अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6) खंड चार
IV. बरखास्त किए जा चुके लोगों से कैसे पेश आएँ
एक और तरह के लोग होते हैं, मतलब कि वे जिन्हें बरखास्त कर दिया गया है। हमें उनसे कैसे पेश आना चाहिए? इन लोगों को चाहे इसलिए बरखास्त किया गया हो कि वे वास्तविक कार्य करने में अक्षम हैं और उन्हें नकली अगुआओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है, या इसलिए कि वे मसीह-विरोधियों के मार्ग का अनुसरण करते हैं और उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इन्हें उचित रूप से अन्य कार्य सौंपना और इनके लिए उचित व्यवस्थाएँ करना आवश्यक है। यदि वे बहुत से बुरे काम करने वाले मसीह-विरोधी हैं तो निश्चित रूप से उन्हें निष्कासित कर दिया जाना चाहिए; यदि उन्होंने बहुत से बुरे काम नहीं किए हैं, लेकिन उनमें मसीह-विरोधी का सार है और वे मसीह-विरोधी के रूप में चिह्नित होते हैं तो जब तक वे कोई विघ्न-बाधा पैदा किए बिना छोटे-मोटे तरीके से सेवा करते रह सकते हैं, तब तक उन्हें निकालने की आवश्यकता नहीं है—उन्हें सेवा प्रदान करते रहने दो और उन्हें पश्चात्ताप करने का मौका दो। जिन नकली अगुआओं को बरखास्त किया गया है, उन्हें उनकी क्षमताओं और वे जो कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं, उसके आधार पर उनके भिन्न काम करने की व्यवस्था करो, लेकिन उन्हें अब कलीसिया के अगुआ के रूप में सेवा करने की अनुमति नहीं होगी; ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के मामले में जिन्हें इसलिए बरखास्त किया गया है कि उनमें काबिलियत बहुत कम है और वे कोई भी काम करने में अक्षम हैं, उनकी क्षमताओं और वे जो कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं, उस के आधार पर उनके भिन्न काम करने की व्यवस्था करो, लेकिन उन्हें अब अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में पदोन्नत नहीं किया जा सकता। ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? उन्हें पहले ही आजमाया जा चुका है। उन्हें बेनकाब किया गया था और यह पहले से ही स्पष्ट है कि ऐसे लोगों की काबिलियत और कार्य-क्षमता ऐसी है जो उन्हें अगुआ बनने के लिए अयोग्य ठहराती है। यदि वे अगुआ बनने के योग्य नहीं हैं तो क्या वे अन्य कर्तव्य करने में असमर्थ हैं? जरूरी नहीं। उनकी खराब काबिलियत उन्हें अगुआ बनने के अयोग्य बनाती है, लेकिन वे दूसरे कर्तव्य कर सकते हैं। ऐसे लोगों को बरखास्त किए जाने के बाद वे जो भी करने लायक हैं, कर सकते हैं। उन्हें कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए; भविष्य में उनका आध्यात्मिक कद बढ़ने पर उन्हें फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ लोगों को इसलिए बरखास्त किया जाता है कि वे युवा हैं और उन्हें जीवन का कोई अनुभव नहीं है और उनके पास कार्य अनुभव की भी कमी है, इसलिए वे कार्य करने में असमर्थ होते हैं और अंततः बरखास्त कर दिए जाते हैं। इस तरह के लोगों को सेवामुक्त करने में कुछ छूट होती है। अगर उनकी मानवता मानक के अनुसार है और उनमें पर्याप्त काबिलियत है तो पदावनत करने के बाद उनका उपयोग किया जा सकता है, या उन्हें उनके लायक किसी दूसरे काम पर लगाया जा सकता है। उनकी सत्य की समझ स्पष्ट हो जाने पर और कलीसिया के काम से थोड़ा-बहुत परिचित हो लेने और अनुभव कर लेने पर ऐसे लोगों को उनकी क्षमता के आधार पर फिर से पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है। यदि उनकी मानवता मानक के अनुसार है, लेकिन काबिलियत बहुत खराब है तो उन्हें विकसित करने का कोई फायदा नहीं है और उन्हें बिल्कुल विकसित नहीं किया जा सकता और काम पर नहीं रखा जा सकता।
