अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5) खंड एक

पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की पाँचवीं मद पर संगति की थी। पाँचवीं मद पर संगति करने के दौरान हमने नकली अगुआओं की कुछ अभिव्यक्तियों और क्रियाकलापों का गहन-विश्लेषण किया और हमने इस मद पर संगति समाप्त कर ली। अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की छठी और सातवीं मद पर संगति करेंगे। इन दो मदों की विशिष्ट विषयवस्तु क्या है? (मद छह : सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके। मद सात : विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।) चलो, फिर हम इन दो मदों के संबंध में नकली अगुआओं के विभिन्न क्रियाकलापों और अभिव्यक्तियों का गहन विश्लेषण करें। ये दोनों मदें एक ही श्रेणी की हैं, जो कलीसिया के तमाम तरह के लोगों की पदोन्नति, विकास और उनका नियोजन करने से संबंधित है। आओ, पहले हम हर प्रकार की योग्य प्रतिभा की पदोन्नति और विकास करने से जुड़े परमेश्वर के घर के सिद्धांतों पर संगति करें। इस तरह, क्या तुम फिर यह कार्य करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जिन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, उनमें से कुछ को मूल रूप से नहीं समझ लोगे? तुम लोग सोच सकते हो, “अगुआओं और कार्यकर्ताओं के तौर पर, हम अक्सर इन मामलों के संपर्क में आते हैं, हम इस कार्य से पहले ही परिचित हैं और हमें इसका थोड़ा अनुभव है, तो भले ही तुमने इस बारे में और कुछ ज्यादा न भी बोला हो, तब भी हमारे मन में इस बारे में स्पष्टता है, और तुम्हें इस पर और आगे विशेष तौर पर संगति करने की जरूरत नहीं है।” तो क्या इस पर संगति करने की कोई जरूरत नहीं है? (हमें इस पर तुम्हारी संगति की जरूरत है। हम इस बारे में सिद्धांतों को अभी भी नहीं समझते हैं और कुछ प्रतिभाशाली लोगों को पहचानना हमें अभी भी नहीं आता है।) ज्यादातर अगुआ और कार्यकर्ता इस काम को करने के बारे में अभी भी बहुत भ्रमित हैं, इसका अंदाजा लगाने की प्रक्रिया में हैं, और सटीक सिद्धांतों को नहीं समझ पाते हैं, इसलिए हमें अभी भी विवरणों के बारे में संगति करने की जरूरत है।

मद छह : सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके

परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने की महत्ता

परमेश्वर का घर हर प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है? क्या सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करना विज्ञान, शिक्षा और साहित्य में संलग्न होने के लिए है? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पहले से यह जानना चाहिए कि जब परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है, तो ऐसा किसी प्रकार के ऊँची टेक्नॉलॉजी वाले उत्पाद का निर्माण करने के लिए, कोई चमत्कार करने के लिए या मानवीय विकास के इतिहास में शोध करने के लिए नहीं किया जाता, और मानवजाति के भविष्य के लिए किसी किस्म की योजना बनाने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। तो फिर परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है? तुम लोग इस बात को समझते हो या नहीं? (राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए।) राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए—यह एक कारण है। और क्या है? (ताकि सत्य का अनुसरण करने वाला हरेक व्यक्ति प्रशिक्षण का अवसर पा सके।) सही है, यह उत्तर काफी तर्कसंगत है और सही निशाने पर है। ऐसा इसलिए है कि सत्य का अनुसरण करने वाले और अधिक लोग प्रशिक्षित होने का अवसर पा सकें, और यथाशीघ्र सत्य वास्तविकता में प्रवेश करें। तुम लोगों के अभी-अभी दिए हुए दोनों जवाब सही और सटीक हैं। परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास एक लिहाज से राज्य के सुसमाचार को फैलाने और परमेश्वर के कार्य से संबंधित है, और दूसरे लिहाज से वैयक्तिक अनुसरणों और प्रवेश से संबंधित है। यही दोनों अति महत्वपूर्ण पहलू हैं। विशेष तौर पर कहें, तो परमेश्वर के घर द्वारा तमाम प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास करने की क्या महत्ता है? इन पदोन्नत और विकसित किए गए लोगों द्वारा कलीसिया में खास तौर पर कौन-सा कार्य किया जाता है? जब परमेश्वर का घर किसी व्यक्ति को टीम अगुआ, पर्यवेक्षक, कलीसिया अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो क्या वे कोई अधिकारी बनाए जाते हैं? (नहीं।) परमेश्वर का घर लोगों को इसलिए पदोन्नत और विकसित करता है ताकि वे कलीसिया के विभिन्न कार्यों की मदों में से विशिष्ट परियोजनाओं या कामों की जिम्मेदारी उठा सकें, जैसे कि सुसमाचार कार्य, इबारत-आधारित कार्य, फिल्म निर्माण कार्य, सिंचन कार्य, और साथ ही कुछ सामान्य मामले, इत्यादि। तो वे इन विशिष्ट कार्यों को कैसे क्रियान्वित करते हैं? परमेश्वर की अपेक्षाओं, परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों, और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों का बीड़ा उठाकर, और इस तरह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार अपना कर्तव्य निभाकर और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करके। इस तथ्य को देखते हुए कि इन लोगों को कार्य का बीड़ा उठाने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जा रहा है, यह कोई आधिकारिक पदवी या रुतबा होना नहीं है जो उन्हें अपना कर्तव्य अच्छे से करने योग्य बनाता है। बल्कि एक विशिष्ट कार्य का भार उठाने के लिए उनके पास खास काबिलियत होनी चाहिए, यानी उस कार्य को करने का बीड़ा उठाना जो परमेश्वर ने उन्हें करने के लिए सौंपा है, या दूसरे शब्दों में कहें, तो ऐसा कर्तव्य और दायित्व जिसमें जिम्मेदारी उठानी होती है। यह है विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नत और विकसित करने की विशेष महत्ता और परिभाषा जैसा कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की छठी मद में बताया गया है। इसलिए लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के पीछे परमेश्वर के घर का लक्ष्य, परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार, कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को अच्छे ढंग से करने के लिए सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करना है; यह इन लोगों को इस योग्य बनाने के लिए है कि वे कलीसिया के विभिन्न विशेष कार्यों की जिम्मेदारी उठा सकें। साथ ही साथ, परमेश्वर का घर इन लोगों को विकसित और प्रशिक्षित करता है ताकि वे यह सीख लें कि परमेश्वर के वचनों पर चिंतन कैसे करना है, सत्य पर संगति कैसे करनी है और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कैसे करना है, जिससे वे सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों के मुताबिक जीने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की दिशा में आगे बढ़ें और इस योग्य बनें कि उनके पास सच्चे अनुभव और गवाहियाँ हों, और जिसके बाद वे दूसरों की अगुआई, सिंचन और पोषण कर सकें और कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को अच्छे ढंग से कर सकें, और साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इस योग्य बनाया जा सके कि वे परमेश्वर के प्रति समर्पण करें, परमेश्वर की गवाही दें, और सुसमाचार का प्रचार करने का कर्तव्य पूरा कर सकें। सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास करने के अभ्यास का तरीका, एक लिहाज से, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने और उनका अनुभव करने, खुद को जानने, अपने भ्रष्ट स्वभावों का त्याग करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए लोगों की अगुआई करना है; एक अन्य लिहाज से, यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए है कि वे वफादारी और समर्पण के अपने स्वयं के वास्तविक अनुभव का उपयोग करके अपने कर्तव्य पूरे करने और परमेश्वर की जबरदस्त गवाही देने में लोगों की अगुआई करें और उन्हें विकसित करें। विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करने के लिए अभ्यास के ये दो प्रमुख मार्ग हैं। विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने में यह विशेष कार्य शामिल है, और उन्हें पदोन्नत और विकसित करने की यही सच्ची महत्ता भी है।

