मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो) खंड तीन
मसीह-विरोधियों के दुष्ट, धूर्त और कपटी होने का गहन-विश्लेषण
पिछली बार हमने मसीह-विरोधियों की सातवीं अभिव्यक्ति—वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं—पर संगति की थी। हमने मुख्य रूप से किस पहलू पर संगति की थी? हमने इस बारे में बात की थी कि मसीह-विरोधी किस तरह से दुष्ट हैं। हम उन्हें दुष्ट क्यों कहते हैं? उनके प्रकृति सार में कौन-से विशेष स्वभाव, अभिव्यक्तियाँ और लक्षण उन्हें दुष्ट, धूर्त और कपटी के रूप में निरूपित कर सकती हैं? वे कौन-से स्पष्ट लक्षण हैं जो साबित करते हैं कि उनमें दुष्टता मौजूद है, और कि वह उनकी वास्तविक परिस्थितियों से मेल खाती है? उनके प्रकृति सार की वे मुख्य विशेषताएँ क्या हैं जो हमें यह कहने का कारण देती हैं कि इस तरह के लोग दुष्ट हैं? कृपया अपने विचार साझा करो। (बहुत-से मसीह-विरोधी सत्य समझते हैं, लेकिन वे खुल्लमखुल्ला इसके खिलाफ रहते हैं। भले ही वे स्पष्ट रूप से जानते हों कि क्या सही है, वे हठपूर्वक अपने स्वयं के रास्ते पर चलने पर जोर देते हैं। मसीह-विरोधियों की दुष्टता इसमें भी अभिव्यक्त होती है कि वे वास्तव में सत्य का अनुसरण करने वाले और सकारात्मक व्यक्तियों के प्रति निराधार शत्रुता रखते हैं।) (मसीह-विरोधी दूसरों को सफल होते नहीं देखना चाहते। जब परमेश्वर का घर भाई-बहनों को लाभ प्रदान करने की व्यवस्था करता है, तो मसीह-विरोधी केवल खुद इन लाभों का आनंद लेना चाहते हैं—वे नहीं चाहते कि भाई-बहन उनका आनंद लें, इसलिए वे यह कार्य पूरा नहीं करते हैं।) (परमेश्वर, तुम्हारी पिछली संगति ने इस बारे में मुझ पर गहरी छाप छोड़ी थी कि मसीह-विरोधी कैसे परमेश्वर और सत्य का उपयोग रुतबा हासिल करने के साधन के रूप में करते हैं, मुझे लगता है कि यह विशेष रूप से दुष्टता है।) तुम लोगों में से अधिकांश को कुछ बातें याद हैं, यानी, वे कुछ उदाहरण याद हैं जो मैंने मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार पर संगति करते हुए दिए थे। तुम लोगों को केवल उदाहरण याद हैं, लेकिन तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार पर मेरी संगति और उसके गहन-विश्लेषण की विषय-वस्तु को भुला दिया है। तब, मसीह-विरोधियों के दुष्ट प्रकृति सार के बारे में संगति और गहन विश्लेषण करते समय मैंने जिन सत्यों को छुआ था, उनमें से कितनों को तुम लोग समझ सकते हो? चूँकि तुम लोग उन बातों को याद नहीं कर सकते, तो क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि तुमने उस समय उनमें से किसी भी बात को नहीं समझा था? मेरी संगति ने यदि तुम लोगों पर गहरी छाप छोड़ी होती, तो क्या तुम लोग उन्हें कुछ हद तक याद नहीं रख पाते? क्या तुम्हें याद रहने वाली चीजें वे नहीं होतीं जिन्हें तुम समझ पाते हो? क्या जिन चीजों को तुम लोग याद नहीं रख पाते, वे वही नहीं हैं जिन्हें समझना तुम लोगों को बहुत मुश्किल लगता है, या जिन्हें तुम समझ ही नहीं सकते? जब तुमने उस समय उन सत्यों को सुना, तो तुमने सोचा कि वे सही हैं, और तुमने उन्हें धर्म-सिद्धांतों के तौर पर याद किया, और ऐसा करने में तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। परंतु, रात में सोने के बाद तुम उन्हें भूल गए। एक महीने बाद तो वे पूरी तरह से गायब हो गए। क्या ऐसा ही नहीं होता है? किसी मामले या व्यक्ति के सार की असलियत जानने के लिए, तुम्हें सत्य समझने की जरूरत होती है। यदि तुम अभी भी गैर-विश्वासियों के दृष्टिकोण से चिपके रहते हो, और गैर-विश्वासियों के कथनों के आधार पर चीजों को देखते और विचार करते हो, तो इससे साबित होता है कि तुम सत्य नहीं समझते। यदि सालों तक धर्मोपदेश और संगति सुनने के बाद भी तुम उनसे कुछ भी हासिल नहीं कर सके हो, और जब लोग तुम्हारे साथ सत्य पर संगति करते हैं तो वे चाहे जैसे भी समझाएँ तुम उसे समझ नहीं पाते, तो यह सत्य समझने की तुम्हारी क्षमता की कमी प्रदर्शित करता है, इसे खराब काबिलियत कहा जाता है। क्या यही मामला नहीं है? (हाँ।) मसीह-विरोधियों की दुष्टता के बारे में तुम लोगों में से किसी ने भी सबसे महत्वपूर्ण कथन का उल्लेख नहीं किया। तुमने इसका उल्लेख क्यों नहीं किया? एक लिहाज से, ऐसा इसलिए है क्योंकि काफी समय हो गया है और तुम लोग इसे भूल गए हो। दूसरे लिहाज से, ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोग इस कथन के महत्व को नहीं समझ सके थे; तुम लोग नहीं जानते थे कि यह ऐसा महत्वपूर्ण कथन है जो मसीह विरोधियों के दुष्ट सार को अनावृत करता और उसे उजागर करता है। यह कथन क्या है? वह कथन है कि मसीह विरोधियों की दुष्टता मुख्यतः सभी सकारात्मक चीजों और सत्य से संबंधित हर चीज के प्रति शत्रुता और घृणा में प्रकट होती है। मसीह-विरोधी लोग इन सकारात्मक चीजों से शत्रुता और घृणा क्यों महसूस करते हैं? क्या इन सकारात्मक बातों ने उन्हें नुकसान पहुँचाया होता है? नहीं। क्या इन चीजों का उनके हितों से कोई संबंध है? कभी-कभार शायद हाँ, तो कभी-कभी बिल्कुल नहीं। तो फिर मसीह-विरोधी क्यों सकारात्मक चीजों के प्रति निराधार शत्रुभाव रखते हैं और उनसे घृणा करते हैं? (यह उनकी प्रकृति है।) उनकी प्रकृति ऐसी है कि वे सभी सकारात्मक चीजों और सत्यों के प्रति शत्रुता और गहरी नापसंदगी रखते हैं। यह मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति की पुष्टि करता है। यह कथन महत्वपूर्ण है या नहीं? तुम लोगों को इतना महत्वपूर्ण कथन भी याद नहीं है; तुम्हें केवल वे चीजें याद हैं जो महत्वपूर्ण नहीं हैं। मैंने तुम लोगों से वे प्रश्न क्यों पूछे? ताकि तुम लोग बोलो और मैं देख सकूँ कि तुम लोग इन चीजों को किस हद तक समझते हो, अपने मन में उन्हें कितना याद रख सकते हो, और उस समय इन्हें कितना समझ सके थे। जैसी उम्मीद थी, तुम लोगों को केवल कुछ छोटी-मोटी चीजें ही याद हैं। मैंने जिन चीजों के बारे में बात की थी उसे तुम लोग बेमतलब बकवास जैसा मानते हो। मैं यहाँ बातचीत करने नहीं आया हूँ—मैं तुम लोगों को यह बताने