अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9) खंड चार

कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित और कार्यान्वित करने का तरीका

I. कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित करने का तरीका

कार्य-व्यवस्थाओं की ये 10 मदें उन सभी अलग-अलग कार्यों की सीमा और सामग्री हैं जो परमेश्वर कलीसिया में और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच करता है। इस कार्य की सामग्री और सीमा समझ लेने से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह कार्य अच्छी तरह से करने में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पर्यवेक्षण करने में मदद मिलती है। दूसरे लिहाज से, इससे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी जिम्मेदारियों का दायरा और उन्हें जो कार्य करना चाहिए और जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए उन्हें समझने में और “अगुआ और कार्यकर्ता” पदनाम की सटीक परिभाषा प्राप्त करने में मदद मिलती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियाँ हैं? उन्हें कौन-सी समानताएँ जीनी चाहिए? क्या उन्हें राज्य सरकार के अधिकारियों की तरह होना चाहिए? (नहीं।) “अगुआ और कार्यकर्ता” कोई आधिकारिक पद या उपाधि नहीं है। अगुआ और कार्यकर्ता क्या हैं, यह बात व्यक्ति को अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों से और परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपे गए आदेश से और परमेश्वर द्वारा उनसे अपेक्षित मानकों से समझनी चाहिए। इस तरह से व्यक्ति को “अगुआ और कार्यकर्ता” के पदनाम की अपेक्षाकृत ठोस समझ होने लगेगी और उसके लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं की परिभाषा और स्पष्ट हो जाएगी। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कम-से-कम कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? जैसा मद नौ में बताया गया है, उन्हें परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार हर कार्य-व्यवस्था सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करनी चाहिए। कार्य-व्यवस्था चाहे किसी भी पहलू से संबंधित क्यों ना हो, जब तक इसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जरिए संप्रेषित किया जाता है, तब तक उन्हें इस कार्य-व्यवस्था को पूरी तरह से सटीक समझकर बिना किसी देरी के और बिना रुके कलीसियाओं को संप्रेषित कर देनी चाहिए। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है जिन्हें कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित की जा रही हैं, अगर परमेश्वर के घर की यह अपेक्षा है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को संप्रेषित की जाएँ, जिसमें प्रचारक, कलीसियाई अगुआ और कलीसियाई उपयाजक स्तर के लोग भी शामिल हैं, तो उन्हें नीचे इस स्तर के लोगों तक संप्रेषित किया जाना चाहिए, और बस इतना ही; अगर कार्य-व्यवस्थाएँ हर भाई-बहन को संप्रेषित की जानी हैं तो फिर उन्हें परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के सख्त अनुपालन में हर भाई-बहन को संप्रेषित किया जाना चाहिए। अगर परिवेश के कारण कार्य-व्यवस्थाओं को लिखित रूप में संप्रेषित करना असुविधाजनक है और ऐसा करने से सुरक्षा जोखिम या और भी बड़ी परेशानियाँ आएँगी तो कार्य-व्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण और मुख्य सामग्री मौखिक रूप से हर व्यक्ति को सटीक रूप से संप्रेषित की जानी चाहिए। तो, कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित मानी जाने के लिए इसे कैसे करना चाहिए? अगर कार्य-व्यवस्थाएँ लिखित रूप में संप्रेषित की जा रही हैं तो यह पुष्टि की जानी चाहिए कि सभी ने उन्हें प्राप्त कर लिया है, सभी को उनके बारे में मालूम है, और सभी उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं; अगर वे मौखिक रूप से संप्रेषित की जा रही हैं तो उन्हें संप्रेषित किए जाने के बाद लोगों से बार-बार पूछा जाना चाहिए कि क्या वे उन्हें स्पष्ट रूप से समझते हैं और क्या वे उन्हें याद हैं और यहाँ तक कि उनसे कार्य-व्यवस्थाएँ वापस दोहराने के लिए भी कहा जा सकता है—सिर्फ इसी तरीके से यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सही मायने में संप्रेषित कर दी गई हैं। अगर लोग वापस दोहरा सकते हैं और स्पष्ट रूप से यह बता सकते हैं कि परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांत क्या हैं और विशिष्ट सामग्री क्या है तो इससे यह प्रमाणित होता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ पहले से ही उनके दिमागों में संप्रेषित की जा चुकी हैं, उन्होंने उन्हें याद कर लिया है और वे उन्हें स्पष्ट रूप से समझते हैं। सिर्फ तभी यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सही मायने में संप्रेषित कर दी गई हैं। अगर कार्य-व्यवस्थाएँ लिखित रूप में संप्रेषित करने के लिए परिस्थितियाँ, परिवेश और इसी तरह के सभी दूसरे कारक उपयुक्त हैं तो उन्हें लिखित रूप में बिल्कुल संप्रेषित किया जाना चाहिए; अगर उन्हें लिखित रूप में संप्रेषित नहीं किया जा सकता है क्योंकि परिवेश इसकी अनुमति नहीं देता है और इसलिए उन्हें मौखिक रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए तो यह पुष्टि की जानी चाहिए कि मौखिक रूप से जो संप्रेषित किया जा रहा है वह कार्य-व्यवस्थाओं के समान है, वह विकृत नहीं है, और उसमें कोई व्यक्तिगत समझ नहीं जोड़ी गई है और मूल पाठ वर्णित किया जा रहा है—सिर्फ इसी तरह से यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सच्चे और सटीक रूप से संप्रेषित कर दी गई हैं। कार्य-व्यवस्थाएँ पूरी तरह से उनके विशिष्ट शब्दों के अनुसार संप्रेषित की जानी चाहिए; वे गैर-जिम्मेदार तरीके से या लोगों की व्यक्तिगत समझ और कल्पनाओं के आधार पर विकृत या बेतुकी व्याख्याओं के साथ संप्रेषित नहीं की जानी चाहिए। जब उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित करने की बात आती है तो लोगों को कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित करने के लिए सख्ती का स्तर समझना चाहिए; यानी, उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या हमें उन्हें हूबहू संप्रेषित करना पड़ेगा?” नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है। अचूकता की अपेक्षा उपकरणों से की जाती है; अगर लोग बस उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित कर पाएँ तो वे बहुत अच्छा कर रहे होंगे। मिसाल के तौर पर, कलीसियाई जीवन के संबंध में बात करें तो, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के