अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6) खंड दो

जहाँ तक उन लोगों की बात है जिनमें पर्याप्त बुद्धि नहीं है, उनकी भी अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से करने की इच्छा होती है और वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करना चाहते हैं, लेकिन उनमें बुद्धिमत्ता का अभाव होता है, वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना नहीं जानते हैं और किसी भी मामले को नहीं समझ पाते हैं। किसी समय, वे लालच का सामना करते हैं और उसके शिकार हो जाते हैं, परिणामस्वरूप, वे कलीसिया के हितों से विश्वासघात करते हैं, भाई-बहनों से विश्वासघात करते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं। हमें इस प्रकार के बेवकूफ और अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों से कैसे निपटना चाहिए और कैसे व्यवहार करना चाहिए? जब ऐसे बेवकूफों की बात आती है जिनमें आध्यात्मिक समझ का अभाव है और जो अपर्याप्त बुद्धि के हैं तो उनमें से हर एक को बरखास्त कर देना चाहिए और फिर से नियुक्त करना चाहिए, इनमें से किसी का भी उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसे लोगों का उपयोग किया जाता है तो वे किसी भी समय परमेश्वर के घर के कार्य में मुसीबत खड़ी कर सकते हैं—इस प्रकार के बहुत सारे सबक हैं। आजकल, ऐसे कई लोग हैं जो बाहरी तौर पर कुछ हद तक मनुष्य जैसे होते हैं, लेकिन वे किसी भी सत्य वास्तविकता की संगति नहीं कर सकते हैं। वे कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आ रहे हैं और फिर भी वे इस स्थिति में रह गए हैं। इस समस्या की जड़ को स्पष्ट रूप से देखना चाहिए; यह बहुत ही खराब काबिलियत और आध्यात्मिक समझ के अभाव की समस्या है। ऐसे लोग चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों ना रख लें, वे नहीं बदलेंगे और उन्होंने जितने भी धर्मोपदेश सुने हैं, उनके बावजूद उन्होंने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की है। उन्हें सिर्फ एक तरफ रखा जा सकता है, ताकि वे अपनी क्षमता के अनुसार जिस भी मामूली तरीके से संभव हो, सेवा प्रदान करें। क्या उनसे निपटने का यह अच्छा तरीका है या नहीं? (यह अच्छा तरीका है।) कुछ अपर्याप्त बुद्धि वाले और शक्तिहीन लोग कई-कई वर्षों तक परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद भी उन्हें बिल्कुल भी नहीं समझ पाते हैं और कई-कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बावजूद उन्हें समझने से चूक जाते हैं। क्या अब भी ऐसे लोगों को परमेश्वर के वचनों की किताबें देना उपयोगी है? (नहीं, यह उपयोगी नहीं है।) अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों को परमेश्वर के वचनों की किताबें नहीं दीं जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना निरर्थक है और बरबादी के समान है, और उन्हें जो भी किताबें दी गई हैं, उन्हें फौरन वापस ले लेना चाहिए। यह उन्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के अधिकार से वंचित करने के लिए नहीं है, बल्कि इसलिए है क्योंकि उनकी बुद्धि काफी नहीं है। भले ही ऐसे लोग कलीसियाई जीवन जीते हों, लेकिन वे सत्य को नहीं समझ पाते हैं, फिर कर्तव्य करने की तो बात ही छोड़ दो। ऐसे लोग कचरा हैं, है न? तुम लोगों को कचरा सँभालने का तरीका पता होना