बरखास्त किए गए लोगों में दो तरह के लोग होते हैं जिन्हें बिल्कुल भी पदोन्नत या फिर से तैयार नहीं किया जा सकता। एक वे जो मसीह-विरोधी हैं और दूसरे वे जिनकी काबिलियत बहुत कम है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें मसीह-विरोधी नहीं माना जाता, लेकिन वे केवल खराब मानवता वाले, स्वार्थी और कपटी होते हैं, उनमें से कुछ लोग आलसी होते हैं, देह सुख का लालच करते हैं और कठिनाई सहन करने में असमर्थ होते हैं। भले ही ऐसे लोग अत्यधिक अच्छी काबिलियत वाले हों, उन्हें दोबारा से पदोन्नत नहीं किया जा सकता। अगर उनमें थोड़ी काबिलियत है तो उनके लिए उपयुक्त व्यवस्था किए जाने तक उन्हें वह करने दो जो करने में वे सक्षम हों; संक्षेप में, उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में पदोन्नत न करो। काबिलियत होने और कार्यक्षमता होने से बढ़कर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सत्य को समझने, कलीसिया के प्रति जिम्मेदारी का बोझ उठाने, कड़ी मेहनत करने और पीड़ा सहने में सक्षम होना चाहिए, उन्हें लगन से मेहनत करने वाला होना चाहिए और आलसी नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें अपेक्षाकृत ईमानदार और निश्छल होना चाहिए। तुम कपटी लोगों का चयन बिल्कुल भी नहीं कर सकते। जो लोग बहुत कुटिल और कपटी होते हैं, वे हमेशा भाई-बहनों, अपने उच्च अधिकारियों और परमेश्वर के घर के विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते हैं। उनका समय केवल कुटिल विचारों में ही बीतता है। ऐसे किसी व्यक्ति से निपटते समय तुम्हें हमेशा अनुमान लगाना चाहिए कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं, तुम्हें यह पूछते रहना चाहिए कि वे हाल ही में वास्तव में क्या करते रहे हैं और तुम्हें हमेशा उन पर नजर रखनी चाहिए। उन्हें काम पर लगाना बहुत थकाऊ और बहुत चिंताजनक काम होता है। यदि इस तरह के व्यक्ति को कर्तव्य करने के लिए पदोन्नत किया जाता है तो भले ही वह थोड़ा धर्म-सिद्धांत समझता हो, वह उसका अभ्यास नहीं करेगा और वह अपने हर काम के बदले सभी तरह के लाभों की अपेक्षा करेगा। ऐसे लोगों का उपयोग करना बहुत चिंताजनक और समस्यामूलक होता है, इसलिए ऐसे लोगों को पदोन्नत नहीं किया जा सकता। इसलिए जब मसीह-विरोधियों की बात आती है तो जो बहुत खराब काबिलियत वाले हैं, जिनकी मानवता खराब है, जो आलसी हैं, देह सुख की लालसा रखते हैं, कठिनाइयाँ नहीं झेल सकते और जो अत्यधिक कुटिल और कपटी हैं—उन लोगों का जब खुलासा हो चुका होता है और उन्हें काम पर रखने के बाद बरखास्त कर दिया जाता है तो उन्हें दूसरी बार पदोन्नत न करो; जब एक बार उनका पूरी तरह से पता चल जाए तो उनका दोबारा गलत उपयोग न करो। कुछ लोग कह सकते हैं, “इस व्यक्ति को इससे पहले मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया गया था। हमने देखा है कि वह कुछ समय से अच्छा कार्य कर रहा है, वह भाई-बहनों से सामान्य रूप से बातचीत कर पाता है और अब दूसरों को बाधित नहीं करता है। क्या उसे पदोन्नत किया जा सकता है?” इतनी जल्दबाजी मत करो—जैसे ही उसे पदोन्नत किया जाएगा और वह रुतबा प्राप्त कर लेगा, उसकी मसीह-विरोधी प्रकृति उजागर हो जाएगी। दूसरे लोग कह सकते हैं : “पहले इस व्यक्ति की काबिलियत बहुत ही खराब थी; जब उसे दो लोगों के कार्य की निगरानी करने के लिए कहा गया था तो उसे नहीं पता था कि कार्यों को कैसे आवंटित करना है और अगर दो चीजें एक साथ घटती थीं तो उसे नहीं पता होता था कि उचित व्यवस्था कैसे करनी है। अब जब उसकी उम्र थोड़ी और बढ़ गई है तो वह इन चीजों में बेहतर हो गया होगा, है ना?” क्या इस दावे में कोई औचित्य है? (नहीं, इसमें नहीं है।) जब दो चीजें एक ही समय में घटित होती हैं तो वह व्यक्ति भ्रमित हो जाता है और उसे नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे सँभालना है। वह किसी व्यक्ति या चीज की असलियत समझ नहीं पाता है। उसकी काबिलियत इतनी खराब है कि उसमें कोई कार्यक्षमता या समझने की क्षमता नहीं है। ऐसे व्यक्ति को फिर से अगुआ के रूप में पदोन्नत नहीं किया जा सकता है। यह उम्र का मामला नहीं है। खराब काबिलियत वाले लोगों की काबिलियत अस्सी वर्ष की उम्र में भी खराब ही रहेगी। यह लोगों की कल्पना जैसा नहीं है कि जैसे-जैसे किसी की उम्र बढ़ती है और वह ज्यादा अनुभव हासिल करता है, वह सब कुछ समझ सकता है—यह ऐसा नहीं है। उसके पास बस जीवन का कुछ अनुभव होगा, लेकिन जीवन का अनुभव काबिलियत के तुल्य नहीं है। कोई चाहे कितनी भी चीजों का अनुभव कर ले या कितने भी सबक सीख ले, इसका यह अर्थ नहीं है कि उसकी काबिलियत में सुधार होगा।