विभिन्न प्रकार के उन प्रतिभाशाली लोगों से अपेक्षित कसौटियाँ जिन्हें परमेश्वर का घर पदोन्नत और विकसित करता है

I. कार्य की विभिन्न मदों के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित कसौटियाँ

“कलीसिया द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग” किन्हें कहा जाता है? इसमें कौन-से दायरे शामिल होते हैं? पहला है उस प्रकार के लोग जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षकों से कौन-से मानक अपेक्षित होते हैं? तीन मुख्य अपेक्षित मानक हैं। पहला, उनमें सत्य को समझने की योग्यता होनी चाहिए। केवल वही लोग जो सत्य को विशुद्ध रूप से बिना किसी विकृति के समझकर निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वही अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोगों में कम-से-कम आध्यात्मिक समझ तो होनी ही चाहिए और उन्हें स्वतंत्र रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने की प्रक्रिया में उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना और काट-छाँट को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करने और सत्य को खोजने में सक्षम होना चाहिए, जिससे कि वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं और अपनी ही इच्छा में मिलावट और साथ ही अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर कर सकें—अगर वे इस मानक के स्तर तक पहुँच सकें, तो इसका अर्थ है कि वे परमेश्वर के कार्य को अनुभव करने का तरीका जानते हैं, और यह अच्छी काबिलियत की अभिव्यक्ति है। दूसरे, उन्हें कलीसिया के कार्य का बोझ उठाना ही चाहिए। जो लोग वास्तव में बोझ उठाते हैं, उनमें सिर्फ उत्साह ही नहीं, वास्तविक जीवन अनुभव होता है, वे कुछ सत्य समझते हैं, और वे कुछ समस्याओं की असलियत जान सकते हैं। वे देखते हैं कि कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में बहुत-सी कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका समाधान जरूरी है। वे इसे अपनी आँखों से देखते हैं और इस बारे में अपने दिल से चिंता करते हैं—यही है कलीसिया के कार्य के लिए बोझ उठाने का मतलब। अगर कोई महज अच्छी काबिलियत वाला और सत्य को समझने में सक्षम है, मगर वह आलसी है, देह-सुखों का लालच करता है, वास्तविक काम करने को तैयार नहीं है, और तभी थोड़ा-सा काम करता है जब ऊपरवाला उस काम को पूरा करने की आखिरी तारीख तय कर देता है, जब वे उसे करने से बच नहीं सकते, तो वह ऐसा व्यक्ति है जो कोई भी बोझ नहीं उठाता। जो लोग कोई भी बोझ नहीं उठाते, वे ऐसे लोग होते हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, जिनमें न्याय की भावना नहीं होती, और जो निकम्मे होते हैं, ठूंस-ठूंसकर खाते-पीते पूरा दिन बिता देते हैं, और किसी भी चीज पर गंभीरता से विचार नहीं करते। तीसरे, उनमें कार्यक्षमता होनी चाहिए। “कार्यक्षमता” का क्या अर्थ है? सरल शब्दों में कहें, तो इसका अर्थ है कि न सिर्फ वे लोगों को काम सौंप सकते हैं और निर्देश दे सकते हैं, बल्कि वे समस्याओं को पहचान कर हल भी कर सकते हैं—कार्यक्षमता होने का मतलब यही हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें सांगठनिक कौशल की भी जरूरत पड़ती है। सांगठनिक कौशल वाले लोग विशेष रूप से लोगों को एकजुट करने, कार्य को संगठित और व्यवस्थित करने और समस्याएँ सुलझाने में कुशल होते हैं, और कार्य को व्यवस्थित करते और समस्याओं को हल करते समय वे लोगों को पूरी तरह से मनाकर उनसे पालन करवा सकते हैं—सांगठनिक कौशल होने का यही अर्थ है। जिन लोगों में वास्तव में कार्यक्षमता होती है, वे परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित विशेष कामों को क्रियान्वित कर सकते हैं, और वे ऐसा बिना किसी ढिलाई के तेजी से और निर्णायक ढंग से कर सकते हैं, और यही नहीं, वे विभिन्न कामों को अच्छे ढंग से कर सकते हैं। ये अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित करने के परमेश्वर के घर के तीन मानक हैं। अगर कोई व्यक्ति इन तीन मानकों पर खरा उतरता है, तो वह एक दुर्लभ, प्रतिभाशाली व्यक्ति है और उसे पदोन्नत, विकसित, और सीधे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और कुछ समय तक अभ्यास के बाद वे कार्य हाथ में ले सकते हैं। जिस भी व्यक्ति में काबिलियत होती है, जो बोझ उठाता है, और जिसमें कार्यक्षमता है, उसके लिए ऐसे लोगों की जरूरत नहीं पड़ती जो उसके बारे में हमेशा चिंता करें, उसके कार्य में उसकी निगरानी करें और उससे आग्रह करें। वे पहले से सक्रिय होते हैं, वे जानते हैं कि कौन-से कार्य कब करने हैं, किन कार्यों का निरीक्षण और निगरानी करनी है, और किन कार्यों की बारीकी से जाँच और निगरानी करने की जरूरत है। वे इन चीजों से अच्छी तरह अवगत होते हैं। ऐसे लोग अपने कार्य में अपेक्षाकृत भरोसेमंद और विश्वसनीय होते हैं, और कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। भले ही समस्याएँ आ भी जाएँ, वे छोटी-मोटी होंगी और पूरे कार्य को प्रभावित नहीं करेंगी, और परमेश्वर को इन लोगों द्वारा किए जा रहे कार्य को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ वही लोग जो वास्तव में अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं, वास्तव में कार्यक्षमता संपन्न होते हैं। जो लोग अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते और दूसरों को हमेशा उनके बारे में चिंता करने, उन पर नजर रखने, उनकी निगरानी करने और यहाँ तक कि उनका हाथ थामने और उन्हें यह सिखाने की जरूरत पड़ती है कि क्या करना है, वे ऐसे लोग होते हैं जिनकी काबिलियत बेहद कमजोर होती है। साधारण काबिलियत वाले लोगों द्वारा किए गए कार्यों के नतीजे यकीनन साधारण होते हैं, और ये लोग कुछ भी कर सकें इससे पहले जरूरत पड़ती है कि दूसरे उन पर नजर रखें और उनकी निगरानी करें। इसके विपरीत, अच्छी काबिलियत वाले लोग कुछ समय तक प्रशिक्षित किए जाने के बाद अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं, और हर बार जब ऊपरवाला उन्हें किसी काम के लिए निर्देश देता है, और कुछ सिद्धांतों पर संगति करता है, तो वे सिद्धांतों को समझ सकते हैं, उनके अनुसार कार्यों को क्रियान्वित कर सकते हैं, और मूल रूप से बिना बड़े भटकावों या खामियों के सही मार्ग पर चल सकते हैं, और वे नतीजे हासिल कर सकते हैं जो उन्हें करने चाहिए—कार्यक्षमता होने का यही अर्थ है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर कलीसिया को शुद्ध करने का आग्रह करता है और चाहता है कि मसीह-विरोधी और बुरे लोग पहचाने जाएँ और कलीसिया से निष्कासित कर दिए जाएँ और उस प्रकार के लोग जिनमें कार्यक्षमता है, वे इस कार्य को क्रियान्वित करते समय मूल रूप से मार्ग से न भटकें। किसी मसीह-विरोधी के प्रकट होने के बाद उनका खुलासा होने और उन्हें निकाले जाने में कम-से-कम छह महीने का वक्त लगता है। इस दौरान, जिन लोगों में कार्यक्षमता होती है वे उन्हें पहचान सकते हैं, मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करने के लिए सत्य पर संगति कर सकते हैं, और उन्हें पहचानने और उनसे गुमराह न होने में भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं, और इस तरह उन्हें इस योग्य बना सकते हैं कि वे मिलकर मसीह-विरोधी को उजागर करने और निष्कासित करने के लिए उठ खड़े हों। जब मसीह-विरोधी या बुरे लोग कार्यक्षमता युक्त लोगों के कार्य के दायरे में प्रकट होते हैं, तो मूल रूप से अधिकतर भाई-बहन गुमराह या प्रभावित नहीं होते। केवल कुछ भ्रमित और बहुत कमजोर काबिलियत वाले लोग ही गुमराह होते हैं, और यह एक सामान्य घटना है। जो लोग अच्छी काबिलियत वाले होते हैं और जिनमें कार्यक्षमता होती है, वे अपने कार्य में ये नतीजे हासिल कर सकते हैं, और ऐसे लोगों में सत्य वास्तविकता होती है और वे अगुआ और कार्यकर्ता के तौर पर मानक स्तर के होते हैं।

