अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8) खंड दो

खुद को आध्यात्मिक लोगों के रूप में पेश करने वाले नकली अगुआओं की मुख्य विशेषता क्या है? वह यह है कि वे धर्मोपदेश देने में अच्छे होते हैं। ये “धर्मोपदेश” सच्चे धर्मोपदेश नहीं हैं। ये सत्य के बारे में संगति करने वाले धर्मोपदेश नहीं हैं, और ना ही ये वे धर्मोपदेश हैं जिनमें सत्य वास्तविकता होती है। बल्कि, ये शब्दों और धर्म-सिद्धांतों वाले धर्मोपदेश हैं; ये छद्म-आध्यात्मिक धर्मोपदेश हैं, फरीसियों के धर्मोपदेश हैं। नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों के शब्दों और वाक्यांशों पर कड़ी मेहनत करने में बहुत अच्छे होते हैं, वे शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देने पर विशेष ध्यान देते हैं, और फिर भी वे कभी परमेश्वर के वचनों में सत्य नहीं खोजते हैं और कभी इस बात पर विचार नहीं करते हैं कि उन्हें सत्य वास्तविकता में कैसे प्रवेश करना चाहिए। वे सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देने में समर्थ होकर संतुष्ट हो जाते हैं; एक बार जब वे स्पष्ट और तर्कसंगत रूप से धर्म-सिद्धांत का उपदेश दे चुके होते हैं, तो उन्हें लगता है कि यह काफी अच्छा है और उनके पास सत्य वास्तविकता है, वे दूसरों के सामने खड़े हो सकते हैं और रोब जमा सकते हैं, और अपने ऊँचे पद से लोगों को फटकार सकते हैं। ऊपरी तौर पर, वे जो कहते और करते हैं वह सत्य से संबंधित लगता है, वे विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हुए दिखाई नहीं देते हैं, और ना ही वे गलत कहावतों की वकालत करते हुए या गलत अभ्यासों को भड़काते हुए दिखाई देते हैं। और फिर भी यहाँ एक समस्या है, जो यह है कि वे किसी भी वास्तविक कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं, या अपनी जिम्मेदारी का थोड़ा-सा भी अंश पूरा नहीं कर सकते हैं, जिसके कारण अंत में वे कार्य में किसी भी समस्या को खोजने में असमर्थ रहते हैं। वे उस अंधे व्यक्ति की तरह कार्य करते हैं जो अपना रास्ता टटोलते हुए आगे बढ़ता है : वे मामलों में आँख मूँदकर विनियम लागू करने के लिए हमेशा अपनी भावनाओं और कल्पनाओं का उपयोग करते हैं, समस्याओं के सार को स्पष्ट रूप से देखने में पूरी तरह से असमर्थ होते हैं, और फिर भी वे उनके बारे में बकवास करते हैं—वे वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल भी हल नहीं कर पाते हैं। अगर कोई नकली अगुआ सही मायने में सत्य समझता है, तो वह स्वाभाविक रूप से समस्याओं का पता लगाने और उन्हें हल करने के लिए सत्य खोजने में समर्थ होगा। लेकिन स्पष्ट रूप से, नकली अगुआ सत्य नहीं समझते हैं, फिर भी वे आध्यात्मिक होने का ढोंग करते हैं, खुद को कलीसिया का कार्य करने में सक्षम मानते हैं, बेईमानी से अपने रुतबे के फायदों का आनंद लेने की हिम्मत करते हैं। क्या यह घिनौना नहीं है? उन्हें लगता है कि उनके पास वास्तविक कौशल है—वे उपदेश दे सकते हैं। फिर भी वे वास्तविक कार्य बिल्कुल नहीं कर पाते हैं। नकली अगुआ जो शब्द और धर्म-सिद्धांत जानते हैं और जिनका उपदेश देते हैं, वे उन्हें उनका कार्य अच्छी तरह से करने में सहायता नहीं कर सकते हैं, और ना ही वे कार्य में समस्याओं का पता लगाने में उनकी सहायता कर सकते हैं, और उनके सामने आने वाली समस्याओं को हल करने में तो बिल्कुल भी सहायता नहीं कर सकते हैं। कुछ समय तक कार्य करने के बाद, वे किसी भी अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलने में असमर्थ होते हैं। क्या ऐसा अगुआ या कार्यकर्ता मानक स्तर का है? यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि वह नहीं है। और जो नकली अगुआ मानक स्तर के नहीं हैं, उन्हें कैसे सँभालना चाहिए? उन्हें ना सिर्फ बरखास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए, बल्कि अगर वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो चुनाव होने पर उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए फिर से नहीं चुना जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति ऐसे किसी नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता को चुनता है जिसे हटा दिया गया है, तो वे जानबूझकर कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रहे हैं और उसे नुकसान पहुँचा रहे हैं और इससे पता चलता है कि यह मतदाता उस नकली अगुआ का उपासक और अनुयायी है, और