मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक) खंड तीन

मसीह-विरोधियों के दुष्ट, धूर्त और कपटी होने का गहन-विश्लेषण

I. सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों की शत्रुता और नफरत का गहन-विश्लेषण

हम मसीह-विरोधियों की छठी अभिव्यक्ति का गहन-विश्लेषण खत्म कर चुके हैं, और अब हम सातवीं अभिव्यक्ति का गहन विश्लेषण शुरू करेंगे : मसीह-विरोधियों का दुष्ट, धूर्त और कपटी होना। कुछ लोग कहते हैं, “यह देखते हुए कि हम मसीह-विरोधियों का गहन-विश्लेषण और उन्हें उजागर कर रहे हैं, तो क्या यह कहना बहुत नरमी नहीं होगी कि वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं? किसमें थोड़ा-बहुत दुष्ट या कपटी स्वभाव नहीं होता? आम लोगों में ये भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, इसलिए अगर हम इस तरह से मसीह-विरोधियों को उजागर और गहन-विश्लेषण करते हैं, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि हर कोई मसीह-विरोधी है?” क्या तुम लोगों में से कोई ऐसा सोचता है? अगर तुम में से कोई वाकई ऐसा सोचता है, तो वह गलत है। क्या मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट और आम लोगों में इन भ्रष्ट स्वभावों के खुलासे में कोई अंतर है? निश्चित रूप से अंतर है, अन्यथा हम इन स्वभावों को मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों में शामिल नहीं करते। आज, मैं पहले मुख्य रूप से इस अंतर पर संगति करूँगा, फिर मसीह विरोधियों के दुष्ट, धूर्त और कपटी स्वभाव के कुछ वास्तविक उदाहरणों और विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बात करूँगा। “दुष्ट,” “धूर्त,” और “कपटी” शब्दों का शाब्दिक अर्थ समझना आसान है। कठिनाई मसीह विरोधियों और आम लोगों में इन प्रकार की अभिव्यक्तियों के बीच आवश्यक अंतर को समझने में है, हम इस प्रकार के व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में क्यों निरूपित करते हैं जिसमें ये भ्रष्ट स्वभाव और सार होते हैं, और मसीह-विरोधियों और आम भ्रष्ट मानवों के सार में क्या अंतर होता है। पहली बात यह है कि मसीह-विरोधी सत्य और परमेश्वर के प्रति खुले तौर पर वैर रखते हैं; वे परमेश्वर से उसके चुने हुए लोगों, उसके पद और लोगों के हृदय के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिलों को जीतने और उन्हें गुमराह करने और निष्क्रिय करने के लिए उनके इर्द-गिर्द कई तरह की चीजें भी करते हैं। संक्षेप में, मसीह विरोधियों के कामों और व्यवहार की प्रकृति, चाहे वह खुले तौर पर हो या गुप्त, हमेशा परमेश्वर की विरोधी होती है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और कि वह परमेश्वर है, फिर भी चाहे जितनी संगति की जाए वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और सत्य को नहीं स्वीकार करते। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी कुछ लोगों को अपने जाल में फँसाते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं और नियंत्रित करते हैं। वे इन लोगों से अपनी आज्ञा मनवाते और अनुसरण करवाते हैं, और फिर वे धोखा देकर कलीसिया से सभी प्रकार की पुस्तकें और सामग्री प्राप्त करते हैं, और अपने स्वयं की कलीसिया स्थापित करते हैं और अपने राज्य स्थापित करते हैं, ताकि वे अपने अनुयायियों द्वारा अनुसरण और पूजा किए जाने का आनंद ले सकें, इसके बाद वे कलीसिया पर पलना शुरू कर देते हैं। इस तरह का व्यवहार स्पष्ट रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ उनका होड़ करना है—क्या यह मसीह-विरोधियों का लक्षण नहीं है? क्या इस प्रत्यक्ष लक्षण के आधार पर इन लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करना अन्यायपूर्ण है? यह बिल्कुल अन्यायपूर्ण नहीं है—यह निरूपण अत्यंत सटीक है! कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कलीसिया के भीतर गुट बनाते हैं और कलीसिया को तोड़ते हैं। वे लगातार कलीसिया के भीतर अपनी ताकतों को संवर्द्धित करते हैं, और जो उनसे असहमत होते हैं, उन्हें बाहर कर देते हैं। फिर वे उन लोगों को अपने साथ रखते हैं जो उनकी बात सुनते हैं और उनका अनुसरण करते हैं, ताकि वे अपनी सेना बना सकें और सभी से अपना कहा मनवा सकें। क्या यह उनका अपना