अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9) खंड एक

यह तय करने के लिए दो कसौटियाँ कि क्या अगुआ और कार्यकर्ता मानक स्तर के हैं

अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों में से कुल आठ जिम्मेदारियों पर संगति कर चुके हैं, और इन आठ जिम्मेदारियों के संबंध में हमने नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण किया है। इस तरह से उनका गहन-विश्लेषण करके, क्या अब तुम लोगों को नकली अगुआओं की कुछ पहचान हो गई है? अगर तुम एक अगुआ हो तो क्या तुम नकली अगुआओं के इन अभ्यासों में शामिल होने से बच सकते हो? क्या तुम सतर्कता से कार्य का निर्वहन कर सकते हो और उन जिम्मेदारियों के आधार पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हो जिन पर हमने संगति की है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर संगति के जरिए अब तुम लोगों को अपने दिल में पता होना चाहिए कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना कार्य कैसे करना चाहिए, इस कार्य के निर्वहन में क्या विवरण शामिल हैं, उन्हें कार्य कैसे कार्यान्वित करना चाहिए और उन्हें किस प्रकार ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता होने का अभ्यास करना चाहिए, जो मानक स्तर के हैं। अगर किसी व्यक्ति की काबिलियत पर्याप्त है, अगर उसमें एक निश्चित मात्रा में कार्य क्षमता है, और वह दायित्व भी उठाता है तो उसे नकली अगुआओं की ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करने से बचने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन, अगर किसी व्यक्ति में काबिलियत है और उसमें एक निश्चित मात्रा में कार्य क्षमता है, लेकिन वह दायित्व नहीं उठाता है तो फिर क्या वह ऐसा अगुआ होने और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम है, जो मानक स्तर का हो? (नहीं।) उसके लिए ऐसा करना थोड़ा कठिन है। मान लो कि कोई अगुआ दायित्व उठाता है और उसकी मानवता खराब नहीं है, लेकिन उसे केवल यह नहीं पता कि अपने कार्य का निर्वहन कैसे करना है। चाहे उसके साथ कैसे भी संगति क्यों ना की जाए, वह अब भी यह नहीं जानता है कि विशिष्ट कार्य कैसे कार्यान्वित करना है और उसमें भाग कैसे लेना है, और वह सिद्धांत या दिशा नहीं ढूँढ़ पाता है। वह यह भी नहीं जानता है कि विशिष्ट व्यवसायों या विशिष्ट कार्य के लिए मार्गदर्शन कैसे प्रदान करना है। जब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो वह उन समस्याओं का सार नहीं ढूँढ़ पाता है, और उसे यह नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे सुलझाना है। परिणामस्वरूप, वह जो भी कार्य करता है या जो भी मुद्दा सँभालता है उसमें हमेशा बहुत निष्क्रिय और धीमा होता है। क्या ऐसा व्यक्ति अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकता है? (नहीं।) यह किस तरह की समस्या है? वैसे तो इस किस्म का व्यक्ति बहुत उत्साही होता है, दायित्व उठाता है, और अपने कार्य का निर्वहन करना चाहता है, लेकिन उसकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है, उसमें कार्य क्षमता नहीं होती है और वह कार्य नहीं कर पाता है, या विशिष्ट कार्य का निर्वहन नहीं कर पाता है या विशिष्ट मुद्दे नहीं सुलझा पाता है; किसी भी कार्य में भाग लेते समय वह बस औपचारिकता निभाता है, और वह बहुत मंदबुद्धि, जड़ और निष्क्रिय होता है। इसका यह परिणाम होता है कि कई मुद्दे उठते हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करना शुरू करने में अक्षम होता है, उसे नहीं पता होता है कि उनके क्या कारण हैं, और यह तो बिल्कुल नहीं पता होता है कि उन पर कैसे संगति करनी है और उन्हें कैसे सुलझाना है, और वह ऊपरवाले को मुद्दों की सूचना देने और उससे समाधान माँगने में भी समर्थ नहीं होता है। इसलिए, ऐसे लोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम नहीं होते हैं, और अगर उन्हें अगुआ बनने के लिए चुन भी लिया जाए तो भी वे अच्छे अगुआ नहीं होते हैं—वे नकली अगुआ होते हैं।

