावों के माध्यम से सुसमाचार का उपदेश दिया जा सके—यह कितना अच्छा होगा!” मन में यह बोझ उठाए दामिंग सोचता रहता है : “मैं शाओमिंग को स्वयं के आचरण के बारे में ज्यादा समझने के लिए कैसे ठीक से शिक्षित कर सकता हूँ, ताकि वह बेहतर प्रदर्शन करे और परमेश्वर के इरादों के साथ तालमेल बिठाए? अंत में, जब शाओमिंग एक अच्छा बच्चा बन जाता है और हर कोई उसकी तारीफ करता है, तो यह सारी महिमा परमेश्वर को दी जा सकती है—यह कितना अद्भुत होगा! उस समय, मेरे दिल का भारी बोझ उतर जाएगा।” जिस बोझ को दामिंग महसूस करता है क्या वह उचित है? क्या इसे उसके लिए एक उचित कार्य करने के रूप में माना जा सकता है? (हाँ।) इस दृष्टिकोण से, उसकी शुरुआत सही है—यह तर्कसंगत होना और उचित कार्य माना जाता है। क्या शाओमिंग के लिए दामिंग द्वारा चुना गया मार्ग सही है, या गलत? यह अच्छा है, या बुरा? आओ, आगे देखते हैं। दामिंग अक्सर इस बारे में परमेश्वर से प्रार्थना और विनती करता है, और अंत में एक दिन, उसे एक “प्रेरणा” मिलती है। कौन सी “प्रेरणा”? उद्धरण चिह्नों में तथाकथित “प्रेरणा”। चूँकि यह “प्रेरणा” उद्धरण चिह्नों में है, तो दामिंग किस तरह के मार्ग की बात कर रहा होगा? क्या तुम लोग कल्पना कर सकते हो कि कहानी में आगे क्या होगा? यह बहुत स्पष्ट नहीं है, है न? यह कुछ हद तक अज्ञात है।

एक दिन, अपने बेटे को परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने के बाद, दामिंग ने बड़ी गंभीरता से शाओमिंग से पूछा कि क्या परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है। शाओमिंग ने गंभीरता से उत्तर दिया, “परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे दूसरों को परेशान नहीं करते, उन्हें आपदा का सामना नहीं करना पड़ता, वे स्वर्ग जा सकते हैं, और उन्हें मृत्यु के बाद नरक में नहीं भेजा जाएगा।” क्या शाओमिंग सही है? उसकी छोटी उम्र को देखते हुए, शाओमिंग का यह कह पाना पहले से ही काफी अच्छा है। परमेश्वर में विश्वास के बारे में उसकी समझ बहुत साधारण है, यह अल्पविकसित और अत्यंत सतही है, लेकिन उसके लिए, यह अभी से ही गहरी है। यह सुनकर, दामिंग खुश है और सुकून महसूस करता है, और कहता है, “शाबाश शाओमिंग, तुमने प्रगति की है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का कुछ आधार है। तुम्हारे पिताजी बहुत खुश हैं और सुकून महसूस करते हैं। लेकिन क्या परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में इतना साधारण है?” शाओमिंग एक पल के लिए सोचता है और कहता है, “क्या परमेश्वर के वचन यही सब कुछ नहीं कहते हैं? और क्या शेष है?” दामिंग तुरंत जवाब देता है : “परमेश्वर की अपेक्षाएँ सिर्फ यही नहीं हैं। तुमने इतने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, और जब भाई-बहन अपने घर आते हैं, तो तुम्हें उनका अभिवादन करना भी नहीं आता। अब से, जब तुम बुजुर्गों से मिलो, तो उन्हें दादा-दादी कहो; जब तुम कम उम्र के वयस्कों से मिलो, तो उन्हें चाचा, चाची या भैया और दीदी कहो। इस तरह, तुम एक ऐसे बच्चे बन जाओगे जिसे हर कोई प्यार करता है—और परमेश्वर सिर्फ उन बच्चों से प्यार करता है जिन्हें हर कोई प्यार करता है। अब से, मेरी बात सुनो और जैसा मैं कहूँ वैसा करो; जब मैं तुम्हें जिस को जिस नाम से पुकारने के लिए कहूँ, तो तुम उसे उसी नाम से पुकारो।” शाओमिंग अपने पिताजी की बातों को दिल में बसा लेता है, उसे लगता है कि उसके पिताजी जो कहते हैं वह सही है। अपने युवा दिल में, वह मानता है कि उसके पिताजी बड़े हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों को अधिक पढ़ा है, और वे उससे अधिक जानते हैं। इसके अलावा, पिताजी के मन में उसके सर्वोत्तम हित हैं और वे निश्चित रूप से उसे गुमराह नहीं करेंगे, इसलिए पिताजी जो कुछ भी कहते हैं वह सही होना चाहिए। शाओमिंग यह नहीं समझता कि सत्य क्या है और धर्म-सिद्धांत क्या है, लेकिन कम से कम वह जानता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा, क्या सही है और क्या गलत। अपने पिताजी के ऐसा बोलने के बाद, शाओमिंग भी इस मामले को लेकर मन में थोड़ा बोझ महसूस करता है। आगे चलकर, जब भी शाओमिंग अपने पिताजी के साथ बाहर जाता है और वे किसी से मिलते हैं, तब अगर उसके पिताजी उसे “आंटी” कहकर बुलाने के लिए कहते हैं, तो वह कहता है “हैलो आंटी”; अगर उसे “अंकल” कहकर बुलाने के लिए कहा जाता है, तो वह कहता है “हैलो, अंकल।” सभी लोग शाओमिंग की एक ऐसे अच्छे बच्चे के रूप में तारीफ करते हैं जो विनम्र है, और उसे उचित परवरिश देने के लिए वे दामिंग की भी तारीफ करते हैं। शाओमिंग काफी खुश है, मन में सोच रहा है, “पिताजी की शिक्षा अच्छी है; मैं जिससे भी मिलता हूँ, उसे पसंद आता हूँ।” शाओमिंग अंदर से प्रसन्नता और विशेष रूप से गर्व महसूस करता है, यह सोचकर कि जिस तरह से उसके पिताजी उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं, वह वास्तव में अच्छा और सही है।