अगर किसी की मानवता बहुत ही स्वार्थी, बहुत ही धोखेबाज और बहुत ही दुष्ट है, वह चालाकियों से भरा हुआ है और वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है तो क्या इस किस्म का व्यक्ति बदल सकता है? उसे इन्हीं कारणों से बरखास्त किया गया था; अब जब दस वर्ष गुजर चुके हैं और उसने कई धर्मोपदेश सुन लिए हैं—क्या अब उसकी मानवता स्वार्थी, कुटिल और धोखेबाज नहीं है? मैं तुम्हें बताता हूँ : इस किस्म का व्यक्ति नहीं बदलेगा, वह अगले 20 वर्षों बाद भी ऐसा ही रहेगा। इसलिए, अगर तुम्हारी उससे 20 वर्षों बाद फिर से मुलाकात हुई और तुमने उससे पूछा कि क्या वह अब भी उतना ही स्वार्थी और धोखेबाज है तो वह खुद भी इस बात को स्वीकार करेगा। खराब मानवता वाले लोग क्यों नहीं बदलेंगे? क्या वे बदल सकते हैं? मान लो कि वे बदल सकते हैं तो ऐसा हो पाने के लिए आधार और शर्तें क्या होनी चाहिए? उन्हें सत्य स्वीकार करने में समर्थ होना चाहिए। खराब मानवता वाले लोग सत्य स्वीकार नहीं करते हैं, वे अंदर से सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं, इन्हें नापसंद करते हैं, इनका मजाक उड़ाते हैं और इनसे शत्रुता रखते हैं—वे बदल ही नहीं सकते हैं। इसलिए चाहे कितने भी वर्ष क्यों ना गुजर चुके हों, उन्हें पदोन्नत मत करो, क्योंकि वे बदलने में असमर्थ हैं। हो सकता है कि 20 वर्षों के समय में वे और ज्यादा शातिर बनना सीख जाएँगे और सुखद लगने वाली और दूसरों को धोखा देने वाली चीजें कहने में और बेहतर हो जाएँगे। लेकिन अगर तुम इन लोगों से मेलजोल रखते हो और उनके कार्यों की जाँच-परख करते हो तो तुम्हें एक सच्चाई का पता चलेगा, जो यह है कि वे बिल्कुल भी नहीं बदले हैं। तुम्हारा मानना है कि इतने वर्ष गुजर जाने और उन्होंने जो इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं और इतने लंबे समय से परमेश्वर के घर में कर्तव्य किए हैं, उसके बाद उन्हें बदल जाना चाहिए था—तुम गलत हो! वे नहीं बदलेंगे। क्यों? उन्होंने इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं और परमेश्वर के इतने सारे वचन पढ़े हैं, लेकिन वे एक वाक्य भी स्वीकार नहीं करते हैं या उसका अभ्यास नहीं करते हैं, इसलिए वे रत्ती भर भी नहीं बदले हैं, उनके लिए बदलना असंभव है। एक बार जब ऐसे लोग बेनकाब हो जाते हैं और उन्हें बरखास्त कर दिया जाता है तो फिर से उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है और अगर तुम उनका उपयोग करते हो तो तुम परमेश्वर के घर और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा रहे हो। अगर तुम्हें यकीन नहीं है तो बस यह देखो कि वे कैसे कार्य करते हैं और देखो कि जब उनके अपने हितों का टकराव परमेश्वर के घर के हितों से होता है तो वे किसके हितों का बचाव करते हैं; वे अपने हितों का त्याग बिल्कुल नहीं करेंगे और परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए भरसक प्रयास नहीं करेंगे। इस लिहाज से देखते हुए वे भरोसेमंद नहीं हैं और वे परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और उपयोग किए जाने के योग्य नहीं हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों की किस्मत में उपयोग नहीं किया जाना लिखा है। क्या जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते हैं, वे फिर भी बदल सकते हैं? यह संभव नहीं है और यह बेवकूफों का सपना है!
