मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक) खंड दो

अगली बार हम थोड़ा आसान विषय पर संगति करेंगे। क्या तुम लोगों को कहानियाँ सुनना पसंद है? (हाँ।) फिर मैं तुम लोगों को एक कहानी सुनाऊँगा। मुझे तुम लोगों को कौन-सी कहानी सुनानी चाहिए? तुम लोग किस तरह के विषय पर सुनना पसंद करोगे? तुम लोग कहानी सुनना पसंद करते हो, या वर्तमान विषयों या राजनीति पर चर्चा करने, अथवा इतिहास के बारे में सुनना पसंद करते हो? हम उन चीजों के बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि उनके बारे में बात करना व्यर्थ है। मैं परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों के व्यवहार, लोगों के स्वभाव और दैनिक जीवन में लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली विभिन्न स्थितियों के बारे में एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ।

परिशिष्ट :

पूँजी पर एक चर्चा :
“मुझे क्या!”

पाँच लोग आपस में बातचीत कर रहे थे और उनमें से एक जिसका नाम मिस्टर यूनि था उसने कहा, “विश्वविद्यालय में बिताए समय में, मुझे कैंपस जीवन की सबसे ज्यादा याद आती है। कैंपस में हर तरह के पौधे थे, और वसंत और शरद ऋतु के दौरान, वहाँ का दृश्य बहुत सुंदर होता था, इसे देखकर मुझे सुकून और खुशी महसूस होती थी। और उस समय, मैं नौजवान था, आकांक्षाओं से भरा और मासूम था और मुझ पर कोई ज्यादा दबाव नहीं था। मेरे विश्वविद्यालय के तीन वर्षों के दौरान जीवन बहुत आसान था। अगर मैं दस या बीस साल पीछे जा सकता और कैंपस के जीवन में लौट सकता, तो मुझे लगता है कि यह इस जीवन में सबसे अच्छी बात होती...।” यह था पहला व्यक्ति, जिसका नाम मिस्टर यूनि था। यूनि का क्या मतलब है? इसका मतलब एक विश्वविद्यालय का छात्र है; यहीं से मिस्टर यूनि नाम आया है। अभी मिस्टर यूनि अपने शानदार जीवन को पूरी तरह से याद कर इसका आनंद भी नहीं ले पाया था कि मिस्टर ग्रेजुएट बोल पड़ा, “क्या तीन साल के कोर्स को विश्वविद्यालय का कोर्स माना जा सकता है? यह तो एक व्यावसायिक कोर्स है। विश्वविद्यालय में बैचलर की डिग्री आमतौर पर चार साल की होती है; केवल उसे ही विश्वविद्यालय का कोर्स माना जा सकता है। मैं विश्वविद्यालय में चार साल तक था। अपने विश्वविद्यालय के वर्षों के दौरान, मैंने देखा कि प्रतिभा का बाजार विश्वविद्यालय के छात्रों से खचाखच भरा हुआ था और नौकरी ढूँढ़ना काफी मुश्किल काम था। तो पोस्टग्रेजुएट होने से पहले, मैंने इसके बारे में सोचा था और पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने का फैसला किया। उस समय ग्रेजुएशन करने वाले कोई ज्यादा छात्र नहीं थे तो नौकरी ढूँढ़ना आसान होता। जैसा मुझे उम्मीद थी, अपनी ग्रेजुएट डिग्री पूरी होने के बाद मुझे एक अच्छी आय वाली बढ़िया नौकरी मिली, और मैं बहुत अच्छे ढंग से जी रहा था। यह एक ग्रेजुएट छात्र होने का परिणाम था।” यह सुनकर तुम्हें क्या संदेश मिलता है? मिस्टर यूनि ने एक व्यावसायिक कोर्स से ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की थी, जबकि मिस्टर ग्रेजुएट ने एक ग्रेजुएट कोर्स से ग्रेजुएशन की थी और फिर उन्हें एक अच्छी आय वाली नौकरी मिली थी और समाज में उनका रुतबा और सम्मान भी था। मिस्टर ग्रेजुएट खुशी-खुशी यह सब बातें कर रहे थे कि तभी मिस्टर मैनेजर ने कहा, “तुम तो अभी जवान हो, बच्चे! तुम्हारे पास समाज में कोई अनुभव नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए पढ़ाई करते हो या डॉक्टरेट की डिग्री के लिए, विश्वविद्यालय में एक अच्छा विषय चुनने से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू करने से पहले, मैंने बाजार के बारे में शोध किया और देखा कि सभी आकारों के व्यवसायों को प्रबंधन कौशल वाले लोगों की आवश्यकता होती है, इसलिए जब मैं विश्वविद्यालय गया तो मैंने बाजार प्रबंधन की पढ़ाई करने का निर्णय लिया और जब मैं अपनी ग्रेजुएशन समाप्त करूँगा तो मैं किसी कंपनी के शीर्ष प्रबंधकों में से एक बनूँगा, जिसे सीईओ भी कहा जाता है। जब मैंने ग्रेजुएशन पूरी की, तो यह एक ऐसा समय था जब सभी आकारों के विभिन्न व्यवसायों को मेरे जैसे प्रतिभाशाली लोगों की आवश्यकता थी। बाजार बहुत बड़ा था और जब मैंने नौकरी के लिए आवेदन करना शुरू किया, तो कई कंपनियों ने मुझे तुरंत काम पर रखने की कोशिश की। आखिरकार, मैं अपनी पसंद के अनुसार चुनने के लिए स्वतंत्र था। मैंने सबसे अच्छी विदेशी कंपनी चुनी और जल्द ही एक उच्च आय वाला प्रबंधक बन गया। पाँच वर्षों के भीतर मैंने अपनी खुद की कार खरीद ली थी। काफी चालाकी दिखाई, है ना? देखा मैं कितने अच्छे विकल्प चुन सकता हूँ?” जब मिस्टर मैनेजर यह सब बातें कर रहा था, तो उसके पहले बोल चुके दोनों लोग थोड़ी विद्रोही मुद्रा महसूस कर रहे थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने अपने दिलों में सोचा, “वह एक उच्च स्तरीय प्रबंधक है और काफी दूरदर्शी भी है। उसके पास हमसे कहीं अधिक पूँजी है। भले ही हम थोड़े विद्रोही महसूस कर रहे हैं, लेकिन हम कुछ नहीं कहेंगे। हम बस अपनी हार स्वीकार करेंगे।” जब मिस्टर मैनेजर ने बोलना समाप्त किया, तो वह खुद से बहुत खुश था और सोच रहा था कि ये युवा लोग उनसे कम अनुभवी हैं। वह इतना खुश हो ही रहा था कि, तभी मिस्टर अधिकारी नामक एक व्यक्ति ने बोलना शुरू किया। मिस्टर अधिकारी ने बाकी तीनों की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। उसने इत्मीनान से अपनी चाय पकड़ी, उसका एक घूँट लिया, अपने आसपास देखा, और कहा, “आजकल तो हर कोई विश्वविद्यालय का छात्र बना हुआ है। कौन है जो यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं ले सकता? बस विश्वविद्यालय जाना ही काफी नहीं है, और सिर्फ व्यापार करना भी पर्याप्त नहीं है। अगर तुम एक शीर्ष प्रबंधक भी हो, तब भी यह कोई जीवनभर के लिए नौकरी नहीं है, यह स्थिर नहीं है। मुख्य चीज एक सुरक्षित नौकरी ढूँढ़ना है और फिर तुम जीवनभर के लिए सेट हो जाओगे!” जब दूसरों ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “जीवनभर के लिए नौकरी? आजकल कौन ऐसी चीजों के बारे में बातें करता है? यह तो अतीत की बात है!” मिस्टर अधिकारी ने कहा, “अतीत की बात? रहने दो, तुम ऐसा केवल इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम सभी लोग दूरदर्शी नहीं हो और तुम लोगों में अंतर्दृष्टि की कमी है! जब तुम्हें एक जीवनभर के लिए नौकरी मिलती है, तो भले ही तुम्हारी आय थोड़ी कम हो, लेकिन यह एक स्थिर जीवन सुनिश्चित करता है, और तुम्हारे पास अधिकार होता है और तुम हर जगह अपनी टाँग अड़ा सकते हो! जब मैंने लोक सेवक बनने के लिए परीक्षा दी तो ज्यादातर लोगों को यह बात समझ में नहीं आई और उन्होंने पूछा कि इतना युवा होकर क्यों कोई सरकारी एजेंसियों के लिए काम करना चाहेगा। एक लोक सेवक बनने की परीक्षा पास करने के बाद, मेरे जो मित्र और रिश्तेदार नौकरी की तलाश में थे या किसी मुकदमेबाजी में उलझे हुए थे, वे मुझसे संपर्क करने लगे। अब यह तो ढेर सारा अधिकार हुआ, है ना? भले ही आय बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन मुझे आवास और एक