अब जबकि हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति कर ली है, क्या तुम लोग किसी नकली अगुआ की मूलभूत परिभाषा सुझाने में समर्थ हो? यह फैसला कैसे किया जाना चाहिए कि क्या कोई अगुआ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहा है, या वह एक नकली अगुआ है? सबसे बुनियादी स्तर पर, यह देखना चाहिए कि वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं या नहीं, कि उनमें यह काबिलियत है या नहीं। फिर, यह देखना चाहिए कि क्या वे इस काम को अच्छे तरीके से करने का भार उठाते हैं या नहीं। इसकी अनदेखी करो कि वे जो बातें बोलते हैं वे कितनी अच्छी लगती हैं और वे धर्म-सिद्धांतों की कितनी समझ रखने वाले लगते हैं, इस पर भी ध्यान मत दो कि बाहरी मामलों से निपटने में वे कितने प्रतिभाशाली और गुणी हैं—ये बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे कलीसिया के काम की सबसे बुनियादी मदों का काम ठीक तरीके से करने की योग्यता रखते हैं या नहीं, वे सत्य का उपयोग कर समस्याओं को हल कर सकते हैं या नहीं और कि वे लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सकते हैं या नहीं। यह सबसे मूलभूत और आवश्यक कार्य है। यदि वे वास्तविक कार्य की इन मदों पर काम करने में अक्षम हैं, तो फिर चाहे उनमें कितनी भी काबिलियत हो, वे कितने भी प्रतिभावान हों, या कितनी भी कठिनाइयाँ सह सकते हों और कीमत चुका सकते हों, वे नकली अगुआ ही रहेंगे। कुछ लोग कहते हैं, “भूल जाओ कि वे अभी कोई वास्तविक काम नहीं करते हैं। उनकी क्षमता अच्छी है और वे काबिल हैं। अगर वे कुछ समय तक प्रशिक्षण लें, तो वे अवश्य ही वास्तविक कार्य करने के काबिल बन जाएँगे। इसके अलावा उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है और उन्होंने कोई कुकर्म नहीं किया है और विघ्न-बाधाएँ नहीं डाली हैं—तुम कैसे कह सकते हो कि वे नकली अगुआ हैं?” हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से कार्यान्वित कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटियाँ हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं। क्या तुम लोग कहोगे कि ये कसौटियाँ व्यावहारिक हैं? और लोगों के प्रति निष्पक्ष हैं? (हाँ।) वे सभी के लिए निष्पक्ष हैं। तुम्हारी शिक्षा का स्तर जो भी हो, तुम युवा हो या बूढ़े, तुमने कितने ही वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास किया हो, तुम्हारी वरिष्ठता जो भी हो, या तुमने परमेश्वर के वचनों को कितना भी पढ़ा हो, इनमें से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्व रखता है वह यह है कि अगुआ के रूप में चुने जाने के बाद तुम कलीसिया का काम कितनी अच्छी तरह से करते हो, तुम अपने कार्य में कितने प्रभावी और कुशल हो, और क्या काम की हर एक मद सुसंगठित और प्रभावी तरीके से आगे बढ़ रही है, और उसमें देरी तो नहीं हो रही है। ये मुख्य चीजें हैं जिनका मूल्यांकन तब किया जाता है जब यह मापा जाता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं।

अभी-अभी हम जिस संगति में शामिल हुए, उसके जरिए अब तुम्हारे पास अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की कुछ हद तक स्पष्ट समझ और ज्ञान है, साथ ही नकली अगुआ की परिभाषा और सार के बारे में एक सटीक कथन भी है। यह तय करने के लिए कि क्या कोई व्यक्ति नकली अगुआ है, सबसे मूलभूत कसौटी यह देखना है कि क्या वह वास्तविक कार्य करने में सक्षम है, और फिर यह देखना है कि क्या वह वास्तव में वास्तविक कार्य करता है। ये दो मुख्य कसौटियाँ हैं : एक यह प्रश्न है कि वह सक्षम है या नहीं, और दूसरा यह प्रश्न है कि वह इच्छुक है या नहीं। क्या तुम लोग ये चीजें याद रख सकते हो? कुछ लोग कहते हैं, “मैं अगुआ नहीं हूँ, तो मुझे ये चीजें क्यों याद रखनी चाहिए?” क्या यह टिप्पणी सही है? (नहीं।) यह गलत क्यों है? ये सत्य समझकर, लोग एक लिहाज से खुद को जानना शुरू कर सकते हैं, और दूसरे लिहाज से, वे दूसरे लोगों को पहचानना शुरू कर सकते हैं—ये वे सत्य हैं जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और