जहाँ तक उन लोगों की बात है जो आलसी हैं, दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं और जरा-सा कष्ट सहन करने में भी असमर्थ हैं, वे तो बदलने में और भी कम समर्थ हैं। अगुआ के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वे कोई कष्ट नहीं सहते हैं, वे उन कष्टों को भी नहीं सहते हैं जो आम भाई-बहन तक सहने में समर्थ हैं। अपना कर्तव्य करते समय वे सिर्फ खानापूर्ति करते हैं—आधे-अधूरे मन से सभाएँ आयोजित करते हैं और कुछ धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, फिर अपना खयाल ठीक से रखने के लिए सोने चले जाते हैं। अगर रात को सोने में उन्हें थोड़ी-सी भी देर हो जाती है तो सुबह जब भाई-बहन उठ रहे होते हैं, वे तब भी गहरी नींद में पड़े होते हैं। वे जरा-सा भी थकने या जरा-सा भी व्यस्त रहने या जरा-सा भी कष्ट सहने के इच्छुक नहीं हैं। वे कोई कीमत नहीं चुकाते हैं और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ उन्हें जैसे ही अच्छी खाने-पीने की चीजें दिखाई देती हैं, वे इतने खुश हो जाते हैं कि वे बाकी सब कुछ भूल जाते हैं, वे कहीं भी नहीं जाते हैं, बस वहीं रह जाते हैं, खाते-पीते रहते हैं, मौज-मस्ती करते रहते हैं और कोई भी कार्य नहीं करते हैं। ऊपरवाले द्वारा काट-छाँट किए जाने पर वे नहीं सुनते हैं, ना ही वे भाई-बहनों की चेतावनी और खुलासे को स्वीकार करते हैं। वे बिना कोई कीमत चुकाए और बिना अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी किए या बिना अपना कर्तव्य निभाए, यथासंभव सबसे आरामदायक तरीके से जीवन जीना चुनते हैं और इस तरह वे निकम्मे बन जाते हैं। क्या ऐसे लोग बदलने के काबिल हैं? इस किस्म के लोग बहुत ही आलसी होते हैं, वे दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं; वे बदल नहीं सकते हैं। वे अभी भी ऐसे ही हैं और भविष्य में भी ऐसे ही रहेंगे। कुछ लोग कह सकते हैं : “वह व्यक्ति बदल गया है, वह पिछले कुछ समय से अपने कार्य में बहुत मेहनत कर रहा है।” इतनी जल्दबाजी मत करो। अगर तुम उसे अगुआ के रूप में पदोन्नत कर दोगे तो वह अपने पुराने तरीकों पर लौट आएगा—वह ऐसा ही है। वह बस एक जुआरी की तरह है, जो पैसे खत्म हो जाने पर भी जुआ खेलता रहेगा, भले ही उसे पैसे उधार लेने पड़ें, अपना घर बेचना पड़े, या यहाँ तक कि अपनी पत्नी और बच्चों को भी बेचना पड़े। अगर वह थोड़े समय से जुआ नहीं खेल रहा है तो इसका कारण यह हो सकता है कि जुए का वह अड्डा बंद हो गया है और जुआ खेलने के लिए कोई और जगह नहीं है, या क्योंकि उसके सभी जुआरी दोस्त पकड़े गए हैं और अब उसके साथ जुआ खेलने के लिए कोई नहीं है, या क्योंकि उसने अपनी बिकने लायक सारी चीजें बेच दी हैं और उसके पास जुआ खेलने के लिए बिल्कुल पैसे नहीं बचे हैं। एक बार जब उसके हाथ में पैसे आ जाएँगे तो वह फिर से जुआ खेलना शुरू कर देगा और छोड़ नहीं पाएगा—वह बस ऐसा ही है। इसी तरह, जो लोग आलसी हैं और दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं, वे भी बदलने में असमर्थ हैं। एक बार जब वे कुछ रुतबा हासिल कर लेते हैं तो वे फौरन अपने मूल रूप में लौट आते हैं और उनके असली रंग उजागर हो जाते हैं। जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता है तो कोई भी उनके बारे में ऊँची राय नहीं रखता है, कोई भी उनकी सेवा नहीं करता है और अगर वे कुछ नहीं करते हैं तो उन्हें बहिष्कृत कर देना चाहिए, क्योंकि कलीसिया निठल्ले लोगों का समर्थन नहीं करती है, इसलिए उनके पास बेमन से कुछ चीजें करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। वे दूसरों से अलग तरीके से चीजें करते हैं। दूसरे लोग सक्रियता से खुद आगे बढ़कर चीजें करते हैं, जबकि वे उन्हें निष्क्रियता से करते हैं। वैसे तो बाहरी तौर पर कोई फर्क नहीं है, लेकिन सार में फर्क है। जब दूसरों के पास रुतबा होता है तो वे वही करते हैं जो उनसे अपेक्षित होता है और वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ होते हैं; एक बार जब इन लोगों को रुतबा मिल जाता है तो वे अपने रुतबे के लाभों में लिप्त होने के मौके का फायदा उठाते हैं और कोई कार्य नहीं करते हैं और इस तरह से उनका आलसी और सुख-सुविधा का लोभी प्रकृति सार उजागर हो जाता है। इसलिए, इस किस्म के लोग किसी भी परिस्थिति में नहीं बदलेंगे और एक बार जब वे बेनकाब हो जाते हैं और बरखास्त कर दिए जाते हैं तो ऐसे लोगों को कभी भी पदोन्नत नहीं करना चाहिए और उनका फिर से उपयोग नहीं करना चाहिए—यही सिद्धांत है।
