मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक) खंड छह

जब कपट और धूर्तता की तुलना दुष्ट स्वभाव से की जाती है, तो वे अपेक्षाकृत कम गंभीर और सतही होते हैं। यदि वे अपेक्षाकृत सतही हैं, तो मैं यहाँ उनका उल्लेख क्यों कर रहा हूँ? मसीह-विरोधी धूर्तता, समझ में न आने वाले और अस्पष्ट तरीके से बोलते और काम करते हैं, जिससे दूसरों को लगता है कि वे कपटी और धोखेबाज हैं, और आम लोग उनके बारे में पूरी सच्चाई हृदयंगम नहीं कर पाते हैं। वे धूर्तता से काम करते और बोलते हैं और निष्कपट, ईमानदार और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों से उनकी नहीं बनती। इसके बजाय, वे अक्सर ऐसे लोगों के साथ खिलवाड़ करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। उन लोगों को जरा भी पता नहीं चलता और मसीह-विरोधी इन लोगों से खिलवाड़ करते हैं, धोखा देते हैं, और यहाँ तक कि उनका उपयोग भी करते हैं। बेशक, मसीह-विरोधी लोगों द्वारा अपनाए गए ये व्यवहार और तरीके लोगों के लिए बहुत हानिकारक नहीं होते। फिर, वह क्या चीज है जो लोगों को बहुत नुकसान पहुँचाती है? वह है मसीह-विरोधियों का दुष्ट स्वभाव, और भी गंभीर है लोगों का गुमराह होना, नियंत्रित होना और उनका सताया जाना जो इस दुष्ट स्वभाव से उत्पन्न होता है। जब मसीह विरोधियों के कार्यों की बात आती है तो उनके पास हमेशा एक प्रेरणा होती है और एक इरादा होता है जिसे वे दूसरों को नहीं बता सकते। वे बिना किसी कारण के कभी भी कुछ भी समर्पित या खर्च नहीं करते, न ही वे बिना किसी कारण या बिना प्रतिफल के किसी के लिए या परमेश्वर के घर के लिए कुछ करते हैं। उनके हर कार्य और शब्द के पीछे एक प्रेरणा, एक इरादा होता है, और जिस क्षण उनका इरादा और प्रेरणा उजागर हो जाती है, या उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ नष्ट हो जाती हैं, वे पीछे हटने का अवसर तलाशने लगते हैं। अपने हृदय में, वे सोचते हैं, “यह काम इस लायक नहीं है कि मैं अकारण ही इसके लिए खुद को समर्पित करूँ या खपाऊँ, यह मेरे लायक नहीं है। परमेश्वर में विश्वास करने से किसी को कुछ तो मिलना ही चाहिए। अगर कोई बिना किसी प्रतिफल की माँग किए खुद को परमेश्वर के लिए खपाता है, तो वह बेवकूफी है।” उनका तर्क है : “मुफ्त की दावत जैसी कोई चीज नहीं होती है।” वे उस जमीर और विवेक, व्यवहार और अच्छे कर्मों को जो सामान्य लोगों के पास होने चाहिए और उन्हें करना चाहिए, उसे बेवकूफी और मूर्खता के रूप में निरूपित करते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ।) यह अविश्वसनीय रूप से दुष्टतापूर्ण है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाले भाई-बहनों के लिए कुछ कार्य व्यवस्थाएँ बनाता है और उनके जीवन के लिए कुछ सुविधाएँ प्रदान करता है, लेकिन मसीह-विरोधी उन्हें भीतर से बाधित करते हैं। उन्हें बाधित करने में मसीह-विरोधियों का उद्देश्य क्या होता है? अगर यह कार्य व्यवस्था मसीह-विरोधी की ओर से होती तो यह जानकर भाई-बहन उसके प्रति कृतज्ञता का अनुभव करते, तो मसीह विरोधी अगुआई करता। अगर भाई-बहन नहीं जानते कि कार्य व्यवस्था किसने की और सोचते हैं कि वह व्यवस्था परमेश्वर के घर ने की है, और वे परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, तो क्या मसीह-विरोधी उन्हें पूरा करेगा? बिल्कुल नहीं। कार्य व्यवस्था मसीह विरोधी के पास तक ही अटक जाएगी और लागू नहीं होगी। परमेश्वर के घर द्वारा इन कार्य व्यवस्थाओं को जारी करना भाई-बहनों के लिए लाभदायक है, और सुसमाचार का कार्य बेहतर तरीके से फैलेगा; परमेश्वर के कार्य से संबंधित यह एक बड़ी बात है, इसलिए जो लोग अगुआ के रूप में कार्य करते हैं, उन्हें इन कार्य-व्यवस्थाओं को कैसे पूरा करना चाहिए? उन्हें इन्हें अच्छे से पूरा करने और कार्य को कार्यान्वित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। परंतु, कुछ मसीह-विरोधी इसे भीतर से बाधित करते हैं और दो साल तक दिए गए कार्य का कार्यान्वयन नहीं करते। इसका कारण क्या है? यह शैतान द्वारा बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करना है। कुछ कलीसियाओं में मसीह-विरोधियों ने अशांति फैला रखी है और नियंत्रण स्थापित कर रखा है, और वहाँ अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले भाई-बहनों की देखभाल नहीं की जाती। मसीह-विरोधी इससे खुश होते हैं, और अपने हृदय में सोचते हैं, “इतनी बढ़िया चीज और इतने जबरदस्त लाभों का मैं लाभार्थी हूँ, इतना काफी है। सभी भाई-बहन लाभार्थी कैसे हो सकते हैं?” भाई-बहनों को लाभ मिलने से मसीह-विरोधी पर क्या असर पड़ेगा? इससे उन पर जरा भी असर नहीं पड़ेगा। उन्हें लाभ होगा, सभी को लाभ होगा, और यह बहुत अच्छा होगा! समग्र स्थिति के बारे में सोचो : तुम्हें इसे बाधित नहीं करना चाहिए, न ही तुम्हें इसे रोकना चाहिए, बल्कि इसे खुशी से लागू करना चाहिए। क्या यह सामान्य बात नहीं है? (हाँ, है।) यह ऐसा कर्तव्य है जिसे एक व्यक्ति को निभाना चाहिए, और यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसका एक पहलू यह है कि इसमें तुम्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता, जबकि दूसरा पहलू यह है : क्या हर कोई यह नहीं चाहता कि सुसमाचार का कार्य फैले? (हम चाहते हैं।) जब वे भाई-बहनों को परमेश्वर की कृपा का आनंद लेते देखते हैं, तो क्या उन्हें ईर्ष्या होती है? वे किस बात से ईर्ष्या करते हैं? क्या मसीह-विरोधी दानव नहीं हैं? तो, मसीह-विरोधी कार्य को लागू क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है कि वे ईर्ष्यालु हैं। क्या वे मानते हैं कि कार्य