अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8) खंड तीन
II. नकली अगुआ जो खराब काबिलियत वाले हैं
हमने अभी-अभी इस पर संगति की कि एक प्रकार के नकली अगुआ में कार्य के दौरान आने वाली उलझन और कठिनाइयों की तुरंत सूचना देने और उन्हें हल करने के तरीके खोजने के बारे में क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं, साथ ही उन कारणों पर भी संगति की जिनसे ऐसे लोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ नहीं होते हैं। ऐसे लोग छद्म-आध्यात्मिक होते हैं; क्योंकि वे कार्य में आने वाली उलझन और कठिनाइयों को नहीं खोज पाते हैं, इसलिए वे यह जिम्मेदारी पूरी करने में समर्थ नहीं होते हैं। यह एक प्रकार का व्यक्ति है। एक और प्रकार का व्यक्ति होता है : वह उन्हीं छद्म-आध्यात्मिक लोगों के समतुल्य होता है—वह भी कार्य में मौजूद समस्याएँ नहीं खोज पाता है, और इसीलिए वह तुरंत उनकी सूचना ऊपरवाले को देने और ऊपरवाले से समाधान माँगने में भी समर्थ नहीं होता है। ऐसे लोग कार्य में भी व्यस्त रहते हैं, वे निठल्ले रहे बिना खुद को दिन भर व्यस्त रखते हैं। वे धर्मोपदेश देने में व्यस्त रहते हैं, विभिन्न जगहों पर जाकर भाई-बहनों से मिलने में व्यस्त रहते हैं, कार्य के लिए व्यवस्था करने में व्यस्त रहते हैं, और यहाँ तक कि कलीसियाई कार्य के लिए सभी प्रकार का सामान खरीदने में भी व्यस्त रहते हैं। अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो वे चिकित्सक ढूँढ़ने में उसकी सहायता करते हैं; अगर किसी को घर पर कठिनाइयाँ हैं, तो वे आर्थिक राहत की व्यवस्था करके उसकी सहायता करते हैं; अगर कोई बुरी स्थिति में है तो वे उसे सहारा देने की पहल करते हैं और उसकी समस्याएँ हल करने में सक्रिय रूप से सहायता करते हैं। संक्षेप में, वे हमेशा कुछ सामान्य मामलों वाले कार्य में व्यस्त रहते हैं। वे कलीसिया के वास्तविक कार्य, सुसमाचार कार्य और कलीसियाई जीवन की समस्याओं के प्रति बेपरवाह होते हैं। हर रोज वे भागदौड़ करने में खुद को थका देते हैं और वे कलीसिया के मामलों और भाई-बहनों के निजी मामलों को सँभालने और हल करने में खुद को व्यस्त रखते हैं। वे सोचते हैं कि अगुआ होने के नाते उन्हें ये कार्य करने चाहिए, लेकिन वे यह बात कभी नहीं समझते हैं कि अगुआ का अनिवार्य कार्य क्या है, और चाहे वे कितनी भी कड़ी मेहनत क्यों ना करें, फिर भी वे कलीसिया में मौजूद वास्तविक और मुख्य समस्याएँ नहीं ढूँढ़ पाते हैं। और इसलिए, जब कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, और जब परमेश्वर के चुने हुए लोग जीवन प्रवेश में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो ये अगुआ इन चीजों को तुरंत हल नहीं कर पाते हैं। वैसे तो वे हर रोज कार्य में व्यस्त रहते हैं और निठल्ले बिल्कुल नहीं रहते हैं, लेकिन इतना व्यस्त रहकर भी वे क्या हासिल कर पाते हैं? कलीसियाई कार्य में कई समस्याएँ मौजूद होती हैं, लेकिन वे उन्हें खोजने में समर्थ नहीं होते हैं। बाहर से, वे निठल्ले नहीं बल्कि मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ दिखते हैं, लेकिन कार्य में एक के बाद एक समस्याएँ आती रहती हैं, और वे पैबंद लगाने में व्यस्त रहते हैं, सभी किस्म की “जटिल और कठिन समस्याओं” को हल करने में और सभी किस्म के बुरे लोगों और उन लोगों से निपटने में व्यस्त रहते हैं जो कलीसिया में दिखाई देने वाली गड़बड़ियाँ और बाधाएँ पैदा करते हैं। वे खुद को इस तरह से कार्य में व्यस्त रखते हैं, फिर भी वे सबसे मूलभूत समस्याओं का भेद पहचान नहीं पाते हैं। वे स्पष्ट रूप से यह पहचान नहीं पाते हैं कि अच्छी मानवता क्या है और बुरी मानवता क्या है, अच्छी काबिलियत क्या है और खराब काबिलियत क्या है, वास्तविक प्रतिभा और ज्ञान का होना क्या है और गुण होना क्या है। वे यह असलियत भी नहीं देख पाते हैं कि परमेश्वर का घर किस तरह के लोगों को विकसित करता है और किस तरह के लोगों को निकाल देता है, कौन-से लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और कौन-से नहीं, कौन-से लोग खुशी से अपना कर्तव्य करते हैं और कौन-से नहीं, किन लोगों को परमेश्वर के लोगों में पूर्ण किया जा सकता है, और कौन-से लोग श्रमिक हैं, वगैरह। वे उन लोगों को विकसित करने का मुख्य लक्ष्य मानते हैं जो बड़ी-बड़ी बातें कर सकते हैं और खोखले सिद्धांत बड़बड़ा सकते हैं लेकिन वास्तविक कार्य नहीं कर पाते हैं, और वे उनके करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य की व्यवस्था करते हैं और उन्हें यह सौंपते हैं, जबकि जिन लोगों में उचित समझ, काबिलियत और सत्य समझने की क्षमता होती है, उनकी पदोन्नति और विकास में वे सिर्फ इसलिए देरी करते हैं क्योंकि उन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखे हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है या उन्होंने घमंडी स्वभाव प्रकट किया है। इस तरह की समस्याएँ कलीसिया में अक्सर उत्पन्न होती हैं और इससे कलीसियाई कार्य की प्रगति प्रभावित होती है। यही वास्तविक समस्याएँ हैं, और फिर भी इस प्रकार का अगुआ उन्हें देख या खोज नहीं पाता है और यहाँ तक कि उनके बारे में