जिन विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों का मैंने अभी-अभी जिक्र किया, उनमें पहला प्रकार उन लोगों का था जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। उनसे पहली अपेक्षा यह होती है कि उनमें सत्य को समझने की योग्यता और काबिलियत हो। यह न्यूनतम अपेक्षा है। दूसरी अपेक्षा यह है कि वे कोई बोझ उठाएँ—यह अपरिहार्य है। कुछ लोग साधारण लोगों के मुकाबले ज्यादा तेजी से सत्य समझ लेते हैं, उनमें आध्यात्मिक समझ होती है, वे अच्छी काबिलियत वाले होते हैं, उनमें कार्यक्षमता होती है, और कुछ समय तक अभ्यास करने के बाद वे पूरी तरह से अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं। लेकिन ऐसे लोगों के साथ एक गंभीर समस्या होती है—वे कोई बोझ नहीं उठाते। वे खाना, पीना, मौज-मस्ती और आवारागर्दी करना पसंद करते हैं। उन्हें इन चीजों में बड़ी दिलचस्पी होती है, लेकिन अगर उनसे कोई विशेष कार्य करने को कहा जाए जिसमें उन्हें कष्ट सहना पड़े और कीमत चुकानी पड़े, खुद को थोड़ा संयमित रखना पड़े, तो वे सुस्त पड़ जाते हैं, और दावा करते हैं कि उन्हें कोई बीमारी या तकलीफ है, और उनका अंग-अंग असहज महसूस कर रहा है। वे असंयमित और अनुशासनहीन, बेपरवाह, जिद्दी और स्वच्छंद होते हैं। वे जब चाहें तब खाते-पीते, सोते और मौज-मस्ती करते हैं, और तभी थोड़ा-सा काम करते हैं जब उनका मन करता है। अगर काम थोड़ा कठिन और थकाऊ हो, तो वे दिलचस्पी खो देते हैं और फिर अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते। क्या यह बोझ उठाना है? (नहीं।) जो लोग आलसी होते हैं और देह-सुख का लालच करते हैं, वे ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित करना चाहिए। ऐसे लोग भी उपलब्ध हैं जिनकी काबिलियत किसी काम के लिए पर्याप्त से अधिक है, लेकिन दुर्भाग्य से वे कोई बोझ उठाते ही नहीं, वे जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते, उन्हें तकलीफ पसंद नहीं है और वे चिंता करना पसंद नहीं करते। जो काम करना होता है उस काम को लेकर वे अंधे होते हैं, और भले ही वे इसे देख लें, तो भी उसे करना नहीं चाहते। क्या इस प्रकार के लोग पदोन्नति और विकास के उम्मीदवार हैं? बिल्कुल नहीं; पदोन्नत और विकसित होने के लिए लोगों को बोझ उठाना चाहिए। बोझ उठाने का वर्णन जिम्मेदारी की भावना होने के रूप में भी किया जा सकता है। जिम्मेदारी की भावना होने का मानवता से अधिक संबंध है; बोझ उठाना परमेश्वर के घर द्वारा लोगों को मापने के प्रयुक्त मानकों में से एक से संबंधित है। जो लोग दो अन्य चीजों—सत्य को समझने की योग्यता और कार्यक्षमता—के होने के साथ-साथ बोझ भी उठाते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है, और इस प्रकार के लोग कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। ये विभिन्न प्रकार के निरीक्षक बनने हेतु लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए अपेक्षित मानक हैं, और जो लोग इन मानकों पर खरे उतरते हैं, वे पदोन्नत और विकसित किए जाने के उम्मीदवार होते हैं।

