अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5) खंड पाँच

अधिकतर नकली अगुआ कम काबिलियत वाले होते हैं। भले ही वे मुखर लगते हैं, उनमें सत्य समझने की बिल्कुल योग्यता नहीं होती, इस हद तक कि उनमें आध्यात्मिक समझ ही नहीं होती। वे आँख और दिमाग से अंधे होते हैं, वे किसी भी मामले की असलियत नहीं जान पाते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, जो अपने आप में एक घातक समस्या है। उनके साथ एक और अधिक गंभीर समस्या यह होती है कि जब वे कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत समझकर इनमें निपुण हो जाते हैं और कुछ नारे लगा सकते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनमें सत्य वास्तविकता है। इसलिए वे कोई भी कार्य करते हुए या किसी भी व्यक्ति से काम लेते हुए सत्य सिद्धांत नहीं खोजते हैं, वे दूसरों के साथ संगति नहीं करते हैं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों का पालन तो और भी कम करते हैं। वे इतने आत्मविश्वास से भरे होते हैं कि अपने विचारों को हमेशा सही मानते हैं और जो जी में आए वही करते हैं। लिहाजा किसी कठिनाई या असाधारण परिस्थिति का सामना करने पर उन्हें कुछ भी नहीं सूझता। यही नहीं, वे अक्सर गलती से यह मान लेते हैं कि परमेश्वर के घर में बरसों से कार्य करने और एक अगुआ के रूप में सेवा करने का पर्याप्त अनुभव होने के कारण उन्हें कलीसिया का कार्य संचालित और विकसित करना आता है। ऐसा लगता है कि वे इन चीजों को समझ चुके हैं, लेकिन वास्तव में वे बिल्कुल नहीं जानते कि कोई भी कार्य कैसे करना है। वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं, अपने अनुभव और दिनचर्या और अपने विनियमों पर चलते हुए अपनी मर्जी के मुताबिक कलीसिया का कार्य करते हैं। इससे कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में गड़बड़ी और अव्यवस्था पैदा होती है और इनसे कोई भी वास्तविक नतीजे निकलने में रुकावट आती है। अगर किसी टीम में कुछ ऐसे लोग हों जो सत्य को समझते हैं और थोड़ा वास्तविक काम कर सकते हैं तो वे उस टीम के कार्य को सामान्य बनाए रख सकते हैं। लेकिन इसका संबंध उनके नकली अगुआ से बिल्कुल नहीं होता। काम अच्छी तरह से हो पाने का कारण यह है कि टीम में कुछ अच्छे लोग हैं जो थोड़ा वास्तविक कार्य कर सकते हैं और कार्य को सही दिशा में बनाए रख सकते हैं; इसका मतलब यह नहीं है कि उनके नकली अगुआ ने वास्तविक कार्य किया है। इस तरह के कुछ अच्छे लोगों के प्रभारी हुए बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता। नकली अगुआ अपना कार्य करने में निपट असमर्थ होते हैं और वे कोई भी कार्य नहीं कर पाते हैं। नकली अगुआ कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त क्यों करेंगे? पहला कारण यह है कि नकली अगुआ सत्य को नहीं समझते, वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं कर सकते और वे समस्याएँ हल करने का तरीका नहीं खोजते, जिसके परिणामस्वरूप समस्याएँ बढ़ती जाती हैं और कलीसिया का काम ठप हो जाता है। दूसरा कारण यह है कि नकली अगुआ अंधे होते हैं और वे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने में असमर्थ होते हैं। वे टीम पर्यवेक्षक कर्मचारी का उचित तरीके से समायोजन नहीं कर सकते, लिहाजा उपयुक्त प्रभारी न होने के कारण कुछ कार्य ठप हो जाते हैं। तीसरा कारण यह है कि नकली अगुआ अधिकारियों की तरह बहुत ज्यादा पेश आते हैं। वे कार्य की निगरानी या निर्देशन नहीं करते और जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है, वहाँ वे सक्रिय भागीदारी नहीं करते या काम की बारीकियों के बारे में मार्गदर्शन नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कार्य की किसी खास मद में काम करने वाले कई लोग नए विश्वासी हैं जिनका बहुत आधार नहीं है, वे सत्य को नहीं समझते हैं और कार्यक्षेत्र से बहुत परिचित नहीं हैं, न ही कार्य के सिद्धांतों को ठीक से समझ पाए हैं। नकली अगुआ अपने अंधेपन के कारण इन समस्याओं को नहीं देख सकते। वे मानते हैं कि जब तक कोई काम कर रहा है, तब तक सब ठीक है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि काम अच्छी तरह से किया जा रहा है या बुरी तरह से। वे यह नहीं जानते कि कलीसिया के कार्य में जहाँ कहीं भी कोई कमजोर कड़ी हो, वहाँ उन्हें निगरानी रखकर निरीक्षण करते रहना चाहिए और निर्देशन करते रहना चाहिए, उन्हें समस्याएँ हल करने में व्यक्तिगत रूप से भाग लेना चाहिए और जो लोग अपने कर्तव्य निभा रहे हैं उन्हें तब तक सहारा देना चाहिए जब तक कि वे सत्य को समझ न लें, सिद्धांतों के अनुसार कार्य न करने लगें और सही रास्ते पर न आ जाएँ। केवल इसी बिंदु पर उन्हें बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। नकली