आया हूँ कि लोगों को कैसे पहचाना जाए। मैंने जो कथन व्यक्त किया है वह बात मसीह विरोधियों की दुष्ट प्रकृति को पहचानने के लिए सर्वोच्च सत्य सिद्धांत है। यदि तुम इस कथन को व्यवहार में नहीं लागू कर सकते, तो तुम मसीह विरोधियों की दुष्ट प्रकृति को नहीं पहचान या जान पाओगे। उदाहरण के लिए, जब किसी व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाता है, तो कुछ लोग कह सकते हैं, “हमारे लिए तो वह अच्छा है, प्रेमपूर्ण है, और हमारी मदद करता है। ऐसे अच्छे व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में क्यों निरूपित किया जाए?” वे यह नहीं समझते कि यद्यपि मसीह विरोधी ऊपरी तौर पर दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण दिखाई दे सकते हैं, लेकिन वे परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं, और विशेष रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं। उनका यह धूर्ततापूर्ण और चालाकी भरा पक्ष कुछ ऐसा है जिसे अधिकांश लोग नहीं देख पाते। वे इसका भेद बिल्कुल भी नहीं पहचान सकते, और वे परमेश्वर को गलत समझ बैठते हैं, परमेश्वर के बारे में धारणाएँ बनाते हैं, और यहाँ तक कि इसके कारण परमेश्वर की निंदा और शिकायत भी करते हैं। ऐसे लोग बदमाश होते हैं और वे परमेश्वर का उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे केवल सतही मामलों को देखते हैं, जैसे कि मसीह-विरोधी कैसे लोगों को फँसाते हैं, फुसलाते हैं और उनकी चापलूसी करते हैं, और वे मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार को नहीं देखते, न ही वे उन तरीकों को देखते हैं जिनका उपयोग मसीह-विरोधी परमेश्वर का विरोध करने और स्वतंत्र राज्यों की स्थापना करने के लिए करते हैं। वे इन चीजों को क्यों नहीं देख पाते? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सत्य नहीं समझते और लोगों को नहीं पहचान पाते। वे हमेशा बाहरी परिघटनाओं से गुमराह होते हैं और समस्या के सार और परिणामों की असलियत नहीं जान पाते। वे लोगों का मूल्यांकन करने और उन पर फैसले सुनाने के लिए हमेशा नैतिकता और दुनियादार तरीकों वाली पारंपरिक मानवीय धारणाओं का उपयोग करते हैं। परिणामस्वरूप, मसीह-विरोधी उन्हें गुमराह कर लेते हैं, वे मसीह-विरोधियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं, और उनके तथा परमेश्वर के बीच संघर्ष और टकराव पैदा होते हैं। यह किसका दोष है? यह गलती कैसे हुई? यह उनके सत्य को न समझने, परमेश्वर के कार्य को न जानने और हमेशा लोगों और चीजों को अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर देखने के परिणामस्वरूप होता है।
II. नकारात्मक चीजों से मसीह-विरोधियों के प्रेम का गहन-विश्लेषण
आज, हम मसीह विरोधियों की सातवीं अभिव्यक्ति—वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं—पर संगति जारी रखेंगे। यह अभिव्यक्ति उनकी दुष्टता पर केंद्रित है, क्योंकि दुष्टता में धूर्तता और कपट दोनों शामिल हैं। दुष्टता मसीह विरोधियों के सार को दर्शाती है, जबकि धूर्तता और कपट उसके अधीनस्थ तत्व हैं। पिछली बार, हमने मसीह विरोधियों के दुष्ट सार पर संगति करते हुए उसे उजागर किया था। हमने कुछ व्यापक अवधारणाओं और कुछ तुलनात्मक परिभाषा करने वाली सामग्री पर संगति की थी जिसमें मसीह-विरोधियों के सार के इस पहलू को उजागर करने से संबंधित कुछ शब्द शामिल थे। आज, हम इस विषय पर अपनी संगति जारी रखेंगे। कुछ लोग पूछ सकते हैं कि “क्या इस विषय में संगति करने लायक कोई चीज है?” हाँ है। कुछ विवरण हैं जिन पर अभी भी यहाँ संगति करने की आवश्यकता है। हम आज इस विषय पर एक अलग तरीके से और एक अलग दृष्टिकोण से संगति करेंगे। मसीह विरोधियों की दुष्ट प्रकृति के जिस मुख्य लक्षण और अभिव्यक्ति पर हमने पिछली बार संगति की थी, वे क्या थे? मसीह-विरोधियों जैसे लोग सभी सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति शत्रुता और गहरी वितृष्णा महसूस करते हैं। सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति उनकी शत्रुता और वितृष्णा के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती, न ही यह किसी के उकसावे के परिणामस्वरूप होता है, और यह निश्चित रूप से उन पर किसी दुष्ट आत्मा का कब्जा हो जाने का परिणाम नहीं होता। इसके बजाय, वे स्वाभाविक रूप से इन चीजों को पसंद नहीं करते हैं। अपने जीवन और समूचे अस्तित्व के आंतरिक ढाँचे में वे इन चीजों के प्रति शत्रुता और घोर वितृष्णा महसूस करते हैं; जब वे सकारात्मक चीजों का सामना करते हैं तो उन्हें विकर्षण महसूस होता है। यदि तुम परमेश्वर की गवाही देते हो या उनके साथ सत्य के बारे में संगति करते हो, तो उनमें तुम्हारे प्रति घृणा पैदा हो जाएगी, और वे तुम पर हमला करने तक का मन बना सकते हैं। अपनी पिछली संगति में हमने मसीह-विरोधियों द्वारा सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता और घृणा महसूस किए जाने के इस पहलू को शामिल किया था, इसलिए हम इस बार इस पर फिर से चर्चा नहीं करेंगे। इस संगति में हम एक और पहलू का पता लगाएंगे। वह दूसरा पहलू क्या है? मसीह विरोधी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता और घृणा महसूस करते हैं, तो उन्हें पसंद क्या है? आज हम मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति का गहन विश्लेषण इस पक्ष और परिप्रेक्ष्य से करेंगे। क्या यह आवश्यक है? (हाँ।) यह आवश्यक है। क्या तुम लोग इसे अपने आप बूझ सकते हो? (नहीं।) सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों की नापसंदगी उनकी दुष्ट प्रकृति है। इसलिए, इस आधार पर ध्यान से विचार करो कि मसीह-विरोधियों को क्या पसंद है, और वे किस तरह की चीजें करना पसंद करते हैं, साथ ही कोई चीज करने में उनके काम करने का तरीका और साधन क्या होता है, और वे किस तरह के लोगों को पसंद करते हैं—क्या उनके दुष्ट प्रकृति को देखने का यह एक बेहतर परिप्रेक्ष्य और पक्ष नहीं है? यह अधिक विशिष्ट और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण प्रदान करता है। सबसे पहले, मसीह-विरोधियों को सकारात्मक चीजें पसंद नहीं होतीं, जिसका अर्थ है कि वे उनके प्रति शत्रुता रखते हैं और नकारात्मक चीजें पसंद करते हैं। नकारात्मक चीजों के कुछ उदाहरण क्या हैं? झूठ और चालबाजी—क्या ये नकारात्मक चीजें नहीं हैं? हाँ, झूठ और चालबाजी नकारात्मक चीजें हैं। तो, झूठ और चालबाजी का सकारात्मक प्रतिरूप क्या है? (ईमानदारी।) ठीक कहा, यह ईमानदारी है। क्या शैतान को ईमानदारी पसंद है? (नहीं।) उसे चालबाजी पसंद है। परमेश्वर की मनुष्यों से सबसे पहली अपेक्षा क्या होती है? परमेश्वर कहता है, “यदि तुम मुझ पर विश्वास करना चाहते हो और मेरा अनुसरण करना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे पहले किस तरह का व्यक्ति होना चाहिए?” (एक ईमानदार व्यक्ति।) तो, शैतान लोगों को सबसे पहले क्या करना सिखाता है? झूठ बोलना। मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति का पहला प्रमाण क्या है? (चालबाजी।) हाँ, मसीह-विरोधियों को चालबाजी पसंद है, उन्हें झूठ पसंद है, और ईमानदारी से उन्हें अरुचि और घृणा है। यद्यपि, ईमानदारी सकारात्मक चीज है, लेकिन वे इसे पसंद नहीं करते, और इसके बजाय वे ईमानदारी के प्रति विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं। इसके विपरीत, उन्हें चालाकी और झूठ पसंद है। यदि कोई मसीह-विरोधियों के सामने अक्सर सत्यवादन करते हुए कुछ ऐसा कहता है कि “तुम्हें रुतबेदार स्थिति में काम करना पसंद है, और कभी-कभी तुम आलस्य करते हो,” तो मसीह-विरोधियों को यह कैसा लगता है? (वे इसे स्वीकार नहीं करते।) इसे स्वीकार न करना उनके रवैयों में से एक है, लेकिन क्या बस इतना ही है? सत्यवादन करने वाले इस व्यक्ति के प्रति उनका रवैया क्या होता है? वे विकर्षण महसूस करते हैं, और उन्हें पसंद नहीं करते। कुछ मसीह-विरोधी भाई-बहनों से कहते हैं, “मैं पिछले कुछ समय से तुम्हारी अगुआई कर रहा हूँ। कृपया तुम सब मेरे बारे में अपनी राय बताओ।” हर व्यक्ति सोचता है, “क्योंकि तुम इतनी ईमानदारी से पूछ रहे हो, इसलिए हम तुम्हें प्रतिक्रिया देंगे।” कुछ कहते हैं, “तुम जो कुछ भी करते हो, वह तुम बहुत गंभीरता और मेहनत से करते हो, और तुमने बहुत से कष्ट सहे हैं। हमारे लिए यह देखना मुश्किल है, और हम तुम्हारे लिए व्यथित महसूस करते हैं। परमेश्वर के घर को तुम्हारे जैसे और अगुआओं की जरूरत है! अगर कोई कमी बतानी हो, तो वह यह है कि तुम बहुत गंभीर और मेहनती हो। अगर तुम बहुत ज्यादा काम करोगे और थक जाओगे, तो काम करना जारी नहीं रख सकोगे, और क्या तब हमारा काम तमाम नहीं हो जाएगा? हमारी अगुआई कौन करेगा?” जब मसीह-विरोधी यह सुनते हैं, तो वे प्रसन्न हो जाते हैं। वे जानते हैं कि यह झूठ है, कि ये लोग उनकी चापलूसी कर रहे हैं, लेकिन वे यही सुनना चाहते हैं। वास्तव में, ऐसा कहने वाले लोग इन मसीह-विरोधियों को मूर्ख बना रहे होते हैं, लेकिन ये मसीह-विरोधी इन शब्दों की वास्तविक प्रकृति को प्रकट करने के बजाय मूर्ख बनना पसंद करते हैं। मसीह-विरोधियों को ऐसे लोग पसंद होते हैं जो इस तरह से उनके तलवे चाटते हैं। ये लोग मसीह-विरोधियों की गलतियों, भ्रष्ट स्वभाव या कमियों को सामने नहीं लाते। इसके बजाय, वे गुप्त रूप से उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्हें ऊँचा उठाते हैं। भले ही यह स्पष्ट हो कि उनके शब्द झूठे और चापलूसी-भरे हैं, मसीह-विरोधी इन शब्दों को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, उनसे सांत्वना और प्रसन्नता पाते हैं। मसीह-विरोधियों के लिए ये शब्द उत्तम व्यंजनों का स्वाद लेने से बेहतर हैं। इन शब्दों को सुनने के बाद वे फूले नहीं समाते। यह क्या बताता है? यह बताता है कि मसीह-विरोधियों के भीतर एक ऐसा स्वभाव है जो झूठ को पसंद करता है। मान लो कोई उनसे कहता है, “तुम बहुत घमंडी हो, और तुम लोगों के साथ अनुचित व्यवहार करते हो। तुम उन लोगों के साथ अच्छे हो जो तुम्हारा समर्थन करते हैं, लेकिन अगर कोई तुमसे दूर रहता है या तुम्हारी चापलूसी नहीं करता, तो तुम उसे नीचा दिखाते हो और उसकी उपेक्षा करते हो।” क्या ये शब्द सच नहीं हैं? (हाँ, ये सच हैं।) यह बात सुनने के बाद मसीह-विरोधी कैसा महसूस करते हैं? वे अप्रसन्न हो जाते हैं। वे ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते, और उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। वे स्पष्टीकरण देने और चीजों को शांत करने के लिए बहाने और कारण खोजने की कोशिश करते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो व्यक्तिगत रूप से मसीह-विरोधियों की लगातार चापलूसी करते हैं, जो हमेशा उनकी प्रशंसा में परोक्ष रूप से मधुर शब्द बोलते हैं, और यहाँ तक कि अपने शब्दों से उन्हें स्पष्ट रूप से धोखा देते हैं, मसीह-विरोधी कभी भी उन लोगों की जाँच नहीं करते हैं। इसके बजाय, मसीह-विरोधी उनका उपयोग महत्वपूर्ण व्यक्तियों के रूप में करते हैं। वे हमेशा झूठ बोलने वालों को महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं, उन्हें कुछ महत्वपूर्ण और सम्मानजनक कर्तव्य सौंपते हैं, जबकि हमेशा ईमानदारी से बोलने वालों और अक्सर मुद्दों की सूचना देने वालों को ध्यान में कम आने वाले पदों पर रखने की व्यवस्था करते हैं, जिससे उन्हें उच्च अगुआओं तक पहुँचने या अधिकांश लोगों को उनके बारे में जानने या उनके करीब होने से रोका जा सके। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये लोग कितने प्रतिभाशाली हैं या वे परमेश्वर के घर में क्या कर्तव्य कर सकते हैं—मसीह-विरोधी इन सारी बातों की अनदेखी करते हैं। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कौन छल-प्रपंच कर सकता है और कौन उनके लिए फायदेमंद है; ये वे लोग हैं जिन्हें वे परमेश्वर के घर के हितों पर जरा भी विचार किए बिना महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं।