राज्य स्थापित करने जैसा नहीं है? ऊपरवाले की कार्य व्यवस्था या आवश्यकताओं की अनदेखी करते हुए वे उन्हें पूरा करने से इनकार करते हैं और इसके बजाय अपने तरीके से काम करते हैं, जिससे उनके अनुयायी ऊपरवाले का खुले आम विरोध करते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर की अपेक्षा है कि वास्तविक कार्य करने में अक्षम अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत बर्खास्त कर दिया जाए। परंतु, मसीह-विरोधी सोचेगा, “हालाँकि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन वे मेरा समर्थन करते हैं और मुझे स्वीकार करते हैं, और मैं उन्हें विकसित करता रहा हूँ। ऐसे में ऊपरवाला जब तक मुझे न हटा दे, मैं किसी हाल में इन लोगों को बर्खास्त करने नहीं दे सकता।” बताओ कि क्या वह कलीसिया उस मसीह-विरोधी के नियंत्रण में नहीं है? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को मसीह-विरोधी आगे जाने नहीं देता और उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है। जब कार्य व्यवस्थाएँ लंबे समय के लिए जारी की गई हों, और हर कलीसिया ने सूचना दी हो कि उन्हें कैसे लागू किया गया है, उदाहरण के लिए, किसके कर्तव्य को समायोजित किया गया है या किन हालातों के कारण उसे बर्खास्त किया गया है, फिर भी मसीह-विरोधी कभी कोई सूचना नहीं देता और कभी भी किसी के कर्तव्य आवंटन को समायोजित नहीं करता। कुछ लोग हमेशा अपने कर्तव्यों में बेपरवाही बरतते हैं जिससे कलीसिया का काम गंभीर रूप से प्रभावित होता है, लेकिन मसीह-विरोधी उनके कर्तव्य आवंटन को समायोजित नहीं करता। यहाँ तक कि जब ऊपरवाला मसीह-विरोधी को सीधे इन लोगों को बर्खास्त करने के लिए कहता है, तो भी वह लंबे समय तक कोई जवाब नहीं देता। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? जब ऊपरवाला मसीह-विरोधी को कार्य व्यवस्थाएँ लागू करने के लिए कहता है या किसी चीज के बारे में पूछताछ करने की कोशिश करता है, तो मसीह-विरोधी के साथ उसका संवाद प्रतिक्रियाहीन छोर पर पहुँच जाता है। कलीसिया में अन्य भाई-बहनों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता, उन्हें कोई संदेश नहीं मिलते, और ऊपरवाले से उनका कोई सम्पर्क नहीं होता—कलीसिया पूरी तरह से उस एक व्यक्ति के नियंत्रण में होता है। इस तरह से काम करने वाले मसीह-विरोधी की प्रकृति क्या है? यह मसीह-विरोधी द्वारा कलीसिया पर कब्जा करना है। मसीह-विरोधी कलीसिया में गुट बनाते हैं, वे अपना राज्य स्थापित करते हैं, वे परमेश्वर के घर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। लोगों से पवित्र आत्मा का काम छूट जाता है, वे परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं, वहाँ शांति या आनंद नहीं मिलता है, वे परमेश्वर में विश्वास खो देते हैं, और अपने कर्तव्यों को पूरी ऊर्जा के साथ निभाना बंद कर देते हैं। वे नकारात्मक और भ्रष्ट भी हो जाते हैं, और उनका जीवन गतिहीन हो जाता है। ये सभी मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह और नियंत्रित किए जाने के परिणाम होते हैं। अब मुख्य भूमि चीन के सभी ग्राम्य क्षेत्रों में कई नकली अगुआओं और मसीह-विरोधी लोगों को उजागर और बर्खास्त किया गया है। उनमें कुछ नकली अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे हैं जिन्होंने कोई वास्तविक कार्य ही नहीं किया। उन सभी में मसीह-विरोधियों वाली अभिव्यक्तियाँ थीं, और उन सभी में मसीह-विरोधियों वाला स्वभाव था, फिर भी वे मसीह-विरोधी होने के स्तर तक नहीं पहुँचे थे, इसलिए उन्हें सिर्फ बर्खास्त किया गया। परंतु, कुछ लोग अपना ही कानून चलाते थे, हर चीज पर उनका अंतिम निर्णय होता था, उन्होंने कार्य व्यवस्थाओं का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए अपने तरीके से काम किया, और इसीलिए उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया गया और निष्कासित कर दिया गया। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने और उनसे निपटने का यह तरीका अद्भुत है! मैं जब इन सूचना-पत्रों को देखता हूँ तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है, क्योंकि इससे पता चलता है कि परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों ने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बाद थोड़ा-बहुत सत्य समझ लिया है। मैं क्यों कहता हूँ कि उन्होंने थोड़ा-बहुत सत्य समझ लिया है? ऐसा इसलिए है क्योंकि इन धर्मोपदेशों को सुनने के बाद, वे उन्हें जीवन में सामने आने वाले मामलों से जोड़ सकते हैं और उन पर लागू कर सकते हैं। इन सत्यों को सुनने पर हो सकता है कि वे उनको उस क्षण वास्तव में न समझ सकें, लेकिन बाद में उन्हें लोगों और घटनाओं के बारे में समझ आ जाती है। वे ऐसे सिद्धांत और मानक पा लेते हैं जिनसे वे उन लोगों का मापन कर सकते हैं जो अपने नियम बना लेते हैं, जो वास्तविक कार्य नहीं करते, जो वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते, जो अपने कर्तव्यों में लापरवाह हैं और बोझ नहीं उठाते, और जिनमें उत्तरदायित्व बोध नहीं है। क्या यह प्रगति नहीं है? यह प्रगति है। यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पास कद है, उन्होंने केवल सत्य को थोड़ा सा समझा है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों में नकली नेतृत्वकर्ताओं, मसीह-विरोधियों और वास्तविक कार्य न करने वालों तथा अपने कार्य में अक्षम लोगों के बारे में कुछ समझ है—क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह अच्छी बात है; यह प्रदर्शित करती है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और उनमें समझ है, और वे परमेश्वर के पक्ष में खड़े हो सकते हैं और कलीसिया के काम की रक्षा कर सकते हैं—यह जश्न मनाने लायक बात है। मसीह-विरोधियों के लिए उन लोगों को गुमराह करना संभव नहीं है जो सत्य को समझते हैं। वे उन लोगों को गुमराह कर सकते हैं जो कुछ समय के लिए सत्य को नहीं समझते और भेद नहीं पहचान पाते हैं, लेकिन ऐसा कब तक संभव है? मुझे भरोसा है कि, जितना ज्यादा लोग सत्य को समझेंगे और जितना ज्यादा उनका परमेश्वर में विश्वास होगा, उन्हें मसीह-विरोधियों के बंधनों और बाधाओं को नकारने और उनसे छुटकारा पाने में उतना ही कम समय लगेगा। इसलिए, हमारे लिए मसीह-विरोधियों की विभिन्न विस्तृत अभिव्यक्तियों पर संगति करना अभी भी जरूरी है, अन्यथा अगर लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होंगे, तो उनके लिए उद्धार प्राप्त करना बहुत मुश्किल होगा।

अभी-अभी मैंने मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और ऐसे लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करने के कारणों को सरल शब्दों में समझाया है। तो, मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट की अभिव्यक्तियों और सामान्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के बीच क्या अंतर है? क्या तुम्हें इसकी कोई समझ है? मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ, और इस का संबंध निश्चित रूप से दुष्टता, धूर्तता और कपट से है। बाइबल में अय्यूब की पुस्तक में परमेश्वर और शैतान के बीच का एक वार्तालाप दर्ज है। परमेश्वर शैतान से पूछता है, “तू कहाँ से आता है?” (अय्यूब 1:7)। और शैतान कैसे उत्तर देता है? (“पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ” (अय्यूब 1:7)।) अब तक भी लोग यह नहीं समझ पाए हैं कि शैतान का इससे क्या मतलब था—यह उसके स्वभाव का प्रतिबिंब है। शैतान के कहने का जो मतलब था उसे लोग समझ क्यों नहीं पाते? ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम अभी भी यह नहीं समझ पाए हो कि शैतान वास्तव में कहाँ से आता है। शैतान ने जो कहा उसमें समस्या क्या है? वह एक तरह का स्वभाव है, और वह है दुष्ट स्वभाव। अभी उस पंक्ति के बारे में बात करना समाप्त करते हैं और विश्लेषण करते हैं कि उसके बाद क्या होता है। शैतान परमेश्वर के सामने आता है और परमेश्वर के प्रश्न का उत्तर देने के बाद परमेश्वर शैतान से कहता है, “क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है” (अय्यूब 1:8)। परमेश्वर ने जो कहा, उसे सुनकर किसी सामान्य व्यक्ति की आमतौर पर क्या प्रतिक्रिया होगी? (वे देखना चाहेंगे कि अय्यूब ने कैसे कार्य किया।) लोग तुरंत सोचेंगे, “अय्यूब परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था और वह एक खरा व्यक्ति था। मैं वास्तव में उसकी प्रशंसा करता हूँ!” यह प्रशंसा कहाँ से आती है? यह सामान्य मानवता के भीतर सकारात्मक चीजों के लिए एक तरह की लालसा, प्रेम और तड़प से उत्पन्न होती है। परंतु, यदि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते, तो तुम इन शब्दों को सुनकर क्या प्रकट करोगे? (तिरस्कार।) तुम इन शब्दों का तिरस्कार करोगे और उनकी अनदेखी करोगे। कुछ लोग सोचेंगे, “परमेश्वर का भय मानो और बुराई से दूर रहो? यह भय क्या है? ‘बुराई से दूर रहो’ का क्या अर्थ है? आजकल कोई खरा मनुष्य कहाँ मिल सकता है?” इन शब्दों को सुनने के बाद भी लगता है कि उन्हें कुछ महसूस नहीं हुआ, तो क्या उनके हृदय इन चीजों के लिए तरसते और लालायित हैं? (नहीं।) क्या वे इन चीजों की इच्छा रखते हैं? (नहीं।) क्या वे यह समझने का प्रयास करना चाहते हैं कि इसके भीतर के विवरण आखिर क्या हैं? क्या उनकी यह इच्छा है? नहीं, उनकी ऐसी आकांक्षा नहीं है; उनके हृदय में यह जानने की इच्छा नहीं है। एक अन्य प्रकार का भी व्यक्ति होता है जो जब सुनता है कि परमेश्वर ने कहा कि अय्यूब उसका भय मानता था और बुराई से दूर रहता था, कि वह एक खरा आदमी था, तो असामान्य प्रतिक्रिया करता है। वे कहते हैं, “हुंह? अय्यूब परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था, और वह खरा आदमी था—क्या ऐसे किसी व्यक्ति का कोई अस्तित्व है? मुझे दिखाओ कि वह कैसे खरा था—मुझे विश्वास नहीं होता!” क्या इस तरह के लोग, जिनके ऐसे विचार और अभिव्यक्तियाँ हों, वास्तव में परमेश्वर के कहे वचनों पर विश्वास करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं? (नहीं।) वे वास्तव में उन पर न विश्वास करते हैं, न ही उन्हें स्वीकार करते हैं। पहले तो एक बात तय है कि वे स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर ने जो कहा है वह सत्य, विश्वसनीय और सटीक है, वे परमेश्वर के वचनों को सत्य, सृष्टिकर्ता के वचन और सम्पूर्ण मानवजाति के लिए सर्वोच्च सत्य के रूप में नहीं मानते। चूँकि वे परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते, तो वे परमेश्वर को कैसे मानते हैं? चूँकि वे परमेश्वर के वचनों को नकारते हैं, तो क्या वे संभवतः स्वीकार कर सकते हैं कि परमेश्वर परमेश्वर है? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों को नकारते हैं, परमेश्वर के दृष्टिकोण को नकारते हैं, और परमेश्वर के कथनों को नकारते हैं, जिसका निहितार्थ है कि वे परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं और इस बात को नकारते हैं कि वही सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता है। यह बात तय है। एक और बात है : इस तरह के लोगों का परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के प्रति क्या रवैया है, और उनके रवैये के पीछे कौन सा स्वभाव होता है? अय्यूब के बारे में उनका क्या नजरिया है? “ऐसा होना संभव नहीं है! क्या दुनिया में अब भी ऐसा कोई हो सकता है? यह सिर्फ एक ऐतिहासिक कथा है। ऐसा कोई व्यक्ति इस दुनिया में नहीं होना चाहिए। केवल विश्वासघाती और बुरे, कुकर्मी और दुष्टों को ही जीना चाहिए। अय्यूब जैसे लोगों को जीना नहीं मर जाना चाहिए!” यह कैसा स्वभाव है? (दुष्टतापूर्ण।) यह शैतान की दुष्टता है। क्या मानवजाति में अब ऐसे लोग हैं जिनका स्वभाव बिल्कुल शैतान जैसा ही दुष्ट है? यह सुन कर कि परमेश्वर ने कहा, “अय्यूब मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला है; वह खरा मनुष्य है” किस तरह के लोग सहमत नहीं होते, इस बात को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं, और यहाँ तक कि मन ही मन शाप भी देते हैं? क्या हम कह सकते हैं कि ऐसी चीजों को उत्पन्न करने वाले शैतान के किस्म के हैं? (हाँ।) तो, क्या इन लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करना बात को बहुत बढ़ाने जैसा है? (नहीं।) जब परमेश्वर ने शैतान से स्पष्टता और गंभीरता से कहा, “अय्यूब मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला है; वह खरा मनुष्य है,” तो शैतान का रवैया क्या था? उसने इस तथ्य पर संदेह किया। इसका एक पहलू यह है कि शैतान को संदेह था कि अय्यूब वैसा मनुष्य है और उसे यह संभव नहीं लगा। ऐसा इसलिए था क्योंकि शैतान दुष्ट है और मानता है कि सभी चीजों में दुष्टता