जब अलग-अलग परिस्थितियों वाले लोगों की बात आती है तो उन्हें पदोन्नत करने और उनका उपयोग करने के लिए ये सिद्धांत हैं। इस बारे में न्यूनतम मानक यह है कि वे बिना कोई विघ्न उत्पन्न किए परमेश्वर के घर में प्रयास करने और सेवा प्रदान करने में समर्थ हों; ऐसे में, वे परमेश्वर के घर में कर्तव्य कर सकते हैं। अगर वे इस न्यूनतम मानक को भी पूरा नहीं कर पाते हैं तो उनकी मानवता और शक्तियाँ चाहे कैसी भी हों, वे कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं और इस किस्म के लोगों को कर्तव्य करने वालों की श्रेणियों से हटा देना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति की मानवता दुर्भावनापूर्ण है और मसीह-विरोधी की मानवता के समान है तो एक बार यह पुष्टि हो जाने के बाद कि वह मसीह-विरोधी है, परमेश्वर का घर कभी भी उसका उपयोग नहीं करेगा और ना ही उसे पदोन्नत या विकसित करेगा। कुछ लोग कह सकते हैं : “क्या उसे सेवा करने देना ठीक है?” यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। अगर उसके द्वारा सेवा करने से परमेश्वर के घर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और उससे परमेश्वर के घर के लिए प्रतिकूल परिणाम आ सकते हैं तो परमेश्वर का घर उसे सेवा करने का एक अवसर तक नहीं देगा। अगर उसे मालूम है कि वह खुद एक ऐसा कुकर्मी या मसीह-विरोधी है जिसे बहिष्कृत कर दिया गया है, लेकिन वह सेवा करने का इच्छुक है, और चीजों को वैसे ही करेगा जैसे कलीसिया उसके लिए उन्हें करने की व्यवस्था करती है और वह परमेश्वर के घर के किसी भी हित को नुकसान पहुँचाए बिना शिष्ट तरीके से सेवा कर सकता है तो ऐसे में उसे बनाए रखा जा सकता है। अगर वह उचित रूप से सेवा करने में भी सफल नहीं हो पाता है और उसकी सेवा से भला कम और नुकसान ज्यादा होता है तो उसे सेवा करने का अवसर तक नहीं मिलेगा, अगर वह सेवा करता भी है तो भी परमेश्वर का घर उसका उपयोग नहीं करेगा, क्योंकि वह सेवा करने के भी योग्य नहीं है या उसके लिए कसौटियों पर खरा भी नहीं उतरता है। इसलिए इस किस्म के लोगों को वापस नहीं आना चाहिए—वे जहाँ जाना चाहते हैं, उन्हें जाने दो। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर परमेश्वर का घर मेरा उपयोग नहीं करता है तो मैं खुद सुसमाचार का प्रचार करूँगा और सुसमाचार प्रचार करके मुझे जो लोग प्राप्त होंगे, उन्हें मैं परमेश्वर के घर को सौंप दूँगा।” क्या यह ठीक होगा? (हाँ।) कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम उस व्यक्ति का उपयोग सेवा करने के लिए भी नहीं करोगे तो वह सुसमाचार का प्रचार करके प्राप्त लोगों को तुम्हें किस आधार पर देगा? उसे किस आधार पर तुम्हारे लिए सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए?” परमेश्वर का घर तरह-तरह के पहलुओं के कारण उनका उपयोग नहीं करता है। एक तो यह है कि वे लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। दूसरा यह है कि परमेश्वर का घर इस किस्म के लोगों का उपयोग करने की हिम्मत नहीं करता है, क्योंकि एक बार उनका उपयोग किया गया तो मुसीबत कभी समाप्त नहीं होगी। तो हमें उनके सुसमाचार का प्रचार करने के इच्छुक होने के इस मामले को कैसे समझाना चाहिए? सुसमाचार का प्रचार करने में वे जिसकी गवाही देते हैं वह परमेश्वर है और यह परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के कार्य के कारण ही है कि वे लोगों को प्राप्त करने में समर्थ हैं। वैसे तो ये लोग उस व्यक्ति द्वारा सुसमाचार का प्रचार करने के जरिए ही प्राप्त किए गए हैं, लेकिन इसका श्रेय किसी भी तरीके से उसे नहीं जाता है। ज्यादा-से-ज्यादा, यह बस एक व्यक्ति के रूप में उसके द्वारा अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना है। चाहे तुम एक मसीह-विरोधी या कुकर्मी हो, या चाहे तुम्हें बहिष्कृत या निष्कासित किया गया हो, एक व्यक्ति के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना एक ऐसी चीज है जो तुम्हें करनी ही चाहिए। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह एक ऐसी चीज है जो तुम्हें करनी ही चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से सत्यों की बहुत बड़ी आपूर्ति मिली है और यह परमेश्वर के कड़ी मेहनत वाले प्रयास भी हैं। परमेश्वर के घर ने इतने वर्षों तक तुम्हें सींचा है और तुम्हारा भरण-पोषण किया है, लेकिन क्या परमेश्वर तुमसे कुछ माँगता है? नहीं। परमेश्वर के घर द्वारा वितरित तरह-तरह की सभी किताबें मुफ्त हैं, किसी को भी एक पैसा तक खर्च नहीं करना पड़ता है। इसी तरह, शाश्वत जीवन का सच्चा तरीका और जीवन के वचन जो परमेश्वर लोगों को प्रदान करता है, मुफ्त हैं और परमेश्वर के घर के धर्मोपदेश और संगतियाँ सभी लोगों के सुनने के लिए मुफ्त हैं। इसलिए, चाहे तुम एक साधारण व्यक्ति हो या किसी खास समूह के सदस्य हो, तुम्हें परमेश्वर से मुफ्त में बहुत सारे सत्य मिले हैं, इसलिए यकीनन यह उचित ही है कि तुम, लोगों में परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के सुसमाचार का प्रसार करो और लोगों को परमेश्वर की मौजूदगी में लेकर आओ, है न? परमेश्वर ने मानवजाति को सभी सत्य प्रदान किए हैं; ऐसे महान प्रेम का प्रतिदान कर पाना किसकी सामर्थ्य में है? परमेश्वर का अनुग्रह, परमेश्वर के वचन और परमेश्वर का जीवन अनमोल हैं और किसी भी मनुष्य में उनका प्रतिदान कर पाने की सामर्थ्य नहीं है! क्या मनुष्य का जीवन इतना कीमती है? क्या इसकी कीमत सत्य जितनी हो सकती है? इसलिए, किसी में भी परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह का प्रतिदान कर पाने की सामर्थ्य नहीं है और इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें कलीसिया द्वारा निष्कासित कर दिया गया है, बहिष्कृत कर दिया गया है और हटा दिया गया है—वे कोई अपवाद नहीं हैं। जब तक तुम्हारे पास थोड़ा जमीर, सूझ-बूझ और मानवता है, तब चाहे परमेश्वर का घर तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करे, तुम्हें परमेश्वर के वचनों के प्रसार और उसके कार्य की गवाही देने का अपना दायित्व पूरा करना ही चाहिए। यह लोगों की अनिवार्य जिम्मेदारी है। इसलिए, चाहे तुम कितने भी लोगों में परमेश्वर के वचनों और उसके सुसमाचार का प्रचार करो या तुम कितने भी लोगों को प्राप्त कर लो, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसके लिए तुम्हारी तारीफ की जाए। परमेश्वर ने इतने सारे सत्य अभिव्यक्त किए हैं और फिर भी तुम उन्हें सुनते नहीं हो या स्वीकार नहीं करते हो। यकीनन थोड़ी सेवा करना और दूसरों में सुसमाचार का प्रचार करना वही चीजें हैं जो तुम्हें करनी चाहिए, है ना? यह देखते हुए कि तुम आज इतनी दूर तक आ गए हो, क्या तुम्हें पश्चात्ताप नहीं करना चाहिए? क्या तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के अवसरों की तलाश नहीं करनी चाहिए? तुम्हें वास्तव में यही करना चाहिए! परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेश हैं और लोगों को बहिष्कृत करना, निष्कासित करना और हटा देना ऐसी चीजें हैं जो प्रशासनिक आदेशों और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार की जाती हैं—ये चीजें करना सही है। कुछ लोग कह सकते हैं, “जिन लोगों को बहिष्कृत या निष्कासित किया गया है, उनके द्वारा सुसमाचार का प्रचार करने से प्राप्त लोगों को कलीसिया में स्वीकार करना कुछ हद तक शर्मनाक है।” दरअसल, यह वही कर्तव्य है जिसे लोगों को करना चाहिए और इसमें शर्मिंदा होने वाली कोई बात नहीं है। सभी लोग सृजित प्राणी हैं। भले ही तुम्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया गया हो, कुकर्मी या मसीह-विरोधी के रूप में तुम्हारी निंदा की गई हो, या तुम हटाए जाने के लिए एक लक्ष्य हो, क्या फिर भी तुम सृजित प्राणी नहीं हो? एक बार जब तुम्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है तो क्या परमेश्वर तब भी तुम्हारा परमेश्वर नहीं रहता है? क्या परमेश्वर ने तुमसे जो वचन कहे हैं और परमेश्वर ने तुम्हें जो चीजें प्रदान की हैं, वे एक ही झटके में मिट जाती