चुने हुए लोगों से परमेश्वर को जानने के बारे में परमेश्वर के वचन खाने-पीने की अपेक्षा करती हैं—क्या इसे संप्रेषित करना आसान है? (हाँ।) कार्य-व्यवस्थाएँ लोगों को एक दायरा देती हैं और वे परमेश्वर के ये सभी प्रासंगिक वचन पढ़ सकते हैं। लेकिन, अगर कोई व्यक्ति कार्य-व्यवस्थाओं की गलत व्याख्या करता है, अपनी व्यक्तिगत समझ और धारणाएँ और कल्पनाएँ जोड़ता है और कुछ अतिरिक्त शब्द संप्रेषित करता है तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कार्य-व्यवस्थाओं से हट गया है? क्या वह सटीक रूप से कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर रहा है? (नहीं।) वह अपने अतिरिक्त शब्दों के साथ कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर रहा है—यह सरासर बकवास है। व्यक्ति को ऊपरवाले से आने वाली हर कार्य-व्यवस्था कई बार पढ़नी चाहिए और उसे उसके सही अर्थ, यह कार्य-व्यवस्था जारी करने के महत्व और यह क्या परिणाम प्राप्त करने के लिए है इसके बारे में स्पष्ट होना चाहिए और फिर, ऊपरवाले द्वारा व्यवस्थित की गई कार्य की विशिष्ट मदों का अभ्यास करने के सही तरीके का पता लगाना चाहिए जिससे गलतियाँ करने से बचा जा सके। इन बातों की संगति करने और इन्हें समझ लेने के बाद कार्य-व्यवस्था को संप्रेषित करना पूरी तरह से सटीक होगा। सबसे पहले जो करना चाहिए वह यह कि पादरियों के इलाकों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं से कार्य व्यवस्थाएँ दूसरे सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सौंपी जानी चाहिए जो अंत में उन्हें हर कलीसिया की हर टीम के पर्यवेक्षक को आगे भेजेंगे। फिर परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं पर सभाओं में कई बार संगति की जानी चाहिए ताकि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग उन्हें समझ जाएँ और जान लें कि उन्हें कैसे अभ्यास में लाना है—सिर्फ यह परिणाम प्राप्त होने के बाद ही उन्हें संप्रेषित किया गया माना जा सकता है। कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित विधि और दायरे के अनुसार संप्रेषित की जानी चाहिए। यकीनन, संप्रेषित की गई सामग्री सटीक और त्रुटि रहित होनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को लापरवाही से उसकी गलत व्याख्या नहीं करनी चाहिए और उसमें अपने विचार नहीं जोड़ने चाहिए—ऐसा करना उसे सटीक रूप से संप्रेषित करना नहीं है और यह एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में नाकामी का संकेत है। कार्य-व्यवस्थाओं को सटीक रूप से संप्रेषित और कार्यान्वित करना इसी तरह से समझा जाना चाहिए।

अगर अगुआ और कार्यकर्ता अब भी इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित करने का क्या तरीका है तो उन्हें क्या करना चाहिए? इसका एक बहुत ही सरल और आसान तरीका है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाएँ प्राप्त होने के बाद उन्हें सबसे पहले दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कार्य-व्यवस्थाओं पर संगति करनी चाहिए, यह देखना चाहिए कि इन कार्य-व्यवस्थाओं के लिए ऊपरवाले द्वारा कितनी विशिष्ट मदों की अपेक्षा की जा रही है और उन्हें एक-एक करके इन मदों को सूचीबद्ध करना चाहिए। फिर, इन कार्य-व्यवस्थाओं के आधार पर उन्हें स्थानीय कलीसिया की वास्तविक स्थिति पर विचार करना चाहिए, जैसे कि सुसमाचार कार्य के हालात, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य और कलीसियाई जीवन, साथ ही सभी अलग-अलग प्रकार के लोगों की काबिलियत और पारिवारिक हालात वगैरह और इन सभी चीजों को एकीकृत करना चाहिए ताकि यह देख सकें कि कार्य के इन भागों को कैसे कार्यान्वित करना है। संगति के जरिए सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाओं की एक हूबहू और सटीक समझ पर पहुँचना चाहिए और उनके पास उन्हें संप्रेषित करने के लिए तदनुरूप तरीके होने चाहिए—सिर्फ इसी तरह से कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित होंगी। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाएँ प्राप्त करता है और वह बिना यह जाने कि उनका विशिष्ट रूप से क्या अभिप्राय है, आँख मूँदकर भाई-बहनों को इकट्ठा करता है और उन्हें जारी और संप्रेषित करता है तो क्या यह उचित है? इसका यह परिणाम होता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित किए जाने के एक या दो महीने बाद यह पता चलता है कि हर कलीसिया में वे जिस तरह से कार्यान्वित की गई हैं उनमें विचलन हैं और जब अगुआ या कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाओं को बहुत ध्यान से देखते हैं तो उन्हें पता चलता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ विचलनों के साथ संप्रेषित की गई हैं। अगर उस अगुआ या कार्यकर्ता ने उस समय कार्य-व्यवस्थाएँ निष्ठा से पढ़ी होतीं और उन पर संगति की होती तो सबकुछ ठीक होता, लेकिन खुद क्षण भर के लिए आलसी और लापरवाह होने के कारण, उसने कलीसियाई कार्य में कई गलतियाँ और विचलन उत्पन्न कर दिए, और बाद में उसे उन्हें सुधारना पड़ा। इससे एक पूरा अनावश्यक अतिरिक्त कदम जुड़ जाता है और समय बर्बाद होता है। बेहतर यह होता कि वह कार्य-व्यवस्थाओं पर स्पष्ट रूप से सीधे संगति करता और फिर उन्हें एक-एक करके संप्रेषित और कार्यान्वित करता। जब कार्य अच्छी तरह से नहीं किया जाता है तो क्या यह एक गलती नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, कार्य व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित करने के लिए कुछ कदम हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले कार्य-व्यवस्थाओं की विशिष्ट सामग्री का सच्चा ज्ञान और सटीक समझ होनी चाहिए और फिर उनके पास खास कार्यान्वयन योजनाएँ, कार्यान्वयन विधियाँ और कार्यान्वयन के लिए लक्षित व्यक्ति होने चाहिए—सिर्फ इसी तरह से कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित की जा सकती हैं। जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास कार्य-व्यवस्थाओं की सिर्फ अधूरी समझ हो, वे उन्हें समझते हुए सिर्फ प्रतीत होते हों, उनके बारे में अनिश्चित और अस्पष्ट हों या वे उनमें निहित विशिष्ट अपेक्षाओं और सामग्री को समझते ही नहीं हों, तो क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा आँख मूँदकर उन्हें जारी और संप्रेषित करना उचित है? (नहीं।) क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अच्छी तरह से कार्य का निर्वहन कर सकते हैं? जाहिर है नहीं। इसलिए, ऐसी स्थितियों में जहाँ भाई-बहन नहीं जानते हैं कि कार्य-व्यवस्थाओं में निहित विशिष्ट अपेक्षित मानक और सिद्धांत