II. विभिन्न पेशों के उन प्रतिभाशाली लोगों से अपेक्षित कसौटियाँ जिनमें विशेष प्रतिभाएँ या गुण होते हैं

उस प्रकार के लोगों के अलावा जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं, एक और प्रकार के लोग हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है, वे वैसे लोग हैं जिनमें विशेष प्रतिभाएँ या गुण होते हैं या जिन्होंने कुछ पेशेवर कौशलों पर महारत हासिल की है। इस प्रकार के लोगों को टीम अगुआओं के रूप में विकसित करने के लिए परमेश्वर का घर किस मानक की अपेक्षा करता है? पहले उनकी मानवता पर गौर करो—अगर वे सकारात्मक चीजों से अपेक्षाकृत प्रेम करते हैं और बुरे लोग नहीं हैं, तो यह काफी है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “उनसे यह अपेक्षा क्यों नहीं की जाती कि वे सत्य का अनुसरण करें?” क्योंकि टीम अगुआ कलीसिया के अगुआ या कार्यकर्ता नहीं होते, न ही वे सिंचन करने वाले होते हैं, और उनसे सत्य का अनुसरण करने के मानक पर खरे उतरने की अपेक्षा करना कुछ ज्यादा ही माँगना है, और यह उनमें से अधिकतर की पहुँच के बाहर है। उन लोगों से इसकी अपेक्षा नहीं की जाती जो सामान्य मामलों का कार्य करते हैं या पेशेवर कार्य की विशिष्ट चीजें करते हैं; अगर ऐसा होता, तो सिर्फ कुछ ही लोग योग्य साबित होते, इसलिए मानकों को नीचे लाना पड़ता है। अगर लोग अपने पेशे को समझते हैं, और काम का बोझ उठाने में सक्षम हैं, और बुरे कर्म नहीं करते या कोई बाधा पैदा नहीं करते, तो यह काफी है। इन लोगों के लिए, जिनके पास कुछ कौशलों और पेशों की विशेषज्ञता है, और जिनमें कुछ खूबियाँ हैं, अगर वे परमेश्वर के घर में कौशल की जानकारी की जरूरत वाले और उनके पेशों से संबंधित काम करने वाले हों, तो अगर वे अपने चरित्र के मामले में अपेक्षाकृत निष्कपट और ईमानदार हैं, बुरे नहीं हैं, अपनी समझ में विकृत नहीं हैं, कष्ट सहने में सक्षम हैं, और कीमत चुकाने को तैयार हैं, तो यह काफी है। इस तरह ऐसे लोगों को टीम अगुआओं के रूप में विकसित करने के लिए पहली अपेक्षा यह है कि उन्हें अपेक्षाकृत सकारात्मक चीजों से प्रेम करना चाहिए, और इसके अलावा उन्हें कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा और क्या है? (उन्हें ईमानदार चरित्र वाला होना चाहिए, बुरा नहीं होना चाहिए, और अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए।) उनका चरित्र अपेक्षाकृत ईमानदार होना चाहिए, उन्हें बुरा नहीं होना चाहिए, और उन्हें अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “तो क्या सत्य को समझने की उनकी क्षमता को ऊँचा माना जा सकता है? सत्य को सुनने के बाद, क्या वे सत्य वास्तविकता के प्रति जागृत हो सकते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं?” इन सबकी अपेक्षा करने की कोई जरूरत नहीं है; यह अपेक्षा करना पर्याप्त है कि ऐसे लोग अपनी समझ में विकृत न हों। जो लोग अपनी समझ में विकृत नहीं हैं, जब वे अपना कार्य करते हैं तो एक लाभ यह होता है कि उनके बाधा डालने या कुछ भी हास्यास्पद करने की संभावना नहीं होती। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर ने अभिनेताओं की पोशाकों के सिद्धांतों के बारे में बारम्बार संगति की है, जो कि गरिमामय और अच्छी होनी चाहिए, और फीकी नहीं बल्कि रंगीन होनी चाहिए। फिर भी ऐसे लोग होते हैं जो उस बात का अर्थ नहीं समझ पाते जो उन्हें बताई जाती है, वे जो सुनते हैं उसे समझ नहीं पाते, और समझने में अक्षम होते हैं और परमेश्वर के घर की इन अपेक्षाओं में निहित सिद्धांतों को पहचानने में असमर्थ होते हैं, और वे ऐसी पोशाकें चुन लेते हैं जो पूरी धूसर रंग की होती हैं—क्या यह विकृत समझ नहीं है? (हाँ।) विकृत समझ होने का अर्थ यही है। अपेक्षाकृत सकारात्मक चीजों से प्रेम करने का मुख्य रूप से क्या अर्थ है? (सत्य को स्वीकार करने में सक्षम होना।) सही कहा। इसका अर्थ है उन वचनों और चीजों को स्वीकारने में सक्षम होना जो सत्य के अनुरूप हैं, और परमेश्वर के वचनों और सत्य के सभी पहलुओं को स्वीकार कर उनके प्रति समर्पण करना। ऐसे लोग चाहे इन चीजों को अभ्यास में ला पाएँ या नहीं, कम-से-कम अपने मन की गहराई में उन्हें उनके प्रति प्रतिरोधी नहीं होना चाहिए या उन्हें उनसे घृणा नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोग भले लोग होते हैं, और बोलचाल की भाषा में यह कहा जा सकता है कि वे शालीन लोग हैं। शालीन लोगों के क्या लक्षण होते हैं? गैर-विश्वासी जिन बुरे कर्मों को करना पसंद करते हैं और जिन बुरी प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं, उनके प्रति वे घृणा, विकर्षण, और नफरत महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, गैर-विश्वासी दुनिया की प्रवृत्तियाँ बुरी शक्तियों की पैरवी करती हैं, और बहुत-सी औरतें किसी अमीर पुरुष से शादी करने या किसी की रखैल बनने के पीछे भागती हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? सत्य से प्रेम करने वाले लोग इन चीजों को खास तौर पर घिनौना पाते हैं और कुछ कहते हैं, “भले ही मुझे शादी करने के लिए कोई न मिले, भले ही मैं गरीबी से मर जाऊँ, लेकिन मैं कभी भी उन लोगों की तरह काम नहीं करूँगा।” दूसरे शब्दों में कहें, तो वे ऐसे लोगों के प्रति घृणा और तिरस्कार से भरे होते हैं। शालीन लोगों की एक विशेषता यह है कि वे बुरी प्रवृत्तियों को अरुचिकर और घिनौना पाते हैं, और उन लोगों के प्रति घृणा से भरे होते हैं जो इस तरह की प्रवृत्तियों में फँस गए हैं। ये लोग काफी हद तक ईमानदार होते हैं; परमेश्वर में विश्वास रखने और एक अच्छा इंसान बनने, सही रास्ते पर चलने, परमेश्वर की आराधना करने और बुराई से दूर रहने, बुरी प्रवृत्तियों से दूर रहने और दुनिया के सभी बुरे व्यवहारों से दूर रहने का उल्लेख किए जाने पर अंतर्मन में उन्हें लगता है कि ये चीजें अच्छी हैं। वे इन सबको हासिल करने के लिए कदम आगे बढ़ाने में सक्षम हों या नहीं, और परमेश्वर में विश्वास रखने और सही रास्ते पर चलने की उनकी आकांक्षा चाहे कितनी भी बड़ी हो, कुल मिलाकर अपने अंतर्मन में वे प्रकाश में रहने और उस स्थान पर होने के लिए तरसते हैं, जहाँ धार्मिकता की सत्ता होती है। इस प्रकार के ईमानदार लोग ऐसे लोग हैं जो सकारात्मक चीजों से काफी हद तक प्रेम करते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किया जाना है, उनमें कम-से-कम