अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6) खंड तीन
कुछ विशेष प्रकार के लोगों से कैसे पेश आएँ
I. अपने उचित कार्य पर ध्यान न देने वाले लोगों से कैसे पेश आएँ
कुछ लोगों में कामचलाऊ मानवता होती है, उनमें शक्तियाँ होती हैं और तेज दिमाग होता है, वे सामान्य रूप से बोलते हैं, वे आमतौर पर बहुत आशावादी होते हैं और वे सक्रियता से खुद आगे बढ़कर अपना कर्तव्य करते हैं, लेकिन उनमें एक खोट होता है, जो यह है कि वे बहुत ही भावुक होते हैं। कलीसिया में परमेश्वर का अनुसरण और अपना कर्तव्य करने के दौरान, उन्हें लगातार अपने परिवार और रिश्तेदारों की याद सताती रहती है, या वे लगातार अपने छोड़े हुए मूल शहर में बढ़िया खाना खाने के बारे में सोचते रहते हैं और इसे नहीं खा पाने पर उन्हें दुःख होता है, जो फिर उनके कर्तव्य के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। एक और तरह का व्यक्ति होता है, जो एक जगह पर अकेले रहना पसंद करता है, जहाँ उसके पास अपनी निजी जगह हो। जब वह भाई-बहनों के साथ रहता है तो उसे लगता है कि कार्य की रफ्तार बहुत ही तेज है और कि उसके पास कोई निजी रहने की जगह नहीं है। वह लगातार तनाव महसूस करता है और भाई-बहनों के साथ रहते हुए हमेशा खुद को सीमित और असहज महसूस करता है। वह हमेशा चाहता है कि उसकी जो मर्जी हो वही करे और खुद को तुष्ट करने के लिए आजाद रहे। वह बाकी सभी के साथ मिलकर अपना कर्तव्य नहीं करना चाहता है और वह लगातार घर लौटने के बारे में सोचता रहता है। उसे हमेशा परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करना बुरा लगता है। वैसे तो भाई-बहनों के साथ घुलना-मिलना आसान है और परमेश्वर के घर में कोई भी उसे डराता-धमकाता नहीं है, फिर भी वह कार्य और विश्राम के कार्यक्रम पर बने रहने के लिए कुछ हद तक संघर्ष करता है—सुबह सभी के उठ जाने के बाद भी वह देर तक सोना चाहता है, लेकिन ऐसा करने में उसे शर्मिंदगी महसूस होती है और रात को जब बाकी सभी पहले से ही विश्राम कर रहे होते हैं तो वह सोने नहीं जाना चाहता है और हमेशा कुछ ऐसा करना चाहता है जिसमें उसकी दिलचस्पी हो। कभी-कभी वह वाकई कोई खास चीज खाना चाहता है, लेकिन वह चीज कैंटीन में उपलब्ध नहीं होती है और वह उसका अनुरोध करने में शर्मिंदगी महसूस करता है। कभी-कभी वह टहलने जाना चाहता है, लेकिन चूँकि कोई और व्यक्ति ऐसी इच्छा व्यक्त नहीं करता है, इसलिए वह खुद को तुष्ट करने की जुर्रत नहीं करता है। वह हमेशा सावधान और सतर्क बना रहता है और उसका मजाक उड़ाए जाने, उसे नीचा दिखाए जाने या बचकाना कहे जाने से डरता है। अगर वह अपना कर्तव्य ठीक से नहीं करता है तो कभी-कभी उसकी काट-छाँट कर दी जाती है। उसे लगता है कि वह हर रोज किसी अनहोनी के डर में जी रहा है, मानो वह कोई जोखिम भरा कार्य कर रहा हो और वह बहुत ही दुःखी रहता है। वह सोचता है, “मुझे याद है, जब मैं घर पर था तो मैं परिवार में सबसे छोटा था, आजाद और असंयमित था, ठीक एक नन्हे देवदूत की तरह। मैं कितना खुश था! अब मैं परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य कर रहा हूँ, मेरे पिछले व्यक्तित्व के चिन्ह कैसे गायब हो गए हैं? अब मैं जो चाहे वह नहीं कर सकता, जैसा मैं पहले किया करता था” और इसलिए वह इस किस्म का जीवन नहीं जीना चाहता है। लेकिन वह अपने अगुआ से इस बारे में बात करने की जुर्रत नहीं करता है और वह लगातार इन विचारों को अपने आसपास के लोगों को सुनाता रहता है, उसे हमेशा अपने घर की याद सताती है और रात को वह बिस्तर में चुपके से रोता रहता है। इस किस्म के लोगों के साथ क्या करना चाहिए? जो कोई भी इस मामले के बारे में जानता है, उसे बिना देरी किए इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए, अगुआ को तुरंत सुनिश्चित करना चाहिए कि यह रिपोर्ट सच्ची है या नहीं और अगर यह सच्ची है तो उस व्यक्ति को घर लौटने की अनुमति दी जा सकती है। वह परमेश्वर के घर की खाने-पीने की चीजों और आतिथ्य का आनंद ले रहा है, लेकिन फिर भी अपना कर्तव्य करने का अनिच्छुक है और वह हमेशा चिड़चिड़ा रहता है और असंतुष्ट और दुःखी महसूस करता है, इसलिए उसे जल्द से जल्द विदा कर दो। ऐसा नहीं है कि इस किस्म के लोगों में ये मनोदशाएँ थोड़ी देर के लिए ही होती हैं और फिर वे चीजों पर विचार करके उन्हें सुलझा लेते हैं—उनकी स्थिति ऐसी नहीं है। कुछ लोगों की व्यक्तिपरक इच्छा दृढ़ता से अपना कर्तव्य करने की होती है और वैसे तो उन्हें घर की याद सताती है, लेकिन उन्हें पता होता है कि यह किस किस्म की समस्या है और वे सत्य की तलाश करने और इसे सुलझाने में समर्थ हो जाते हैं। इन लोगों के मामले में, उन्हें जाने देने या उनके बारे में फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। हम उस स्थिति की बात कर रहे हैं जिसमें लोग 30 वर्ष की आयु में भी बच्चों की तरह कार्य करते हैं, कभी बड़े नहीं होते हैं और हमेशा अस्थिर बने रहते हैं। वे सिर्फ वही करते हैं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है और जब उनके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है तो वे मौज-मस्ती करने और बेमतलब के विषयों के बारे में गपशप करने के बारे में सोचते हैं और अपने उचित कार्य पर कभी ध्यान नहीं देना चाहते हैं। अविश्वासी लोग 30 वर्ष की आयु में स्थिर होने की बात करते हैं। स्थिर होने का अर्थ है अपने उचित कार्य पर ध्यान देना, नौकरी करने और अपना भरण-पोषण करने में समर्थ होना, अपने उचित सरोकार पर ध्यान देना जानना, मौज-मस्ती करने में कम समय बिताना और अपने उचित कार्य में देरी ना करना। “बच्चों की तरह व्यवहार करना” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कोई भी उचित कार्य स्वीकार करने में असमर्थ होना, हमेशा अपने मन को भटकने देने की इच्छा रखना और लगातार टहलने, इधर-उधर घूमने, आवारागर्दी करने, नाश्ता खाने, नाटकें देखने, बेमतलब की चीजों के बारे में गपशप करने, खेल खेलने