वह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सही मायने में परमेश्वर में विश्वास रखता हो। क्या तुम लोगों ने कभी किसी छद्म-आध्यात्मिक नकली अगुआ को चुना है? (हमने चुना है।) मुझे लगता है कि तुम सबने उनमें से बहुत से लोगों को चुना है। तुम सोचते हो कि जिस किसी ने भी बहुत वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़ें हैं और कई धर्मोपदेश सुने हैं, जिसके पास उपदेश देने और कार्य करने का भरपूर अनुभव है, जो एक समय में घंटों उपदेश दे सकता है, वह यकीनन कार्य करने में सक्षम है। फिर, उसे अगुआ के रूप में चुन लेने के बाद तुम्हें एक गंभीर समस्या का पता चलता है : भाई-बहन उसे कभी देख नहीं पाते हैं और कोई मुद्दा होने पर वे उसे कभी ढूँढ नहीं पाते हैं। किसी को मालूम नहीं होता है कि वह कहाँ छिपा हुआ है, और वह कहीं छिप जाता है और किसी को भी उसे परेशान करने की अनुमति नहीं देता है। यह एक समस्या है। वह कार्य के बेहद महत्वपूर्ण पलों में हमेशा लुका-छिपी खेलता रहता है और जब कोई समस्या हल करने के लिए उसकी जरूरत पड़ती है, तो भाई-बहन उसे कभी ढूँढ नहीं पाते हैं—क्या वह अपने उचित कर्तव्यों के प्रति लापरवाही नहीं कर रहा है? कुछ लोग अगुआ बनने के बाद भाई-बहनों के सामने आने की हिम्मत क्यों नहीं करते हैं? वे कहीं भी क्यों नहीं मिलते हैं? वे वास्तव में किस चीज में व्यस्त हैं? वे वास्तविक समस्याओं को हल क्यों नहीं करते हैं? वे चाहे किसी भी चीज में व्यस्त क्यों ना रहें, इस बारे में तुम निश्चित हो सकते हो : अगर वे कुछ समय तक बिना कोई वास्तविक कार्य किए रहते हैं, तो वे नकली अगुआ हैं, और उन्हें तुरंत बरखास्त कर देना चाहिए, और किसी और को चुनना चाहिए। क्या तुम लोग भविष्य में इस किस्म का नकली अगुआ चुनोगे? (नहीं।) क्यों नहीं? तुम लोगों के विचार से एक अंधे व्यक्ति को अपना मार्गदर्शक चुनने का क्या परिणाम होता है? वह व्यक्ति खुद अंधा है, तो क्या वह दूसरों को सही मार्ग पर ले जा सकता है? यह ठीक वैसा ही है जैसा कि बाइबल में परमेश्वर के वचन कहते हैं, “अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड्ढे में गिर पड़ेंगे” (मत्ती 15:14)। अंधा व्यक्ति बिना किसी दिशा या लक्ष्य के चलता है; वह दूसरों की अगुवाई कैसे कर सकता है? अगर कोई किसी अंधे व्यक्ति को अपना मार्गदर्शक चुनता है, तो वह और भी अंधा है। अविश्वासियों में एक कहावत है : “अंधे व्यक्ति से रास्ता पूछना।” कलीसिया के अगुआ के रूप में सेवा करने के लिए एक नकली अगुआ का चुनाव करना एक अंधे व्यक्ति से रास्ता पूछने जैसा है। यह एक बेतुकी बात है, है ना? नकली अगुआ के लिए अपना मत देने वाले सभी लोग अंधे हैं जो अंधे को चुनते हैं, और उनमें से कोई भी सत्य नहीं समझता है।

जब कुछ लोग एक छद्म-आध्यात्मिक व्यक्ति को अगुआ बनने के लिए चुनते हैं, तो वे बहुत खुश होते हैं, सोचते हैं, “अब हमारे पास एक महान अगुआ है। हमारा अगुआ धर्मोपदेश देने में वाकई अच्छा है। वह बहुत ही तर्कसंगत और संरचित तरीके से उपदेश देता है, और उसके धर्मोपदेश बहुत तर्कसंगत होते हैं।” कुछ लोग जिनमें भेद पहचानने की योग्यता का अभाव होता है, वे रोने लगते हैं, वे इस अगुआ से बहुत लगाव महसूस करते हैं और वे अपने कर्तव्य करने भी नहीं जाना चाहते हैं। जब वे संगति सुनते हैं, तो उन्हें चीजें बहुत स्पष्ट रूप से समझ आती हैं, लेकिन अपना कर्तव्य करते समय जब उन्हें समस्याओं का पता चलता है, तो उन्हें नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे हल किया जाए और वे हैरान रह जाते हैं, सोचते हैं, “जब मैं अगुआ की संगति सुनता हूँ, तब ऐसा लगता है जैसे मुझे सब कुछ समझ आ रहा है, तो फिर मैं अपने कार्य में आने वाली कठिनाइयों को हल क्यों नहीं कर पा रहा हूँ?” यहाँ क्या समस्या है? इस तरह का नकली अगुआ जो भी उपदेश देता है, वह सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत, खोखले वाक्यांश, नारे और बकवास होते हैं। वह जो भी उपदेश देता है, उससे तुम्हारे वास्तविक मुद्दे हल नहीं होते हैं; उसने तुम्हें बेवकूफ बनाया है। वह तुम्हारे दिमाग में भ्रांतियाँ भरता है, कुछ नारे लगाता है ताकि तुम गलती से यह मान लो कि समस्याएँ हल हो गई हैं, जबकि दरअसल वह तुम्हारी समस्याओं के संबंध में सत्य सिद्धांतों पर संगति नहीं कर रहा है। इस तरीके से संगति करके समस्याएँ कैसे हल हो सकती हैं? वह जिन धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देता है, उनका वास्तविक मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है; वह बस सभी मुद्दों के सार से बच रहा है और धर्म-सिद्धांतों के बारे में खोखले तरीके से बात कर रहा है। वह सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों और आध्यात्मिक सिद्धांतों का उपदेश देता है। उसे बिल्कुल नहीं पता है कि सत्य वास्तविकता क्या है, और समस्याएँ उत्पन्न होने पर वह चकरा जाता है। वह जो धर्मोपदेश देता है, उनसे वास्तविक समस्याएँ हल नहीं हो सकती हैं, वे सिर्फ एक किस्म का सिद्धांत हैं, एक किस्म का ज्ञान और धर्म-सिद्धांत हैं। इस किस्म का नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों और सत्य का उपदेश ऐसे देता है मानो वे शब्द और धर्म-सिद्धांत और नारे हों। वह सभी वास्तविक समस्याओं से कतराता है और सिर्फ उन्हीं शब्दों का उपदेश देता है जो खोखले और अव्यावहारिक हैं। और अंत में क्या होगा? चाहे वह कितनी भी देर तक उपदेश क्यों ना देता रहे, ज्यादा-से-ज्यादा, उसके धर्मोपदेश लोगों को प्रोत्साहित और आग्रह करने, लोगों को थोड़ा और उत्साही बनाने और अचानक कुछ देर के लिए उनकी ऊर्जा में वृद्धि करने का प्रभाव डालेंगे, लेकिन वे कोई भी दूसरा मुद्दा हल नहीं कर पाएँगे। सत्य, वास्तविकता से अलग नहीं है, बल्कि यह वास्तविकता से और उन सभी किस्म के मुद्दों से जुड़ा हुआ है जो वास्तव में मौजूद हैं। तो, अगली बार जब तुम लोगों का सामना छद्म-आध्यात्मिक नकली अगुआओं से होगा, तो क्या अब तुम उन्हें पहचान पाओगे? अगर नहीं, तो जब तुम लोग किसी को अगुआ बनाने के लिए उसके पक्ष में मत देना चाहो, तो पहले उससे कुछ मुद्दे हल करवाओ। अगर वह सिद्धांतों के अनुसार उन्हें हल कर देता है, और अगर वह बहुत अच्छे परिणाम हासिल करता है और सत्य वास्तविकता का उपयोग करके मुद्दों को हल करता है, तो तुम उसके पक्ष में मत दे सकते हो; अगर वह समस्याओं के सार और वास्तविक स्थिति से कतराता है और उनके बारे में बात नहीं करता है, और सिर्फ खोखले तरीके से धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकता है, नारे लगा सकता है और विनियमों का पालन कर सकता है, तो तुम उस व्यक्ति के पक्ष में मत नहीं दे सकते। तुम उस व्यक्ति के पक्ष में मत क्यों नहीं दे सकते? (क्योंकि वह वास्तविक समस्याओं को हल करने में समर्थ नहीं है।) और, किस किस्म का व्यक्ति वास्तविक समस्याओं को हल करने में समर्थ नहीं होता है? ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकता है—वह एक पाखंडी, छद्म-आध्यात्मिक फरीसी होता है। उसमें सत्य समझने के लिए जरूरी काबिलियत नहीं होती है, उसमें मुद्दों को हल करने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती है, वह समस्याओं को हल नहीं कर पाता है, और इसलिए अगर तुमने उसे अगुआ बनाने के लिए चुना, तो उसका नकली अगुआ बनना अवश्यंभावी है। वह अगुआ का कार्य करने या अगुआ की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम नहीं है। तो, अगर तुम उसके पक्ष में मत देते हो, तो क्या तुम उसे नुकसान नहीं पहुँचा रहे हो? कुछ लोग कहते हैं, “इससे उसका क्या नुकसान हो रहा है? हम तो अच्छे इरादे से उसके पक्ष में मत दे रहे हैं। उसमें कुछ काबिलियत है, और अगर हम उसे चुनते हैं, तो क्या हमें एक ऐसा व्यक्ति नहीं मिल जाएगा जो कार्य की जिम्मेदारी ले सके?” जिम्मेदारी लेने के लिए कोई अपने पास होना यकीनन अच्छी बात है, लेकिन इस किस्म का व्यक्ति जिम्मेदारी लेने में समर्थ नहीं है। वह सिर्फ खोखले तरीके से सिद्धांतों के बारे में बात कर सकता है, वह वास्तविक स्थिति को ध्यान में नहीं रखता है, और जब समस्याएँ हल करने की बात आती है तो वह कोई सहायता नहीं करता है, इसलिए उसके पक्ष में मत देकर, क्या तुम उसे बुरा करने का अवसर नहीं दे रहे हो? क्या तुम उसे नकली अगुआ के मार्ग पर चलने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हो? इसलिए, तुम्हें ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में नहीं चुनना चाहिए।