क्या हैं या उन्हें वास्तव में कैसे कार्यान्वित करना है, वहाँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले से ही कार्य-व्यवस्थाओं की सटीक समझ होगी, और साथ ही उन्हें कार्यान्वित करने के लिए ठोस योजनाएँ और कदम भी होंगे—सिर्फ इसी तरह से अगुआ और कार्यकर्ता पहला कदम, यानी कार्य व्यवस्थाएँ संप्रेषित करना, पूरा कर सकते हैं। एक बार जब कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर दी जाती हैं और सभी भाई-बहन कार्य-व्यवस्थाओं की सामग्री सटीक रूप से समझ लेते हैं और उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा इस कार्य को करने के महत्व, मूल्य और मानकों का कुछ ज्ञान हो जाता है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत इस बात पर संगति करनी चाहिए कि लोगों और कार्य के विशिष्ट भागों को कैसे आवंटित करना है और इस कार्य को कौन कार्यान्वित और पूरा करेगा, इसके लिए क्या विशिष्ट योजना है—ये कार्य का निर्वहन करने के लिए चरण हैं। इस तरह से कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या इसे कार्य पर बारीकी से अनुवर्ती कार्रवाई करना माना जा सकता है? क्या यह कार्य पर तुरंत अनुवर्ती कार्रवाई करना है? (हाँ।)

II. कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित कैसे करें

ऐसा नहीं है कि एक बार जब अगुआ और कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्था प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें बस इसे संप्रेषित और जारी करने की जरूरत होती है और बात वहीं समाप्त हो जाती है। जब हर कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह मालूम हो जाता है कि कार्य-व्यवस्था जारी कर दी गई है तो क्या इसे कार्यान्वित कर दिया गया माना जा सकता है? यह सही मायने में कार्य-व्यवस्था पूरी करना या कार्यान्वित करना नहीं है, यह उनके द्वारा अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना नहीं है और ना ही यह वह मानक है जिसकी परमेश्वर अंततः अपेक्षा करता है। उद्देश्य कार्य-व्यवस्था को संप्रेषित और जारी करना नहीं है—उद्देश्य इसे कार्यान्वित करना है। तो कार्य-व्यवस्थाएँ विशिष्ट रूप से कैसे कार्यान्वित की जानी चाहिए? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी संबंधित पर्यवेक्षकों और भाई-बहनों को इकट्ठे बुलाना चाहिए और उनके साथ इस बारे में संगति करनी चाहिए कि कार्य कैसे करना है, और साथ ही कार्य पूरा करने के लिए एक प्राथमिक पर्यवेक्षक और टीम के सदस्य चुनने चाहिए। कार्य को कार्यान्वित करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले जो चीज करनी चाहिए वह है संगति—संगति इस बारे में करनी चाहिए कि कार्य को सिद्धांतों के अनुरूप और परमेश्वर के घर से प्राप्त इस कार्य-व्यवस्था के अनुरूप कैसे किया जाए, और इसे ऐसे किस तरीके से किया जाए जिसका अभिप्राय परमेश्वर के घर से प्राप्त इस कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित और क्रियान्वित करना है। संगति करते समय भाई-बहनों और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न योजनाएँ सुझानी चाहिए और अंत में एक ऐसा तरीका, ऐसी विधि और ऐसे कदम चुनने चाहिए जो सबसे उपयुक्त हों और सिद्धांतों के सबसे ज्यादा अनुरूप हों और यह तय करना चाहिए कि पहले क्या करना है और उसके बाद क्या करना है ताकि कार्य एक सुव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। एक बार जब इसे सिद्धांत रूप में समझ लिया जाता है, जब लोगों के पास अब कोई कठिनाइयाँ या कल्पनाएँ नहीं होती हैं, जब वे इस कार्य के प्रति कोई प्रतिरोध महसूस नहीं करते हैं और वे परमेश्वर के घर की इस कार्य-व्यवस्था के अर्थ और उद्देश्य को समझ पाते हैं, तब भी कार्य को कार्यान्वित किया गया नहीं माना जा सकता है। यह भी तय किया जाना चाहिए कि इस कार्य के लिए कौन सबसे उपयुक्त और कुशल है, कौन इस कार्य की जिम्मेदारी उठा सकता है, और किस व्यक्ति में यह कार्य पूरा करने की क्षमता है। इस कार्य को स्वीकार करने वाले लोगों को चुना जाना चाहिए, कार्यान्वयन योजना और पूरा होने की समय-सीमा तय की जानी चाहिए और कार्य पूरा करने के लिए जरूरी संसाधन, सामग्री और ऐसी ही दूसरी चीजें तैयार की जानी चाहिए और स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए—सिर्फ तभी कार्य को कार्यान्वित किया गया माना जा सकता है। यकीनन, कार्यान्वयन से पहले इस कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट संप्रेषण और चर्चा करना भी जरूरी है, यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने पहले यह कार्य किया है और इस पर उनके विचार और अनुमान क्या हैं। अगर वे ऐसी कुछ योजनाएँ और अनुमान प्रदान करते हैं जो सिद्धांतों के अनुरूप हैं तो उन्हें अपनाया जा सकता है। इसके अलावा हर कार्य कार्यान्वित करते समय यह पता लगाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वास्तव में कितनी समस्याएँ मौजूद हैं—इस कदम को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। समस्याओं का पता चलने के बाद, समय से समस्याओं को हल करने के तरीके सोचे जाने चाहिए और सभी मौजूदा समस्याएँ पूरी तरह से हल करने के बाद ही कार्य-व्यवस्था वास्तव में कार्यान्वित की जाएगी। इसके अलावा, क्या तुम्हें यह भी तलाश नहीं करनी चाहिए कि इस कार्य को ऐसे किस तरीके से किया जाए जो परमेश्वर के घर के जरूरी सिद्धांतों के अनुरूप हो? इसके अलावा क्या परमेश्वर के घर में इस कार्य के लिए समय के संबंध में कोई अपेक्षाएँ हैं, इसे किस समय-सीमा में पूरा किया जाना चाहिए, क्या पेशेवर कौशल के संबंध में कोई ठोस नियम हैं, वगैरह सभी ऐसे विषय हैं जिन पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को संबंधित पर्यवेक्षकों के साथ संगति करनी चाहिए। यही कार्यान्वयन है। कार्यान्वयन मौखिक संप्रेषण या सिद्धांत के साथ समाप्त नहीं हो जाता है बल्कि इसमें संबंधित कार्य की वास्तविक प्रगति और साथ ही ऐसी कुछ विशिष्ट समस्याएँ और कठिनाइयाँ शामिल होती हैं जिन्हें हल करने की जरूरत होती है। पर्यवेक्षकों के साथ कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन सभी चीजों पर विचार करना चाहिए। यानी, यह विशिष्ट कार्य करने से पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पर्यवेक्षकों के साथ इस तरह की संगति, विश्लेषण और चर्चा करनी चाहिए—यही कार्यान्वयन है। यह कार्यान्वयन अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है और यही वह चीज है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को प्राप्त करनी चाहिए। इस तरह से अभ्यास करना वास्तविक कार्य