चाहिए। कुछ लोग बाहर से काफी ईमानदार दिखते हैं, लेकिन उनकी बुद्धि इतनी भयंकर होती है कि वे कोई शारीरिक कार्य भी उचित रूप से नहीं कर पाते हैं और वे जो भी चीज करते हैं, उसे बरबाद कर देते हैं। अगर उनसे कोई कार्य करने के लिए कहा जाए तो वे यकीनन कोई ना कोई चीज खराब कर देंगे, इसलिए ऐसे लोगों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर तुम उनसे पानी की बाल्टी उठाने के लिए कहोगे तो वे तेल की बोतल गिरा देंगे। अगर तुम उनसे कटोरा धोने के लिए कहोगे तो वे तश्तरी तोड़ देंगे। अगर तुम उनसे खाना पकाने के लिए कहोगे तो वे या तो बहुत ज्यादा पकाएँगे या बहुत कम, या वह बहुत ही नमकीन होगा या बहुत ही फीका। वे पूरे दिल से इसे करते हैं, लेकिन चाहे जितनी कोशिश कर लें, वे उसे अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं और यहाँ तक कि शारीरिक श्रम भी बखूबी नहीं कर पाते हैं। क्या ऐसे लोगों का उपयोग किया जा सकता है? (नहीं।) तो अगर उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है तो उनसे क्या करने के लिए कहना चाहिए? क्या इसका यह अर्थ है कि उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति नहीं है और कि परमेश्वर का घर उन्हें नहीं चाहता है? नहीं, ऐसा नहीं है। बस उन्हें कोई कर्तव्य मत करने दो। अगर वे सामान्य मानव जीवन के दायरे में आने वाली चीजें उचित रूप से नहीं करते हैं—जिसमें रोजमर्रा की सामान्य बुद्धि वाली चीजें और दैनिक जीवन के नित्य मामले शामिल हैं—या वे इन चीजों को करने में असमर्थ हैं तो वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

वैसे तो कुछ लोगों में अच्छी मानवता या कोई खास प्रतिभा नहीं होती है, उन्हें अगुआ बनाने के लिए विकसित करना तो दूर की बात है, फिर भी वे कुछ शारीरिक कार्य कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, मुर्गियों और बत्तखों को खिलाना, सूअरों को खिलाना और भेड़ों की देखभाल करना ऐसे काम हैं जिन्हें वे अच्छी तरह से कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें कोई आसान कार्य दो, तो वे इसे अच्छी तरह से कर सकते हैं जब तक कि वे इसे पूरे दिल से करें और इस प्रकार ऐसे लोग परमेश्वर के घर में एक कर्तव्य कर सकते हैं। वैसे तो यह एक अकेला, आसान कार्य है, लेकिन वे इसे पूरे दिल से कर सकते हैं, एक जिम्मेदारी पूरी कर सकते हैं और वे परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार खुद से अपेक्षाएँ भी रख सकते हैं। कार्य चाहे बड़ा हो या छोटा, या कार्य महत्वपूर्ण हो या मामूली, पूरा विचार करने के बाद यह कह सकते हैं कि वे उन्हें सौंपा गया एक अकेला कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं। वे ना सिर्फ मुर्गियों को अच्छी तरह से खिला सकते हैं ताकि वे सामान्य रूप से अंडे दें, बल्कि वे मुर्गियों को भेड़ियों द्वारा उठा ले जाने से भी बचा सकते हैं। अगर वे भेड़िये की चीख सुनते हैं तो वे फौरन अपने पर्यवेक्षक को बता देंगे, वे परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को करने में सभी दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करेंगे। अगर वे इस तरह से कार्य करते हैं तो वे अपेक्षाकृत समर्पित हैं, यह उनकी जिम्मेदारी पूरी करने और किसी कार्य को अच्छी तरह से करने में समर्थ होने के रूप में गिना जाता है। जो कुछ बचा है—उनका