मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन) खंड सात

कोई सच्चा इंसान उन चीजों से प्यार करता है और उनका अनुसरण करता है जो मानवता, अंतरात्मा, सामान्य मानवीय सोच और वास्तविक जीवन से मेल खाती हैं, जो सामान्य और व्यावहारिक हैं, जिनमें कोई विकृति या विचित्रता नहीं है, जो अमूर्त नहीं हैं, खोखली नहीं हैं और अलौकिक नहीं हैं। कोई भी सामान्य व्यक्ति इन चीजों को सकारात्मक चीजें मानते हुए उन्हें सँजोने, सही ढंग से सँभालने और उन्हें पारंपरिक रूप से स्वीकारने में सक्षम होगा। इसके विपरीत, कुछ व्यक्ति जब वास्तविक जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि भोजन, कपड़ा, मकान, परिवहन, व्यवहार और व्यक्तिगत आचरण आदि से निकटता से जुड़े इन सत्यों का सामना करते हैं तो उन्हें कमतर आंकते हैं, अनदेखा करते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं। यहाँ समस्या क्या है? समस्या उनकी प्राथमिकताओं और प्रकृति सार के साथ है। कोई चीज जितनी अधिक सकारात्मक होती है, परमेश्वर उससे उतना ही अधिक प्रेम करता है, उसे उतना ही अधिक चाहता है, और वह कुछ ऐसा है जो वह करता है और वह परमेश्वर के इरादों में लोगों से जो प्राप्त और स्वीकार करने की उम्मीद करता है, वह जितना इसके समरूप होता है, उतना ही अधिक ये लोग उस पर सवाल उठाते हैं, उतना ही अधिक उसका अध्ययन करते हैं, उसका विरोध करते हैं और उसकी निंदा करते हैं—क्या यह दुष्टतापूर्ण बात नहीं है? यह अत्यधिक दुष्टता है! मसीह-विरोधी अविश्वासियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। अगर मैं अविश्वासियों के बीच होता तो वे मसीह-विरोधियों और देहधारी परमेश्वर में से किसे अधिक आसानी से स्वीकारते? (मसीह-विरोधियों को।) क्यों? अविश्वासी सीधे-सच्चे लोगों को पसंद करते हैं या दुष्ट लोगों को? (दुष्ट लोगों को।) क्या वे उन लोगों को पसंद करते हैं जो चापलूसी करते हैं और खुशामद करते हैं या उनको जो ईमानदार हैं? (जो चापलूसी करते हैं और खुशामद करते हैं।) बिल्कुल, वे ऐसे ही व्यक्तियों का पक्ष लेते हैं। यदि तुम नहीं जानते कि किसी समूह में विभिन्न पारस्परिक संबंधों के प्रबंधन के लिए रणनीतियों का उपयोग कैसे किया जाए और तुम नहीं जानते कि रणनीतियों के माध्यम से लोगों के बीच कैसे हेरफेर की जाए या कैसे उन्हें नियंत्रित किया जाए तो क्या वह समूह तुम्हें समायोजित कर सकता है? यदि तुम बहुत ईमानदार हो, हमेशा सच बोलते हो, कई मुद्दों के सार की असलियत समझ सकते हो और फिर जो तुमने देखा और समझा उन सत्यों को बोलते हो तो क्या कोई इसे स्वीकार करेगा? नहीं, इस दुनिया में कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। इस दुनिया में, सत्य बोलने की उम्मीद न करो—ऐसा करने से परेशानी आएगी या आपदा आएगी। ईमानदार व्यक्ति होने की उम्मीद न करो; ऐसा होने पर तुम्हारा कोई भविष्य नहीं होगा। मसीह विरोधियों का क्या है? वे झूठ बोलने में माहिर हैं, खुद को छिपाने और खुद को पेश करने में माहिर हैं, वे खुद को भव्य, गरिमापूर्ण और गुणी व्यक्ति के रूप में पेश करते हैं, जिससे लोग उनकी आराधना करते हैं। वे इन चीजों में माहिर हैं और वे ऐसी ही चीजों का आनंद लेते हैं—वे थोथे ज्ञान और शिक्षा पर चर्चा करने के साथ-साथ खूबियों और रणनीतियों की तुलना करने में आनंदित होते हैं। उदाहरण के लिए, किसी कंपनी या लोगों के समूह में उच्चतम ज्ञान और शिक्षा का होना प्राथमिक बात नहीं होती, न ही यह उस कंपनी में किसी व्यक्ति की स्थिति निर्धारित करने का मुख्य कारक होता है। मुख्य कारक क्या है? (रणनीतियाँ और प्रतिभा।) बिल्कुल ठीक, रणनीतियाँ और प्रतिभा ही मुख्य कारक होते हैं। इनके बिना, व्यापक शिक्षा होने का कोई फायदा नहीं है। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम विदेश से लौटे हो और यहाँ के लोगों के इस समूह के खेल के नियमों से पूरी तरह अनभिज्ञ हो। यदि तुम विदेशी कंपनियों के स्व-आचरण के लिए नियम, विनियम और सिद्धांत लागू करते हो तो तुम आगे नहीं बढ़ पाओगे। क्या यह ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) ऐसा ही होता है। तुम्हें रणनीति बनानी होगी और तुम्हें उच्च पद पर पहुँचने के लिए बुरा और दुष्ट होना होगा। यह कुछ महिलाओं की तरह ही है : भले ही उनके पास उनका भरण-पोषण करने के लिए पति हो, लेकिन वे संतुष्ट नहीं होतीं। अलग दिखने और प्रसिद्धि, लाभ तथा प्रतिष्ठा पाने के लिए, वे किसी भी साधन का सहारा लेती हैं। वे चापलूसी करती हैं और आवश्यक होने पर निजी सेवाएँ प्रदान करती हैं और इस सब के लिए उन्हें बाद में जरा भी शर्मिंदगी या अपने पतियों या परिवारों के प्रति अपराध-बोध या ऋणी होने का एहसास नहीं होता। क्या तुम ऐसा कर सकते हो? तुम्हें यह घृणित लगता है और तुम ऐसा नहीं कर सकते। तो, उनके बीच तुम ऊँचे पद पर कैसे पहुँच सकते हो? कोई रास्ता नहीं है। यह सब अपनी आत्मा को बेच कर और विभिन्न दुष्टतापूर्ण तरीकों का उपयोग करने से प्राप्त किया जाता है। क्या तुम्हें काम करने का यह तरीका पसंद है? (नहीं।) तुम कहते हो कि अभी तुम्हें यह पसंद नहीं है, लेकिन किसी दिन जब तुम्हें एक निश्चित सीमा तक दबाया जाएगा तो यह सब तुम्हें पसंद आने लगेगा। अगर लोग तुम्हें दिन भर धमकाते और सताते रहें, तुम्हारे लिए मुश्किलें खड़ी करते रहें, तुममें कमियाँ निकालते रहें और तुम्हें बाहर निकालना चाहें तो अपनी नौकरी बचाने के लिए तुम्हें अपना शरीर बेचना पड़ सकता है। तुम्हें वे सभी दुष्ट चालें सीखनी होंगी