करना है। मान लो कि कोई अगुआ कहता है, “अभी, मुझे भी यह कार्य करना नहीं आता है। कुछ भी हो, मैंने इसे तुम्हें सौंप दिया है। मैंने तुम्हें कार्य-व्यवस्था संप्रेषित और जारी कर दी है और मैंने तुम्हें सभी संबंधित मामलों के बारे में भी बता दिया है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि तुम इसे करने का तरीका जानते हो या नहीं, तुम इसे कैसे करते हो, तुम इसे अच्छी तरह से करते हो या खराब तरीके से करते हो और तुम्हें इसमें कितना समय लगता है, यह सब तुम पर निर्भर करता है। इन चीजों का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। इतना कार्य करके मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है।” क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा कहना चाहिए? (नहीं।) अगर कोई अगुआ ऐसा कहता है तो वह किस तरह का व्यक्ति है? वह एक नकली अगुआ है। जब भी ऊपरवाला अपेक्षाएँ करता है और कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य का निर्वहन करना जरूरी होता है तो इस तरह का व्यक्ति इसे पूरी तरह से किसी और पर थोप देता है और कहता है, “इसे तुम करो, मुझे नहीं पता है कि इसे कैसे करना है। वैसे भी तुम इसे पूरी तरह से समझते हो। तुम एक विशेषज्ञ हो मैं एक आम आदमी हूँ।” यह एक “मशहूर कहावत” है जो अक्सर नकली अगुआओं द्वारा कही जाती है; वे कोई बहाना ढूँढ़ लेते हैं और फिर चुपके से निकल जाते हैं।

संक्षेप में कहूँ तो नकली अगुआ अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं। उनकी काबिलियत चाहे ज्यादा हो या कम, चाहे वे कार्य सँभालने में समर्थ हों या नहीं, मुख्य बात यह है कि वे सतर्क नहीं होते हैं और उसमें अपना दिल नहीं लगाते हैं और वे हमेशा लापरवाह होते हैं। ये जिम्मेदार नहीं होने की अभिव्यक्तियाँ हैं। मान लो कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता की काबिलियत कुछ हद तक खराब है और उसके पास गहरा अनुभव नहीं है लेकिन वह सतर्कता से कार्य कर सकता है और अपने कार्य में अपना दिल लगा सकता है। वैसे तो वह अपने कार्य में उतने बढ़िया परिणाम प्राप्त नहीं करता है लेकिन कम-से-कम वह एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है, वह अपने कार्य में अपना पूरा दिल लगा देता है और वह अपना सब कुछ लगा देता है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसमें काबिलियत की कुछ हद तक कमी होती है और वह छोटे आध्यात्मिक कद का होता है, वह अच्छी तरह से कार्य नहीं करता है। अगर वह कुछ समय तक खुद को प्रशिक्षित करने के बाद अपने कार्य में पूरी तरह से योग्य हो जाएगा तो इस तरह के अगुआ को विकसित करना जारी रखना चाहिए। अगर किसी अगुआ में रत्ती भर जमीर या सूझ-बूझ नहीं है और वह सिर्फ अपने पद पर बना रहता है और रुतबे के फायदों में लिप्त रहता है लेकिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करता है तो वह एक प्रामाणिक नकली अगुआ है और उसे तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए और उसे फिर कभी भी पदोन्नत या उपयोग किए जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। एक सच्चा अगुआ, एक जिम्मेदार अगुआ, अपने कार्य में अपना सब कुछ लगा देता है—वह अपना मन उसमें समर्पित कर देता है, वह परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए सभी तरह के तरीके ढूँढ़ निकालता है और वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता है—इस तरह से वह अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहा होता है। परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते समय जिम्मेदार अगुआ कार्यान्वयन की स्थिति की जाँच-परख और अनुवर्ती कार्रवाई भी करेंगे। जब कोई अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न होती है तो वे चुपके से निकल जाने और मामले से अपना पल्ला झाड़ लेने के बजाय प्रतिक्रिया के उपाय और समाधान अपनाने में समर्थ होंगे। कार्य को इस तरह से कार्यान्वित करना जिम्मेदार होना कहलाता है। कोई कार्य-व्यवस्था जारी की जाने पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस कार्य को फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण मानना चाहिए और उसका प्रभार लेना चाहिए; उन्हें व्यक्तिगत रूप से उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए, शुरू से अंत तक उसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए और कार्य को तभी छोड़ना चाहिए जब वह सही रास्ते पर आ जाए और हर टीम के अगुआओं को पता हो कि इसका निर्वहन कैसे करना है। लेकिन इसे छोड़ने के बाद भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य की स्थिति समझने और समय-समय पर उसका निरीक्षण करने की जरूरत होती है, सिर्फ इसी तरह से यह आश्वस्त किया जा सकता है कि कार्य अच्छी तरह से किया जाएगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपने पद नहीं छोड़ना, शुरू से अंत तक डटे रहना, कार्य को सही रास्ते पर ले जाना—इसे वास्तविक कार्य करना कहते हैं। इस दौरान अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य की दूसरी मदों की प्रगति का ध्यान रखने और उसकी जाँच-पड़ताल करने की जरूरत होती है। कार्य में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ या समस्याएँ क्यों ना उत्पन्न हों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दिशा और समाधान प्रदान करने के लिए तुरंत कार्यस्थल पर जाना चाहिए। मुख्य अगुआ को सबसे महत्वपूर्ण कार्य को मजबूती से पकड़कर रखना चाहिए और साथ ही उसके लिए कलीसिया के दूसरे कार्यों पर अनुवर्ती कार्रवाई करना, उन्हें समझना, उनका निरीक्षण और पर्यवेक्षण करना और यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि यह सब कुछ सामान्य रूप से आगे बढ़े। जब सबसे महत्वपूर्ण कार्य की बात आती है तो मुख्य अगुआ को व्यक्तिगत रूप से कार्यस्थल पर कार्य करना चाहिए और इस कार्य की बागडोर सँभालनी चाहिए और खासकर जब कार्य के अत्यंत महत्वपूर्ण भागों की बात आती है तो उसे यकीनन कार्यस्थल नहीं छोड़ना चाहिए। अगर एक व्यक्ति पर्याप्त नहीं है तो उसके साथ सहयोग करने और कार्य को निर्देशित करने के लिए एक और व्यक्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए—यह हर संभव प्रयास करना और अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को अच्छी तरह से करने के एक सामान्य उद्देश्य के साथ एकजुट होना है। चूँकि परमेश्वर के घर में हर चरण और हर समयावधि में एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है इसलिए अगर मुख्य अगुआ अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को अच्छी तरह से नहीं करता है तो इसका यह अर्थ है कि उसकी काबिलियत में समस्या है और उसे बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। मुख्य अगुआ को सबसे अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य का प्रभार लेना चाहिए जबकि दूसरे अगुआओं को साधारण कार्य का प्रभार लेना चाहिए; अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सीखना चाहिए कि कार्य को महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कैसे प्राथमिकता देनी है और फायदे और नुकसान का आकलन कैसे करना है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इन सिद्धांतों में महारत हासिल कर सकते हैं तो वे अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मानक स्तर के हैं।