ईमानदार मानवता और सकारात्मक चीजों से प्रेम का चरित्र तो होना ही चाहिए। साथ ही यह पेशेवर कौशलों और खूबियों वाले प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत करने के लिए अपेक्षित पहला मानक भी है। दूसरा मानक यह है कि ऐसे लोगों को कठिनाई झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होना चाहिए। अर्थात्, जब उन कारणों या कार्यों की बात आती है, जिनके बारे में वे जुनूनी होते हैं, तो वे अपनी इच्छाएँ अलग रखने में सक्षम होते हैं, दैहिक सुख या आरामदायक जीवन-शैली छोड़ देते हैं, यहाँ तक कि अपनी भविष्य की संभावनाएँ भी छोड़ देते हैं। इसके अलावा, थोड़ी-सी कठिनाई या कुछ हद तक थका हुआ महसूस करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होती; अगर वे कुछ सार्थक और कुछ ऐसा कर रहे हों, जिसे वे सही मानते हैं, तो वे खुशी-खुशी देह-सुख और लाभ त्याग देते हैं—या कम-से-कम ऐसा करने की अभिलाषा या कामना रखते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “कभी-कभी वे लोग अभी भी दैहिक सुखों का लालच करते हैं : कभी-कभी वे सोना चाहते हैं, या अच्छा खाना खाना चाहते हैं, और कभी-कभी वे बाहर घूमने जाना या खेलते-कूदते समय बिताना चाहते हैं—लेकिन अधिकांश समय वे कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं; बस कभी-कभी उनकी मनःस्थिति उन्हें वैसे विचारों की ओर ले जाती है। क्या इसे समस्या माना जाएगा?” इसे समस्या नहीं माना जाएगा। उनसे यह माँग करना बहुत अधिक होगा कि वे विशेष परिस्थितियों के सिवाय दैहिक सुखों को पूरी तरह से अलग रख दें। सामान्य तौर पर, जब ऐसे लोगों को तुम कोई काम करने के लिए देते हो, तो चाहे वह काम बड़ा हो या नहीं, और चाहे वे उसे करना चाहते हों या नहीं, या वह काम कितना भी कठिन क्यों न हो, अगर तुम उसे उन्हें सौंप देते हो, तो चाहे उन्हें कितनी भी बड़ी कठिनाई झेलनी पड़े, कितनी भी कीमत चुकानी पड़े, तुम्हारे उन पर नजर रखे बिना या निगरानी किए बिना, उनके द्वारा उसे अपनी सर्वोत्तम योग्यता से किए जाने की गारंटी होती है। ऐसे लोग कठिनाई झेल सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं और यह शालीन लोगों की एक और अभिव्यक्ति है। कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कार्य को पूरी तरह से करना, बहुत अधिक समर्पित होना और ध्यान देना, और चीजों को उचित ढंग से करवा सकने के लिए कोई भी कठिनाई सहने और कोई भी कीमत चुकाने को तैयार होना। काम करवाने की बात आने पर, ऐसे लोग अपने वायदों पर कायम रहते हैं, और भरोसेमंद होते हैं, उन लोगों की तरह नहीं जो खाऊ और निठल्ले होते हैं, आरामपसंद होते हैं, श्रम से घृणा करते हैं और फायदे को सभी चीजों से ऊपर रखते हैं। उस प्रकार के लोग अपने वायदों से मुकर जाते हैं, धोखा देने और दूसरों को मनाने के लिए निरंतर झूठी बातें कहते हैं, और अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए झूठ बोलने और झूठी शपथ लेने से नहीं हिचकते—परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाएगा। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है। केवल ईमानदार लोग ही अपने वचन पर कायम रहते हैं और अपने कर्तव्यों के प्रति वफादार होते हैं, और सिर्फ वही लोग जो परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए कठिनाई झेल सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। कठिनाई झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होना दूसरी ऐसी विशेषता और अभिव्यक्ति है जो परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित होने के लिए किसी व्यक्ति में होनी चाहिए। तीसरा मानक है किसी व्यक्ति का समझ में विकृत न होना। यानी परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, वे कम-से-कम यह जानने में सक्षम होते हैं कि वचनों का संबंध किससे है, वे परमेश्वर की कही हुई बात का अर्थ समझ पाते हैं और उनकी समझ भटकी हुई या बेतुकी नहीं होती है। उदाहरण के लिए, अगर तुम नीले रंग की बात करते हो, तो वे उसका गलत अर्थ लगाते हुए उसे काला नहीं समझेंगे, और अगर तुम धूसर रंग की बात करते हो तो उसका गलत अर्थ लगाते हुए उसे बैंगनी नहीं समझेंगे। यह न्यूनतम बात है। भले ही कभी-कभी उनकी समझ विकृत हो, जब दूसरे उन्हें यह बताते हैं तो वे उसे स्वीकार सकते हैं और अगर वे देखते हैं कि किसी दूसरे में उनसे ज्यादा विशुद्ध समझ है, तो वे उसे फौरन स्वीकार सकते हैं—इस प्रकार के व्यक्ति में विशुद्ध समझ होती है। चौथी बात यह है कि वे बुरे लोग नहीं होने चाहिए। क्या इस बात को समझना आसान है? बुरा व्यक्ति न होने का अर्थ कम-से-कम एक कार्य करना होता है, जो यह है कि परमेश्वर के घर द्वारा बताई गई चीज को हासिल करने में विफल होने के बाद या सिद्धांतों का उल्लंघन करने और कोई गलत काम करने के बाद, ऐसे लोगों को काट-छाँट किए जाने पर बिना किसी प्रतिरोध और बिना नकारात्मकता या धारणाएँ फैलाए स्वीकार कर समर्पण करने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा चाहे वे किसी भी समूह में हों, ज्यादातर लोगों के साथ मिल-जुलकर रह सकें और उनके साथ सामंजस्य से काम कर सकें। जब कोई उनसे कुछ अप्रिय बातें कहकर उनका दिल दुखाए, तो वे बिना कोई हिसाब रखे उसे सहन कर सकें, और कोई उन्हें धौंस दिखाए, तो वे बुराई का दंड बुराई से न दें, बल्कि इसके बजाय, अक्लमंद तरीके अपनाकर अपनी दूरी बनाए रखें और साफ बचकर निकल जाएँ। हालाँकि ऐसे व्यक्तियों में ईमानदार होने से दूर होते हैं, लेकिन वे कम-से-कम काफी हद तक निष्कपट होते हैं, और बुराई नहीं करते और यदि कोई उन्हें नाराज करता है, तो वे प्रतिकार नहीं करते या दूसरे व्यक्ति को सताते नहीं या दबाते नहीं हैं। इसके अलावा, ऐसे लोग अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश नहीं करते, परमेश्वर के घर के विरोध में कार्य करने, परमेश्वर के बारे में धारणा फैलाने, या उसकी आलोचना करने का प्रयास नहीं करते, या कुछ भी विध्वंसकारी या गड़बड़ी पैदा करने का प्रयास नहीं करते। ऊपर दिए गए चार बिंदु उन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के बुनियादी मानदंड हैं, जिनमें कुछ खूबियाँ हैं और जो कुछ पेशेवर कौशलों को समझते हैं। अगर वे ये चार मानदंड पूरे करते हैं, तो वे मूलतः कुछ कर्तव्यों का बोझ उठा सकते हैं और कुछ कार्य उचित तरीके से कर सकते हैं।

