मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन) खंड आठ

मुझे बताओ कि किस तरह के लोग मसीह-विरोधियों जैसी दुष्टता के संकेत और निशान प्रदर्शित करते हैं? (गुणी लोग।) और कौन? (जो दिखावा करना पसंद करते हैं।) जो दिखावा करना पसंद करते हैं, वे बहुत दुष्ट नहीं हैं। यद्यपि वे दिखावा करना पसंद करते हैं, पर उनमें दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छा नहीं होती, वे उस हद तक नहीं गए हैं—यह एक भ्रष्ट स्वभाव है। इस पर विस्तार से विचार करो कि कौन-से लोग ऐसे संकेत और निशान प्रदर्शित करते हैं जिनकी मदद से तुम उनके विभिन्न व्यवहारों और संकेतों से जल्दी ही पता कर लेते हो कि वे दुष्ट मसीह-विरोधी है? (घमंडी लोग जो रुतबे से प्रेम करते हैं।) घमंड और रुतबे से प्रेम में कुछ प्रासंगिकता है, लेकिन यह भी ज्यादा दूर नहीं जाता है। चलो, मैं किसी चीज के बारे में बात करता हूँ और तुम लोग ध्यान से सुनो और देखो कि यह बिंदु महत्वपूर्ण है या नहीं। कुछ लोग लगातार ऐसे दृष्टिकोण पेश करते हैं जो सत्य और सकारात्मक चीजों से अलग होते हैं। बाहर से ऐसा लग सकता है कि वे हमेशा लोगों को आकृष्ट करना चाहते हैं और बाकी लोगों से अलग दिखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा ही होना जरूरी नहीं है। यह हो सकता है कि उनके दृष्टिकोण ही ऐसे बाहरी व्यवहार का कारण बनते हों। वास्तव में, यदि वे सचमुच ऐसे दृष्टिकोण रखते हैं, तो गंभीर समस्या होगी। उदाहरण के लिए, जब सभी लोग एक साथ संगति कर रहे हों और कह रहे हों कि “हमें परमेश्वर से यह मामला स्वीकार करना चाहिए। यदि हम नहीं समझते तो हमें पहले समर्पण करना चाहिए” और हर कोई इससे सहमत हो तो क्या ऐसा दृष्टिकोण सही है? (हाँ, यह सही है।) क्या अभ्यास का यह सिद्धांत गलत है? (नहीं, यह गलत नहीं है।) फिर, लोग किस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं जिनसे दिखता है कि उनमें मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव के संकेत और निशान हैं? “समर्पण एक बात है, लेकिन तुम्हें इस बात पर नियंत्रण रखना होगा कि क्या हो रहा है, है ना? हर चीज को गंभीरता से लो, ठीक है? तुम भ्रमित होकर समर्पण नहीं कर सकते; परमेश्वर हमसे लापरवाही से समर्पण करने को नहीं कहता।” क्या यह एक तरह का तर्क नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोग कहते हैं, “अगर कुछ ऐसा है जो हमें समझ में नहीं आता तो हम धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर सकते हैं और किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संगति की तलाश कर सकते हैं जो इसे समझता हो। अभी हममें से कोई भी इसे नहीं समझता और हमें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिल रहा है जो इसे समझता हो और जिसके साथ संगति की जा सके। इसलिए, आओ, पहले समर्पण करें।” मसीह-विरोधियों का दृष्टिकोण क्या है? “तुम लोग कमजोर लोगों का झुंड हो, हर चीज के आगे समर्पण करते हो और हर चीज में परमेश्वर की बात सुनते हो। मेरी बात सुनो! किसी ने मेरा जिक्र क्यों नहीं किया? मुझे एक गंभीर राय पेश करने दो!” वे अपने उदात्त विचार साझा करना चाहते हैं। वे सत्य का अभ्यास करने और सत्य सिद्धांतों का पालन करने वाले लोगों का विरोध करते हैं। वे हमेशा बाकी सभी से श्रेष्ठ रहना चाहते हैं, झगड़ा करना चाहते हैं, कुचालें चलना चाहते हैं, उदात्त विचार साझा करना चाहते हैं और प्रयास करते हैं कि लोग उन्हें अलग नजर से देखें। क्या यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव का संकेत नहीं है? क्या यह उनकी पहचान नहीं है? सभी के लिए समर्पण करना गलत क्यों है? भले ही वे मूर्खतापूर्ण तरीके से समर्पण कर रहे हों—क्या यह गलत है? क्या परमेश्वर इसकी निंदा करेगा? (नहीं, वह ऐसा नहीं