अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9) खंड दो

III. सुसमाचार कार्य

मद तीन, सुसमाचार कार्य। सुसमाचार कार्य परमेश्वर के घर में प्रशासनिक कार्य और कार्मिक कार्य के बाद विशिष्ट पेशेवर कार्य की पहली बड़ी मद है। परमेश्वर के घर ने कार्य की इस मद के लिए एक के बाद एक कई कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं, जिसके अंतर्गत संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं, सुसमाचार का उपदेश देने के लिए भौगोलिक दायरे और सुसमाचार का उपदेश देने के तरीकों और साधनों के संबंध में विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं। साथ ही, परमेश्वर के घर में सुसमाचार का उपदेश देने के लिए जरूरी परमेश्वर के वचनों की सभी अलग-अलग किताबों, फिल्मों और वीडियो, और विविध प्रकार के शो के संबंध में कार्य-व्यवस्थाओं में भी विशिष्ट कथन हैं, और यहाँ तक कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं की विभिन्न प्रकार की आम धारणाओं और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के संबंध में भी विशिष्ट कथन हैं। कुछ कथन विशिष्ट रूप से लिखित रूप में प्रस्तुत नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन उनमें से कई कथन शाब्दिक और मौखिक संगति में मौजूद हैं। सुसमाचार कार्य हमेशा प्रगति कर रहा है और जारी है, और इस कार्य के प्रगति करने के दौरान, परमेश्वर के घर ने लगातार उठने वाले और लगातार सामने आने वाले मुद्दों के संबंध में विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ और नियम बनाए हैं, और इसने सुसमाचार कार्यकर्ताओं, सुसमाचार उपयाजकों और सुसमाचार कार्य पर्यवेक्षकों को कुछ विशिष्ट अपेक्षाएँ और कार्य भी जारी किए हैं। वैसे तो इस बाद के चरण में परमेश्वर का घर सुसमाचार कार्य की व्यवस्थाओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहता है, लेकिन कलीसिया में सत्य के इस पहलू पर बहुत बार संगति की जाती है। विशेष रूप से, जब विदेशों में सुसमाचार फैलना शुरू हुआ, उसके बाद परमेश्वर के घर ने अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद कार्य के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ कीं। अनुवादक और विभिन्न विदेशी भाषाओं से परिचित सुसमाचार कार्यकर्ता इस तरह के कार्य में सहयोग करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं, और परमेश्वर के घर ने सुसमाचार कार्य में सहयोग करने के लिए इस तरह के कई मानव संसाधनों का निवेश किया है, और यह परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुरूप है। संक्षेप में, ऊपरवाला सुसमाचार फैलाने के कार्य का हमेशा व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन, पूछताछ, अनुवर्ती कार्रवाई और पर्यवेक्षण करता रहता है। तो, कार्य की इस मद की बात आने पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? सुसमाचार कार्य के लिए पर्यवेक्षक होने का अर्थ यह नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता बिल्कुल भी हस्तक्षेप न करें, कार्य पर कोई ध्यान न दें, इसके बारे में पूछताछ न करें, और वे इसे बस अनदेखा कर दें, यह सोचें कि “कार्य अपने आप जैसे भी बढ़ सकता है उसे बढ़ने दो। वैसे भी, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं कलीसियाई जीवन और विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए जिम्मेदार हूँ। अगर सुसमाचार कार्य में कोई समस्या है तो यह मेरा मामला नहीं है।” क्या यह ठीक है? (नहीं।) यह तुम्हारा अपनी जिम्मेदारी की उपेक्षा करना है। परमेश्वर के घर के समस्त कार्य में से कार्य की जिस सबसे महत्वपूर्ण मद पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान केंद्रित करना चाहिए, वह सुसमाचार कार्य है। हो सकता है कि तुम्हें कार्य की इस मद के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं बनाया गया हो, लेकिन तुम्हें इस बारे में पूछताछ अवश्य करनी चाहिए कि यह कितना विकसित हो रहा है और इसकी प्रगति की स्थिति क्या है—तुम्हें इन चीजों पर अनुवर्ती कार्रवाई अवश्य करनी चाहिए, इनके बारे में अवश्य जानना चाहिए और इन चीजों को अपने हाथ में अवश्य रखना चाहिए। विशेष रूप से कुछ महत्वपूर्ण कर्मियों जैसे कि सुसमाचार टीमों में सुसमाचार प्रचारक और सिंचनकर्ता, साथ ही सुसमाचार कार्य के पर्यवेक्षक वगैरह के संबंध में, तुम्हें हमेशा अपनी परिस्थितियों से ठीक समय पर अवश्य निपटना चाहिए और अगर इन कर्मियों के साथ कोई समस्या आती है तो तुम्हें उसका तुरंत समाधान अवश्य करना चाहिए—कार्य सौंपे जाने के बाद तुम्हें जिम्मेदारी लेने से इनकार नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें उन सभी सुसमाचार प्रचारकों का नियमित रूप से निरीक्षण और निर्देशन अवश्य करना चाहिए जो सुसमाचार फैलाने के कार्य से जुड़े हैं, जिसमें कलीसियाओं में मौजूद सुसमाचार प्रचारकों और प्रथम पंक्ति के ऑनलाइन सुसमाचार प्रचारकों के साथ-साथ हर टीम में सिंचनकर्ता भी शामिल हैं। लंबे समय से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा यह अपेक्षित रहा है कि सभी सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं को विशेष प्रशिक्षण से गुजरना चाहिए। विशेष