है; उसने यह नहीं माना कि मानवजाति में कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो इतना अद्भुत हो, जिसे परमेश्वर वास्तव में खरे के रूप में देखे—शैतान ने इस तथ्य पर विश्वास नहीं किया। दूसरा पहलू यह है कि जब परमेश्वर ने अय्यूब जैसे अच्छे व्यक्ति को पा लिया, तो शैतान ने अपने दिल में क्या महसूस किया? सबसे पहले, बिल्कुल सतही स्तर पर, उसने यह सोचते हुए ईर्ष्या महसूस की कि “कोई खरा मनुष्य कैसे हो सकता है? क्या मैंने पूरी मानवजाति को भ्रष्ट नहीं कर दिया है? लोग पूरे तौर पर मेरे जैसे ही हैं, उन सभी ने तुम्हें धोखा दिया है। वे तुम्हारा अनुसरण कैसे कर सकते हैं?” यदि हम मानवीय भाषा में इसका अनुवाद करें, तो यह उसकी मानसिकता थी। शैतान को विश्वास नहीं था कि ऐसा संभव है, और उसके न मानने के दो पहलू हैं : पहला यह कि शैतान चाहता था कि अय्यूब का अस्तित्व न हो, दूसरा यह कि शैतान ने सोचा, “अगर उसका अस्तित्व है भी, तो मैं उसे समाप्त कर दूँगा।” क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं थी? (हाँ।) यह शैतान की दुष्टता थी। वह नहीं चाहता था कि कोई सचमुच अच्छा मनुष्य, कोई ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता हो और बुराई से दूर रहता हो, परमेश्वर के सामने आए, वह नहीं चाहता था कि अय्यूब जैसा कोई व्यक्ति दुनिया में रहे, वह नहीं चाहता था कि ऐसा किसी ऐसे व्यक्ति का अस्तित्व हो, और वह तो यह भी नहीं चाहता था कि ऐसा कोई व्यक्ति पैदा हो—यह शैतान की दुष्टता थी। शैतान की दुष्टता का स्रोत क्या है? उसका स्वभाव सार दुष्ट है। इसके अलावा, शैतान सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुभाव रखता है। “सभी सकारात्मक चीजों” में क्या शामिल है? इसमें वे लोग शामिल हैं जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं और खरे हैं। अय्यूब के प्रति शत्रुभाव रखने से, क्या शैतान परमेश्वर के प्रति शत्रुता नहीं दिखा रहा था? (हाँ, दिखा रहा था।) वास्तव में चीजें ऐसी ही थीं। जब शैतान अय्यूब के प्रति शत्रुता दिखा रहा था, वह परमेश्वर से भी घृणा कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि कोई भी परमेश्वर की आराधना करे—इसी से वह सबसे अधिक खुश होता था और यही उसकी सबसे बड़ी इच्छा थी। और फिर, ये सभी तथ्य उसकी आशा के विपरीत निकले, जो वह देखना चाहता था और जिसकी उसे लालसा थी, उसके बिल्कुल विपरीत निकले। ऐसी अद्भुत बात उसकी आँखों के सामने हुई, और फिर भी उसकी दुष्टता ने, उसकी क्रूरता ने, उसे परमेश्वर से एक और बार बात करने के लिए प्रेरित किया। उसके और परमेश्वर के बीच का संवाद आगे है। क्या कोई इसका मूल पाठ जानता है? (“क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” (अय्यूब 1:9)।) शैतान ने सीधी बात नहीं की, उसके शब्दों में एक षड्यंत्र था। उसने कहा, “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” ताकि तुम लोग इस बारे में सोचो। बताओ कि क्या परमेश्वर जानता था कि शैतान का क्या मतलब था? (हाँ।) परमेश्वर जानता था। परमेश्वर शैतान को खूब अच्छी तरह से जानता था और मामले को बिल्कुल स्पष्टता से देख सकता था। जैसे ही उसने कहा, “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” परमेश्वर जान गया कि वह क्या करेगा। जब परमेश्वर ने देखा कि वह कुछ करना चाहता है, तो उसने जान लिया कि अवसर आ गया है, कि अय्यूब को परखने के लिए शैतान का उपयोग करने का समय आ गया है। तो, उनमें से कौन बुद्धिमान था? (परमेश्वर।) शैतान यह नहीं जानता था और उसने सोचा, “क्या परमेश्वर ने मुझे अय्यूब को छूने की अनुमति नहीं दी? मुझे कभी उम्मीद नहीं थी कि वह इस बात के लिए सहमत होगा।” इस कहानी को हम यहीं छोड़ते हैं। मूल रूप से सभी जानते हैं कि आगे क्या हुआ।

आओ, अब शैतान ने जो कहा उसमें उसकी अभिव्यक्तियों और स्वभाव का गहन-विश्लेषण करें, साथ ही यह भी देखें कि ऐसा कहने में उसकी प्रेरणा और इरादे क्या थे। सबसे पहले, शैतान ने परमेश्वर की कही बातों पर विश्वास नहीं किया, अर्थात्, उसने परमेश्वर के कहे वचनों की विषय-वस्तु और तथ्यों के प्रति संदेहपूर्ण रवैया अपनाया। परमेश्वर की कही बातों पर संदेह करने के साथ-साथ, वह परमेश्वर की कही बातों को नकारने के लिए किसी तरीके का उपयोग करना चाहता था, लेकिन वह सीधे तौर पर नकार नहीं सकता था। इसमें शैतान की दुष्टता कहाँ थी? यह पहले से अधिक कपटपूर्ण तरीका अपनाने में निहित थी जिसमें वह अपने मन में कह रहा था कि “मैं सीधे तौर पर तेरी बात नहीं नकारूँगा। मैं तुझे इसकी अनुमति देने को मजबूर करूँगा कि मैं अय्यूब से दुर्व्यवहार करूँ, और फिर उसे तुझे नकारने पर मजबूर करूँगा। यही सबसे अच्छा परिणाम होगा। क्या तब तू विफल नहीं हो जाएगा?” उसका यही उद्देश्य था। परमेश्वर के साथ अपने संवाद और अपने विचारों में शैतान ने कैसा स्वभाव प्रकट किया? स्पष्टतः उसका स्वभाव दुष्टतापूर्ण था। शैतान की दुष्टता और सामान्य भ्रष्ट मानवजाति की दुष्टता में क्या अंतर है? यहाँ शैतान कौन सी भूमिका निभा रहा था? वह सीधे अय्यूब को खोज कर उसे परमेश्वर को नकारने के लिए मजबूर नहीं कर रहा था। यदि अय्यूब पलट कर मुकाबला करता तो शैतान को शर्मिंदा होना पड़ता, इसलिए शैतान ने वह काम नहीं किया। तो, शैतान ने क्या किया? शैतान ने जो किया उसकी ठीक-ठीक प्रेरणा, साधन और चालें क्या थीं? (दूसरे के माध्यम से हमला करना।) तुम वास्तव में शैतान को कम आँकते हो; उसकी दुष्टता को मनुष्य नहीं आँक सकते। दुनिया की सभी न्यायपूर्ण और अद्भुत सकारात्मक चीजें शैतान को अद्भुत नहीं लगतीं—वह इन सभी चीजों को दुष्टतापूर्ण और गंदा बनाना चाहता है। शैतान और भ्रष्ट मनुष्यों के बीच सबसे बड़ा अंतर क्या है? सबसे बड़ा अंतर यह है कि वह अच्छी तरह से जानता है कि परमेश्वर सत्य है, कि परमेश्वर के पास बुद्धि और अधिकार है, और कि परमेश्वर ही सभी सकारात्मक चीजों का स्रोत है, फिर भी वह इन चीजों को स्वीकार नहीं करता है, और इसके बजाय वह इन सभी चीजों से विकर्षित होता है, उनसे घृणा और नफरत करता है, और यहाँ तक कि उन सभी चीजों को कोसता भी है। परंतु, भ्रष्ट मनुष्य प्रायः शैतान द्वारा गुमराह किए जाते हैं, और वे नहीं जानते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं, या कौन सी चीजें न्यायसंगत हैं, और वे इससे भी कम यह जानते हैं कि सत्य क्या है या परमेश्वर की अपेक्षा क्या है। यद्यपि वे थोड़े भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं, लेकिन ये दुष्ट और कपटी भ्रष्ट स्वभाव तब प्रकट होते हैं जब लोग मूर्ख, अज्ञानी, चेतनाशून्य, अंधे और ठगे हुए होते हों, और सत्य को न समझते हों, जबकि शैतान सब कुछ जानते-बूझते गलत काम करता है। हम उसे शैतान क्यों कहते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह आध्यात्मिक क्षेत्र में और पूरे ब्रह्मांड में परमेश्वर द्वारा किए गए सभी कामों को देख सकता है और यह सब देखते हुए भी परमेश्वर की मौजूदगी को नकारता है, परमेश्वर के सत्य होने को नकारता है, और इस तथ्य को नकारता है कि सम्पूर्ण मानवजाति पर परमेश्वर की संप्रभुता है। परमेश्वर का अनुसरण चाहे जितने लोग करें, परमेश्वर चाहे कितना भी महान कार्य करे, परमेश्वर के पास चाहे जितना महान अधिकार हो, या परमेश्वर कितना भी सर्वशक्तिमान हो, शैतान फिर भी इन सब को नकारता है और बिना किसी लज्जा या सम्मान के वह मानवजाति को पंगु, अंधा और भ्रष्ट बनाता है, मानवजाति को गुमराह करने और उसका अनुसरण करने के लिए बाध्य करने को सभी प्रकार के तरीकों का उपयोग करता है। मैंने अभी क्या कहा जो शैतान की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ थीं? वह परमेश्वर के विरुद्ध चलने का विशेषज्ञ है, वह परमेश्वर की कही बातों को स्वीकार नहीं करता भले ही उसके शब्द कितने ही सही क्यों न हों, वह स्वीकार नहीं करता कि परमेश्वर के वचन सकारात्मक बातें और सत्य हैं, और यह चीजों को उलट देता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने लोगों से मनुष्य की रचना के इतिहास को लिपिबद्ध करने को कहा, और मनुष्य की रचना के तथ्यों से संबंधित दस्तावेजों के अलावा, ऐसे सबूतों के निशान भी हैं जिन्हें पाया जा सकता है। और शैतान ने क्या किया? इसने “डार्विनवाद” को गढ़ा और कहा कि मनुष्य का विकास वानरों से हुआ, उसने एक चित्र बनाया जिसमें दिखाया गया कि वानरों का क्रमिक विकास चार पैरों वाले प्राणियों से दो पैरों वाले प्राणियों में हुआ जो सीधे खड़े होकर चलते हैं, उसने इस विधर्म और भ्रांति को गढ़ा। परिणामस्वरूप, भले ही कुछ लोग अब विकासवाद को नकारते हों, फिर भी बहुत से लोग नहीं मानते कि मनुष्य परमेश्वर से आया है। क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) यही शैतान की दुष्टता है। वह परमेश्वर को कितना भी महान कार्य करते देखे, शैतान फिर भी अंत तक परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा होता है और उसका विरोध करता है। परमेश्वर हर दिन शैतान को न नष्ट करता है, न ही उसका समाधान करता है, वह लगातार परमेश्वर का विरोध करता है। यहीं पर शैतान की दुष्टता निहित है, और इसका मूल कारण यह है कि उसका सार दुष्टतापूर्ण है।