पूरी तरह से बेखबर होता है। जब कुकर्मी विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, तो वह उन्हें प्रेक्षण से गुजरने और आत्म-चिंतन करने का मौका देता है, जबकि दूसरे लोग, जो कुकर्मी नहीं हैं, जब वे कभी-कभार कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ कर देते हैं क्योंकि वे जवान और अज्ञानी होते हैं और सिद्धांतों के बिना कार्य करते हैं—ये ऐसी गलतियाँ हैं जो सिद्धांत के मुद्दे नहीं हैं—तो इस प्रकार का अगुआ इन गलतियों को अक्षम्य पाप मानता है और इन लोगों को घर भेज देता है। इस प्रकार का नकली अगुआ हर रोज कार्य में व्यस्त रहता है और बाहर से, वह कड़ी मेहनत करता हुआ और अपना बहुत समय खर्च करता हुआ दिखता है, फिर भी वह चाहे किसी भी तरीके से कार्य क्यों ना करे, कोई भी इससे सच्चा जीवन प्रावधान प्राप्त नहीं करता है। चाहे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कितनी भी समस्याएँ और कठिनाइयाँ क्यों ना हों, इस प्रकार का नकली अगुआ सत्य पर संगति करके उन्हें हल नहीं कर सकता है, और वह सिर्फ उन्हें प्रेमपूर्ण दिल से प्रेरित कर सकता है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकता है। इसलिए, ऐसे लोगों के नेतृत्व में, परमेश्वर के चुने हुए लोग कोई जीवन प्रावधान प्राप्त नहीं करते हैं, वे बस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उत्साह के आधार पर अपने कर्तव्य करते हैं, और कोई जीवन प्रवेश प्राप्त नहीं करते हैं—वे इस तरह से कब तक चल सकते हैं? परिणामस्वरूप, कुछ लोग अक्सर नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं और हमेशा परमेश्वर के दिन के आगमन के लिए तरसते रहते हैं, और उनके लिए दर्शन ज्यादा से ज्यादा अस्पष्ट होते जाते हैं, और समस्याओं से सामना होने पर उनके मन में परमेश्वर के बारे में धारणाएँ और गलतफहमियाँ उत्पन्न होने लगती हैं, और कुछ तो परमेश्वर पर संदेह करना और उससे सतर्क रहना भी शुरू कर देते हैं। इन समस्याओं से सामना होने पर, नकली अगुआ उन्हें हल करने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं, और वे बस उनसे बचते फिरते हैं। वे सत्य की तलाश करने और मुद्दे हल करने के लिए कभी भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते हैं या परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते हैं—वे कभी भी यह कार्य नहीं करते हैं। हर रोज, वे खुद को बस कुछ सामान्य मामलों वाले कार्य और कुछ बाहरी मामलों में व्यस्त रखते हैं, ऐसे मामले जिनका जीवन प्रवेश या सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता है। उन्हें लगता है कि जब तक वे चीजें करने में व्यस्त हैं, तब तक इसका यही अर्थ है कि वे अपना कर्तव्य कर रहे हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहे हैं और यह संभव नहीं है कि वे नकली अगुआ हैं। दरअसल, उनका खुद को इन सामान्य मामलों में व्यस्त रखने से भाई-बहनों को जीवन में प्रगति करने में बिल्कुल भी सहायता नहीं मिलती है, फिर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम बनाने की तो बात ही छोड़ दो। मुझे बताओ, क्या इस प्रकार के नकली अगुआ की काबिलियत में कोई समस्या नहीं है? वे किसी भी चीज की असलियत पहचान नहीं पाते हैं, और उन्हें लगता है कि जब तक वे कार्य करने में व्यस्त रहेंगे, तब तक सभी समस्याएँ यूँ ही गायब हो जाएँगी, और अप्रत्यक्ष रूप से हल हो जाएँगी। क्या ये लोग बहुत ही भ्रमित नहीं हैं? क्या उनकी काबिलियत बहुत ही कमजोर नहीं है? वे किसी भी चीज की असलियत पहचान नहीं पाते हैं, वे कोई वास्तविक कार्य नहीं कर पाते हैं, और इससे वे असली नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता बन जाते हैं। यह ऐसा मामला है जिसे पहचानना सबसे आसान है।
नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता अब हर जगह कलीसियाओं में मौजूद हैं। वे कार्य करने के लिए सिर्फ अपने उत्साह पर भरोसा करते हैं और उन्हें सत्य की बिल्कुल भी समझ नहीं है। उन्हें नहीं पता है कि अगुआ या कार्यकर्ता का कार्य क्या है, और ना ही वे मुद्दे हल करने के लिए सत्य पर संगति करने में सक्षम हैं—वे सारा दिन बस कुछ सामान्य मामलों वाले कार्य में आँख मूँदकर व्यस्त रहते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि कलीसिया को कोई सामान खरीदने की जरूरत है। यह कोई बड़ा कार्य नहीं है; बस उसे खरीदकर लाने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करनी है जो संबंधित क्षेत्र का जानकार हो। लेकिन, नकली अगुआ को बहुत ज्यादा पैसे खर्च हो जाने का डर है, इसलिए वह एक ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करता है जो कई जगहों पर जाकर पूछताछ करेगा और फिर सबसे सस्ता सामान खरीद लाएगा। इसका परिणाम यह होता है कि वह एक सस्ता उत्पाद खरीद लाता है जो उपयोग करने के कुछ ही दिनों बाद टूट जाता है और फिर उसे जाकर एक और उत्पाद खरीदना पड़ता है। वह ना सिर्फ पैसे बचाने में विफल हो जाता है, बल्कि, इसके विपरीत, वह ज्यादा पैसे खर्च कर देता है। क्या यह कार्य को सँभालने का एक सिद्धांतयुक्त तरीका है? खरीदारी करते समय कोई मशहूर ब्रांड