मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक) खंड पाँच
मसीह विरोधियों का स्वभाव दुष्टतापूर्ण होता है; वे न केवल सत्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि वे परमेश्वर का प्रतिरोध भी कर सकते हैं, अपना स्वयं का राज्य स्थापित कर सकते हैं, और वे बिना डिगे परमेश्वर का विरोध करते हैं—यह दुष्ट स्वभाव है। क्या तुम लोगों को दुष्ट स्वभावों की कोई समझ है? अधिकांश लोग शायद इन स्वभावों को पहचानना नहीं जानते, तो चलो एक उदाहरण लेते हैं। कुछ लोग आम तौर पर सामान्य परिस्थितियों में बहुत सामान्य व्यवहार करते हैं : वे दूसरों से बहुत सामान्य तरीके से बात करते हैं और सामान्य तरीके से ही दूसरों से मेलजोल करते हैं, सामान्य लोगों की तरह दिखते हैं और कुछ भी बुरा नहीं करते। परंतु, जब वे सभाओं में आते हैं और परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और सत्य पर संगति करते हैं, तो उनमें से कुछ लोग उसे नहीं सुनना चाहते, कुछ को नींद आ जाती है, कुछ इससे विमुख होते हैं और वे उन्हें यह सब असहनीय लगता है, वे इसे नहीं सुनना चाहते, और कुछ अनजाने ही सो जाते हैं और उन्हें कुछ पता नहीं होता—यह क्या हो रहा है? जब कोई सत्य पर संगति करना शुरू करता है तो इतनी सारी असामान्य घटनाएँ क्यों अभिव्यक्त होती हैं? इनमें से कुछ लोग असामान्य स्थिति में होते हैं, लेकिन कुछ दुष्टता के कारण ऐसा करते हैं। उनके दुष्टात्माओं के वश में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, और कई बार लोग इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाते या स्पष्ट रूप से भेद नहीं कर पाते। मसीह विरोधियों के भीतर दुष्टात्माएँ होती हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वे सत्य से शत्रुता क्यों रखते हैं, तो वे कहते हैं कि उनकी सत्य से शत्रुता नहीं है और इस बात को स्वीकार करने से हठपूर्वक इनकार करते हैं, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि अपने हृदय में वे जानते हैं कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। जब कोई भी परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ रहा होता, तो वे दूसरों के साथ ऐसे मिलते-जुलते हैं जैसे वे सामान्य लोग हों और तुम्हें नहीं पता होता कि उनके भीतर क्या है। परंतु, जब कोई परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, तो वे सुनना नहीं चाहते और उनके हृदय में घृणा पैदा होती है। यह उनकी प्रकृति का अनावृत होना है—वे दुष्टात्माएँ हैं; वे इस तरह की चीज हैं। क्या परमेश्वर के वचनों ने इन लोगों के सार को उजागर किया है या उनकी दुखती रग को छेड़ा है? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। जब वे सभाओं में जाते हैं, तो वे परमेश्वर के वचन पढ़ रहे किसी व्यक्ति को नहीं सुनना चाहते—क्या यह उनका दुष्ट होना नहीं है? “दुष्ट होना” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य के प्रति, सकारात्मक चीजों के प्रति, और सकारात्मक लोगों के प्रति अकारण शत्रुता रखना; उन्हें स्वयं भी नहीं पता होता कि इसका कारण क्या है, उन्हें तो बस वैसे ही काम करना है। दुष्ट होने का यही अर्थ है और सादा शब्दों में, यह केवल नीच होना है। कुछ मसीह-विरोधी कहते हैं, “कोई केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ना शुरू कर दे, और मेरा सुनने का मन ही नहीं होता। मुझे केवल किसी को परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए सुनने की जरूरत है और मुझे घृणा हो जाती है, लेकिन मुझे भी नहीं पता कि ऐसा क्यों है। जब मैं किसी को सत्य से प्रेम करते और उसका अनुसरण करते हुए देखता हूँ, तो मैं उससे तालमेल नहीं बना पाता, मैं उसके खिलाफ खड़ा होना चाहता हूँ, हमेशा उन्हें शाप देना चाहता हूँ, उनकी पीठ पीछे उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहता हूँ और उन्हें बरबाद करना चाहता हूँ।” वे यह भी नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों महसूस करते हैं—यह उनका दुष्ट होना है। इसका वास्तविक कारण क्या है? मसीह-विरोधियों के अंदर सामान्य व्यक्ति की भावना नहीं होती, उनमें सामान्य मानवता नहीं होती—अंतिम विश्लेषण में ऐसा