अय्यूब की किताब में दी गई शैतान और परमेश्वर की बातचीत में क्या शैतान की अभिव्यक्तियों और मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के बीच कोई संबंध दिखता है? (हाँ।) कैसा संबंध? मैं इस अंश का उल्लेख क्यों कर रहा हूँ? मसीह विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट एक ऐसा विषय है जिससे अक्सर तुम्हारा सामना होता है, और ये चीजें वास्तविक अभिव्यक्तियाँ भी हैं जिन्हें तुम अक्सर देखते हो, फिर मैं मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के अलग से गहन-विश्लेषण के लिए एक ही मद के रूप में क्यों सूचीबद्ध कर रहा हूँ? हमने अभी शैतान की दुष्टता के बारे में बात की कि वह कैसे विशेष रूप से खुद को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करता है, तो क्या मसीह-विरोधी भी ऐसा नहीं करते? (वे करते हैं।) मसीह विरोधियों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? कोई धर्मोपदेश सुनने के बाद मसीह-विरोधी जानते हैं कि उपदेश अच्छा है और वे उन शब्दों को समझ सकते हैं। इसके अलावा, उनके पास कुछ काबिलियत होती है, और एक बार जब वे उन शब्दों को समझ लेते हैं, तो जिन चीजों को वे पसंद करते हैं और जो उनकी धारणा के अनुरूप होती हैं, उन्हें याद करने का प्रयास करते हैं। फिर, उनके आधार पर वे अपने स्वयं के धर्मोपदेश संसाधित और तैयार करते हैं जिसे सुन कर औरों को बहुत अच्छा लगता है। हालाँकि, यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्ति नहीं है; फिर उनकी प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? इस तरह के लोग सत्य को समझ सकते हैं, तो मुझे बताओ कि क्या उनमें सही और गलत के बीच अंतर बताने की क्षमता होती है? (हाँ।) हाँ, उनमें यह क्षमता होती है, वे मूर्ख नहीं होते। उदाहरण के लिए, वे अक्सर भाई-बहनों के संपर्क में आते हैं और मन ही मन जानते हैं कि कौन लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और कौन नहीं। वे अपने हृदय में जानते हैं कि कौन खुद को समर्पित कर सकता है और चीजों को त्याग सकता है, कौन अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा सकता है, और कौन निश्चित रूप से सत्य का अभ्यास करने और सामान्य मामलों का सामना होने पर सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का विकल्प चुन सकता है। लेकिन क्या वे ऐसे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार कर सकते हैं? (नहीं।) वे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जिसका संबंध मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों से होता है? उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति उनके लिए कोई खतरा नहीं है, तब वे सोचते हैं, “तुम सत्य का अनुसरण करते हो और तुम्हारी योग्यता मुझसे ज्यादा है, लेकिन मैं तुम्हें पदोन्नति नहीं दूँगा। तुम्हें पदोन्नति न देने का मतलब यह नहीं है कि मैं तुम्हें अनदेखा कर दूँगा। यदि तुम मेरी खूब चापलूसी करोगे, तो मैं तुम्हें अपने साथ रखूँगा। अगर तुम कभी मेरी चापलूसी नहीं करते और हमेशा इतने ईमानदार रहते हो, हमेशा निष्पक्ष तरीके से काम करते हो और सिद्धांतों का पालन करते हो, तो तुम मेरे किसी भी बुरे काम को पहचान जाओगे और मेरी असलियत समझ जाओगे, और तुम मेरे साथ सत्य पर संगति करोगे ताकि मैं पश्चात्ताप करूँ, और इससे मुझे बहुत शर्मसार होना पड़ेगा। यदि तुम मेरे साथ दखलंदाजी नहीं करोगे, तो ठीक है। यदि तुम हमेशा मेरे साथ दखलंदाजी करोगे, तो मैं तुम्हें खत्म कर दूँगा!” उनकी योजना इसी प्रकार की होती है, और वे अपने मन में इसी तरह