खरीदने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन उचित कार्य यही है कि कम से कम ऐसी चीज खरीदी जाए जो उपयुक्त गुणवत्ता वाली और उपयोग करने योग्य हो। नकली अगुआ सामान्य मामलों वाले कार्य के बारे में बहुत चिंता करते हैं, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, वे परमेश्वर के घर के अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और यह एक बड़ी गलती है; यह दर्शाता है कि वे अपना अनिवार्य कार्य नहीं करते हैं। कार्य की मदें जैसे कि सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य, पाठ आधारित कार्य, अनुभवजन्य गवाही पर वीडियो बनाने का कार्य, और अगुआओं और कार्यकर्ता कर्मियों के समायोजन का कार्य, ये सभी महत्वपूर्ण हैं, और फिर भी नकली अगुआ उन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं, और वे कार्य की इन मदों को ताक पर रख देते हैं और उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। वे अपर्याप्त काबिलियत वाले होते हैं और उन्हें कार्य करना नहीं आता है, लेकिन वे सीखने का प्रयास भी नहीं करते हैं, बल्कि सोचते हैं, “जब तक इस कार्य का कोई प्रभारी मौजूद है, तब तक सब कुछ ठीक है। यकीनन मेरी भी जरूरत नहीं है? मैं महत्वपूर्ण कार्य सँभालता हूँ। ये तो बस मामूली चीजें हैं जिनके लिए मुझे मेहनत करने की जरूरत नहीं है। एक बार जब मैं उन्हें सिद्धांत बता देता हूँ, तो मेरा कार्य पूरा हो जाता है।” नकली अगुआ बाहर से बहुत ही व्यस्त दिखाई देते हैं, लेकिन जब तुम उन चीजों पर नजर डालोगे जिन पर वे कार्य करने में व्यस्त हैं, तो तुम्हें पता चलेगा कि उनमें से एक भी चीज कलीसियाई कार्य का अत्यंत महत्वपूर्ण अंश नहीं है, उनमें से एक भी चीज कार्य का ऐसा अंश नहीं है जो लोगों के जीवन का भरण-पोषण करता हो, और उनमें से एक भी चीज कार्य का ऐसा अंश नहीं है जिसमें मुद्दे हल करने के लिए सत्य का उपयोग करना शामिल हो। वे जिन चीजों में खुद को व्यस्त रखते हैं, उनका बिल्कुल कोई मूल्य नहीं है, और ये नकली अगुआ बस आँख मूँदकर व्यस्त रह रहे हैं। उन्हें यह नहीं पता है कि परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या कार्य करना चाहिए; उन्हें जो कार्य करने में आनंद आता है, उनमें खुद को व्यस्त रखने के लिए वे बस अपने उत्साह पर भरोसा करते हैं। वे कलीसियाई कार्य से अलग तुच्छ मामलों के बारे में विस्तार से पूछताछ करते हैं, जैसे कि भाई-बहन क्या कपड़े पहनते हैं, उनकी केशसज्जा कैसी है, वे दूसरों से कैसे बातचीत करते हैं, और वे कैसे बात और व्यवहार करते हैं। उन्हें लगता है कि यह उनका मिलनसार और सुलभ होना है, और लोगों के वास्तविक जीवन में मुद्दे हल करना कुछ ऐसा है जो एक अगुआ को जरूर करना चाहिए, कुछ ऐसा है जो सामान्य मानवता में होना चाहिए। और फिर भी वे सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य, भजन कार्य, पाठ आधारित कार्य, प्रशासनिक कार्य, नए विश्वासियों को सींचने का कार्य, कलीसियाओं की स्थापना का कार्य, लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का कार्य आदि अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। वे इनमें से किसी भी कार्य में भाग नहीं लेते हैं, और वे इस पर अनुवर्ती कार्रवाई नहीं करते हैं; ऐसा लगता है मानो इस कार्य से उनका कोई लेना-देना ना हो। ये नकली नेता उन बहुत-सी समस्याओं को हल नहीं करते हैं जो कलीसिया में इकट्ठा हो रही हैं, वे उन नकली अगुआओं को बर्खास्त नहीं करते हैं जिन्हें उन्हें बर्खास्त करना चाहिए, वे उन कुकर्मियों को प्रतिबंधित नहीं करते हैं या उनसे निपटते नहीं हैं जो बुरा करते हैं और पागलों की तरह बुरी चीजें करते हैं, और वे कुछ लोगों के लापरवाह, असंयमित और अनुशासनहीन होने और अपने कर्तव्य निर्वहन में टालमटोल करने का मुद्दा हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं करते हैं। यह क्या समस्या है? वे इन वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हैं—क्या वे वास्तविक कार्य करने वाले लोग हैं? वे जो निरर्थक और अप्रासंगिक कार्य करते हैं, उन्हें वे अपने दिलों में प्रमुख और महत्वपूर्ण मानते हैं। वे सारा दिन उन बेकार चीजों में खुद को व्यस्त रखते हैं, यह मानते हैं कि वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहे हैं और वफादार हो रहे हैं, लेकिन वे कार्य की ऐसी एक भी जरूरी मद नहीं करते हैं जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपी है—क्या ऐसे लोग नकली अगुआ नहीं हैं? वे समाज में उप-जिला कार्यालयों के निदेशकों के समतुल्य हैं, वे बस पड़ोस के वे लोग हैं जो दूसरों के फटे में पैर डालते हैं—क्या वे अब भी परमेश्वर के घर के अगुआ और कार्यकर्ता हैं? वे असली नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता हैं। किस कारण से इन लोगों को नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ताओं के रूप में निरूपित किया जाता है? (क्योंकि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं, और वे बस कुछ तुच्छ मामले ही सँभाल सकते हैं।) यही विशिष्ट कारण है। इन लोगों की काबिलियत बहुत ही खराब है; चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश सुनें, कितनी भी कार्य-व्यवस्थाएँ पढ़ें, कितने भी वर्षों तक परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करें, या कितने भी वर्षों तक अगुआ बने रहें, उन्हें कभी पता नहीं होता है कि वे क्या कर रहे हैं, वे जो कर रहे हैं वह सही है या गलत है, या क्या वे उन जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं जो उन्हें करनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लेबल और पदवी की उनकी परिभाषा यह है कि जब तक वे व्यस्त रहते हैं, तब तक सब कुछ ठीक है। कोल्हू के बैल की तरह, वे तब तक खींचते रहते हैं जब तक उनके लिए हिलना-डुलना नामुमकिन नहीं हो जाता है, और वे इसे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना मानते हैं। चाहे वे किसी भी दिशा में खींचें, और वे खींचने में जो ऊर्जा लगाते हैं चाहे वह सही हो या ना हो, उनके अनुसार वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहे हैं। ऐसे कई मुद्दे हैं जिनकी असलियत वे देख नहीं पाते हैं और वे उन्हें हल करने या उनकी सूचना ऊपरवाले को देने और ऊपरवाले से समाधान माँगने का प्रयास नहीं करते हैं। वे चाहे कितने भी वर्षों तक कार्य क्यों ना करें या कितने भी वर्षों तक लोगों के संपर्क में क्यों ना रहें, उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि क्या किसी व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ ऐसे नए विश्वासी की हैं जिसकी आस्था का आधार उथला है और जो सत्य नहीं समझता है या क्या वे किसी छद्म-विश्वासी की हैं और उन्हें यह भी पता नहीं होता है कि उन्हें उसका भेद कैसे पहचानना चाहिए या उसका चरित्र चित्रण कैसे करना चाहिए। जब ऐसे दो लोग होते हैं जो दोनों ही नकारात्मक स्थिति में हैं, तो उन्हें नहीं पता होता है कि उनमें से कौन विकसित किए जाने योग्य है और कौन नहीं; जब दो लोग अपने कर्तव्य करने में कुछ हद तक लापरवाह होते हैं, तो वे यह नहीं बता पाते हैं कि उनमें से कौन सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है और कौन श्रमिक है, उनमें से कौन सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम है और उनमें से किसके पास सत्य वास्तविकता बिल्कुल नहीं है। वे नहीं जानते हैं कि एक बार अगुआ बन जाने के बाद किन लोगों की मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने की संभावना है, भले ही उनकी कई वर्षों से इन लोगों से जान-पहचान रही हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे कितने सारे निरर्थक अभ्यासों में शामिल रहते हैं या कितने सारे बेकार कार्य करते हैं या उनके आसपास कितनी समस्याएँ हैं, उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं होती है, और उन्हें यह एहसास नहीं होता है कि ये समस्याएँ हैं। क्योंकि ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले, उलझे हुए विचारों वाले, और कार्य करने में अक्षम होते हैं, इसलिए उनके लिए अगुआ या कार्यकर्ता की जिम्मेदारियाँ पूरी करना बहुत कठिन होता है। कुछ आसान से सामान्य मामलों वाले कार्य करने में समर्थ होने के अलावा, ये अगुआ और कार्यकर्ता कलीसिया के अनिवार्य कार्य से संबंधित कुछ भी करने में सक्षम नहीं होते हैं, और वे कार्य में किसी भी वास्तविक समस्या को देखने या हल करने में समर्थ नहीं होते हैं। क्या इस किस्म की काबिलियत वाला इस तरह का अगुआ विकसित किए जाने योग्य है? वे यह भी नहीं जानते हैं कि उलझन या कठिनाइयाँ क्या होती हैं, और वे उन्हें सिद्धांतों के अनुसार सँभालने में और भी पीछे रह जाते हैं। भले ही कलीसियाई कार्य में आने वाली समस्याएँ बहुत ही आम हों, फिर भी वे उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं और उन्हें वर्गीकृत नहीं कर पाते हैं, और ना ही वे यह जानते हैं कि उन्हें हल करने के लिए सत्य पर संगति कैसे करनी है—इस प्रकार का नकली अगुआ कलीसिया में अक्सर आने वाली इन समस्याओं को सँभालने या हल करने में समान रूप से असमर्थ होता है। उनकी सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है कि वे कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं हैं, या उन्हें व्यस्त रहने और थकावट महसूस होने का डर है, बल्कि यह है कि उनकी काबिलियत खराब है, उनका मन अस्पष्ट है, और वे कलीसिया का महत्वपूर्ण कार्य और वास्तविक कार्य करने में समर्थ नहीं हैं। इसके बजाय वे बस कुछ सामान्य मामलों वाला कार्य करते हैं या उन्हें कुछ अप्रासंगिक चीजों पर ध्यान देना अच्छा लगता है, और फिर वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका निभाना चाहते हैं—क्या वे ऐसे भ्रमित लोग नहीं हैं जिनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ बहुत ही बड़ी हैं? खराब काबिलियत वाले अगुआ कलीसिया का मुख्य कार्य, यह वह कार्य है जिसमें सत्य सिद्धांत शामिल होते हैं, या पेचीदा पेशेवर कार्य करने में समान रूप से असमर्थ होते हैं, जैसे कि सुसमाचार फैलाने का कार्य, कलीसिया में नए विश्वासियों को सींचने का कार्य, फिल्म निर्माण कार्य, पाठ आधारित कार्य और कार्मिक कार्य जिसमें विभिन्न स्तरों पर अगुआ और कार्यकर्ता