और इंटरनेट पर अजीबोगरीब घटनाएँ और असामान्य कहानियाँ खोजने की इच्छा रखना। इसका अर्थ है कभी भी सभाओं में भाग लेने का इच्छुक नहीं होना, जब भी सभाएँ आयोजित हों तो हमेशा उनमें सोने की इच्छा रखना, सुस्ती छाते ही तुरंत सो जाने की इच्छा रखना और भूख लगते ही तुरंत खाने की इच्छा रखना, स्वेच्छाचारी होना और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देना। इस किस्म के लोगों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि उनमें बुरी मानवता है, बस यही है कि वे कभी बड़े नहीं होते हैं और हमेशा अपरिपक्व ही रहते हैं। वे 30 वर्ष की आयु में भी ऐसे ही हैं और 40 वर्ष की आयु में भी ऐसे ही रहेंगे; वे बदलने में असमर्थ हैं। अगर वे चले जाने का अनुरोध करते हैं और अब अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं तो इसे कैसे सँभालना चाहिए? परमेश्वर का घर उनसे रुकने का आग्रह नहीं करता है। तुम्हें उन्हें फौरन उत्तर दे देना चाहिए—उन्हें फौरन चले जाने दो और अविश्वासियों के बीच लौटने दो और उन्हें बता दो कि वे बिल्कुल भी यह नहीं कहें कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। क्या वे लोग जो अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, सत्य को प्राप्त कर सकते हैं? अगर तुम उनसे उम्मीद करते हो कि वे अपनी मानवता के लिहाज से परिपक्व हो जाएँगे और परमेश्वर के घर में कर्तव्य करने के जरिये अपने उचित कार्य पर ध्यान देना शुरू कर देंगे, कार्य के किसी महत्वपूर्ण मद को सँभालने की जिम्मेदारी उठा पाएँगे, फिर सत्य को समझेंगे और उसका अभ्यास करेंगे और मानव के समान जीवन जिएँगे तो तुम्हें इस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसे लोग तुम्हें किसी भी समूह में मिल जाएँगे। अविश्वासियों के पास इस तरह के लोगों के लिए एक उपनाम है : “प्रौढ़ बच्चे।” ऐसे लोग कभी भी अपने उचित कार्य पर ध्यान दिए बिना ही 60 वर्ष की आयु तक पहुँच सकते हैं। वे अनुचित रूप से बात करते हैं और चीजों को सँभालते हैं, वे हमेशा हँसते रहते हैं, मस्ती-मजाक करते रहते हैं और इधर-उधर उछल-कूद करते रहते हैं, वे किसी भी कार्य को गंभीरता से नहीं करते हैं और वे मौज-मस्ती करने पर खास तौर से आमादा रहते हैं। परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं कर सकता है।
क्या तुम लोगों को लगता है कि ये “प्रौढ़ बच्चे” बुरे हैं? क्या वे कुकर्मी हैं? (नहीं।) इनमें से कुछ लोग कुकर्मी नहीं हैं, वे काफी सीधे-सादे हैं और बुरे नहीं हैं। इनमें से कुछ लोग काफी रहमदिल होते हैं और दूसरों की मदद करने के इच्छुक होते हैं। लेकिन इन सभी में एक खोट है—वे स्वेच्छाचारी हैं, मौज-मस्ती पसंद करते हैं और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि एक महिला अपनी शादी के बाद घर का कोई कार्य करना नहीं सीखती है। वह सिर्फ तभी खाना पकाती है जब वह खुश होती है, लेकिन तब नहीं पकाती है जब वह दुःखी होती है—उसे हर समय मनाना पड़ता है। अगर कोई उससे कोई चीज करवाना चाहे तो उसे उससे बातचीत करनी पड़ती है और उस पर नजर रखनी पड़ती है। वह हमेशा बढ़िया पोशाक पहनना पसंद करती है ताकि खरीदारी करने बाहर जा सके, कपड़े और सौंदर्य-प्रसाधन खरीद सके और सौंदर्य उपचार करवा सके। घर लौटकर वह एक भी कार्य नहीं करती है और बस ताश और माहजोंग खेलना चाहती है। अगर तुम उससे पूछोगे कि एक पाउंड गोभी की कीमत कितनी है तो उसे नहीं पता होगा; अगर तुम उससे पूछोगे कि वह कल क्या खाने वाली है तो उसे यह भी नहीं पता होगा और अगर तुम उससे कुछ पकाने के लिए कहोगे तो वह उसका बुरा हाल कर देगी। तो वह किस चीज में सबसे कुशल है? वह इन चीजों में सबसे कुशल है, जैसे कि कौन सा भोजनालय सबसे बढ़िया खाना परोसता है, कौन सी दुकान में सबसे आधुनिक शैली के कपड़े मिलते हैं और कौन सी दुकान किफायती और कारगर सौंदर्य-प्रसाधन बेचती है लेकिन वह दूसरी चीजें नहीं समझती या सीखती है, जैसे कि अपना दिन कैसे गुजारना है, या वे कौशल जिनकी सामान्य मानव जीवन में जरूरत होती है, वगैरह। क्या वह ये चीजें इसलिए नहीं सीखती है क्योंकि उसकी काबिलियत अपर्याप्त है? नहीं, ऐसी बात नहीं है। वह जिन चीजों में कुशल है, उन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि उसमें काबिलियत तो है, लेकिन वह अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देती है। जब तक उसके पास खर्च करने के लिए पैसे होंगे, वह भोजनालय में खाने-पीने, और सौंदर्य-प्रसाधन और कपड़े खरीदने जाती रहेगी। अगर घर में बर्तनों की कमी है और उसे कुछ बर्तन खरीदने के लिए कहा जाता है तो वह कहेगी, “बाहर स्वादिष्ट भोजन बिक तो रहा है, मुझे इतना सब खरीदने की क्या जरूरत है?” अगर घर में वैक्यूम क्लीनर खराब हो गया है और उसे एक नया खरीदने हेतु पैसे बचाने के लिए एक पोशाक कम खरीदने के लिए कहा जाता है तो वह कहेगी, “भविष्य में जब मैं पैसे कमाऊँगी तो मैं घर की सफाई के लिए बस एक नौकरानी रख लूँगी, इसलिए वैक्यूम क्लीनर खरीदने की कोई जरूरत नहीं है।” आमतौर पर, अगर वह कोई खेल या माहजोंग नहीं खेल रही होती है तो वह आधुनिक कपड़ों की खरीदारी कर रही होती है और वह कभी घर की सफाई नहीं करती है। यह अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देना है, है ना? फिर कुछ ऐसे पुरुष भी होते हैं, जो जैसे ही कुछ पैसे कमा लेते हैं, उससे मोटरगाड़ी खरीद लेते हैं या उसे जुए में उड़ा देते हैं। अगर घर में कोई चीज टूट जाती है तो वे उसकी मरम्मत नहीं करते हैं। वे अपने दिन उचित तरीके से नहीं गुजारते हैं। उनके घर में रेफ्रिजरेटर काम नहीं करता है और ना ही वॉशिंग मशीन काम करती है, नालियाँ बंद रहती हैं, बारिश होने पर छत से पानी टपकता है और वे बहुत लंबे समय तक इन चीजों की मरम्मत नहीं करते हैं। तुम ऐसे पुरुषों के बारे में क्या सोचते हो? वे अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। चाहे वे पुरुष हों या महिला, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं कर सकता है जो बहुत ज्यादा स्वेच्छाचारी हैं और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं।
