अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8) खंड चार

III. नकली अगुआ जो आलसी होते हैं और सुख-सुविधाओं में लिप्त रहते हैं

हमने अभी-अभी दो प्रकार के नकली अगुआओं पर संगति की। एक और प्रकार का नकली अगुआ होता है, जिसके बारे में हमने अक्सर “अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ” विषय पर संगति करते समय बात की है। इस प्रकार के अगुआओं में कुछ काबिलियत होती है, वे बेवकूफ नहीं होते हैं, उनके पास अपने कार्य करने के तौर-तरीके और विधियाँ होती हैं, और समस्याएँ हल करने के लिए योजनाएँ होती हैं, और जब उन्हें कार्य का कोई अंश दिया जाता है, तो वे उसे अपेक्षित मानकों के लगभग अनुरूप कार्यान्वित कर सकते हैं। वे कार्य के दौरान उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या का पता लगाने में समर्थ होते हैं और उनमें से कुछ समस्याएँ हल भी कर सकते हैं; जब वे कुछ लोगों द्वारा सूचित की गई समस्याएँ सुनते हैं, या वे कुछ लोगों के व्यवहार, अभिव्यक्तियों, बातों और कार्य की जाँच-परख करते हैं, तो उनके दिल में प्रतिक्रिया होती है, और उनकी अपनी राय और एक रवैया होता है। यकीनन, अगर ये लोग सत्य का अनुसरण करें और उनमें दायित्व की भावना हो, तो ये सभी समस्याएँ हल हो सकती हैं। लेकिन, आज हम जिस प्रकार के व्यक्ति पर संगति कर रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी के अंतर्गत आने वाले कार्य में समस्याएँ अप्रत्याशित रूप से अनसुलझी रह जाती हैं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये लोग वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे आराम से प्रेम और कड़ी मेहनत से नफरत करते हैं, वे बस ऊपरी तौर पर लापरवाही से प्रयास करते हैं, उन्हें निठल्ला रहना और रुतबे के फायदों का आनंद लेना पसंद है, उन्हें लोगों पर हुक्म चलाना अच्छा लगता है, और वे बस थोड़े-से होंठ हिलाते हैं और कुछ सुझाव देते हैं और फिर मान लेते हैं कि उनका कार्य पूरा हो गया है। वे कलीसिया के किसी भी वास्तविक कार्य या परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपे गए अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हैं—उनमें दायित्व की यह भावना नहीं होती है, और भले ही परमेश्वर का घर बार-बार इन बातों पर जोर देता रहे, फिर भी वे उन्हें गंभीरता से नहीं लेते हैं। मिसाल के तौर पर, वे परमेश्वर के घर के फिल्म निर्माण कार्य या पाठ आधारित कार्य में दखल देना या उसके बारे में पूछताछ करना नहीं चाहते हैं, और ना ही वे इस बात की छान-बीन करना चाहते हैं कि इस प्रकार के कार्य किस तरह से प्रगति कर रहे हैं और वे क्या परिणाम हासिल कर रहे हैं। वे बस अप्रत्यक्ष रूप से कुछ पूछताछ कर लेते हैं, और एक बार जब वे जान जाते हैं कि लोग इस कार्य में व्यस्त हैं और यह कार्य कर रहे हैं, तो वे आगे इस पर और ध्यान नहीं देते हैं। यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह से यह मालूम भी होता है कि कार्य में समस्याएँ हैं, तो भी वे उन पर संगति करना और उन्हें हल करना नहीं चाहते हैं, और ना ही वे इस बारे में पूछताछ या छान-बीन करते हैं कि लोग अपने कर्तव्य कैसे कर रहे हैं। वे इन चीजों के बारे में पूछताछ क्यों नहीं करते हैं या इनकी छान-बीन क्यों नहीं करते हैं? उन्हें लगता है कि अगर वे उनकी छान-बीन करेंगे, तो ऐसी बहुत सी समस्याएँ सामने आ जाएँगी जो उनके द्वारा हल की जाने की प्रतीक्षा में होंगी, और वह बहुत ही चिंताजनक होगा। अगर उन्हें हमेशा समस्याएँ सुलझानी पड़ जाए, तो जीवन अत्यंत थकाऊ हो जाएगा! अगर वे बहुत ज्यादा चिंता करेंगे, तो भोजन उनके लिए बेस्वाद हो जाएगा, और वे ठीक से सो नहीं पाएँगे, उन्हें देह में थकावट महसूस होगी, और फिर जीवन तकलीफदेह हो जाएगा। इसीलिए, जब उन्हें कोई समस्या दिखाई पड़ती है, तो वे उससे बचते फिरते हैं और अगर हो सके, तो उसे नजरअंदाज कर देते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति में क्या समस्या है? (वह बहुत ही आलसी है।) मुझे बताओ, गंभीर समस्या किन्हें होती है : आलसी लोगों को या खराब काबिलियत वाले लोगों को? (आलसी लोगों को।) आलसी लोगों को गंभीर समस्या क्यों होती है? (खराब काबिलियत वाले लोग अगुआ या कार्यकर्ता नहीं बन सकते, लेकिन जब वे अपनी क्षमताओं के दायरे में आने वाला कोई कर्तव्य करते हैं, तो वे कुछ हद तक प्रभावी हो सकते हैं। लेकिन, आलसी लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं; अगर उनमें काबिलियत हो, तो भी उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।) आलसी लोग कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इसे संक्षेप में प्रस्तुत करें, तो वे बेकार लोग हैं; उनमें एक द्वितीय-श्रेणी की अक्षमता है। आलसी लोगों की काबिलियत कितनी भी अच्छी क्यों न हो, वह नुमाइश से ज्यादा कुछ नहीं होती; भले ही उनमें अच्छी काबिलियत हो, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है। वे