निजी जीवन, वे कैसे आचरण करते हैं और चीजों से कैसे निपटते हैं—उसमें वे कुछ हद तक कम पड़ते हैं; मिसाल के तौर पर, उन्हें नहीं पता है कि दूसरों से कैसे बातचीत और गपशप करनी है, या दूसरों के साथ अपनी स्थिति पर कैसे संगति करनी है और कभी-कभी वे चिड़चिड़े हो जाते हैं। क्या इसे समस्या माना जाता है? क्या इन मुद्दों के कारण उनका उपयोग नहीं करना ठीक है? (नहीं, यह ठीक नहीं है।) कुछ लोगों की व्यक्तिगत स्वच्छता खराब होती है; वे कम से कम दस दिनों तक अपने बाल नहीं धोते हैं और आम तौर पर उनसे बदबू आती है। दूसरे लोग खाते-पीते समय बहुत शोर मचाते हैं, जबकि उनके आसपास के लोग आराम कर रहे होते हैं, वे दूसरे मौकों पर भी जोर-जोर से आवाजें करते हैं, जैसे कि चलते समय, दरवाजे बंद करते समय और बात करते समय—वे अशिक्षित होते हैं और उनमें शिष्टाचार नहीं होता है। ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? हर किसी को उनके प्रति उदार होना चाहिए, प्रेमपूर्ण दिल से उनकी मदद करनी चाहिए और उन्हें सहारा देना चाहिए, उनके साथ सामान्य मानवता के बारे में संगति करनी चाहिए और उन्हें धीरे-धीरे बदलने की अनुमति देनी चाहिए। चूँकि तुम सभी एक साथ हो, इसलिए तुम्हें घुलना-मिलना सीखना होगा। ऐसे लोगों का उपयोग तब तक किया जा सकता है जब तक कि वे अपना कार्य उचित रूप से करने में, और कार्य की जिम्मेदारी उठाने में समर्थ हैं और ऐसा कुछ नहीं करते हैं जिससे गड़बड़ी और विघ्न उत्पन्न हों। कुछ लोग होशियार होते हैं, उनमें अच्छी काबिलियत होती है, वे लगन से कार्य करते हैं, वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं और उन्हें सौंपे गए कार्यों को अच्छी तरह से कर सकते हैं, इसलिए उन्हें विकसित और उनका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इतनी ज्यादा खराब काबिलियत वाले होते हैं कि वे कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं; वे बस मुर्गियों को खिलाने का कार्य जैसे-तैसे कर पाते हैं, लेकिन अगर उन्हें बत्तखों और हंसों को भी खिलाना पड़े तो वे बुरी तरह से घबरा जाते हैं और उन्हें समझ नहीं आता है कि इसे कैसे करना है। ऐसा नहीं है कि वे इसे अच्छी तरह से नहीं करना चाहते हैं, लेकिन उनकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है। उनके दिमाग की अपनी सीमाएँ होती हैं, वे सिर्फ एक ही कार्य करना जानते हैं और अगर उन्हें करने के लिए एक और कार्य दे दिया जाए तो यह उनकी क्षमता से परे होता है। उन्हें योजना बनाना नहीं आता है, इसलिए वे बस चीजों को बिगाड़ देते हैं। ऐसे लोग एक समय में सिर्फ एक ही कार्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं। उन्हें एक से ज्यादा कार्य मत दो, क्योंकि वे उनकी जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होंगे। ऐसा मत सोचो कि अगर वे एक कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं तो यकीनन वे दो या तीन कार्य भी कर सकेंगे; जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो और यह उनकी काबिलियत पर निर्भर करता है। पहले उन्हें दो कार्य करने का प्रयास करने दो। अगर वे अच्छी काबिलियत वाले हैं और यह जिम्मेदारी उठा सकते हैं तो तुम उनके लिए इस तरीके से व्यवस्था कर सकते हो। अगर वे एक साथ दो कार्य अच्छी तरह से नहीं कर सकते हैं और गड़बड़ कर देते हैं तो इसका यह