कुछ लोग माता-पिता के रूप में अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं और वे अपने बच्चों की उचित देखभाल करने से चूक जाते हैं। परिणामस्वरूप, उनके बच्चे उबलते पानी से जल जाते हैं या उन्हें चोटें और खरोंचें लग जाती है; कुछ बच्चों की नाक टूट जाती है, अन्य बच्चों के नितंब चूल्हे पर जल जाते हैं और कुछ अन्य बच्चों के गले उबलता पानी पीने के बाद जल जाते हैं। इस किस्म के लोग अपने किसी भी कार्य के प्रति चौकस नहीं होते हैं और वे कोई भी चीज उचित रूप से करने में असमर्थ होते हैं। वे अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, वे खिलवाड़ करते रहते हैं, वे स्वेच्छाचारी और मौज-मस्ती पसंद होते हैं और वे उन जिम्मेदारियों को उठाने में असमर्थ होते हैं जो एक व्यक्ति को उठानी चाहिए। माता-पिता के रूप में वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में असमर्थ होते हैं और वे लापरवाह होते हैं। तो, क्या ऐसे लोग वे जिम्मेदारियाँ उठा सकते हैं जो सामान्य लोगों को परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करते समय उठानी चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं। जो लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर वे कहते हैं कि अब वे अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं और घर लौटने की माँग करते हैं तो बस उन्हें फौरन जाने दो। किसी को भी रुकने के लिए उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए या उनसे आग्रह नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह समस्या उनकी प्रकृति से जुड़ी हुई है, यह कोई कभी-कभार होने वाली, अस्थायी अभिव्यक्ति नहीं है। जब ये लोग अपना कर्तव्य करने के लिए परमेश्वर के घर में आए थे तो वे गलतफहमियों से भरे हुए थे; उन्होंने सोचा था कि कर्तव्य करना और परमेश्वर का अनुसरण करना अदन की वाटिका में आने जैसा होगा, कनान की अच्छी भूमि में होने जैसा होगा। उन्होंने जिस जीवन की कल्पना की थी वह अद्भुत था, उसमें दिन भर खाने-पीने के लिए सुंदर-सुंदर चीजें थीं, आजादी थी, कोई अंकुश नहीं था और करने के लिए बिल्कुल कोई कार्य नहीं था। वे फुर्सतों से भरा मस्त जीवन जीना चाहते थे, लेकिन यह उनकी कल्पना से बिल्कुल अलग निकला। इन लोगों ने बहुत अनुभव किया है, उन्हें लगता है कि यहाँ सबकुछ उबाऊ और बेरंग है और वे यहाँ से चले जाना चाहते हैं, इसलिए उन्हें बिना देरी किए चले जाने दो, परमेश्वर का घर इन लोगों से रुकने का आग्रह नहीं करता है। परमेश्वर का घर लोगों पर दबाव नहीं डालता है और तुम लोगों को भी ऐसा नहीं करना चाहिए; यह सत्य का अभ्यास करना और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है। तुम्हें ऐसी चीजें करनी चाहिए जो सत्य सिद्धांतों के अनुसार हों, तुम्हें ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर के इरादों को समझता हो, बुद्धिमान व्यक्ति हो—भ्रमित व्यक्ति या विवेकहीन चापलूस मत बनो। जिस किस्म के लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं उन्हें इस तरीके से सँभालो—क्या इसे प्रेमहीनता या लोगों को पश्चात्ताप करने का मौका नहीं देना माना जा सकता है? (नहीं, ऐसा नहीं माना जा सकता है।) परमेश्वर सभी के प्रति निष्पक्ष है और परमेश्वर के घर को तुम्हें प्रोत्साहित करने, विकसित करने और उपयोग करने का अधिकार है। अगर तुम अपना कर्तव्य करने के अनिच्छुक हो और तुम कलीसिया से चले जाना चाहते हो तो यह पूरी तरह से तुम्हारी मर्जी है, इसलिए कलीसिया को तुम्हारे अनुरोध पर सहमत होना चाहिए, वह तुम्हें बिल्कुल भी मजबूर नहीं करेगा। यह नैतिकता के अनुरूप है, मानवता के अनुरूप है और यकीनन, यह खास तौर से सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यह एक बहुत ही उचित कार्रवाई योजना है! अगर कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य करता है और उसे यह थकाऊ और मुश्किल लगता है, अब उसे यह कर्तव्य करके खुशी नहीं होती है, परिणामस्वरूप वह अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहता है और परमेश्वर पर विश्वास रखना बंद करना चाहता है तो मैं आज तुम्हें इसका एक निश्चित उत्तर दूँगा, जो यह है कि परमेश्वर का घर इससे सहमत होगा और वह कभी भी तुम्हें रुकने के लिए मजबूर नहीं करेगा, या तुम्हारे लिए चीजों को मुश्किल नहीं बनाएगा। इसमें कोई कशमकश नहीं है और तुम्हें ऐसा महसूस करने की जरूरत नहीं है कि तुम उलझन में पड़ गए हो, या तुमने अपना मान-सम्मान खो दिया है। परमेश्वर के घर के लिए यह कोई मुद्दा है ही नहीं और ना ही परमेश्वर का घर तुमसे कोई माँग करता है। इतना ही नहीं, अगर तुम चले जाना चाहते हो तो परमेश्वर का घर तुम्हारी निंदा नहीं करेगा या तुम्हारे रास्ते में नहीं आएगा, क्योंकि तुमने यही मार्ग चुना है और परमेश्वर का घर सिर्फ तुम्हारी माँगे पूरी कर सकता है। क्या यह उचित कार्रवाई योजना है? (हाँ।)
मैंने अभी-अभी ऐसी कई स्थितियाँ सूचीबद्ध की हैं जिनमें लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। परमेश्वर का घर इन लोगों पर दबाव नहीं डालेगा; अगर वे अपना कर्तव्य करने के अनिच्छुक हैं या उन्हें कुछ व्यक्तिगत परेशानियाँ हैं और अब वे किसी कर्तव्य को नहीं करने का अनुरोध करते हैं तो परमेश्वर का घर सहमत होगा। वह अब उनका उपयोग नहीं करेगा और उन्हें कोई कर्तव्य नहीं करने देगा। ऐसे लोगों को इसी तरह से सँभाला जाता है और यह पूरी तरह से उचित कार्रवाई योजना है।
II. यहूदाओं से कैसे पेश आएँ