ही होता है। यदि कोई सामान्य व्यक्ति परमेश्वर को सत्य के विभिन्न पहलुओं पर इतना साफ-साफ और सुबोधगम्य तरीके से बोलते हुए सुनता है, तो वह सोचता है, “ऐसे दुष्ट और स्वच्छंद संभोगी युग में, जहाँ सही और गलत में अंतर नहीं किया जा सकता और अच्छे-बुरे को लेकर भ्रम हैं, इतना सारा सत्य और इतने उत्कृष्ट वचनों को सुन पाना कितना मूल्यवान और दुर्लभ है!” यह मूल्यवान क्यों है? परमेश्वर के वचन उन लोगों की इच्छाओं और प्रेरणा को जगाते हैं जिनके पास हृदय और आत्मा दोनों हैं। कौन सी प्रेरणा? वे न्याय और सकारात्मक चीजों के लिए लालायित रहते हैं, वे परमेश्वर के सामने जीने की तीव्र लालसा करते हैं, दुनिया में निष्पक्षता और धार्मिकता चाहते हैं, और चाहते हैं कि परमेश्वर आकर दुनिया पर सत्ता स्थापित करे—यह उन सभी लोगों की पुकार है जो सत्य से प्रेम करते हैं। परंतु, क्या मसीह-विरोधी इन चीजों के लिए लालायित होते हैं? (नहीं।) मसीह-विरोधी किस चीज की लालसा करते हैं? मसीह-विरोधियों के हृदय की गहराइयों में होता है कि “अगर मैं सत्ता में होता, तो मैं उन सभी को नष्ट कर देता जिन्हें मैं नापसंद करता हूँ! जब कोई मसीह के बारे में यह गवाही देता है कि वह प्रकट होकर कार्य करने वाला परमेश्वर है, परमेश्वर के मानवजाति के संप्रभु होने की गवाही देता है, और परमेश्वर के वचनों के सत्य होने, मानवजाति के सर्वोच्च जीवन सिद्धांत होने और मानव अस्तित्व के लिए आधार होने की गवाही देता है, तो मुझे घृणा होती है, नफरत महसूस होती है, और मैं इसे सुनना नहीं चाहता!” यह कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधियों के भीतर गहराई तक समाया होता है। क्या मसीह-विरोधियों का यह स्वभाव नहीं होता? जब तक कोई उनकी आराधना करता है, उनका सम्मान करता है, और उनका अनुसरण करता है, तब तक वे दोस्त होते हैं, वे एक ही दल में होते हैं; यदि कोई हमेशा सत्य पर संगति करता है और परमेश्वर के लिए गवाही देता है, तो मसीह-विरोधी उनसे दूर हो जाते हैं और उनके प्रति घृणा महसूस करते हैं, और यहाँ तक कि उन पर हमला करते हैं, उन्हें बहिष्कृत करते हैं, और उन्हें पीड़ा देते हैं—यह दुष्टता है। जब हम दुष्टता के बारे में बात करते हैं, तो उसका संदर्भ हमेशा शैतान की चालाक योजनाओं से होता है; शैतान जो काम करता है वह दुष्टता है, बड़ा लाल अजगर जो काम करता है वह दुष्टता है, मसीह-विरोधी जो काम करते हैं वह दुष्टता है, और जब हम उनके दुष्ट होने के बारे में बात करते हैं, तो यह मुख्य रूप से सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता रखने और विशेष रूप से सत्य और परमेश्वर का विरोध करने को संदर्भित करता है—यह दुष्टता है, और यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है।
सोचो कि तुमने किन मसीह-विरोधियों का सामना किया है और उनके बारे में जाना है जो इस तरह के दुष्ट स्वभाव का प्रदर्शन करते हैं। एक बार मेरा सामना एक ऐसी कर्कशा महिला से हुआ जिसकी मानवता अत्यधिक दुर्भावनापूर्ण थी। परमेश्वर का घर जब भी महा विनाशों के बारे में उपदेश देता कि वे शीघ्र ही आने वाली हैं, ज्यादा समय नहीं है, और इस पर कि भाई-बहनों को अच्छे कर्मों की तैयारी कैसे करनी चाहिए, उन्हें सत्य का अनुसरण करने के लिए कैसे प्रयास करना चाहिए, उन्हें परमेश्वर के इरादों को पूरा करने के लिए अपने कर्तव्यों को कैसे अच्छी तरह से निभाना चाहिए, और कैसे उन्हें अपने लिए किसी भी पछतावे की वजह नहीं छोड़नी चाहिए, परमेश्वर का घर जब भी इन चीजों का उपदेश करता, यह महिला अपने हृदय में कोसती और सोचती थी, “दुनिया का अंत? जीवन तो बहुत बढ़िया है। तुम्हारे लिए दुनिया का अंत हो सकता है, लेकिन यह मेरे लिए दुनिया का अंत नहीं है! महा विनाश आ भी जाएँ तो भी मुझे और जीना है। अगर किसी को मरना ही है, तो तुम लोग मरो!” यह महिला अतार्किक है या नहीं? जब भी कोई सत्य के इस पहलू पर संगति करता, तो वह अतार्किक हो जाती और उसके हृदय में घृणा पैदा हो जाती, और वह सोचती, “मेरा जीवन जैसा है, ठीक है! मेरे पास बहुत पैसा है, मेरे पास कारें हैं, घर हैं, मेरी बड़ी आय है, मैं अपने स्थानीय क्षेत्र में बड़ी शख्सियत हूँ, और कोई भी मुझे अपमानित करने की हिम्मत नहीं कर सकता। मेरी