हैं? क्या उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है? उनका अस्तित्व अब भी है, बस यही है कि तुमने उन्हें सँजोया नहीं है। सभी धर्मांतरित लोग, चाहे किसी ने भी उन्हें धर्मांतरित किया हो, सृजित प्राणी हैं और उन्हें स्वयं सृष्टिकर्ता के सामने समर्पण करना चाहिए। इसलिए, अगर ये लोग जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया गया है, सुसमाचार का प्रचार करने के इच्छुक हैं तो हम उन्हें प्रतिबंधित नहीं करेंगे; लेकिन चाहे वे कैसे भी प्रचार करें, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांत और परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश अपरिवर्तनीय हैं और यह चीज कभी नहीं बदलेगी।
इन कई किस्म के लोगों में से जिन्हें बरखास्त कर दिया गया है, ज्यादातर लोगों के सही मायने में पश्चात्ताप करने की संभावना नहीं है और उनका फिर से उपयोग नहीं करना चाहिए। सिर्फ उन लोगों को पदोन्नत करने और उपयोग करने की गुंजाइश है जिन्हें इसलिए बरखास्त कर दिया गया था या जिनके कर्तव्यों में बदलाव इसलिए किया गया था क्योंकि उनके पास कार्य अनुभव नहीं था और इसलिए वे अस्थायी तौर पर अपना कार्य करने में असमर्थ थे। इस किस्म के लोग पर्याप्त काबिलियत वाले होते हैं और उनकी मानवता के साथ कोई बड़ी समस्या नहीं होती है, उनमें बस कुछ मामूली कमियाँ, बुराइयाँ या बुरी आदतें होती हैं जो उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली होती हैं—इनमें से कोई भी चीज बड़ी समस्या नहीं है। अगर परमेश्वर के घर को उनकी जरूरत है तो उन्हें सही समय पर फिर से पदोन्नत किया जा सकता है और उनका उपयोग किया जा सकता है; यह उचित है, क्योंकि वे कुकर्मी नहीं हैं और वे मसीह-विरोधी नहीं बनेंगे। उनकी काबिलियत पर्याप्त है, बस यही है कि वे लंबे समय से कार्य नहीं कर रहे थे और उनके पास कोई अनुभव नहीं था, इसलिए वे कार्य करने के लिए योग्य नहीं थे, जो कोई गंभीर समस्या नहीं है। अगर उन्हें इन कारणों से बरखास्त किया गया था, तो उनके पास भविष्य में विकसित होने की गुंजाइश है और वे बदल सकते हैं। जब तक किसी के पास कार्यक्षमता है, काबिलियत है और उसकी मानवता मानक के अनुरूप है, तब तक इस प्रकार के लोग जिस अवधि में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं और अपना कर्तव्य करते हैं, वे धीरे-धीरे बदल जाएँगे, उनकी मानवता बदल जाएगी, वे अपने जीवन प्रवेश में विकसित होंगे, उनके स्वभाव में कुछ संगत बदलाव होंगे और सत्य की उनकी समझ में कुछ प्रगति होगी। परिवेश, उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों और उनके व्यक्तिगत संकल्प के आधार पर, वे अलग-अलग मात्राओं में बदलेंगे और विकसित होंगे, इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस किस्म के लोगों को पदोन्नत किया जाना चाहिए और उनका उपयोग किया जाना चाहिए। आमतौर पर ये उन कई किस्म के लोगों को फिर से पदोन्नत करने और उनका उपयोग करने के सिद्धांत हैं जिन्हें इससे पहले बरखास्त किया जा चुका है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की सातवीं मद है “विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।” अभी-अभी हमारी संगति में, लोगों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने का अर्थ पहले ही स्पष्ट रूप से समझाया जा चुका है। जब तक किसी व्यक्ति को विकसित करने में थोड़ा-सा भी महत्व है और बशर्ते उसकी मानवता मानक स्तर की है, तब तक परमेश्वर का घर उसे अवसर प्रदान करेगा। जब तक कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और सकारात्मक चीजों से प्रेम करता है, तब तक परमेश्वर का घर उससे निराश नहीं होगा या उसे इतनी आसानी से नहीं हटाएगा। जब तक तुम्हारी मानवता और काबिलियत उन मानकों को पूरा करती है, जिन पर मैंने अभी-अभी चर्चा की, तब तक परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करने के लिए यकीनन तुम्हारे लिए जगह होगी, यकीनन तुम्हारा उपयोग समझदारी से किया जाएगा और तुम्हें अपनी क्षमता का उपयोग करने के लिए पर्याप्त जगह दी जाएगी। संक्षेप में, अगर तुम्हारे पास शक्तियाँ हैं और ऐसे किसी पेशे में विशेषज्ञता है जिसकी जरूरत