शामिल हैं। वे यह कार्य करने में अक्षम क्यों हैं? इसका कारण यह है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है और वे सिद्धांत समझ नहीं पाते हैं; वे इस सारे कार्य में समान रूप से पीछे रह जाते हैं और इसे करने का तरीका सीखने में असमर्थ होते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि इस तरह के एक अगुआ को पाँच लोग दिए जाते हैं और उससे कहा जाता है कि वह इन पाँच लोगों को उनकी शिक्षा के स्तर, उनकी काबिलियत और खूबियों और उनके चरित्र के आधार पर कार्य आवंटित करे। क्या यह कार्य करने में आसान है? क्या इसका अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत से कोई लेना-देना है? (हाँ, है।) औसत काबिलियत वाले अगुआ और कार्यकर्ता पाँच लोगों का प्रेक्षण करने, उनसे जान-पहचान करने और उन्हें जानने में कुछ समय बिताने के बाद अपेक्षाकृत सटीक रूप से कार्य आवंटित करेंगे। खराब काबिलियत वाले अगुआ और कार्यकर्ता सोचेंगे कि पाँच लोग बहुत ज्यादा हैं; जब बहुत ज्यादा लोग होते हैं, तो वे भ्रमित हो जाते हैं और उन्हें यह पता नहीं होता है कि उन्हें कार्य कैसे आवंटित करना है, और अगर वे उन्हें कार्य आवंटित कर भी देते हैं, तो भी वे अपने दिलों में यह नहीं जानते हैं कि वे इसे उचित तरीके से कर रहे हैं या नहीं। यह कार्मिक पहलू के संबंध में है। मिसाल के तौर पर, जब मामले सँभालने की बात आती है, तो अगर उन्हें एक साथ दो या तीन मामले सँभालने और हल करने की जरूरत हो तो उन्हें यह पता नहीं होगा कि इन मामलों के बीच संबंध के बारे में कैसे राय बनानी है और उसका भेद कैसे पहचानना है और ना ही वे यह आँक पाएँगे कि उन्हें कौन-सी समस्या पहले हल करनी चाहिए, और बिना कोई देरी करवाए कौन-सी समस्या बाद में हल की जा सकती है। यानी, वे यह नहीं जानते हैं कि फायदे और नुकसान को कैसे आँकना है, वे यह नहीं जानते हैं कि कार्यों को महत्व और जरूरत के क्रम में कैसे प्राथमिकता देनी है, और वे यह नहीं जानते हैं कि समस्याएँ कैसे हल करनी हैं। लेकिन, चूँकि वे अगुआ और कार्यकर्ता हैं, इसलिए भले ही उन्हें कोई चीज समझ ना आए तो भी उन्हें यह ढोंग करना पड़ता है कि वे समझते हैं, भले ही वे किसी चीज का अर्थ नहीं समझते हों तो भी उन्हें यह ढोंग करना पड़ता है कि वे समझते हैं, और वे कुछ नहीं कर सकते हैं सिवाय इसके कि वे वहीं टिके रहें और जैसे-तैसे थोड़ी-बहुत सफलता हासिल करने के लिए कुछ धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दें और कुछ सुनने में सुखद लगने वाले शब्द कहें और आनन-फानन में चीजों को समाप्त कर दें। वे इस बारे में पूरी तरह से स्पष्ट हैं कि वे जो कहते हैं वह सटीक है या नहीं, यह सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं, यह मुद्दे हल कर सकता है या नहीं, लेकिन वे बस काम चलाना चाहते हैं। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि वे जो कर रहे हैं उससे वे मुद्दे हल करने में समर्थ नहीं होंगे, लेकिन वे फिर भी समस्याओं की सूचना ऊपरवाले को नहीं देते हैं, और इसलिए अंत में, उनके कारण कार्य में देरी होती है और उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है। मुझे बताओ, क्या ये लोग बेवकूफ नहीं हैं? जब कुछ अगुआ और कार्यकर्ता समस्याओं की सूचना देते हैं, तो वे उन सभी पुरानी, तुच्छ घटनाओं का ब्योरा देते हैं जो आज तक हुई हैं, और जब वे बहुत कुछ कह चुके होते हैं, उसके बाद भी तुम्हें विश्लेषण करने और यह फैसला लेने में उनकी सहायता करनी पड़ती है कि कौन-सी समस्याएँ मौजूद हैं। वे यह भी नहीं समझते हैं कि कोई मुद्दा कैसे उठाना है, और वे बिना स्पष्ट रूप से यह समझाए घंटों बात कर सकते हैं कि किसी मुद्दे का केंद्र और सार क्या है। वे जो भी कहते हैं वह सिर्फ सतही चीजों से संबंधित होता है और बस बहुत सारा बकवास होता है! क्या यह उनकी काबिलियत का बहुत खराब होना और उनका बेवकूफ होना नहीं है? क्या काबिलियत वाले लोग ये चीजें सुनने के इच्छुक हैं? वे जिस व्यक्ति से बात कर रहे होते हैं, वह बस यही जानना चाहता है कि वे जिस व्यक्ति की सूचना दे रहे हैं, उसकी मौजूदा स्थिति और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं, और वे किस स्थिति को लेकर भ्रमित हैं और उसे हल करने में असमर्थ हैं। और फिर भी, ये लोग हमेशा इस बारे में बात करते हैं कि उस व्यक्ति ने अतीत में क्या हरकत की, और वे उस व्यक्ति की मौजूदा स्थिति के बारे में बात नहीं करते हैं, या यह नहीं कहते हैं कि उन्हें खुद क्या उलझन और समस्याएँ हैं। वे बहुत सी चीजें कहते हैं, और कोई भी ठीक-ठीक यह नहीं बता सकता है कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। भले ही वे कोई प्रश्न पूछना चाहते हों, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि कहाँ से शुरू करना है, उन्हें यह नहीं पता होता है कि इसे कैसे व्यक्त किया जाए ताकि यह प्रभावी हो सके और लोग उन्हें समझ सकें—उनके पास अपनी भाषा को व्यवस्थित करने की क्षमता भी नहीं होती है। क्या यह अत्यंत खराब काबिलियत होने की अभिव्यक्ति नहीं है? कुछ नकली अगुआओं में खराब काबिलियत होती है, और जब वे किसी मुद्दे की सूचना देते