कार प्रदान की गई थी। मुझे मिल रहे लाभ तुम लोगों से बेहतर हैं। इसके अलावा, जब मैं बाहर खाने-पीने और खरीदारी करने के लिए जाता हूँ तो मैं अपने खर्चों की प्रतिपूर्ति भी प्राप्त कर सकता हूँ, और मैं टैक्सी या विमान से भी मुफ्त में यात्रा कर सकता हूँ। तुम लोगों की नौकरियाँ उतनी अच्छी नहीं हैं; तुम लोगों के पास अस्थिर नौकरियाँ हैं। मैंने तुम लोगों से बहुत अच्छा किया है!” उसकी यह सब बातें सुनने के बाद दूसरे लोग असहज महसूस करने लगे और उन्होंने कहा, “बेशक तुम्हें मिलने वाले लाभ काफी अच्छे हैं, लेकिन तुम्हारी छवि बहुत खराब है। तुम हर जगह धोखाधड़ी करते रहते हो और एक अत्याचारी की तरह काम करते हो और लोगों की सेवा भी नहीं करते हो। तुम सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचाते हो और हर तरह के बुरे काम करते हो।” मिस्टर अधिकारी ने जवाब दिया, “तो क्या हुआ अगर मेरी छवि खराब है? मुझे तो इससे काफी फायदा होता है!” हर कोई इस मामले पर चर्चा कर रहा था, कि आखिरकार अंतिम व्यक्ति खुद को और न रोक सका, वह खड़ा हो गया और बोला, “देखो, तुम लोगों ने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है, तुमने ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है, तुम एक शीर्ष व्यवसाय प्रबंधक हो, तुम एक अधिकारी हो और मेरे पास तुम लोगों जैसा अनुभव नहीं है। भले ही मैं एक साधारण-सा व्यक्ति हूँ, फिर भी मुझे तुम्हारे साथ अपने अनुभव साझा करने हैं। जब मैं ‘मेटर’ में वापस गया...।” दूसरे लोग आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने पूछा, “यह ‘मेटर’ क्या है? लोक सेवा की परीक्षा पास करने से एक व्यक्ति लोक सेवक बन जाता है, ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए पढ़ाई करने से एक व्यक्ति ग्रेजुएट बन जाता है, किसी कंपनी का शीर्ष प्रबंधक होने से एक व्यक्ति सीईओ बन जाता है, फिर इस ‘मेटर’ का क्या मतलब होता है? क्या तुम यह समझा सकते हो?” इस व्यक्ति ने कहा, “तो तुम लोग विश्वविद्यालय जा सकते हो, ग्रेजुएट डिग्री के लिए पढ़ाई कर सकते हो, एक शीर्ष व्यवसाय प्रबंधक बन सकते हो और एक लोक सेवक बन सकते हो, लेकिन मैं एक नजर डालने के लिए अपने अल्मा मेटर वापस नहीं जा सकता?” क्या तुमने देखा? उसे गुस्सा आ गया। इस साधारण से व्यक्ति की शिक्षा कम थी लेकिन वह फिर भी घमंडी था। दूसरों ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि अपने अल्मा मेटर में वापस जाने का क्या मतलब होता है। तुम्हें यह कहने की जरूरत नहीं है कि तुम ‘मेटर’ वापस गए। बस इतना कहो कि तुम अपने अल्मा मेटर वापस गए।” फिर दूसरों ने उससे पूछा कि उसके अल्मा मेटर का शिक्षा स्तर क्या था, क्या वह एक सीनियर हाई स्कूल, तकनीकी कॉलेज, विश्वविद्यालय था या एक ग्रेजुएट स्कूल था। उसने यह कहते हुए जवाब दिया, “मैं कभी विश्वविद्यालय नहीं गया, मैंने कभी ग्रेजुएट डिग्री के लिए पढ़ाई नहीं की और मैंने कभी लोक सेवक बनने के लिए परीक्षा नहीं दी। क्या सिर्फ प्राथमिक स्कूल जाना ठीक नहीं है? मुझे क्या!” वह शर्मिंदा महसूस कर रहा था; उसने सबके सामने अपनी पृष्ठभूमि को प्रकट कर दिया था, और अब इसे और छुपाया नहीं जा सकता था। वह तो लगातार दिखावा किए जा रहा था। दूसरों के साथ बातचीत करते हुए उसने कभी भी अपनी शिक्षा का स्तर प्रकट नहीं किया था। अब सब कुछ सामने आ गया था, वह शर्मिंदा हो गया और वह दरवाजे की ओर बढ़ा और भाग खड़ा हुआ। दूसरे लोगों को समझ नहीं आया कि वह आखिर क्यों भागा था और उन सभी ने एक साथ कहा, “क्या तुम केवल एक प्राथमिक स्कूल से ग्रेजुएट नहीं हुए हो? तुम भाग क्यों रहे हो? और तुम्हें इस बात पर बहुत गर्व था!” मैं इस कहानी को यहीं समाप्त करूँगा; इसमें कमोबेश सारी बातें आ जाती हैं।

इस कहानी में पाँच लोग हैं। वे किस विषय पर चर्चा कर रहे हैं? (अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि।) और वास्तव में शैक्षणिक पृष्ठभूमि का लोगों के लिए क्या अर्थ है? (यह उनका सामाजिक रुतबा है।) किसी व्यक्ति की शैक्षणिक पृष्ठभूमि का संबंध उसके सामाजिक रुतबे से होता है—यह एक वस्तुनिष्ठ तथ्य है। तो फिर लोग अपने सामाजिक रुतबे पर चर्चा क्यों करना चाहते हैं? वे अपने सामाजिक रुतबे और पहचान को उजागर कर चर्चा का विषय क्यों बनाना चाहते हैं? वे क्या कर रहे हैं? (वे केवल खुद का दिखावा कर रहे हैं।) तो, इस कहानी का शीर्षक क्या होना चाहिए? (अकादमिक पृष्ठभूमि की तुलना करना।) अगर कहानी का शीर्षक “शैक्षणिक पृष्ठभूमि की तुलना करना” होता, तो क्या यह बहुत रूखा नहीं होगा? (हाँ, होगा। “रुतबे का दिखावा” कैसा रहेगा?) यह कुछ ज्यादा ही सीधा है, अप्रत्यक्ष भी नहीं है और उतना गहरा नहीं है। अगर हम कहें कि मुख्य शीर्षक “पूँजी पर एक चर्चा” है और उपशीर्षक “मुझे क्या” है तो कैसा रहेगा? यह थोड़ा व्यंग्यात्मक है, है ना? “पूँजी पर एक चर्चा” का मतलब है कि हर कोई अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और सामाजिक रुतबे सहित अपनी पूँजी पर चर्चा कर रहा है। और “मुझे क्या” का क्या मतलब है? (यह स्वीकार नहीं करना कि कोई और मुझसे बेहतर है।) यह सही है, इसमें एक तरह का स्वभाव है। “तो क्या हुआ अगर तुम एक ग्रेजुएट छात्र हो? तो क्या हुआ अगर तुमने मुझसे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है?” कोई भी यह स्वीकार नहीं करता है कि कोई और मुझसे बेहतर है। पूँजी पर चर्चा करने का यही तो मतलब है। भीड़ के बीच रहते हुए क्या इस तरह की बातचीत अक्सर सुनाई नहीं पड़ती? कुछ लोग होते हैं जो अपने परिवार की दौलत का दिखावा करते हैं, कुछ अपने परिवार की गौरवपूर्ण पृष्ठभूमि का दिखावा करते हैं, कुछ इस बात का दिखावा करते हैं कि उनके उपनाम के साथ कुछ महाराजाओं और मशहूर हस्तियों का नाम जुड़ा हुआ है और कुछ लोग इस बारे में बात करते हैं कि उन्होंने किस विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की है, वे कितने शानदार थे और यहाँ तक कि एक ब्यूटी सैलून में मालिश करने वाली लड़की भी कहती है, “मैंने एक प्रसिद्ध शिक्षक से मालिश करना सीखा है, जिन्होंने एक विशेषज्ञ की तरह मेरे काम में सुधार किया और व्यक्तिगत निरीक्षण प्रदान किया। आखिरकार, मैं एक प्रथम श्रेणी की पेशेवर मसाज थेरेपिस्ट बन गई और 2000 का दशक मेरा सबसे शानदार समय था...।” यह “शानदार” गलत जगह पर है। सेवा उद्योग में काम करने वाली एक मालिश करने वाली लड़की भी अपने “सबसे शानदार समय” के बारे में बात कर रही थी—वह तो सचमुच शेखी बघार रही थी और डींगें मार रही थी। इस विषय के तहत, हम मुख्य रूप से उन ऐसी खास वार्तालापों के बारे में बात कर रहे हैं जो अक्सर सुनी जाती हैं, उन व्यवहारों के बारे में जो अक्सर देखे जाते हैं, और उन स्वभावों के बारे में जो वास्तविक जीवन में लोगों के बीच अक्सर प्रकट होते हैं। लोग ऐसी पूँजी के बारे में बात क्यों करते हैं? इसके पीछे कौन-सा स्वभाव या प्रेरणा काम कर रही होती है? क्या जिन बातों के बारे में बात की जाती है, उन्हें शानदार माना जा सकता है? शानदार होने का इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है। तो फिर, क्या लोगों को इस बारे में बातें करने से कुछ फायदा होता है? (नहीं।) और क्या तुम लोग भी इन बातों पर चर्चा करते हो? (हाँ।) तुम जानते हो कि इनका कोई फायदा नहीं होता, तो फिर तुम इनके बारे में क्यों बात करते हो? लोगों को ऐसी चीजों के बारे में बात करने में मजा क्यों आता है? (यही चीजें वह पूँजी हैं जिनका लोग दिखावा करते हैं।) इनका दिखावा करने का क्या उद्देश्य है? (ताकि दूसरों की नजरों में उनका ऊँचा सम्मान हो।) ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी एक साधारण, सामान्य व्यक्ति नहीं बनना चाहता। यहाँ तक कि किसी प्राथमिक स्कूल से ग्रेजुएट होने वाले व्यक्ति ने भी अपने “मेटर” में वापस जाकर देखने की बात की, उसने चाहा कि वह इस तरह की साहित्यिक भाषा का प्रयोग कर दूसरों को मूर्ख बना दे और उन्हें सुन्न कर उनकी नजर में ऊँचा उठ सके। दूसरों की नजर में ऊँचा उठने के पीछे उसका क्या उद्देश्य है? ऐसा इसलिए है ताकि वह दूसरों से ऊपर हो सके, दूसरों के बीच एक जगह और पद प्राप्त कर सके, उसके सिर पर आभामंडल सजे, उसकी बातों में अधिकार हो, उसे दूसरों का समर्थन प्राप्त हो और वह प्रतिष्ठित बन सके। अगर तुम्हें इन चीजों को छोड़ना हो और एक साधारण और सामान्य व्यक्ति बनना हो, तो तुम्हारे पास क्या होना चाहिए? सबसे पहले तो तुम्हारे पास सही दृष्टिकोण होना चाहिए। यह सही दृष्टिकोण कैसे पैदा होता है? यह परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और इस बात को समझने से पैदा होता है कि कुछ चीजों के प्रति तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए जो परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो और जो लोगों में उनकी सामान्य मानवता के साथ होना चाहिए—यही सही दृष्टिकोण है। तो, एक साधारण, सामान्य और आम व्यक्ति के रूप में, सामाजिक रुतबा, सामाजिक पूँजी या पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि जैसी इन सभी चीजों के प्रति सबसे उपयुक्त और सही दृष्टिकोण क्या है? क्या तुम लोगों को पता है? मान लो कि कोई ऐसा व्यक्ति है जो कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करता चला आया है, जो यह मानता है कि उसने बहुत-से सत्य समझ लिए हैं, जो यह मानता है कि वह परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करता है और परमेश्वर और अपने कर्तव्य के प्रति वफादार है, फिर भी वह समाज में और लोगों के बीच अपने रुतबे और अपने मूल्य को बहुत महत्वपूर्ण मानता है और वह इन चीजों को बहुत सँजोकर रखता है और अक्सर अपनी पूँजी, अपनी शानदार पृष्ठभूमि और अपने मूल्य का प्रदर्शन भी करता है—क्या ऐसा व्यक्ति सच में सत्य समझता है? बिल्कुल भी नहीं। तो, क्या वह व्यक्ति जो सत्य नहीं समझता, सत्य से प्रेम करने वाला व्यक्ति हो सकता है? (नहीं।) नहीं। पूँजी पर चर्चा करने और किसी के सत्य को समझने और उससे प्रेम करने के बीच क्या संबंध है? मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि जो व्यक्ति अपने मूल्य को सँजोता है और अपनी पूँजी का प्रदर्शन करता है वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य से प्रेम करता है और इसे समझता है? जो व्यक्ति सचमुच सत्य से प्रेम करता है और उसे समझता है, उसे सामाजिक रुतबे और व्यक्तिगत पूँजी और मूल्य के इन मामलों को कैसे समझना और उनसे कैसे निपटना चाहिए? सामाजिक रुतबे में कौन-कौन सी चीजें शामिल होती हैं? पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, प्रतिष्ठा, समाज में उपलब्धियाँ, व्यक्तिगत प्रतिभाएँ और तुम्हारी जातीयता। तो फिर यह सत्यापित करने के लिए इन मामलों से कैसे निपटते हो कि तुम सत्य समझने वाले व्यक्ति हो? इस सवाल का जवाब देना आसान होना चाहिए, है ना? सिद्धांत रूप में तो तुम लोगों को इस पहलू के बारे में बहुत कुछ समझ आता होगा। जो भी तुम्हारे मन में है कहो। ऐसा मत सोचो कि, “अरे, मैंने तो इसके बारे में अच्छी तरह से सोचा भी नहीं है इसलिए मैं कुछ नहीं कह सकता।” अगर तुमने इस बारे में अच्छे से नहीं सोचा है, तो बस वही कह दो जो तुम अपने मन में अभी सोच रहे हो। अगर तुम केवल अच्छी तरह से सोचकर ही कुछ कह सकते हो तो फिर उसे लेख लिखना कहते हैं। हम तो अभी बस ऐसे ही बातचीत कर रहे हैं; मैं तुम्हें कोई लेख लिखने के लिए नहीं कह रहा हूँ। सबसे पहले सैद्धांतिक दृष्टिकोण से बताओ। (मैं परमेश्वर के वचनों से यह समझता हूँ कि परमेश्वर यह नहीं देखता है कि कोई व्यक्ति कितना उच्च शिक्षित है या उसका सामाजिक रुतबा क्या है, बल्कि मुख्य रूप से यह देखता है कि क्या वह सत्य का अनुसरण करता है, क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है, और क्या वह सच्चे रूप से परमेश्वर के प्रति समर्पण करता है और क्या वह मानक के अनुसार अपना कर्तव्य निभाता है। अगर कोई उच्च सामाजिक रुतबा रखता है और उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है लेकिन उसके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे सत्य का अनुसरण करने के रास्ते पर नहीं चलते हैं और वे परमेश्वर का भय नहीं मानते हैं या बुराई से दूर नहीं रहते हैं, तो फिर उन्हें अंत में हटा दिया जाएगा और वे परमेश्वर के घर में स्थिर नहीं रह पाएँगे। इसलिए, किसी व्यक्ति की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और रुतबा महत्वपूर्ण नहीं होते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है या नहीं।) बहुत बढ़िया, यह सबसे बुनियादी अवधारणा है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह सबसे बुनियादी है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग मुख्य रूप से सामान्यतः इन विषयों और इस विषयवस्तु पर बात करते हैं। क्या किसी और की इस बारे में कोई अलग समझ है? जो कुछ पहले कहा जा चुका है उसमें कोई कुछ और जोड़े। (अगर कोई सत्य का अनुसरण कर सकता है, तो फिर वह समझ सकता है कि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का अनुसरण करना वास्तव में एक प्रकार का बंधन है, एक जंजीर जो वे पहनते हैं, और जितना अधिक वे इन चीजों का अनुसरण करते हैं, उतना ही अधिक उन्हें खालीपन महसूस होगा और उतना ही अधिक वे उस प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के कारण लोगों को होने वाली क्षति और दर्द का अनुभव करेंगे। जब वे इस बात को समझ लेते हैं और वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो इन चीजों को पूँजी मानता है, तो उन्हें ऐसा व्यक्ति बहुत ही दयनीय लगेगा।) (जो व्यक्ति सच में सत्य से प्रेम करता और उसे समझता है, वह परमेश्वर के वचनों का उपयोग करके सामाजिक रुतबे और छवि को मापेगा, वह देखेगा कि परमेश्वर क्या कहता है और क्या अपेक्षा करता है, परमेश्वर क्या चाहता है कि लोग किसका अनुसरण करें, इन चीजों का अनुसरण करने से लोगों को अंततः क्या मिलेगा और जो कुछ उन्हें मिलता है वह उन परिणामों के अनुरूप है या नहीं जिन्हें परमेश्वर लोगों में देखने की आशा करता है।) तुम लोगों ने इस विषय को छुआ है, लेकिन जो कुछ तुम कहते हो, क्या उसका सत्य से कुछ गहरा संबंध है? क्या तुम लोग इसका मूल्यांकन करने