अर्थ है कि यह उनकी काबिलियत से परे है, इसलिए तुम्हें फौरन उनका दूसरा कार्य वापस ले लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि अवलोकन और परिवीक्षा के जरिये, तुम्हें पता चल गया है कि वे एक समय में सिर्फ एक ही कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं, कई जटिल कार्य करने के लिए नहीं और उनमें इसके लिए काबिलियत नहीं है। कुछ लोग अपेक्षाकृत होशियार और अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत वाले होते हैं और अगर तुम उन्हें करने के लिए कई कार्य देते हो तो वे उन्हें अच्छी तरह से कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम उन्हें खाना पकाने, चूजों को खिलाने और सब्जियों के बगीचे का प्रबंधन करने के लिए कहते हो तो वे हर रोज समय पर खाना तैयार करने में समर्थ होते हैं, अपने फुर्सत के पलों में सब्जियों के बगीचे को प्रबंधित करते हैं, बगीचे में ठीक समय पर पानी देते हैं, छँटाई करते हैं और समय पर चूजों को खिलाते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “चूँकि उनमें यह काबिलियत है, इसलिए क्यों ना उन्हें कलीसिया का कार्य भी सँभालने दिया जाए और कलीसियाई अगुआ बनने दिया जाए।” क्या यह ठीक होगा? वैसे तो वे कुछ शारीरिक कार्य और रोजमर्रा के कार्यों की जिम्मेदारी उठाने में समर्थ हैं, लेकिन जब कलीसियाई अगुआ बनने की बात आती है तो उसके लिए एक अलग मूल्यांकन की जरूरत पड़ती है; यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे इन आसान बाहरी कार्यों को करने के आधार पर मापा जा सके। वह इसलिए क्योंकि कलीसियाई अगुआ बनना कोई शारीरिक कार्य नहीं है, इसे नेतृत्व के सिद्धांतों से मापा जाना चाहिए। लेकिन, अगर इस व्यक्ति में कलीसियाई अगुआ बनने की काबिलियत और प्रतिभा है और उसकी मानवता काफी अच्छी है तो तुम्हारे लिए उसे बाहरी कार्य सौंपना अनुचित होगा; इसे लोगों का अनुचित तरीके से उपयोग करना कहते हैं। ज्यादा-से-ज्यादा, कलीसियाई अगुआ एक और ऐसा अंशकालिक कार्य कर सकते हैं जिसका संबंध रोजमर्रा की जिंदगी से है और जब भी वे व्यस्त नहीं हों, तब इस पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे सकते हैं—इससे उन्हें थकान नहीं होगी। जब मामूली, नित्य मामलों और इन शारीरिक कार्यों की बात आती है तो लोग इन्हें अपनी क्षमता के अनुसार जितने संभव हों उतने कर सकते हैं। क्या कोई ऐसा है जो इन सभी को सँभाल सकता है? क्या ऐसी काबिलियत वाला कोई है? (नहीं।) हो सकता है कि उनकी काबिलियत और क्षमता पर्याप्त हो, लेकिन एक चीज है जो उनके पास पर्याप्त नहीं होगी और वह है ऊर्जा। लोग नश्वर हैं, उनकी ऊर्जा सीमित है और वे जितने कार्यों की जिम्मेदारी उठा सकते हैं, उनकी संख्या भी सीमित है। ज्यादा ऊर्जा वाले लोग दिन में 12 घंटों तक कार्य कर सकते हैं, जबकि औसत ऊर्जा वाले लोग सामान्य रूप से आठ घंटे कार्य कर सकते हैं और कम ऊर्जा वाले लोग सिर्फ चार या पाँच घंटे ही कार्य कर सकते हैं। इसलिए, चाहे तुम किसी व्यक्ति का उपयोग शारीरिक कार्यों, कलीसिया की अगुवाई का कार्य, या पेशेवर कौशलों से जुड़े कार्यों को करने के लिए क्यों ना करो, तुम्हें यह विचार करना चाहिए कि वे किस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त हैं और उन्हें सबसे उपयुक्त कार्य सौंपने के बाद, अगर वे इसे नहीं कर पाते हैं तो उन्हें कोई और कार्य सौंप दो। अगर तुम उन्हें उनके लिए सबसे उपयुक्त कार्य के अनुसार कार्य नहीं सौंपते हो तो यह लोगों का उपयोग करने का गलत तरीका है। जिन लोगों को पदोन्नति, विकास और उपयोग के लिए प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है, अगर उन्हें शारीरिक कार्य करने के लिए कहा जाए तो भी उन्हें उनकी काबिलियत और योग्यताओं के आधार पर ये कार्य सौंपे जाने चाहिए। अगर, वे अपने एक नियुक्त कार्य को अच्छी तरह से करने के साथ-साथ दूसरे कार्यों को भी करने में समर्थ हैं तो उन्हें अंशकालिक आधार पर कुछ दूसरे शारीरिक कार्य करने के लिए कहा जा सकता है, जब तक कि इससे उनके मुख्य कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो। कुछ लोग शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं और लगातार तीन कार्य कर सकते हैं; एक कार्य समाप्त करने के बाद भी उनमें ऊर्जा बची होती है और वे ज्यादातर समय खाली रहते हैं। लेकिन नकली अगुआ अंधे होते हैं और कार्य आवंटित करना नहीं जानते हैं और उन्होंने यह अहसास नहीं किया है कि यह एक समस्या है, इसलिए वे उन लोगों को करने के लिए सिर्फ एक कार्य सौंपते हैं, जो कि एक गलती है।

अभी-अभी मैं अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों के बारे में बात कर रहा था, जिनके पास कोई खास कौशल नहीं होता है और वे सिर्फ शारीरिक मेहनत करने में समर्थ होते हैं। ऐसे भी लोग हैं जिन्हें कोई बीमारी है और वे शारीरिक मेहनत तक करने में असमर्थ हैं और जब भी वे मामूली शारीरिक मेहनत वाला कोई कार्य करते हैं तो उन्हें सिरदर्द, पेटदर्द या पीठदर्द होने लगता है। अगर इस किस्म के लोग कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं तो उन्हें कर्तव्य सौंपने के बारे में क्या करना चाहिए? अलग-अलग पहलुओं, जैसे कि उनकी स्वास्थ्य की स्थिति और साथ ही उनकी मानवता और क्षमता पर गौर करना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि वे परमेश्वर के घर में कौन से कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं। अगर उनका स्वास्थ्य इतना खराब है कि वे कोई कार्य नहीं कर सकते हैं, उन्हें कुछ समय कार्य करने के बाद कुछ देर का अवकाश लेना पड़ता है और उन्हें अपनी देखभाल के लिए किसी की जरूरत भी पड़ती है, अगर वे अपने आप अपना कार्य उचित रूप से नहीं कर पाते हैं और उनके साथ किसी ऐसे व्यक्ति को रखना पड़ता है जो उनकी देखभाल कर सके तो इसका कोई फायदा नहीं है। ऐसे लोग कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, इसलिए उन्हें घर जाने दो और स्वस्थ होने दो। तुम जो चाहे करो, बस किसी ऐसे व्यक्ति का उपयोग मत करो जो इतना गंभीर रूप से बीमार है कि हवा का एक झोंका उसे उड़ा ले जाने के लिए काफी है। अगर उनका स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब नहीं है और बस यही है कि अगर वे गलत चीजें खा लेते हैं तो उन्हें पेटदर्द होने लगता है, या अगर वे अपने दिमाग का बहुत ज्यादा उपयोग करते हैं तो उन्हें सिरदर्द होने लगता है, इसलिए वे एक सामान्य व्यक्ति से तीन या चार घंटे कम कार्य कर पाते हैं, या एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में आधा कार्य कर पाते हैं तो ऐसे लोगों का तब तक उपयोग किया जा सकता है जब तक कि वे दूसरी कसौटियों पर खरे उतरते हैं। जब तक वे खुद यह बात ना