परमेश्वर के घर में ज्यादातर अगुआ और कार्यकर्ता युवा लोग हैं, वे नौसिखिये हैं और वे कार्य करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं इसलिए उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि वे सिद्धांतों में महारत हासिल करना सीखें। हो सकता है कि कुछ लोग कहें, “परमेश्वर के घर में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए जो अपेक्षाएँ हैं क्या वे बहुत ऊँची नहीं हैं?” वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है। लोगों से सिद्धांतों में महारत हासिल करने की अपेक्षा करना एक ऊँची अपेक्षा कैसे हो सकती है? अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों में महारत हासिल नहीं कर पाता है तो वह कलीसिया का कार्य अच्छी तरह से कैसे कर पाएगा? अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों के बिना ही मामले सँभालता है तो वह अगुआ या कार्यकर्ता कैसे हो सकता है? सिद्धांतों में महारत हासिल करना आम लोगों से नहीं बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित है; अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों में महारत हासिल नहीं कर पाता है तो वह अच्छी तरह से कार्य नहीं कर पाएगा। जिन लोगों में काबिलियत की बहुत कमी है वे सिद्धांतों के लिए अपर्याप्त होते हैं, परमेश्वर का घर उन्हें विकसित नहीं करेगा और वे अगुआ बनने के लिए भी योग्य नहीं हैं। कुछ लोगों को हमेशा लगता है कि अगुआ बनना कठिन है और इसके दो कारण हैं : एक यह है कि वे सत्य बिल्कुल नहीं समझते हैं और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में समर्थ नहीं हैं; दूसरा यह है कि उनमें काबिलियत की कमी है, उन्हें नहीं पता है कि कार्य करने का क्या अर्थ है, वे कार्य के लिए सिद्धांत और अभ्यास का मार्ग स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं और यहाँ तक कि वे स्पष्ट रूप से धर्म-सिद्धांत भी नहीं बोल पाते हैं। इस तरह के लोग अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। मान लो कि किसी की काबिलियत बहुत ही खराब है, वह कार्य करना नहीं जानता है और वह अपना कर्तव्य करने में बिल्कुल भी कुशल नहीं है—यानी वह उस कार्य को करने में कई दिन लगा देता है जिसे करने में एक दिन का समय लगना चाहिए और उस कार्य को करने में छह महीने लगा देता है जिसे करने में एक महीने का समय लगना चाहिए—ऐसे लोग बेकार हैं, वे निकम्मे हैं। जिन लोगों की काबिलियत बहुत ही खराब है वे कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं। लोगों से ये अपेक्षाएँ रखना मेरे लिए उचित और तर्कसंगत दोनों है और ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें अगुआ और कार्यकर्ता प्राप्त कर सकते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि परमेश्वर के घर द्वारा की गई अपेक्षाएँ बहुत ही ऊँची हैं—इससे पता चलता है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, वे अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए योग्य नहीं हैं और उन्हें जवाबदेह होना चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए। तुम अगुआ या कार्यकर्ता की जिम्मेदारियाँ स्वीकार करने में समर्थ नहीं हो और तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो इसलिए भले ही तुम अगुआ क्यों न हो, तुम नकली अगुआ हो। अगर तुम एक कार्य भी अच्छी तरह से नहीं कर पाते तो तुम एक ही समय में दूसरे कार्य पर कैसे ध्यान दे सकते हो? क्या बहुत ही खराब काबिलियत वाले लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? अगर वे एक रक्षक कुत्ते जितने भी अच्छे नहीं हैं तो फिर वे मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं। जब कुत्ता किसी घर की रखवाली करता है तो वह ना सिर्फ सामने वाले आँगन, पिछले आँगन और सब्जी के बगीचे की रखवाली करता है बल्कि वह घर की मुर्गियों, हंसों और भेड़ों की भी रखवाली कर सकता है। जैसे ही उसे किसी अजनबी के आने की भनक लगती है वह भौंकने लगता है—वह किसी को भी आँगन में आने नहीं देगा और वह जानता है कि उसे अपने मालिक को अजनबी के आने के बारे में चौकन्ना करना है। कुत्ते का मन भी सरल नहीं होता है। अगर किसी की काबिलियत बहुत ही खराब है और उसकी तुलना कुत्ते से भी नहीं की जा सकती है तो क्या ऐसा व्यक्ति निकम्मा नहीं है? कुछ लोग आराम पसंद करते हैं और कार्य से नफरत करते हैं, वे पेटू और आलसी होते हैं और वे खुद कुछ भी किए बिना परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी करना चाहते हैं—क्या वे परजीवी नहीं हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं से सिद्धांतों के साथ मामले सँभालने की अपेक्षा करके परमेश्वर का घर उन्हें अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सत्य का अभ्यास करने और वास्तविकता में प्रवेश करने में समर्थ होने के लिए विकसित और प्रशिक्षित कर रहा है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में समर्थ हैं—ये सभी लोग परमेश्वर द्वारा धन्य हैं। जो लोग आराम पसंद करते हैं और कार्य से नफरत करते हैं और जो कोई भी वास्तविक चीज नहीं करते हैं उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। वे सभी बेकार लोग जो सुख-सुविधाओं का लालच करते हैं, जो कष्ट और थकान से डरते हैं, जो हमेशा कष्टों और कठिनाइयों की शिकायत करते हैं और बिल्कुल कष्ट सहन नहीं कर सकते हैं उन्हें हटा दिया जाना चाहिए—एक भी ना बचे! अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना कार्य शुरू करने पर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तो उन्हें समस्या का स्रोत खोजना चाहिए और फिर उन बाधक और अनुचित उपद्रवियों को—उन बाधाओं और रुकावटों को—दूर कर देना चाहिए। जब बचे हुए सभी लोग ऐसे हैं जो सत्य स्वीकार सकते हैं, आज्ञा मान सकते हैं और समर्पण कर सकते हैं तो