अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6) खंड एक

आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों और नकली अगुआओं की अलग-अलग अभिव्यक्तियों पर संगति करना जारी रखेंगे। पिछली सभा में, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की छठी मद पर संगति की थी। इस मद की मुख्य सामग्री क्या है? (छठी मद है “सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके।”) पिछली बार, हमने मुख्य रूप से लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों पर और इस विषय पर संगति की थी कि परमेश्वर का घर लोगों को क्यों प्रोत्साहित और विकसित करता है। जब अलग-अलग प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने की बात आती है तो नकली अगुआओं के साथ जो समस्याएँ हैं, हमने उनका भी गहन-विश्लेषण किया था। तो इन दो मदों में नकली अगुआओं की मुख्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? हम उन्हें नकली अगुआ क्यों कहते हैं? यहाँ मुख्य रूप से दो पहलू हैं। एक पहलू यह है कि नकली अगुआ अलग-अलग प्रकार के लोगों को प्रोत्साहित करने, विकसित करने और उनका उपयोग करने के सिद्धांतों को नहीं समझते हैं और ना ही वे इन सिद्धांतों की तलाश करते हैं। उन्हें नहीं मालूम है कि लोगों के पास काबिलियत के कौन से पहलू होने चाहिए या अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए कौन सी कसौटियों पर खरा उतरना महत्वपूर्ण है। परिणामस्वरूप, वे अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर अंधाधुंध तरीके से लोगों का उपयोग करते हैं। एक और गंभीर मुद्दा यह है कि इन लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने और इनका उपयोग करने के बाद वे उनके कार्य पर अनुवर्ती कार्यवाही या उसकी जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं, ना ही वे यह पता लगाते हैं कि वे कितना अच्छा कार्य कर रहे हैं, या वे वास्तविक कार्य कर भी रहे हैं या नहीं, या वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ हैं या नहीं, या उनका चरित्र कैसा है, या ये लोग जो कर्तव्य कर रहे हैं, वे उनके लिए उपयुक्त हैं या नहीं और वे इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि वे जिन लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करते हैं और जिनका उपयोग करते हैं, वे मानक के अनुरूप और सिद्धांतों के अनुसार हैं या नहीं—वे इन चीजों की कभी जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं। नकली अगुआ सोचते हैं कि यह सिर्फ लोगों को प्रोत्साहित करने, उनके लिए कार्य की व्यवस्था करने का मामला है, बस इससे ज्यादा कुछ नहीं है और कि फिर उनकी जिम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं। नकली अगुआ इसी तरह से अपना कार्य करते हैं और कार्य करने के दौरान उनका रवैया और नजरिया भी यही होता है। तो क्या नकली अगुआओं की ये दो मुख्य अभिव्यक्तियाँ यह साबित कर सकती हैं कि जब लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने और उनका उपयोग करने की बात आती है तो ना वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करते हैं और ना ही कर सकते हैं? (हाँ।) नकली अगुआ कार्य की जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं या अलग-अलग प्रकार के लोगों की जाँच-परख नहीं करते हैं और जब सत्य और सिद्धांतों की बात आती है तो वे बिल्कुल भी सतर्क नहीं रहते हैं, वे अलग-अलग प्रकार के लोगों की अभिव्यक्तियों और अवस्थाओं की तुलना उन्हें समझ में आने वाले सत्यों और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों से नहीं करते हैं; वे यह भी समझ नहीं पाते हैं कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की मानवता और शक्तियाँ लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांतों से मेल खाती हैं या नहीं। इन कारणों से, जब लोगों को प्रोत्साहित करने, उनका उपयोग करने और उनके लिए कार्य की व्यवस्था करने की बात आती है तो वे खास तौर से भ्रमित और लापरवाह होते हैं, वे सिर्फ खानापूर्ति करते हैं और अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर आधा-अधूरा कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति होने के कारण, अगर नकली अगुआओं से अलग-अलग प्रकार के लोगों का उपयोग उनकी मानवता और शक्तियों के आधार पर समझदारी और उचित तरीके से करने के लिए कहा जाए तो क्या वे इसे सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।) चलो हम अभी इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि नकली अगुआओं की काबिलियत कैसी होती है। सिर्फ कार्य के प्रति उनके रवैये और कार्य करने की उनकी शैलियों तथा तरीकों को और इस सच्चाई को देखते हुए कि वे कोई वास्तविक कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं, बल्कि सिर्फ आम मामलों को सँभालते हैं और दिखावे के लिए थोड़ा सा कार्य करते हैं जो उन्हें सुर्खियों में लाता है, इस सच्चाई को देखते हुए कि वे लोगों को सत्य प्रदान करने का कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं और समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य का उपयोग करने का तरीका नहीं जानते हैं—यह सबकुछ यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआ कलीसिया का वास्तविक काम नहीं कर सकते हैं। सिर्फ इस सच्चाई के आधार पर कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, या वास्तविक समस्याओं को सुलझाने के लिए भाई-बहनों के साथ गहराई से नहीं जुड़ते हैं, बल्कि ऐसे व्यवहार करते हैं मानो वे बेहतर हों और आदेश जारी करते हैं, यह पुष्टि की जा सकती है कि वे परमेश्वर के घर हेतु लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने के लिए कलीसियाई कार्य के सभी पहलुओं को अच्छी तरह से करने में असमर्थ हैं।

मद सात : विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके (भाग एक)

विभिन्न प्रकार के लोगों का उनकी मानवता के आधार पर समझदारी से उपयोग करना