अगुआ इस तरह से काम नहीं करते। जब वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति काम करने के लिए मौजूद है तो वे इस पर और अधिक ध्यान नहीं देते। काम चाहे कैसा भी चल रहा हो, वे कोई पूछताछ नहीं करते। जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है या कम काबिलियत वाला कोई पर्यवेक्षक होता है, वहाँ वे व्यक्तिगत रूप से काम का मार्गदर्शन नहीं करते और स्वयं काम में भागीदारी नहीं करते। और जब कोई पर्यवेक्षक काम का बीड़ा उठाने में सक्षम होता है तो नकली अगुआ खुद चीजों की जाँच या निर्देशन का काम और भी कम करते हैं; वे ज्यादा मेहनत करने के कायल नहीं होते, यहाँ तक कि अगर कोई किसी समस्या की सूचना देता है, तो भी वे इसके बारे में नहीं पूछते—उन्हें लगता है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। नकली अगुआ इस विशिष्ट कार्य में से कुछ नहीं करते। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ ऐसे पतित होते हैं जो थोड़ा-सा भी वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि किसी भी काम का कोई प्रभारी होने और काम करने के लिए सभी लोगों के तैयार होने भर से सारा काम खत्म और पूरा हो जाता है। उन्हें लगता है कि उन्हें बस कभी-कभार एक सभा करनी होती है और अगर कोई समस्या आए तो पूछताछ करनी होती है। इस तरह से कार्य करने के बावजूद नकली अगुआ मानते हैं कि वे अच्छा काम कर रहे हैं और खुद से काफी खुश रहते हैं। वे सोचते हैं, “कार्य की किसी भी मद में कोई समस्या नहीं है। सभी कर्मचारी पूरी तरह से व्यवस्थित हैं और पर्यवेक्षक अपनी जगह तैनात हैं। मैं इस काम में कितना बढ़िया हूँ, कितना प्रतिभाशाली हूँ!” क्या यह बेशर्मी नहीं है? वे आँख और दिमाग से इतने अंधे होते हैं कि उन्हें कोई काम नहीं दिखता और कोई समस्या नहीं दिखती। कुछ जगहों पर काम रुक गया हो, फिर भी वे संतोष के साथ सोचते हैं कि “सभी भाई-बहन युवा हैं, नए खून के हैं। वे अपने कर्तव्यों को मानव डायनेमो की तरह पूरा करते हैं; वे निश्चित रूप से काम को अच्छी तरह से कर सकते हैं।” वास्तव में, ये युवा लोग नौसिखिए होते हैं, जिनमें किसी पेशेवर कौशल की समझ नहीं होती। उन्हें काम करते हुए सीखना चाहिए। यह कहना उचित होगा कि वे अभी तक कोई काम करना नहीं जानते हैं : कुछ लोग थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं, लेकिन वे विशेषज्ञ नहीं हैं और वे सिद्धांतों को नहीं समझते, और जब वे कोई काम कर लेते हैं, तो उसे बार-बार सुधारने या बार-बार नए सिरे से करने की आवश्यकता होती है। कुछ युवा अप्रशिक्षित भी होते हैं और उन्हें काट-छाँट का अनुभव नहीं होता है। वे बेहद गंदे और आलसी होते हैं, और आरामखोर होते हैं; वे सत्य का एक अंश भी स्वीकार नहीं करते हैं और थोड़ा-सा भी कष्ट सहने पर लगातार भुनभुनाते रहते हैं। उनमें से अधिकतर लोग लापरवाह पतित होते हैं जो आराम की लालसा रखते हैं। इस तरह के युवाओं के साथ तुम्हें सत्य पर अक्सर संगति करनी चाहिए और उससे भी अधिक तुम्हें उनकी काट-छाँट करनी चाहिए। इन युवा लोगों को कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो उनका प्रभार संभाले और उन पर नजर रखे। उनके काम की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने और व्यक्तिगत निगरानी करने और निर्देशन प्रदान करने के लिए कोई अगुआ या कार्यकर्ता होना चाहिए। तभी उनका काम थोड़ा-सा फलदायी हो सकता है। यदि अगुआ या कार्यकर्ता कार्यस्थल छोड़ देता है और काम पर ध्यान नहीं देता या इसकी खैरियत नहीं पूछता, तो ये लोग अव्यवस्थित होकर बिखर जाएँगे और इनका कर्तव्य निर्वहन निष्फल होगा। फिर भी नकली अगुआओं में इस बारे में कोई अंतर्दृष्टि नहीं होती। वे सबको भाई-बहनों के रूप में देखते हैं, आज्ञाकारी और समर्पित लोग मानते हैं और इसीलिए वे उन पर बहुत भरोसा कर उन्हें काम सौंपते हैं और फिर उन पर ध्यान नहीं देते—यह नकली अगुआओं की आँख और दिमाग की अंधता का सबसे अच्छा सबूत है। नकली अगुआ सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, मामलों को साफ तौर पर नहीं देख सकते और किसी भी समस्या को सामने लाने में असमर्थ होते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि वे ठीक-ठाक काम कर रहे हैं। वे अपने दिन क्या सोचते हुए बिताते हैं? वे सोचते हैं कि कैसे किसी अधिकारी की तरह काम किया जाए और रुतबे के फायदे उठाए जाएँ। विचारहीन लोगों की तरह नकली अगुआ परमेश्वर के इरादों के प्रति जरा भी विचार नहीं करते। वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, फिर भी वे परमेश्वर के घर से प्रशंसा और पदोन्नति पाने की प्रतीक्षा करते हैं। सच में, उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती!

