अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5) खंड दो

सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के परमेश्वर के घर के लक्ष्य

इसके बाद हम इस बारे में संगति करेंगे कि परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है। कुछ लोग इसे अच्छी तरह समझते नहीं हैं और सोचते हैं, “परमेश्वर के घर के लिए क्या यह काफी नहीं होगा कि वह प्रतिभाशाली लोगों को सीधे पदोन्नत कर उनका उपयोग करे? उसे कुछ समय तक उन्हें विकसित और प्रशिक्षित करने की क्या जरूरत है?” तुम लोग इस बात को समझते हो या नहीं? चलो पहले हम उस प्रकार के लोगों के बारे में बात करें जो अगुआ और कार्यकर्ता बनते हैं। परमेश्वर का घर उन लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है जिनमें समझने की क्षमता है, जो कलीसिया के लिए बोझ उठाते हैं, और जिनमें कार्यक्षमता है? क्योंकि वे अपनी काबिलियत और कसौटियों पर खरे उतरने के मामले में भले ही योग्यता-प्राप्त हैं, फिर भी उन्हें अभी वास्तविक अनुभव नहीं हो पाया है और वे सत्य नहीं समझते हैं, सत्य का अभ्यास करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का तरीका जानना तो दूर की बात है। उन्हें कुछ समय के लिए प्रशिक्षित करना और मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए, और जब उन्होंने अपना कर्तव्य करने के सिद्धांतों में महारत हासिल कर ली हो, और वास्तविक अनुभव पा लिया हो, तभी उनका औपचारिक तौर पर उपयोग किया जा सकता है। अगर वे कलीसिया के भाई-बहनों की तरह हों, परमेश्वर के वचनों को खाएँ-पिएँ, उपदेशों को सुनें, कलीसिया का जीवन जिएँ, और कोई कर्तव्य करने में प्रशिक्षण लें, और जीवन में विकसित होने के बाद ही उन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाए, तो फिर उनकी प्रगति बहुत धीमी होगी। उस स्थिति में, परमेश्वर के उपयोग के लिए उनके उपयुक्त होने में कितने वर्ष लगेंगे? क्या इससे कलीसिया के कार्य पर असर नहीं पड़ेगा? इसलिए अगर किसी व्यक्ति में सत्य समझने की योग्यता है, कार्यक्षमता है, दायित्व उठाने की भावना है, तो उसे पदोन्नत और विकसित करना चाहिए और एक अगुआ और कार्यकर्ता का कर्तव्य निभाने में प्रशिक्षण लेने को कहना चाहिए, और उसे कोई दायित्व दे देना चाहिए। एक लिहाज से, इससे उसे अपनी खूबियों का भरपूर लाभ उठाने का मौका मिलता है। दूसरे लिहाज से, जब वह विशेष स्थितियों का सामना करता है, तो यह जरूरी है कि उसकी विभिन्न कठिनाइयाँ दूर करने के लिए उसके साथ सत्य पर संगति की जाए। कभी-कभी उसकी काट-छाँट भी होनी चाहिए, और जरूरत पड़ने पर उसे अनुशासित भी करना चाहिए और अनेक परीक्षणों और शोधनों से गुजारना चाहिए, और उसे काफी कष्ट सहने चाहिए। ऐसे व्यावहारिक प्रशिक्षण से गुजर कर ही ऐसे लोग वास्तविक प्रगति कर सकते हैं, कदम-दर-कदम सत्य समझ सकते हैं और सिद्धांतों में महारत हासिल कर सकते हैं, और फिर यथाशीघ्र अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य का बीड़ा उठा सकते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस प्रकार विकसित और प्रशिक्षित करने से बेहतर नतीजे निकल पाएँगे, और यह ज्यादा तेजी से होगा, जोकि परमेश्वर के घर के कार्य के लिए लाभप्रद है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए तो और भी ज्यादा लाभकारी है, क्योंकि व्यावहारिक अनुभव वाले अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के चुने हुए लोगों का सीधे सिंचन और पोषण कर सकते हैं। जब परमेश्वर का घर किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह उन्हें प्रशिक्षित करने, परमेश्वर पर निर्भर करने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए उन्हें और भी अधिक दायित्व देता है; तभी उनका आध्यात्मिक कद यथाशीघ्र बढ़ेगा। उन पर जितना अधिक दायित्व डाला जाता है, उतना ही उन पर दबाव बनता है, वे सत्य को खोजने और परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए उतने ही मजबूर हो जाते हैं। अंत में, वे अपना कार्य ठीक से करने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में सक्षम हो पाएँगे, और इस तरह वे बचाए और पूर्ण किए जाने के सही मार्ग पर कदम रखेंगे—यह प्रभाव तब प्राप्त होता है जब परमेश्वर का घर लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है। इन विशेष कामों को किए बिना, वे यह नहीं जान पाएँगे कि उनमें क्या कमी है, यह नहीं जान पाएँगे कि सिद्धांतों के अनुसार कार्य कैसे करें और न ही यह समझ पाएँगे कि सत्य वास्तविकता होने का क्या अर्थ है। तो विशेष काम करने से उन्हें अपनी कमियाँ खोजने में मदद मिलती है, उन्हें यह देखने में मदद मिलती है कि अपने गुणों के अलावा, वे सत्य वास्तविकता से रहित हैं; उन्हें यह आभास पाने में मदद मिलती है कि वे कितने दरिद्र और दयनीय हैं, इससे उन्हें यह एहसास हो पाता है कि यदि वे परमेश्वर पर निर्भर रहकर सत्य को नहीं खोजेंगे, तो वे किसी भी कार्य के योग्य नहीं होंगे, इससे उन्हें खुद को सच में जानने और साफ तौर पर देखने का मौका मिलता है कि यदि वे सत्य का अनुसरण कर अपना स्वभाव नहीं बदलेंगे, तो उनके लिए परमेश्वर के उपयोग के लायक होना असंभव होगा—ये वे तमाम प्रभाव हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित और प्रशिक्षित किए जाने पर प्राप्त होने चाहिए। केवल इन पहलुओं को समझ कर ही लोग दोनों पाँव जमीन पर रखकर सत्य का अनुसरण कर सकते हैं, विनम्रता के साथ अपना आचरण कर सकते हैं, अपना काम करते समय अपनी शेखी न बघारने के प्रति सुनिश्चित हो सकते हैं, निरंतर परमेश्वर की बड़ाई करते हैं और अपना कर्तव्य करते समय परमेश्वर की गवाही देते हैं, और कदम-दर-कदम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हैं। जब कोई व्यक्ति अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो वह इस योग्य बनाया जाता है कि विभिन्न लोगों की दशाओं को बूझने का तरीका सीख ले, विभिन्न लोगों की कठिनाइयों को दूर करने और विभिन्न प्रकार के लोगों को सहारा देने और उनकी आपूर्ति करने और सत्य वास्तविकता में लोगों की अगुआई करने के लिए सत्य को खोजने में प्रशिक्षित हो सके। साथ-ही-साथ उसे कार्य के दौरान सामने आई विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने में भी प्रशिक्षण लेना चाहिए, और विभिन्न प्रकार के मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों में भेदकर उनसे निपटने और कलीसिया को स्वच्छ करने के कार्य का तरीका सीखना चाहिए। इस प्रकार, दूसरों के मुकाबले, वह ज्यादा लोगों, घटनाओं और चीजों का और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिवेशों का अनुभव कर सकेगा, परमेश्वर के ज्यादा-से-ज्यादा वचनों को खा-पी सकेगा, और पहले से कहीं अधिक सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर सकेगा। यह उसके लिए खुद को प्रशिक्षित करने का अवसर है, है ना? प्रशिक्षण के जितने ज्यादा अवसर होंगे, उतने ही ज्यादा लोगों के अनुभव होंगे, उनकी अंतर्दृष्टियाँ उतनी ही व्यापक होंगी, और वे उतनी ही तेजी से बढ़ेंगे। लेकिन, अगर लोग अगुआ का कार्य नहीं करते, तो वे सिर्फ व्यक्तिगत अस्तित्व और व्यक्तिगत अनुभवों का सामना कर उनमें से गुजरेंगे और केवल व्यक्तिगत भ्रष्ट स्वभावों और विभिन्न व्यक्तिगत दशाओं को पहचान पाएँगे—जो सब-के-सब केवल स्वयं उनसे ही संबंधित होते हैं। जब एक बार वे अगुआ बन जाते हैं तो उनका सामना ज्यादा लोगों, ज्यादा घटनाओं और ज्यादा परिवेशों से होता है, जिससे वे अक्सर परमेश्वर के सामने आकर सत्य सिद्धांतों को खोजने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। उनके लिए ये लोग, घटनाएँ, और चीजें अलक्षित रूप से एक दायित्व बन जाती हैं, और स्वाभाविक रूप से सत्य वास्तविकता में उनके प्रवेश के लिए अत्यंत अनुकूल स्थितियाँ तैयार कर देती हैं, जोकि एक अच्छी बात है। और इसलिए जिस व्यक्ति में काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाता है, और जिसमें कार्यक्षमता होती है, वह एक साधारण विश्वासी के रूप में धीरे-धीरे, और एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तेजी से प्रवेश करेगा। लोगों के लिए सत्य वास्तविकता में तेजी से प्रवेश करना अच्छी बात है या धीरे-धीरे? (तेजी से।) इसलिए, जब उन लोगों की बात आती है, जिनमें काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाते हैं, और जिनमें कार्यक्षमता है, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को पदोन्नत कर एक अपवाद बनाता है, अगर वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, और सत्य की ओर प्रयास नहीं करते, तो ऐसी स्थिति में, परमेश्वर का घर उन्हें मजबूर नहीं करेगा। अगर किसी व्यक्ति के पास परमेश्वर में विश्वास की नींव है, वह एक अगुआ या कार्यकर्ता होने की कसौटियों पर खरा उतरता है, और सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाने को तैयार है, तो इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित करेगा, एक अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए प्रशिक्षित होने का अवसर देगा, और उन्हें इस योग्य बनाएगा कि वे कलीसिया का कार्य करना सीखें, लोगों को बूझना-पहचानना सीखें, कलीसिया की सभी विभिन्न समस्याओं से निपटना सीखें, और कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार विभिन्न कामों को क्रियान्वित करना सीखें। प्रशिक्षित होने की अवधि के दौरान, अगर लोग सत्य को और काट-छाँट किए जाने को स्वीकार सकें, परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकें, विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकें, और सभी प्रकार के लोगों से पेश आना सीख सकें और परमेश्वर के वचनों के अनुसार हर तरह के लोगों में भेद करना और निपटना सीख सकें, तो वे संगत सत्य सिद्धांतों को आत्मसात कर सकेंगे, और सत्य को समझ सकेंगे और वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे—ये वे चीजें हैं जो साधारण विश्वासी अनुभव नहीं कर सकते या हासिल नहीं कर सकते। इसलिए इस दृष्टिकोण से, परमेश्वर के घर द्वारा किसी को पदोन्नत और विकसित करना अच्छी चीज है या बुरी चीज? क्या यह उनके लिए लाभकारी है या उन पर थोपी गई कठिनाई है? यह उनके लिए लाभकारी है। बेशक, जब कुछ लोगों को अभी-अभी पदोन्नत किया गया हो, तो वे नहीं जानते कि उन्हें कौन-से काम करने हैं, या उन्हें कैसे करना है, और थोड़े चकराए रहते हैं। यह सामान्य है; कभी ऐसा कोई कहाँ पैदा हुआ है जो हर काम करने में सक्षम हो? अगर तुम सब कुछ कर सकते, तो यकीनन तुम सभी लोगों में सबसे अहंकारी और दंभी होते, और किसी की बात नहीं मानते—ऐसी स्थिति में, क्या तुम तब भी सत्य को स्वीकार सकते? अगर तुम सब-कुछ कर सकते, तो क्या तब भी तुम परमेश्वर पर निर्भर रहोगे, और उसे आदरपूर्वक देखोगे? क्या तब भी तुम अपनी भ्रष्टता की समस्याओं को दूर करने के लिए सत्य को खोजोगे? तुम निश्चित रूप से नहीं खोजोगे। इसके विपरीत, तुम अहंकारी और दंभी रहोगे और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलोगे, तुम सत्ता और रुतबे के लिए लड़ोगे और किसी के आगे नहीं झुकोगे, और तुम लोगों को गुमराह कर फँसाओगे, और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा डालोगे—उस स्थिति में भी क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा उपयोग में लिए जा सकते हो? अगर तुम जानते हो कि तुममें कई खामियाँ हैं, तो तुम्हें आज्ञापालन करना और समर्पण करना सीखना चाहिए और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार अच्छे ढंग से विभिन्न काम करने चाहिए; इससे तुम धीरे-धीरे उस मुकाम पर पहुँच सकोगे जहाँ तुम अपना कार्य इस तरह से कर पाओगे जो मानक स्तर का होगा। लेकिन ज्यादातर लोग आज्ञापालन और समर्पण करने जैसी सरल-सी चीजें नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें पदोन्नत और विकसित न करने के लिए परमेश्वर के घर को दोष नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे आज्ञापालन में अक्षम हैं। अगर आज्ञापालन करना भी तुम्हारे बस में नहीं है, तो क्या परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित करने की हिम्मत करेगा? (नहीं।) और क्यों नहीं? तुम्हारा उपयोग करना बेहद जोखिम-भरा होगा, बड़ी मुसीबत और बड़ी चिंता का काम होगा! क्योंकि अगर कभी परमेश्वर के घर ने तुम्हारा उपयोग किया, तो हो सकता है तुम लोगों पर काबू कर लो, और दुष्टता के मार्ग पर उनकी अगुआई करो—इसीलिए यह बेहद जोखिम-भरा है। अगर तुम्हारा उपयोग किया गया, तो हो सकता है कि तुम लापरवाही से कुकर्म करो, और कार्य को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दो, और परमेश्वर के घर को तुम्हें बरखास्त करना पड़े और तुम्हारी जगह खुद सारी गड़बड़ी को ठीक करना पड़े—इसीलिए यह बहुत बड़ी मुसीबत है। और अगर तुम्हारा उपयोग किया गया, तो तुम नहीं जानोगे कि कोई भी कार्य कैसे करना है, और अपने कार्य के लिहाज से तुम कोई परिणाम नहीं दे पाओगे; तुम्हारे तमाम कामों में, ऊपरवाले को तुमसे आग्रह करना पड़ेगा, निगरानी करनी पड़ेगी और टोह लेनी पड़ेगी, और उसे सभी मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ेगा—तो तुम्हारा उपयोग क्यों किया जाना चाहिए? तुम बहुत चिंताजनक हो! इस प्रकार के व्यक्ति का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जा सकता। उसका विकास किया भी जाए तो भी यह बेकार होगा, यह बड़ी मुसीबत लाएगा और दूसरों के विकास को भी प्रभावित करेगा; क्या इससे होने वाले लाभ पर हानि भारी नहीं पड़ेगी? (हाँ, भारी पड़ेगी।)

परमेश्वर के घर द्वारा कभी भी पदोन्नत या नियोजित न किए जाने के कारण कुछ लोगों के दिमाग में कुछ विचार उपजते हैं और वे कहते हैं, “ऊपरवाला मुझ पर कभी भी ध्यान क्यों नहीं देता? परमेश्वर का घर मुझे कभी भी पदोन्नत और विकसित क्यों नहीं करता? यह उचित नहीं है!” अरे, पहले तुम्हें खुद नाप-तोल कर देखना चाहिए कि क्या तुम आज्ञापालन कर सकते हो, क्या तुम परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकते हो। और दूसरे, तुम्हें यह देखना चाहिए कि क्या तुम लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता बनाने हेतु पदोन्नत और विकसित करने के लिए परमेश्वर के घर की तीनों कसौटियों पर खरे उतरते हो—सत्य को समझने, दायित्व उठाने में सक्षम होना और कार्यक्षमता होना। अगर तुम इन कसौटियों पर खरे उतरते हो, तो देर-सवेर, तुम्हें पदोन्नत और विकसित होने और उपयोग में लिए जाने का अवसर मिलेगा। परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत करे, इसके लिए कुछ चीजें हैं जो तुमसे माँगी जाती हैं। और ये चीजें क्या हैं? तुमसे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती है; तुम्हें वह काम करना चाहिए, जिसका तुमसे निवेदन किया गया हो, और उसी ढंग से करना चाहिए जैसा निवेदन किया गया हो, इस प्रकार तुम्हें विकसित किया जाता है कि तुम पहले सिद्धांतपूर्ण ढंग से कार्य करना सीखो, सत्य को खोजना और उसके प्रति समर्पण करना सीखो और सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना सीखो। जब तुम्हारा विकास किया जा रहा हो, उस दौरान परमेश्वर का घर कभी-कभी तुम्हारी काट-छाँट करेगा; कभी-कभी वह तुम्हें गंभीर रूप से डांटेगा-फटकारेगा; कभी-कभी वह तुमसे कार्य की प्रगति के बारे में पूछताछ करेगा; कभी-कभी वह तुमसे पूछेगा कि वास्तव में कार्य कैसा चल रहा है, और तुम्हारे कार्य की जाँच करेगा; और कभी-कभी वह किसी खास चीज के प्रति तुम्हारे दृष्टिकोण की परीक्षा लेगा। इन परीक्षाओं का लक्ष्य तुम्हारे लिए चीजों को कठिन बनाना नहीं है, बल्कि तुम्हें यह समझाना है कि इन मामलों में परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और तुम्हारा कैसा रवैया और सिद्धांत होने चाहिए। परमेश्वर का घर यह काम तुम्हें प्रशिक्षित करने और तुमसे अभ्यास करवाने के लिए करता है। और लोगों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है? यह उन्हें इस योग्य बनाने के लिए है कि वे सत्य को समझें। सत्य को समझने का लक्ष्य यह है कि लोग सत्य के प्रति समर्पण करने में सक्षम बनें, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें, अपने स्थान पर बने रहें और वफादारी से अपना कर्तव्य निभाएँ, और अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया में विभिन्न सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर अपने स्वभाव में बदलाव हासिल करें। परमेश्वर का घर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह से प्रशिक्षण देता है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य समझते हैं, तो उनके परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सत्य समझने के लिए अगुआई करने में सक्षम होने की उम्मीद होती है। अगुआ और कार्यकर्ता जितने सत्यों को समझते हैं, उतने ही सत्यों को समझने की उम्मीद उन लोगों को होती है, जिनकी वे अगुआई करते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में सत्य सिद्धांतों को समझते हैं, तो वे जिनकी अगुआई करते हैं, वे भी सिद्धांतों को समझ सकते हैं और अपने कार्य में सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए, जो अगुआ और कार्यकर्ता प्रशिक्षण लेते हैं, उनमें दूसरे लोगों के मुकाबले बेहतर काबिलियत होनी चाहिए। उन्हें इस योग्य बनाया जाता है कि वे पहले सत्य सिद्धांतों को समझें और पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश करें, और फिर वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और सत्य सिद्धांतों को समझने में ज्यादा लोगों की अगुआई करते हैं। इस दृष्टिकोण के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? (यह अच्छा है।) हो सकता है कि ऐसे लोग बहुत सुशिक्षित न हों, या बोलने में सुस्पष्ट न हों, या टेक्नोलॉजी या मौजूदा मामलों और राजनीति के बारे में ज्यादा न समझते हों। हो सकता है कि वे किसी पेशे में उतने प्रवीण न हों। लेकिन वे सत्य समझने में सक्षम होते हैं, और परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, वे उनका अभ्यास और अनुभव करने में सक्षम होते हैं, और सत्य सिद्धांतों का पता लगाने में सक्षम होते हैं, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने और सत्य सिद्धांतों का पालन करने में ज्यादा लोगों की अगुआई करने में सक्षम होते हैं। जब हम उस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों के बारे में बात करते हैं, जिन्हें अगुआओं के रूप में सेवा करने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो हमारा तात्पर्य इन्हीं लोगों से होता है। क्या यह अमूर्त है? (नहीं, अमूर्त नहीं है।) कुछ लोग पूछ सकते हैं : “तुम प्रतिभाशाली लोगों की बात करते हो, तो क्या वे समाज के आला लोग हैं? क्या यह जरूरी है कि उन्होंने समाज में कोई व्यापार चला रखा हो, या वे किसी किस्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हों या उद्यमी हों? क्या वे राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली कोई हस्ती हैं, या व्यावसायिक प्रतिभा हैं या कला और साहित्यिक वर्गों की प्रतिभा हैं? क्या वे विशेष रूप से गुणी लोग हैं?” परमेश्वर के घर में जिन प्रतिभाशाली लोगों की चर्चा होती है वे बाहरी दुनिया के प्रतिभाशाली लोगों से अलग होते हैं। यह पारिभाषिक पद, “प्रतिभाशाली लोग” जिसकी हम बात करते हैं, इसका क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य है सत्य समझने में सक्षम होना, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करने में सक्षम होना, और यह जानना कि विभिन्न प्रकार के लोगों को कैसे पहचाना जाए और उन विभिन्न दशाओं और कठिनाइयों को कैसे सुलझाया जाए जिनमें लोग खुद को पाते हैं, और मसलों का सामना होने पर सही विचार और रवैये अपनाना और ऐसे विचार और रवैये अपनाना जो परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले और उसका अनुसरण करने वाले लोगों में होने चाहिए। इसका संबंध उन लोगों से नहीं है जिन्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, या जो पाखंडी हैं, या उन लोगों से नहीं है जो आडंबरपूर्ण चीजें बोलते हैं और वाक्चातुर्य दिखाते हैं। बल्कि इसका संबंध उन लोगों से है जिनमें सत्य वास्तविकता होती है। “प्रतिभाशाली लोग” का तात्पर्य यही है। क्या यह खोखला है? (नहीं।) क्या ये कसौटियाँ, जिनकी अपेक्षा परमेश्वर का घर इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों से करता है जिन्हें वह अगुआ और कार्यकर्ता बनाता है, बहुत व्यावहारिक हैं? (हाँ।) बहुत ज्यादा व्यावहारिक हैं! ऐसे उम्मीदवारों के पास उन्नत शैक्षणिक योग्यता होने की अपेक्षा नहीं होती, लेकिन उनमें कम-से-कम सत्य समझने की काबिलियत होनी चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं : “अगर उनसे उन्नत शैक्षणिक योग्यता रखने की अपेक्षा नहीं की जाती, तो क्या उनका अनपढ़ होना ठीक है?” थोड़ी शिक्षा के बिना परमेश्वर के वचनों को पढ़ना संभव नहीं हो पाएगा। यह जरूरी है कि वे लिखित शब्दों को समझें, लेकिन उनके लिए उन्नत शैक्षणिक योग्यता होना जरूरी नहीं है। परमेश्वर के घर में जिन लोगों को पदोन्नत किया जाता है उनमें हाई स्कूल उत्तीर्ण, विश्वविद्यालय उत्तीर्ण और पीएच.डी. प्राप्त लोग शामिल होते हैं, इसलिए शैक्षणिक स्तर को लेकर कोई सीमा नहीं है। इसके अलावा, किसी के सामाजिक रुतबे को लेकर भी कोई सीमा नहीं है। किसानों से लेकर बुद्धिजीवियों तक, व्यापारियों से लेकर गृहिणियों तक—सभी प्रकार के लोगों का स्वागत है। शैक्षणिक स्तर और सामाजिक रुतबे पर कोई प्रतिबंध न होने के अलावा उनसे अपेक्षित कसौटियाँ वही सारी हैं जिनकी मैंने चर्चा की। क्या यह उचित है? (हाँ।) बहुत ही उचित है! क्या अब इस बात को तुम थोड़ा और समझ पाए हो कि “परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित प्रतिभाशाली लोगों” से मेरा क्या तात्पर्य है? (हाँ।) सत्य समझने में सक्षम होने, दायित्व उठाने और कार्यक्षमता होने की इन तमाम कसौटियों पर खरे उतरने वाले लोग परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के उम्मीदवार हैं। अगर वे इन कसौटियों पर खरे उतरते हैं, तो वे योग्यता-प्राप्त हैं। जहाँ तक शिक्षा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, सामाजिक स्तर, रंग-रूप आदि-आदि की बात है, अपेक्षाएँ उतनी ऊँची नहीं हैं। यह अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए लोगों को पदोन्नत और विकसित करने को लेकर है।

अभी-अभी हमने उन अनेक कसौटियों पर चर्चा की जिन पर कौशल वाले या पेशेवर प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए खरा उतरना चाहिए, जो ये हैं कि उन्हें सकारात्मक चीजों से प्रेम करना चाहिए, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होना चाहिए, अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए, वफादारी से अपना कर्तव्य करने में सक्षम होना चाहिए, कठिनाई सहनी चाहिए, और बिना शिकायत के कीमत चुकानी चाहिए, और कम-से-कम कोई बुरे कर्म नहीं करने चाहिए—इन लोगों की बात आने पर ये तमाम कसौटियाँ अनिवार्य हैं। तो इन लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का लक्ष्य क्या है? इसी तरह, यह इसलिए है ताकि अपना कर्तव्य करते समय और कोई विशेष कार्य करते समय, जब कभी इन लोगों का सामना समस्याओं से हो, तो वे समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकें, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकें। प्रवेश का अभ्यास करने की प्रक्रिया में, वे अनजाने ही प्रशिक्षित और विनियमित हो जाते हैं, और अपने इरादों को त्यागने का अभ्यास करते हैं, सांसारिक लोगों के बारे में अपने गलत और ऊटपटांग विचारों को सुधारते हैं, कुछ बचकाने विचारों को त्याग देते हैं, परमेश्वर में आस्था, और ऐसी चीजों को लेकर पूर्वाग्रहों, धारणाओं और कल्पनाओं को त्याग देते हैं। चाहे जो हो, अभ्यास की इस प्रक्रिया का अभिप्राय निस्संदेह लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे धीरे-धीरे सत्य समझें, समर्पण करना सीखें, और विभिन्न सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करना सीखें। सीखने की प्रक्रिया के दौरान, वे धीरे-धीरे सत्य सिद्धांतों में प्रवीणता प्राप्त करते हैं, जान पाते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना क्या होता है, और सत्य का अभ्यास करने का अर्थ क्या है, और अपना कर्तव्य निभाने का अर्थ क्या है, और अंततः वे धीरे-धीरे समझ लेते हैं कि उन्हें मानक स्तर के तरीके से अपना कर्तव्य निभाने के लिए क्या करना चाहिए, एक विश्वासी को जिस तरीके से चीजें करनी चाहिए उस तरह से चीजों को कैसे करना चाहिए, आदि—पदोन्नत और विकसित किए जाने के बाद लोग धीरे-धीरे इन सभी चीजों में प्रवेश करते हैं। लोगों के धीरे-धीरे प्रवेश की प्रक्रिया विकसित किए जाने की प्रक्रिया है, और विकसित किए जाने की प्रक्रिया वास्तव में लोगों के सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के अभ्यास की प्रक्रिया है। लेकिन अगर तुम्हें पदोन्नत और विकसित नहीं किया गया है, और तुम सिर्फ एक साधारण विश्वासी की तरह कार्य करते हो जो सभाओं में जाता है, परमेश्वर के वचन पढ़ता है, सत्य के बारे में संगति करता है, या भजन सीखता है, तो परमेश्वर में इस प्रकार विश्वास रखकर तुम एक सृजित प्राणी के रूप में वास्तव में अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हो, इसलिए तुम एक मानक स्तर से अपना कर्तव्य निभाने से बहुत दूर हो। तुम इस बारे में भी स्पष्ट नहीं हो कि तुम्हें अपना कर्तव्य करने के लिए किन सिद्धांतों पर समझना चाहिए, और तुम सिर्फ कुछ धर्म-सिद्धांत बोल और नारे ही लगा सकते हो; इसलिए तुमने अभी सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया है, और जीवन में तुम्हारा प्रवेश बहुत धीमा है। इसी तरह, पेशेवर कामों में संलग्न इन लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का लक्ष्य और उद्देश्य यह है कि वे सत्य वास्तविकता में और अधिक शीघ्रता से प्रवेश करें और सत्य सिद्धांतों की बेहतर एवं और अधिक सटीक समझ हासिल कर सकें। जो लोग सत्य सिद्धांतों को समझ सकते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं—वे ही वे प्रतिभाशाली लोग हैं जिन्हें परमेश्वर का घर पदोन्नत और विकसित करता है। इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों का संदर्भ किनसे है? इसका मतलब वे लोग हैं—जिन्होंने सकारात्मक चीजों से प्रेम करने, कठिनाइयाँ झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होने और अपनी समझ में विकृत न होने, और बुरे न होने के आधार पर—सत्य सिद्धांतों की समझ हासिल की है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश किया है, और जो परमेश्वर और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में सक्षम हैं, और जिनके पास कुछ हद तक परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। ये वे दूसरे प्रकार के प्रतिभाशाली लोग हैं जिनकी मैं चर्चा करता हूँ। उनसे की जाने वाली अपेक्षाएँ भी व्यावहारिक हैं, पर्याप्त रूप से विशिष्ट हैं, अमूर्त नहीं। तो क्या यह आवश्यक है कि इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोग समाज के आला लोग हों, सामाजिक रूप से अनुभवी हों, और उनके पास कुछ विशेष शैक्षणिक योग्यताएँ हों, और कोई खास सामाजिक रुतबा हो? (नहीं।) परमेश्वर का घर लोगों से कभी अपेक्षा नहीं करता कि उनके पास सामाजिक रुतबा हो, ख्याति हो, शैक्षणिक योग्यताएँ हों या उच्च स्तर का ज्ञान हो—इन चीजों की कभी अपेक्षा नहीं की जाती। लोगों को पदोन्नत और विकसित करते समय, परमेश्वर का घर उनका रंग-रूप नहीं देखता, यानी यह कि वे कितने कुरूप हैं या आकर्षक। गैर-विश्वासियों जैसे दिखने वालों या रंग-रूप में वीभत्स या दुष्ट लोगों को पदोन्नत न करने के अलावा, दूसरी कसौटियाँ वे होती हैं जिनका मैंने अभी जिक्र किया—ये सर्वाधिक व्यावहारिक हैं। जब गैर-विश्वासी किसी को पदोन्नत करते हैं, तो पहले वे उस व्यक्ति का रंग-रूप देखते हैं, पुरुषों को आकर्षक होना चाहिए, अधिकारियों जैसे, और महिलाओं को सुंदर होना चाहिए, परियों जैसी। इसके अतिरिक्त, वे लोगों की शैक्षणिक योग्यताएँ, सामाजिक रुतबा, पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनका फरेब देखते हैं। अगर तुम्हारे पास उन्नत शैक्षणिक योग्यताएँ तो हैं, मगर कोई फरेब नहीं है, तो इससे भी काम नहीं चलेगा, और तुम्हें कभी भी पदोन्नत नहीं किया जाएगा और कोई भी तुम्हारे बारे में ऊँचा नहीं सोचेगा। अगर तुम्हारे पास उन्नत शैक्षणिक योग्यताएँ हैं और वास्तविक प्रतिभा है, मगर देखने में खास अच्छे नहीं लगते, नाटे हो, और नहीं जानते कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों की चापलूसी कैसे करें या कैसे उनके करीब हो पाएँ, तो जीते जी तुम कभी भी पदोन्नत या विकसित नहीं किए जाओगे, और कोई भी तुम्हारा पता नहीं लगाएगा। इसलिए, गैर-विश्वासियों के बीच यह कहावत प्रचलित है, “तेज घोड़े तो बहुत-से हैं, मगर उन्हें पहचानने वाले बहुत कम हैं।” क्या यह कहावत परमेश्वर के घर में सच होती है? (नहीं, यह सच नहीं होती।) तो क्या यह अभिव्यक्ति “सच्चा सोना अंततः चमकता ही है” सच होती है? क्या यह वैध है? (नहीं।) जो लोग दोषदर्शी होते हैं और किसी के आगे नहीं झुकते, वे अक्सर ऐसा कहते हैं। हमेशा चमकने की चाह रखना—यह एक इंसानी महत्वाकांक्षा है। परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग सोना नहीं हैं, वे बस साधारण लोग हैं। हम जिस पदोन्नति और विकसित किए जाने की बात करते हैं, वह बस कहने का तरीका है; दरअसल, इसका संबंध परमेश्वर द्वारा ऊपर उठाए जाने से है। क्या तुम, एक सृजित प्राणी, सृष्टिकर्ता के सामने सोना हो? तुम सिर्फ धूल हो, तुम तांबा या लोहा भी नहीं हो। मैं यह क्यों कहता हूँ कि तुम सोना नहीं, बल्कि धूल हो? लोगों के बारे में कुछ भी सराहनीय नहीं होता। कुछ लोग पूछ सकते हैं : “क्या तुमने जो कहा वह विरोधात्मक नहीं है? क्या तुमने अभी-अभी नहीं कहा कि सकारात्मक चीजों से प्रेम करने की कसौटी पर खरे उतरने पर किसी को पदोन्नत किया जा सकता है?” एक इंसान के रूप में, क्या तुम्हें सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करना चाहिए? अगर तुम कुछ सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हो, तो क्या इससे तुम सोना बन जाते हो? क्या इससे तुममें चमक आ जाती है? अगर तुम कुछ सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हो, तो क्या इसका यह अर्थ है कि तुम्हारे पास सत्य है? केवल सत्य होने पर ही कोई व्यक्ति चमकता है। अगर तुम्हारे पास सत्य नहीं है, तो ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि तुम चमकते हो। तथ्य यह है कि एक सृजित प्राणी कोई भी सत्य नहीं समझता। थोड़ी मानवता होने, और सत्य समझने की थोड़ी योग्यता और काबिलियत होने का यह अर्थ नहीं है कि किसी में सहज ही सत्य है। भले ही लोगों की मानवता ईमानदार और दयालु हो, तो भी लोगों में सत्य नहीं होता, क्योंकि ये चीजें सत्य नहीं हैं, ये बस गुण हैं जो सामान्य मानवता में होने चाहिए। इसलिए चमकने की बात मत करो। तो कोई कब थोड़ा चमक सकता है? जब वह अय्यूब के ये वचन बोल सके, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21), तब ही यह कहा जा सकता है कि वे थोड़ा चमकते हैं, और वे रोशनी में रहते हैं। जब तुम दूसरों को पोषण और समर्थन देने और उनकी अगुआई करने के लिए अपनी सत्य वास्तविकता, और जो सत्य तुम समझते हो, उसका उपयोग कर सको, जिसके जरिये उन्हें परमेश्वर के सामने और सत्य वास्तविकता में लाया जा सके, उनसे परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसकी आराधना करवाई जा सके, तभी तुम थोड़ा चमक सकते हो।

परमेश्वर के घर द्वारा विकसित विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग अलौकिक रूप से गुणी नहीं होते हैं, वे बस साधारण, भ्रष्ट लोग होते हैं। अगर वे सत्य को स्वीकार सकें, आज्ञापालन और समर्पण कर सकें, और उनमें कोई विशेष काबिलियत हो, तो परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित करके छूट देगा। जब मैं लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए छूट देने की बात कहता हूँ, तो यह परमेश्वर द्वारा ऊपर उठाए जाने के बारे में है, यह तुम्हें परमेश्वर के सामने आने, परमेश्वर की अगुआई स्वीकारने और परमेश्वर द्वारा विकसित और प्रशिक्षित किए जाने का अवसर देने के बारे में है, ताकि इस अवधि के दौरान, तुम सत्य वास्तविकता में यथाशीघ्र प्रवेश कर सको, और सत्य सिद्धांतों को सटीक रूप से समझने में सक्षम हो सको, अपना कर्तव्य ऐसे तरीके से कर सको जो मानक स्तर का हो, और मनुष्य के समान जी सको। परमेश्वर के घर में, “प्रतिभाशाली लोग” शब्दों का यही अर्थ है। ऐसे लोग जरा भी बड़े और प्रभावी नहीं होते, वे सिर्फ सत्य समझते हैं, उनमें सत्य वास्तविकता होती है, वे ईमानदारी और जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य कर सकते हैं, उनमें थोड़ी ईमानदारी होती है, वे थोड़ी कीमत चुकाने में समर्थ होते हैं, और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर लापरवाही से कार्य नहीं करते। क्या परमेश्वर के घर के लिए अपवादस्वरूप इन कसौटियों पर खरे उतरने वाले लोगों को पदोन्नत और विकसित करना और उन्हें प्रशिक्षित करना उचित है? क्या यह लोगों के लिए लाभप्रद है? यह लोगों के लिए बहुत लाभप्रद है! दूसरे विश्वासियों की ही तरह, जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, उपदेशों को सुनते हैं, और अपना कर्तव्य करते हैं, लेकिन दूसरे विश्वासियों की तुलना में, वे ज्यादा तेजी से बढ़ेंगे और ज्यादा हासिल करेंगे। क्या तुम लोग ज्यादा हासिल करना चाहते हो, या सिर्फ थोड़ा हासिल करना चाहते हो? (हम ज्यादा हासिल करना चाहते हैं।) ज्यादातर लोगों की यह आकांक्षा होती है, जिसका अर्थ है कि वे सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं। कभी-कभी मैं कुछ दलों के साथ जीवन प्रवेश करने के बारे में संगति करता हूँ, और काफी लोग सुनने के लिए आते हैं, जो यह दिखाता है कि ज्यादातर लोगों में सत्य के लिए लालसापूर्ण इच्छा है, और वे अधिक सत्य समझने को तैयार हैं, और वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने को भी तैयार हैं। आरंभ में, मैंने कुछ लोगों के साथ संगति की और वे बहुत ही संवेदनहीन थे। मैंने लंबे समय तक बात की, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, मुस्कराहट का नामोनिशान न था। उनके साथ एक या दो वर्ष तक संपर्क में रहने के बाद, उनमें से ज्यादातर लोग अपने हाव-भाव में ज्यादा सहज हो गए और उन्होंने प्रतिक्रिया दिखाई, और समय के साथ उनकी प्रतिक्रियाएँ कुछ हद तक जल्दी आने लगीं। यानी, वे मृत लोगों से जिंदा लोगों में तब्दील हो गए, और उनकी आत्माएँ जागृत हो गईं। यह कैसे हासिल हुआ? अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे सकारात्मक चीजों से जितना भी प्रेम करें, या वे जितने भी चतुर और दिमागी क्यों न हों, वे फिर भी मृत लोग हैं। कुछ लोग शुरू में मूर्ख और मंद-बुद्धि होते हैं, दुनिया में कोई भी उनके बारे में ऊँची राय नहीं रखता, और वे बहुत पढ़े-लिखे नहीं होते और उनके क्षितिज बहुत व्यापक नहीं होते हैं। लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद, वे अनेक सत्यों को समझ सकते हैं, कई चीजों को स्पष्ट देख सकते हैं, और फिर मनुष्य के समान जी सकते हैं, और इस तरह जीवित लोग बन जाते हैं। “जीवित लोग” होने का अर्थ क्या है? यह इस बारे में नहीं है कि तुम्हारा भौतिक शरीर जीवित है या मृत, या तुम्हारा शरीर चल-फिर सकता है या साँस ले सकता है या नहीं, बल्कि इस बारे में है कि क्या तुम्हारी आत्मा परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति सचेत और संवेदनशील है या नहीं। जीवित लोग सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, उनमें चेतना आती है, एक मार्ग, एक योजना और एक लक्ष्य होता है। मृत लोगों में ये अभिव्यक्तियाँ नहीं होतीं। इसलिए, अगर परमेश्वर का घर किसी को पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक हासिल करेगा। तो, जो लोग इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरते, और पदोन्नत या विकसित नहीं किए जाते, वे पर्याप्त रूप से हासिल कैसे कर सकेंगे? वे सत्य वास्तविकता में शीघ्रता से कैसे प्रवेश कर सकेंगे? उन्हें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करना चाहिए, अनेक सत्यों की समझ प्राप्त करनी चाहिए, और लोगों को बूझने-पहचानने और समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य लागू करने में सक्षम होना चाहिए—फिर वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे।

कुछ लोग कहते हैं : “यह देखते हुए कि परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है, और उन्हें यथाशीघ्र सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने देता है, क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि जो लोग प्रतिभाशाली नहीं हैं, वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकते?” क्या ऐसा कहना सही है? (नहीं, यह गलत है।) तो इस विषय पर संगति करने के बाद, क्या इसने कुछ लोगों को रोमांचित किया है जबकि दूसरों को मायूस और निराश? किसी व्यक्ति को इस पर इस तरह से गौर करना चाहिए : जो लोग पदोन्नत और विकसित किए गए हैं उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए। तुम्हारे पास डींग मारने के लिए कुछ नहीं है, यह परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष है। जब परमेश्वर तुम्हें ज्यादा देता है, तो वह तुमसे ज्यादा देने की माँग भी करता है। अगर परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित कर कोई छूट देता है, तो इसका अर्थ है कि तुम्हें ज्यादा कीमत चुकाने की जरूरत है। अगर तुम यह कठिनाई झेल सकते हो, तो बेशक तुम ज्यादा हासिल करोगे। अगर तुम कहते हो, “मैं यह कठिनाई सहने को तैयार नहीं हूँ,” तो तुम सत्य हासिल नहीं करोगे, न ही परमेश्वर का आशीष प्राप्त करोगे। कुछ लोग कहते हैं, “मैं उन चीजों को हासिल करना चाहता हूँ, मगर मुझे नहीं लगता कि मैं हासिल कर सकता हूँ, क्योंकि परमेश्वर का घर अपवाद के रूप में मुझे पदोन्नत और विकसित नहीं करेगा। मैं कसौटियों पर खरा नहीं उतरा हूँ।” अगर तुम कसौटियों पर खरे नहीं उतरते, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर तुम सत्य का अनुसरण करते हो और उसके लिए कड़ी मेहनत करते हो, तो परमेश्वर तुमसे अनुचित व्यवहार नहीं करेगा। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया गया है, वे महज अपनी काबिलियत और अपनी विभिन्न दशाओं के कारण सत्य वास्तविकता में पहले प्रवेश कर सकेंगे। लेकिन इस तरह पहले प्रवेश करने का यह अर्थ नहीं है कि सिर्फ वे ही लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे। इसका बस यह अर्थ है कि वे थोड़ा पहले थोड़ा ज्यादा हासिल कर सकेंगे और थोड़ा पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे। जिन लोगों को पदोन्नत नहीं किया गया है, वे उनसे थोड़ा पीछे रह जाएँगे, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। कोई सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकता है या नहीं, यह उसके प्रयासों पर निर्भर करता है। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया गया है, वे सत्य सिद्धांतों को अधिक शीघ्रता से समझ सकेंगे और विकसित किए जाने की प्रक्रिया के दौरान सत्य वास्तविकता में अधिक शीघ्रता से प्रवेश कर सकेंगे, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ पहुँचता है। इसलिए जिन लोगों में अच्छी काबिलियत देखी गई हो, सत्य से प्रेम देखा गया हो, उन्हें पदोन्नत और विकसित करना सही है। अगर कोई ऐसे लोगों का पता लगाकर उनसे ईर्ष्यालु होने या उन्हें नीचे खींचने के बजाय उन्हें पदोन्नत और विकसित कर सके, उनकी देखभाल कर सके, तो वह परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील है। इसके विपरीत, अगर कुछ लोग ईर्ष्यालु हैं, और चिंता करते हैं कि ये लोग उनसे बेहतर हैं, और उनसे आगे बढ़ जाएँगे, तो वे उन्हें अलग-थलग कर देते हैं और नीचे गिरा देते हैं, यह स्पष्ट रूप से एक बुरा कर्म है, और कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधी अक्सर करते हैं। केवल बुरे लोग और मसीह-विरोधी ही भाई-बहनों पर हमला बोलकर उन्हें अलग-थलग कर सकते हैं।

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