बहुत ही आलसी होते हैं—उन्हें पता होता है कि उन्हें क्या करना चाहिए, लेकिन वे वैसा नहीं करते हैं, और भले ही उन्हें पता हो कि कोई चीज एक समस्या है, फिर भी वे इसे हल करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हैं, और वैसे तो वे जानते हैं कि कार्य को प्रभावी बनाने के लिए उन्हें क्या कष्ट सहने चाहिए, लेकिन वे इन उपयोगी कष्टों को सहने के इच्छुक नहीं होते हैं—इसलिए वे कोई सत्य प्राप्त नहीं कर पाते हैं, और वे कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं। वे उन कष्टों को सहना नहीं चाहते हैं जो लोगों को सहने चाहिए; उन्हें सिर्फ सुख-सुविधाओं में लिप्त रहना, खुशी और फुर्सत के समय का आनंद लेना और एक मुक्त और शांतिपूर्ण जीवन का आनंद लेना आता है। क्या वे निकम्मे नहीं हैं? जो लोग कष्ट सहन नहीं कर सकते हैं, वे जीने के लायक नहीं हैं। जो लोग हमेशा परजीवी की तरह जीवन जीना चाहते हैं, उनमें जमीर या विवेक नहीं होता है; वे पशु हैं, और ऐसे लोग श्रम करने के लिए भी अयोग्य हैं। क्योंकि वे कष्ट सहन नहीं कर पाते हैं, इसलिए श्रम करते समय भी वे इसे अच्छी तरह से करने में समर्थ नहीं होते हैं, और अगर वे सत्य प्राप्त करना चाहें, तो इसकी उम्मीद तो और भी कम है। जो व्यक्ति कष्ट नहीं सह सकता है और सत्य से प्रेम नहीं करता है, वह निकम्मा व्यक्ति है; वह श्रम करने के लिए भी अयोग्य है। वह एक पशु है, जिसमें रत्ती भर भी मानवता नहीं है। ऐसे लोगों को हटा देना चाहिए; सिर्फ यही परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है।

कुछ लोग खेती के कार्य के लिए जिम्मेदार होते हैं, और वे विशेष रूप से मेहनती होते हैं; उनके मन में एक योजना होती है, और उन्हें पता होता है कि किस मौसम में क्या कार्य करना है। जब खेतों की जुताई का समय आता है तो वे हर भूखंड पर जाते हैं और उनका निरीक्षण करते हैं। प्रत्येक भूखंड पर उन्होंने जो फसल लगाने की योजना बनाई है उसके हिसाब वे उस भूखंड की असल स्थिति की तुलना करते हैं, और देखते हैं कि क्या उनकी योजना उपयुक्त है और क्या यह असल स्थिति के अनुरूप है। इसके अलावा, वे जाँचते हैं कि इस वर्ष मिट्टी कितनी गीली या सूखी है, किस खाद की जरूरत है, और बोने के लिए क्या उपयुक्त है। एक बार जब वे देख लेते हैं और उन्हें इन चीजों की समझ हो जाती है, तो वे तुरंत पूछते हैं कि क्या पौध उगाई जा चुकी है और कितनी उगाई गई है, फिर वे पौध-घर में जाकर देखते हैं और पता लगाते हैं कि क्या पौध उगाने वाला व्यक्ति भरोसेमंद है या क्या वह पौध को बर्बाद कर देगा। अगर यह कार्य करने के लिए एक व्यक्ति पर्याप्त नहीं है, तो वे दूसरे व्यक्ति को उसके साथ सहयोग करने के लिए नियुक्त करते हैं, और दोनों एक-दूसरे का पर्यवेक्षण करते हैं। क्या आलसी लोग ऐसा करेंगे? नहीं, वे नहीं करेंगे। अगर किसी ने उनका पर्यवेक्षण नहीं किया और उनसे आगे बढ़ने का आग्रह नहीं किया, तो वे उस जगह पर बिल्कुल नहीं जाएँगे; अगर परमेश्वर के घर ने किसी कार्य की प्रगति के बारे में नहीं पूछा, तो वे उस कार्य की वास्तविक स्थिति का निरीक्षण करने की पहल बिल्कुल नहीं करेंगे। जो लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं, वे चाहे जो भी कर रहे हों उसे हमेशा खुद ही करते हैं, लेकिन वे यह अंतर करने में असमर्थ होते हैं कि क्या अत्यंत जरूरी और महत्वपूर्ण है और क्या नहीं है, और वे बस आँख मूँदकर कार्य करते हैं। जबकि ये आलसी लोग काफी चतुर होते हैं, और वे चाहे कुछ भी कर रहे हों, वे बस अपने होंठ हिलाना और दूसरों को कार्य करने का हुक्म देना पसंद करते हैं; वे कोई भी चीज खुद कुछ नहीं करते हैं, और ना ही वे वास्तविक कार्य कर सकते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे कुछ प्रश्न पूछने के लिए बस एक फोन कॉल करने या संदेश भेजने की जरूरत है, और फिर मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है, मुद्दा हल हो जाता है। इससे मैं बहुत सारी परेशानी से बच जाता हूँ! जरा देखो अगुआ के रूप में मेरी काबिलियत कैसी है। मैं बस कुछ ही शब्दों से नियत कार्य समाप्त कर सकता हूँ—क्या यह भी मेरे द्वारा अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना नहीं है? मैं अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा नहीं कर रहा हूँ। अगर ऊपरवाला मुझसे इन चीजों के बारे में पूछता है, तो मैं उसे बहुत धाराप्रवाह रूप से उत्तर दे सकता हूँ और एक स्पष्ट स्पष्टीकरण प्रदान कर सकता हूँ। कार्यस्थल पर जाने और देखने का क्या फायदा है? मुझे विपत्ति और दुःख सहना पड़ेगा, और धूप में रहने से मेरी त्वचा काली पड़ जाएगी। वह औपचारिकता करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर मैं खुद को कुछ परेशानी से बचा सकता हूँ, तो मैं वही करूँगा। मुझे अपने लिए चीजें इतनी कठिन बनाने की कोई जरूरत नहीं है।” क्या वे पर्याप्त रूप से “होशियार” नहीं हैं? जब इस प्रकार का व्यक्ति कार्य