मसीह-विरोधी छल-प्रपंच और झूठ पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि वे जिन कलीसियाओं के लिए जिम्मेदार हैं वे सुसमाचार कार्य पर कोई ध्यान नहीं देती हैं और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता जिसके परिणामस्वरूप सुसमाचार के काम के खराब परिणाम मिलते हैं और बहुत कम लोग प्राप्त किए जाते हैं। परंतु, मसीह-विरोधी डरते हैं कि लोग वास्तविक स्थिति की सूचना दे सकते हैं। वे ईमानदारी से बोलने वाले हर व्यक्ति से नफरत करते हैं, और उन लोगों को पसंद करते हैं जो झूठ बोल सकते हैं, चालबाजी कर सकते हैं, और सभी हानिकारक सूचनाओं को छिपा सकते हैं। तो, मसीह-विरोधी किस तरह की बातें सुनना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं? “हमारी कलीसिया में सुसमाचार का प्रचार करने वाला हर व्यक्ति गवाही देने में सक्षम है, और उनमें से हर एक सुसमाचार का प्रचार करने में माहिर है।” क्या ये शब्द लोगों को धोखा देने के लिए नहीं हैं? लेकिन मसीह-विरोधी को ऐसी बातें सुनना अच्छा लगता है। यह सुनने के बाद मसीह-विरोधी कैसे प्रत्युत्तर देते हैं? वे कहते हैं, “बहुत बढ़िया, हमारी कलीसिया में सुसमाचार कार्य के परिणाम लगातार बेहतर होते जा रहे हैं, वे दूसरे कलीसियाओं की तुलना में बहुत बेहतर हैं। हमारी कलीसिया में सुसमाचार का प्रचार करने वाले सभी लोग इस काम में माहिर हैं।” मसीह-विरोधी और उनकी चापलूसी करने वाले लोग इस तरह से एक-दूसरे की प्रशंसा करते हैं, और मसीह-विरोधी उनकी बेशर्म चापलूसी को उजागर नहीं करते। मसीह-विरोधी इस तरह से काम करते हैं कि जब उनके अधीनस्थ उन्हें धोखा देते हैं, तो वे स्वेच्छा से धोखा खा लेते हैं। मसीह-विरोधी बस इसी तरह की मूर्खताएँ करते रहते हैं। अगर कोई वास्तविक स्थिति जानता है और आगे बढ़कर कहता है, “यह सही नहीं है। जिन 10 व्यक्तियों में हम सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, हमने पाया है कि उनमें से दो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, और उन्होंने पहले ही जाँच-पड़ताल बंद कर दी है। शेष आठ में से केवल तीन ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं। आओ, उन तीनों को कलीसिया में लाने के लिए पूरी कोशिश करें।” जब स्थिति की वास्तविकता उजागर होती है, तो मसीह-विरोधियों की कैसी प्रतिक्रिया होती है? वे सोचते हैं, “मुझे उन चीजों के बारे में पता नहीं था!” जब कोई उन चीजों की वास्तविक स्थिति के बारे में सच बोलता है जिनके बारे में मसीह-विरोधियों को पता नहीं होता, तो वे उनसे सहमत होते हैं या असहमत, प्रसन्न होते हैं या अप्रसन्न? वे अप्रसन्न होते हैं। वे अप्रसन्न क्यों होते हैं? वे अगुआ हैं, और फिर भी कलीसिया के काम के विवरणों और तथ्यों से अनभिज्ञ हैं और उन्हें इसकी कोई समझ नहीं है—उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की भी जरूरत होती है जो उन्हें सब कुछ समझाने के लिए यह समझता हो कि वास्तव में क्या चल रहा है। जब स्थितियों को समझने और ईमानदारी से बात करने वाला इन मामलों को समझाता है, तो मसीह-विरोधियों की शुरुआती भावना क्या होती है? उन्हें लगता है कि उनका सम्मान पूरी तरह से खत्म हो गया है और उनकी प्रतिष्ठा गोता लगाने वाली है। चूँकि मसीह विरोधियों की दुष्ट प्रकृति होती है तो वे क्या करेंगे? उनके भीतर घृणा पैदा होगी, और वे सोचेंगे, “अरे बकवादी! अगर तुम नहीं बोलते, तो यह बात किसी की नजर आए बिना निकल जाती। तुम्हारी वजह से सबको इसका पता चल गया है, और वे मेरे बजाय तुम्हारी प्रशंसा करने लग सकते हैं। क्या इसके कारण मैं नाकाबिल नहीं दिखूँगा, जैसे मैं कोई वास्तविक काम न कर रहा होऊँ? मैं तुम्हें याद रखूँगा। तुम सच बोलते हो, हर मोड़ पर मुझे चुनौती देते हो और मेरा विरोध करते हो। मैं सुनिश्चित करूँगा कि इसके लिए तुम्हें पछताना पड़े!” इस बारे में सोचो कि वे उन कर्तव्यनिष्ठ लोगों को कैसे देखते हैं जो निष्ठापूर्वक काम करते हैं, ईमानदारी से बोलते हैं, और वफादारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं? वे उन्हें अपने विरोधी के रूप में देखते हैं। क्या यह तथ्यों को विकृत करना नहीं है? न केवल वे समय पर सहयोग करने और कार्य-संबंधी अपनी गलतियों की भरपाई करने में विफल रहते हैं, बल्कि वे अपने कर्तव्यों की उपेक्षा भी करते रहते हैं। वे अपने मन में उन लोगों के प्रति भी नफरत पालते हैं जो सच बोलते हैं और अपना काम सावधानी और जिम्मेदारी से करते हैं। वे ऐसे लोगों को यातना देने की कोशिश भी कर सकते हैं। क्या यह मसीह-विरोधियों का आचरण नहीं है? (हाँ, है।) यह किस तरह का स्वभाव है? यह दुष्टता है। मसीह-विरोधियों की दुष्टता इस तरह से उजागर होती है। जब भी कोई ईमानदार व्यक्ति सामने आता है, जब भी कोई ईमानदार और सत्य वचन बोलता है, और जब भी कोई सिद्धांतों का पालन करता है और मामलों की वास्तविक प्रकृति की जाँच करता है, तो मसीह-विरोधियों को उससे चिढ़ होती है और वे उससे घृणा करते हैं, उनकी दुष्ट प्रकृति फूट पड़ती है और उजागर हो जाती है। जब भी कोई छल-प्रपंच होता है, और जब भी झूठ बोला जाता है, तो मसीह-विरोधी प्रसन्न हो जाते हैं, उसमें आनंदमग्न होते हैं, और यहाँ तक कि खुद को भी भूल जाते हैं। क्या तुम लोगों में से किसी ने “सम्राट के नए कपड़े” शीर्षक वाली कहानी पढ़ी है? मसीह विरोधियों का व्यवहार कुछ हद तक समान प्रकृति का होता है। उस कहानी में सम्राट सड़कों पर निर्वस्त्र टहल रहा था, और हजारों लोग चिल्ला रहे थे, “सम्राट के नए कपड़े सच में सुंदर हैं! सम्राट बहुत अद्भुत लग रहे हैं! सम्राट बहुत महान हैं! सम्राट के नए कपड़े वास्तव में जादुई हैं!” हर कोई झूठ बोल रहा था। क्या सम्राट को इसका पता था? वह पूरी तरह से नग्न था तो इस तथ्य से अनजान कैसे हो सकता था कि उसने कपड़े नहीं पहने थे? इसे मूर्खता कहा जाता है। तो, ये दुष्ट मसीह-विरोधी, धूर्त और कपटी होते हुए भी कम बुद्धि वाले होते हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि उनमें बुद्धि की कमी है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे उस नग्न सम्राट की तरह हैं। वह छलने वाले शब्दों का भेद नहीं पहचान पाता था। वह अपनी कुरूपता को उजागर करते हुए नग्न घूमने में भी सक्षम था। क्या यह मूर्खता नहीं है? तो, वह क्या है जो मसीह-विरोधियों की दुष्टता अक्सर प्रकट करती है? यह है उनकी मूर्खता।