जीवन दशाएँ इतनी अच्छी हैं, अगर महा विनाश आते हैं, तो क्या मुझे नुकसान नहीं होगा? मैं अभी मरने के लिए तैयार नहीं हूँ!” परमेश्वर के कार्य और इस दुष्ट दुनिया और दुष्ट मानवजाति को नष्ट करने की परमेश्वर की इच्छा के बारे में उसका दृष्टिकोण क्या था? (वह उनके प्रति शत्रुता रखती थी।) परमेश्वर चाहे जो करे, अगर उसमें उसके हित शामिल होते, अगर उससे उसके हितों को नुकसान पहुँचता, तो वह उससे नफरत करती और उसके प्रति शत्रुता रखती, और यह सोचकर उससे सहमत नहीं होती कि, “तुम जो कर रहे हो, वह गलत है!” और वह तुरंत परमेश्वर के कर्मों को नकार देती। इसके अलावा, उसकी सबसे ज्यादा दुष्टतापूर्ण बात यह थी कि उसे निष्पक्षता और धार्मिकता का प्रभुत्व होना पसंद नहीं था; चाहे जिसके पास सत्ता हो, सत्ता चाहे परमेश्वर के पास ही क्यों न हो और निष्पक्षता और धार्मिकता हो, इससे यदि उसके हितों को नुकसान पहुँचता तो वह उससे असहमत रहती—उसके लिए उसके हित परमेश्वर से अधिक महत्वपूर्ण थे। क्या उसके कार्य दानवी प्रकृति के नहीं थे? और जब दानवी प्रकृति काम करती है, तो क्या यह वैसा ही नहीं होता जैसे कि जब कोई दुष्ट आत्मा किसी पर कब्जा कर लेती है तो वह कहता है कि वह परमेश्वर के वचन नहीं सुनना चाहता? (हाँ।) जब भी कोई परमेश्वर के वचन पढ़ता है, तो वह दुष्ट आत्मा कहती है कि वह इसे सुनना नहीं चाहती। जब भी कोई भाई या बहन जल्द ही परमेश्वर के दिन के आने या महा विनाशों के जल्दी आने के बारे में संगति करता है, तो यह कर्कशा स्त्री उससे नफरत करती है और अपने हृदय में उसे कोसती है। वह क्यों कोसती है? यदि परमेश्वर दुनिया को नष्ट करता है, तो वह अपनी सारी संपत्ति खो देगी—कोई भी चीज जब उसके हितों पर असर डालती है, तो वह उसे कोसती है। इसलिए, उसका कोसना उसी प्रकृति का है जैसा कि कोई दुष्ट आत्मा कहे कि वह परमेश्वर के वचनों को नहीं सुनना चाहती। दोनों का साझा गुण यह है कि जब भी कोई सत्य का उल्लेख करता है, अपनी आत्मा की गहराइयों को उघाड़ता है, अपनी कुरूपता, अपनी दुष्टता और अपनी धूर्तता को अनावृत करता है, तो उनके दिलों में नफरत, प्रतिरोध और विरोध उत्पन्न होते हैं, और फिर वे कोसते हैं और अपशब्द बोलते हैं—दुष्ट आत्मा ऐसी ही होती है। बाहर से देखने पर, यह कर्कशा महिला किसी सामान्य व्यक्ति की तरह ही बोलती और काम करती थी, ऐसा नहीं लगता था कि वह किसी दानव के कब्जे में है, फिर भी उसके कार्यों की प्रकृति दानवी ही थी। तुम लोगों को जब मौका मिले, तो तुम कलीसिया के अमीर लोगों से पूछ सकते हो “जब परमेश्वर का दिन आएगा और महा विनाश आएँगे, और तुम्हारी पारिवारिक संपत्ति पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी, तो क्या तुम परेशान होगे? क्या तुम परमेश्वर का दिन आने का पलकें बिछाए इंतजार कर रहे हो? क्या तुम परमेश्वर के सत्ता संभालने और निष्पक्षता और धार्मिकता के प्रभुत्व की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम परमेश्वर द्वारा इस दुष्ट मानवजाति का जल्दी से विनाश किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हो, भले ही तुम भी नष्ट हो जाओ? क्या तुम ऐसा होने देने के लिए तैयार हो?” देखो कि उनका दृष्टिकोण क्या है। कुछ लोग ऐसा घटित होने के लिए तैयार होंगे, और कुछ नहीं। पूरी दुनिया, पूरा ब्रह्मांड, परमेश्वर द्वारा शासित सभी भौतिक चीजें—हम यहाँ अमूर्त चीजों की बात नहीं कर रहे हैं, केवल भौतिक दायरे में आने वाली चीजें : पारिवारिक संपत्ति, कारें, घर, पैसा, इत्यादि—इन सभी चीजों को साथ में लें, तो भी क्या वे परमेश्वर के हाथ में रेत के एक कण के भी बराबर हैं? (नहीं।) हालाँकि, जब लोगों को ये चीजें मिल जाती हैं, तो वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहते और ऐसा महसूस करते हैं कि उनके पास परमेश्वर से विवाद करने की पूँजी है, और कहते हैं, “यदि तुम मेरी पारिवारिक संपत्ति छीन लेते हो तो मैं तुमसे नफरत करूँगा, मैं तुम्हारा विरोध करूँगा, और मैं इस बात को स्वीकार नहीं करूँगा कि तुम परमेश्वर हो!” क्या परमेश्वर का परमेश्वर होना या न होना तुम्हारी स्वीकृति पर निर्भर करता है? (नहीं।) क्या तुम्हारे पास उस थोड़ी-सी पारिवारिक संपत्ति का होना परमेश्वर से