कुछ लोग पूछ सकते हैं : “पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए उनमें सत्य को समझना, सत्य वास्तविकता होना, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम होना क्यों शामिल नहीं है? ऐसा कैसे है कि इनमें परमेश्वर को जानने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम होना, परमेश्वर के प्रति वफादार होना और एक मानक स्तर का सृजित प्राणी होना शामिल नहीं है? क्या इन चीजों को पीछे छोड़ दिया गया है?” मुझे बताओ, अगर कोई सत्य समझता है, उसने सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है, वह परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है, परमेश्वर के प्रति वफादार है, उसमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और यही नहीं, वह परमेश्वर को जानता है, उसका प्रतिरोध नहीं करेगा, और एक मानक स्तर का सृजित प्राणी है, तो क्या उसे अब भी विकसित करने की जरूरत है? अगर उसने ये सारी चीजें सचमुच हासिल कर ली हैं, तो क्या विकास का परिणाम पहले ही सिद्ध नहीं हो चुका है? (हाँ।) इसलिए, पदोन्नत और विकसित किए जाने वाले प्रतिभाशाली लोगों से जो अपेक्षाएँ होती हैं, उनमें ये कसौटियाँ शामिल नहीं हैं। क्योंकि उम्मीदवारों को इंसानों के बीच से लेकर पदोन्नत और विकसित किया जाता है जो सत्य नहीं समझते और जो भ्रष्ट स्वभावों से भरे हुए हैं, इसलिए इन पदोन्नत और विकसित किए जाने वाले उम्मीदवारों में पहले से सत्य वास्तविकता का होना या उनका पहले ही पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पित होना असंभव है, परमेश्वर के प्रति पूरी तरह वफादार होना तो दूर की बात है, और वे परमेश्वर को जानने और परमेश्वर का भय मानने वाला दिल रखने से तो निश्चित रूप से और भी दूर हैं। सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए सबसे पहले जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए, वे वही हैं जिनका हमने अभी-अभी जिक्र किया—ये ही सबसे अधिक वास्तविक और विशिष्ट कसौटियाँ हैं। कुछ नकली अगुआ कहते हैं, “यहाँ ऐसे कोई प्रतिभाशाली लोग नहीं हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है। अमुक व्यक्ति सत्य नहीं समझता, अमुक व्यक्ति परमेश्वर का भय मानने वाले दिल के बिना काम करता है, अमुक व्यक्ति काट-छाँट से गुजरने को स्वीकार नहीं कर सकता, अमुक व्यक्ति में कोई वफादारी नहीं है ...” आदि-आदि, इस तरह वे ढेरों खामियाँ निकालते हैं। ऐसी बातें कहकर ये नकली अगुआ क्या जताना चाहते हैं? यह ऐसा है मानो उन लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं करते, और अभी उनमें सत्य वास्तविकता नहीं है, आदि-आदि, जबकि स्वयं अगुआ इस कारण से अगुआ बनने में सक्षम हो सके क्योंकि उन्हें पहले ही थोड़ा व्यावहारिक अनुभव है और उनके पास सत्य वास्तविकता है। क्या नकली अगुआओं के कहने का यह मतलब नहीं है? उनकी नजरों में, कोई भी उनके जैसा अच्छा नहीं है, और उनके सिवाय कोई भी अगुआ बनने लायक नहीं है। नकली अगुआओं का यह अहंकारी स्वभाव है; जब परमेश्वर के घर द्वारा लोगों की पदोन्नति और विकास की बात आती है, तो वे धारणाओं और कल्पनाओं से भरे होते हैं।