करता है, तो वह अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए गलत तरीके अपनाने और जुगाड़ ढूँढ़ने में विशेष रूप से कुशल होता है, और उसके अपने तौर-तरीके और विधियाँ होती हैं। वह खुद कुछ नहीं करता है, और ना ही वह किसी चीज में भाग लेता है। वह प्रश्न पूछने के लिए बस फोन कॉल करता है, खानापूर्ति करता है और फोन नीचे रखते ही बिस्तर पर चला जाता है या मालिश करवाता है और अपनी दैहिक सुख-सुविधाओं का आनंद लेना शुरू कर देता है। इस प्रकार का व्यक्ति वाकई जानता है कि कैसे “कार्य करना है,” वह वाकई जानता है कि निठल्ले रहने के अवसर कैसे ढूँढ़ने हैं, और वह वाकई जानता है कि खानापूर्ति कैसे करनी है और लोगों को कैसे ठगना है! उसमें वह थोड़ी-सी काबिलियत होने का क्या फायदा है? वे कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्र के उन अधिकारियों जैसे ही हैं, जो कार्यस्थल पर जाने के बाद वहाँ बस चाय पीते हैं और अखबार पढ़ते हैं, और दिन का कार्य समाप्त होने से पहले ही यह सोचना शुरू कर देते हैं कि वे क्या खाएँगे और अपना मनोरंजन करने के लिए कहाँ जाएँगे—उनके लिए जीवन वाकई अच्छा है। इस प्रकार के नकली अगुआ अपने कार्य में भी इसी सिद्धांत का पालन करते हैं; वे कोई कष्ट नहीं सहते हैं, वे कोई थकावट नहीं सहते हैं, और फिर भी वे एक अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं और रुतबे के फायदों का आनंद लेते हैं, और ज्यादातर भाई-बहन यह नहीं देख पाते हैं कि यह एक समस्या है। इस किस्म का नकली अगुआ इसी तरह से कार्य करता है, वह कोई वास्तविक कार्य नहीं करता है, और कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई और निरीक्षण करने के लिए कार्यस्थल पर नहीं जाता है, तो क्या वह कार्य में समस्याओं का पता लगा सकता है? (नहीं।) छद्म-आध्यात्मिक नकली अगुआ और खराब काबिलियत वाले नकली अगुआ अपनी आँखें पूरी तरह से खुली होने के बावजूद अंधे होते हैं, और वे समस्याएँ देख नहीं पाते हैं, तो इस किस्म के बेकार लोगों के बारे में तुम्हारा क्या कहना है? वे कहते हैं, “मैं वास्तविक कार्य में भाग नहीं लेता और मैं खुद को कार्यस्थल पर कार्य करने वाले लोगों से जोड़ने के लिए वहाँ नहीं जाता, इसलिए अगर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो तुम यह नहीं कह सकते हो कि मेरी आँखें खुली होने के बावजूद मैं अंधा हूँ। मैं कार्यस्थल पर गया ही नहीं हूँ और मैंने समस्याएँ देखी ही नहीं हैं, इसलिए अगर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो इससे मेरा क्या लेना-देना है? तुम्हें उन लोगों को ढूँढ़ना चाहिए जो इसमें शामिल हैं।” क्या ये लोग वाकई शातिर नहीं हैं? उन्हें लगता है कि उनका कार्य बस हुक्म देना और लोगों को उचित रूप से व्यवस्थित करना है, बस, और फिर उनकी जिम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं और फिर वे बेशर्मी से अपनी फुर्सत और मनोरंजन के समय का आनंद ले सकते हैं। नीचे चाहे कोई भी समस्या क्यों ना हो, वे कोई पूछताछ नहीं करते हैं, और वे सिर्फ तभी कोई समस्या सँभालने की जल्दी करते हैं जब कोई ऊपरवाले को इसकी सूचना दे देता है। हर रोज वे सिर्फ रुतबे के फायदों का आनंद लेने, हर जगह इत्मीनान से सैर करने, कार्य का निरीक्षण करने का दिखावा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन वे वास्तव में कभी भी ऐसी जगह नहीं जाते हैं जहाँ वाकई कोई समस्या हो, और वे कभी भी अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य का निरीक्षण नहीं करते हैं—क्या यह ठीक वैसा ही नहीं है जैसे कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी हमेशा सतही प्रयास करते हैं और सिर्फ वही कार्य करते हैं जिसे करके वे अच्छे दिखें? वे उन्हें दिया गया कार्य करने के लिए अच्छे वादे करते हैं, लेकिन वे उस पर अनुवर्ती कार्रवाई या पर्यवेक्षण नहीं करते हैं, और अगर वे कार्यस्थल पर जाते भी हैं, तो बस औपचारिकताएँ पूरी करते हैं। वे खुद कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं या खुद समस्याएँ बिल्कुल हल नहीं करते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे ये चीजें करने के लिए कष्ट सहने और कीमत चुकाने की कोई जरूरत नहीं है। यह काफी है कि कोई वहाँ उन्हें कर रहा है। वैसे भी मैं कोई पैसा नहीं कमा रहा हूँ, इसलिए मेरे लिए बस किसी तरह गुजारा करना ठीक है।” क्या अपनी इस मानसिकता के साथ वे अपना कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं? उनके दिमागों में एक छोटी-सी योजना होती है, वे सोचते हैं, “मैं सिर्फ उतना ही कार्य करूँगा जितना मुझे खाने के लिए भोजन मिलता है और मैं हर दिन लापरवाह तरीके से गुजारूँगा।” फिर भी वे कभी भी कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं, और वे कार्यस्थल पर कभी भी नजर नहीं आते हैं। तो, वे कहाँ होते हैं? वे एक सुंदर और सुरक्षित जगह पर आनंद ले रहे होते हैं जहाँ वे खा-पी सकते हैं