जो उनके पास होने चाहिए, और उन्हें नहीं समझना अनुचित होगा। सबसे पहले, तुम्हें यह मापना चाहिए कि क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के अनुसार तुममें अगुआ बनने की काबिलियत और क्षमता है। अगर तुम्हारे पास ये चीजें नहीं हैं, तो अगुआ बनने की इच्छा मत करते रहो। अगर तुममें अगुआ बनने की काबिलियत नहीं है, लेकिन फिर भी तुम अगुआ बनना चाहते हो, तो यह महत्वाकांक्षा है; जैसे ही तुम अगुआ बनोगे, तुम वास्तविक कार्य का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होगे, और तुम अनिवार्य रूप से एक नकली अगुआ बन जाओगे। कुछ लोग कहते हैं, “मेरे पास अच्छी काबिलियत है; सभी के बीच मैं उत्कृष्ट हूँ। मैं अक्सर कुछ अच्छे विचार, और कुछ चतुर और अच्छे सुझाव प्रस्तुत करता हूँ। मैं जो कुछ भी करता हूँ उसे करने का मेरे पास एक सलीका है, और मेरे पास अपेक्षाकृत समृद्ध ज्ञान, अंतर्दृष्टियाँ और अनुभव है। क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं अगुआ बन सकता हूँ?” फिर तुम्हें यह देखने के लिए भी खुद को मापना चाहिए कि क्या तुम में जिम्मेदारी की भावना है और क्या तुम दायित्व उठा सकते हो। अगर तुम्हारे पास चीजों पर सिर्फ राय हैं और तुम सिर्फ चीजें करना चाहते हो और हमेशा बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएँ रखते हो लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाते और तुम नहीं जानते कि कैसे प्रयास करना है और कीमत चुकानी है और तुम कोई भी कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं हो—अगर तुम हमेशा चाहते हो कि तुम्हारा दिल और दिमाग आराम की स्थिति में रहें, अगर तुम निठल्ले और निरंकुश रहना, आरामदायक जीवन जीना चाहते हो और चिंता करना या व्यस्त रहना पसंद नहीं करते और थकान और कष्ट से डरते हो—तो तुम अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो और तुम अगुआई का कार्य स्वीकार करने या उसका निर्वहन करने में असमर्थ होगे।

अभी-अभी हमने यह तय करने के लिए दो कसौटियों को संक्षेप में प्रस्तुत किया कि क्या कोई अगुआ मानक स्तर का है : क्या वह वास्तविक कार्य करने में सक्षम है और क्या वह वास्तविक कार्य करता है। अगर लोग ये दो कसौटियाँ समझते हैं तो उन्हें इस बात पर पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए कि क्या वे अगुआ बनने के लिए सक्षम हैं, साथ ही, क्या वे कलीसियाई कार्य अच्छी तरह से करने, अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी तरह से पूरी करने और अगुआ बनने के बाद मानक स्तर का होने में सक्षम हैं। फिलहाल अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा कर रहे लोगों से मैं पूछता हूँ, क्या अब तुम्हारे पास यह मापने के लिए कुछ मार्ग और कुछ सिद्धांत हैं कि तुमने कुछ वास्तविक कार्य किया है या नहीं और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इन आठ जिम्मेदारियों पर संगति के जरिए, तुम लोगों को यह आकलन करने में समर्थ होना चाहिए कि नकली अगुआ क्या अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं और संक्षेप में यह प्रस्तुत करने में समर्थ होना चाहिए कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कार्य का निर्वहन वास्तव में कैसे करना चाहिए, साथ ही तुम्हारे कार्य में कहाँ कमी रह रही है, तुम कहाँ अपर्याप्त हो, या पर्याप्त रूप से विशिष्ट नहीं हो, और अब से तुम्हें कैसे कार्य करना चाहिए—तुममें कम-से-कम ये अंतर्दृष्टियाँ तो होनी ही चाहिए। अगर तुम लोगों के पास इस बारे में कोई निष्कर्ष या अंतर्दृष्टि नहीं है कि अगुआ या कार्यकर्ता कैसे बनना है या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ कैसे पूरी करनी हैं, तो फिर इसका अर्थ है कि कार्य के लिए तुम्हारी काबिलियत मानक स्तर की नहीं है। इसके अलावा, अगर तुम इस बारे में पूरी तरह से भ्रमित हो कि नकली अगुआओं को कैसे पहचानना है, तो यह और भी ज्यादा दर्शाता है कि तुम लोगों की काबिलियत खराब है। यहाँ एक विशेष