मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो) खंड छह
मसीह-विरोधियों को साफ तौर पर रुतबे का मोह होता है, और यह बात सभी लोग जानते हैं। उन्हें रुतबा किस हद तक पसंद है? इसकी अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? सबसे पहले, वे सीढ़ी चढ़ने का हर मौका हासिल करते हैं, वह चापलूसी से हो या चालबाजियों से, या लोगों का दिल जीतने के लिए अच्छे काम करके। बहरहाल, जब भी ऊपर चढ़ने का अवसर मिलता है, वे उसे पकड़ लेते हैं। एक बार जब वे रुतबा पा लेते हैं, तो वे इसे पहले से भी ज्यादा सँजोने लगते हैं। जब सामान्य लोग पद हासिल करते हैं, तो उनमें थोड़ा लज्जा का भाव आता है और वे खुद को थोड़ा संयमित करते हैं। इसके अलावा, परमेश्वर के घर में अगुआ या कार्यकर्ता का पद एक कर्तव्य है। यह कोई रुतबा या आधिकारिक पदनाम नहीं है, यह एक कर्तव्य है। कभी-कभार ये सामान्य लोग यह सोचकर कि अब वे एक आधिकारिक पद पर हैं, दिखावा करते हुए अपना भ्रष्ट स्वभाव थोड़ा प्रकट करते हैं। सामान्य लोगों को कभी-कभी इस तरह का व्यवहार करना कुछ हद तक स्वीकार्य लगता है, लेकिन अगर वे नियमित रूप से ऐसा करें, तो वे खुद से घृणा महसूस करेंगे और डरेंगे कि भाई-बहनों का ध्यान इस बात पर जाएगा। उनमें गरिमा और लज्जा का भाव होता है, इसलिए वे खुद को थोड़ा संयमित करते हैं। सत्य समझने के बाद, वे धीरे-धीरे रुतबे को कम महत्व देने लगते हैं। इसका क्या सकारात्मक प्रभाव होगा और इसके क्या अच्छे परिणाम होंगे? इससे वे मन की शांति के साथ अपना कर्तव्य करने में सक्षम होंगे। अपनी वर्तमान भूमिका के बावजूद, वे इसे एक कर्तव्य मानेंगे। चूँकि उनका चयन अगुआ होने के लिए किया गया था, और अगुआई एक बोझ है और साथ ही मनुष्य के लिए एक कर्तव्य भी है, इसलिए पहले उन्हें यह समझना चाहिए कि इस कर्तव्य के दायरे में कौन-सी चीजें आती हैं। जब तुम अगुआ की भूमिका में नहीं होते, तो कुछ मामलों के बारे में तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं होती, और वास्तव में तुम पर कोई बोझ नहीं होता। लेकिन जब तुम अगुआ की भूमिका निभाते हो, तो तुम्हें यह पता लगाने की जरूरत होती है कि अपने कार्यों को अच्छी तरह से कैसे करना है, और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार अपना कर्तव्य कैसे निभाना है। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, वे इस तरह सकारात्मक दिशा में प्रगति कर सकते हैं। तो, रुतबे के प्रति रवैये के संदर्भ में मसीह-विरोधियों और सत्य का अनुसरण करने वालों के बीच क्या अंतर है? मसीह-विरोधी अपने रुतबे को लेकर जुनूनी होते हैं, उसे हासिल करने का लगातार प्रयास करते हैं, उसे सँजोते हैं और उसका प्रबंधन करते हैं। हर मोड़ पर वे अपने रुतबे के बारे में सोचते हैं। रुतबा उनके लिए जीवनदायी रक्त की तरह होता है। अगर दूसरे लोग उनका मान नहीं रखते, या अगर वे आकस्मिक रूप से कुछ गलत कह देते हैं और दूसरे लोग उन्हें नीची नजर से देखते हैं, और वे दूसरों के मन में अपनी जगह खो देते हैं, तो वे अपने रुतबे के बारे में लगातार उद्विग्नता महसूस करते हैं, और अपने काम करने और बोलने के तरीके में बेहद सतर्क हो जाते हैं। तुम सत्य का अनुसरण करने के बारे में चाहे जितनी संगति करो, वे इसे समझ नहीं पाते हैं। जो एकमात्र चीज वे समझ पाते हैं वह क्या है? “मैं इस ‘पद’ का कामकाज अच्छी तरह से कैसे करूँ और किसी अधिकारी जैसा व्यवहार कैसे करूँ?” इसकी कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई कलीसिया अगुआ 20 से अधिक भाई-बहनों के साथ समूह फोटो खिंचवाता है, तो गरिमा और शर्म की भावना वाला कोई व्यक्ति कहाँ बैठना पसंद करेगा? वह किनारे का कोई कोना ढूँढ़ लेगा। मसीह-विरोधी आमतौर पर कहाँ बैठते हैं? (बीच में।) क्या वे बीच में इसलिए बैठते हैं क्योंकि हर कोई ऐसा चाहता है या यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा है? (यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा है।) कभी-कभी, ऐसा हो सकता है कि सभी लोग उनके लिए बीच में एक जगह छोड़ दें, जिससे उन्हें केंद्रीय स्थान पर आने के लिए मजबूर होना पड़े। ऐसा होने पर अपने हृदय में वे अपने आप से बहुत प्रसन्न होते हैं, “देखो, सारे लोग मेरा कितना समर्थन करते हैं! मुझे यहाँ बैठना चाहिए। इससे मैं देख सकता हूँ कि सभी के दिल में मेरे लिए एक जगह है। वे मेरे बिना नहीं रह सकते!” वे काफी खुश और प्रसन्न महसूस करते हैं। अगर उन्हें यह विचार पसंद न हो कि सब लोग उनके लिए बीच में जगह छोड़ें, तो वे वहाँ जाकर क्यों बैठेंगे? यह स्पष्ट है कि वे उस विशेष क्षण में अपनी स्थिति और उससे होने वाली अनुभूति का पूरा आनंद लेते हैं। उन्हें उस क्षण की भावना की वास्तव में आवश्यकता होती है और वे उसे सँजोते हैं, यही कारण है कि वे पद को अस्वीकार नहीं करते। यह अगुआ दर्जनों दूसरे लोगों से घिरे हुए बीचोबीच बैठता है, और खुद को अलग दिखाने के लिए कुशन का भी उपयोग करता है। वह सोचता है, “हर किसी के बराबर ऊँचाई का होना ठीक नहीं होगा। इससे अगुआ के रूप में मेरी विशिष्टता का प्रदर्शन कैसे हो सकेगा? मुझे खुद को थोड़ा ऊपर उठाने और बीच में बैठने की जरूरत है, फिर मैं ध्यान आकर्षित करूँगा। सही जगह पर बैठने के बारे में जानना यही है। जब लोग फोटो देखेंगे, तो सबसे पहले वे मुझे देखेंगे। वे कहेंगे, ‘यह हमारा फलाँ अगुआ है।’ कितनी शानदार बात है! यह फोटो सालों तक रहेगी। अगर लोग मुझे न देख सकें, और धीरे-धीरे मुझे भूल जाएँ, तो मेरे अगुआ होने का क्या फायदा?” वे अपने रुतबे को इतना अधिक सँजोते हैं।
एक बार, मैंने एक कलीसिया की स्थिति के बारे में जानने के लिए वहाँ से कुछ लोगों को बुलाया। जब उन्होंने अपना वीडियो चालू किया, तो वे सभी कैमरे के सामने बैठ गए और बीच में जगह छोड़ दी। मुझे समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों है और मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वे और पास-पास बैठें क्योंकि कैमरे का फ्रेम इतना बड़ा नहीं था, और फ्रेम में उनके आधे चेहरों का आना अजीब लग रहा था। उसके बाद, वे थोड़ा बीच की ओर खिसके, लेकिन फिर भी बीच में एक खाली सीट छोड़ दी। मैं मन में बड़बड़ाया, “कोई बीच में क्यों नहीं बैठ रहा है? ऐसा लगता है जैसे वहाँ कोई पवित्र बुद्ध हो—कोई वहाँ जाने की हिम्मत क्यों नहीं करता?” फिर, एक मोटा आदमी आया और ठीक बीच में बैठ गया, बिल्कुल पवित्र “बुद्ध” की तरह, गोल और मोटा। पता चला कि बीच वाली सीट उसके लिए आरक्षित थी। क्या तुम लोग अनुमान कर सकते हो कि वह कौन था? (अगुआ।) सही है, वह बिल्कुल बीच में बैठा था। यह रुतबे की एक निशानी है। जब बुद्ध जैसा दिखने वाला यह शैतान आया और वहाँ बैठा, तो उसने उस स्थान पर बिल्कुल स्वाभाविक रूप से कब्जा कर लिया, जैसे कि वह उसका सही स्थान हो। उसके दोनों ओर बैठकर सभी लोग बहुत खुश थे, उसे एक विशेष स्नेह से देख रहे थे, जैसे कि वे उसे बहुत अच्छी तरह से “समझते” हों। ऐसा लगा जैसे वे तलवे चाटने वालों का एक झुंड हो, जो कह रहा हो, “आह, तुम आखिरकार आ ही गए। हम जाने कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे थे।” जब मैं बोल रहा था, तो कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा था; वे अगुआ का इंतजार कर रहे थे। इस पवित्र “बुद्ध” को पहले बाहर आना था। अगर वह बाहर नहीं आया होता, तो मैं बोलना जारी नहीं रख पाता। वह वहाँ बैठने में कैसे सक्षम हो पाया, और इतने स्वाभाविक रूप से कैसे बैठ सका? क्या इसका उसकी सामान्य प्राथमिकताओं, वरीयताओं और अनुसरणों से कोई लेना-देना है? (हाँ।) ये लोग आमतौर पर किस तरह का दृश्य प्रस्तुत करते होंगे? अपनी कल्पना का उपयोग करते हुए इसके बारे में सोचो। जब यह अगुआ कोई सभा आयोजित करता है या किसी ऐसे कमरे में प्रवेश करता है जहाँ लोग अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे होते हैं, तो वे उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं? ऐसा लगता है कि वह कोई पूर्वज या बुद्ध है : वे जल्दी से उसे बैठने की जगह देते हैं, और मुख्य सीट उसके लिए आरक्षित रखते हैं। क्या यह ठीक होगा कि वे उसके बैठने की जगह आरक्षित न करें? उस क्षण कैमरे पर मैंने जो घटना देखी उसके आधार पर कह सकते हैं कि उन लोगों का बैठने के मुख्य स्थान को खाली न छोड़ना शायद ठीक नहीं होता—यह नियम बन गया था, एक अलिखित नियम। जब “बुद्ध” आएँ, तो उन्हें तुरंत मुख्य सीट दी जानी चाहिए। यदि “बुद्ध” वहाँ न हों, तो मुख्य सीट खाली रहनी चाहिए। इसे रुतबा कहा जाता है। क्या तुममें से कोई इस तरह से कार्य करता है, और रुतबे को हर चीज से ऊपर मानता है? मैंने जिस दृश्य का वर्णन अभी किया है, उससे तुम क्या देख पाते हो? अलग-अलग लोग रुतबे से अलग-अलग तरीके से पेश आते हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, वे अपने दिल में परमेश्वर के आदेश को सँजोते हुए अपने रुतबे को कर्तव्य मानते हैं। वे अपना कर्तव्य स्वीकार करते हैं लेकिन अपने रुतबे का दावा नहीं करते। कुछ लोग रुतबे को बोझ के रूप में देखते हैं, उन्हें लगता है कि यह अतिरिक्त बोझ है जो उन पर दबाव, प्रतिबंध और यहाँ तक कि मुश्किलें भी लाता है। परंतु, जो लोग रुतबे की आराधना करते हैं, वे पद को अधिकारी होने जैसा मानते हैं, और हमेशा इसके लाभों का आनंद लेते हैं। रुतबे के बिना वे जी नहीं सकते। एक बार इसे पा लेने के बाद, वे इसके लिए अपना जीवन और अपना आत्म-सम्मान सहित सब कुछ बलिदान करने को तैयार हो जाते हैं—इसके लिए अपना शरीर भी बेचने को तैयार हो जाते हैं। क्या यह दुष्ट नहीं है? (है।) इसे दुष्टता कहते हैं। उनकी नजर में रुतबा क्या है? यह शीर्ष पर आने का एक मार्ग और साधन है, और लोगों के बीच अपनी पहचान, नियति और स्थिति को बदलने का एक तरीका है। इसीलिए, वे रुतबे को बहुत महत्व देते हैं। जब वे इसे प्राप्त कर लेते हैं और लोग उनकी बात सुनते हैं, उनका पालन करते हैं, उन्हें रोकते नहीं हैं और हर चीज में उनकी चापलूसी करते हैं, तो इस सबसे घृणा करने के बजाय वे इसमें अत्यधिक आनंद पाते हैं। बिल्कुल उस अगुआ की तरह जिसने बीच की सीट ली—उसकी मुद्रा कितनी शांत और सहज थी, और इसमें सुख और आनंद का भाव कितना अधिक था। क्या यह दुष्टता नहीं है? यदि कोई व्यक्ति विशेष रूप से श्रेष्ठता की सभी भावनाओं और रुतबे से मिलने वाले सभी लाभों का मजा लेता है, और विशेष रूप से इन चीजों का अनुसरण करता है और उन्हें सँजोता है, उन्हें छोड़ना नहीं चाहता, तो वह अत्यंत दुष्ट है। मैं क्यों कहता हूँ कि वे अत्यंत दुष्ट हैं? जब उन लोगों की बात आती है जो रुतबेदार लोगों की चापलूसी करते हैं, चिकनी-चुपड़ी बातें बोलते हैं और उनकी प्रशंसा करते हैं, तो वे असल में क्या कह रहे होते हैं? वे झूठे, बेशर्म, घिनौने और उबकाई लाने वाले, और छल-कपट भरे शब्दों का प्रयोग कर रहे होते हैं, यहाँ तक कि वे कुछ ऐसी बातें भी कह रहे होते हैं जो सुनने में अपमानजनक लगती हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि किसी रुतबेदार व्यक्ति का बेटा वास्तव में बहुत बदसूरत है, उसका चेहरा पतला-सा और गाल बंदर जैसे हैं—क्या वे चापलूस कहते हैं कि वह बदसूरत है? वे क्या कहते हैं? (वह बहुत ही सुंदर है।) क्या उनके लिए केवल यह कहना पर्याप्त है कि “वह बहुत ही सुंदर है”? उन्हें कुछ और उबकाई लाने वाली बातें कहनी होंगी, जैसे, “उसका माथा भरा हुआ है और जबड़ा चौड़ा और गोल है। उसका चेहरा किसी ऐसे व्यक्ति जैसा है जो भविष्य में धनी और उच्च पद पर आसीन होगा!” हालाँकि यह स्पष्ट है कि ऐसा नहीं है, फिर भी वे खुलेआम झूठ बोलने की हिम्मत करते हैं। जब वह अधिकारी यह सुनता है, तो प्रसन्न होता है, उसे ये बातें सुनना अच्छा लगता है—उसे इन्हें सुनने में मजा आता है। उसे इन्हें सुनना कितना अच्छा लगता है? अगर कोई उसके सामने ये पाखंडी, चापलूसी भरे और छलपूर्ण शब्द न बोले, अगर कोई उसकी खुशी और आनंद के लिए कोई झूठा और घिनौना शब्द न बोले, तो उसे जीवन नीरस लगेगा। क्या यह दुष्टता नहीं है? (है।) यह बहुत ज्यादा दुष्टता है। जब वे खुद झूठ बोलते हैं, तो वह खुद ही बहुत उबकाई लाने वाला होता है, लेकिन उन्हें दूसरे झूठे लोगों का अपने इर्द-गिर्द बदबूदार मक्खियों के झुंड की तरह बनाए रखना भी अच्छा लगता है, और वे इससे कभी नहीं थकते। वे ऐसे हर व्यक्ति से प्रेम करते हैं जो शब्दों का अच्छा इस्तेमाल करता हो, जो चापलूसी करने और चिकनी-चुपड़ी बोलने में माहिर हो, और जो घुमा-फिराकर बोलता हो—वे ऐसे लोगों को अपने पास रखते हैं और उन्हें महत्वपूर्ण स्थानों पर बिठाते हैं। क्या ऐसे अगुआ खतरे में नहीं हैं? वे किस तरह का काम करवा सकते हैं? अगर कलीसिया उनके नियंत्रण में आ जाए तो क्या वह खत्म नहीं हो जाएगी? क्या इन हालात में भी उस कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य हो सकता है?
मैंने सुना है कि कुछ अगुआ खाने के शौकीन हैं। जब वे ऐसे भाई-बहनों के साथ रहते थे जो खाना बनाने में कुशल नहीं थे और अच्छा खाना नहीं बनाते थे, तो वे कोई ऐसा मेजबान ढूंढ़ लेते थे जो उनके सामने बिछ जाना और उन्हें मक्खन लगाना जानता था, और जो हर दिन उनके लिए खास तौर पर स्वादिष्ट खाना बनाता था। हर दिन वे अगुआ जी भरकर खाते-पीते थे, और कहते थे, “परमेश्वर का शुक्र है, हम हर दिन परमेश्वर के भोज का आनंद लेते हैं। यह वास्तव में परमेश्वर का अनुग्रह है!” ऐसे लोग खतरे में हैं। भले ही वे अभी मसीह-विरोधी न हों, लेकिन उनके व्यवहार ने पहले ही उजागर कर दिया है कि उनमें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार और दुष्ट स्वभाव है, और यह भी कि वे वर्तमान में मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हैं। क्या वे मसीह-विरोधी बन सकते हैं या क्या वे मसीह-विरोधी हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे आगे चलकर क्या रास्ता चुनते हैं। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वे वर्तमान में मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हैं और उनका स्वभाव सार मसीह-विरोधी के साथ मेल खाता है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि वे नकारात्मक चीजों के शौकीन हैं और सकारात्मक चीजों को नापसंद करते हैं। वे सकारात्मक चीजों के प्रति अवमानना की दृष्टि रखते हैं, अपने हृदय में उनकी भर्त्सना करते हैं और अस्वीकार करते हैं। वे क्या स्वीकार करते हैं? दोहरापन, झूठ और नकारात्मक चीजों से जुड़ी सभी चीजें। जब मैं किसी निश्चित स्थान पर पहुँचता हूँ, तो कुछ लोग कहते हैं : “तुम ठीक नहीं लग रहे हो; थोड़ी देर आराम कर लो।” मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ या नहीं, और मुझे कब आराम करने की जरूरत है, मैं खुद इन चीजों को जानता हूँ। तुम्हें होशियार होने का दिखावा करने की जरूरत नहीं है, और तुम्हें यह दिखाने की जरूरत नहीं है कि तुम कितने चतुर हो। मैं इसे स्वीकार नहीं करता; मुझे इससे घृणा है। मुझे किस तरह के लोग पसंद हैं? वे जो कुछ होने पर तुरंत संगति कर सकें और अपने मन की बात मुझसे कह सकें। मैं तुम्हारी कठिनाइयाँ हल करने के लिए तुम्हारे साथ संगति करता हूँ, और तुम मेरे साथ करीबी संबंध बना सकते हो। मुझे खुश करने की कोशिश में मुझसे चिकनी-चुपड़ी बातें करने में जुटने की चिंता न करो—यह बहुत ही घृणित है! इस तरह के लोगों को मुझसे दूर रहना चाहिए, क्योंकि मैं उन्हें घृणोत्पादक पाता हूँ। मैं तुम्हें तंग करने वाली मक्खी या कीड़े के रूप में निरूपित करता हूँ। दूर रहो! कुछ लोग कहते हैं, “क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी सेवा के लिए कोई तुम्हारे पास हो?” तुम्हारे विचार में, मेरी पहचान और दर्जे के अनुरूप कुछ विशेष व्यवहार और सेवा होनी चाहिए। लेकिन मुझे इसकी जरूरत नहीं है। तुम्हें ये चीजें बिल्कुल नहीं करनी चाहिए, समझे? मुझे इन चीजों से गहरी खीझ और घृणा होती है। अगर तुम सच में अपने दिल में मेरे प्रति विचारशील होने और मेरी परवाह करने की इच्छा रखते हो, तो ऐसा करने के बहुत सारे उचित तरीके हैं। उदाहरण के लिए, अगर मैं तुम्हें कुछ करने के लिए कहूँ, तो तुम आज्ञाकारिता के साथ उसका पालन करो, और जब तुम्हारा सामना कठिनाइयों से हो, तो तुम तुरंत मेरे साथ उन पर चर्चा कर लो। परंतु, तुम जो भी करो, उसमें सुनने में अच्छे लगने वाली चापलूसी करते हुए गैर-विश्वासियों द्वारा पदधारियों की चाटुकारिता करने वाले तौर-तरीकों की नकल मत करो—मुझे वह सब सुनना पसंद नहीं है। यह स्पष्ट है कि मैं लंबा नहीं हूँ, फिर भी तुम जोर देकर कहते हो कि, “तुम भले ही लंबे नहीं हो, लेकिन तुम्हारा कद हमसे ऊँचा है।” मुझे यह सुनना पसंद नहीं है, इसलिए तुम जो भी करो, मुझसे यह सब न बोलो; तुम यह बात गलत व्यक्ति से कह रहे हो। मसीह-विरोधी इस तरह के शब्द सुनना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए, वे अपने अधीनस्थ भाई-बहनों से पूछते हैं : “क्या मैं मोटा दिखता हूँ?” और कुछ लोग कहते हैं : “भले ही तुम मोटे हो, पर तुम हमसे बेहतर दिखते हो।” “तो क्या मैं पतला हूँ?” “भले ही तुम पतले हो, पर तुम बहुत बढ़िया दिखते हो। हर लिहाज से, तुम फैशन मॉडल जैसे हो; तुम पर सब कुछ जँचता है।” जब मसीह-विरोधी यह सुनते हैं, तो वे प्रसन्न होते हैं और तुम्हें अपना साथी और दोस्त मानते हैं। मसीह-विरोधी जिन चीजों को पसंद करते हैं, वे सभी विकर्षण पैदा करने वाली और दुष्टतापूर्ण हैं—नहीं तो कोई उन्हें दुष्ट कैसे कह सकता था? क्या मसीह-विरोधी सामान्य मानवता के तत्वों से प्यार करते हैं, जैसे अंतरात्मा, विवेक, लज्जा का भाव और गरिमा, साथ ही सामान्य मानवता में अन्य चीजों के अलावा अच्छे-बुरे, काले-सफेद, और सही-गलत के बीच भेद का विवेक आदि? क्या मसीह-विरोधी लज्जा का भाव रखने वाले लोगों से प्रेम करते हैं? क्या वे गरिमा वाले लोगों से प्रेम करते हैं? वे उन लोगों से प्रेम करते हैं जो बेशर्म हैं, जो बिना किसी जागरूकता के और बिना झिझके, हद से अधिक मिठास के साथ बोल सकते हैं। क्या उनमें शर्म की भावना की कमी नहीं है? तुम्हारे शब्द जितने अधिक मीठे होंगे, वे उतने ही खुश होंगे। मसीह-विरोधियों की प्राथमिकताओं और विभिन्न चीजों के प्रति उनके रवैये, साथ ही साथ उनके चुनावों और अभिविन्यास को देखते हुए स्पष्ट है कि उनकी दुष्टता की कोई सीमा नहीं है। उन लोगों को तो छोड़ ही दो जो सत्य समझते हैं—समाज में न्याय की थोड़ी-सी भी समझ रखने वाले लोग भी इस तरह के व्यवहार की सराहना नहीं करते। देखो, आधिकारिक क्षेत्रों में कुछ लोग पद पर बैठे लोगों का अनुग्रह पाने की हद से अधिक कोशिश करते हैं। वे पद पर बैठे लोगों को उनकी जरूरत की हर चीज देते हैं, यहाँ तक कि अपनी पत्नियों को भी दे देते हैं—क्या उनमें गरिमा का अभाव नहीं है? (उनमें गरिमा नहीं है।) इसके अलावा, कुछ अधिकारी समलैंगिक संबंधों में संलग्न होते हैं, और इन अधिकारियों के समलिंगी कुछ लोग उनके साथ अंतरंग संबंध बनाते हैं, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से ऐसा न चाहते हों। क्या तुम लोग ऐसी चीजें कर सकते हो? (नहीं, हम नहीं कर सकते।) लेकिन वे कर सकते हैं। उनकी कोई नैतिक आधार रेखा नहीं है, लज्जा की भावना नहीं है, अंतरात्मा जागृत नहीं है, कोई तर्कशक्ति नहीं है—इसलिए वे ये काम करते हैं। वे जो बातें बोलते हैं, यदि वही पंक्तियाँ तुम्हें दिखावे के लिए भी बोलने को कहा जाए तो तुम लोग उन्हें बोल तक नहीं सकते; ये लोग मंच-कलाकारों की मिठास से भी अधिक घिन पैदा करने वाले लोग हैं। मंच-कलाकारों से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब उनसे है वे जिन्हें पूर्ण नग्नावस्था में भी किसी से मिलने या देखे जाने पर कोई परेशानी नहीं होती और वे पलकें तक नहीं झपकाते। ऐसे लोगों को मंच-कलाकार कहा जाता है। इसलिए, ये चापलूस, अपने घृणा और उबकाई पैदा करने वाले शब्दों और दुष्टतापूर्ण चीजों को प्राथमिकता देने के साथ उन मंच-कलाकारों से भी बदतर होते हैं। मंच-कलाकार तो केवल अपने शरीर बेचते हैं, लेकिन दुष्ट लोगों का यह गिरोह जिसे मसीह-विरोधी कहा जाता है, क्या बेचता है? वे अपनी आत्मा बेचते हैं। वे बुरे दानवों का झुंड हैं, जो उद्धार से परे हैं। इसलिए इन लोगों से सत्य बोलना सुअरों के आगे मोती फेंकने जैसा है—उनके लिए सत्य से प्रेम करना असंभव है। वे रुतबे के प्रति ऐसा ही रवैया रखते हैं, और इसके साथ आने वाली श्रेष्ठता की विभिन्न भावनाओं और अन्य अच्छी भावनाओं का आनंद लेते हैं। इस आनंद से उत्पन्न होने वाली विभिन्न भावनाएँ क्या हैं? वे सकारात्मक चीजें हैं, या नकारात्मक? ये सभी नकारात्मक चीजें हैं। जब वे रुतबा पा लेते हैं, तो उम्मीद करते हैं कि वे लोगों द्वारा की जाने वाली चापलूसी, उनकी खुशामद और उनके हितों को संतुष्ट करने का आनंद लेंगे। वे विशेष व्यवहार का भी आनंद लेना चाहते हैं—उनका भोजन, आवास और वे जिन चीजों का उपयोग करते हैं वे सभी विशेष होनी चाहिए, और उन्हें हर चीज में दूसरों से अलग होना चाहिए। क्या तुम्हारा वह भौतिक शरीर वास्तव में दूसरों के शरीर से अलग है? मसीह-विरोधी जब एक बार रुतबा पा लेते हैं, तो वे खुद को कुलीन और असाधारण मानने लगते हैं, मानो पृथ्वी पर अब कोई जगह नहीं बची जो उन्हें रख सके—उन्हें किसी सिंहासन पर बैठना चाहिए और लोगों को उन्हें भेंट-प्रसाद चढ़ाना चाहिए। क्या मामला ऐसा नहीं है? मुझे बताओ कि क्या सामान्य लोग आमतौर पर मन में यही विचार रखते हैं? सामान्य लोगों के पास कोई दर्जा हो या न हो, उनके मन में इसके लिए एक निश्चित आकांक्षा और इच्छा हो सकती है, लेकिन चूँकि लज्जा, जमीर और तार्किकता की भावना होती है, और साथ ही उन्हें सत्य की थोड़ी समझ होती है, इसलिए पद के प्रति उनका लगाव कम हो जाता है, धुंधला पड़ जाता है। इसके अलावा, वे पद के साथ मिलने वाले लाभों को कम महत्व दे सकते हैं, और यदि वे इससे मिलने वाले लाभों का महत्वहीन होना समझ सकते हैं, तो वे चापलूसी और मीठी-मीठी बातों, चाटुकारिता और इस तरह के अन्य व्यवहारों से विकर्षित भी हो सकते हैं, और उनसे दूर हो सकते हैं या यहाँ तक कि उनसे मुँह मोड़ सकते हैं और ऐसी चीजों को त्याग सकते हैं। लेकिन क्या मसीह-विरोधी इन चीजों से मुँह मोड़ सकते हैं या त्याग सकते हैं? बिल्कुल नहीं। यदि तुम उनसे इन चीजों को छोड़ने के लिए कहो, तो ऐसा लगेगा मानो तुम उनसे उनकी जान माँग रहे हो। अन्यथा, पद खोते ही कुछ लोग ऐसा क्यों कहते कि, “मैं अब और विश्वास नहीं करूँगा, मैं और नहीं जीऊँगा, यह जीवन जीने लायक नहीं है”? क्या यहाँ कुछ चल नहीं रहा है? उनके लिए पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है? वे एक सामान्य और सहज जीवन नहीं जी सकते; उन्हें एक रुतबा चाहिए होता है, उन्हें लोगों से ऊपर उठकर दूसरों की श्रद्धा, आराधना और ऊँचा उठाए जाने का आनंद चाहिए होता है, साथ ही उन्हें खुश करने, धोखा देने और उनकी चापलूसी करने के इरादे वाले झूठ चाहिए होते हैं। वे इन चीजों में लिप्त होना चाहते हैं। क्या सामान्य मानवता वाले लोग स्वेच्छा से ऐसी चीजों में लिप्त होते हैं? निश्चित रूप से नहीं; यह सब उन्हें परेशान करता है। मसीह-विरोधी इन चीजों का आनंद लेना क्यों पसंद करते हैं? ऐसा इसलिए कि उनके भीतर शैतानी स्वभाव होते हैं। केवल शैतान की किस्म के लोग ही इन चीजों को पाने का प्रयास करते हैं और ऐसी माँगें रखते हैं। सामान्य लोग कुछ समय के लिए इन चीजों का आनंद ले सकते हैं, लेकिन बाद में उन्हें ये अर्थहीन और यहाँ तक कि खीझ पैदा करने वाले लगने लगते हैं, और फिर वे इन सब से दूर रहने लगते हैं। लेकिन कुछ लोग अड़ियल की तरह इन चीजों को त्यागने से इनकार करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ फिल्मी सितारे उम्र बढ़ने के बावजूद फिल्मी दुनिया से अवकाश क्यों नहीं लेते? इसलिए कि उस आभामंडल के बिना और आसपास लोगों के बिना उन्हें जीवन नीरस लगता है। उन्हें लगता है कि आकाश का नीला रंग हल्का पड़ गया है, कि उनके जीवन की कोई दिशा नहीं है, और यह अर्थहीन और मूल्यहीन हो गया है। उन्हें लगता है कि उनका पूरा जीवन बेरंग हो गया है, इसलिए उन्हें सितारा होने का एहसास फिर से जीने के लिए फिल्म उद्योग में वापस लौटना पड़ता है। मसीह-विरोधी भी उन जैसे ही गुण रखते हैं : उनके पास समान रूप से दुष्ट स्वभाव और सार होता है। जब मसीह-विरोधी रुतबा हासिल करते हैं, तो वे हर जगह इसका दिखावा करते हैं, यहाँ तक कि अपने घरों में तानाशाही चलाते हैं और अपने परिवार के सदस्यों को अपनी आज्ञा मानने के लिए मजबूर करते हैं। मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार दुष्ट होता है, और वे रुतबे के साथ विशेष स्नेह से पेश आते हैं, इसे प्रदर्शित करने और इसका दिखावा करने का हर तरीका अपनाते हैं। यह हमें क्या दिखाता है? क्या इन लोगों में लज्जा की भावना है? नहीं है। वे रुतबा पाने पर सोचते हैं कि उनकी पहचान बदल गई है, और यहाँ तक कि उनके माता-पिता के साथ भी उनका रिश्ता बदल गया है। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? यह विकृति है! रुतबे के प्रति उनका ऐसा रवैया होना एक तरह का सबूत है जो उनके दुष्ट सार को उजागर करता है।
परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, और उसकी पहचान और दर्जा सर्वोच्च है। परमेश्वर में अधिकार, बुद्धि और सामर्थ्य है, और उसका अपना स्वभाव और अपनी चीजें और अस्तित्व है। क्या कोई जानता है कि परमेश्वर मानवजाति और समस्त सृष्टि के बीच कितने वर्षों से कार्य कर रहा है? जितने वर्षों से परमेश्वर कार्य करते हुए समस्त मानवजाति का प्रबंधन कर रहा है, उनकी विशिष्ट संख्या अज्ञात है; कोई भी सटीक आँकड़ा नहीं दे सकता, और परमेश्वर इन मामलों की जानकारी मानवजाति को नहीं देता। लेकिन, अगर शैतान ऐसा कुछ करता, तो क्या वह इसकी जानकारी देता? वह निश्चित रूप से देता। वह ज्यादा लोगों को गुमराह करने और ज्यादा लोगों को अपने योगदान से अवगत कराने के लिए दिखावा करना चाहता है। परमेश्वर इन मामलों की जानकारी क्यों नहीं देता? परमेश्वर के सार का एक विनम्र और छिपा रहने वाला पहलू है। विनम्र और छिपे होने का उलटा क्या है? वह है अहंकारी होना और अपना प्रदर्शन करना। परमेश्वर कितना भी महान कार्य क्यों न करे, वह लोगों को केवल वही बताता है जिसे वे पकड़ और समझ सकते हैं, वह लोगों को ज्ञान प्राप्त करने देने और उसके स्वयं के कार्यों के माध्यम से अपने सार को जानने की अनुमति देने भर से संतुष्ट रहता है। इससे लोगों को क्या लाभ मिलता है? इसका क्या परिणाम होता है? क्या ऐसा है कि परमेश्वर की आराधना करने के लिए लोगों को इन चीजों को जानना आवश्यक है? वास्तव में ऐसा नहीं है। लोगों का परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम होना अंतिम उद्देश्यपूर्ण परिणाम है, लेकिन लोगों को इन चीजों को जानने देने के पीछे परमेश्वर का मूल इरादा क्या होता है? यह उन्हें सक्षम बनाने के लिए होता है, ताकि इन चीजों का ज्ञान हो जाने पर, परमेश्वर द्वारा मानवता का प्रबंधन करने के तौर-तरीकों की समझ हो जाने पर, और इसकी समझ हो जाने पर कि वह किस प्रकार मानवजाति का संप्रभु है और कैसे उसकी व्यवस्था करता है, वे परमेश्वर की संप्रभुता को समर्पण करने में सक्षम हो सकें, व्यर्थ प्रतिरोध में लिप्त न हों, और रास्ते से न भटकें—इस तरह, लोग बहुत कम पीड़ित होंगे। स्वाभाविक जीवन जीने और परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए तरीकों और नियमों के अनुसार, और उसकी अपेक्षाओं और उसके द्वारा दिए गए सिद्धांतों के अनुरूप अस्तित्ववान रहने पर तुम शैतान के चंगुल में नहीं पड़ोगे, न तो तुम दूसरी बार भ्रष्ट किए जा सकोगे, न ही कुचले जाओगे। इसके बजाय, तुम हमेशा परमेश्वर द्वारा स्थापित नियमों के भीतर रहोगे, मानव सदृश और सृजित प्राणी के रूप में रहोगे, और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा प्राप्त करोगे। यह परमेश्वर के कार्य का मूल इरादा और उद्देश्य है। तो, परमेश्वर ने जो विशाल कार्य किया है, क्या उसने कभी इसका दिखावा किया है? क्या उसने कभी लोगों को बताया है कि उसने क्या किया है? उसने कभी ऐसा नहीं किया। बहुत-से लोग नहीं जानते कि परमेश्वर ने क्या किया है, या परमेश्वर ने किस तरह की चीजें की हैं और किस तरह की चीजें नहीं कीं। वास्तव में, परमेश्वर ने बहुत कुछ किया है, लेकिन उसने कभी भी मानवों के सामने इन चीजों की घोषणा नहीं की। परमेश्वर मानवजाति के सामने उन्हें घोषित नहीं करता; तुम्हें बस इतना करना होता है कि तुम्हें जो जानना चाहिए उसके बारे में स्पष्ट रहो। भविष्य में, मानवजाति पृथ्वी पर सामान्य रूप से अस्तित्व में रह सकेगी और परमेश्वर की अगुआई स्वीकार कर सकेगी, और जब परमेश्वर मानवों के बीच आएगा, तो लोग परमेश्वर के साथ सामान्य बातचीत करने, उसका स्वागत करने, उसकी आराधना करने और उसके वचन सुनने में सक्षम होंगे, और तब वे शैतान के साथ नहीं चलेंगे। इस तरह, परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर प्रकट होगा, और पृथ्वी पर ऐसे लोगों का समूह होगा जो उसकी आराधना कर सकेगा, ऐसे लोगों का समूह जो उसके वचनों को सुन सकेगा और उन्हें अभ्यास में ला सकेगा। इस तरह परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाएगा; यह परिणाम प्राप्त करना पर्याप्त है। इसलिए, जब परमेश्वर कुछ करता है, तो यदि तुम उसे नहीं समझते या उसके बारे में नहीं जानते, तो परमेश्वर तुम्हें यह नहीं समझाएगा। वह इसे क्यों नहीं समझाएगा? ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें तुम नहीं समझते, और परमेश्वर तुम्हें ये चीजें बताने या अपनी पहचान और सार को समझाने, या अपने सामर्थ्य को समझाने के लिए कुछ रहस्यों को तुम्हारे सामने प्रकट नहीं करेगा। परमेश्वर यह कार्य नहीं करता। परमेश्वर वर्तमान में क्या करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है? वह लोगों को सत्य समझाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। एक बार जब तुम सत्य समझ जाओगे, तो तुम परमेश्वर को जान जाओगे, तुम्हारे जीवन का एक आधार होगा, और तुम भविष्य में परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकोगे और उसकी आराधना कर सकोगे, और तुम शैतान को पहचान पाओगे और उसका त्याग कर पाओगे, और उसके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उसके साथ नहीं जाओगे—तब उसका कार्य पूरा हो जाएगा। जहाँ तक उन रहस्यों की बात है, मानवजाति को भविष्य में उन्हें समझने का अवसर मिलेगा, लेकिन परमेश्वर के कार्यों के रहस्य अविश्वसनीय रूप से विशाल हैं, और भले ही परमेश्वर उन्हें तुम्हारे सामने प्रकट करे, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम उन्हें समझ ही जाओगे। भले ही तुम उनके संपर्क में आ जाओ, हो सकता है कि तुम उन्हें समझ ही न पाओ या ग्रहण न कर पाओ। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि सृजित प्राणियों और परमेश्वर के बीच, मानवीय विचारों और परमेश्वर के विचारों के बीच एक दूरी है। उदाहरण के लिए, तुम जानते हो कि इंद्रधनुष परमेश्वर और मानवता के बीच वाचा का चिह्न है, लेकिन क्या तुम जानते हो कि इंद्रधनुष कैसे बनता है? यदि परमेश्वर तुम्हें यह रहस्य समझाए, तो क्या तुम इसे समझ पाओगे? तुम नहीं समझ पाओगे, इसलिए परमेश्वर तुम्हें नहीं बताता। यदि वह समझाने लगे तो यह तुम्हारे लिए बोझिल होगा, क्योंकि तुमको इसका अध्ययन और विश्लेषण करने की आवश्यकता होगी, जो परेशानी का सबब होगा। इसलिए, परमेश्वर रहस्यों के बारे में बहुत कुछ नहीं कहता है। लेकिन क्या मनुष्य, जो शैतान का है, इन रहस्यों के बारे में जानने पर चुप रह सकता है? बिल्कुल नहीं। यहीं पर उनके सार में अंतर होता है। क्या परमेश्वर उन कई चीजों की व्याख्या करता है जिन्हें उसने वर्षों से मानवता के सामने प्रकट किया है लेकिन लोग कभी नहीं समझ सकते? क्या वह अलौकिक काम करता है? नहीं, ऐसा नहीं करता है। मानवजाति का सृजन परमेश्वर ने किया है, और परमेश्वर जानता है कि लोग इसे कितना समझ सकते हैं और किस हद तक समझ सकते हैं। ये चीजें लोगों की आँखों के सामने हैं, लेकिन अगर उनके लिए उन्हें समझना जरूरी नहीं है, तो उन लोगों को प्रबुद्ध करने या इन चीजों को लोगों पर थोपने और उनके लिए बोझ बनाने की कोई जरूरत नहीं है, इसलिए परमेश्वर इस तरह से काम नहीं करता। इसलिए, परमेश्वर के कार्यों के सिद्धांत हैं। मानवजाति के प्रति उसका नजरिया स्नेह, विचारशीलता और प्रेम का है। परमेश्वर वह चाहता है, जो लोगों के लिए सबसे अच्छा है—यही परमेश्वर के सभी क्रियाकलापों के पीछे का स्रोत और मूल इरादा है। दूसरी ओर, शैतान अपना प्रदर्शन करता है, लोगों पर चीजें थोपता है, उनसे अपनी आराधना करवाता है और उन्हें गुमराह करता है, और उन्हें पतित बनने की ओर ले जाता है, ताकि वे धीरे-धीरे जीवित राक्षस बन जाएँ और विनाश की ओर बढ़ जाएँ। लेकिन जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो अगर तुम सत्य समझकर उसे प्राप्त कर लेते हो, तो तुम शैतान के प्रभाव से बचकर उद्धार प्राप्त कर सकते हो—तुम्हें नष्ट होने के परिणाम का सामना नहीं करना पड़ेगा। शैतान लोगों को अच्छा करते हुए नहीं देख सकता, और उसे इस बात की परवाह नहीं कि लोग जीवित रहते हैं या मरते हैं; उसे सिर्फ अपनी, अपने लाभ और अपनी खुशी की परवाह है, और उसमें प्रेम, दया, सहनशीलता और क्षमा का अभाव है। शैतान में ये गुण नहीं हैं; ये सकारात्मक चीजें सिर्फ परमेश्वर में हैं। परमेश्वर ने मनुष्यों पर काफी मात्रा में कार्य किया है, लेकिन क्या उसने कभी इसके बारे में बात की है? क्या उसने कभी इसका वर्णन किया है? क्या उसने कभी इसकी घोषणा की है? नहीं, उसने ऐसा नहीं किया है। लोग परमेश्वर को चाहे कितना भी गलत समझें, वह वर्णन नहीं करता। परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, तुम चाहे 60 साल के हो या 80 के, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ बहुत सीमित है, और इस आधार पर कि तुम कितना कम जानते हो, तुम अभी बच्चे ही हो। परमेश्वर इसे तुम्हारे खिलाफ नहीं रखता; तुम अब तक अपरिपक्व बच्चे हो। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कुछ लोग कई सालों तक जीवित रहे हैं और उनके शरीर पर उम्र के लक्षण दिखाई देते हैं; परमेश्वर के बारे में उनकी समझ अभी भी बहुत बचकानी और सतही है। परमेश्वर इसे तुम्हारे खिलाफ नहीं रखता—अगर तुम नहीं समझते, तो नहीं समझते। यह तुम्हारी काबिलियत और क्षमता है, और इसे बदला नहीं जा सकता। परमेश्वर तुम पर कुछ भी थोपेगा नहीं। परमेश्वर चाहता है कि लोग उसकी गवाही दें, पर क्या उसने अपनी गवाही खुद दी है? (नहीं।) दूसरी ओर शैतान को डर लगा रहता है कि लोग उसके किसी धेले-भर के काम के बारे में भी नहीं जान पाएँगे। मसीह-विरोधी इससे अलग नहीं हैं : वे स्वयं द्वारा किए गए हर छोटे-मोटे काम के बारे में सबके सामने शेखी बघारते हैं। उनकी बात सुनकर लगता है कि वे परमेश्वर की गवाही दे रहे हैं—लेकिन अगर तुम ध्यान से सुनो तो तुम्हें पता चलेगा कि वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे रहे, बल्कि अपनी शान बघार रहे हैं, खुद को स्थापित कर रहे हैं। उनकी बातों के पीछे का इरादा और सार परमेश्वर के चुने हुए लोगों और दर्जे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ करना है। परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, जबकि शैतान अपना दिखावा करता है। क्या इनमें कोई अंतर है? दिखावा बनाम विनम्रता और अप्रत्यक्षता : इनमें से कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं? (विनम्रता और अप्रत्यक्षता।) क्या शैतान को विनम्र कहा जा सकता है? (नहीं।) क्यों? उसके दुष्ट प्रकृति-सार को देखते हुए, वह रद्दी का एक बेकार टुकड़ा है; शैतान के लिए अपना दिखावा न करना एक असामान्य बात होगी। शैतान को “विनम्र” कैसे कहा जा सकता है? “विनम्रता” परमेश्वर का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। परमेश्वर की पहचान, सार और स्वभाव उदात्त और आदरणीय हैं, लेकिन वह कभी दिखावा नहीं करता। परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, इसलिए लोगों को नहीं दिखता कि उसने क्या किया है, लेकिन जब वह ऐसी गुमनामी में कार्य करता है, तो लोगों को निरंतर समर्थन, पोषण और मार्गदर्शन मिलता है—और इन सब चीजों की व्यवस्था परमेश्वर करता है। क्या यह अप्रत्यक्षता और विनम्रता नहीं है कि परमेश्वर इन बातों को कभी घोषित नहीं करता, कभी इनका उल्लेख नहीं करता? परमेश्वर विनम्र ठीक इसलिए है, क्योंकि वह ये चीजें करने में सक्षम है लेकिन कभी इनका उल्लेख या घोषणा नहीं करता, और लोगों के साथ इनके बारे में बहस नहीं करता। तुम्हें विनम्रता के बारे में बोलने का क्या अधिकार है, जब तुम ऐसी चीजें करने में असमर्थ हो? तुमने इनमें से कोई चीज नहीं की है, फिर भी इनका श्रेय लेने पर जोर देते हो—इसे बेशर्म होना कहा जाता है। मानव-जाति का मार्गदर्शन करते हुए परमेश्वर ऐसा महान कार्य करता है, और वह पूरे ब्रह्मांड का संचालन करता है। उसका अधिकार और सामर्थ्य बहुत व्यापक है, फिर भी उसने कभी नहीं कहा, “मेरा सामर्थ्य असाधारण है।” वह सभी चीजों के बीच छिपा रहता है, हर चीज का संचालन करता है, और मानव-जाति का भरण-पोषण करता है, जिससे पूरी मानव-जाति का अस्तित्व पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। उदाहरण के लिए, हवा और धूप को या पृथ्वी पर मानव-अस्तित्व के लिए आवश्यक सभी भौतिक वस्तुओं को लो—ये सब अनवरत बहती रहती हैं। परमेश्वर मनुष्य का पोषण करता है, यह असंदिग्ध है। अगर शैतान कुछ अच्छा करे, तो क्या वह चुप रहेगा, और एक गुमनाम नायक बना रहेगा? कभी नहीं। वह वैसा ही है, जैसे कलीसिया में कुछ मसीह-विरोधी हैं, जिन्होंने पहले जोखिम भरा काम किया, जिन्होंने चीजें त्याग दीं और कष्ट सहे, जो शायद जेल भी गए हों; ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कभी परमेश्वर के घर के कार्य के एक पहलू में योगदान दिया था। वे ये चीजें कभी नहीं भूलते, उन्हें लगता है कि इन कामों के लिए वे आजीवन श्रेय के पात्र हैं, वे सोचते हैं कि ये उनकी जीवन भर की पूँजी हैं—जो दर्शाता है कि लोग कितने तुच्छ हैं! लोग सच में तुच्छ हैं और शैतान बेशर्म है।
मुझे बताओ कि क्या मसीह-विरोधियों का दर्जा परमेश्वर के बराबर होता, तो वे क्या खाते और क्या पहनते? वे सबसे बढ़िया खाते और सबसे बढ़िया ब्रांड के कपड़े पहनते, है न? तो, भौतिक चीजों की उनकी माँगों के बारे में, मुझे बताओ, क्या उनकी कुछ विशिष्ट माँगें नहीं हैं? जब वे कहीं जाते हैं, तो उन्हें विमान से जाना पड़ता है। जब वे वहाँ पहुँचते हैं, तो क्या आम भाई-बहन उनकी अपने घर पर मेजबानी कर सकते हैं? अगर वे ऐसा करें, तो भी मसीह-विरोधी उनके साथ नहीं रहेंगे—उन्हें महंगे होटल में ठहरना होता है। क्या मसीह-विरोधी अपने विनिर्देशों को लेकर बहुत ध्यान नहीं देते हैं? जहाँ तक उस सम्मान, आनंद और घमंड की बात है जो उन्हें इस दर्जे के कारण मिलेगा, तो क्या वे इन चीजों को छोड़ सकते हैं? जब तक उनके पास सही परिस्थितियाँ और अवसर होते हैं, वे इन चीजों को मुट्ठी भरकर हथिया लेते हैं और उनका आनंद लेते हैं। उनके सिद्धांत क्या हैं? जब तक उनके पास रुतबा है, वे पैसे पा सकते हैं और नामी ब्रांड के कपड़े और दूसरी चीजें पहन सकते हैं। वे साधारण चीजें नहीं पहनना चाहते; उन्हें मशहूर ब्रांड के कपड़े पहनने होते हैं। उनकी टाई, सूट, शर्ट, कफलिंक, सोने के हार और बेल्ट—सब कुछ नामी ब्रांड का होगा। यह अच्छा संकेत नहीं है, और क्या भाई-बहन इसके कारण पीड़ित नहीं हैं? भाई-बहन जो पैसा भेंट देते हैं, उसका इस्तेमाल ये मसीह-विरोधी नामी ब्रांड के सामान खरीदने में करते हैं। क्या यह उनकी भारी बुराई नहीं है? क्या यह उनकी दुष्टता के कारण नहीं है? ये वे सारी चीजें हैं जो वे कर सकते हैं। एक व्यक्ति था जिसने पहली बार अगुआई संभालने पर शालीनता से कपड़े पहने थे, उसके पास केवल तीन-पांच सेट कपड़े थे जो नामी ब्रांड या ऊंचे दर्जे के नहीं थे। अगुआ की भूमिका में कई वर्ष बीतने के बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि उसने कोई वास्तविक काम नहीं किया था। जब वह गया, तो वह एक कार भरकर सामान ले गया : नामी ब्रांड के कपड़े, बैग, सभी तरह की अच्छी चीजें। उसने अगुआ के रूप में कोई पैसा नहीं कमाया, तो ये चीजें कहाँ से आईं? ये उसके रुतबे से आई थीं। अगर वह दूसरों द्वारा उसके लिए ये चीजें खरीदे जाने पर मना कर देता, तो क्या भाई-बहन फिर भी उसके लिए उन्हें खरीदने पर जोर देते? क्या इस तरह की चीजें होतीं? अगर उसे ये चीजें नहीं चाहिए होतीं, तो भाई-बहन उसके लिए ये चीजें नहीं खरीदते। यहाँ क्या समस्या है? वह इन चीजों को जबरदस्ती और लालच के साथ हथिया ले रहा था। एक तरह से, उसने भाई-बहनों से जबरन चीजें ऐंठी और दूसरे लिहाज से, उसने खुद ही उन्हें खरीदा था। इसके अलावा, उसने भाई-बहनों को ये चीजें खरीदने दीं और अगर कोई ऐसा करने से मना करता, तो वह उन्हें सताता और परेशान करता था। ये कई कारण, ये सभी, काम करते हैं। अंत में, उसे “भरपूर उपज” मिली और वह अमीर हो गया। क्या तुम लोग ऐसे अगुआ से ईर्ष्या करते हो? अगर तुम्हें अवसर मिले, तो क्या तुम भी इसी तरह की दौलत हासिल कर सकते हो? मैं तुम्हें बता दूँ कि इस तरह से अमीर बनना अच्छा नहीं है—इसके दुष्परिणाम होते हैं! जब कुछ लोग अगुआ बनते हैं, तो उन्हें डर लगता है कि उनके साथ ये मामले होंगे। उन्हें लगता है कि प्रलोभन बहुत बड़े होंगे, इन प्रलोभनों से बचना या उन्हें संभालना मुश्किल होगा और उनमें फँसना आसान होगा। लेकिन कुछ लोग इसकी परवाह नहीं करते, और सोचते हैं, “यह सामान्य बात है। ऐसी चीजों का आनंद लिए बिना कौन पद ग्रहण करता है? ऐसा न करना हो तो पद लेना ही क्यों? यही तो मुख्य बात है!” यह किस तरह की आवाज है? यह मसीह-विरोधियों की आवाज है, और ये लोग खतरे में हैं।
मैं लगभग तीस वर्षों से काम कर रहा हूँ। क्या मैंने कभी किसी से कुछ जबरन वसूला है? उदाहरण के लिए, अगर मैंने किसी को अच्छे आभूषण पहने हुए देखा, तो क्या मैंने यह संदेश भेजकर उनसे जबरन छीना कि, “अपने आभूषण मुझे दे दो; यह तुम्हें शोभा नहीं देता। सोने और चांदी के आभूषण रुतबे वाले लोगों के लिए होते हैं, और बिना रुतबे वाले लोगों को इन्हें नहीं पहनना चाहिए”? क्या ऐसा कभी हुआ है? ऐसा नहीं हुआ है। यहाँ तक कि जब कुछ भाई-बहन थोड़े पैसे होने पर मेरे लिए चमड़े की जैकेट या कुछ और खरीदते थे, तो मैं हमेशा उसे वापस कर देता था। ऐसा नहीं था कि मुझे वे चीजें पसंद नहीं थीं; बात बस इतनी थी कि मुझे उन चीजों की कोई जरूरत नहीं थी। बाद में, मैंने इसके बारे में सोचा : “मुझे इन चीजों को उचित तरीके से कैसे संभालना चाहिए? मुझे ऐसा क्या करना चाहिए जिससे उन्हें खरीदकर लाने वाले लोगों को ठेस न पहुँचे?” मैं इन चीजों को कलीसिया ले गया ताकि भाई-बहन उन्हें सिद्धांतों के अनुसार वितरित कर सकें। अगर कोई मूल्यवान वस्तुएँ खरीदने को तैयार होता, तो कलीसिया उन्हें रियायती मूल्य पर बेच देती। इसका उद्देश्य पैसे कमाना नहीं था; यह चीजों को उस तरह से संभालने के लिए था जो दोनों पक्षों के लिए उपयुक्त हो। किसी को भी ये चीजें मुफ्त में नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि ये मूल रूप से तुम्हारे लिए नहीं थीं। ये वस्तुएँ सीमित थीं और सभी के बीच समान रूप से वितरित नहीं की जा सकती थीं, और किसी को भी इन्हें देना उचित नहीं था। इसलिए, एकमात्र विकल्प यह था कि जिनके पास पैसा था और जो उन्हें खरीदने के लिए तैयार थे, वे आगे बढ़कर उन्हें खरीद लें। वे वस्तुएँ निश्चित रूप से बाजार से सस्ती थीं, इसलिए यह परमेश्वर के घर की ओर से एक उपकार था। मुझे इस तरह से काम करने का अधिकार था। ऐसा इसलिए कि कोई चीज मुझे दे दिए जाने पर मेरी हो जाती है, और मुझे उसे अपने हिसाब से संभालने का अधिकार था। उस वस्तु का अब उस व्यक्ति से कोई संबंध नहीं था जो उसे खरीद कर लाया था। इस तरह से काम करके, मैंने पहले ही उस व्यक्ति के आत्मगौरव का ख्याल रखा था। इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी, क्योंकि यह दृष्टिकोण पूरी तरह से उचित था। कई भाई-बहनों ने मेरे लिए वस्तुएँ खरीदी हैं। माँगने की तो बात ही दूर, मैंने उन्हें मेरे लिए कुछ खरीदने का काम भी नहीं सौंपा था। ऐसा करने का उनका दिल था, जिसकी मैं सराहना करता था, लेकिन ऐसी कई चीजें थीं जिन्हें मैं स्वीकार नहीं कर सकता था क्योंकि मुझे उनकी जरूरत ही नहीं थी। यह एक व्यावहारिक मुद्दा है। क्या मैंने जो कहा वह उचित है? (हाँ।) क्या इन बातों को संभालने का मेरा तरीका भी उचित था? (हाँ।) कुछ भाई-बहन ऐसे भी थे जो जानते थे कि मैं ठंड के प्रति संवेदनशील हूँ और ठंडा खाना नहीं खाता, इसलिए उन्होंने मेरे “ठंडे पेट” के इलाज के लिए कुछ दवाएँ खरीदीं। हालाँकि, उन दवाओं को लेने के बाद मुझे बहुत ठीक नहीं लगा—मेरा शरीर ऐसे प्रयोग सह नहीं सकता, इसलिए ऐसी कई दवाएँ हैं जिनके बारे में मुझे सावधान रहना होता है। तुम्हें यह समझने की जरूरत है। कुछ भाई-बहनों ने कुछ स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ भी खरीदे, जैसे कि पहाड़ी जिनसेंग, लाल जिनसेंग और अन्य प्रकार के टॉनिक। मैं उनमें से कोई भी नहीं ले सका। क्यों? क्योंकि वे मुझे माफिक नहीं आते थे। ऐसा नहीं था कि मैं भाई-बहन मेरे लिए जो खरीदते थे या वे जहाँ से खरीदते थे, उसे नीची नजर से देखता था; बात बस इतनी थी कि मैं उनका उपयोग नहीं कर सकता था; मैं उनका उपयोग करने में सक्षम नहीं था। सभी अच्छी चीजें सभी के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। दुनिया में बहुत-सी अच्छी चीजें हैं, और यदि तुम कुछ अच्छी वस्तु लेते हो और वह प्रतिकूल प्रतिक्रिया या एलर्जी का कारण बनती है, तो वह तुम्हारे लिए अच्छी चीज नहीं है। तो, इससे कैसे निपटा जाना चाहिए? सबसे अच्छा यह है कि वे वस्तुएँ जिनके लिए उपयुक्त हैं, उन्हें इनका उपयोग करने दिया जाए। इसलिए, मैं तुम्हें बताता हूँ कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि मेरे लिए चीजें खरीदने में पैसे कौन खर्च कर रहा है, बस इन शब्दों को याद रखो—मेरे लिए कुछ मत खरीदो। अगर मुझे कुछ चाहिए होगा, तो मैं तुम्हें सीधे-सीधे बता दूँगा और मैं उतना विनम्र नहीं रहूँगा। समझे? लेकिन जब तुम ये चीजें मेरे पास लाते हो, और मैं कहता हूँ कि मुझे उनकी आवश्यकता नहीं है या वे उपयुक्त नहीं हैं, तो यह भी मेरा तुम लोगों के साथ विनम्रता दिखाना नहीं है। यह झूठ या पाखंड नहीं है। मैं जो कुछ भी कहता हूँ वह वास्तविक है; वह सब सच है। मैं जब बोलूँ तो मेरे शब्दों का अन्य अर्थ निकालने की कोशिश न करो। जब मैं कहता हूँ कि मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है, तो इसका मतलब है कि मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। जब मैं कहता हूँ कि मैं इसका उपयोग नहीं कर सकता, तो इसका मतलब है कि मैं इसका उपयोग नहीं कर सकता। तुम जो भी करो, अपना समय चीजों को खरीदने के बारे में सोचने में बर्बाद मत करो या बेकार में पैसे मत खर्च करो। ऐसा मत सोचो कि सभी अच्छी चीजें परमेश्वर को दे देनी चाहिए—क्या तुम जानते भी हो कि मुझे उनकी जरूरत है या नहीं? अगर मुझे उनकी जरूरत नहीं है, तो क्या तुमने उन्हें व्यर्थ में नहीं खरीदा है? अगर तुम सच में मेरे लिए कुछ खरीदना चाहते थे, तो मैं कहता हूँ कि मेरे लिए कुछ मत खरीदो। अगर तुम कहते हो कि तुमने इसे सबके साथ बाँटने के लिए खरीदा है, तो ठीक है, मैं इसे आगे बढ़ा सकता हूँ। जब बात आती है कि मैं ऐसी चीजों से कैसे पेश आता हूँ, और रुतबे और पद के साथ आने वाली उन भौतिक संपत्तियों से कैसे पेश आता हूँ, तो मेरा रवैया यही है। क्या मसीह-विरोधी इन मामलों से इसी तरह पेश आते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं करते।) पहले तो वे निश्चित रूप से किसी भी चीज को मना नहीं करते—जितना ज्यादा, उतना अच्छा। कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें कौन उपहार भेज रहा है या वे चीजें क्या हैं, वे उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। दूसरे, वे निस्संदेह लोगों से कुछ चीजें जबरन वसूलते हैं, और अंत में, वे कुछ चीजें अपने लिए रख लेते हैं। वे यही खोजते हैं और यही वे चाहते हैं; वे जिस रुतबे को हासिल करने के निरंतर प्रयास करते हैं, उससे मिलने वाली चीजें यही हैं।
मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार के बारे में पिछली बार और आज की हमारी संगति के आधार पर क्या तुम लोग इस दुष्ट सार को उजागर करने वाला सारांश एक वाक्य में दे सकते हो? मसीह-विरोधियों की दुष्टता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हर सकारात्मक चीज, हर न्यायसंगत और सत्य के अनुरूप, और मानवों में जो कुछ भी सुंदर माना जाता है, उसकी निंदा करते हैं। वे उन चीजों से घृणा करते हैं और विमुख होते हैं। इसके विपरीत, हर नकारात्मक चीज, और हर वह चीज जिसकी निंदा की जाती है और जिसे अंतरात्मा और विवेक और न्याय की भावना वाले नीची नजर से देखते हैं, ठीक उन्हीं चीजों से मसीह-विरोधियों को खुशी मिलती है। ये वे चीजें हैं जिनका वे अनुसरण करते हैं और जिन्हें सँजोते हैं। एक अन्य वाक्य में भी इसे सारांशित किया जा सकता है : मसीह-विरोधी परमेश्वर से आने वाली हर सकारात्मक चीज से घृणा करते हैं और जो परमेश्वर को पसंद है उससे घृणा करते हैं। वे ठीक उन्हीं चीजों से प्रेम करते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है और जिनकी निंदा करता है। यही मसीह-विरोधियों की दुष्टता है। इस दुष्टता का प्राथमिक लक्षण क्या है? वह यह है कि उन्हें हर बदसूरत और नकारात्मक चीज से विशेष लगाव होता है, जबकि वे हर उस चीज से घृणा करते हैं और उसके प्रति शत्रुता दिखाते हैं जो सुंदर, सकारात्मक और सत्य के अनुरूप हो। यही दुष्टता है। तुम समझ गए, है न? आज की संगति में “मसीह-विरोधियों को क्या पसंद है” विषय शामिल था। हमने कुछ उदाहरण भी दिए, जिनमें से कुछ दूसरों की तुलना में अधिक ठेठ थे, लेकिन उन सभी का उपयोग मसीह-विरोधियों के दुष्ट प्रकृति सार को समझाने के लिए सबूत के रूप में किया जा सकता है। इसके बाद, तुम लोगों को जो करना चाहिए वह यह है कि तुम लोग इस बात पर चिंतन करो और संगति करो कि तुम लोग किन दुष्ट या सकारात्मक चीजों को देखते और समझते हो, मसीह-विरोधियों को कौन-सी नकारात्मक चीजें पसंद हैं, वे किन सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं, और ऐसा क्या है जिसे तुम लोग समझ सकते हो, साथ ही तुम क्या देखते और अनुभव करते हो। मसीह-विरोधियों और साधारण भ्रष्ट मनुष्यों के स्वभाव और सार में कुछ समस्याएँ एक जैसी होती हैं, और यद्यपि इन समानताओं की गंभीरता अलग-अलग हो सकती है, उनके स्वभाव का सार एक ही है। वे जिस रास्ते पर चलते हैं और जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे भी अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन वे एक ही भ्रष्ट स्वभाव के सार के बहुत से पक्षों को प्रकट करते हैं। इसीलिए, मसीह-विरोधियों के सार के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना हर भ्रष्ट व्यक्ति के लिए मददगार है। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग मसीह-विरोधियों के सार को पहचान सकें, तो वे गारंटी दे सकते हैं कि वे उनसे गुमराह नहीं होंगे और उनकी आराधना या अनुसरण भी नहीं करेंगे।
7 अगस्त 2019
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