क्या तुम लोग यह भेद पहचानने में समर्थ हो कि तुम्हारे आसपास के लोगों में से—जिनके तुम अक्सर संपर्क में आते हो और जिनसे तुम काफी परिचित हो—कौन सिर्फ सिद्धांतों के बारे में खोखले तरीके से बोलने में समर्थ है और वास्तविक समस्याओं को हल करने में समर्थ नहीं है? कौन हमेशा ऊँचे सिद्धांतों का उपदेश देता है और ऐसी नई और अनोखी योजनाओं का प्रस्ताव देता है, जिनके बारे में पहले कभी किसी ने नहीं सुना होता है, लेकिन जब उससे यह पूछा जाता है कि परिचालन की विशिष्ट योजनाओं और ठोस विवरणों का अभ्यास और कार्यान्वयन कैसे करना है, तो वह भ्रमित और बिल्कुल चुप हो जाता है? वह जो कहता है, वह बहुत ही खोखला और पूरी तरह से अवास्तविक होता है, वह वास्तविक स्थिति, असल परिवेश, लोग वास्तव में क्या हासिल कर सकते हैं, लोगों के आध्यात्मिक कदों और उनके पेशेवर कौशलों के स्तर से संबंधित या सुसंगत नहीं होता है। इससे भी ज्यादा यह कि वह जो कहता है, वह परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होता है; वह सिर्फ बकवास करता है, वह फंतासी में लिप्त है, और उसके मन में जो भी आता है, उसे वह आवेगपूर्वक बोल जाता है। उसे लगता है कि उसे अपनी कही किसी भी बात की जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है, तब भी नहीं जब वह शेखी बघारता है और डींग हाँकता है। इस रवैये के साथ, वह अपने नजरिये व्यक्त करता है और अपने विचार पेश करता है—क्या ऐसे लोग छद्म-आध्यात्मिक नहीं हैं? (हाँ, हैं।) कुछ लोगों का मानना है कि वैसे भी, कोई भी शेखी बघारने, डींग हाँकने या बड़े-बड़े विचारों को गंभीरता से नहीं लेता है, और उन्हें यह दिखाने का अवसर मिल जाता है कि वे कितने सक्षम हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे कुछ गलत कर देते हैं तो उन्हें उसके लिए जिम्मेदार होने की जरूरत नहीं है, और अगर वे कुछ सही करते हैं तो हर कोई उनका बहुत सम्मान करेगा, और इसलिए वे जो चाहे कहते हैं और ऐसा दिखाते हैं मानो सब कुछ बहुत ही आसान हो। उनके पास बहुत सारे विचार होते हैं, लेकिन उनमें से किसी भी विचार के साथ अभ्यास की विशिष्ट योजना नहीं होती है और ना ही उसे ठीक से कार्यान्वित किया जा सकता है। वे जो भी विचार पेश करते हैं, उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, चाहे वह शुद्ध हो या विकृत। वे आज एक बात और कल दूसरी बात कहते हैं, और वैसे तो वे जिन विचारों, सिद्धांतों और आधारों के बारे में बात करते हैं वे सभी बहुत ऊँचे होते हैं, लेकिन वे सभी खोखले और अव्यावहारिक होते हैं। कभी-कभी वे किसी ऐसी योजना के बारे में बात करते हैं जो खोखली या विकृत तो नहीं होती है, लेकिन जब उनसे पूछा जाता है कि इस योजना को विशिष्ट रूप से कैसे कार्यान्वित करना है तो वे नहीं बता पाते हैं। नारे लगाते समय, बड़े-बड़े शब्द बोलते समय और नजरिये व्यक्त करते समय, वे बहुत ही उत्साही और अग्रसक्रिय होते हैं। लेकिन जब विशिष्ट कार्य करने और विशिष्ट योजनाएँ कार्यान्वित करने की बात आती है तो वे छूमंतर हो जाते हैं, वे खुद को कहीं छिपा लेते हैं और अब उनके पास कोई विचार नहीं होता है। क्या इस तरह के लोग अगुआ हो सकते हैं? (नहीं।) तो, इस तरह के लोगों के अगुआ बनने के क्या परिणाम होंगे? क्या वे खुद को और दूसरों को भी नुकसान नहीं पहुँचाएँगे? वे कलीसिया के कार्य में देरी करेंगे और इसके अलावा, वे खुद को बहुत नुकसान पहुँचाएँगे। वे जिन धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, वे बस कुछ सीमित चीजें हैं, और जब वे उनका उपदेश देना समाप्त कर लेते हैं, तो उनके पास कहने के लिए और कुछ नहीं होता है, और इसलिए उन्हें हमेशा छिपना पड़ेगा और “अपने आत्म-विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एकांत-वास में रहना” पड़ेगा। क्या इससे उनके लिए चीजें कठिन नहीं हो जाएँगी? अगुआ बनते ही उन्हें लगेगा जैसे उनके सिर पर तीन बड़े पहाड़ों का बोझ आ गया है, वे हर रोज बेहद थकान महसूस करेंगे और वे बहुत दबाव महसूस करेंगे—उनका इस तरह से कष्ट सहने का क्या फायदा है? उनमें अगुआ बनने की काबिलियत नहीं है, और जब वे समस्याओं का सामना करते हैं, तो वे बस अपनी कल्पनाओं के अनुसार अविवेकपूर्ण तरीके से विनियम लागू करते हैं और वास्तविक मुद्दों को हल नहीं कर पाते हैं—इस तरह के लोग अगुआ नहीं बन सकते हैं। वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए वे नकली अगुआ होंगे, और फिर भी वे खुद को बहुत महान समझेंगे, तब भी जब वे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में देरी का कारण बनेंगे। अगर तुम लोग इन छद्म-आध्यात्मिक लोगों की काबिलियत और चरित्र का पता लगा सको और उन्हें समझ सको, तो क्या तुम तब भी उन्हें अगुआ बनाने के लिए वोट दोगे? अगर तुम खुद इस तरह के व्यक्ति हो और कोई तुम्हें वोट देना चाहता हो तो तुम क्या करोगे? (मुझमें कुछ आत्म-जागरूकता होगी, और मैं कहूँगा कि