की गणना करते हैं। यह कैसा स्वभाव है? उनके दो स्वभाव हैं : कुटिलता और क्रूरता। ऐसा काम करने और इस व्यक्ति को पीड़ा पहुँचाने से पहले वे इसी तरह सोचते हैं—यह दुष्टता है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और उसमें न्यायबोध है, लेकिन वे उसे पदोन्नत नहीं करते, वे उस व्यक्ति के करीब नहीं आते, और अपने हृदय में वे उस व्यक्ति से सावधान रहते और विकर्षण महसूस करते हैं—यह कैसा स्वभाव है? यह दुष्टता है। यह दुष्टता किस बात को संदर्भित करती है? ऐसा नहीं है कि मसीह-विरोधी यह नहीं समझते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं और नकारात्मक चीजें क्या हैं; वे जानते हैं कि सही मार्ग क्या है, बात सिर्फ इतनी है कि वे उसका पालन नहीं करते, वे सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे किसी की नहीं सुनते हैं, और दुष्टता का मार्ग चुनते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ महिलाएँ अच्छे नैतिक आचरण वाली महिला बनने और उचित जीवन जीने के लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि इसके बजाय वेश्यालय भाग जाना चाहती हैं। इन दिनों कोई भी न तो उनकी दलाली करता है, न उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करता है, फिर भी वेश्यालय क्यों जाना है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे दुष्ट हैं और ऐसे ही बनने के लिए पैदा हुई हैं। मसीह-विरोधी इसी तरह के कचरे हैं, और हम उनका गहन-विश्लेषण करते हैं और उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करते हैं क्योंकि मसीह-विरोधी की दुष्टता कभी भी सामान्य लोगों की ईमानदारी और अच्छाई नहीं बन सकती—यह उनके और भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोगों के बीच का अंतर है। चाहे उनकी काट-छाँट हो, या कलीसिया उन्हें दंडित करने के लिए प्रशासनिक उपायों का उपयोग करे, या भाई-बहन उनका विरोध करने और उन्हें उजागर करने के लिए उठ खड़े हों, पर कुछ भी उनके कार्यकलाप के मूल इरादों और सिद्धांतों को नहीं बदल सकता है—ऐसा कभी नहीं हो सकता। कोई भी उन्हें बदल नहीं सकता, कोई भी उनके हृदय को द्रवित नहीं कर सकता और उनके स्व-आचरण के विचारों या सिद्धांतों को त्यागने के लिए मजबूर नहीं कर सकता; तुम उन्हें बदल नहीं सकते—वे मसीह-विरोधी हैं। क्या तुमने सोचा था कि मसीह-विरोधी इतने दुष्ट हैं कि वे नहीं जानते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? वे जानते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी ऊपरवाले को किसी मुद्दे की या काम के बारे में सूचना देता है, तो वह बहुत मधुर शब्दों का इस्तेमाल करता है, और जब तुम इन सूचना विवरणों को पढ़ते हो, तो तुम्हें लगता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छी क्षमता वाला होना चाहिए। हालाँकि, जब तुम्हें जमीनी वास्तविकता का पता चलता है, तो पाते हो कि वे अपने काम में हमेशा कार्य व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं, वे सत्य का अनुसरण करने वालों पर अत्याचार करते हैं, और कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं—वे मसीह-विरोधी हैं। कुछ मसीह-विरोधियों ने हमारे कलीसिया की वेबसाइट पर टिप्पणियाँ की हैं और, जब तुम उनकी पृष्ठभूमि या उत्पत्ति नहीं जानते, तो केवल यह देखते हो कि उनकी टिप्पणियाँ कितनी सुघड़ता से व्यक्त की गई हैं, खास तौर पर अच्छी लेखन शैली में स्पष्टता से लिखी गई पंक्तियाँ, और तुम्हें लगता है कि वह व्यक्ति अच्छी काबिलियत वाला होगा। उनके बारे में जानकारी करने के बाद ही तुम्हें पता चलता है कि वे मसीह-विरोधी हैं, कि उन्होंने बहुत बुरे काम किए थे और तीन साल पहले उन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया था। वे परमेश्वर के घर की वेबसाइट पर लगातार संदेश पोस्ट करते रहते थे ताकि ऊपरवाले का ध्यान उन पर जाए, ताकि उन्हें पदोन्नत किया जाए और उन्हें सुधार का मौका दिया जाए; यह सब ऐसा ही है। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी आशीष पाना चाहते हैं? (हाँ।) वे वास्तव में आशीष पाना चाहते हैं; उन्हें मृत्यु से डर लगता है और नष्ट होने से डर लगता है।

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