विवाद करने की पूँजी है? तुम बहुत अज्ञानी हो! हीरे पृथ्वी की सबसे मूल्यवान चीज हैं। साधारण लोग जब एक कैरेट का हीरा देखते हैं, तो वे चकित हो जाते हैं और कहते हैं, “इतना बड़ा हीरा! इसकी कीमत 10 या 20 हजार अमेरिकी डॉलर होगी!” उन्हें लगता है कि हीरे बहुत कीमती हैं। फिर मैंने एक समाचार सुना जिसमें बताया गया था कि पृथ्वी से थोड़ी ही दूरी पर स्थित एक ग्रह पूरी तरह से हीरे से बना है, और मुझे अचानक कुछ एहसास हुआ : लोग बहुत अदूरदर्शी हैं। जब तुम किसी हीरे को चमकते देखते हो, तो तुम्हें वह बहुत पसंद आता है और तुम्हें लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन जब तुम सुनते हो कि एक पूरा ग्रह हीरे से बना है, तो तुम्हारा क्या नजरिया होता है? हीरे के बारे में तुम्हारा नजरिया बदल जाता है। यानी, तुम्हें जब कोई दूसरी जानकारी मिलती है, तो तुम्हारा क्षितिज अचानक बड़ा हो जाता है, तुम्हें केवल अपने सामने की छोटी-सी जगह ही नहीं दिखती, तुम कुएँ के मेंढक नहीं रह जाते, क्योंकि तुम्हारी जानकारी बढ़ गई है, और तुम्हारी धारणा बदल गई है, विकसित हो गई है। इस दुनिया में जीते हुए, लोग अपने साथ घटित होने वाली हर चीज का और अलग-अलग वातावरण का लगातार सामना करते हैं, लोगों के क्षितिज लगातार बदल रहे हैं, और साथ ही साथ उनके दृष्टिकोण लगातार नवीनीकृत हो रहे हैं। यह सामान्य है, और यही वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से परमेश्वर लोगों को इस जीवन में क्रमिक प्रगति करने, तथा संपूर्ण विश्व एवं परमेश्वर के कर्मों के बारे में अंतर्दृष्टि, परिप्रेक्ष्य और समझ में निरंतर प्रगति करने का कारण बनाता है। तो, अब जब तुम लोगों ने मुझसे यह मामले का वर्णन सुन लिया है, तो तुम्हें इसे कैसे लेना चाहिए? क्या तुम्हें सोचना चाहिए “ओह, पृथ्वी पर लोग इतने अज्ञानी हैं, उनमें अंतर्दृष्टि की कमी है, और वे इतना कम जानते हैं!”? कहने का तात्पर्य यह है कि पूरे ब्रह्मांड के बारे में, पूरी मानव जाति के बारे में, परमेश्वर द्वारा नियंत्रित सभी चीजों के बारे में, परमेश्वर के नियंत्रण की सभी चीजों के बारे में तुम्हारे विचार और अंतर्दृष्टि शायद उस छोटे से हीरे के बारे में तुम्हारी समझ जैसी हो सकती है जिसके मूल्य की तुलना हीरे से बने पूरे ग्रह से की जा रही हो, सही है ना? (हाँ, सही है।) हम इससे क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? पृथ्वी पर, किसी ने चाहे जो उपलब्धि हासिल की हो, उसे कितनी भी प्रसिद्धि मिली हो, उसने कितना भी शानदार प्रदर्शन किया हो, उसे डींगें नहीं हाँकनी चाहिए, क्योंकि मनुष्य बहुत ही तुच्छ हैं और उनका मोल एक पैसे भर भी नहीं है! परमेश्वर ने धरती पर कुछ हीरे तैयार किए हैं और लोग उनके लिए लड़े हैं। क्या लोगों को नहीं पता कि परमेश्वर के हाथ में कितने ग्रह हैं जिनमें हीरे से भी बेहतर चीजें हैं? क्या लोग दयनीय नहीं हैं? (हाँ, हैं।) लोग इतने ही दयनीय हैं; वे बहुत अज्ञानी हैं।
मसीह-विरोधी लोग परमेश्वर का प्रतिरोध किए बिना नहीं रह पाते; वे स्वाभाविक रूप से सत्य और सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं, और वे उन लोगों को भी नहीं छोड़ सकते जो सत्य का अनुसरण करते हैं और सकारात्मक चीजों से प्यार करते हैं, बल्कि ऐसे लोगों की वे निंदा करते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं और उन्हें बहिष्कृत करते हैं। जहाँ तक उनके साथ मिलीभगत करने वालों की बात है, तो वे स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से बँधे हुए हैं, एक-दूसरे की रक्षा करते हैं, एक-दूसरे को आश्रय देते हैं, और एक-दूसरे के तलवे चाटते हैं। इससे हम देख सकते हैं कि मसीह-विरोधी लोग पुनर्जन्म लेकर आए दुष्ट आत्माएँ और गंदे दानव हैं, और उनमें सामान्य मानवता नहीं है। वे जो सत्य सुनते हैं उसे चाहे जितना समझते हों, या वे वचनों और धर्म-सिद्धांतों का कितना भी स्पष्टता से उपदेश देते हों, जब अभ्यास करने की बारी आती है, तो वे केवल सत्य के विरुद्ध जाना और परमेश्वर का प्रतिरोध करना, और अपने रुतबे और हितों की रक्षा करना ही चुनते हैं—यह उनकी दुष्टता है। वे किस तरह से सबसे अधिक दुष्ट हैं? इस तरह से कि वे सत्य से नफरत करते