करेगा।) परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करेगा। उन्हें इस मामले में पेंच फँसाने और चीजों को उलझाने का क्या अधिकार है? जब वे लोगों को परमेश्वर के प्रति समर्पण करते देखते हैं तो क्या वे अपने हृदय में क्रोध का अनुभव करते हैं? जब वे लोगों को परमेश्वर के प्रति समर्पण करते देखते हैं तो वे अपने हृदय में नाराजगी और असंतोष महसूस करते हैं कि उन्हें कोई लाभ नहीं मिला, कि लोग उनकी आज्ञा नहीं मानते, उनकी बात नहीं सुनते, उनकी सलाह नहीं लेते और वे दुःखी हो जाते हैं—वे अपने मन में यह सोचते हुए प्रतिरोध करते हैं कि “तुम किसके प्रति समर्पण कर रहे हो? क्या तुम सत्य के प्रति समर्पण कर रहे हो? सत्य के प्रति समर्पण करना ठीक है, लेकिन हमें इसका अध्ययन करने की जरूरत है। तो, सत्य क्या है? क्या तुम सही तरीके से समर्पण कर रहे हो? क्या तुम्हें कम से कम इसे अच्छी तरह से समझ नहीं लेना चाहिए?” क्या वे ये तर्क नहीं देते? वे क्या करने की कोशिश कर रहे होते हैं? लोगों को गुमराह करने के लिए वे चीजों को भड़काना चाहते हैं। कुछ सुन्न, मंदबुद्धि और मूर्ख लोग उनकी बात सुनकर गुमराह हो जाते हैं जबकि भेद पहचान पाने वाले लोग उनका खंडन करते हुए कहते हैं, “तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें इससे ईर्ष्या और जलन हो रही है कि मैंने परमेश्वर के समक्ष समर्पण किया है? जब मैं परमेश्वर के समक्ष समर्पण करता हूँ तो तुम दुःखी होते हो, लेकिन जब मैं तुम्हारा कहा मानता हूँ तो तुम प्रसन्न होते हो? क्या बात केवल तभी सही होती है जब हर कोई तुम्हारी बात माने, तुम्हारी बात सुने और जो तुम कहो वही करे? क्या तुम जो कहते हो वह सत्य के अनुरूप है?” यह देखकर, वे सोचते हैं, “कुछ लोग भेद पहचान सकते हैं—मुझे अभी इंतजार करना चाहिए।” संक्षेप में, जब सभी लोग सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कर रहे होते हैं तो वे इससे बाहर आने में देर नहीं लगाते। लोग परमेश्वर की जितनी अधिक आज्ञा मानते हैं, परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति जितना अधिक समर्पण करते हैं, परमेश्वर के वचनों के अनुसार जितना अधिक अभ्यास करते हैं, कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को जितना अधिक सँभालते हैं, मसीह-विरोधी उतने ही अधिक असहज, परेशान और बेचैन हो जाते हैं। यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार का संकेत है। जब तक सभी लोग परमेश्वर के वचनों को सुनते हैं, सत्य का अभ्यास करते हैं और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को सँभालते हैं, तब तक मसीह-विरोधी असहज और बेचैन महसूस करते हैं। क्या यह समस्या नहीं है? (हाँ, है।) यदि कोई भी परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ता या यदि पढ़ता है और उन पर संगति नहीं करता, केवल मसीह-विरोधियों की बात सुनता है तो वे प्रसन्न होते हैं। यह किस समस्या की व्याख्या करता है? वे कभी भी परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति नहीं करते। जब तक सभी लोग शांति से परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति कर रहे होते हैं और मसीह-विरोधी देखते हैं कि कोई भी उन पर ध्यान नहीं दे रहा है, उनकी बात नहीं सुन रहा है, उनकी आराधना नहीं कर रहा है, उनका रुतबा खतरे में है और वे खतरे में हैं—तब वे चीजों को भड़काने के लिए एक पेंच डालते हैं, तुम्हें गुमराह और बाधित करने के लिए किसी पाखंड या भ्रांति का प्रस्ताव रखते हैं, जिससे तुम अनिश्चय का शिकार हो जाओ कि तुमने अभी जो चर्चा की थी वह सही थी या गलत। जब सभी लोग संगति के माध्यम से अंततः कुछ समझ चुके होते हैं तो वे कुछ शैतानी शब्द बोल कर चीजों को उलझा देते हैं। क्या यह मसीह विरोधियों का दुष्ट स्वभाव नहीं है? यह दुष्ट स्वभाव किस अभिव्यक्ति के अनुरूप है? (सत्य के प्रति