प्रशिक्षण का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं को दर्शनों के सत्यों की स्पष्ट समझ हो और कि वे इन बातों को स्पष्ट रूप से समझा सकें। अगर दर्शनों के सत्य का कोई ऐसा पहलू है जिसके बारे में वे पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं तो उस पर बहुत बार संगति दी जानी चाहिए और सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं की समझ जितनी ज्यादा विस्तृत होगी, उतना ही बेहतर होगा। परमेश्वर के घर में इसके लिए कार्य-व्यवस्थाएँ हैं, है न? (हाँ, हैं।) सुसमाचार फैलाने का कार्य, कार्य की एक विशिष्ट और जटिल मद है, जिसमें कई अलग-अलग कार्य शामिल हैं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर कार्य अच्छी तरह से किया जाए और उस पर बारीकी से अनुवर्ती कार्रवाई की जाए; यह परमेश्वर का आदेश है। हर कार्य अच्छी तरह से किया जाना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर कार्य के परिणामों में लगातार सुधार होता रहे—सिर्फ यही परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। दूसरे सभी प्रकार के पेशेवर कार्य, जैसे कि फिल्म निर्माण, पाठ-आधारित कार्य, संगीत, कला और अनुवाद, सुसमाचार कार्य को सहारा देने और उसका सहयोग करने के लिए मौजूद हैं, और सुसमाचार कार्य पूरे कार्य का अग्रिम पंक्ति का कार्य है। इसलिए, जो लोग विभिन्न कर्तव्य करते हैं, उन्हें अपना कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने चाहिए। इस तरह, सुसमाचार फैलाने के कार्य में उनका हिस्सा होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये दूसरे प्रकार के सभी पेशेवर कार्य सुसमाचार फैलाने की सेवा में मौजूद हैं, और ये सारा कार्य सुसमाचार फैलाने के कार्य पर केंद्रित होने चाहिए और उसके लिए कभी न खत्म होने वाली आपूर्ति प्रदान करनी चाहिए। आज, सुसमाचार का उपदेश देने के लिए जरूरी समस्त सामग्री, फिल्में और विभिन्न वीडियो पर्दे के पीछे परमेश्वर के कई चुने हुए लोगों के प्रयासों से बनाए जाते हैं। ये लोग पर्दे के पीछे जो कुछ भी करते हैं, वह सुसमाचार फैलाने के कार्य को मजबूत सहारा प्रदान करता है। पहले, परमेश्वर के घर में अलग-अलग तरह के फिल्म कार्य नहीं होते थे, इनमें बहुत गाने नहीं होते थे, और ना ही इनमें बहुत सारे अनुभवजन्य गवाही वाले वीडियो होते थे। यह सिर्फ लगातार संगति प्रदान करने वाले सुसमाचार कार्यकर्ताओं पर निर्भर था। सुसमाचार कार्यकर्ता तब तक बोलते रहते थे जब तक उनका मुँह सूख नहीं जाता था और जरूरी नहीं था कि उन्हें कोई महत्वपूर्ण परिणाम दिखाई दे, और एक व्यक्ति प्राप्त करना भी कठिन होता था। कलीसिया द्वारा सभी प्रकार के वीडियो बनाए जाने के बाद, सुसमाचार टीमों का कार्य अपेक्षाकृत हल्का हो गया, और पहले की तुलना में काफी आसान हो गया, और कार्य कुशलता में वृद्धि हुई। कुछ लोगों की सोच जिद्दी और रूढ़िवादी होती है, और जब तुम उन्हें सुसमाचार का उपदेश देते हो, तो तुम सत्य पर चाहे कैसे भी संगति क्यों ना करो, यह कारगर नहीं होता है, और वे अपनी धारणाएँ बनाए रखते हैं और इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं—तब तुम क्या करते हो? तुम उन्हें सुसमाचार गवाही पर एक या दो फिल्में दिखाते हो, और उनकी धारणाओं में परिवर्तन आता है, और सच्चे मार्ग के बारे में उनके दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन आना शुरू हो जाते हैं। जब वे फिर से तलाश करने आते हैं तब उनके दिलों में कोई बड़ी बाधा या रुकावट नहीं रहती है, और जब तुम उनके साथ फिर से सत्य पर संगति करते हो तो वे इसे आसानी से स्वीकार कर पाते हैं। यही कारण है कि जब तुम संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं को परमेश्वर के घर द्वारा बनाई गई फिल्में दिखाते हो या उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हो या उन्हें अनुभवजन्य गवाही वीडियो दिखाते हो तो परिणाम वाकई स्पष्ट होते हैं—ऐसा करना तुम्हारे द्वारा उनसे बहुत से शब्द कहने से ज्यादा प्रभावी होता है। चाहे कोई भी व्यक्ति सच्चे मार्ग की तलाश और जाँच कर रहा हो, पहले उसे कुछ फिल्में देखने के लिए कहो और फिर उसे परमेश्वर के और ज्यादा वचन पढ़ने के लिए कहो, जिससे उसके लिए मार्ग तैयार हो जाए। इसके बाद उसकी धारणाएँ हल करने के लिए उसके साथ सत्य पर संगति करो। इससे चीजें और ज्यादा सुचारू रूप से चलती हैं। आजकल जो लोग सच्चे मार्ग की जाँच कर रहे हैं, वे पहले से ही इंटरनेट पर परमेश्वर के घर द्वारा बनाई कई फिल्में और गवाही वीडियो देख चुके होते हैं और विशेष रूप से वे परमेश्वर के कई वचन पढ़ चुके होते हैं; तलाश और जाँच करने के लिए आने से पहले उनमें सच्चे मार्ग के बारे में पहले से ही एक अच्छा एहसास होता है और वे मूल रूप से पहले से ही पहचान चुके होते हैं कि यही सच्चा मार्ग है। क्या तुम लोगों को इसमें एक चीज का पता लगा है? ये फिल्में, परमेश्वर के वचनों के पाठ के ये वीडियो, ये अनुभवजन्य गवाही वीडियो, भजन वीडियो, वगैरह जो परमेश्वर के घर द्वारा बनाए जाते हैं, परमेश्वर की गवाही देने में बहुत ही प्रभावी होते हैं! संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं के साथ संगति और वाद-विवाद करने में बहुत सारी ऊर्जा