हैं; वे बिना किसी स्पष्टीकरण या कारण के सत्य से नफरत करते हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वे सत्य से नफरत क्यों करते हैं, तो वे शायद इसका उत्तर न दे पाएँ, लेकिन उनका हर कार्य मसीह-विरोधियों के स्वभाव और तरीकों वाला होता है, और उनका हर काम लोगों को गुमराह करता है और फँसाता है, परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी और बाधा पैदा करता है—उनके हर काम का यही परिणाम होता है। हर स्तर पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं या अपने आस-पास के उन साधारण भाई-बहनों को देखो जिन्हें तुम जानते हो और जिनसे तुम्हारा संपर्क है और तुलना करो यह देखने के लिए कि क्या कोई भी सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों से अकारण नफरत करता है और हमेशा उन लोगों पर हमला करना और बहिष्कृत करना चाहता है। वे स्वयं जानते हैं कि यह सही नहीं है, लेकिन वे ऐसा करना बंद करने में असमर्थ हैं, वे इन भाई-बहनों के सामने मधुर शब्द बोलते हैं लेकिन उनकी पीठ पीछे बिल्कुल अलग तरीके से काम करते हैं, अपना दानवी चेहरा दिखाते हैं और उनका विरोध करना शुरू कर देते हैं। यह दुष्टता नहीं है, तो क्या है? मसीह-विरोधियों के बारे में सबसे घृणायोग्य बात क्या है? परमेश्वर के चुने हुए लोगों और उनके आस-पास के लोगों को गुमराह करने और यहाँ तक कि ऊपर वाले को धोखा देने और उनसे छल करने के लिए वे अक्सर सही बातें कहते हैं, और इससे भी आगे, वे प्रशंसात्मक शब्दों से परमेश्वर को धोखा देना चाहते हैं और लोगों का भरोसा जीतना चाहते हैं, और फिर बेलगाम होकर, उतावली में काम करते हैं, और परमेश्वर के घर में मनचाहा करते हैं। वे जानते हैं कि कैसे सही तरीके से बोलना है, कैसे गलत तरीके से बोलना है, और वे जानते हैं कि उन्हें कैसे काम करना चाहिए, कैसे नहीं करना चाहिए, सिद्धांत क्या हैं, सिद्धांत क्या नहीं हैं, सिद्धांतों के खिलाफ जाना क्या है और सिद्धांतों के अनुसार काम करना क्या है। अपने हृदय में इन चीजों के बारे में वे अस्पष्ट नहीं होते, और कुछ तो इन चीजों को बहुत साफ-साफ और सुबोधगम्य तरीके से जानते भी हैं, लेकिन वे सिद्धांतों को कितनी भी अच्छी तरह से समझें और स्पष्ट रूप से जानें, जब वे कुछ करते हैं तो वे सत्य का जरा भी अभ्यास नहीं करते, और पूर्णतया अपनी इच्छाओं के अनुरूप बुरे काम करते हैं। यह उनके शैतानी और मसीह-विरोधी होने की प्रकृति का निर्धारण करता है। वे न केवल सत्य से विमुख हैं और उससे नफरत करते हैं, बल्कि वे अक्सर सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। बड़ा लाल अजगर सत्य और परमेश्वर से नफरत क्यों करता है? यह पूरी तरह से उसकी शैतानी प्रकृति से तय होता है। कुछ भाई-बहनों को इतना सताया और पीछा किया जाता है कि वे अपने घर वापस नहीं लौट सकते, और वे राक्षस और शैतान कहते हैं कि “ये लोग अब सामान्य रूप से नहीं रह रहे हैं; उन्होंने अपने परिवारों को त्याग दिया है।” वास्तव में, वे घर नहीं जा सकते क्योंकि बड़ा लाल अजगर उन्हें सता रहा होता है। इस तरह की चीजें बहुत होती हैं। तुम लोगों ने ऐसी और कौन-सी बातें सुनीं हैं? (बड़ा लाल अजगर कहता है कि अगर लोग परमेश्वर के वचनों को बहुत अधिक पढ़ते हैं तो उनका दिमाग खराब हो जाता है।) बड़ा लाल अजगर कहता है, “परमेश्वर के वचनों से उनका मत परिवर्तन हो जाता है; वे परमेश्वरित कर दिए गए हैं।” यह सत्य को उलटना है। साफ तौर पर यह बड़ा लाल अजगर ही है जो लोगों को भ्रष्ट करता है और उनका दिमाग खराब करता है, और फिर भी यह पलटकर कहता है कि परमेश्वर के वचन लोगों का मत परिवर्तन करते हैं—ये दानव बहुत दुष्ट हैं! बड़ा लाल अजगर दूसरों द्वारा किए गए सभी अच्छे कामों पर अपना दावा करता है और अपने बुरे कामों के लिए दूसरों को दोषी ठहराता है। मसीह-विरोधी भी यही करते हैं; उनके तरीके बिल्कुल बड़े लाल अजगर, शैतान जैसे ही हैं। वे सही मायने में शैतान के सेवक हैं!