कुछ लोग बेहद डरपोक होते हैं और जब भी वे सुनते हैं कि किसी भाई या बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है तो वे खुद भी गिरफ्तार हो जाने से बेहद डरने लगते हैं। यह स्पष्ट है कि अगर वे गिरफ्तार हो भी जाते हैं तो उनके कलीसिया से गद्दारी करने का खतरा रहता है। ऐसे लोगों को कैसे सँभालना चाहिए? क्या ये लोग कुछ महत्वपूर्ण कर्तव्यों को करने के योग्य हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) कुछ लोग यह कह सकते हैं कि “कौन यह आश्वासन दे सकता है कि वे खुद यहूदा नहीं बनेंगे?” कोई भी यह आश्वासन नहीं दे सकता है कि अगर उन्हें यातना दी जाती है तो वे खुद कभी भी यहूदा नहीं बनेंगे। तो, परमेश्वर का घर ऐसे डरपोक लोगों का उपयोग क्यों नहीं करता है जो यहूदा बन सकते हैं? क्योंकि जो लोग जाहिर तौर पर डरपोक हैं, वे कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं और किसी भी समय विश्वासघात में लिप्त हो सकते हैं; अगर ऐसे लोगों का उपयोग कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य करने के लिए किया जाता है तो इस बात की बेहद संभावना रहती है कि चीजें गलत हो जाएँगी। यह एक सिद्धांत है जिसे मुख्य भूमि चीन के जोखिम भरे परिवेश में लोगों का चयन और उपयोग करते समय समझना चाहिए। यहाँ एक खास परिस्थिति है, जो यह है कि कुछ लोगों को कठोर, लंबे समय तक यातना दी गई जिसके कारण उनका जीवन खतरे में पड़ गया और अंत में, वे वास्तव में इसे और सहन नहीं कर सके, इसलिए वे कमजोरी के कारण यहूदा बन गए और उन्होंने कुछ मामूली चीजों में विश्वासघात किया। ऐसे लोगों को कोई नहीं पहचान सकता है और इन लोगों का अब भी उपयोग किया जा सकता है। लेकिन फिर ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पहले ही अपने लिए एक बचाव का रास्ता तैयार कर लिया है। उन्होंने इस बारे में बहुत देर तक और गहराई से सोचा है कि गिरफ्तारी के बाद बिना कोई यातना सहे रिहाई कैसे सुनिश्चित की जाए—सबसे पहले, यातना से बचना, दूसरा, सजा सुनाई जाने से बचना और तीसरा, जेल जाने से बचना। वे इसी तरीके से सोचते हैं। उनमें यह संकल्प नहीं है कि वे यहूदा बनने के बजाय कष्ट सहना या कैद किया जाना पसंद करेंगे। वे बिना यातना दिए भी विश्वासघात कर सकते हैं तो क्या यह कहा जा सकता है कि वे गिरफ्तार होने और कैद किए जाने से पहले से ही यहूदा हैं? (हाँ।) यही असली यहूदा हैं। क्या कलीसिया इस किस्म के लोगों का उपयोग करने की जुर्रत करती है? (नहीं, वह नहीं करती है।) अगर उन्हें पहचाना जा सकता है तो उनका बिल्कुल भी विकास और उपयोग नहीं करना चाहिए। आमतौर पर ये लोग खुद को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? वे बेहद डरपोक होते हैं। जैसे ही कुछ गलत हो जाता है, वे पहला मौका मिलते ही अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं और जब भी उन्हें थोड़ा सा भी जोखिम होता है तो वे अपना कर्तव्य छोड़ देते हैं और वहाँ से हवा हो जाते हैं। जब भी उनके सुनने में आता है कि परिवेश खतरनाक हो गया है तो वे छिपने के लिए एक सुरक्षित जगह ढूँढ़ लेते हैं; कोई उन्हें नहीं ढूँढ़ पाता है और वे किसी से संपर्क नहीं रखते हैं। दुबककर रहने का कार्य वे बहुत ही बढ़िया तरीके से करते हैं। उन्हें कलीसिया के कार्य में आ रही मुश्किलों की बिल्कुल परवाह नहीं होती है और वे किसी भी किस्म के संकटमय कार्य की उपेक्षा करने के काबिल होते हैं; वे अपनी सुरक्षा को बाकी सभी चीजों से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। और यही नहीं, खतरे का सामना होने पर, वे दूसरों को खुद को मुसीबत में डालने और जोखिम उठाने के लिए कहते हैं, जबकि वे अपनी रक्षा करते हैं। चाहे वे दूसरों को कितना भी खतरे में क्यों ना डाल दें, उन्हें लगता है कि अपनी सुरक्षा की खातिर ऐसा करना सार्थक और उचित है। साथ ही, खतरे का सामना होने पर, वे प्रार्थना करने के लिए जल्दी से परमेश्वर के सामने नहीं आते हैं, ना ही वे जल्दी से उन भाई-बहनों या कलीसिया की संपत्ति के स्थानांतरण की व्यवस्था करते हैं जिन्हें खतरा हो सकता है। बल्कि, वे पहले इस बारे में गहराई से सोचते हैं कि कैसे भाग निकलना है, कैसे छिपना है और कैसे खुद को खतरे से बाहर निकालना है। यहाँ तक कि वे अपने लिए बाहर निकलने की योजना भी तैयार रखते हैं—अगर वे गिरफ्तार हो गए तो सबसे पहले किससे गद्दारी करनी है, यातना से कैसे बचना है, जेल की सजा से कैसे बचना है और विपत्ति से कैसे बचना है। जब भी वे किसी किस्म की विपत्ति का सामना करते हैं तो वे बुरी तरह डर जाते हैं और उनमें रत्ती भर भी आस्था नहीं होती है। क्या इस किस्म के लोग खतरनाक नहीं होते हैं? अगर उन्हें जोखिम भरा कार्य करने के लिए कहा जाता है तो वे इसके बारे में लगातार बड़बड़ाते रहते हैं, वे डर जाते हैं और भाग जाने के बारे में लगातार सोचते रहते हैं और इसे स्वीकार करने के अनिच्छुक होते हैं। इस किस्म के लोग गिरफ्तार होने से पहले से ही यहूदा होने के लक्षण दिखाने लगते हैं। उनके गिरफ्तार होते ही यह सौ प्रतिशत निश्चित होता है कि वे कलीसिया से गद्दारी करेंगे। परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करने के दौरान, वे उस हर चीज में वास्तव में सक्रिय होते हैं जो उन्हें जोखिम में डाले बिना सुर्खियों में ले आती है; लेकिन जब जोखिम लेने की बात आती है तो वे पीछे हट जाते हैं और अगर तुम उनसे कोई जोखिम भरी चीज करने के लिए कहोगे तो वे उसे नहीं करेंगे, वे उस जिम्मेदारी को बिल्कुल नहीं उठाएँगे। जैसे ही वे कहीं खतरे के बारे में सुनते हैं, मिसाल के तौर पर, कि बड़ा लाल अजगर गिरफ्तारियाँ कर रहा है, या कि कुछ विश्वासियों को पकड़ लिया गया है तो वे सभाओं में शामिल होना बंद कर देते हैं, वे भाई-बहनों से संपर्क रखना बंद कर देते हैं और कोई भी उन्हें ढूँढ़ नहीं पाता है। अफवाहें शांत होने और सबकुछ ठीक हो जाने के बाद वे फिर से बाहर निकल आते हैं। क्या इस तरह के लोग भरोसेमंद हैं? क्या वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य कर सकते हैं? (नहीं।) वे क्यों नहीं कर सकते हैं? उनमें यहूदा नहीं बनने का संकल्प या इच्छा तक नहीं होती है; वे