बर्बाद करने की कोई जरूरत नहीं है; एक बार जब वे ये वीडियो देख लेते हैं तो वे सच्चा मार्ग स्वीकार करने में समर्थ हो जाते हैं। इससे सुसमाचार का उपदेश देने वाले लोगों का बहुत समय बच जाता है और यह दर्शाता है कि सुसमाचार का उपदेश देने के लिए सारा बैक-अप समर्थन बहुत ही शक्तिशाली है! सुसमाचार का उपदेश देने के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधनों की भरमार है! कई संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता जब परमेश्वर के कार्य की जाँच करने के लिए ऑनलाइन जाते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं, क्योंकि परमेश्वर के घर की वेबसाइट पर बहुत कुछ मौजूद है और सामग्री की भरमार है! परमेश्वर के वचन भरपूर हैं, सभी शैली की फिल्मों और वीडियो की भरमार है, और जब अनुभवजन्य गवाहियों की बात आती है तो तुम्हें जो भी चीजें चाहिए उनकी भरमार है और सब कुछ मौजूद है। यह सही मायने में पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन का परिणाम है! यह सब कुछ वाकई परमेश्वर के कार्य से निकला है। चाहे बड़ा लाल अजगर और धार्मिक दुनिया कितनी भी आधारहीन अफवाहें फैलाएँ और इसे बदनाम करें, इससे कुछ हासिल नहीं होगा। जो भी हो, परमेश्वर के घर के कार्य की सभी मदों द्वारा प्राप्त परिणाम और प्राप्त फायदे सभी के देखने के लिए स्पष्ट हैं और वे परमेश्वर के वचनों द्वारा पूर्ण किए गए तथ्य हैं।

राज्य का सुसमाचार फैलाने के कार्य में, परमेश्वर के घर के कार्य की सभी मदें एक बहुत ही विधिपूर्वक तरीके से व्यवस्थित की जाती हैं और एक क्रमबद्ध तरीके से आगे बढ़ती हैं। सुसमाचार फैलाने का कार्य, कार्य की एक महत्वपूर्ण, दीर्घकालिक और श्रमसाध्य मद है। इसलिए, जो लोग सुसमाचार का कार्य करते हैं, चाहे वे पर्यवेक्षक हों या आम सुसमाचार कार्यकर्ता, उन्हें अपने दिलों में इस कार्य के महत्व की पुष्टि करनी चाहिए। हालाँकि तुम लोग सुसमाचार की अग्रिम पंक्ति में कार्य कर रहे हो और अपने कर्तव्य कर रहे हो, लेकिन तुम लोगों के पीछे यानी पर्दे के पीछे कई भाई-बहन विभिन्न प्रकार के सहायक कार्य कर रहे हैं और वे ऐसी शक्ति हैं, जो सुसमाचार फैलाने के कार्य को सहारा देती है। इससे मेरा क्या आशय है? परमेश्वर के घर का सारा कार्य सुसमाचार फैलाने पर केंद्रित है, और परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों द्वारा निर्वहन किए जाने वाले कर्तव्य सुसमाचार फैलाने की सेवा में हैं। कर्तव्य करने वाले हर भाई-बहन का सुसमाचार कार्य में एक हिस्सा होता है, और कार्य की हर मद सुसमाचार कार्य से पास से और घनिष्ठता से जुड़ी होती है। संक्षेप में, कार्य की हर मद, जिसमें खुद सुसमाचार कार्य भी शामिल है, एक कर्तव्य है जिसे परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए अच्छी तरह से किया जाना चाहिए, कार्य की हर मद सबसे महत्वपूर्ण कार्य से पास से जुड़ी होती है, जो कि परमेश्वर के बारे में गवाही देना है। यह पूरी तरह से सटीक है। इसलिए, परमेश्वर का घर सुसमाचार फैलाने के कार्य को कार्य की सभी मदों की सूची में सबसे ऊपर रखता है और यह परमेश्वर के घर के कार्य की सभी विभिन्न मदों में सर्वप्रथम है—यह पूरी तरह से उचित है। यह कार्य की एक प्रमुख, श्रमसाध्य और दीर्घकालिक मद है और यह कार्य अच्छी तरह से करने के लिए और यह लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार होने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर किसी में, परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हर व्यक्ति में, तितिक्षा, धैर्य और पर्याप्त आस्था होनी चाहिए। चाहे तुम 10 वर्ष, 20 वर्ष या 30 वर्ष तक लगातार प्रयास करते रहो, तुम्हें हमेशा परमेश्वर के प्रति वफादार रहना चाहिए, अपना जीवन और अपना जीवनकाल सुसमाचार फैलाने के कार्य को समर्पित कर देना चाहिए और अंत तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहना चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है जिसे उठाने के लिए परमेश्वर का अनुसरण करने वाला हर व्यक्ति कर्तव्यबद्ध है, यह हर किसी का कर्तव्य है, और यह वह आदेश भी है जिसे परमेश्वर हर किसी को सौंपता है।

मेरी इस संगति के जरिए, क्या तुम सभी के दिलों में उत्साह जगा है, और क्या तुमने सुसमाचार कार्य को महत्वपूर्ण मानना शुरू कर दिया है? इससे पहले कुछ लोगों ने कहा है, “मुझे कोई तकनीकी पेशा समझ नहीं आता है, मुझे अभिनय करना नहीं आता है और मैं अभिनेता नहीं बन सकता, जब शब्दों का उपयोग करने की बात आती है तो मेरे पास ठोस नींव नहीं है, इसलिए मुझे लेख लिखना नहीं आता है, मुझे संगीत समझ नहीं आता है और कला के बारे में तो मेरी जानकारी और भी कम है। क्योंकि मैं किसी भी चीज में अच्छा नहीं हूँ इसलिए मुझे सुसमाचार टीम में नियुक्त किया गया है। क्या सुसमाचार टीमें परमेश्वर के घर में भुला दी गई पिछली दराज के समान नहीं हैं? और चूँकि मुझे एक भुला दी गई पिछली दराज में भेज दिया गया है तो क्या अब भी मुझे उद्धार पाने की कोई उम्मीद है?” क्या यह ऐसा ही है? अगर तुम इस परिस्थिति को वाकई इस तरीके से समझते हो तो तुमने परमेश्वर को गलत समझा है : सुसमाचार का उपदेश देना हर व्यक्ति की अनिवार्य जिम्मेदारी है। अगर तुम किसी भी चीज में अच्छे नहीं हो और तुम्हें कोई भी तकनीकी पेशा समझ नहीं आता है और तुम सिर्फ सुसमाचार का उपदेश दे सकते हो तो तुम्हें सुसमाचार टीम में अपना कर्तव्य करने के लिए व्यवस्थित किया जाएगा। यह तुम्हारा आखिरी मौका है और इसे यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि एक सामग्री के रूप में तुम्हारी बर्बादी ना हो और तुम्हारा यथासंभव उपयोग किया जा सके ताकि एक मनुष्य के रूप में तुम अपना कार्य अधिकतम सीमा तक करो। तुम किसी भी चीज में अच्छे नहीं हो और तुम जो कुछ भी करते हो उसमें मंदबुद्धि हो, लेकिन तुम सुसमाचार का उपदेश देने का कर्तव्य अच्छी तरह से करने में समर्थ हो और यहाँ तक कि अगर तुम्हें सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं की खोज करने के लिए भी कहा जाता है तो तुम इसे व्यावहारिक और विनम्र तरीके से कर पाते हो और संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं को सुसमाचार प्रचारकों के पास भेज पाते हो। साथ ही, तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर के इरादों के बारे में उपदेश देना और लोगों को परमेश्वर के सामने लाना सीख सकते हो। क्या यही तुम्हारा कर्तव्य नहीं है? दूसरे लोग पाठ आधारित कार्य, फिल्म निर्माण कार्य और दूसरी तरह के कार्यों में शामिल होकर कुछ परिणाम उत्पन्न करते हैं लेकिन तुम्हें ये चीजें करनी नहीं आती है और तुममें कोई विशेष प्रतिभा या खूबी नहीं है, फिर भी तुम अपनी शक्ति सुसमाचार कार्य को समर्पित करते हो, तुम अपना सर्वस्व लगा देते हो और अपना कर्तव्य पूरा करते हो, और तुम परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए गए आदेश की जिम्मेदारी उठाते हो, क्या ये अच्छे कर्म नहीं हैं? ये भी अच्छे कर्म हैं और परमेश्वर उन्हें याद रखेगा। यह इन वचनों को पूरा करता है : लोगों द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों में महानता या नीचता का कोई भेद नहीं होता है; सिर्फ यह चीज मायने रखती है कि क्या तुम अपने कर्तव्य में वफादार हो और क्या तुम इसे इस तरह करते हो जो मानक स्तर का है। परमेश्वर सभी के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करता है; चूँकि तुम कुछ नहीं कर पाते हो, इसलिए तुमसे सुसमाचार का उपदेश देने के लिए कहा जाता है—यह इसलिए किया जाता है ताकि तुम अपना अंतिम संभव कार्य उन हालातों में कर सको जिनमें तुम कोई दूसरा कर्तव्य स्वीकार करने में समर्थ नहीं हो। इसके जरिए तुम्हें एक अवसर और उम्मीद की एक किरण दी जा रही है; तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा रहा है। परमेश्वर के पास अब भी तुम्हारे लिए एक आदेश है और वह तुम्हारे खिलाफ पक्षपाती नहीं है। इसलिए सुसमाचार टीमों में नियुक्त किए गए लोगों को भुला दी गई पिछली दराज में नहीं भेजा जा रहा है और ना ही उनका त्याग किया जा रहा है बल्कि वे एक अलग जगह अपना कर्तव्य कर रहे हैं। सुसमाचार कार्य के लिए कार्य-व्यवस्थाओं पर संगति करके, क्या अब तुम लोग सुसमाचार कार्य को अच्छी नजर से देखते हो और अब तुम्हें इसके बारे में कोई गलतफहमी नहीं है? (हाँ।) तो क्या तुम इसके बारे में आत्ममुग्ध महसूस करने वाले हो? लोग चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों ना करें, परमेश्वर की उनसे अपेक्षाएँ नहीं बदलती हैं : परमेश्वर उनकी वफादारी और ईमानदारी चाहता है। अगर तुम कहते हो, “मैं लोगों की नजरों से दूर रहता हूँ, मैं आत्ममुग्ध महसूस नहीं करूँगा, मैं बस वही करता हूँ जो परमेश्वर मुझसे करने के लिए कहता है,” लेकिन तुममें कोई वफादारी, कोई ईमानदारी नहीं है तो यह स्वीकार्य नहीं होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सुसमाचार कार्य को कैसा समझते हो, जो भी हो, अगर तुममें वफादारी और ईमानदारी है तो तुम्हारा अपने कर्तव्य का निर्वहन मानक स्तर का होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सुसमाचार का उपदेश देने के कर्तव्य को कितना अच्छा मानते हो या इसके प्रति तुम्हारा रवैया कितना सकारात्मक है, अगर तुम कष्ट नहीं सह सकते हो और तुममें कोई सहनशक्ति और कोई वफादारी नहीं है तो वह भी बिल्कुल स्वीकार्य नहीं होगा। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम्हें कहाँ रखा गया है, तुम किस समय में हो या किस जगह हो, तुम किन लोगों के संपर्क में आते हो और तुम क्या कर्तव्य करते हो। परमेश्वर हमेशा तुम्हें देखेगा और तुम्हारे दिल की गहराइयों की पड़ताल करेगा। ऐसा मत सोचो कि चूँकि तुम सुसमाचार टीम के सदस्य हो इसलिए परमेश्वर तुम पर ध्यान नहीं देता है या परमेश्वर तुम्हें देख नहीं पाता है, इसलिए तुम जो चाहे कर सकते हो। और ऐसा मत सोचो कि अगर तुम्हें किसी सुसमाचार टीम में नियुक्त किया जाता है तो अब तुम्हारे पास बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है और फिर इसे नकारात्मक रूप से सँभालने मत लगो। सोचने के ये दोनों तरीके ही गलत हैं। तुम्हें चाहे कहीं भी रखा गया हो या कोई भी कर्तव्य करने के लिए व्यवस्थित किया गया हो, तुम्हें यही करना चाहिए और तुम्हें इसे लगन और जिम्मेदारी से करना चाहिए। परमेश्वर की तुमसे अपेक्षाएँ नहीं बदलती हैं और इसलिए परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति तुम्हारा समर्पण भी नहीं बदलना चाहिए। सुसमाचार कार्यकर्ताओं का रुतबा वही है जो दूसरे कर्तव्य करने वाले लोगों का है; किसी व्यक्ति का मूल्य उसके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य से नहीं मापा जाता है, बल्कि इस बात से मापा जाता है कि क्या वह सत्य का अनुसरण करता है और क्या उसके पास सत्य वास्तविकता है। मैं सुसमाचार कार्य, कार्य की इस बड़ी और विशिष्ट मद के बारे में बस इतनी ही संगति करूँगा।

IV. विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य

मद चार, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य। इसमें फिल्म निर्माण, पाठ आधारित कार्य, संगीत, कला, अनुवाद वगैरह शामिल हैं। कुछ लोग कहते हैं, “हम पोशाकें बनाने वाले भी फिल्म निर्माण कार्य में शामिल हैं। क्या पोशाकें बनाना एक तरह का कार्य माना जाता है?” पोशाकें बनाना फिल्म निर्माण और संगीत के कार्य के प्रकार में शामिल है; यह एक तरह का सहायता कार्य है जो इस प्रकार के कार्य में सहयोग करता है। हर चरण में, परमेश्वर के घर में इस तरह के पेशेवर कार्यों के लिए विशिष्ट अपेक्षाओं से संबंधित विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ होती हैं। कुछ लिखित रूप में संप्रेषित की जाती हैं और कुछ सभाओं में संगति के जरिए मौखिक रूप से संप्रेषित की जाती हैं। उन्हें चाहे कैसे भी संप्रेषित क्यों ना किया जाए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनके लिए जिम्मेदारी उठानी चाहिए, इस कार्य की मद के लिए परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई विशिष्ट अपेक्षाएँ दर्ज करनी चाहिए और ये टिप्पणियाँ ठीक से लिखनी चाहिए, और फिर उन पर ठोस संगति प्रदान करनी चाहिए और उनके विशिष्ट कार्यान्वयन में शामिल होना चाहिए। यह भी कार्य की एक बड़ी मद है और यह सुसमाचार कार्य के बाद आने वाली कार्य की दूसरी विशिष्ट मद है। कार्य की इस विशिष्ट मद के संबंध में परमेश्वर का घर विभिन्न पेशों में शामिल सभी कर्मियों से यह अपेक्षा करता है कि वे अपने कर्तव्यों से संबंधित पेशेवर ज्ञान का निरंतर अध्ययन करते रहें, साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए जानकारी की तलाश करते रहें कि परमेश्वर के घर के कार्य के लिए कौन-सी चीजें उपयोगी हैं। साथ ही, परमेश्वर का घर सत्य सिद्धांतों पर लगातार संगति कर रहा है और विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए ठोस योजनाएँ प्रदान कर रहा है। कभी-कभी इस प्रकार के कार्यों के बारे में पर्यवेक्षकों और टीम के सदस्यों के साथ इकट्ठे संगति की जाती है और कभी-कभी उनके बारे में सिर्फ कार्य की संबंधित मद के लिए जिम्मेदार अगुआओं, कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों के साथ ही संगति की जाती हैं। उन्हें संप्रेषित और उन पर संगति चाहे लिखित रूप में की जाए या सभाओं के जरिए, किसी भी मामले में इस प्रकार के कार्यों को लगातार सुधारा और मानकीकृत किया जा रहा है और सुसमाचार कार्य की आवश्यकताओं के अनुसार लगातार विशिष्ट व्यवस्थाएँ की जा रही हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि परमेश्वर का घर एक अपेक्षाकृत नए विषय पर फिल्म बनाता है और फिल्म को काफी पेशेवर तरीके से फिल्माया जाता है। फिल्म को ऑनलाइन अपलोड करने के बाद इसे बहुत ऊँची क्लिक दर प्राप्त होती है। ऐसे में, परमेश्वर का घर प्रतिक्रियाओं और सुसमाचार कार्य की आवश्यकताओं के आधार पर इस प्रकार के कार्य के लिए विशिष्ट अपेक्षाएँ बनाता है। संक्षेप में, कार्य की इस मद को लगातार संक्षेप में प्रस्तुत किया और सुधारा जा रहा है और यह लगातार बढ़ भी रही है।

विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाएँ लोगों से ज्यादा अध्ययन करने की और सीखने के लिए शिक्षकों और विभिन्न प्रकार के संसाधन और शिक्षण सामग्री ढूँढ़ने की अपेक्षा करता है। मिसाल के तौर पर, गाना गाने को ही ले लो; सीखने के लिए एक शिक्षक ढूँढ़ना और उससे गायन का प्रशिक्षण प्रदान करवाना भी एक विशिष्ट कार्य-व्यवस्था है। यह व्यवस्था सुनने के बाद, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऊपरवाले की अपेक्षाओं के अनुसार इस कार्य के लिए एक उपयुक्त शिक्षक ढूँढ़ना चाहिए और उसे हमारे गायकों को पढ़ाने के लिए रखना चाहिए, उसे गायन संगीत के सही ज्ञान का और गाने के सही तरीके का अध्ययन करने में गायकों की मदद करनी चाहिए, और यकीनन सीखने के लिए शास्त्रीय रचनाएँ ढूँढ़नी चाहिए। संगीत रचना और गायन मंडली के बारे में हमेशा पेशेवर ज्ञान का अध्ययन किया जाना चाहिए और परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के लिए हमेशा लोगों से अपने कर्तव्यों से संबंधित पेशेवर ज्ञान का लगातार अध्ययन करने और कुछ उन्नत और व्यावहारिक विधियों का उपयोग करना सीखने वगैरह की अपेक्षा की जाती है। ऐसा नहीं है कि ये कार्य-व्यवस्थाएँ और अपेक्षाएँ सिर्फ एक बार जारी की जाती हैं और बात वहीं समाप्त हो जाती है, बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इन कार्य-व्यवस्थाओं पर बार-बार संगति करें, पेशेवर कार्य में शामिल लोगों का मार्गदर्शन करें, उन्हें अध्ययन करना जारी रखने में सक्षम बनाएँ और सभी तरह के पेशेवर कार्य लगातार और प्रभावी तरीके से विकसित और गहन करने का प्रयास करें और रुके नहीं रहें। कुछ लोग सोचते हैं, “आज हमें कार्य-व्यवस्थाएँ जारी कर दी गई हैं, इसलिए हमें बस इस महीने उनका अभ्यास करने की जरूरत है और बात यहीं समाप्त हो जाती है। अगर भविष्य में ऊपरवाला इसके बारे में कुछ नहीं कहता है तो शायद हमें उनका अभ्यास करते रहने की जरूरत नहीं है।” क्या मामला वाकई ऐसा है? (नहीं।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह से अवश्य ही बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए बल्कि उन्हें समय-समय पर पूछताछ करते रहना चाहिए और पूछना चाहिए, “इस पेशे की तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? क्या तुम किसी कठिनाई का सामना कर रहे हो? क्या कोई ऐसी चीज है जिसका सिद्धांतों के साथ टकराव है या जो उनके खिलाफ जाती है? किसने अपनी पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, कौन सबसे निपुण है और किसने सबसे तेजी से दक्षता हासिल की है? इन सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद तुमने जो भी चीजें सीखी हैं, उसमें से किन चीजों के बारे में तुम्हें लगता है कि वे परमेश्वर के घर के कार्य के लिए उपयोग किए जाने के लिए उपयुक्त हैं?” इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सुसमाचार टीमों में विदेशी भाषाओं का अध्ययन करने वालों से अवश्य प्रश्न पूछने चाहिए, जैसे कि, “तुम कितने वर्षों से यह विदेशी भाषा सीख रहे हो? हाल ही में तुम्हारा अध्ययन कैसा चल रहा है? तुम हर रोज कितनी बातचीतों में भाग ले पाते हो? क्या तुम सामान्य आध्यात्मिक शब्दों का अनुवाद कर सकते हो? क्या तुम सुसमाचार का उपदेश देने से संबंधित इन सत्यों को संप्रेषित करने के लिए इस विदेशी भाषा का उपयोग कर सकते हो? तुम फिलहाल बोलने में बेहतर हो या लिखने में? क्या तुम्हें सीखने में मदद पाने के लिए किसी शिक्षक की जरूरत है? क्या कोई और है जो विदेशी भाषाओं का अध्ययन करने के लिए ज्यादा उपयुक्त और निपुण है? क्या इस तरह के कर्मियों की संख्या में वृद्धि हुई है? क्या किसी को लगता है कि कोई भाषा सीखना बहुत ही परेशानी भरा और कठिन है, इसलिए वह इसे और नहीं सीखना चाहता है और बीच में ही छोड़ देना चाहता है और कोई दूसरा कर्तव्य करना चाहता है?” इस तरह के कार्य से संबंधित इन विशिष्ट मामलों के बारे में समय-समय पर पूछताछ करने और इनका पर्यवेक्षण करने की जरूरत है। चूँकि ऊपरवाले ने विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं, इसलिए पर्यवेक्षकों को अंत तक इन विशिष्ट कार्यों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। निष्क्रिय होकर ऊपरवाले द्वारा पूछताछ किए जाने की प्रतीक्षा मत करो; अगर ऊपरवाला छह महीने या एक वर्ष तक कोई पूछताछ नहीं करता है तो भी तुम्हें अपनी पूरी क्षमता के अनुसार सारा कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और हर समय ऊपरवाले का निरीक्षण और निर्देशन स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए—यही सही मानसिकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कार्य-व्यवस्थाएँ जारी और संप्रेषित कर दी गई हैं और तुम कार्य के पर्यवेक्षक के रूप में इस पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार हो और इसलिए तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए। लेकिन अगर तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ नहीं हो तो तुम निकम्मे हो और तुम्हें बरखास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऊपरवाले से प्राप्त इन विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाओं या संगतियों पर विचार और संगति करनी चाहिए और फिर उन्हें कार्यान्वित करना चाहिए और परिस्थिति के अनुसार कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि हाल ही में उन्होंने किस प्रकार के कार्यों को नजरअंदाज किया है और किस कार्य की लंबे समय से जाँच नहीं की है और किन कार्यों में वे व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छे नहीं हैं और किन कार्यों के बारे में हाल ही में उन्होंने नहीं पूछा है और परिणामस्वरूप वे उनकी हाल की स्थिति के बारे में बेखबर हैं, और फिर जाकर उन्हें देखना चाहिए। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के संबंध में परमेश्वर के घर में एक और विशिष्ट व्यवस्था है : यह अपेक्षा करती है कि प्रासंगिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों का लगातार पता लगाना चाहिए, उन्हें विकसित किया जाना चाहिए और उन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य-व्यवस्था प्राप्त होने पर उन्हें क्या करना चाहिए? उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या इस तरह का कार्य करने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति है। अगर कुछ लोग इस तरह का कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं लेकिन उन्हें तकनीकी पेशे की ज्यादा समझ नहीं है तो उन्हें अवश्य ही जल्दी से विकसित किया जाना चाहिए और इसका अध्ययन करने और इसमें प्रशिक्षित होने के लिए व्यवस्थित किया जाना चाहिए। संक्षेप में, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य भी कार्य की एक महत्वपूर्ण मद हैं। इस कार्य में बहुत सारी मदें शामिल हैं और इसका दायरा भी बहुत ही बड़ा है और परमेश्वर के घर ने इसके लिए कई विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं। कार्य की इस मद के लिए जो अपेक्षित है, वह है लगातार अध्ययन करना, संक्षेप में प्रस्तुत करना और गहराई में उतरना, और लगातार मानकीकरण करने के लिए उपयुक्त सिद्धांत भी अवश्य ही ढूँढ़े जाने चाहिए। इसके अलावा, ये कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त प्रतिभाशाली व्यक्तियों को लगातार विकसित किया जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों की इस बड़ी मद के लिए यह कार्य-व्यवस्था है और इसे समझना भी आसान है।

V. कलीसियाई जीवन

मद पाँच, कलीसियाई जीवन। परमेश्वर के घर ने कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री, कलीसियाई जीवन के प्रारूप और कलीसियाई जीवन जीने वाले लोगों की संख्या के संबंध में विशिष्ट व्यवस्थाएँ और अनुबंध बनाए हैं। विशेष हालातों और स्थितियों के अंतर्गत सभाओं के प्रारूप और कलीसियाई जीवन की सामग्री के संबंध में परमेश्वर के घर के अनुरूप कार्य-व्यवस्थाएँ भी हैं। इस प्रकार की कार्य-व्यवस्थाएँ प्रधान रूप से लिखित रूप में जारी की जाती हैं। विभिन्न देशों में, नए आए लोगों के कलीसियाई जीवन के लिए कार्य व्यवस्थाएँ—उनकी सभाओं का प्रारूप और वे कितनी बार होती हैं, और सभाओं के दौरान वे जो सामग्री खाते-पीते हैं वगैरह—कुछ विशेष हालातों को छोड़कर, मूल रूप से जातीय चीनी लोगों के कलीसियाई जीवन के लिए कार्य-व्यवस्थाओं से मिलती-जुलती हैं। मैंने अभी-अभी आपको कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाओं के दायरे का एक संक्षिप्त विवरण दिया है—इसमें परमेश्वर के वचनों की सामग्री शामिल है जिन्हें खाया-पीया जाता है, और हाल के दिनों में सभाओं में सत्य पर संगति करने के लिए सामग्री, और सभाओं में संगति का प्रारूप शामिल है। मिसाल के तौर पर, सभाओं में संगति में किसी एक व्यक्ति को हावी होने की अनुमति नहीं देना, हर व्यक्ति को संगति करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कितना समय दिया जाता है, उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है और उन्हें कैसे सँभालना है जो लंबे-चौड़े तरीके से बोलते हैं और अपनी बात अस्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं वगैरह—कार्य व्यवस्थाओं में कलीसियाई जीवन और सभाओं से संबंधित इन सभी विशिष्ट चीजों पर विशिष्ट कथन हैं। एक लिहाज से अगुआ और कार्यकर्ता इन कार्य-व्यवस्थाओं को जारी और संप्रेषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, और दूसरे लिहाज से वे भाई-बहनों के साथ उन पर स्पष्ट रूप से संगति करने के लिए जिम्मेदार हैं जिससे कलीसिया के सभी सदस्य उन्हें समझ पाते हैं और उन्हें स्वीकार कर पाते हैं, जिसके बाद उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं को सिर्फ सख्ती से क्रियान्वित करने और उनका पालन करने की जरूरत होती है। विशेष रूप से जो लोग अक्सर विषय से भटक जाते हैं, बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और सभाओं में बोलते समय नारे लगाते हैं, उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और कार्य-व्यवस्थाओं में इस तरह के विशेष हालातों के बारे में विशिष्ट अनुबंध हैं। कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ मुख्य रूप से सभाओं से जुड़ी सभी विभिन्न चीजों से संबंधित हैं, वे जटिल नहीं हैं, वे बहुत ही सरल हैं और व्यक्ति चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों ना करे, उसे बस इन कार्य-व्यवस्थाओं में निहित सिद्धांतों का पालन करने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, सभाओं में सुसमाचार टीमों को सिर्फ कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाओं के सिद्धांतों का पालन करने की जरूरत है—इनमें कुछ भी विशेष नहीं है। दूसरी टीमें दूसरे लोगों से सिर्फ अलग कार्य करती हैं, जब सभाओं, सत्य पर संगति करने, परमेश्वर के वचनों का प्रार्थना-पाठ करने और व्यक्तिगत अनुभवों पर संगति करने जैसी चीजों की बात आती है तो सब कुछ एक जैसा ही है—यह दायरा पार नहीं किया जाता है। उन्हें बस कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री, संगति जो रूप लेती है, और सभाओं के प्रारूप के संबंध में परमेश्वर के घर के मौजूदा अनुबंधों के अनुसार अभ्यास करने की जरूरत है। अगर परिस्थितियाँ अनुमति दें तो लोग व्यक्तिगत रूप से इकट्ठा हो सकते हैं, नहीं तो वे ऑनलाइन सभाएँ कर सकते हैं। यह एक बहुत ही सरल, स्पष्ट रूप से वर्णित मामला होना चाहिए। कुछ कलीसियाई सदस्य विभिन्न महाद्वीपों और देशों में फैले हुए हैं, जिनमें से कुछ यूरोप में हैं और कुछ मध्य पूर्व मे; इस तरह की स्थिति में ऑनलाइन सभाएँ जरूरी हैं। यह तय करना स्थानीय कलीसियाओं पर है कि वे किस समय और कितनी बार सभाएँ करते हैं; परमेश्वर का घर इस मामले में कोई विशेष अनुबंध नहीं बनाता है, और ना ही वह इसमें दखल देता है। परमेश्वर का घर इस मामले में दखल क्यों नहीं देता है? कलीसिया में कुछ लोग अपने कर्तव्य पूर्णकालिक रूप से नहीं करते हैं; उनके पास नौकरियाँ और परिवार