में सक्षम हो? अधिकांश लोगों के पास थोड़ा बहुत अवधारणात्मक ज्ञान होता है और अगर मैं तुम लोगों को एक उपदेश देने के लिए कहूँ, तो यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा? प्रोत्साहन का उपदेश एक ऐसा उपदेश होता है जिसके द्वारा तुम ऐसी बातें करते हो जो लोगों को सलाह और प्रोत्साहन देती हैं—यह असली समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता। हालाँकि हर वाक्य सही और उचित, मानवीय सूझ-बूझ और तर्कसंगत अपेक्षाओं के अनुरूप लग सकता है, लेकिन इसका सत्य से कम संबंध होता है, यह केवल लोगों के पास मौजूद थोड़ा-सा सतही और अवधारणात्मक ज्ञान है। अगर तुम इन शब्दों की दूसरों के साथ संगति करोगे, तो क्या तुम उनकी समस्याओं और कठिनाइयों के मूल स्रोत का समाधान कर पाओगे? नहीं, तुम नहीं कर पाओगे और इसीलिए मैं कहता हूँ कि यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा। अगर तुम लोगों की समस्याओं और मुश्किलों के मूल स्रोत का समाधान नहीं कर सकते, तो तुम सत्य का उपयोग करके लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर रहे हो। जो लोग सत्य को समझने में असमर्थ होते हैं, वे हमेशा ज्ञान, प्रतिष्ठा और रुतबे का समर्थन करेंगे और इन चीजों की बाधाओं और बंधन से बाहर निकलने में असमर्थ रहेंगे।

इस बारे में सोचो—तुम्हें मनुष्य के मूल्य, सामाजिक रुतबे और पारिवारिक पृष्ठभूमि के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए? तुम्हारा सही रवैया क्या होना चाहिए? सबसे पहले तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों से यह देखना चाहिए कि वह इस मामले से कैसे पेश आता है; केवल तभी तुम सत्य समझ पाओगे और ऐसा कुछ भी नहीं करोगे जो सत्य के खिलाफ हो। तो, परमेश्वर किसी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, सामाजिक रुतबे, उनके द्वारा प्राप्त शिक्षा और समाज में उनके पास मौजूद धन को कैसे देखता है? अगर तुम परमेश्वर के वचनों के आधार पर चीजों को नहीं देखते और परमेश्वर के पक्ष में खड़े नहीं हो सकते और परमेश्वर की ओर से चीजों को स्वीकार नहीं करते, तो तुम चीजों को जैसे देखते हो वह निश्चित रूप से परमेश्वर के इरादे से कुछ हटकर होगा। अगर यह बहुत हटकर नहीं है और केवल थोड़ा सा ही अंतर है, तो यह कोई बड़ी समस्या नहीं है; लेकिन अगर तुम्हारा चीजों को देखने का तरीका पूरी तरह से परमेश्वर के इरादे के खिलाफ है, तो यह चीज सत्य के विपरीत है। जहाँ तक परमेश्वर का सवाल है, वह लोगों को जो कुछ भी देता है और जितना देता है, यह उसी पर निर्भर करता है, और समाज में लोगों का जो भी रुतबा है वह परमेश्वर द्वारा ही निर्धारित किया जाता है, और कोई व्यक्ति इसे स्वयं ही ईजाद नहीं कर सकता। अगर परमेश्वर किसी को पीड़ा और गरीबी से पीड़ित करता है, तो क्या इसका यह मतलब है कि उनके पास बचाए जाने की कोई आशा नहीं है? अगर उनका मूल्य कम है और उनकी सामाजिक स्थिति निचली है, तो क्या परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा? अगर उनका समाज में रुतबा कम है, तो क्या वे परमेश्वर की नजर में भी छोटा रुतबा रखते हैं? जरूरी नहीं है। यह सब किस पर निर्भर करता है? यह इस पर निर्भर करता है कि यह व्यक्ति किस रास्ते पर चलता है, वह किस चीज का पीछा कर रहा है और सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका रवैया क्या है। अगर किसी का सामाजिक रुतबा बहुत छोटा है, उनका परिवार बहुत गरीब है और उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की है, लेकिन फिर भी वे व्यावहारिक रूप से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर की नजरों में उनका मूल्य ऊँचा होगा या नीचा, क्या वे महान होंगे या तुच्छ? वे मूल्यवान होते हैं। अगर हम इस परिप्रेक्ष्य से देखें, तो किसी का मूल्य—चाहे अधिक हो या कम, उच्च हो या निम्न—किस पर निर्भर करता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर तुम्हें कैसे देखता है। अगर परमेश्वर तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जो सत्य का अनुसरण करता है, तो फिर तुम मूल्यवान हो और तुम कीमती हो—तुम एक कीमती पात्र हो। अगर परमेश्वर देखता है कि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते हो और तुम ईमानदारी से उसके लिए खुद को नहीं खपाते, तो फिर तुम उसके लिए बेकार हो और मूल्यवान नहीं हो—तुम एक तुच्छ पात्र हो। चाहे तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई हो या समाज में तुम्हारा रुतबा कितनी भी ऊँचा हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते या उसे नहीं समझते, तो तुम्हारा मूल्य कभी भी ऊँचा नहीं हो सकता; भले ही बहुत से लोग तुम्हारा समर्थन करते हों, तुम्हे महिमामंडित करते हों और तुम्हारा आदर सत्कार करते हों, फिर भी तुम एक नीच कमबख्त ही रहोगे। तो आखिर परमेश्वर लोगों को इस नजर से क्यों देखता है? ऐसे “कुलीन” व्यक्ति को जिसका समाज में इतनी ऊँचा रुतबा है, जिसकी इतने लोग प्रशंसा और सराहना करते हैं, जिसकी प्रतिष्ठा इतनी ऊँची है, उसे परमेश्वर निम्न क्यों समझता है? परमेश्वर लोगों को जिस नजर से देखता है वह दूसरों के बारे में लोगों के विचार से बिल्कुल विपरीत क्यों है? क्या परमेश्वर जानबूझकर खुद को लोगों के विरुद्ध खड़ा कर रहा है? बिल्कुल भी नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर सत्य है, परमेश्वर धार्मिकता है, जबकि मनुष्य भ्रष्ट है और उसके पास कोई सत्य या धार्मिकता नहीं है, और परमेश्वर मनुष्य को अपने खुद के मानक के अनुसार मापता है और मनुष्य के मापन के लिए उसका मानक सत्य है। यह बात थोड़ी अमूर्त लग सकती है, इसलिए दूसरे शब्दों में कहें तो, परमेश्वर के माप का मानक परमेश्वर के प्रति एक व्यक्ति के रवैये, सत्य के प्रति उनके रवैये और सकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैये पर आधारित होता है—यह बात अब काल्पनिक नहीं है। मान लो कि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसकी समाज में काफी ऊँचा रुतबा है, जिसने उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है, जो बहुत शिक्षित और सुसंस्कृत है और उसका पारिवारिक इतिहास विशेष रूप से गौरवशाली और शानदार है, फिर भी एक समस्या है : वह सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करता, वह अपने दिल की गहराई से परमेश्वर के प्रति जुगुप्सा, घृणा और नफरत महसूस करता है और जब परमेश्वर से संबंधित, परमेश्वर के विषयों या परमेश्वर के कार्य से संबंधित कोई बात सामने आती है, तो वह घृणा में अपने दाँत पीसता है, उसकी आँखें जलने लगती हैं और यहाँ तक कि वह अन्य लोगों को मारना भी चाहता है। जब भी कोई परमेश्वर या सत्य से संबंधित किसी विषय पर बात करने लगता है, तो वह घृणा और शत्रुता महसूस करता है, और उसकी पशुवादी प्रकृति बाहर आ जाती है। क्या ऐसा व्यक्ति मूल्यवान होता है या बेकार? उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और उनका तथाकथित सामाजिक रुतबा और सामाजिक प्रतिष्ठा का परमेश्वर की नजर में क्या मूल्य होता है? कुछ भी नहीं। परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे देखता है? परमेश्वर ऐसे लोगों का चरित्र-चित्रण कैसे करता है? ऐसे लोग दानव और शैतान होते हैं, और वे सबसे अधिक बेकार नीच कमीने होते हैं। अब इसे देखते हुए, किसी के मूल्य के उच्च या निम्न होने के रूप में परिभाषित करने का क्या आधार होता है? (इसका आधार परमेश्वर, सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति उनका रवैया होता है।) बिल्कुल सही। सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि परमेश्वर का रवैया क्या है। परमेश्वर के रवैये को समझना और उन सिद्धांतों और मानकों को समझना जिनसे परमेश्वर लोगों पर फैसले सुनाता है, और फिर लोगों को उन सिद्धांतों और मानकों के आधार पर मापना जिनसे परमेश्वर लोगों के साथ व्यवहार करता है—केवल यही सबसे सटीक, उचित और निष्पक्ष तरीका है। अब हमारे पास लोगों को मापने का एक आधार है, तो हमें इसे विशेष रूप से अभ्यास में कैसे लाना चाहिए? उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने बहुत उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई है और वह जहाँ भी जाता है वहाँ लोकप्रिय होता है, हर कोई उसके बारे में अच्छा सोचता है, और दूसरों को ऐसा लगता है कि उसके पास बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं—तो क्या फिर परमेश्वर की नजरों में उन्हें निश्चित रूप से उच्च माना जाएगा? (ऐसा जरूरी तो नहीं है।) तो हमें इस व्यक्ति का माप कैसे लेना चाहिए? किसी व्यक्ति की उच्चता और निम्नता न तो समाज में उसके रुतबे पर आधारित होती है, न ही उसकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर, और न ही यह उसकी जातीयता पर आधारित होती है, और निश्चित रूप से यह उसकी राष्ट्रीयता पर तो बिल्कुल भी आधारित नहीं होती है, तो फिर इसका आधार क्या होना चाहिए? (यह परमेश्वर के वचनों और सत्य व परमेश्वर के प्रति एक व्यक्ति के रवैये पर आधारित होना चाहिए।) यही सही है। उदाहरण के लिए, तुम लोग चीन महादेश से अमेरिका आए थे और अगर तुम एक दिन अमेरिकी नागरिक बन भी जाते हो, तो क्या तुम लोगों का मूल्य और रुतबा बदल जाएगा? (नहीं।) नहीं, ऐसा नहीं होगा; तुम तब भी ऐसे ही रहोगे। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो लेकिन फिर भी तुम्हें सत्य प्राप्त नहीं होता, तब भी तुम तबाह किए जाने वालों में शामिल रहोगे। कुछ सतही लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते या सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे धर्मनिरपेक्ष दुनिया का अनुसरण करते हैं और अमेरिकी नागरिक बनने के बाद, वे कहते हैं, “तुम चीनी लोग” और “तुम चीन महादेश के लोग।” मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग उच्च होते हैं या नीच होते हैं? (नीच।) वे बहुत नीच होते हैं! वे ऐसा व्यवहार करते हैं मानो अमेरिकी नागरिक बनकर वे कुलीन हो गए हैं—क्या वे सतही नहीं हैं? वे बहुत सतही हैं। अगर कोई व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ, सामाजिक रुतबे, धन और शैक्षणिक उपलब्धियों को एक साधारण दिल के साथ पेश आ सकता है—बेशक, इस साधारण दिल का मतलब यह नहीं है कि तुम पहले ही इन चीजों का अनुभव कर चुके हो और इस संबंध में अब तुम्हें कुछ महसूस नहीं होता, बल्कि इसका मतलब यह है कि तुम्हारे पास माप का एक मानक है और तुम इन चीजों को अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजें नहीं मानते और जिन मानकों और सिद्धांतों से तुम इन चीजों को मापते और देखते हो उनमें बदलाव आया है और साथ ही तुम्हारे मूल्यों में भी बदलाव आया है और तुम अब इन चीजों से सही ढंग से पेश आ सकते हो और उन्हें साधारण दिल से देख सकते हो—इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि तुम्हें तथाकथित सामाजिक रुतबे, मनुष्य के मूल्य आदि जैसी बाहरी चीजों से मुक्त कर दिया गया है। हो सकता है कि तुम लोग अभी इसे हासिल न कर सको, लेकिन जब तुम लोग वास्तव में सत्य को समझ सकोगे, तब तुम इन चीजों की असलियत जान पाओगे। मैं तुम्हें एक उदाहरण देता हूँ। कोई व्यक्ति धनी भाई-बहनों से मिलता है और देखता है कि वे केवल ब्रांडेड कपड़े पहनते हैं और काफी दौलतमंद नजर आते हैं और वे नहीं जानते कि उनसे कैसे बात करनी है या उनके साथ कैसे जुड़ना है और इसलिए वे खुद को विनम्र बना लेते हैं, वे उन धनी भाई-बहनों की चापलूसी करते हैं और घृणित तरीके से व्यवहार करते हैं—क्या ऐसा करना उनका खुद को नीचा दिखाना नहीं है? कुछ तो है जो यहाँ उन पर हावी होता है। कुछ लोग जब किसी धनी महिला से मिलते हैं तो वे उसे “बड़ी बहन” कहते हैं और जब किसी धनी पुरुष से मिलते हैं तो उसे “बड़ा भाई” कहते हैं। वे हमेशा इन लोगों की चापलूसी करना और खुद को आगे करना चाहते हैं। जब वे किसी गरीब और अति साधारण व्यक्ति को देखते हैं, जो किसी ग्रामीण क्षेत्र से आया हो और जिसकी शिक्षा का स्तर भी कम हो, तो वे उसे नीची नजर से देखते हैं और उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते और उनका रवैया बदल जाता है। क्या कलीसिया में ऐसी सामान्य प्रथाएँ चलती हैं? हाँ चलती हैं, और तुम लोग इससे इनकार नहीं कर सकते, क्योंकि तुम लोगों में से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका अपना व्यवहार भी कुछ ऐसा ही है। कुछ उन्हें “बड़े भाई” कहकर पुकारते हैं, कुछ “बड़ी बहन” बुलाते हैं, और कुछ “चाची” कहते हैं—ये सामाजिक प्रथाएँ काफी गंभीर हैं। इन लोगों के व्यवहार को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उनके पास थोड़ी सी भी सत्य वास्तविकता नहीं है। तुम लोगों में अधिक संख्या ऐसे ही लोगों की है और अगर वे अपने अंदर बदलाव नहीं लाते तो अंत में वे सभी हटा दिए जाएँगे। भले ही ये गलत विचार लोगों की सत्य मार्ग की स्वीकृति को प्रभावित नहीं करते हैं, लेकिन वे लोगों के जीवन प्रवेश और उनके कर्तव्यों के पालन को प्रभावित कर सकते हैं; अगर वे सत्य को स्वीकार न करने वाले लोग हैं, तो वे संभवतः कलीसिया में बाधाएँ पैदा करेंगे। अगर तुम परमेश्वर के इरादे को समझ सकते हो, तो तुम उन सिद्धांतों और मानकों को भी समझ सकते हो जिनके द्वारा इन चीजों को मापा जाता है। इसका एक और पहलू भी है और वह यह है कि चाहे किसी व्यक्ति का सामाजिक रुतबा या शैक्षिक पृष्ठभूमि कैसी भी हो, या वह किसी भी प्रकार की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता हो, एक ऐसा तथ्य है जिसे तुम्हें अवश्य स्वीकार करना होगा : तुम्हारी शैक्षिक उपलब्धियाँ और पारिवारिक पृष्ठभूमि तुम्हारे चरित्र को नहीं बदल सकतीं, न ही वे तुम्हारे स्वभाव को प्रभावित कर सकती हैं। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ ऐसा ही है।) मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? चाहे कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के परिवार में पैदा हुआ हो या उसने किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त की हो, चाहे उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की हो या न की हो और चाहे वह किसी भी सामाजिक पृष्ठभूमि में पैदा हुआ हो, चाहे उसका सामाजिक रुतबा ऊँचा हो या नीचा, उसका भ्रष्ट स्वभाव किसी भी अन्य व्यक्ति के समान ही होता है। हर कोई एक जैसा होता है—इससे बचा नहीं जा सकता। तुम्हारा सामाजिक रुतबा और मूल्य इस तथ्य को नहीं बदल सकते कि तुम उस मानव जाति के सदस्य हो जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और न ही वे इस तथ्य को बदल सकते हैं कि तुम एक भ्रष्ट स्वभाव वाले भ्रष्ट इंसान हो जो परमेश्वर का विरोध करता है। इससे मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब यह है कि चाहे तुम कितने भी धनी परिवार में पैदा हुए हो या तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त की हो, तुम सभी के स्वभाव भ्रष्ट हैं; चाहे तुम कुलीन हो या नीच, अमीर हो या गरीब, तुम्हारा रुतबा ऊँचा हो या नीचा, तुम अभी भी एक भ्रष्ट मनुष्य ही हो। इसलिए, परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने के बाद, तुम सभी एक समान हो और परमेश्वर सभी के प्रति निष्पक्ष और धार्मिक है। क्या लोगों को इस बात की समझ नहीं होनी चाहिए? (हाँ।) ऐसा कौन-सा व्यक्ति है जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किया गया है और जो इसलिए भ्रष्ट स्वभाव से रहित है क्योंकि समाज में उसका रुतबा ऊँचा है और वह समस्त मानवजाति की सबसे श्रेष्ठ जाति में पैदा हुआ है? क्या यह एक उचित बात है? क्या यह चीज मानवजाति के पूरे इतिहास में कभी घटित हुई है? (नहीं।) नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ। वास्तव में, अय्यूब, अब्राहम और उन नबियों और प्राचीन संतों और इस्राएलियों सहित, कोई भी मनुष्य इस निर्विवाद तथ्य के साथ जीने से बच नहीं सकता : इस संसार में रहते हुए, समस्त मानवजाति को शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया है। शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने में, इस बात की परवाह नहीं करता कि तुमने उच्च शिक्षा प्राप्त की है या नहीं, तुम्हारा पारिवारिक इतिहास क्या है, तुम्हारा उपनाम क्या है, या तुम्हारा वंश वृक्ष कितना बड़ा है, अंतिम परिणाम यही होता है कि : अगर तुम मानवजाति के बीच रहते हो, तो तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए गए हो। इसलिए, इस तथ्य को कि तुम्हारे पास शैतानी भ्रष्ट स्वभाव है और तुम अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीते हो, तुम्हारे मूल्य और शैक्षणिक पृष्ठभूमि से नहीं बदला जा सकता। क्या लोगों को इस बात की समझ नहीं होनी चाहिए? (हाँ, होनी चाहिए।) फिर जब तुम लोग इन बातों को अच्छी तरह से समझ जाओगे, तो भविष्य में जब कोई व्यक्ति अपने उपहार और पूँजी का दिखावा करेगा, या जब तुम लोगों को फिर से अपने बीच कोई “श्रेष्ठ” व्यक्ति मिलेगा तो तुम लोग उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे? (मैं उनके साथ परमेश्वर के वचनों के अनुसार व्यवहार करूँगा।) सही। और तुम उनसे परमेश्वर के वचनों के अनुसार कैसे व्यवहार करोगे? अगर तुम्हारे पास करने को कुछ भी नहीं है और तुम उनका अपमान करते हो और यह कहते हुए उनका मजाक उड़ाते हो कि, “देखो तुम कितने शिक्षित हो, तुम किस बात का दिखावा कर रहे हो? तुम फिर से अपनी पूँजी के बारे में बात कर रहे हो, लेकिन क्या तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हो? चाहे तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा क्यों न प्राप्त की हो, क्या तुम अभी भी शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किए गए हो?” तो क्या यह उनके साथ पेश आने का अच्छा तरीका है? यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और एक सामान्य मानवता वाले किसी व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए। तो फिर तुम्हें उनके साथ किस तरह से पेश आना चाहिए जो सिद्धांतों के अनुरूप हो? तुम्हें उनका आदर-मान नहीं करना चाहिए, लेकिन न ही उन्हें छोटा दिखाना चाहिए—क्या यह समझौता नहीं है? (हाँ है।) क्या समझौता करना सही है? नहीं, ऐसा करना सही नहीं है। तुम्हें उनके साथ सही व्यवहार करना चाहिए और अगर तुम उनकी मदद करने के लिए उस सत्य का उपयोग कर सकते हो जो तुम समझते हो, तो उनकी मदद करो। अगर तुम उनकी मदद नहीं कर सकते, तो फिर अगर तुम एक अगुआ हो और तुम देखते हो कि वे किसी विशेष कर्तव्य के लिए उपयुक्त हैं, तो उनसे वह कर्तव्य निभाने को कहो। केवल इसलिए उन्हें नीची नजर से मत देखो क्योंकि उन्होंने बहुत उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है और यह मत सोचो, “रहने भी दो, इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने का क्या फायदा है? क्या तुम सत्य समझते हो? मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की है लेकिन मैं फिर भी एक अगुआ हूँ। मेरी काबिलियत अच्छी है, मैं तुमसे बेहतर हूँ, इसलिए मैं तुम्हें नीचा दिखाऊँगा और तुम्हें शर्मिंदा करूँगा!” इसे कहते हैं मतलबी होना और मानवता के बिना होना। “उनके साथ सही व्यवहार करने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को सँभालना। और यहाँ सत्य सिद्धांत क्या है? सत्य सिद्धांत लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना है। लोगों को उच्च सम्मान की नजर से मत देखो और उनके सामने खुद को दीन मत बनाओ, ऐसा मत सोचो कि तुम उनसे किसी निचले स्तर पर हो और उनकी चापलूसी भी मत करो, उन्हें अपने पैरों तले मत कुचलो और उनका अपमान मत करो; हो सकता है कि वे खुद को बहुत अधिक महत्व न देते हों और खुद का दिखावा भी न करते हों। क्या यह सही है कि तुम हमेशा डरते ही रहो कि वे खुद का दिखावा करेंगे और इसलिए हमेशा उन्हें कुचलते ही रहो? नहीं, यह सही नहीं है। इसे कहते हैं अधम होना और मानवता के बिना होना—अगर तुम एक तरफ ज्यादा नहीं झुक रहे हो, तो फिर तुम दूसरी तरफ ज्यादा झुक रहे हो। लोगों के साथ सही व्यवहार करना, लोगों के साथ निष्पक्षता से व्यवहार करना—यही सिद्धांत है। यह सिद्धांत सुनने में काफी सरल लगता है, लेकिन इसे अभ्यास में लाना इतना आसान नहीं है।

पहले, एक अगुआ किसी दूसरे स्थान पर रहने के लिए जाने वाला था। मैंने उससे कहा कि वह प्रासंगिक टीम के अगुआओं और सदस्यों को अपने साथ ले जा सकता है, क्योंकि इस तरह से उनके लिए अपने काम के बारे में चर्चा करना सुविधाजनक होगा। जो कुछ मैंने कहा उसे समझना मुश्किल नहीं था—कोई भी इसे सुनते ही समझ सकता है। अंत में, जिस प्रासंगिक कार्मिक को वह अपने साथ ले गया, उसके नाम काफी “उपलब्धियाँ” थीं : कुछ लोग उसके लिए चाय लेकर आए, कुछ ने उसके पैर धोए और उसकी पीठ रगड़ी—वे सब चापलूसों का एक समूह थे। यह अगुआ कितना घृणित था? एक संक्रामक रोग से पीड़ित व्यक्ति भी था जो हर दिन उसकी चापलूसी करता था, उसके आगे पीछे घूमता था और उसकी सेवा करता था। चापलूसी की भावना का आनंद लेने के लिए वह इस बीमारी से ग्रस्त होने का जोखिम उठाने को भी तैयार था। अंत में, चूँकि संक्रामक रोग से पीड़ित इस व्यक्ति का रोग जाने के बाद फिर से उभर आया, इसलिए इस नकली अगुआ का भी खुलासा हो गया। इसलिए, चाहे लोग सत्य को समझें या न समझें, उन्हें निश्चित रूप से बुरे काम नहीं करने