हैं, तो वे ढेरों निरर्थक और समझ नहीं आने वाली बातें कहते हैं, और फिर वे सोचते हैं, “मैंने तुम्हें पर्याप्त मात्रा में बहुत सारी जानकारी दे दी है, है ना? मैंने तुम्हें इस मुद्दे के अतीत और वर्तमान की सारी बातें भी बता दी हैं, तो क्या अब तुम यह नहीं बता सकते कि मैं क्या प्रश्न पूछना चाहता हूँ?” तुम उनसे चाहे जो भी पूछो या उन्हें कैसे भी निर्देशित करो, वे नहीं जानते कि क्या कहना है और वे कभी भी मुद्दे का मुख्य बिंदु नहीं बता पाते हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास खुद को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं या उनकी शिक्षा का स्तर निम्न है, बल्कि बात यह है कि उनकी काबिलियत खराब है और उनके पास दिमाग नहीं है, इसलिए उन्हें नहीं पता है कि इन चीजों को कैसे व्यक्त करना है, उनके मन भ्रमित हैं, और वे खुद को स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं ताकि दूसरे उन्हें समझ सकें। उनमें बोझ की कुछ भावना होती है और जैसे-जैसे समय बीतता है, उन्हें कुछ खास मुद्दों के बारे में कुछ जानकारी होने लगती है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे व्यक्त करना है, वे यह समझने में समर्थ नहीं होते हैं कि इन मुद्दों का सार क्या है, और इन मुद्दों को संक्षेप में प्रस्तुत कर पाना तो दूर की बात है। क्या इतनी खराब काबिलियत वाले लोग कार्य कर सकते हैं? क्या वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें समय और अवसर दे भी दो और उन्हें समस्याओं की सूचना देने और उनका वर्णन करने की अनुमति दे भी दो, तो भी वे ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो क्या अब भी तुम ऐसे लोगों से बातचीत कर सकते हो? क्या अब भी उनका उपयोग किया जा सकता है? (नहीं।) उनका उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता है? वे स्पष्ट रूप से बोल भी नहीं पाते हैं, और उनके पास अपने ख्यालों, विचारों और रवैयों को व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग करने की न्यूनतम सहज मानवीय प्रवृत्ति भी नहीं होती है, तो फिर वे क्या कार्य कर सकते हैं? वैसे तो हो सकता है कि उनमें कुछ ताकत, सच्चा उत्साह और थोड़ी जिम्मेदारी की भावना हो और उनके पास एक काफी ईमानदार दिल हो, लेकिन उनकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है, तुम उन्हें चाहे कितना भी सिखाओ, वे कुछ भी सीख नहीं पाते हैं, और अगर तुम उन्हें बात करना सिखा भी दो, तो भी वे इसे समझने में समर्थ नहीं होंगे, और इसलिए तुम बहुत परेशान हो जाओगे और तैश में आ जाओगे। बोलते समय वे अपनी बातों को गड़बड़ कर देते हैं, जिससे तुम भ्रमित हो जाते हो; वे कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कह पाते हैं, और वे जो कुछ भी कहते हैं वह सिर्फ बहुत सारा बकवास होता है। उनके बारे में सबसे दयनीय चीज यह है कि वे मानव भाषा नहीं समझते हैं और फिर भी वे आँख मूँदकर कार्य करते रहते हैं, उन्हें अब भी यही लगता है कि वे सक्षम हैं, और जब तुम उनकी काट-छाँट करते हो, तो वे अवज्ञापूर्ण हो जाते हैं। वे अगुआई का कार्य अच्छी तरह से कैसे कर सकते हैं? जब अगुआ या कार्यकर्ता की काबिलियत इतनी खराब है कि उसमें खुद को भाषा में व्यक्त करने की क्षमता बिल्कुल नहीं है, तो क्या वह अब भी कार्य में निपुण हो सकता है? (नहीं।) और अपने कार्य में निपुण नहीं होना क्या दर्शाता है? यह दर्शाता है कि वह कार्य के दौरान आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं का तुरंत पता लगाने में अक्षम है, और यकीनन, यह दर्शाता है कि कार्य में चाहे जो भी मुद्दे क्यों ना उत्पन्न हों, वह उन्हें कभी भी तुरंत हल नहीं कर सकता है, और ना ही वह तुरंत उनकी सूचना ऊपरवाले को दे सकता है और ऊपरवाले से समाधान माँग सकता है—यह उसके लिए बहुत ही कठिन है, और वह ऐसा करने में अक्षम है। जब ऐसे लोगों की बात आती है जो खराब काबिलियत वाले होते हैं, तो यह कार्य उनके लिए अत्यंत कठिन होता है; यह ऐसा है जैसे किसी मछली को जमीन पर रहने या सूअर को उड़ने को मजबूर किया जा रहा हो—उनके लिए यह काम बहुत ही श्रमसाध्य है।
कुछ लोग कहते हैं, “मुझे उन लोगों के लिए बुरा लगता है। वे सभी किस्म के कार्य सँभालने के लिए बहुत दौड़-धूप करते हैं, और अंत में, उनकी खराब काबिलियत के कारण उनका नकली अगुआ के रूप में चरित्र चित्रण किया जाता है। तो, क्या इसका यह अर्थ है कि उन्होंने जो भी कष्ट सहा है, वह सारा बेकार हो गया है? क्या यह लोगों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करना नहीं है?” नकली अगुआओं को बर्खास्त करने का अर्थ है परमेश्वर के चुने हुए लोगों और कलीसिया के कार्य के लिए जिम्मेदार होना, तो यह लोगों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करना कैसे हो सकता है? अगर तुम नकली अगुआओं को अगुआ के रूप में उनकी भूमिका में बने रहने देने पर जोर देते हो, तो क्या यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान नहीं पहुँचा रहा है? क्या तुम यह कहना चाहते हो कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाना लोगों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करना