को लागू करना सुसमाचार कार्य को फैलाने के लिए फायदेमंद होगा? (नहीं, वे ऐसा नहीं मानते।) क्या यह उनके हितों को प्रभावित करता है? इसका उनसे क्या संबंध है? इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वे इसे लागू नहीं करते, और यह उनका दुष्ट होना है। वे जीवित शैतान हैं और उन्हें शाप दिया जाना चाहिए! ऐसे मामले में, जिसका संबंध परमेश्वर के घर के कार्य और अपने कर्तव्यों को निभाने वाले इतने सारे लोगों से है, वे उसे बाधित करने के परिणामों के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते। अगर उनके पास थोड़ी भी नेकनीयती होती, तो वे ऐसा नहीं कर पाते। वे इस तरह से क्यों काम करते हैं? यह खलनायकी है, दुष्टता है। क्या तुम लोग ऐसे काम करते हो? यदि तुम ऐसे काम कर सकते हो, तो तुम लोग मसीह-विरोधियों से अलग नहीं हो, और तुम लोग भी जीवित शैतान हो। तुम लोगों को ऐसे काम नहीं करने चाहिए! कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो देखते हैं कि कलीसिया में दुष्ट लोग हैं जो अक्सर कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, जो कलीसिया में उत्पात मचाते हैं, लेकिन वे इसे अनदेखा करते हैं। जब उनसे ऐसे लोगों से निपटने के लिए कहा जाता है, तो वे हिचकते हैं और उनसे निपटने में टाल-मटोल करते हैं। वे भाई-बहनों के हितों पर विचार नहीं करते; वे केवल यह विचार करते हैं कि उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुँचे, बस इतना ही। वे सोचते हैं, “मुझे अगुआ बनाया गया है इसलिए मेरा अंतिम निर्णय होना चाहिए। मेरे पास पूर्ण शक्ति और अधिकार है। तुम जिसे कहते हो, अगर मैं उसे निकाल देता हूँ तो इससे लगेगा कि मैं पूरी तरह से शक्तिहीन हूँ। मुझे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भाई-बहनों को पता रहे कि वे लोग मेरी देखभाल में हैं और मेरे अधीनस्थ हैं।” वे किसका प्रतिरोध कर रहे होते हैं? (परमेश्वर का।) क्या परमेश्वर का प्रतिरोध करना दुष्टता नहीं है? यह दुष्टता है। क्या तुम जानते हो कि मनुष्य किस तरह की चीज है? परमेश्वर ने तुममें जान फूँकी है, और अगर तुम इतनी महत्वपूर्ण चीज नहीं जानते, तो क्या तुम मूर्ख नहीं हो? परमेश्वर किसी भी समय तुम्हारा जीवन समाप्त कर सकता है, और फिर भी तुम खुद को परमेश्वर के विरुद्ध दृढ़ता से खड़ा कर देते हो—यह दुष्टता है, और तुम जीते-जागते दानव हो! इसलिए, एक पहलू यह है कि तुम लोगों को सत्य का अनुसरण करना चाहिए और मसीह-विरोधियों के मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहिए; इसके अलावा, तुम लोगों को जानना चाहिए कि मसीह-विरोधियों को कैसे पहचाना जाए। यदि तुम किसी मसीह-विरोधी से मिलते हो, तो तुम्हें उसे बारीकी से देखना चाहिए, और यदि तुम उन्हें कोई बुरा काम करने की तैयारी में देखो, तो उन्हें तुरंत रोक दो, और भाई-बहनों के साथ मिलकर उन्हें बेनकाब करो, उनका गहन-विश्लेषण करो, उन्हें अस्वीकार करो और उन्हें निष्कासित करो। मैंने हाल ही में एक कलीसिया में कई युवा भाई-बहनों के बारे में सुना था जो किसी नकली अगुआ को बाहर निकालने के लिए एकजुट हुए थे। मैं कहता हूँ कि इन युवाओं ने प्रगति की है, वे शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जीते, वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकते हैं, और वे अधिकांश लोगों से बहुत बेहतर हैं। अधिकांश लोगों के पास सांसारिक व्यवहार के लिए फलसफे हैं, शैतान का जहर उनमें गहराई तक समाया है, और अभी तक शैतान के प्रभाव से बाहर नहीं निकले हैं। किसी नकली अगुआ को हटाने में सक्षम होना दिखाता है कि व्यक्ति कुछ सत्य समझता है और परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कर सकता है—यह अच्छी बात है। यह दिखाता है कि संबंधित व्यक्ति जीवन में परिपक्व हो गया है और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकता है।

आज मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपटीपन के सार के पहलुओं के साथ-साथ उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करके और उन्हें उजागर करके, हम देख पाते हैं कि मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी होते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “भले ही मेरा स्वभाव मसीह-विरोधियों का स्वभाव हो, लेकिन मेरा प्रकृति सार मसीह-विरोधियों जैसा नहीं है, और मैं कभी भी मसीह-विरोधी नहीं बनूँगा।” तुम इस रवैये के बारे में क्या सोचते हो? भले ही तुममें मसीह-विरोधी जैसा सार न हो, फिर भी तुममें मसीह-विरोधी की ये अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन हैं, तुम उसे ही जीते हो जिसे मसीह-विरोधी जीता है, और तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है, और इसलिए तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने के खतरे में हो। रुतबा, प्रभाव और पूँजी के साथ सिर्फ कुछ पलों में ही तुम मसीह-विरोधी बन जाओगे, और यह एक तथ्य है। ऐसा कहने के पीछे मेरा इरादा क्या है? मैं यह तुम्हारे लिए खतरे की घंटी बजाने और तुम्हें एक तथ्य बताने के लिए कह रहा हूँ : जब कोई व्यक्ति मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलना शुरू करता है, तो दो संभावनाएँ होती हैं। एक यह है कि तुम समय के साथ इसकी खोज कर लोगे, दिशा बदल लोगे, आत्मचिंतन करोगे, पश्चात्ताप करोगे, और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में सक्षम हो जाओगे। यह सबसे अच्छी संभावना है, और तुम्हें उद्धार प्राप्त करने की आशा रहेगी। हालाँकि, यदि तुम सत्य की खोज वाले मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते, तो जब तुम बहुत अधिक बुरे काम कर लेते हो और मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित कर दिए जाते हो, तो परिणामों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) यह अच्छा है कि तुम समझते हो। मेरा इससे क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि यदि तुममें मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ हैं, तो तुम्हारे पास अभी भी बाहर निकलने और पश्चात्ताप करने का अवसर है, लेकिन एक बार मसीह-विरोधी बन जाने पर, तुम खतरे में पड़ जाओगे। इसलिए, जब तुम जान लो कि तुम्हारे अंदर मसीह-विरोधी जैसी अभिव्यक्तियाँ हैं, तो तुम्हें अपना रास्ता बदलना चाहिए, सत्य की तलाश करनी चाहिए और इस समस्या को हल करना चाहिए; इस मामले को हल्के में न लो। अन्यथा, जब तुम्हारे पास शक्ति और अवसर होंगे, तो तुम लापरवाही से बुरे काम करोगे और कलीसिया के काम में गड़बड़ी करोगे और बाधा डालोगे। तुम परिणामों को झेल नहीं पाओगे, और बहुत संभव है कि यह तुम्हारे परिणाम और तुम्हारी मंजिल को प्रभावित करे।

आज हमने मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव और आम लोगों के दुष्ट स्वभाव के बीच के सारभूत अंतर को स्पष्ट रूप से समझा दिया है। क्या तुम लोग अब इसे समझते हो? सभी भ्रष्ट मनुष्यों में दुष्ट स्वभाव होते हैं और उन सभी में दुष्ट स्वभाव के प्रकाशन और अभिव्यक्तियाँ होती हैं। परंतु, आम लोगों के दुष्ट स्वभाव और मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव में अंतर होता है। हालाँकि आम लोगों में भी दुष्ट स्वभाव होता है, लेकिन उनके हृदय में सत्य की लालसा होती है और वे सत्य से प्रेम करते हैं, और परमेश्वर में अपनी आस्था और अपने कर्तव्यों का पालन करने के दौरान वे सत्य को स्वीकार करने में सक्षम होते हैं। हालाँकि वे जितने सत्य व्यवहार में ला सकते हैं वे सीमित होते हैं, फिर भी वे कुछ सत्य अभ्यास में ला सकते हैं, और इस तरह उनके भ्रष्ट स्वभाव को धीरे-धीरे शुद्ध किया जा सकता है और वास्तव में बदला जा सकता है, और अंत में वे मूलतः परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी सत्य से तनिक भी प्रेम नहीं करते, वे सत्य कभी नहीं स्वीकारते, और वे इसे कभी अभ्यास में नहीं लाते। मैं यहाँ जो कुछ भी कहता हूँ, तुम लोगों को उसके अनुसार देखने और भेद पहचानने का प्रयास करना चाहिए; चाहे वह कलीसिया का अगुआ हो या कार्यकर्ता, या कोई साधारण भाई-बहन, देखो कि क्या वह व्यक्ति अपनी समझ के दायरे में सत्य को अभ्यास में ला सकता है। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति एक सत्य सिद्धांत समझता है, लेकिन जब उसे अभ्यास में लाने का समय आता है, तो वह उसे बिल्कुल भी अभ्यास में नहीं लाता और वह अपनी मर्जी से और मनमाने ढंग से काम करता है—यह दुष्टता है और ऐसे व्यक्ति को बचाया जाना कठिन है। कुछ लोग वास्तव में सत्य नहीं समझते, लेकिन अपने हृदय में वे ठीक उसी की खोज करना चाहते हैं जो परमेश्वर के इरादों के अनुसार और सत्य के अनुरूप हो। दिल की गहराई से वे सत्य के विरुद्ध नहीं जाना चाहते। चूँकि वे सत्य नहीं समझते, बस इसीलिए वे सिद्धांतों के विपरीत बोलते और कार्य करते हैं, वे गलतियाँ करते हैं, और यहाँ तक कि ऐसे काम भी करते हैं जिससे विघ्न-बाधाएँ पैदा होती हैं—इसकी प्रकृति क्या है? इसकी प्रकृति कुकर्म करने से नहीं जुड़ी है; यह सब मूर्खता और अज्ञानता के कारण होता है। ऐसे लोग ये काम केवल इसलिए करते हैं क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, क्योंकि वे सत्य सिद्धांतों को प्राप्त करने में अक्षम हैं, और क्योंकि उनकी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार उन्हें लगता है कि ये काम करना सही है, इसलिए वे उस तरह से कार्य करते हैं, और इसीलिए परमेश्वर उन्हें मूर्ख और अज्ञानी, कम काबिलियत वाले के रूप में निरूपित करता है; ऐसा नहीं है कि वे सत्य समझते हुए भी जानबूझकर उसके विरुद्ध जाते हों। जहाँ तक उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का सवाल है जो हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार काम करते हैं और सत्य न समझने के कारण अक्सर परमेश्वर के घर के कार्य में गड़बड़ कर देते हैं तो तुम्हें पर्यवेक्षण और प्रतिबंधों को लागू करने का अभ्यास करना चाहिए और समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य पर अधिक संगति करने का अभ्यास करना चाहिए। यदि किसी की काबिलियत बहुत कम है और वह सत्य सिद्धांतों को नहीं समझ सकता तो उसे नकली अगुआ के नाते बर्खास्त करने का समय आ गया है। यदि वह सत्य समझता है लेकिन जानबूझकर सत्य के विरुद्ध जाता है, तो उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए। यदि वह हमेशा सत्य स्वीकार करने में असमर्थ रहता है और कोई पछतावा भी नहीं दिखाता है, तो उससे बुरे व्यक्ति के रूप में निपटा जाना चाहिए, और उसे हटा दिया जाना चाहिए। जबकि मसीह-विरोधियों की प्रकृति बुरे लोगों या नकली अगुआओं की प्रकृति से कहीं अधिक गंभीर होती है, क्योंकि मसीह-विरोधी जानबूझकर कलीसिया का काम बाधित करते हैं। वे सत्य समझते हों तब भी वे इसका अभ्यास नहीं करते, वे किसी की नहीं सुनते, और अगर वे सुनते भी हैं, तो वे जो सुनते हैं उसे स्वीकार नहीं करते। भले ही ऊपरी तौर पर वे इसे स्वीकार करते हुए दिखें, लेकिन वे अपने अंतरतम हृदय में इसका प्रतिरोध करते हैं, और जब कार्य करने का समय आता है, तब भी वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में कोई विचार किए बिना अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करते हैं। जब वे अन्य लोगों के आस-पास होते हैं, तो वे कुछ मानवीय शब्द बोलते हैं और वे कुछ हद तक मानव के समान होते हैं, लेकिन जब वे लोगों की पीठ पीछे कार्य करते हैं, तो उनकी राक्षसी प्रकृति उभर आती है—ये मसीह-विरोधी हैं। कुछ लोगों को जब रुतबा मिलता है, तो वे हर तरह की बुराई करते हैं और मसीह-विरोधी बन जाते हैं। कुछ लोगों के पास कोई रुतबा नहीं होता, फिर भी उनका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों जैसा ही होता है—क्या तुम कह सकते हो कि वे अच्छे लोग हैं? जैसे ही उन्हें रुतबा मिलता है, वे हर तरह के बुरे काम करने लगते हैं—वे मसीह-विरोधी हैं।

क्या तुम लोगों में कोई ऐसा है जिसने पाया हो कि वह खुद एक तेजी से उभरता हुआ मसीह-विरोधी है और जिसने महसूस किया हो कि एक बार रुतबा हासिल कर लेने के बाद वह सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी हो जाएगा? यदि ऐसा है, तो जब दूसरे लोग तुम्हें अगुआ के रूप में चुनेंगे, तो तुम्हें उन्हें तुम्हारा चयन बिल्कुल नहीं करने देना चाहिए और कहना चाहिए, “मैं इससे दूर हूँ। कृपया मुझे मत चुनो। यदि तुम लोग ऐसा करते हो, तो मेरे लिए सब कुछ खत्म हो जाएगा।” इसे आत्म-जागरूकता कहते हैं। रुतबा न होना तुम्हारी सुरक्षा है। साधारण अनुयायी के रूप में तुम्हें बड़ी बुराई करने का मौका कभी नहीं मिल सकता, और तुम्हें दंडित किए जाने की संभावना शून्य हो सकती है। परंतु, जैसे ही तुम रुतबा हासिल करते हो, तुम्हारे द्वारा बुरा काम किए जाने की संभाव्यता सौ प्रतिशत हो जाती है, साथ ही तुम्हें दंडित किए जाने की संभाव्यता भी सौ प्रतिशत हो जाती है, और फिर तुम्हारे लिए सब कुछ खत्म हो जाता है, और तुम उद्धार पाने के अपने अवसरों को एकदम नष्ट कर देते हो। यदि तुममें महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं, तो तुम्हें जल्दी से जल्दी परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, समस्या के हल के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए, परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और आत्म-संयम का अभ्यास करना चाहिए, और अपने रुतबे का रौब नहीं दिखाना चाहिए, और फिर तुम सामान्य तरीके से अपना कर्तव्य निभा सकोगे। यदि तुम हमेशा आधिकारिक पदवियों पर ध्यान देते हो और रुतबे का रौब दिखाते रहते हो और अपने कर्तव्य निर्वहन पर ध्यान नहीं देते हो तो फिर तुम झाँसेबाज हो और तुम्हें निकाल दिया जाना चाहिए। जब तुम कोई कर्तव्य स्वीकार करते हो, तो रुतबे पर ध्यान केंद्रित न करो; तुम्हें बस अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए—मामलों को अच्छी तरह से सँभालना किसी भी दूसरी चीज से अधिक वास्तविक है। यदि तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हो, तो क्या तुमने परमेश्वर को संतुष्ट नहीं किया होगा? जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, यह वह अंतिम तरीका है जिससे तुम बुराई करने से बच सकते हो। यह अच्छी बात है या बुरी कि तुम लोगों पर हमेशा प्रतिबंध लगाए जाएँ और तुम्हें कोई पद पाने की अनुमति न दी जाए? (यह अच्छी बात है।) ऐसा है तो, फिर कुछ लोग इतने पर भी चुनावों के दौरान रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने में इतनी मेहनत क्यों करते हैं? ऐसे लोग बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं। बहुत अधिक महत्वाकांक्षा रखना सामान्य बात नहीं है—वे लोग दुष्ट हो रहे हैं। कई युवा बहनें जो अभी उम्र के तीसरे दशक में है, वे आधिकारिक पद पाना चाहती हैं और उन्हें रुतबे से बहुत प्यार है। यदि उन्हें अगुआ के रूप में नहीं चुना जाता है, तो वे मुँह फुला लेती हैं और खाना बंद कर देती हैं। हालाँकि वे थोड़ा बचकानी लगती हैं, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प के मामले में जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाएगी, चीजें बेहद गंभीर होती जाएँगी और वे विशेषज्ञ बन जाएँगी, है न? कुछ स्त्रियाँ सुनती हैं कि बहुत पहले की बात है कि एक स्त्री महारानी बन गई थी और इस पर वे अविश्वसनीय ईर्ष्या महसूस करती हैं कि काश वे वही स्त्री हो पातीं। वे साधारण नहीं बनना चाहतीं, और परमेश्वर में अपनी आस्था में वे सिर्फ साधारण अनुयायी नहीं बनना चाहतीं। उनके हृदय में उनकी इच्छाओं की लौ लगातार जलती रहती है, और जैसे ही उन्हें खुद को दिखाने का मौका मिलता है, वे उसे पकड़ लेती हैं। वे अपने कर्तव्यों को शिष्ट ढंग से पूरा नहीं करना चाहतीं, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करना चाहतीं, सत्य का अनुसरण करने में अपना दिल नहीं लगाना चाहतीं या परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित नहीं होना चाहतीं। उन्हें सत्य का अनुसरण करना और इस तरह से अपने कर्तव्यों का पालन करना पसंद नहीं है, और वे ऐसा सादा जीवन नहीं जीना चाहतीं—यह उनके लिए परेशानी का सबब होता है। क्या तुम लोगों में से कोई ऐसा है? उदाहरण के लिए एक महिला को लो जो अनैतिक संबंध बनाना पसंद करती है; चाहे उसका पति उसके प्रति कितना भी अच्छा क्यों न हो या उसके पास कितना भी धन क्यों न हो, वह उसका दिल कभी नहीं जीत पाता। कुछ महिलाओं के कई बच्चे होते हैं और फिर भी वे पुरुषों को लुभाने की बेतहाशा कोशिश करती हैं, और कोई भी पुरुष उन पर नजर नहीं रख सकता—यह दुष्ट होना है। यह दुष्ट ऊर्जा कहाँ से आती है? (यह उनकी प्रकृति के भीतर से आती है।) और उनकी ऐसी प्रकृति कैसे बनती है? उनके अंदर अशुद्ध आत्माएँ रहती हैं, और वे अशुद्ध आत्माओं का पुनर्जन्म हैं। हालाँकि आध्यात्मिक क्षेत्र में मामले जटिल हैं, पर वे कितने भी जटिल क्यों न हों, जब तक कोई सत्य समझता है और इन मामलों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देख सकता है, तब तक उसमें विवेक हो सकता है, और इसे आध्यात्मिक क्षेत्र में सीधे भेदना कहा जाता है। जब तुम सत्य समझते हो तो चीजों को तीक्ष्ण दृष्टि और सटीक ढंग से देख पाते हो, तुम्हारी सोच भी चुस्त और स्पष्ट हो जाती है और तुम्हारा हृदय उजला हो जाता है। यदि तुम सत्य नहीं समझते, तो तुम्हारा दिल हमेशा भ्रमित रहेगा, तुम्हें अपने हृदय में कभी नहीं पता होगा कि तुम क्या कर रहे हो, और तुम किसी भी तरफ मुड़ने से डरने वाले मूर्ख की तरह रहोगे। तुम डरोगे कि अगर तुमने ज्यादा काम किया तो वह दिखावा करना होगा, और अगर ऐसा नहीं करते तो तुम्हें डर लगेगा कि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हो; तुम हमेशा ऐसी ही दशा में रहोगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हें सत्य की बहुत कम समझ है। सत्य की बहुत कम समझ रखने वाले व्यक्ति की पहली अभिव्यक्ति क्या होती है? वे क्षुद्र और बेकार जीवन जीते हैं। मसीह-विरोधियों के हाथों का खिलौना बनने, डराए-धमकाए जाने और इधर-उधर पटके जाने के बाद जिस दिन उनकी आँख खुलती है, उस दिन उन्हें एहसास होता है कि कैसे वे मसीह-विरोधियों के पीछे भागते थे, उनकी सेवा करते थे और उनके लिए काम करते थे, फिर भी कहते थे कि मसीह-विरोधी परमेश्वर से प्यार करते हैं और उनके प्रति निष्ठावान हैं। तब जाकर उन्हें पता चलता है कि वे इन सभी शब्दों का गलत इस्तेमाल करते थे। क्या यह बहुत अनुपयोगी नहीं है? (हाँ, है।) यह अनुपयोगी क्यों है? यह स्थिति उनके सत्य न समझने के कारण उपजती है और उन्हें वही मिला होता है जिसके वे हकदार हैं! अगर तुम सत्य समझते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हो और उनकी असलियत जान सकते हो, और फिर तुम उन्हें उजागर कर बाहर निकाल सकते हो। क्या तुम तब भी उनसे गुमराह होते रहोगे और उनका अनुसरण करते रहोगे? निश्चय ही ऐसा नहीं होगा। इसके अलावा, तुमने इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं, परमेश्वर के घर ने इतने सालों तक तुमको सींचा और विकसित किया है, इसलिए यदि तुम किसी भी सत्य को नहीं समझते, यदि तुम मसीह-विरोधियों का भेद नहीं पहचान सकते और तुम उन जिम्मेदारियों को भी पूरा नहीं करते जो तुम्हें पूरी करनी चाहिए, और अंततः मसीह-विरोधियों के साथ दौड़ते हो और उनके साथी बन जाते हो, तो क्या यह सब तुमको अनुपयोगी नहीं बनाता? क्या ऐसे लोग दयनीय नहीं हैं? यदि तुम नाममात्र के लिए परमेश्वर का अनुसरण करते हो, फिर भी मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते और खींच लिए जाते हो और फिर कई सालों तक एक मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण करते हो, और अब वापस लौटना चाहते हो, लेकिन तुममें अपने भाई-बहनों का सामना करने का साहस नहीं है, तो क्या यह जीने का बेकार तरीका नहीं है? तुम कितने भी परेशान क्यों न हों, इसका कोई फायदा नहीं है। यह किसकी गलती है कि तुम सत्य नहीं समझते? तुम किसी को भी दोष नहीं दे सकते सिवाय खुद को।

हमने मसीह-विरोधियों की कुल सात अलग-अलग अभिव्यक्तियों पर संगति की है। जहाँ तक विस्तृत अभिव्यक्तियों की बात है, तो हमने प्रत्येक के बारे में बात की है, जिस सार का हमने गहन-विश्लेषण किया है, और जिन विभिन्न परिस्थितियों के बारे में हमने बात की है, उनमें से कोई भी बात हवा में गढ़ी हुई नहीं है, बल्कि सुस्थापित और तथ्यों पर आधारित है। हालाँकि, एक बात है : यदि तुम लोग इन बातों को सुनने के बाद वास्तविक चीजें सामने आने पर उनकी तुलना करने में सक्षम नहीं हो, तो यह क्या दिखाता है? सबसे पहले, यह दिखाता है कि तुममें आध्यात्मिक समझ की कमी है, और यदि कभी-कभार तुम लोगों के पास कुछ आध्यात्मिक समझ होती भी है, तो वह आधी-अधूरी होती है, पूर्ण आध्यात्मिक समझ नहीं होती; दूसरे, यह दर्शाता है कि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य को गंभीरता से नहीं लेते; तीसरे, यह दिखाता है कि तुममें काबिलियत की बहुत कमी है और समझने की क्षमता बिल्कुल नहीं है। मैंने मसीह-विरोधियों को उजागर करते हुए बहुत कुछ कहा है, लेकिन तुम्हें उसमें से कुछ भी समझ में नहीं आया। उस समय तुम्हें लग सकता है कि तुम इसे समझ गए हो, लेकिन बाद में यह समझ धुँधला जाती है, और इससे पता चलता है कि तुम अभी भी इसे नहीं समझ पाए हो। तुम क्यों नहीं समझते? क्या इसका समझ की क्षमता से कोई संबंध है? जब मैंने इस स्तर तक चीजों को समझाया है और तुम अभी भी नहीं समझ पाए हो, तो इसका मतलब है कि तुममें समझने की क्षमता की बहुत कमी है और सत्य समझने की क्षमता तुममें वास्तव में नहीं है। क्या मैं जो कह रहा हूँ वह बिल्कुल ठीक है? ऐसा ही है। तुम लोगों में से कुछ लोग हैं जो 10 या 20 वर्षों से धर्मोपदेश सुन रहे हैं और फिर भी सत्य नहीं समझते। हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? केवल दो संभावनाएँ हैं : एक यह कि तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, तुममें काबिलियत की कमी है, और तुम सत्य समझने में सक्षम नहीं हो; दूसरी यह कि, हालाँकि तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ है, लेकिन तुम सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य में तुम्हारी रुचि नहीं है। तुम पर यदि इन दो संभावनाओं में से कोई एक लागू होती है, तो तुम्हारे भीतर सत्य को समझने की योग्यता नहीं है। यदि तुम पर दोनों संभावनाएँ लागू होती हैं, तो तुम उस अंधे व्यक्ति की तरह हो जिसे आँख की समस्या है—इसका कोई इलाज नहीं है। यदि मेरे संगति समाप्त करने के बाद भी तुम लोग अपनी उचित तुलना नहीं कर सकते, और नहीं जानते कि मेरे कहने का मतलब क्या है, तो यह तथ्य तुम्हारी समझने की क्षमता के बारे में क्या बताता है? क्या यह बहुत कम नहीं है? यदि तुम लोग ज्यादा आलसी हो, आराम की लालसा करते हो, सत्य के प्रति कोई प्रेम नहीं रखते, व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ रखते, और बाहरी मामलों से विचलित होते हो, तो इन वचनों का तुम पर प्रभाव कम से कम होता जाएगा, और उनका प्रभाव बहुत कम होगा—यह ऐसा ही है। वास्तव में, मसीह-विरोधियों का भेद पहचानना बहुत आसान है। इसका एक पक्ष है काम करने के जिन तरीकों का वे उपयोग करते हैं उन्हें साफ समझ लेना, जबकि दूसरा पक्ष यह देखना है कि उनका स्वभाव कैसा है, जीवन में उनकी दिशा और अस्तित्व के बारे में उनके विचार क्या हैं, भाई-बहनों के प्रति, कर्तव्य के प्रति, परमेश्वर के घर के हितों के प्रति, परमेश्वर के प्रति, सत्य के प्रति, और सकारात्मक चीजों के प्रति उनका रवैया क्या है, और कार्यकलाप के उनके सिद्धांत क्या हैं। इन पक्षों का उपयोग करके मूल रूप से तुम उन्हें निरूपित कर सकोगे। क्या अब भी बहुत देर तक उन्हें देखने और उनके बारे में जानने की कोई जरूरत होगी? नहीं। मसीह-विरोधी केवल अनैतिक संबंधों में संलिप्त नहीं होते, न ही वे लोगों को केवल सताते हैं। उनकी प्रकृति शैतानी होती है और वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। यदि इन धर्मोपदेशों को सुनने के बाद भी तुम लोग मसीह-विरोधियों के स्वभाव का भेद पहचानने में असमर्थ हो और यह नहीं बता सकते कि वे जो प्रकट कर रहे हैं वह मसीह-विरोधी स्वभाव है, तो क्या तुम लोगों ने उन धर्मोपदेशों में से कुछ भी समझा है? तुम धर्म-सिद्धांत को तो याद रखते हो, लेकिन तुम किसी भी चीज की उससे तुलना नहीं कर सकते, और जब तथ्यों का सामना होता है तो तुम्हारा धर्म-सिद्धांत कमजोर और अप्रभावी रहता है, और यह साबित करता है कि तुम लोगों ने उसे नहीं समझा है। यदि तुम इसे उसी समय समझते हो और बाद में कुछ प्रार्थना-पाठ करते हो, यदि तुम अक्सर भाई-बहनों के साथ इन चीजों पर संगति करते हो, इन सत्यों पर ध्यान देते हो और उन पर मनन करते हो, और अक्सर परमेश्वर के सामने प्रार्थना करते हो, तो तुम अधिक लाभ प्राप्त करोगे। परंतु, यदि तुम अपने कर्तव्य में आराम की लालसा करते हो, ढीले हो, तुम पर कोई बोझ नहीं है, तुम्हारी व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ हैं, तुम मनमौजी हो, वास्तव में सत्य से प्रेम नहीं करते, सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हो, और बाहरी मामलों से आकर्षित होते हो, तो तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने में असमर्थ रहोगे। अंत में, ये सत्य जिन पर हमने संगति की है, वे तुम्हारे लिए व्यर्थ हो जाएँगे और जो कुछ बचेगा वह केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत होंगे, और इसका अर्थ होगा कि तुमने यह सब बेमतलब ही सुना है। क्या तुम लोग इन संगतियों को बाद में फिर से सुनते हो? (हाँ।) तुम उन्हें कितनी बार सुन सकते हो? क्या हर बार सुनने पर उनका अलग प्रभाव होता है? क्या तुम बाद में उन पर मनन करते हो? उन पर मनन करने के बाद तुम पर कैसे प्रभाव रह जाते हैं? जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, तो क्या ये उपदेश तुम्हारे लिए तुम्हारे जीवन में लोगों और चीजों का भेद पहचानने के अभ्यास के सिद्धांत और मानदंड बन सकते हैं? (मैं मसीह-विरोधियों के कुछ स्पष्ट स्वभावों और अभिव्यक्तियों की तुलना खुद से कर सकता हूँ, यानी, मैं जो कुछ कहता और करता हूँ उसका स्पष्ट इरादा दूसरों के हृदयों को आकर्षित करना है, और मैं परमेश्वर के उजागर करने वाले वचनों के बारे में सोचता हूँ और जानता हूँ कि मेरे कार्यों की प्रकृति दूसरों के हृदयों को फँसाने वाली है और मैं कोई उद्देश्य पूरा करना चाहता हूँ। परंतु, लोगों का भेद पहचानने के मामले में मैं अभी भी काफी कमजोर हूँ, और मैं उद्देश्य के साथ परमेश्वर के वचनों की तुलना अपने आस-पास के लोगों से नहीं करता।) मुझे बताओ कि जब तुम खुद को स्पष्टता से देखना चाहते हो, तो दर्पण का उपयोग करते हो या मटमैले पानी के पोखर का? (दर्पण का।) दर्पण में देखने का क्या लाभ है? तुम खुद को अधिक स्पष्टता से देख सकते हो। इसलिए, यह बहुत सीमित सी बात है कि तुम केवल अपने आप का भेद पहचान सकते हो; तुम्हें दूसरों का भेद पहचानना भी सीखना चाहिए। दूसरों का भेद पहचानने का मतलब उन्हें जानबूझकर मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित करना नहीं है, बल्कि विभिन्न प्रकार के लोगों की कथनी और करनी को मापने और उनका भेद पहचानने या समझने के सिद्धांत अपनाना है। एक व्यक्ति के लिए यह लाभदायक होता है और ऐसा करने से वह लोगों के साथ सिद्धांतों के अनुसार सही व्यवहार भी कर सकता है, जो दूसरों के साथ अपना कर्तव्य निभाते समय सामंजस्यपूर्ण सहयोग प्राप्त करने में लाभप्रद है। परंतु, केवल स्वयं को जानने पर भरोसा करने वाला व्यक्ति केवल सीमित परिणाम ही पा सकता है। सत्य का अनुसरण करते समय तुम केवल स्वयं को जानने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण का प्रभाव पाने के लिए सत्य को व्यवहार में लाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। केवल एक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने पर तुम कभी सत्य को पूरी तरह नहीं समझ सकोगे या सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकोगे, न ही तुम जीवन में आगे बढ़ पाओगे। यह काफी हद तक केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझने जैसा ही है, और तुम परमेश्वर को जानने में असमर्थ रहोगे। जो लोग वास्तव में सत्य समझते हैं, वे सभी चीजों की असलियत जानते हैं। वे न केवल स्वयं को जानते हैं, बल्कि वे दूसरों का भी भेद पहचान सकते हैं, और वे सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों की असलियत पूरी तरह से जान सकते हैं। केवल इसी तरह से कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह मानक के अनुसार कर सकता है और परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है।

आज मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव की अभिव्यक्तियों पर संगति करने से तुम लोगों को दुष्ट स्वभाव के बारे में कौन सी गहरी और नई समझ मिली है? इस पर संगति करो। (हे परमेश्वर, आज जिस बात ने मुझे सबसे अधिक झिंझोड़ा है, वह है परमेश्वर का यह कहना कि यदि हम मसीह-विरोधियों की तरह कार्य करते हैं और जानबूझकर परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हैं, तो हम जिंदा शैतान हैं। परमेश्वर ने कुछ ऐसे लोगों के बारे में बात की जो किसी का खुद से बेहतर होना बर्दाश्त नहीं कर सकते, और मैंने अपने बारे में विचार किया और महसूस किया कि मुझमें प्रतिस्पर्धा की खास तौर पर गंभीर भावना है, और जब मैं देखती हूँ कि जिस व्यक्ति के साथ मैं अपना कर्तव्य निभाती हूँ, उसमें मुझसे अधिक ताकत है तो मैं परेशान हो जाती हूँ, और मैं हमेशा उनसे आगे निकलना चाहती हूँ। मुझे लगता है कि मेरी दशा परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए जीवित शैतानों जैसी है और मैं पाती हूँ कि इस मामले की प्रकृति मेरी कल्पना से कहीं अधिक गंभीर है, और यह बात मुझे डराती है। मैंने इसे कभी बहुत गहराई से नहीं समझा और अब जब मैं देखती हूँ कि मेरा यह भ्रष्ट स्वभाव कितना गंभीर है तो मैं बहुत परेशान हो जाती हूँ।) अब तुम इसे पहचान गए हो। लोगों के भ्रष्ट स्वभाव क्षणिक प्रकटीकरण जितने सरल नहीं होते; उनका एक मूल कारण और उनसे जुड़ी कुछ चीजें होती हैं जो तुम्हारे लिए उन भ्रष्ट स्वभावों को दूर करना कठिन बना देती हैं, वे हमेशा तुम्हें नियंत्रित करते हैं और तुमसे इतनी ज्यादा भ्रष्टता प्रकट करवाते हैं कि तुम खुद को रोक नहीं पाते। लोग स्पष्ट रूप से नहीं बता पाते कि क्यों वे ऐसे हैं, और इसे नियंत्रित नहीं कर सकते—ये लोगों के स्वभाव हैं। किसी व्यक्ति के लिए इस तरह के भ्रष्ट स्वभाव को स्पष्ट रूप से समझ पाना प्रगति का एक पक्ष है। जब इस तरह के भ्रष्ट स्वभाव की बात आती है, तो यदि तुम सत्य की खोज कर सकते हो और उसके सार की असलियत जान सकते हो, यदि तुम परमेश्वर के न्याय, परीक्षणों और शोधन को स्वीकार कर सकते हो, यदि ऐसा करके तुम एक ऐसी स्थिति प्राप्त कर सकते हो जिसमें तुम सत्य का अभ्यास करो और वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पित हो जाओ, तो यह भ्रष्ट स्वभाव बदल सकता है—यह सत्य की समझ के आधार पर तुम्हारा सत्य को अभ्यास में लाना आरंभ करना है। तुम लोगों में से अधिकांश के लिए अब अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करते समय आत्म-संयम का प्रयोग करना बहुत कठिन है, और इसका मतलब है कि तुमने अभी तक सत्य का अभ्यास करना शुरू नहीं किया है; अपने कर्तव्य-पालन में तुम लोग जो थोड़ा-बहुत करते हो, वह ज्यादातर व्यक्तिगत रुचि, प्राथमिकता और यहाँ तक कि आवेग पर आधारित होता है, और स्वभावगत बदलाव से इसका थोड़ा ही संबंध होता है, ठीक है न? (सही है।) बढ़िया, तुम प्रेरित हुए। और कौन बोलना चाहेगा? (आज परमेश्वर की संगति सुनने के बाद मैं बहुत द्रवित महसूस कर रही हूँ। मैं सोचती थी कि दुष्टता का मतलब कपटपूर्ण ढंग से बोलना, खुलकर न बोलना, हमेशा दिखावा करना और दूसरों को धोखा देना है। दुष्ट स्वभाव क्या होता है, इस पर आज परमेश्वर द्वारा किए गए गहन-विश्लेषण को सुनकर, अब मैं जानती हूँ कि दुष्टता का अर्थ है सत्य और सकारात्मक चीजों का प्रतिरोध करना और उनका विरोध करना, और यदि कोई सत्य और सकारात्मक चीजों का विरोध करता है और प्रतिरोध करता है, तो यह उसका दुष्ट स्वभाव है। दुष्ट स्वभाव के बारे में मेरी समझ बहुत छिछली थी, लेकिन अब जब मैंने परमेश्वर की संगति सुनी है, तो मुझे एक नई समझ मिली है। इसके अलावा, जिस बात ने मुझे बहुत झकझोरा है, वह है परमेश्वर का यह कहना कि कनाडाई फिल्म निर्माण टीम को एक साल के लिए एक ब समूह में रखा जाएगा। यह सुनकर मुझे वास्तव में झटका लगा और परमेश्वर ने इस मामले को जिस तरह से सँभाला उससे मैं परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव देख सकती हूँ। मैं देख पाती हूँ कि उस टीम में एक भी व्यक्ति सत्य का अभ्यास नहीं कर रहा था और इस बात ने परमेश्वर के घर के काम में बहुत बड़ी बाधाएँ पैदा कीं, और यह सब मुझे सचमुच गुस्सा दिलाता है। हाल ही में हमारी टीम के लोग भी इसी तरह की दशा में रहे हैं, यानी, हम पर किसी कर्तव्य का भार नहीं है। जब हमारा कार्यभार पहले से हल्का हो गया, तो हमने अपने कर्तव्य के लिए स्पष्ट योजनाएँ नहीं बनाईं और अपने कर्तव्य में ढिलाई बरती, बस दिन गुजारते रहे। आज परमेश्वर की संगति सुनकर मैं समझ पाई हूँ कि यदि कोई सत्य का अभ्यास नहीं करता है या अपने कर्तव्य में उन्नति का प्रयास नहीं करता, और यदि कोई सत्य के बारे में गंभीर नहीं है, तो परमेश्वर कर्तव्य-निर्वाह के प्रति इस तरह के रवैये को सख्त नापसंद करता है। मैं यह भी समझ पा रही हूँ कि अपने कर्तव्य-निर्वाह के लिए हमें समय और अवसर को सँजोना चाहिए। यदि हम अपने कर्तव्य को सँजोते नहीं, तो जब