शत्रुभाव।) बिल्कुल ठीक। लोग सत्य को जितना अधिक समझते हैं, मसीह-विरोधी उतनी ही अधिक परेशानी महसूस करते हैं। क्या यह सत्य के प्रति शत्रुभाव नहीं है? क्या यह बात मेल नहीं खाती? (हाँ, मेल खाती है।) क्या तुम लोगों का सामना ऐसे लोगों से हुआ है? जब सभी लोग किसी चीज के बारे में संगति कर रहे होते हैं तो वे काफी समय तक चुप रहते हैं। अंत में, जब संगति में कुछ स्पष्टता आती है तो वे सामने आते हैं और संगति कर रहे लोगों के लिए चीजों को कठिन बनाने के लिए एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न प्रस्तुत करते हैं। उनका इरादा यह कहने का होता है, “मैं तुम लोगों को दिखाता हूँ, मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मैं क्या कर सकता हूँ! तुम लोग सत्य के बारे में संगति कर रहे हो, मेरी बात नहीं सुनते, मेरी अनदेखी करते हो, मेरी परवाह नहीं करते और तुम लोग मेरी ओर ध्यान नहीं देते इसलिए मैं तुम लोगों के सामने संगति के लिए एक कठिन प्रश्न रखूँगा और तुम सब को उलझा दूँगा!” क्या यह शैतान नहीं है? (हाँ, है।) यह शैतान है, एक प्रामाणिक मसीह-विरोधी है।

कुछ लोग जब भी सुनते हैं कि कोई व्यक्ति नकारात्मक या कमजोर है तो वे विशेष रूप से खुश होते हैं। खास तौर पर जब वे किसी को कलीसियाई जीवन में बाधा डालते हुए देखते हैं, किसी को कलीसिया के काम अस्त-व्यस्त करने के लिए गलत काम करते देखते हैं, या किसी को आँख मूँदकर परेशानी खड़ी करते देखते हैं—वे विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और पटाखे फोड़ कर जश्न मनाने के लिए उत्सुक रहते हैं। ऐसे लोगों के साथ क्या समस्या होती है? दूसरों के दुर्भाग्य पर वे इतने खुश क्यों होते हैं? इस महत्वपूर्ण क्षण में वे परमेश्वर के पक्ष में क्यों नहीं खड़े हो सकते, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा क्यों नहीं कर सकते? क्या ऐसे लोग छद्म-विश्वासी नहीं हैं? क्या वे शैतान के सेवक नहीं हैं? तुम लोगों को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि क्या तुम इस तरह का व्यवहार प्रदर्शित करते हो और यह भी जाँचना चाहिए कि क्या तुम्हारे आस-पास ऐसे लोग हैं और समझना चाहिए कि ऐसे व्यक्तियों को कैसे पहचाना जाए, खास तौर पर जब तुम बुरे लोगों को बुरे काम करते हुए देखते हो—तुम लोगों का रवैया क्या होता है? क्या तुम केवल तमाशबीन बनकर खड़े रहते हो, या क्या तुम भी इस रास्ते पर जा सकते हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो? कुछ लोग इस तरह से आत्म-चिंतन नहीं करते। उन्हें लोगों में अच्छाई देखना पसंद नहीं होता; वे चाहते हैं कि हर कोई उनसे बुरा हो—तभी उन्हें खुशी महसूस होती है। उदाहरण के लिए, जब वे परमेश्वर के लिए खुद को खपाने वाले किसी व्यक्ति की काट-छाँट होते देखते हैं या वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने वाले किसी व्यक्ति को अपराध करते देखते हैं तो वे मन ही मन खुश होते हैं और कहते हैं, “हम्म, तुम्हारा दिन भी आ गया। तुमने खुद को परमेश्वर के लिए खपाया—ऐसा करना कैसा रहा? तुम्हारे साथ गलत हुआ, है ना? तुम्हें नुकसान हुआ, है कि नहीं? खुद को खपाने से क्या फायदा? तुम हमेशा सच बोलते हो और अब तुम्हारी कटाई-छँटाई हो रही है, है ना? तुम इसी के लायक हो!” वे इतने प्रसन्न क्यों होते हैं? क्या ऐसा नहीं है कि वे दूसरों के दुर्भाग्य में खुशी ढूँढ़ रहे हैं? क्या ऐसे लोगों के इरादे गलत नहीं हैं? जब वे किसी को परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालते देखते हैं तो वे खुश होते हैं। जब वे देखते हैं कि परमेश्वर के घर के काम का नुकसान हो रहा है तो उन्हें खुशी होती है। ऐसा क्या है जिससे उन्हें खुशी मिलती है? वे सोचते हैं “आखिरकार, मेरे ही जैसे सत्य से प्रेम न करने वाले किसी व्यक्ति ने परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाया है और वे किसी भी तरह से खुद को दोषी महसूस नहीं करते।” यही बात उन्हें खुशी देती है। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) यह बहुत बड़ी दुष्टता है! क्या तुम लोगों के बीच ऐसे लोग हैं? कुछ लोग हैं जो आम तौर पर गुनगुनाते नहीं हैं, लेकिन जैसे ही वे किसी को गलती करते देखते हैं, वे अचानक गुनगुनाना शुरू कर देते हैं, अपनी देह को हिलाने-डुलाने लगते हैं, बेहद प्रसन्न दिखते हैं और सोचते हैं, “आखिरकार आज कुछ अच्छी खबर मिली है। मैं बहुत खुश हूँ, आज दो कटोरी चावल ज्यादा खाऊँगा!” यह किस तरह का स्वभाव है? दुष्टता का। वे क्षण भर के लिए भी इस पर न आँसू बहाएँगे, न दुःखी महसूस करेंगे कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा है। उन्हें किसी तरह के आत्म-दोष, दुख या दर्द का अनुभव नहीं होता। इसके बजाय, उन्हें खुशी और संतोष का अनुभव होता है कि किसी की गलती से परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा है और परमेश्वर का नाम बदनाम हुआ है। क्या यह दुष्टता नहीं है? क्या यह उनमें मसीह-विरोधियों वाली दुष्ट प्रकृति होने का संकेत नहीं है? यह भी एक संकेत है।

कहते हैं कि सुसमाचार दलों में कुछ लोग वाक्पटु होते हैं। उन्होंने वर्षों से धर्मोपदेश सुने होते हैं और सिद्धांतों के एक समुच्चय का निचोड़ निकाला होता है, वे जहाँ भी जाते हैं, डींगों से भरे होते हैं, उपदेश देते समय उन्हें कभी शब्दों की कमी महसूस नहीं होती और वे अपनी खूबियों और वाक्पटुता का पूरा प्रदर्शन करते हैं। कुछ लोग ऐसे व्यक्तियों को काफी सक्षम मानते हैं और उनका अनुसरण करने का निर्णय लेते हैं। अंततः वे क्या कहते हैं? “हम उस व्यक्ति की संगति सुनते हैं, इसलिए हमें ऊपरवाले के उपदेश सुनने की जरूरत नहीं है; हमें परमेश्वर के वचनों को सुनने की भी आवश्यकता नहीं है। इन सब की जगह उस व्यक्ति की संगति पर्याप्त है।” क्या ये लोग खतरे में नहीं हैं? (हाँ।) ये लोग बहुत खतरे में हैं। उन्हें मसीह विरोधियों के कार्य और व्यवहार, साथ ही उनकी धृष्टता, बर्बरता और दुष्टता पसंद है। उन्हें वह पसंद है जो मसीह-विरोधियों को पसंद है और वे उससे विमुख हैं जिससे मसीह-विरोधी विमुख हैं। उन्हें मसीह-विरोधियों द्वारा प्रचारित ज्ञान, शिक्षा, धर्म-सिद्धांत और विभिन्न धर्मशास्त्रीय सिद्धांत, पाखंड और भ्रांतियाँ बहुत पसंद हैं। वे इन चीजों की आराधना करते हैं। वे उनकी किस हद तक आराधना करते हैं? रात में अपने सपनों में भी वे इन्हीं शब्दों को बोलते हैं। क्या यह गंभीर मामला है? जब उनकी आराधना इस स्तर पर पहुँच जाती है तो क्या ये लोग तब भी परमेश्वर का अनुसरण करते रह सकते हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “यह गलत है। वे अभी भी कलीसिया में हैं, वे अभी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं।” उन्हें अभी तक उचित अवसर नहीं मिला है। एक बार जब उन्हें वह व्यक्ति या वस्तु मिल जाए जिसकी वे आराधना करना चाहते हैं, तो वे किसी भी समय परमेश्वर को छोड़ सकते हैं। क्या यह उनमें मसीह-विरोधियों वाला दुष्ट सार होने का संकेत नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम लोग ऐसे लोगों को देखते ही पहचान सकते हो? (हाँ, हम पहचान सकते हैं।) अतीत में, हो सकता है कि तुम्हें ऐसे मामलों की गंभीर प्रकृति का पता न रहा हो। अब, जब तुम फिर से ऐसे लोगों का सामना करोगे तो क्या तुम्हारे मन में उनके बारे में अभी भी सवाल होंगे? क्या तुम उन्हें अनदेखा कर दोगे? (नहीं, हम ऐसा नहीं करेंगे।) तो, क्या तुम ऐसे लोगों का भेद पहचान पाते हो? (हाँ, पहचान पाते हैं।) ये कुछ संकेत और जानकारियाँ हैं जिन्हें वे प्रकट करते हैं। मतलब कि जब इन लोगों को एक बार मौका या रुतबा मिल जाता है, या कोई उन्हें गुमराह करता है, तो वे कभी भी, कहीं भी परमेश्वर को धोखा दे सकते हैं। क्या लोग उनके खुलासों और उनके दुष्ट सार को देख सकते हैं? क्या कुछ ऐसे निशान हैं जिन्हें लोग देख सकते हैं? (हाँ, हैं।) होने ही चाहिए। अगर मैंने इनका उल्लेख नहीं किया होता तो भी तुम लोग सोच सकते थे, “ये निशान कौन दिखाता है? इन संकेतों को कौन प्रकट करता है? कोई नहीं, मैंने किसी को ऐसा करते नहीं देखा।” इन संकेतों के बारे में मेरी चर्चा से क्या तुम लोग यह नहीं जान सके कि ऐसे लोग मौजूद हैं? उनमें से कुछ अनुयायी हैं और कुछ अगुआ हैं और कुछ कार्यकर्ता। किसी में मसीह-विरोधियों वाले दुष्ट सार होने का यह तीसरा संकेत है।

जिन लोगों में मसीह-विरोधियों वाला दुष्ट सार होता है, उनमें एक और खास लक्षण होता है, जो उन सभी में समान होता है। ये लोग सत्य से प्रेम और सच्चे मार्ग की लालसा का दिखावा करते हुए धर्मोपदेश सुनने आते हैं, सत्य से संबंधित विभिन्न ज्ञान और विषयवस्तु सीखते हैं, स्वयं को धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों और ज्ञान से लैस करते हैं, फिर इन्हीं सिद्धांतों और ज्ञान का उपयोग करते हुए अगुआओं और कार्यकर्ताओं से वाक्युद्ध में जुट जाते हैं, इनका उपयोग कुछ लोगों की निंदा करने, कुछ दूसरे लोगों को गुमराह करने और उनसे अपनी बात मनवाने के लिए करते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोगों को तथाकथित प्रावधान, सहायता और सिंचन देने के लिए भी वे इनका उपयोग करते हैं। फिर भी, एक बात से यह स्पष्ट होता है कि वे सत्य के प्रेमी नहीं हैं। वह बात क्या है? वह बात यह है कि ये लोग खुद को चाहे जैसे लैस करें और चाहे जैसे उपदेश दें, वे केवल बोलते हैं और कुछ बातें कहते हैं, केवल खुद को लैस करने में लगे रहते हैं, लेकिन वे मामलों को सत्य सिद्धांतों के अनुसार कभी नहीं सँभालते। “कभी नहीं” का क्या अर्थ है? इसका मतलब है कि वे एक भी सच्चा शब्द नहीं बोल सकते, कभी ईमानदार नहीं रहे और उन्होंने कभी भी अपनी रुतबे के लाभों को छोड़ने की कीमत नहीं चुकाई है। चाहे जो मौका हो, वे बोलते और कार्य करते समय हमेशा अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए अधिकतम प्रयास करते हैं। बाहर से भले ही वे कीमत चुकाते और सत्य से प्रेम करते दिखाई दें, लेकिन उनका दुष्ट सार अपरिवर्तित रहता है। यहाँ समस्या क्या है? एक लिहाज से, ये लोग अपने कार्यों में कभी भी सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करते हैं। दूसरे लिहाज से, भले ही वे सत्य सिद्धांतों और अभ्यास के मार्ग को जानते हों, लेकिन वे उनका अभ्यास नहीं करते। यह इस बात का संकेत है कि उनमें मसीह-विरोधियों का दुष्ट सार है। उनके पास कोई रुतबा हो या न हो, और चाहे वे सुसमाचार का प्रचार करने का कर्तव्य निभाते हों या अगुआ अथवा कार्यकर्ता हों, उनका लक्षण क्या है? वे केवल सही धर्म-सिद्धांतों को बोल सकते हैं, लेकिन वे कभी भी सही काम नहीं करते। यही उनका लक्षण है। वे धर्म-सिद्धांतों के बारे में किसी से भी अधिक स्पष्ट रूप से बोलते हैं, लेकिन वे काम भी सबसे बदतर करते हैं—क्या यह दुष्टता नहीं है? किसी में मसीह-विरोधियों वाला दुष्ट सार होने का यह चौथा संकेत है। इसकी जाँच स्वयं करो और मूल्यांकन करो कि क्या तुम्हारे आस-पास ऐसे कई लोग हैं जिनमें मसीह-विरोधियों वाला दुष्ट सार है। अब मैंने इन्हें सूचीबद्ध कर दिया है, तो तुम लोग मूल्यांकन कर सकते हो कि तुम्हारे आस-पास ऐसे बहुत-से लोग हैं या नहीं। उनका प्रतिशत कितना है? उनमें ज्यादा अगुआ हैं या साधारण विश्वासी? क्या तुममें से कुछ लोग पहले ऐसा नहीं सोचते थे कि केवल अगुआओं के पास ही मसीह-विरोधी होने का मौका होता है? (पहले यह ऐसा ही था।) तो, क्या अब यह दृष्टिकोण बदल गया है? मसीह-विरोधी इसलिए मसीह-विरोधी नहीं बन जाते कि उनके पास रुतबा होता है; वे तब भी ऐसे ही दुष्ट थे जब उनके पास रुतबा नहीं था। वे केवल किस्मत से अगुआई की स्थिति में पहुँचे होते हैं और मसीह-विरोधी के रूप में उनके असली लक्षण जल्दी ही प्रकट हो जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सही तापमान और मिट्टी मिलने पर कुकुरमुत्ता तेजी से बढ़ता है और अपने असली रूप में सामने आता है। यदि वातावरण उपयुक्त न हो तो उनका प्रकृति सार प्रकट होने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है, लेकिन इस धीमी गति से खुलासा होने का मतलब यह नहीं है कि उनमें वह प्रकृति नहीं है। ऐसी प्रकृति के लोग अनिवार्य रूप से कार्य करेंगे और चीजें प्रकट करेंगे और ये प्रकट हुए व्यवहार मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार के चिह्न और निशान हैं। उनमें जब ये चिह्न और निशान हों तो उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जा सकता है।

मुझे बताओ कि क्या सत्य का अभ्यास करने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटाने के लिए तरह-तरह के बहानों और औचित्यों की आवश्यकता होती है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यदि किसी व्यक्ति के पास सच्चा हृदय है तो वह सत्य को अभ्यास में ला सकता है। क्या सत्य का अभ्यास न करने वाले लोग तरह-तरह के बहाने बनाते हैं? उदाहरण के लिए, जब वे कुछ गलत करते हैं, सिद्धांतों के विरुद्ध जाते हैं और कोई उन्हें सुधारे तो क्या वे उसकी बात को सुन सकते हैं? वे नहीं सुनते। क्या उनका न सुनने का तथ्य ही सब कुछ है? वे किस तरह से दुष्ट हैं? (वे तुम्हें राजी करने का एक बहाना खोजते हैं, जिससे तुम सोचो कि वे सही हैं।) वे एक ऐसी व्याख्या खोज लेंगे जो तुम्हारी धारणाओं और कल्पनाओं के साथ मेल खाती हो, फिर वे तुम्हें समझाने के लिए आध्यात्मिक सिद्धांतों के एक समुच्चय का इस्तेमाल करते हैं जिसे तुम मानते हो और स्वीकार कर सकते हो और जो सत्य से मेल खाता हो ताकि वे तुम्हें मना सकें, तुम्हें उनके साथ चलने के लिए बाध्य कर सकें और तुम्हें ईमानदारी से विश्वास दिला सकें कि वे सही हैं। वे यह सब लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ।) यह वाकई दुष्टता है। स्पष्ट है कि उन्होंने कुछ गलत किया है, अपने कार्यों में सिद्धांतों और सत्य के विरुद्ध गए हैं और सत्य का अभ्यास करने में विफल रहे हैं, फिर भी वे सैद्धांतिक औचित्यों का एक समुच्चय पेश करते हैं। यह सच में दुष्टता है। यह भेड़िये द्वारा भेड़ को खाए जाने जैसा है; भेड़ों को खाना मूल रूप से भेड़िये की प्रकृति में है और परमेश्वर ने इस तरह के जानवर का निर्माण भेड़ों को खाने के लिए किया—भेड़ें उसका भोजन हैं। लेकिन इसे खाने के बाद भी भेड़िया तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ता है। क्या तुमने इस बारे में सोचा है? तुम सोचते हो, “तुमने मेरी भेड़ खा ली और अब तुम चाहते हो कि मैं सोचूँ कि तुम्हें इसे खाना चाहिए था, कि तुम्हारे लिए इसे खाना तर्कसंगत और उचित था, यहाँ तक कि मुझे तुम्हें धन्यवाद भी देना चाहिए।” क्या तुम्हें गुस्सा नहीं आता? (हाँ, आता है।) जब तुम गुस्से में होते हो, तो तुम्हारे मन में क्या विचार आते हैं? तुम सोचते हो, “यह आदमी बहुत दुष्ट है! अगर तुम इसे खाना चाहते हो तो आगे बढ़ो, तुम ऐसे ही हो; मेरी भेड़ों को खाना एक बात है, लेकिन तुम तरह-तरह के कारण और बहाने पेश करते हो और बदले में मुझे तुम्हारा आभारी होने के लिए कहते हो। क्या यह सही और गलत में भ्रम पैदा नहीं करता?” यह दुष्टता है। जब कोई भेड़िया भेड़ को खाना चाहता है तो वह क्या बहाने ढूँढ़ता है? भेड़िया कहता है, “मेमने, आज तो मुझे तुम्हें खा लेना चाहिए क्योंकि पिछले साल मेरा अपमान करने का तुमसे मुझे बदला लेना है।” मेमना, अन्याय महसूस करते हुए कहता है, “पिछले साल तो मैं पैदा भी नहीं हुआ था।” जब भेड़िये को पता चलता है कि वह गलत बोल गया और उसने मेमने की उम्र गिनने में गलती की है तो वह कहता है, “ठीक है, हम इस बात को छोड़ देते हैं, लेकिन मुझे फिर भी तुम्हें खाना पड़ेगा क्योंकि पिछली बार जब मैं इस नदी से पानी पी रहा था तो तुमने पानी को गंदा कर दिया था इसलिए मुझे तुमसे बदला लेना है।” मेमना कहता है, “मैं तो नदी के बहाव के नीचे की ओर हूँ और तुम ऊपर की ओर हो। मैं ऊपर की ओर के पानी को कैसे गंदा कर सकता हूँ? अगर तुम मुझे खाना चाहते हो तो बस आगे बढ़ो और मुझे खा लो। तरह-तरह के बहानों की तलाश मत करो।” यह भेड़िये की प्रकृति है। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) क्या भेड़िये की दुष्टता बिल्कुल बड़े लाल अजगर की दुष्टता के समान है? (हाँ।) यह वर्णन बड़े लाल अजगर के लिए सबसे उपयुक्त है। बड़ा लाल अजगर उन लोगों को गिरफ्तार करना चाहता है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं; वह इन लोगों पर अपराधों का आरोप लगाना चाहता है। इसलिए, यह पहले कुछ मोर्चे खोलता है, कुछ अफवाहें गढ़ता है और फिर उन्हें दुनिया भर में प्रसारित करता है ताकि पूरी दुनिया तुम्हारी निंदा करने को उठ खड़ी हो। वह परमेश्वर में विश्वास करने वालों पर कई आरोप लगाता है, जैसे “सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना,” “राज्य के रहस्यों को सार्वजनिक करना” और “राज्य की शक्ति को नष्ट करना” आदि। वह ऐसी अफवाहें भी फैलाता है कि तुमने कई फौजदारी अपराध किए हैं और ये आरोप तुम पर लगा देता है। अगर तुम उन्हें स्वीकार करने से इनकार करते हो तो क्या यह ठीक है? क्या इस बात का कोई मतलब है कि तुम उन्हें स्वीकार करते हो या नहीं? नहीं, कोई मतलब नहीं है। वह जब तुम्हें गिरफ्तार करने पर आमादा हो जाता है तो भेड़ को खाने पर आमादा भेड़िये की तरह तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ता है। यह दावा करते हुए कि हमने कुछ बुरा किया है, बड़ा लाल अजगर कुछ मोर्चे बनाता है जबकि वास्तव में, वह काम दूसरे लोगों ने किया होता है। वह दोष मढ़ता है और कलीसिया को फँसाता है। क्या तुम उसके साथ तर्क-वितर्क कर सकते हो? (नहीं।) तुम उसके साथ तर्क-वितर्क क्यों नहीं कर सकते? क्या तुम उसके साथ स्पष्ट रूप से तर्क-वितर्क कर सकते हो? क्या तुम सोचते हो कि तर्क-वितर्क करने और स्थिति को समझाने से वह तुम्हें गिरफ्तार नहीं करेगा? तुम उसे बहुत अच्छा मान रहे हो। इससे पहले कि तुम बोलना समाप्त करो, वह तुम्हें बालों से पकड़ कर तुम्हारा सिर दीवार पर पटक देगा, फिर तुमसे पूछेगा, “क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूँ? मैं एक शैतान हूँ!” इसके बाद, तुम्हें बुरी तरह पीटा जाएगा, साथ ही दिन-रात बारी-बारी से पूछताछ होगी और यातनाएँ दी जाएँगी, और फिर तुम उनकी मर्जी के मुताबिक व्यवहार करना शुरू कर दोगे। इस बिंदु पर, तुम्हें एहसास होगा, “यहाँ तर्क के लिए कोई जगह नहीं है; यह एक जाल है!” बड़ा लाल अजगर तुमसे तर्क-वितर्क नहीं करता है—क्या तुम्हें लगता है कि वह बिना इरादे के, संयोगवश उन मोर्चों का निर्माण करता है? इसके पीछे साजिश होती है और उसने अगले कदम की योजना बनाई होती है। यह तो उसके क्रियाकलापों की शुरूआत है। कुछ लोगों को अभी भी लग सकता है, “वे परमेश्वर में विश्वास करने से संबंधित मामलों को नहीं समझते; अगर मैं उन्हें समझाऊँ तो सब ठीक हो जाएगा।” क्या तुम उसे स्पष्ट रूप से समझा सकते हो? उसने तुम्हें किसी ऐसी चीज के लिए फँसाया है, जो तुमने नहीं की है—क्या तुम अभी भी चीजों को स्पष्ट रूप से समझा सकते हो? जब उसने तुम्हें फँसाया तो क्या वह नहीं जानता था कि तुमने ऐसा नहीं किया है? क्या वह इस बात से अनभिज्ञ है कि यह किसका काम है? वह बहुत अच्छी तरह से जानता है! तो वह तुम पर दोष क्यों मढ़ता है? तुम ही वह व्यक्ति हो जिसे उसे पकड़ना है। क्या तुम्हें लगता है कि जब वह तुम पर दोषारोपण कर रहा होता है तो उसे पता नहीं होता कि तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है? वह तुम्हारे साथ अन्याय करना चाहता है और तुम्हें गिरफ्तार करके सताना चाहता है। यह दुष्टता है।

मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार वाला कोई भी व्यक्ति अपने सार में सत्य से विमुख होता है और सत्य से घृणा करता है। अपने हृदय में वह सत्य को जरा भी नहीं स्वीकारता और उसका अभ्यास करने का कोई इरादा नहीं रखता। यदि तुम्हें लगता है कि उसे सत्य की समझ नहीं है और तुम उसके साथ इस बारे में संगति करने का प्रयास करते हो, तो परिणाम क्या होगा? तुम आगे नहीं बढ़ पाओगे—तुमने गलत व्यक्ति को पकड़ लिया है। वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य को स्वीकार करेगा और तुम्हें उसके साथ संगति नहीं करनी चाहिए; इसके बजाय, तुम्हें उसे सबक सिखाना चाहिए और उसके साथ यह कहते हुए सख्ती बरतनी चाहिए, “तुम कितने समय से अपना कर्तव्य निभा रहे हो? तुम अपने कर्तव्य के साथ तुच्छ मामले की तरह कैसे पेश आ सकते हो? क्या यह तुम्हारा अपना काम है? तुम किसे चुनौती दे रहे हो? तुम मेरे नहीं, परमेश्वर और सत्य के खिलाफ हो!” क्या तुम्हें उसे सबक सिखाने की कोई जरूरत नहीं है? क्या उसके साथ सत्य के बारे में संगति करना उपयोगी है? नहीं, यह उपयोगी नहीं है। यह उपयोगी क्यों नहीं है? वह भेड़िया है, खोई हुई या भटकी हुई भेड़ें नहीं। क्या भेड़िया सत्य का अभ्यास कर सकता है? नहीं। भेड़िये की प्रकृति क्या है? (दुष्टता।) भेड़ को देखते ही वह लार टपकाने लगता है, उसकी आँखें स्वादिष्ट भोजन की कल्पना से भर जाती हैं और भेड़ की नियति है कि वह उसका भोजन बने। यह उसकी प्रकृति है; यह दुष्टता है। यदि तुम उससे कहो कि, “भेड़ें बहुत दयनीय और कोमल हैं; कृपया उन्हें मत खाओ। खाने के लिए कोई दूसरा खूंखार जानवर चुन लो, ठीक है?” तो क्या वह इसे समझ सकेगा? वह नहीं समझ सकता। यह उसकी प्रकृति है। कुछ लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते और तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं—यह उनकी प्रकृति है। यह प्रकृति क्या है? यह दुष्टता है। उनके काम कितने भी नीच, विद्रोही या खुल्लमखुल्ला सिद्धांतों के विरुद्ध क्यों न हों, वे फिर भी अपनी प्रतिष्ठा बचाना चाहते हैं; भले ही वे सत्य के विरुद्ध जा रहे हों, फिर भी इसे बहुत भव्य और गरिमापूर्ण तरीके से करना चाहते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? क्या सत्य का उल्लंघन करना सकारात्मक बात है या नकारात्मक? (नकारात्मक।) कोई नकारात्मक बात भव्य, गरिमापूर्ण और सम्माननीय तरीके से कैसे की जा सकती है? क्या इन दोनों पहलुओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश करना थोड़ा अजीब नहीं है? यह दुष्टता है : यह उन लोगों का व्यवहार और अभिव्यक्ति है जिनमें मसीह-विरोधियों का दुष्ट सार होता है। यह बात विरोधाभासी लग सकती है, लेकिन वे ऐसे ही काम करते हैं, यही उनका स्वभाव है और यही वे प्रकट करते हैं। वे मन में सत्य के प्रति घृणा रखते हैं, उसे कभी स्वीकार नहीं करते—ये मसीह विरोधी लोग हैं, यही मसीह विरोधियों का दुष्ट प्रकृति सार है। मसीह विरोधियों के दुष्ट सार में कितनी चीजें हैं? (चार चीजें।) कुल मिलाकर चार चीजें हैं। क्या तुम लोगों के भेद पहचानने के लिए ये चार संकेत पर्याप्त नहीं हैं? दुष्टता में स्वाभाविक रूप से कपट और छल के तत्व होते हैं और जब कपट और छल के तत्व अपने चरम पर पहुँच जाते हैं तो उन्हें दुष्ट स्वभाव के रूप में निरूपित किया जाता है। मसीह-विरोधी इस तरह के दुष्ट स्वभाव के मूर्तरूप होते हैं।

3 सितंबर 2019

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