नहीं है? किसी नकली अगुआ को बर्खास्त करके, परमेश्वर का घर उस नकली अगुआ की निंदा नहीं कर रहा है, और ना ही वह उस नकली अगुआ को नीचे नरक में भेज रहा है, बल्कि वह उस व्यक्ति को उद्धार प्राप्त करने का एक मौका दे रहा है। अगर वे नकली अगुआ बने रहे, तो क्या वे उद्धार प्राप्त कर सकते हैं? उनका अंतिम परिणाम क्या होगा? तुम इस मुद्दे पर इस तरह से विचार क्यों नहीं करते हो? इसके अलावा, परमेश्वर में विश्वास रखने का उद्देश्य क्या है? यकीनन अगुआ बनना ही आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका नहीं है? अगर कोई अगुआ नहीं है, तो क्या उसके पास करने के लिए और कोई कर्तव्य नहीं है? क्या उन लोगों के लिए जीवित रहने का कोई रास्ता नहीं है जो अगुआ नहीं हैं और जिनकी काबिलियत खराब है? (नहीं, यह सच नहीं है।) तो फिर अभ्यास का मार्ग क्या है? अब हम जिनका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं, वे खराब काबिलियत वाले इस प्रकार के नकली अगुआ की अभिव्यक्तियाँ हैं और ऐसे अगुआ में मौजूद समस्याएँ हैं; हम उसकी निंदा नहीं कर रहे हैं या उसे शाप नहीं दे रहे हैं, हम तो बस उसका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। उनका गहन-विश्लेषण करने का उद्देश्य इस प्रकार के व्यक्ति को यह विश्वास दिलाना है कि वह सटीकता से खुद को जाने और अपनी स्थिति निर्धारित करे, अपना माप जाने और सटीकता से यह समझे कि अगुआ और कार्यकर्ता क्या हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या कार्य करना चाहिए, और फिर इन चीजों की तुलना खुद से करे ताकि यह देख सके कि क्या वह अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त है। अगर तुम्हारी काबिलियत वास्तव में बहुत ही खराब है, इतनी खराब है कि तुम में खुद को भाषा में व्यक्त करने की क्षमता नहीं है या अपने विचारों और नजरियों को व्यक्त करने की क्षमता नहीं है या समस्याओं का पता लगाने की क्षमता नहीं है, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हो, तुम अगुआ या कार्यकर्ता का कर्तव्य करने में निपुण नहीं हो और तुम अगुआ या कार्यकर्ता का कार्य करने में असमर्थ हो। और चूँकि तुम खराब काबिलियत के हो, इसलिए तुम में इस तरह की आत्म-जागरूकता होनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मेरी काबिलियत खराब है—तो क्या हुआ? मुझमें अच्छी मानवता है, इसलिए मुझे अगुआ बनना चाहिए।” क्या यही सिद्धांत है? दूसरे लोग कहते हैं, “अच्छी मानवता होने के अलावा, मैं कष्ट सहने और कीमत चुकाने का भी इच्छुक हूँ, मैं धर्मोपदेश दे सकता हूँ, मेरी आस्था की एक नींव है, और मैं परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण जेल भी जा चुका हूँ। क्या अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए ये चीजें मेरे लिए पूँजी के तौर पर नहीं गिनी जाती हैं?” क्या यह सत्य है कि अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए पूँजी होनी चाहिए? (नहीं।) अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर चर्चा कर रहे हैं और इस विषय में, हम काबिलियत के मुद्दे के बारे में बात कर रहे हैं। अगर तुम्हारी काबिलियत खराब है और तुम ये जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ नहीं हो, तो फिर तुम में यह आत्म-जागरूकता होनी चाहिए : “मेरे पास यह काबिलियत नहीं है और मैं अगुआ या कार्यकर्ता नहीं बन सकता। मेरे पास जो भी पूँजी है, उसका कोई उपयोग नहीं है।” तुम कहते हो कि तुम में अच्छी मानवता है, तुम भरोसेमंद हो, तुम में कष्ट सहने का दृढ़ संकल्प है और तुम कीमत चुकाने के इच्छुक हो—तो फिर क्या परमेश्वर के घर ने तुम्हारे साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया है? परमेश्वर का घर लोगों का इस तरह से उपयोग करता है कि हर किसी का सर्वश्रेष्ठ उपयोग हो सके, वह भूमिकाएँ ऐसे तय करता है कि वे हर व्यक्ति के लिए उपयुक्त हों, और इसे एक ऐसे तरीके से करता है जो बिल्कुल सही है। अगर तुम में अच्छी मानवता है लेकिन तुम्हारी काबिलियत खराब है, तो तुम्हें अपना कर्तव्य अपने पूरे दिल और ताकत से अच्छी तरह करना चाहिए; ऐसा नहीं है कि परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किए जाने के लिए तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता होना ही चाहिए। भले ही तुम प्रयास करने के इच्छुक हो, लेकिन तुम उस तरीके से प्रयास करने में समर्थ नहीं हो जिस तरीके से एक अगुआ को करना चाहिए और तुम में वह काबिलियत नहीं है जो अगुआ बनने के लिए होनी चाहिए और तुम इस मामले में पीछे रह जाते हो, तो फिर तुम क्या कर सकते हो? तुम्हें खुद को मजबूर नहीं करना चाहिए या अपने लिए चीजें कठिन नहीं बनानी चाहिए; अगर तुम 25 किलो वजन ही उठा सकते हो, तो तुम्हें 25 किलो वजन ही उठाना चाहिए। तुम्हें अपनी सीमाओं से आगे जाकर दिखावा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए, यह नहीं कहना चाहिए, “25 किलो पर्याप्त नहीं है। मैं इससे ज्यादा उठाना चाहता हूँ। मैं 50 किलो उठाना चाहता हूँ। मैं इसे करने का इच्छुक हूँ, भले ही मैं थकान से मर ही क्यों ना