नकली अगुआ अपना काम करने में बिल्कुल बेकार होते हैं, और उनके बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं होता। वे व्यापक परिप्रेक्ष्य के अर्थ में सिद्धांतों को समझने में विफल होते हैं, विशिष्ट विस्तृत कार्य से संबंधित सिद्धांतों को समझने की बात तो दूर रही। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों में सशक्त पेशेवर योग्यताएँ होती हैं, मगर उनकी मानवता बेहद खराब होती है, जबकि दूसरों की मानवता में कोई समस्या नहीं होती, मगर उनकी काबिलियत और पेशेवर योग्यताएँ कमजोर होती हैं। जब इन लोगों के उचित ढंग से नियोजन और आवंटन किए जाने की बात आती है, तो नकली अगुआ इन अधिक विशिष्ट और विस्तृत मामलों के बारे में और भी कम जानते हैं। तो जब भी नकली अगुआओं से पूछा जाता है कि क्या उन्हें कोई पर्याप्त अच्छी योग्यता वाला मिल गया है जिसे विकसित किया जा सकता है, तो वे कहते हैं कि अभी उन्हें कोई नहीं मिल पाया है। नकली अगुआ बहुत दृष्टिहीन होते हैं—वे किसी को कैसे ढूँढ़ सकते थे? अगर तुम उनसे पूछो कि अमुक बहन कैसी है, तो वे कहेंगे कि वह देह-सुख का लालच करती है; उनसे पूछो कि अमुक भाई कैसा है, तो वे कहेंगे कि वह अक्सर निराश रहता है; उनसे पूछो कि दूसरा कोई कैसा है तो वे कहेंगे कि उस व्यक्ति ने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखा है और उसकी कोई नींव नहीं है। उनकी नजरों में कोई भी संतोषजनक नहीं है। वे दूसरे लोगों की सिर्फ खामियाँ, कमियाँ और अपराध देखते हैं; वे यह देखने में सक्षम नहीं होते कि क्या कोई व्यक्ति पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप है, या क्या वह पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए एक अच्छा उम्मीदवार है। वे नहीं बता सकते कि कौन-सा व्यक्ति पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए सचमुच उपयुक्त है, लेकिन वे उन लोगों को बड़े उत्साह और तेजी से पदोन्नत करते हैं जो परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरते। वे कलीसिया में तमाम धनाढ्य महिलाओं, अमीर पुरुषों, और धनी परिवारों के बेटे-बेटियों को, और साथ ही जिन लोगों ने बाहरी दुनिया में अधिकारियों के रूप में सेवा की है, जो बोलने में सुस्पष्ट हैं, और जो धोखा देना और गबन करना जानते हैं, उन्हें पदोन्नत कर देते हैं—हर हाल में, वे बाहरी दुनिया में जाने-माने और विशिष्ट लोगों और जो भी ध्यान का केंद्र बनना पसंद करते हैं, उन्हें पदोन्नत करते हैं। वे मानते हैं कि केवल यही लोग प्रतिभाशाली हैं, और वे ऐसे एक भी व्यक्ति को नहीं तलाशते या पदोन्नत करते जिसमें सच में समझने की योग्यता होती है और जो सत्य स्वीकार सकता है। किसी नकली अगुआ के लिए खुद को चाँद पर पहुँचा लेने की अपेक्षा परमेश्वर के घर के लिए एक भी, वास्तव में योग्य प्रतिभा दे पाना काफी कठिन होगा। उदाहरण के लिए, मान लो कि परमेश्वर के घर को फिलहाल पाठ-आधारित कार्य के लिए प्रतिभाशाली व्यक्तियों की जरूरत है—इस प्रकार का एक व्यक्ति एक कलीसिया में है जिसका प्रभारी एक नकली अगुआ है, लेकिन वह नकली अगुआ इस व्यक्ति का नाम आगे नहीं बढ़ाता। जब उस नकली अगुआ से पूछा जाता है कि वह उस व्यक्ति को पदोन्नत या विकसित क्यों नहीं करता, तो वह कहता है : “उस व्यक्ति ने विश्वविद्यालय में पढ़ते समय दो बार व्यभिचार किया था, लेकिन शादी हो जाने के बाद उसने दोबारा ऐसा नहीं किया। मैं नहीं जानता था कि उसे पदोन्नत करना चाहिए या नहीं।” यह कैसा कथन है? क्या तुम इस बात की गारंटी दे सकते हो कि तुम जिन धनाढ्य और शक्तिशाली लोगों को पदोन्नत करते हो, उन्होंने कभी भी व्यभिचार नहीं किया? क्या वे लोग और भी ज्यादा व्यभिचार नहीं करते? ऐसा कैसे है कि तुम यह देख ही नहीं पाते? नकली अगुआ इतने झूठे आध्यात्मिक होते हैं, ऐसा ढोंग करते हैं कि वे कुछ सिद्धांत जानते हैं, और उन लोगों को पदोन्नत न करने को सही ठहराने के बहाने ढूँढ़ते हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए। उनकी नजरों में हर कोई उनसे हीन है। अंत में क्या होता है? क्या नकली अगुआओं द्वारा पदोन्नत किए गए “अभिजात” और “प्रतिभाशाली लोग” अडिग खड़े रहे हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि ये लोग निश्चित रूप से अच्छे नहीं हैं। हम मुख्य रूप से यह उजागर कर रहे हैं कि नकली अगुआओं का लोगों से व्यवहार करने का सिद्धांत, पैमाने के रूप में, सत्य के बजाय मानवीय धारणाओं का उपयोग करना है, और लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए उनका सिद्धांत अपनी खुद की धारणाओं, कल्पनाओं और प्राथमिकताओं और पूरी तरह से गैर-विश्वासियों के दृष्टिकोण के अनुसार चलना होता है, बजाय इसके कि अपने पैमाने के रूप में परमेश्वर के घर के अपेक्षित मानकों का उपयोग करें। नकली अगुआ ऐसा करने में क्यों सक्षम होते हैं? क्योंकि वे सत्य को या परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते, इसलिए वे उन लोगों को पदोन्नत करने में सक्षम होते हैं जो परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं को बिल्कुल पूरा नहीं करते, वे उन्हें विकसित करने और परमेश्वर के घर के महत्वपूर्ण कामों में लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। नकली अगुआ ऐसे ही कार्य करते हैं। अपने आसपास के नकली अगुआओं पर गौर करो; क्या वे इसी तरीके से काम नहीं करते और लोगों से इसी तरह व्यवहार नहीं करते?

एक विशेष दृष्टिकोण है जो अक्सर नकली अगुआओं में प्रकट होता है : वे सोचते हैं कि जानकार, रुतबे वाले और बाहरी दुनिया में अधिकारियों के रूप में काम कर चुके सभी लोग प्रतिभाशाली हैं, और ऐसे लोगों को उनके परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद से परमेश्वर के घर द्वारा विकसित और नियोजित किया जाना चाहिए। वे ऐसे लोगों का वास्तव में सम्मान करते हैं और उनकी आराधना करते हैं—यहाँ तक कि वे उनसे अपने ही बच्चों और अपने ही परिवार के सदस्यों जैसा व्यवहार करते हैं। जब वे दूसरों से इन लोगों को मिलवाते हैं, तो वे अक्सर यह बताते हैं कि बाहरी दुनिया में वे किस तरह किसी कंपनी के मालिक, या किसी सरकारी विभाग के प्रमुख, या किसी समाचार पत्र के संपादक, या जन सुरक्षा विभाग के निदेशक थे, या वे इस बारे में बताते हैं कि वे कितने अमीर हैं। नकली अगुआ ऐसे लोगों के बारे में खासा ऊँचा सोचते हैं। तुम लोग क्या कहते हो, क्या नकली अगुआओं में काबिलियत होती है? क्या बात ऐसी नहीं है कि वे झूठी तरह से आध्यात्मिक हैं, और चीजों की असलियत नहीं समझ सकते? नकली अगुआ सोचते हैं कि चूँकि ये लोग समाज में प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, इसलिए परमेश्वर के घर को उन्हें विकसित करना चाहिए और उनके यहाँ आने पर उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगाना चाहिए। क्या यह नजरिया सही है? क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? अगर इन लोगों को सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है, और इनमें अंतरात्मा और विवेक नहीं है, तो क्या उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा विकसित कर कोई महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी जा सकती है? वे विकसित किए जाने की योग्यता नहीं रखते। इस तथ्य का कि वे गैर-विश्वासियों के बीच प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, यह मतलब नहीं है कि वे परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली लोग हैं, बल्कि यह है कि नकली अगुआओं को अधिकारी होना अच्छा लगता है, और वे उन दूसरे लोगों की विशेष रूप से आराधना करना पसंद करते हैं जो अधिकारी रह चुके हैं। जब भी वे ऐसे लोगों को देखते हैं जो पहले अधिकारी थे या बाहरी दुनिया में जिनका रुतबा था, तो वे माथा टेकते हैं और उनकी बड़ी चापलूसी करते हैं, जैसे कि मालिक के सामने गुलाम करते हैं; वे बहुत चाहते हैं कि उन्हें माता या पिता या बड़ी बहन या बड़ा भाई बुलाएँ, और वे कलीसिया में इन लोगों को अगुआओं या कार्यकर्ताओं के रूप में पदोन्नत करवाने की भी कामना करते हैं। मुझे बताओ, क्या ये सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? क्या उनके बाहरी दुनिया में थोड़े रुतबे या थोड़ी ख्याति का आनंद लेने का यह अर्थ है कि वे परमेश्वर के घर में एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए उपयुक्त हैं? अगर वे सत्य नहीं समझते और अहंकारी और दंभी स्वभावों से भरे हुए हैं, तो क्या वे परमेश्वर के घर में एक अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? क्या लोगों को सिर्फ उनके रुतबे और ख्याति पर ध्यान देकर, और उनके चरित्र की अनदेखी कर पदोन्नत करना सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या नकली अगुआ जानते हैं कि परमेश्वर किस प्रकार के लोगों को पसंद करता है, और वह किस प्रकार के लोगों को पदोन्नत और नियोजित करता है? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं में बारम्बार इस बात पर जोर दिया गया है कि लोगों को तीन मानकों के अनुसार पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए : पहला, उनमें मानवता, अंतरात्मा और विवेक होने चाहिए; दूसरा, उन्हें ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो सत्य से प्रेम करता हो और सत्य को स्वीकारने में सक्षम हो; तीसरा, उसमें कुछ हद तक काबिलियत और कार्य क्षमता होनी चाहिए। केवल वे लोग जो इन तीनों मानकों पर खरे उतरते हैं, पदोन्नत और विकसित किए जाने में सक्षम होते हैं, और वे उम्मीदवार होने और अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य होते हैं। सिर्फ काबिलियत और प्रतिभा होने भर से काम बिल्कुल नहीं चलेगा। सबसे पहले आता है चरित्र, और दूसरे, सत्य को स्वीकारने में सक्षम होना अनिवार्य है—ये दो सबसे महत्वपूर्ण मानक हैं। जिन बुरे लोगों को सत्य से बिल्कुल प्रेम नहीं होता, अगर उन्हें पदोन्नत किया जाता है, तो परिणाम विनाशकारी होंगे, इसलिए जिन लोगों में मानवता नहीं होती उन्हें पदोन्नत करने की बिल्कुल अनुमति नहीं होती। लेकिन नकली अगुआ परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं की अनदेखी करते हैं। लोगों को चुनते और नियोजित करते समय वे हमेशा इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि क्या उस व्यक्ति का समाज में रुतबा है, उसकी पृष्ठभूमि और स्थान क्या है, क्या उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, और समाज में उसकी प्रतिष्ठा कितनी ऊँची है—लोगों को पदोन्नत और विकसित करते समय वे इन्हीं पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। क्या यह परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या यह परमेश्वर के वचनों के सत्य के अनुरूप है? वे कौन लोग हैं जिनका समाज में रुतबा है? यह कहा जा सकता है कि ये वे सभी लोग हैं जो कुछ भी करके सत्ता और रुतबे के लिए लड़ते हैं और वे शैतान की श्रेणी से संबंधित हैं। अगर परमेश्वर के घर में सत्ता उनके हाथ में होगी, तो क्या परमेश्वर का घर तब भी परमेश्वर की कलीसिया होगी? शैतान की श्रेणी के लोगों को अगुआ के रूप में पदोन्नत करने के पीछे नकली अगुआओं का लक्ष्य क्या होता है? क्या इस तरह कार्य करना लोगों को विकसित कर नियोजित करने के परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या यह कलीसिया के कार्य को खुल्लमखुल्ला बाधित कर उसे हानि पहुँचाना नहीं है? नकली अगुआओं का लोगों की असैद्धांतिक पदोन्नति करना और उन्हें विकसित करना ही कलीसिया के कार्य में सबसे बड़ी गड़बड़ी और बाधा पैदा करता है, और परमेश्वर का प्रतिरोध करने का एक तरीका है।

नकली अगुआओं में सत्य को समझने की बेहद कमजोर काबिलियत होती है, और योग्यता होती ही नहीं। वे चाहे जितने भी धर्मोपदेश सुन लें या परमेश्वर के जितने भी वचन पढ़ लें, फिर भी सत्य की न तो शुद्धता से गहन समझ प्राप्त करते हैं न ही उसे समझते हैं, और चाहे उन्होंने जितने भी वर्षों तक धर्म-सिद्धांतों का प्रचार किया हो, वे जो कहते हैं उसे नहीं समझते, ये सब सिर्फ दिखावटी होता है, और उसे समझना असंभव होता है! वे धर्म-सिद्धांत को थोड़ा याद रख कर प्रचार कर सकते हैं, इसलिए वे सोचते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है, लेकिन वे जो भी करते हैं वह सत्य से संबंधित नहीं होता—वे ठेठ फरीसी होते हैं। बाहर से ऐसा दिखता है कि वे अक्सर लोगों को उपदेश देते हैं, और अच्छी लगने वाली बातें बताते हैं, जैसे कि उन्होंने सत्य को समझ लिया हो, लेकिन वे जो करते हैं वह सत्य के प्रति विरोधात्मक और उसके विपरीत होता है। वे यह भी दावा करते हैं कि वे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं और कलीसियाई कार्य कर रहे हैं, जबकि वास्तव में उनके द्वारा किया जाने वाला हर काम परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से शत्रुतापूर्ण होता है। नकली अगुआ कभी भी उन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत नहीं करते जो परमेश्वर के घर के लिए उपयोगी होते हैं, और वे उन अपेक्षाकृत ईमानदार लोगों की अनदेखी कर उनसे आँखें फेर लेते हैं, जो सही मायनों में सत्य का अनुसरण करते हैं। इसके बजाय, वे उन लोगों को पदोन्नत और विकसित करते हैं जो चापलूसी में लीन होते हैं, जो अस्थिर और कपटपूर्ण होते हैं, और जिन लोगों में कलीसिया में काम सँभालने की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं। इन सबका परिणाम यह होता है कि जब वे लोग एक खास अवधि तक कार्य पर रह चुके होते हैं, तो कलीसियाई कार्य की विभिन्न मदें थम जाती हैं और व्यावहारिक तौर पर पूरी तरह ठप पड़ जाने की स्थिति में आ जाती हैं, और इस तरह इन नकली अगुआओं के हाथों कलीसियाई कार्य बरबाद हो जाता है। क्या नकली अगुआ इस प्रकार के लोग नहीं हैं, जो घिनौने होते हैं? क्या उन्हें बरखास्त कर दिया जाना चाहिए? उन्हें जरूर बरखास्त कर दिया जाना चाहिए! विलंब का प्रत्येक दिन कलीसियाई कार्य को एक पूरे दिन के लिए प्रभावित करता है। हालाँकि कुछ नकली अगुआ यह जानते हैं कि वे वास्तविक कार्य करने में अक्षम हैं, फिर भी वे स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देना चाहते और निरंतर रुतबे के लाभों में आसक्त रहते हैं और कलीसियाई कार्य को नुकसान पहुँचाने की हद तक चले जाते हैं। क्या इन लोगों में जरा-सा भी विवेक है? नकली अगुआओं में गहन समझ की कोई क्षमता नहीं होती, या कोई सच्ची प्रतिभा और वास्तविक ज्ञान नहीं होता, और वे ऐसे लोग नहीं होते जो सत्य का अनुसरण करते हैं, और वे रुतबे के लाभों का भी लालच करते हैं—वे बेशर्म लोग होते हैं; इसलिए उन्हें बिल्कुल भी पदोन्नत और विकसित नहीं करना चाहिए। अगर तुम सोचते हो कि तुम्हारी काबिलियत बहुत कमजोर है, तुममें सही और गलत का भेद करने की क्षमता नहीं है और तुममें सत्य की गहन समझ की क्षमता नहीं है, तो तुम चाहे कुछ भी करो, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं पर आसक्त मत रहो, और यह मत सोचो कि ऐसे प्रयास कैसे करें कि कलीसिया में कोई अधिकारी बनें—कलीसिया का अगुआ बनें—अगुआ बनना उतना आसान नहीं है। अगर तुम एक ईमानदार इंसान नहीं हो, और तुम सत्य से प्रेम नहीं करते, तो फिर अगुआ बनते ही तुम या तो एक मसीह-विरोधी बन जाओगे या नकली अगुआ। मसीह-विरोधी और नकली अगुआ दोनों ही अंतरात्मा और विवेक रहित, और ऐसे लोग होते हैं जो बुरे काम करने और कलीसियाई कार्य को बाधित करने में सक्षम होते हैं। यद्यपि यह कहना सही है कि मसीह-विरोधी दानव और शैतान होते हैं, पर नकली अगुआ भी अच्छे लोग नहीं होते; कम-से-कम वे खुल्लमखुल्ला बेशर्म लोग होते हैं जिनमें अंतरात्मा और विवेक नहीं होता। क्या नकली अगुआ होने और बरखास्त किए जाने में कोई महिमामय बात है? यह शर्मनाक है, एक धब्बा है, और इसको लेकर कुछ भी महिमामय नहीं है। अगर तुम में कलीसिया के कार्य के प्रति दायित्व की भावना है, और तुम उसमें शामिल होना चाहते हो, तो यह अच्छा है; लेकिन तुम्हें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि क्या तुम सत्य को समझते हो, क्या तुम समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य की संगति करने में सक्षम हो, क्या तुम वास्तव में परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम हो, और क्या तुम कलीसिया का कार्य, कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार ठीक से करने में सक्षम हो। अगर तुम ये मानदंड पूरे करते हो, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए आगे आ सकते हो। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि लोगों को कम-से-कम खुद को जानना चाहिए। पहले देखो कि क्या तुम विभिन्न प्रकार के लोगों का भेद पहचानने में सक्षम हो, क्या तुम सत्य समझ सकते हो और सिद्धांत के अनुसार कार्य कर सकते हो। अगर तुम ये अपेक्षाएँ पूरी करते हो, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त हो। अगर तुम अपना मूल्यांकन न कर पाओ, तो तुम अपने आस-पास के उन लोगों से पूछ सकते हो, जो तुमसे परिचित हैं या तुम्हारे निकट हैं। अगर वे सब कहें कि अगुआ बनने के लिए तुम्हारी क्षमता अपर्याप्त है, और कि तुम्हारा अपने मौजूदा काम को बढ़िया तरीके से करना ही बहुत अच्छा है तो तुम्हें जल्दी से खुद को जान लेना चाहिए। क्योंकि तुम्हारी काबिलियत कम है, तो अपना सारा समय अगुआ बनने की चाह में न गँवाओ—बस वही करो जो कर सकते हो, धरातल पर रहते हुए अपना कर्तव्य ठीक से करो, ताकि तुम्हें मानसिक शांति मिल सके। यह भी अच्छा है। और अगर तुम अगुआ बनने में सक्षम हो, अगर तुम वास्तव में ऐसी काबिलियत और प्रतिभा रखते हो, अगर तुममें वास्तव में कार्य-क्षमता और दायित्व की भावना है, तो तुम ठीक उस तरह की प्रतिभा वाले लोग हो, जिनकी परमेश्वर के घर में कमी है, और तुम्हें निश्चित रूप से पदोन्नत और विकसित किया जाएगा; किंतु ये सब चीजें परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय पर होती हैं। यह इच्छा—पदोन्नत होने की इच्छा—महत्वाकांक्षा नहीं है, लेकिन तुममें अगुआ बनने की क्षमता होनी चाहिए और तुम्हें उसके मानदंड पूरे करने चाहिए। अगर तुम खराब क्षमता के हो, फिर भी अपना सारा समय अगुआ बनना चाहने या किसी महत्वपूर्ण कार्य का बीड़ा उठाने, या समग्र कार्य की जिम्मेदारी लेने, या कुछ ऐसा करने में लगाते हो जो तुम्हें सबसे अलग दिखाता हो, तो मैं तुमसे कहता हूँ : यह महत्वाकांक्षा है। महत्वाकांक्षा आपदाओं को आमंत्रित कर सकती है, इसलिए तुम्हें इससे सावधान रहना चाहिए। सभी लोगों में प्रगति करने की इच्छा होती है और वे सत्य की ओर बढ़ने के प्रयास करने के इच्छुक होते हैं, जो कोई समस्या नहीं है। कुछ लोगों में काबिलियत होती है, वे अगुआ होने के मानदंड पूरे करते हैं और सत्य की ओर बढ़ने के प्रयास करने में सक्षम होते हैं, और यह अच्छी बात है। दूसरों में काबिलियत नहीं होती, इसलिए उन्हें अपने कर्तव्य पर टिके रहते हुए अपने सामने के कर्तव्य को अच्छी तरह से और सिद्धांत के अनुसार, और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के मुताबिक करना चाहिए। उनके लिए यही बेहतर, सुरक्षित, अधिक यथार्थपरक है।

जिन लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता होने के लिए चुना जाता है या जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उन्हें यह महसूस करके खयाली पुलाव पकाने में नहीं लगना चाहिए कि, “भाई-बहनों ने मुझे इतने सारे लोगों के बीच में से चुना, परमेश्वर के घर ने मुझे पदोन्नत किया, तो मुझमें सच में थोड़ी प्रतिभा है और मैं साधारण लोगों से बेहतर हूँ; सच्चा सोना अंततः चमकता ही है।” क्या इस तरह सोचना अच्छा है? क्या यह भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन नहीं है? (हाँ।) पदोन्नत और विकसित होना एक अच्छी बात और एक अच्छा अवसर है, लेकिन तुम इस मार्ग पर चल सकते हो या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम इस अवसर को किस दृष्टि से देखते हो, और क्या तुम इसकी कद्र कर सकते हो। परमेश्वर ने तुम्हें यह मौका दिया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम वास्तव में किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर हो; हो सकता है कि तुम्हारी काबिलियत दूसरों से थोड़ी बेहतर हो, या तुममें कुछ गुण हों, लेकिन यह कहना कठिन है कि तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा है और क्या तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है—क्योंकि सभी लोगों के भ्रष्ट स्वभाव एक समान ही होते हैं, और तुम भी भ्रष्ट मानवजाति के ही एक सदस्य हो। अगर तुम इसका एहसास कर सको तो तुम परमेश्वर के घर द्वारा अपने पदोन्नत और विकसित किए जाने को सही दृष्टि से देखने में सक्षम हो सकोगे। तुम्हें स्वयं को एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में नहीं लेना चाहिए, न ही तुम्हें यह सोचना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है। बात सिर्फ इतनी है कि तुममें थोड़ी-सी काबिलियत है, और तुम सत्य के लिए थोड़ा प्रयास भी कर सकते हो, तो तुम्हें खुद को प्रशिक्षित करने योग्य बना दिया गया है। यह एक परिवीक्षाधीन अवधि है, और यह अभी सुनिश्चित नहीं है कि क्या तुम सच में वह व्यक्ति हो जो सत्य का अनुसरण करता है, या तुम विकसित किए जाने योग्य हो। यह कहना कठिन है कि इस अवधि के दौरान की आजमाइश के बाद तुम दृढ़ता से खड़े रहने में सक्षम होगे। हो सकता है कि तुम्हें विकसित किए जाने के लिए बनाए रखा गया हो, या हो सकता है कि तुम्हें हटा दिया जाए—यह सब इस पर निर्भर करता है कि तुम कितना प्रयास करते हो। लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता बनाने के लिए पदोन्नत करना इसी बात को लेकर होता है, और तुम्हें यह समझना चाहिए। तुम्हारा खुद का यह सोचना व्यर्थ है कि तुम प्रतिभाशाली व्यक्ति हो। अगर परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित नहीं करता, तो तुम कुछ भी नहीं हो। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, और परमेश्वर के घर द्वारा नियोजित किए जाने की इच्छा नहीं रखते, तो तुम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। फिर अगर तुम कहो, “परमेश्वर का घर मुझे नियोजित नहीं करता, मैं बाहर समाज में चला जाऊँगा,” तो ठीक है, बाहर समाज में जाओ और आजमाओ, देखो कि तुम्हें कौन पदोन्नति देता है, और देखो कि तुम क्या हासिल करने में सक्षम होते हो। यह कहने का मेरा तात्पर्य तुम लोगों को यह बताना है कि तुममें परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के प्रति सही समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए। जो लोग कमजोर या औसत काबिलियत के होते हैं और जो लोग परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए अपेक्षित मानकों पर खरे नहीं उतर सकते, उन्हें बस अपना कर्तव्य विनयपूर्वक और दृढ़ता से पूरा करना चाहिए। अगर तुम पूरे हृदय और मन से अपना कर्तव्य निभाते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे साथ अनुचित व्यवहार नहीं करेगा। इसलिए, पदोन्नत और विकसित किए जाने के मामलों पर लड़ो मत, लेकिन उन्हें इनकार भी मत करो, बस सभी चीजों को सहज रूप से होने दो; एक लिहाज से, तुम्हें परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए, और दूसरे लिहाज से तुम्हारे पास परमेश्वर के प्रति समर्पण का दिल होना चाहिए—यही सही तरीका है। क्या ऐसा करना सरल है? (हाँ, यह सरल है।) क्या कमजोर काबिलियत वाले व्यक्ति के अगुआ होने का कोई लाभ है? अंत में, जब उन्हें नकली अगुआ निरूपित कर हटा दिया जाता है, तो वे इस बारे में कैसा महसूस करेंगे? क्या यह ऐसा होगा जैसा तुम लोग चाहते थे? (नहीं।) तुम्हारे सिर पर “नकली अगुआ” का खिताब होगा और तुम जहाँ भी जाओगे, लोग कहेंगे, “यह व्यक्ति कभी नकली अगुआ होता था।” क्या यह अच्छी बात है या बुरी? यह अच्छी बात नहीं है, और यह कोई गरिमामय चीज नहीं है। लोगों में पदोन्नत और विकसित किए जाने के प्रति सही समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए; इन मामलों में उन्हें सत्य की तलाश करनी चाहिए, अपनी इच्छा का पालन नहीं करना चाहिए, महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ नहीं रखनी चाहिए। अगर तुम्हें लगता है कि तुम अच्छी क्षमता के हो, लेकिन परमेश्वर के घर ने तुम्हें कभी पदोन्नत नहीं किया है, और न ही तुम्हें विकसित करने की उसकी कोई योजना है, तो निराश न हो, शिकायत न करने लगो, बस सत्य का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करो। जब तुम्हारा कुछ अध्यात्मिक कद हो जाएगा और तुम वास्तविक कार्य करने में सक्षम हो जाओगे, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हें अगुआ चुन लेंगे। और अगर तुम्हें लगता है कि तुम खराब क्षमता के हो, और तुम्हारे पदोन्नत या विकसित होने की कोई संभावना नहीं, और तुम्हारी महत्वाकांक्षा पूरी होना असंभव है, तो क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह तुम्हारी रक्षा करेगा! क्योंकि तुम खराब क्षमता के हो, तो यदि तुम्हें दृष्टिहीन और भ्रमित लोगों का ऐसा समूह मिल जाता है जो तुम्हें अपना अगुआ चुन लेता है, तो क्या तुम दहकते अंगारों पर नहीं चलने जा रहे हो? तुम कोई भी काम करने में असमर्थ होते हो, तुम्हारे दिमाग और आँखों को कुछ नहीं दिखता। तुम सिर्फ बाधा डालने वाले काम करते हो; तुम्हारी हर हरकत दुष्टता होती है। बेहतर होगा कि तुम मौजूदा कर्तव्य का कार्य ही अच्छी तरह से करो; कम से कम तुम शर्मिंदा तो नहीं होगे, और यह नकली अगुआ होने और पर्दे के पीछे होने वाली आलोचनाओं का लक्ष्य बनने से तो बेहतर है। एक इंसान के रूप में तुम्हें अपना माप पता होना चाहिए, तुम्हें खुद का ज्ञान होना चाहिए; ऐसा होने पर तुम गलत रास्ता अपनाने और गंभीर गलतियाँ करने से बच सकोगे।

तुम लोग नकली अगुआ बनना चाहते हो या साधारण अनुयायी? (साधारण अनुयायी।) अगर भाई-बहन तुम्हें चुनते हैं, तो इसे आजमाओ; हो सकता है कि तुम्हारे बारे में उनका नजरिया अपने बारे में तुम्हारी अपनी भावनाओं की अपेक्षा ज्यादा सटीक हो। अगर भाई-बहनों को लगता है कि तुम यह कर सकते हो, तो तुम्हें अपना सब-कुछ लगा देना चाहिए। अगर तुम वास्तव में सर्वोत्तम प्रयास करते हो, लेकिन फिर भी काम में असफल होते हो, और तुम्हारा दिल व्याकुलता से इस तरह जल रहा हो कि तुम खा-पी न सको, तुम्हारी नींद उड़ जाए, और तुम न जान सको कि इसे ठीक से कैसे करना है, तो अगुआ या कार्यकर्ता बनना छोड़ दो—यह तुम्हारे लिए बहुत कठिन है। अगर तुम जारी रखोगे, तो हो सकता है कि तुम एक नकली अगुआ बन जाओ, इसलिए तुम्हें बिना विलंब के यह घोषणा करते हुए त्यागपत्र लिख देना चाहिए, “मैं कमजोर काबिलियत का हूँ और वास्तविक कार्य करने में अक्षम हूँ, अगर मैं अगुआ बना रहा, तो यकीनन जल्द ही मैं एक नकली अगुआ बन जाऊँगा, इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि मुझे त्यागपत्र देने दिया जाए और स्वेच्छा से पद त्यागने दिया जाए।” यह सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण क्रियाविधि है, और यह करना सबसे उपयुक्त बात है! यह तर्कसंगत है, और पद पर बने रहने और नकली अगुआ बनने से बेहतर है। अगर तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुम खराब क्षमता वाले हो और अगुआ बनने में अक्षम हो, लेकिन रुतबा छोड़ना सहन नहीं कर सकते, और अपने आप से कहते हो, “मैं यह क्यों नहीं कर सकता? मेरी थोड़ी-बहुत मदद कौन कर सकता है? कितना बढ़िया होगा अगर मैं अगुआ के रूप में अपना रुतबा भी बनाए रख सकूँ, और कोई अन्य मेरे लिए सभी योजनाएँ और रणनीतियाँ बना दे! फिलहाल ऐसा कोई नहीं है जो मेरा स्थान लेने लायक हो, इसलिए मैं ही अगुआ बना रह सकता हूँ और बस यही कर सकता हूँ कि जितने समय तक मैं काम कर रहा हूँ तब तक हर दिन उसका आनंद लेता रहूँ; भले ही मैं कार्य न कर सकूँ, फिर भी मैं अगुआ हूँ, और अगुआ होना साधारण भाई-बहन होने से बेहतर है। अगर परमेश्वर का घर मुझे बरखास्त नहीं करता और भाई-बहन मुझे नहीं निकालते, तो मैं त्यागपत्र नहीं दूँगा।” क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? (यह अनुचित है; अगर मैं वास्तविक कार्य करने में अक्षम हूँ, और फिर भी त्यागपत्र नहीं देता, तो इससे कलीसिया का कार्य विलंबित ही होगा।) इस प्रकार कार्य करने से कलीसिया के कार्य में देर होती है—इससे दूसरों को पीड़ा पहुँचती है, और यह तुम्हें भी पीड़ा पहुँचाती है। अगुआ होने का मतलब जानते हो? इसका मतलब है कि तुम्हारा कई लोगों के जीवन में प्रवेश के साथ सीधा संबंध है, और तुम्हारी अगुआई का इस बात से सीधा संबंध है कि वे अपने सामने के मार्ग पर कैसे चलते हैं। अगर तुम अच्छी तरह से अगुआई करो और उन्हें सही मार्ग पर आगे बढ़ाओ, तो वे सही मार्ग पर कदम रखने में सक्षम होंगे। अगर तुम खराब तरीके से उनकी अगुआई करो और उन्हें गंदे नाले में आगे बढ़ाओ, और वे तुम जैसे फरीसी बन जाएँ, तो तुम्हारा पाप बहुत बड़ा होगा! और तुम्हारे यह बड़ा पाप करने के बाद, क्या यही इसका अंत होगा? परमेश्वर इसे दर्ज कर लेगा! तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुम्हारी काबिलियत खराब है, तुम एक नकली अगुआ हो और वास्तविक कार्य करने में अक्षम हो, फिर भी तुम अपने दोष मानकर त्यागपत्र नहीं देते, बल्कि बेशर्मी से अपने पद से चिपके रहते हो, और किसी और के लिए वह स्थान नहीं छोड़ते। यह पाप है, और परमेश्वर इसका हिसाब रखेगा। और उसका हिसाब रखना भविष्य में तुम्हारे लिए अच्छा होगा या बुरा? तुम मुसीबत में पड़ जाओगे! मैं तुम्हें ईमानदारी से सत्य बताऊँगा : परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के ऐसे कामों का हिसाब रखता है, और उसमें हर चीज स्पष्ट रूप से दर्ज की जाती है। अगर तुम्हारे उद्धार के मार्ग पर कोई ऐसी बेहद गंभीर चीज हो जाए, तो तुम पर उसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। तुम कुछ भी करो, मगर इस मार्ग पर मत चलो और इस तरह के व्यक्ति मत बनो।

हमने विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के बारे में नकली अगुआओं के कुछ अभ्यासों और अभिव्यक्तियों पर संक्षेप में संगति की है। संक्षेप में कहें, तो जिस प्रकार का व्यक्ति नकली अगुआ होता है वह वास्तविक कार्य नहीं करता, और वह वास्तविक कार्य करने में अक्षम होता है। उसकी काबिलियत कमजोर होती है, उसकी आँखें और दिमाग दृष्टिहीन होते हैं, वे समस्याएँ खोजने में अक्षम होते हैं, और विभिन्न प्रकार के लोगों की असलियत नहीं समझ सकते, इसलिए वे विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं। इस प्रकार उनके पास कलीसिया का कार्य अच्छे ढंग से करने का कोई तरीका नहीं होता, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बहुत-सी कठिनाइयाँ खड़ी होती हैं। इन कारकों पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि नकली अगुआ कलीसिया के अगुआ बनने के लायक नहीं हैं। ऐसे दूसरे नकली अगुआ भी हैं जो कलीसिया का कोई विशेष कार्य नहीं करते और विशिष्ट कार्य के पर्यवेक्षकों से कोई संपर्क नहीं करते, इसलिए वे यह नहीं जानते कि कौन-से प्रतिभाशाली व्यक्ति कौन-सा कार्य करने के काबिल हैं, न ही यह कि कौन किस कार्य के लिए उपयुक्त है, न ही यह कि उनका कामकाज सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। इस प्रकार वे प्रतिभावान लोगों को पदोन्नत और विकसित करने में असमर्थ होते हैं। तो फिर ऐसे लोग कलीसिया के कार्य को अच्छे ढंग से कैसे कर सकते हैं? नकली अगुआओं के वास्तविक कार्य न कर पाने का मुख्य कारण यह है कि उनकी काबिलियत कमजोर होती है; उनके पास किसी भी चीज की अंतर्दृष्टि नहीं होती है, और वे नहीं जानते कि वास्तविक कार्य क्या होता है। इससे कलीसिया के कार्य में अक्सर अकर्मण्यता की स्थितियाँ पैदा होती हैं या पूर्ण गतिहीनता आ जाती है। ये सीधे तौर पर नकली अगुआओं के वास्तविक कार्य करने में विफलता से संबंधित होती हैं। पिछले अनेक वर्षों से परमेश्वर के घर ने बार-बार जोर दिया है कि बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल देना चाहिए और नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर देना चाहिए। विभिन्न बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को क्यों निकाल दिया जाना चाहिए? क्योंकि कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी, ये लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और ये उस मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ उनके लिए उद्धार की कोई उम्मीद नहीं बची है। और सभी नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं को क्यों बरखास्त कर देना चाहिए? क्योंकि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और कभी भी उन लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं करते जो सत्य का अनुसरण करते हैं; इसके बजाय वे बस व्यर्थ के प्रयासों में संलग्न रहते हैं। इस कारण से कलीसिया का कार्य अस्त-व्यस्त होकर पूर्ण गतिहीनता में पड़ जाता है, मौजूदा समस्याएँ कायम रहती हैं, सुलझ नहीं पातीं, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश धीमा भी पड़ जाता है। अगर इन सभी नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर दिया जाए और कलीसिया को बाधित करने वाले इन सभी बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल दिया जाए, तो कलीसिया का कार्य स्वाभाविक रूप से सुचारू रूप से चलने लगेगा, कलीसिया का जीवन सहज ही काफी बेहतर हो जाएगा, और परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने, पीने, अपने कर्तव्य निभाने और परमेश्वर में आस्था के सही मार्ग में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे। यही चीज है जो परमेश्वर देखना चाहेगा।

27 फरवरी 2021

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