कलीसिया के कार्य के लिए है तो परमेश्वर का घर यकीनन तुम्हें कोई उपयुक्त कर्तव्य करने देगा। लेकिन, अगर तुम्हारा कोई संकल्प या इच्छा नहीं है और तुम कुछ प्राप्त करने का प्रयास नहीं करना चाहते हो तो बस वही करो जो तुम कर सकते हो, कोई ऐसा कर्तव्य करो जिसे करना तुम्हारी क्षमता में है और इससे ज्यादा कुछ मत करो। अगर तुम्हारा संकल्प है, तुम कहते हो, “मैं ज्यादा सत्य समझना और प्राप्त करना चाहता हूँ, जितनी जल्दी हो सके, उद्धार के मार्ग पर चलना शुरू करना चाहता हूँ और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहता हूँ। मैं परमेश्वर के दायित्व के प्रति विचारशील होने का इच्छुक हूँ, परमेश्वर के घर में भारी दायित्व उठाने, दूसरों की तुलना में ज्यादा कष्ट सहने, ज्यादा मेहनत करने और दूसरों की तुलना में ज्यादा त्याग करने का इच्छुक हूँ” और अगर तुम हर लिहाज से उपयुक्त हो, लेकिन फिर भी कोई तुम्हारी सिफारिश नहीं करता है तो तुम भी खुद को पेश कर सकते हो। क्या यह उचित नहीं है? संक्षेप में, ये सब सभी किस्म के लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांत हैं, जिनका लक्ष्य लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में समर्थ बनाने के अलावा और कुछ नहीं है। सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? वे हैं सत्य समझना, कार्य की सभी अलग-अलग मदों को करते समय सत्य सिद्धांतों को समझना और जब भी तुम्हारे साथ कोई अनहोनी हो तो भ्रमित और हैरान-परेशान होने के बजाय, रोजमर्रा के जीवन में सभी किस्म के लोगों, घटनाओं और चीजों से व्यवहार करते समय संगत सत्यों का अभ्यास करने में समर्थ होना—यही लक्ष्य है। यही वह लक्ष्य है जिसे तय किया गया है, तुम लोगों को इसी की तरफ बढ़ना चाहिए!
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की सातवीं मद पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है। कुछ लोग कह सकते हैं, “तुमने अभी भी संगति पूरी नहीं की है, तुमने इस मद से संबंधित नकली अगुआओं को उजागर नहीं किया है।” मेरा जवाब होगा कि उन्हें उजागर करने की कोई जरूरत नहीं है। एक अर्थ में, नकली अगुआ खराब काबिलियत वाले होते हैं और वास्तविक कार्य करने में असमर्थ होते हैं; दूसरे अर्थ में, उनमें जमीर और सूझ-बूझ का अभाव होता है; वे कोई दायित्व नहीं उठाते हैं; किसी भी कार्य को दिल से नहीं करते हैं और यहाँ तक कि आसान कार्य को भी अच्छे-से नहीं कर पाते हैं। वे जब भी किसी पेचीदा समस्या या सत्य सिद्धांतों से जुड़ी किसी समस्या का सामना करते हैं तो वे उसे अलग से बिल्कुल भी पहचान नहीं पाते हैं और समस्या के सार को पहचान लेने की बात तो भूल ही जाओ। इसलिए, उन्हें उजागर करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर उन्हें उजागर कर भी दिया जाए तो भी वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे और यह शब्दों की बरबादी ही होगी। और तो और, उन्होंने जो भी चीजें की हैं, उनके बारे में बात करना घिनौना होगा और इससे लोग अंदर से पूरी तरह नाराज हो जाएँगे। इन नकली अगुआओं को इस तरह का महत्वपूर्ण कार्य सौंपना लोगों का उपयोग करने में एक गलती थी। अपना कार्य करने में असमर्थ होना उन्हें पहले से ही निठल्ला महसूस करवाता है और अगर वे उजागर किए जाते हैं और उनका गहन-विश्लेषण होता है तो उन्हें और ज्यादा दुःख होगा। इसलिए इन नकली अगुआओं को खुद अपनी तुलना करने दो और उन्हें जितना हो सके अपनी समस्याओं की जाँच करने दो। अगर तुम अपनी समस्याओं का पता लगा सकते हो तो देखो कि क्या तुम भविष्य में सुधार कर सकते हो या नहीं; अगर तुम उनका पता नहीं लगा सकते तो उन्हें जाँच करते रहने की जरूरत है और तुम इसका विश्लेषण करने और इसे सुलझाने के लिए अपने आसपास के लोगों से मदद माँग सकते हो। अगर दूसरे लोगों ने तुम्हारे साथ संगति की है और तुमने इसे पूरे दिल से किया है, लेकिन फिर भी तुम अपनी समस्याओं का पता नहीं लगा पा रहे हो और अब भी तुम्हें नहीं मालूम है कि उन्हें कैसे पहचाना जाए या उनका समाधान कैसे किया जाए तो तुम सच में नकली अगुआ हो और तुम्हें हटा देना चाहिए।
6 मार्च 2021
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