एक दिन, जैसे ही शाओमिंग स्कूल से घर आता है, वह दौड़कर अपने पिताजी के पास जाता है और कहता है, “पिताजी, अंदाजा लगाओ कि क्या हुआ? पड़ोस के बूढ़े झांग ने इतनी बड़ी—” इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, दामिंग बीच में टोकता है : “‘बूढ़े झांग’? शाओमिंग, तुम ऐसा कैसे बोल सकते हो? क्या तुम अभी भी विश्वासी हो या नहीं? तुम उसे ‘बूढ़ा झांग’ कहकर कैसे बुला सकते हो? तुम भूल गए हो कि मैंने तुमसे क्या कहा था, तुम्हारी वास्तव में परमेश्वर में आस्था नहीं है, तुम सच्चे विश्वासी नहीं हो। देखो, मुझे यह याद है; मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ और तुम्हें याद दिला सकता हूँ। तुम्हें उन्हें झांग दादाजी कह कर बुलाना चाहिए, समझे?” शाओमिंग इस पर विचार करता है : “उन्हें झांग दादाजी कहकर बुलाना भी ठीक रहेगा।” वह आगे कहता है, “तो, पड़ोस के झांग दादाजी ने एक मछली पकड़ी जो बहुत बड़ी थी! बूढ़ी औरत झांग बहुत रोमांचित थी!” “क्या तुम फिर से भूल गए?” दामिंग ने कहा। “तुम अभी भी नहीं समझ रहे हो, बेटा। मैंने अभी तुमसे कहा, तुम्हें उन्हें झांग दादाजी कहकर बुलाना चाहिए; इसका मतलब है कि उनकी पत्नी, जो उसी पीढ़ी की है, उन्हें क्या कहकर बुलाया जाना चाहिए? उन्हें झांग दादी कहकर बुलाना चाहिए। यह याद रखो; कभी भी बूढ़ा झांग या बूढ़ी झांग मत कहो, वरना लोग हम पर हँसेंगे। क्या यह विश्वासियों के रूप में हमारे लिए शर्मनाक नहीं होगा? वे कहेंगे कि हम विश्वासियों की तरह नहीं हैं बल्कि असभ्य और अशिष्ट हैं। इससे परमेश्वर की महिमा नहीं होती।” शाओमिंग पलटता अपने पिताजी को बूढ़े झांग द्वारा पकड़ी गई बड़ी मछली के बारे में बताने के लिए उत्साहित था, लेकिन अपने पिताजी द्वारा सुधारे जाने के बाद, उसकी दिलचस्पी खत्म हो गई और वह इसके बारे में और बात नहीं करना चाहता था। वह पीछे मुड़ता है, अपना बैग उठाता है और चलते हुए बुदबुदाता है : “आपको लगता है कि आप सब कुछ जानते हो, इन झांग दादा, झांग दादी जैसी सारी बातें। इसका हमसे क्या लेना-देना है? जैसे कि आप अकेले ही हो जो आध्यात्मिक हो!” दामिंग जवाब देता है : “ठीक है, मैं आध्यात्मिक हूँ, वास्तव में! ज्यादातर लोगों के बारे में, चाहे वे कितने भी बूढ़े क्यों न हों, मैं उनकी उम्र देखकर ही उनकी वरिष्ठता बता सकता हूँ, और जानता हूँ कि उन्हें कैसे संबोधित किया जाना चाहिए। मैं बड़े लोगों को चाचा और चाची कहकर बुलाता हूँ—तुम नाम भी सही से क्यों नहीं ले सकते? विश्वासी होकर, हम इस बारे में नहीं भूल सकते; हम पीढ़ियों के हिसाब से संबोधनों में इधर-उधर नहीं कर सकते।” इस फटकार के बाद, शाओमिंग अंदर से बहुत अच्छा महसूस नहीं करता, लेकिन गहराई में, वह अभी भी सोचता है कि उसके पिताजी सही हैं; उसके पिताजी जो कुछ भी करते हैं वह सही है, और वह न चाहते हुए भी मानता है कि वह गलत है। तब से, जब भी वह बूढ़े झांग या बूढ़ी झांग को देखता है, तो वह उन्हें झांग दादाजी और झांग दादी कहकर बुलाता है। उसके पिताजी जो कुछ भी उसे सिखाते और उसमें बैठा देते हैं, शाओमिंग उसे दिल से मानता है। क्या यह अच्छी बात है या बुरी बात? अब तक, यह एक अच्छी बात लगती है, है न?

एक दिन, शाओमिंग और उसके पिताजी टहलने जाते हैं और देखते हैं कि एक बूढ़ी सुअरनी अपने बच्चों के झुंड को ले जा रही है। सुअरनी और उसके बच्चों के बीच का रिश्ता बहुत करीबी है। शाओमिंग सोचता है कि परमेश्वर द्वारा बनाई गई हर चीज अच्छी है; चाहे वह सुअर हो या कुत्ता, उन सभी में मातृ प्रवृत्ति होती है और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। इस बार, शाओमिंग ने अशिष्टता से बात नहीं की या जल्दबाजी में उसे “बूढ़ी सुअरनी” नहीं कहा। गलती करने और अपने पिता को नाराज करने के डर से, वह शांति से पूछता है, “पिताजी, यह सुअरनी कितनी बूढ़ी है? इसने बहुत सारे बच्चों को जन्म दिया है, मुझे इसे क्या कहकर बुलाना चाहिए?” दामिंग एक पल के लिए सोचता है : “हमें इसे क्या कहकर बुलाना चाहिए? यह कहना मुश्किल है।” अपने पिताजी को बिना किसी जवाब के, विचारों में खोया हुआ देखकर शाओमिंग शिकायत करता है : “क्या आपने परमेश्वर के बहुत सारे वचन नहीं पढ़े हैं? आप मुझसे भी बड़े हैं; आपको यह कैसे नहीं पता?” शाओमिंग द्वारा उकसाए जाने पर, दामिंग थोड़ा चिंतित हो जाता है और कहता है : “इसे ‘नानी’ कहकर पुकारना कैसा रहेगा?” इससे पहले कि शाओमिंग सुअरनी को पुकारे, दामिंग फिर से सोचता है और कहता है, “हम उसे नानी कहकर नहीं पुकार सकते; ऐसा करने से वह तुम्हारी नानी की पीढ़ी में आ जाएगी, है न? उसे सुअरनी दादी कहकर पुकारना और भी बुरा होगा, ऐसा करने से वह मेरी माँ की पीढ़ी में आ जाएगी। चूँकि उसने बहुत से बच्चों को जन्म दिया है, इसलिए हम उसकी पहचान या ओहदे की उपेक्षा नहीं कर सकते, और हम उसकी पीढ़ी को गलत नहीं बता सकते। हमें उसे ‘सुअरनी आंटी’ कहकर पुकारना चाहिए।” यह सुनकर, शाओमिंग सम्मान के साथ सुअरनी को प्रणाम करता है और पुकारता है, “नमस्कार, सुअरनी आंटी।” सुअरनी चौंक जाती है और डर के मारे, वह और उसके सभी बच्चे भाग जाते हैं। यह देखकर, शाओमिंग को हैरानी होती है कि क्या उसने उसे गलत नाम से पुकारा है। दामिंग कहता है, “इस तरह से प्रतिक्रिया करने का मतलब है कि सुअरनी जरूर खुश और उत्साहित होगी। भविष्य में, जब हम ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं, तो चाहे दूसरे कुछ भी कहें या करें, हमें इस तरह से व्यवहार करना जारी रखना चाहिए। विनम्र रहें और सामाजिक मानदंडों का पालन करें; यह देखकर सुअर भी खुश होंगे।” इस मामले से, शाओमिंग कुछ नया सीखता है। वह क्या सीखता है? वह कहता है, “परमेश्वर ने सभी चीजें बनाई हैं; जब तक सभी प्राणी एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, विनम्र होते हैं, वरिष्ठता को समझते हैं, और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं और छोटों से प्यार करते हैं, तब तक सभी प्राणी सौहार्दपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।” शाओमिंग अब इस धर्म-सिद्धांत को समझता है। यह सुनकर, उसके पिता शाओमिंग की तारीफ करते हैं कि वह बहुत ही आसानी से सीख जाने वाला छोटा लड़का है। तब से, शाओमिंग और भी अधिक सभ्य और विनम्र हो जाता है। वह जहाँ भी जाता है, अच्छा व्यवहार करता है और भीड़ से अलग दिखता है। क्या वह एक “अच्छा लड़का” नहीं है? वह उद्धरण चिह्नों में एक “अच्छा लड़का” है। और इसके साथ ही इस कहानी का अंत होता है।