III. सामान्य कार्य करने वाले कर्मचारियों से अपेक्षित कसौटियाँ

मैंने अभी-अभी दो प्रकार के लोगों का जिक्र किया जिनका विकास करने पर परमेश्वर का घर ध्यान केंद्रित करता है। एक प्रकार के लोग वे हैं जो अगुआ और कार्यकर्ता बन सकते हैं, और दूसरे प्रकार के लोग वे हैं जो विभिन्न पेशेवर कामों का बीड़ा उठा सकते हैं। एक और प्रकार का व्यक्ति भी होता है। यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें खास खूबियाँ या उसके पास पेशेवर कौशल होते हैं; उसके कार्य में कोई उन्नत टेक्नोलॉजी शामिल नहीं होती, यानी यह कहा जा सकता है कि ये लोग कलीसिया में कुछ साधारण मामलों वाले काम करते हैं, वे कलीसिया के मुख्य कार्य से इतर कुछ मामलों से निपटते हैं। वे इस प्रकार के लोग हैं, जो सामान्य मामलों वाले काम करते हैं। ऐसे लोगों से परमेश्वर के घर की प्रमुख अपेक्षाएँ क्या होती हैं? सबसे महत्वपूर्ण अपेक्षा यह होती है कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम हों, परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरवालों की मदद न करें, और खुद शैतान का अनुग्रह पाने के लिए परमेश्वर के घर के हितों का सौदा न करें। बस इतना ही। चाहे वे गुणी संचारक हों, समाज के आला व्यक्ति हों, या विशेष प्रतिभाशाली व्यक्ति हों, परमेश्वर के घर के बाहरी मामलों को सँभालते समय उन्हें परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर के घर के हितों में क्या शामिल होते हैं? धन, सामग्री, परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा, और भाई-बहनों की सुरक्षा—इनमें से प्रत्येक पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो भी व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होता है, उसमें सामान्य मानवता होती है, वह पर्याप्त ईमानदार होता है, और ऐसा होता है जो सत्य का अभ्यास करने को तैयार होता है। कुछ लोगों को कोई पहचान नहीं होती, और वे कहते हैं, “एक व्यक्ति है जिसकी मानवता बुरी है, मगर वह परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कर सकता है।” क्या यह संभव है? (नहीं, यह संभव नहीं है।) बुरे लोग परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कैसे कर सकते हैं? वे केवल अपने ही हितों की रक्षा कर सकते हैं। इस तरह अगर कोई परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सचमुच सक्षम है, तो वह निश्चित रूप से अच्छे चरित्र और मानवता वाला होगा; यह गलत नहीं हो सकता। परमेश्वर के घर के लिए काम करते समय अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरवालों की मदद करता है, उसके हितों का सौदा करता है, और परमेश्वर के घर को सिर्फ भारी आर्थिक और भौतिक हानि पहुँचाने का कारण ही नहीं बनता, बल्कि परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा को भी भारी क्षति पहुँचाता है, तो क्या वह अच्छा इंसान है? ऐसे लोग निश्चित रूप से अच्छे नहीं होते हैं। उन्हें परवाह नहीं होती कि परमेश्वर के घर को कितना भारी भौतिक और वित्तीय नुकसान पहुँचता है; उनके लिए जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह है खुद लाभान्वित होना और गैर-विश्वासियों का अनुग्रह पाना; वे गैर-विश्वासियों को न सिर्फ उपहार भेजते हैं, बल्कि मोल-तोल के दौरान उन्हें निरंतर छूट भी देते हैं—उनके मन में यह बात नहीं आती कि परमेश्वर के घर के हितों के लिए लड़ना है। फिर भी वे परमेश्वर के घर से यह कहकर झूठ बोलते हैं कि उन्होंने कार्य कैसे पूरा किया, और किस तरह से परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा की, जबकि दरअसल कलीसिया के कार्य को पहले ही क्षति पहुँच चुकी है, और गैर-विश्वासियों ने परमेश्वर के घर का खूब फायदा उठाया है। अगर हर लिहाज से कोई व्यक्ति बाहरी मामले सँभालते समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम हो, तो क्या यह व्यक्ति अच्छा व्यक्ति है? (हाँ।) और इसलिए अगर इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर के घर में कोई अन्य काम करने में अक्षम हो, और सिर्फ इस प्रकार के सामान्य मामले वाला कार्य करने के लायक हो, तो क्या परमेश्वर के घर को उसे पदोन्नत करना चाहिए? (हाँ।) कार्य क्षमता होने और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार अपना कार्य करने में सक्षम होने के अलावा, वह परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में भी सक्षम होता है, इसलिए वह मानक स्तर का होता है, और ऐसे लोगों को पदोन्नत करना चाहिए। दूसरा पहलू देखें, तो जो लोग परमेश्वर के घर के हितों को निरंतर नुकसान पहुँचाते हैं, जो भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए निरंतर जोखिम खड़ी करते हैं, और जो परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा के लिए निरंतर विपरीत प्रभावों और परिणामों का कारण बनते हैं—ऐसे लोगों को पदोन्नत या विकसित नहीं करना चाहिए; अगर पदोन्नत कर उनका उपयोग कर भी लिया गया, तो भी उन्हें जल्द ही बरखास्त कर देना चाहिए। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो अपना काम करते समय हमेशा मुसीबत में फँस जाते हैं, जैसे कि गाड़ी चलाते समय दुर्घटनाग्रस्त होना, जो मामले वे सँभालते हैं उन्हें बिगाड़ देना, या ऐसा टकराव पैदा करना जिसका अंजाम लगातार शिकायतें हों, और अगर कोई खामी हो तो उनका यह न जानना कि उसे ठीक कैसे करें। ऐसे लोग बुद्धि से कमजोर होते हैं, बदकिस्मती लाने वाले और अपव्ययी भी होते हैं। अगर इस प्रकार का व्यक्ति एक टीम अगुआ, पर्यवेक्षक, अगुआ या कार्यकर्ता बन जाए, तो उसे न सिर्फ जल्द ही बरखास्त कर देना चाहिए बल्कि उसे कलीसिया से निकाल भी देना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इस प्रकार का व्यक्ति बरबादी का कारण बनता है और बदकिस्मती लाने वाला होता है। जब तक ऐसे एक या दो लोग कलीसिया में मौजूद रहेंगे, तो कलीसिया में बिल्कुल शांति नहीं हो सकती। लगता है कि ऐसे लोगों के भीतर बुरी आत्माएँ होती हैं या कोई महामारी होती है। जो भी उनके संपर्क में आता है वह दुर्भाग्य का भागी बनेगा, इसलिए इस प्रकार के व्यक्ति को बिना देर किए समूल उखाड़ फेंकना चाहिए। यहाँ तक कि इन लोगों के चेहरों की बनावट भी गलत होती है, ये कुटिल और दानवी भावों या डरावनी कुरूपता से भरे होते हैं, और जो भी उनके संपर्क में आता है, उसे लगेगा कि कुछ बुरा होने वाला है। इस प्रकार के लोगों को बरखास्त कर निकाल देना चाहिए, और तभी कलीसिया के मामले ठीक ढंग से चल सकते हैं। कलीसिया में विभिन्न लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए सिद्धांतों का पालन करना और बूझने का अभ्यास करना जरूरी होता है, ताकि सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया जाए। जिन विभिन्न प्रकार के लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उनके बीच वे लोग भी होते हैं जो कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करते हैं, जो कलीसिया में विभिन्न पेशों का उत्तरदायित्व सँभालते हैं, और जो कलीसिया के सामान्य मामले सँभालते हैं। इन तमाम प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को जिन विभिन्न कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए, उनके बारे में भी स्पष्ट रूप से संगति की जा चुकी है। जब तुम्हारे मन में उन सिद्धांतों को लेकर स्पष्टता होगी कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कैसे चुनना है, और लोगों को कैसे पदोन्नत और विकसित करना है, तो कलीसिया का समस्त कार्य सही मार्ग में प्रवेश करेगा।

कुछ लोग पूछ सकते हैं, “जिन लोगों को परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उन्हें प्रतिभाशाली क्यों कहा जाता है?” हम जिन प्रतिभाशाली लोगों की बात करते हैं, वे पदोन्नति और विकास के उम्मीदवार हैं। विभिन्न कार्य कर सकने वाले लोगों के लिए विभिन्न अपेक्षाएँ होती हैं, और चूँकि वे पदोन्नत और विकसित होने की प्रक्रिया में होते हैं, इसलिए यह काफी है कि ये तथाकथित प्रतिभाशाली लोग उन कसौटियों पर खरे उतर सकें जिनका हमने अभी जिक्र किया। यह आशा करना अयथार्थवादी होगा कि इन लोगों के पास पहले ही सत्य वास्तविकता हो, वे पहले ही समर्पित और वफादार हों, और पहले ही परमेश्वर का भय मानते हों। इस प्रकार, जिन प्रतिभाशाली लोगों की बात हम करते हैं वे महज ऐसे लोग हैं जिनके पास ऐसे कुछ गुण और सत्यनिष्ठा होती है जो सामान्य मानवता वाले लोगों में होनी चाहिए, और उनमें सत्य को समझने की काबिलियत होती है—इस तरह उन्हें योग्यता-प्राप्त माना जाता है। इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने पहले ही सत्य समझ लिया है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है, न ही इसका यह मतलब है कि उन्होंने पहले ही परमेश्वर के न्याय और ताड़ना और ऐसी ही चीजों को स्वीकार कर परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण प्राप्त कर लिया है। निस्संदेह, “प्रतिभाशाली लोग” शब्द का संबंध उन लोगों से नहीं है जिन्होंने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की हो या पीएच.डी. करने का प्रयास किया हो या जो प्रतिष्ठित पारिवारिक पृष्ठभूमि या ऊँचे सामाजिक रुतबे के लोग हों, या विशेष योग्यताओं या गुणों वाले हों—इसका संबंध इन लोगों से नहीं है। चूँकि उन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाना है, इसलिए जिन कुछ लोगों को पेशेवर काम करना है, हो सकता है उनका संभवतः कभी भी उस पेशे से पाला न पड़ा हो या उन्होंने पहले उसका अध्ययन न किया हो, लेकिन अगर वे पदोन्नति और विकास की उन तमाम कसौटियों पर खरे उतरते हैं, और एक विशिष्ट पेशा सीखने को तैयार हैं और सीखने में अच्छे हैं, तो फिर परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित कर सकता है। मेरा यह कहने का क्या तात्पर्य है? मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि किसी व्यक्ति को सिर्फ तभी पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है जब वह स्वाभाविक रूप से किसी खास पेशे में उत्कृष्ट हो। बल्कि, यह है कि अगर उसमें सीखने की ओर झुकाव हो और वह शर्तें पूरी करता हो, या अगर वह इस पेशे की कुछ बुनियादी बातें जानता हो, तो उसे पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है—यही सिद्धांत है। परमेश्वर का घर जिन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करना चाहता है उन्हें जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए उनके बारे में हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।

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