उनकी अगुआई करना ज्यादा आसान होगा। जब अगुआ और कार्यकर्ता कार्य करते हैं तो उन्हें सबसे पहले सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करनी चाहिए ताकि उन्हें सुनने के बाद लोगों के पास आगे बढ़ने का एक रास्ता हो। उन्हें धर्म-सिद्धांतों की बात नहीं करनी चाहिए, नारे नहीं लगाने चाहिए और लोगों को उन पर ध्यान देने और उनका पालन करने और अभ्यास करने के लिए मजबूर तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करते हैं तो फिर ज्यादातर लोग उसे अभ्यास में लाने के इच्छुक होंगे। यह चिंताजनक बात है कि अगर अगुआ और कार्यकर्ता चीजों को स्पष्ट या सुबोध रूप से नहीं समझाते हैं और फिर भी भाई-बहनों से अभ्यास करने की अपेक्षा करते हैं और भाई-बहनों को यह नहीं पता होता है कि अभ्यास कैसे करना है और वे अभ्यास का मार्ग नहीं ढूँढ़ पाते हैं—तो यह कार्य के परिणामों को प्रभावित करेगा। जब तक अगुआ और कार्यकर्ता हर विशिष्ट प्रकार के कार्यों में शामिल सत्य सिद्धांतों को सुबोध रूप से समझा सकते हैं और उन पर स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं तब तक ज्यादातर लोग समझदार और विवेकशील होंगे और वे अपनी भूमिका निभाने के इच्छुक होंगे। अगर कोई व्यक्ति जो कहता है वह सही है, सत्य के अनुरूप है और कलीसियाई कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए फायदेमंद है तो सब लोग उसकी बात सुनने के इच्छुक होते हैं। लेकिन ऐसी एक स्थिति है जिसमें कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और जब कोई उनसे अभ्यास के विशिष्ट मार्ग के बारे में पूछता है तो वे इसे समझा नहीं पाते हैं और कुछ बहुत बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांत बोलने लगते हैं और कुछ नारे लगाते हैं और फिर उस व्यक्ति को विदा कर देते हैं। वह व्यक्ति आश्वस्त नहीं होता है और सोचता है, “तुम मुझे इसे अभ्यास में लाने के लिए कह रहे हो लेकिन तुमने इसे स्पष्ट रूप से नहीं समझाया है—तो फिर मैं इसका अभ्यास कैसे कर सकता हूँ? मेरे पास अनुसरण करने के लिए कोई मार्ग नहीं है! मैंने तुमसे पूछा क्योंकि मुझे समझ नहीं आता है लेकिन यह पता चला है कि तुम्हें भी समझ नहीं आता है और तुम सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलना और नारे लगाना जानते हो। तुम मुझसे बेहतर नहीं हो। मुझे तुम्हारी आज्ञा क्यों माननी चाहिए? मैं सत्य का पालन करता हूँ, तुम्हारा नहीं जो धर्म-सिद्धांत बोलता है और नारे लगाता है!” इस प्रकार की परिस्थिति होती है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता खोखली बातें बोलने से बच सकें, सच्चाई से बोल पाएँ और सिद्धांतों और अभ्यास के मार्ग पर स्पष्ट रूप से संगति कर पाएँ तो ज्यादातर लोग आज्ञा मानने में समर्थ होंगे। इसलिए कलीसिया का कार्य करना वास्तव में आसान है; जब तक अगुआ और कार्यकर्ता पूरे लगन से कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित कर पाते हैं, अपने कार्य पदों पर बने रह पाते हैं और विशिष्ट कार्य में शामिल हो पाते हैं तब तक वे कार्य को अच्छी तरह से करने में पूरी तरह से समर्थ होंगे। चिंता की बात यह है कि अगर अगुआ, कार्यकर्ता और पर्यवेक्षक गैर-जिम्मेदार हैं और रोब जमाते हैं, सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलना और नारे लगाना जानते हैं और कार्यस्थल पर विशिष्ट कार्य में शामिल नहीं होते हैं—तो यकीनन कार्य में समस्याएँ होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि नीचे के लोग इस प्रकार की चीजों की असलियत नहीं देख पाते हैं, उन्हें रास्ता दिखाने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है, उन्हें किसी सहारे की जरूरत पड़ती है, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है जो व्यक्तिगत रूप से उनकी अगुवाई करे और उन्हें बताए कि क्या करना है, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है जो पर्यवेक्षण प्रदान करे और निरीक्षण करे, नहीं तो कार्य कार्यान्वित नहीं होगा। अगर तुम यह उम्मीद करते हो कि तुम किसी रुतबे की स्थिति से कुछ धर्म-सिद्धांत और नारे लगा सकते हो और फिर नीचे के लोग कार्रवाई करेंगे और तुम जैसा कहोगे वैसा ही करेंगे तो तुम सपना देख रहे हो। नीचे के लोग मशीनों जैसे होते हैं : अगर किसी ने उन्हें चालू नहीं किया तो वे क्रियाकलाप नहीं करेंगे। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य करने वाले लोग इसे भी पूरा नहीं कर पाते हैं तो उनमें अंतर्दृष्टि की अत्यंत कमी है! जब नकली अगुआ कार्य करते हैं तो वे किसी भी चीज की असलियत पहचान नहीं पाते हैं। उन्हें नहीं पता होता है कि कौन-सा कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है और कौन-सा सामान्य मामलों वाला कार्य है और ना ही वे महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कार्यों को प्राथमिकता देने में समर्थ होते हैं। वे चाहे कुछ भी करें उनके पास कोई सिद्धांत नहीं होता है, वे अभ्यास का मार्ग स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं और वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और नारे लगाते हैं, सिर्फ कुछ अव्यावहारिक चीजें कहते हैं। फलस्वरूप वे कोई भी कार्य करने में बिल्कुल समर्थ नहीं होते हैं और उन्हें सिर्फ हटाया जा सकता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह मालूम होना चाहिए कि कार्य कैसे व्यवस्थित और कार्यान्वित करना है और उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि कार्य का निरीक्षण और निर्देशन कैसे करना है और उत्पन्न होने वाली समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से कैसे सुलझाना है। सिर्फ ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता ही वास्तविक कार्य कर सकते हैं और लोगों को पूरी तरह से विश्वास दिला सकते हैं। अगर कोई अगुआ कार्य का निर्देशन नहीं कर सकता है या समस्याओं का पता नहीं लगा सकता है और उन्हें सुलझा नहीं सकता है, अगर वह सिर्फ दूसरों को लगातार व्याख्यान देने और उनकी काट-छाँट करने में समर्थ है और खुद चीजों को गड़बड़ करने पर वह दूसरों को दोष देता है तो यह एक अयोग्य अगुआ होना है। ऐसा अगुआ एक बेकार व्यक्ति है, वह नकली अगुआ है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। अगर तुम्हें यह मालूम नहीं है कि कोई विशिष्ट कार्य कैसे करना है तो तुम्हें कम-से-कम दो ऐसे उपयुक्त लोग ढूँढ़ने चाहिए जो तुम्हारे सहायक के रूप में कार्य कर सकें ताकि तुम यह विशिष्ट कार्य अच्छी तरह से कर सको और तुम्हें कम-से-कम पहले उन बाधक लोगों को सँभालना और बहिष्कृत या निष्कासित करना चाहिए जो