हैं, उनके व्यक्तिगत हालात अलग-अलग हैं, साथ ही विभिन्न देशों में समय क्षेत्र भी अलग-अलग हैं, इसलिए उन्हें यह खुद तय करने की अनुमति दी जानी चाहिए कि वे सप्ताह में कितनी बार इकट्ठा होते हैं और हर सभा किस समय होती है। परमेश्वर का घर इस बारे में कोई विशेष नियम नहीं बनाता है, बल्कि सिर्फ एक सिद्धांत प्रदान करता है। परमेश्वर के घर ने इसके लिए दायरा निर्दिष्ट किया है कि नए विश्वासी हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होते हैं और इसके बीच एक अंतर है कि अपना कर्तव्य करने वाले और अपना कर्तव्य नहीं करने वाले लोग सप्ताह में कितनी बार इकट्ठा होते हैं। क्या कोई ऐसी कार्य-व्यवस्था है जो यह अपेक्षा करती है कि नए विश्वासी सप्ताह में सात बार इकट्ठा हों? (नहीं।) तो, यह किस चीज पर आधारित है कि नए विश्वासियों को हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होना चाहिए? (यह इस पर आधारित है कि नए विश्वासियों के पास कितना समय है।) सप्ताह में ज्यादा से ज्यादा दो या तीन बार और कम से कम एक बार इकट्ठा होना पूरी तरह से उचित है। कुछ लोग कहते हैं, “हमारे इलाके के लोग खेती में मंदी के मौसम में बहुत निठल्ले रहते हैं इसलिए हर कोई हर रोज इकट्ठा होना चाहता है—यहाँ तक कि हमें दिन में दो बार इकट्ठा होना भी ठीक लगेगा। हम वाकई इकट्ठा होना चाहते हैं।” नए विश्वासियों के दिल उत्साह से भरे होते हैं और वे हमेशा ज्यादा सत्य समझना चाहते हैं। अगर उनके पारिवारिक हालात अनुमति देते हैं तो अगर वे ज्यादा सभाओं में शामिल होने की बात करते हैं तो यह अच्छी चीज है जब तक कि यह उनके दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करती है। लोगों को हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होना चाहिए, इसकी विशिष्ट संख्या हर क्षेत्र में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की पारिवारिक और कार्य-संबंधी स्थितियों के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए—परमेश्वर का घर इस मामले के संबंध में विशिष्ट नियम नहीं बनाता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से जिनके पास ऐसा करने की परिस्थितियाँ हैं, वे ज्यादा इकट्ठा हो सकते हैं और फिर वे ज्यादा सत्य समझेंगे और जीवन विकास तेजी से प्राप्त करेंगे। यह अच्छी बात है। लेकिन, जिनके पास उपयुक्त परिस्थितियाँ नहीं हैं वे इस तरीके से इकट्ठा होने के लिए उपयुक्त नहीं होंगे और उनके लिए हर सप्ताह कम-से-कम एक या दो सभाओं में शामिल होना ठीक है। विभिन्न क्षेत्रों में कलीसियाएँ हर सप्ताह कितनी बार सभाएँ करती हैं, इसकी संख्या तय करना परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर है और किसी को भी इसमें दखल नहीं देना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि सभाएँ इसलिए की जाती हैं ताकि लोग सत्य समझ सकें, ये किसी दूसरे कारण से नहीं की जाती हैं। इसलिए हर कलीसिया कितनी बार सभाएँ करती है इसकी संख्या उसके विशिष्ट हालातों के अनुसार तय की जाती है। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग हर सप्ताह एक अतिरिक्त सभा में शामिल हो सकते हैं तो यह उनके जीवन विकास के लिए ज्यादा फायदेमंद है। अगर ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और ज्यादा सभाओं में शामिल नहीं होना चाहते हैं तो यह उन पर थोपा नहीं जाना चाहिए। विशेष रूप से, जो वेतनभोगी कर्मचारी थोड़े व्यस्त रहते हैं और जिनके पास ज्यादा सभाओं में शामिल होने का समय नहीं है, उनसे ऐसा करने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग सभाओं में शामिल होने की स्थिति में हैं या नहीं हैं या वे कितनी बार इकट्ठा होते है, परमेश्वर का घर दखल नहीं देता है या कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग विश्वासियों के हालात और पृष्ठभूमियाँ अलग-अलग होती हैं और इसलिए उन्हें किसी भी दबाव में नहीं डाला जाना चाहिए। कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री के संबंध में, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में इनके अनुरूप शर्तें हैं और कलीसिया में सभी स्तरों पर अगुआओं और भाई-बहनों में उनकी स्पष्ट समझ होने की अपेक्षा की जाती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझना चाहिए कि ऊपरवाले की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा कौन-से विशिष्ट कार्य और मामले पूरे किए जाने की अपेक्षा की जाती है और भाई-बहनों को यह देखने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पर्यवेक्षण भी करना चाहिए कि क्या वे इस कार्य का निर्वहन ठीक से कर रहे हैं। जब कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री और सभाओं से संबंधित उन कार्य-व्यवस्थाओं की बात आती है जिन्हें समझना चाहिए और जिनका पालन किया जाना चाहिए तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ एक आम सहमति पर पहुँचना चाहिए—भिन्नताओं की बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। कलीसियाई जीवन कार्य से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ बहुत सरल हैं, लोगों के लिए समझने में आसान हैं और अमूर्त नहीं हैं।

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