और अच्छी नींद ले सकते हैं, वे एक राजकुमार की तरह जी रहे होते हैं—नियमित रूप से नहाते हैं, नियमित रूप से मालिश करवाते हैं, और नियमित रूप से अपने कपड़े बदलते हैं—और वे बिल्कुल भी कष्ट नहीं सह रहे होते हैं। वे कभी इस बात पर विचार नहीं करते हैं कि वे कौन-सा वास्तविक कार्य कर सकते हैं, वे कौन-सी वास्तविक समस्याएँ हल कर सकते हैं, उन्होंने परमेश्वर के घर के कार्य में क्या योगदान दिया है, और वे इन सभी अच्छी चीजों का आनंद लेने के लिए कैसे योग्य हैं—वे कभी भी इनमें से किसी पर भी विचार नहीं करते हैं। ये लोग किस किस्म की चीजें हैं? इन दुष्टों में कोई आत्म-जागरूकता नहीं होती है, वे बेशर्म चीजें हैं, और वे कलीसियाई अगुआ और कार्यकर्ता होने के लायक नहीं हैं।

सभी नकली अगुआ कभी भी वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे उनकी अगुवाई की भूमिका कोई आधिकारिक पद हो, वे रुतबे के फायदों का आनंद लेते हैं, और अगुआ के रूप में उन्हें जो कर्तव्य करना चाहिए और जो कार्य करना चाहिए, वे उन्हें बोझ जैसा, उपद्रव जैसा मानते हैं। अपने दिलों में, वे कलीसिया के कार्य के प्रति प्रतिरोध से लबालब भरे होते हैं : जब उनसे कार्य का पर्यवेक्षण करने और यह जानने के लिए कहा जाता है कि इसमें ऐसे कौन से मुद्दे मौजूद हैं जिन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने और जिन्हें हल करने की जरूरत है, तो ऐसा करने की उनकी जरा भी इच्छा नहीं होती। अगुआओं और कर्मियों का यही तो काम होता है, यही उनका कार्य है। यदि तुम इसे नहीं करते और इसे करने के अनिच्छुक हो, तो फिर भी तुम अगुआ और कार्यकर्ता क्यों बनना चाहते हो? क्या तुम अपने कर्तव्य का पालन परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहने के लिए करते हो या एक पदाधिकारी बनने और रुतबे के फायदे लेने के लिए करते हो? अगर तुम सिर्फ इसलिए अगुआ बने ताकि तुम कोई आधिकारिक पद सँभाल सको, तो क्या यह थोड़ी-सी बेशर्मी नहीं है? इस तरह के लोग सबसे नीच चरित्र के होते हैं, उनमें कोई गरिमा, कोई शर्म नहीं होती है। अगर तुम दैहिक सुख-सुविधा का आनंद लेना चाहते हो, तो तुम्हें जल्द से जल्द संसार में वापस लौट जाना चाहिए, और अपनी क्षमता के अनुसार दावा करना चाहिए, जबरन ले लेना चाहिए, और हड़प लेना चाहिए, और कोई भी इसमें दखल नहीं देगा। परमेश्वर का घर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए अपने कर्तव्य करने और उसकी आराधना करने का स्थान है; यह लोगों के लिए सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने की जगह है। यह किसी के लिए भी दैहिक सुख-सुविधाओं में लिप्त होने की जगह नहीं है, और ऐसी जगह तो बिल्कुल नहीं है जो लोगों को राजकुमारों की तरह रहने की अनुमति दे। नकली अगुआओं में कोई शर्म नहीं होती है, वे पूरी तरह से बेशर्म होते हैं, और उनमें बिल्कुल सूझ-बूझ नहीं होती है। चाहे उन्हें कोई भी विशिष्ट कार्य क्यों ना सौंपा जाए, वे उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं और वह कार्य उनके दिमाग से निकल जाता है; वैसे तो वे शब्दों में बहुत अच्छी तरह से जवाब देते हैं, लेकिन वे कोई भी वास्तविक चीज नहीं करते हैं। क्या यह अनैतिक नहीं है? सिर्फ यही नहीं है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, बल्कि वे एकमात्र शक्ति भी चाहते हैं—वित्त, कर्मचारी-संबंधी और दूसरे सभी मामलों पर अपना पूर्ण नियंत्रण रखना, और लोगों को हर दिन उन्हें रिपोर्ट प्रदान करने के लिए कहना। जब इन चीजों की बात आती है, तो वे वास्तव में बहुत मेहनती होते हैं। जब उन्हें ऊपरवाले को काम की रिपोर्ट देने का समय आता है, तो वे भाई-बहनों द्वारा किए गए सभी कार्यों के परिणामों का श्रेय ले लेते हैं, ताकि ऊपरवाला गलती से यह मान ले कि उन्होंने बहुत बढ़िया काम किया है, जबकि वास्तव में वह सब दूसरों द्वारा किया गया होता है। सुसमाचार फैलाने से कितने लोग प्राप्त हुए हैं, किन लोगों को पदोन्नत किया गया है और विकसित किया जा रहा है, किन लोगों को उनके पदों से बर्खास्त किया गया है, किन लोगों को बाहर निकाला गया है, इत्यादि—इनमें से कोई भी विशिष्ट कार्य उनके द्वारा नहीं किया गया होता, फिर भी वे उन्हें रिपोर्ट करने की धृष्टता करते हैं। क्या ये लोग पूरी तरह से बेशर्म नहीं हैं? क्या वे धोखेबाजी नहीं कर रहे हैं? ऐसे लोग बहुत धोखेबाज और शातिर होते हैं! वे खुद को होशियार समझते हैं—यह वाकई उनकी अपनी होशियार चालों का शिकार होने का मामला है, जिससे अंत में वे स्वयं ही बेनकाब हो जाते हैं और निकाल दिए जाते हैं। कुछ लोग चाहे जो भी काम करें या कोई भी कर्तव्य निभाएँ, वे उसमें अयोग्य होते हैं, वे उसका भार नहीं उठा सकते, और वे किसी भी उस दायित्व या जिम्मेदारी को निभाने में असमर्थ होते हैं, जो एक व्यक्ति को निभानी चाहिए। क्या वे कचरा नहीं हैं? क्या वे अभी भी इंसान कहलाने लायक हैं? कमअक्ल लोगों, मानसिक रूप से अयोग्य, और जो शारीरिक