बस डरपोक, कमजोर और नाकारा होते हैं। इस किस्म के लोगों में एक स्पष्ट विशेषता होती है, जो यह है कि चाहे उनमें कितनी भी शक्तियाँ और योग्यताएँ क्यों ना हों, अगर परमेश्वर के घर ने उनका उपयोग किया तो वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए कभी भी पूरे दिल से समर्पित नहीं होंगे। क्या वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि वे ऐसा करने में असमर्थ हैं? नहीं, ऐसी बात नहीं है; अगर उनमें यह योग्यता हो तो भी वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव नहीं करेंगे। वे ठेठ यहूदा हैं। जब भी उन्हें अपना कर्तव्य करने के दौरान अविश्वासियों से निपटने की जरूरत होती है तो वे उनके साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते बनाए रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि अविश्वासियों के मन में उनके लिए उच्च सम्मान, आदर और सराहना बनी रहे। तो फिर, वे किस कीमत पर ये सबकुछ हासिल करते हैं? यह कीमत उनके व्यक्तिगत गौरव और हितों के बदले परमेश्वर के घर के हितों से गद्दारी करना है। इस किस्म का व्यक्ति गिरफ्तार होने से भी पहले से खासतौर से डरपोक होता है और गिरफ्तार होने के बाद उसका विश्वासघात करने में लिप्त होना सौ प्रतिशत निश्चित है। परमेश्वर का घर इस किस्म के लोगों—इन यहूदाओं—का बिल्कुल भी उपयोग नहीं कर सकता है और उसे उन्हें जल्द से जल्द हटा देना चाहिए।
जहाँ तक यहूदा लोगों की बात है, वैसे तो बाहर से वे बुरे व्यक्ति नहीं लगते हैं, लेकिन वास्तव में वे बेहद निम्न निष्ठा और शैतानी चरित्र वाले लोग होते हैं। वे चाहे कितना भी धर्मोपदेश सुन लें या परमेश्वर के वचन पढ़ लें, वे बस सत्य समझ ही नहीं पाते हैं और न ही उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना सबसे शर्मनाक, दुष्ट और द्वेषपूर्ण चीज है। जब उन चीजों की बात आती है जो दूसरों का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित करती हैं तो वे अपने प्रयासों को बेहतर करने के इच्छुक रहते हैं, लेकिन जब जोखिम भरी या चुनौतीपूर्ण चीजों की बात आती है तो वे दूसरों को उनका जिम्मा लेने और उनसे निपटने देते हैं। वे किस किस्म के लोग हैं? क्या वे बहुत ही निम्न निष्ठा वाले लोग नहीं हैं? कुछ लोग परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते हैं और ऐसा करते समय, उन्हें परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान रखना चाहिए और निष्पक्ष तथा उचित होना चाहिए। लेकिन, यहूदा किस्म के लोग ना सिर्फ परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में विफल रहते हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे परमेश्वर के घर की कीमत पर अविश्वासियों की मदद करते हैं, हर अवसर पर अविश्वासियों की माँगें पूरी करते हैं और वे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना पसंद करेंगे अगर इससे उन्हें अविश्वासियों को खुश करने में मदद मिलती हो। इसे जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करना कहते हैं और इसमें सद्गुण का अभाव है! क्या यह घिनौनी मानवता का होना नहीं है? यह यहूदा द्वारा प्रभु और उसके दोस्तों से विश्वासघात करने से कुछ अलग नहीं है। परमेश्वर का घर उन्हें करने के लिए जो भी कार्य सौंपता है, उसमें वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते हैं। जब उनसे कुछ खरीदने के लिए कहा जाता है तो वे कभी भी कई दुकानों में जाकर पूछताछ नहीं करते हैं, कई आपूर्तिकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित कीमतों, सामान की गुणवत्ता और बिक्री के बाद की सेवा की तुलना नहीं करते हैं, फिर उपलब्ध विकल्पों के फायदों और नुकसानों को सावधानी से नहीं तोलते हैं और उचित पुनरीक्षण नहीं करते, ताकि वे धोखा खाने से बच सकें, परमेश्वर के घर के कुछ पैसों की बचत करवा सकें और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचने से बचा सकें—वे ऐसा कभी नहीं करते हैं। अगर किसी भाई या बहन का यह सुझाव होता है कि जाँच-परखकर खरीददारी करना सबसे अच्छा रहेगा तो वे कहते हैं, “जाँच-परखकर खरीददारी करने की कोई जरूरत नहीं है; इस आपूर्तिकर्ता का कहना है कि उसका सामान सबसे बढ़िया है।” उस भाई या बहन के यह पूछने पर कि “तो क्या तुम उससे कीमत पर मोल-भाव कर सकते हो?” वे जवाब देते हैं, “कीमत पर मोल-भाव क्यों करना? उसने मुझे पहले ही बता दिया है कि कीमत क्या है और अगर मैंने उनके साथ सौदेबाजी करना शुरू कर दिया तो यह यकीनन शर्मनाक होगा और ऐसा लगेगा जैसे हमारे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं। परमेश्वर का घर तो दौलतमंद है, है ना?” किसी चीज की कीमत चाहे कितनी भी हो या उसकी गुणवत्ता चाहे कैसी भी हो, जब तक वे उसे उपयुक्त समझते हैं, तब तक वे उसे फौरन किसी से खरीदवा लेंगे और जो कोई भी यह खरीददारी करने में देरी करेगा, वे उसकी आलोचना करेंगे, उसे फटकारेंगे और यहाँ तक कि उसकी निंदा भी करेंगे। कोई भी उनके मुँह पर “नहीं” कहने की जुर्रत नहीं करता है और कोई भी अपनी राय पेश करने की जुर्रत नहीं करता है। चाहे वे कोई बड़ा सौदा कर रहे हों या परमेश्वर के घर के लिए कोई छोटा-मोटा कार्य कर रहे हों, उनके सिद्धांत क्या हैं? “परमेश्वर के घर को बस पैसे देने की जरूरत है और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है या नहीं, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैं इसी तरीके से कार्य पूरे करवाता हूँ; मुझे अविश्वासियों से अच्छे संबंध स्थापित करने हैं। अविश्वासियों की कही हर बात सही है और मैं इसका समर्थन करूँगा। मैं परमेश्वर के घर की जरूरतों के अनुसार मामलों को नहीं सँभालूँगा। अगर तुम मेरा उपयोग करना चाहते हो तो करो; अगर तुम मेरा उपयोग नहीं करना चाहते हो तो मत करो—यह तुम्हारी मर्जी है। मैं बस ऐसा ही हूँ!” क्या यह शैतानी प्रकृति नहीं है? ऐसे लोग अविश्वासी और छद्म-विश्वासी होते