अलग-अलग प्रकार के लोगों की व्यवस्था करने और उनका उपयोग करने के तरीके के बारे में तुम लोगों की समझ क्या है? (परमेश्वर के घर में जिन अलग-अलग प्रकार के लोगों को प्रोत्साहित और विकसित किया जाता है उनके लिए अलग-अलग जरूरी मानक हैं और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए परमेश्वर के घर के जो सिद्धांत और मानक हैं, उन्हीं के अनुसार लोगों को प्रोत्साहित और उनका उपयोग किया जाना चाहिए। अगर कुछ लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के उपयुक्त हैं तो उन्हें अगुआओं, कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए; अगर कुछ लोगों के पास किसी खास क्षेत्र में पेशेवर शक्तियाँ हैं तो उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य को उनकी पेशेवर शक्तियों के अनुसार व्यवस्थित किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें समझदारी से आवंटित और उनका उपयोग किया जा सके।) क्या कोई इसमें कुछ जोड़ना चाहता है? (दूसरी चीज है लोगों को उनकी मानवता के आधार पर मापना। अगर किसी की मानवता अपेक्षाकृत अच्छी है, वह सत्य से प्रेम करता है और उसमें समझने की क्षमता है तो वह प्रोत्साहन और विकास के लिए उम्मीदवार है। अगर उसकी मानवता औसत दर्जे की है, लेकिन उसके पास शक्तियाँ हैं, वह परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य कर सकता है और सेवा प्रदान कर सकता है तो इस प्रकार के व्यक्ति को उसकी शक्तियों के आधार पर एक उचित कर्तव्य भी सौंपा जा सकता है, ताकि उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सके। अगर वह खराब मानवता वाला व्यक्ति है और गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न कर सकता है तो उससे कर्तव्य करवाने से फायदा कम, परेशानी ज्यादा होगी, इसलिए उससे कर्तव्य करवाने की व्यवस्था करना उचित नहीं है।) अगर लोगों की मानवता के आधार पर उनमें अंतर किया जाता है तो जब तक वे कुकर्मी नहीं हैं, गड़बड़ियाँ या विघ्न उत्पन्न नहीं करते हैं और कोई कर्तव्य करने में समर्थ हैं, तब तक वे लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों से मेल खाते हैं। कुकर्मियों और दुष्ट आत्माओं के अलावा, एक और प्रकार के लोग हैं जिनका उपयोग नहीं किया जा सकता है और वे हैं अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग, यानी, वे जो कुछ भी हासिल नहीं करते हैं, जो कोई भी कार्य करवाने में असमर्थ होते हैं, कोई पेशा सीखने में असमर्थ होते हैं, आसान, आम मामलों को सँभालने में असमर्थ होते हैं, यहाँ तक कि जो शारीरिक श्रम भी नहीं कर पाते हैं—ऐसे अपर्याप्त बुद्धि और मानवता वाले लोगों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। अपर्याप्त बुद्धि वाली इस श्रेणी में कौन से लोग आते हैं? जो लोग मानवीय भाषा नहीं समझते हैं, जिनमें शुद्ध समझ का अभाव है, जो हमेशा चीजों को गलत समझते हैं, चीजों को गलत तरीके से करते हैं, प्रश्नों के अप्रासंगिक उत्तर देते हैं और जो बेवकूफों या मंदबुद्धि लोगों जैसे होते हैं—ये सभी अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग हैं। फिर बेहद बेतुके लोग होते हैं जो सभी प्रकार की चीजों को सामान्य लोगों से अलग तरीके से समझते हैं—उन्हें भी बुद्धि की समस्या है। क्या अपर्याप्त बुद्धि में कोई भी चीज सीखने में असमर्थ होना शामिल है? (हाँ, है।) तो क्या लेख लिखना सीखने में असमर्थ होने को अपर्याप्त बुद्धि होने के रूप में गिना जाता है? (नहीं, इसे नहीं गिना जाता है।) इस तरह के लोग गिनती में नहीं आते हैं। मिसाल के तौर पर, गाना गाना और नृत्य करना सीखना, कंप्यूटर कौशल सीखना, या कोई विदेशी भाषा सीखना; इन चीजों को सीखने में असमर्थ होने को अपर्याप्त बुद्धि वाला व्यक्ति होने के रूप में नहीं गिना जाता है। तो, किस प्रकार की चीजें सीखने में असमर्थ होने से अपर्याप्त बुद्धि का संकेत मिलता है? मिसाल के तौर पर, कुछ लोगों के पास थोड़ा ज्ञान तो होता है, लेकिन वे दूसरों के साथ गपशप करते समय अपनी भाषा को व्यवस्थित करना सीखने में असमर्थ होते हैं। तो जब इस तरह के लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तो क्या वे सत्य पर संगति कर सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं और दूसरों के साथ सामान्य रूप से बातचीत कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते हैं।) जब उनके मन में कोई विचार आता है या जब वे किसी मुश्किल स्थिति में होते हैं, खुलकर लोगों से इस बारे में बात करना चाहते हैं और समाधान के मार्ग की तलाश करना चाहते हैं तो वे लगातार कई दिनों तक चिंतन करते रहते हैं और उन्हें पता नहीं होता है कि कहाँ से शुरू करना है या खुद को कैसे व्यक्त करना है। जैसे ही वे बोलने लगते हैं, वे घबरा जाते हैं और भ्रमित ढंग से बात करने लगते हैं, उनके मुँह देखकर लगता है मानो उन्हें जो करने को कहा गया है वे उसे करने से मना कर रहे हैं और उनके विचार अस्त-व्यस्त होते हैं। मिसाल के तौर पर, तुम उन्हें बताते हो कि “आज मौसम अच्छा है और धूप निकली है,” और वे उत्तर देते हैं, “कल बारिश हुई थी और उस सड़क पर एक कार दुर्घटना घटी थी।” वे जिन लोगों से बातचीत करते हैं उनके साथ विचारों के आदान-प्रदान में तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपर्याप्त बुद्धि वाला है? (हाँ, है।) मिसाल के तौर पर, अगर उसे सिरदर्द हो रहा है और तुम उससे पूछते हो कि उसे क्या तकलीफ है तो वह कहेगा कि उसके दिल में थोड़ी सी बेचैनी हो रही है। इस उत्तर का प्रश्न से कोई संबंध नहीं है, है ना? (हाँ, सही कहा।) यह बुद्धि का बहुत ज्यादा अभाव होना है। इस प्रकार के लोग बहुत सारे हैं। क्या तुम लोग कोई मिसाल दे सकते हो? (कुछ लोग प्रश्नों के उत्तर देते समय हमेशा विषय से भटक जाते हैं, वे बस समझ ही नहीं पाते हैं कि दूसरे लोग उनसे क्या पूछ रहे हैं।) बात करते समय अक्सर विषय से भटक जाना—यह अपर्याप्त बुद्धि है। फिर ऐसे लोग भी हैं जो बात करते समय घनिष्ठ और बाहरी लोगों के बीच अंतर करने से चूक जाते हैं और कभी-कभी बोलते समय अनजाने में अपनी गुप्त बातें भी कह देते हैं—यह भी अपर्याप्त बुद्धि है। मिसाल के तौर पर, कुछ भाई-बहन परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ रहते हैं, जो उनसे पूछते हैं, “तुम लोगों का परमेश्वर तुम लोगों से क्या करने के लिए कहता है?” वे उत्तर देते हैं : “हम जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वह बहुत ही