चाहिए, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं पर भरोसा करके काम नहीं करना चाहिए और उनमें जोखिम उठाने वाली मानसिकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के दिलों की और समस्त पृथ्वी की पड़ताल करता है। “समस्त पृथ्वी” में क्या कुछ शामिल है? इसमें भौतिक और अभौतिक दोनों चीजें शामिल हैं। अपने दिमाग से परमेश्वर, परमेश्वर के अधिकार या परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता को मापने की कोशिश मत करो। लोग सृजित प्राणी हैं और उनका जीवन बहुत महत्वहीन है—फिर वे सृष्टिकर्ता की महानता को कैसे माप सकते हैं? वे सभी चीजों की रचना करने वाले और सभी चीजों पर संप्रभुता रखने वाले सृष्टिकर्ता की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमता को कैसे माप सकते हैं? तुम्हें अज्ञानतापूर्ण कार्य या बुरे कार्य बिल्कुल भी नहीं करने चाहिए। बुराई करने पर अवश्य ही प्रतिशोध लिया जाएगा और जब एक दिन परमेश्वर तुम्हें प्रकट करेगा, तो तुम्हें उससे भी अधिक दंड मिलेगा जिसकी तुमने अपेक्षा की थी और उस दिन तुम रोओगे और अपने दाँत पीसोगे। तुम्हें आत्म-जागरूकता के साथ आचरण करना चाहिए। कुछ मामलों में, इससे पहले कि परमेश्वर तुम्हें प्रकट करे, तुम्हारे लिए बेहतर होगा कि तुम अपनी तुलना परमेश्वर के वचनों से करो, खुद पर चिंतन करो और दबी हुई बातों को प्रकाश में लाओ, अपनी समस्याओं का पता लगाओ और फिर उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करो—परमेश्वर द्वारा तुम्हें प्रकट करने की प्रतीक्षा मत करो। एक बार जब परमेश्वर तुम्हें प्रकट कर दे, तो फिर क्या तुम इसके कारण निष्क्रिय नहीं हो जाओगे? उस समय, तुम पहले से ही अपराध कर चुके होगे। परमेश्वर द्वारा तुम्हारी पड़ताल करने से लेकर तुम्हारे प्रकट होने तक, हो सकता है कि तुम्हारे मूल्य और तुम्हारे बारे में परमेश्वर की राय में बहुत परिवर्तन आ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहाँ परमेश्वर तुम्हारी पड़ताल कर रहा है, वहीं वह तुम्हें अवसर भी दे रहा है और अपनी आशाओं को तुम्हें सौंप रहा है, जब तक कि तुम्हारा खुलासा नहीं हो जाता। परमेश्वर द्वारा किसी को अपनी आशाएँ सौंपने से लेकर अंत में उसकी आशाओं के व्यर्थ जाने तक, परमेश्वर की मनःस्थिति कैसी होती है? उसमें बहुत बड़ी गिरावट आती है। और तुम्हारे लिए इसका क्या परिणाम होगा? जो मामले ज्यादा गंभीर नहीं होते उनमें, तुम परमेश्वर के लिए घृणा का विषय बन सकते हो और तुम्हें एक तरफ कर दिया जाएगा। “एक तरफ करने” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम्हें रखा जाएगा और तुम्हारा निरीक्षण किया जाएगा। और अधिक गंभीर मामलों में इसका क्या परिणाम होगा? परमेश्वर कहेगा, “यह व्यक्ति एक आपदा है और वह सेवा करने के योग्य भी नहीं है। मैं इस व्यक्ति को बिल्कुल भी नहीं बचाऊँगा!” एक बार जब परमेश्वर ने यह विचार बना लिया, तो फिर तुम्हारे पास कोई परिणाम नहीं होगा और ऐसा होने के बाद फिर तुम चाहे साष्टांग प्रणाम करो या अपना खून बहाओ, इससे कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर पहले ही तुम्हें पर्याप्त मौके दे चुका होगा लेकिन तुमने कभी पश्चात्ताप नहीं किया होगा और तुम हद से आगे निकल गए होगे। इसलिए, चाहे तुम्हें कोई भी समस्या हो या चाहे तुम जैसा भी भ्रष्टाचार प्रकट करो, तुम्हें हमेशा परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में अपने बारे में सोचना चाहिए और खुद को जानना चाहिए या अपने भाई-बहनों से इन बातों की ओर ध्यान दिलाने के लिए कहना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हें परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करना चाहिए, परमेश्वर के सामने आना चाहिए और उससे तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन करने के लिए कहना चाहिए। चाहे तुम कोई भी तरीका अपनाओ, समस्याओं को जल्दी पहचानना और फिर उनका समाधान करना एक ऐसा प्रभाव है जो आत्म-चिंतन द्वारा प्राप्त होता है और यह सबसे अच्छी चीज है जो तुम कर सकते हो। तुम्हें पश्चात्ताप महसूस करने से पहले तब तक इंतजार नहीं करना चाहिए जब तक कि परमेश्वर तुम्हें प्रकट करके समाप्त न कर दे, क्योंकि तब तक पश्चात्ताप करने में बहुत देर हो चुकी होगी! जब परमेश्वर किसी को प्रकट करता है, तो क्या वह अत्यधिक क्रोधित होता है या अत्यधिक दयालु होता है? यह कहना मुश्किल है, यह अज्ञात है और मैं तुम्हें इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकता—यह तुम पर निर्भर है कि तुम किस मार्ग पर चलते हो। क्या तुम लोगों को पता है कि मेरी जिम्मेदारी क्या है? मैं तुम लोगों को वह सब बता रहा हूँ जो मुझे बताना है, हर वह वचन कह रहा हूँ जो मुझे कहना चाहिए, तुम्हें एक भी वचन से वंचित नहीं कर रहा हूँ। चाहे मैं कोई भी तरीका अपनाऊँ, चाहे वह लिखित शब्दों का प्रयोग हो, कहानी सुनाना हो या छोटे कार्यक्रम का निर्माण हो, हर हाल में, मैं वह सत्य तुम लोगों तक पहुँचा रहा हूँ जिन्हें परमेश्वर चाहता है कि तुम लोग विभिन्न माध्यमों से समझो और साथ ही मैं तुम लोगों को उन समस्याओं से भी अवगत करा रहा हूँ जो मैं देख सकता हूँ। मैं तुम लोगों को चेतावनी दे रहा हूँ, याद दिला रहा हूँ और प्रोत्साहित कर रहा हूँ और तुम लोगों को कुछ आपूर्ति, सहायता और समर्थन प्रदान कर रहा हूँ। कभी-कभी मैं कुछ कठोर बातें भी कह देता हूँ। यह मेरी जिम्मेदारी है और यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम्हें बाकी के रास्ते पर कैसे चलना है। तुम्हें मेरे भाषण और चेहरे के भावों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं है और तुम्हें इस बात का भी ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है कि तुम्हारे बारे में मेरी क्या राय है—तुम्हारे लिए ये सब करना आवश्यक नहीं है। भविष्य में तुम्हारा परिणाम क्या होगा, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है; इसका संबंध केवल इस बात से है कि तुम खुद किसका अनुसरण करते हो। आज, मैं खिड़की खोल रहा हूँ और खुलकर बोल रहा हूँ, मैं पूरी तरह से स्पष्ट रूप से बोल रहा हूँ। क्या तुम लोगों ने मेरे द्वारा कहे गए प्रत्येक वचन और प्रत्येक वाक्य को सुन लिया और समझ लिया है और उसे भी जो कुछ मुझे अवश्य कहना चाहिए, जो कुछ मुझे कहना चाहिए, और जो कुछ मैंने अतीत में कहा है? मैं जो कुछ भी कहता हूँ उसमें कुछ भी अमूर्त नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे तुम लोग नहीं समझते हो; तुम लोग सब कुछ समझ गए हो, और इसलिए मेरी जिम्मेदारी अब पूरी हो गई है। यह मत सोचो कि बोलना समाप्त करने के बाद भी मुझे तुम लोगों पर नजर रखनी होगी और अंत तक तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे लिए उत्तरदायी रहना होगा। तुम सभी लोग कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हो, तुम सभी वयस्क हो, कोई छोटे बच्चे नहीं हो। तुम लोगों के कामों के लिए तुम्हारे पास ऐसे अगुआ हैं जो तुम्हारे लिए जिम्मेदार होते हैं, यह कोई मेरी जिम्मेदारी नहीं है। मेरे पास काम का अपना एक दायरा है, मेरी अपनी