इस कहानी के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या यह काफी मजेदार नहीं है? यह कहानी कैसे बनी? यह वास्तविक जीवन में लोगों के भाषण, कार्य, व्यवहार, विचारों और दृष्टिकोणों से ली गई है—उन्हें इस छोटी सी कहानी में समेट दिया गया है। इस कहानी में किस मुद्दे पर बात हो रही है? तुम लोग इस कहानी में दामिंग के साथ क्या समस्याएँ देखते हो? शाओमिंग के बारे में क्या विचार है? दामिंग की समस्याओं का सार क्या है? सबसे पहले, इस बारे में सोचो : दामिंग ने जो संक्षेप में बताया और अभ्यास किया, क्या उसका कोई हिस्सा सत्य के अनुरूप था? (नहीं।) तो फिर वह क्या अभ्यास कर रहा था? (धारणाएँ और कल्पनाएँ।) ये धारणाएँ और कल्पनाएँ कहाँ से आईं? (पारंपरिक संस्कृति से।) इसकी जड़ पारंपरिक संस्कृति है; उसकी धारणाएँ और कल्पनाएँ पारंपरिक संस्कृति के संक्रमण, अनुकूलन और शिक्षा की उपज थीं। उसने अपने हिसाब से पारंपरिक संस्कृति के सबसे अच्छे, सबसे सकारात्मक और सबसे उत्कृष्ट तत्वों को अपनाया, उन्हें नए सांचे में ढाला, और उन्हें अपने बेटे के अभ्यास के लिए उस चीज में बदल दिया, जिसे वह सत्य मानता था। क्या इस कहानी को स्पष्ट और समझने में आसान माना जा सकता है? (हाँ।) बताओ कि तुम लोगों ने इस कहानी को सुनकर क्या समझा और क्या मतलब निकाल पाए। (इसे सुनने के बाद, मुझे लगा कि दामिंग की समस्या यह थी कि हालाँकि वह परमेश्वर में विश्वास करता था, लेकिन वह कभी भी परमेश्वर के वचनों पर कोई प्रयास नहीं करता था। वह लोगों की पारंपरिक धारणाओं के आधार पर परमेश्वर में विश्वास करता था, सोचता था कि अगर वह उन सतही मानदंडों का पालन करता है, तो परमेश्वर संतुष्ट हो जाएगा। उसने परमेश्वर के वचनों के अंदर से यह खोज या चिंतन नहीं किया कि परमेश्वर वास्तव में लोगों से क्या अपेक्षा करता है और किसी व्यक्ति को सामान्य मानवता से कैसे जीना चाहिए।) दामिंग किसके अनुसार जी रहा था? (धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार।) धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार जीना एक खोखला वाक्यांश है; वास्तव में, वह पारंपरिक संस्कृति के अनुसार जी रहा था, और उसने पारंपरिक संस्कृति को ही सत्य मान लिया था। वह पारंपरिक संस्कृति के अनुसार जी रहा था—इसमें कौन-से विवरण शामिल हैं? वह क्यों चाहता था कि शाओमिंग लोगों को कुछ विशेष उपाधियों के साथ संबोधित करे? (ऊपरी तौर पर, उसने कहा कि उसे इन अच्छे कार्यों के जरिए परमेश्वर को महिमा दिलानी थी, लेकिन वास्तव में, वह अपने खुद के अहंकार को संतुष्ट करना चाहता था, वह अपने बच्चे को अच्छी तरह से शिक्षित करने की क्षमता रखने के लिए प्रशंसा पाना चाहता था।) हाँ, यही उसका इरादा था। उसकी शिक्षा का मकसद अपने बच्चे को परमेश्वर के वचन और सत्य समझाना नहीं था; इसका मकसद अपने बच्चे से ऐसे काम करवाना था जिससे उसकी महिमा होती, उसका मकसद अपना व्यक्तिगत अहंकार संतुष्ट करना था। यह भी एक समस्या है। क्या हमेशा अपने व्यवहार के माध्यम से खुद को सजाने और संवारने पर ध्यान केंद्रित करने में कोई समस्या है? (बिल्कुल है।) इससे पता चलता है कि जिस मार्ग पर वह चल रहा था उसमें कोई समस्या है, और यह सबसे गंभीर समस्या है। हमेशा अपने व्यवहार को संवारने पर ध्यान केंद्रित करने का मकसद क्या है? इसका मकसद लोगों से तारीफ पाना है, लोगों से खुद की चापलूसी और तारीफ करवाना है। इसकी प्रकृति क्या है? यह पाखंड है, यह फरीसियों का रवैया है। जो बाहरी तौर पर अच्छे व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो अपने व्यवहार को संवारने पर ध्यान देते हैं, जो अपने व्यवहार को लेकर बहुत संजीदा हैं—क्या वे सत्य को समझते हैं? (नहीं।) वे परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़ते हैं और काफी कोशिश करते हैं, फिर वे सत्य को क्यों नहीं समझते? वे नहीं समझते हैं कि मानवजाति के परमेश्वर के प्रबंधन और उद्धार का लक्ष्य लोगों को सत्य समझाना, लोगों को पूर्ण बनाना और उनके स्वभाव में परिवर्तन लाना है—वे इसे नहीं समझते हैं। वे सोचते हैं, “चाहे मैं परमेश्वर के वचनों को कैसे भी पढ़ूँ, मैं कुछ भाषण, कार्य और व्यवहारों का सारांश दूँगा जिससे लोग आसानी से सहमत हो जाएँ, जिसकी वे तारीफ करें और जिसे वे शाबाशी दें, और फिर मैं इन चीजों को जीऊँगा और वास्तविक जीवन में उनका मजबूती से पालन करूँगा। एक सच्चा विश्वासी यही करेगा।”

क्या तुम लोगों के पास भी दामिंग जैसी ही समस्याएँ हैं? अभी चर्चा का हिस्सा बने स्पष्ट पहलुओं के अलावा, जैसे सामाजिक मानदंडों का पालन करना, वरिष्ठता पर ध्यान देना, बुजुर्गों का सम्मान करना और युवाओं का ख्याल रखना, और बड़ों और छोटों के बीच उचित पदानुक्रम बनाए रखना, क्या और भी ऐसे ही व्यवहार, विचार, दृष्टिकोण या समझ हैं? क्या तुम लोग खुद इन मुद्दों को गहराई से परखना और उनका गहन-विश्लेषण करना जानते हो? उदाहरण के लिए, कलीसिया में, अगर कोई बुजुर्ग है या कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करता है, तो तुम हमेशा उसे सम्मान देना चाहते हो। तुम उसे बोलने देते हो, भले ही वह बकवास कर रहा हो, उसे बीच में नहीं टोकते हो, और यहाँ तक कि जब वह कुछ गलत करता है और उसे काट-छाँट करने की जरूरत होती है, तब भी तुम उसका सम्मान बचाने की कोशिश करते हो और दूसरों के सामने उसकी आलोचना करने से बचते हो, यह सोचते हो कि चाहे उसके कार्य कितने भी अनुचित या भयानक क्यों न हों, सभी को