मैं अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हूँ।) और अगर, तुम्हारे इस कथन के बाद भी, हर कोई अब भी यही समझे कि तुम अच्छे हो और वे तुम्हें वोट देने पर अड़ जाएँ, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? उनसे कहो, “मैं अगुआई का कार्य नहीं कर सकता, मैं उस कार्य की जिम्मेदारी नहीं उठा सकता। ऊपरी तौर पर मैं कुछ काबिलियत वाला व्यक्ति दिखता हूँ, और कभी-कभी मेरे पास कुछ अच्छे विचार होते हैं और मैं थोडा प्रकाश प्रदान करता हूँ, लेकिन ज्यादातर समय मैं सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देता हूँ। मैं वाकई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं बन सकता। मैं तुम लोगों से बेहतर नहीं हूँ। तुम लोग जो भी करो, कृपया मुझे वोट मत दो। अगर मुझे सबसे ज्यादा वोट मिल भी गए, तो भी मैं अगुआ नहीं बन सकता। मैं किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता! मैंने पहले भी अगुआ के तौर पर सेवा की है, और मैं हर बार विफल रहा और मुझे बरखास्त कर दिया गया। हर बार मुझे इसलिए बरखास्त किया गया क्योंकि मेरी काबिलियत खराब थी, मुझमें कार्य क्षमता का अभाव था और मैं वास्तविक कार्य नहीं कर पाता था। मैं सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे पाता था, और इसके अलावा, मैं अच्छा प्रदर्शन नहीं दे पाया या अगुआओं को जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए, उनमें से एक भी पूरी नहीं कर पाया। मैं एक नकली अगुआ था।” यह आत्म-जागरूकता का होना है, सिर्फ अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं होने के बारे में कुछ शब्द कहना और बात को वहीं समाप्त कर देना नहीं है। कुछ लोग सोचते हैं, “मैंने इतने वर्षों से इस समूह में अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है और जो भी हो, मुझे एक वरिष्ठ कर्मचारी माना जाना चाहिए। भले ही मैंने कभी कोई योगदान ना दिया हो, लेकिन मैंने कड़ी मेहनत की है, तो फिर किसी को मेरी खूबियों का पता कैसे नहीं लगा है? मुझमें भी अगुआ बनने के सारे गुण हैं। मैं अक्सर ऐसे विचार, उपाय और सुझाव पेश करता हूँ जो काफी मूल्यवान होते हैं और जिनका व्यावहारिक उपयोग होता है। चाहे अगुआ उन्हें अपनाएँ या ना अपनाएँ, जो भी हो, मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसके पास रवैये, विचार और नजरिये हैं। कोई मुझे वोट क्यों नहीं देता है?” अगर तुम इस तरीके से सोचते हो, तो तुम अपना मूल्यांकन इस तरह से कर सकते हो : क्या तुम्हारे विचार, उपाय और सुझाव सिर्फ कथन हैं, या उनका वाकई कोई व्यावहारिक उपयोग है? क्या तुम कार्य में आने वाली सभी तरह की कठिनाइयों का पता लगाने और उन्हें हल करने में समर्थ हो? क्या तुम्हारे विचार और उपाय उपयोग करने योग्य हैं? क्या तुम कार्य की जिम्मेदारी लेने में समर्थ हो? अगर तुम्हारे विचार और नजरिये सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के स्तर तक ही रहते हैं, अगर उनका व्यावहारिक उपयोग बिल्कुल नहीं है, और इससे भी महत्वपूर्ण चीज यह है कि वे परमेश्वर के घर के कार्य सिद्धांतों के अनुरूप बिल्कुल नहीं हैं, तो तुम्हारी काबिलियत वास्तव में कैसी है? जब तुम अगुआ बनने के लिए चुने जाते हो, तब क्या तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकोगे? क्या तुम महत्वाकांक्षा के कारण अगुआ बनना चाहते हो, या फिर दायित्व की भावना के कारण? अगर तुममें सही मायने में कार्य क्षमता है और मुद्दे हल करने की क्षमता है, और जब तुम देखते हो कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता बहुत खराब तरीके से कार्य पूरा कर रहे हैं और किसी भी समस्या को हल करने में समर्थ नहीं हैं, तो तुम बेचैन हो उठते हो, और तुम उन्हें सुझाव देते हो, लेकिन वे नहीं सुनते हैं, और वे मुद्दों को हल करने में समर्थ नहीं होते हैं और फिर भी वे ऊपरवाले को उनकी सूचना नहीं देते हैं, और तुम परमेश्वर के घर के कार्य के लिए चिंतित और बेचैन हो उठते हो, और जब तुम नकली अगुआओं को कलीसिया के कार्य में देरी करवाते देखते हो, तो तुम असहनीय रूप से परेशान हो जाते हो, तो इससे पता चलता है कि तुममें दायित्व की भावना है। लेकिन, अगर तुम सभी की स्वीकृति पाना चाहते हो, एक बड़ा दर्शक समूह पाना चाहते हो, और चाहते हो कि तुम्हें उपदेश देते हुए और आडंबरपूर्ण और हठधर्मी तरीके से बोलते हुए ज्यादा लोग सुनें, सिर्फ इसलिए कि तुम्हारे पास कुछ विचार हैं, और अगर तुम भीड़ से अलग दिखना चाहते हो, तो यह दायित्व की भावना नहीं है—यह एक महत्वाकांक्षा है। महत्वाकांक्षी लोग सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकते हैं, और उनके पास जो भी विचार होते हैं, वे भी सिर्फ खोखले शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं। जब इस तरह के लोग अगुआ बन जाते हैं, तो उनका नकली अगुआ होना अवश्यंभावी है, और अगर वे कुकर्मी हैं, तो फिर वे मसीह-विरोधी हैं। अगर तुम्हारे विचार खोखले शब्दों के स्तर तक ही रहते हैं, तो एक बार जब तुम अगुआ बन जाते हो, तो तुम्हारा हर छद्म आध्यात्मिक नकली अगुआ जैसा बनना अवश्यंभावी हैं। तुम हमेशा “अपने आत्म-विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एकांत-वास में रहने” चले जाओगे, नहीं तो, तुम संकट की भावना महसूस करने लगोगे और उपदेश देने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा। अगर तुम बिल्कुल उनके जैसे हो, और ऊँचे स्तर से उपदेश देते समय तुम कार्य में मौजूद किसी भी समस्या का पता लगाने में असमर्थ हो, और किसी भी समस्या को हल करने में भी स्वाभाविक रूप से असमर्थ हो, तो तुम्हारा नकली अगुआ बनना अवश्यंभावी है। और अंत में नकली अगुआओं के साथ क्या होता है? उन्हें उनके पदों से बरखास्त कर दिया जाता है क्योंकि वे वास्तविक कार्य नहीं कर पाते हैं—उनका इस मार्ग पर चलना अवश्यंभावी है।

ऐसे कई लोग हैं जिनके दिलों में हमेशा आक्रोश रहता है और वे हमेशा कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं, और जब भी किसी अगुआ या पर्यवेक्षक को चुने जाने का समय आता है, तो वे हमेशा चाहते हैं कि उन्हें ही चुना जाए। कुछ लोग सोचते हैं कि उन्होंने सबसे ज्यादा वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, उन्होंने सबसे ज्यादा कष्ट सहे हैं, उन्होंने सबसे लंबे समय तक और सबसे ज्यादा निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है, और वे अगुआ बनने के लिए सबसे ज्यादा योग्य हैं, और इसलिए वे चाहते हैं कि दूसरे लोग उन्हें ही चुनें। अगर दूसरे लोग तुम्हें चुनते हैं तो तुम क्या करने में समर्थ होगे? क्या तुम नकली अगुआ की उपाधि दिए जाने से बच पाओगे? क्या तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर पाओगे? ये सभी वास्तविक समस्याएँ हैं, लेकिन कोई भी इस तरह की चीजों पर गौर नहीं करता है। इनमें से कुछ लोग पर्याप्त काबिलियत वाले होते हैं। अपने कर्तव्य में समस्याएँ आने पर वे सत्य की तलाश कर सकते हैं, और जब वे सत्य समझ लेते हैं और सिद्धांतों के अनुसार मामले सँभालने में समर्थ हो जाते हैं, तो वे मानक स्तर के हो सकते हैं। बशर्ते कि ये लोग सत्य समझें, सत्य से प्रेम करें, और सत्य का अनुसरण करें, और इसके अलावा, इनमें अपेक्षाकृत अच्छी मानवता हो, तो उन्हें ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बनने में कोई समस्या नहीं आएगी, जो मानक स्तर के हैं—उनके लिए यह बहुत कठिन नहीं होगा। कुछ लोग हमेशा यह शिकायत करते हैं कि वे जो कार्य कर रहे हैं वह कठिन है, सत्य की बात आने पर वे प्रयास करने या कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं होते हैं, और जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे शिकायतें करते हैं। क्या ऐसे लोग ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बन सकते हैं, जो मानक स्तर के हैं? उनका इरादा और रवैया बिल्कुल गलत है, वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं, और चाहे परमेश्वर उनसे कुछ भी अपेक्षा क्यों ना करे, वे नकारात्मक रवैया बनाए रखते हैं। इस तरह के लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लायक नहीं हैं। उनके दिलों में बोझ की कोई भावना नहीं होती है, और चाहे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ कितनी भी स्पष्ट या सुबोध रूप से क्यों ना बताई जाएँ, फिर भी वे कार्य अच्छी तरह से करने के लिए कड़ी मेहनत करने के इच्छुक नहीं होते हैं। दरअसल, कार्य अच्छी तरह से करना कठिन नहीं है। यह कठिन क्यों नहीं है? सबसे पहले, परमेश्वर के घर में कलीसिया के समस्त कार्य के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ मौजूद हैं और ऊपरवाले ने इसके लिए विशिष्ट नियम बनाए हैं, इसलिए तुम लोगों से कार्य की किसी भी मद में नवोन्मेषी होने या इसे स्वतंत्र रूप से पूरा करने की अपेक्षा नहीं की जाती है। ऊपरवाले ने तुम लोगों को