परिस्थिति भी है : यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं, जिनमें ये संगतियाँ सुनने के बावजूद, सत्य के लिए गहन प्रयत्न करने या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने का कोई संकल्प नहीं है, जो इस मामले को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं या उस पर ध्यान ही नहीं देते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे इसकी परवाह नहीं है कि कौन नकली अगुआ है। जो भी हो, अगर मैं अगुआ बन गया तो मैं सिर्फ वही करूँगा जो ऊपरवाले ने मुझसे करने के लिए कहा होगा। मुझे इतना ज्यादा प्रयास करने या इतना ज्यादा दिमाग खपाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” धर्मोपदेश सुनते समय वे बस औपचारिकताएँ निभाते हैं और समय बिताते हैं, और उन्हें मोटे तौर पर पता होता है कि धर्मोपदेश विशिष्ट रूप से किस बारे में है, लेकिन वे इतने आलसी हैं कि संक्षेप में यह प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं कि किन सत्यों और मनुष्य से परमेश्वर की किन अपेक्षाओं पर संगति की जा रही है, और वे इन चीजों को गंभीरता से लेने के इच्छुक नहीं हैं। वे सोचते हैं, “इन मामलों को पहचानने में बहुत ज्यादा झंझट है। जो भी हो, मुझे खुद से सिर्फ एक चीज की अपेक्षा है, और वह है कुकर्म नहीं करना, विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न नहीं करना, और भीड़ से अलग नहीं दिखना, और बस इतना ही काफी है। यह बहुत ही सरल है! यह जीने का एक शानदार तरीका है; मैं खुद से बड़ी-बड़ी माँगें नहीं करता।” चाहे वे धर्मोपदेश कैसे भी सुनें, यही उनका एकमात्र परिप्रेक्ष्य है, और उन्हें कोई भी बदल नहीं सकता है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सत्य पर कैसे संगति करते हो, तुम संगति करने के लिए किस विधि का उपयोग करते हो, या तुम किस पर संगति करते हो, तुम उनका दिल नहीं छू सकते; उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि वे इन वचनों को सुनते हैं या नहीं, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस प्रकार का व्यक्ति बेतरतीब ढंग से जीता है, और वह कोई भी चीज गंभीरता से नहीं लेता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति करने की तो बात ही रहने दो—अगर हम उन सभी पर संगति करते हैं, तो भी वह नहीं समझ पाएगा और किसी भी सिद्धांत या मार्ग को संक्षेप में प्रस्तुत नहीं कर पाएगा। इस किस्म के लोग सकारात्मक चीजें पसंद नहीं करते हैं, उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं होती है और सत्य या किसी सकारात्मक चीज की बात आने पर वे बिल्कुल ऊर्जा नहीं जुटा पाते हैं, बल्कि खाने-पीने और सुख की तलाश करने में उन्हें एक निश्चित दिलचस्पी रहती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति करके, एक लिहाज से, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की कुछ जिम्मेदारियाँ, और साथ ही कार्य का निर्वहन कैसे करना है और अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ कैसे पूरी करनी हैं, इसे संक्षेप में प्रस्तुत कर दिया है; दूसरे लिहाज से, हमने नकली अगुआओं द्वारा प्रदर्शित कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियों का सारांश दिया है। अभी-अभी हमने नकली अगुआओं को पहचानने के लिए दो मूलभूत सिद्धांतों, दो कसौटियों का निष्कर्ष निकाला : एक यह है कि क्या कोई व्यक्ति वास्तविक कार्य का निर्वहन करने में सक्षम है, और दूसरी यह है कि क्या एक बार सत्य सिद्धांत समझ लेने के बाद वह वास्तव में वास्तविक कार्य करता है। इन दो कसौटियों का उपयोग करना आज तक यह अनुमान लगाने का सबसे सरल और सबसे उपयुक्त तरीका रहा है कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ है या नहीं।

मद नौ : मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो (भाग एक)

कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा और विशिष्ट मद

आज, हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी पर संगति करेंगे : “मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो।” इस जिम्मेदारी को समग्र रूप से देखा जाए, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं से क्या कार्यान्वित करने की अपेक्षा की जाती है? (परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ।) इस जिम्मेदारी का केंद्र बिंदु यह है कि परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ कैसे कार्यान्वित की जाएँ—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। चाहे कोई किसी भी स्तर का अगुआ या कार्यकर्ता क्यों ना हो, अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में, हमेशा उसके सामने कार्य-व्यवस्थाओं के साथ-साथ कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करने का विशिष्ट कार्य भी आएगा। विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना हर अगुआ और कार्यकर्ता के कार्य के लिए प्रासंगिक है, और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण, बहुत ही विशिष्ट और बहुत ही मौलिक कार्य है। इस बिंदु को ध्यान में रखा जाए तो, क्या पहले विशिष्ट रूप से इस बात पर संगति करना जरूरी नहीं है कि कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं? (हाँ।) तो, फिर कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं? कार्य-व्यवस्थाओं का दायरा और परिभाषा क्या है? कुछ लोग कहते हैं, “क्या कार्य-व्यवस्थाओं के दायरे में सिर्फ कलीसियाई कार्य से संबंधित कुछ कार्य और सामग्री शामिल नहीं हैं? और क्या कार्य-व्यवस्थाएँ सिर्फ इन कार्यों और सामग्री को व्यवस्थित और जारी करना नहीं हैं?” तुम इस स्पष्टीकरण के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह सब शब्द और धर्म-सिद्धांत नहीं हैं? (हाँ, हैं।) और “शब्दों और धर्म-सिद्धांतों” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि, यद्यपि इस स्पष्टीकरण का कोई भी शब्द सुनने में गलत नहीं लगता है लेकिन इसे सुनने के बाद भी तुम इसे नहीं समझ पाते हो; यह बिल्कुल वैसा ही रहता है जैसे कि इसे बिल्कुल भी समझाया नहीं गया हो। आओ सबसे पहले लिखित विवरण के लिहाज से कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा दें, ताकि लोगों के पास यह समझने और जानने के लिए इसकी एक मूलभूत अवधारणा हो सके कि वास्तव में कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं। कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के घर द्वारा कार्य की किसी विशिष्ट मद के लिए बनाई गई विशिष्ट योजनाएँ और अपेक्षाएँ हैं; उन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा संप्रेषित और कार्यान्वित करने की जरूरत होती है और वे कार्य की किसी विशिष्ट मद के लिए कलीसिया के सभी सदस्यों को जारी की गई अपेक्षाएँ, कार्य और विधियाँ भी हैं—यही कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा है। और, कार्य-व्यवस्थाओं में कौन-सी मदें शामिल की जाती हैं? “मद” यह संज्ञा हर किसी को मालूम है, लेकिन क्या ऐसी कुछ विशिष्ट सामग्री नहीं होनी चाहिए जिसे इन मदों के दायरे में शामिल किया जाता है? (हाँ।) तुम लोगों को किस सामग्री के बारे में मालूम है? (सुसमाचार कार्य और फिल्म निर्माण कार्य।) ये दो मदें हुईं। (कलीसियाई जीवन और कलीसिया के प्रशासनिक संगठनों की स्थापना से संबंधित भी कुछ अपेक्षाएँ हैं।) और कौन-सा कार्य है? (कलीसिया को स्वच्छ करने का कार्य है, साथ ही कलीसिया की प्रबंधन प्रणालियों से संबंधित भी कुछ कार्य है।) कार्य-व्यवस्थाओं की विशिष्ट सामग्री इस प्रकार है : मद एक, कलीसिया का प्रशासनिक कार्य। यह कार्य की सबसे बड़ी मद है और अगर प्रशासनिक कार्य अच्छी तरह से नहीं किया गया तो कोई कलीसियाई कार्य नहीं होगा। मद दो, कार्मिक कार्य। यह कार्य की एक बड़ी मद है। मद तीन, सुसमाचार कार्य। यह भी कार्य की एक बड़ी मद है। मद चार, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य। इस कार्य का दायरा कुछ हद तक बड़ा है और इसमें फिल्म निर्माण, पाठ आधारित कार्य, अनुवाद, संगीत, वीडियो उत्पादन, कला, वगैरह शामिल हैं। मद पाँच, कलीसियाई जीवन। मद छह, संपत्ति प्रबंधन का कार्य। मद सात, स्वच्छता कार्य। मद आठ, बाहरी मामले। मद नौ, कलीसियाई कल्याण। मिसाल के तौर पर, कलीसिया भाई-बहनों के घरों में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को कैसे हल करती है, और कलीसिया उनके बारे में क्या करती है, साथ ही जेल में कैद भाई-बहनों से मिलना और उनके परिवारों की देखभाल कैसे करनी है, वगैरह—ये सबकुछ कलीसियाई कल्याण के अंतर्गत आता है। मद दस, आपातकालीन योजनाएँ। कभी-कभी, कलीसिया कुछ आपातकालीन उपाय जारी करेगी। मिसाल के तौर पर, जब महामारी आई थी तो कलीसिया ने उसी के अनुरूप आइसोलेशन की प्रणाली अपनाई थी। इस तरह की सभी योजनाएँ आपातकालीन कार्य के अंतर्गत आती हैं। कार्य-व्यवस्थाओं में मूल रूप से ये दस मदें शामिल हैं। कोई भी दूसरी छोटी मद या विशेष परिस्थिति को इन्हीं दस मदों में शामिल किया जाता है—मूल रूप से, कलीसियाई कार्य में ये दस प्रमुख मदें शामिल हैं। मूल रूप से, ये परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं का दायरा हैं, है न? (सही कहा।) अब जबकि इन मदों की पुष्टि हो चुकी है, तो अब तुम सभी को परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ थोड़ी-सी समझ आनी चाहिए और यह पता होना चाहिए कि ये परमेश्वर के घर में कार्य की प्रमुख मदें हैं। यह उन अपेक्षाओं का दायरा है जो परमेश्वर के घर में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में हैं। इसका आशय यह है कि एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हारे कार्य के दायरे और जो जिम्मेदारियाँ तुम्हें पूरी करनी चाहिए उन्हें इन मदों में शामिल कार्य-व्यवस्थाओं से अलग नहीं किया जा सकता है—ये सभी मदें जरूरी हैं। कार्य की इन मदों के अलावा जो चीजें तुम करने के इच्छुक हो उनमें से जो कुछ भी तुम अच्छी तरह से कर सकते हो उसे थोड़ा सा करो और परमेश्वर के घर में तुम्हारे कर्तव्य के निर्वहन के लिए कोई अतिरिक्त अपेक्षाएँ नहीं हैं। इसलिए अपने कार्य के निर्वहन के दौरान तुम्हें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि कार्य की इन मदों को कैसे पूरा करना है, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा क्या अपेक्षित है, तुम्हें कौन-सा विशिष्ट कार्य करना चाहिए, इसे कैसे कार्यान्वित करना है, क्या इसे अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जा रहा है, वर्तमान प्रगति क्या है, क्या तुम लोगों ने कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई की है, क्या कार्य की कोई ऐसी मद है जिसे अच्छी तरह से नहीं किया गया है या जिसमें विचलन और खामियाँ मौजूद हैं, और क्या कार्य की उस मद में भाग लेने वाला हर व्यक्ति वास्तव में कार्य कर रहा है—तुम्हें इन बातों पर हमेशा विचार करना चाहिए। अब जब तुमने कार्य-व्यवस्थाओं में शामिल कार्य की विशिष्ट मदें समझ ली हैं तो क्या मेरे लिए इनमें से हर मद का एक सरल विवरण देना जरूरी है? या शायद तुम लोग सोच रहे हो : “हम कई वर्षों से कार्य की इन मदों के संपर्क में हैं और हम इन सभी को समझते हैं; इन्हें फिर से समझाने की कोई जरूरत नहीं है—इसके बजाय किसी महत्वपूर्ण चीज पर संगति करो। यह विषय इतना महत्वपूर्ण नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हमें इसके बारे में पता है या नहीं और हम इसके बारे में नहीं सुनना चाहते हैं”? क्या इस विषय को और ज्यादा समझाना जरूरी है? (हाँ, है।) चूँकि यह जरूरी है तो चलो हम इसके बारे में सरल शब्दों में बात करें। मैं कुछ ऐसी मदें चुनूँगा जिनसे तुम अपेक्षाकृत अपरिचित हो, जो ज्यादा विशिष्ट नहीं हैं, जो थोड़ी अमूर्त हैं, और उन पर संगति करूँगा।

I. प्रशासनिक कार्य