अक्षमताओं से ग्रस्त हैं, उन्हें छोड़कर, क्या कोई ऐसा जीवित व्यक्ति है जिसे अपने कर्तव्यों को नहीं करना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करना चाहिए? लेकिन इस तरह के लोग कामचोर और सुस्त होते हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं करना चाहते; निहितार्थ यह है कि वे एक उचित मनुष्य नहीं बनना चाहते हैं। परमेश्वर ने उन्हें इंसान बनने का अवसर दिया, और उसने उन्हें काबिलियत और विशेष गुण दिए, फिर भी वे अपना कर्तव्य करने में इनका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। वे कुछ नहीं करते, लेकिन हर मोड़ पर चीजों का आनंद लेना चाहते हैं। क्या ऐसा व्यक्ति मनुष्य कहलाने लायक भी है? उन्हें कोई भी काम दे दिया जाए—चाहे वह महत्वपूर्ण हो या सामान्य, कठिन हो या सरल—वे हमेशा लापरवाह और शातिर होते हैं और कामचोरी करते हैं। समस्याएँ आने पर अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं; कोई जिम्मेदारी नहीं लेते हैं, और वे अपना परजीवी जीवन जीते रहना चाहते हैं। क्या वे बेकार कचरा नहीं हैं? समाज में, किसे रोजी-रोटी कमाने के लिए खुद पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है? एक बार जब व्यक्ति व्यस्क हो जाता है, तो उसे अपना भरण-पोषण खुद करना चाहिए। उसके माता-पिता ने अपनी जिम्मेदारी निभा दी है। भले ही उसके माता-पिता उसकी मदद करने के लिए तैयार हों, वह इससे असहज होगा। उन्हें यह समझने में समर्थ होना चाहिए कि उनके माता-पिता ने उनकी परवरिश करने का अपना लक्ष्य पूरा कर दिया है, और कि वे हृष्ट-पुष्ट वयस्क हैं, और उन्हें स्वतंत्र रूप से जीवन जीने में समर्थ होना चाहिए। क्या एक वयस्क में यह न्यूनतम सूझ-बूझ नहीं होनी चाहिए? अगर किसी व्यक्ति में सही मायने में सूझ-बूझ है, तो उसके लिए अपने माता-पिता के पैसों पर जीवनयापन करते रहना बिल्कुल असंभव होगा; वह दूसरों की हँसी का पात्र बनने से, अपनी नाक कटने से डरेगा। तो क्या किसी सुविधाभोगी और काम से घृणा करने वाले व्यक्ति में कोई विवेक होता है? (नहीं।) वे बिना काम किए कुछ हासिल करना चाहते हैं; वे कभी जिम्मेदारी पूरी नहीं करना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि मिठाइयाँ आसमान से सीधे उनके मुँह में टपकें; उन्हें हमेशा दिन में तीन बार अच्छा भोजन चाहिए होता है, वे चाहते हैं कि कोई उनके लिए पलकें बिछाए रहे और वे थोड़ा सा भी कार्य किए बिना बढ़िया खाने-पीने की चीजों का आनंद लेते रहें। क्या यह एक परजीवी की मानसिकता नहीं है? क्या परजीवियों में जमीर और विवेक होते हैं? क्या उनमें ईमानदारी और गरिमा होती है? बिल्कुल नहीं। वे सभी मुफ्तखोर निकम्मे होते हैं, जमीर या विवेक से रहित जानवर। उनमें से कोई भी परमेश्वर के घर में बने रहने के योग्य नहीं है।

मान लो कि कलीसिया तुम्हारे लिए किसी नियत कार्य की व्यवस्था करती है, और तुम कहते हो, “चाहे इस नियत कार्य से मुझे ध्यान आकर्षित करने का मौका मिले या ना मिले—चूँकि यह मुझे दिया गया है, इसलिए मैं इसे अच्छी तरह से करूँगा और यह जिम्मेदारी स्वीकार करूँगा। अगर मुझे मेजबानी करने के लिए व्यवस्थित किया जाता है, तो मैं इसे अच्छी तरह से करने के लिए जी-जान लगा दूँगा; मैं भाई-बहनों की अच्छी तरह से देखभाल करूँगा, और सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने का पूरा प्रयास करूँगा। अगर मुझे सुसमाचार का प्रचार करने के लिए व्यवस्थित किया जाता है, तो मैं खुद को सत्य से सुसज्जित करूँगा और प्रेम भाव से सुसमाचार का प्रचार अच्छी तरह से करूँगा और अपना कर्तव्य पूरा करूँगा। अगर मुझे कोई विदेशी भाषा सीखने के लिए व्यवस्थित किया जाता है, तो मैं पूरे दिल से उसका अध्ययन करूँगा और उस पर कड़ी मेहनत करूँगा, और जितनी जल्दी हो सके, एक या दो वर्ष में उसमें माहिर होने का प्रयास करूँगा, ताकि मैं विदेशियों को परमेश्वर की गवाही दे सकूँ। अगर मुझे गवाही लेख लिखने के लिए कहा जाता है, तो मैं इसे करने के लिए खुद को कर्तव्यनिष्ठ ढंग से प्रशिक्षित करूँगा और सत्य सिद्धांतों के अनुसार चीजें देखूँगा; और भाषा के बारे में सीखूँगा। भले ही मैं सुंदर गद्य वाले लेख लिखने में सक्षम न हो सकूँ, मैं कम से कम अपनी अनुभवात्मक गवाही स्पष्ट रूप से संप्रेषित कर पाऊँगा, सत्य के बारे में सुगम तरीके से संगति कर सकूँगा और परमेश्वर के लिए सच्ची गवाही दे सकूँगा, ताकि मेरे लेख पढ़कर लोग शिक्षित और लाभान्वित हों। कलीसिया मुझे जो भी काम सौंपेगी, मैं उसे पूरे दिल और ताकत से करूँगा। अगर कुछ ऐसा हुआ जो मुझे समझ न आए, या अगर कोई समस्या सामने आई, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा, सत्य की तलाश करूँगा, सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्याओं का समाधान करूँगा, और नियत कार्य अच्छी तरह से करूँगा। मेरा जो भी कर्तव्य हो, मैं उसे अच्छी तरह से करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना सब-कुछ इस्तेमाल करूँगा। मैं जो कुछ भी हासिल कर सकता हूँ, उसके लिए मैं वह जिम्मेदारी उठाने का भरसक प्रयास करूँगा जो मुझे उठानी चाहिए, और कम से कम, मैं अपने जमीर और विवेक के खिलाफ नहीं जाऊँगा, लापरवाह नहीं होऊँगा, शातिर नहीं बनूँगा और कामचोरी नहीं करूँगा, और ना ही दूसरों की मेहनत के फलों में लिप्त होऊँगा। मैं जो कुछ भी करूँगा, वह जमीर के मानक से नीचे नहीं होगा।” यह स्व-आचरण का न्यूनतम मानक है, और जो व्यक्ति इस तरह से अपना कर्तव्य करता है, वह जमीर और सूझ-बूझ वाला व्यक्ति माना जा सकता है। अपना कर्तव्य करते समय तुम्हें कम से कम साफ जमीर वाला व्यक्ति होना चाहिए, और तुम्हें कम से कम दिन में तीन बार भोजन करने के लायक होना चाहिए और मुफ्तखोर नहीं होना चाहिए। इसे जिम्मेदारी की भावना होना कहते हैं। चाहे तुम्हारी क्षमता ज्यादा हो या कम, और चाहे तुम सत्य समझते हो या नहीं, जो भी हो, तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए : “चूँकि यह कार्य मुझे करने के लिए दिया गया था, इसलिए मुझे इसे गंभीरता से लेना चाहिए; मुझे इसे अपनी जिम्मेदारी बनानी चाहिए, और मुझे इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपना पूरा दिल और ताकत लगा देनी चाहिए। रही यह बात कि मैं इसे पूर्णतया अच्छी तरह से कर सकता हूँ या नहीं, तो मैं कोई गारंटी देने की कल्पना तो नहीं कर सकता, लेकिन मेरा रवैया यह है कि मैं इसे अच्छी तरह से करने के लिए अपना भरसक प्रयास करूँगा, और मैं यकीनन इसके बारे में लापरवाह नहीं होऊँगा। अगर काम में कोई समस्या आती है, तो मुझे जिम्मेदारी लेनी चाहिए, और सुनिश्चित करना चाहिए कि मैं इससे सबक सीखूँ और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करूँ।” यह सही रवैया है। क्या तुम लोगों का रवैया ऐसा है? कुछ लोग कहते हैं, “जरूरी नहीं कि जो काम मुझे सौंपा गया है, उसे मैं अच्छी तरह से करूँ। मैं वही करूँगा, जो मैं कर सकता हूँ और अंतिम उत्पाद वही होगा, जो होना होगा। मुझे खुद को इतना थकाने या कोई गलती करने पर चिंता से बिखर जाने की जरूरत नहीं है और मुझे इतना तनाव लेने की जरूरत नहीं है। खुद को इतना थका देने में क्या रखा है? आखिरकार, मैं निरंतर काम कर रहा हूँ और मुफ्तखोरी नहीं कर रहा।” अपने कर्तव्य के प्रति इस तरह का रवैया गैर-जिम्मेदाराना है। “अगर मेरा काम करने का मन होगा, तो मैं कुछ काम कर दूँगा। मैं सिर्फ वही करूँगा, जो मैं कर सकता हूँ और अंतिम उत्पाद वही होगा, जो होना होगा। इसे इतनी गंभीरता से लेने की कोई जरूरत नहीं है।” ऐसे लोगों का अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदाराना रवैया नहीं होता और उनमें जिम्मेदारी की भावना का अभाव होता है। तुम लोग किस तरह के व्यक्ति हो? अगर तुम पहली तरह के व्यक्ति हो, तो तुम विवेक और मानवता वाले व्यक्ति हो। अगर तुम दूसरी तरह के व्यक्ति हो, तो तुम लोग उस तरह के नकली अगुआओं से अलग नहीं हो, जिनका मैंने अभी-अभी विश्लेषण किया है। तुम आराम और मौजमस्ती करके अपने दिन बिताए जा रहे हो। “मैं थकान और कठिनाई से बचूँगा और बस ज्यादा आनंद लूँगा। भले ही एक दिन मुझे बर्खास्त कर दिया जाए, तो भी मेरा कोई नुकसान न होगा। मैंने कम-से-कम कुछ दिनों के लिए रुतबे के फायदे तो उठा लिए होंगे, यह मेरे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा। अगर मुझे अगुआ के रूप में चुना गया, तो मैं इसी तरह कार्य करूँगा।” इस किस्म के व्यक्ति की मानसिकता के बारे में तुम क्या सोचते हो? ऐसे लोग छद्म-विश्वासी होते हैं जो सत्य का जरा सा भी अनुसरण नहीं करते हैं। अगर तुममें सही मायने में जिम्मेदारी की भावना है, तो इससे पता चलता है कि तुम्हारे पास जमीर और सूझ-बूझ है। काम चाहे कितना भी बड़ा या छोटा हो, चाहे तुम्हें वह कार्य कोई भी सौंपे, चाहे परमेश्वर का घर तुम्हें वह कार्य सौंपे या कलीसिया का अगुआ या कार्यकर्ता उसे तुम्हें सौंपे, तुम्हारा यह रवैया होना चाहिए : “चूँकि यह कर्तव्य मुझे सौंपा गया है, इसलिए यह परमेश्वर का उत्कर्ष और अनुग्रह है। मुझे इसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अच्छी तरह से करना चाहिए। औसत काबिलियत होने के बावजूद, मैं यह जिम्मेदारी लेने और इसे अच्छी तरह से निभाने के लिए अपना सब-कुछ झोंकने को तैयार हूँ। अगर मैंने खराब काम किया, तो मुझे उसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए और अगर मैंने अच्छा काम किया, तो वह मेरे लिए श्रेय की बात नहीं होगी। मुझे यही करना चाहिए।” मैं यह क्यों कहता हूँ कि व्यक्ति अपने कर्तव्य को कैसे लेता है, यह सिद्धांत का मामला है? अगर तुम में वास्तव में जिम्मेदारी की भावना है और तुम एक जिम्मेदार व्यक्ति हो, तो तुम कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी उठा सकोगे और वह कर्तव्य पूरा कर सकोगे, जो तुम्हें करना चाहिए। अगर तुम अपना कर्तव्य हल्के में लेते हो, तो परमेश्वर में विश्वास के बारे में तुम्हारा