जिम्मेदारियों का एक दायरा है; मुझे तुम लोगों में से हर एक के पीछे चलने और तुम लोगों की निगरानी करने और तुम्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने की कोई जरूरत नहीं है और न ही ऐसा करना मेरे लिए संभव है—मैं ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हूँ। जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि तुम लोग किस चीज का अनुसरण करते हो, तुम लोग निजी तौर पर क्या कहते और करते हो और तुम लोग किस मार्ग पर चलते हो, इनमें से किसी भी चीज का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ कि उनका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है? अगर तुम लोग परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को सही और उचित तरीके से निभा सकते हो, तो परमेश्वर का घर अंत तक तुम लोगों के लिए उत्तरदायी रहेगा। अगर तुम लोग अपना कर्तव्य निभाने, कीमत चुकाने, सत्य को स्वीकार करने और सिद्धांत के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार हो, तो परमेश्वर का घर तुम लोगों की अगुआई करेगा, तुम लोगों की आपूर्ति करेगा और तुम लोगों का समर्थन करेगा; अगर तुम लोग अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं हो और बाहर जाकर काम करना और पैसा कमाना चाहते हो, तो परमेश्वर के घर के दरवाजे पूरी तरह से खुले हैं और तुम्हें सौहार्दपूर्वक विदा कर दिया जाएगा। हालाँकि, अगर तुम लोग परमेश्वर के घर में कोई बाधा पैदा करते हो, बुराई करते हो और हलचल मचाते हो, तो चाहे कोई भी यह बुराई करे, परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश और कार्य व्यवस्थाएँ हैं और तुम्हारे साथ इन सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। क्या तुम लोग समझ गए? तुम लोग कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हो, तुमने इतने वर्षों में परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं और सभाओं में भाग लिया है और उपदेशों को सुना है, तो फिर तुमने थोड़ा सा भी पश्चात्ताप क्यों नहीं किया या थोड़ा भी परिवर्तित क्यों नहीं हुए? ऐसे कई लोग हैं जो कई वर्षों से उपदेश सुन रहे हैं और उन्होंने कुछ सत्यों को भी समझ लिया है, फिर भी उन्होंने अभी तक पश्चात्ताप नहीं किया है, वे अभी भी अपने कर्तव्यों को अनमने ढंग से निभाते हैं और ये लोग खतरे में हैं। मैं तुम लोगों को एक वास्तविक बात बताता हूँ : हमेशा मुझसे यह अपेक्षा मत रखो कि मैं तुम लोगों पर नजर रखूँगा, तुम लोगों का ध्यान रखूँगा और तुम्हारा हाथ थामकर तुम लोगों को सिखाऊँगा, ताकि तुम लोग कुछ व्यावहारिक और प्रभावी काम कर सको। अगर मैं तुम लोगों पर नजर न रखूँ या तुम लोगों की निगरानी न करूँ और तुम लोगों को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित न करूँ और तुम लोग अनमने बन जाओ और तुम्हारे काम की प्रगति धीमी हो जाए, तो तुम लोग खत्म हो जाओगे। इससे पता चलता है कि तुम लोग बिना किसी वफादारी के अपना कर्तव्य निभाते हो और तुम सभी मजदूर हो। चलो मैं तुम लोगों को बताता हूँ कि मेरी सेवकाई पूरी हो चुकी है और मैं अब तुम लोगों की देखभाल करने के लिए बाध्य नहीं हूँ। ऐसा इसलिए है क्योंकि पवित्रात्मा इन मामलों में तुम लोगों पर कार्य कर रहा है और तुम लोगों की पड़ताल कर रहा है; मुझे जो कुछ करना चाहिए वह मैंने कर दिया है, मुझे जो कुछ कहना चाहिए वह मैंने कह दिया है, मैंने अपनी सेवकाई अच्छी तरह से निभाई है, मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है, और अब केवल यही बचा है कि तुम लोग अपने कार्यों और व्यवहार की जिम्मेदारी खुद लो। अगर तुम लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते बल्कि लगातार अनमने रहते हो और कभी भी पश्चात्ताप करने के बारे में नहीं सोचते हो, तो फिर तुम लोगों की सजा का और तुम्हारे हटाए जाने का मुझसे कोई लेना-देना नहीं होगा।

मैंने अभी जो कहानी सुनाई है उसका एक पहलू यह था कि लोगों के सामाजिक रुतबे, मूल्य, पारिवारिक पृष्ठभूमि और शैक्षणिक पृष्ठभूमि इत्यादि को किस तरह से देखा जाए और यह कि इन चीजों के संबंध में मानक और सिद्धांत क्या हैं; इसका दूसरा पहलू यह था कि इन चीजों से कैसे पेश आया जाए और उनके सार को स्पष्टता से कैसे देखा जाए। एक बार जब तुम इन चीजों की असलियत देख लोगे, तो भले ही वे अभी भी तुम्हारे दिल में मौजूद क्यों न हों, तुम उनसे बेबस नहीं होगे और तुम उनके अनुसार नहीं जीओगे। जब तुम एक गैर-विश्वासी व्यक्ति विश्वविद्यालय में जाने और मास्टर या डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के अपने गौरवशाली इतिहास का बखान करते देखते हो तो इस पर तुम्हारा दृष्टिकोण और रवैया क्या होता है? अगर तुम कहते हो कि, “एक विश्वविद्यालय में अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई करना कोई बड़ी बात नहीं है। मैंने तो कई वर्ष पहले अपनी ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की थी,” अगर तुम्हारी मानसिकता ऐसी ही है, तो यह तुम्हारे लिए परेशानी वाली बात होगी और इससे पता चलता है कि परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में तुम्हारे अंदर ज्यादा बदलाव नहीं आया है। अगर वे तुमसे पूछें कि तुम्हारी शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या है, और तुम कहो, “मैंने तो अभी प्राथमिक विद्यालय भी पास नहीं किया है और मैं तो अभी एक निबंध भी नहीं लिख सकता,” और वे देखें कि तुम कुछ भी नहीं हो और तुम्हें अनदेखा करना शुरू कर दें, तो क्या यह बहुत ही उत्तम नहीं है? तुम परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ने और अपने कर्तव्य को और अधिक निभाने के लिए समय बचा सकते हो, और यह करना सही है। गैर-विश्वासियों और छद्म-विश्वासियों के साथ गपशप करने का क्या मतलब है? अगर तुम कहो कि तुम्हारी शिक्षा का स्तर कम है और समाज में तुम्हारा कोई रुतबा नहीं है और कोई तुम्हारा अपमान करता है, तो तुम क्या करोगे? इस बात को दिल पर मत लो और बेबस महसूस मत करो, उन्हें बोलने दो, उन्हें जो कहना है कहने दो, इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं है। जब तक यह तुम्हारे परमेश्वर में अपनी आस्था में सत्य का अनुसरण करने में देरी का कारण नहीं बनता, तब तक यह ठीक है। यह वास्तव में एक मामूली विषय है, लेकिन दैनिक जीवन में लोगों द्वारा व्यक्त की जाने वाली बातों के माध्यम से यह देखा जा सकता है कि लोग पूँजी की इन चीजों को बहुत महत्व देते हैं और वे उन्हें हमेशा अपने दिल में रखते हैं। यह न केवल लोगों के भाषण और व्यवहार को प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह उनके जीवन प्रवेश और परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग का चयन करने को भी प्रभावित कर सकता है। ठीक है, मैं इस तरह के विषय पर फिर कभी बात नहीं करूँगा। चलो उस विषय पर वापस आते हैं जिस पर हम पिछली बार संगति कर रहे थे और मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करना और उनका गहन-विश्लेषण करना जारी रखते हैं।

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