हैं। क्या परमेश्वर के घर के मामलों को सँभालने के लिए उनका उपयोग किया जा सकता है? इस किस्म के व्यक्ति के पास कुछ शिक्षा, शक्तियाँ और कुछ बाहरी क्षमताएँ होती हैं, वह बात करने में अच्छा होता है और कुछ काम-धंधे सँभाल सकता है। लेकिन वह परमेश्वर के घर के लिए चाहे कोई भी मामला सँभाले, वह अनिवार्य रूप से इसे लापरवाही और मनमर्जी से करता है जिससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है। वह लगातार परमेश्वर के घर को धोखा देता है, मामलों की सच्ची स्थिति को छिपाता है और एक बार जब वह चीजों को गड़बड़ कर देता है तो परमेश्वर के घर को उसकी गड़बड़ी ठीक करने के लिए किसी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यह परमेश्वर के घर के हितों का सौदा करने के लिए बाहरी लोगों के साथ मिलीभगत करने का एक खास उदाहरण है। यह यहूदा द्वारा प्रभु और उसके मित्रों से विश्वासघात करने से कैसे अलग है? जब इस किस्म के लोगों का उपयोग कोई कर्तव्य करने के लिए किया जाता है तो वे ना सिर्फ परमेश्वर के घर को सेवाएँ प्रदान करने में असमर्थ रहते हैं, बल्कि वे अपव्ययी और मनहूस भी साबित होते हैं। वे सेवाकर्मी होने के योग्य भी नहीं हैं; शुद्ध और सरल शब्दों में कहूँ तो वे अधम हैं! ऐसे लोग पूरी तरह से शैतान के नौकर हैं और बड़े लाल अजगर की संतानें हैं, जैसे ही वे बेनकाब हो जाते हैं, उन्हें फौरन बहिष्कृत और निष्कासित कर देना चाहिए। परमेश्वर के विश्वासी और परमेश्वर के घर के सदस्य के रूप में, वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने की अपनी जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर सकते हैं तो क्या उनके पास अब भी जमीर और विवेक है? वे पहरेदार कुत्ते से भी बदतर हैं!
यहूदा किस्म के लोगों के माथे पर “यहूदा” शब्द पलस्तर किया हुआ नहीं होता है, लेकिन उनके कार्यकलापों और व्यवहार की प्रकृति बिल्कुल यहूदा के समान ही होती है और तुम्हें इस किस्म के लोगों का कभी भी उपयोग नहीं करना चाहिए। “कभी उपयोग नहीं करने” से मेरा क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि उन पर महत्वपूर्ण मामलों के संबंध में कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। अगर यह कोई मामूली मामला है जो परमेश्वर के घर के हितों को बिल्कुल प्रभावित नहीं करता है तो उनका अस्थायी रूप से उपयोग करना ठीक है, लेकिन इस प्रकार का व्यक्ति, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के यकीनन अनुरूप नहीं है, क्योंकि वह पैदाइशी यहूदा है और वह सहज रूप से बुरा है। संक्षेप में, ये खतरनाक चरित्र वाले लोग हैं और इनका बिल्कुल भी उपयोग नहीं करना चाहिए। इस किस्म के लोगों का उपयोग तुम जितनी ज्यादा देर तक करोगे, उतना ही ज्यादा तुम असहज महसूस करोगे और भविष्य में इसके उतने ही ज्यादा दुष्परिणाम होंगे। इसलिए, अगर तुम्हें पहले से ही स्पष्ट रूप से यह दिखाई देता है कि वे यहूदा किस्म के लोग हैं तो तुम्हें बिल्कुल उनका उपयोग नहीं करना चाहिए—यह सब सच है। क्या उनके साथ इस तरीके से व्यवहार करना उचित है? हो सकता है कि कुछ लोग कहें : “उनके साथ इस तरीके से व्यवहार करना प्रेमपूर्ण नहीं है। उन्होंने किसी से भी विश्वासघात नहीं किया है; वे यहूदा कैसे हो सकते हैं?” क्या तुम्हें उनके किसी से विश्वासघात करने की प्रतीक्षा करने की जरूरत है? यहूदा ने खुद को कैसे अभिव्यक्त किया था? क्या इस बारे में कोई संकेत मिले थे कि वह प्रभु से विश्वासघात करने वाला है? (हाँ, उसने प्रभु यीशु के पैसों के थैले में से पैसे चुराए थे।) जो लोग परमेश्वर के घर के हितों का लगातार सौदा करते हैं, उनकी प्रकृति यहूदा के समान ही होती है, जिसने पैसों के थैले में से पैसे चुराए थे। जैसे ही इस तरह के लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है, वे विश्वासघात में लिप्त होते हैं और शैतान के सामने बिना कुछ भी छिपाए सारी जानकारी उगल देते हैं। इस किस्म के व्यक्ति में यहूदा का सार होता है। उसका सार पहले से ही स्पष्ट रूप से प्रकट और उजागर हो चुका है; अगर तुम फिर भी उसका उपयोग करते हो तो क्या तुम मुसीबत को दावत नहीं दे रहे हो? क्या यह जान-बूझकर परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाना नहीं है? कुछ लोग खुलेआम कहते हैं, “अगर कोई मेरी काट-छाँट करता है, या अगर कोई कुछ ऐसा करता है जिससे मेरे हितों को नुकसान पहुँचता है या जो अच्छी चीज मैं यहाँ चला रहा हूँ उसे बरबाद करता है तो उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा!” यह खास तौर से ऐसा मामला है कि इस किस्म के व्यक्ति में यहूदा का सार है; यह पूरी तरह से स्पष्ट है। वह खुद दूसरों को बताता है कि वह यहूदा है, इसलिए इस तरह के व्यक्ति का यकीनन उपयोग नहीं किया जा सकता है।
III. कलीसिया के दोस्तों से कैसे पेश आएँ
एक और तरह के लोग होते हैं जिन्हें न तो अच्छा माना जा सकता है और न ही बुरा और जो नाममात्र के विश्वासी होते हैं। अगर तुम उनसे कभी किसी मौके पर कुछ करने के लिए कहो तो वे उसे कर सकते हैं, लेकिन यदि तुम उनके लिए व्यवस्था नहीं करते तो वे आगे बढ़कर अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। जब भी उनके पास समय होता है, वे सभाओं में जाते हैं, लेकिन उनके निजी समय में इस बारे में कुछ पता नहीं चलता कि वे परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते, भजन सीखते, या प्रार्थना करते हैं या नहीं। परंतु वे परमेश्वर के घर और कलीसिया के प्रति अपेक्षाकृत मैत्रीपूर्ण होते हैं। अपेक्षाकृत मैत्रीपूर्ण होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अगर भाई-बहन उनसे कुछ करने के लिए कहते हैं तो वे उसके लिए तैयार हो जाते हैं; विश्वासी साथी होने के कारण वे अपनी क्षमता भर कुछ काम करवाने में मदद भी कर सकते हैं। किंतु, यदि उनसे खुद को किसी बड़े प्रयास में खपाने या किसी तरह की कीमत चुकाने के लिए कहा जाए तो वे ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे। अगर कोई भाई या बहन किसी परेशानी में है और उसे मदद की जरूरत है, जैसे कि कभी-कभार घर की देखभाल करना, खाना बनाना या कुछ छोटे-मोटे कामों में मदद करना—या वह व्यक्ति कोई विदेशी भाषा जानता हो तो भाई-बहनों को पत्र पढ़ने में मदद कर देना—ऐसे कामों में वे मदद कर सकते हैं और अपेक्षाकृत मित्रवत होते हैं। आमतौर पर वे दूसरों के साथ बहुत अच्छी तरह से घुल-मिल जाते हैं और लोगों के प्रति किसी तरह का दुर्भाव नहीं रखते, लेकिन वे नियमित रूप से सभाओं में भाग नहीं लेते और खुद कोई कर्तव्य लेने के लिए भी नहीं कहते, किसी महत्वपूर्ण या खतरनाक काम की जिम्मेदारी लेने की तो बात ही दूर है। अगर तुम उन्हें कोई खतरनाक काम करने के लिए कहो तो वे निश्चित रूप से तुमको यह कहते हुए मना कर देंगे, “मैं शांति पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करता हूँ तो मैं खतरनाक काम कैसे कर सकता हूँ? क्या यह मुसीबत मोल लेने जैसा नहीं होगा? मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता!” लेकिन अगर भाई-बहन या कलीसिया उन्हें कोई छोटा-मोटा काम करने के लिए कहते हैं तो वे बिल्कुल दोस्तों की तरह नाम भर को मदद कर सकते हैं। ऐसे प्रयास करना और मदद करना कर्तव्य नहीं कहा जा सकता, न ही इसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना कहा जा सकता है और इसे सत्य का अभ्यास करना तो नहीं ही कहा जा सकता; यह इतना भर है कि परमेश्वर के विश्वासियों के बारे में उनकी धारणा अनुकूल होती है और वे उनके प्रति काफी मैत्रीभाव रखते हैं और जरूरत पड़ने पर वे मदद करने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोगों को क्या नाम दिया जाता है? परमेश्वर का घर उन्हें कलीसिया का मित्र कहता है। कलीसिया के मित्र श्रेणी के लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? अगर उनके पास काबिलियत और कुछ क्षमताएँ हैं और वे कलीसिया की कुछ बाहरी मामलों को सँभालने में मदद कर सकते हैं तो वे सेवाकर्ता भी हैं, जो कलीसिया के मित्र भी हैं। ऐसा इसलिए कि इस तरह के लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने वालों के रूप में नहीं गिना जाता और परमेश्वर का घर उन्हें मान्यता नहीं देता। और यदि उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा मान्यता नहीं दी जाती तो क्या परमेश्वर उन्हें विश्वासियों के रूप में मान्यता दे सकता है? (नहीं।) इसलिए, इस तरह के लोगों को कभी भी पूर्णकालिक कर्तव्य निभाने वाले लोगों की श्रेणी में शामिल होने के लिए न कहो। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं : “कुछ लोग जब पहली बार विश्वास करना शुरू करते हैं तो उनमें बहुत कम आस्था होती है और वे मात्र कलीसिया के मित्र बनना चाहते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में बहुत सी बातें नहीं समझते तो वे कर्तव्य निभाने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं? वे पूरे दिल से खुद को खपाने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं?” हम उन लोगों की बात नहीं कर रहे हैं जिन्होंने तीन से पाँच महीने तक या एक साल तक परमेश्वर में विश्वास किया है, बल्कि उन लोगों की बात कर रहे हैं जिन्होंने नाम भर के लिए तीन, पाँच या दस साल तक परमेश्वर में विश्वास किया है। ऐसे लोग मौखिक रूप से चाहे जितना स्वीकारें कि परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कलीसिया ही सच्चा कलीसिया है, इससे यह साबित नहीं होता कि वे सच्चे विश्वासी हैं। इस तरह के लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनकी आस्था के माध्यमों के आधार पर हम उन्हें कलीसिया के मित्र कहते हैं। उन्हें भाई-बहनों जैसा न मानो—वे भाई या बहन नहीं हैं। ऐसे लोगों को पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसिया में शामिल न होने दो और उन्हें पूर्णकालिक कर्तव्य निभाने वालों की श्रेणी में शामिल न होने दो; परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं करता। कुछ लोग कह सकते हैं : “क्या तुम इस तरह के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हो? हालाँकि वे बाहर से निरुत्साह लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में वे अंदर से बहुत उत्साही हैं।” ईमानदार विश्वासियों के लिए पाँच या दस साल तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी निरुत्साहित रहना संभव नहीं है; इस तरह के लोगों का व्यवहार पहले से ही पूरी तरह से प्रकट कर देता है कि वे छद्म-विश्वासी हैं, परमेश्वर के वचनों के बाहर वाले और अविश्वासी लोग हैं। यदि तुम इतने पर भी उन्हें भाई या बहन कहते हो और अब भी कहते हो कि उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जा रहा है तो यह तुम्हारी धारणा और तुम्हारी भावनाएँ बोल रही हैं।
हमें इस किस्म के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए जो कलीसिया के मित्र हैं? वे गर्मजोशी से भरे हुए होते हैं और कुछ मामलों को सँभालने में मदद करने के इच्छुक होते हैं। अगर उनकी जरूरत पड़ जाती है तो तुम उन्हें कुछ मामले सँभालने का अवसर दे सकते हो। अगर वे कुछ कर सकते हैं तो उन्हें करने दो। जहाँ तक उन चीजों की बात है जिन्हें वे ठीक से नहीं कर पाते हैं और यहाँ तक कि गड़बड़ी भी कर सकते हैं, ऐसे कार्यों को यकीनन उन पर मत छोड़ो, ताकि कोई मुसीबत खड़ी ना हो—खुद को उनके अच्छे इरादों से मजबूर महसूस मत करने दो। वे सत्य नहीं समझते हैं और ना ही वे सिद्धांतों को समझते हैं। अगर ऐसे बाहरी मामले हैं जिन्हें वे सँभाल सकते हैं तो उन्हें सँभालने दो। लेकिन उन्हें कभी भी ऐसे बड़े मामले मत सँभालने दो जो कलीसिया के कार्य को प्रभावित करते हैं—ऐसी स्थिति में, उनके अच्छे इरादों और उत्साहपूर्ण मदद को ठुकरा देना चाहिए। जब तुम्हारी मुलाकात इस किस्म के व्यक्ति से हो तो उसके साथ सिर्फ ऊपरी