क्या अब हमने मसीह-विरोधियों की दुष्ट, धूर्त और कपटी अभिव्यक्तियों पर संगति करना काफी हद तक समाप्त कर लिया है? क्या मेरी आज की संगति उससे अलग और अधिक वास्तविक नहीं है जिसे तुम लोग शाब्दिक तौर पर समझ सकते हो? परमेश्वर के घर ने हाल के वर्षों में कई वीडियो बनाए हैं, और कुछ भजन और फिल्में वगैरह सहित, वे सभी ऑनलाइन अपलोड कर दी गई हैं। मुख्य भूमि चीन में एक मसीह-विरोधी ने इन चीजों को ऑनलाइन देखने के बाद कहा कि “तुमने ये कार्यक्रम विदेश में बनाए हैं और हम चीन में भी ऐसा कर सकते हैं।” फिर उसने एक भर्ती अभियान चलाकर कुछ लोगों का एक गिरोह बनाया, और बड़े लाल अजगर के देश में एक गायन मंडली शुरू की। अंत में, इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। मसीह-विरोधी को ऐसा करने की क्या जरूरत थी? क्या उसका कोई उद्देश्य था? (हाँ।) उसका उद्देश्य क्या था? (लोगों पर नियंत्रण करना।) उसका उद्देश्य लोगों पर नियंत्रण करने की इच्छा करने जैसा सरल नहीं था। वह अपना खुद का गुट बनाना चाहता था। उसका विचार था कि “परमेश्वर के घर में गायन मंडली हो सकती है, तो मैं भी कर सकता हूँ! अगर मैं सफल हो गया, तो मेरा अपना गुट तैयार हो जाएगा। मेरे एक इशारे पर बहुत से लोग मेरे साथ आ जाएँगे!” इस तरह वह परमेश्वर की कलीसिया की जगह ले सकता था। क्या यही वह लक्ष्य नहीं था जिसे वह हासिल करना चाहता था? लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि बड़े लाल अजगर ने उसे जकड़ लिया और उसका खयाली पुलाव धरा का धरा रह गया। परमेश्वर का घर यह कार्य सुनिश्चित सुरक्षा के अंतर्गत करता है। क्या बड़े लाल अजगर द्वारा शासित देश में उस मसीह-विरोधी के लिए ऐसी स्थिति मौजूद थी? वहाँ ऐसी स्थिति नहीं थी, फिर भी वह दिखावा करना चाहता था। वह बहुत अच्छी तरह से दिखावा भी नहीं कर सका, और अंततः चीजें उसके लिए गलत हो गईं। कुछ साल पहले, एक अन्य समूह ने भी एक कार्यक्रम तैयार कर उसे ऑनलाइन डाल दिया था। वे नृत्य करने के साथ पुरानी धुनें गाते थे और उन्होंने जातीय अल्पसंख्यक शैली के फूलदार छापे वाले कपड़े पहने थे। उनका कार्यक्रम बहुत पारंपरिक और पुराने किस्म का था। मुझे बताओ कि क्या ये मसीह-विरोधी सिर्फ बाधा नहीं पैदा करते? (हाँ, ऐसा ही है।) गैर-विश्वासियों और धार्मिक लोगों को वास्तविक स्थिति का पता नहीं था और वे मानते थे कि ये चीजें वास्तव में कलीसिया ने की थीं। मसीह-विरोधी हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करते हैं; वे न केवल दुष्ट हैं, बल्कि मूर्ख भी हैं। वे मूर्ख क्यों हैं? क्या इसलिए कि वे इतने दुष्ट हैं कि वे दुष्टता के कारण मूर्ख बन गए हैं? नहीं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति में कितनी काबिलियत है, अगर वह कुछ सत्य समझता है, तो चीजों को करते समय भले ही उसके पास आगे का कोई रास्ता न हो और वह यह न जानता हो कि उसके लिए क्या करना उचित है और क्या अनुचित, फिर भी उसके मन में एक आधाररेखा होती है : वह लापरवाही से या आँख मूँदकर काम नहीं करेगा। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) परंतु, जो लोग सत्य नहीं समझते और जो अकारण ही बहुत अहंकारी हैं, वे मनमाने ढंग से काम करते हैं। उनके लिए मनमाने ढंग से काम करने का क्या मतलब है? इस तरह के लोगों में तर्क की कोई समझ नहीं होती और तर्क की समझ न रखने वाले लोग मुद्दों पर विचार नहीं कर सकते। “विचार करने” से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि शुरुआती चरणों में क्या करना है, क्या तैयारी करनी है, कार्रवाई करते समय किन चीजों की जरूरत होगी, यह कार्यक्रम क्यों बनाया जाना चाहिए और कार्यक्रम बनने के बाद उससे कितने लोग प्रभावित हो सकते हैं, कितने लोगों की आध्यात्मिक उन्नति की जा सकती है और क्या इसका कोई दुष्परिणाम या कोई कमी होती है—इन सबका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इस मूल्यांकन प्रक्रिया को “विचार करना” कहा जाता है। क्या ये मूर्ख लोग चीजों पर विचार कर सकते हैं? (नहीं।) जो लोग मुद्दों पर विचार नहीं कर सकते, वे तर्कहीन हैं; क्या उन्हें सत्य की कोई समझ है? निश्चित रूप से नहीं। यदि कोई वास्तव में कुछ सत्य समझता है, तो उसकी तार्किक समझ अधिक स्पष्ट और अधिक सुदृढ़ हो जाएगी। वे इस बारे में अधिक स्पष्ट हो सकते हैं कि क्या सकारात्मक है, क्या नकारात्मक है, क्या सही है, क्या गलत है, और फलाँ-फलाँ सिद्धांत कौन-से दायरे में आता है; अर्थात्, वे चाहे जो करें, वे कुछ अच्छा करें या बुरा करें, उनके हृदय में एक मानक होता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई तुमसे कहे कि सड़क पर नंगे दौड़ो, तो क्या तुम ऐसा करोगे? (नहीं।) यदि कोई तुम्हें मारे तो क्या ऐसा करोगे? कोई तुम्हें दस हजार युआन दे तो क्या तुम ऐसा करोगे? (ऐसा करना शर्मनाक होगा। मैं ऐसा नहीं कर सकता।) यह जानना कि ऐसा करना शर्मनाक बात होगी, यह एक तरह की सोच है, एक तरह का फैसला और एक तरह का रवैया है जो तर्कसंगत होने से पैदा होता है, यानी, केवल इस तर्कसंगति के साथ ही तुम ऐसी सोच और ऐसा रवैया रख पाते हो। इसलिए, तुम्हें पैसों का लालच दिया जाए या क्रूरता से प्रताड़ित किया जाए और सताया जाए या कैसे भी मजबूर किया जाए, तुम फिर भी ऐसा नहीं करोगे, तब तुम बिल्कुल अप्रभावित रहोगे और दृढ़ रहोगे। मसीह-विरोधी सत्य नहीं समझते, और इसीलिए वे जो कुछ भी करते हैं उसकी कोई अवधारणा नहीं होती। यहाँ “अवधारणा” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि उन्हें नहीं पता होता कि परमेश्वर के पक्ष में गवाही देने के लिए क्या करना चाहिए। इस मसीह-विरोधी को विश्वास था कि उसका हृदय बहुत ही प्रेमपूर्ण है, उसने एक गायन मंडली का वीडियो बनाने के लिए समूह बनाया और बहुत सारा पैसा खर्च किया और जोखिम भी मोल लिया। मुख्य भूमि चीन की स्थिति विदेशों की तुलना में बुरी है, ऐसे में कुछ गलत हुआ तो क्या होगा? क्या उसने इस पर विचार किया? हो सकता है कि उसने स्थितियों पर किसी हद तक विचार किया हो, लेकिन उसे नहीं पता था कि कौन से कार्यक्रम बनाने चाहिए या क्या परिणाम प्राप्त करने चाहिए—वह इसे बिल्कुल भी नहीं समझ पाया। वह क्यों नहीं समझ पाया? उसमें यह तर्कसंगतता नहीं थी। तर्कसंगतता कैसे आती है? केवल सत्य को समझने पर ही लोगों का विवेक धीरे-धीरे स्पष्ट और ठोस हो सकता है। मसीह-विरोधी लोगों की प्रकृति सत्य से घृणा करने वाली होती है, वे स्वाभाविक रूप से सकारात्मक चीजों का विरोध करते हैं, और अपने अंतरतम हृदय में वे कभी भी सत्य से प्रेम नहीं कर पाते, तो क्या वे सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) अगर वे सत्य नहीं समझ सकते, तो क्या वे सामान्य मानवता वाली सोच रख सकते हैं? उनमें यह कभी नहीं हो सकता। क्या सामान्य मानवीय सोच से रहित लोगों में तर्कसंगतता होती है? नहीं, उनमें यह नहीं होता। मसीह-विरोधी जब कुछ करते और कहते हैं, तो उनका परिप्रेक्ष्य और उनके कृत्य शैतानों और दुष्ट आत्माओं द्वारा की जाने वाली चीजों से अलग नहीं होते। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि कोई अंतर नहीं होता? उदाहरण के लिए, किसी को वास्तव में उपदेश देना और दिखावा करना बहुत पसंद है, तो वह हमेशा ऐसे लोगों की तलाश में रहता है जो उसका उपदेश सुनें। लोग भले उसे सुनना पसंद न करें, फिर भी वह उपदेश देता रहता है; जब दूसरे लोग उसके प्रति घृणा महसूस करते हैं, तो उसे पता नहीं चलता, और वह उन लोगों को ध्यान से देखने की कोशिश नहीं करता, वह यह नहीं देखता कि उन लोगों को क्या चाहिए, और वह केवल अपने आप को संतुष्ट करता है। क्या यह लज्जाजनक नहीं है? यह लज्जाजनक है और वह तर्कशून्य है। क्या इस तर्कशून्यता और शैतान तथा बुरी आत्माओं के कब्जे में फँसे किसी व्यक्ति के अनियमित और मनमाने भाषण और कार्यों के बीच कोई अंतर है? हालाँकि वह नंगा होकर सड़क पर पागलों की तरह दौड़ते मानसिक रोगी जैसा नहीं दिखता, फिर भी तुम देख सकते हो कि वह तर्कहीन तरीके से काम करता है। जब उसे भाई-बहनों का सिंचन करने, या सुसमाचार प्रचार करने या कोई कर्तव्य निभाने के लिए कहा जाता है, तो वह पूरी तरह से सिद्धांतहीन होता है और बस अपनी मर्जी से बेपरवाही से काम करता है। कुछ लोग ऐसे हैं जो 20 साल से सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं और लेकिन एक भी व्यक्ति हासिल नहीं कर सके हैं, फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं। क्या ऐसे लोग हैं? हाँ, ऐसे लोग हैं। वे बिल्कुल सिद्धांतहीन हैं, वे जो कुछ भी करते हैं उसमें गड़बड़ी करते हैं, और फिर भी वे अगुआ बन कर अन्य लोगों की अगुआई करना चाहते हैं—निश्चित ही ऐसे बहुत से लोग हैं। वे इतने सालों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हैं, उन्होंने परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं, और उन्होंने बहुत से उपदेश सुने हैं, लेकिन वे एक भी सत्य नहीं समझते हैं। तो, उनमें समझ की कमी किस चीज से संबंधित है? किस कारण वे कुछ समझ नहीं पाते? क्या इसलिए कि उनमें काबिलियत और समझने की क्षमता बहुत कम है, या उनका चरित्र खराब है और वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं? (इसका संबंध उनके सार से है।) यह उनके सार से क्यों संबंधित है? (क्योंकि उनका सार दुष्ट है, वे पवित्र आत्मा का कार्य नहीं प्राप्त कर सकते हैं, और परमेश्वर ऐसे लोगों पर कार्य नहीं करता, इसलिए चाहे वे परमेश्वर के वचनों को कैसे भी खाएँ और पिएँ, वे कभी भी सत्य नहीं समझ पाएँगे।) यह एक वस्तुनिष्ठ कारण है। वस्तुनिष्ठ कारण निश्चित रूप से यह है कि पवित्र आत्मा उन पर कार्य नहीं करता और इसलिए निश्चित ही वे कुछ भी नहीं समझ पाएँगे—यह बात सब पर लागू होती है। एक व्यक्तिपरक कारण भी है, और वह क्या है? (ऐसे लोग सत्य से घृणा करते हैं।) और जो लोग सत्य से घृणा करते हैं, वे सत्य को कैसे देखते हैं? (अपने प्रतिपक्ष के रूप में।) वे सत्य को अपना प्रतिपक्षी मानते हैं; यह एक पहलू है। और क्या? क्या वे सत्य के व्यावहारिक पक्ष को समझने में सक्षम हैं? बिल्कुल नहीं। अगर वे इस स्तर को भी नहीं समझ सकते, तो बताओ कि क्या वे सत्य समझने में सक्षम हैं? कतई नहीं, वे सत्य नहीं समझ सकते। वस्तुनिष्ठ कारण यह है कि ऐसे लोग पवित्र आत्मा के कार्यों को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, और परमेश्वर उनका प्रबोधन नहीं करता है। व्यक्तिपरक कारण यह है कि वे परमेश्वर, सत्य और सकारात्मक चीजों से शत्रुता रखते हैं, और उनकी निगाह में कोई भी सकारात्मक चीज सकारात्मक नहीं है। तो वे अपने हृदय में किन चीजों को सकारात्मक मानते हैं? वे ऐसी चीजें हैं जिनकी वकालत शैतान करता है—ऐसी चीजें जो दुष्टतापूर्ण, खोखली और अस्पष्ट हैं। तो, क्या ये दुष्ट लोग जो सत्य से घृणा करते हैं, सत्य समझने में सक्षम हैं? वे इसे कभी नहीं समझ सकते क्योंकि वे इसे स्वीकार नहीं करते। अब, बताओ कि क्या ऐसे लोगों के साथ सत्य पर संगति करने का कोई अर्थ है? जब तुम उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हो, तो क्या वे उन्हें सुनने के इच्छुक हो सकते हैं? वे सभी गैर-विश्वासी और दानव हैं, तो वे परमेश्वर के वचन कैसे सुन सकते हैं? कुछ लोग इस मामले की तह तक नहीं जा पाते और कहते हैं, “जब मैं उनके साथ सत्य पर संगति करता हूँ तो वे क्यों नहीं समझते? क्या वे मनुष्य नहीं हैं?” तुम उलझन में पड़ जाते हो और उनको कुछ नहीं समझा पाते। कुछ लोगों की बातें तुम सुन ही नहीं सकते और जो काम वे करते हैं वे बिल्कुल ऊटपटाँग होते हैं—वे गैर-विश्वासी, दानव होते हैं और हर तरह के विवेक से परे होते हैं। मैं ये शब्द क्यों कहता हूँ, “हर तरह के विवेक से परे”? तुम मानते हो कि परमेश्वर का वजूद है और परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है—क्या ये सकारात्मक चीजें नहीं हैं? (हैं।) और ये लोग क्या मानते हैं? “इस तरह से परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है? उसमें कुछ उल्लेखनीय नहीं है।” क्या वे हर तरह के विवेक से परे नहीं हैं? (हाँ हैं।) ऐसे लोगों के साथ संवाद करने का कोई तरीका नहीं होता; वे अलग ही किस्म के हैं, जंगली जानवर और हर तरह के विवेक से परे हैं। जानवर कभी नहीं समझते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं या सत्य क्या है, इसलिए उनके साथ संवाद करने का कोई तरीका नहीं होता। तुम्हारा उनके साथ संवाद करने में असमर्थ होने का तथ्य कोई समय की समस्या नहीं है, न ही इसका संबंध इस दिशा में तुम्हारे कठिन प्रयासों से है, बल्कि इससे है कि वे समझने में सक्षम ही नहीं हैं, इसलिए उनसे और क्या कहना है? इन लोगों के भीतर वास्तव में क्या है? उनके दिलों में कोई ईमानदारी, नैतिक शुचिता और अच्छाई नहीं है, केवल दुष्टता है, वे दुष्टता से भरे हुए हैं। यही कारण है कि ये लोग सभी हर तरह के विवेक से परे हैं और उन्हें नहीं बचाया जा सकता।
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