परमेश्वर द्वारा हमारी प्रतीक्षा किए जाने का समय, और परमेश्वर द्वारा हमें दिए गए अवसर बर्बाद हो जाएँगे, तो वह लोगों पर अपना क्रोध बरसाएगा, और तब तक पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।) ऐसा लगता है कि तुम लोगों पर कुछ दबाव रखने की जरूरत है, है न? (हाँ।) बढ़िया। यह एक वास्तविक समस्या है, और जब तुम लोग इकट्ठा होते हो, तो तुम्हें इस समस्या को हल करने के तरीके पर संगति करनी चाहिए। तुम लोगों को नियमित अंतराल पर मिल-बैठकर संगति करनी चाहिए, एक सारांश निकालना चाहिए और एक नई योजना ढूँढ़नी चाहिए। इस जीवन में मुझ समेत हर व्यक्ति का एक मिशन है, और कोई व्यक्ति यदि अपने मिशन के लिए नहीं जीता, तो उसके लिए इस जीवन को जीने का कोई मूल्य नहीं है। यदि तुम्हारे जीवन जीने का कोई मूल्य नहीं है, तो तुम्हारा जीवन मूल्यहीन है। मैं इसे मूल्यहीन क्यों कहता हूँ? तुम एक चलती-फिरती लाश की तरह जीवन जिओगे; तुम जीने के लायक नहीं होगे। यदि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं करते और अपने मिशन को पूरा नहीं करते, तो तुम परमेश्वर द्वारा दी गई सभी चीजों का आनंद लेने के लायक नहीं हो। यह क्या संकेत करता है? इसका मतलब है कि परमेश्वर किसी भी क्षण तुमसे सब कुछ छीन सकता है। परमेश्वर दे सकता है, और परमेश्वर ले भी सकता है—ऐसा ही है। वास्तव में, यहाँ मौजूद हर व्यक्ति का एक मिशन है, बस तुम सभी के काम अलग-अलग हैं। गैर-विश्वासियों का भी मिशन होता है। उनका मिशन इस दुनिया में सब कुछ खराब करना और समाज में अव्यवस्था पैदा करना है ताकि लोग अधिक से अधिक पीड़ा में जिएँ और आपदाओं के बीच मरें। तुम लोगों का मिशन परमेश्वर के कार्य में सहयोग करना, परमेश्वर के सुसमाचार और नए कार्य को फैलाने के साथ ही साथ सत्य को समझना और उद्धार प्राप्त करना है—यह सर्वाधिक आनंदमय चीज है। मानव इतिहास में इससे अधिक आनंदमय या इससे बड़ा सौभाग्य कुछ भी नहीं रहा है। इससे अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है; यह जीवन की सबसे बड़ी बात है, और यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी बात है। यदि तुम अपना मिशन त्याग देते हो और अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों से विरत हो जाते हो, तो तुम्हारा जीवन मूल्यहीन हो जाएगा, और तुम्हारे लिए जीने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। हो सकता है कि तुम अभी मरो नहीं और अपना शेष जीवन इसी संसार में जियो, फिर भी तुम्हारे लिए जीने का कोई अर्थ या मूल्य नहीं रह जाएगा। मान लो कि कोई व्यक्ति है जिसने कभी सत्य या परमेश्वर के मार्ग के बारे में नहीं सुना, और एक व्यक्ति जो कभी जानता था कि परमेश्वर की प्रबंधन योजना क्या है और परमेश्वर के मार्ग को समझता था, लेकिन अंत में उसे सत्य या जीवन प्राप्त नहीं हुआ, मुझे बताओ कि इस संसार में रहते हुए वे दोनों क्या अपने अंतरतम हृदय में एक जैसा ही महसूस करेंगे? (नहीं।) गैर-विश्वासी अपना मिशन नहीं जानते; उन्हें मिशन की कोई समझ नहीं होती। तुम जानते हो कि तुम्हारा लक्ष्य कहाँ से आया है, तुम जानते हो कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, सभी चीजों का संप्रभु है, तुम जानते हो कि लोग परमेश्वर से आते हैं और उन्हें उसी के पास लौटना चाहिए—यह सब जानते हुए भी क्या तुम इस दुनिया में शांति से रह सकते हो? क्या तुम अभी भी अपना जीवन सहजता से जैसे-तैसे जी सकते हो? नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें यह मिशन दिया है, इसलिए तुम्हें सुसमाचार प्रचार करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए, दूसरों के लिए परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए, वे सभी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए जो किसी मनुष्य को निभानी चाहिए, जिस सत्य को तुम समझते हो, उसे और अपनी अनुभवजन्य गवाही को सभी के लाभ के लिए समर्पित करना चाहिए, और तब परमेश्वर संतुष्ट होगा। लोग वास्तव में बस यही चीजें करने में सक्षम हैं। तुम जब तक थोड़ा कष्ट सह सकते हो, कुछ कीमत चुका सकते हो, और आराम थोड़ा कम कर सकते हो, तब तक तुम इन चीजों को पाने योग्य रहोगे। इस तरह, तुम्हारा परिणाम गैर-विश्वासियों से अलग होगा, और परमेश्वर तुम्हें अलग तरीके से मापेगा—यह बहुत दुर्लभ है! परमेश्वर तुम्हें यह आशीष देता है, और यदि तुम इसे सँजोना नहीं जानते, तो तुम घोर विद्रोही हो। चूँकि तुमने परमेश्वर में आस्था का यह मार्ग चुना है, इसलिए इसे लेकर दो विचार मत रखो, बल्कि एकनिष्ठ होकर अपने हृदय को शांत करो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ। ऐसा न हो कि पछतावा रह जाए। भले ही तुम अभी पतरस जैसा आध्यात्मिक कद न हासिल कर सको और अय्यूब जैसे धार्मिक कृत्य न कर सको, फिर भी अपने कर्तव्य को इस तरीके से करने का प्रयास करो जो मानक स्तर का हो। “अपने कर्तव्य को मानक स्तर के अनुसार निभाने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना, बिना धूर्तता या सुस्ती किए, बिना किसी छिपे हुए इरादे को आश्रय दिए या कुछ भी छिपाए बिना करना, बल्कि वह सब कुछ करना जो आप कर सकते हैं—तब तुम अपना कर्तव्य ऐसे ढंग से निभाओगे जो मानक स्तर पर हो। परमेश्वर लोगों से बहुत कुछ अपेक्षा नहीं करता, है ना? (हाँ, सही है।) क्या इसे हासिल करना आसान है? यह मानवता के दायरे में आने वाली बात है और तुम्हें इसे हासिल करने में सक्षम होना चाहिए। क्या कोई और सवाल है? यदि नहीं, तो हम आज के लिए इस संगति को यहीं समाप्त कर सकते हैं।

10 जुलाई 2019

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