दृष्टिकोण गलत है, और परमेश्वर और अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा रवैया समस्यात्मक है। अपना कर्तव्य करने के बारे में तुम्हारा दृष्टिकोण यह है कि इसे लापरवाही से करके बस जैसे-तैसे पूरा कर दिया जाए, और चाहे यह ऐसा कुछ हो जिसे तुम करने के इच्छुक हो या नहीं हो, या कुछ ऐसा हो जिसमें तुम अच्छे हो या नहीं हो, तुम हमेशा इसे बस कामचलाऊ रवैये से सँभालते हो, इसलिए तुम अगुआ या कार्यकर्ता होने के लिए उपयुक्त नहीं हो और तुम कलीसियाई कार्य करने के लायक नहीं हो। इतना ही नहीं, इसे बहुत स्पष्ट रूप से कहा जाए, तो तुम जैसे लोग निकम्मे होते हैं, उनकी किस्मत में कुछ भी हासिल नहीं करना लिखा होता है, और वे बस बेकार लोग होते हैं। किस तरह के लोग बेकार होते हैं? भ्रमित लोग, जो आराम और मौजमस्ती करके अपने दिन बिताते हैं। इस तरह के लोग अपने किसी भी कार्य में जिम्मेदार नहीं होते, और ना ही वे इसे गंभीरता से लेते हैं; वे सब-कुछ गड़बड़ कर देते हैं। वे तुम्हारी बातों पर ध्यान नहीं देते, चाहे तुम सत्य पर कैसे भी संगति क्यों ना करो। वे सोचते हैं, “अगर मैं चाहूँ, तो मैं इसी तरह कामचलाऊ तरीके से कार्य करूँगा। तुम जो चाहे कह लो! वैसे भी, इस समय मैं अपना कर्तव्य कर रहा हूँ और मेरे पास खाने के लिए भोजन है, इतना काफी है। कम से कम मुझे भिखारी तो बनना नहीं पड़ रहा है। अगर किसी दिन मेरे पास खाने के लिए कुछ न हुआ, तो मैं इसके बारे में सोचूँगा। स्वर्ग हमेशा मनुष्य के लिए एक रास्ता छोड़ेगा। तुम कहते हो कि मुझमें कोई जमीर या सूझ-बूझ नहीं है, और कि मैं भ्रमित हूँ—अच्छा, तो क्या हुआ? मैंने कानून नहीं तोड़ा है। ज्यादा से ज्यादा, मेरा बस चरित्र थोड़ा कमजोर है, लेकिन इससे मेरा कोई नुकसान नहीं है। जब तक मेरे पास खाने के लिए भोजन है, सब ठीक है।” तुम इस दृष्टिकोण के बारे में क्या सोचते हो? मैं तुमसे कहता हूँ, इस तरह के भ्रमित लोग जो आराम और मौजमस्ती करके अपने दिन बिताते हैं, उनकी किस्मत में निकाल दिया जाना लिखा है, और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे वे उद्धार प्राप्त कर सकें। वे सभी लोग जिन्होंने कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, लेकिन कभी किसी सत्य को स्वीकार नहीं किया है और जिनके पास अनुभवजन्य गवाहियाँ नहीं हैं, उन्हें निकाल दिया जाएगा। कोई नहीं बचेगा। सभी कचरे जैसे और निकम्मे लोग मुफ्तखोर हैं और उनकी किस्मत में निकाल दिया जाना लिखा है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ मुफ्तखोर हैं, तो उन्हें तो और भी बर्खास्त कर देना चाहिए और निकाल देना चाहिए। इस तरह के भ्रमित लोग अब भी अगुआ और कार्यकर्ता बनना चाहते हैं; वे अयोग्य हैं! वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं। उनमें सच में कोई शर्म नहीं है!

कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपने पदों से बर्खास्त कर दिए जाने के बाद कहते हैं, “अगुआ या कार्यकर्ता नहीं होना बहुत ही बढ़िया है। मुझे इतना बेचैन होने या खुद को इतना परेशान करने की जरूरत नहीं है। एक आम भाई या बहन होना बहुत ही शानदार है। मुझे इसके लिए खुद को क्यों परेशान करना चाहिए? मुझमें काबिलियत सिर्फ इसलिए थोड़े ही है कि मैं खुद को थका सकूँ।” कोई और उनसे कहता है, “अब जब तुम अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हो, तो तुम क्या करोगे?” वे उत्तर देते हैं, “मुझे कोई भी चीज करने में कोई परेशानी नहीं है, जब तक कि वह बहुत थकाऊ ना हो और उसके लिए बहुत ज्यादा प्रयास ना करना पड़े—कोई ऐसी चीज ठीक रहेगी जिसमें चलना-फिरना और इधर-उधर नजर दौड़ाना, या बैठना और बात करना या कंप्यूटर देखना शामिल हो, और जिसके लिए कई-कई घंटे लगाने या शारीरिक कष्ट सहने की जरूरत ना हो।” यह किस तरह की बात है? अगर तुम लोगों को यह पता लगे कि तुमने जिस अगुआ या कार्यकर्ता को चुना, वह इस किस्म की चीज है, तो तुम अपने दिल में कैसा महसूस करोगे? क्या तुम्हें बहुत पछतावा नहीं होगा? (हाँ, होगा।) तो, क्या तुम्हारे पास इस पर कोई विचार होंगे? तुम कहोगे, “शुरू में, मैंने देखा था कि तुममें थोड़ी काबिलियत है और मैं तुम्हें पदोन्नत और विकसित करना चाहता था, और तुम्हें एक मौका देना चाहता था, ताकि तुम कुछ और सत्य समझ सको। मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि तुम बेकार से भी गए गुजरे हो। मुझे अफसोस है कि मैंने उस समय तुम्हें एक मनुष्य के रूप में देखा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि दरअसल तुम वह हो ही नहीं। तुम तो किसी सुअर या कुत्ते से भी कमतर हो, तुम कचरा हो। तुम यह मानव त्वचा पहनने के लायक नहीं हो, और तुम मनुष्य होने के लायक नहीं हो!” क्या ये शब्द बुरे लगते हैं? (नहीं।) ये तुम लोगों को बुरे नहीं लगते हैं, लेकिन क्या ये इस किस्म के कचरे को बहुत बुरे नहीं लगते हैं? (हाँ, लगते हैं।) क्या इस तरह के कचरे के पास दिल होता है? (नहीं।) तो