उसे माफ करने और सहन करने की जरूरत है। तुम अक्सर दूसरों को सिखाते भी हो : “हमें बुजुर्गों को कुछ सम्मान देना चाहिए और उनकी गरिमा को ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए। हम उनके जूनियर हैं।” यह “जूनियर” शब्द कहाँ से आया है? (पारंपरिक संस्कृति से।) यह पारंपरिक संस्कृति से आया है। इसके अलावा, कलीसिया में एक खास माहौल बन गया है, जिसके तहत लोग बड़े भाई-बहनों से मिलने पर उन्हें गर्मजोशी से “भैया,” “दीदी,” “चाची” या “बड़े भाई” कहकर संबोधित करते हैं, जैसे कि हर कोई एक बड़े परिवार का हिस्सा हो; इन बड़े लोगों को अतिरिक्त सम्मान दिया जाता है, जो अनजाने में दूसरों के मन में छोटे लोगों के बारे में अच्छी छाप छोड़ देता है। पारंपरिक संस्कृति के यह तत्व चीनी लोगों के खून और विचारों में गहराई तक समाए हुए हैं, वे इस हद तक समाए हुए हैं कि वे कलीसियाई जीवन में लगातार फैलते रहते हैं और वहाँ के माहौल को आकार देते हैं। क्योंकि लोग अक्सर इन अवधारणाओं से प्रतिबंधित और नियंत्रित होते हैं, वे न केवल व्यक्तिगत रूप से उनका समर्थन करते हैं, इस दिशा में कार्य करने और अभ्यास करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने की मंजूरी देते हैं, उन्हें भी ऐसा करने का निर्देश देते हैं। पारंपरिक संस्कृति सत्य नहीं है; यह निश्चित है। लेकिन क्या लोगों के लिए यह जानना ही काफी है कि यह सत्य नहीं है? यह सत्य नहीं है, यह एक पहलू है; हमें इसका गहन-विश्लेषण क्यों करना चाहिए? इसकी जड़ क्या है? समस्या का सार कहाँ है? कोई इन चीजों को कैसे जाने दे सकता है? पारंपरिक संस्कृति का गहन-विश्लेषण करने का मकसद तुम्हारे दिल की गहराई में बसे इस पहलू के सिद्धांतों, विचारों और दृष्टिकोणों की तुम्हें एक नई समझ प्रदान करना है। यह नई समझ कैसे हासिल की जा सकती है? सबसे पहले, तुम्हें यह जानना होगा कि पारंपरिक संस्कृति शैतान से उत्पन्न होती है। और शैतान पारंपरिक संस्कृति के इन तत्वों को मनुष्यों में कैसे डालता है? शैतान, हर युग में इन विचारों, इन तथाकथित कहावतों और सिद्धांतों को फैलाने के लिए कुछ मशहूर हस्तियों और महान लोगों का इस्तेमाल करता है। फिर, धीरे-धीरे, ये विचार व्यवस्थित और ठोस हो जाते हैं, लोगों के जीवन के और करीब आते हैं, और अंततः वे लोगों के बीच व्यापक हो जाते हैं; धीरे-धीरे ये शैतानी विचार, कहावतें और सिद्धांत लोगों के मन में डाल दिए जाते हैं। शैतान से आने वाले इन विचारों और सिद्धांतों में शिक्षित होने के बाद, लोग इन्हें सबसे सकारात्मक चीजें मानते हैं जिनका उन्हें अभ्यास और पालन करना चाहिए। फिर शैतान इन चीजों का इस्तेमाल लोगों के मन को कैद करने और नियंत्रित करने के लिए करता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों को ऐसी परिस्थितियों में शिक्षित, अनुकूलित और नियंत्रित किया जाता रहा है, जो आज तक जारी है। इन सभी पीढ़ियों ने माना है कि पारंपरिक संस्कृति सही और अच्छी है। कोई भी इन तथाकथित अच्छी और सही चीजों की उत्पत्ति या स्रोत का गहन-विश्लेषण नहीं करता है—यही वह चीज है जो समस्या को गंभीर बना देती है। यहाँ तक कि कुछ विश्वासी जो कई सालों से परमेश्वर के वचनों को पढ़ते आए हैं, वे अभी भी सोचते हैं कि ये सही और सकारात्मक चीजें हैं, इस हद तक कि वे मानते हैं कि ये सत्य की जगह ले सकती हैं, परमेश्वर के वचनों की जगह ले सकती हैं। इससे भी बढ़कर, कुछ लोग सोचते हैं, “चाहे लोगों के बीच रहते हुए हम परमेश्वर के कितने भी वचन क्यों न पढ़ लें, तथाकथित पारंपरिक विचार और संस्कृति के पारंपरिक तत्व—जैसे तीन आज्ञाकारिताएँ और चार गुण, साथ ही परोपकार, धार्मिकता, उपयुक्तता, बुद्धिमत्ता और विश्वसनीयता जैसी अवधारणाएँ—छोड़े नहीं जा सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे हमारे पूर्वजों से आए हैं, जो संत थे। हम सिर्फ इसलिए अपने पूर्वजों की शिक्षाओं के खिलाफ नहीं जा सकते क्योंकि हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और हम अपने पूर्वजों की और उन प्राचीन संतों की शिक्षाओं को बदल या छोड़ नहीं सकते।” ऐसे विचार और जागरूकता सभी लोगों के हृदय में मौजूद हैं। अनजाने में, वे सब अभी भी पारंपरिक संस्कृति के इन तत्वों द्वारा नियंत्रित और बंधे हुए हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई बच्चा देखता है कि तुम्हारी उम्र बीस-तीस साल है और वह तुम्हें “चाचा” कहता है, तो तुम खुश और संतुष्ट महसूस करते हो। अगर वह तुम्हें सीधे तुम्हारे नाम से बुलाता है, तो तुम असहज महसूस करते हो, तुम सोचते हो कि बच्चा असभ्य है और उसे डाँटना चाहिए, और तुम्हारा रवैया बदल जाता है। वास्तविकता में, चाहे वे तुम्हें चाचा कहे या तुम्हारे नाम से बुलाए, इसका तुम्हारी समग्रता पर कोई असर नहीं पड़ता। तो जब वह तुम्हें चाचा नहीं कहता तो तुम दुखी क्यों होते हो? ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम पर पारंपरिक संस्कृति हावी और प्रभावी है; यह पहले से ही तुम्हारे मन में जड़ें जमा चुकी है और यह लोगों, घटनाओं और चीजों के साथ व्यवहार करने और सभी चीजों का मूल्यांकन और निर्णय करने के लिए तुम्हारा सबसे बुनियादी मानक बन गई है। जब तुम्हारा मानक ही गलत है, तो क्या तुम्हारे कार्यों की प्रकृति सही हो सकती है? निश्चित रूप से नहीं हो सकती। अगर सत्य से मापा जाए, तो तुम मामले को कैसे सँभालोगे? क्या तुम्हें इस बात की परवाह होगी कि दूसरे तुम्हें क्या कहते हैं? (नहीं।) अगर उन्होंने तुम्हारा अपमान या तिरस्कार किया है, तो उस स्थिति में, तुम निश्चित रूप से असहज महसूस करोगे; यह मानवता की एक सामान्य अभिव्यक्ति है। हालाँकि, अगर तुम्हारे माप का मानक परमेश्वर के वचन, सत्य या परमेश्वर से आने वाली संस्कृति हो, तो तुम्हें लोग चाहे तुम्हारे नाम से बुलाएँ या चाहे “चाचा” या “भाई” कहें, तुम्हारी बिल्कुल कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। इस मामले में, तुम स्थानीय रिवाजों का पालन कर सकते हो। उदाहरण के लिए, चीन में, जब कोई तुम्हें “चाचा” कहता है, तो तुम्हें लगता है कि वह तुम्हारे प्रति सम्मान दिखा रहा है। लेकिन अगर तुम किसी पश्चिमी देश में जाते हो और कोई तुम्हें “अंकल” कहता है, तो तुम्हें अजीब लगेगा; तुम अपने नाम से बुलाया जाना पसंद करोगे, इसे सम्मान का एक रूप पाओगे। चीन में, अगर तुमसे उम्र में बहुत छोटा कोई व्यक्ति तुम्हें तुम्हारे नाम से बुलाता है, तो तुम बहुत दुखी हो जाओगे, तुम्हें लगेगा कि उसने वरिष्ठता की अवहेलना की है; तुम बहुत अपमानित महसूस करोगे, और तुम क्रोधित हो जाओगे और यहाँ तक कि उस व्यक्ति की निंदा भी करोगे। क्या इससे यह नहीं पता चलता कि इस तरह की सोच में कोई समस्या है? मैं इसी समस्या की बात करना चाहता हूँ।

हर देश और हर जातीय समूह की अपनी पारंपरिक संस्कृति होती है। क्या हम सभी पारंपरिक संस्कृतियों की आलोचना करते हैं? एक ऐसी संस्कृति है, जिसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए। क्या तुम लोग बता सकते हो कि वह कौन-सी संस्कृति है? मैं तुम लोगों को एक उदाहरण देता हूँ। परमेश्वर ने आदम को बनाया; आदम का नाम किसने रखा? (परमेश्वर ने।) तो, परमेश्वर ने मानवजाति को बनाया, और उसके साथ बातचीत करते समय, वह लोगों को कैसे संबोधित करता है? (उन्हें उनके नाम से बुलाता है।) ठीक है, वह उन्हें उनके नाम से बुलाता है। परमेश्वर तुम्हें एक नाम देता है, और परमेश्वर की दृष्टि में इस नाम का अर्थ है; यह एक पदनाम, एक उपाधि के रूप में कार्य करता है। जब परमेश्वर तुम्हें एक पदनाम देता है, तो वह तुम्हें इस पदनाम से बुलाता है। क्या यह सम्मान का एक रूप नहीं है? (हाँ, है।) यह सम्मान का सबसे अच्छा रूप है, एक ऐसा सम्मान जो सत्य से सबसे अधिक मेल खाता है और सबसे सकारात्मक है। यह लोगों का सम्मान करने का एक मानक है, और यह परमेश्वर से आता है। क्या यह संस्कृति का एक रूप नहीं है? (यह है।) क्या हमें इस संस्कृति का समर्थन करना चाहिए? (हाँ।) यह परमेश्वर से आती है; परमेश्वर किसी व्यक्ति को सीधे उसके नाम से पुकारता है। परमेश्वर तुम्हें एक नाम देता है, तुम्हें एक पदनाम देता है, और फिर इस पदनाम का इस्तेमाल तुम्हारे प्रतिनिधित्व के लिए और तुम्हें पुकारने के लिए करता है। परमेश्वर लोगों के साथ इसी तरह से व्यवहार करता है। जब परमेश्वर ने दूसरा मनुष्य बनाया, तो उसने उसके साथ कैसा व्यवहार किया? परमेश्वर ने आदम को उसका नाम रखने दिया। आदम ने उसका नाम हव्वा रखा। क्या परमेश्वर ने उसे इस नाम से पुकारा? उसने पुकारा। तो, यह एक संस्कृति है जो परमेश्वर से आती है। परमेश्वर हर सृजित प्राणी को एक पदनाम देता है, और जब वह उस पदनाम को पुकारता है, तो मनुष्य और परमेश्वर दोनों जानते हैं कि किसका उल्लेख किया जा रहा है। इसे सम्मान कहा जाता है, इसे समानता कहा जाता है, यह मापने का एक मानक है कि क्या कोई व्यक्ति विनम्र है, क्या उनकी मानवता में शिष्टाचार की भावना है। क्या यह सटीक है? (हाँ।) यह वास्तव में सटीक है। बाइबल में, चाहे किसी निश्चित घटना को दर्ज किया गया हो या किसी परिवार की वंशावली हो, सभी पात्रों के नाम हैं, उनके पदनाम हैं। हालाँकि, एक बात है जिसके बारे में मैं निश्चित नहीं हूँ कि तुम लोगों ने गौर किया है या नहीं : बाइबल दादा, दादी, चाचा, चाची, ताऊ, ताई, जैसे संबोधनों का इस्तेमाल नहीं करती है; यह सिर्फ लोगों के नामों का इस्तेमाल करती है। तुम लोग इससे क्या सीख सकते हो? परमेश्वर ने लोगों के लिए जो कुछ भी तय किया है, चाहे वह नियम हो या व्यवस्थाएँ, मनुष्य की नजर से, एक तरह की परंपरा है जो लोगों के बीच चली आ रही है। और यह परंपरा क्या है जो परमेश्वर से चली आ रही है? यह कुछ ऐसा है जिसका लोगों को पालन करना चाहिए : पदानुक्रमिक पदवियों की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर की नजर में, दादा, दादी, ताऊ, चाचा, ताई, चाची, जैसी जटिल पारिवारिक पदवियाँ नहीं हैं। मनुष्य इन पदानुक्रमिक पदवियों और उपाधियों को लेकर इतने चिंतित क्यों हैं? इसका क्या मतलब है? परमेश्वर इन चीजों से सबसे ज्यादा घृणा करता है। हमेशा शैतान की किस्म के लोग इनके बारे में परेशान रहते हैं। इस पारंपरिक संस्कृति के संदर्भ में, परमेश्वर को लेकर एक बहुत ही वास्तविक तथ्य है : परमेश्वर ने पूरी मानवजाति का सृजन किया है, और वह स्पष्ट रूप से जानता है कि एक व्यक्ति के कितने परिवार और वंशज हो सकते हैं; किसी पदानुक्रम की जरूरत नहीं है। परमेश्वर केवल इतना कहता है कि फूलो-फलो और बढ़ते रहो, अपने परिवार को समृद्ध बनाओ—तुम्हें बस इतना ही याद रखने की जरूरत है। हर पीढ़ी के कितने वंशज हैं, और उन वंशजों के कितने वंशज हैं—बस इतना ही है, पदानुक्रम की कोई जरूरत नहीं है। बाद की पीढ़ियों को यह जानने की जरूरत नहीं है कि उनके पूर्वज कौन थे, न ही उन्हें पैतृक भवन या मंदिर बनाने की जरूरत है, उनके लिए बलि चढ़ाने या उनकी पूजा करने की तो बात ही दूर है। बाइबल में दर्ज है कि जो सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, वे जो यहोवा में विश्वास करते हैं, वे सभी वेदी के सामने भेंट चढ़ाते हैं। परिवार का हर व्यक्ति परमेश्वर के सामने आता है और भेंट चढ़ाता है। यह चीनियों से अलग है, जहाँ हर परिवार में पर-परदादाओं, परदादाओं, परदादियों के लिए स्मारक पट्टिकाओं से भरा एक पैतृक भवन होता है। जिस जगह पर परमेश्वर ने सबसे पहले अपना कार्य शुरू किया, वहाँ ये चीजें मौजूद नहीं हैं। लेकिन परमेश्वर के कार्य के स्थान से काफी दूर की अन्य जगहों पर शैतान और बुरी आत्माओं का नियंत्रण है। इन बौद्ध देशों में, ये शैतानी प्रथाएँ फलती-फूलती हैं। वहाँ, लोगों को अपने पूर्वजों की आराधना करनी पड़ती है, और हर बात परिवार को बतानी पड़ती है, हर बात परिवार के पूर्वजों को बतानी पड़ती है; भले ही अब पूर्वजों की राख तक न बची हो, फिर भी बाद की पीढ़ियों को धूपबत्ती चढ़ानी पड़ती है और सिर झुकाना पड़ता है। आधुनिक समय में, कुछ लोग जो ज्यादा पश्चिमी और नए विचारों के संपर्क में आ गए हैं और पारंपरिक पारिवारिक बंधनों से मुक्त हो गए हैं, वे ऐसे परिवारों में रहने के लिए तैयार नहीं हैं। वे ऐसे परिवारों द्वारा कड़ाई और कठोरता से नियंत्रित महसूस करते हैं, जिसमें परिवार के बुजुर्ग लगभग हर मामले में हस्तक्षेप करते हैं, खासकर जब शादी की बात आती है। चीन में, ऐसी चीजें असामान्य नहीं हैं। शैतान लोगों को वरिष्ठता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर करता है, और यह अवधारणा उन लोगों द्वारा आसानी से स्वीकार कर ली जाती है, जो विश्वास करते हैं : “प्रत्येक पीढ़ी का अपना पद होता है; जो सबसे ऊपर हैं वे हमारे पूर्वज हैं। एक बार ‘पूर्वज’ शब्द का उल्लेख होने पर, लोगों को घुटने टेककर उन्हें देवताओं की तरह पूजना चाहिए।” बचपन से ही, व्यक्ति अपने परिवार द्वारा इस तरह से प्रभावित, अनुकूलित और बड़ा किया जाता है; उसके छोटे से मन में एक बात भर दी जाती है : कि परिवार के बिना इस दुनिया में कोई नहीं रह सकता, और परिवार को छोड़ना या परिवार के बंधनों से मुक्त होना नैतिक रूप से निंदनीय अपराध है। नैतिक रूप से निंदनीय अपराध का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि अगर तुम अपने परिवार की बात नहीं सुनते हो, तो तुम एक संतानोचित बच्चे नहीं हो, और संतानोचित न होने का मतलब है कि तुम मनुष्य नहीं हो। इसलिए, ज्यादातर लोग इन पारिवारिक बेड़ियों को तोड़ने की हिम्मत नहीं करते हैं। चीनी लोग पदानुक्रम के साथ-साथ तीन आज्ञाकारिता और चार गुणों, और तीन मूलभूत बंधनों और पाँच निरंतर गुणों जैसी अवधारणाओं द्वारा गंभीर रूप से अनुकूलित, प्रभावित और नियंत्रित हैं। युवा लोग जो अपने बड़ों को चाचा, चाची, दादा या दादी के रूप में ठीक से संबोधित नहीं करते हैं, उन पर अक्सर असभ्य और अशिष्ट होने का आरोप लगाया जाता है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम इस जातीय समूह में, इस समाज में घटिया समझे जाते हो, क्योंकि तुम सामाजिक मानदंडों का पालन नहीं करते हो, तुम शालीन नहीं हो, और तुम बेकार हो। दूसरे लोग अच्छे कपड़े पहनते हैं, दिखावा करने में कुशल होते हैं, और शिष्टता और शालीनता से बात करते हैं; वे मधुरभाषी होते हैं, जबकि तुम तो किसी को चाचा या चाची कहना भी नहीं जानते। लोग कहेंगे कि तुम असभ्य हो, और तुम जहाँ भी जाओगे, तुम्हें नीची नजर से देखेंगे। यह एक तरह की विचारधारा है जो चीनी लोगों में भरी पड़ी है। कुछ बच्चे जो लोगों को संबोधित करना नहीं जानते हैं, उन्हें उनके माता-पिता द्वारा बुरी तरह से डाँटा जाता है या पीटा भी जाता है। उन्हें पीटते समय, कुछ माता-पिता कहते हैं, “तुम अशिष्ट, बेकार और असभ्य हो; मैं तुम्हें पीट-पीटकर मार डालूँगा! तुम मुझे शर्मिंदा करने के अलावा कुछ नहीं करते, जिससे लोगों के सामने मेरी बेइज्जती होती है!” सिर्फ इसलिए कि बच्चा दूसरों को संबोधित करना नहीं जानता, माता-पिता अपनी इज्जत के लिए इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, बच्चे को बुरी तरह पीटते हैं। यह कैसा व्यवहार है? यह सरासर बकवास है! अगर मैं इस तरह से संगति न करूँ, तो क्या तुम्हें ये बातें समझ आएँगी? क्या तुम वास्तविक जीवन में देखी गई घटनाओं के माध्यम से, या परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, या अपने स्वयं के अनुभवों के माध्यम से, धीरे-धीरे और थोड़ा-थोड़ा करके इन मामलों को समझ सकते हो, और फिर अपने जीवन की दिशा बदल सकते हो, जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो उसकी दिशा बदल सकते हो? अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते, तो तुम लोगों की अंतर्दृष्टि में कमी है। सभी मामलों में, परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर की अपेक्षाओं को मानक के रूप में इस्तेमाल करना सबसे सटीक रवैया है, इसमें एक भी त्रुटि नहीं है—यह संदेह से परे है। शैतान से आने वाली कोई भी चीज, चाहे वह मानवीय धारणाओं या रुचियों से कितनी भी मेल खाती हो, चाहे वह कितनी भी सभ्य क्यों न दिखाई दे, सत्य नहीं बल्कि नकली है।

इस कहानी को बताने का मकसद तुम लोगों को प्रकाश दिखलाना है, तुम लोगों को समझाना है कि सत्य क्या है, मनुष्य को परमेश्वर में विश्वास करने से क्या प्राप्त होता है, परमेश्वर द्वारा लोगों को उनके स्वभाव बदलवाने और सत्य प्राप्त करवाने का क्या मतलब है, और क्या परमेश्वर द्वारा बोले गए सत्य और उसकी अपेक्षाओं का किसी व्यक्ति की कल्पना से, या किसी के राष्ट्रीय और सामाजिक परिवेश से प्राप्त शिक्षा और अनुकूलन से पैदा हुए विचारों, दृष्टिकोणों और विभिन्न समझ से कोई संबंध है। तुम सब लोगों को इन मामलों का खुद भी गहन-विश्लेषण करना चाहिए। आज हमारे उदाहरण में सिर्फ एक पहलू को ही शामिल किया है। वास्तव में, हर व्यक्ति के दिल में, पारंपरिक संस्कृति से आई चीजों की कोई कमी नहीं है। कुछ लोग कहते हैं : “चूँकि हमें पदानुक्रम को खारिज करना है, तो क्या इसका मतलब यह है कि मैं अपने माता-पिता को उनके नाम से बुला सकता हूँ?” क्या यह ठीक है? अगर तुम अपने माता-पिता को माँ और पिताजी कहते हो, तो क्या इसका मतलब यह है कि तुम अभी भी पदानुक्रम का पालन कर रहे हो और पारंपरिक संस्कृति में वापस आ गए हो? नहीं। माता-पिता को अभी भी वैसे ही पुकारा जाना चाहिए जैसा कि उन्हें पुकारा जाना चाहिए; परमेश्वर ने लोगों को उन्हें माँ और पिताजी कहकर ही पुकारने के लिए कहा है। उन्हें इसी तरह बुलाया जाना चाहिए; यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे तुम्हारे माता-पिता तुम्हें “बच्चा,” “बेटा” या “बेटी” कहकर बुलाते हैं। तो तुम लोगों को मुख्य रूप से मेरी यह कहानी सुनकर क्या समझना चाहिए? यह मुख्य रूप से किस मुद्दे को संबोधित कर रही है? (चीजों को आँकने के हमारे मानक को बदलना होगा; हर चीज का आकलन परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार किया जाना चाहिए।) यह सही है। आँख मूँदकर खुद ही चीजें मत गढ़ो। लोग हमेशा अपना “सत्य” बनाना चाहते हैं। जब भी वे कुछ करना चाहते हैं, तो वे तर्कों और सिद्धांतों का एक सेट, और फिर तरीकों का एक सेट लेकर आते हैं, और यह परवाह किए बिना कि यह सही है या नहीं, इसे अंजाम दे देते हैं। वे वर्षों तक इसका अभ्यास करते हैं, इस पर अड़े रहते हैं, चाहे इसका कोई नतीजा निकले या नहीं, फिर भी उन्हें लगता है कि वे परोपकारी, धार्मिक और दयालु हैं। उन्हें लगता है कि वे जिन चीजों को जी रहे हैं वे अच्छी हैं, और इससे उन्हें तारीफ और शाबाशी मिलती है, और वे धीरे-धीरे यह सोचने लगते हैं कि वे महान हैं। लोग कभी भी इस बात पर विचार नहीं करते, इसे समझने की कोशिश नहीं करते, या खोज नहीं करते कि हर मामले के लिए परमेश्वर की क्या अपेक्षाएँ हैं, हर कार्य करने के लिए कार्रवाई के सिद्धांत क्या हैं, और क्या उन्होंने अपने कर्तव्य करने की प्रक्रिया में परमेश्वर के आदेश के प्रति वफादारी दिखाई है। वे इन चीजों पर विचार नहीं करते; वे सिर्फ उन विकृत और दुष्ट मामलों पर विचार करते हैं—क्या यह दुष्टता में शामिल होना नहीं है? (हाँ, है।) जो कोई भी बाहरी रूप से विनम्र है, उचित व्यवहार करता है, शिक्षित है और सामाजिक मानदंडों का पालन करता है, परोपकार, धार्मिकता, उपयुक्तता, बुद्धिमत्ता और विश्वसनीयता के बारे में बात करता है, और जो परिष्कृत शिष्टता के साथ बोलता है और सुखद लगने वाली बातें कहता है—जाँच-परख करो कि ऐसा व्यक्ति सत्य का अभ्यास करता है या नहीं। अगर वह कभी भी सत्य का अभ्यास नहीं करता, तो वह पाखंडी के अलावा और कुछ नहीं है जो अच्छाई का दिखावा करता है; वह बिल्कुल दामिंग की तरह है, और उससे जरा भी अलग नहीं है। वे किस तरह के लोग हैं जो सिर्फ अच्छे व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करते हैं और दूसरों को धोखा देकर अपनी तारीफ और शाबाशी पाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं? (वे पाखंडी हैं।) क्या इन लोगों में आध्यात्मिक समझ है? (नहीं।) क्या आध्यात्मिक समझ न रखने वाले लोग सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? (नहीं।) वे क्यों नहीं कर सकते? (वे नहीं समझते कि सत्य क्या है, इसलिए वे बस कुछ बाहरी अच्छे व्यवहार और ऐसी चीजों को जो लोगों की नजर में अच्छी हैं सत्य समझते हैं और उनका अभ्यास करते हैं।) यह मुख्य बात नहीं है। चाहे वे सत्य को कितना भी नहीं समझें, क्या वे अभी भी चीजों को करने के कुछ स्पष्ट सिद्धांतों को नहीं जानते हैं? जब तुम उन्हें बताते हो कि उन्हें अपना कर्तव्य कैसे करना है, तो क्या वे समझ नहीं सकते? ऐसे लोगों की एक खासियत होती है : सत्य का अभ्यास करने का उनका कोई इरादा नहीं होता। चाहे तुम कुछ भी कहो, वे तुम्हारी बात नहीं सुनेंगे; वे बस वही करेंगे और कहेंगे जो उन्हें अच्छा लगेगा। हम इन दिनों अक्सर मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में बात करते रहे हैं। अपने आसपास के लोगों पर नजर डालो : देखो कि किसने कुछ बदलाव दिखाया है, और किसके व्यवहार और कार्य करने के सिद्धांतों में जरा भी बदलाव नहीं आया है, कौन हैं जिनके साथ चाहे तुम कितनी भी संगति करो लेकिन उनके दिल अप्रभावित रहते हैं, और कौन हैं जो भले ही तुम्हारी संगति की सामग्री को खुद से जोड़ने में सक्षम हों लेकिन फिर भी नहीं बदलते हैं, या बदलने का इरादा नहीं रखते हैं, और अपनी मर्जी से काम करना जारी रखते हैं। क्या तुम लोगों ने ऐसे लोगों का सामना किया है? तुमने किया है, है न? कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त क्यों किया जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे सभी प्रकार के धर्म-सिद्धांतों को समझते हैं, और वे अपने तरीके से चलते रहते हैं। चाहे तुम सत्य सिद्धांतों की कितनी भी संगति करो, उनके पास अभी भी अपने खुद के नियम होते हैं, वे अपने विचारों से चिपके रहते हैं और किसी की नहीं सुनते हैं। वे बस वही करते हैं जो वे चाहते हैं—तुम कुछ और कहते हो, और वे कुछ और करते हैं। इस तरह के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए, है न? (बिल्कुल।) निश्चित रूप से उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए। ये लोग किस मार्ग पर हैं? (मसीह-विरोधी के मार्ग पर।) मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हुए, पर्याप्त समय होने पर, वे स्वयं मसीह-विरोधी बन जाएँगे। बात बस यह है कि इसमें कितना समय लगेगा। तुम उनके साथ चाहे कैसे भी सत्य की संगति करो, अगर, फिर भी वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं और बिल्कुल भी नहीं बदलते हैं, तो यह वास्तव में परेशानी की बात है, और वे पहले से ही मसीह-विरोधी बन चुके हैं।

आज बताई गई कहानी से तुम लोगों को सबसे बड़ी प्रेरणा क्या मिली है? कि लोगों के लिए भटकना आसान है। लोगों के लिए भटकना क्यों आसान है? पहला कारण, लोगों के स्वभाव भ्रष्ट होते हैं; दूसरा, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो, लोग अपने विचारों और अपने हृदय की गहराई में कोरे कागज नहीं होते। तो यह कहानी तुम लोगों को क्या सुझाव देती है? लोगों के लिए भटक जाना आसान है—यह पहला है। दूसरा, लोग जिसे अच्छा और सही मानते हैं उसी पर अड़े रहने की ओर प्रवृत्त होते हैं जैसे कि वही सत्य हो, बाइबल के ज्ञान और आध्यात्मिक धर्म-सिद्धांतों को अभ्यास करने के लिए परमेश्वर के वचनों के रूप में मानते हैं। इन दो मुद्दों को समझने के बाद, भविष्य में तुम लोगों को जिस पर चलना है उस मार्ग के लिए और भविष्य में तुम्हें जो करना है उस प्रत्येक कार्य के लिए तुम्हारे पास क्या नई समझ, विचार या योजनाएँ हैं? (भविष्य में काम करते समय, हमें उसी पर कार्य नहीं करना चाहिए जिसे हम सही मानते हैं। सबसे पहले, हमें यह विचार करना चाहिए कि क्या हमारे विचार परमेश्वर की इच्छाओं के अनुरूप हैं, और क्या वे परमेश्वर की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। हमें परमेश्वर के वचनों में अभ्यास के लिए सिद्धांत खोजने चाहिए, और फिर आगे बढ़ना चाहिए। सिर्फ इसी तरह से हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम सत्य का अभ्यास कर रहे हैं और परमेश्वर में अपने विश्वास में हम जिस मार्ग पर चल रहे हैं वह सही है।) तुम लोगों को परमेश्वर के वचनों पर मेहनत करनी चाहिए। अपनी खुद की धारणाएँ बनाना बंद करो। तुममें आध्यात्मिक समझ नहीं है; तुम्हारी काबिलियत कमजोर है; और तुम्हारे विचार चाहे कितने भी शानदार क्यों न हों, वे सत्य नहीं हैं। भले ही तुम आश्वस्त हो कि तुमने जो किया है वह दोषरहित और सही है, फिर भी तुम्हें इसे संगति और सत्यापन के लिए भाई-बहनों के सामने लाना चाहिए, या परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों से इसकी तुलना करनी चाहिए। क्या तुम इस तरह से सौ प्रतिशत दोषरहित हो सकते हो? जरूरी नहीं है; जब तक कि तुम सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर ने जो कहा है उसके स्रोत को पूरी तरह से समझ नहीं लेते, तब तक तुम्हारे अभ्यास में अभी भी कुछ विचलन हो सकता है। यह एक पहलू है। दूसरा क्या है? अगर लोग परमेश्वर के वचनों से दूर चले जाते हैं, तो चाहे उनके कार्य कितने भी तर्कसंगत या स्वीकार्य क्यों न लगें, वे सत्य की जगह नहीं ले सकते। जो कुछ भी सत्य की जगह नहीं ले सकता, वह सत्य नहीं है, न ही वह सकारात्मक चीज है। अगर वह सकारात्मक चीज नहीं है, तो वह क्या है? यह निश्चित रूप से ऐसी चीज नहीं है जो परमेश्वर को प्रसन्न करती है, न ही यह सत्य के अनुरूप है; यह ऐसी चीज है जिसकी परमेश्वर निंदा करता है। अगर तुम कुछ ऐसा करते हो जिसकी परमेश्वर निंदा करता है, तो इसके क्या परिणाम होंगे? तुम परमेश्वर को खुद से घृणा करने के लिए बाध्य कर दोगे। परमेश्वर से न आने वाली सभी चीजें नकारात्मक चीजें हैं, वे शैतान से आती हैं। हो सकता है कुछ लोग इसे नहीं समझ सकें; इसे अनुभव प्राप्त करते हुए धीरे-धीरे समझो।

आज हम एक बात की गंभीरता से आलोचना कर रहे हैं; हम किसकी आलोचना कर रहे हैं? एक बूढ़ी सुअरनी को सुअरनी आंटी कहने का मामला, है न? क्या सुअरनी को “सुअरनी आंटी” कहना शर्मनाक है? (हाँ।) यह एक शर्मनाक मामला है। लोग हमेशा एक सम्मानजनक उपाधि चाहते हैं। यह “सम्मान” कहाँ से आता है? “सम्मान” किससे संबंधित है? क्या यह वरिष्ठता के बारे में है? (हाँ।) हमेशा बड़े के रूप में माने जाने की चाहत रखना, हमेशा वरिष्ठता पर ध्यान केंद्रित करना—क्या यह अच्छा है? (नहीं।) वरिष्ठता पर ध्यान केंद्रित करना अच्छा क्यों नहीं है? तुम्हें विश्लेषण करना चाहिए कि वरिष्ठता पर ध्यान केंद्रित करने का क्या महत्व है। इसे बस इस तरह से कहना बहुत आसान है : “परमेश्वर लोगों को वरिष्ठता पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति नहीं देता है, तो तुम इस पर मूर्खतापूर्वक चर्चा क्यों कर रहे हो? तुम सभ्य होने का दिखावा करते हुए बकवास कर रहे हो। तुम अपना कर्तव्य करते समय कभी भी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते हो, और हमेशा उनके साथ विश्वासघात करते हो। जब कोई चीज तुम्हारे अपने हितों से जुड़ी होती है, तो तुम परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करने में संकोच नहीं करोगे। तुम एक अच्छे व्यक्ति का अभिनय करके किसे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हो? क्या तुम अच्छे माने जाने के लायक हो?” क्या ऐसा कहना स्वीकार्य होगा? (बिल्कुल होगा।) इसे और भी कठोर बनाने के लिए क्या कहा जाना चाहिए? “तुम किस बारे में बकवास कर रहे हो? तुम बस एक बेवकूफ सुअर हो, एक मूर्ख, जिसे सत्य की बिल्कुल भी समझ नहीं है। तुम क्या दिखावा कर रहे हो? तुम शिक्षित हो, तुम सुसंस्कृत हो, और तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो। तुमने परमेश्वर के बहुत सारे वचन पढ़े हैं और अभी भी तुम्हें लगता है कि तुम परमेश्वर में काफी अच्छी तरह से विश्वास करते हो। लेकिन अंत में, तुम यह भी नहीं जानते कि सत्य का अभ्यास करने का क्या मतलब है। क्या तुम सिर्फ एक बेवकूफ सुअर नहीं हो, पूरी तरह से मूर्ख?” इस कहानी के लिए बस इतना ही। आओ अब संगति के मुख्य विषय पर लौटते हैं।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें