अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5) खंड चार

हमने अभी-अभी विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने की कसौटियों और लक्ष्यों के साथ ही इस बात पर संगति की कि परमेश्वर के घर द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के संबंध में व्यक्ति के पास कैसी समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए। एक और पहलू वह रवैया और दृष्टिकोण है जो पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों के प्रति व्यक्ति को रखना चाहिए। ये कुछ मसले हैं जिन पर छठी मद में संगति की जानी चाहिए। तो आगे, विशेष तौर पर छठी मद को लेकर, आओ यह उजागर और गहन विश्लेषण करें कि नकली अगुआ किस तरह से विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का कार्य करते हैं। यह मुख्य विषयवस्तु है जिस पर हम संगति करेंगे।

सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने को लेकर नकली अगुआओं के रवैए और अभिव्यक्तियाँ

नकली अगुआ सत्य को नहीं समझते और सत्य को नहीं खोजते। इसलिए, जब परमेश्वर के घर में सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने के महत्वपूर्ण कार्य की बात आती है, तो वे उसे खराब भी कर देते हैं, पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर देते हैं, और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं पर खरे उतरने में बिल्कुल विफल हो जाते हैं। क्योंकि वे विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित किए जाने को लेकर परमेश्वर के इरादों को समझना तो दूर, कसौटियों को भी नहीं समझते, और न ही वे विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित किए जाने की महत्ता समझते हैं, इसलिए इस कार्य को मानक स्तर पर और सिद्धांतपूर्ण ढंग से करना उनके लिए बहुत कठिन होता है। जिन विभिन्न प्रकार के “प्रतिभाशाली” लोगों को नकली अगुआ अपना कार्य करने के दौरान विकसित करते हैं, वे निश्चित रूप से मिश्रित किस्म के होते हैं। योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने के बजाय, नकली अगुआ ऐसे लोगों को पदोन्नत करते हैं जिन्हें किसी भी हालत में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करने के लिए पदोन्नत और विकसित नहीं किया जाना चाहिए, और वे उन लोगों को कलीसिया के खर्च पर जीने और परमेश्वर की भेंटों को बरबाद करने देते हैं। सभी नकली अगुआ ऐसे काम करते हैं, जिसके कारण सत्य का अनुसरण करने वाले और न्याय की भावना वाले कुछ लोग दबाए और कुचले जाते हैं, और उन्हें पदोन्नत कर उनका उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, जो लोग निकम्मे होते हैं, वे इन नकली अगुआओं की नजरों में तथाकथित प्रतिभाशाली लोग बन जाते हैं, और उनके द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाते हैं। तो इस कार्य को करते समय नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? उदाहरण के लिए, चलो मान लें कि अपने कार्य की जरूरतों के कारण परमेश्वर के घर को बाहरी मामलों को सँभालने के लिए कुछ लोगों को तलाशना है। तो उसे कैसे लोगों को तलाशना चाहिए? मैंने अभी-अभी अनेक कसौटियों की सूची बनाई, जिनमें शामिल हैं कार्य क्षमता, परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम होना, और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना। क्या एक नकली अगुआ ये सिद्धांत जानता है? स्पष्टतः वह नहीं जानता, तो वह बाहरी मामले सँभालने के लिए लोगों को किस तरह तलाशता है? वह मन-ही-मन सोचता है : “बाहरी मामले कौन सँभाल सकता है? एक बहन है जो कुशाग्रबुद्धि है, और तेजी से प्रतिक्रिया करती है, अच्छी वक्ता है, और लोगों से निपटना जानती है। बोलते समय उसकी आँखें इधर-उधर नाचते हुए हिसाब-किताब लगाती हैं, और औसत इंसान उसे भाँप नहीं सकता। वह कलीसिया की अगुआ बनने के लिए थोड़ी अनुपयुक्त है, लेकिन बाहरी मामले सँभालने में वह शानदार होगी, इसलिए मैं उसे चुनूँगा। बात बस इतनी है कि उसकी शिक्षा का स्तर थोड़ा कम होने के कारण मुझे चिंता होती है कि गैर-विश्वासी उसे नीची नजर से देखेंगे, इसलिए मैं उसके साथ सहयोग करने के लिए एक विश्वविद्यालय स्नातक को तलाशूंगा—जो अपने छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकी थी। यह महिला काफी चालाक तो है, मगर उसके पास समाज का अपेक्षाकृत कम अनुभव है, और उसने दुनिया अपेक्षाकृत कम देखी है, तो वह अपने साझेदार से सीख सकेगी। इन दोनों लोगों में, एक का शिक्षा स्तर कम है, और दूसरी उच्च शिक्षा प्राप्त है, एक के पास समाज का अनुभव है और दूसरी के पास बिल्कुल नहीं है—वे एक दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए उपयुक्त हैं, है ना?” एक वाक्पटु और सुस्पष्ट है, कुशाग्रबुद्धि है, और समाज में काफी जानी-मानी है; जब भी वह गैर-विश्वासियों से बातचीत करती है, तो वे नहीं बता सकते कि वह एक विश्वासी है। दूसरी उच्च शिक्षा प्राप्त है, और सामाजिक रुतबे वाली है; जब भी वह गैर-विश्वासियों से बातचीत करती है, तो वे उसे नीची नजर से नहीं देखते। यह नकली अगुआ इन दो लोगों को जिन सिद्धांतों के आधार पर चुनता है, उनके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? नकली अगुआ मानता है कि अगर किसी में बोलने की खूबी है, कुशाग्रबुद्धि है, और उसकी प्रतिक्रियाएँ तेज हैं, तो वह परमेश्वर के घर के सामान्य मामले सँभाल सकता है। क्या लोगों को चुनने का यह उपयुक्त तरीका है? (नहीं।) यह किस प्रकार से उपयुक्त नहीं है? (ऐसे लोग अक्सर बहुत चतुर होते हैं; हालाँकि वे दूसरों के साथ सांसारिक आचरण के लिए फलसफों में संलग्न हो सकते हैं, और लोगों से निपटना जानते हैं, फिर भी जरूरी नहीं है कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम हो सकें।) सही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर के चाहे जो भी मामले सँभालता हो, उसे कम-से-कम ईमानदार होना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। वाक्-चतुर होने, और बातों से मुर्दा को जिंदा कर देने में सक्षम होने से क्या वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकेंगे? क्या हाजिर जवाब, वाक्पटु और सुस्पष्ट होने का अर्थ यह है कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकते हैं? (नहीं, यह अर्थ नहीं है।) वे शपथ भी ले लें, तो भी यह बेकार है, और तुम्हारा उनके सामने माँगें रखना भी उतना ही व्यर्थ है—उनमें वह चरित्र होना चाहिए। लेकिन नकली अगुआ इन चीजों की जाँच नहीं करते, वे बस यह देखते हैं कि किसके पास समाज का अनुभव है, कौन चतुर है, हाजिर जवाब है, वाक्पटु और सुस्पष्ट है, कौन अवसर के मुताबिक काम करना जानता है, और कौन गिरगिट जैसा और कौन समाज का एक जाना-माना व्यक्ति है। उन्हें लगता है कि ऐसे लोग परमेश्वर के घर के सामान्य मामले सँभाल सकते हैं। क्या यह एक गलती नहीं है? यह लोगों को चुनने के सिद्धांतों और मानकों के लिहाज से एक गलती है। तथ्य यह है कि इस प्रकार का व्यक्ति अत्यंत वाक्-चतुर होता है : ऐसे लोग चाहे किसी भी चीज से निपट रहे हों, उनकी कही हुई हर बात झूठ होती है, और वे चाहे जितनी भी शपथ ले लें वे नहीं बदल सकते। काम करते समय वे सिर्फ अपने ही हितों की रक्षा करते हैं, और खास तौर पर खतरे का सामना होने पर वे सबसे पहले और सबसे अहम अपनी रक्षा करते हैं, और एक बार भी कभी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते। अगर गैर-विश्वासियों के साथ उनका रिश्ता अच्छा हो, तो उनके लिए यह काफी होता है; जहाँ तक परमेश्वर के घर के हितों को हानि पहुँचने, न पहुँचने की बात है, उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं होती। न ही भाई-बहनों की सुरक्षा कोई ऐसी चीज है जिस पर वे ध्यान देते हैं, न वे इस बात की परवाह करते हैं कि क्या परमेश्वर का नाम बदनाम हुआ है; वे सिर्फ अपना ख्याल रखते हैं। नकली अगुआ ऐसे व्यक्ति की असलियत नहीं पहचान सकते, और सोचते हैं कि ऐसे लोग परमेश्वर के घर के बाहरी मामलों को सँभालने में अत्यंत उपयुक्त हैं। क्या यह मूर्खता नहीं है? वह व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों का सौदा कर देता है, लेकिन नकली अगुआ यह जानता भी नहीं और उसे अहम काम सौंप देता है और हर काम के लिए उस पर निर्भर करता है। क्या यह मूर्खता की हद नहीं है? क्या वे लोग जो वाक्पटु, सुस्पष्ट और हाजिर जवाब होते हैं, वे ईमानदार इरादों वाले लोग होते हैं? अगर उनके साथ तुम्हारा कोई आचरण न हुआ हो, या तुमने सावधानी से उनका निरीक्षण न किया हो, तो तुम नहीं जानोगे। उनके साथ आचरण करते समय और मामले सँभालते समय बस देखो कि क्या वे वही करते हैं जो वे कहते हैं। इसकी एक घटना से परीक्षा की जा सकती है। उदाहरण के लिए मान लो कि तुम चीजें कहीं और ले जा रहे हो। यह देखकर भी वे तुम्हारी मदद नहीं करेंगे। जब तुम काम पूरा कर लोगे तभी वे आकर कहेंगे, “इतना थकाऊ काम तुम अकेले कैसे कर सकते हो? अगर तुमने मुझसे बस कह दिया होता, तो मैं जितना भी व्यस्त होता तुम्हारी मदद जरूर करता। तुम थके-हारे लगते हो। मैं बाद में तुम्हारे लिए खाना बना दूँगा, आज तुम्हें बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” यह कहकर वे गायब हो जाते हैं। तुम पूरी तरह थके-हारे हो, फिर भी तुम्हें खाना बनाना पड़ेगा। फिर तुम्हारे खाना बना लेने के बाद वे खाने के लिए आ जाएँगे और यह भी कहेंगे, “तुमने खाना बनाना शुरू करते समय मुझे क्यों नहीं बुलाया? तुम पूरी तरह चूर हो गए हो, और अभी भी मेरे लिए खाना बना रहे हो—यह ठीक कैसे है? चूँकि तुमने बना दिया है, मैं खा ही लेता हूँ। अगला खाना मैं बना दूँगा, और भविष्य में जब भी तुम्हें कुछ करने की जरूरत हो मुझे आवाज दे देना।” उनकी असलियत जानने के लिए यह एक घटना काफी है। वे चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, हाजिर जवाब होते हैं, और जानते हैं कि क्या कहना है। वे जानते हैं कि अवसर के अनुसार कैसे काम करना है, और वे बिना कोई वास्तविक कार्य किए बस मीठी-मीठी बातें ही करते हैं। क्या ऐसे लोग भरोसेमंद होते हैं? अगर तुम उनसे परमेश्वर के घर के सामान्य मामले सँभालने को कहोगे, तो क्या वे उसके हितों की रक्षा कर सकेंगे? क्या वे कलीसिया की प्रतिष्ठा का मान रख सकेंगे और भाई-बहनों की सुरक्षा कर सकेंगे? (नहीं।) क्या परमेश्वर के घर की संपत्ति और उसके समस्त हित उनकी सर्वोपरि प्राथमिकता हैं? बिल्कुल भी नहीं। नकली अगुआओं की नजरें और दिमाग ऐसी आसानी से पता लगाई जा सकने वाली समस्याओं के प्रति अंधे होते हैं, वे उन्हें देख ही नहीं सकते। इसके बजाय, वे सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बता सकते हैं। परमेश्वर किससे प्रेम करता है और किससे प्रेम नहीं करता, कौन सत्य से प्रेम करता है और कौन नहीं करता, परमेश्वर में अपनी आस्था में बुनियाद होने का क्या अर्थ है और किस प्रकार के लोगों के पास कोई बुनियाद नहीं होती, किस प्रकार के लोग अपना कर्तव्य करने में वफादार होते हैं और किस प्रकार के लोग अपना कर्तव्य करने में वफादार नहीं होते—वे इन चीजों के बारे में उचित और तार्किक ढंग से बोलते हैं, और लगता है जैसे वे उन्हें वास्तव में समझ रहे हैं, लेकिन ये सब खोखली बातें और धर्म-सिद्धांत हैं। जब भी उनसे लोगों को पहचानने को कहा जाता है, तो उनकी आँखें और दिमाग अंधे हो जाते हैं; वे जानते ही नहीं कि लोगों को कैसे पहचानें। वे इस प्रकार के लोगों के साथ चाहे जितने समय तक भी बातचीत करें, वे उनकी असलियत नहीं जान पाते, और उन्हें महत्वपूर्ण काम तक सौंप देते हैं।

नकली अगुआओं का गलत लोगों को नियोजित करना पहले ही एक घिनौना काम होता है, फिर भी वे और अधिक घिनौने काम करके इस गलत कर्म को बढ़ा देते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि एक नकली अगुआ ने गलत व्यक्ति को नियोजित किया। यह व्यक्ति पर्यवेक्षक बनने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है, और पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए परमेश्वर के घर की कसौटियों पर खरा नहीं उतरता है। फिर भी नकली अगुआ उसे उपयोग करने को लेकर जोर देता है और यह मानकर उस व्यक्ति के कार्य का कभी निरीक्षण नहीं करता कि “किसी को उन लोगों पर न तो संदेह करना चाहिए जिन्हें वह नियोजित करता है, न ही उन लोगों को नियोजित करना चाहिए जिन पर उसे संदेह हो। चूँकि मैंने तुम्हें चुना और पदोन्नत किया है, इसलिए तुम इस कार्य को अच्छे ढंग से करने में सक्षम होगे, तो बस आगे बढ़ो और तुम यह काम जैसे भी ठीक समझो वैसे करो। तुम जो भी करोगे मैं तुम्हारा समर्थन करूँगा, और किसी के इस पर आपत्ति उठाने का कोई तुक नहीं है!” उन्होंने गलत व्यक्ति को नियोजित किया और फिर भी वे अपनी गलती को अंत तक बने रहने देते हैं—वे खुद पर इतना विश्वास करते हैं। सभी नकली अगुआ अंधे होते हैं। वे किसी भी समस्या को नहीं देख पाते, वे नहीं बता सकते कि कौन-से लोग बुरे हैं या छद्म-विश्वासी हैं, और कलीसिया के कार्य में चाहे कोई भी गड़बड़ी करे या उसे बाधित करे, उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती, और यहाँ तक कि वे भ्रमित लोगों को अहम काम भी सौंप देते हैं। नकली अगुआ जिसे भी पदोन्नत करते हैं उस पर बहुत भरोसा रखते हैं, और खुशी-खुशी उसे अहम काम सौंप देते हैं। नतीजतन, वे लोग कलीसिया के कार्य को बिगाड़ देते हैं, जिससे सुसमाचार का फैलाव गंभीरता से प्रभावित हो जाता है, और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है। नकली अगुआ ढोंग भी करते हैं कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं जानते। ऊपरवाला उनसे पूछता है, “जिस व्यक्ति को तुमने पदोन्नत किया, उसका काम कैसा है? क्या वह इस काम को करने के लिए उपयुक्त है? क्या वह कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर रहा है? कठिन क्षणों में, वे खुद की रक्षा करेंगे या कलीसिया के कार्य की रक्षा करेंगे?” ये नकली अगुआ जवाब देते हैं, “उन्होंने शपथ ली थी कि वे कलीसिया के कार्य की रक्षा करेंगे। इसके अलावा, उन्होंने 20 वर्ष तक परमेश्वर में विश्वास रखा है। वे भला खुद की रक्षा करके परमेश्वर के घर के हितों का सौदा कैसे कर सकते हैं? वे संभवतः परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करेंगे।” ऊपरवाला जवाब देता है : “क्या तुम्हारी बात सटीक है? क्या तुमने उसके कार्य का निरीक्षण किया है?” ये नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मैंने उसके कार्य का निरीक्षण नहीं किया है, लेकिन मैंने उससे कहा है कि उसे अपने हितों की रक्षा न करके कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, और उसने मुझसे वादा किया है कि वह ऐसा ही करेगा।” उस व्यक्ति के उनसे वादा करने का क्या फायदा? वह व्यक्ति परमेश्वर के सामने ली गई शपथ को भी पूरा नहीं कर सकता। क्या उन्हें लगता है कि सिर्फ इस कारण से कि उस व्यक्ति ने उनसे एक वादा किया, उस पर भरोसा करना सुरक्षित है? क्या जो वादा उसने किया उसे वह निश्चित रूप से पूरा करेगा? चूँकि इन नकली अगुआओं ने उस व्यक्ति के कार्य का निरीक्षण नहीं किया है, उन्हें कैसे पता कि वह ऐसा व्यक्ति है या नहीं जो परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करता है? वे खुद पर इतना विश्वास कैसे कर सकते हैं? क्या ऐसे नकली अगुआ बदमाश नहीं हैं? गलत व्यक्ति को नियोजित करके उन्होंने पहले ही एक बड़ी गलती कर दी है, और फिर इस व्यक्ति के कार्य के बारे में कभी पूछताछ न करके, ज्यादा जानने की कोशिश न करके, या उस व्यक्ति के काम की जाँच न करके; निगरानी या निरीक्षण न करके वे अपनी गलती और बढ़ा लेते हैं। वे केवल इतना करते हैं कि उस व्यक्ति के अनियंत्रित ढंग से काम करने और गलत कर्म करने को बस सहन करते रहते हैं। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। जब भी काम की किसी मद में लोगों की कमी होती है, तो नकली अगुआ सहर्ष किसी को इसकी जिम्मेदारी देने की व्यवस्था कर देते हैं, और बस, उनका काम खत्म हो जाता है; वे कभी कार्य का निरीक्षण नहीं करते, न ही वास्तव में कार्यस्थल पर उस व्यक्ति से बातचीत करने जाते हैं, न उसका निरीक्षण करते हैं, और न उसके बारे में ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं। कुछ स्थानों का माहौल उससे मिलने और समय बिताने के लिए अनुकूल नहीं होता, लेकिन उन अगुआओं को उसके काम के बारे में पूछना चाहिए, और परोक्ष पूछताछ करनी चाहिए कि वह क्या करते रहे हैं और कैसे करते रहे हैं—वे भाई-बहनों या उसके किसी करीबी से पूछ सकते हैं। क्या यह नहीं किया जा सकता? लेकिन नकली अगुआ तो कोई सवाल पूछने का भी कष्ट नहीं उठाते, वे इतने आश्वस्त रहते हैं। अपने कार्य में वे सिर्फ सभाएँ करते हैं और धर्म-सिद्धांतों के उपदेश देते हैं, और जब सभाएँ समाप्त हो जाती हैं और कार्य-व्यवस्थाएँ कर दी जाती हैं, तो वे और कुछ नहीं करते; वे यह देखने नहीं जाते कि उनके द्वारा चुना गया व्यक्ति वास्तविक कार्य करने में सक्षम है या नहीं। शुरुआत में, उन्होंने उस व्यक्ति को नहीं समझा, मगर उसकी काबिलियत, उसकी सतही अभिव्यक्तियों और जोश के आधार पर उन्हें लगा कि वह इस कार्य के लिए उपयुक्त है, इसलिए उन्होंने उसे नियोजित किया—इसमें कुछ गलत नहीं है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि लोग कैसे निकलेंगे। लेकिन उसे पदोन्नत करने के बाद, क्या उन अगुआओं को काम की प्रगति का जायजा लेकर यह नहीं देखना चाहिए कि वह वास्तविक काम करता है या नहीं, वह कैसे काम करता है, क्या वह लापरवाह है, अविश्वसनीय है, या कामचोरी कर रहा है? उन्हें ठीक यही काम करना चाहिए, लेकिन वे इसमें से कुछ नहीं करते, कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे नकली अगुआ हैं, और उन्हें बरखास्त कर हटा देना चाहिए।

नकली अगुआ गंभीर गलती करते हैं, जो यह है कि लोगों को पदोन्नत करने के बाद, वे उन्हें काम समझाते हैं, फिर थोड़ा धर्म-सिद्धांत उगलते हैं, प्रोत्साहन के दो शब्द बोलते हैं, और बस छोड़ देते हैं, कभी काम की प्रगति का जायजा नहीं लेते या विशिष्ट कामों में शामिल नहीं होते। अगर वे कहते हैं कि उनकी काबिलियत कमजोर है, और उनमें लोगों के बारे में अंतर्दृष्टि नहीं है, तो वे काम की प्रगति का जायजा लेकर पता लगा सकते हैं कि विशिष्ट काम कैसे चल रहे हैं, और फिर वे स्थिति को पूरी तरह सँभाल सकते हैं। लेकिन नकली अगुआ काम की प्रगति का जायजा नहीं लेते, और बिल्कुल पता नहीं लगाते कि काम कैसा चल रहा है। उदाहरण के लिए किताबों की छपाई का काम लो, जोकि एक विशिष्ट कार्य है। एक नकली अगुआ ने किसी को इस कार्य का प्रभार सौंपा, लेकिन छह महीने में एक बार भी उसकी जाँच नहीं की। फलस्वरूप छह महीनों के बाद, सारी मुद्रित पुस्तकें दोषपूर्ण निकलीं—कितनी अधिक गड़बड़ है! नकली अगुआ ऐसे ही होते हैं—वे कोई भी विशिष्ट कार्य नहीं करते। अगर तुम कोई पुस्तक मुद्रित करवाने की व्यवस्था कर रहे हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें पहले कोई उपयुक्त पर्यवेक्षक निर्धारित करना चाहिए, और फिर निगरानी और जाँच करनी चाहिए कि वह अपना काम कितने अच्छे ढंग से कर रहा है, और क्या वह उसे बिगाड़ सकता है। तुम्हें कार्य की निगरानी करनी चाहिए और उसकी प्रगति का जायजा लेना चाहिए, और किसी समस्या का पता चलने पर उसे सीधे सुलझाना चाहिए—सिर्फ इसी से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कोई समस्या उत्पन्न न हो। लेकिन नकली अगुआ यह नहीं करते। उन्हें लगता है कि उनकी जिम्मेदारियों में सिर्फ लोगों को धर्म-सिद्धांत बता देना ही है, और उन्हें धर्म-सिद्धांत समझने देना है, और अगर वे धर्म-सिद्धांतों को समझते हैं, तो समस्याएँ हल हो सकती हैं। इसलिए वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बताने और नारे लगाने पर ध्यान देते हैं, और विशिष्ट कार्यों में शामिल नहीं होते। जहाँ तक नकली अगुआओं का सवाल है, वे सोचते हैं कि विशिष्ट कार्यों में शामिल होना उनका काम नहीं है, और इसकी चिंता उनके मातहत लोगों को होनी चाहिए। तो वे खुद क्या करते हैं? वे ऊँचे स्थान से समग्र स्थिति पर नियंत्रण करते हैं और एक निष्प्रभावी अधिकारी बन जाते हैं। कार्य चाहे जो हो, वे मौजूद नहीं रहते या उसमें शामिल नहीं होते। लोगों को सिद्धांत बताने के बाद, अगर उनसे विस्तृत मसलों या विशिष्ट मार्गों के बारे में पूछा जाए, तो वे कहेंगे, “विशिष्ट कार्य तुम लोगों के जिम्मे है, मैं इस चीज को नहीं समझता।” इसलिए वे नहीं जानते कि उनके अधीनस्थ लोग किस तरह से यह कार्य करते हैं। जहाँ तक इसकी बात है कि पर्यवेक्षक सक्षम है या नहीं और काम के लिए उपयुक्त है या नहीं, या उसकी मानवता कैसी है, या क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता है, वह अपना कर्तव्य निभाने में जिम्मेदार है या नहीं, या वह लापरवाह है या बुरी चीजें करते हुए पागलों की तरह गड़बड़ करता है, या कार्य में विलंब हो रहा है, वगैरह-वगैरह—नकली अगुआ इनमें से किसी के बारे में नहीं जानते, वे बस गैर-विश्वासी कलम घिसने वाले अधिकारियों की तरह इधर-उधर घूमते रहते हैं, और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। नकली अगुआ जिन कलीसियाओं में कार्य करते हैं, वहाँ वे नहीं जान पाते कि कुछ पर्यवेक्षकों ने कब काम को पूरी तरह रोक दिया है, या कब कुछ पर्यवेक्षक अपना स्वयं का स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे हैं, या कब कुछ पर्यवेक्षक अपने उचित कर्तव्य करने के बजाय अपने दिन खाने, पीने और मौज-मस्ती करने में बिताते हैं, और वे तब आँखें फेर लेते हैं जब कुछ पर्यवेक्षकों में बेहद कमजोर काबिलियत, विकृत समझ होती है, और वे जरा भी काम नहीं कर सकते। ऐसे नकली अगुआ बस थोथे चने होते हैं, वे बस नाम के लिए अगुआ होते हैं, और अगुआ वाला कोई ठोस कार्य नहीं करते। ऊपर से तो ये नकली अगुआ बहुत अच्छा व्यवहार करने वाले लगते हैं। वे काम की हर मद के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त करते हैं, कभी-कभार इन लोगों की सभाएँ करते हैं, और अपना शेष समय एक जगह आध्यात्मिक भक्ति, प्रार्थना, परमेश्वर के वचनों के पाठ, उपदेश श्रवण, भजन सीखने और अपने स्वयं के उपदेश लिखने में बिताते हैं। ऐसे कुछ नकली अगुआ हैं जो पूरे हफ्ते अपना कमरा छोड़ कर बाहर भी नहीं निकलते। ऐसे भी नकली अगुआ हैं, जो ऑनलाइन सभाएँ करने के सिवाय कुछ नहीं करते, और स्थिति को समझने के लिए कार्य स्थलों पर कभी नहीं जाते। भाई-बहन उन्हें लंबे समय तक रूबरू नहीं देख पाते, और उन्हें कोई अंदाजा नहीं होता कि नकली अगुआओं के जीवन अनुभव या आध्यात्मिक कद कैसे हैं। सभाओं में, नकली अगुआ सिर्फ कुछ सामान्य मामले सँभालते हैं, लेकिन जहाँ तक इसका सवाल है कि विशेष रूप से कौन-सा पर्यवेक्षक क्या कर रहा है, और जिन लोगों को उन्होंने पदोन्नत और विकसित किया, वे दिए हुए कार्य के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, या अपना कर्तव्य निभाने के प्रति इन लोगों का रवैया क्या है, या क्या वे अपने कार्य पर पूरा ध्यान देते हैं और उसे अच्छी तरह करते हैं, या वे नकारात्मक और लापरवाह हैं, या क्या ये लोग सही मार्ग पर चल रहे हैं, या क्या वे सही लोग हैं, नकली अगुआओं को इसकी परवाह नहीं होती, या वे इनमें से किसी भी मामले के बारे में नहीं पूछते, और वे इनके बारे में जानना भी नहीं चाहते। क्या इस समस्या की प्रकृति गंभीर नहीं है? (हाँ, है।)

परमेश्वर के घर को कुछ ऐसे प्रतिभाशाली लोगों की जरूरत होती है, जो कुछ खास पेशेवर क्षेत्रों के बारे में समझते हों, और जिनमें कुछ विशेष कौशल हों, और वह उन पेशों का अध्ययन करने के लिए इन लोगों को विकसित करता है ताकि वे परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभा सकें। तुम लोगों के ख्याल से नकली अगुआ किस प्रकार के लोगों को खोज निकालते हैं? वे उन युवाओं को इकट्ठा करते हैं जिन्होंने विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की, और जो अपने माता-पिता के पीछे चलते हुए परमेश्वर में विश्वास रखने लगे हों, और वे उन पर गौर करते हैं जो बोलने में सुस्पष्ट हों, और जो लोगों के ध्यान का केंद्र बनना पसंद करते हों, और वे उनसे कहते हैं, “परमेश्वर का घर तुम लोगों को विकसित करना चाहता है; तुम लोग आरक्षित सेना और नई शक्तियाँ हो।” फिर वे इन लोगों को करने के लिए एक कर्तव्य सौंपते हैं। वास्तव में, इन लोगों ने कभी कोई कर्तव्य नहीं निभाया है, उनमें विभिन्न प्रकार के अनुभवों की कमी है, और वे किसी भी सत्य को नहीं समझते। लेकिन नकली अगुआ उन पर कृपा करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं, इसलिए वे उन्हें विकसित करना शुरू करते हैं। वे इस आधार पर इन लोगों को कर्तव्य सौंपते हैं जिस पर उनकी विशेषज्ञता उन्हें सीखने के लिए उपयुक्त बनाती है; कुछ को पाठ-आधारित कार्य दिया जाता है, कुछ को फिल्म निर्माण, कुछ को वीडियो निर्माण और कुछ को अभिनेता बनने का कार्य सौंपा जाता है। इन लोगों के पास करने के लिए कोई कर्तव्य हो, नकली अगुआओं के लिए बस यही काफी है। नकली अगुआ यह खोजबीन नहीं करते कि क्या ये लोग सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं, सत्य को स्वीकार सकते हैं या नहीं, न ही वे इस बात पर गौर करते हैं कि ये लोग किस चीज का अनुसरण कर रहे हैं, या उनके लक्ष्य क्या हैं। अंत में, क्या होता है? उनमें से कुछ लोग हटा दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए कि वे स्वच्छंद और असंयमित होते हैं, सांसारिक प्रवृत्तियों के पीछे भागते हैं, अपने दिन सजने-सँवरने, और दूसरों से नैन लड़ाने में बिता देते हैं, और वे किसी नियम को नहीं समझते या न ही उनमें कोई शिष्टाचार होता है—यह स्पष्ट है कि वे छद्म-विश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। वे अपने कर्तव्य करते समय अपने उचित कार्य नहीं करते, और हर काम लापरवाही से करते हैं, लेकिन नकली अगुआ ये सब नहीं देख पाते। क्या नकली अगुआ आँख के अंधे नहीं हैं? (हाँ, हैं।) उनकी आँखों के इस अंधेपन का कारण क्या है? क्या यह इसलिए नहीं है कि नकली अगुआ दिमाग से अंधे हैं? आँखों का अंधापन और दिमाग का अंधापन नकली अगुआओं की दो विशेषताएँ हैं। हालाँकि उनकी आँखें पूरी खुली होती हैं, फिर भी नकली अगुआ कुछ भी नहीं समझ सकते या किसी का असली रूप नहीं देख सकते—यानी उनकी आँखें अंधी होती हैं। उनके दिमाग में किसी भी व्यक्ति या किसी भी चीज के बारे में कोई समझ-बूझ या नजरिया नहीं होता, और चाहे वे जो भी देखें, उनमें सही और गलत में फर्क करने की योग्यता नहीं होती, और उनमें कोई रवैया, कोई राय या कोई परिभाषा नहीं होती—यह दिमाग से अंधे होने का एक गंभीर मामला है। नकली अगुआ वे तमाम लोग हैं जिन्होंने अनेक वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखा है, जो अक्सर उपदेश सुनते हैं, तो ऐसा क्यों है कि वे उन छद्म-विश्वासियों को नहीं पहचान पाते? यह अतिरिक्त साक्ष्य है कि नकली अगुआ बहुत कमजोर काबिलियत वाले होते हैं, कि वे सत्य को समझने में अक्षम होते हैं, और वे चाहे जितने भी सत्य सुनें, इसका कोई लाभ नहीं होता और वे उन्हें नहीं समझते। वे आँख और दिमाग से अंधे हैं, और वे लोगों को समझने-बूझने में पूरी तरह अक्षम हैं। वे कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए कैसे उपयुक्त हो सकते हैं? वे मानते हैं कि अच्छा बोलने वाले लोग प्रतिभाशाली होते हैं, और जो लोग नाच-गा सकते हैं, वे भी प्रतिभाशाली व्यक्ति होते हैं; जब वे उन लोगों को देखते हैं जिन्होंने चश्मा पहना हो, या जिन्होंने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की हो, तो वे उन्हें प्रतिभाशाली समझते हैं, और जब वे उन लोगों को देखते हैं जो समाज में रुतबे वाले हैं, अमीर हैं, जो व्यापार-व्यवसाय करना जानते हैं और छल-कपट की गतिविधियों में संलग्न होते हैं, और जो समाज में किसी किस्म का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, तो नकली अगुआ सोचते हैं कि वे प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। वे मानते हैं कि परमेश्वर के घर को इस प्रकार के लोगों को विकसित करना चाहिए। वे इन लोगों का चरित्र नहीं देखते, या यह नहीं देखते कि क्या परमेश्वर में उनके विश्वास की कोई नींव है, और उससे भी कम वे यह देखते हैं कि ये लोग किस रवैये से परमेश्वर और सत्य के साथ पेश आते हैं। वे सिर्फ लोगों के सामाजिक रुतबे और पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हैं। क्या नकली अगुआओं का लोगों और चीजों को इस दृष्टि से देखना बेतुका नहीं है? नकली अगुआ लोगों और चीजों को गैर-विश्वासियों की ही तरह देखते है—उनका वही नजरिया होता है जो चीजों के बारे में गैर-विश्वासियों का होता है। यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआ वे लोग नहीं हैं जो सत्य से प्रेम करते और उसे समझते हैं, और उनमें कोई समझ-बूझ नहीं होती है। क्या वे अत्यंत उथले नहीं होते? वे सच में अंधे होते हैं—पूरी तरह से!

अतीत में, मेरी मुलाकात एक नकली अगुआ से हुई थी जो मेरी उससे बातचीत के दौरान बोलता और हंसता, लेकिन जैसे ही मैं उससे कार्य के बारे में पूछता, वह संवेदनहीन और मंद-बुद्धि होकर आकाश में देखता, और मेरी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं देता। इस व्यक्ति की काबिलियत इतनी कमजोर थी कि उसे नियोजित नहीं किया जा सकता था। कोई अचरज की बात नहीं कि वह मेरी कही हुई किसी भी बात को नहीं समझ सका और उसे क्रियान्वित नहीं कर सका। मैं उससे जिस बारे में भी बात करता वह यह कहता रहा, “कुछ दिन पहले मैंने एक सभा की और कामकाज के बारे में खोज-खबर ली।” मैंने कहा, “क्या सभाएँ करने के सिवाय तुम्हारे पास और कोई काम नहीं है? कलीसिया में करने के लिए इतने ढेरों काम हैं, तुम करने के लिए और कुछ क्यों नहीं तलाशते?” उसने कहा : “क्या अगुआ और कार्यकर्ता होने का मतलब बस सभाएँ करना नहीं है? सभाएँ आयोजित करने के अलावा करने के लिए और कुछ नहीं है, मैं कोई दूसरा काम करना नहीं जानता!” यह दर्शाता है कि उस पद पर बैठते समय उसका नकली अगुआ बनना तय था, और वह कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी काबिलियत बहुत ज्यादा कमजोर है! अत्यधिक कमजोर काबिलियत आँखों और दिमाग के अंधत्व का कारण बनती है। आँख के अंधत्व का मतलब क्या है? इसका अर्थ है कि व्यक्ति चाहे कुछ भी देखे, वह विशिष्ट समस्याओं को देख पाने में असमर्थ होता है, और इसलिए उसकी आँखें होने का कोई लाभ नहीं है। दिमाग के अंधेपन का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि चाहे कुछ भी हो जाए, व्यक्ति को उसकी जानकारी नहीं होती, वह उसमें निहित समस्या को समझने में विफल होता है, और वह नहीं देख सकता कि समस्या का सार कहाँ है—दिमाग से अंधे होने का यही अर्थ है। अगर कोई व्यक्ति दिमाग से अंधा है, तो वह बिल्कुल खत्म हो चुका है। नकली अगुआ इस तरह आँखों और दिमाग से अंधे होते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि ये बातें सुनकर नकली अगुआ परेशान हो जाते हैं? वे सोचते हैं, “मेरी आँखें खासी बड़ी हैं, लेकिन वह कहता है कि मैं आँख से अंधा हूँ; मेरे मन में नेक इरादे हैं, फिर भी वह कहता है कि मैं दिमाग से अंधा हूँ—उसकी परिभाषा विशेष तौर पर सटीक नहीं है, है ना? मुझे बस नकली अगुआ क्यों नहीं कह देते? यह जोड़ने की क्या जरूरत है कि मैं आँख और दिमाग से अंधा भी हूँ?” अगर मैंने ऐसे नहीं कहा होता, तो नकली अगुआओं की काबिलियत को देखते हुए, क्या उन्हें यह एहसास हो पाता कि उनकी काबिलियत कमजोर है? (नहीं, उन्हें इसका एहसास नहीं होता।) क्या यह कहना कि ये नकली अगुआ आँखों और दिमाग से अंधे हैं, मामले को अच्छी तरह नहीं समझाता? उदाहरण के लिए, चलो मान लें कि एक मसीह-विरोधी कलीसिया में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा है। लेकिन एक नकली अगुआ कहता है, “यह व्यक्ति बहुत काबिल है। वह विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था, वह स्पष्टता से, क्रमानुसार और एक सुव्यवस्थित और सुस्पष्ट तरीके से बोलता है। इसके अलावा, उसे मंच का भय नहीं है, भले ही दर्शकगण जितने भी हों।” यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि वे जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं वह एक फरीसी है जो अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा है, और फिर भी नकली अगुआ उसकी प्रशंसा करता है। क्या यह आँखों का अंधत्व नहीं है? (हाँ।) अगर कोई बेसुरा गा रहा हो और तुम उसे नहीं सुनते, तो क्या इसे आँखों का अंधत्व माना जाएगा? (नहीं।) यह काबिलियत का मसला नहीं, बल्कि एक पेशेवर मसला है। लेकिन इतने सारे सत्य सुनने के बाद भी नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की असलियत को पहचान भी नहीं सकते, और वे नहीं बता सकते कि किसी व्यक्ति की मानवता अच्छी है या बुरी, या कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने का उम्मीदवार है या नहीं, या कोई छद्म-विश्वासी है या नहीं, या क्या वह परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास रखता है, और वे यह नहीं बता सकते कि कोई व्यक्ति अपना कर्तव्य करने में वफादार है या नहीं—तो फिर उन्होंने इतने वर्षों तक उपदेश सुनकर क्या हासिल किया है? उन्होंने कोई सत्य हासिल नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि वे अंधे बेवकूफ हैं; नकली अगुआ इतने ज्यादा अंधे होते हैं। वे मानते हैं कि किसी अगुआ का मुख्य काम उपदेश देने में सक्षम होना है, और दो या तीन घंटे उपदेश देना है, और अगर वे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकें, नारे लगा सकें, और लोगों को जगा सकें, तो वे मानक स्तर के अगुआ हैं, वे कार्य का दायित्व उठाने में सक्षम हैं, उनमें सत्य वास्तविकता है, और परमेश्वर उनसे संतुष्ट है। यह किस प्रकार का तर्क है? क्योंकि नकली अगुआ सत्य नहीं समझते और बहुत कमजोर काबिलियत वाले हैं, आँखों और दिमाग से अंधे हैं, इसलिए उनमें विभिन्न प्रकार के लोगों को समझने-बूझने की योग्यता बिल्कुल नहीं होती, और वे विभिन्न प्रकार के लोगों की असलियत नहीं जान सकते। तो क्या वे विभिन्न प्रकार के लोगों को उचित तरीके से नियोजित करने में सक्षम हो पाते हैं? (नहीं।) उनके पास बस एक रणनीति होती है : जो लोग पहले शिक्षक थे उन्हें उपदेश देने का काम सौंपा जाता है, जो लोग विदेश व्यापार में शामिल थे उन्हें सामान्य मामले सँभालने का काम सौंपा जाता है, जो लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं उन्हें अनुवादक का काम सौंपा जाता है, और जो लोग बोलने में सुस्पष्ट और मोटी चमड़ी के होते हैं उन्हें सुसमाचार का प्रचार करने का काम सौंपा जाता है; जो लोग दब्बू होते हैं उन्हें घर पर अनुभवजन्य गवाही आलेख लिखने का काम सौंपा जाता है, जो लोग हिम्मत वाले होते हैं और अभिनय करना पसंद करते हैं उन्हें अभिनेता के रूप में नियुक्त किया जाता है, और जो लोग अधिकारी बनना चाहते हैं उन्हें अगुआ या निदेशकों के रूप में नियुक्त किया जाता है। नकली अगुआ इस तरह से बिना किसी सिद्धांत के लोगों को नियोजित करते हैं।

नकली अगुआ जिस कार्य के लिए जिम्मेदार हैं उसके दायरे में अक्सर कुछ ऐसे लोग होते हैं जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं और पदोन्नति और विकास के मानदंडों को पूरा करते हैं, लेकिन उन्हें रोक दिया जाता है। इनमें से कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं और कुछ को मेजबानी का काम सौंपा गया होता है। सच तो यह है कि वे सब काबिल हैं, वे कुछ सत्यों को समझते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में विकसित किए जाने के योग्य हैं, बस उन्हें आत्म-प्रदर्शन करना या आकर्षण का केंद्र बनना पसंद नहीं है। फिर भी नकली अगुआ इन लोगों पर कोई ध्यान नहीं देते। वे उनके साथ बातचीत नहीं करते या उनके बारे में पूछताछ नहीं करते, और वे कभी भी प्रतिभाशाली लोगों को परमेश्वर के घर के लिए विकसित नहीं करते। वे अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिए उन लोगों को फँसाने पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं। लिहाजा जो लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, उनकी पदोन्नति और विकास नहीं किया जाता है, जबकि जो लोग आकर्षण का केंद्र बनना पसंद करते हैं, जो मुखर हैं, लोगों की चापलूसी करना जानते हैं और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन हैं—वे सभी पदोन्नत हो जाते हैं, और यहाँ तक कि जो लोग समाज में काम करते हुए अधिकारी या किसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी रहे हैं या जिन्होंने कॉर्पोरेट प्रबंधन का अध्ययन किया है, उन्हें भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है। वे लोग चाहे सच्चे विश्वासी हों या न हों, वे लोग सत्य का अनुसरण करते हों या न करते हों, हर हाल में वे लोग पदोन्नत हो जाते हैं और नकली अगुआओं के जिम्मेदारी वाले कार्य के दायरे में उनका उपयोग किया जाता है। क्या यह सिद्धांतों के अनुसार लोगों का उपयोग करना है? क्या नकली अगुआओं का केवल ऐसे लोगों को पदोन्नत करना बिल्कुल अविश्वासी समाज जैसा नहीं है? जो लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए वास्तव में समय पर दक्षतापूर्वक कार्य कर सकते हैं, न्यायबोध वाले हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, उन्हें नकली अगुआओं के कार्यकाल के दौरान पदोन्नत या विकसित नहीं किया जाता है—उनके लिए प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त करना कठिन होता है। इसके बजाय, जो लोग मुखर होते हैं, जो आत्म-प्रदर्शन करना पसंद करते हैं और जो लोगों की चापलूसी करना जानते हैं, साथ ही जो लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन होते हैं, उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाता है। वे लोग काफी चतुर लगते हैं, लेकिन वास्तव में उनमें समझने की कोई क्षमता नहीं होती, उनमें बहुत कम काबिलियत और कम मानवता होती है, वे अपने कर्तव्यों के प्रति वास्तविक भार नहीं उठाते और वे विकसित करने के लिए जरा भी सुपात्र नहीं होते। लेकिन यही लोग कलीसिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पदों पर बैठे होते हैं। लिहाजा कलीसिया का अधिकांश कार्य शीघ्र और सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता या उसकी प्रगति धीमी रहती है और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था को लागू होने में बहुत लंबा समय लगता है। नकली अगुआ जब लोगों का अनुचित तरीके से उपयोग करते हैं तो इसके कारण कलीसिया के कार्य पर यही प्रभाव पड़ता है और यही दुष्परिणाम निकलते हैं।

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