विघ्न उत्पन्न करते हैं। क्या इससे इस कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं हो रही हैं? वास्तविक चीजें कर सकने वाले लोग मिलने पर अगर तुम उन्हें तुरंत पदोन्नत करते हो और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने वाले लोग मिलने पर अगर तुम उन्हें तुरंत सँभालते हो और बहिष्कृत या निष्कासित करते हो तो फिर इस कार्य को जारी रखने में तुम्हें बहुत कम कठिनाइयाँ होंगी। जिन अगुआओं में काबिलियत की अत्यंत कमी होती है वे इस तरह से कार्य करने में समर्थ नहीं होते हैं। वे लोगों को नाराज करने से डरते हैं और जब वे किसी कुकर्मी को लगातार विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते देखते हैं तो वे उन्हें नहीं सँभालते हैं। वे यह भी नहीं बता पाते हैं कि कौन कुछ वास्तविक चीज करने में सक्षम है और उन्हें यह नहीं पता होता है कि कार्य का प्रभार लेने के लिए किसे पदोन्नत करना उचित है। इस तरह के अगुआ अंधे होते हैं और वे अपने कार्य का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य या पेशेवर कौशल नहीं समझते हैं तो वे अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं करेंगे, इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को वास्तविक कार्य करने के लिए बार-बार प्रशिक्षण लेना चाहिए। जब तक वे सिद्धांतों में महारत हासिल करते हैं, महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कार्यों को प्राथमिकता देना जानते हैं और उन्हें यह पता होता है कि नफे और नुकसान का आकलन कैसे करना है तब तक वे अपना कार्य अच्छी तरह से कर पाते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मानक-स्तर के बन पाते हैं।

अब जब मैं परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करने की इस विषय-वस्तु पर संगति कर चुका हूँ, तो क्या अब तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बात की कुछ मूलभूत समझ हो गई है कि कार्य-व्यवस्थाओं को कैसे देखना और कार्यान्वित करना है? और क्या अब तुम्हें उन जिम्मेदारियों और दायित्वों की कुछ विशिष्ट समझ हो गई है जो तुम्हें कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते समय पूरे करने चाहिए? (हाँ।) अब जब तुम्हें यह विशिष्ट समझ है तो तुम्हें इस बारे में विचार करना चाहिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और तुम किस हद तक इसे करने में समर्थ हो और फिर तुम्हें यह फैसला करने में समर्थ होना चाहिए कि तुम्हारे पास अगुआ या कार्यकर्ता बनने की काबिलियत है या नहीं और तुम अगुआई के कार्य के लिए उपयुक्त हो या नहीं। जहाँ तक ऐसे कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं का प्रश्न है जो खराब काबिलियत वाले हैं और जो वास्तविक कार्य नहीं करते हैं—यानी, जिन्हें हम नकली अगुआ कहकर बुलाते हैं—एक बार जब वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी की विशिष्ट विषय-वस्तु समझ लेते हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? कुछ लोग कहते हैं, “मैं पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ वाकई नहीं समझता था और अगुआ बनने के बाद मैंने दिखावे की खातिर कुछ कार्य करने के लिए सिर्फ अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा किया और मैंने सोचा कि चूँकि मैं उत्साही हूँ और कष्ट सहने को तैयार हूँ इसलिए शायद मैं अगुआ के रूप मे एक मानक-स्तर का हूँ। परमेश्वर को इस तरह से संगति करते हुए सुनने के बाद मैं भौंचक्का हो गया हूँ। यह पता चला है कि मैं एक नकली अगुआ हूँ, मेरी काबिलियत बहुत ही खराब है और मैं वास्तविक कार्य नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर के घर की एक अकेली विशिष्ट कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित करने में भी सक्षम नहीं हूँ। मैं सोचता था कि किसी कार्य-व्यवस्था को कई बार पढ़ने, उसे सभी के साथ साझा करने और जब नीचे के लोग उस पर कार्य करें, तो उनसे आग्रह करने और उनकी देखरेख करने का अर्थ है कि मैं वह कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित कर रहा हूँ। कुछ समय बाद मुझे पता चला कि कार्य ठीक से नहीं किया गया है और कई विशिष्ट कार्य अनदेखा किए गए हैं, और सिर्फ तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरी काबिलियत में वाकई कमी है और मुझमें अगुआ बनने के गुण नहीं हैं।” तो इस तरह के व्यक्ति को क्या करना चाहिए? अगर उसने अपना कार्य छोड़ दिया तो क्या यह ठीक होगा? (नहीं।) तो फिर क्या इस समस्या को सुलझाने का कोई तरीका है? या यह समस्या नहीं सुलझने योग्य है? (नहीं, यह नहीं सुलझने योग्य नहीं है। उन लोगों को परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।) यह एक सकारात्मक और सक्रिय परिप्रेक्ष्य है; यह एक बहुत ही अच्छा परिप्रेक्ष्य है। उन्हें परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहिए, परमेश्वर में आस्था रखनी चाहिए और उस पर भरोसा करना चाहिए, और नकारात्मक नहीं बनना चाहिए या अपना कार्य नहीं छोड़ना चाहिए—यह एक समाधान है। क्या यह एक अच्छा समाधान है? (हाँ।) लेकिन क्या यही इकलौता समाधान है? (नहीं, ऐसा नहीं है। अगर उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है और वे वाकई कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं तो वे इसके लिए जवाबदेह हो सकते हैं और अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।) यह दूसरा समाधान है। अगर वे पहले प्रयास कर चुके हैं और उन्हें लगता है कि वे अगुआई का कार्य नहीं कर सकते—यानी अगर यह उनके लिए बहुत ही श्रमसाध्य और कठिन है, और वे इसके बारे में बहुत चिंतित रहते हैं और अच्छी तरह से सो नहीं पाते हैं, और हर रोज उन्हें लगता है जैसे वे किसी बड़े पहाड़ के बोझ तले दबे हुए हैं जिस कारण वे अपना सिर नहीं उठा पाते हैं या साँस खींच नहीं पाते हैं, और उन्हें यह भी लगता है कि चलते समय उनके पैर भारी हो गए हैं—और ये विशिष्ट अपेक्षाएँ सुनने के बाद उन्हें यह और अधिक महसूस होता है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है और वे बस कार्य कर ही नहीं सकते हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? वे एक चीज कर सकते हैं और वह है तुरंत इस्तीफा दे देना। अगर वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं तो उन्हें परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित नहीं करना चाहिए—उनके पास यही विवेक होना चाहिए। उन्हें आँख मूँदकर खुद को अपनी सीमाओं से परे नहीं धकेलना चाहिए, ऐसी कोई चीज करने का प्रयास करने पर नहीं अड़ना चाहिए जो उनकी क्षमताओं से परे हो या बेवकूफी भरी चीजें नहीं करनी चाहिए। सिर्फ उन्हीं लोगों में विवेक है जो ये चीजें करने से बचते हैं। विवेक वाले लोगों में आत्म-जागरूकता होती है; वे अपनी काबिलियत के बारे में स्पष्ट होते हैं और उन्हें अपनी खामियाँ पता होती हैं। जब लोगों को अपनी खुद की माप स्पष्ट रूप से पता होती है, सिर्फ तभी वे सटीक रूप से यह समझ पाते हैं कि वे क्या करने में सक्षम हैं, वे क्या करने में सक्षम नहीं हैं और वे क्या करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। लोगों को अपनी काबिलियत क्यों पता होनी चाहिए? इससे उन्हें यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि उन्हें कौन-सा कर्तव्य करना चाहिए और इससे उन्हें वह कर्तव्य अच्छी तरह से करने में भी मदद मिलती है। अगर तुमने पहले ही अपनी जाँच कर ली है और यह देखा है कि तुम्हारे पास सिर्फ यही काबिलियत है और तुम जानते हो कि तुम अगुआई का कार्य नहीं कर सकते तो तुम्हें फिर से अपनी जाँच करने और इसे साबित करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए—अपने पद पर बने मत रहो और पद छोड़ने से इनकार मत करो; जब तुम विशिष्ट कार्य का निर्वहन करने में समर्थ नहीं हो तो दूसरे लोगों को प्रभावित मत करो और उनके लिए बाधाएँ उत्पन्न मत करो। क्या इस्तीफा देना आगे बढ़ने का एक मार्ग नहीं है? तुम्हारे सामने ये दो मार्ग रखे हुए हैं और तुम इनमें से एक को चुन सकते हो; तुम्हारे पास आगे बढ़ने के रास्ते की कमी नहीं है और सिर्फ एक ही मार्ग नहीं है। तुम अपने बारे में अपनी समझ के आधार पर और साथ ही तुम्हें जानने वाले भाई-बहनों ने तुम्हारे जो मूल्यांकन किए हैं उनके आधार पर अपनी वास्तविक परिस्थिति के बारे में व्यावहारिक और सटीक फैसले ले सकते हो और फिर सही चुनाव कर सकते हो। परमेश्वर का घर तुम्हारे लिए चीजें कठिन नहीं बनाएगा। तुम इसके बारे में क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) कुछ लोग कहते हैं, “मैं फिर से प्रयास करना चाहता हूँ और बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि मैं यह कर सकता हूँ। मैंने उन वर्षों के दौरान सत्य का अनुसरण करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अगुआ बनने के बाद भी मुझे मालूम नहीं था कि सत्य की तलाश कैसे करनी है और मैं भ्रमित तरीके से कार्य करता था। मैं सोचता था कि कलीसियाई अगुआ बनना बहुत आसान है, इसमें सिर्फ लोगों को सभाओं में शामिल होने के लिए संगठित करना, सत्य पर संगति करने में अगुवाई करना, समस्याएँ उत्पन्न होने पर उन्हें समय पर सुलझाना और ऊपरवाले से मिली किसी भी व्यवस्था को तुरंत कार्यान्वित करना और उसे बस वहीं छोड़ देना शामिल है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि कुछ समय तक अगुआ बने रहने के बाद मुझे पता चलेगा कि ऐसी बहुत सी समस्याएँ हैं जिन्हें मैं नहीं सुलझा सकता, जब ऊपरवाले ने कार्य के बारे में पूछा तो मुझे यह नहीं पता था कि कैसे उत्तर देना है और जब परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों ने वास्तविक मुद्दे उठाए तो मैं उत्तर प्रदान करने में समर्थ नहीं था। इन वर्षों में जब भाई-बहनों ने परमेश्वर में विश्वास रखा है, उन सबने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और बार-बार धर्मोपदेश सुने हैं। यकीनन वे सभी कुछ सत्य समझते हैं और उनमें कुछ सूझ-बूझ है। सत्य वास्तविकता के बिना मैं वाकई उन्हें सींच नहीं सकता या उनका भरण-पोषण नहीं कर सकता।” अब यह स्पष्ट है कि परमेश्वर के घर में किसी भी तरह का विशिष्ट कार्य अच्छी तरह से करना इतना सरल नहीं है। एक लिहाज से, लोगों में काबिलियत होनी चाहिए, जबकि दूसरे लिहाज से, उन्हें एक दायित्व उठाने और साथ ही सत्य समझने की जरूरत है—ये सभी चीजें पूरी तरह से जरूरी हैं। किसी व्यक्ति का सत्य का अनुसरण नहीं करना या उसमें काबिलियत की कमी होना उचित नहीं है, ना ही किसी व्यक्ति में मानवता की कमी होना और उसका दायित्व नहीं उठाना उचित है। विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट दृष्टिकोण की जरूरत पड़ती है और यह इतना सरल मामला नहीं है। लेकिन कुछ लोगों को अब भी विश्वास नहीं है। वे अब भी फिर से प्रयास करना चाहते हैं और वे एक और मौका दिए जाने की माँग करते हैं—क्या इस तरह के लोगों को एक और मौका दिया जाना चाहिए? अगर उनकी कार्य क्षमता और काबिलियत दोनों ही औसत हैं लेकिन वे कुछ विशिष्ट कार्य कर सकते हैं और वे लापरवाह नहीं हैं और अपने कार्य में परिणाम प्राप्त करने के लिए समस्याएँ सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और ऊपरवाले द्वारा की गई किसी भी व्यवस्था का पालन कर सकते हैं और उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं, और मूल रूप से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार कार्य को कार्यान्वित कर सकते हैं, और चाहे उन्होंने पहले अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं किया हो क्योंकि वे युवा थे, सत्य नहीं समझते थे और उनकी नींव सतही थी लेकिन वे सही लोग हैं तो फिर उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए और उन्हें खुद को प्रशिक्षित करना जारी रखना चाहिए—उन्हें आँख मूँदकर खारिज मत करो। अगुआ या कार्यकर्ता बनना इतना आसान नहीं है और ना ही किसी अगुआ या कार्यकर्ता को चुनना इतना आसान है। अब ज्यादातर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी जिम्मेदारियों की कुछ समझ हो गई है और वे अपने कार्य में पहले की तुलना में कम-से-कम कुछ हद तक बेहतर होंगे—यह एक सच्चाई है।

अब जब मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी—मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो—के संबंध में सत्य सिद्धांतों पर संगति समाप्त कर ली है तो तुम्हारे दिल पूरी तरह से उज्ज्वल हैं और तुम्हारे पास अभ्यास का एक मार्ग है। अब तुम ना सिर्फ अपना कर्तव्य पूरा करने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने में समर्थ हो बल्कि तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कुछ ज्ञान या उनकी कुछ पहचान भी होनी चाहिए और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए और उन्हें जो कार्य करना चाहिए, तुम्हें कम-से-कम उस बारे में स्पष्टता और समझ हासिल हो जानी चाहिए। संक्षेप में, यह जानना कि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर एक के लिए मददगार और फायदेमंद है और इस तरह से अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में उनकी समझ अब खोखली नहीं रहेगी बल्कि और ठोस हो जाएगी।

10 अप्रैल 2021

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