उठाएँ और कहें, “मेरा स्वास्थ्य इतना खराब है कि मैं इस कष्ट को बरदाश्त नहीं कर सकता। मैं ठीक होने के लिए घर जाना चाहता हूँ। जब मैं ठीक हो जाऊँगा तो मैं लौट आऊँगा और अपना कर्तव्य करूँगा,” तब बिना देर किए उनकी बात मान लो और उनके सोचने के तरीके पर उन्हें सलाह देने का प्रयास मत करो; अगर तुम ऐसा करोगे तो भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। एक कहावत है, “अनिच्छा से की गई चीज से संतोषजनक परिणाम नहीं मिलेगा”; हर किसी की आस्था, संकल्प और अनुसरण अलग-अलग होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग कहें : “क्या यह सिर्फ इसलिए नहीं है कि वे कभी-कभी थोड़ा अस्वस्थ और ऊर्जा का अभाव महसूस करते हैं? अगर लोग गलत चीजें खाते हैं तो वे अस्वस्थ महसूस कर सकते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद वे ठीक हो जाते हैं; क्या उन्हें घर जाकर ठीक होने की जरूरत है? क्या रात को अच्छी नींद लेने के बाद उनका सिरदर्द और चक्कर आना दूर नहीं हो जाएगा? क्या तब वे सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं? क्या यह इतनी बड़ी बात है?” हो सकता है कि यह तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं हो, लेकिन कुछ लोग अपनी देह को जिस हद तक सँजोते हैं, उस लिहाज से वे दूसरों से अलग होते हैं और कुछ लोगों की सचमुच स्वास्थ्य-संबंधी परेशानियाँ होती हैं। ऐसे मामलों में, अगर वे आराम करने और स्वस्थ होने के लिए घर लौटने का अनुरोध करते हैं तो कलीसिया को फौरन सहमत हो जाना चाहिए, उनसे कोई अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए, उनके लिए चीजें मुश्किल नहीं बनानी चाहिए और खास तौर से उनके सोचने के तरीके पर उन्हें सलाह देने का प्रयास नहीं करना चाहिए। कुछ नकली अगुआ ऐसे लोगों पर यह कहकर लगातार कार्य करते रहते हैं : “देखो परमेश्वर का कार्य अब किस हद तक पहुँच गया है। आपदाएँ लगातार बड़ी होती जा रही हैं, चार रक्त चाँद दिखाई देने लगे हैं और अब महामारी इतनी दूर-दूर तक फैल चुकी है कि अविश्वासियों के पास जिंदा बचने का कोई रास्ता नहीं है! तुम परमेश्वर के घर में हो, अपने कर्तव्य कर रहे हो और परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले रहे हो—तुम खतरे में नहीं पड़ोगे और तुम सत्य और जीवन भी प्राप्त कर सकते हो—यह कितना बड़ा आशीष है! तुम्हारी यह छोटी सी परेशानी कुछ भी नहीं है। तुम्हें इस पर काबू पाना होगा और परमेश्वर से प्रार्थना करनी होगी। परमेश्वर यकीनन तुम्हें ठीक कर देगा। बस परमेश्वर के वचनों को पढ़ो, कुछ और भजन सीख लो और अगर तुम अपना ध्यान अपनी बीमारी से हटा लोगे तो वह स्वाभाविक रूप से ठीक हो जाएगी। क्या परमेश्वर के वचन यह नहीं कहते हैं, ‘बीमारी में रहने का मतलब बीमार होना है’? अभी तुम बीमारी में रह रहे हो। अगर तुम बीमार होने के बारे में सोचते रहोगे तो यह बीमारी गंभीर हो जाएगी। अगर तुम इसके बारे में नहीं सोचोगे तो तुम्हारी बीमारी गायब हो जाएगी, है ना? इस तरह से, तुम्हारी आस्था बढ़ जाएगी और तुम आराम करने के लिए घर नहीं जाना चाहोगे। आराम करने के लिए तुम्हारे घर जाने को देह की सुख-सुविधाओं की लालसा करना कहते हैं।” उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह देने का प्रयास मत करो, ऐसा करना बेवकूफी है। वे एक मामूली सी अस्थायी तकलीफ में भी दृढ़ नहीं रह पाते हैं, बस आराम करने के लिए घर जाना चाहते हैं और एक छोटी सी मुश्किल से भी उबर नहीं पाते हैं, जिससे यह साबित होता है कि वे अपना कर्तव्य सच्चाई से नहीं कर रहे हैं। दरअसल, इस किस्म के लोगों का लंबे समय तक अपना कर्तव्य करने का कोई इरादा नहीं होता है, वे इसे सच्चाई से बिल्कुल नहीं करते हैं, वे कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं होते हैं और अब अंत में उन्हें पूरी तरह से भागने का एक अवसर और बहाना मिल गया है। अपने दिल में, वे इस बात पर खुश हो रहे हैं कि वे बहुत ही होशियार हैं और यह बीमारी बिल्कुल सही समय पर आई है। इसलिए तुम चाहे कुछ भी करो, बस उनसे रुकने का आग्रह मत करना। वे ऐसे हर व्यक्ति से नफरत करेंगे जो उनसे रुकने का आग्रह करने का प्रयास करेगा और वे ऐसे हर किसी को कोसेंगे जो उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह देने का प्रयास करेगा। क्या तुम इस बात को नहीं समझते हो? यकीनन, कुछ लोग वास्तव में बीमार होते हैं, वे लंबे समय से ऐसे होते हैं और वे डरते हैं कि अगर वे अब और यहाँ बने रहे तो उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा। वे परमेश्वर के घर में कोई मुसीबत नहीं लाना चाहते हैं, या दूसरे लोगों के कर्तव्य-करने को प्रभावित नहीं करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि जैसे ही उनका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा, उन्हें अपने देखभाल के लिए भाई-बहनों पर भरोसा करना पड़ेगा और उन्हें परमेश्वर के घर से देखभाल करवाने में बुरा लगता है, इसलिए वे अक्लमंदी से छुट्टी माँगने की पहल करते हैं। इस स्थिति से कैसे निपटना चाहिए? बिल्कुल वैसे ही, आगे कोई झमेला किए बिना उन्हें घर जाने और आराम करने देना चाहिए। परमेश्वर का घर मुसीबत से नहीं डरता है, वह बस लोगों पर उनकी इच्छा के खिलाफ चीजें थोपना नहीं चाहता है। इसके अलावा, सभी लोगों की कुछ व्यक्तिगत और वास्तविक मुश्किलें होती हैं। देह में रहने वाले सभी लोग बीमार पड़ते हैं और देह की बीमारियाँ एक ऐसी समस्या हैं जो वास्तविकता में मौजूद है—हम सच्चाइयों का आदर करते हैं। कुछ लोग गंभीर रूप से बीमार होने के कारण सच में अपने कर्तव्यों को करने में असमर्थ होते हैं और अगर वे चाहते हैं कि परमेश्वर का घर उन्हें सुविधाएँ प्रदान करे, या वे चाहते हैं कि भाई-बहन उन्हें दवाइयाँ प्रदान करें या कुछ उपचार-संबंधी सुझाव दें तो परमेश्वर का घर खुशी-खुशी ये चीजें प्रदान करेगा। अगर वे परमेश्वर के घर को असुविधा नहीं पहुँचाना चाहते हैं और उनके पास जाकर अपनी बीमारी का उपचार करवाने के लिए पैसे, साधन और बाकी जरूरी चीजें हैं तो यह भी ठीक है। संक्षेप में, अगर कारण यह है कि उनका स्वास्थ्य उन्हें परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य करना जारी रखने या परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किए जाने की अनुमति नहीं देता है तो वे उचित रूप से अनुरोध कर सकते हैं और परमेश्वर का घर फौरन इससे सहमत होगा। किसी को भी उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह नहीं देनी चाहिए, या उन पर अपेक्षाएँ नहीं थोपनी चाहिए, क्योंकि यह अनुचित और तर्कहीन होगा। ये वही व्यवस्थाएँ हैं जो इस किस्म के लोगों के लिए बनाई गई हैं।

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