क्योंकि मसीह-विरोधियों का स्वभाव दुष्ट होता है, क्योंकि उन्हें चालाकी और झूठ पसंद होता है लेकिन ईमानदारी नापसंद होती है, और क्योंकि वे सच बोलने से घृणा करते हैं, इसलिए, मसीह-विरोधियों के शासन वाली कलीसियाओं में उन व्यक्तियों को अक्सर यातना दी जाती है जो ईमानदार हैं या ईमानदार बनने का प्रयास करते हैं, जो सत्य का अभ्यास करते हैं और चालबाजी नहीं करते या झूठ नहीं बोलना चाहते हैं। क्या ऐसा नहीं है? तुम जितनी अधिक सत्यता से बोलोगे, मसीह-विरोधी तुम्हें उतनी ही अधिक यातना देगा, और तुम जितना अधिक सच बोलोगे, वह तुम्हें उतना ही अधिक नापसंद करेगा। इसके विपरीत, जो लोग उनकी चापलूसी करते हैं और उन्हें धोखा देते हैं, वे अनुग्रह प्राप्त करते हैं और उन्हें अच्छे लगते हैं। क्या मसीह-विरोधी दुष्ट नहीं होते? क्या तुम्हारे आस-पास ऐसे दुष्ट मसीह-विरोधी हैं? क्या तुम लोगों का कभी उनसे आमना-सामना हुआ है? वे लोगों को सच नहीं बोलने देते; जो कोई सच बोलता है उसका मुँह बंद कर दिया जाता है। यदि तुम कभी झूठ बोल सको और उनकी बातें मानते हुए उनके सहयोगी बन जाओ, तो वे तुम्हारे विरोधी नहीं रहेंगे। यदि तुम सच बोलने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामले संभालने पर अड़े रहते हो, तो देर-सवेर वे तुम्हें यातना देंगे। क्या तुम लोगों में से किसी को यातना दी गई है? मात्र इसलिए कि तुमने झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के बुरे कामों को उजागर किया, तुम्हें यातना दी गई, और अंततः तुम्हें इस हद तक यातना दी गई कि तुम चाहकर भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। क्या ऐसा कभी हुआ है? सच बोलने और मुद्दों की सूचना देने के कारण तुम्हें यातना दी गई थी। विभिन्न कलीसियाओं में क्या तुममें से किसी को समस्याओं की सूचना देने पर यातना दी गई है? अगर कोई झूठ बोलता है और कलीसिया को धोखा देता है और उसकी काट-छाँट की जाती है, तो क्या यह उसे यातना देना है? (नहीं।) यह सामान्य अनुशासन है; यह यातना देने के समान नहीं है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तुम अपनी जिम्मेदारी में लापरवाह हो, तुम सिद्धांतों का उल्लंघन करते हो, और तुम गलत इरादों से काम करते हो, झूठ बोलते हो और छल करते हो, जिसके कारण तुम्हारी काट-छाँट की जाती है। इसलिए, परमेश्वर की उपस्थिति में तुम कभी भी सच बोलने पर कोई दुष्परिणाम नहीं भोगोगे। परंतु, शैतान और मसीह-विरोधियों की उपस्थिति में, तुम्हें अधिक सतर्क रहना चाहिए। यह बात उस कहावत को प्रतिबिम्बित करती है कि “राजा की संगत में रहना बाघ की संगत में रहने के समान है।” जब उनसे बात करो, तो हमेशा उनके मिजाज का ध्यान रखो, उनकी प्रसन्नता का आकलन करो और देखो कि उनके भाव उदासीपूर्ण हैं या प्रसन्नता के, फिर तय करो कि क्या कहना है जो उनके विचारों के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, यदि कोई मसीह-विरोधी कहता है कि “आज बारिश होगी, है ना?” तो तुम्हें कहना होगा, “पूर्वानुमान के अनुसार आज बारिश होगी।” वास्तव में, जब मसीह-विरोधी कहता है कि आज बारिश हो सकती है, तो वह ऐसा इसलिए कहता है कि वह बाहर जाकर अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहता। यदि तुम कहते हो, “पूर्वानुमान के अनुसार आज धूप होगी,” तो वह क्रोधित हो जाएगा। तुम्हें तुरंत कहना होगा, “ओह, मैं गलती से ऐसा कह गया। आज बारिश होने वाली है।” मसीह-विरोधी कहता है कि “तुमने अभी कहा था कि बारिश नहीं होगी। अब तुम कैसे कह सकते हो कि बारिश होगी?” तो, तुम्हें जवाब देना होगा कि “इसलिए कि अभी धूप होने का मतलब यह नहीं है कि मौसम ऐसा ही रहेगा। जैसा कि पुराने लोगों ने कहा है, ‘स्वर्ग में भी अचानक तूफान आते हैं।’ मौसम के पूर्वानुमान हमेशा सटीक नहीं होते, लेकिन तुम्हारे फैसले सटीक होते हैं!” जब मसीह-विरोधी यह सुनता है, तो वह प्रसन्न होता है और समझदारी के लिए तुम्हारी प्रशंसा करता है। क्या तुम लोग कभी इस तरह से आचरण करते हो? तुम करते हो, है न? क्या तुम वह करने में सक्षम हो जो मसीह-विरोधी अक्सर करते हैं, लोगों को सच बोलने नहीं देते और जो सच बोलता है उसे यातना देते हो? क्या तुम लोगों ने महलों के नाटक नहीं देखे हैं? सम्राट और दरबार में उनके मंत्रियों के बीच क्या संबंध होते हैं? उनके रिश्ते को एक वाक्य में व्यक्त करना आसान नहीं हो सकता, लेकिन उनके बीच एक परिघटना है, वह यह कि सम्राट किसी की भी बात को ज्यों का त्यों नहीं मानता। वह अपने मंत्रियों की हर बात का विश्लेषण और जाँच करता है, उसे कभी सच नहीं मानता। अपने मंत्रियों की बात सुनने का यह उसका सिद्धांत होता है। जहाँ तक मंत्रियों की बात है, तो उनमें अनकही बातों को सुनने का कौशल होना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब सम्राट कहता है, “प्रधानमंत्री वांग ने आज कुछ कहा,” या ऐसा और कुछ कहे, तो हर कोई उसे सुनता है और सोचता है कि “लगता है सम्राट प्रधानमंत्री वांग को बढ़ावा देना चाहता है, लेकिन सम्राट को लोगों के गुट बनाने, निजी लाभ तलाशने और विद्रोह करने से सबसे ज्यादा डर लगता है, इसलिए मैं प्रधानमंत्री वांग का खुलकर समर्थन नहीं कर सकता। मुझे बीच में खड़े रहना होगा, न तो उसका विरोध करना होगा और न ही समर्थन, ताकि सम्राट मेरे सच्चे इरादों को न समझ सके—लेकिन मैं सम्राट की इच्छा का विरोध भी नहीं कर रहा हूँ।” तुम देख सकते हो कि उनके दिमाग में हर कथन पर इतना विचार शामिल होता है, यह साँप के चलने के रास्ते से भी ज्यादा मोड़दार और पेचीदा होता है। वे जो कुछ भी कहते हैं उसका मूल अर्थ अस्पष्ट रहता है, दुविधा में लिपटा हुआ होता है। यह विश्लेषण करने में वर्षों का अनुभव लगता है कि कौन-से कथन सत्य हैं और कौन-से असत्य, और तुम्हें उनके सामान्य व्यवहार और बातचीत के तरीके के आधार पर उनके इच्छित अर्थ को समझना होता है। संक्षेप में, उनके मुख से निकला एक भी कथन सत्य नहीं होता, और वे जो कुछ भी कहते हैं वह सब झूठ होता है। कोई निचले दर्जे का हो या ऊँचे दर्जे का, हर किसी के संवाद बोलने का अपना तरीका होता है। वे अपने दृष्टिकोण से बोलते हैं, लेकिन वे जो कहते हैं उसका अर्थ कभी भी वह शाब्दिक अर्थ नहीं होता जो सुनाई पड़ता है—वह केवल झूठ होता है। झूठ कहाँ से आते हैं? क्योंकि लोग अपने शब्दों और कार्यों में कुछ निश्चित इरादे, उद्देश्य और प्रेरणाएँ लेकर चलते हैं, जब वे बोलते हैं, तो वे अपने शब्दों और अपने शब्दों के निहितार्थों के प्रति सावधान रहते हैं, वे बातों को घुमा-फिराकर बताते हैं, और उनके बोलने का अपना तरीका होता है। जब उनके बोलने का एक तरीका होता है, क्या तब भी वह सत्य बोलना होता है? नहीं, ऐसा नहीं है। उनके शब्दों में अर्थ की कई परतें होती हैं, सच और झूठ का मिश्रण होता है—कुछ सच, कुछ झूठ—और कुछ कथन छल करने के लिए होते हैं। किसी भी हाल में वे सत्यवादी नहीं हैं। प्रधानमंत्री वांग का उदाहरण लो जिसका अभी उल्लेख किया गया था। कोई व्यक्ति दरबार में प्रधानमंत्री वांग का खुलकर विरोध करता है। पर, यह बात तुरंत स्पष्ट नहीं होती कि उसका विरोध सच्चा है या झूठा। तुम्हें आगे देखना होगा। अगले दृश्य में वह व्यक्ति प्रधानमंत्री वांग के घर के एक गुप्त ड्राइंग रूम में बैठा शराब पी रहा होता है। पता चलता है कि उन दोनों की मिलीभगत है। यदि तुम केवल वह दृश्य देखो जहाँ यह व्यक्ति प्रधानमंत्री वांग का विरोध कर रहा होता है, तो तुम कैसे देख सकोगे कि दोनों मिल कर काम कर रहे हैं? उसने वांग का विरोध क्यों किया? संदेह से बचने के लिए और उसने ऐसा प्रयास इसलिए किया ताकि सम्राट अपनी सावधानी का स्तर घटा दे और उसे संदेह न हो कि वे दोनों आपस में मिले हुए हैं। क्या यह एक युक्ति नहीं है? (हाँ, यह युक्ति है।) ये लोग उस घेरे में रहते हैं जहाँ वे एक भी शब्द सच बोलने की हिम्मत नहीं करते। यदि हर दिन झूठ बोलना इतना थकाऊ होता है, तो वे छोड़ क्यों नहीं देते? वे तो किसी मर चुके प्रतिद्वंद्वी की कब्र पर भी जाते हैं—इसके पीछे क्या है? उन्हें बस दूसरों के खिलाफ लड़ना अच्छा लगता है; बिना लड़े, उन्हें लगता है कि जीवन नीरस है। अगर कोई लड़ाई नहीं होती है, तो उन्हें लगता है कि यह जीवनकाल बहुत नीरस है। उनके दिमाग में भरी सारी योजनाओं और षड्यंत्रों का इस्तेमाल करने की कोई जगह नहीं होती, उन्हें लड़ने के लिए एक प्रतिद्वंद्वी चाहिए होता है, ताकि वे देख सकें कि कौन श्रेष्ठ है। ऐसा होने पर ही उन्हें लगता है कि उनके जीवन का कोई मूल्य है। अगर उनका प्रतिद्वंद्वी मर जाए, तो उन्हें लगता है कि उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं बचा। मुझे बताओ कि क्या इस तरह के लोगों को सुधारा जा सकता है? (नहीं, वे नहीं सुधारे जा सकते।) यह उनकी प्रकृति है। मसीह-विरोधियों की प्रकृति इस तरह की होती है : वे हर दिन दूसरों से, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से लड़ते हैं। वे परमेश्वर तक के खिलाफ लड़ते हैं, हर दिन झूठ बोलते हैं और छल करते हैं, परमेश्वर के घर के काम में विघ्न-बाधाएँ डालते हैं। वे एक पल के लिए भी शांत नहीं बैठ सकते। उनके साथ चाहे जैसे भी संगति की जाए, वे सत्य स्वीकार नहीं कर सकते। बड़े लाल अजगर की तरह वे तब तक आराम से नहीं बैठते जब तक कि पूरी तरह से नष्ट न हो जाएँ।
मसीह-विरोधी उन लोगों को नापसंद करते हैं जो सच बोलते हैं, वे ईमानदार लोगों को नापसंद करते हैं। उन्हें छल और झूठ पसंद है। तो, परमेश्वर के प्रति उनका रवैया क्या है? उदाहरण के तौर पर, लोगों से ईमानदार होने की परमेश्वर की अपेक्षा के प्रति उनका रवैया क्या होता है? पहली बात यह कि वे इस सत्य का तिरस्कार करते हैं। सकारात्मक चीजों का तिरस्कार करने की उनकी क्षमता वास्तव में उनकी समस्या का संकेत है, और यह पहले ही साबित करता है कि उनकी प्रकृति दुष्ट है। परंतु, यह पूरी या समग्र तस्वीर नहीं है। गहराई में जाने पर, लोगों से ईमानदार होने की परमेश्वर की माँग को मसीह-विरोधी कैसे समझते हैं? वे कह सकते हैं, “ईमानदार होकर परमेश्वर से हर चीज के बारे में बात करना, उसे सब कुछ बताना, और भाई-बहनों के साथ सब कुछ खुलकर साझा करना—क्या इस सबका मतलब मेरी गरिमा का खत्म होना नहीं है? इसका मतलब है कि अपनी कोई गरिमा न रहे, कोई स्व न रहे, और कोई गोपनीयता तो निश्चित रूप से न रहे। यह भयानक है; यह किस तरह का सत्य है?” क्या वे इसे ऐसे ही नहीं देखते? मसीह-विरोधी न केवल अपने हृदय में परमेश्वर के वचनों और लोगों से ईमानदार होने की माँग को तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं, बल्कि वे इसकी निंदा भी कर सकते हैं। अगर वे इसकी निंदा कर सकते हैं, तो क्या वे ईमानदार लोग हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं, वे बिल्कुल ईमानदार नहीं हो सकते। मसीह-विरोधियों की तब क्या प्रतिक्रिया होती है जब वे कुछ लोगों को यह स्वीकार करते देखते हैं कि उन्होंने झूठ बोला है? इस तरह के व्यवहार का वे अपने दिल की गहराई से तिरस्कार करते हैं और मजाक उड़ाते हैं। उनका विश्वास है कि ईमानदार होने की कोशिश करने वाले लोग बहुत मूर्ख होते हैं। क्या उनका ईमानदार लोगों को मूर्ख के रूप में परिभाषित करना दुष्टता नहीं है? (हाँ, यह दुष्टता है।) यह दुष्टता ही है। वे सोचते हैं, “आज के समाज में कौन सच बोलता है? परमेश्वर तुमसे ईमानदार होने को कहता है, और तुम वास्तव में ईमानदार होने की कोशिश भी करते हो—तुम ऐसे मामलों के बारे में भी ईमानदारी से बोलते हो। वास्तव में तुम अविश्वसनीय रूप से मूर्ख हो!” हृदय की गहराई में वे ईमानदार लोगों के लिए जो तिरस्कार महसूस करते हैं, वह साबित करता है कि वे इस सत्य की निंदा करते हैं और उससे घृणा करते हैं, और वे न तो इसे स्वीकार करते हैं और न ही इसके प्रति समर्पित होते हैं। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता नहीं है? यह सत्य स्पष्ट रूप से एक सकारात्मक चीज है, और सामान्य मानवता को जीने का वह पहलू है जो लोगों के पास उनके स्व-आचरण के लिहाज से होना चाहिए, लेकिन मसीह-विरोधी इसकी निंदा करते हैं। यह दुष्टता है। कलीसिया में बहुत बार ऐसे लोग होते हैं जो समस्याओं की सूचना देने या ऊपरवाले को मामलों की वास्तविक स्थिति बताने के कारण कुछ अगुआओं द्वारा “काट-छाँट” का शिकार होते हैं—उन्हें कष्ट दिया जाता है। कभी-कभी, जब ऊपरवाला कलीसिया की स्थिति के बारे में पूछता है, तो कुछ अगुआ केवल सकारात्मक बातें बताते हैं और नकारात्मक बातों को छोड़ देते हैं। कुछ लोग जब सुनते हैं कि उन अगुआओं की रिपोर्ट तथ्यात्मक नहीं हैं, और उनसे सच बताने को कहते हैं, तो अगुआ उन्हें किनारे धकेल देते हैं, और सच बोलने से रोकते हैं। कुछ लोग मसीह-विरोधियों के काम करने के तरीके को स्वीकार नहीं करते। वे सोचते हैं, “चूँकि तुम ईमानदारी से नहीं बोलते, इसलिए मैं तुम्हारे साथ अगुआ जैसा व्यवहार नहीं करूँगा। मैं ऊपरवाले को सच बताऊँगा। उसके द्वारा काटे-छाँटे जाने से मैं नहीं डरता।” इसलिए, वे निष्ठापूर्वक ऊपरवाले को वास्तविक स्थिति की सूचना दे देते हैं। जब वे ऐसा करते हैं, तो कलीसिया में हड़कंप मच जाता है। ऐसा कैसे? क्योंकि ये लोग उन मसीह-विरोधियों से संबंधित तथ्यों को उजागर कर देते हैं—उन्होंने मामलों की वास्तविक स्थिति उजागर कर दी है। क्या मसीह-विरोधी इससे सहमत होते हैं? क्या वे इसे बर्दाश्त कर सकते हैं? वे मामलों की सूचना देने वाले लोगों को बिल्कुल नहीं बख्शेंगे। मसीह-विरोधी क्या करते हैं? ऐसा होने के तुरंत बाद, वे इस मामले पर बैठक बुलाते हैं, लोगों से इस पर चर्चा करने को कहते हैं और उनकी प्रतिक्रियाएँ देखते हैं। ज्यादातर लोग आसानी से प्रभावित हो जाते हैं, मामले पर विचार करते हैं और सोचते हैं, “किसी ने तथ्यों की सूचना दे दी है और अब यह अगुआ खतरे में है। यहाँ जो कुछ हो रहा था उसकी सूचना हमने नहीं दी—अगर ऊपरवाले ने इस अगुआ को दंडित करने का फैसला किया, तो क्या उसके साथ हम भी नहीं फँसेंगे?” इसलिए, ये लोग अगुआओं का बचाव करने के तरीके खोजते हैं, और इसके परिणामस्वरूप सत्य सूचना देने वाले लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं। इस तरह, मसीह-विरोधी जो चाहें कर सकते हैं, क्योंकि वे चाहे जितने बुरे काम करें, कोई भी ऊपरवाले को स्थिति की सूचना देने की हिम्मत नहीं करता, और इसी तरह से वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए, कुछ लोगों को, ऊपरवाले को स्थिति की सूचना देने के कारण कई वास्तविक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें तथ्य पता होते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी हमेशा उन्हें चुप कराना चाहते हैं। डर और दब्बूपन के कारण वे समझौता कर लेते हैं, और ऐसा करने पर क्या वे मसीह-विरोधी के बलपूर्वक बात मनवाने का शिकार नहीं बनते? अंत में, जब इन मसीह-विरोधियों का खुलासा हो जाता है और उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है, तो तुम क्या सोचते हो कि समझौता करने वाले लोग कैसा महसूस करते होंगे? क्या उन्हें इसका पछतावा होता है? (हाँ, उन्हें इसका पछतावा होता है।) वे यह सोचते हुए प्रसन्नता और पछतावा दोनों महसूस करते हैं कि, “अगर मुझे पता होता कि चीजों का यह हश्र होगा, तो मैं हार नहीं मानता। मुझे उनको उजागर करना और उनके मुद्दों की सूचना देना तब तक जारी रखना चाहिए था जब तक कि उन्हें बर्खास्त नहीं किया जाता।” लेकिन अधिकांश लोग ऐसा नहीं कर सकते; वे बहुत कायर होते हैं।
मसीह-विरोधियों को छल-प्रपंच और झूठ पसंद होते हैं और ईमानदारी से घृणा होती है; यह उनकी दुष्ट प्रकृति की पहली प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति होती है। ध्यान दो कि कुछ लोग हमेशा ऐसे बोलते हैं कि लोग उनके शब्दों से यह न पकड़ सकें कि उनके दिमाग में क्या है। कभी-कभी उनके वाक्यों का आदि तो होता है, लेकिन उनका अंत नहीं होता है, और कभी अंत होता है लेकिन आदि नहीं होता। तुम बिल्कुल बता नहीं सकते कि वे कहना क्या चाहते हैं, तुम्हें उनकी कोई भी बात समझ में नहीं आती, और यदि तुम उन्हें स्पष्ट रूप से समझाने के लिए कहते हो, तो वे ऐसा नहीं करेंगे। वे अक्सर अपनी बातचीत में सर्वनाम का प्रयोग करते हैं। जैसे, वे रिपोर्ट करते हुए कहते हैं, “वह व्यक्ति, अ... वह सोच रहा था कि... और भाई-बहन बहुत... नहीं थे” वे घंटों बात कर सकते हैं, फिर भी साफ तौर पर कुछ नहीं कह पाते, वे हकलाते हैं, अटकते हैं, अपने वाक्यों को पूरा नहीं करते, बस एक-एक शब्द बोलते हैं जिनका आपस में कोई संबंध नहीं होता, और इतना सब सुनने पर भी तुम्हारी समझ में कोई इजाफा नहीं होता, बल्कि बेचैनी और बढ़ जाती है। वास्तव में, उन्होंने बहुत पढ़ाई की होती है और वे सुशिक्षित भी होते हैं—तो वे एक पूर्ण वाक्य तक बोलने में असमर्थ क्यों होते हैं? यह स्वभाव की समस्या है। वे इतने धूर्त होते हैं कि उन्हें थोड़ा सा भी सत्य बोलने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहते हैं उसका कोई केंद्रबिंदु नहीं होता, हमेशा एक आदि तो होता है, लेकिन कोई अंत नहीं होता; वे आधा वाक्य तेजी से बोल देते हैं, लेकिन बाकी आधा निगल जाते हैं, और वे हमेशा चीजों को परखते रहते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि तुम समझो कि उनके कहे का क्या अर्थ है, वे चाहते हैं कि तुम अनुमान लगाओ। यदि वे सीधे तौर पर बता देंगे, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि वे क्या कह रहे हैं और तुम उनकी बात की असलियत जान लोगे, है न? वे ऐसा नहीं चाहते। वे क्या चाहते हैं? वे चाहते हैं कि तुम खुद ही अनुमान लगाओ, वे सहर्ष तुम्हें अपने अनुमान को सही मानने देते हैं—अब ऐसे में, उन्होंने तो कुछ कहा नहीं, इसलिए उस बात को लेकर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। इसके अलावा, जब तुम उन्हें बताते हो कि तुम्हारे अनुमान से उनकी बातों का क्या अर्थ है, तो उन्हें क्या हासिल होता है? वे तुम्हारा अनुमान ही तो सुनना चाहते हैं, इससे उन्हें उस