जिनका वे प्रयोग करते हैं और अंत में तुम भी उनके जैसे ही बन जाओगे। ठीक अभी, तुम सख्ती से घोषणा करते हो कि, “मुझे ये चालें पसंद नहीं हैं। मैं उस तरह का व्यक्ति नहीं बनना चाहता। मैं इतना दुष्ट नहीं हूँ। मैं अपना शरीर नहीं बेचना चाहता। मुझे पैसा पसंद नहीं है; खाने और पहनने के लिए पर्याप्त होना ही काफी है।” तुम किस तरह के व्यक्ति हो? तुम कुछ भी नहीं हो। तुम वही हो जो शैतान ने तुम्हें भ्रष्ट करके बनाया है। क्या तुम्हें लगता है कि तुम अपने मालिक हो सकते हो? लोग माहौल के साथ बदलते हैं, उनका स्वभाव भ्रष्ट होता है और तुम प्रसिद्धि, लाभ, स्थिति, धन और सभी प्रकार के प्रलोभनों पर काबू नहीं पा सकते। यदि तुम उस वातावरण में होते तो तुम खुद को नियंत्रित करने में असमर्थ होते। अविश्वासियों के लिए यह चरण मांस पीसने की चक्की में पड़ने जैसा है। एक बार जब कोई व्यक्ति इसमें पिस जाता है तो बचने का कोई रास्ता नहीं होता। अब, परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हुए, परमेश्वर की सुरक्षा में और बिना किसी की दादागीरी सहे तुम परमेश्वर की उपस्थिति में शांति से रह सकते हो। तुम बहुत धन्य हो, इसलिए इसका शांति से आनंद लो! यदि तुम अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाते और थोड़ी-सी काट-छाँट का सामना करना पड़ता है तो तुम्हें ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है। तुम्हें ढेरों आशीष मिले हैं; क्या तुम्हें पता नहीं है? (हाँ, पता है।) मुझे बताओ, अविश्वासियों के लिए “मांस पीसने की चक्की” में पड़े होने का अनुभव कैसा होता है? उनके लिए मर जाना बेहतर होता है। परमेश्वर के घर में तुम्हें जो थोड़ा-बहुत कष्ट सहना पड़ता है, वह लोगों को सहना चाहिए; वह बहुत पीड़ादायक बिल्कुल नहीं होता। लेकिन, लोग संतुष्ट नहीं हैं और कैसे भी काट-छाँट की जाए वे पश्चाताप करने को तैयार नहीं हैं। लेकिन जब उन्हें घर भेजा जाता है तो वे अविश्वासियों के बीच लौटने को तैयार नहीं होते क्योंकि उन्हें लगता है कि वे बहुत बुरे और दुष्ट हैं। जब वास्तव में मृत्यु का सामना करना पड़ता है तो लोग मरना नहीं चाहते; हर कोई जीवन की तीव्र आकांक्षा करता है और इस सिद्धांत का पालन करता है कि “बुरा जीवन भी अच्छी मृत्यु से बेहतर है।” वे जैसे ही अपनी कब्र देखते हैं, फूट-फूट कर रोने लगते हैं। लोग अब जानते हैं कि अविश्वासियों के बीच जीवित रहना आसान नहीं है। यदि तुम गरिमा के साथ जीना चाहते हो और अपनी क्षमताओं के आधार पर जीविकोपार्जन करना चाहते हो तो ऐसा करने का कोई तरीका नहीं है। केवल योग्यता होना ही पर्याप्त नहीं है; सफल होने के लिए तुम्हें पर्याप्त दुष्ट, बुरा और बदनीयत भी होना चाहिए। तुम्हारे पास क्या है? कुछ लोग कहते हैं, “मेरे पास अब थोड़ी-सी दुष्टता है, लेकिन पर्याप्त बुराई नहीं है।” यह आसान है। खुद को “मांस पीसने की चक्की” में डालो और एक महीने से भी कम समय में, तुम बुरे बन जाओगे। यदि तुम अच्छे व्यक्ति हो तो वे तुम्हें मारना चाहेंगे; तुम उन्हें छोड़ दोगे, लेकिन वे तुम्हें नहीं छोड़ेंगे, इसलिए तुम्हें जीवित रहने के लिए लड़ना होगा। एक बार जब तुम बुरे हो जाते हो तो वापस मुड़ना संभव नहीं होता और तुम भी दानव बन चुके होते हो। दुष्टता इस तरह से बनती है। अविश्वासियों की दुनिया बहुत अंधकारमय और दुष्टतापूर्ण है। लोग अंधकार और दुष्टता के शैतानी प्रभाव से कैसे मुक्त हो सकते हैं? उद्धार पाने के लिए उन्हें सत्य समझने की जरूरत होती है। अब जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, यदि तुम शैतान के प्रभाव से बचना और मुक्त होना चाहते हो तो यह कोई आसान बात नहीं है। तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पित होना सीखना चाहिए, परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय विकसित करना चाहिए, कई चीजों को साफ-साफ समझना चाहिए और इसके अलावा, तुम्हारे आचरण के सिद्धांतों में बुद्धिमत्ता होनी चाहिए किंतु उन्हें परमेश्वर को नाराज नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, हमेशा प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रयासरत मत रहो, या हमेशा रुतबे के फायदों का आनंद लेने की कोशिश मत करो। बस खाने के लिए जरूरत भर सामग्री का होना और भूख से न मरना ही पर्याप्त है। इस तरह से अनुग्रह प्राप्त करने के लिए तुम्हें परमेश्वर की प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि तुम्हें सुरक्षा मिले। यदि तुम हमेशा असाधारण इच्छाएँ रखोगे तो यह उचित नहीं होगा और परमेश्वर तुम्हारी प्रार्थनाओं पर ध्यान नहीं देगा।

मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति के संबंध में, आज हम मुख्य रूप से जिस तीसरी अभिव्यक्ति के बारे में संगति करने जा रहे हैं वह है, मसीह-विरोधी किसकी आराधना करते हैं। मसीह-विरोधी किस चीज की आराधना करते हैं? (ज्ञान और शिक्षा की।) ज्ञान और शिक्षा के अलावा एक और चीज—खूबियों की। ज्ञान और शिक्षा में क्या शामिल है? इनमें वह सब शामिल है जो दुनिया भर में अध्ययन की जाने वाली पुस्तकों में पाया जाता है, ज्ञान से संबंधित उद्योगों में काम करने से प्राप्त अनुभव के साथ ही नैतिकता, मानवता, व्यवहार इत्यादि के बारे में समाज में प्रचारित विभिन्न प्रतिबंध, नियम और विनियम, इत्यादि इनमें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, इनमें विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ा ज्ञान शामिल है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग परमेश्वर के वचनों में वर्णित पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं करते। लेकिन अगर किसी दिन वैज्ञानिक शोध में पता चले कि मनुष्यों में आत्मा होती है, क्योंकि मृत्यु के बाद कोई चीज शरीर से निकल जाती है और व्यक्ति का वजन एक निश्चित मात्रा में कम हो जाता है, जो संभवतः आत्मा का वजन है तो वे इस पर विश्वास कर सकते हैं। परमेश्वर चाहे जैसे बोले, वे विश्वास नहीं करते, लेकिन जैसे ही वैज्ञानिक वजन के आधार पर कुछ मापते हैं, वे उस पर विश्वास कर लेते हैं। वे केवल विज्ञान पर भरोसा करते हैं। कुछ लोग केवल राष्ट्र, सरकार और उससे जुड़ी जानकारियों, सिद्धांतों और मशहूर हस्तियों की व्याख्याओं पर ही भरोसा करते हैं। वे केवल उन्हीं चीजों पर भरोसा करते हैं। वे परमेश्वर के वचनों, उसकी शिक्षा, उसके मार्गदर्शन या कथनों को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन वे जैसे ही किसी मशहूर हस्ती को बोलते हुए सुनते हैं, उसे तुरंत स्वीकार कर लेते हैं और उसकी आराधना भी करते हैं और उसकी बातों का प्रचार करते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कहा कि वह जो मन्ना लोगों के लिए हर दिन गिराता है, उसे संग्रहीत नहीं किया जा सकता और अगले दिन नहीं खाया जाना चाहिए क्योंकि वह ताजा नहीं होगा, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के वचनों पर विश्वास नहीं किया। उन्होंने सोचा, “अगर परमेश्वर ने मन्ना न भेजा और हम भूखे रह गए, तब क्या होगा?” इसलिए, उन्होंने इसे इकट्ठा करने और बचा कर रखने का एक तरीका खोज निकाला। परमेश्वर ने दूसरे दिन मन्ना भेजा और वे उसे इकट्ठा करते रहे। परमेश्वर ने तीसरे दिन मन्ना भेजा और वे उसे इकट्ठा करते रहे। परमेश्वर हर दिन एक ही बात कहता रहा और उन्होंने लगातार ऐसे तरीके से काम किया जो परमेश्वर के निर्देशों के खिलाफ था। उन्होंने कभी न तो परमेश्वर के वचनों पर विश्वास किया और न ही उन पर ध्यान दिया। एक दिन, किसी वैज्ञानिक ने शोध किया और कहा कि “यदि मन्ना उसी दिन नहीं खाया जाता है और अगले दिन के लिए छोड़ दिया जाता है, तो भले ही वह बाहर से ताजा दिखे, लेकिन उसमें ऐसे कीटाणु पैदा हो जाते हैं जिन्हें खाने से पेट की बीमारी हो सकती है।” उस दिन के बाद से लोगों ने मन्ना का संग्रह करना बंद कर दिया। उनके लिए एक वैज्ञानिक का एक कथन परमेश्वर के दस कथनों से अधिक भारी है। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, यह दुष्टता है।) वे मौखिक रूप से स्वीकार करते थे कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, कि वे परमेश्वर को स्वीकारते हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, और परमेश्वर से आशीष पाना चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने परमेश्वर के दिए अनुग्रह और आशीष का आनंद लिया, परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा का आनंद लिया, लेकिन उसके अलावा उन्होंने परमेश्वर की कही बातों, उसके दिए निर्देशों, आज्ञाओं या आदेशों का एक भी वाक्य नहीं सुना। यदि कोई अधिकार सम्पन्न और प्रतिष्ठित ज्ञानी और विद्वान व्यक्ति कुछ कहता है या कोई भ्रांति व्यक्त करता है, तो वे सही या गलत की परवाह किए बिना उसे तुरंत स्वीकार कर लेते हैं। यहाँ क्या हो रहा है? यह दुष्टता है, बहुत ज्यादा दुष्टता! उदाहरण के लिए, मैंने कुछ लोगों से कहा कि शकरकंद और अंडे एक साथ न खाएँ, क्योंकि इससे खाद्य विषाक्तता हो सकती है। मेरा कथन किस पर आधारित है? मैं कोई मनगढ़ंत बात नहीं कह रहा हूँ; ऐसे मामले सामने आए हैं जब दोनों चीजें एक साथ खाने से लोगों को खाद्य विषाक्तता हो गई। यह सुनने के बाद किसी सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया क्या होगी? वह सोचेगा, “भविष्य में, मैं शकरकंद खाते समय अंडे नहीं खाऊँगा, कम से कम दो-तीन घंटों के भीतर तो नहीं खाऊँगा।” वह इसे गंभीरता से लेगा और अपनी खाने की आदतों को बदलेगा। परंतु, कुछ लोग इस पर विश्वास नहीं करेंगे। वे कहेंगे, “अंडा और शकरकंद एक साथ खाने से खाद्य विषाक्तता? यह असंभव है। मैं उन्हें एक साथ खाऊँगा, और तुम देखना कि मुझे भोजन विषाक्तता होती है या नहीं!” यह किस तरह का व्यक्ति है? (दुष्ट।) मुझे यह व्यक्ति थोड़ा नीच लगता है! मैं कुछ और कह रहा हूँ, और वह दोनों चीजें एक साथ खाने पर अड़ा है; क्या यह नीचता नहीं है? इस किस्म के लोग खास तौर पर उस बात का विरोध करते हैं, प्रतिवाद करते हैं, और उस पर बहस करते हैं जो सही, उचित और सकारात्मक हो—यह दुष्टता है। भ्रष्ट मानव जाति दुष्टता और सामर्थ्य को महत्व देती है। दानव और शैतान चाहे जो भ्रांति फैलाएँ, लोग बिना किसी सवाल के उसे स्वीकार कर लेते हैं, जबकि परमेश्वर कई सत्य व्यक्त करता है, लेकिन लोग उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं और यहाँ तक कि कई धारणाएँ भी बना लेते हैं। एक और उदाहरण है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कई ग्रामीण इलाकों में आदिम जंगल हैं जहाँ जंगली जानवर अक्सर घूमते रहते हैं। वहाँ बाहर जाते समय किसी को साथ ले जाना उचित है, और जब तक आवश्यक न हो रात में बाहर न जाना सबसे अच्छा है। यदि तुम्हें बाहर जाने की आवश्यकता है तो तुम्हें सावधानी बरतनी चाहिए, किसी के साथ जाना चाहिए, या आत्मरक्षा के लिए हथियार साथ रखने चाहिए—बाद में पछताने से बेहतर है सुरक्षित रहना। कुछ लोग कहते हैं, “कुछ नहीं होगा; परमेश्वर मेरी रक्षा करेगा।” क्या यह परमेश्वर की परीक्षा नहीं है? लोगों को ये सावधानियाँ बरतनी ही चाहिए। तुम्हारे पास एक दिमाग, एक दिल और एक आत्मा है तो फिर परमेश्वर की सुरक्षा पर जोर क्यों देना? परमेश्वर की परीक्षा मत लो। वही करो जो तुम्हें करना चाहिए। अगर संयोग से तुम्हारा सामना किसी ऐसे खूंखार जंगली जानवर से हो जाए जिससे चार या पाँच लोगों का समूह भी नहीं निपट सकता, फिर भी तुम बच सकते हो—यह परमेश्वर की सुरक्षा है। कुछ लोगों ने वाकई भेड़ियों को देखा है और भेड़ियों और भालुओं को दहाड़ते हुए सुना है, जो वहाँ इन जंगली जानवरों के होने की पुष्टि करता है। इसलिए, जब मैं कहता हूँ कि रात में बाहर मत जाओ क्योंकि जंगली जानवरों से आसानी से सामना हो सकता है, तो क्या मैं केवल बातें बना रहा हूँ? (नहीं।) मैं लोगों को डराने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। कुछ लोग, यह सुनने के बाद कहते हैं, “मुझे ज्यादा सावधान रहना चाहिए। मैं बाहर जाते समय किसी को अपने साथ ले जाऊँगा, या जंगली जानवरों से सामना हो ही जाए तो उनसे निपटने के लिए आत्मरक्षा के हथियार साथ रखूँगा।” कुछ लोग, यह सुनने के बाद इसे गंभीरता से लेते हैं, विश्वास करते हैं और इसे स्वीकार करते हैं, और फिर जो मैंने कहा है उसे व्यवहार में लाते हैं। यह सहज स्वीकृति है; इससे आसान कुछ नहीं हो सकता। हालाँकि, कुछ अलग तरह के लोग यह सब सुनने से इनकार करते हैं। वे कहते हैं, “मुझे तो कभी जंगली जानवर नहीं दिखा? वे कहाँ हैं? कोई तो बाहर आए; मैं उसका सामना करूँगा और देखूँगा कि कौन अधिक भयानक है। जंगली जानवरों में इतना डरावना क्या है? तुम लोगों में कम आस्था है और डरपोक हो। मेरी आस्था को देखो; मैं तो भालुओं से भी नहीं डरता!” ऐसे लोग जानबूझकर अकेले बाहर जाते हैं, बिना किसी कारण के बस इधर-उधर घूमते हैं। भोजन के बाद, उन्हें बाहर टहलना होता है और वे अकेले ही जाने पर जोर देते हैं। दूसरे लोग जब कोई साथी खोजने का सुझाव देते हैं तो वे जवाब देते हैं, “बिल्कुल नहीं, मुझे साथी की क्या जरूरत? साथी होने से लगेगा कि मैं बेकार हूँ! मैं अकेले ही बाहर जाऊँगा!” वे इसे आजमाना चाहते हैं। यह कैसा व्यक्ति है? चलो इस बारे में बात ही नहीं करते कि उसे जंगली जानवरों का सामना करना पड़ा या नहीं; क्या ऐसे मामलों के प्रति उसके रवैये में समस्या नहीं है? (हाँ, है।) उसकी समस्या क्या है? (ऐसे व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट होता है।) तुम उससे गंभीर मामलों पर बात करने की कोशिश करते हो, और वह उसे मजाक समझता है। क्या ऐसे लोगों से बात करने का कोई मतलब है? इस तरह के लोग जंगली जानवरों से भी बदतर हैं; उनके बारे में परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।

अभी-अभी हमने इस तथ्य के संबंध में चर्चा की कि मसीह-विरोधियों जैसे दुष्ट स्वभाव वाले लोग ज्ञान, शिक्षा, खूबियों और कुछ विशेष प्रतिभाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं; वे विशेष प्रतिभा वाले लोगों की खास तौर पर प्रशंसा और सम्मान करते हैं; और वे ऐसे लोगों की बातों से पूरी तरह से विस्मित होते हैं और उनकी बातों को मानते हैं। उस सामान्य ज्ञान, अंतर्दृष्टि और वास्तविक शिक्षा के प्रति उनका रवैया क्या होता है जो लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं और जो सामान्य मानवता वाले लोगों के पास होने चाहिए या सामान्य मानवीय विचारों के समझ में आने वाली व्यावहारिक और सकारात्मक चीजों के प्रति उनका रवैया क्या होता है? वे उनका तिरस्कार करते हैं, उन पर कोई ध्यान नहीं देते। हर बार जब सभाओं में इन वचनों और सत्यों पर संगति की जाती है तो वे क्या कर रहे होते हैं? वे अपना सिर खुजाते हैं, कुछ की आँखें अधमुँदी होती हैं, वे सुन्न और ठस दिखाई देते हैं और कुछ विचारों में खोए हुए से लगते हैं। परमेश्वर का घर गंभीर मामलों पर जितनी अधिक चर्चा करता है, उनकी रुचि उतनी ही कम होती जाती है। सत्य के बारे में परमेश्वर का घर जितनी अधिक संगति करता है, उतना ही अधिक वे सो जाते हैं या उनींदापन महसूस करते हैं। यह स्पष्ट है कि इन लोगों की सत्य में कोई रुचि नहीं है। क्या ये छद्म-विश्वासी लोग उद्धार से परे नहीं हैं? कुछ लोग जब धर्म में थे, वे केवल अन्य भाषाओं में बोलने वालों को सुनना या अजीबोगरीब चीजें देखना पसंद करते थे और अविश्वसनीय चीजें देखकर उनका मन तुरंत खुश हो जाता था। मुझे देखकर कुछ लोग कहते हैं, “मैंने दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। तुमने किस चीज का अध्ययन किया है?” मैं कहता हूँ, “मैंने किसी विशेष विषय का अध्ययन नहीं किया है; मैं बस कुछ अक्षरों को समझ सकता हूँ और किताबें पढ़ सकता हूँ।” वे कहते हैं, “तो, ठीक है, तुम मेरे जितना नहीं जानते।” मैं जवाब देता हूँ, “इसकी तुलना करना बेकार है, लेकिन चलो थोड़ी देर के लिए संगति करते हैं—क्या फिलहाल तुम्हें कोई कठिनाई है?” इस पर, वे कैसे जवाब देते हैं? “हम्म, मुझे क्या कठिनाई? मुझे कोई कठिनाई नहीं है। मैं अपना कर्तव्य बहुत अच्छी तरह से निभा रहा हूँ!” जब मैं उनके साथ सत्य पर संगति करता हूँ, तो वे रुचि खो देते हैं, जम्हाई लेते हैं और आँसू बहाते हैं मानो उन पर कोई भूत चढ़ गया हो। अगर मैं उनके भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करना शुरू करता हूँ, तो वे कुछ और नहीं सुनना चाहते और अपना प्याला उठा कर चल देते हैं। मैं उनका साथ निभाने और उनके साथ बराबरी से बातचीत करने की जितनी कोशिश