जाऊँ!” तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने में सक्षम नहीं हो, लेकिन फिर भी अगर तुम दिखावा करने के लिए अपनी सीमाओं से आगे जाते रहे, तो वैसे तो तुम बहुत ज्यादा नहीं थकोगे, लेकिन तुम कलीसियाई कार्य में देरी का कारण बनोगे, तुम कार्य की प्रगति और कुशलता को प्रभावित करोगे और तुम कई लोगों की जीवन प्रगति में देरी करोगे—यह ऐसी जिम्मेदारी नहीं है जिसे उठाने का सामर्थ्य तुम रख सको। क्योंकि तुम अपर्याप्त काबिलियत वाले हो, इसलिए अगर तुम में आत्म-जागरूकता है, तो तुम्हें सक्रियता से इस्तीफा देने की पेशकश करनी चाहिए और किसी अच्छी काबिलियत वाले, सत्य से प्रेम करने वाले और इस जिम्मेदारी के लिए तुमसे ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति को अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए नामित करना चाहिए। ऐसा करना ही समझदारी की बात होगी, और सिर्फ ऐसा करके ही तुम ऐसे व्यक्ति बनोगे जिसमें वाकई मानवता और सूझ-बूझ है और जो वाकई सत्य समझता है और उसका अभ्यास करता है। अगर तुम अपने पद से इसलिए इस्तीफा दे देते हो क्योंकि तुम अगुआई का कार्य करने में असमर्थ हो और फिर तुम अपने लिए उपयुक्त कोई कर्तव्य चुनते हो और अपनी निष्ठा अर्पित करते हो ताकि तुम परमेश्वर द्वारा स्वीकृत हो सको, तो फिर तुम असाधारण रूप से होशियार व्यक्ति हो। तुम हमेशा सोचते हो, “वैसे तो मैं खराब काबिलियत वाला हूँ, लेकिन मुझमें अच्छी मानवता है, मैं प्रयास करने, कष्ट सहने और कीमत चुकाने का इच्छुक हूँ, मेरे पास दृढ़ संकल्प है, मैं जो कुछ भी करता हूँ उसमें तुम सभी से ज्यादा लचीला हूँ, और मैं खुले विचारों वाला हूँ और मुझे काट-छाँट या परीक्षण किए जाने का डर नहीं है। भले ही मेरी काबिलियत थोड़ी खराब है, फिर भी मैं अगुआ बन सकता हूँ।” खराब काबिलियत होना कोई समस्या नहीं है। यह तुम्हारी निंदा करने के लिए नहीं है, यह सिर्फ तुम्हें वर्गीकृत करने के लिए है और तुम्हें यह स्पष्ट रूप से समझाने के लिए है कि तुम वास्तव में क्या कर सकते हो और तुम किस तरह के कर्तव्य के लिए उपयुक्त हो। लेकिन वर्तमान मुद्दा यह है कि तुम्हारी काबिलियत खराब है और तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने में सक्षम नहीं हो। भले ही तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए चुना गया हो, लेकिन तुम यह कार्य अच्छी तरह से करने में समर्थ नहीं हो और तुम बस कार्य में गड़बड़ करने में ही समर्थ हो। अगर तुम में अच्छी मानवता है, अगर तुम में जमीर और विवेक है और तुम प्रयास करने और कीमत चुकाने के इच्छुक हो, तो कोई ऐसा कार्य होगा जिसे करने के लिए तुम उपयुक्त हो और कोई ऐसा कर्तव्य होगा जिसे तुम्हें करना चाहिए, और परमेश्वर का घर तुम्हारे लिए उचित व्यवस्थाएँ करेगा। तुम्हें अगुआ बनने की अनुमति नहीं देना परमेश्वर के घर के विनियमों और सिद्धांतों पर आधारित है। लेकिन, परमेश्वर का घर तुम्हें कोई कर्तव्य करने या परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने के तुम्हारे अधिकार से इसलिए बिल्कुल भी मना नहीं करेगा क्योंकि तुम खराब काबिलियत वाले हो। क्या यह उचित नहीं है? (हाँ, है।) क्या इस मामले पर और विस्तार से संगति करना हमारे लिए जरूरी है? खराब काबिलियत वाले कुछ लोग यह सुनते हैं और सोचते हैं, “इस पर अब और संगति मत करो। मुझे किसी का भी सामना करने में बहुत शर्म आती है। मुझे पता है कि मैं खराब काबिलियत वाला हूँ, और अब मैं कलीसियाई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं रहूँगा। मैं सिर्फ एक टीम का अगुआ या पर्यवेक्षक होऊँगा, या फिर मैं छोटे-मोटे फुटकर कार्य करूँगा, खाना बनाऊँगा, या सफाई करूँगा। कुछ भी चलेगा। मैं बिना किसी शिकायत के अपने पद का कष्ट सहूँगा, परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करूँगा, और परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण करूँगा। यह जो मैं खराब काबिलियत वाला हूँ, यह परमेश्वर के अनुग्रह से है, और इसमें परमेश्वर के अच्छे इरादे हैं। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह सही होता है।” अगर तुम इस तरीके से चीजें देख सकते हो, तो यह अच्छी बात है और इसका यह अर्थ है कि तुम में कुछ आत्म-जागरूकता है। मैं इस मुद्दे पर विस्तार से संगति नहीं करूँगा। संक्षेप में, इन खराब काबिलियत वाले लोगों के संबंध में, हम सिर्फ समस्या का गहन-विश्लेषण कर रहे हैं और तथ्यों की सच्चाई को उजागर कर रहे हैं ताकि ज्यादा लोगों के पास इन लोगों के बारे में सही रवैया और परिप्रेक्ष्य हो और इन लोगों के पास अपनी खराब काबिलियत के मुद्दे के बारे में सही रवैया और परिप्रेक्ष्य हो, और फिर वे सटीकता से अपनी स्थिति निर्धारित कर सकें, एक ऐसी स्थिति और कर्तव्य ढूँढ़ सकें जो उनके लिए उपयुक्त हो, जिससे कीमत चुकाने में उनकी दृढ़ता और कष्ट सहने के उनके दृढ़ संकल्प को उचित रूप से उपयोग में लाया जा सके और लागू किया जा सके। यह तुम्हारे सत्य समझने और सत्य का अभ्यास करने को प्रभावित नहीं करता है और न ही यह परमेश्वर के घर में तुम्हारी छवि को प्रभावित करता है।
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