आओ, शुरुआत पहली मद, प्रशासनिक कार्य, पर संगति से करते हैं। प्रशासनिक कार्य अपेक्षाकृत अमूर्त है और पर्याप्त रूप से ठोस नहीं है, और बहुत से लोग इसे नहीं समझते हैं। विशेष रूप से, जिन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए सिर्फ कुछ ही समय हुआ है वे कलीसिया के गठन और उसके प्रशासनिक कार्य के बारे में वाकई नहीं जानते हैं और उन्हें नहीं पता है कि प्रशासन क्या है। यह प्रशासन परमेश्वर द्वारा जारी किए गए प्रशासनिक आदेशों के समान नहीं है। इस प्रशासनिक कार्य में मुख्य रूप से कलीसियाओं की स्थापना के कार्य को लेकर परमेश्वर के घर की विशिष्ट शर्तें शामिल हैं। और इन विशिष्ट शर्तों की सामग्री क्या है? उनमें यह शामिल है कि कलीसियाओं को कैसे विभाजित किया जाए, हर कलीसिया में कितने लोग हों, कलीसियाओं को नाम कैसे दिए जाएँ, वगैरह। कार्य व्यवस्थाओं में यह तय किया गया है कि कलीसियाओं को उनके प्राकृतिक भौगोलिक वातावरण के अनुसार विभाजित किया जाए, जिसमें पास-पास रहने वाले 30 से 50 लोगों को एक कलीसिया के रूप में वर्गीकृत किया जाए। मिसाल के तौर पर, मान लो कि क्षेत्र “क” में तीन या चार गाँव शामिल हैं; अगर इन गाँवों में 50 विश्वासी हैं, तो उन्हें कलीसिया के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनके पास सभाएँ आयोजित करने के लिए अपने समय और जगहें होंगी, उनके पास कलीसियाई अगुआ और उपयाजक होंगे, साथ ही करने के लिए विशिष्ट कलीसियाई कार्य भी होंगे, और वे सभी इस कलीसिया द्वारा इकट्ठे प्रबंधित किए जाएँगे। यह कलीसियाओं के विभाजन और कलीसिया में सदस्यों की संख्या के बारे में शर्त है। साथ ही, यह कलीसिया एक निश्चित जिले की जिम्मेदारी के अंतर्गत आएगी, जो इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस जिले में मौजूद है और वह जिला उस कलीसिया में कार्यों के विभिन्न अंशों के लिए जिम्मेदार होगा, जैसे कि वहाँ का कलीसियाई जीवन, क्या अगुआ और उपयाजक उपयुक्त हैं, परमेश्वर के वचनों की किताबें वितरित करना, विभिन्न कार्य व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना और ऊपरवाले की अपेक्षाएँ संप्रेषित करना, वगैरह। परमेश्वर के घर में इन चीजों के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ हैं, जैसे कि एक जिला बनाने वाली कलीसियाओं की संख्या, और एक प्रदेश बनाने वाले जिलों की संख्या, साथ ही यह कि प्रदेश जिलों के लिए जिम्मेदार हैं, और जिले कलीसियाओं के लिए जिम्मेदार हैं, जो कि प्रशासनिक इकाइयाँ हैं। सरल शब्दों में, इसे प्रशासनिक कार्य कहते हैं और यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कलीसियाओं को उनके प्राकृतिक भौगोलिक वातावरण और जगह के आधार पर विभाजित करना चाहिए। अगर समय के साथ किसी कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़ती रहती है तो कलीसिया को लोगों की संख्या और भौगोलिक वातावरण के आधार पर फिर से विभाजित करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, अगर किसी कलीसिया में लोगों की संख्या 50 से बढ़कर 80 हो जाती है तो इसे दो कलीसियाओं में विभाजित कर देना चाहिए; अगर इन दो कलीसियाओं में लोगों की संख्या 80 से बढ़कर कुल मिलाकर 150 हो जाती है तो उन्हें तीन कलीसियाओं में विभाजित कर देना चाहिए। अगर किसी कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़कर 70, 80 या 100 हो जाती है और उसे अभी तक दो कलीसियाओं में विभाजित नहीं किया गया है तो फिर क्या यह नहीं दर्शाता है कि इस कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर का प्रशासनिक कार्य नहीं समझते हैं? (हाँ, यह दर्शाता है।) ऐसे समय में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस विषय से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ पढ़नी चाहिए—कार्य-व्यवस्थाओं पर कलीसिया की पुस्तिका में विशिष्ट नियम दिए गए हैं। अगर किसी कलीसिया को दो नई कलीसियाओं में विभाजित किया जाता है तो हर कलीसिया को जरूरी अगुआ और कार्यकर्ता चुनने चाहिए, जैसे कि कलीसियाई अगुआ, उपयाजक, वगैरह। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए? उन्हें कलीसिया में लोगों की संख्या और कलीसिया की स्थापना की स्थिति के बारे में जानना चाहिए और उसकी समझ हासिल करनी चाहिए। यह कलीसिया का प्रशासनिक कार्य है और यह कार्य की सबसे बड़ी मद है। परमेश्वर के चुने हुए लोग जहाँ भी हों वहीं एक कलीसिया होनी चाहिए और एक बार कलीसिया की स्थापना हो जाने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस कलीसिया के हर पहलू की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जैसे कि परमेश्वर के वचनों की किताबें वितरित करना, कलीसियाई सदस्यों को प्रबंधित करना, कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना ताकि उन्हें पता हो कि कार्य-व्यवस्थाओं की सामग्री क्या है। प्रशासनिक कार्य में मुख्य रूप से कलीसियाओं की स्थापना करना, साथ ही कलीसियाओं के प्रशासनिक संगठनों और कर्मियों की स्थापना करना शामिल है—ये सारी चीजें प्रशासनिक कार्य में विशिष्ट कार्य हैं। आम तौर पर, किन लोगों के सामने कार्य की यह मद ज्यादा आती है? नए विश्वासी कलीसियाएँ, सुसमाचार टीमें, साथ ही प्रादेशिक अगुआ, जिला अगुआ और उन क्षेत्रों के कलीसियाई अगुआ जिनमें सुसमाचार फैलाया जा रहा है, यह कार्य इन सभी के सामने ज्यादा आता है। इसके अलावा, प्रशासनिक कार्य में एक विशेष कार्य भी शामिल है जो कि कलीसियाओं को पूर्णकालिक कर्तव्य कलीसियाओं, अंशकालिक कर्तव्य कलीसियाओं, साधारण कलीसियाओं और बी समूहों में विभाजित करना है, और यह एक और कार्य है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इस बात पर पकड़ होनी चाहिए कि कलीसियाओं को कैसे अलग करना है, और कलीसियाओं को अलग करने का सिद्धांत है लोगों को उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों में अंतर के आधार पर अलग-अलग कलीसियाओं में विभाजित करना, कर्तव्य करने वाले लोगों को कर्तव्य नहीं करने वाले लोगों से अलग करना, और पूर्णकालिक कर्तव्य करने वाले लोगों को अंशकालिक कर्तव्य करने वाले लोगों से अलग करना—यह एक और विशेष और विशिष्ट प्रशासनिक कार्य है।

II. कार्मिक कार्य

मद दो, कार्मिक कार्य। यह मद सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के चुनाव, नियुक्ति और बरखास्तगी से संबंधित है। कार्य-व्यवस्थाएँ चुनाव प्रणालियों के लिए और इसके लिए विशिष्ट नियम प्रदान करती हैं कि किस किस्म के लोगों को अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में चुनना चाहिए, और चुनावों के लिए विधियाँ और विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं। यहाँ कुछ विशेष परिस्थितियाँ भी हैं, मिसाल के तौर पर, अगर भाई-बहन अभी-अभी एक-दूसरे से मिले हैं और वे एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से नहीं जानते हैं, और चुनाव के जरिए उपयुक्त अगुआ और कार्यकर्ता नहीं चुन सकते हैं, तो क्या करना चाहिए? ऐसे में, लोगों को पदोन्नत और नामित किया जा सकता है ताकि यह जाँचा जा सके कि कौन अगुआ बनने के लिए अपेक्षाकृत उपयुक्त है, और फिर उनके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त की जा सकती है, संगति की जा सकती है, और सरल जाँचें की जा सकती हैं, जिसके बाद उन्हें नियुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, जब ऊपरवाला किसी बड़ी परियोजना की व्यवस्था करता है या कई लोगों को पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करता है तो यह एक विशेष कार्य व्यवस्था है। यहाँ एक और विशेष परिस्थिति है, और वह यह है कि जब कोई व्यक्ति ऊपरवाले को यह बताते हुए रिपोर्ट लिखता है कि कैसे फलाँ अगुआ वास्तविक कार्य का निर्वहन नहीं करता है और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलता है, और ऊपरवाला इसकी जाँच करने के बाद जिस अगुआ की रिपोर्ट की गई थी उसे उसके पद से बरखास्त करने के लिए कार्य-व्यवस्था जारी करता है। यह कार्मिक कार्य से संबंधित एक और कार्य-व्यवस्था है। संक्षेप में, कर्मियों से संबंधित कार्य में कलीसिया में सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव, नियुक्ति और बरखास्तगी शामिल है। कार्य की यह मद अपेक्षाकृत सरल है और इसे समझना आसान है।

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