करता हूँ, वे उतना ही मुझे नीची निगाह से देखते हैं। क्या यह सद्भावना की उपेक्षा करना नहीं है? कोई था जो गाड़ी चलाना जानता था। मैंने उससे पूछा, “तुम कितने सालों से गाड़ी चला रहे हो?” उसने कहा, “मैंने महाविद्यालय से स्नातक करने के बाद दो साल तक काम किया और उसके बाद कार खरीदी।” मैंने कहा, “तो, तुम काफी सालों से गाड़ी चला रहे हो। मुझे अभी भी गाड़ी चलाना नहीं आता।” क्या ऐसा कहना समानता से मेलजोल के साथ रहना नहीं है? क्या यह सामान्य मानवता वाले लोगों की बातचीत नहीं है? (हाँ, है।) यह सुनने के बाद, उसने कहा, “क्या? तुम अभी तक गाड़ी चलाना नहीं जानते? फिर तुम क्या कर सकते हो?” मैंने कहा, “मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। मैं सिर्फ कार में बैठना जानता हूँ।” मैंने उससे पूछा, “तुम आजकल क्या कर्तव्य कर रहे हो?” उसने कहा, “मैं वित्त और लेखा देखता हूँ। मेरे दिमाग में संख्याएँ भरी हैं। महाविद्यालय में मैं गणित में उत्कृष्ट था और विज्ञान विषयों में सबसे तेज था। मुझमें सिन्हुआ या पीकिंग विश्वविद्यालय जाने की क्षमता थी।” मैंने कहा, “मैं गणित में बहुत खराब हूँ। संख्याओं से मुझे सिरदर्द होता है। मुझे शब्दों का अध्ययन करने, शब्दावली सीखने जैसी चीजें ज्यादा पसंद हैं।” उसने कहा, “यह सीखना बेकार है। जो लोग कला विषयों का अध्ययन करते हैं, उनका आम तौर पर कोई भविष्य नहीं होता।” देखो कि उसने क्या कहा। क्या इसमें कोई सामान्य मानवीय तर्क है? (नहीं, नहीं है।) जब मैंने उससे इतने शांत और दोस्ताना तरीके से बोला और संवाद किया तो वह मामले से ठीक तरीके से पेश नहीं आ सका। इसके बजाय, उसने मुझे नीची निगाह से देखा और मुझे छोटा साबित किया। अगर उसका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता, जिसके पास कोई रुतबा या ज्ञान होता तो शायद बात अलग होती। कुछ समय साथ बिताने के बाद उसे लगने लगता है, “मैं परमेश्वर से परिचित हो गया हूँ, मैंने उससे बातचीत की है, और उसके साथ लेन-देन किया है।” उसे लगता है कि अब उसके पास कुछ पूँजी है। परिणामस्वरूप, उसका लहजा बदल जाता है। एक बार, मैंने उससे पूछा कि “मैंने सुना है कि कोई व्यक्ति अब अपने कर्तव्य नहीं करना चाहता था और घर जाना चाहता था। क्या वह व्यक्ति घर चला गया?” उसने उत्तर दिया, “ओह, वह व्यक्ति? उसका तो कभी घर जाने का इरादा था ही नहीं!” यह कैसा लहजा है? क्या उसमें बदलाव हुआ है? जब मैं पहली बार उससे मिला तो उसे लगा कि वह समझ ही नहीं पा रहा कि मुझसे कैसे पेश आए : उसने सम्मान दिया और अच्छा व्यवहार प्रदर्शित करते हुए दुम दबाकर रहा। मगर, अब जब वह अधिक परिचित हो गया है तो उसकी दुम ऊपर हो गई। यह कैसा लहजा है? जब वह मुझसे बात करता है तो उसमें थोड़ी अवज्ञा, बेपरवाही, उपेक्षा और नीचा दिखाने वाला और तिरस्कारपूर्ण रवैया होता है। यह किस तरह का स्वभाव है? यह दुष्टता है। क्या यह सामान्य मानवता वाला व्यक्ति है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) एक साधारण, सामान्य व्यक्ति तुमसे सामान्य रूप से संवाद और बातचीत कर सकता है—यह सबसे सामान्य बात है। अगर वह तुम्हें धमकाता है, दबाता है या तुम्हें नीचा दिखाता है तो कैसा लगता है? क्या तुम्हारे साथ इस तरह व्यवहार करना उस व्यक्ति में किसी तरह की सामान्य मानवता प्रदर्शित करता है? मुझे बताओ, अगर ऐसा कोई व्यक्ति किसी विश्व-प्रसिद्ध व्यक्ति, किसी पद और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति, या अपने बॉस या वरिष्ठ से मिलता है तो क्या वह उससे इस तरह से व्यवहार करने की हिम्मत करेगा? वह ऐसी हिम्मत नहीं करेगा। वह उत्सुकता से दंडवत करेगा और इन लोगों से बातचीत करने के लिए खुद को अधीनस्थ, नीचे दर्जे का, नौकर, विनम्र व्यक्ति, आम आदमी, या साधारण आदमी जैसे संबोधनों से संदर्भित करेगा। अविश्वासियों में उच्च अधिकारी अपने से नीचे के लोगों को कुचलते हैं और तुम जैसे बेकार के आदमी के साथ शांत और मैत्रीपूर्ण तरीके से कौन बात करेगा? कभी-कभार खुश होने पर वे तुमसे भले ही बात कर लेते हों, लेकिन उनके मन में तुम्हारे लिए कोई सम्मान नहीं होता; वे तुम्हारे साथ मानव से निम्नतर व्यवहार करते हैं, बिना किसी कारण के तुम्हें लात मारते हैं। जब मैं उस व्यक्ति से शांतिपूर्वक और मैत्रीपूर्ण तरीके से बात करता हूँ तो न केवल मुझे सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, बल्कि मुझे तिरस्कार, अपमान, घिन और मजाक का भी सामना करना पड़ता है। क्या ऐसा इसलिए है कि उस व्यक्ति के साथ पेश आने के मेरे तरीके में कुछ गड़बड़ है या उसके स्वभाव में कोई समस्या है? (ऐसा इसलिए है कि उस व्यक्ति का स्वभाव बहुत घमंडी है।) सही है, मैं ऐसा ही सोच रहा था। मैं सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करता हूँ तो क्यों कुछ लोग सही तरीके से प्रतिक्रिया देते हैं, जबकि बहुत से दूसरे लोग ऐसा नहीं करते? लोगों को आम तौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है : मानवता वाले लोग जो दूसरों का सम्मान करना जानते हैं, परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को समझते हैं और जानते हैं कि वे कौन हैं और दूसरे, वे लोग जो दुष्ट और अभिमानी हैं, जिनमें आत्म-ज्ञान नहीं है। मुझे बताओ, तुम उस चीज को क्या कहोगे जो है तो मानव की खाल में, लेकिन यह भी नहीं जानता कि वह कौन है? वह विवेकहीन जानवर है। एक और मौके पर मैंने उससे पूछा, “मैंने कुछ दिन पहले तुम्हें जिस मामले को सँभालने के लिए कहा था, उसका क्या नतीजा रहा? क्या तुमने वे काम किए?” जवाब में उसने कहा, “तुम किस बारे में बात कर रहे हो?” मैंने कहा, “वे कुछ चीजें, क्या तुमने उन्हें कर दिया? क्या वे काम हो गए?” मैंने उसे दो बार याद दिलाया तो आखिरकार उसे याद आया, “ओह, तुम उन चीजों के बारे में बात कर रहे हो? वे काम तो बहुत पहले हो गए थे।” इस उत्तर के पहले शब्द, “ओह” से किस तरह का लहजा जाहिर होता है? फिर से यह तिरस्कार का लहजा है, उसकी दानवी प्रकृति एक बार फिर उभर रही है। उसकी प्रकृति अपरिवर्तित रही; वह बस इसी तरह का नीच है। फिर मैंने उससे पूछा कि वह इससे कैसे निपटा और कोई ज्यादा जानकारी दिए बिना उसने जवाब दिया, “कुछ लोगों ने इसे देखा और इसे इस तरह से निपटा दिया।” अगर मैंने और अधिक विशिष्ट विवरण जानने की कोशिश की होती, बात पकड़ भी ली होती तो भी मुझे कोई जवाब नहीं मिलता। मैंने उसे एक काम करने का निर्देश दिया था; क्या मुझे सूचना पाने का अधिकार नहीं है? (हाँ, है।) तो, उसकी जिम्मेदारी क्या थी? मुझसे काम स्वीकार लेने के बाद, क्या उसे यह रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं थी कि उसने इसे कैसे सँभाला? (थी।) लेकिन उसने रिपोर्ट नहीं की और मैं पूरे समय उसमें हुई प्रगति के बारे में जानने में असमर्थ रहा। मैं केवल यही कर सकता था कि यह जानने के लिए किसी को भेजूँ कि इस मामले को कैसे सँभाला जा रहा है, लेकिन फिर भी, कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। मैंने सोचा, “ठीक है, मैं तुम्हें याद रखूँगा। तुम भरोसेमंद नहीं हो। मैं तुम्हें कुछ भी नहीं सौंप सकता। तुम्हारी विश्वसनीयता बहुत कम है!” यह किस तरह का दानव है? ऐसे व्यक्ति का स्वभाव कैसा है? दुष्टता। जब तुम उसके साथ बराबरी का व्यवहार करते हो, उसके साथ विनम्रता से चर्चा करते हो और सौहार्दपूर्ण रहने की कोशिश करते हो तो वह इसे कैसे देखता है? वह इसे तुम्हारी अक्षमता और कमजोरी के रूप में देखता है, जैसे कि तुम आसानी से नियंत्रित किए जा सकते हो। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, यह दुष्टता है।) यह शुद्ध दुष्टता है। यद्यपि इस तरह के दुष्ट लोग बहुत ज्यादा नहीं हैं, लेकिन वे हर कलीसिया में मौजूद हैं। उनके हृदय कठोर, अभिमानी और सत्य से विमुख हैं और उनका स्वभाव क्रूर है। ठीक यही वे स्वभाव और व्यवहार हैं जो इस तरह के लोगों के दुष्ट होने की बात की पुष्टि करते हैं। सामान्य मानवता के सकारात्मक पहलुओं, जैसे कि दयालुता, सहनशीलता, धैर्य और प्रेम को वे न केवल नापसंद करते हैं, बल्कि इसके विपरीत वे अपने हृदय में भेदभाव और घृणा भी पालते हैं। ऐसे लोगों के हृदय की गहराई में क्या छिपा है? दुष्टता। वे बेहद दुष्ट हैं! यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता की एक और अभिव्यक्ति है।

मसीह-विरोधियों की दुष्ट अभिव्यक्तियों पर हमारी आज की संगति की विषय-वस्तु पिछली दो संगतियों से कुछ अलग है और हर संगति एक पहलू पर जोर देती है। मुझे बताओ, मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में, वे ज्ञान, शिक्षा, खूबियों और विशेष प्रतिभाओं को महत्व देते हैं—वे इन चीजों के लिए गहरा सम्मान महसूस करते हैं—तो, क्या परमेश्वर में उनकी सच्ची आस्था है? (नहीं, नहीं है।) कुछ लोग कह सकते हैं कि समय के साथ वे बदल सकते हैं। क्या वे बदलेंगे? नहीं, वे नहीं बदलेंगे, वे बदल नहीं सकते। परमेश्वर की विनम्रता और गुप्तता, उसके वास्तविक प्रेम, उसकी निष्ठा और मानवता के लिए उसकी दया और देखभाल का तिरस्कार करना उनकी प्रकृति में है। और क्या? वे मनुष्यों के बीच रहने वाले परमेश्वर की सामान्यता और व्यावहारिकता का तिरस्कार करते हैं और इससे भी अधिक, उन सभी सत्यों का तिरस्कार करते हैं जिनका ज्ञान, शिक्षा, विज्ञान और खूबियों से कोई संबंध नहीं है। क्या ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है? (नहीं, उन्हें नहीं बचाया जा सकता।) उन्हें क्यों नहीं बचाया जा सकता? क्योंकि यह किसी भ्रष्ट स्वभाव का क्षणिक प्रकाशन नहीं है; यह उनके प्रकृति सार का खुलासा है। दूसरे लोग उन्हें चाहे जैसी सलाह दें या उनके साथ सत्य पर कितनी भी संगति की जाए, इनमें से कुछ भी उन्हें बदल नहीं सकता। यह कोई अस्थायी शौक नहीं है, बल्कि उनके भीतर इन चीजों के लिए गहरी पैठी जरूरत है। ऐसा ठीक इसीलिए है कि उन्हें ज्ञान, शिक्षा, खूबियों और विशेष प्रतिभाओं की जरूरत है, यह उन्हें इन चीजों का सम्मान करने देता है। सम्मान का क्या मतलब है? इसका मतलब है किसी भी कीमत पर इन चीजों का अनुसरण करने और उन्हें प्राप्त करने के लिए तैयार रहना, यही सम्मान का अंतर्निहित अर्थ है। इन चीजों को पाने के लिए वे पीड़ा सहने और कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं, क्योंकि यही वे चीजें हैं जिनका वे सम्मान करते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “परमेश्वर मुझसे जो भी करने को कहे, वह ठीक है। मैं परमेश्वर को संतुष्ट रख सकता हूँ, जब तक कि वह मुझसे सत्य का अनुसरण करने की अपेक्षा न करे।” वे ऐसी आशा करते हैं। ये लोग परमेश्वर के वचनों को कभी भी सत्य के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे; वे जब शांति से बैठकर धर्मोपदेश सुनते हैं और परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, तब भी उन्हें इनसे जो मिलता है वह सत्य नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे हमेशा परमेश्वर के वचनों को मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर मापते हैं, धर्मशास्त्रीय ज्ञान का उपयोग करके परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करते हैं, जिससे उनके लिए सत्य प्राप्त करना असंभव हो जाता है। वे परमेश्वर के वचनों से ज्ञान, शिक्षा और किसी प्रकार की जानकारी या रहस्य प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं—किसी ऐसी शिक्षा की उम्मीद करते हैं जिसकी वे लालसा रखते हैं जिसकी वे खोज कर रहे होते हैं और जो आम लोगों को पता नहीं है। लोगों के लिए अज्ञात इस विद्या को प्राप्त करने के बाद वे इसका दिखावा करते हैं, इस विद्या और ज्ञान से खुद को लैस करने की व्यर्थ उम्मीद करते हैं ताकि वे अधिक सम्मानजनक और अधिक संतोषजनक जीवन जी सकें, लोगों के बीच अधिक प्रतिष्ठा और अधिक रुतबा प्राप्त कर सकें, और ताकि लोग उन पर अधिक विश्वास करें और उनकी अधिक आराधना करें। इसलिए, वे अपने किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्यों और उन चीजों के बारे में लगातार शेखी बघारते हैं, जिन्हें वे शानदार मानते हैं, जिन्हें वे प्रभावशाली मानते हैं, जिनके बारे में वे डींगें हाँक सकते हैं और जिनका अपनी क्षमता और विशिष्टता का दिखावा करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, उन्हीं सिद्धांतों का प्रचार करते हैं। परमेश्वर के वचनों को ये लोग चाहे जैसे पढ़ें या चाहे जैसे सभाओं में भाग लें और धर्मोपदेश सुनें, ये लोग सत्य नहीं समझ सकते। सत्य का थोड़ा-सा हिस्सा अगर वे समझ भी लें तो इसका अभ्यास तो बिल्कुल नहीं करेंगे। यह ऐसे लोगों का सार है और यह ऐसी चीज है जिसे कोई नहीं बदल सकता। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें स्वाभाविक रूप से कुछ ऐसा होता है जो दूसरों के पास नहीं है और वे जिस चीज से प्रेम करते हैं उसका संबंध उनके दुष्टतापूर्ण सार से है—यह उनका घातक दोष है। सत्य को स्वीकार न करना, पौलुस के मार्ग पर चलना और अंत तक सत्य और परमेश्वर का विरोध करना उनकी नियति है। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते; वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते।

क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों की दुष्टता का अनुभव किया है? क्या तुम लोगों के आस-पास ऐसे लोग हैं? क्या तुम लोगों का ऐसे लोगों से संपर्क हुआ है? हमने कई सभाओं में इस विषय पर चर्चा करने में समय क्यों खर्च किया है? आम तौर पर, जब लोग खुद को जानने के बारे में बात करते हैं तो मैं अक्सर उन्हें अहंकार, आत्मतुष्टता और धोखेबाजी के स्वभाव का उल्लेख करते हुए सुनता हूँ। यद्यपि, लोगों को दुष्टता के बारे में बात करते हुए सुनना दुर्लभ है। अब, जब हम दुष्ट स्वभाव के बारे में संगति करते हैं तो मैं अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनता हूँ कि फलाँ का स्वभाव दुष्ट है। ऐसा लगता है कि तुम लोगों को इसकी कुछ समझ आ गई है। अतीत में, जब लोग खुद को जानने के बारे में बात करते थे तो वे हमेशा अहंकार की बात करते थे। अब इसे देखते हुए, कौन-सा स्वभाव अधिक बुरा है, अहंकारी होना या दुष्टता? (दुष्टता।) सही है। अतीत में, लोग दुष्टता की समस्या की गंभीरता को नहीं पहचानते थे। वास्तव में, दुष्टता का स्वभाव और सार अहंकार से अधिक गंभीर है। अगर किसी व्यक्ति का स्वभाव और प्रकृति सार भयंकर रूप से दुष्टतापूर्ण है तो मैं बता रहा हूँ कि तुम्हें उनके साथ संपर्क से बचना चाहिए—दूरी बनाए रखनी चाहिए। ऐसे लोग सही रास्ते पर नहीं चलेंगे। दुष्ट लोगों के साथ जुड़ने और संपर्क बनाए रखने से तुम्हें क्या लाभ मिल सकता है? अगर कोई लाभ नहीं है, लेकिन तुम्हारे भीतर उनकी दुष्टता का विरोध करने के लिए “प्रतिरोधक शक्ति” है तो तुम उनके साथ बातचीत कर सकते हो। क्या तुम इस बारे में आश्वस्त हो? (नहीं।) अगर तुम आश्वस्त नहीं हो तो तुम्हें ऐसे लोगों से बातचीत करने से क्यों बचना चाहिए? क्योंकि दुष्टता के पीछे दो और चीजें हैं—धूर्तता और कपट। सत्य की समझ न रखने वाले ज्यादातर लोगों में अनुभव और अंतर्दृष्टि की कमी होती है, वे आसानी से गुमराह हो जाते हैं। वे तुम्हें अपने अधीन कर सकते हैं और अंत में तुम उनकी गिरफ्त में आ जाते हो। उनकी गिरफ्त में आने के दो तरीके हो सकते हैं : या तो तुम उन्हें हरा नहीं सकते और तुम अपने दिल में आश्वस्त नहीं होते लेकिन जरूरत के मुताबिक तुम्हें मौखिक रूप से उनके सामने झुकना पड़ता है; या फिर एक और तरीका है जिससे तुम पूरी तरह से उनके अधीन हो सकते हो। ऐसा इसलिए है कि मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति में कुछ ऐसा है जिसके बारे में लोगों को कुछ पता नहीं है : वे तुम्हें उनकी बात सुनने के लिए राजी करने, तुमको यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे सही, उचित और सकारात्मक हैं, विभिन्न साधनों, भाषणों, विधियों, रणनीतियों, तरीकों और भ्रांतियों का उपयोग कर सकते हैं और भले ही वे बुराई करें, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करें और भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करें, अंत में, वे चीजों को पलट देते हैं और लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वे सही हैं। उनके पास ऐसी योग्यता है। यह योग्यता क्या है? यह अत्यधिक भ्रममूलक होना है। यह उनकी दुष्टता है कि वे अत्यधिक भ्रममूलक हैं। अपने हृदय में, उन्हें क्या चीजें पसंद हैं, क्या नापसंद हैं, किनसे वे विमुख हैं और किनका सम्मान और उपासना करते हैं, इन चीजों का निर्माण कुछ विकृत दृष्टिकोणों द्वारा किया जाता है। इन दृष्टिकोणों के भीतर सिद्धांतों का एक समूह होता है, जिसमें सब की सब अच्छी लगने वाली भ्रांतियाँ होती हैं जिनका खंडन करना आम लोगों के लिए मुश्किल होता है क्योंकि वे सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और अपनी गलतियों के लिए परिष्कृत तर्क भी प्रस्तुत कर सकते हैं। सत्य वास्तविकता के बिना, उनके साथ सत्य पर संगति करके तुम उन्हें मना नहीं सकते। अंतिम परिणाम यह होता है कि वे अपने खोखले सिद्धांतों का उपयोग करके तुम्हारी बातों का खंडन करते हैं, जिससे तुम अवाक रह जाते हो और धीरे-धीरे उनके सामने हार जाते हो। ऐसे लोगों की दुष्टता इस तथ्य में निहित होती है कि वे अत्यधिक भ्रममूलक होते हैं। स्पष्टतः, वे कुछ भी नहीं हैं और अपने हर कर्तव्य में गड़बड़ करते हैं; फिर भी, अंत में, वे अभी भी कुछ लोगों को उनकी आराधना करने, उनके सामने “घुटने टेकने” और उनकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए गुमराह कर सकते हैं। इस तरह का व्यक्ति गलत को सही में, काले को सफेद में बदल सकता है। वे सत्य और असत्य को उलट सकते हैं, अपने किए गए गलत कामों को दूसरों पर डाल सकते हैं, और दूसरों के किए अच्छे कामों का श्रेय ले सकते हैं। समय के साथ, तुम भ्रमित हो जाते हो और यह नहीं जान पाते कि वे वास्तव में कौन हैं। उनके शब्दों, कार्यों और रूप-रंग को देखते हुए तुम सोच सकते हो, “यह व्यक्ति असाधारण है; हम उसकी तुलना नहीं कर सकते!” क्या यह गुमराह होना नहीं है? जिस दिन तुम गुमराह होते हो, उसी दिन तुम खतरे में पड़ोगे। क्या इस तरह का व्यक्ति, जो दूसरों को गुमराह करता है, बहुत दुष्ट नहीं है? जो कोई भी उसकी बातों को सुनता है, वह गुमराह और बाधित हो सकता है, उसके लिए एक अवधि तक सँभलना मुश्किल हो जाता है। कुछ भाई-बहन उसका भेद पहचान सकते हैं और देख सकते हैं कि वह गुमराह करने वाला है, वे उसे उजागर कर सकते हैं और अस्वीकार कर सकते हैं, लेकिन गुमराह होने वाले अन्य लोग यह कहते हुए उसका बचाव भी कर सकते हैं, “नहीं, परमेश्वर का घर उसके साथ अन्याय कर रहा है; मुझे उसके पक्ष में खड़ा होना चाहिए।” यहाँ समस्या क्या है? स्पष्ट रूप से, वे गुमराह हैं, फिर भी वे उस व्यक्ति का बचाव करते हैं और उसे सही ठहराते हैं जिसने उन्हें गुमराह किया होता है। क्या ये लोग परमेश्वर में विश्वास करने वाले, लेकिन मनुष्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं? वे परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, फिर वे इस व्यक्ति की इस तरह से आराधना क्यों करते हैं और विशेष रूप से उसका बचाव क्यों करते हैं? यदि वे इतने स्पष्ट मामले को नहीं पहचान सकते तो क्या वे एक निश्चित सीमा तक गुमराह नहीं हुए हैं? मसीह-विरोधी ने लोगों को इस हद तक गुमराह किया होता है कि वे मनुष्यों जैसे नहीं लगते या उनमें परमेश्वर का अनुसरण करने का दिमाग नहीं रह जाता; इसके बजाय, वे मसीह-विरोधी की आराधना करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। क्या ये लोग परमेश्वर के साथ धोखा नहीं कर रहे हैं? यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, लेकिन उसने तुम्हें नहीं जीता है और मसीह-विरोधी ने तुम्हारा दिल जीत लिया है और तुम पूरे दिल से उसका अनुसरण करते हो तो साबित होता है कि उसने तुम्हें परमेश्वर के घर से दूर कर दिया है। एक बार जब तुम परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा से, परमेश्वर के घर से दूर हो जाते हो तो मसीह-विरोधी तुम्हें अपनी इच्छानुसार नचा सकता है और तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर सकता है। जब वह तुम्हारे साथ खेल चुका होता है तो तुममें उसकी रुचि खत्म हो जाती है और वह दूसरों को गुमराह करना शुरू कर देता है। यदि तुम उसकी बातों को सुनना जारी रखते हो और तुम्हारे पास कुछ ऐसा है जिसका वह फायदा उठा सकता है तो वह तुम्हें कुछ और समय तक साथ चलने दे सकता है। हालाँकि, अगर उसे तुममें फायदा उठाने लायक कोई बात नहीं दिखती, यदि उसके मन में तुम्हारे लिए कोई सम्मान नहीं बचा है, तो वह तुम्हें त्याग देगा। क्या तुम अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने के लिए वापस आ सकते हो? (नहीं।) तुम अब और विश्वास क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि तुम्हारी आरंभिक आस्था चली गई है; खत्म हो गई है। मसीह-विरोधी इसी तरह से लोगों को गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं। अपनी खूबियों के साथ मिलाकर लोगों द्वारा आराधना किए जाने वाले ज्ञान और शिक्षा का उपयोग वे लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के लिए करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे शैतान ने आदम और हव्वा को गुमराह किया था। चाहे मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार जो भी हो, चाहे अपने प्रकृति सार में उन्हें जो पसंद हो, जिस बात से घृणा हो और जिस बात का वे सम्मान करते हों, एक बात तय है कि जो चीज उन्हें पसंद है और लोगों को गुमराह करने के लिए वे जिस बात का उपयोग करते हैं वह सत्य के विरुद्ध है, उसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है और वह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है—इतना तो तय है। याद रखो : मसीह-विरोधी कभी भी परमेश्वर के अनुरूप नहीं हो सकते।

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