एक दायरा और एक दिशा दी है, और तुम लोगों को सिद्धांत दिए हैं, और तुम लोगों को न्यूनतम मानक दिए हैं; अपना कार्य करने में, तुम हवा में तीर नहीं चला रहे हो, और ना ही तुम्हारे पास निर्देशन का अभाव है। दूसरी बात, कार्य की किसी भी मद के साथ, चाहे पर्यवेक्षक कोई भी हो, और चाहे कार्य का केंद्र विदेशी हो या घरेलू, सबसे प्राथमिक बात यह है कि ऊपरवाला भाई कार्य पर विशिष्ट रूप से अनुवर्ती कार्रवाई, मार्गदर्शन, निगरानी, निरीक्षण, और जाँच-पड़ताल कर रहा है, और अक्सर पूछताछ कर रहा है। ये कार्य कितने विशिष्ट हैं? ऊपरवाला भाई व्यक्तिगत रूप से हर पटकथा, हर फिल्म, हर कार्यक्रम, हर भजन आदि में शामिल होता है और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करता है। मैं भी कुछ कार्य में शामिल होता हूँ, जिससे तुम लोगों को एक सामान्य निर्देशन और रूपरेखा मिलती है। तीसरी बात, कार्य का हर पहलू जिसमें सत्य सिद्धांत शामिल हैं, उसके लिए ऊपरवाला अक्सर तुम लोगों के साथ सत्य सिद्धांतों पर संगति करता है और तुम्हारे कार्य का मार्गदर्शन करता है; ऊपरवाला तुम्हारी काट-छाँट भी करता है, तुम लोगों की जाँच-पड़ताल भी करता है, और ऊपरवाला किसी भी समय तुम लोगों की विकृतियाँ ठीक कर देगा। चौथी बात, प्रमुख कार्मिक और प्रशासनिक कार्यों के संबंध में, ऊपरवाला व्यक्तिगत रूप से जाँच-पड़ताल करके और फैसले लेकर तुम लोगों की सहायता करता है। सच्चाई यह है कि तुम लोग चाहे जो भी कार्य करो, तुम उसे स्वतंत्र रूप से पूरा नहीं करते हो; यह सब कुछ ऊपरवाले द्वारा व्यवस्थित, निर्देशित और जाँच-पड़ताल किया हुआ होता है। तो, फिर तुम लोग क्या करते हो? तुम बस पहले से तैयार चीजों का आनंद लेते हो—तुम लोग कितने धन्य हो! तुम्हें किसी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं है; तुम्हें बस अपने हाथ और पैर चलाने की जरूरत है। यही वह कार्य है जो तुम लोगों के जिम्मे आता है। क्या तुम लोगों ने कभी अतिरिक्त कीमत चुकाई है? (नहीं।) यह सारा मुख्य, महत्वपूर्ण कार्य ऊपरवाले ने किया है; इसलिए, तुम लोग जो कार्य करते हो, वह सारा बहुत ही आसान है और इसमें कोई बड़ी कठिनाइयाँ नहीं हैं। ऐसी परिस्थितियों में, अगर लोग अब भी अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं करते हैं, तो यह माफ करने योग्य नहीं है, और यह साबित करता है कि वे अपने कार्य में अपना दिल और मेहनत बिल्कुल नहीं लगा रहे हैं या अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं, “ऐसा कौन है जिससे कार्य करते समय कोई खामी नहीं रहती है? क्या लोगों को यह अनुमति नहीं है कि उनमें कोई समस्या हो?” तुम लोगों से अपने कार्य में पूर्णांक हासिल करना अपेक्षित नहीं है; तुम लोगों को बस उत्तीर्णांक हासिल करने की जरूरत है, और फिर तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर लेने वाला व्यक्ति मान लिया जाएगा। क्या यह माँग बहुत ज्यादा है? (नहीं।) ऊपरवाले के निर्देश और जाँच-पड़ताल के आधार पर उत्तीर्णांक हासिल करना आसान है; यह सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि लोग सच्चाई से सत्य का अनुसरण करते हैं या नहीं। सत्य की बात आने पर अगर लोग कोई प्रयास नहीं करते हैं, और हमेशा लापरवाह बने रहना चाहते हैं, और अगर वे कार्य करते समय सिर्फ खानापूर्ति करने से संतुष्ट हो जाते हैं, कुछ भी बुरा नहीं करते हैं, कोई विघ्न-बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं, और उनके पास ऐसा कुछ नहीं होता है जो उनके जमीर को परेशान करे, तो वे उत्तीर्ण श्रेणी हासिल नहीं कर सकते हैं। कार्य करते समय ज्यादातर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में इस तरह का रवैया होता है; वे थोड़ा-सा कार्य करते हैं लेकिन वे खुद को थकाना नहीं चाहते हैं, वे बस औसत दर्जे के होकर भी संतुष्ट रहते हैं, और जहाँ तक उनके कार्य के परिणामों की बात है, तो उन्हें लगता है कि वह परमेश्वर का मामला है और इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। क्या यह रवैया स्वीकार्य है? अगर तुम ऐसा रवैया रखते हो, तो तुम जो कार्य कर सकते हो वह बहुत ही सीमित है और तुम उसके लिए अपना भरसक प्रयास नहीं कर रहे हो, जिससे पता चलता है कि तुम या तो वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हो या वास्तविक कार्य नहीं करते और इसलिए तुम्हारा नकली अगुआओं के रूप में निरूपण करना चाहिए—यह पूरी तरह से उचित है और यह अन्यायपूर्ण नहीं है। कुछ लोग हमेशा कहते हैं, “तुम हमसे बहुत ऊँची अपेक्षाएँ रखते हो। अगर हम यह कार्य नहीं करते हैं तो हम नकली अगुआ हैं और अगर हम वह अपेक्षा पूरी नहीं करते हैं तो भी हम नकली अगुआ हैं। तुम हमें समझते क्या हो? हम मशीनी-मानव नहीं हैं, हम पूर्ण नहीं हैं। हम बस आम लोग हैं, हम बस नश्वर हैं। तुम हमें आम लोग, सामान्य लोग बनने के लिए कहते हो तो अगुआओं के रूप में तुम हमसे इतनी ज्यादा अपेक्षाएँ क्यों रखते हो?” दरअसल, मैं तुम लोगों से ऊँची अपेक्षाएँ नहीं रखता हूँ। मैं बस तुमसे वे जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए कहता हूँ जो एक मनुष्य को पूरी करनी चाहिए। यह कुछ ऐसा है जो तुम्हें करना चाहिए और करना ही पड़ेगा, और यह कुछ ऐसा है जिसे तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सफलतापूर्वक कर सकते हो। लेकिन, अगर तुम सत्य की तरफ बढ़ने के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते हो, और कष्ट सहने से हमेशा डरते हो और हमेशा सुख-सुविधाओं की लालसा करते हो, तो चाहे तुम्हारे कारण या बहाने कुछ भी हों, तुम्हारा नकली अगुआ बनना अवश्यंभावी है। यह उन चीजों की तरह है जिन्हें सामान्य मानवता वाले लोगों को सफलतापूर्वक करना चाहिए और जिनका वयस्क लोगों को खुद ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि एक वयस्क को सुबह कितने बजे उठ जाना चाहिए, उसे कितनी बार भोजन करना चाहिए और उसे एक दिन में कितने घंटे कार्य करना चाहिए, और उसे अपने गंदे कपड़े कब धोने चाहिए—तुम्हें ये चीजें खुद ही सँभालनी चाहिए, और तुम्हें इनके बारे में किसी और से पूछने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम हर चीज के बारे में दूसरे लोगों से पूछते हो और कुछ भी नहीं समझते हो, तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम में अपर्याप्त बुद्धि है, और तुम अनाड़ी हो? क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम अपना ख्याल रखने में समर्थ नहीं हो? क्या इस किस्म के लोग अगुआ बन सकते हैं? क्या वे नकली अगुआ नहीं हैं? ऐसे लोगों को बरखास्त कर देना चाहिए। इस किस्म के लोग अब भी अपने पद से चिपके रहना चाहते हैं और इस्तीफा नहीं देना चाहते हैं, और वे अब भी अगुआ बनना चाहते हैं! कुछ नकली अगुआओं को बरखास्त कर दिए जाने के बाद, उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है और वे इसके बारे में रोना बंद नहीं करते हैं। वे तब तक रोते रहते हैं जब तक उनकी आँखें सूज नहीं जाती हैं। वे क्यों रोते हैं? उन्हें नहीं पता है कि वे किस किस्म की चीज हैं। जब मैं कहता हूँ कि लोगों से मेरी अपेक्षाएँ ज्यादा नहीं हैं, तो मेरे कहने का अर्थ यह है कि तुमसे जो करने के लिए कहा जा रहा है, वह वही है जिसे तुम सफलतापूर्वक कर सकते हो; तुम्हारे लिए रास्ता पहले से ही तैयार कर दिया गया है और दायरा तय कर दिया गया है, और फैसले ले लिए गए हैं, और तुम्हें बस कार्रवाई करने की जरूरत है। यह भोजन करने जैसा है : अनाज, सब्जियाँ, सभी किस्म के मसाले, बर्तन और चूल्हे तुम्हारे लिए तैयार कर दिए गए हैं, और तुम्हें बस भोजन पकाना सीखना है; यही वह कार्य है जो एक वयस्क को करना चाहिए और जिसमें उसे सफलता हासिल करनी चाहिए। अगर तुम इसमें सफल नहीं हो पाते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम अनाड़ी हो, और तुम्हें सामान्य वयस्कों की बुद्धिमत्ता की परास में नहीं गिना जा सकता है। कुछ अगुआ यह वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, और इसलिए उन्हें बरखास्त कर देना चाहिए। तो फिर, हम यह कैसे परिभाषित और निर्धारित कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति इस किस्म का कार्य करने में सक्षम है या नहीं? अगर तुम में एक वयस्क की बुद्धिमत्ता और काबिलियत है, और तुम में वह कर्तव्यनिष्ठा और जिम्मेदारी की भावना है जो एक वयस्क में होनी चाहिए, तो तुम्हें इस किस्म का कार्य करने में समर्थ होना चाहिए। अगर तुम ऐसा नहीं कर पाते या तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम एक नकली अगुआ हो। इसे इसी तरीके से निर्धारित किया जाता है, और इस तरीके से इसका निर्धारण करना सटीक है। यह किसी व्यक्ति की निंदा या आलोचना नहीं है, तो क्या यह निष्ठुर होना है? सभी तथ्य स्पष्ट रूप से पेश किए गए हैं, और यह निष्ठुर होना बिल्कुल भी नहीं है।

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