मामले पर तुम्हारा नजरिया और तुम्हारे विचार पता चल जाते हैं। तब वे अपने शब्द चुन-चुन कर बोलेंगे कि क्या कहना है, क्या नहीं कहना है और कैसे कहना है, और फिर वे अपनी योजना के अनुसार अगला कदम उठाएँगे। उनका हर वाक्य एक जाल पर खत्म होता है, और अगर तुम उनकी बात सुनते हुए उनके अधूरे वाक्य पूरे करते रहते हो, तो तुम पूरी तरह से उनके जाल में फँस जाते हो। क्या उनके लिए हमेशा इस तरह बोलना थका देने वाला होता है? उनका स्वभाव दुष्ट है—वे थकान महसूस नहीं करते। यह उनके लिए पूरी तरह से स्वाभाविक होता है। वे तुम्हारे लिए ऐसा जाल क्यों बुनना चाहते हैं? क्योंकि उन्हें तुम्हारे विचार साफ तौर पर समझ में नहीं आते, उन्हें डर होता है कि तुम उनकी असलियत जान जाओगे। साथ ही उनकी यह भी कोशिश रहती है कि तुम उन्हें समझ न पाओ, और वे तुम्हें भी समझने की कोशिश कर रहे होते हैं। वे तुम्हारी सोच, तुम्हारे विचारों और तरीकों को तुमसे उगलवा लेना चाहते हैं। अगर वे सफल हो जाते हैं, तो उनका बुना जाल काम कर गया। कुछ लोग अक्सर “हूँ... हाँ...” कहकर टाल देते हैं; वे कोई विशिष्ट दृष्टिकोण व्यक्त नहीं करते। अन्य लोग “जैसे...” और “खैर...” कहकर टाल देते हैं, वे जो वास्तव में सोच रहे होते हैं, उस बात को छिपा जाते हैं, वे जो वाकई कहना चाहते हैं, उसकी जगह ऐसे शब्द बोलते हैं। उनके हर वाक्य में कई बेकार प्रकार्य शब्द, क्रिया विशेषण और सहायक क्रियाएँ होती हैं। यदि तुम उनके शब्दों को रिकॉर्ड करते और लिख डालते, तो तुम्हें पता चलता कि उनमें से कोई भी बात इस मामले पर उनके विचारों या दृष्टिकोण को प्रकट नहीं करती। उनके हर शब्द में छिपे हुए फंदे होते हैं, प्रलोभन होते हैं और फुसलावे होते हैं। यह कैसा स्वभाव है? (दुष्टता का।) बहुत दुष्टता का। क्या इसमें छल-प्रपंच शामिल होता है? वे जिन फंदों, प्रलोभनों और फुसलावों की रचना करते हैं, उन्हीं को छल-प्रपंच कहते हैं। जिन लोगों में मसीह-विरोधियों का दुष्ट सार होता है, यह उनकी सामान्य विशेषता होती है। यह सामान्य विशेषता कैसे अभिव्यक्त होती है? वे अच्छी खबर की रिपोर्ट करते हैं, लेकिन बुरी की नहीं, वे विशेष रूप से कर्णप्रिय शब्द बोलते हैं, रुक-रुक कर बोलते हैं, वे अपने वास्तविक अर्थ को आंशिक रूप से छिपा लेते हैं, वे भ्रमित करने वाले अंदाज में बोलते हैं, अस्पष्ट बोलते हैं और उनके शब्दों में प्रलोभन होते हैं। ये सब बातें फंदे हैं और वे सब छल-प्रपंच के साधन हैं।
ज्यादातर मसीह-विरोधी इन अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हैं और इसी तरह से बोलते और काम करते हैं। यदि तुम लंबे समय तक उनके संपर्क में रहो, तो क्या तुम इसे पहचान सकते हो? क्या तुम उनकी असलियत जान सकते हो? सबसे पहले, तुम्हें यह तय करना होगा कि वे ईमानदार लोग हैं या नहीं। दूसरों से ईमानदार होने और सच बोलने की वे कितनी भी माँग करते हों, तुम्हें देखना होगा कि क्या वे खुद ईमानदार लोग हैं, क्या वे ईमानदार होने का प्रयास कर रहे हैं, और ईमानदार लोगों के प्रति उनका दृष्टिकोण और रवैया क्या है। देखो कि क्या वे अपने हृदय की गहराई में ईमानदार लोगों से विकर्षित होते हैं, उनके प्रति गहरी नापसंदगी रखते हैं और उनके साथ भेदभाव करते हैं, या वे भी अपने हृदय की गहराई में ईमानदार बनना चाहते हैं, फिर भी ऐसा करना कठिन और चुनौतीपूर्ण पाते हैं, और इसीलिए इसे हासिल नहीं कर पाते हैं। तुम्हें यह पता लगाने की जरूरत है कि वे इनमें से किस स्थिति में है। क्या तुम इसे पहचान सकते हो? संभव है कि कम समय में तुम ऐसा करने में सक्षम न हो सको, क्योंकि यदि उनके चालबाज तरीकों में चतुराई होगी, तो तुम उनकी असलियत नहीं पहचान पाओगे। हालाँकि, समय के साथ हर व्यक्ति उनकी असलियत जान लेगा; अपनी सच्चाई वे हमेशा के लिए नहीं छिपा सकते। यह वैसा ही है जैसे बड़ा लाल अजगर अक्सर कहता है कि वह “जनता की सेवा कर रहा है” और “जनता का लोक सेवक है।” लेकिन आजकल कौन मानता है कि यह जनता की पार्टी है? कौन मानता है कि यह लोगों की ओर से निर्णय ले रही है? कोई भी अब ऐसा नहीं मानता, सही है न? शुरू में, लोगों को यह सोचकर आशावादी उम्मीदें थीं कि कम्युनिस्ट पार्टी के साथ वे अपनी किस्मत बदल सकेंगे और मालिक बन सकेंगे, कि यह पार्टी लोगों की सेवा करेगी और उनके लोकसेवक के रूप में कार्य करेगी। लेकिन आजकल, कौन इसके शैतानी शब्दों पर विश्वास करता है? लोग अब इसका मूल्यांकन कैसे करते हैं? यह लोगों के लिए लोकशत्रु बन गई है। तो, यह लोकसेवक से एक लोकशत्रु कैसे बन गई? उसके कार्यकलापों से, और उसके शब्दों की तुलना उसके कार्यकलापों से करने पर लोगों ने पाया कि उसने जो कुछ भी कहा था वह केवल धोखा देने वाले झूठ, असत्य और खुद को पाक-साफ दिखाने के इरादे से बोले गए शब्द थे। उसने सबसे सुखद लगने वाले शब्द बोले लेकिन किए सबसे बुरे काम। मसीह विरोधी भी ऐसे ही होते हैं। उदाहरण के लिए, वे भाई-बहनों से कहते हैं, “तुम्हें अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए—उन्हें व्यक्तिगत अशुद्धियों से दूषित न होने दो।” लेकिन जरा इस बारे में सोचो कि क्या वे खुद इस तरह से काम करते हैं? जब तुम उन्हें कोई सुझाव देते हो, तो जैसे ही तुम अपनी राय जरा-सा प्रकट करते हो, वे उससे सहमत नहीं होते या उसे स्वीकार नहीं करते। जब उनके व्यक्तिगत हित उनके कर्तव्यों या परमेश्वर के घर के हितों से टकराते हैं, तो वे छोटे से छोटे लाभ के लिए लड़ते हैं और उसे तनिक भी नहीं छोड़ते। उनके व्यवहार के बारे में सोचो, फिर उसकी तुलना उनकी बातों से करो। तुम क्या पाते हो? उनके शब्द सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन वे सब असत्य होते हैं जो लोगों को धोखा देने के लिए होते हैं। जब वे अपने हित में योजना बनाते हैं और लड़ते हैं, तो उनका व्यवहार, साथ ही उनके कार्यकलापों के इरादे, साधन और तरीके, सभी असली होते हैं—नकली नहीं। इन बातों के आधार पर तुम मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हो।
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