अच्छा है। वह हमें ईमानदार व्यक्ति बनना सिखाता है, हमें किसी से झूठ बोलने की अनुमति नहीं है और हमें सभी से ईमानदारी से बात करनी चाहिए।” ऊपरी तौर पर, ऐसा लगता है मानो वे परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य की गवाही दे रहे हैं, परमेश्वर को महिमान्वित कर रहे हैं, अपने श्रोताओं के मन में विश्वासियों के बारे में अच्छी धारणा बना रहे हैं और उन्हें विश्वासियों पर भरोसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, लेकिन क्या वास्तव में यही बात है? जब अविश्वासी यह सुनेंगे तो वे क्या कहेंगे? वे कहेंगे, “चूँकि तुम लोगों के परमेश्वर ने तुम लोगों को ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए कहा है तो हमें सच-सच बताओ : तुम लोगों की कलीसिया के पास कितना पैसा है? सबसे ज्यादा चढ़ावा कौन देता है? तुम लोगों की कलीसिया का अगुआ कौन है? तुम लोगों के पास कितने सभा स्थल हैं?” तुम यह सुनकर दंग रह जाओगे, है न? क्या ऐसे लोग बेवकूफ नहीं हैं? तुम दुष्ट लोगों और अविश्वासियों से ईमानदार व्यक्ति होने के बारे में क्यों बात करते हो? दरअसल वास्तव में तुम परमेश्वर के सामने उतने ईमानदार नहीं हो। तो क्या तुम अविश्वासियों के साथ इस बारे में इतनी गंभीरता से बात करके अनजाने में अपने भेद नहीं खोल रहे हो? क्या यह अपने लिए गड्ढा खोदना और जाल बिछाना नहीं है? क्या तुम बेवकूफ नहीं हो? अपने निजी विचार और भावनाएँ किसी को बताते समय या किसी से ईमानदारी से बात करते समय तुम्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तुम किससे बात कर रहे हो—अगर वह कोई दुष्ट व्यक्ति या शैतान है तो क्या तुम उसे बता सकते हो कि वास्तव में क्या चल रहा है? इसलिए जब इस प्रकार के लोगों की बात आती है तो “तुम सब साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” का अभ्यास करना जरूरी है—मानवजाति के लिए परमेश्वर की यही शिक्षा है। बेवकूफ लोग इसे करना नहीं जानते हैं। उन्हें सिर्फ नियमों का पालन करना आता है और इस प्रकार की चीजें कहनी आती हैं, “हम विश्वासी लोग बहुत ईमानदार होते हैं, हम किसी को धोखा नहीं देते हैं। जरा खुद को देखो अविश्वासियो, तुम झूठ के पुतले हो, जबकि हम ईमानदारी से बोलते हैं।” और जब वे ईमानदारी से बोल लेते हैं तो उसके बाद लोगों के पास उनके खिलाफ उपयोग करने के लिए जानकारी होती है। क्या यह उनकी तरफ से घनिष्ठ और बाहरी लोगों के बीच अंतर करने में चूक नहीं है? क्या ये लोग पागल नहीं हैं? वे कुछ सिद्धांतों को समझते तो हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता है कि उन्हें कैसे लागू करना है। वे थोड़े-बहुत नारे लगाते हैं और फिर उन्हें लगता है कि वे वास्तव में आध्यात्मिक हैं, वे सोचते हैं कि उन्हें सत्य की समझ है, उनके पास सत्य वास्तविकता है और वे हर जगह इसका दिखावा करते फिरते हैं, लेकिन अंत में, शैतान और दुष्ट लोग इसका फायदा उठाते हैं और उनके खिलाफ इसका उपयोग करते हैं। यह अपर्याप्त बुद्धि है।

हमने अभी-अभी ऐसे कई प्रकार के लोगों के बारे में बात की जो अपर्याप्त बुद्धि के हैं। एक प्रकार के लोग वे हैं जो मानवीय भाषा नहीं समझते हैं और जो दूसरे लोगों के शब्दों के सार और मुख्य बिंदुओं को समझने से चूक जाते हैं; एक और प्रकार में बेवकूफ लोग आते हैं जो कोई भी चीज हासिल करने में असमर्थ होते हैं और सिद्धांतों या मुख्य बिंदुओं को पकड़ नहीं पाते हैं, चाहे वे किसी भी तरीके से प्रयास क्यों ना करें; इसके अलावा, एक और प्रकार के लोग होते हैं जिनके विचार हर चीज के बारे में बहुत ज्यादा कट्टर और बेतुके होते हैं। और फिर एक और प्रकार के लोग होते हैं जो कुछ भी सीखने में असमर्थ होते हैं और यहाँ तक कि वे यह सीखने के काबिल भी नहीं होते हैं कि कैसे बोलना और गपशप करना है या अपने विचार कैसे व्यक्त करने हैं ताकि दूसरे लोग उन्हें समझ पाएँ; वैसे तो वे कुछ हद तक साक्षर होते हैं, लेकिन वे अपने दिमागों में अपनी भाषा को व्यवस्थित नहीं कर पाते हैं या स्पष्ट रूप से बोल नहीं पाते हैं और ना ही सही विचारों को व्यक्त कर पाते हैं या कुछ भी हासिल कर पाते हैं। ये सभी अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग हैं। वे चाहे कोई भी शिल्प या कौशल क्यों ना सीख लें, वे हमेशा सिद्धांतों और नियमों को समझने में असमर्थ रहते हैं। अगर वे समय-समय पर कोई शिल्प या कौशल अच्छी तरह से कर भी लेते हैं तो यह संयोग से ही होता है; वे नहीं जानते हैं कि उन्होंने इसे अच्छी तरह से कैसे किया। अगली बार जब वे इसे अच्छी तरह से करने से चूक जाते हैं, तब भी उन्हें यह नहीं पता होता है कि ऐसा क्यों हुआ। वे किसी भी चीज को सीखने या उसमें कुशल होने में असमर्थ हैं। अगर उन्हें कोई शिल्प या तकनीकी कौशल सीखने के लिए कहा जाए तो चाहे वे इसे सीखने में कितना भी समय क्यों ना लगा दें, वे सिर्फ सिद्धांत को ही समझ पाएँगे। उन्होंने कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं, लेकिन सत्य को नहीं समझा है। अगर उनसे इन शब्दों और इन खास कथनों को लेने के लिए कहा जाए जिन पर परमेश्वर का घर अक्सर संगति करता है और फिर उनसे इन्हें अभ्यास के एक सिद्धांत और मार्ग में बदलने के लिए कहा जाए तो वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर पाएँगे, भले ही वे दिन-रात मेहनत ही क्यों ना कर लें और चाहे उन्हें किसी भी तरीके से क्यों ना सिखाया जाए। इससे यह पुष्टि हो जाती है कि इन लोगों में अपर्याप्त बुद्धि है। कुछ लोग 50 या 60 वर्ष की आयु में भी वही परिणाम प्राप्त करते हैं जो उन्होंने 30 वर्ष की आयु में प्राप्त किए, वे बिल्कुल कोई प्रगति नहीं करते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी चीज सफलतापूर्वक नहीं सीखी है। उन्होंने अपना समय बरबाद नहीं किया है, वे बहुत चौकस हैं और प्रयास करते हैं, लेकिन वे कोई भी चीज सीखने में सफल नहीं हुए; यह दर्शाता है कि उनमें अपर्याप्त बुद्धि है। हमने जो संगति की है, उसके आधार पर, अपर्याप्त बुद्धि जिसे माना जाता है उसका दायरा व्यापक हो गया है, है ना? क्या तुम लोग खुद को अपर्याप्त बुद्धि वाले व्यक्तियों के रूप में गिनोगे? (हाँ।) थोड़ा सा, कुछ या ज्यादा हद तक। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? ज्यादातर लोगों ने पाँच वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं, लेकिन वे अब भी नहीं समझ पाए हैं कि सत्य क्या है, या परमेश्वर के इरादे क्या हैं; कुछ लोगों ने 10 वर्षों, या यहाँ तक कि 20 या 30 वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं और फिर भी वे नहीं समझते हैं कि सत्य वास्तविकता क्या है और शब्द और धर्म-सिद्धांत क्या हैं, उनके मुँह सिद्धांतों से भरे हुए हैं और वे बहुत बढ़िया तरीके से उन्हें देर तक बड़बड़ाते रहते हैं—यह उनकी बुद्धि की समस्या है। अभी के लिए सत्य की समझ को नजरअंदाज करते हुए, चलो हम बस इतना ही कहें कि लोग मानव जीवन में कुछ बाहरी चीजों और सामान्य ज्ञान के मामलों के प्रति निम्नलिखित अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं : चाहे वे किसी भी चीज को कितने भी वर्षों से करते आ रहे हों, उनकी परिस्थिति, अवस्था और धारणा ठीक वैसी ही बनी रहती है जैसी तब थी जब उन्होंने इसे सीखना शुरू किया था और चाहे उनका कैसे भी मार्गदर्शन किया जाए, उन्हें सिखाया जाए, या वे कैसे भी अभ्यास करें, वे अब भी कोई प्रगति नहीं करते हैं। यह अपर्याप्त बुद्धि है।

लोगों में मानवता है या नहीं, इस आधार पर उन्हें चुनना और उनका उपयोग करना सिद्धांतों के अनुसार है तो मुझे बताओ, क्या हमें ऐसे लोगों का विकास और उपयोग करना चाहिए जिनमें खराब मानवता, अपर्याप्त बुद्धि या दुष्ट आत्माओं का कार्य है? ऐसा बिल्कुल नहीं चलेगा। इन कई प्रकार के लोगों को छोड़कर जो लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, अन्य लोगों का उपयोग उनकी मानवता के आधार पर समझदारी से किया जा सकता है। औसत मानवता वाले लोग, जिन्हें बुरा या अच्छा नहीं कहा जा सकता है, वे बस साधारण दल के सदस्य हो सकते हैं। जिन लोगों में काफी अच्छी मानवता है, जो काफी तर्कसंगत हैं और जिनमें जमीर है, जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, जो खास तौर से सुस्थिर हैं, जिनमें न्याय की भावना है और जो परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में समर्थ हैं, इन लोगों को विकसित करने और इनका उपयोग करने पर जोर दिया जा सकता है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि अगुआओं या दल के अगुआओं के रूप में या कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए उनका विकास या उपयोग किया जाए या नहीं, यह उनकी काबिलियत और शक्तियों पर निर्भर करता है। यह इस बात का मूल्यांकन करना है कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की मानवता के आधार पर उनका कैसे उपयोग किया जाए।

विभिन्न प्रकार के लोगों का उनकी शक्तियों के आधार पर समझदारी से उपयोग करना

चलो हम आगे इस बारे में बात करें कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की शक्तियों के आधार पर उनका कैसे उपयोग किया जाए। काबिलियत के अलावा, कुछ लोगों के पास ऐसे कुछ पेशेवर कौशल भी होते हैं जिनमें वे बहुत ही माहिर होते हैं। “शक्तियाँ” शब्द का क्या अर्थ है? (किसी विशेषीकृत क्षेत्र में कोई कौशल होना, जैसे कि संगीत रचना करने, कोई वाद्ययंत्र बजाने या तस्वीरें बनाने में समर्थ होना।) संगीत सिद्धांत, कला और साथ ही, नृत्य और लेखन को भी समझना—ये सभी शक्तियाँ हैं। अभिनय और निर्देशन फिल्म निर्माण से जुड़ी शक्तियाँ हैं, अनुवाद करना भाषा-संबंधी शक्ति है और वीडियो उत्पादन और विशेष प्रभाव भी खास क्षेत्रों में शक्तियाँ हैं। जब हम शक्तियों के बारे में बात करते हैं तो हम उन पेशेवर कौशलों के बारे में बात कर रहे होते हैं जो कलीसिया के मुख्य कार्य से संबंधित हैं। कुछ लोगों के पास पहले से ही मूलभूत स्तर की प्रवीणता होती है और कुछ लोग परमेश्वर के घर में आने के बाद इन चीजों का अध्ययन करते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास मूलभूत प्रवीणता है, लेकिन उसकी मानवता संतोषजनक नहीं है और वह अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों में से एक है, कुकर्मी या दुष्ट आत्मा है तो उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर व्यक्ति की मानवता संतोषजनक है और उसमें वह शक्ति है जिसकी जरूरत परमेश्वर के घर को है तो उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है और उसका विकास और उपयोग किया जा सकता है, उसे एक ऐसे दल को सौंपा जा सकता है, जो उसकी शक्तियों के उपयुक्त हो या उसके पेशेवर कौशल से संबंधित हो और उसे फौरन कार्य पर लगाया जा सकता है। कुछ लोगों में अभी तक कोई पेशेवर शक्ति नहीं है, लेकिन वे सीखने के इच्छुक हैं और जल्दी सीख भी जाते हैं। अगर उनकी मानवता संतोषजनक है तो परमेश्वर का घर उनका विकास कर सकता है, उनके सीखने के लिए परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है और ऐसे लोगों का भी उपयोग किया जा सकता है। संक्षेप में, लोगों की काबिलियत और शक्तियों के आधार पर कर्तव्य सौंपे जाते हैं और जहाँ तक संभव हो, अलग-अलग शक्तियों वाले लोगों को उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में कार्य करने के लिए नियुक्त करना चाहिए ताकि वे इन शक्तियों का उपयोग कर सकें। अगर परमेश्वर के घर को उनकी शक्तियों की अब और जरूरत नहीं है तो उनकी काबिलियत और मानवता के आधार पर वे जो भी करने में समर्थ हैं उसी में उनकी नियुक्ति की व्यवस्था की जा सकती है; इसे समझदारी से लोगों का उपयोग करना कहते हैं। अगर परमेश्वर के घर को अब भी उनकी शक्तियों की जरूरत है तो उन्हें इस क्षेत्र में उनके कर्तव्यों को करते रहने की अनुमति देनी चाहिए और उन्हें मनमाने ढंग से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है जब तक कि इस पेशे में बहुत से लोग कार्य नहीं करने लगें और ऐसा होने पर जो लोग अपने पेशे में सबसे कम योग्य हैं उन्हें दूसरे कर्तव्य सौंपकर स्थिति के अनुसार लोगों की संख्या घटा देनी चाहिए; यह समझदारी से लोगों का उपयोग करना है।

एक खास प्रकार का व्यक्ति होता है जिसके पास कोई खास कौशल नहीं होता है—वह थोड़ा-बहुत लेख लिख सकता है, गाना गाते समय धुन पर पकड़ बनाए रख सकता है और कोई भी चीज करना सीख सकता है, लेकिन वह इन चीजों में सर्वश्रेष्ठ नहीं होता है। वह किस चीज में सर्वश्रेष्ठ होता है? उसमें थोड़ी काबिलियत होती है, उसमें अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है और उसके पास इस बात की थोड़ी समझ होती है कि लोगों का आकलन और उनका उपयोग कैसे किया जाए। इसके अतिरिक्त, सबसे उल्लेखनीय यह है कि उसमें संगठनात्मक कौशल होता है। अगर तुम ऐसे व्यक्ति को कोई काम या दायित्व दो तो वह उसे करने के लिए लोगों को संगठित कर सकता है। साथ ही, उसमें कार्यक्षमता होती है; यानी, अगर तुम उसे कोई कार्य देते हो तो वह उसे अच्छी तरह से करने और उसे पूरा करने में समर्थ होता है। उसके मन में एक योजना होती है, जिसमें चरण और संरचना शामिल होती है। वह जानता है कि लोगों का उपयोग कैसे करना है, समय कैसे आवंटित करना है और इस कार्य के लिए किसका उपयोग करना है। अगर कोई समस्या खड़ी होती है तो उसे पता होता है कि सभी के साथ समाधान पर कैसे चर्चा करनी है। उसे मालूम होता है कि इन सभी चीजों को कैसे संतुलित करना है और सुलझाना है। इस तरह के व्यक्ति में ना सिर्फ कार्यक्षमता होती है, बल्कि वह अपेक्षाकृत अच्छा बोलता भी है। उसके शब्द स्पष्ट और व्यवस्थित होते हैं और वह लोगों को भ्रमित नहीं करता है। जब वह कार्य सौंप देता है तो हर व्यक्ति चीजों को स्पष्ट रूप से समझता है और जानता है कि हर व्यक्ति को क्या करना चाहिए; कोई भी खाली नहीं बैठता है और कार्य में कोई चूक नहीं होती है। कार्य के विवरणों के बारे में उसकी व्याख्या भी अपेक्षाकृत स्पष्ट और व्यवस्थित होती है, खासतौर से पेचीदा मुद्दों के लिए, वह विश्लेषण, संगति प्रदान करता है और विवरणों की सूची बनाता है ताकि हर व्यक्ति मुद्दों को समझ जाए, यह जाने कि कार्य को कैसे करना है और यह जाने कि कैसे आगे बढ़ना है। इसके अतिरिक्त, वह इस बात पर भी संगति कर सकता है कि कार्य करने के कौन से तरीके दोषपूर्ण हो सकते हैं, कार्य करने के कौन से तरीके कुशलता को प्रभावित करेंगे, लोगों को अपने कार्य के दौरान किन बातों पर ध्यान देना चाहिए, वगैरह-वगैरह। यानी, वह अपना कार्य शुरू करने से पहले दूसरों से ज्यादा सोचता है—वह दूसरों की तुलना में ज्यादा विस्तार से, ज्यादा यथार्थ रूप से और ज्यादा व्यापक रूप से सोचता है। एक लिहाज से, उसके पास दिमाग है और दूसरे लिहाज से, वह वाक्पटु है। दिमाग होने का मतलब है कि वह चीजों को एक व्यवस्थित तरीके से, चरणों में और एक योजना के अनुसार और बहुत स्पष्टता से करता है। वाक्पटु होने का अर्थ है कि वह अपने मन के विचारों, योजनाओं और गणनाओं को स्पष्ट रूप से और समझ में आने लायक ढंग से व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग कर सकता है और कि वह आसान और संक्षिप्त तरीके से बोलना जानता है, ताकि उसके श्रोता भ्रमित ना हो जाएँ। वह खुद को ऐसी भाषा में व्यक्त करता है जो खासतौर से स्पष्ट, सटीक, सच्ची और उपयुक्त होती है। वाक्पटु होने का यही अर्थ है। इस तरह के लोग वाक्पटु होते हैं, उनमें कार्यक्षमता, संगठनात्मक कौशल होते हैं, इसके अतिरिक्त, उनमें जिम्मेदारी की भावना होती है और अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है। ये लोग चापलूस या शांति स्थापित करने वाले लोग नहीं होते हैं। जब वे कुकर्मियों को कलीसिया के कार्य में गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न करते हुए देखते हैं, या उन बेवकूफों और घटिया लोगों को देखते हैं जो अपने उचित मामलों पर ध्यान नहीं देते हैं और अनिश्चित तरीके से कार्य करते हैं तो उन्हें गुस्सा आ जाता है, वे नाराज हो जाते हैं, वे फौरन इन समस्याओं को सुलझा सकते हैं और सँभाल सकते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य और हितों की रक्षा कर सकते हैं। जिम्मेदारी की भावना और न्याय की भावना होना—क्या ये अभिव्यक्तियाँ इस तरह के व्यक्ति की मानवता की प्रधान विशेषताएँ नहीं हैं? (हाँ।) हो सकता है कि इस तरह के लोग सामाजिक मेलजोल बढ़ाने में अच्छे नहीं हों, या वे किसी खास पेशेवर कौशल में बहुत निपुण नहीं हों, लेकिन अगर उनमें वे विशेषताएँ हैं जिनका मैंने अभी-अभी वर्णन किया तो उन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में विकसित किया जा सकता है। ये विशेषताएँ उनकी शक्तियाँ भी हैं, यानी, वे वाक्पटु होते हैं, उनमें कार्यक्षमता, संगठनात्मक कौशल होते हैं और उनमें अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है। न्याय की भावना होना बेहद महत्वपूर्ण है। क्या कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों में न्याय की भावना होती है? (नहीं, उनमें नहीं होती है।) मसीह-विरोधियों की प्रकृति दुष्ट होती है; उनमें न्याय की भावना होना असंभव है। एक और बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के व्यक्ति में आध्यात्मिक समझ और सत्य को समझने की क्षमता होती है; यह उनकी काबिलियत से संबंधित है। इस तरह के व्यक्ति की शक्तियों का संबंध उन मानवीय विशेषताओं और प्रतिभाओं से है जिनका मैंने अभी-अभी जिक्र किया, साथ ही, इनका संबंध सत्य को समझने की क्षमता होने, कलीसिया के लिए दायित्व उठाने और कार्यक्षमता होने के तीन मानकों से है। ऐसे लोगों को अगुआओं के रूप में विकसित किया जा सकता है; इसमें कोई समस्या नहीं है। अगुआ में दिमाग और काबिलियत होने के साथ-साथ सत्य को समझने की क्षमता भी होनी चाहिए, उसमें अपने कार्य के लिए संगठनात्मक कौशल और कार्यक्षमता होनी चाहिए और साथ ही, उसमें वाक्पटुता भी होनी चाहिए। कुछ लोगों में बहुत अच्छी काबिलियत होती है, उनमें आध्यात्मिक समझ होती है, लेकिन जब सभाओं में संगति करने का समय आता है तो वे जो कहने का प्रयास कर रहे होते हैं, उसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं, उनमें अपनी भाषा को व्यवस्थित करने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती है और वे जो भी कहते हैं, वह पूरी तरह से तर्कहीन होता है। क्या ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में विकसित किया जा सकता है? (नहीं, उन्हें नहीं किया जा सकता है।) कुछ लोग बड़ी मुश्किल से सिर्फ कुछ ही लोगों से बात कर पाते हैं; वे कुछ स्थितियों, विचारों और सत्य की समझ के बारे में संगति कर सकते हैं, वे दूसरों को सहारा दे सकते हैं, उनका भरण-पोषण कर सकते हैं और उनकी मदद कर सकते हैं, लेकिन वे ज्यादा लोगों के सामने अपने विचार व्यक्त करने की जुर्रत नहीं करते हैं, डर जाते हैं और यहाँ तक कि घबराकर रो भी पड़ सकते हैं। क्या ऐसे लोगों को विकसित किया जा सकता है? ऐसा व्यक्ति जो बहुत ही कमजोर और दब्बू मानवता का है और जिसे मंच पर आने से डर लगता है, अगर उसमें अगुआ बनने के लिए मानवता, शक्तियाँ और समझने की क्षमता है तो उसे दल का अगुआ या कलीसियाई अगुआ बनने के लिए विकसित किया जा सकता है। पहले बस उसे विकसित और प्रशिक्षित करो; जब वह कुछ समय तक अनुभव कर लेगा, उसके बाद उसे अंतर्दृष्टि प्राप्त हो जाएगी, इस तरह वह थोड़ा बहादुर बन जाएगा और फिर वह बोलने से या मंच पर आने से नहीं डरेगा। संक्षेप में, जब उन लोगों की बात आती है जिनमें वे मानवता-संबंधी विशेषताएँ और शक्तियाँ हैं जिनके बारे में हमने अभी-अभी चर्चा की तो उन्हें अगुआ बनने के लिए विकसित किया जा सकता है जब तक कि उनकी मानवता संतोषजनक है। जैसा कि हमने पिछली बार कहा था, किसी व्यक्ति को अगुआ के रूप में विकसित करने के लिए, यह जरूरी नहीं है कि वह सभी सत्यों को समझे, परमेश्वर के प्रति समर्पित होने में समर्थ हो, उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल हो, वगैरह-वगैरह। इन कसौटियों पर खरा उतरना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। अगर किसी में एक खास काबिलियत है, उसमें आध्यात्मिक समझ है और वह सत्य को स्वीकार करने में समर्थ है तो उसे प्रोत्साहित और विकसित किया जा सकता है। क्या यह लोगों का समझदारी से उपयोग करना नहीं है? (हाँ।) सबसे महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि व्यक्ति की मानवता मानक के अनुरूप है या नहीं।

कुछ लोगों को, मेरी कही बातें सुनने के बाद लगता है कि वे पहले से ही अगुआ बनने की कसौटियों पर खरा उतरते हैं और उन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए। यह उनकी गलतफहमी है, है ना? क्या अगुआ बनना इतना ही आसान मामला है? वे सोचते हैं, “मैं वास्तव में व्यवस्थित हूँ, मेरे पास संगठनात्मक कौशल हैं और मैं वाक्पटु हूँ, क्योंकि मैं सबसे पेचीदे मामलों को भी स्पष्ट रूप से समझा सकता हूँ तो परमेश्वर का घर मुझे पदोन्नत क्यों नहीं करता है? भाई-बहन मुझे अगुआ बनने के लिए क्यों नहीं चुनते हैं? वरिष्ठ अगुआ यह पहचानने से कैसे चूक जाते हैं कि मैं प्रतिभाशाली हूँ?” फिक्र मत करो। अगर तुम वास्तव में अगुआ या कार्यकर्ता बनने की कसौटियों पर खरे उतरते हो तो कभी ना कभी तुम्हें पदोन्नत किया जाएगा और तुम्हें खुद को प्रशिक्षित करने की अनुमति दी जाएगी। अभी जो चीज मायने रखती है वह यह है कि तुम्हें सत्य का अभ्यास करने और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटाने, सक्रियता से खुद आगे बढ़कर दूसरों की मदद करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए वास्तविक समस्याओं को सुलझाने में खुद को खूब प्रशिक्षित करना चाहिए। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग देखेंगे कि तुम अच्छी काबिलियत वाले हो और तुम वास्तविक समस्याओं को सुलझा सकते हो तो वे तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे। अगर तुम थोड़ा सा भी वास्तविक कार्य करने की पहल नहीं करते हो और सिर्फ उस दिन की प्रतीक्षा करते रहते हो जब तुम्हें अचानक अगुआ के रूप में चुन लिया जाता है या ऊपरवाले द्वारा अपवाद के रूप में पदोन्नत किया जाता है तो ऐसा कभी नहीं होने वाला है। तुम्हें कुछ वास्तविक कार्य करना चाहिए ताकि हर कोई इसे देख सके; जब हर व्यक्ति खुद अपनी आँखों से तुम्हारी शक्तियाँ देख लेगा और महसूस करेगा कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसे पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए और जिसका उपयोग किया जाना चाहिए तो वे स्वाभाविक रूप से तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे। अगर अभी तुम्हें लगता है कि तुम अगुआ बनने के लिए उपयुक्त हो, लेकिन किसी ने तुम्हें नहीं चुना है और परमेश्वर के घर ने तुम्हें पदोन्नत नहीं किया है तो ऐसा क्यों है? एक बात तो पक्की है : तुम अभी तक भाई-बहनों की नजरों में पहचाने नहीं गए हो। शायद यह तुम्हारी मानवता है, शायद यह तुम्हारा अनुसरण है, या शायद यह तुम्हारी शक्तियाँ या काबिलियत है। अगर भाई-बहन इनमें से किसी एक पहलू को नहीं पहचानते हैं या स्वीकार नहीं करते हैं तो वे तुम्हें नहीं चुनेंगे या तुम्हारी सिफारिश नहीं करेंगे। इसलिए तुम्हें कड़ी मेहनत करते रहनी होगी, अनुसरण करना और खुद को प्रशिक्षित करना जारी रखना होगा और जब तुम सही मायने में सत्य को समझ लोगे और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटा पाओगे तो लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे; यह परिस्थितियाँ सही होने पर चीजों का अपने स्वाभाविक तरीके से चलने का मामला है। अगुआ बनने के लिए लगातार प्रतीक्षा करते रहने या हर समय इसके बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है; यह एक बेतुकी इच्छा है। तुम्हारे पास एक साधारण दिल होना चाहिए, तुम्हें सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति होना चाहिए, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए और समर्पित और धैर्यवान होना सीखना चाहिए। तुम आँख मूँदकर अगुआ बनने का अनुसरण नहीं कर सकते हो; यह एक महत्वाकांक्षा है और यह सही मार्ग नहीं है। तुम्हें हर समय यह महत्वाकांक्षा और इच्छा नहीं रखनी चाहिए। अगर तुममें वास्तव में काबिलियत हो तो भी तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए योग्य होने से पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अगर तुम सत्य को नहीं समझते हो और सत्य का अभ्यास करना नहीं जानते हो तो अगर तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुन लिया जाए तो भी तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं कर पाओगे और तुम्हें बरखास्त करना और हटाना पड़ेगा, जो कि अक्सर होता है। यदि तुम अगुआई के लिए खुद को उपयुक्त मानते हो, तुम्हें लगता है कि तुम्हारे अंदर प्रतिभा, क्षमता और मानवता होते हुए भी परमेश्वर के घर ने तुम्हें पदोन्नत नहीं किया और भाई-बहनों ने तुम्हें नहीं चुना है तो तुम्हें इस मामले में कैसे पेश आना चाहिए? अभ्यास का एक मार्ग है जिसका तुम अनुसरण कर सकते हो। तुम्हें अपने आप को भली-भांति जानना चाहिए। देखो कि अंततः कहीं तुम्हारी मानवता में कोई समस्या तो नहीं है या तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन का कोई पहलू लोगों में घृणा तो नहीं पैदा करता; या कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे अंदर सत्य वास्तविकता न हो और दूसरे लोग तुमसे आश्वस्त न होते हों, या तुम्हारा कर्तव्य निष्पादन अधोमानक तो नहीं है। तुम्हें इन सब बातों पर चिंतन कर देखना चाहिए कि वास्तव में तुममें क्या कमी है। कुछ समय आत्मचिंतन करने पर जब तुम्हें पता चल जाए कि समस्या कहाँ है तो तुम्हें इसे दूर करने के लिए तुरंत सत्य खोजना चाहिए, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए, बदलाव लाकर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आस-पास के लोग यह देखें तो कहें, “आजकल यह व्यक्ति पहले से कहीं बेहतर हो गया है। यह ठोस काम करता है, अपने पेशे को गंभीरता से लेता है और खासतौर से सत्य सिद्धांतों पर ध्यान देता है। वह आवेश में आकर या लापरवाही और अनमने ढंग से कोई काम नहीं करता, अपने काम को लेकर बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार है। वह पहले मौके-बेमौके बड़ी-बड़ी बातें करना पसंद करता था और हरदम दिखावा करता था, लेकिन अब बहुत सहज हो गया है और ढिठाई नहीं करता। वह अपने काम को लेकर डींगें नहीं हाँकता, कोई कार्य खत्म करने के बाद, यह सोचकर बार-बार चिंतन करता है कि कहीं उससे कुछ गलत तो नहीं हो गया। वह पहले की तुलना में बहुत सतर्कता से और परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ काम करता है और अब वह अपने हृदय में परमेश्वर का भय मानता है—और सबसे बड़ी बात, वह समस्याएँ दूर करने के लिए सत्य पर सहभागिता कर सकता है। वास्तव में, उसका काफी विकास हुआ है।” तुम्हारे आस-पास के लोग, जिन लोगों ने तुमसे थोड़ी देर संवाद किया हो, पाते हैं कि तुममें साफ तौर पर बदलाव आया है और तुम्हारा विकास हुआ है; अपने मानवीय जीवन में, आचरण में, मामले सँभालने में और काम के प्रति अपने रवैये में और सत्य सिद्धांतों के साथ अपने व्यवहार में तुम पहले की तुलना में अधिक प्रयास करते हो, नपा-तुला बोलने और कार्य करने लगे हो। भाई-बहन यह सब देखकर प्रभावित हो जाते हैं। तब शायद तुम अगले चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़े हो सकते हो और अगुआ के रूप में चुने जाने की उम्मीद कर सकोगे। यदि तुम वास्तव में कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य कर पाओ तो तुम्हें परमेश्वर का आशीष मिलेगा। यदि तुमने सही मायने में बोझ उठाए हैं और तुममें जिम्मेदारी की भावना है, तुम भार वहन करना चाहते हो तो तुम अपने आपको प्रशिक्षित करो। सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान दो और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करो। जब तुम्हारे पास जीवन का अनुभव आ जाएगा और तुम गवाही के निबंध लिख सकोगे तो इसका अर्थ है कि सच में तुम्हारा विकास हो गया है। और यदि तुम परमेश्वर की गवाही दे सकते हो तो तुम निश्चय ही पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकते हो। यदि पवित्र आत्मा तुम पर काम कर रहा है तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर तुम्हें अनुग्रह की दृष्टि से देखता है और पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन पाकर तुम्हारे लिए शीघ्र ही अवसर का निर्माण होगा। तुम पर इस समय भार हो सकता है, लेकिन तुम्हारा आध्यात्मिक कद अपर्याप्त है और जीवन अनुभव बहुत उथला है, इसलिए यदि तुम अगुआ बन भी जाओ तो भी तुम्हारे लड़खड़ाने की संभावना रहेगी। तुम्हें जीवन में प्रवेश करना चाहिए, पहले अपनी असाधारण इच्छाएँ नियंत्रित करो, स्वेच्छा से अनुयायी बनो और बिना कुड़कुड़ाए, परमेश्वर चाहे जो भी आयोजन करे या व्यवस्था बनाए, उसका पालन करो। जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद ऐसा बन जाएगा तो तुम्हारा अवसर आ जाएगा। यह अच्छी बात है कि तुम भारी बोझ उठाना चाहते हो और तुम पर यह बोझ है। यह दर्शाता है कि तुममें एक अग्रगामी हृदय है जो प्रगति करना चाहता है और तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना चाहते हो। यह कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि एक सच्चा भार है; यह सत्य का अनुसरण करने वालों का दायित्व है और उनके अनुसरण का लक्ष्य भी है। तुम्हारे कोई स्वार्थी उद्देश्य नहीं हैं और तुम अपने लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर की गवाही देने और उसे संतुष्ट करने निकले हो तो यही वह चीज है जिसे परमेश्वर का सर्वाधिक आशीष प्राप्त है, वह तुम्हारे लिए उपयुक्त व्यवस्था कर देगा। अभी के लिए, तुम बस जीवन प्रवेश का अनुसरण करने की फिक्र करो, पहले अपना कर्तव्य उचित रूप से पूरा करो और फिर परमेश्वर की गवाही देने के लिए कुछ अनुभवजन्य गवाही पर लेख लिखो। अगर तुम्हारी गवाहियाँ सच्ची और व्यावहारिक हैं तो उन्हें पढ़ने वाले लोग तुम्हारी सराहना करेंगे और तुम्हें पसंद करेंगे और तुमसे जुड़ने और तुम्हारी सिफारिश करने के इच्छुक होंगे, इस तरह तुम्हारा अवसर आएगा। इसलिए, अवसर आने से पहले तुम्हें यकीनन खुद को सत्य से लैस कर लेना चाहिए। सबसे पहले व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करो और फिर तुम्हारे पास स्वाभाविक रूप से सच्ची गवाही होगी; तुम्हारे कर्तव्य के परिणाम बेहतर से और बेहतर होते जाएँगे, इस समय तक, तुम चाहकर भी छिप नहीं पाओगे और तुम्हारे आसपास के भाई-बहन तुम्हारी सिफारिश कर देंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता है, उनकी जरूरत सिर्फ परमेश्वर के घर को ही नहीं, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी होती है; हर कोई ऐसे लोगों से जुड़ना पसंद करता है जिनके पास सत्य वास्तविकता है और हर कोई ऐसे दोस्तों से मेलजोल रखना पसंद करता है जिनके पास सत्य वास्तविकता है। अगर तुम इस हद तक अनुभव करते हो, हर कोई देखता है कि तुम्हारे पास सच्ची गवाही है और स्वीकार करता है कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है तो तुम अगुआ बनने से बच नहीं पाओगे, भले ही तुम कितना भी चाह लो तो भी भाई-बहन तुम्हें चुनने की जिद करेंगे। क्या यही बात नहीं है? जब पापी बेटे को पश्चात्ताप होता है और वह परमेश्वर के पास लौट आता है तो परमेश्वर संतुष्ट होता है, खुश हो जाता है और उसके दिल को शांति मिलती है। सत्य वास्तविकता वाले व्यक्ति के रूप में ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर तुम्हारा उपयोग नहीं करे? यह असंभव होगा। परमेश्वर का इरादा अधिक लोगों को प्राप्त करने का है जो उसके लिए गवाही दे सकें; उसकी इच्छा उन सभी को पूर्ण करने की है जो उससे प्रेम करते हैं और जल्द से जल्द ऐसे लोगों को पूरा करने का है जो एकदिल और एकमन से उसके साथ हों। इसलिए, परमेश्वर के घर में सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों के लिए भरपूर संभावनाएँ हैं, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उनके लिए असीम संभावनाएँ हैं। सभी को परमेश्वर के इरादे समझने चाहिए। इस भार को वहन करना वाकई एक सकारात्मक बात है। जिन लोगों में अंतरात्मा और विवेक है, उन्हें इसे वहन करना चाहिए, लेकिन जरूरी नहीं कि हर कोई भारी बोझ वहन कर सके। यह विसंगति कहाँ से आती है? तुम्हारी क्षमता या योग्यता कुछ भी हो, तुम्हारा बौद्धिक स्तर कितना भी ऊँचा हो, यहाँ महत्वपूर्ण है तुम्हारा लक्ष्य और वह मार्ग जिस पर तुम चलते हो। अगर तुम्हारी मानवता संतोषजनक है और तुममें एक खास काबिलियत है, लेकिन तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो, तुममें सिर्फ अच्छी मानवता है और कुछ हद तक दायित्व की समझ है तो क्या तुम एक कलीसिया की अगुआई का कार्य अच्छी तरह से कर सकते हो? क्या तुम यह आश्वासन देते हो कि तुम सत्य का उपयोग करके समस्याओं को सुलझा सकते हो? अगर तुम इसका आश्वासन नहीं दे सकते हो तो तुम अब भी अपने कार्य में अयोग्य हो। अगर तुम्हें अगुआ के रूप में चुना या नियुक्त किया जाए तो भी तुम यह कार्य करने में असमर्थ होगे तो इससे क्या फायदा होगा? वैसे तो यह तुम्हारे अहंकार को संतुष्ट करेगा, लेकिन यह भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाएगा और कलीसिया के कार्य में देरी करेगा। अगर तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने की कसौटियों पर खरे उतरते हो, तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो और तुम्हारे पास कुछ अनुभवजन्य गवाहियाँ भी हैं तो तुम यकीनन अगुआई का अच्छा कार्य करने में समर्थ होगे, क्योंकि तुम्हारे पास अनुभवजन्य गवाहियाँ हैं, तुम सत्य को समझने वाले व्यक्ति हो और कलीसियाई अगुआ होने का भारी दायित्व उठा सकते हो। यह बात कि तुम्हारी मानवता संतोषजनक है और तुम्हारे पास कुछ खास शक्तियाँ भी हैं, परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत, विकसित और उपयोग किए जाने के लिए सिर्फ मूलभूत कसौटियाँ हैं, लेकिन तुम अगुआई का अच्छा कार्य कर सकते हो या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि तुम्हारे पास वास्तविक अनुभव और सत्य वास्तविकता है या नहीं—यह चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है। कुछ लोग सही लोग हैं और वे सत्य का अनुसरण करते हैं, लेकिन उन्होंने सिर्फ तीन से पाँच वर्षों तक ही विश्वास रखा है और उन्हें कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं है। क्या ऐसे लोग कलीसिया में अगुआई का कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं? मुझे डर है कि वे इस कार्य में निपुण नहीं होंगे। वे कहाँ कम पड़ जाते हैं? उनके पास व्यावहारिक अनुभव का अभाव है और वे अभी तक सत्य को समझ नहीं पाए हैं। चाहे वे कई शब्द और धर्म-सिद्धांत क्यों न बोल सकें, वे सत्य का उपयोग करके समस्याओं को सुलझाने में अभी भी असमर्थ हैं। इसलिए, वे अभी भी अगुआई के कार्य में सक्षम नहीं हैं और उन्हें सत्य की समझ प्राप्त करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए खुद को प्रशिक्षित करते रहने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, किसी ऐसे व्यक्ति को लें जिसकी मानवता मानक के अनुरूप है, वह काफी ईमानदार है, जो शायद ही कभी झूठ बोलता और धोखा देता है और जो गड़बड़ी या विघ्न उत्पन्न किए बिना अपना कर्तव्य करता है, लेकिन सत्य का अनुसरण करने में खराब है; क्या ऐसे व्यक्ति को अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए विकसित किया जा सकता है? यह बहुत ही मुश्किल होगा। क्या कोई व्यक्ति जो पदोन्नत, विकसित और उपयोग किए जाने के लिए कसौटियों पर खरा उतरता है, लेकिन वह सत्य का अनुसरण नहीं करता है, उसे अगर अगुआ या कार्यकर्ता बनाने के लिए पदोन्नत किया जाए तो क्या वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति बनने में समर्थ होगा? क्या वह सत्य का अनुसरण करना शुरू कर पाएगा? क्या वह कुछ समय के लिए अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने के बाद सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाएगा? यह असंभव होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति कौन सी कसौटियों पर खरा उतरता है, जब तक वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं है, तब तक उसे अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में बिल्कुल भी चुना या पदोन्नत नहीं किया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति में संतोषजनक मानवता और काबिलियत है, वह सत्य को स्वीकार करने और कुछ बदलाव करने में भी समर्थ है तो उसे पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है और उसका उपयोग किया जा सकता है, परिणामस्वरूप, उसे खुद को प्रशिक्षित करने, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और उद्धार और पूर्णता के मार्ग पर चलना शुरू करने का अवसर मिलेगा। इसलिए, चाहे परमेश्वर का घर अगुआ, कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक के रूप में किसी को भी पदोन्नत क्यों ना करे, इसका उद्देश्य तुम्हारी व्यक्तिगत इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करना या तुम्हारी आकांक्षाओं को पूरा करना नहीं है, बल्कि तुम्हें उद्धार के मार्ग पर चलना शुरू करने और एक पूर्ण व्यक्ति बनने में सक्षम बनाना है।

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