तौर पर व्यवहार रखो और इसे वहीं छोड़ दो; उसके साथ गहरा रिश्ता मत बनाओ। तुम्हें उसके साथ गहरा रिश्ता क्यों नहीं बनाना चाहिए? क्योंकि वह सिर्फ कलीसिया का मित्र है और वह भाई या बहन बिल्कुल नहीं है। क्या ऐसे लोग, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) इसलिए, अगर इस किस्म का व्यक्ति सभाओं में शामिल नहीं होता है, धर्मोपदेश नहीं सुनता है, या कोई कर्तव्य नहीं करता है तो उसे आमंत्रित करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर वह परमेश्वर के वचनों को खाता-पीता नहीं है या प्रार्थना नहीं करता है, अगर उसके साथ अनहोनी होने पर वह सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करता है और अगर वह भाई-बहनों से जुड़ने का इच्छुक नहीं है तो उसका समर्थन करने या उसकी मदद करने की कोई जरूरत नहीं है। पाँच शब्द—उस पर ध्यान मत दो। ऐसे लोगों के साथ गहरा रिश्ता मत बनाओ जो कलीसिया के मित्र हैं और छद्म-विश्वासी हैं और उन पर ध्यान मत दो। उनके लिए फिक्रमंद होने की कोई जरूरत नहीं है और उनकी खैर-खबर पूछने की कोई जरूरत नहीं है। उनकी खैर-खबर क्यों नहीं पूछनी है? ऐसे लोगों की खैर-खबर पूछने का क्या फायदा है जिनका हमसे कोई लेना-देना नहीं है? यह फालतू है, है ना? क्या तुम लोग इस किस्म के लोगों पर ध्यान देना चाहते हो? शायद तुम लोगों को दूसरों के फटे में अपना पैर डालना अच्छा लगता है, तुम फिक्रमंद होना चाहते हो और यही सोचते रहते हो, “अभी वे किस हाल में होंगे? क्या वे शादीशुदा हैं या नहीं? क्या वे ठीक हैं? अभी वे क्या कार्य कर रहे हैं?” वे चाहे किसी भी हाल में हों, इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। इसके बारे में चिंता करने का क्या फायदा है? उन पर बिल्कुल ध्यान मत दो और उन पर टिप्पणी भी मत करो। कुछ लोग टिप्पणी करना पसंद करते हैं, जैसे कि : “देखा तुमने? वे परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास नहीं रखते हैं, वे हर रोज हिम्मत तोड़ने वाला और थकाऊ जीवन जीते हैं, वे हर समय बहुत ही थके हुए और कमजोर दिखते हैं,” या “देखा तुमने? वे परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए उनके पास शांति नहीं है और उनके परिवार में फिर से कुछ बुरा हुआ है।” यह सब बकवास है और यह फालतू है। वे अपना जीवन कैसे जीते हैं और वे अपने मार्ग पर कैसे चलते हैं, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। उनका जिक्र तक मत करो; तुम उस मार्ग पर नहीं हो जिस पर वे हैं। तुम खुद को ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खपाते हो और पूरा समय अपना कर्तव्य करते हो, तुम सिर्फ सत्य की प्राप्ति और उद्धार की प्राप्ति के लिए अनुसरण करना चाहते हो और परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे, तुम उसे संतुष्ट करने के लिए अपना भरसक प्रयास करना चाहते हो; उन लोगों के दिल में ये चीजें नहीं हैं। जब तुम बुरे रुझानों को देखते हो तो तुम्हारा मन नफरत से भर जाता है और तुम घिनौना महसूस करते हो, तुम्हें लगता है कि इस दुनिया में जीने से कोई खुशी नहीं मिलती है और सिर्फ परमेश्वर में विश्वास रखकर ही तुम खुशी पा सकते हो; जबकि वे तुम्हारे बिल्कुल विपरीत हैं : इससे यह साबित होता है कि वे उस मार्ग पर नहीं हैं जिस पर तुम हो। इस किस्म के व्यक्ति को सँभालने के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत यह है कि अगर वह मदद करने का इच्छुक है तो परमेश्वर का घर उसे एक अवसर दे सकता है जब तक कि कोई संभावित दुष्परिणाम ना हो। अगर परमेश्वर के घर को उसकी बिल्कुल जरूरत नहीं है और वह फिर भी मदद करने का इच्छुक है तो विनम्रता से मना कर देना सबसे अच्छा है—अपने लिए मुसीबत खड़ी मत करो। विश्वासी हर रोज सत्य पर संगति करते हैं और काट-छाँट किया जाना स्वीकार करते हैं, लेकिन फिर भी वे कार्य को लापरवाह तरीके से कर सकते हैं तो क्या कलीसिया के मित्र बदले में कोई मुआवजा लिए बिना मामलों को उचित रूप से सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।) मुझे बताओ, क्या यह लोगों के बारे में बुरा सोचना है? क्या यह लोगों को हद से ज्यादा नकारात्मक रोशनी में देखना है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यह सच्चाई के आधार पर बोलना है, लोगों के सार के आधार पर बोलना है। अज्ञानी मत बनो, मूर्ख मत बनो और कोई बेवकूफी वाली चीज मत करो। विश्वासियों को अभी भी काट-छाँट किए जाने, न्याय और ताड़नाओं, सख्ती से अनुशासित किए जाने, ताड़ना दिए जाने और उजागर किए जाने से गुजरना होगा और उसके बाद ही उनके कर्तव्य का निर्वहन धीरे-धीरे परमेश्वर के इरादे के अनुरूप हो पाएगा। कलीसिया का मित्र या अविश्वासी व्यक्ति किसी भी सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करता है और वह सिर्फ और सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचता है, इसलिए उसके द्वारा परमेश्वर के घर के लिए या भाई-बहनों के लिए मामले सँभाले जाने से क्या भला हो सकता है? यह पूरी तरह से असंभव है। इस किस्म के लोगों पर ध्यान नहीं देना बिल्कुल उचित है, है ना? (हाँ।) “उन पर ध्यान नहीं देने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर का घर उन्हें विश्वासी नहीं मानता है। वे जैसे चाहें वैसे परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के घर के कार्य और मामलों का उनसे बिल्कुल कोई लेना-देना नहीं है। वे मदद करने के इच्छुक हैं, लेकिन हमें चीजों की जाँच-परख करनी चाहिए और यह अनुमान लगाना चाहिए कि क्या वे ऐसा करने के लिए उपयुक्त हैं और अगर वे इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं तो हम उन्हें यह अवसर नहीं दे सकते हैं। मुझे बताओ, क्या इस तरह से कार्य करना सिद्धांतों के अनुसार है? क्या हमें ऐसे लोगों के साथ इस तरह से व्यवहार करने का अधिकार है? हाँ, बिल्कुल है!
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