क्या वह बता सकता है कि कोई उसके बारे में अच्छी चीजें कह रहा है या बुरी चीजें? जब बिना दिल वाले लोग किसी मामले का सामना करते हैं, तो वे आराम और मौजमस्ती करके दिन बिताने का अपना रवैया नहीं बदलते हैं। उन्हें लगता है कि जब तक उन्हें फायदा पहुँच रहा है, सुविधा हो रही है और वे आराम महसूस कर रहे हैं, तब तक सब ठीक है। इसलिए कोई और चाहे कुछ भी कहे, वे परवाह नहीं करते हैं। उनकी प्रसिद्ध कहावत है : “तुम चाहे कुछ भी कहो, तुम मुझे चाहे किसी भी नजर से देखो या मेरा मूल्यांकन करो, या मुझे कैसे भी वर्गीकृत करो या सँभालो, मैं परवाह नहीं करता!” क्या ये लोग सिर्फ कचरा नहीं हैं? तुम चाहे कुछ भी कहो, उनमें अनुभूति का कोई बोध नहीं है और वे इसे दिल पर नहीं लेते हैं। वे इसे दिल पर क्यों नहीं लेते हैं? वे सिर्फ निठल्ले हैं, और उनके पास दिल नहीं होता है। जिन लोगों के पास दिल नहीं होता है, उनमें कोई गरिमा या ईमानदारी नहीं होती है, वे तुम्हारी कही किसी भी बात की परवाह नहीं करते हैं, और तुम चाहे उनसे कितनी भी कठोरता से बात क्यों ना करो, वे अपने दिलों में कोई चुभन महसूस नहीं करते हैं। सिर्फ उन्हीं लोगों को दुख होगा जिनके पास गरिमा, ईमानदारी और सूझ-बूझ हैं और वही लोग महसूस करेंगे कि ऐसे शब्द सुनकर उनके दिल छलनी हो रहे हैं। वे कहेंगे, “मैंने घटिया तरीके से आचरण किया, इस कारण लोगों ने मुझे नीची नजर से देखा, और मैंने अपनी गरिमा खो दी, इसलिए मैं अब और इस तरह से व्यवहार नहीं करूँगा। मैं अपनी गरिमा वापस पाना चाहता हूँ और लोगों द्वारा मुझे नीची नजर से देखे जाने का कारण नहीं बनना चाहता। मैं अपना सम्मान वापस पाने का प्रयास करूँगा, और मैं गरिमा से जीने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह करूँगा।” जब उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले और उनके दुःख, उनकी कमजोरी को कुरेदने वाले शब्दों की बात आती है, तो उनमें अनुभूति का बोध होता है—ये दिल वाले लोग होते हैं। जब वे लोग जिनमें अनुभूति का बोध और गरिमा होती है, सही कथन सुनते हैं और सकारात्मक चीजें देखते हैं और क्या सही है और क्या गलत हैं इसके बीच अंतर करते हैं, तो उनमें बदलाव का संकल्प होता है क्योंकि उनमें गरिमा होती है, और वे नहीं चाहते हैं कि दूसरे लोग उन्हें नीची नजर से देखें। उन निठल्ले और बेकार लोगों में कोई गरिमा नहीं होती है और इसलिए तुम चाहे उनसे कुछ भी कहो, तुम्हारे कथन चाहे कितने भी सही या सटीक हों या सत्य के अनुरूप हों, या तुम्हारे कथन कितनी भी सकारात्मक चीजें हों, उनका इन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और वे उन्हें प्रभावित नहीं करते हैं। जिस व्यक्ति में कोई गरिमा नहीं होती है, उसमें किसी भी सकारात्मक चीज, किसी भी फैसले या किसी भी प्रकाशन के संबंध में अनुभूति का कोई बोध नहीं होता है, और ना ही उसका इस बारे में सही रवैया होता है कि किस तरह का जीवन मार्ग चुनना है। इसलिए, तुम चाहे उससे कुछ भी कहो, तुम चाहे उसे कैसे भी उजागर करो या उसका चरित्र चित्रण करो, वह इसे स्वीकार करने से बिल्कुल इनकार कर देता है, और वह इसकी परवाह नहीं करता है। तो, क्या ऐसे लोगों को सत्य का उपदेश देने और धर्मोपदेश देने का कोई फायदा है? क्या उनकी काट-छाँट करने का कोई फायदा है? क्या उनका न्याय करने और उन्हें ताड़ना देने का कोई फायदा है? नहीं! ऐसे लोग बस बेकार होते हैं। वे जैसे-तैसे अपने दिन गुजारते हैं, और वे पशुओं की श्रेणी में आते हैं—सटीक रूप से कहें, तो वे मनुष्य नहीं हैं। वे परमेश्वर के वचन सुनने के लायक नहीं हैं। अगर ये निकम्मे, परजीवी, कलीसियाई अगुआ बन जाते हैं, तो क्या वे कलीसिया में मौजूद समस्याओं का पता लगा सकते हैं? क्या वे मुद्दे हल कर सकते हैं? यकीनन नहीं। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग कोई मुद्दा उठाते हैं, तो क्या वे उसे हल कर सकते हैं? वे यकीनन उसे भी हल नहीं कर सकते हैं। वे कोई भी मुद्दा हल करने में अक्षम हैं, तो फिर वे अगुआई का कार्य कैसे कर सकते हैं? इसकी तो कल्पना तक नहीं की जा सकती! अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में, लोगों को कम-से-कम कलीसियाई कार्य में मौजूद समस्याएँ और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में मौजूद समस्याएँ हल करने में समर्थ होना चाहिए। अगर वे कुछ समय के लिए प्रशिक्षण लेते हैं और कुछ अनुभव प्राप्त कर लेते हैं, और वे कुछ सत्यों पर संगति भी कर सकते हैं और कुछ अनुभवजन्य गवाही के बारे में बात भी कर सकते हैं, तो वे धीरे-धीरे अगुआई के कार्य में निपुण हो सकते हैं। अगर वे किसी भी समस्या का पता लगाने या उसे हल करने में सक्षम नहीं हैं, तो फिर वे किसी भी तरीके से अगुआई का कार्य नहीं कर सकते; फिर वे नकली अगुआ हैं, और उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए, और नए अगुआ चुने जाने चाहिए।

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें